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#12 साल से कम उम्र के बच्चों में कोरोना
krazyshoppy · 2 years
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कोलकाता में बच्चों में तेजी से फैल रहा कोरोना संक्रमण, विशेषज्ञों ने दी ये सलाह
कोलकाता में बच्चों में तेजी से फैल रहा कोरोना संक्रमण, विशेषज्ञों ने दी ये सलाह
Kolkata Covid-19: कोलकाता में कोविड संक्रमित (Covid-19) बच्चों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. पिछले एक हफ्ते में संक्रमित बच्चों की संख्या काफी ज्यादा बढ़ गई है. गौरतलब है कि शहर में के अंडर-12 ग्रुप के अंतर्गत आने वाले वे बच्चे जिनका वैक्सीनेशन नहीं हुआ है वे ज्यादा संख्या में कोविड-19 संक्रमित पाए जा रहे हैं. वहीं डॉक्टरों का कहना है कि सभी में लक्षण अलग-अलग हैं लेकिन संक्रमण अब तक हल्का…
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abhay121996-blog · 3 years
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कोविड के बढ़ते मामलो को रोकने के लिए स्कूली छात्रों को किया गया टारगेट, जल्द शुरू होगा टीकाकरण अभियान Divya Sandesh
#Divyasandesh
कोविड के बढ़ते मामलो को रोकने के लिए स्कूली छात्रों को किया गया टारगेट, जल्द शुरू होगा टीकाकरण अभियान
बीजिंग। कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बीच, चीन अब नए टीकाकरण अभियान के हिस्से के रूप में छात्रों टारगेट कर रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि चीन ने पिछले कुछ महीनों सबसे अधिक मामले दर्ज किये हैं। इस साल जनवरी के बाद सबसे ज्यादा मामले चीन में इस बुधवार को देखे गए हैं। सरकार के मुताबिक, यह 71 नए घरेलू मामले हैं। 
सबसे खतरनाक डेल्टा वेरिएंट के कहर को कम करने के लिए , चीनी सरकार 12 से 17 साल की उम्र वाले बच्चों का टीकाकरण करने की तैयारी में लगी है। 16 प्रांतों और नगर पालिकाओं में ताजा मामले फैल गए हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि चीन में कितने लोगों को पूरी तरह से टीका लगाया गया है, हालांकि अधिकारियों का कहना है कि अब तक 1.6 बिलियन से अधिक खुराक दी जा चुकी हैं।
यह खबर भी पढ़ें: मनुष्य की म्रत्यु के बाद फिर से होगा उसका पुनर्जन्म, जानिए नारद पुराण का अद्भुत रहस्य
चीन के शिक्षा मंत्रालय ने स्थानीय अधिकारियों से स्कूली छात्रों के टीकाकरण को लक्षित करने वाले कार्यक्रम को लागू करने को कहा है। कई प्रांत पहले से ही स्कूली छात्रों का टीकाकरण किया जा रहा है। सरकार पर साल के अंत तक पूरी आबादी के 80 से 85 प्रतिशत को टीकाकरण के लक्ष्य को हासिल करने का दबाव है।
जयपुर में दुकान मात्र 3.5 लाख में टोंक रोड हाईवे पर अधिक जानकारी के लिए कॉल करे 8696666935
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kisansatta · 3 years
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28 जून से 2-6 साल के बच्चों पर शुरू होगा कोवैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल
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नई दिल्ली: दिल्ली और पटना एम्स में 28 जून से भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीन कोवैक्सीन का 2 से 6 साल के बच्चों पर स्क्रीनिंग और ट्रायल शुरू होगा! बच्चों के ट्रायल को तीन आयु वर्ग में बाटा गया है! 2 से 6 साल, 6 से 12 साल और 12 से 18 साल तक की आयु तय की गई है! अब तक 6 से 12 साल और 12 से 18 साल के बच्चों का ट्रायल शुरू हो गया है और उन्हें पहली डोज दी जा चुकी है!
18 साल से कम उम्र के बच्चों को कोरोना की वैक्सीन दी जा सकती है या नहीं इसके लिए भारत बायोटेक की कोविड-19 की वैक्सीन कोवैक्सीन का 2 से 18 साल के बच्चों पर ट्रायल चल रहा है! सोमवार 28 जून से 2 से 6 साल बच्चों का रिक्रूटमेंट शुरू किया जाएगा! रिक्रूटमेंट के बाद बच्चों की स्क्रीनिंग की जाएगी और क्लीनिकल ट्रायल में फिट पाए जाने पर ट्रायल में शामिल किया जाएगा!
दिल्ली एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन के डॉ संजय राय कहते हैं, “12 से 18 साल और 6 से 12 साल इनका रिक्रूटमेंट हो चुका है इन्हें पहली डोज दी जा चुकी है! सैंपल साइज अचीव हो चुकी है! जो 2 से 6 साल का उनकी स्क्रीनिंग करेंगे सोमवार से और स्क्रीनिंग का रिपोर्ट आने के बाद जो भी स्वास्थ्य वालंटियर होंगे उनको स्क्रीनिंग रिपोर्ट के बाद वैक्सीनेट किया जाएगा!”
बच्चों का ट्रायल भी वैसा ही होगा जैसे बड़ों का हुआ
पहली डोज और दूसरी डोज के बीच 28 दिनों का अंतर होगा.
बच्चों को भी 6mg की डोज दी जाएगी.
ट्रायल से पहले इनका भी एंटीबॉडी टेस्ट किया जाएगा.
ट्रायल में वैक्सीन लगने के बाद इन्हें भी लगातार मॉनिटर किया जाएगा.
टीके को इंट्रामस्क्युलर मार्ग द्वारा दो डोज दी जाएगी.
