नर जीवन के स्वार्थ सकल
बलि हों तेरे चरणों पर,
माँ मेरे श्रम सिंचित सब फल।
छायावादी युग के मुख्य स्तंभ और भावपूर्ण कविताओं को रचने वाले महाकवि, उपन्यासकार, निबंधकार एवं कहानीकार सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन ।
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*🌞~ आज का हिन्दू पंचांग ~🌞*
*⛅दिनांक - 7 सितम्बर 2024*
*⛅दिन - शनिवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - शरद*
*⛅मास - भाद्रपद*
*⛅पक्ष - शुक्ल*
*⛅तिथि - चतुर्थी शाम 05:37 तक तत्पश्चात पंचमी*
*⛅नक्षत्र - चित्रा दोपहर 12:34 तक तत्पश्चात स्वाति*
*⛅योग - ब्रह्म रात्रि 11:17 तक तत्पश्चात इंद्र*
*⛅राहु काल - प्रातः 09:31 से प्रातः 11:04 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:27*
*⛅सूर्यास्त - 06:49*
*⛅दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:52 से 05:38 तक*
*⛅ अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:12 से 01:02 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:14 सितम्बर 08 से रात्रि 01:01 सितम्बर 08 तक*
*⛅ व्रत पर्व विवरण - गणेश चतुर्थी (चंद्र दर्शन निषिद्ध, चन्द्रास्त - रात्रि 09.27), गणेश महोत्सव प्रारम्भ, सर्वार्थ सिद्धि योग (दोपहर 12:24 से प्रातः 06:24 सितम्बर 08 तक)*
*⛅विशेष - चतुर्थी को मूली खाने से धन-नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹अपने हाथ में ही अपना आरोग्य🔹*
*🔸१) सभी अंगों में पुष्टिदायक तेल की मालिश अवश्य करानी चाहिए सिर में कान में और पैरों में तो विशेष रूप से करानी चाहिए । कराने से वायु तथा कफ मिटता है, थकान मिटती है, शक्ति तथा सुख की प्राप्ति होती है, नींद अच्छी आती है, शरीर का वर्ण सुधरता है, शरीर में कोमलता आती है, आयुष्य की वृद्धि होती है तथा देह की पुष्टि होती है ।*
*🔸(२) सिर में मालिश किया हुआ तेल सभी इन्द्रियों को तृप्त करता है, दृष्टि को बल देता है, सिर के दर्दों को मिटाता है। बाल में तेल पहुँचने से बाल घने, लम्बे तथा मुलायम होते हैं । लंबे समय तक टिकते हैं और बाल काले बने रहते हैं तथा सिर को भी भरा हुआ रखता है ।*
*🔸(३) नित्य कान में तेल डालने से कान में रोग या मैल नहीं होता । गले के बाजू की नाड़ी तथा दाढ़ी अकड नहीं जाती । बहुत ऊँचे से सुनना या बहरापन नहीं होता । कान में रस आदि पदार्थ डालने हों तो भोजन से पहले डालना हितकर है ।*
*🔸(४) पैरों पर तेल मसलने से पाँव मजबूत होते हैं। नींद अच्छी आती है, आँख स्वच्छ रहती है तथा पैर झूठे नहीं पड़ जाते, श्रम से अकड़ नहीं जाते, संकोच प्राप्त नहीं करते तथा फटते भी नहीं । जिस तरह गरुड़ के पास साँप नहीं जाते उसी तरह कसरत के अभ्यासी और तेल की मालिश करानेवाले के पास रोग नहीं जाते । नहाते समय तेल का उपयोग किया हो तो वह तेल रोंगटों के छिद्रों, शिराओं के समूह तथा धमनियों के द्वारा सम्पूर्ण शरीर को तृप्त करता है तथा बल प्रदान करता है ।*
*🔸(५) जिस तरह मूल में सिंचित वृक्षों के पत्ते आदि वृद्धि प्राप्त करते हैं उसी तरह अंगों पर तेल मलवानेवाले मानवों की तेल से सिंचित धातुएँ पुष्टि प्राप्त करती हैं ।*
*🔸(६) बुखार से पीड़ित, कब्जियतवाले, जिसने जुलाब लिया हो, जिसे उल्टी हुई हो, उसे कभी भी तेल की मालिश नहीं करनी चाहिये ।*
