ये हैं बॉलीवुड की वो बेहतरीन फिल्में, जो लोगों में जगाती है देशभक्ति का जज्बा
चैतन्य भारत न्यूज
हिंदी सिनेमा समय-समय पर आजादी के रंगों को बखूबी दिखाता रहा है। कुछ फिल्में सच्ची घटना पर आधारित रहती है तो कुछ स्क्रिप्टेड रहती है। भारत के 73वें स्वतंत्रता दिवस पर हम आपको ऐसी फिल्मों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी कहानी भले ही बनावटी हो लेकिन जब दर्शकों ने इसे थिएटर में जाकर देखा तो उनके रोम-रोम में देशभक्ति की भावना जाग उठी। इतना ही नहीं बल्कि इन फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर भी क्रांति ला दी थी।
बॉर्डर
फिल्म 'बॉर्डर' 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध पर आधारित है। इस फिल्म में भारत-पाक युद्ध के समय हुए लोंगेवाला युद्ध को विस्तार से समझाया गया है। फिल्म में अभिनेता सनी देओल ने अपनी आवाज से जान डाल दी थी। फिल्म का सबसे चर्चित गाना 'संदेशे आते हैं हमें तड़पाते हैं... ' आज भी लोगों की जुबान पर चढ़ा हुआ है।
गदर : एक प्रेम कथा
इस फिल्म में 1947 में भारत-पाकिस्तान पार्टिशन और उसके बाद फैले सांप्रदायिक खूनखराबे को दिखाया गया है। फिल्म में भारत में रहने वाले तारा सिंह (सनी देओल) की पत्नी सकीना(अमीषा पटेल) अपने परिवार से मिलने पाकिस्तान चली जाती है और वहां फंस जाती है। फिर तारा सिंह अपने दम पर अपनी पत्नी को पाकिस्तान से वापस लाता है।
रंग दे बसंती
डायरेक्टर ओम प्रकाश मेहरा के निर्देशन में बनी ये फिल्म आपको बताती है कि, “कोई भी देश परफेक्ट नहीं होता, उसे परफेक्ट बनाना पड़ता है”। फिल्म दो जोन में चलती है, एक आजादी की लड़ाई और दूसरा वर्तमान भारत जहां पर देश के दुश्मन भ्रष्ट राजनेता हैं। इस फिल्म को देखने पर पता चलता है कि हमें आजादी कितनी मुश्किलों से मिली है।
द लीजेंड ऑफ भगत सिंह
इस फिल्म में अभिनेता अजय देवगन ने भगत सिंह का किरदार निभाया था। यह फिल्म भगत सिंह की जिंदगी पर आधारित थी जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी थी।
मंगल पांडे : द राइजिंग
यह फिल्म क्रांतिकारी मंगल पांडे की जिंदगी पर आधारित है। मंगल पांडे को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई का आगाज भी माना जाता है। फिल्म में मंगल पांडे का किरदार अभिनेता आमिर खान ने निभाया था।
लगान
साल 2001 में आई आमिर खान की इस फिल्म में आजादी से पहले की कहानी दिखाई गई थी जो क्रिकेट पर आधारित थी। ये वो वक्त था जब ब्रिटिश राज चरम पर था। ब्रिटिश सैनिक किसानों से लगान मांगते थे, ऐसे में भुवन (आमिर खान) नाम का एक लड़का ब्रिटिश राज के खिलाफ आवाज उठाता है। चंपारण गांव के लोगों और ब्रिटिशर्स की एक टीम के बीच लगान माफ करने को लेकर क्रिकेट मैच होता है। आखिर में गांव के लोग इंग्लैंड के सिपाहियों को उन्हीं के खेल में हराते हैं। 'लगान' को आशुतोष गोवारिकर ने डायरेक्ट किया था। इस फिल्म की बॉक्स ऑफिस पर कमाई करीब 180 करोड़ रुपए के करीब रही थी।
Read the full article
0 notes
ये हैं बॉलीवुड की वो बेहतरीन फिल्में, जो लोगों में जगाती है देशभक्ति का जज्बा
चैतन्य भारत न्यूज
हिंदी सिनेमा समय-समय पर आजादी के रंगों को बखूबी दिखाता रहा है। कुछ फिल्में सच्ची घटना पर आधारित रहती है तो कुछ स्क्रिप्टेड रहती है। भारत के 73वें स्वतंत्रता दिवस पर हम आपको ऐसी फिल्मों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी कहानी भले ही बनावटी हो लेकिन जब दर्शकों ने इसे थिएटर में जाकर देखा तो उनके रोम-रोम में देशभक्ति की भावना जाग उठी। इतना ही नहीं बल्कि इन फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर भी क्रांति ला दी थी।
