🎄04 जून कबीर प्रकट दिवस के उपलक्ष्य में जरूर जानें क्या थी कबीर साहेब जी की शिक्षाएं।🎄
कबीर साहेब एक साधारण सन्त नहीं थे। वे स्वयं पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर हैं जो समय-समय पर हम भूली-भटकी आत्माओं को सतमार्ग तथा सतभक्ति का ज्ञान कराने हर युग में अवतरित होते हैं।
600 वर्ष पूर्व कबीर जी ने कविताओं और लोकोक्तियों का उपयोग करते हुए सर्व मानव समाज को सत्य ज्ञान का उपदेश दिया था, जिस वजह से उन्होंने एक प्रसिद्ध कवि की उपमा प्राप्त की थी।
कबीर जी की वाणी है की-
“मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार।
तरुवर से पत्ता टूट गिरे, बहुरि न लागे डार।।”
कबीर साहेब जी सर्व मानव समाज को यह समझाना चाहते थे की मनुष्य जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है, यह मानव शरीर बार बार नहीं मिलता जैसे पेड़ से झड़ा हुआ पत्ता वापस पेड़ पर नहीं लग सकता। इस दुर्लभ मनुष्य जन्म से परमात्मा प्राप्ति का जतन करना चाहिए।
कबीर साहेब ने आजीवन अपने समय में फैली सामाजिक बुराइयों चाहे वो मुसलमानों से सम्बन्धित हो या हिन्दुओं से सम्बन्धित उनका पुरजोर विरोध किया था, ब्राह्मणवाद, पाखंडवाद और जातिवाद का खंडन कर अपनी वाणियों के माध्यम से समझाया था की-
"कबीर, पत्थर पूजें हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।
तातें तो चक्की भली, पीस खाये संसार।।"
कबीर साहेब जी ने हिंदुओं को समझाते हुए यह कहा था कि किसी भी देवी-देवता की आप पत्थर की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करते हैं जो कि शास्त्र विरुद्ध है। जो कि हमें कुछ नही दे सकती। इनकी पूजा से अच्छा चक्की की पूजा करना है जिससे हमें खाने के लिए आटा मिलता है।
कबीर परमेश्वर ने कहा था कि, आप हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई, आर्य- बिश्नोई, जैनी आदि आदि धर्मों में बंटे हुए हो। लेकिन सच तो यह है कि आप सब एक ही परमात्मा के बच्चे हो।
"हिंदू-मुस्लिम, सिक्ख-ईसाई, आपस में सब भाई-भाई।
आर्य-जैनी और बिश्नोई, एक प्रभू के बच्चे सोई।"
इसके आलावा परमात्मा कबीर जी ने समाज में फैले जातिवाद का खंडन करने के लिए भी अनेको वाणी कही है-
"जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान ।।"
कबीर जी ने इस वाणी में कटाक्ष करते हुए कहा है कि किसी व्यक्ति से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि ज्ञान की बात करनी चाहिए। असली मोल तो तलवार का होता है, म्यान का नहीं।
इस प्रकार कबीर जी ने अपने दोहों के माध्यम से सर्व मानव समाज को सत्य ज्ञान का सन्देश दिया था, कहा था की सभी मनुष्यों को जाति, धर्म से ऊपर उठकर अपने मोक्ष के लिए प्रयास करना चाहिए साथ ही साथ आपस में कोई मतभेद नहीं रखना चाहिए। वर्तमान में कबीर साहेब की शिक्षाओं का प्रचार संत रामपाल जी महाराज कर रहे है। उनसे नामदीक्षा लेकर कबीर साहेब की शिक्षाओं को जीवन में ढाला जा सकता है।
#KabirPrakatDiwas
#SantRampalJiMaharaj
अधिक जानकारी के लिए "Sant Rampal Ji Maharaj" App Play Store से डाउनलोड करें और "Sant Rampal Ji Maharaj" YouTube Channel पर Videos देखें और Subscribe करें।
संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
🎄04 जून कबीर प्रकट दिवस के उपलक्ष्य में जरूर जानें क्या थी कबीर साहेब जी की शिक्षाएं।🎄
कबीर साहेब एक साधारण सन्त नहीं थे। वे स्वयं पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर हैं जो समय-समय पर हम भूली-भटकी आत्माओं को सतमार्ग तथा सतभक्ति का ज्ञान कराने हर युग में अवतरित होते हैं।
600 वर्ष पूर्व कबीर जी ने कविताओं और लोकोक्तियों का उपयोग करते हुए सर्व मानव समाज को सत्य ज्ञान का उपदेश दिया था, जिस वजह से उन्होंने एक प्रसिद्ध कवि की उपमा प्राप्त की थी।
कबीर जी की वाणी है की-
“मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार।
तरुवर से पत्ता टूट गिरे, बहुरि न लागे डार।।”
