जब गुजरू तेरे मोहल्ले से
तु छज्जे पर मेरा इंतज़ार करे।
कुछ पल ही सही हम सब छोड़ - छाड़ के
एक दूसरे का दीदार करे।
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आज कल बोलने वाला प्यार तो हर गली मोहल्ले में मिल जाता है
ऐसा प्यार कहाँ जो सिर्फ़ निभाते जाये और ढेर सारा प्यार भी करे ?
avis
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"मुख्तसर हुआ यूं कि हम उनके मोहल्ले में उनके मकान के नीचे, उनकी एक आस लेने के लिए खड़े थे"
"अरे सुनो पहले फिर वाह वाह करना"
"हा तो हम कह रहे थे"
"मुख्तसर हुआ यूं कि हम उनके मोहल्ले में उनके मकान के नीचे, उनकी एक आस लेने के लिए खड़े थे "
"पर मियां फिर सब कुछ अच्छा नहीं हुआ",
"क्यों क्यों"
क्योंकि जब उन्होंने हमें देखा तब कमबखत उनके मोहल्ले के कुत्ते हमारे पीछे पड़े थे ।।
- अय्यारी
बस बस बस बस टमाटर है हमारे घर में, प्याज़, सेव और धनिया मारना ।। बहुत सही भेल खिलाएंगे।।
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मेरी पंक्तियां बिखरने लगते
जब तुम्हारे मेरे फासले बढ़ने लगते है
मेरी सियाही रूठने लगती है
जब तुम्हारी जबान से नाम फिसलने
लगते है
बस एक क्षण अगर
तुम अपनी आखों से मुझे बांध लो
अपनी हृदय का एक कतरा मुझे
सौंप दो
मेरी हथेली पर अपने हाथ रख कर
उसे सितारों के आसमान सा सजा दो
तो शायद मेरे मोहल्ले में
रूठा अमावस भी
चांद के प्रेम में
झलक जाय,
मेरे दरवाजे पर परवाने फिर
लौट आए,
अगर बस तुम्हारा थोड़ा प्रेम
मेरी चौखट पर आहट दे जाय।
-bahara
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मगहर शहर में आज एक 'मोहल्ला कबीर करम' बसा हुआ है। इसके पीछे की कहानी यह है कि कबीर जी ने वहां एक निःसंतान 70 वर्षीय बुजुर्ग को अपने आशीर्वाद से एक पुत्र दिया। उस मोहल्ले को इसलिए मोहल्ला कबीर करम नाम से जाना जाने लगा।
कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस
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पुरानी दिल्ली के किसी कोने में,
एक दूसरी कक्षा के वर्ग में,
जब सवाल पूछा गया की बच्चो,
"हरा रंग तुम्हे किसकी याद दिलाता है?"
जवाब आए: पेड़, घास, अंगूर, क्रिकेट की गेंद,
और हमारे घरों को ढकने के लिए इस्तेमाल कि गई,
उस (सत्ता के सिद्धांतो जितनी ही खोकली) हरी दीवार की।
लेकिन बच्चो का सवाल यह था,
की, एक ही मोहल्ले को ढकनेवाली हरी दीवार पे,
एक ही इंसान का फोटो २३० बार लगाने का क्या उद्देश हो सकता है?
संस्कृती
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कबीर बड़ा या कृष्ण Part 108
‘‘कबीर जी द्वारा स्वामी रामानन्द के मन की बात बताना’’
दूसरे दिन विवेकानन्द ऋषि अपने साथ नौ व्यक्तियों को लेकर जुलाहा काॅलोनी में नीरू के मकान के विषय में पूछने लगा कि नीरू का मकान कौन सा है? कालोनी के एक व्यक्ति को उनके आव-भाव से लगा कि ये कोई अप्रिय घटना करने के उद्देश्य से आए हैं। उसने शीघ्रता से नीरू को जाकर बताया कि कुछ ब्राह्मण आपके घर आ रहे हैं। उनकी नीयत झगड़ा करने की है। नीमा भी वहीं खड़ी उस व्यक्ति की बातें सुन रही थी उसी समय वे ब्राह्मण गली में नीरू के मकान की ओर आते दिखाई दिए। नीमा समझ गई कि अवश्य कबीर ने इन ब्राह्मणों से ज्ञान चर्चा की है। वे ईष्र्यालु व्यक्ति मेरे बेटे को मार डालेगें। इतना विचार करके सोए हुए बालक कबीर को जगाया तथा अपनी झोंपड़ी के पीछे ले गई वहाँ लेटा कर रजाई डाल दी तथा कहा बेटा बोलना नहीं है। कुछ व्यक्ति झगड़ा करने के उद्देश्य से अपने घर आ रहे हैं। नीमा अपने घर के द्वार पर गली में खड़ी हो गई। तब तक वे ब्राह्मण घर के निकट आ चुके थे। उन्होंने पूछा क्या नीरू का घर यही है ? नीमा ने उत्तर दिया हाँ ऋषि जी! यही है कहो कैसे आना हुआ। ऋषि विवेकानन्द बोला कहाँ है तुम्हारा शरारती बच्चा कबीर? कल उसने भरी सभा में मेरे गुरुदेव का अपमान किया है। आज उस की पिटाई गुरु जी सर्व के समक्ष करेंगे। इसको सबक सिखाऐंगे। नीमा बोली मेरा बेटा निर्दोष है वह किसी का अपमान नहीं कर सकता। आप मेरे बेटे से ईष्र्या रखते हो। कभी कोई ब्राह्मण उलहाने (शिकायत) लेकर आता है कभी कोई तो कभी कोई आता है। आप मेरे बेटे की जान के शत्रु क्यों बने हो? लौट जाइए।