बॉर्डर
फिल्म 'बॉर्डर' 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध पर आधारित है। इस फिल्म में भारत-पाक युद्ध के समय हुए लोंगेवाला युद्ध को विस्तार से समझाया गया है। फिल्म में अभिनेता सनी देओल ने अपनी आवाज से जान डाल दी थी। फिल्म का सबसे चर्चित गाना 'संदेशे आते हैं हमें तड़पाते हैं... ' आज भी लोगों की जुबान पर चढ़ा हुआ है।
गदर : एक प्रेम कथा
इस फिल्म में 1947 में भारत-पाकिस्तान पार्टिशन और उसके बाद फैले सांप्रदायिक खूनखराबे को दिखाया गया है। फिल्म में भारत में रहने वाले तारा सिंह (सनी देओल) की पत्नी सकीना(अमीषा पटेल) अपने परिवार से मिलने पाकिस्तान चली जाती है और वहां फंस जाती है। फिर तारा सिंह अपने दम पर अपनी पत्नी को पाकिस्तान से वापस लाता है।
रंग दे बसंती
डायरेक्टर ओम प्रकाश मेहरा के निर्देशन में बनी ये फिल्म आपको बताती है कि, “कोई भी देश परफेक्ट नहीं होता, उसे परफेक्ट बनाना पड़ता है”। फिल्म दो जोन में चलती है, एक आजादी की लड़ाई और दूसरा वर्तमान भारत जहां पर देश के दुश्मन भ्रष्ट राजनेता हैं। इस फिल्म को देखने पर पता चलता है कि हमें आजादी कितनी मुश्किलों से मिली है।
द लीजेंड ऑफ भगत सिंह
इस फिल्म में अभिनेता अजय देवगन ने भगत सिंह का किरदार निभाया था। यह फिल्म भगत सिंह की जिंदगी पर आधारित थी जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी थी।
मंगल पांडे : द राइजिंग
यह फिल्म क्रांतिकारी मंगल पांडे की जिंदगी पर आधारित है। मंगल पांडे को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई का आगाज भी माना जाता है। फिल्म में मंगल पांडे का किरदार अभिनेता आमिर खान ने निभाया था।
लगान
साल 2001 में आई आमिर खान की इस फिल्म में आजादी से पहले की कहानी दिखाई गई थी जो क्रिकेट पर आधारित थी। ये वो वक्त था जब ब्रिटिश राज चरम पर था। ब्रिटिश सैनिक किसानों से लगान मांगते थे, ऐसे में भुवन (आमिर खान) नाम का एक लड़का ब्रिटिश राज के खिलाफ आवाज उठाता है। चंपारण गांव के लोगों और ब्रिटिशर्स की एक टीम के बीच लगान माफ करने को लेकर क्रिकेट मैच होता है। आखिर में गांव के लोग इंग्लैंड के सिपाहियों को उन्हीं के खेल में हराते हैं। 'लगान' को आशुतोष गोवारिकर ने डायरेक्ट किया था। इस फिल्म की बॉक्स ऑफिस पर कमाई करीब 180 करोड़ रुपए के करीब रही थी।
Read the full article
0 notes
अन्य संस्कारों के साथ-साथ बच्चों को सिखाएं राष्ट्रधर्म के भी संस्कार
चैतन्य भारत न्यूज
बच्चे गीली मिट्टी के समान होते हैं। उन्हें बचपन में जो भी संस्कार दिए जाते हैं और उन्हें जो दिशा दिखाई जाती है बच्चे जीवनभर उसी ओर चलते हैं। बच्चों को अच्छे संस्कार देने के साथ ही उन्हें राष्ट्रधर्म के संस्कार भी दिए जाने चाहिए। उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनाने का काम सिर्फ स्कूल में ही नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि अपनी मातृभूमि के लिए सम्मान और देश के प्रति स्वाभिमान की सोच की प्रेरणा बच्चों को घर पर भी सिखाना चाहिए।
बच्चा चाहे किसी भी धर्म में पैदा हुआ हो वह छोटी उम्र में ही अपने धर्म के तौर-तरीके सीख जाता है। माता-पिता अपने बच्चों के अंदर वह सभी संस्कार डाल देते हैं जो उनके लिए जरुरी होते हैं लेकिन देश प्रेम और देश के प्रति भाव जगाने के लिए ऐसा कुछ नहीं किया जाता है। जैसे कोई छोटा बच्चा अपने घर के संस्��ारो और रीति-रिवाजों से जुड़ जाता है वैसे ही यदि उन्हें संस्कारों में राष्ट्रधर्म की शिक्षा भी दी जाए तो बचपन से ही उनके मन में अपने देश के प्रति सम्मान और गरिमा को सहेजने की सोच को प्रेरणा मिलेगी।
