देवशयनी एकादशी: आज से 5 माह तक योग निद्रा में चले जाएंगे भगवान विष्णु, जानें व्रत रखने का शुभ मुहूर्त और पारण का समय
चैतन्य भारत न्यूज
सनातन धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हर वर्ष चौबीस एकादशी होती हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को ‘पद्मनाभा’ भी कहते हैं। बता दें सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है। इसी दिन से चातुर्मास की शुरुआत मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु का विश्राम काल आरंभ हो गया है।
आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।मान्यता है कि जिस वर्ष 24 एकादशी के स्थान पर 26 एकादशी होती हैं तो चार्तुमास अधिक लंबा होता है। इस कारण इस बार चार्तुमास की अवधि लगभग 5 माह की रहेगी। चार्तुमास आरंभ होते हैं भगवान विष्णु धरती का कार्य भगवान शिव को सौंप देते हैं। भगवान शिव चार्तुमास में धरती के सभी कार्य देखते हैं। इसीलिए चार्तुमास में भगवान शिव की उपासना को विशेष महत्च दिया गया है।
देवशयनी एकादशी पारण
पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 2 जुलाई, 05:32 to 04:14
एकादशी तिथि प्रारम्भ - 30 जून, 2020, 19:49 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त - 1 जुलाई, 2020 को 14:29 बजे
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
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सनातन धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हर वर्ष चौबीस एकादशी होती हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को ‘पद्मनाभा’ भी कहते हैं। बता दें सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है। इसी दिन से चातुर्मास की शुरुआत मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु का विश्राम काल आरंभ हो गया है।
आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।मान्यता है कि जिस वर्ष 24 एकादशी के स्थान पर 26 एकादशी होती हैं तो चार्तुमास अधिक लंबा होता है। इस कारण इस बार चार्तुमास की अवधि लगभग 5 माह की रहेगी। चार्तुमास आरंभ होते हैं भगवान विष्णु धरती का कार्य भगवान शिव को सौंप देते हैं। भगवान शिव चार्तुमास में धरती के सभी कार्य देखते हैं। इसीलिए चार्तुमास में भ���वान शिव की उपासना को विशेष महत्च दिया गया है।
देवशयनी एकादशी पारण
पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 2 जुलाई, 05:32 to 04:14
एकादशी तिथि प्रारम्भ - 30 जून, 2020, 19:49 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त - 1 जुलाई, 2020 को 14:29 बजे
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
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सनातन धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हर वर्ष चौबीस एकादशी होती हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को ‘पद्मनाभा’ भी कहते हैं। बता दें सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है। इसी दिन से चातुर्मास की शुरुआत मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु का विश्राम काल आरंभ हो गया है।
आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।मान्यता है कि जिस वर्ष 24 एकादशी के स्थान पर 26 एकादशी होती हैं तो चार्तुमास अधिक लंबा होता है। इस कारण इस बार चार्तुमास की अवधि लगभग 5 माह की रहेगी। चार्तुमास आरंभ होते हैं भगवान विष्णु धरती का कार्य भगवान शिव को सौंप देते हैं। भगवान शिव चार्तुमास में धरती के सभी कार्य देखते हैं। इसीलिए चार्तुमास में भगवान शिव की उपासना को विशेष महत्च दिया गया है।
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पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 2 जुलाई, 05:32 to 04:14
एकादशी तिथि प्रारम्भ - 30 जून, 2020, 19:49 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त - 1 जुलाई, 2020 को 14:29 बजे
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
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