कैसे बनते है पनीर कुल्चे ?
कैसे बनते है पनीर कुल्चे ?
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त्राटक साधना
त्राटक साधना
त्राटक एक ऐसी साधना विधि है, जो आपको शून्य में ले जाने में सहायता करती है, जो आपको आपके अस्तित्व को भुला देने में सहायता करती है, जिसके द्वारा हम प्रकृति से लयबद्ध हो सकते हैं। त्राटक विधि आतंरिक ध्यान साधना के पहले एक तरह की रिहर्सल साधना है, लेकिन इसे हलके में लेने की भूल नहीं की जा सकती। अपने आप में यह साधना विधि अत्यंत प्रचंड एवं त्रिकालदर्शी साधना है। इसी को वैदिक साहित्य में शिव का तीसरा नेत्र कहा गया है। यह साधना आपके आज्ञाचक्र को प्रभावित करती है। आज्ञाचक्र हमारे दोनों नेत्रों के मध्य थोड़ा ऊपर की और स्थित होता है , जहां महादेव शिव की तीसरी आँख का वर्णन किया गया है। इसी लिए उन्हें त्रिनेत्रधारी भी कहा जाता है। जब आज्ञाचक्र प्रभावित होता है तो यह जीवन के विविध आयाम दिखाता है, विभिन्न आलौकिक अनुभूतियों से परिचित करवाता है। यहाँ मै नहीं कहूंगा की आज्ञाचक्र खुलता है, क्योंकि इसके खुल जाने की स्थिति साधारण नहीं होती एवं यदि यह खुलता भी है तो भी यह प्रकृति की दुर्लभतम घटनाओं में से एक मानी जाएगी। इसका खुलना उतना आसान नहीं होता जितना आसान अनेक लोगों द्वारा बताया जाता है। उसके खुलने हेतु कुण्डलिनी महाशक्ति की अत्यंत कठिन साधना करनी होती है, तथा मूलाधार जो कि शरीर में सबसे निचला चक्र होता है, तथा जहाँ मानव की प्रचंड शक्ति सुप्तावस्था में पड़ी रहती है, उसे ध्यान द्वारा जगाना पड़ता है, तब वह महाशक्ति उर्ध्वगामी अर्थात ऊपर की और आती हुई सभी चक्रों को भेदते हुए आज्ञाचक्र पर आती है , और तब वह चक्र खुलता है। साधारणतः आज्ञाचक्र को किसी प्रकार प्रभावित करके उसके द्वारा कुछ लाभ ही लिए जा सकते हैं, क्योंकि आज्ञाचक्र खुलने पर व्यक्ति अपने शरीर को छोड़कर कहीं भी आ-जा सकता है, किसी भी व्यक्ति, वस्तु अथवा पदार्थ का ज्ञान प्राप्त कर सकता है, जो एकदम असाधारण घटना होती है, सामान्यतः त्राटक द्वारा आज्ञाचक्र प्रभावित कर लेने मात्र से भी असाधारण अनुभव प्राप्त किए जा सकते हैं। त्राटक द्वारा हमें भविष्य और भूत की धुंधली अनुभूतियाँ स्वप्नों आदि के माध्यम से होने लगती है, अच्छे- बुरे व्यक्ति का आभास हो सकता है, किसी घटना का आभास होने लगता है, परम शांति का अनुभव होने लगता है, अपनी साँसों की ध्वनि सुनाई देने लग सकती है, अशरीर अर्थात शरीर नहीं होने का भाव जागने लग सकता है, परम एकाग्रता प्राप्त हो सकती है तथा यह एकाग्रता इतनी तीव्र हो सकती है कि हम किसी असंभव से लगने वाले कार्य को भी पूरा कर दें। तब आत्मविश्वास इतना बढ़ जाता है कि हमें किसी को भी नियंत्रित कर लेने का सामर्थ्य प्राप्त हो जाता है जो कि भौतिक जीवन में बड़े काम की चीज़ है। त्राटक साधना विभिन्न प्रकार से की जा सकती है। इसमें सबसे ज्यादा प्रचलित साधना अग्नि त्राटक है। अग्नि को एकटक देखने की क्रिया त्राटक कहलाती है। एकटक देखने से अभिप्राय है कि बिना कुछ सोचे-समझे या विचारे बस पागलों की तरह अग्नि को ताकते रहो। इसके लिए एक तेल का दीपक जला कर अपने से २ से ३ फ़ीट दूर रख कर एकदम अँधेरे कमरे में अथवा एकदम सुनसान अँधेरे स्थल पर बैठ जाइये तथा केवल दीपक की जलती लौ को देखते रहिये, और विचारों को मारने के लिए केवल साँसों पर ध्यान देते रहिये, आप कुछ महीनों में पाएंगे कि दीपक की लौ में एक अलग ही किस्म का आकर्षण उत्पन्न हो जाएगा, आप उसके भीतर तक देख सकने में सक्षम हो जाएंगे, तब आप शून्य में पहुँच जाएंगे, लेकिन आपको विचार कुछ नहीं करना है, बस देखते रहना है। इस तरह दीपक को प्रतिदिन एक नियत समय पर ताकते रहें और विचारों को मन में ना आने दें। बहुत लोग कहते हैं कि दीपक की लौ को लगातार देखना है। यह एक गलत विचारधारा है, इस प्रकार आँखों को क्षति हो सकती है, आप अपनी सामर्थ्यानुसार लौ को देखते रहिये और पलक झपक भी जाए तो कोई नुकसान नहीं। हमें तो सिर्फ विचार शून्य होना है चाहे साधन कुछ भी हो। इस प्रकार धीरे धीरे आप प्रतिदिन के प्रयासों से शीघ्र ही शून्य में पहुंचने के क़रीब हो जाएंगे तथा आपको अनेक आलौकिक अनुभूतियाँ भी होनी प्रारम्भ हो जाएंगी। और इस बारे में अधिक जानने के लिए आप मुझसे संपर्क कर सकते हैं। शीघ्र ही मै अन्य विधियों को भी आपके सम्मुख प्रकाश में लाऊंगा। मै आशा करता हूँ आपको यह लेख पसंद आया होगा।