*🔸(७) मुँह पर तेल मलने से आँखें मजबूत होती हैं, गाल पुष्ट होते हैं, फोड़े तथा फुन्सियाँ नहीं होती और मुँह कमल के समान सुशोभित होता है ।*
*🔸(८) जो मनुष्य प्रतिदिन आँवले से स्नान करता है उसके बाल जल्दी सफेद नहीं होते और वह सौ वर्ष तक जीवित रहता है ।*
*🔸(९) दर्पण में देहदर्शन करना यह मंगलरूप है, कांतिकारक है, पुष्टिदाता है, बल तथा आयुष्य को बढ़ाने वाला है और पाप तथा अलक्ष्मी का नाश करनेवाला ।*
*🔸(१०) जो मनुष्य सोते समय बिजोरे के पत्तों का चूर्ण शहद के साथ चाटता है वह सुखपूर्वक सो सकता है ।*
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*आईजीएनपी नहरों का चक्रीय कार्यक्रम जारी*
बीकानेर, 5 सितंबर। इंदिरा गांधी नहर परियोजना की खरीफ फसल 2024 के दौरान 5 सितंबर सांय 6 बजे से 1 अक्टूबर प्रातः 6 बजे तक नहरों को 3 में से 1 समूह में चलाने हेतु अनिवार्य आवश्यकता समूहों का विवरण और चक्रीय कार्यक्रम जारी किया गया है।
सिंचित क्षेत्र विकास आयुक्त वंदना सिंघवी ने बताया कि कार्यक्रम के अनुसार ग्रुपों का वरीयता समूह 5 सितंबर सांय 6 बजे से 14 सितम्बर प्रातः 6 बजे तक ग, क, ख रहेगा। इसी…
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धान की अच्छी फसल के लिए सिंचाई के साथ दवा का भी करे छिड़काव
रिपोर्ट,दिलीप कुमार
बस्ती – इस समय खरीफ की मुख्य फसल धान बढ़वार की अवस्था में है। विगत कुछ दिनों से मौसम में हो रहे बदलाव-बारिश तथा तापमान 28 डिग्री से.-34 डिग्री से. तक एवं वातावरण में नमी (सापेक्षिक आर्द्रता) के कारण धान में रोग लग सकते है। उक्त जानकारी देते हुए जिला कृषि रक्षा अधिकारी रतन शंकर ओझा ने बताया कि झुलसा रोग (बैक्टीरियल ब्लाईट/स्ट्रीक)-यह नहरी/सिंचित खेतों में अधिक लगता है जिसमें…
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बासमती PB-1847 की कम लागत-अच्छी उपज वाली नई किस्म को एक ‘क्रांति’ मान रहे धान उत्पादक, मिलेगी बंपर पैदावार
अनाजी फसलों में धान एक प्रमुख फसल हैं। यह लगभग संपूर्ण भारत में उगाई जाती हैं। धान किसानों के बीच धान की किस्म पूसा बासमति 1847 काफी लोकप्रिय हो रही हैं। जो पूसा बासमती 1509 के सुधार से बनाई गई है। पूसा बासमती 1847 एक छोटी अवधि की बासमती चावल की किस्म है। कई किसानों ने इस किस्म को अपने खेतों में लगाया हैं। इस किस्म में पत्ती का झुलसा और झोंका रोग नहीं लगता हैं। इस बीमारी से अपनी फसल बचाने के लिए किसानों को काफी खर्च करना पड़ता था, लेकिन इस किस्म की बुवाई करके किसान खर्च से बच सकते हैं। बीमारियों के अलावा, लॉजिंग की स्थिति में भी धान की पैदावार नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है. लेकिन यह किस्म (पूसा बासमती 1847) न तो बीमारी से प्रभावित है और न ही इसमें लॉजिंग की स्थिति स्थिति आती है. यह एक अर्ध-बौनी, न गिरने वाली, न झड़ने वाली और उच्च उपज वाली किस्म है। यह किस्म सिंचित अवस्था के लिए उपयुक्त है। इसी कारण से इसकी पैदावार में भी काफी इजाफा हुआ है. इस वर्ष पूसा 1847 किस्म की उपज 32 से 35 क्विंटल हुई है | इस किस्म की फसल बोने के समय से कटाई के समय तक लगभग 115-120 दिन लगते हैं |.
