लता दीदी ने सात दशकों तक अपनी मधुर आवाज के संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज किया : डा. नम्रता आनंद
पटना। मध्य प्रदेश के इंदौर में 28 सिंतबर 1929 को जन्मीं लता मंगेशकर (मूल नाम हेमा हरिदकर) के पिता दीनानाथ मंगेशकर मराठी रंगमंच से जुड़े हुये थे। पांच वर्ष की उम्र में लता ने अपने पिता के साथ नाटकों में अभिनय करना शुरू कर दिया। इसके साथ ही लता संगीत की शिक्षा अपने पिता से लेने लगीवर्ष 1942 मे लता को ‘पहली मंगलगौर’ में अभिनय करने का मौका मिला। संगीत की देवी लता मंगेश्कर ने जितने भी गाने गाए हैं सभी…
लता मंगेशकर ⬧ लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर, 1929 को मराठी और कोंकणी संगीतकार पंडित दीनानाथ मंगेशकर के घर हुआ था। ⬧ उनका मूल नाम हेमा था। ⬧ इन्हें वर्ष 2001 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। ⬧ अनुभवी गायिका आशा भोसले सहित पाँच भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। ⬧ लता मंगेशकर ने 13 साल की उम्र में एक मराठी फिल्म, 'किती हसाल' के लिए अपना पहला पार्श्व गीत रिकॉर्ड किया और वर्ष 1942 में एक मराठी फिल्म, 'पहिली मंगलागौर' में अभिनय भी किया। ⬧ वर्ष 1946 में, उन्होंने वसंत जोगलेकर द्वारा निर्देशित 'आप की सेवा में' के लिए अपना पहला हिंदी फिल्म पार्श्व गीत रिकॉर्ड किया। ⬧ वर्ष 1972 में, लता मंगेशकर ने फिल्म 'परिचय' के लिए सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका का पहला राष्ट्रीय पुरस्कार जीता। ⬧ पिछले कुछ वर्षों में, उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते; इनमें ऑफिसर ऑफ़ फ्रेंच लीजन ऑफ ऑनर का खिताब, दादासाहेब फाल्के पुरस्कार, तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, चार फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका पुरस्कार, फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार और कई अन्य पुरस्कार शामिल हैं। ⬧ वर्ष 1984 में, मध्य प्रदेश की राज्य सरकार ने लता मंगेशकर पुरस्कार की स्थापना की, महाराष्ट्र सरकार ने भी गायन प्रतिभा को बढ़ावा देने के लिए 1992 में लता मंगेशकर पुरस्कार की घोषणा की थी। ⬧ 6 फरवरी, 2022 को 92 वर्ष की आयु में लता मंगेशकर का निधन हो गया। (at Madhya Pradesh) https://www.instagram.com/p/CoT3RuQvyzy/?igshid=NGJjMDIxMWI=
लता मंगेशकर जी नहीं रहीं उनके न रहने से कभी न भरी जा सकने वाली जगह खाली हो गई... बचपन से उनकी आवाज़ मेरे जीवन का हिस्सा रही है... उनके गाये गीतों ने प्रेम की भीतरी गहनता, परंपरा में जीती और आधुनिक होती भारतीय स्त्री के जीवन को जैसे अपने गायन से एक चेहरा दिया... !!
वे सुर, ताल, उच्चारण और भावाभिव्यक्ति में प्रवीण थीं, बस इतना ही उनकी कला को समझने के लिए काफी नहीं वे मूलतः फिल्मों की गायिका थीं, इसीलिए गायन में अभिनय करने की कला का अद्भुत विकास किया उन्होंने 'कला' को 'सहजता' में ही ऊंचाई दी... !!
शास्त्रीय पारंगतता के बावजूद उनके गायन में उसके अतिरिक्त प्रदर्शन की चाह न थी... यह कहना भी ज़रूरी है कि लता जी ने गायन की जो अलंघ्य ऊंचाई निर्मित की, वह गहन गंभीर रूमानी गीतों से हुई, जिसमें करुणा का एक अंश हमेशा मिला हुआ था... कितना कहें ! बस इतना काफ़ी है कि वे एक ही थीं... न दूसरी लता हुई है, न होगी... !!
जब तक भारतीय जीवन है, उनकी आवाज़ हमारे जीवन का हिस्सा रहेगी... ऐसे जीवन की कल्पना ही नहीं जिसमें उनकी आवाज़ न हो उन्होंने जैसे मेरी आत्मा को रचा और बांधा है... !!
कितनी अद्भुत बात महान गायक कुमार गंधर्व ने कही थी - लता के देश में सूर्य कभी अस्त नहीं होता... !!
लताजी.. बहुभाषिक भावरम्यता
|| डॉ. चतन्य कुंटे
चित्रपटगीतांमध्ये अभिनेत्रीला उसना आवाज देताना लता मंगेशकर ‘पाश्र्वगायिका’ असतात. पण त्यांच्या गायनाची जादू इतकी प्रभावी, की अनेकदा आपण ती नायिका, तिचा अभिनय विसरून जातो आणि केवळ लताजींचे गीतच ऐकत राहतो. कारण त्या गायनात भावाभिनय तितकाच उत्तम झालेला असतो! पाश्र्वगायन बाजूला ठेवून चित्रपटांखेरीज लताजींनी जी गीते स्वतंत्रपणे गायली त्यांचा विचार वेगळ्या…
गेम में खेल खेलने की स्थिति में गेम खेलने के लिए मज़ेदार खेल खेलते हैं
गेम में खेल खेलने की स्थिति में गेम खेलने के लिए मज़ेदार खेल खेलते हैं
जया प्रदा पर लता मंगेशकर गीत: लता मंगेशकर (लता मंगेशकर) धूम्रपान करने वाले आवाज़ में जलन हो रही है… लता मंगेशकर पंख में एक जो मधुबाला (मधुबाला) से प्रीती जिंतांत तक के लिए गाए गए हैं। अभिनय में अभिनय करने वाले हर अभिनेता की आवाज और अभिनेत्र में लगे लोग जया प्रदा भी। जया प्रदा (जया प्रदा) में लता मंगेशकर ने कहा। और इस सुन्दर ध्वनि की शुद्धता के साथ. हम बात कर रहे हैं।
गोरी हैं कलाइयां (गोरी हैं…
Lata Mangeshkar Death: 92 वर्ष की उम्र में लता मंगेशकर का निधन, 8 जनवरी से अस्पताल में भर्ती थीं
Lata Mangeshkar Death: सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का निधन हो गया है. वह 8 जनवरी से ब्रीच कैंडी अस्तपाल में थीं.