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ध्यान एक रहस्य
ध्यान एक रहस्य
ध्यान क्या है? कुछ लोगों के लिए यह एक शांति देने की विधा है, कुछ इससे अपने मन-मस्तिष्क को शांत करने का प्रयास करते हैं तथा कुछ लोग इसके द्वारा यह प्रयास करते हैं कि स्वयं के भीतर क्या है। वास्तव में ध्यान को मात्र ताज़गी अथवा क्षणिक शांति की राह समझ लेना, ध्यान कला के साथ न्याय नहीं है। ध्यान वास्तव में क्या है? ध्यान यह जान लेने की तकनीक है कि आप क्या हैं और आपका लक्ष्य क्या है। ध्यान जब घटित होता है तो यह आपको अन्तःस्थल से पूर्णतः परिवर्तित करके रख देता है, आप वह नहीं रह जाते जो आप हैं, आप अपना किरदार खो देते हैं। वास्तव में ध्यान आपको शून्य बना देने की कला है। शून्य का अर्थ है विचारशून्य। आप हर समय कुछ विचार कर रहे होते हैं, यहाँ तक कि इस समय आप मेरे इस लेख पर विचार कर रहे हैं तथा इसके बाद कुछ और विचार करेंगे। हमारे विचार कभी मरते नहीं हैं, और इन विचारों को मार देने का साधन ही ध्यान है। ध्यान जब वाकई में धारण होता है तब आपके मन से विचार मिट जाते हैं, तब सिर्फ आपका अस्तित्व शेष रह जाता है जो आप हैं। आपने कभी स्वयं को नहीं जाना। जबसे आपका जन्म हुआ, आपने अपने आस-पास जो भी कुछ समाज में देखा ,सीखा, समझा, उसी के अनुरूप स्वयं को ढाल लिया। आपने यह जानने का वाकई प्रयास नहीं किया कि आप यहाँ क्यों आए हैं, और आपका लक्ष्य क्या है। हमारा जीवन विचारों पर केंद्रित है। हम जिस अभिलाषा की पूर्ति के अभाव में मृत्यु को प्राप्त हुए या यों कहें कि जिस अधूरी इच्छा को साथ ले कर मरे थे , वही इच्छा की पूर्ति हेतु प्रकृति हमें पुनर्जन्म देती है। यही एक कारण है कि हमारे वर्तमान जीवन में हम जो लक्ष्य बनाते हैं वो पूरी तरह सफल नहीं होते, हमारी प्रकृति हमें उन्हें पूरा होने से रोकती है और हम दोष ईश्वर को देते हैं। वास्तव में इसमें ईश्वर का कोई दोष नहीं वरन जो कुछ है , हमारा है। उदहारण के लिए किसी ने बड़ा उद्योगपति बनने का सपना देखा, उस पर कार्य किया और बीच में ही मर गया। अब उसका पुनर्जन्म हुआ और उसके आस पास के समाज से उसे ऐसी प्रेरणा मिली कि वह एक सरकारी कर्मचारी बने। उसने उस ओर मेहनत की और संभवतः वह उसमे आंशिक रूप से सफल भी हुआ, फिर अचानक एक दिन उसके मन में ख्याल आया कि उसे धंधा करना चाहिए और वह नौकरी छोड़कर धंधे में लग गया, और बहुत बड़ा उद्योगपति बना। लोगों की नज़र में उसकी किस्मत अच्छी थी, परन्तु वास्तविकता में यह वह विचार था जो बीजरूप में उसके अंतस में समाहित था। उसे नहीं पता था कि ऐसा क्यों हुआ परन्तु नियति ने उसे वह दिया जिसकी उसने पूर्वजन्म में इच्छा की थी। अब यदि हम ध्यान साधना करें, तो यह जानने की सम्भावना बढ़ जाती है की हम वास्तविकता में क्या हैं और हमने जन्म क्यों लिया। ध्यान एक ऐसी साधना है जो आपको आपकी आत्मा से साक्षात्कार करवाती है, और तब आपका यह भ्रम टूटता है कि आप शरीर हैं। जिस दिन यह ध्यान आपको आपके शरीर से पृथक इकाई अनुभव करवा देगा, आप आत्मसाक्षात्कार कर लेंगे, और आप यह जान जाएंगे कि आपके ऊपर समाज ने कितनी तरह की लोक-लाज, यश-अपयश की चादरें बिछा रखी हैं। जब स्वयं को जान लिया तो फिर कुछ और जानना बाक़ी नहीं रह जाता, और वास्तव में यही ध्यान है। मै अगले पोस्ट में ध्यान विधि से सम्बंधित क्रियाओं का विस्तार से वर्णन करने का प्रयास करूँगा।
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इन्सटेन्ट नूडल बनाने का आसान तरीका ।
इन्सटेन्ट नूडल बनाने का आसान तरीका ।
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कैसे बनाये मसाला पाव ।
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शाही पनीर बनाने का तरीका ।
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कैसे बनाये चावल के पकोड़े ?
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झीलों का शहर है भोपाल !
झीलों का शहर है भोपाल !