सर्व ब्राह्मण बलपूर्वक नीरू की झोंपड़ी में प्रवेश करके कपड़ों को उठा-2 कर बालक को खोजने लगे। चारपाइयों को भी उल्ट कर पटक दिया। जोर-2 से ऊंची आवाज में बोलने लगे। मात-पिता को दुःखी जानकर बालक रूपधारी कबीर परमेश्वर जी रजाई से निकल कर खड़े हो गए तथा कहा ऋषि जी मैं झोपड़ी के पीछे छुपा हूँ। बच्चे की आवाज सुनकर सर्व ब्राह्मण पीछे गए। वहाँ खड़े कबीर जी को पकड़ कर अपने साथ ले जाने लगे। नीमा तथा नीरू ने विरोध किया। नीमा ने बालक कबीर जी को सीने से लगाकर कहा मेरे बच्चे को मत ले जाओ। मत ले जाओ----- ऐसे कह कर रोने लगी। निर्दयों ने नीमा को धक्का मार कर जमीन पर गिरा दिया। नीमा फिर उठ कर पीछे दौड़ी तथा बालक कबीर जी का हाथ उनसे छुटवाने का प्रयत्न किया। एक व्यक्ति ने ऐसा थप्पड़ मारा नीमा के मुख व नाक से रक्त टपकने लगा। नीमा रोती हुई गली में अचेत हो गई। नीरू ने भी बच्चे को छुड़वाने की कोशिश की तो उसे भी पीट-2 कर मृत सम कर दिया। काॅलोनी वाले उठाकर उनके घर ले गए। बहुत समय पश्चात् दोनों सचेत हुए। बच्चे के वियोग में रो-2 कर दोनों का बुरा हाल था। नीरू चोट के कारण चल-फिरने में असमर्थ जमीन पर गिर कर विलाप कर रहा था। कभी चुप होकर भयभीत हुआ गली की ओर देख रहा था। मन में सोच रहा था कि कहीं वे लौट कर ना आ जाऐं तथा मुझे जान से न मार डालें। फिर बच्चे को याद करके विलाप करने लगता। मेरे बेटे को मत मारो-मत मारो इसने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा। ऐसे पागल जैसी स्थिति नीरू की हो गई थी। नीमा होश में आती थी फिर अपने बच्चे के साथ हो रहे अत्याचार की कल्पना कर बेहोश (अचेत) हो जाती थी। मोहल्ले (काॅलोनी) के स्त्री पुरूष उनकी दशा देखकर अति दुःखी थे।
प्रातःकाल का समय था। स्वामी रामानन्द जी गंगा नदी पर स्नान करके लौटे ही थे। अपनी कुटिया (भ्नज) में बैठे थे। जब उन्हें पता चला कि उस बालक कबीर को पकड़ कर ऋषि विवेकानन्द जी की टीम ला रही है तो स्वामी रामानन्द जी ने अपनी कुटिया के द्वार पर कपड़े का पर्दा लगा लिया। यह दिखाने के लिए कि मैं पवित्र जाति का ब्राह्मण हूँ तथा शुद्रों को दीक्षा देना तो दूर की बात है, सुबह-2 तो दर्शन भी नहीं करता।
ऋषि विवेकानन्द जी ने बालक कबीर देव जी को कुटिया के समक्ष खड़ा करके कहा हे गुरुदेव। यह रहा वह झूठा बच्चा कबीर जुलाहा। उस समय ऋषि विवेकानन्द जी ने अपने प्रचार क्षेत्र के व्यक्तियों को विशेष कर बुला रखा था। यह दिखाने के लिए कि यह कबीर झूठ बोलता है। स्वामी रामानन्द जी कहेंगे मैंने इसको कभी दीक्षा नहीं दी। जिससे सर्व उपस्थित व्यक्तियों को यह बात जचेगी कि कबीर पुराणों के विषय में भी झूठ बोल रहा था जिन के बारे में कबीर जी ने लिखा बताया था कि श्री विष्णु जी, श्री शिव जी तथा ब्रह्मा जी नाशवान हैं। इनका जन्म होता है तथा मृत्यु भी होती है तथा इनकी माता का नाम प्रकृति देवी (दुर्गा) है तथा पिता का नाम सदाशिव अर्थात् काल ब्रह्म है। जिन हाथों से कबीर परमेश्वर को पकड़ कर लाए थे। उन सर्व व्यक्तियों ने अपने हाथ मिट्टी से रगड़-रगड़ कर धोए तथा सर्व उपस्थित व्यक्तियों के समक्ष बाल्टी में जल भर कर स्नान किया सर्व वस्त्र जो शरीर पर पहन रखे थे वे भी कूट-2 कर धोए।
स्वामी रामानन्द जी ने अपनी कुटिया के द्वार पर खड़े पाँच वर्षीय बालक कबीर से ऊँची आवाज में प्रश्न किया। हे बालक ! आपका क्या नाम है? कौन जाति में जन्म है? आपका भक्ति पंथ (मार्ग) कौन है? उस समय लगभग हजार की संख्या में दर्शक उपस्थित थे। बालक कबीर जी ने भी आधीनता से ऊँची आवाज में उत्तर दिया:-
जाति मेरी जगत्गुरु, परमेश्वर है पंथ। गरीबदास लिखित पढे, मेरा नाम निरंजन कंत।।
हे स्वामी सृष्टा मैं सृष्टि मेरे तीर। दास गरीब अधर बसूँ अविगत सत् कबीर।
गोता मारूं स्वर्ग में जा पैठंू पाताल। गरीब दास ढूंढत फिरू हीरे माणिक लाल।