ये है विशेषता
- पूसा-1847 का उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 32 से 35 क्विंटल है।
- यह रोग निरोधक है, इसमें बीमारियां नहीं लगती है।
- इसकी फसल में पानी काफी कम खर्च होता है।
- पौधे की लंबाई कम और तना मजबूत होने पर फसल गिरती नहीं है।
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“ॐ जय यमुना माता"
"नमो मात भय हरणी शुभ मंगल करणी
मन बेचैन भया हैं तुम बिन वैतरणी"
अनादि काल से इस पवित्र धरा को सिंचित कर जड़-चेतन को अपने आशीर्वाद से पल्लवित करने वाली मां यमुना जी की जयंती पर समस्त देश व प्रदेश वासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
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west singhbhum program- खूंटकट्टी मैदान चाईबासा में रविवार को होनेवाली सभा की तैयारियां पूरी: बलभद्र सवैंया
रामगोपाल जेना,चाईबासा:खुंटकट्टी रैयत रक्षा समिति, सदर अनुमंडल के तत्वावधान में खूंटकट्टी मैदान चाईबासा में होनेवाली रविवार की सभा का तैयारियां पूरी कर ली गयी है. यह बातें खूंटकट्टी रैयत रक्षा समिति के अध्यक्ष बलभद्र सवैंया ने तैयारियों की समीक्षा करने के बाद कही. उन्होंने कहा कल पूर्वाहन 11 बजे से सभा होगी. सभा में चाईबासा बाइपास सड़क के नाम पर जिन गांव के ग्रामीणों का बहुफसली सिंचित रैयत भूमि को…
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कुंडलिनीयोग से गंगा की तरह बहती हुई शक्ति शिवलिंगरूपी चक्रों को सिंचित करती है
अत्रि-अनसूया की प्रसिद्ध पौराणिक कथा
शिवपुराण में अनसूया की कथा आती है। अनसूया मतलब किसी की असूया या निंदा न करने वाली। एक बार महान अकाल पड़ा। हर जगह पानी की कमी हो गई। लोग व प्राणी प्यास से व्याकुल होकर मरने लगे। साधुओं से संसार का दुख देखा नहीं जाता। इसलिए अत्रि मुनि पानी के लिए तप करने लगे। उनके शिष्य भी उनको छोड़कर चले गए। केवल अनसूया अपने पति की सेवा करती रही और प्रतिदिन शिवलिंग का पूजन…
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सरसों की खेती (Mustard Farming): उचित पैदावार के लिए सरसों की उन्नत किस्म और रोग नियंत्रण पर ख़ास ध्यान दें
जानिए क्या है सरसों की खेती की तकनीक और कैसे होगी ज़्यादा कमाई?
सरसों की खेती की उन्नत तकनीकें अपनायी जाएँ तो किसान अच्छी आमदनी अर्जित कर सकते हैं। कीटों और बीमारियों से रबी की तिलहनी फसलों को सालाना 15-20 प्रतिशत तक नुकसान पहुँचाता है। कभी-कभार ये कीट उग्र रूप धारण कर लेते हैं तथा फसलों को अत्याधिक हानि पहुँचाते हैं। इसीलिए सरसों या तिलहनी फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाना बेहद ज़रूरी है।
सरसों की खेती (Mustard Farming): सरसों रबी में उगाई जाने वाली प्रमुख तिलहन फसल है। इसकी खेती सिंचित और असिंचित यानी बारानी खेतों में संरक्षित नमी के ज़रिये की जाती है। देश के सरसों उत्पादन में राजस्थान का प्रमुख स्थान है। पश्चिमी क्षेत्र के राज्यों का देश के कुल सरसों उत्पादन में 29 प्रतिशत योगदान है। सरसों की औसत उपज काफ़ी कम यानी महज 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
अगर सरसों की खेती की उन्नत तकनीकें अपनायी जाएँ तो औसत पैदावार 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर यानी दो से ढाई गुना ज़्यादा मिल जाती है। ये भी माना गया है कि असिंचित क्षेत्रों में सरसों की पैदावार 20 से 25 क्विंटल तक तथा सिंचित क्षेत्रों में 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाती है।
क्या है सरसों की खेती की उन्नत तकनीक?