PublicDomainPictures / Pixabay
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल झीलों के शहर के रूप में भी प्रसिद्ध है । भोपाल को देश का दूसरा सबसे स्वच्छ और हरा-भरा शहर घोसित किया गया है । भोपाल और उसके आसपास के क्षेत्रों में कई पर्यटन स्थल मौजूद है। केवरा बांध, भोपाल के बाहरी इलाके में यहां का सबसे प्रसिद्ध पिकनिक स्पॉट है जो शहर का सबसे सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है। मनुबहन की टेकरी भी यहां का अन्य पिकनिक स्थल है जो एक पहाड़ी चट्टान पर स्थित होने के कारण शहर का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है, पिकनिक स्पॉट होने के अलावा यह जगह जैनियों के लिए धार्मिक जगह भी है। शाहपुरा झील भी भोपाल के बाहरी इलाके में स्थित है, यह झील स्थानीय लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय है यहां लोग शाम और सप्ताहांत के दौरान सैर करने और परिवार के साथ समय बिताने आते है।
यहां स्थित गुफा मंदिर, भगवान शिव को समर्पित है जो शहर से 7 किमी. की दूरी पर बना हुआ है। भोपाल में कई ��हत्वपूर्ण ऐतिहासिक इमारतों को भी देखा जा सकता है इनमें से कुछ गौहर महल, शौकत महल, पुराना किला और सदर मंजिल है।
इतिहास के पन्नों में भोपाल भोपाल का अतीत काफी आकर्षक है और इस शहर को राजा भोज के द्वारा साल 1000 – 1055 के बीच स्थापित किया गया था। राजा भोज, परमार वंश से ताल्लुक रखते थे। शहर की आधुनिक नींव दोस्त मुहम्मद खान के द्वारा अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध के दौरान रखी गई थी। इसके बाद इस शहर पर नवाबों का शासन था और हमीदुल्लाह खान, भोपाल के अंतिम शासक थे। भोपाल की वास्तुकला, संगीत, भोजन, कला, संस्कृति और पाककला में में मुगल और अफगानी प्रभाव आसानी से देखा जा सकता है।
यह शहर औपचारिक रूप से अप्रैल 1949 में भारत संघ में विलय कर दिया गया था और उस समय से भोपाल ने देश के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भोपाल में पर्यटन भोपाल, भारत के पंसदीदा पर्यटन स्थलों में से एक है और हर साल हजारों और लाखों की तादाद में पर्यटक यहां सैर करने आते है। शहर का दिलचस्प इतिहास और मार्डन आउटलुक का मिश्रण, पर्यटकों को यहां आने के लिए उत्सुक करता है। इसके अलावा, भोपाल एक आकर्षक स्थल है और इसका दौरा अवश्य करना चाहिए।
शहर की भौगोलिक स्थिति इसे तेंदुए का घर बनाती है, जिन्हे वन विहार नामक प्राकृतिक वन्यजीव पार्क में पाला जाता है। इतिहास प्रेमी यहां के पुरातत्व संग्रहालय और भारत भवन की सैर कर सकते है जबकि धार्मिक लोग बिरला मंदिर, मोती मस्जिद और जामा मस्जिद में प्रार्थना कर सकते है। कला प्रेमियों के लिए भोपाल में काफी खास स्थल हैं जिनमें ऐतिहासिक स्थलों से लेकर संग्रहालय और मंदिर भी शामिल है, इन सभी की सर्वोच्च शिल्प कौशल देखने लायक है। भोपाल का मौसम इस शहर की जलवायु उमस भरी और उप उष्णकटिबंधीय है। यहां गर्मी, मानसून और सर्दी तीनों ही प्रकार के मौसम आते है। हालांकि, अक्टूबर से दिसंबर के महीने के दौरान यहां की सैर सबसे अच्छी रहती है। भोपाल कैसे पहुंचें भोपाल पूरे देश से और दुनिया से हवाई, रेल और सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
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गुलाबी नगर के नाम से मसूर है जयपुर ।
गुलाबी नगर के नाम से मसूर है जयपुर ।
rmac8oppo / Pixabay
पिंक सिटी के नाम से प्रसिद्ध जयपुर भारत के कुछ सबसे प्राचीन शहरो में से एक है । राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर शहर एक अर्द्ध रेगिस्तान क्षेत्र में स्थित है। इस खूबसूरत शहर को अम्बेर के राजा महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा बंगाल के एक वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य की मदद से बनाया गया था।
यह भारत का पहला शहर है जिसे वास्तुशास्त्र के अनुसार बनाया गया था। यह जगह हिंदू वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है, जो पिथापड़ा रूप यानि आठ भागों के मंडल में बना हुआ है। राजा सवाई सिंह माधों, खगोलविज्ञान के बारे में जानकारी रखते थे और इसी कारण उन्होने 9 के अंक को ज्यादा महत्व दिया और शहर के निर्माण में 9 का ध्यान रखा। यह 9 अंक, 9 ग्रहों के प्रतीक होते है।
जयपुर शहर, अपने किलों, महलों और हवेलियों के विख्यात है, दुनिया भर के पर्यटक भारी संख्या में भ्रमण करने आते है। दूर – दराज के क्षेत्रों के लोग यहां अपनी ऐतिहासिक विरासत की गवाह बनी इस समृद्ध संस्कृति और पंरपरा को देखने आते है। अम्बेर किला, नाहरगढ़ किला, हवा महल, शीश महल, गणेश पोल और जल महल, जयपुर के लोकप्रिय पर्यटक स्थलों में से हैं। मेले और त्यौहार महलों और किलों के अलावा जयपुर शहर मेले और त्यौहारों के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। यहां के लोकप्रिय वार्षिक त्यौहारों में से एक जयपुर विंटेज कार रैली है जिसका आयोजन हर साल जनवरी माह में किया जाता है। यह कार रैली एक प्रमुख आकर्षण केंद्र होती है जो पर्यटकों के बीच खासी प्रसिद्ध है। कार प्रेमी यहां आकर विंटेज कारों जैसे – मर्सिडीज, ऑस्टिन और फिएट आदि का अद्भभुत संग्रह देख सकते हैं। इनमें से कुछ कारें तो 1900 वीं सदी की है।