Lata Mangeshkar Death: नई दिल्ली, सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का निधन हो गया है. वह 8 जनवरी से ब्रीच कैंडी अस्तपाल में थीं. उन्हें कोविड संक्रमण के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था. लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर, 1929 को एक मध्यमवर्गीय मराठी परिवार में हुआ.
मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में जन्मीं लता पंडित दीनानाथ मंगेशकर की बड़ी बेटी थीं. उनका पहला नाम 'हेमा' था, मगर जन्म के पांच साल बाद माता-पिता ने इनका नाम 'लता' रख दिया था. लता अपने सभी भाई-बहनों में बड़ी थीं. मीना, आशा, उषा तथा हृदयनाथ उनसे छोटे थे. उनके पिता रंगमंच के कलाकार और गायक थे और वह एक मशहूर नाम थे.
लता मंगेशकर जब सात साल की थीं, तब वह महाराष्ट्र आईं. उन्होंने पांच साल की उम्र से पिता के साथ एक रंगमंच कलाकार के रूप में अभिनय शुरू कर दिया था. लता बचपन से ही गायिका बनना चाहती थीं.
लता के पिता को शास्त्रीय संगीत बेहद पसंद था. इसीलिए वह लता के फिल्मों में गाने के खिलाफ थे. 1942 में उनके पिता का देहांत हो गया. इसके बाद उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई और परिवार चलाने के लिए लता ने मराठी और हिंदी फिल्मों में छोटी-छोटी भूमिकाएं निभानी शुरू कीं.
लता मंगेशकर को पहली बार मंच पर गाने के लिए 25 रुपये मिले थे. इसे वह अपनी पहली कमाई मानती हैं. लता ने पहली बार 1942 में मराठी फिल्म 'किती हसाल' के लिए गाना गाया.
लता मंगेशकर का पूरा जीवन अपने परिवार के लिए समर्पित रहा. घर के सभी सदस्यों की जिम्मेदारी उन पर थी, ऐसे में जब शादी का ख्याल आता भी तो वह उस पर अमल नहीं कर सकती थीं. लता मंगेशकर को 2001 में सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था
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Download: https://www.oldisgold.co.in/apni-prem-kahaniyan/ 7 जनवरी 1948 को जन्मी अभिनेत्री और नृत्यांगना लक्ष्मी छैया ने 1960 और 1970 के दशक के हिंदी सिनेमा में एक युवा महिला के रूप में अपनी पहचान बनाई, ’, "Apni Prem Kahaniyan" को लता मंगेशकर ने गाया था। संख्या और उनका चित्रांकन फिल्म की कथा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। इस लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की रचना में, लक्ष्मी छैया गाँव के मेले में अभिनय करती है, जबकि धर्मेन्द्र और विनोद खन्ना के किरदार, भेस में, एक दूसरे की तलाश में जैसे-जैसे बाहर निकलते हैं, ज़मीन की रखवाली करने की कोशिश करते हैं।
शारा
बॉलीवुड में यह बात मशहूर है कि गुलज़ार रद्दी से रद्दी बंदे से एक्टिंग करवा लेते हैं और फिर उन्होंने फिल्म ‘किनारा’ में जितेंद्र जैसे व्यक्ति से एक्टिंग करवा ली तो फिर किसी से भी एक्टिंग करवा सकते हैं। जितेंद्र यानी बॉलीवुड के जम्पिंग जैक पर सबसे पहले संजीदा रोल देने का जुआ खेला वी. शांताराम ने। उन्होंने ही जितेंद्र को एक बुततराश का रोल देकर अपनी बेटी राजश्री को फिल्म की नायिका बना दिया। पाठक समझ ही गये होंगे कि यहां किस फिल्म की बात हो रही है? जी हां, सही समझे ‘गीत गाया पत्थरों ने’ फिल्म के हीरो जितेंद्र ही थे जिन्होंने किस संजीदगी से कलाकार का रोल निभाया है। उसके बाद उन पर परिपक्व रोल देने का जुआ गुलज़ार ने खेला ‘परिचय’ फिल्म बनाकर। हालांकि इस फिल्म में संजीव कुमार भी थे। मगर फिल्म का चेहरा मोहरा जितेंद्र के किरदार के कारण सजीव हुआ। फिर गुलज़ार ने उन्हें ‘खुशबू’ फिल्म में रोल दिया। वहां भी उन्होंने अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया। ‘किनारा’ भी ऐसी ही फिल्म है जहां किरदार के साथ जरा ऊंच-नीच हो गयी तो फिल्म का कलेवर गुड़-गोबर बन सकता था लेकिन यहां भी जितेंद्र ने निर्देशक को निराश नहीं होने दिया। ‘किनारा’ दरअसल उदास लम्हों को रूमानियत देने की कहानी है। गुलज़ार की लगभग सारी फिल्में ऐसी ही होती हैं। इजाज़त फिल्म को ही ले लीजिए। उदासी को खुशी जीनेभर का प्रयास मात्र है जिसे किसी इबारत में कलमबद्ध करना आसान नहीं है। मगर गुलज़ार तो जाने ही इसीलिए जाते हैं और उनकी