भावार्थ:- कबीर जी ने कहा हे स्वामी रामानन्द जी! परमेश्वर के घर कोई जाति नहीं है। आप विद्वान पुरूष होते हुए वर्ण भेद को महत्त्व दे रहे हो। मेरी जाति व नाम तथा भक्ति पंथ जानना चाहते हो तो सुनों। मेरा नाम वही कविर्देव है जो वेदों में लिखा है जिसे आप जी पढ़ते हो। मैं वह निरंजन (माया रहित) कंत (सर्व का पति) अर्थात् सबका स्वामी हूँ। मैं ही सर्व सृष्टि रचनहार (सृष्टा) हूँ। यह सृष्टि मेरे ही आश्रित (तीर यानि किनारे) है। मैं ऊपर सतलोक में निवास करता हूँ। मैं वह अमर अव्यक्त (अविगत सत्) कबीर हूँ। जिसका वर्णन गीता अध्याय 8 श्लोक सं.20 से 22 में है। हे स्वामी जी गीता अध्याय 7 श्लोक 24 में गीता ज्ञान दाता अर्थात् काल ब्रह्म (क्षर पुरूष) अपने विषय में बताता है कि! यह मूर्ख मनुष्य समुदाय मुझ अव्यक्त को कृष्ण रूप में व्यक्ति मान रहे हैं। मैं सबके समक्ष प्रकट नहीं होता। यह मनुष्य समुदाय मेरे इस अश्रेष्ठ अटल नियम से अपरिचित हैं (24) गीता अ. 7 श्लोक 25 में कहा है कि मैं (गीता ज्ञान दाता) अपनी योगमाया (सिद्धिशक्ति) से छिपा हुआ अपने वास्तविक रूप में सबके समक्ष प्रत्यक्ष नहीं होता। यह अज्ञानी जन समुदाय मुझ कृष्ण व राम आदि की तरह माता से जन्म न लेने वाले प्रभु को तथा अविनाशी (जो अन्य अव्यक्त परमेश्वर है) को नहीं जानते।
हे स्वामी रामानन्द जी गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 में गीता ज्ञान दाता काल ब्रह्म (क्षर पुरूष) ने अपने को अव्यक्त कहा है यह प्रथम अव्यक्त प्रभु हुआ। अब सुनो दूसरे तथा तीसरे अव्यक्त प्रभुओं के विषय में। गीता अध्याय 8 श्लोक 18-19 में गीता ज्ञान दाता ने अपने से अन्य अव्यक्त परमात्मा का वर्णन किया है कहा है:- यह सर्व चराचर प्राणी दिन के समय अव्यक्त परमात्मा से उत्पन्न होते है रात्रि के समय उसी में लीन हो जाते हैं। यह जानकारी काल ब्रह्म ने अपने से अन्य अव्यक्त प्रभु (परब्रह्म) अर्थात् अक्षर ���्रह्म के विषय में दी है। यह दूसरा अव्यक्त (अविगत) प्रभु हुआ तीसरे अव्यक्त (अविगत) परमात्मा अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म के विषय में गीता अध्याय 8 श्लोक 20 से 22 में कहा है कि जिस अव्यक्त प्रभु का गीता अध्याय 8 श्लोक 18-19 में वर्णन किया है वह पूर्ण प्रभु नहीं है। वह भी वास्तव में अविनाशी प्रभु नहीं है। परन्तु उस अव्यक्त (जिसका विवरण उपरोक्त श्लोक 18-19 में है) से भी अति परे दूसरा जो सनातन अव्यक्त भाव है वह परम दिव्य परमेश्वर सब भूतों (प्राणियों) के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता। वह अक्षर अव्यक्त अविनाशी अविगत अर्थात् वास्तव में अविनाशी अव्यक्त प्रभु इस नाम से कहा गया है। उसी अक्षर अव्यक्त की प्राप्ति को परमगति कहते हैं। जिस दिव्य परम परमात्मा को प्राप्त होकर साधक वापस लौट कर इस संसार में नहीं आते (इसी का विवरण गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा श्लोक 16-17 में भी है) वह धाम अर्थात् जिस लोक (धाम) में वह अविनाशी (अव्यक्त) परमात्मा रहता है वह धाम (स्थान) मेरे वाले लोक (ब्रह्मलोक) से श्रेष्ठ है। हे पार्थ! जिस अविनाशी परमात्मा के अन्तर्गत सर्व प्राणी हैं। जिस सच्चिदानन्द घन परमात्मा से यह समस्त जगत परिपूर्ण है, वह सनातन अव्यक्त परमेश्वर तो अनन्य भक्ति से प्राप्त होने योग्य है (गीता अ. 8/मं.20, 21, 22) हे स्वामी रामानन्द जी मैं वही तीसरी श्रेणी वाला अविगत (अव्यक्त) सत् (सनातन अविनाशी भाव वाला परमेश्वर) कबीर हूँ। जिसे वेदों में कविर्देव कहा है वही कबीर देव मैं कहलाता हूँ।
हे स्वामी रामानन्द जी! सर्व सृष्टि को रचने वाला (सृष्टा) मैं ही हूँ। मैं ही आत्मा का आधार जगतगुरु जगत् पिता, बन्धु तथा जो सत्य साधना करके सत्यलोक जा चुके हैं उनको सत्यलोक पहुँचाने वाला मैं ही हूँ। काल ब्रह्म की तरह धोखा न देने वाले स्वभाव वाला कबीर देव (कर्विदेव) मैं ही हूँ। जिसका प्रमाण अर्थववेद काण्ड 4 अनुवाक 1 मन्त्रा 7 में लिखा है।
काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र 7
योऽथर्वाणं पित्तरं देवबन्धुं बृहस्पतिं नमसाव च गच्छात्।
त्वं विश्वेषां जनिता यथासः कविर्देवो न दभायत् स्वधावान्।।7।।
यः अथर्वाणम् पित्तरम् देवबन्धुम् बृहस्पतिम् नमसा अव च गच्छात् त्वम् विश्वेषाम् जनिता यथा सः कविर्देवः न दभायत् स्वधावान्
अनुवाद:- (यः) जो (अथर्वाणम्) अचल अर्थात् अविनाशी (पित्तरम्) जगत पिता (देव बन्धुम्) भक्तों का वास्तविक साथी अर्थात् आत्मा का आधार (बृहस्पतिम्) बड़ा स्वामी अर्थात् परमेश्वर व जगत्गुरु (च) तथा (नमसाव) विनम्र पुजारी अर्थात् विधिवत् साधक को सुरक्षा के साथ (गच्छात्) सतलोक गए हुओं को यानि जो मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं, उनको सतलोक ले जाने वाला (विश्वेषाम्) सर्व ब्रह्मण्डों की (जनिता) रचना करने वाला जगदम्बा अर्थात् माता वाले गुणों से भी युक्त (न दभायत्) काल की तरह धोखा न देने वाले (स्वधावान्) स्वभाव अर्थात् गुणों वाला (यथा) ज्यों का त्यों अर्थात् वैसा ही (सः) वह (त्वम्) आप (कविर्देवः/ कविर्देवः) कविर्देव है अर्थात् भाषा भिन्न इसे कबीर परमेश्वर भी कहते हैं।