अन्य प्रसिद्ध उत्सवों में से एक महोत्सव एलीफैण्ट फेस्टिवल भी है जिसका आयोजन हर साल होली के अवसर पर किया जाता है जो हिन्दूओं का मुख्य पर्व होता है। इस महोत्सव में कई रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते है साथ ही जिंदा हाथियों को सजा कर लाया जाता है। इसके अलावा, गणगौर महोत्सव भी यहां काफी लोकप्रिय है गणगौर का अर्थ होता है शिव और पार्वती। गण अर्थात् हिंदूओं के भगवाना शिव और गौर अर्थात् भगवान शिव की पत्नी पार्वती। यह त्यौहार वैवाहिक जीवन में खुशी का प्रतीक होता है। जयपुर के कुछ अन्य त्यौहारों और मेलों में बाणगंगा मेला, तीज, होली और चाकसू मेला भी काफी फेमस हैं। फुर्सत के पल जयपुर में पर्यटक फुर्सत के पल मजे के साथ बिता सकते हैं। रोमांच प्रेमी यहां आकर ऊंट की सवारी, गर्म हवा के गुब्बारों की सैर और रॉक क्लाइम्बिंग जैसे खेलों का आंनद उठा सकते है।
उत्साही लोग अच्छा समय व्यतीत करने के लिए आस करौली और रणथंभौर जैसे राष्ट्रीय उद्यानों की सैर के लिए भी जा सकते हैं। आगंतुक, जयपुर में आकर खरीददारी करना कभी नहीं भूलते है। यहां के कई बाजारों में विभिन्न प्रकार के सरणी, गहने, कालीन, मिट्टी के बर्तन और रत्न आदि मिलते है जो बिल्कूल अलग और अनोखे होते है। वैसे पर्यटक हस्तकला सामग्री, कलाकृतियों, परिधान और ब्रांडेड कपड़े भी जयपुर की एम आई रोड़ से खरीद सकते है। लेकिन आपको यहां के स्थानीय बाजारों में खरीदारी करते समय बार्गेनिंग करनी पड़ेगी। प्रसिद्ध भोजन जयपुर, अपने स्वादिष्ट, मसालेदार और चटपटे भोजन के लिए जो कि प्याज, अदरक और लहसून से मिलकर बनता है के लिए काफी विख्यात है। दाल बाटी – चूरमा, प्याज की कचौड़ी, कबाब, मुर्ग को खाटो और अचारी मुर्ग यहां के प्रसिद्ध व्यंजन है। फूड लवर्स इन सभी व्यंजनों को यहां के नेहरू बाजार और जौहरी बाजार में जाकर खा सकते है, यह दोनो ही बाजार स्ट्रीट फूड मार्केट हैं जहां सभी प्रकार के स्थानीय भोजन के ठेले सड़क के किनारे लगे रहते है ।
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बौद्ध धार्मिक कला का अद्भुत उदाहरण हैं अजंता एलोरा की गुफाए ।
बौद्ध धार्मिक कला का अद्भुत उदाहरण हैं अजंता एलोरा की गुफाए ।
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महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित, अजन्ता की गुफाऐ पर्यटन के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है । यहां पर पत्थरों की गुफाओं में बने मंदिर पर्यटकों को अपनी खूबसूरती से आश्चर्य चकित कर देते है ।
अजंता गुफा का मंदिर भारत की समृद्ध विरासत को दर्शाता है। अजंता की गुफाए विश्व भर में प्रसिद्व है और इन्हे विश्व विरासत स्थल का भी दर्जा मिला है । अजंता की गुफाएं औरंगावाद(महाराष्ट्र) के पास स्थित है, यहाँ पर दुनिया के किसी भी कोनें से आसानी से पहुंचा जा सकता है। महाराष्ट्र में नियमित पर्यटन के माध्यम से बसों या टैक्सियों का उपयोग किया जाता है। निकटतम हवाई अड्डा औरंगाबाद में स्थित है, जो मंदिरों से 99 किलोमीटर दूर स्थित है। इन गुफाओं की करिश्मा हर साल लाखों पर्यटकों को आकर्षित करती है।
अजंता गुफाओं में कटी हुई चट्टाने है, जो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व और छठी शताब्दी ईसा पूर्व के बीच इसकी उत्पत्ति का पता लगता हैं। अजंता की गुफाएं भगवान बुद्ध को समर्पित हैं। यह कम से कम संख्या में 30 है, ये गुफाएं अनुयायियों और बौद्ध धर्म के विद्यार्थियों के आवास के लिए निर्माण की गयी थीं। अपने प्रवास के समय के दौरान, उन्होंने अपनी उत्कृष्ट वास्तुकला कौशल और कलात्मक चित्रों के साथ गुफाओं को सुशोभित किया था। आम तौर पर, नक्काशी और चित्रकारी भगवान बुद्ध की जीवन कथाओं को दर्शाती हैं। इस के साथ, चट्टानों में मानव और पशु के कई शैलियों का भी उत्कीर्ण किया गया है।
अजन्ता में सचित्र नक्काशी और भित्ति चित्र उस समय के आधुनिक समाज को दर्शाती हैं। कलात्मक मूर्तियां राजाओं से गुलाम, पुरुषों और महिलाओं के सभी प्रकार के लोगों को, फूलों के पौधे, फल और पक्षियों के साथ जानवरों को प्रस्तुत करते हैं। कुछ ऐसे आंकड़े हैं जो ‘यक्ष‘, ‘केनेरस‘ (आधा मानव और आधा पक्षी), ‘गंधर्व‘ (दिव्य संगीतकार) और ‘अप्सरा‘ (स्वर्गीय नर्तक) जैसे निवासियों को चित्रित करते हैं।
सभी तीस गुफाओं को ‘चैत्री-गृह‘ (स्तूप हॉल) और ‘विहार‘ (आवास हॉल) में विभाजित किया गया है। प्रत्येक गुफा मूल संरचना में संरक्षित हैं। गुफाएं 9, 10, 19, और 29 चैत्य गृह के नाम से जाना जाता है, इसमें भगवान की पूजा की जाती थी। शेष गुफाएं ‘संघहारस ‘ या ‘विहारस ‘ हैं जिनका उपयोग अनुयायियों के आवास उद्देश्यों और बौद्ध धर्म के विद्यार्थियों के लिए किया गया था।
गुफाओं को मुख्य प्रवेश द्वार से उनकी वर्तमान पहुंच के अनुसार गिने जाता है और उसी क्रम में इसे बनाया गया है। कलात्मक दृष्टिकोण से, गुफा 1, 2, 16 और 17 वास्तव में महत्वपूर्ण हैं और कला के उल्लेखनीय टुकड़े हैं जो निश्चित रूप से आधुनिक दुनिया की कला को हरा सकते हैं। इन गुफाओं की दीवारों को भित्ति चित्रों से सजाया गया है जो कि पिछले युग की एक ही आकर्षण और जीवंतता प्रदान करने के लिए बनाए जाते हैं।
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रंग प्यार का
रंग प्यार का
तेरी आँखों का रंग जो चढ़ा है मुझपर..
कि ये गुलाल क्या रंग अब लायेगा…
तेरे इश्क का नशा जो चढ़ा है मुझपर..
कि भांग क्या मुझे अब भाएगा…
ये रंग फीका न होगा..
ये नशा कम न होगा..
मेरा साकी है तू…
कि होंठो से आज पिलाएगा…
अलंकृता
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महाकाल की नगरी उज्जैन भी है मध्य प्रदेश का एक प्रमुख टूरिस्ट स्थान !
