जीविका दीदियों द्वारा संचालित बिहार के प्रथम जैविक सेनेटरी पैड उत्पादन इकाई का शुभारंभ
जीविका दीदियों द्वारा निर्मित इस सैनिटरी पैड की खासियत यह है कि उपयोग के बाद मिट्टी के संपर्क में आने से गल कर मिट्टी हो जाएगा, जिससे वातावरण को कोई नुकसान नहीं पहुँचेगा
पटना:जीविका दीदियों द्वारा संचालित बिहार के प्रथम जैविक सेनेटरी पैड उत्पादन इकाई का शुभारंभ आज बुधवार को बक्सर जिला अंतर्गत चौसा प्रखंड स्थित वनार पुर गांवों में हुआ । इकाई का शुभारंभ श्री राहुल कुमार, मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी,…
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विश्व ओजोन दिवस : पृथ्वी का सुरक्षा कवच है ओजोन परत, इसके बिना संकट में पड़ जाएगा सभी का जीवन
चैतन्य भारत न्यूज
हर साल 16 सितंबर को पूरी दुनिया में 'विश्व ओजोन दिवस' मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी को सूर्य की हानिकारक अल्ट्रा वाइलट किरणों से बचाना और साथ ही हमारे जीवन को संरक्षित रखनेवाली ओजोन परत के विषय में जागरूक करना है। बता पृथ्वी की सतह से करीब 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर ओजोन गैस की एक पतली परत पाई जाती है। यह परत सूर्य से आने वाली अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन को पृथ्वी पर आने से पहले ही सोख लेती है। यदि यह रेडिएशन पृथ्वी पर बिना किसी परत से सीधे पहुंच जाए तो सभी मनुष्य, पेड़-पौधे और जानवरों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।
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पृथ्वी पर जीवन यापन करने के लिए ओजोन परत होना बहुत जरूरी है। सूर्य से सीधी आने वाली अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन के प्रभाव से कैंसर जैसी कई खतरनाक बीमारियां भी हो सकती है। इन्हीं रेडिएशन से ओजोन परत हमें बचाती है। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि, हमारे जीवन की रक्षा करने वाली ओजोन परत अब खुद खतरे में है। जी हां... बहुत पहले ही ओजोन परत पर छेद हो गए हैं, जिन्हें ओजोन होल्स कहा जाता है। पहली बार इन होल्स का साल 1985 में पता चला था। पृथ्वी पर इस्तेमाल हो रहे कई तरह के केमिकल ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इससे ओजोन परत का और ज्यादा पतली होकर फैलने का खतरा बढ़ता जा रहा है।
फैक्ट्री में इस्तेमाल किए जाने वाले खतरनाक केमिकल हवा को प्रदूषित करते हैं। इससे ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचता है। दुनिया में कई ऐसे देश भी हैं जिन्होंने ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले केमिकल पर पाबंदी लगा दी है। बता दें ओजोन परत के बिगड़ने से जलवायु परिवर्तन को भी बढ़ावा मिलने लगता है। इसके कारण धरती का तापमान भी लगातार बढ़ता जा रहा है। इसी गंभीर संकट को देखते हुए ही हर साल 16 सितंबर को दुनियाभर में ओजोन परत के संरक्षण को लेकर जागरुकता अभियान चलाया जाता है।
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सेनेटरी नैपकिन की जगह दीया मिर्जा करती हैं इस चीज का इस्तेमाल
महिलाओं को हर महीने मासिक धर्म की परेशानी से गुजरना पड़ता है। इन दिनों वह खुद की साफ सफाई पर बहुत ध्यान रखती है। इसी को ध्यान में रखते हुए लड़कियां सेनेटरी नैपकीन का इस्तेमाल करती हैं। जो गीले पन को तो आसानी से सोख लेते हैं लेकिन यह पर्यावरण के लिए नुकसान देह है। इसके साथ ही यह सेहत के लिए भी हानिकारक हो सकते हैं। एेसे में बायोडिग्रेडेबल पैड का इस्तेमाल करना सही होता है। (more…)
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विश्व ओजोन दिवस : पृथ्वी का सुरक्षा कवच है ओजोन परत, इसके बिना संकट में पड़ जाएगा सभी का जीवन
चैतन्य भारत न्यूज
हर साल 16 सितंबर को पूरी दुनिया में 'विश्व ओजोन दिवस' मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी को सूर्य की हानिकारक अल्ट्रा वाइलट किरणों से बचाना और साथ ही हमारे जीवन को संरक्षित रखनेवाली ओजोन परत के विषय में जागरूक करना है। बता पृथ्वी की सतह से करीब 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर ओजोन गैस की एक पतली परत पाई जाती है। यह परत सूर्य से आने वाली अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन को पृथ्वी पर आने से पहले ही सोख लेती है। यदि यह रेडिएशन पृथ्वी पर बिना किसी परत से सीधे पहुंच जाए तो सभी मनुष्य, पेड़-पौधे और जानवरों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।