केवल हिन्दी अनुवाद:- जो अचल अर्थात् अविनाशी जगत पिता भक्तों का वास्तविक साथी अर्थात् आत्मा का आधार बड़ा स्वामी अर्थात् परमेश्वर व जगत्गुरु तथा विनम्र पुजारी अर्थात् विधिवत् साधक को सुरक्षा के साथ सतलोक गए हुओं को यानि जो मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं, उनको सतलोक ले जाने वाला सर्व ब्रह्मण्डों की रचना करने वाला जगदम्बा अर्थात् माता वाले गुणों से भी युक्त काल की तरह धोखा न देने वाले स्वभाव अर्थात् गुणों वाला ज्यों का त्यों अर्थात् वैसा ही वह आप कविर्देव है अर्थात् भाषा भिन्न इसे कबीर परमेश्वर भी कहते हैं।
भावार्थ:- इस मंत्र में यह भी स्पष्ट कर दिया कि उस परमेश्वर का नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है, जिसने सर्व रचना की है।
जो परमेश्वर अचल अर्थात् वास्तव में अविनाशी (गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में भी प्रमाण है) जगत् गुरु, परमेश्वर आत्माधार, जो पूर्ण मुक्त होकर सत्यलोक गए हैं यानि जो मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं, उनको सतलोक ले जाने वाला, सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार, काल (ब्रह्म) की तरह धोखा न देने वाला ज्यों का त्यों वह स्वयं कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु है। यही परमेश्वर सर्व ब्रह्मण्डों व प्राणियों को अपनी शब्द शक्ति से उत्पन्न करने के कारण (जनिता) माता भी कहलाता है तथा (पित्तरम्) पिता तथा (बन्धु) भाई भी वास्तव में यही है तथा (देव) परमेश्वर भी यही है। इसलिए इसी कविर्देव (कबीर परमेश्वर) की स्तुति किया करते हैं।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धु च सखा त्वमेव, त्वमेव विद्या च द्रविणंम त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम् देव देव। इसी परमेश्वर की महिमा का पवित्र ऋग्वेद मण्डल नं. 1 सूक्त नं. 24 में विस्तृत विवरण है।
पाँच वर्षीय बालक के मुख से वेदो व गीता जी के गूढ़ रहस्य को सुनकर ऋषि रामानन्द जी आश्चर्य चकित रह गए तथा क्रोधित होकर अपशब्द कहने लगे। वाणीः-
रामानंद अधिकार सुनि, जुलहा अक जगदीश। दास गरीब बिलंब ना, ताहि नवावत शीश।।407।।
रामानंद कूं गुरु कहै, तनसैं नहीं मिलात। दास गरीब दर्शन भये, पैडे लगी जुं लात।।408।।
पंथ चलत ठोकर लगी, रामनाम कहि दीन। दास गरीब कसर नहीं, सीख लई प्रबीन।।409।।
आडा पड़दा लाय करि, रामानंद बूझंत। दास गरीब कुलंग छबि, अधर डांक कूदंत।।410।।
कौन जाति कुल पंथ है, कौन तुम्हारा नाम। दास गरीब अधीन गति, बोलत है बलि जांव।।411।।
जाति हमारी जगतगुरु, परमेश्वर पद पंथ। दास गरीब लिखति परै, नाम निंरजन कंत।।412।।
रे बालक सुन दुर्बद्धि, घट मठ तन आकार। दास गरीब दरद लग्या, हो बोले सिरजनहार।।413।।
तुम मोमन के पालवा, जुलहै के घर बास। दास गरीब अज्ञान गति, एता दृढ़ विश्वास।।414।।
मान बड़ाई छाड़ि करि, बोलौ बालक बैंन। दास गरीब अधम मुखी, एता तुम घट फैंन।।415।।
तर्क तलूसैं बोलतै, रामानंद सुर ज्ञान। दास गरीब कुजाति है, आखर नीच निदान।।423।।
परमेश्वर कबीर जी (कविर्देव) ने प्रेमपूर्वक उत्तर दिया -
महके बदन खुलास कर, सुनि स्वामी प्रबीन। दास गरीब मनी मरै, मैं आजिज आधीन।।428।।
मैं अविगत गति सैं परै, च्यारि बेद सैं दूर। दास गरीब दशौं दिशा, सकल सिंध भरपूर।।429।।
सकल सिंध भरपूर हूँ, खालिक हमरा नाम। दासगरीब अजाति हूँ, तैं जो कह्या बलि जांव।।430।।
जाति पाति मेरे नहीं, नहीं बस्ती नहीं गाम। दासगरीब अनिन गति, नहीं हमारै चाम।।431।।
नाद बिंद मेरे नहीं, नहीं गुदा नहीं गात। दासगरीब शब्द सजा, नहीं किसी का साथ।।432।।
सब संगी बिछरू नहीं, आदि अंत बहु जांहि। दासगरीब सकल वंसु, बाहर भीतर माँहि।।433।।
ए स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टि हमारै तीर। दास गरीब अधर बसूं, अविगत सत्य कबीर।।434।।
पौहमी धरणि आकाश में, मैं व्यापक सब ठौर। दास गरीब न दूसरा, हम समतुल नहीं और।।436।।
हम दासन के दास हैं, करता पुरुष करीम। दासगरीब अवधूत हम, हम ब्रह्मचारी सीम।।439।।
