गरीब, जैसे सूरज के आगे बदरा, ऐसे कर्म छया रे।
प्रेम की पवन करै चित मंजन, झलके तेज नया रे।।
भावार्थ:- जैसे सूर्य के सामने बादल छा जाते हैं तो सूर्य का प्रकाश दिखाई नहीं देता। जब तेज हवा चलती है तो बादल बिखर जाते हैं। सूरज का प्रकाश स्पष्ट दिखाई देता है। इसी प्रकार आत्मा तथा परमात्मा के बीच में पाप कर्मों की छाया हो जाती है। सतगुरू से दीक्षा लेकर श्रद्धा प्रेम से साधना करने से प्रभु में प्रेम उत्पन्न होगा। आँखों से आँसू गिरने लगेंगे। उस प्रेम रूपी पवन से पाप कर्म कट जाएंगे। आत्मा को परमात्मा का दर्शन होगा। इस प्रकार घोर से घोर अपराधी भी सतगुरू शरण में आने से सत्य साधना करके मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।
गाय सभी की माता है, चाहे हिंदू हो या मुसलमान। कलामे पाक में कुरबानी का अर्थ अल्लाह की इबादती इम्तेहान में खरा उतरना होता है। जबकि मुस्लिम मौलवी साहेबानों ने इसका मतलब गलत निकालकर पूरे मुस्लिम समुदाय को गलत इबादत पर लगा दिया। जो अल्लाह प्राप्ति से कोसों दूर हैं।
वर्तमान में अल्लाह कबीर जी का भेजा सच्चा इल्मीं रसूल कोन है जिसकी बताई अल्लाह प्राप्ति की सच्ची इबादत से शैतान काल ब्रह्म के फैलाए जाल और यमराज द्वारा बांधी गई कर्मों की जंजीर टूट जायेगी?
गरीब, अजब नगर में ले गए, हमको सतगुरु आन। झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान ।।
भावार्थ : परमेश्वर कबीर साहेब ही सतलोक से जिंदा रूप में आकर मुझे (संत गरीबदास जी) अजब नगर (अद्भुत शहर सतलोक) ले गए। जहाँ सुख ही सुख है, वहाँ कोई दुःख या चिन्ता नहीं, अन्य जीवों के शरीर में होने वाले कष्ट भी नहीं हैं। वही परम शाश्वत स्थान है।