महाकाल की नगरी उज्जैन भी है मध्य प्रदेश का एक प्रमुख टूरिस्ट स्थान !
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उज्जैन एक एतिहासिक शहर है जो मध्य प्रदेश में स्थित है। इसे उज्जयिनी के रूप में भी जाना जाता है जिसका मतलब है गौरवशाली विजेता। उज्जैन धार्मिक गतिविधियों का केंद्र है और उज्जैन पर्यटन मुख्य रूप से अपने प्रसिद्ध प्राचीन मंदिरों के लिए देशभर के पर्यटकों को आकर्षित करता है। यह शहर शिप्रा नदी के किनारे स्थित है और शिवरात्रि, कुंभ और अर्ध कुंभ मेलों के लिए प्रसिद्ध है।
इसके इतिहास की एक झलक इस शहर से अनेक पौराणिक कथाएँ जुड़ी हैं। एक समय उज्जैन में अशोका और विक्रमादित्य जैसे शासकों का शासन था। प्रसिद्ध कवि कालिदास ने भी इस जगह पर अपनी कविताएँ लिखी थी। वेदों में भी उज्जैन का उल्लेख किया गया है और ऐसा माना जाता है कि स्कंद पुराण के दो भाग इसी जगह पर लिखे गए थे। महाभारत में उज्जैन का उल्लेख अवंती राज्य की राजधानी के रूप में किया गया है। इस शहर को शिव की भूमि तथा हिंदुओं के सात पवित्र शहरों में से एक माना जाता है।
यह शहर अशोक, वराहमिहिर और ब्रह्मगुप्त जैसी प्रसिद्ध हस्तियों से जुड़ा है। स्ट्रीट फूड प्रेमियों के लिए एक जगह उज्जैन में स्ट्रीट फूड बहुत प्रसिद्ध है और टावर चैक नामक जगह पर पर्यटक इसका मज़ा ले सकते हैं। यहाँ पर्यटक स्थानीय स्ट्रीट फूड का मज़ा ले सकते हैं जिसमें मुँह में पानी लाने वाले स्नैक्स जैसे चाट, पानी पुरी, घीयुक्त मकई के स्नैक्स तथा भेलपुरी शामिल हैं।
उज्जैन जातीय आदिवासी गहनों, कपड़ों और बांस के उत्पादों के लिए भी प्रसिद्ध है तथा यात्री अन्य स्मृति चिन्हों के साथ इन सब वस्तुओं को स्थानीय बाज़ार से खरीद सकते हैं। उज्जैन में और इसके आसपास के पर्यटन स्थल उज्जैन पर्यटन अपने यात्रियों के लिए कुछ प्रसिद्ध आकर्षण प्रदान करता है। चिंतामणि गणेश मंदिर, बड़े गणेश जी का मंदिर, हरसिद्धि मंदिर, विक्रम कीर्ति मंदिर, गोपाल मंदिर तथा नवग्रह मंदिर कुछ प्रसिद्ध मंदिर हैं। महाकालेश्वर मंदिर शहर का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है।
भगवान शिव का यह मंदिर भी भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर पाँच स्तरों में विभाजित है जिनमें गणेश, ओंकारेश्वर शिव, पार्वती, कार्तिकेय और नंदी तथा शिव के बैल की मूर्तियों को शामिल किया है। उज्जैन के अन्य पर्यटन स्थल हैं- सिद्धावत, भृतृहरि गुफाएँ, संदीपनी आश्रम, काल भैरव, दुर्गादास की छतरी, गढ़कालिका, मंगलनाथ तथा पीर मत्स्येन्द्रनाथ हैं। यहाँ आने पर यात्री कालिदास अकादमी और संदलवाला भवन के साथ कालियादेह महल भी देखने आते हैं जो अपनी शानदार वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है।
अपने समय के प्रख्यात विद्वान राजा जयसिंह ने वेधशाला का निर्माण करवाया था। उन्होंने सारे भारत में कई अन्य वेधशालाओं का भी निर्माण किया था। उज्जैन शहर ज्योतिष विद्या के लिए जाना जाता है। विक्रम विश्वविद्यालय अपनी सांस्कृतिक और विद्वतापूर्ण गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है। कालिदास अकादमी संस्कृत का अध्ययन केंद्र है। शहर के भीतर आटो रिक्षा, बसों और ताँगों की आसान उपलब्धता से उज्जैन पर्यटन यात्रा को सुखद बना देता है। साझा आटो रिक्षा उज्जैन शहर के भीतर उपलब्ध परिवहन का सबसे सस्ता तरीका है। अधिकतर पर्यटक भी शहर के भीतर साझा आटो रिक्शा में यात्रा करना पसंद करते हैं।
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भारत का स्वर्ग है कश्मीर ।
भारत का स्वर्ग है कश्मीर ।
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भारत का सबसे सुन्दर राज्य जम्मू-कश्मीर भारत के उत्तरी भाग में स्तिथ है। यह भारत की ओर से उत्तर में चीन और अफगानिस्तान, पूर्व में चीन, और दक्षिण में हिमाचल प्रदेश और पंजाब से घिरा है। हिमालय की गोद में बसा, जम्मू और कश्मीर अपनी प्राकृतिक सौंदर्य के लिए दुनिया भर में अपना एक ख़ास मुकाम रखता है। अनेक जातियों, संस्कृतियों व भाषाओं का संगम बना यह प्रदेश एक खूबसूरत पर्यटन स्थल भी है।
जम्मू और कश्मीर एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है जिससे अपनी छुट्टी बिताने के लिए पर्यटक साल में कभी भी यहां आ सकते हैं। तवी नदी के खूबसूरत किनारों पर स्थित जम्मू-कश्मीर राज्य का यह मुख्य प्रवेश द्वार है। साथ ही प्रतिवर्ष वैष्णो देवी जाने के लिए यहां लाखों तीर्थयात्री आते हैं। यहां स्थित अनगिनत मंदिरों के कारण इसे मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है। कला, संस्कृति तथा ऐतिहासिकता की दृष्टि से भी जम्मू का महत्वपूर्ण स्थान है। यह शहर व्यापार का एक प्रमुख केंद्र भी है। जम्मू के पर्वत पर्वतारोहण करने वालों के मध्य काफी लोकप्रिय हैं।
जम्मू एवं कश्मीर जिसमें श्रीनगर को ग्रीष्मकालीन राजधानी और जम्मू को शीतकालीन राजधानी माना जाता है। पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला और शक्तिशाली हिमालय का सेट राज्य की शोभा, में चार चाँद लगा देता है साथ ही ये जगह साहसिक उत्साही, प्रकृति प्रेमियों, और तीर्थयात्रियों के लिए मस्ट टू गो प्लेस है।
यह जगह प्रकृति के प्रेमियों के अलावा साहसिक गतिविधियों में लिप्त उत्साही लोगों के दिल में एक खास मुकाम रखती है। वैसे पर्यटक वर्ष के किसी भी महीने में जम्मू का कार्यक्रम बना सकते हैं, पर बरसात में घूमने-फिरने में होने वाली दिक्कतों के कारण वहां न जाना ही उचित है!