सुनि रामानंद राम हम, मैं बावन नरसिंह। दास गरीब कली कली, हमहीं से कृष्ण अभंग।।440।।
हमहीं से इंद्र कुबेर हैं, ब्रह्मा बिष्णु महेश। दास गरीब धर्म ध्वजा, धरणि रसातल शेष।।447।।
सुनि स्वामी सती भाखहूँ, झूठ न हमरै रिंच। दास गरीब हम रूप बिन, और सकल प्रपंच।।453।।
गोता लाऊं स्वर्ग सैं, फिरि पैठूं पाताल। गरीबदास ढूंढत फिरूं, हीरे माणिक लाल।।476।।
इस दरिया कंकर बहुत, लाल कहीं कहीं ठाव। गरीबदास माणिक चुगैं, हम मुरजीवा नांव।।477।।
मुरजीवा माणिक चुगैं, कंकर पत्थर डारि। दास गरीब डोरी अगम, उतरो शब्द अधार।।478।।
स्वामी रामानन्द जी ने कहाः- अरे कुजात! अर्थात् शुद्र! छोटा मुंह बड़ी बात, तू अपने आपको परमात्मा कहता है। तेरा शरीर हाड़-मांस व रक्त निर्मित है। तू अपने आपको अविनाशी परमात्मा कहता है। तेरा जुलाहे के घर जन्म है फिर भी अपने आपको अजन्मा अविनाशी कहता है तू कपटी बालक है। परमेश्वर कबीर जी ने कहाः-
ना मैं जन्मु ना मरूँ, ज्यों मैं आऊँ त्यों जाऊँ। गरीबदास सतगुरु भेद से लखो हमारा ढांव।।
सुन रामानन्द राम मैं, मुझसे ही बावन नृसिंह। दास गरीब युग-2 हम से ही हुए कृष्ण अभंग।।
भावार्थः- कबीर जी ने उत्तर दिया हे रामानन्द जी, मैं न तो जन्म लेता हूँ ? न मृत्यु को प्राप्त होता हूँ। मैं चैरासी लाख प्राणियों के शरीरों में आने (जन्म लेने) व जाने (मृत्यु होने) के चक्र से भी रहित हूँ। मेरी विशेष जानकारी किसी तत्त्वदर्शी सन्त (सतगुरु) के ज्ञान को सुनकर प्राप्त करो। गीता अध्याय 4 श्लोक 34 तथा यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 10-13 में वेद ज्ञान दाता स्वयं कह रहा है कि उस पूर्ण परमात्मा के तत्व (वास्तविक) ज्ञान से मैं अपरिचित हूँ। उस तत्त्वज्ञान को तत्त्वदर्शी सन्तों से सुनों उन्हें दण्डवत् प्रणाम करो, अति विनम्र भाव से परमात्मा के पूर्ण मोक्ष मार्ग के विषय में ज्ञान प्राप्त करो, जैसी भक्ति विधि से तत्त्वदृष्टा सन्त बताऐं वैसे साधना करो। गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में लिखा है कि श्लोक 16 में जिन दो पुरूषों (भगवानों) 1) क्षर पुरूष अर्थात् काल ब्रह्म तथा 2) अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म का उल्लेख है, वास्तव में अविनाशी परमेश्वर तथा सर्व का पालन पोषण व धारण करने वाला परमात्मा तो उन उपरोक्त दोनों से अन्य ही है। हे स्वामी रामानन्द जी! वह उत्तम पुरूष अर्थात् सर्व श्रेष्ठ प्रभु मैं ही हूँ। इस बात को सुनकर स्वामी रामानन्द जी बहुत क्षुब्ध हो गए तथा कहा कि रे बालक! तू निम्न जाति का और छोटा मुँह बड़ी बात कर रहा है। तू अपने आप भगवान बन बैठा। बुरी गालियाँ भी दी। कबीर साहेब बोले कि गुरुदेव! आप मेरे गुरुजी हैं। आप मुझे गाली दे रहे हो तो भी मुझे आनन्द आ रहा है। लेकिन मैं जो आपको कह रहा हूँ, मैं ज्यों का त्यों पूर्णब्रह्म ही हूँ, इसमें कोई संशय नहीं है। इस बात को सुनकर रामानन्द जी ने कहा कि ठहर जा तेरी तो लम्बी कहानी बनेगी, तू ऐसे नहीं मानेगा। मैं पहले अपनी पूजा कर लेता हूँ। रामानन्द जी ने कहा कि इसको बैठाओ। मैं पहले अपनी कुछ क्रिया रहती है वह कर लेता हूँ, बाद में इससे निपटूंगा।
स्वामी रामानन्द जी क्या क्रिया करते थे?
भगवान विष्णु जी की एक काल्पनिक मूर्ति बनाते थे। सामने मूर्ति दिखाई देने लग जाती थी (जैसे कर्मकाण्ड करते हैं, भगवान की मूर्ति के पहले वाले सारे कपड़े उतार कर, उनको जल से स्नान करवा कर, फिर स्वच्छ कपड़े भगवान ठाकुर को पहना कर गले में माला डालकर, तिलक लगा कर मुकुट रख देते हैं।) रामानन्द जी कल्पना कर रहे थे। कल्पना करके भगवान की काल्पनिक मूर्ति बनाई। श्रद्धा से जैसे नंगे पैरों जाकर आप ही गंगा जल लाए हों, ऐसी अपनी भावना बना कर ठाकुर जी की मूर्ति के कपड़े उतारे, फिर स्नान करवाया तथा नए वस्त्र पहना दिए। तिलक लगा दिया, मुकुट रख दिया और माला (कण्ठी) डालनी भूल गए। कण्ठी न डाले तो पूजा अधूरी और मुकुट रख दिया तो उस दिन मुकुट उतारा नहीं जा सकता। उस दिन मुकुट उतार दे तो पूजा खण्डित। स्वामी रामानन्द जी अपने आपको कोस रहे हैं कि इतना जीवन हो गया मेरा कभी, भी ऐसी गलती जिन्दगी में नहीं हुई थी। प्रभु आज मुझ पापी से क्या गलती हुई है? यदि मुकुट उतारूँ तो पूजा खण्डित। उसने सोचा कि मुकुट