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Remembering the father of our nation, Mahatma Gandhi, on his birth anniversary. His ideals of truth, non-violence, and peace continue to inspire generations. Let's strive to live by his principles and create a better world. Happy Gandhi Jayanti! ✨
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Ancestral property: दादा, पिता और भाई न दे प्रोपर्टी में हिस्सा, तो इस तरीके से ले सकते हैं अपने हक की जमीन।
Ancestral property: कानूनी भाषा में कहें तो पुरुषों की चार पीढ़ियों तक जो संपत्ति विरासत में मिली हो उसे पैतृक संपत्ति कहा जाता है. पैतृक संपत्ति में हिस्से का अधिकार जन्म के समय ही मिल जाता है. लेकिन फिर भी कई बार पिता, भाई उसे देने से मना करते हैं ऐसे में क्या करें. आइए जानते है इसके बारे में विस्तार से,
भारत में संयुक्त परिवार की संस्कृति है. यहां बड़े-बड़े परिवार कई पीढ़ियों से एक साथ ही रहते हैं. हालांकि, अब धीरे-धीरे वक्त बदल रहा है. बड़े संयुक्त परिवार की जगह छोटी सिंगल फैमिली ही नजर आती है।
ऐसे में प्रॉपर्टी को लेकर अक्सर विवाद होता ही है. संपत्ति को लेकर झगड़ा तकरीबन हर तीसरे परिवार में देखने को मिलता है. किसी-किसी जगह यह बगैर कानून के हस्तक्षेप के हल हो जाता है तो कहीं बात कोर्ट कचहरी तक पहुंच जाती है. संपत्ति पर कब्जे की मंशा बहुत से लोगों को इस कदर अंधा कर देती है कि वे बाप-बेटे के रिश्ते को भी खराब कर देती है।
वहीं बहुत से उत्तराधिकारी उनके कानूनी हिस्से से ही वंचित रह जाते हैं. अकसर ऐसा लड़कियों के साथ होता नजर आया है,
कई लड़कियां आज भी अपने हक से वंचित रह जाती हैं. आज हम आपको बताएंगे यदि किसी को उनके दादा, पिता व भाई पैतृक संपत्ति में हिस्सा नहीं देते तो वह क्या कर सकता है।
पैतृक संपत्ति में कितना होता हक:
सबसे पहली बात यदि दादा, पिता एवं भाई पैतृक संपत्ति में हिस्सेदार हैं तो आपको भी पैतृक संपत्ति में हिस्सा अवश्य दिया जाना चाहिए. पैतृक संपत्ति में हिस्से का अधिकार जन्म के साथ ही मिल जाता है,
यदि पैतृक संपत्ति का बंटवारा होता है अथवा उस संपत्ति को बेचा जाता है तो बेटियों को भी उसमें बराबर अधिकार मिलता है।
हिंदू कानून के मुताबिक संपत्तियां दो तरह की होती हैं-पैतृक संपत्ति और खुद कमाई हुई. पैतृक संपत्ति वह संपत्ति होती है, जो आपके लिए पूर्वज छोड़कर जाते हैं, चार पीढ़ियों तक. अगर आम भाषा में कहा जाए तो जो संपत्ति या जमीन आपके बुजुर्ग छोड़कर जाते हैं, उसे पैतृक संपत्ति कहा जाता है।
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएँ! मखान चोर कृष्ण के जन्मोत्सव पर आपके जीवन में खुशियाँ और समृद्धि हो।
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Property Dispute: जमीन पर अवैध कब्जा हटाने के ये है नियम, यहां कर सकते हैं शिकायत
अवैध कब्जे की समस्या से आम इंसान ही नहीं सरकार भी परेशान है। अपनी संपत्ति या जमीन को अवैध कब्जे से बचाने के लिए हम कानून के इन तरीकों का इस्तेमाल कर सकते है। सरकार ने अवैध कब्जे से जमीन बचाने के लिए कई नियम बनाए हुए है। आइये जानते है इन नियमों के बारे में
बहुमूल्य होने की वजह से ज़मीन अक्सर अवैध कब्ज़े का शिकार हो जाती है। अवैध कब्ज़ा एक ऐसी समस्या है जिससे न केवल आम नागरिक बल्कि सरकारें भी परेशान हैं।
अब उत्तर प्रदेश सरकार का ही मामला देख लें। राज्य में स्थित 5,936 शत्रु सम्पत्तियों में से 1,826 पर अवैध कब्ज़ा है, जिसे छुड़ाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार भरसक प्रयास कर रही है।
अवैध संपत्ति का कब्जा क्या है?