https://kisansatta.com/clinical-trial-of-covaccine-will-start-on-2-6-year-old-children-from-june-28/ #Covaxin, #Coronavirus #covaxin, Coronavirus Corona Virus #CoronaVirus KISAN SATTA - सच का संकल्प
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journalistcafe · 3 years
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बच्चों के लिए जारी हुई कोरोना गाइडलाइंस, पेरेंट्स को जानना बेहद जरुरी
बच्चों के लिए जारी हुई कोरोना गाइडलाइंस, पेरेंट्स को जानना बेहद जरुरी
फाइजर और बायोएनटेक ने यूरोपीय संघ के दवा नियामकों से 12 से 15 साल की उम्र के बच्चों के लिए कंपनियों के कोरोना टीके को मंजूरी देने की अपील की है। ताकि यूरोप में युवा और कम जोखिम वाली आबादी तक कोरोना वैक्सीन पहुंचाई जा सके। स्टडी के आधार पर मांगी परमिशन दोनों कंपनियों ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी को उन्होंने जो अप्लीकेशन दी है, उसमें 2,000 से अधिक किशोरों पर परीक्षण की…
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vilaspatelvlogs · 3 years
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फाइजर कंपनी का दावा, 12-15 साल के बच्‍चों में भी बेहद असरदार है उसकी कोरोना वैक्सीन
फाइजर कंपनी का दावा, 12-15 साल के बच्‍चों में भी बेहद असरदार है उसकी कोरोना वैक्सीन
न्यूयॉर्क: कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों में अग्रणी कंपनी फाइजर ने दावा किया है कि उसकी वैक्सीन 12 साल तक के बच्चों पर भी बेहद असरदार है. कंपनी ने कहा कि सरकार अब कम उम्र के किशोर-किशोरियों की भी वैक्सिनेशन कर सकती है, ताकि स्कूल-कॉलेज खोलने जैसे कदम उठाए जा सकें.  कंपनी का दावा गंभीर, सरकार से मांगा लाइसेंस अभी दुनिया भर में कोरोना की जो वैक्सीन लगाई जा रही हैं, वो वयस्कों के लिए है. खास कर…
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krazyshoppy · 3 years
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12 से 14 साल के बच्चों को कल से लगेगा कोरोना टीका, जाने कैसे करें रजिस्ट्रेशन
12 से 14 साल के बच्चों को कल से लगेगा कोरोना टीका, जाने कैसे करें रजिस्ट्रेशन
Corona Vaccination: भारत में कोरोना के मामले तो कम हो गए हैं लेकिन वैक्सीनेसन अभियान अभी भी रफ्तार पकड़ती नजर आ रही है. दरअसल केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय (Union Health Ministry) ने कोविड प्रीकॉशन डोन को लेकर एक बेहद अहम जानकारी साझा की है. केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण (Rajesh Bhushan) ने कहा कि 16 मार्च यानी कल से देश में 12-14 साल की उम्र के बच्चों का वैक्सीनेशन शुरू कर दिया…
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asr24news · 3 years
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12-15 साल के बच्चों के लिए आ गई कोरोना वैक्सीन
12-15 साल के बच्चों के लिए आ गई कोरोना वैक्सीन
अमेरिका में 16 वर्ष और उससे अधिक उम्र के युवाओं को दी जा रही है फाइजर की वैक्सीन नई दिल्ली। वैक्सीन बनाने वाली अमेरिकी कंपनी फाइजर इंक और बायोनटेक एसई ने हाल ही में 12 साल से कम उम्र के बच्चों पर वैक्सीन का ट्रायल शुरू किया था। कंपनी ने दावा किया है कि 12 से 15 साल तक के बच्चों के लिए कोरोना वैक्सीन सौ प्रतिशत असरदार है। बता दें कि अमेरिका में 16 वर्ष और उससे अधिक उम्र के युवाओं को फाइजर की…
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shaileshg · 4 years
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आज कहानी रायपुर के स्पेशल डीजीपी आरके विज और यूपी के मोहनलालगंज से बीजेपी सांसद कौशल किशोर की। विज दो बार कोरोना की चपेट में आए और दूसरी बार में ज्यादा इन्फेक्टेड हुए। वहीं, कौशल किशोर को कोरोना ठीक होने के बाद हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई थी लेकिन तीन-चार दिन बाद ही उनकी तबीयत दोबारा खराब हो गई और फिर कोरोना ने फेफड़ों तक को इन्फेक्टेड कर दिया। हालांकि अब दोनों ठीक हैं, उन्होंने हमसे बात करते हुए अपना एक्सपीरियंस शेयर किया है।
पहली बार में सिंपटम्स नहीं थे, दूसरी बार में सात दिनों तक खाना नहीं खा पाया
डीजीपी विज (आईपीएस) कहते हैं कि पहली बार मुझे जुलाई के आखिर में कोरोना हुआ था। उस टाइम कोई सिंपटम्स नहीं आए थे। घर में एक लड़का माता-पिता की केयर के लिए रखा था, उसकी तबीयत खराब हुई तो मैंने उसे जांच के लिए एम्स भेजा।
एम्स ने ये कहते हुए जांच करने से मना कर दिया कि कोई सिंपटम्स नहीं दिख रहे। मैंने दूसरी जगह जांच करवाई, जहां वो पॉजिटिव आया। इसके बाद हमारे पूरे परिवार ने कोरोना की जांच करवाई। मैं, पत्नी, बच्ची के साथ ही एक, दो वर्कर भी पॉजिटिव आए।
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डीजीपी विज ने बताया कि मैंने कोरोना होने पर सभी प्रिकॉशन लिए। इसके बावजूद कोरोना रिपीट हुआ और पहले से ज्यादा आक्रमक हुआ।
हमने प्रॉपर ट्रीटमेंट लिया। 14 दिनों तक आइसोलेशन में रहे। ठीक होने के बाद ऑफिस ज्वॉइन कर लिया था। मास्क लगाकर और पूरे प्रिकॉशन के साथ ही काम पर जा रहा था, लेकिन 2 अक्टूबर को फिर तेज बुखार आया। उस दिन बुखार की दवाई खा ली लेकिन ठीक नहीं हुआ। 4 अक्टूबर को टेस्ट हुआ तो दोबारा कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई।
रिपोर्ट देखकर सभी टेंशन में आ गए थे कि फिर कैसे कोरोना हो गया। उस समय हमें पता नहीं था कि इस बार किस लेवल का है। बुखार उतर नहीं रहा था, इसलिए ज्यादा घबराहट थी। 7 अक्टूबर को हॉस्पिटल में एडमिट हुआ। एक हफ्ते तक वहीं इलाज चलते रहा। दवाई से बॉडी में स्टेरॉयड जा रहा था, जिससे शुगर बढ़ रही थी इसलिए शुगर को कंट्रोल करने के लिए इंसुलिन लेना पड़ा।
मैंने डॉक्टर से पूछा कि मुझे दोबारा कोरोना क्यों हुआ? इसका कोई सही जवाब तो नहीं दे पाया लेकिन उन्होंने कहा कि ये हो सकता है कि पहली बार जब आपको कोरोना हुआ था, उसके बाद आपकी बॉडी में पर्याप्त एंटीबॉडी डेवलप नहीं हो सके। इसी कारण आप दोबारा फिर इसकी चपेट में आ गए।
पहली बार में कोई सिंपटम्स नहीं थे लेकिन दूसरी बार में तेज बुखार आया। मुंह से टेस्ट चला गया था। एक हफ्ते तक तो लिक्विड डाइट ही ली क्योंकि कुछ खाने का मन ही नहीं कर रहा था। 6 से 7 किलो वजन कम हो गया। कमजोरी बहुत आ गई। 23 अक्टूबर को फिर टेस्ट हुआ, रिपोर्ट नेगेटिव आई। इस बार दवाई पूरे एक महीने तक चलीं। अभी तक होम क्वारैंटाइन ही हूं। बीते ��क महीने से किसी से मिलना-जुलना नहीं हुआ। दूसरी बार में कोरोना ने ज्यादा परेशान किया।