फिल्में चलती भी इसीलिए हैं क्योंकि वे संवादों में उलटवासियों का इस्तेमाल करते हैं। इस फिल्म के संगीत ने भी इसे लोकप्रिय बनाने का काम किया है। राहुल देव बर्मन गुलज़ार के दोस्त हैं तो जाहिर है इस फिल्म के गीतों को भी संगीत वही देंगे। फिर गुलज़ार के लिखे गीतों को राहुल देव बर्मन ही संगीत दे सकते हैं। ब्लैंक वर्स में लिखी उनकी कविताएं पद्य कम गद्य ज्यादा लगती हैं। और उस ब्लैंक वर्स में से अच्छी पोइट्री निकालकर उसे सुरबद्ध करना, सिर्फ राहुल देव बर्मन ही कर सकते हैं। चलते-चलते एक वाकया पाठकों से शेयर कर लूं कि ‘इजाज़त’ के गीतों को संगीत देने की गर्ज से जब गुलज़ार राहुल देव से मिले तो राहुल देव ने गीतों का पुलिंदा देखकर कहा था, ‘अमां यार यह गीत है या कहानी? गीत तो है ही नहीं।’ ‘इजाज़त’ के सभी गीत ब्लैंक वर्स में थे। ‘किनारा’ का मशहूर गाना तो सुना ही होगा ‘नाम गुम जायेगा’ खूब कर्णप्रिय है। इस फिल्म की हीरोइन हेमामालिनी हैं जो डांसर बनी हैं क्योंकि गुलज़ार अच्छी तरह जानते थे कि किसका टैलेंट कहां भुनाना है? इस फिल्म की शूटिंग मांडू (मध्यप्रदेश) में हुई है। यह मांडू वही है जो स्वदेश दीपक की कहानी के शीर्षक में है। ‘मैंने मांडू नहीं देखा।’ वैसे भी जिसने मांडू नहीं देखा, वह यह फिल्म देख ले। मांडू के महल की शिलाएं हैं या पत्थरों पर शायर की उकेरी कविताएंmdash;यहां रानी रूपमती और बाज बहादुर की मुहब्बत सिसकती है। सचमुच अगर मांडू महल का शिल्प देख लें तो आगरा का ताज भी झूठा लगता है और जूठा भी। गुलजार ने जिस तरह से महल के सारे कोनों को अपने कैमरे में कैद किया है, उससे मांडू का स्थापत्य शिल्प पुनर्जीवित हो उठा है। उदास लम्हों का गीत कैसे गाया जाता है, कोई गुलज़ार से पूछे। यह उनकी आंख का ही कमाल था कि उन्होंने अपने कैमरे में हवा की सरसराहट को भी कैद कर लिया। महराबें, भीतें, खिड़कियां और महल की अंदरूनी गलियां तो उनकी आंख को धोखा ही नहीं दे सकतीं। फुल मार्क्स सिनेमैटोग्राफी को। हेमामालिनी (आरती) हो और धर्मेंद्र न हों, यह कैसे हो सकता है? सत्यकाम और अनुपमा फिल्मों से भी ज्यादा सुंदर दिखे हैं धर्मेंद्र इसमें। शायद हेमामालिनी की उपस्थिति जिम्मेदाार हो। लब्बोलुआब यह कि फिल्म देखने के काबिल है। अब चलते हैं कहानी की ओर। किनारा फिल्म उस व्यक्ति की कहानी है जो उस लड़की के जीवन में उजास भरना चाहता है, जिसका जीवन एक त्रासदी के कारण बुझ चुका है। और इसकी शुरुआत होती है जब इंद्र (जितेंद्र) मांडू की उन्नींदे, फोटो खिंचवाने के केंद्र बने खंडहरों में आता है। वह वास्तुविद है। तभी हवा की सरसराहट इंद्र के आगे अधखुले पन्ने बिखेर देती है। जैसे ही वह उन कागजों को उठाने को होता है, उसे लगता है कि आरती (हेमा) की उदास आंखें उसे घूर रही हैं। आरती जानी-मानी कथक डांसर हैं जो चंदन (धर्मेंद्र) से प्यार करती थी। धर्मेंद्र इतिहास का प्रोफेसर था और रानी रूपमती व बाज बहादुर के रोमांस पर एक किताब लिख रहा था। लेकिन इससे पहले कि किताब छपवाता, उसकी कार दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। आरती मांडू की तस्वीरें लेने आयी है ताकि किताब छपवा सके। आरती के निकट आने पर इंद्र को पता लगा कि इंद्र की कार, जिससे टकरायी, वह चंदन की ही कार थी, जिस हादसे में वह बाल-बाल बच गया। जब उसने इस बात का जिक्र आरती से किया तो वह उससे लड़ पड़ी। इस लड़ाई में वह सीढ़ियों से गिर पड़ी और उसकी आंखों की रोशनी जाती रही। अभी वह चंदन की मौत का जिम्मेदाार ही खुद को ठहरा रहा था और आरती के सामने सफाई देने की कोशिश भी बेकार गयी। अब वह प्रकाश बनकर डांस मास्टर बनकर आने लगा। आरती इस बात से अनभिज्ञ थी कि जिस प्रकाश को वह दोस्त समझती है, वह कोई और नहीं बल्कि इंद्र है। प्रकाश की बदौलत आरती दोबारा नृत्य सीख पाती है लेकिन जिस ग्रंथि का शिकार इंद्र था, वह ग्रंथि भावों के जरिये अभिनय में उतारनी मुश्किल थी, जिसे कर पाने में जितेंद्र खूब सफल रहे। ‘कमीने मैं तेरा खून पी जाऊंगा’ हर फिल्म में संवाद अदायगी के लिए मशहूर धर्मेंद्र इस फिल्म में संजीदा किस्म के व्यक्ति लगे हैं। जैसे ही आरती ने कुछ होश संभाला तो एक दिन प्रकाश चंदन की