के ऊपर से कण्ठी (माला) डाल कर देखता हूँ (कल्पना से कर रहे हैं कोई सामने मूर्ति नहीं है और पर्दा लगा है कबीर साहेब दूसरी ओर बैठे हैं)। मुकुट में माला फँस गई है आगे नहीं जा रही थी। जैसे स्वपन देख रहे हों। रामानन्द जी ने सोचा अब क्या करूं? हे भगवन्! आज तो मेरा सारा दिन ही व्यर्थ गया। आज की मेरी भक्ति कमाई व्यर्थ गई (क्योंकि जिसको परमात्मा की कसक होती है उसका एक नित्य नियम भी रह जाए तो उसको दर्द बहुत होता है। जैसे इंसान की जेब कट जाए और फिर बहुत पश्चाताप करता है। प्रभु के सच्चे भक्तों को इतनी लगन होती है।) इतने में बालक रूपधारी कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि स्वामी जी माला की घुण्डी खोलो और माला गले में डाल दो। फिर गाँठ लगा दो, मुकुट उतारना नहीं पड़ेगा। रामानन्द जी काहे का मुकुट उतारे था, काहे की गाँठ खोले था। कुटिया के सामने लगा पर्दा भी स्वामी रामानन्द जी ने अपने हाथ से फैंक दिया और ब्राह्मण समाज के सामने उस कबीर परमेश्वर को सीने से लगा लिया। रामानन्द जी ने कहा कि हे भगवन् ! आपका तो इतना कोमल शरीर है जैसे रूई हो। आपके शरीर की तुलना में मेरा तो पत्थर जैसा शरीर है। एक तरफ तो प्रभु खड़े हैं और एक तरफ जाति व धर्म की दीवार है। प्रभु चाहने वाली पुण्यात्माऐं धर्म की बनावटी दीवार को तोड़ना श्रेयकर समझते हैं। वैसा ही स्वामी रामानन्द जी ने किया। सामने पूर्ण परमात्मा को पा कर न जाति देखी न धर्म देखा, न छूआ-छात, केवल आत्म कल्याण देखा। इसे ब्राह्मण कहते हैं।
बोलत रामानंद जी, हम घर बड़ा सुकाल। गरीबदास पूजा करैं, मुकुट फही जदि माल।।
सेवा करौं संभाल करि, सुनि स्वामी सुर ज्ञान। गरीबदास शिर मुकुट धरि,माला अटकी जान।।
स्वामी घुंडी खोलि करि, फिरि माला गल डार। गरीबदास इस भजन कूं, जानत है करतार।।
ड्यौढी पड़दा दूरि करि, लीया कंठ लगाय। गरीबदास गुजरी बौहत, बदनैं बदन मिलाय।।
मनकी पूजा तुम लखी, मुकुट माल परबेश। गरीबदास गति को लखै, कौन वरण क्या भेष।।
यह तौ तुम शिक्षा दई, मानि लई मनमोर। गरीबदास कोमल पुरूष, हमरा बदन कठोर।।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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जमीन विवाद को लेकर युवक की गोली मारकर हत्या, पिता ने सौतेले भाई पर लगाया आरोप
आरा/बेगूसराय: बिहार के आरा के इब्राहिम नगर मोहल्ले में रविवार रात शशिकांत महतो की गोली मारकर हत्या कर दी गई। पुलिस ने घटना��्थल से खोखा और जिं��ा कारतूस बरामद किया है। प्रारंभिक जांच में जमीन विवाद का मामला सामने आया है। बेगूसराय के बखरी थाना क्षेत्र में भी दो लोगों की हत्या हुई है।
बेगूसराय में दो अलग अलग घटनाओं में हत्याएं
बेगूसराय: बखरी थाना क्षेत्र में रविवार की शाम दो अलग-अलग घटनाओं में दो…
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राज कॉलोनी का भूतिया रहस्य
(The Haunting Mystery of Raj Colony)
1995 का साल था। उत्तर प्रदेश के जौनपुर के राज कॉलोनी में एक परिवार रहता था, जिसमें तीन बड़े भाई-बहन थे – राकेश, निधि, और सबसे छोटे थे सनी और पूजा। ये चारों भाई-बहन हमेशा साथ रहते थे और कॉलोनी में मस्ती करते रहते थे। हालांकि, उनके घर के पास स्थित एक पुरानी हवेली हमेशा उनकी जिज्ञासा और डर का विषय बनी रहती थी। उस हवेली को लोग "भूतिया हवेली" के नाम से जानते थे।
कहते थे कि इस हवेली में कई साल पहले एक परिवार रहता था, लेकिन एक भयानक हादसे के बाद पूरा परिवार मर गया, और तब से हवेली में अजीब घटनाएँ होने लगीं। मोहल्ले के लोग उस हवेली के पास जाने से डरते थे, और बच्चों को भी मना किया गया था कि वहाँ न जाएँ। हवेली के बारे में कई कहानियाँ थीं—कभी किसी ने रात में रोने की आवाज़ें सुनीं तो कभी अजीब परछाइयाँ देखी गईं।
राकेश और निधि जो कि सनी और पूजा से बड़े थे, हमेशा हवेली की कहानियों को अफवाह समझते थे। उन्हें इन कहानियों पर विश्वास नहीं था, लेकिन सनी और पूजा हवेली के बारे में सुनकर बहुत डरते थे। एक दिन, जब माता-पिता किसी काम से शहर के बाहर गए हुए थे, राकेश ने सुझाव दिया, "क्यों न हम आज इस हवेली का रहस्य सुलझाएँ? हम लोग अब बड़े हो गए हैं, हमें इस तरह की बातों से डरना नहीं चाहिए।"
निधि ने भी सहमति जताई, "हम जा सकते हैं, लेकिन हमें ध्यान रखना होगा कि कुछ भी अजीब हो, तो तुरंत वापस लौट आएंगे।"
