कबीर, अभ्यागत आगम निरखि, आदर मान समेत।
भोजन छाजन, बित यथा, सदा काल जो देत।।
भावार्थ:- आपके घर पर कोई अतिथि आ जाए तो आदर के साथ भोजन तथा बिछावना अपनी वित्तीय स्थिति के अनुसार सदा समय देना चाहिए।
संत रामपाल जी महाराज, सर्वसुख व पूर्णमोक्ष दायक शास्त्रानुकूल भक्ति साधना (धार्मिक अनुष्ठान) करवाते हैं, जिसके करने से साधक पितर, भूत नहीं बनता अपितु पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है तथा जो पूर्वज गलत साधना करके पित्तर भूत बने हैं, उनका भी छुटकारा हो जाता है।
जिस प्रकार भक्त प्रह्लाद ने भक्ति करके परमेश्वर को याद किया जिससे उसकी सदैव रक्षा हुई। तो क्यों ना हम भी उस परमेश्वर को सदा याद करें जिससे हमारी भी सदैव रक्षा हो।
गरीब, एक राम कहते राम है, जिनके दिल हैं एक। बाहिर भीतर रमि रह्या, पूर्ण ब्रह्म अलेख।।
जिन साधकों का दिल परमात्मा में रम (लीन हो) गया, वे एक परमात्मा का नाम जाप करके राम हो जाते हैं यानि आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करके देव के समान पद प्राप्त कर लेते हैं यानि देवताओं जितनी आध्यात्मिक शक्ति वाले हो जाते हैं। परमात्मा शरीर के कमलों में तथा बाहर सब जगह विद्यमान है।
प्रारब्ध कर्म:- प्रारब्ध कर्म वे कर्म हैं जो जीव को जीवन काल में भोगने होते हैं जो संचित कर्मों से औसत करके बनाए जाते हैं। उदाहरण के लिए यदि पाप कर्म एक हजार (1000) हैं और पुण्य कर्म पाँच सौ (500) हैं तो दोनों से औसत में लिए जाते हैं। प्रारब्ध कर्म यानि जीव का भाग संचित कर्मों से Average में लेकर बनाया जाता है। यदि 20-20 प्रतिशत लेकर प्रारब्ध बना तो पाप कर्म 50 और पुण्य कर्म 25 बने। इस प्रकार प्रारब्ध कर्म यानि जीव का भाग्य बनता है। इनको प्रारब्ध कर्म कहते हैं।
510 years ago, Lord Kabir had organized "Divine Dharma Yagya" for three days. In which more than 18 lakh sadhus, saints and people performed Mohan Bhandara. The same history is being recreated under the guidance of Bandichod Satguru Rampal Ji Maharaj. 'Divya Dharma Yagya Diwas' is being organized in 10 Satlok Ashrams from 26 to 28 November 2023 in the presence of Jagatguru Tatvadarshi Sant Rampal Ji Maharaj in which all of you are cordially invited.