जम्मू – कश्मीर के कुछ प्रमुख पर्यटन स्थान :-
१ वैष्णो देवी मंदिर
वैष्णो देवी मंदिर, शक्ति को समर्पित एक पवित्रतम हिंदू मंदिर है, जो भारत के जम्मू और कश्मीर में वैष्णो देवी की पहाड़ी पर स्थित है। मदिर, जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू जिले में कटरा नगर के समीप अवस्थित है। यह उत्तरी भारत में सबसे पूजनीय पवित्र स्थलों में से एक है। मंदिर, 5,200 फ़ीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) की दूरी पर स्थित है। हर साल लाखों तीर्थयात्री मंदिर का दर्शन करते हैं और यह भारत में तिरूमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थ-स्थल है।
२ . श्रीनगर
श्रीनगर का जम्मू और कश्मीर के पर्यटन स्थलों में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। कश्मीर घाटी के मध्य में बसा श्रीनगर भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से हैं। श्रीनगर एक ओर जहाँ डल झील के लिए प्रसिद्ध है वहीं दूसरी ओर विभिन्न मंदिरों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। स्वच्छ झील और ऊँचे पर्वतों के बीच बसे श्रीनगर की अर्थव्यवस्था का आधार लम्बे समय से मुख्यतः पर्यटन है। शहर से होकर नदी के प्रवाह पर सात पुल बने हुए हैं। इससे लगे विभिन्न नहरों एवं जलमार्गों में शिकारे भरे पड़े हैं। श्रीनगर अपने मन्दिरों और मस्जिदों के लिए प्रसिद्ध है। शहर के पास ही गुलमर्ग, फुलों की घाटी 2,590 मीटर की ऊँचाई पर स्थित हैं। जहाँ से हिमालय के उच्चतम शिखरों में से एक, नंगा पर्वत (ऊँचाई 8,126 मीटर) और कश्मीर घाटी का नयनाभिराम दृश्य दिखाई देता है।
३ लेह
लेह नगर, पूर्वी जम्मू-कश्मीर राज्य के उत्तरी भारत में स्थित है। यह नगर 3,520 मीटर की ऊँचाई तक उठे अत्तुंग पर्वतीय क्षेत्र पर स्थित है, जिसे ‘दुनिया की छत’ कहा जाता है। इसके चारों ओर इससे अधिक ऊँचे पर्वतों का घेरा है। लेह स्थायी आबादी वाले दुनिया के सबसे ऊँचे नगरों में से एक है।
४ गुलमर्ग
गुलमर्ग जम्मू और कश्मीर का एक खूबसूरत हिल स्टेशन है। इसकी सुंदरता के कारण इसे धरती का स्वर्ग भी कहा जाता है। यह देश के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक हैं। फूलों के प्रदेश के नाम से मशहूर यह स्थान बारामूला ज़िले में स्थित है। यहाँ के हरे भरे ढलान सैलानियों को अपनी ओर खींचते हैं। समुद्र तल से 2730 मी. की ऊँचाई पर बसे गुलमर्ग में सर्दी के मौसम के दौरान यहाँ बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।
५ . पहलगाम
पहलगाम धरती पर स्वर्ग माने जाने वाले कश्मीर के सबसे ख़ूबसूरत हिल स्टेशनों में एक है। समुद्र तल से 2130 मीटर की ऊँचाई पर स्थित पहलगाम लिद्दर नदी और शेषनाग झील के मुहाने पर बसा है। अनंतनाग ज़िले में चारों ओर बर्फ़ से ढकी चोटियों, चमकते ग्लेशियर और छलछल करती नदी के बीच बसा पहलगाम सैलानियों के मन में अमिट छाप छोड़ता है।
६ कटरा
कटरा जम्मू और कश्मीर में एक छोटा सा शहर है। इसे कटरा वैश्णो देवी के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ से वैष्णो देवी की यात्रा शुरु होती है। यह ऊधमपुर जिले का एक भाग है और जम्मू शहर से 42 किलोमीटर की दूरी पर त्रिकुटा पर्वत की तलहटी में बसा हुआ है।
७ जम्मू
जम्मू शहर, जिसे आधिकारिक रूप से जम्मू-तवी भी कहते हैं, इस प्रभाग का सबसे बड़ा नगर है और जम्मू एवं कश्मीर राज्य की शीतकालीन राजधानी भी है। नगर के बीच से तवी नदी निकलती है, जिसके कारण इस नगर को यह आधिकारिक नाम मिला है। जम्मू नगर को “मन्दिरों का शहर” भी कहा जाता है, क्योंकि यहां ढेरों मन्दिर एवं तीर्थ हैं जिनके चमकते शिखर एवं दमकते कलश नगर की क्षितिजरेखा पर सुवर्ण बिन्दुओं जैसे दिखाई देते हैं और एक पवित्र एवं शांतिपूर्ण हिन्दू नगर का वातावरण प्रस्तुत करते हैं।
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भारत का सबसे शिक्षित राज्य केरल अपनी मंत्रमुग्ध कर देने वाली सुंदरता के लिए भी जाना जाता है ।
भारत का सबसे शिक्षित राज्य केरल अपनी मंत्रमुग्ध कर देने वाली सुंदरता के लिए भी जाना जाता है ।
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वैसे तो केरल भारत के सबसे संपन्न और शिक्षित राज्यों में से एक है इसके अलावा यह एक बेहद की खूबसूरत राज्य भी है ! भरपूर ट्रॉपिकल हरियाली, नारियल के पेड़, तटों पर दूर तक फैले पाम, गदगद कर देने वाली पानी पर तैरती हाउसबोट, कई मंदिर, आयुर्वेद की सुंगध, दुर्बल झीलें या समुद्री झीलें, नहर, द्वीप आदि, केरल के बारे में न इंकार की जा सकने वाली छाप छोड़ते हैं जिसे सिर्फ केरल में ही देखा जा सकता है।