12 साल की उम्र में बिना बताए मुंबई भाग आए, फुटपाथ पर रहे और फिर खड़ी की 40 करोड़ की कंपनी
दूसरी बार बीमार हुआ तो बुखार चढ़ता-उतरता, बदन में बहुत दर्द था
सांसद कौशल किशोर कहते हैं, अगस्त में मुझे बुखार आया और बीपी लो हो गया था। बुखार नॉर्मल हो जाने के बाद भी बीपी बढ़ नहीं रहा था। पचास पर आकर स्थिर हो गया था। मैंने अपने डॉक्टर मित्र को बुलाकर दिखाया तो उन्होंने नमक-रोटी खाने की सलाह दी। ऐसा करने पर भी बीपी नहीं बढ़ा तो उन्होंने मुझे हॉस्पिटल में एडमिट करवाया।
एडमिट होने पर बीपी कम होकर 20 पर चला गया और मैं बेहोश हो गया। फिर मुझे अपोलो हॉस्पिटल में रेफर कर दिया गया। वहां सिचुएशन कंट्रोल में आई। उन्होंने कोरोना टेस्ट भी किया, जिसमें रिपोर्ट पॉजिटिव आई, जबकि मुझे कोरोना से जुड़े कोई खास सिंपटम्स नहीं थे। न सर्दी-खांसी थी, न ही सांस लेने में दिक्कत थी। बुखार भी उतर गया था।
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सांसद कौशल की हालत बेहद खराब हो गई थी। कहते हैं, अब काफी हद तक रिकवर हो चुका हूं। कोरोना रिपोर्ट भी निगेटिव आई है।
आठ दिन हॉस्पिटल में एडमिट रहा, फिर छुट्टी हो गई। दो-तीन दिन घर में रहने के बाद फिर बुखार आने लगा। शरीर में दर्द बहुत हो रहा था। बुखार चढ़ता था और उतरता था। मैं फिर मेदांता में एडमिट हो गया। फिर पता चला कि कोरोना ने फेफड़ों को संक्रमित कर दिया है।
एक हफ्ते तक इलाज चलते रहा। थोड़ा आराम मिल गया था तो हॉस्पिटल ने छुट्टी करने की बात कही। मैंने कहा कि जब तक रिपोर्ट नेगेटिव नहीं आ जाती, मैं घर नहीं जाऊंगा। एक हफ्ते और हॉस्पिटल में रहा और 16वें दिन मेरी रिपोर्ट निगेटिव आई।
दोबारा जब कोरोना शरीर में फैला था तो उससे बहुत कमजोरी आ गई थी। मैं सीढ़ियां तक चढ़-उतर नहीं सकता था। सीएम हर रोज मेरी हालत की रिपोर्ट ले रहे थे। मैं सांस अंदर बाहर करने की एक्सरसाइज कर रहा था। इससे मेरी सांस नहीं फूली और ऑक्सीजन लेवल कम नहीं हुआ। अभी हालत ठीक है लेकिन कमजोरी बनी हुई है।
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High fever came, mouth test went, had to take medicine for a month
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newswave-kota · 4 years
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आंखों में छिपी हैं 'उम्मीद की किरणें'
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*होप इन साइट- विश्व दृष्टि दिवस पर उपयोगी स्वास्थ्य मंत्र* न्यूजवेव @ कोटा समूचे विश्व में अक्टूबर के दूसरे गुरुवार को "वर्ल्ड साइट डे" मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम है "होप इन साइट" है। विश्व दृष्टि दिवस के अवसर पर दृष्टि की रक्षा करने, आंखों को स्वस्थ व सुरक्षित बनाये खने के लिए *वरिष्ठ नेत्र सर्जन डॉ सुरेश कुमार पांडेय एवं डॉ विदुषी पांडेय* बता रहे हैं कुछ उपयोगी टिप्स-
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1. स्वस्थ आंखों के लिए हरी सब्जियों, फलों, ओमेगा थ्री फेटी एसिड युक्त पोष्टिक भोजन का सेवन करें। धूप में जाने पर अल्ट्रा वायलेट फिल्टर चश्मे का उपयोग करें। सात घंटे की नींद लेवें। 10 से 12 गिलास पानी पिएं एवम नियमित योग, एक्सरसाइज करें। 2. कोरोना काल में मोबाइल व लेपटॉप पर स्क्रीन टाईम के बढ़ने से डिजिटल आई स्ट्रेन के रोगी बढ़ें हैं। ड्राई आई एवम् मास्क एसोसिएटेड ड्राई आई (मेड) से बचने के लिए डिजिटल डिवाइस या कंप्यूटर पर काम करने वाले सभी व्यक्ति 20:20:20 रुल का पालन करें। कम्प्यूटर को बीस इन्च दूरी पर रखें। हर 20 मिनट के बाद 20 सेकंड का ब्रेक लेवें एवम् 20 फीट दूर देखें। नेत्र चिकित्सक के परामर्श से लुब्रिकेटिंग आई ड्रॉप का नियमित उपयोग करें। 3. मोतियाबिंद का ऑपरेशन के लिए इसका पूरी तरह से पकना जरूरी नहीं है। ऑपरेशन जब आपको ड्राइविंग या अखबार पढ़ने में परेशानी हो तो आप नेत्र विशेषज्ञ के परामर्श से लें। यदि आप प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने के कारण टेमसुलोसिन आदि दवाओं का उपयोग कर रहे हो तो ऑपरेशन के दौरान फ्लोपी आईरिस होने की संभावना बढ़ जाती है। नेत्र सर्जन को ऑपरेशन के पहले इसकी जानकारी जरूर दे। 4. अनकरेक्टेड रिफ्रेक्टिव एरर (दृष्टि दोष) कम दिखने का सबसे बड़ा कारण है। चश्मे का नंबर हर वर्ष में दो बार नेत्र चिकित्सक से चेक करवाएं एवम् चश्मा लगाने में संकोच/प्रमाद नहीं करें। आंखों का दबाव, पर्दे की जॉच भी कराना भी नहीं भूलें। चालीस वर्ष के दौरान पढ़ने या पास का काम करते समय पास का चश्मा लगने की जरूरत होती है, इसे प्रेस्बायोपिया कहते हैं। 5. 40 वर्ष की उम्र के बाद प्रत्येक 6 माह में ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर चेक एवं अन्य आवश्यक टेस्ट करवाने के साथ साथ आंखों की भी पूरी जांच करवाएं। चश्मे के नंबर, आंखों का दबाव, पर्दे (रेटिना) की दवा डालकर जांच आदि करवाने के लिए समय जरूर निकालें। 6. आंखों में एलर्जी/खुजली होने पर कई लोग स्टेरॉइड आई ड्रॉप का उपयोग ��िना नेत्र विशेषज्ञ के परामर्श से करतें हैं। लम्बे समय तक स्टेरॉइड आई ड्रॉप का प्रयोग करने से मोतियाबिंद या ग्लूकोमा जैसे नेत्र रोग हो सकते हैं एवं नेत्र ज्योति हमेशा के लिए कम हो सकती है। अतः स्टेरॉइड आई ड्रॉप का उपयोग हमेशा नेत्र विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार ही करें। 7. आंखों को बार बार जोर से नहीं मसलें। रोजाना आंखों को बार बार मसलने (रबिंग करने) से कॉर्निया में माइक्रो ट्रॉमा होता है जिससे कॉर्निया कमजोर होकर किरेटोकोनस का कारण बन सकता है। 8. छोटे बच्चे यदि टीवी देखते समय टीवी के बहुत पास बैठते हैं तो यह दृष्टि दोष के कारण हो सकता है। बच्चों की एक एक आंख बंद करके दूर के किसी ऑब्जेक्ट को दिखाकर उनकी दोनों आंखों की दृष्टि चेक कर लेवें। यदि दोनों आंखों की दृष्टि में अन्तर हो तो नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श लेवें क्यों कि बच्चों में लेजी आई (एंबलायोपिया) का पता नहीं चल पाता है। 9. यदि आपको मधुमेह या हाइपरटेंशन है तो ब्लड शुगर लेवल एवम् ब्लड प्रेशर को फिजिशियन के परामर्श से दवाओं के नियमित सेवन से नियंत्रित रखें। आंखों में चमकती रोशनी या अचानक बहुत से फ्लोटर्स दिखने पर अथवा अचानक नजर कम होने पर तुरंत नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श लेवें। हर छः माह में दवा डालकर पर्दे (रेटिना) की जॉच अवश्य करवाए। 