पूजा डरते हुए बोली, "लेकिन लोग कहते हैं कि वहाँ आत्माएँ भटकती हैं।"
राकेश हंसते हुए बोला, "वो सब लोगों की बातें हैं, पूजा। अगर हम खुद देखेंगे, तभी हमें सच्चाई पता चलेगी।"
रात को जब कॉलोनी में सन्नाटा छा गया, चारों भाई-बहन हवेली की तरफ निकल पड़े। हवेली का रास्ता सुनसान था, चारों ओर घना अंधेरा और ठंडी हवा चल रही थी। जैसे-जैसे वे हवेली के करीब पहुँचे, सनी और पूजा की धड़कनें तेज हो रही थीं, लेकिन राकेश और निधि ने हिम्मत दिखाते हुए आगे कदम बढ़ाए।
हवेली के सामने पहुँचकर, उन्होंने देखा कि हवेली की ऊँची दीवारें समय के साथ टूट-फूट गई थीं। हवेली का मुख्य दरवाजा हल्का खुला हुआ था, जैसे किसी ने हाल ही में उसे खोला हो। राकेश ने धीरे से दरवाजे को धक्का दिया, और वह चिरचिराते हुए खुल गया। अंदर गहरा अंधेरा था, और ठंडी हवा ने चारों को सिहरन महसूस कराई। राकेश ने अपनी टॉर्च जलाई और सभी धीरे-धीरे अंदर कदम बढ़ाने लगे।
हवेली के अंदर की हवा भारी और ठंडी थी, जैसे वहाँ कई सालों से कोई नहीं गया हो। फर्श पर धूल की मोटी परत जमी थी, और दीवारों पर मकड़ी के जाले लटके हुए थे। हवेली के अंदर जाने पर एक अजीब सी घुटन महसूस होने लगी। सनी और पूजा पीछे-पीछे चल रहे थे, जबकि राकेश और निधि आगे बढ़ रहे थे।
राकेश ने कहा, "देखा, यहाँ कुछ भी नहीं है। ये सिर्फ अफवाहें हैं।"
लेकिन तभी, निधि को लगा कि किसी ने उसकी पीठ पर हाथ रखा। उसने अचानक मुड़कर देखा, पर वहाँ कोई नहीं था। वह थोड़ी घबरा गई, लेकिन उसने खुद को शांत किया और कहा, "शायद मेरा भ्रम होगा।"
चारों हवेली के बीचों-बीच पहुँचे, जहाँ एक पुराना झूमर लटका हुआ था, जो धीरे-धीरे हिल रहा था। हवा का झोंका नहीं था, फिर भी झूमर का हिलना उन्हें अजीब लगा। पूजा ने डरते हुए कहा, "भैया, ह���ें वापस चलना चाहिए। मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा।"
राकेश ने उसे चुप कराते हुए कहा, "थोड़ा और देखते हैं। कुछ भी नहीं होगा।"
तभी अचानक, हवेली के ऊपर के कमरे से किसी के जोर-जोर से चीखने की आवाज़ आई। आवाज़ इतनी तेज थी कि चारों भाई-बहन सिहर उठे। सनी और पूजा डर के मारे पीछे हटने लगे, लेकिन राकेश ने उन्हें रोकते हुए कहा, "आवाज ऊपर से आई है। हमें देखना चाहिए कि वहाँ क्या है।"
निधि ने कहा, "राकेश, ये सही नहीं है। हमें वापस चलना चाहिए।"
लेकिन राकेश ने जिद पकड़ी और सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगा। निधि भी उसके साथ चल पड़ी, हालांकि वह भी डरी हुई थी। सनी और पूजा को नीचे ही रुकने के लिए कहा गया, लेकिन वे दोनों भी उनके पीछे-पीछे चल पड़े।
सीढ़ियाँ चरमरा रही थीं, जैसे किसी भी वक्त टूट जाएँगी। ऊपर पहुँचते ही उन्हें एक बड़ा, खाली कमरा मिला। कमरे में सिर्फ एक पुराना पलंग पड़ा था, और दीवारों पर अजीब से निशान थे। जैसे ही राकेश और निधि ने कमरे के अंदर कदम रखा, दरवाजा अचानक जोर से बंद हो गया। अब चारों कमरे के अंदर फँस चुके थे।
पूजा चीखकर बोली, "भैया, हमें यहाँ से निकलना चाहिए!"
सनी ने दरवाजे को जोर से खींचने की कोशिश की, लेकिन दरवाजा जैसे किसी ने बाहर से बंद कर दिया हो। तभी कमरे के एक कोने से हल्की-हल्की आवाज़ें आने लगीं, जैसे कोई फुसफुसा रहा हो। चारों ने उधर देखा, और वहाँ अंधेरे में किसी की परछाई हिलती हुई दिखाई दी।
राकेश की आवाज अब काँपने लगी, "क-कौन है वहाँ?"
कोई जवाब नहीं आया। लेकिन परछाई धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ने लगी। चारों की साँसें रुक गईं। अचानक, कमरे के चारों ओर तेज हवा चलने लगी, और दीवारों पर लिखे अजीब निशान चमकने लगे। चारों भाई-बहन अब हिल भी नहीं पा रहे थे। तभी परछाई पूरी तरह से उनके सामने आ गई—वह एक औरत की आत्मा थी, जिसके चेहरे पर कोई शक्ल नहीं थी। उसकी आँखें गहरे काले रंग की थीं, और उसकी उपस्थिति से हवेली की सारी चीजें हिलने लगीं।
औरत की आत्मा ने अपनी दर्दभरी आवाज़ में कहा, "तुमने मेरे घर में कदम रखने की हिम्मत कैसे की?"
सनी और पूजा रोने लगे, लेकिन राकेश और निधि ने खुद को संभालने की कोशिश की। राकेश ने कांपती आवाज़ में कहा, "हम, हम बस यहाँ का सच जानने आए थे।"
आत्मा ने गुस्से में कहा, "यह हवेली मेरी कब्रगाह है। जो यहाँ आता है, वह जिंदा वापस नहीं जाता!"