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पृथ्वी पर जीवन यापन करने के लिए ओजोन परत होना बहुत जरूरी है। सूर्य से सीधी आने वाली अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन के प्रभाव से कैंसर जैसी कई खतरनाक बीमारियां भी हो सकती है। इन्हीं रेडिएशन से ओजोन परत हमें बचाती है। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि, हमारे जीवन की रक्षा करने वाली ओजोन परत अब खुद खतरे में है। जी हां... बहुत पहले ही ओजोन परत पर छेद हो गए हैं, जिन्हें ओजोन होल्स कहा जाता है। पहली बार इन होल्स का साल 1985 में पता चला था। पृथ्वी पर इस्तेमाल हो रहे कई तरह के केमिकल ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इससे ओजोन परत का और ज्यादा पतली होकर फैलने का खतरा बढ़ता जा रहा है।
फैक्ट्री में इस्तेमाल किए जाने वाले खतरनाक केमिकल हवा को प्रदूषित करते हैं। इससे ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचता है। दुनिया में कई ऐसे देश भी हैं जिन्होंने ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले केमिकल पर पाबंदी लगा दी है। बता दें ओजोन परत के बिगड़ने से जलवायु परिवर्तन को भी बढ़ावा मिलने लगता है। इसके कारण धरती का तापमान भी लगातार बढ़ता जा रहा है। इसी गंभीर संकट को देखते हुए ही हर साल 16 सितंबर को दुनियाभर में ओजोन परत के संरक्षण को लेकर जागरुकता अभियान चलाया जाता है।
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केले से बनाया सेनेटरी पैड, 122 बार धोकर दो साल तक कर सकते हैं इस्तेमाल
चैतन्य भारत न्यूज
आईआईटी दिल्ली के दो छात्र अर्चित अग्रवाल और हेरी सहरावत ने केले के फाइबर से सेनेटरी पैड बनाने की अनोखी तकनीक तैयार की है। इस पैड को 122 बार धोकर दो साल तक प्रयोग किया जा सकता है। खास बात यह है कि, बार-बार प्रयोग के बाद भी इससे किसी प्रकार के इंफेक्शन का खतरा नहीं है। यह एक सेनेटरी पैड सौ रुपए में उपलब्ध होगा।
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जानकारी के मुताबिक, इस पैड में जो कपड़ा लगाया गया है, उसमें क्वाड्रेंट ट्रूलॉक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है। जिससे महावारी के दौरान यह पैड 100 एमएल ब्लड सोख सकता है। बीटेक छात्रों के इस स्टार्टअप का नाम 'सांफे' है। आईआईटी के डिजाइन विभाग के सहायक प्रोफेसर श्रीनिवास वेंकटरमन ने छात्रों की इस तकनीक की तारीफ की। उन्होंने कहा कि, महिलाओं के स्वास्थ्य और स्वच्छता में यह तकनीक बेहद असरदार साबित होगी। उन्होंने बताया कि, इस तकनीक को तैयार करने में करीब डेढ़ लाख रुपए खर्च आया है। इसका पेटेंट करा लिया गया है।
ऐसे तैयार किया गया पैड
अर्चित और हैरी ने बताया कि, चार परतों से तैयार इस सेनेटरी पैड को बनाने में पॉलिएस्टर पिलिंग, केले का फाइबर और कॉटन पॉलियूरेथेन लेमिनेट का प्रयोग किया गया है। केले के जिस डंठल को यूं ही फेंक देते हैं उसी के अंदर से फाइबर को निकालकर मशीन में सुखाया गया। जिसके ऊपर पॉलिएस्टर पिलिंग (एक प्रकार का कपड़ा) का प्रयोग किया गया, जो गीलेपन को सोखता है। जबकि लीकेज को रोकने के लिए कॉटन पॉलियूरेथेन लेमिनट (अस्पताल में प्रयोग होने वाला एक कैमिकल) का प्रयोग किया गया। उन्होंने बताया कि अन्य पैड में प्लास्टिक और सिंथेटिक इस्तेमाल होता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है।
दो साल चलेगा एक पैड
यह सेनेटरी पैड ऑनलाइन के अलावा बाजार में भी आसानी से मिल जाएगा। एक पैकेट में दो पैड होंगे, जो 199 रुपए में मिलेंगे। एक रात के लिए है और दूसरा दिन के लिए। रात वाला पैड आठ से दस घंटे तक चलेगा और सुबह वाला छह से आठ घंटे तक चलेगा। महिलाएं इस पैड को ठंडे पानी में धोकर दो साल तक प्रयोग कर सकती हैं।
पर्यावरण को नही होगा नुकसान
अर्चित के मुताबिक, अक्षय कुमार की फिल्म 'पैडमैन' से आम महिलाएं सेनेटरी पैड के प्रयोग के प्रति जागरूक तो हुईं, लेकिन पर्यावरण को पहुंचने वाले नुकसान का हल नहीं मिला। दरअसल सैनिटरी नैपकिन सिंथेटिक सामग्री और प्लास्टिक से बने होते हैं, जिन्हें सड़ने में 50-60 साल से ज्यादा का वक्त लग सकता है। मासिक धर्म के समय इस्तेमाल किए जाने वाले इन नैपकीन से कूड़ेदान, खुले स्थान, नाली, सीवर ब्लॉक होने के साथ मिट्टी को भी नुकसान पहुंचता है। ऐसे सेनेटरी पैड को जलाने से हानिकारक धुआं भी निकलता है, जिससे वायु प्रदूषण होता है।
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