10. बच्चों की आंखों को चोट से बचाये दीवाली पर सेफ्टी गोगल का उपयोग करें जिससे आंखों को फटाखे चलाते समय चोट नहीं लगे। जर्दा, तम्बाकू खाने वाले व्यक्ति चूने के पाउच बच्चों से दूर रखें। क्योंकि चूने के पाउच की ट्यूब को बच्चे दबाते हैं और पाउच की ट्यूब का ढक्कन अचानक खुलने से चूना बच्चों की आंख में जाने से हर साल कई बच्चो की आंखें खराब हो जाती हैं। यदि आंखों में चोट लगती है तो तुरंत नजदीकी नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श लेवें। 11. नौ माह से पहले जन्मे नवजात शिशुओं की आंखों की दवा डालकर पर्दे (रेटिना) की जांच जन्म के तीन सप्ताह तक जरूर करवाए। छोटे बच्चों में यदि आंख की पुतली का केंद्र भाग सफेद (व्हाइट पुपिलरी रिफ्लेक्स) दिखाई देता है तो इसकी जांच नेत्र विशेषज्ञ से करवाए। यह मोतियाबिंद, रेटिनोपथी ऑफ प्रीमेचुरिटी या आंख के कैंसर (रेटिनोब्लास्टोमा) का लक्षण हो सकता है। 12. यदि माता पिता को ग्लूकोमा है तो आप अपने आंखों के दबाव की जांच जरूर करवाए। सामान्य इंट्रा ओकुलर प्रेशर 10 से 20 मिमी ऑफ मर्करी होता है। यदि आपके आंखों का दबाव 22 मिमी ऑफ मर्करी से अधिक आता है तो इन्वेस्टिगेशन करवाकर, नेत्र विशेषज्ञ की सलाह अनुसार बढ़े दबाव को नियंत्रित करने हेतु एंटी ग्लूकोमा मेडिकेशन का उपयोग करें। एंटी ग्लूकोमा आई ड्रॉप को नियमित रूप से निश्चित समय डालें एवं बिना चिकित्सक के परामर्श के बंद नहीं करें। *नेत्र है तो जहान है*
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जीते जी रक्तदान,मरणोपरांत नेत्रदान नामक सूत्र के अनुसार नेत्रदान का संकल्प लें एवम अपने मित्रों को भी नेत्रदान के लिए प्रेरित करें। - डॉ सुरेश पाण्डेय, डॉ विदुषी पाण्डेय सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा Read the full article
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abhay121996-blog · 3 years
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संपादकीय: मोबाइल फोन की खतरनाक दुनिया में गुमराह होती मासूमियत Divya Sandesh
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संपादकीय: मोबाइल फोन की खतरनाक दुनिया में गुमराह होती मासूमियत
छत्तीसगढ़ में 12 साल के एक लड़के ने अपनी टीचर मां के बैंक अकाउंट से 3.2 लाख रुपये ऑनलाइन गेम के हथियार खरीदने पर खर्च कर दिए और मां को भनक तक नहीं लगी। जब अकाउंट से 3.2 लाख रुपये निकल जाने का अहसास हुआ, तब भी उन्होंने यही सोचा कि वह किसी ऑनलाइन फ्रॉड का शिकार हुई हैं। पुलिस ने ही प्राथमिक छानबीन के बाद सलाह दी कि वह अपने 12 साल के बेटे से पूछ कर देखें। जब बेटे से पूछा गया तो सारा राज बाहर आ गया। हालांकि बच्चों का मोबाइल में व्यस्त रहना और ऑनलाइन गेम्स खेलते रहना इतना आम हो गया है कि इसमें खास चौंकाने वाली कोई बात नहीं दिखती। लेकिन मासूम सी लगने वाली यह लत कितनी खतरनाक हो सकती है और इसके कैसे भयावह दुष्परिणाम झेलने पड़ सकते हैं, वह इस घटना से साफ होता है।
एकल परिवारों में अपनी दिनचर्या और काम की जिम्मेदारियों में फंसे मां-बाप बच्चों के लिए वक्त निकालने में अपनी असमर्थता की भरपाई मोबाइल से करने के आदी होते जा रहे हैं। नतीजतन बहुत कम उम्र में ही बच्चों के हाथों में मोबाइल पहुंच जाता है। इंटरनेट का इंद्रजाल उन्हें मोहित करता है और वे मां-बाप, भाई-बहन, नाते-रिश्तेदारों के संग-साथ की कमी ऑनलाइन गेम जैसे आसानी से उपलब्ध साधनों से पूरी करना सीख जाते हैं। लेकिन यहां कोई ऐसा नहीं होता जो उन्हें इसकी हदें बताए और इन हदों से आगे निकलने के खतरे समझाए। मां-बाप यह देखते हैं कि बच्चा अपने कमरे में मोबाइल के साथ है, लेकिन मोबाइल की उस खिड़की से कूदकर वह इंटरनेट की दुनिया में कहां पहुंचा हुआ है, इसका उन्हें अक्सर अंदाजा भी नहीं होता।
तमाम अध्ययनों की रिपोर्ट पहले से बताती रही हैं कि कम उम्र में मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों की उंगली, उनके पूरे शरीर और मन-मिजाज पर कितना बुरा असर पड़ता है। कोरोना और लॉकडाउन के चलते स्कूल कॉलेजों की बंदी ने जहां एक तरफ उन्हें पहले से ज्यादा अकेला कर दिया है, वहीं मोबाइल के साथ ज्यादा समय बिताने की मजबूरी बढ़ा दी है। जो पैरंट्स पहले बच्चों को मोबाइल पर बिजी देखकर असहज होते थे, वे भी अब इसे सहज मानने लगे हैं। लेकिन मौजूदा माहौल से उपजी मजबूरियों के बावजूद इसके खतरे कम नहीं हुए हैं। गेम के लिए हथियार खरीदना तो ऐसे खतरों का सिर्फ एक उदाहरण है। ब्लू व्हेल जैसे किसी घातक गेम का हिस्सा बनना और आतंकवादी तत्वों के बिछाए किसी जाल में फंसना भी इसका उतना ही स्वाभाविक प्रतीत होने वाला नतीजा हो सकता है। यही नहीं, वे फिशिंग का भी शिकार हो सकते हैं। इसलिए पैरंट्स को बच्चों की मोबाइल गतिविधियों को लेकर ज्यादा सतर्क होना होगा।
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karanaram · 3 years
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🚩ऑस्ट्रेलिया की लड़की ने संत आशाराम बापू के बारे में कही बड़ी बात... 01 जुलाई 2021
https://youtu.be/YwELDddpR44
🚩हिन्दू धर्मगुरु आशाराम बापू की उम्र 85 वर्ष की है, 8 साल से जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। कुछ समय पहले वे कोरोना संक्रमित हुए थे, एलोपैथी दवाई दी गई जिसका उनपर प्रतिकूल असर हुआ और उनका हीमोग्लोबिन 3.7 चला गया था। काफी समय इलाज चला, उसके बाद वापिस उनको जेल भेज दिया गया। उनकी शारीरिक स्थिति अभी भी गंभीर बनी हुई है।
🚩इस विषय को लेकर ऑस्ट्रेलिया की लड़की ग्रेलोरे सैनी ने कहा "सारी दुनिया कोरोना वायरस पैंडेमिक के प्रकोप से जूझ रही है। मैंने सुना है कि भारत देश के सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी किया है कि भारतीय जेलों में जो कैदी हैं उनको बेल या पैरोल पर छोड़ दिए जाए। क्योंकि जेलों में बहुत भीड़ है। कोरोना काल में इतनी भीड़ में साफ़ सफाई रखना मुश्किल होगा इसलिए जेलों की भीड़ कम करने के लिए जिससे कि कोरोना के रोकथाम में मदद हो, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश जारी किया है।"
आगे कहा कि आसाराम बापूजी, जो कि एक वृद्ध 85 साल के व्यक्ति हैं, वो कोरोना पॉजिटिव हो गए थे कुछ समय पहले। वो अब भी जेल में हैं और उनको बेल या पैरोल अब तक नहीं दी गई है।
हम जानते हैं कि कोरोना वायरस वयस्क अथवा वृद्ध लोगों के लिए ज़्यादा खतरनाक है। जब आसारामजी बापू 85 साल के हैं और कोविड19 पॉजिटिव हो गए थे तो उनको अब तक बेल पे छोड़ा क्यों नहीं गया ?
