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नालंदा विश्वविद्यालय: 700 साल का ज्ञान और उसका विनाश
नालंदा विश्वविद्यालय, प्राचीन भारत का एक अद्वितीय शिक्षा का केंद्र, जिसने शिक्षा के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए थे। यह विश्वविद्यालय 5वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था और यह अपने समय का सबसे बड़ा और सबसे प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान था। इस विश्वविद्यालय ने लगभग 700 वर्षों तक ज्ञान का प्रसार किया और पूरे विश्व से छात्र यहां अध्ययन करने आते थे।
नालंदा विश्वविद्यालय का परिसर बहुत विशाल था, जिसमें दस बड़े मठ और कई छोटे-छोटे मंदिर थे। यहां पर लाइब्रेरी भी थी, जिसे 'धर्मगंज' कहा जाता था, जिसमें हजारों पांडुलिपियाँ और ग्रंथ संग्रहीत थे। यह लाइब्रेरी तीन भवनों में विभाजित थी - रत्नसागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक। यह विश्वविद्यालय न केवल बौद्ध धर्म के अध्ययन का केंद्र था, बल्कि यहां अन्य विषयों जैसे गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, तर्कशास्त्र और कला का भी अध्ययन होता था।
नालंदा विश्वविद्यालय में प्रवेश पाना बहुत कठिन था। यहां के विद्वान शिक्षक अपने समय के सबसे ज्ञानी और बुद्धिमान व्यक्तित्व थे। ह्वेनसांग, जो एक चीनी तीर्थयात्री थे, उन्होंने नालंदा में 17 साल तक अध्ययन किया और अपनी यात्रा वृतांत में इस विश्वविद्यालय की महानता का विस्तार से वर्णन किया है।
12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी के आक्रमण के बाद नालंदा विश्वविद्यालय को जला दिया गया। कहा जाता है कि यहां की लाइब्रेरी में इतनी पुस्तकें थीं कि उन्हें जलने में कई महीने लगे। यह एक ऐसा आघात था जिससे भारतीय शिक्षा प्रणाली कभी उबर नहीं पाई।
नालंदा विश्वविद्यालय का विनाश भारतीय उपमहाद्वीप के सांस्कृतिक और शैक्षिक धरोहर पर एक गहरा आघात था। लेकिन इसके बावजूद, नालंदा का इतिहास आज भी हमें प्रेरित करता है और हमें यह याद दिलाता है कि भारत में शिक्षा और ज्ञान का कितना समृद्ध इतिहास रहा है।
आज नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष बिहार के नालंदा जिले में स्थित हैं, जो पर्यटकों और इतिहासकारों के लिए एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र हैं। 2014 में, नालंदा विश्वविद्यालय को पुनःस्थापित किया गया और यह नए युग के छात्रों को शिक्षा का प्रकाश प्रदान कर रहा है।
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