कबीर साहेब जी सर्व मानव समाज को यह समझाना चाहते थे की मनुष्य जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है, यह मानव शरीर बार बार नहीं मिलता जैसे पेड़ से झड़ा हुआ पत्ता वापस पेड़ पर नहीं लग सकता। इस दुर्लभ मनुष्य जन्म से परमात्मा प्राप्ति का जतन करना चाहिए।
कबीर साहेब ने आजीवन अपने समय में फैली सामाजिक बुराइयों चाहे वो मुसलमानों से सम्बन्धित हो या हिन्दुओं से सम्बन्धित उनका पुरजोर विरोध किया था, ब्राह्मणवाद, पाखंडवाद और जातिवाद का खंडन कर अपनी वाणियों के माध्यम से समझाया था की-
"कबीर, पत्थर पूजें हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।
तातें तो चक्की भली, पीस खाये संसार।।"
कबीर साहेब जी ने हिंदुओं को समझाते हुए यह कहा था कि किसी भी देवी-देवता की आप पत्थर की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करते हैं जो कि शास्त्र विरुद्ध है। जो कि हमें कुछ नही दे सकती। इनकी पूजा से अच्छा चक्की की पूजा करना है जिससे हमें खाने के लिए आटा मिलता है।
कबीर परमेश्वर ने कहा था कि, आप हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई, आर्य- बिश्नोई, जैनी आदि आदि धर्मों में बंटे हुए हो। लेकिन सच तो यह है कि आप सब एक ही परमात्मा के बच्चे हो।
"हिंदू-मुस्लिम, सिक्ख-ईसाई, आपस में सब भाई-भाई।
आर्य-जैनी और बिश्नोई, एक प्रभू के बच्चे सोई।"
इसके आलावा परमात्मा कबीर जी ने समाज में फैले जातिवाद का खंडन करने के लिए भी अनेको वाणी कही है-
"जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान ।।"
कबीर जी ने इस वाणी में कटाक्ष करते हुए कहा है कि किसी व्यक्ति से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि ज्ञान की बात करनी चाहिए। असली मोल तो तलवार का होता है, म्यान का नहीं।
इस प्रकार कबीर जी ने अपने दोहों के माध्यम से सर्व मानव समाज को सत्य ज्ञान का सन्देश दिया था, कहा था की सभी मनुष्यों को जाति, धर्म से ऊपर उठकर अपने मोक्ष के लिए प्रयास करना चाहिए साथ ही साथ आपस में कोई मतभेद नहीं रखना चाहिए। वर्तमान में कबीर साहेब की शिक्षाओं का प्रचार संत रामपाल जी महाराज कर रहे है। उनसे नामदीक्षा लेकर कबीर साहेब की शिक्षाओं को जीवन में ढाला जा सकता है।
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राम बुलावा भेजिया दिया कबीरा रोए। जो सुख है सत्संग में. बैकुंठ में ना होय ।।
🙏सुनें साधना चैनल पर संत रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन शाम 7:30 से 8:30
https://bit.ly/GodKabirTeachings
🎄04 जून कबीर प्रकट दिवस के उपलक्ष्य में जरूर जानें क्या थी कबीर साहेब जी की शिक्षाएं।🎄
कबीर साहेब एक साधारण सन्त नहीं थे। वे स्वयं पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर हैं जो समय-समय पर हम भूली-भटकी आत्माओं को सतमार्ग तथा सतभक्ति का ज्ञान कराने हर युग में अवतरित होते हैं।
600 वर्ष पूर्व कबीर जी ने कविताओं और लोकोक्तियों का उपयोग करते हुए सर्व मानव समाज को सत्य ज्ञान का उपदेश दिया था, जिस वजह से उन्होंने एक प्रसिद्ध कवि की उपमा प्राप्त की थी।
कबीर जी की वाणी है की-
“मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार।
तरुवर से पत्ता टूट गिरे, बहुरि न लागे डार।।”
कबीर साहेब जी सर्व मानव समाज को यह समझाना चाहते थे की मनुष्य जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है, यह मानव शरीर बार बार नहीं मिलता जैसे पेड़ से झड़ा हुआ पत्ता वापस पेड़ पर नहीं लग सकता। इस दुर्लभ मनुष्य जन्म से परमात्मा प्राप्ति का जतन करना चाहिए।
कबीर साहेब ने आजीवन अपने समय में फैली सामाजिक बुराइयों चाहे वो मुसलमानों से सम्बन्धित हो या हिन्दुओं से सम्बन्धित उनका पुरजोर विरोध किया था, ब्राह्मणवाद, पाखंडवाद और जातिवाद का खंडन कर अपनी वाणियों के माध्यम से समझाया था की-
"कबीर, पत्थर पूजें हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।
तातें तो चक्की भली, पीस खाये संसार।।"