पुण्यतिथि पर आरती को चंदन द्वारा लिखी वही किताब प्रकाशित करवा कर भेंट करता है तो आरती को पता चल जाता है कि वह प्रकाश न होकर इंद्र ही है क्योंकि उसके सिवाय चंदन की पुण्यतिथि के बारे में कोई नहीं जानता। आरती इंद्र को घर से बाहर निकाल देती है। वह इंद्र को कहती है कि उसने उससे चंदन समेत सब कुछ छीन लिया। यहां तक कि चंदन की किताब प्रकाशित करने का हक भी। कुछ दिन बाद आरती की इंद्र से मुलाकात एक चर्च में होती है, जहां वह अपने किये पर खेद प्रकट करती है और मानती है कि वह अतीत में जी रही थी और अब इंद्र के साथ वर्तमान में जीना चाहती है। दोनों के मन का मैल उतर जाता है।
निर्माण टीम
प्रोड्यूसर : प्राण लाल मेहता
निर्देशक : गुलजार
पटकथा व गीत : गुलजार
संगीत : राहुल देव बर्मन
सितारे : धर्मेंद्र, जितेंद्र, हेमामालिनी व श्रीराम लागू आदि
गीत
एक ही ख्वाब : भूपेंद्र, हेमामालिनी
मीठे बोल बोले : लता मंगेशकर, भूपेंद्र
जाने क्या सोचकर : किशोर कुमार
कोई नहीं है कहीं : भूपेंद्र
अबके न सावन बरसे : लता
नाम गुम जाएगा : भूपेंद्र, लता
Indian Idol, बेहद लोकप्रिय म्यूजिकल रियलिटी शो सोनी टीवी अपने 12 वें सीजन के साथ लौट आया है। इंडियन आइडल 12, जिसे व्यापक रूप से इंडियन आइडल 2020 के रूप में भी जाना जाता है, का अपना भव्य प्रीमियर 19 दिसंबर, शनिवार को रात 8 बजे किया गया था। शीर्ष 15 प्रतियोगियों में से 8 होनहार गायकों ने मनमोहक प्रदर्शनों के साथ एक अद्भुत नोट पर अपनी यात्रा शुरू की।
जैसा कि पहले बताया गया था, शीर्ष 15 प्रतियोगियों को बहुत पसंद किए गए थिएटर दौर के बाद चुना गया था। जबकि 8 होनहार गायकों ने इंडियन आइडल 12 में 19 दिसंबर को अपनी यात्रा शुरू की, बाकी के एपिसोड 20 दिसंबर, रविवार को प्रसारित होने वाले एपिसोड में अपने प्रदर्शन के साथ टेलीविजन स्क्रीन पर वापस आ जाएंगे।
विशाखपट्टणम से सिरीषा भगवतुला इंडियन आइडल 12 के भव्य प्रीमियर के मंच पर आने वाली पहली प्रतियोगी थीं। युवा प्रतिभा ने मंच पर बांसुरी वादक नवीन कुमार के साथ दिल से के लोकप्रिय गीत जिया जले का प्रदर्शन किया। न्यायाधीशों को उनके ऊर्जावान प्रदर्शन के लिए प्रशंसा करते देखा गया।
महाराष्ट्र के साईली किशोर कांबले ने अगले चरण में प्रवेश किया। उन्होंने कारवां से प्रतिष्ठित गीत पिया तू अब तो आ जा के प्रदर्शन करके दर्शकों और न्यायाधीशों दोनों को चौंका दिया। हिमेश रेशमिया ने अपनी ऊर्जा के साथ आशा भोंसले की प्रतिष्ठित प्रस्तुति के लिए सयाली की प्रशंसा की।
उत्तराखंड के पवनदीप राजन ने कबीर सिंह से कैसे हुआ की जादुई प्रस्तुति से दिल जीत लिया। विशाल ददलानी, जो पवनदीप के प्रदर्शन से बहुत प्रभावित हैं, ने कहा कि उनकी आवाज़ हमेशा दर्शकों के दिलों तक पहुँचती है।
राजस्थान के सवाई भट्ट ने एक बेहतरीन प्रदर्शन किया जिसे इंडियन आइडल स्टेज पर कभी भव्य प्रीमियर पर देखा गया। मंच पर प्रदर्शन के दौरान सवाई की आंखों में आंसू थे, जिससे दोनों साथी प्रतियोगी और न्यायाधीश बेहद भावुक हो गए।
इसके बाद आशीष कुलकर्णी ने प्रवेश किया, जिन्होंने साथिया से ओ हम दम सोनियो रे के अपने ऊर्जावान गायन के साथ मंच पर आग लगा दी।
मुफ़ज़्नगर से मोहम्मद दानिश स्टीफन डेवेसी के साथ अगले चरण में प्रवेश किया। दोनों ने ताल से अत्यध��क लोकप्रिय रमता जोगी के लिए एक साथ प्रदर्शन किया, इस प्रकार संगीत प्रेमियों को पूरी तरह से मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने अपनी प्यारी माँ के साथ एक छोटे से अभिनय वर्ग के साथ दर्शकों का मनोरंजन भी किया।
कोलकाता से अनुष्का बनर्जी ने लता मंगेशकर के गीत आ जाने जाना के अपने प्रदर्शन से दिल जीत लिया। प्रतिभाशाली गायिका चिंता के साथ अपनी लड़ाई साझा करते हुए भावुक हो गई और अपने माता-पिता के समर्थन ने जज नेहा कक्कड़ को आंसुओं में छोड़ दिया। दिल्ली के सम्यक प्रसन्ना ने इंडियन आइडल 12 के भव्य प्रीमियर स्टेज पर पॉप गीत डूबा डूबा रहता हूँ पर प्रस्तुति देकर जजों और दर्शकों दोनों का दिल जीत लिया। यह एपिसोड सम्यक के प्रदर्शन के साथ समाप्त हो गया, और प्रतियोगियों का अगला सेट आज रात टेलीविजन स्क्रीन पर धूम मचाने के लिए तैयार हो रहा है ..!