एक ही खेत में लगातार सरसों की फसल नहीं उगाना चाहिए।
कीट प्रबन्धन: सरसों की खेती में कीटों का प्रकोप पूरे देश में पाया जाता है। सरसों की पैदावार को घटाने में कीटों की बड़ी भूमिका होती है। मेरठ स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के अनुसार, कीटों और बीमारियों से रबी की तिलहनी फसलों को सालाना 15-20 प्रतिशत तक नुकसान पहुँचाता है। इससे किसान बहुत हतोत्साहित होते हैं। बेमौसम की बारिश से बढ़ने वाली नमी और धूप के कमी की वजह से सरसों की फसल में लगने वाले कीट तेज़ी से फैलते हैं। कभी-कभार ये कीट उग्र रूप धारण कर लेते हैं तथा फसलों को अत्याधिक हानि पहुँचाते हैं। इसीलिए सरसों या तिलहनी फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाना बेहद ज़रूरी है।
फसल चक्र: खरपतवार के टिकाऊ उपचार में फसल चक्र अपनाने से बहुत फ़ायदा होता है। फसल चक्र का अधिक पैदावार प्राप्त करने, मिट्टी का उपजाऊपन बनाये रखने तथा बीमारियों और कीट से रोकथाम में भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। मूँग-सरसों, ग्वार-सरसों, बाजरा-सरसों जैसे एक वर्षीय फसल चक्र तथा बाजरा-सरसों-मूँग/ग्वार-सरसों का दो वर्षीय फसल चक्र में उपयोग करना बेहद लाभकारी साबित होता है। बारानी इलाकों में जहाँ सिर्फ़ रबी में फसल ली जाती हो वहाँ सरसों के बाद चना उगाया जा सकता है।
सरसों की खेती के लिए उन्नत किस्मों का ही इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता और उत्पादकता बेहतर होती है।
सरसों की खेती के साथ यदि किसान उन सावधानियों का ध्यान रखें जिससे उनके खेत में ही अगली फसल के लिए उन्नत किस्म के बीजों की पैदावार हो सके तो ये तरीका और फ़ायदेमन्द साबित होता है।
बीज उत्पादन
प्रगतिशील किसान कुछ सावधानियाँ रखकर सरसों का बीज अपने खेतों में ही पैदा कर सकते हैं। बीज उत्पादन के लिए ऐसी भूमि का चुनाव करना चाहिए, जिसमें पिछले साल सरसों की खेती नहीं की गयी हो। यहाँ तक कि खेत के चारों ओर 200 से 300 मीटर की दूरी तक सरसों की फसल नहीं होनी चाहिए। सरसों की खेती के लिए प्रमुख कृषि क्रियाएँ, फसल सुरक्षा, अवांछनीय पौधों को निकालना तथा उचित समय पर कटाई की जानी चाहिए।
फसल की कटाई के वक़्त खेत को चारों ओर से 10 मीटर क्षेत्र छोड़ते हुए बीज के लिए लाटा काटकर अलग से सुखाना चाहिए तथा दाना निकालकर उसे साफ़ करके ग्रेडिंग करना चाहिए। दाने में नमी 8-9 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। बीज को कीट और कवकनाशी से उपचारित कर लोहे के ड्रम या अच्छी किस्म के बोरों में भरकर सुरक्षित जगह पर भंडारित करना चाहिए। ऐसे बीज को किसान अगले साल बुआई के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
और पढ़ें.....
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Spiritual Love quotes in hindi
“धैर्य एवं त्याग समझना हो तो रूक्मिणी का समझो। जो श्रीकृष्ण से विवाहोपरांत अर्द्धांगिनी बनने के पश्चात् भी अपने पति परमेश्वर के साथ पराई स्त्री का नाम जुड़ता हुआ देख उन्हें ईश्वर मान पूजती रही…!”
“भविष्य में यदि कभी ईश्वर ने चाहा और हम मिले। तो मै अन्य प्रेमियों की तरह तुम्हें भेट में गुलाब झुमके नहीं दूंगा। मैं तुम्हें बिल्ब् पत्र व शमी के दो पौधे भेट करूँगा। और बदले में तुलसी का पौधा भेट लूंगा तुमसे जो अपने घर के आंगन में स्थापित कर प्रतिदिन प्रेम से सिंचित करूँगा..!”