वो एक अति वृद्ध व्यक्ति हैं जिनको जेल जैसी भीड़ भरी जगह में रखा गया है। अन्य बहुत सारे अपराध करनेवाले कैदियों को छोड़ा गया है तो आसाराम बापूजी को क्यों नहीं छोड़ा ?
मेरी प्रशासन से विनती है कि आप प्लीज आसाराम बापूजी को बेल अथवा पैरोल पे छोड़ दें। धन्यवाद!
🚩आपको स्पष्ट बता देते हैं कि जिस समय लड़की ने छेड़छाड़ का आरोप लगाया है उस समय तो वो अपने मित्र से कॉल पर बात कर रही थी और बापू आशारामजी किसी कार्यक्रम में व्यस्त थे, वहाँ पर 50-60 लोग भी थे, उन्होंने कोर्ट में गवाही भी दी है, लड़की का कॉल डिटेल भी दिया गया है फिर भी उनको जेल में रखना कहां तक उचित है ?
https://youtu.be/V0sr9yHj1Go
🚩उनको साजिश के तहत फंसाना और बाहर नहीं आने देना- उसके मुख्य कारण ये हैं:-
1). लाखों धर्मांतरित ईसाइयों को पुनः हिंदू बनाया व करोड़ों हिन्दुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक किया व आदिवासी इलाकों में जाकर धर्म के संस्कार, मकान, जीवनोपयोगी सामग्री दी, जिससे धर्मान्तरण करानेवालों का धंधा चौपट हो गया।
2). कत्लखाने जाती हज़ारों गौ-माताओं को बचाकर उनके लिए विशाल गौशालाओं का निर्माण करवाया।
3). शिकागो विश्व धर्मपरिषद में स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद जाकर हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया।
4). विदेशी कंपनियों द्वारा देश को लूटने से बचाकर आयुर्वेद/होम्योपैथिक के प्रचार-प्रसार द्वारा एलोपैथिक दवाइयों के कुप्रभाव से असंख्य लोगों का स्वास्थ्य और पैसा बचाया।
5). लाखों-करोड़ों विद्यार्थियों को सारस्वत्य मंत्र देकर और योग व उच्च संस्कार का प्रशिक्षण देकर ओजस्वी-ते��स्वी बनाया।
6). इंग्लैंड, पाकिस्तान, चाईना, अमेरिका और बहुत सारे देशों में जाकर सनातन हिंदू धर्म का ध्वज फहराया।
7). वैलेंटाइन डे का कुप्रभाव रोकने हेतु "मातृ-पितृ पूजन दिवस" का प्रारम्भ करवाया।
8). क्रिसमस डे के दिन प्लास्टिक के क्रिसमस ट्री को सजाने के बजाय तुलसी पूजन दिवस मनाना शुरू करवाया।
9). करोड़ों लोगों को अधर्म से धर्म की ओर मोड़ दिया।
10). नशामुक्ति अभियान के द्वारा लाखों लोगों को व्यसनमुक्त कराया।
11). वैदिक शिक्षा पर आधारित अनेकों गुरुकुल खुलवाए।
12). मुश्किल हालातों में कांची कामकोटि पीठ के "शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वतीजी", बाबा रामदेव, मोरारी बापू, साध्वी प्रज्ञा एवं अन्य संतों का साथ दिया।
13. बच्चों के लिए "बाल संस्कार केंद्र", युवाओं के लिए "युवा सेवा संघ", महिलाओं के लिए "महिला उत्थान मंडल" खोलकर उनका जीवन धर्ममय व उन्नत बनाया।
ऐसे अनेक भारतीय संस्कृति के उत्थान के कार्य किये हैं जो विस्तार से नहीं बता पा रहे हैं।
🚩हिंदू संत आशाराम बापू पर जिस तरह से षड्यंत्र हुआ है उसको देखते हुए और उनके द्वारा किए गये राष्ट्र-संस्कृति व समाज उत्थान के सेवाकार्य तथा उनकी उम्र का ध्यान रखते हुए न्यायालय और सरकार को उन्हें शीघ्र रिहा करना चाहिए।
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gkt49 · 4 years
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दंगल में कुश्ती करने को बेसब्र पहलवान, कोरोना ने आर्थिक और शारीरिक रूप से किया प्रभावित नई दिल्ली, 19 सितम्बर (आईएएनएस)। शमशाद कई सालों से पहलवानी कर रहें हैं, 3 बार स्टेट लेवल चैंपियन भी रहे, वहीं अब नेशनल की तैयारी कर रहें हैं। पिछले 6 महीने से दंगल के आयोजन न होने से शमशाद काफी दुखी और हताश है। शमशाद का कहना है, कोरोना बीमारी में लगी पाबंदियों से हमारे जीवन पर बहुत फर्क पड़ा है। ढंग से प्रैक्टिस नहीं हो पाई, जिसकी कारण हमारी स्पीड पर असर पड़ा। दंगलों का आयोजन न होने से हमारी आर्थिक स्थिति पर भी गहरा असर हुआ, जिसकी वजह से हम अपनी रोजमर्रा की डाइट पूरी नहीं कर सके।उनका मानना है कि पहलवानों को वापस आने में कम से कम एक साल लगेगा, वहीं इस वक्त पहलवान बहुत पीछे चले गए हैं। कोरोना वारयस की वजह से लगे लॉकडाउन में सभी पहलवान घर पर हैं। विभिन्न राज्यों में होने वाली कुश्ती भी इस बीमारी की वजह से नहीं हो सकी। दंगल में कुश्ती करने वाले पहलवानों के शरीर पर इसका काफी फर्क पड़ा है। इतना ही नहीं पहलवानों की आर्थिक स्थिति भी गड़बड़ा गई है। कुश्ती दुनिया का सबसे पुराना खेल है। माना जाता है कि कुश्ती की शुरुआत भारत में हुई। पिछले एक दशक में भारतीय पहलवानों ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया और इन पहलवानों को बनाने में देश के कई अखाड़ों का अहम रोल भी रहा है।