Raagdari Which Bhajan Is Credited For The Patch Up Between Lata Mangeshkar And Musician Jaidev | किस भजन ने कराई थी लता मंगेशकर और संगीतकार जयदेव में दोबारा दोस्ती
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साल 1961 की बात है. मशहूर अभिनेता देव आनंद एक फिल्म बना रहे थे. इस फिल्म में उनके साथ नंदा, साधना शिवदासानी, लीला चिटनिस और ललिता पवार अभिनय कर रहे थे. यूं तो फिल्म के निर्देशक के तौर पर नाम अमरजीत का लिया जाता है लेकिन देव आनंद का दावा रहा कि फिल्म का निर्देशन उनके भाई विजय आनंद ने…
क्या 'दम मारो दम' गाने के लिए Lata Mangeshkar थीं लोगों की पहली पसंद?
क्या ‘दम मारो दम’ गाने के लिए Lata Mangeshkar थीं लोगों की पहली पसंद?
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नई दिल्लीः गाना ‘दम मारो दम’ (Dum Maro Dum) आज भी लोगों को खूब पसंद आता है. जीनत अमान के अभिनय वाले इस गीत को आशा भोसले ने अपनी आवाज देकर अमर कर दिया था. आज भी इस गाने के खूब रीमेक बनते हैं. अब इस गाने को लेक�� एक नया खुलासा हुआ है. दावा किया जा रहा है कि आशा भोसले (Asha Bhosle) के बजाय इस गाने को लता मंगेशकर से गंवाया जाना था, पर ऐसा नहीं हो पाया.
क्या 'दम मारो दम' गाने के लिए Lata Mangeshkar थीं लोगों की पहली पसंद?
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नई दिल्लीः गाना ‘दम मारो दम’ (Dum Maro Dum) आज भी लोगों को खूब पसंद आता है. जीनत अमान के अभिनय वाले इस गीत को आशा भोसले ने अपनी आवाज देकर अमर कर दिया था. आज भी इस गाने के खूब रीमेक बनते हैं. अब इस गाने को लेकर एक नया खुलासा हुआ है. दावा किया जा रहा है कि आशा भोसले (Asha Bhosle) के बजाय इस गाने को लता मंगेशकर से गंवाया जाना था, पर ऐसा नहीं हो पाया.
आज १४ फेब्रुवारी. जगभरातील प्रेमीजनांचा आवडता ‘व्हॅलेंटाईन्स डे’, आणि भारतातील आबालवृद्धांची ‘आपली पण व्हॅलेंटाईन अशी असावी’ असे भाव मनात निर्माण करणारी प्रेमदेवता ‘मधुबाला’ हिचा जन्मदिवस. खरंच, काय हसीन योगायोग साधलाय नियतीने!
मधुबाला – ‘व्हीनस ऑफ इंडियन सिनेमा’, ‘हुस्न की मलिका’, ‘पावसाळी हवेने कोमेजलेला निशिगंध’, ‘पारिजातकाचा दरवळ’ अशा विविध भाषांत, विविध प्रकारे नावाजलेल्या या धुंद नशेची आणि माझी ओळख झाली ती मरहूम श्री. इसाक मुजावर यांनी लिहिलेल्या ‘एक होती मधुबाला’ (चंदेरी दुनिया प्रकाशन, पुष्प पहिले, प्रथमावृत्ती १९८२) या पुस्तकाने. खरं सांगते, तिच्या सौंदर्यापेक्षाही एका चित्रतारकेने आपल्या कलेविषयी इतके मेहनती, प्रामाणिक असणेच मला जास्त आश्चर्यचकित करून गेले आणि मला सगळ्यात जास्त भावणारी गोष्ट म्हणजे वक्तशीरपणा, या तिच्या गुणाने तर मला त्या लहान वयात भारावूनच टाकले. लेखकाने असा प्रसंग वर्णन केला आहे की कुठल्या एका चित्रपटाच्या शुटिंगसाठी ती भरपावसात ठरलेल्या वेळेवर रणजित स्टुडिओत जाऊन पोचली होती. स्टुडिओत शुकशुकाट होता, शुटींग रद्द झालेले होते, पण असा फोन तिच्या घरी येईपर्यंत, ती वेळेवर स्टुड���ओत पोचायचे म्हणून अगोदरच घरातून निघालेली होती. ‘लेट लतीफ स्टार्स’ चे किस्से आपल्याला नवीन नाहीत. या पार्श्वभूमीवर ‘प्रोफेशनालीझम’ हा शब्दही जेव्हा चित्रपटसृष्टीत पोचलेला नव्हता त्या काळातील मधुबालाचा हा किस्सा नक्कीच वाखाणण्यासारखा आहे.