कबीर साहेब जी ने हिंदुओं को समझाते हुए यह कहा था कि किसी भी देवी-देवता की आप पत्थर की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करते हैं जो कि शास्त्र विरुद्ध है। जो कि हमें कुछ नही दे सकती। इनकी पूजा से अच्छा चक्की की पूजा करना है जिससे हमें खाने के लिए आटा मिलता है।
कबीर परमेश्वर ने कहा था कि, आप हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई, आर्य- बिश्नोई, जैनी आदि आदि धर्मों में बंटे हुए हो। लेकिन सच तो यह है कि आप सब एक ही परमात्मा के बच्चे हो।
"हिंदू-मुस्लिम, सिक्ख-ईसाई, आपस में सब भाई-भाई।
आर्य-जैनी और बिश्नोई, एक प्रभू के बच्चे सोई।"
इसके आलावा परमात्मा कबीर जी ने समाज में फैले जातिवाद का खंडन करने के लिए भी अनेको वाणी कही है-
"जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान ।।"
कबीर जी ने इस वाणी में कटाक्ष करते हुए कहा है कि किसी व्यक्ति से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि ज्ञान की बात करनी चाहिए। असली मोल तो तलवार का होता है, म्यान का नहीं।
इस प्रकार कबीर जी ने अपने दोहों के माध्यम से सर्व मानव समाज को सत्य ज्ञान का सन्देश दिया था, कहा था की सभी मनुष्यों को जाति, धर्म से ऊपर उठकर अपने मोक्ष के लिए प्रयास करना चाहिए साथ ही साथ आपस में कोई मतभेद नहीं रखना चाहिए। वर्तमान में कबीर साहेब की शिक्षाओं का प्रचार संत रामपाल जी महाराज कर रहे है। उनसे नामदीक्षा लेकर कबीर साहेब की शिक्षाओं को जीवन में ढाला जा सकता है।
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कबीर साहेब एक साधारण सन्त नहीं थे। वे स्वयं पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर हैं जो समय-समय पर हम भूली-भटकी आत्माओं को सतमार्ग तथा सतभक्ति का ज्ञान कराने हर युग में अवतरित होते हैं।
600 वर्ष पूर्व कबीर जी ने कविताओं और लोकोक्तियों का उपयोग करते हुए सर्व मानव समाज को सत्य ज्ञान का उपदेश दिया था, जिस वजह से उन्होंने एक प्रसिद्ध कवि की उपमा प्राप्त की थी।
कबीर जी की वाणी है की-
“मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार।
तरुवर से पत्ता टूट गिरे, बहुरि न लागे डार।।”
कबीर साहेब जी सर्व मानव समाज को यह समझाना चाहते थे की मनुष्य जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है, यह मानव शरीर बार बार नहीं मिलता जैसे पेड़ से झड़ा हुआ पत्ता वापस पेड़ पर नहीं लग सकता। इस दुर्लभ मनुष्य जन्म से परमात्मा प्राप्ति का जतन करना चाहिए।
कबीर साहेब ने आजीवन अपने समय में फैली सामाजिक बुराइयों चाहे वो मुसलमानों से सम्बन्धित हो या हिन्दुओं से सम्बन्धित उनका पुरजोर विरोध किया था, ब्राह्मणवाद, पाखंडवाद और जातिवाद का खंडन कर अपनी वाणियों के माध्यम से समझाया था की-
"कबीर, पत्थर पूजें हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।
तातें तो चक्की भली, पीस खाये संसार।।"
कबीर साहेब जी ने हिंदुओं को समझाते हुए यह कहा था कि किसी भी देवी-देवता की आप पत्थर की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करते हैं जो कि शास्त्र विरुद्ध है। जो कि हमें कुछ नही दे सकती। इनकी पूजा से अच्छा चक्की की पूजा करना है जिससे हमें खाने के लिए आटा मिलता है।
कबीर परमेश्वर ने कहा था कि, आप हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई, आर्य- बिश्नोई, जैनी आदि आदि धर्मों में बंटे हुए हो। लेकिन सच तो यह है कि आप सब एक ही परमात्मा के बच्चे हो।
"हिंदू-मुस्लिम, सिक्ख-ईसाई, आपस में सब भाई-भाई।
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इसके आलावा परमात्मा कबीर जी ने समाज में फैले जातिवाद का खंडन करने के लिए भी अनेको वाणी कही है-
"जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
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कबीर जी ने इस वाणी में कटाक्ष करते हुए कहा है कि किसी व्यक्ति से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि ज्ञान की बात करनी चाहिए। असली मोल तो तलवार का होता है, म्यान का नहीं।