स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया और भारतीय कुश्ती संघ से मान्यता प्राप्त दिल्ली का गुरु जसराम अखाड़े में कसरत करने के लिए पहलवानों ने आना शुरू कर दिया है। लॉकडाउन से पहले रोजाना करीब 100 पहलवान ��कर कसरत किया करते थे। लेकिन इस वक्त अखाड़े में मुश्किल से ही करीब 20 पहलवान कसरत करने आ रहे हैं।अखाड़े में 12 साल से लेकर 30 साल तक के उम्र से अधिक लोग पहलवानी करते हैं। कुश्ती सीखने के लिए पहलवान पहले दौड़, दंड बैठक लगाते हैं। हालांकि लंबे वक्त के बाद प्रैक्टिस कर रहे पहलवानों का वजन तो बढ़ा ही है, वहीं इनके खेल में भी परिवर्तन हुआ है। जिसे वापस हासिल करने के लिए पहलवानों को घंटो महनत करनी पड़ रही हैं।अखाड़े के संचालक नीरज चौधरी ने आईएएनएस को बताया, सीनियर पहलवानों के लिए कुश्ती करना बहुत जरूरी होता है। पहलवानों के लिए कुश्ती ही जीवन है। दंगल में कुश्ती का मैच होने से एक पहलवान को आर्थिक सहायता मिलती है।उन्होंने कहा, एक पहलवान डमी से प्रैक्टिस नहीं कर सकता, उसकी स्पीड पर काफी असर पड़ता है। वहीं वो अपने सामने वाले कि ताकत नहीं जान सकता। लेकिन कोरोना में दंगल न होने से नुकसान हुआ है लेकिन दूसरी तरफ बीमारी से बचने के लिए ठीक भी है।उन्होंने कहा, दरअसल दंगल का अधिकतर आयोजन गांव में होता है जहां मिट्टी पर कुश्ती की जाती है, इससे यूथ प्रभावित और जागरूक होता है। वहीं पहलवानी को बढ़ावा भी मिलता है।उन्होंने आगे कहा कि हम तो यही उम्मीद करेंगे कि जल्द से जल्द हालात सामान्य हो, फिर से पहलवान कुश्ती करें, हालांकि कोरोना को लेकर सरकार जो भी दिशा निर्देश देगी उनका पालन करना बहुत जरूरी है।दरअसल लॉकडाउन से पहले इस अखाड़े से अलग अलग राज्यों में दंगल में कुश्ती करने के लिए पहलवान जाया करते थे। हाल ये था कि हफ्ते में अधिकतर दिन पहलवान कुश्ती ही किया करते थे। लेकिन अब सभी पहलवान घरों पर बैठने को मजबूर हो चुके हैं।पहलवानों को उम्मीद है कि ये बीमारी जल्द ही खत्म होगी। वहीं सभी एक बार फिर से पहले की तरह कुश्ती कर सकेंगे। अखाड़े के पहलवानों का कहना है, हमारी रोजी रोटी ही यही है और इसके बंद होने से हम बहुत परेशान है, नये युवा हमसे प्रभावित होते है।उन्होंने कहा, लॉकडाउन में नये उम्र के बच्चे पहलवानी छोड़ गए, वहीं जिन बच्चों ने शुरुआत की थी उनकी प्रैक्टिस भी छूट गई। पहलवान अगर एक वक्त की कसरत छोड़ता है तो पूरे हफ्ते उस पर इसका असर दिखता है यहां तो पिछले 6 महीने से सब घरों में हैं।उन्होंने आगे कहा, पहलवान की एक दिन की खुराक (खाना) 500 रुपये से 700 रुपये तक होती है। जिसमें दूध ,बादाम, किसमिस, फल ,जूस आदि सामग्री शामिल हैं और इसका खर्चा दंगलों में होने वाली कुश्ती से निकलता है।इस अखाड़े से ओलंपिक, एशियन गेम्स, कॉमन वेल्थ, अर्जुन और ध्यानचंद अवार्ड से सम्मानित कई पहलवान हैं। गुरु जसराम जो की खुद एक अंतरराष्ट्रीय पहलवान रह चुके हैं उन्होंने 1970 में इस अखाड़े की स्थापना की थी और तब से अब तक कई बड़े पहलवान इस अखाड़े में तैयार किये जा चुके हैं। अखाड़े में पहलवानों से कोई फीस नहीं ली जाती। बस इस अखाड़े का उद्देश्य है कि देश के लिए ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ी दे सकें।-- आईएएनएस एमएसके/वीएवी .Download Dainik Bhaskar Hindi App for Latest Hindi News.....Impressed wrestler, Corona financially and physically affected to wrestle in riot. ..
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kisansatta · 4 years
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भारत में तेजी से बढ़ेगी बाल श्रमिकों की संख्या?
कहा जाता है कि बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं | लेकिन कैसे मन जाये कि बच्चों का भविष्य सुरक्षित है | केवल देश ही नहीं बल्कि दुनिया का भविष्य बच्चे ही हैं | लेकिन आज के इस वक्त में ऐसे बहुत से बच्चे हैं जो स्कूल जानें या फिर खेलने की जगह, काम करने को मजबूर हैं ताकि दो वक्त की रोटी खा सकेंऔर अपने परिवार का भरण पोषण कर सके | बच्चों का इस तरह से काम करना एक चिंता का विषय है | स्कूल जानें और खेलने कूदने की उम्र में बहुत से बच्चे दो वक्त की रोटी के लिए काम करने को मजबूर हैं | इसी वजह से हर साल 12 जून को बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस मनाया जाता है |
  आपको बता दें कि देश और दुनिया में कोरोना संकट के चलते भारत में सबसे ज्यादा बाल श्रमिकों की संख्या बढ़ेगी | देश में बाल श्रमिकों की संख्या बढ़ने का मुख्य कारण देश में अधिक जनसँख्या होना है | भारत में कोरोना के चलते जहाँ लगभग 20 % लोग नौकरी गवाँ चुके है वहीँ कोरोना काल में बेरोजगारी के दर में भरी बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है |
क्‍या है ? बाल श्रम….