अगर कोई व्यक्ति जो संपत्ति का स्वामी नहीं है, वो किसी दूसरे की संपत्ति पर उसकी मर्जी के बिना कब्जा कर लेता है तो इसे संपत्ति पर अवैध कब्जा माना जाएगा।
लेकिन यदि व्यक्ति के पास परिसर का उपयोग करने के लिए संपत्ति स्वामी की अनुमति है तो यह एक कानूनी वैद्यता होगी, जिसके अनुसार व्यक्ति परिसर का उपयोग कर सकता है।
इसी आधार पर किरायेदारों को किराए पर संपत्ति की पेशकश की जाती है। जिसके तहत मकान मालिक किरायेदार को एक समय अवधि के लिए अपनी संपत्ति का उपयोग करने के लिए सीमित अधिकार प्रदान करता है। इस समय सीमा के बाद परिसर में निवास करना, संपत्ति पर अवैध कब्जा माना जाएगा।
अवैध कब्जे से कैसे निपटें?
प्रॉपर्टी के मालिकों को न केवल बाहरी संस्थाओं से निपटना पड़ता है, बल्कि अपने किरायेदारों पर भी नजर रखनी होती है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी संपत्ति किसी भी धोखाधड़ी गतिविधि का शिकार न हो। इससे बचने के लिए यहां कुछ एहतियाती उपाय दिए गए हैं:
रेंट अग्रीमेंट ज़रूर बनवाये और रजिस्टर करवाए
पैसे के खर्च और रजिस्ट्रेशन के झंझट से बचने के लिए अक्सर मकान मालिक रेंट एग्रीमेंट को नोटरी से बनवा लेते हैं और इसे रजिस्टर नहीं करवाते।
लेकिन यहाँ ये समझना ज़रूरी है की आप और आपके किरायेदार के बीच किसी भी विवाद की स्थिति में रेंट एग्रीमेंट झगड़ा निपटाने में काफी कारगर साबित होगा।
चूंकि कोर्ट केवल के रजिस्टर्ड रेंट अग्रीमेंट को की वैध मानता है इसी लिए ये बहुत ज़रूरी है की किराये पर घर देते समय रेंट अग्रीमेंट बनवा कर उसका रजिस्ट्रेशन करवाया जाये। बिना रजिस्टर किये हुए रेंट एग्रीमेंट की कोई कानूनी वैधता नहीं होती।
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Property Right : क्या औलाद को बेदखल करने के बाद भी देना होगा संपत्ति में हिस्सा, जानिये कानून में क्या है प्रावधान
Ancestral Property: पैतृक संपत्ति (ancestral property) ऐसी संपत्ति होती है जो आपको पिता के पूर्वजों से मिली हो। पैतृक संपत्ति (ancestral property) कम-से-कम 4 पीढ़ी पुरानी होनी चाहिए. इस बीच परिवार में कोई बंटवारा नहीं होना चाहिए,
आइए जानते है इसके बारे में विस्तार से।
कई बार अनचाही परिस्तिथियों के कारण मां-बाप अपने बच्चों को जायदाद से बेदखल कर देते हैं. इसके बाद उन बच्चों को अपने माता-पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं रह जाता है, हालांकि, एक संपत्ति ऐसी भी होती है जिससे बच्चों को मां-बाप द्वारा बेदखल नहीं किया जा सकता है. इसे पैतृक संपत्ति (Ancestral Property Eviction) कहते हैं, तो अगर आपने अपनी संतान कहीं से बेदखल किया भी है तो तब भी वह पैतृक संपत्ति (ancestral property) में दावे के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
लगभग शत प्रतिशत संभावना है कि कोर्ट का फैसला संतान के पक्ष में ही आएगा, हालांकि, कई बार कोर्ट ऐसे में मामलों में मां-बाप का समर्थन कर देते हैं लेकिन यह उस निर्धारित केस की डिटेल्स और जज के विवेक पर निर्भर करता है, यह अपवाद ही होता है. इसके अलावा कोर्ट भी माता-पिता की इस मामले में कोई मदद नहीं कर पाता है।
क्या होती है पैतृक संपत्ति?