जो लोग दुनिया भर की सैर के प्यासे यानि चहेते हों, उनके लिए केरल का सफर बेहद यादगार होगा। यह कोई छोटा आश्चर्य नहीं है कि नेशनल ज्योग्राफी की मैगजीन “ट्रैवलर” और ‘ ट्रैवल + लीजर ‘ ने केरल को दुनिया के दस सबसे आनंददायक स्थलों में से एक बताया है और इसे जीवन में अवश्य देखे जाने वाले 50 गंतव्य स्थलों में भी शामिल किया है, साथ ही साथ 21 वीं शताब्दी की सौ महान यात्राओं की सूची में भी इसे स्थान प्राप्त हुआ है।
पर्यटन के रंग इस राज्य के हर शहर, टाउन और दूर – दराज के गांव को भगवान के निजी देश के रूप में नवाजा गया है। जो लोग अपनी आंखों से यहां के दुर्लभ नजारे देखना चाहते हैं उन्हे यह राज्य शांत बुलावा देता है और यहां आने पर अपनी सारी दांस्ता अपनी खूबसूरती में बयां कर देता है। केरल राज्य में कुल 14 जिले हैं जिनमें कासरगोड, कन्नूर, वायनाड, कोझीकोड,मालाप्पुरम, पलक्कड़, त्रिशुर, एर्नाकुलम, इडुकी, कोट्टयम, अलप्पुझा ( अलेप्पे ), पथानमथीट्टा, कोल्ल्म, तिरूवनंतपुरम सबसे ज्यादा प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से हैं।
भ्रमण करने के शौकीन पर्यटकों के लिए केरल, पर्यटन के लिए क्षैतिज स्थल है यानि यहां आकर पर्यटक एक साथ कई स्थानों पर सैर करके दुनिया के सबसे सुंदर प्राकृतिक नजारों को देख सकते हैं। केरल पर्यटन खेल में कई रंग हैं रेतीले तटों पर सैर, मन को प्रफुल्लित कर देने वाले बैकवॉटर्स, प्रकृति की सुंदरता से भरपूर हिल स्टेशन, श्रद्धालुओं के लिए असंख्य धार्मिक स्थल, आदि। यहां पर्यटक के लिए हर वो चीज है जो उसकी छुट्टियों को आरामदायक और मूड फ्रेश कर देने वाला बनाता है, उसकी छुट्टियां मजेदार हो जाती हैं, साहसिक गतिविधियों में भी आनंद आता है, साथ ही साथ रोमेंटिक मुलाकात यादगार हो जाती है और भक्तों को शांत वातावरण में तीर्थस्थलों में भी दर्शन हो जाते हैं।
केरल के जलस्त्रोत – एक्वा का फैलाव वर्कला, बेकल, कोवलम, मीनकुन्नू, चेरई तट, पय्यमबलम तट, शांगुमुखम्भ, मुझुप्पीलांगढ तट आदि ऐसे मनमोहक तट है जो केरल के पर्यटन का अनूठा बनाते हैं। केरल अपने मनमोहक बैक वॉटर के लिए भी बहुत ही प्रसिद्द है जिसमें अलेप्पी, कुमारकोम, कासरगोड, कोल्लम और थिरुवल्लम को शामिल किया गया है। ये स्थान छुट्टियां मानाने के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं हैं। यहाँ बैक वॉटर पर आपको ढेर साड़ी मनमोहक हाउस बोट देखने को मिलेगी जिसको देखकर आप बस मन्त्र मुग्ध हो जाएंगे
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खजुराहो है मध्य प्रदेश का एक मुख्य पर्यटन स्थान !
खजुराहो है मध्य प्रदेश का एक मुख्य पर्यटन स्थान !
खजुराहो मध्य प्रदेश का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थान है ! यहाँ खजूर के पेड़ों का एक विशाल बगीचा था जिसकी वजह से इसका नाम खजुराहो पड़ा । लेकिन यह अपने आप में अद्भुत बात है कि यहां कोई भी खजूर के लिए नहीं आता। यहां आने वाले इसके मंदिरों को देखने आते हैं। भारतीय मंदिरों की स्थापत्य कला व शिल्प में खजुराहो की जगह अद्वितीय है। इसकी दो वजहें हैं- एक तो शिल्प की दृष्टि से ये बेजोड़ हैं ही, दूसरी तरफ इनपर स्त्री-पुरुष प्रेम की जो आकृतियां गढ़ी गई हैं, उसकी मिसाल दुनिया में और कहीं नहीं मिलती। यही कारण है कि खजुराहो को यूनेस्को से विश्व विरासत का दरजा मिला हुआ है। भारत आने वाले ज्यादातर विदेशी पर्यटक खजुराहो जरूर आना चाहते हैं। वहीं हम भारतीयों के लिए ये मंदिर एक हजार साल पहले के इतिहास का दस्तावेज हैं।
खजुराहो का मुख्य आकर्षण पश्चिमी समूह के मंदिरों में ही है। यहीं ज्यादातर मंदिर हैं- कंदारिया महादेव, लक्ष्मण मंदिर, वराह मंदिर, चित्रगुप्त मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, नंदी मंदिर, मतंगेश्वर मंदिर। पश्चिमी समूह का ही चौसठ योगिनी मंदिर परिसर के बाहर थोड़ा अलग जाकर है। लेकिन इस मंदिर से योगिनी की सारी मूर्तियां गायब हैं। ज्यादातर कालांतर में नष्ट हुई तो बाकी को हटाकर संग्रहालयों में रख दिया गया। पूर्वी समूह लगभग तीन किलोमीटर गांव में थोड़ा अंदर जाकर है। यहां समकालीन हिंदू मंदिर तो तीन ही हैं- ब्रह्मा, वामन और जावरी। जैन मंदिरों में पार्श्वनाथ, आदिनाथ, घंटाई मंदिर हैं। जैन मंदिर बाद के दौर में बनाए गए। हिंदू मंदिरों में भी मिथुन मूर्तियां उस भव्यता के साथ नहीं हैं, जैसी पश्चिमी समूह में हैं। मुख्य परिसर से पांच किलोमीटर दूर दक्षिणी समूह है जिसमें दूल्हादेव और चतुर्भुज मंदिर हैं। ये मंदिर भी बाद के दौर में चंदेल वंश के आखिरी राजाओं ने बनवाए। सभी मंदिरों की शैली, बनावट, शिल्प, मंडप, अनूठे हैं, जिनके बारे में विस्तार से जानकारी यहां जाकर पाई जा सकती है।
तेरहवीं सदी के बाद ये मंदिर खो से गए। इनके चारों और घने जंगल उग आए। रखरखाव के अभाव और वक्त की मार से इनमें से कई नष्ट भी हो गए। अंग्रेजों के शासनकाल में एक अंग्रेज घुड़सवार अफसर ने इधर से गुजरते हुए इनको खोजा। लेकिन मंदिरों को दुरुस्त करने और इन्हें दुनिया के सामने फिर से पेश करने का सारा काम पिछली सदी के उत्तरार्ध में ही हुआ।