इस प्रकार कबीर जी ने अपने दोहों के माध्यम से सर्व मानव समाज को सत्य ज्ञान का सन्देश दिया था, कहा था की सभी मनुष्यों को जाति, धर्म से ऊपर उठकर अपने मोक्ष के लिए प्रयास करना चाहिए साथ ही साथ आपस में कोई मतभेद नहीं रखना चाहिए। वर्तमान में कबीर साहेब की शिक्षाओं का प्रचार संत रामपाल जी महाराज कर रहे है। उनसे नामदीक्षा लेकर कबीर साहेब की शिक्षाओं को जीवन में ढाला जा सकता है।
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कबीर साहेब एक साधारण सन्त नहीं थे। वे स्वयं पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर हैं जो समय-समय पर हम भूली-भटकी आत्माओं को सतमार्ग तथा सतभक्ति का ज्ञान कराने हर युग में अवतरित होते हैं।
600 वर्ष पूर्व कबीर जी ने कविताओं और लोकोक्तियों का उपयोग करते हुए सर्व मानव समाज को सत्य ज्ञान का उपदेश दिया था, जिस वजह से उन्होंने एक प्रसिद्ध कवि की उपमा प्राप्त की थी।
कबीर जी की वाणी है की-
“मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार।
तरुवर से पत्ता टूट गिरे, बहुरि न लागे डार।।”
कबीर साहेब जी सर्व मानव समाज को यह समझाना चाहते थे की मनुष्य जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है, यह मानव शरीर बार बार नहीं मिलता जैसे पेड़ से झड़ा हुआ पत्ता वापस पेड़ पर नहीं लग सकता। इस दुर्लभ मनुष्य जन्म से परमात्मा प्राप्ति का जतन करना चाहिए।
कबीर साहेब ने आजीवन अपने समय में फैली सामाजिक बुराइयों चाहे वो मुसलमानों से सम्बन्धित हो या हिन्दुओं से सम्बन्धित उनका पुरजोर विरोध किया था, ब्राह्मणवाद, पाखंडवाद और जातिवाद का खंडन कर अपनी वाणियों के माध्यम से समझाया था की-
"कबीर, पत्थर पूजें हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।
तातें तो चक्की भली, पीस खाये संसार।।"
कबीर साहेब जी ने हिंदुओं को समझाते हुए यह कहा था कि किसी भी देवी-देवता की आप पत्थर की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करते हैं जो कि शास्त्र विरुद्ध है। जो कि हमें कुछ नही दे सकती। इनकी पूजा से अच्छा चक्की की पूजा करना है जिससे हमें खाने के लिए आटा मिलता है।
कबीर परमेश्वर ने कहा था कि, आप हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई, आर्य- बिश्नोई, जैनी आदि आदि धर्मों में बंटे हुए हो। लेकिन सच तो यह है कि आप सब एक ही परमात्मा के बच्चे हो।
"हिंदू-मुस्लिम, सिक्ख-ईसाई, आपस में सब भाई-भाई।
आर्य-जैनी और बिश्नोई, एक प्रभू के बच्चे सोई।"
इसके आलावा परमात्मा कबीर जी ने समाज में फैले जातिवाद का खंडन करने के लिए भी अनेको वाणी कही है-
"जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान ।।"
कबीर जी ने इस वाणी में कटाक्ष करते हुए कहा है कि किसी व्यक्ति से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि ज्ञान की बात करनी चाहिए। असली मोल तो तलवार का होता है, म्यान का नहीं।
इस प्रकार कबीर जी ने अपने दोहों के माध्यम से सर्व मानव समाज को सत्य ज्ञान का सन्देश दिया था, कहा था की सभी मनुष्यों को जाति, धर्म से ऊपर उठकर अपने मोक्ष के लिए प्रयास करना चाहिए साथ ही साथ आपस में कोई मतभेद नहीं रखना चाहिए। वर्तमान में कबीर साहेब की शिक्षाओं का प्रचार संत रामपाल जी महाराज कर रहे है। उनसे नामदीक्षा लेकर कबीर साहेब की शिक्षाओं को जीवन में ढाला जा सकता है।
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दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार, तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार भावार्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य का जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है यह शरीर बार बार नहीं मिलता जैसे पेड़ से झड़ा हुआ पत्ता वापस पेड़ पर नहीं लग सकता। (at S.s.s Public School Narela) https://www.instagram.com/p/Cjji2wUvCnp/?igshid=NGJjMDIxMWI=