१४ फेब्रुवारी १९३३ – २३ फेब्रुवारी १९६९ या आपल्या ३६ वर्षाच्या अल्पायुष्यात ही बाई खरोखर एका अद्वितीय तारकेसमान चमकून गेली आणि तिच्या मृत्यूनंतर जन्माला आलेल्या माझ्यासारख्या अनेकांना दिपवून गेली........अगदी आजतागायत. पण जिवंत असेपर्यंत मात्र या शापित अप्सरेला अनेक भोग भोगाव�� लागले. आपल्याकडे असे मानले जाते की ‘स्त्रीचे सौंदर्य आणि पुरुषाचे कर्तृत्व पहिले जाते’. असं जर असेल तर इतकं दैवी सौदर्य लाभूनही हिला खरोखर प्रेम करणारे का लाभले नाहीत? अशी कुठली खडतर ‘कुंडली’ नशिबात घेऊन ही जन्माला आली होती? म्हणजे वैयक्तिक आयुष्य असे आणि चित्रपटक्षेत्रात मात्र तिचे अस्मानी सौंदर्य तिच्या अभिनय कौशल्यापेक्षा नेहमीच वरचढ होते असेच साऱ्यांनी मानले.
हेच पहाना, आपल्या विभ्रमांनी तमाम दुनियेला गारद करणाऱ्या या अभिनेत्रीला कधीही एकही पुरस्कार मिळाला नाही. हे तिचेच नव्हे तर सर्व चित्ररसिकांचे दुर्दैव आहे. तिला फक्त एकदाच ‘मुगल-ए-आजम’ साठी ‘फिल्मफेअर’ (१९६१) चे सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रीचे नामांकन मिळाले होते. पण त्या वर्षीचा हा पुरस्कार ‘घुंघट’ या चित्रपटासाठी बीना रॉयला मिळाला होता. जेव्हा संधी मिळाली तेव्हा, मधुबालाच्या ‘अनारकली’ ला टक्कर देणारी काय असेल बुवा ही भूमिका, ही भावना मनात घेऊनच मी हा चित्रपट पूर्ण पाहिला. इतक्या वर्षानंतर आणि सर्व संबंधित मृत असताना (आणि माझे ‘क्वालिफीकेशन’ फक्त ‘रसिक’ एवढेच असताना!), हे म्हणणे योग्य नाही, तरी राहवत नाही आणि म्हणावेसे वाटते, ‘what were they smoking at that time?’ अनारकलीच्या मनावर छाप सोडणाऱ्या सर्वांगसुंदर भूमिकेपुढे ‘घुंघट’ मधील भारतीय नारीच्या घिस्यापिट्या भूमिकेला पुरस्कार देताना कमिटीने नेमका काय बरं विचार केला असेल? आपल्या कडे ‘फक्त ट्रॅजेडी किंग किंवा क़्वीन’ असणे म्हणजे अभिनयाची परिसीमा गाठणे समजले जाते आणि मधुबालाने तर कधी ‘अभिनय’ केलाच नाही, पडद्यावरचा तिचा वावर नेहमी सहज सुंदरच होता. पुरस्कार मिळणे जर त्या विशिष्ट क्षेत्रात दिग्गज असण्याची पावती असेल तर ती काही मधूच्या वाट्याला आली नाही. दैवदुर्विलास म्हणजे अनारकलीची भूमिका तथाकथित ट्रॅजेडी असूनही ती पुरस्कारापासून वंचितच राहिली.
मधूच्या अनारकलीच्या संवादांविषयी, ‘प्यार किया तो डरना क्या......’ च्या वेळच्या तिच्या अभिनयाविषयी खूप लिहिले गेले आहे. माझ्यासाठी मात्र तिने अजून दोन गोष्टींसाठी मनात घर केले आहे. एक म्हणजे ‘मोहे पनघट पे.......’ या गाण्याच्या वेळी, ती काल्पनिक घडा डोक्यावर घेतल्याचा अभिनय करत पाठमोरी ठुमकत जाते. मी आणि माझ्या नवऱ्याने अनेकवेळा हे दृश्य व्हीसीआर वर पुढे मागे करत पाहिले आहे! इतकी मोहक राधा, ती पण पाठमोरी, माझ्या पाहण्यात तरी दुसरी नाही. चित्रपटाच्या शेवटी ‘खुदा निगेहबां हो तुम्हारा......’ या गाण्याच्या वेळी तिचे सर्वस्व संपल्यानंतरचे, अंगावरचे दागिने काढून फेकत, दगडासारखे भावनाविहीन होणे तर मी कधी विसरूच शकणार नाही.
आणि धीरगंभीर ‘अनारकली’ च्या विरुद्ध अशी तिची ती खेळकर ‘तराना’! या तराना (‘सीने में सुलगते है अरमां.......’ फेम) चित्रपटातील एका दृश्यात, बिनदिक्कतपणे आपल्या ‘सैंया’ ला ‘गले लगाने च्या आणि त्याच्या वर ‘रोब झाडने’ च्या गोष्टी करणाऱ्या तिला दिलीपकुमार दटावतो, पण जेव्हा तो ‘सैंया’ एक निरागस कोकरू आहे हे त्याला कळते तेव्हा तिच्याकडे पाहताना, मंत्रमुग्ध होण्याचा ‘अभिनय’ दिलीपकुमारला नक्कीच करावा लागला नसेल इतकी ती निरागस दिसत असते! ह्या दोन चित्रपटांतच आपल्याला तिच्या अभिनयाची ‘रेंज’ लक्षात येते.