बाल श्रम, भारतीय संविधान के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्‍चों से कारखाने, दुकान, रेस्‍तरां, होटल, कोयला खदान, पटाखे के कारखाने आदि जगहों पर कार्य करवाना बाल श्रम है। बाल श्रम में बच्‍चों का शोषण भी शामिल होता है, शोषण से आशय, बच्चों से ऐसे कार्य करवाना, जिनके लिए वे मानसिक एवं शारीरिक रूप से तैयार न हों।
भारत के संविधान में मूल अधिकारों के अनुच्‍छेद 24 के अंतर्गत भारत में बाल श्रम प्रतिबंधित है। बाल श्रम का मुख्‍य कारण गरीब बच्‍चों के माता-पिता का लालच, असंतोष होता है। लालची माता-पिता अपने एशो-आराम के लिए बच्‍चों से मजदूरी कराते हैं। जिससे बच्‍चें न ही स्‍कूल जा पाते हैं और न ही ज्ञान प्राप्‍त कर पाते हैं।
वर्तमान समय में संपूर्ण विश्‍व में 215 मिलियन बच्‍चे बाल मजदूरी कर रहे हैं। 1991 की जनगणना में बाल मजदूरों के सर्वेक्षण के अनुसार 11.3 मिलियन बच्‍चे बाल मजदूरी का रहे थे। इसके बाद 2001 की जनगणना में इनकी संख्‍या 12.7 मिलियन हो गई थी।
देश के समक्ष बालश्रम की समस्या एक चुनौती बनती जा रही है। सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए कई कदम भी उठाये हैं। समस्या के विस्तार और गंभीरता को देखते हुए इसे एक सामाजिक-आर्थिक समस्या मानी जा रही है जो चेतना की कमी, गरीबी और निरक्षरता से जुड़ी हुई है। इस समस्या के समाधान हेतु समाज के सभी वर्गों द्वारा सामूहिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
वर्ष 1979 में भारत सरकार ने बाल-मज़दूरी की समस्या और उससे निज़ात दिलाने हेतु उपाय सुझाने के लिए ���गुरुपाद स्वामी समिति’ का गठन किया था। समिति ने समस्या का विस्तार से अध्ययन किया और अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की। उन्होंने देखा कि जब तक गरीबी बनी रहेगी तब तक बाल-मजदूरी को हटाना संभव नहीं होगा। इसलिए कानूनन इस मुद्दे को प्रतिबंधित करना व्यावहारिक रूप से समाधान नहीं होगा। ऐसी स्थिति में समिति ने सुझाव दिया कि खतरनाक क्षेत्रों में बाल-मजदूरी पर प्रतिबंध लगाया जाए तथा अन्य क्षेत्रों में कार्य के स्तर में सुधार लाया जाए। समिति ने यह भी सिफारिश की कि कार्यरत बच्चों की समस्याओं को निपटाने के लिए बहुआयामी नीति बनाये जाने की जरूरत है।
‘गुरुपाद स्वामी समिति’ की सिफारिशों के आधार पर बाल-मजदूरी (प्रतिबंध एवं विनियमन) अधिनियम को 1986 में लागू किया गया था। इस अधिनियम के द्वारा कुछ विशिष्टिकृत खतरनाक व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं में बच्चों के रोजगार पर रोक लगाई गई है और अन्य वर्ग के लिए कार्य की शर्त्तों का निर्धारण किया गया। इस कानून के अंतर्गत बाल श्रम तकनीकी सलाहगार समिति के आधार पर जोखिम भरे व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं की सूची का विस्तार किया जा रहा है।
इसी के संदर्भ में वर्ष 1987 में राष्ट्रीय बाल-मजदूरी नीति तैयार की गई। इस नीति के तहत जोखिम भरे व्यवसाय और प्रक्रियाओं में कार्यरत बच्चों के पुनर्वास कार्य पर ध्यान केन्द्रित किये जाने की जरूरत बताई गई।
देश में सबसे ज्यादा बाल मजदूर…
यदि देश में बाल मजदूरों का सबसे ज्यादा संख्या की बात करें तो देश में 5 राज्यों बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में हैं | यहां बाल मजदूरों की कुल लगभग 55 प्रतिशत है. सबसे ज्यादा बाल मजदूर उत्तर प्रदेश और बिहार से हैं | उत्तर प्रदेश में 21.5 फीसदी यानी 21.80 लाख और बिहार में 10.7 फीसदी यानी 10.9 लाख बाल मजदूर हैं |
बाल मजदूरी के कारण….
यूनीसेफ के अनुसार बच्चों का नियोजन इसलिए किया जाता है, क्योंकि उनका आसानी से शोषण किया जा सकता है। बच्चे अपनी उम्र के अनुरूप कठिन काम जिन कारणों से करते हैं, उनमें आम तौर पर गरीबी पहला है। लेकिन इसके बावजूद जनसंख्या विस्फोट, सस्ता श्रम, उपलब्ध कानूनों का लागू नहीं होना, बच्चों को स्कूल भेजने के प्रति अनिच्छुक माता-पिता (वे अपने बच्चों को स्कूल की बजाय काम पर भेजने के इच्छुक होते हैं, ताकि परिवार की आय बढ़ सके) जैसे अन्य कारण भी हैं। और यदि एक परिवार के भरण-पोषण का एकमात्र आधार ही बाल श्रम हो, तो कोई कर भी क्या सकता है।
https://kisansatta.com/will-the-number-of-child-workers-in-india-increase-rapidly38349-2/ #WillTheNumberOfChildWorkersInIndiaIncreaseRapidly Will the number of child workers in India increase rapidly? Corona Virus, International, Top, Trending #CoronaVirus, #International, #Top, #Trending KISAN SATTA - सच का संकल्प
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vsplusonline · 4 years
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जो दिन ही खास है तो लाजमी है मां की खूबियों की एक बार फिर गिनती कर ली जाए
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जो दिन ही खास है तो लाजमी है मां की खूबियों की एक बार फिर गिनती कर ली जाए
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पांच ऐसी बातें जो भारतीय माओं को लेकर, जो उन्हें खास बनाती हैं
वो बच्चे को अकेले संभाल सकती हैं और उसके लिए करिअर भी दांव पर लगा सकती हैं
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प्रियंक द्विवेदी
May 10, 2020, 12:07 PM IST
नई दिल्ली. आज मदर्स डे है। मई का दूसरा रविवार जो इस खास दिन को मनाने के लिए दर्ज हो चुका है। वह दिन जब मांओं की दुनिया तोहफे, फूल और खिदमतों से गुलजार हो जाती है। इसका ये मतलब हरगिज नहीं कि बाकी दिनों में इनमें से कुछ मां के हिस्से नहीं आता। या फिर ये भी नहीं कि यदि मदर्स डे पर ऐसा नहीं होता तो वह मां कुछ कम खास है। 
पर जो दिन ही खास है तो लाजमी है मां की खूबियों की एक बार फिर गिनती कर ली जाए। आंकड़ों में उन्हें समेटना तो असंभव है लेकिन हौले से इसमें उन्हें खोजा और गुना जाए। गिनती जो बताती है कि भारतीय मांएं क्यों खास हैं…
वो मां है, बच्चों को अकेले भी संभाल सकती है 2019 में यूनाइटेड नेशन की एक रिपोर्ट आई थी। रिपोर्ट का टाइटल था ‘द प्रोग्रेस ऑफ वुमन 2019-20’। इस रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में 10.1 करोड़ सिंगल मदर हैं। जबकि, 4.5 करोड़ सिंगल मदर भारत में हैं।  इनमें से भी 1.3 करोड़ ऐसी सिंगल मदर हैं, जो अपने बच्चों के साथ अकेली ही रहती हैं। बाकी 3.2 करोड़ बच्चों के साथ ससुराल में या रिश्तेदारों के साथ रहती हैं।