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छत्तीसगढ़ सरकार की नई महत्वाकांक्षी योजना मुख्यमंत्री वृक्ष सम्पदा योजना शुरू की गयी है। इसका 21 मार्च, 2023 को विश्व वानिकी दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने विधानसभा परिसर स्थित अपने कार्यालय कक्ष से राज्य के सभी 33 ज़िलों के 42 स्थानों में राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी ‘मुख्यमंत्री वृक्ष संपदा योजना’का वर्चुअल शुभारंभ किया। यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में वाणिज्यिक वृक्षारोपण को बढ़ावा देकर किसानों की आय में वृद्धि करने के उद्देश्य से शुरू की गई है।
वन मंडलाधिकारी श्री पंकज राजपूत ने बताया कि नई मुख्यमंत्री वृक्ष सम्पदा योजना अंतर्गत महासमुंद जिले के कुल 534 किसानों द्वारा रकबा 576.410 एकड़ में 2,82,952 पौधा लगाने हेतु दिये गये सहमति दी है। योजना के शुभारंभ दिन 21 मार्च 2023 को विश्व वानिकी दिवस के अवसर पर कुल लक्ष्य में से सिंचित स्थलों में 27 किसानों के 26.790 एकड़ भूमि पर मिलिया डुबिया, टिशु कल्चर बांस, टिशु कल्चर सागौन, क्लोनल नीलगिरी, चंदन एवं अन्य आर्थिक रूप से लाभकारी 8384 पौधे रोपित किये गये है।
ज़िला मुख्यालय से सटे गांव लभराखुर्द के किसान श्री महेश चन्द्राकर ने अपने एक एकड़ भूमि पर 250 टिश्यू कल्चर सागौन के पौधे लगाए हैं। उन्होंने बताया कि 12 वर्ष के बाद 26 लाख 11 हजार रुपए की आमदनी होगी। इससे पहले उन्होंने बांस लगाया था, जिन्हें स्थानीय किसान और घर निर्माण आदि के लिए राजमिस्त्री को बेचा। जिससे उन्हें लाभ हुआ। उनका इरादा अब बाकि जमीन पर भी सरकारी योजना के तहत वृक्ष लगाना है। ताकि उन्हें ज्यादा मुनाफा हो। किसान श्री चन्द्राकर ने बताया कि खरीफ वर्ष 2022-23 में 7 एकड़ में धान की फसल लिया था। 150 क्विंटल धान समर्थन मूल्य पर बेचा। अब वे अपनी भूमि पर वाणिज्यिक वृक्ष लगाने की पूरी योजना बना रहे है।
इस योजना से वनक्षेत्र से बाहर लकड़ी के उत्पादन बढ़ने से काष्ठ आधारित उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा। किसानों के अलावा इस योजना के अंतर्गत अन्य पात्र हितग्राही भी खेत के मेड़ों में या अपनी निजी भूमि में बाउन्ड्री में या लाईन/पंक्ति में वृक्षारोपण कर सकते हैं। इसके साथ ही कार्बन क्रेडिट के माध्यम से भी कृषकों को अतिरिक्त आय प्राप्त होने की संभावना है। उक्त योजना अंतर्गत मिलिया डुबिया, टिशु कल्चर बांस, टिशु कल्चर सागौन, क्लोनल नीलगिरी, चंदन एवं अन्य आर्थिक रूप से लाभकारी पौधों के वाणिज्यिक वृक्षारोपण एवं वन अधिकार पत्र धारकों को भी इस योजना अंतर्गत लाभान्वित किया जाना है।
छत्तीसगढ़ सरकार की इस नई लाभकारी योजना के तहत समस्त वर्ग के सभी इच्छुक भूमि स्वामी, शासकीय, अर्द्धशासकीय एवं शासन की स्वायत्त संस्थाएँ, निजी शिक्षण संस्थाऐं, निजी ट्रस्ट, गैर शासकीय संस्थाऐं, पंचायतें तथा भूमि अनुबंध धारक इस योजना का लाभ ले सकते हैं। इस योजना के अंतर्गत हितग्राही की निजी भूमि में 05 एकड़ तक रोपण हेतु 100 प्रतिशत तथा 05 एकड़ से अधिक क्षेत्र में रोपण हेतु 50 प्रतिशत वित्तीय अनुदान शासन द्वारा हितग्राहियों को प्रदाय किया जायेगा। राज्य शासन इस योजना के माध्यम से प्रति वर्ष 36,000 एकड़ के मान से कुल 05 वर्षों में 1,80,000 एकड़ में 15 करोड़ पौधों के रोपण का लक्ष्य रखा गया है। शासन द्वारा चयनित वृक्ष प्रजातियों की खरीदी के लिए प्रतिवर्ष न्यूनतम क्रय मूल्य निर्धारित किया जायेगा, जिससे कृषकों को निश्चित् आय प्राप्त हो सकेगी।
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बजरंग धोरे पर सिंचित क्षेत्र विकास के सेवा-निवृत सभी संवर्ग के अधिकारी/कर्मचारीगण का स्नेह मिलन कार्यक्रम सम्पन्न
बीकानेर- दिनांक 18 अगस्त 2024 को श्रीहनुमान मन्दिर, बजरंग धोरे पर सिंचित क्षेत्र विकास, इन्दिरा गांधी नहर परियोजना के सेवा-निवृत सभी संवर्ग के अधिकारी/कर्मचारीगण का स्नेह मिलन कार्यक्रम का आयोजित किया गया । इस अवसर पर बजरंग धोरे के प्रांगण में श्रीरामचरित्र मानस के सुन्दर काण्ड का सामूहिक पाठ रखा गया जिसमें बल, बुद्धि और विवेक प्रदान करने वाले हनुमानजी महराज की विशेष अर्चना-पूजन कर प्रार्थना की…
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