शेखर कपूर यांनी एकदा त्यांना आवडलेल्या गाण्यात मधूच्या ‘हावडा ब्रिज’ मधल्या ‘आईये मेहेरबां.........’ या गाण्याचा उल्लेख केला होता. त्यांचे स्पष्टीकरण असे होते की अंगभर म्हणजे अक्षरशः पायघोळ कपडे घालून केवळ आपल्या अप्रतिम मुद्राभिनयाने कॅबेरेचा फील देणारं हे गाणं केवळ तीच करू जाणे! या चित्रपटातील गाण्यांची पण एक मजा आहे हं. वास्तवात हिच्या सौंदर्याने घायाळ होणं ही ‘आम बात’ असताना, तिच्या वाट्याला अशा ओळी आल्या आहेत की तीच प्रेमात शिकार झालेली आहे. आणि पडद्यावर ही गाणी तिच्यावर चित्रित झालेली पाहणं हा एक अतिशय गोड अनुभव आहे. ‘देख के तेरी नजर बेकरार हो गये......’ या गाण्यात ‘एक सवाल डियर, पुंछू जनाब से......लाये हो आंखे कहीं, धो के शराब से.......‘ असं जेव्हा ती स्वतःच्याच शराबी डोळ्यांकडे निर्देश करत अशोककुमारला विचारणा करते तेव्हा, अशा ओळी लिहिणाऱ्या कमर जलालाबादी यांचे; मधुबालाच गाते आहे असं वाटावं, असं गायलेल्या आशाताईचे; की दस्तुरखुद्द मधुबाला, कुणाचे पारडे जड आहे असा विचार न करता, असा त्रिवेणी संगम आपल्या वाट्याला आला याबद्दल आपल्या दांडग्या नशिबाचे आभार मानणे जास्त श्रेयस्कर!
तसेच ते ‘दो घडी वो जो पास आ बैठे......’ या ‘गेटवे ऑफ इंडिया’ तील नितांत सुंदर गाण्यात भारतभूषणच्या ‘एक दिल ही था गमगुसार अपना, मेहेरबां खास राजदार अपना, गैर का उसे क्यूं बना बैठे........’ या ओळींवर तिचे कष्टी होणे आणि क्षणात हसून नंतर, ‘गैर भी तो कोई हसीन होगा, दिल युंही दे दिया नहीं होगा........’ असे प्रत्युत्तर करून त्याला नामोहरम करणे केवळ लाजवाब! आणि ‘अच्छा जी मै हारी चलो मान जाओ ना.......’ म्हणत ‘देव’ ची तिने केलेली आर्जवे कोण विसरू शकेल? ‘मै सितारों का तराना...., हाल कैसा है जनाब का.......’ (चलती का नाम गाडी); ‘चांद रात तुम हो साथ....., आंखो मे तुम दिल में तुम हो......’ (हाफ टिकट) या गाण्यांत किशोरकुमार सारख्या विनोदाचा बादशहा असणाऱ्या गायक/नायकासमोर मधूने दाखवलेल्या ‘कॉमिक टायमिंग’ला तर तोडच नाही.
‘आयेगा आनेवाला.....’ (महल), ‘मेहफिल में जल उठी शमा.....’ (निराला), ‘मेरे सपने में आना रे सजना......’ (राजहठ), ‘जानेवालेसे मुलाकात ना होने पाई.....’ (अमर), ‘गुजरा हुआ जमाना.......’ (शिरीं फरहाद), ‘पिया पिया ना लागे मोरा जिया.....’ (फागून), ‘रुक जाओ ना जी......’ (चलती का नाम गाडी), ‘ए भोला भाला मन मेरा.....’ (झुमरू), ‘आ आ मेरी ताल पे......’ (कल हमारा है), ‘ठंडी हवा काली घटा......’ (Mr. & Mrs. 55) अशा अनेक गाण्यांत, लता मंगेशकर, आशा भोसले आणि गीता दत्त यांच्या पडद्यामागच्या अतुलनीय कामगिरीची मदत घेत, तिने रुपेरी पडदा आपल्या दिसण्याने आणि अभिनयाने उजळवून टाकला.
गुलाबी गोरी कांती, काळेभोर भावपूर्ण डोळे, मधाळ ओठ, किंचित डाव्या बाजूला कलणारं मनमोहक हसू, यांची देणगी घेऊन जन्माला आलेल्या या अस्मानी परीला अभिनयाची पण अशी देणगी मिळाली होती की गुलजारच्या ‘आपसे भी खुबसूरत आपके अंदाज है.......’ ह्या ओळी खऱ्या अर्थाने मला तिच्याकडे पाहूनच कळल्या. आठ-नऊ वर्षाच्या ‘मुमताज बेगम जहां देहलवी’ चे ‘मधुबाला’ असे नितांत सुंदर आणि सार्थ नामकरण करताना खुद्द देविकाराणीला ही कल्पना नसेल की हे नाव आणि त्याची मालकीण भविष्यकाळात एक इतिहास रचून जाणार आहेत! हृदयात छिद्र असल्याचा दुर्धर रोग घेऊन जन्माला आलेल्या या बालेने आपल्या अजोड व्यक्तिमत्त्वाने सर्वांच्या हृदयावर वार करत नियतीचा बदलाच जणू असा परतवला. पण मला खात्री आहे आपल्या कोणाचीही त्याबद्दल काहीच तक्रार नाही! कृष्णधवल चित्रपटांत काम करुनही आमच्या निरस आयुष्यात रंग भरणाऱ्या या शापित अप्सरेने, आपणा सर्वांच्या डोळ्यांना, त्यांच्या बघण्याच्या कामाचे सार्थक झाले हा दिलासाच जणू दिला. आज इतक्या वर्षांनंतरही तिची स्मृती माझ्यासारख्या अनेक चाहत्यांच्या मनात जागृत आहे आणि आपण म्हातारे झालो तरी ती तशीच चिरतरुण राहणार आहे........प्रेमासारखी, जे व्यक्त करण्यासाठी ‘व्हॅलेंटाईन्स डे‘ ची सुद्धा आवश्यकता नाही!!