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वो मां है, बच्चों के लिए अपना करियर भी दांव पर लगा सकती है 2018 में अशोका यूनिवर्सिटी ने ‘प्रेडिकामेंट ऑफ रिटर्निंग मदर्स’ नाम से एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि, 73% कामकाजी महिलाएं मां बनने के बाद नौकरी छोड़ देती हैं। 
50% महिलाएं ऐसी होती हैं, जो 30 साल की उम्र में बच्चों की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ देती हैं। सिर्फ 27% महिलाएं ही हैं, जो मां बनने के बाद दोबारा काम पर लौटती हैं। हालांकि, इनमें से 16% ऐसी होती हैं, जो सीनियर पोजिशन पर होती हैं।
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वो मां है, दुनिया मॉडर्न हो रही तो वो भी मॉडर्न हो गई टेक्नोलॉजी ने पूरी दुनिया को मॉडर्न बना दिया है। तो इससे भला भारतीय मां कैसे दूर रहतीं। पिछले साल हुए yougov के सर्वे में 70% मांओं ने माना था कि वो बच्चों की देखभाल के लिए स्मार्टफोन की मदद लेती हैं। 
इस सर्वे में शामिल 10 में से 8 (79%) मांओं का कहना था कि टेक्नोलॉजी ने पेरेंटिंग को आसान बना दिया है। जिन मांओं के बच्चों की उम्र 3 साल से कम थी, उनमें से 54% और जिनके बच्चों की उम्र 4 साल से ऊपर थी, उनमें से 42% मांओं ने ये भी माना था कि वो बच्चों को संभालने के लिए पेरेंटिंग एप्स की मदद लेती हैं।
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वो मां है, वो बच्चों को हमेशा खुद से आगे रखती है 2018 में फ्रैंक अबाउट वुमन नाम की संस्था ने ‘ग्लोबल मदरहुड सर्वे’ किया था। इस सर्वे में सामने आया था कि ऑस्ट्रेलिया की मांएं जहां अपने बच्चों से पहले खुदको रखती हैं, वहीं भारतीय मांएं खुद से पहले अपने बच्चों को रखती हैं। इस मामले में भारतीय मांएं, ऑस्ट्रेलियाई मांओं से 36 गुना ज्यादा आगे हैं।
इस सर्वे में ये भी सामने आया था कि, 65% भारतीय मांओं को बच्चे की सफलता को लेकर चिंता रहती है। इसके उलट चीन की 71% मांएं बच्चों की सफलता को लेकर चिंता नहीं करतीं। 
हालांकि, भारतीय मांएं ग्लोबल एवरेज की तुलना में ज्यादा स्ट्रिक्ट भी होती हैं। ग्लोबल एवरेज 7% का है। जबकि, 9% भारतीय मांएं बच्चों के प्रति स्ट्रिक्ट रहती हैं।
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वो मां है, इसलिए लॉकडाउन में भी उसे खुद से ज्यादा बच्चे की हेल्थ की चिंता ह��� कोरोना को फैलने से रोकने के लिए देशभर में लॉकडाउन है। ऐसे में भारतीय मांओं को सबसे ज्यादा चिंता अपने बच्चों की हेल्थ और साफ-सफाई को लेकर है। Momspresso के सर्वे में ये बात सामने आई है। 
इस सर्वे के मुताबिक, 78% मांएं बच्चों की हेल्थ को लेकर चिंता में रहती हैं। उन्हें डर है कि कहीं लॉकडाउन के बीच में बच्चों की तबियत न बिगड़ जाए। वहीं, 74% मांएं बच्चों की साफ-सफाई को लेकर स्ट्रेस में रहती हैं।
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ये भी पढ़ें
अब हमें अपने बेटों के फोन नहीं आते, चिटि्ठयां भी नहीं मिलतीं, लेकिन मेरी तरह की मांएं जो सांस लेती हैं तो हर सांस में जी रहा होता है उनका बेटा
मुश्किल वक्त में मां ही सबसे मजबूत साबित होती है, कोरोना फैला और हिम्मत की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ी तो बच्चों की ताकत बनकर लड़ीं दुनियाभर की मांएं​​​​​​​
डॉक्टर की सलाह- इस वक्त मां से ज्यादा बात करें, इमोशनली सपोर्ट करें, उनकी पसंद का काम करें, ताकि वे पॉजिटिव रहें और डिप्रेशन में न आएं​​​​​​​
हजार पिताओं से ज्यादा गौरवपूर्ण है एक मां, ऋग्वेद से लेकर मनुस्मृति तक सबने लिखा है मां के लिए​​​​​​​
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vilaspatelvlogs · 4 years
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कोरोना दुनिया में: पिछले 24 घंटे में ब्राजील में रिकॉर्ड 97,586 केस मिले; 12 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए फाइजर की वैक्सीन का ट्रायल शुरू
कोरोना दुनिया में: पिछले 24 घंटे में ब्राजील में रिकॉर्ड 97,586 केस मिले; 12 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए फाइजर की वैक्सीन का ट्रायल शुरू
Hindi News International Coronavirus Outbreak Vaccine Latest Update; USA Brazil Russia UK France Cases And Deaths From COVID 19 Virus Ads से है परेशान? बिना Ads खबरों के लिए इनस्टॉल करें दैनिक भास्कर ऐप वॉशिंगटन29 मिनट पहले कॉपी लिंक दुनियाभर में कोरोना की नई लहर ने सभी की चिंता बढ़ा दी है। सबसे बुरे हालात ब्राजील के हैं। यहां पिछले 24 घंटे में रिकॉर्ड 97,586 नए केस आए। इस दौरान 2639 लोगों की…
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khabaruttarakhandki · 4 years
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अध्ययन में दावा : अमेरिका में कोरोना संक्रमित बच्चों की असल संख्या आंकड़ों से कहीं अधिक
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जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ मैनेजमेंट एंड प्रैक्टिस’ में प्रकाशित इस अध्ययन का आकलन है कि वायरस से संक्रमित 2,381 बच्चे ऐसे हैं, जिनके कोविड-19 के इलाज के लिए गहन देखभाल की आवश्यकता है। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, यह गणना ‘चाइनीज सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन’ द्वारा कोविड-19 से पीड़ित 2,100 से अधिक बच्चों पर किए गए अपने अध्ययन की एक रिपोर्ट के तर्ज पर किया गया है।
उत्तरी अमेरिकी रजिस्ट्री, वर्चुअल पीआईसीयू प्रणाली के आंकड़ों के आधार पर, वैज्ञानिकों ने कहा कि अमेरिका में 74 बच्चों को 18 मार्च से छह अप्रैल के बीच बाल चिकित्सा गहन देखभाल इकाइयों (पीआईसीयू) में भर्ती कराया गया था। इस अवधि में इससे और 1,76,190 बच्चे के संक्रमित होने का संकेत मिला है। पीआईसीयू प्रणालियों के अनुसार, संक्रमित बच्चों के कुल मामलों में 30 फीसदी मामले दो साल से कम उम्र के बच्चों के हैं, 24 फीसदी बच्चे दो से 11 साल के बीच के हैं और 46 पीसदी बच्चे 12 से 17 साल की आयु के हैं।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि यदि 2020 के अंत तक अमेरिका की आबादी का 25 फीसदी हिस्सा कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाता है, तो गंभीर बीमारी वाले 50,000 बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराना होगा। उनमें से 5,400 को वेंटिलेटर की आवश्यकता होगी। अमेरिका में बाल चिकित्सा गहन देखभाल क्षमता का मूल्यांकन करने के उद्देश्य से किए गए एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, देश में लगभग 5,100 बाल गहन चिकित्सा इकाई (पीआईसीयू) बेड हैं।
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