खजुराओ मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है जो भोपाल से 350 किलोमीटर दूर है। खजुराहो के लिए दिल्ली (35 मिनट की उड़ान), आगरा (40 मिनट) व वाराणसी (45 मिनट) से सीधी विमान सेवा है।
खजुराहो रेल मार्ग से जुड़ा हुआ नहीं है। दिल्ली या उत्तर भारत में अन्य जगहों से आने वालों के लिए झांसी (175 किलोमीटर) ज्यादा उपयुक्त स्टेशन है। जबकि मुंबई, कोलकाता या वाराणसी से आने वालों के लिए सतना (117 किलोमीटर) स्टेशन पर उतरना ठीक रहेगा। सतना, हरपालपुर (94 किलोमीटर), झांसी व महोबा (61 किलोमीटर) से खजुराहो के लिए लगातार बसें उपलब्ध हैं।
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मैं और मेरे जज़्बात
मैं और मेरे जज़्बात
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किसी ने मुझसे पूछा था..
क्या तुम बदल गई हो..?
जवाब में मैं मुस्कुरा दी…
फिर पूछा गया… ये मुस्कुराहट किस बात की…?
जवाब में मैं फिर मुस्कुरा दी…
आज मैं कहती हूँ..
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि मैं बदल गई हूँ…
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि तुम मुझे भावुक नहीं कर सकते..
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि तुम मुझे भावुक करने की कोशिश कर के.. और सख्त बना देते हो…
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि मुझे पता है.. न तुम, न वो और न कोई और ही हमेशा मेरे साथ रहोगे..
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि तुम अब वो नही हो.. जो हुआ करते थे…
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि तुम मुझे समझ नहीं पाओगे..
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि मैंने अकेले रहना सीख लिया है..
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि मुझे फर्क नही पड़ता.. तुम्हारी किसी बात का…
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि और भी बातें हैं जो मैं कहूँगी नहीं.. और तुम समझोगे नहीं…
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि मैंने मुस्कुराना सीख लिया है…
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि मैं बदल गई हूँ…
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि मैं किसी से उम्मीद नहीं करती..
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि मैं… बस मुस्कुराई थी..
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मधुमेह की रामबाण औषधि है काला जीरा
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मधुमेह की रामबाण औषधि है काला जीरा
काला जीरा भारत का एक प्राचीन मसाला होने के साथ-साथ औषधि भी है। उत्तरी भारतीय व्यंजनों में जीरा का एक मसाले रूप में लोकप्रिय है। इस मसाले को लोग स्वाद के लिए साग,सब्जी या चावल इत्यादि में डालते है। काला जीरा सामान्य जीरे से अलग है। काला जीरा बहुत अधिक स्वास्थ्य लाभ होने की वजह से ये एक औषधि के रूप में भी उपयोग होता है। जानिए इसे औषधि गुण…
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काला जीरा स्वस्थ त्वचा को बनाए रखने के लिए मददगार है।
काला जीरा मधुमेह के उपचार में काफी प्रभावी औषधि है, भोजन में जीरे को रोज़ाना उपयोग करने से खून में शुगर के स्तर को कम करने से मधुमेह को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
काला जीरा मिर्गी और अन्य तंत्र से संबंधित बीमारियों के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है।
मासिक धर्म को नियमित करने में काला जीरा मददगार है।
काले जीरे के उपयोग से रक्तचाप को बैलेंस करके रखा जा सकता है।
जीरा दिल को मज़बूत बनाकर दिल के दौरे से बचाता है।
काला जीरा एक एंटीबायोटिक होने के साथ-साथ बैक्टीरिया के संक्रमण के मामले में उपयोगी रहता है।
काला जीरा स्तन कैंसर, मुंह के कैंसर, ल्यूकेमिया और मस्तिष्क ट्यूमर जैसी बीमारियों की रोकथाम में उपयोगी साबित होता है।
काला जीरा दस्त और कब्ज के समय पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
काला ज���रा एक्जिमा, सोरायसिस, शुष्क त्वचा जैसे त्वचा रोगों के इलाज के लिए उपयोगी है।
ये गर्भावस्था के समय गर्भाशय की सूजन को कम करके महिला प्रजनन प्रणाली को आसान कर देता है।
ये गर्भवती महिलाओं में प्रसव पूर्व स्वास्थ्य में सुधार लाने में अत्यधिक सहायक होता है।
काला जीरा उच्च आयरन कंटेंट होने की वजह से दूध उत्पादन प्रदान करके स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए उपयोगी है।
काला जीरा मसूड़ों से खून बहना रोकने के लिए मदद करता है।
काला जीरा मुंह के छालों के लिए बेहतरीन इलाज है, काला जीरा खाने से मुंह से आने वाली बदबू भी कम हो जाती है।
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