आशा भोसले ने 87 वें जन्मदिन को पोते के साथ मनाया, उनकी पोती ने शेयर की हार्दिक शुभकामनाएं
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मराठी संगीत मंच पर अभिनेता और शास्त्रीय गायक, दीनानाथ मंगेशकर और शिवंती के संगली के गोआ के छोटे से घर में, संगीत गायिका के परिवार में जन्मी आशा भोसले ने अपने पिता के निधन के बाद अपने परिवार का समर्थन करने के लिए फिल्मों में गाना और अभिनय करना शुरू कर दिया था। जब आशा ताई ने अपना गायन करियर शुरू किया था, तो उन्हें अक्सर एक बग़ल की गायिका के रूप में माना जाता था, जो अपनी बहन, लता मंगेशकर और गीता…
शीर्ष फिल्मी सितारों के अलावा, कमल हासन और सलमान खान के लिए क्या आम है? अप्रत्याशित उत्तर एसपी बालसुब्रह्मण्यम है। सहज भावपूर्ण आवाज के साथ गायक ने पहले कमल हासन की फिल्म एक दूजे के लिए में बॉलीवुड का ध्यान आकर्षित किया और बाद में सलमान खान (मैने प्यार किया, हम आपके हैं) का पर्याय बन गए।
येसुदास के बाद, एसपी दक्षिण के दूसरे पुरुष गायक थे जिन्होंने बॉम्बे में बड़ी सफलता हासिल की। उन्होंने एक दूजे के लिए (1981) में एक एकल और चार युगल गीत गाए, जिनमें से एक चार्टबस्टर था। 'तेरे मेरे बीच में' (लता के साथ) नहीं खत्म हुई। बीनका गीतमाला के वार्षिक उलटी गिनती शो में 5।
अगले कुछ वर्षों में, वह नियमित रूप से, विशेष रूप से दक्षिणी प्रस्तुतियों में शामिल हो गया। जीतेंद्र की एक ही भूल ने अपनी सीमा को और भी अधिक दिखा दिया। पैथोसूज़ के लिए उनका उपहार ('बेखुदी का बड़ा सहारा है') और उनकी समझदारी ('हे राजू, हे डैडी') ने उन्हें संगीत प्रेमियों का दिल जीत लिया। मेन प्यार किया (1989) के साथ वापसी करने से पहले गायक गर्त में चले गए। वास्तव में, उनके बॉम्बे करियर को दो चरणों में विभाजित किया जा सकता है - पूर्व और बाद - 'मैने प्यार किया'। सलमान खान सुपरहिट, पंखुड़ी 'कबूतरा जा जा जा' ट्रैक के साथ, अपनी दूसरी पारी को किक आउट कर दिया, जो और अधिक निकला पहले की तुलना में भरपूर। 70 के दशक में राजेश खन्ना के साथ किशोर कुमार की तरह 90 के दशक में उनकी आवाज की पहचान बनी ।
' वर्ष का 1 गीत। हम आपके हैं कौन (1994) की आश्चर्यजनक सफलता ने उनकी स्थिति को और मजबूत किया। लगभग एक दशक तक, एसपीबी ने बंबई में नियमित रूप से रिकॉर्ड किया।
15 साल के अंतराल के बाद, उन्होंने 2013 में चेन्नई एक्सप्रेस शीर्षक ट्रैक, 'निकले ना जाए चेन्नई एक्सप्रेस' गाकर हिंदी सिनेमा में वापसी की।
बेस्टिंग बॉलीवुड
'दिल दीवाना, बड़ा मस्ताना' - मीठी मीठी बातिन (1977 | 'एक दूजे के लिए' से बहुत पहले, एसपीबी ने अपने तमिल गीतों के डब संस्करणों के माध्यम से बॉम्बे में अपनी उपस्थिति दर्ज की थी। के बालाचंदर की 'मनमाथा लीलाई' से डब की गई यह फिल्म। ', ने उन्हें' दिल दीवाना 'के लिए कहा था कि एक दशक बाद एक और फिल्म के लिए गाए जाने पर उन्हें कई पुरस्कार मिलेंगे।
टाइटल सॉन्ग - Inte मेन इंटकम लोंगा ’(1982) | नायक ( धर्मेंद्र ) पर फिल्माए गए गीत में, जब वह अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए तैयार होता है, एसपीबी की आवाज़ गहरी थ्रोटेड रिफ़्स, आ ला आरडी बर्मन (दूसरे अंतरा के अंत में उसके 'हेबाबू' को सुनकर) प्रदान करती है।'इम्तिहान, इम्तिहान' - 'ह��म्मतवाला' (1982) | 1980 के दशक में जीतेन्द्र-श्रीदेवी-बप्पी लाहिड़ी कॉम्बो के लिए शायद एक दर्जन फिल्मों में से सबसे प्रसिद्ध, फिल्म का सबसे प्रसिद्ध गीत 'नैनों में सपना' था, लेकिन कथा में एसपीबी को सबसे महत्वपूर्ण मिला।
'मुझसे शादी कर लो ’-' महादेव’ (1989) | इलियाराजा ने हिंदी में 'अंता निलावथन' धुन का इस्तेमाल किया, लेकिन तमिल संस्करण की देख रेख, खुद राजा द्वारा गाया गया था, और बहुत अधिक हल्के-फुल्के
'मैने प्यार किया' (1989) और बाद में ... | एसपीबी की आवाज़ में विशिष्टता, किशोर की कच्ची, बेगुनाह मासूमियत के साथ रफ़ी की गहराई को जोड़ते हुए, गीत के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से पर जोर देते हुए स्पष्ट हो गया - जैसे शीर्षक गीत से 'ये सच है' और 'मेरे रंग में' का मुखड़ा ।- सुन बलिया ’- Days 100 दिन’ (1991 | फिल्म में जैकी श्रॉफ ने अभिनय किया, जिनके साथ एसपीबी ने एक उत्पादक भागीदारी की। इस गीत में एसपीबी की जोड़ी लता मंगेशकर के साथ
निभाना क्या कहा ’(Love लव’) (1991) थी। इस सलमान खान-रेवती स्टारर का सबसे लोकप्रिय गाना, लेकिन, एक विचित्र मोड़ में, एसपीबी की आवाज़ अमजद खान के चरित्र के लिए इस्तेमाल की गई थी