उसकी आवाज से हवेली के दरवाजे और खिड़कियाँ जोर-जोर से धड़कने लगे। चारों भाई-बहन अब पूरी तरह से डर चुके थे। अचानक, हवेली की बिजली गुल हो गई और चारों अंधेरे में घिर गए। चीखें और परछाइयाँ हर तरफ मंडराने लगीं। चारों को लगा कि आज वे यहाँ से कभी वापस नहीं जा पाएंगे।
लेकिन तभी, सनी ने देखा कि दरवाजे के पास एक छोटा सा छेद था, जिससे बाहर की हल्की रोशनी आ रही थी। उसने राकेश को इशारा किया, और राकेश ने अपनी पूरी ताकत लगाकर दरवाजे को तोड़ने की कोशिश की। कुछ मिनटों की जद्दोजहद के बाद, दरवाजा टूट गया और चारों हवेली से बाहर भागे।
जैसे ही वे हवेली से बाहर निकले, हवा एकदम शांत हो गई, और चारों भाई-बहन ने राहत की साँस ली। उनके चेहरे पसीने से तर थे, लेकिन वे जान बचाकर भाग चुके थे। हवेली के बाहर खड़े होकर उन्होंने पीछे मुड़कर देखा। हवेली अब और भी भयानक लग रही थी, और अंदर से अब भी धीमी-धीमी चीखें सुनाई दे रही थीं।
उस रात के बाद, चारों भाई-बहन ने कभी उस हवेली की तरफ रुख नहीं किया। राज कॉलोनी में हवेली की भूतिया कहानियाँ हमेशा सच मानी जाती रहीं, और अब चारों को भी यकीन हो चुका था कि कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिन्हें समझने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
शिक्षा: कभी-कभी कुछ रहस्यों को छेड़ना जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है।
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जोशीवाड़ा में आज गणेश प्रतिमा का विसर्जन से पूर्व भव्य आरती की गई
बीकानेर। 17 सितंबर। जोशीवाड़ा स्थित हनुमान मंदिर में चल रहे गणेश महोत्सव समारोह के अंतिम दिन आज अनंत चतुर्दशी के अवसर पर भगवान श्री गणेश का पूजा अर्चना की गई।
इस अवसर पर जोशीवाड़ा मोहल्ले के सैकड़ो महिलाएं पुरुष एवं बच्चे उपस्थित थे। आरती के अवसर पर पूर्व पार्षद एवं हनुमान मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रेम रतन जोशी बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष संतोष जोशी गौरीशंकर जी व्यास अंतर्राष्ट्रीय साइकिलिस्ट…
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ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के मौके पर जीन मोहल्ला में लंगर का आयोजन
इटारसी। रजा कमेटी जीन मोहल्ला के तत्वावधान में आज यहां जीन मोहल्ला में लंगर का आयोजन किया गया। कमेटी द्वारा पिछले करीब दस वर्षों से यह आयोजन किया जाता है। कोरोनाकाल के दो वर्ष के अंतराल के बाद इस वर्ष कमेटी ने लंगर का एहतिमाम किया।
लंगर शुरु होने के पूर्व कमेटी के मेंबर्स की मौजूदगी में ईदगाह मस्जिद के पेश इमाम आजम रजा ने फातिहा पढ़ा। लंगर में कमेटी और मोहल्ले के लोग शामिल हुए। कार्यक्रम में रजा…
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लड़के मोहल्ले के (आज की कहानी)
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सभी मिलकर अल्लाह की रस्सी को मजबूती से थामे रहें और बिखरे नहीं - वाजिद कादरी
परतुर में जमात-ए-इस्लामी हिंद का जिला स्तरीय प्रशिक्षण शिविर संपन्न
जालना: दीन को कायम करना यानी अक़ामत-ए-दीन सभी मुसलमानों का साझा फ़र्ज़ है. इसका पहला कदम हमें अपने आप से शुरू करना होता है. इसके बाद अपने घर को, मोहल्ले और समाज के साथ ही देशहित में समाज उपयोगी कार्य करना चाहिए ताकि इस्लाम की सही शिक्षा का महत्व पूरी इंसानियत समझ सके. मुस्लिम उम्मत को अक़ामत -ए- दिन के लिए मिल-जुलकर काम करना…
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किशोरी को घर ले जाकर दो युवकों ने ���िया गैंगरेप, परिजनों को चीख सुनाई दी तो अर्धनग्न हालत में मिली बेटी
Uttar Pradesh News: शामली के ऊन कस्बे के एक मोहल्ले में 14 वर्षीय किशोरी के साथ दो युवकों ने सामूहिक दुष्कर्म किया। पीड़िता के पिता ने आरोपियों के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कराई है। घटना शुक्रवार रात की है।
किशोरी को एक युवक बहला-फुसलाकर अपने घर ले गया। वहां पर आरोपी व उसके साथी ने किशोरी के साथ दुष्कर्म किया। घर पर किशोरी के न मिलने पर परिजनों ने उसकी तलाश शुरू की तो एक आरोपी के घर से चीख सुनाई दी।…
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Day☛1409✍️+91/CG10☛Bsp☛04/09/24 (Wed)☛ 21:50
September लग गया है लेकिन अभी तक गरमी जैसा season लग रहा है, सच में बेहद गर्मी है। कब ठंड का मौसम आयेगा और बढ़िया रजाई, स्वेटर आदि का मजा मिलेगा 😊😊
आज सुबह का समय बढ़िया था, बीवी जी खाने पीने के item में new अविष्कार करती रहतीं हैं आज तो 😊😘
गांव का सिंपल भोजन, अति उत्तम, अति स्वादिष्ट भोजन
अभी ससुर जी आए थे, कुछ समय बाद वापस लौट गए, उस मोहल्ले में है, शायद कल जायेंगे गांव।
आज ऑफ़िस off था, बुधवार जो है, लेकिन अपना काम चलता रहता है, हमेशा ड्यूटी on रहता है, घरेलू काम जी 😘😊
Love 💕
Gn
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शिखर से जब लुढ़के हैं तो मोदी को और लुढ़कना ही है!
सोचें, कोई व्यक्ति एवरेस्ट पर खड़ा है। वह शिखर पर अपने को शिव मान तांडव कर रहा है और एक दिन अचानक उसके पांव के नीचे की जमीन-बर्फ खिसकी, वह शिखर से लुढ़का तो क्या होगा? क्या वह तब तक लुढ़कता नहीं रहेगा जब तक पैंदे पर धम्म से गिरे नहीं! संभव ही नहीं जो वह वापिस शिखर पाए या अधबीच कहीं थमे। फिर सत्य यह भी कि वह क्योंकि झूठे रास्ते, एकलखोरी से शिखर पर था तो न उसे मदद का कोई हाथ मिलेगा और न लुढ़कते हुए सही रास्ता सूझेगा। उलटे जो लोग तांडव की तुताड़ी या तबला बजा रहे थे वे भी मन ही मन प्रार्थना करते होंगे कि मुक्ति जल्द मिले।
इस सत्य को मैंने पहले भी भारत के चंद प्रधानमंत्रियों, गृह मंत्रियों पर लागू होते देखा है। और अब फिर वह नजारा है। मुझे प्रधानमंत्री मोदी को यूक्रेन जाते देख हैरानी हुई। जाहिर हुआ कि वे अभी भी अपने भक्तों को इतना नादान मानते हैं कि उनके विदेशी फोटोशूट से वे घर में वापिस उनका कीर्तन बनवा देंगे। लेकिन आम लोगों की बात तो दूर भाजपा के सुधी समर्थक भी यह टिप्पणी करते हुए थे कि जब आदमी घर में पिटता है तो वह बाहर निकल पड़ोसी, गली-मोहल्ले के घरों के झगड़ों में हाथ-पांव मारता है ताकि घर में लोग सोचें देखो बाहर तो उसे दूसरे गले लगा रहे हैं।
https://www.nayaindia.com/opinion/harishankar-vyas/view/pm-narendra-modi-popularity-slips-470882.html
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