घर के बड़े-बुजुर्ग बच्चों को कभी राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत का महत्व बता सकते हैं तो कभी तिरंगे का सम्मान करने की सीख दे सकते हैं। साथ ही वे बच्चों को देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले वीरों की कहानियां भी सुना सकते हैं। यह बदलाव ही बच्चों की सोच को बदलने में अहम साबित होंगे। मातृभूमि और राष्ट्रीय प्रतीक का सम्मान करना हर देश के नागरिक का धर्म और कर्त्तव्य है। इसलिए इस कर्त्तव्य को निभाने की सीख बच्चों को बचपन से ही मिलना चाहिए।
Read the full article
0 notes
महात्मा गांधी का 'भारत छोड़ो आंदोलन' जिसने अंग्रेजों को हिलाकर रख दिया था
चैतन्य भारत न्यूज
'भारत छोड़ो आंदोलन' देश के सबसे बड़े आंदोलन में से एक था जिसकी वजह से अंग्रेज भारत छोड़ने पर मजबूर हो गए थे। यह आंदोलन ऐसे समय पर शुरू हुआ जब दुनिया काफी बदलावों के दौर से गुजर रही थी। 9 अगस्त, 1942 ई. में इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी। बंबई के ग्वालिया टैंक मैदान पर अखिल भारतीय कांग्रेस महासमिति ने प्रस्ताव पारित किया था जिसे 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव कहा गया।
'भारत छोड़ो आंदोलन' ने ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया। अप्रैल 1942 में 'क्रिप्स मिशन' के असफल होने के लगभग चार महीने बाद ही स्वतंत्रता के लिए भारतीयों का तीसरा जन आंदोलन 'भारत छोड़ो आंदोलन' आरंभ हो गया। इसे 'अगस्त क्रांति' भी कहा जाता है। भारत छोड़ो का नारा युसुफ मेहर अली ने दिया था। 1942 में जब दूसरे विश्वयुद्ध में भारत से सहायता लेने के बाद भी अंग्रेजों ने भारत को आजाद करने का अपना वादा पूरा नहीं किया तो गांधी जी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की शुरुआत की। गांधीजी ने इस आंदोलन को अहिंसक रूप से चलाने का आह्वान किया था लेकिन फिर भी देश में कई जगहों पर आंदोलन के चलते तोड़-फोड़ और हिंसा हुई।
भारत छोड़ो आंदोलन के शुरू होते ही गांधी, नेहरू, पटेल, आजाद समेत कई बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। अंग्रेज इस आंदोलन से इतना ज्यादा डर गए थे कि उन्होंने एक भी नेता को नहीं बख्शा था। उनका सोचना था कि नेताओं को गिरफ्तार करने से आंदोलन ठंडा पड़ जाएगा। लेकिन फिर इस आंदोलन में पूरा देश शामिल हो गया था। ��ांधी जी ने ग्वालिया टैंक मैदान से कहा था कि, 'वो एक मंत्र देना चाहते हैं जिसे आप सभी लोग अपने दिल में उतार लें और वो मंत्र करो या मरो था।'
सभी बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बाद जनता ने आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ले ली। जब ये आंदोलन धीरे-धीरे बड़ा रूप लेने लगा तो अंग्रेजों को लगने लगा कि अब उनका सूरज अस्त होने वाला है। इसके 5 साल बाद यानी 15 अगस्त 1947 को वो दिन आ ही गया जब अंग्रेजो ने भारत को छोड़ दिया। इस दिन को हर वर्ष 'अगस्त क्रांति दिवस' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन अपने प्राणों की आहुति देने वाले क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि दी जाती है। साथ ही बापू द्वारा दी गई शिक्षाओं को भी याद किया जाता है।
Read the full article
0 notes