किसी भी शख्स को उसके दादा, परदादा से मिली संपत्ति पैतृक कहलाती है. पैतृक संपत्ति (ancestral property) कम-से-कम 4 पुश्तें पुरानी होनी चाहिए, इस बीच परिवार में कोई बंटवारा नहीं होना चाहिए. अगर बंटवारा होता है तो वह प्रॉपर्टी पैतृक नहीं रह जाएगा। पैतृक संपत्ति (ancestral property) पर पुत्र और पुत्री दोनों का हक होता है. पैतृक संपत्ति को विरासत में मिली संपत्ती भी कहा जा सकता है, हालांकि, विरासत में मिली हर संपत्ति पैतृक नहीं होती, पैतृक संपत्ति के बारे में हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 की धारा 4, 8 और 19 में बात की गई है,अगर संपत्ति में बंटवारा हो जाता है तो वह पैतृक की जगह खुद से जुटाई गई संपत्ति में तब्दील हो जाती है और इसके माता-पिता अपनी संतान को उस प्रॉपर्टी से बेदखल कर सकते हैं।
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Supreme Court Decision : सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में ये साफ कर दिया है कि आखिर हिमाचल में जमीन कौन खरीद सकता है... आइए नीचे खबर में जाने कोर्ट की ओर से आए इस फैसले को विस्तार से।
पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में जमीन खरीद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बेहद अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि केवल खेती में लगे कृषक (किसान) ही हिमाचल प्रदेश में जमीन खरीद सकते हैं। अन्य लोगों को हिमालयी राज्य में जमीन खरीदने के लिए राज्य सरकार की पूर्व अनुमति की आवश्यकता होगी। 1972 के हिमाचल प्रदेश काश्तकारी और भूमि सुधार अधिनियम में प्रासंगिक प्रावधानों का हवाला देते हुए जस्टिस पीएस नरसिम्हा और सुधांशु धूलिया की पीठ ने यह टिप्पणी की।
पीठ ने कहा कि "इसका उद्देश्य गरीब व्यक्तियों की छोटी कृषि भूमि को बचाना और कृषि योग्य भूमि को बड़े पैमाने पर गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए बदलने की जांच करना भी है।"
अधिनियम की धारा 118 का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि एक व्यक्ति जो कृषक नहीं है, वह केवल राज्य सरकार की अनुमति से ही हिमाचल प्रदेश में जमीन खरीद सकता है। इसमें कहा गया है, "सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह हर मामले को देखे और तय करे कि ऐसी अनुमति दी जा सकती है या नहीं।" एक कृषि योग्य भूमि को गैर-कृषि उद्देश्य में बदलने संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने यह टिप्पणियां कीं।
इस मामले में एक किसान ने याचिका दायर की थी। दरअसल एक निजी कंपनी ने याचिकाकर्ता किसान को जमीन के दो प्लॉट (भूखंडों) के खरीदार के रूप में अधिकार सौंपा था। कंपनी ने गैर-कृषि उद्देश्य के लिए यह जमीन खरीदी थी, लेकिन इसके लिए उसे राज्य सरकार की स्वीकृति नहीं मिली। बाद में इसने याचिकाकर्ता को जमीन के विक्रेता के साथ बिक्री दस्तावेज (सेल डीड) हासिल करने का अधिकार सौंपा।
बता दें कि धारा 118 के तहत हिमाचल प्रदेश का कोई भी जमीन मालिक किसी भी गैर कृषक को किसी भी माध्यम जिसमें सेल डीड, लीज, गिफ्ट, तबादला, गिरवी आदि शामिल है, से जमीन हस्तांतरित नहीं कर सकता।
अब याचिकाकर्ता ने उसी सेल डीड के निष्पादन के लिए राज्य में एक सिविल कोर्ट के समक्ष मुकदमा दायर किया लेकिन याचिका खारिज कर दी गई। उच्च न्यायालय ने भी अपील दायर करने में देरी के आधार पर अपील खारिज कर दी। अब अपने फैसले में, शीर्ष अदालत ने न केवल उच्च न्यायालय के आदेश की पुष्टि की, बल्कि 1972 के अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों और उद्देश्य पर भी प्रकाश डाला।
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पंडित राम प्रसाद 'बिस्मिल' भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे, जिन्हें 30 वर्ष की आयु में ब्रिटिश सरकार ने फाँसी दे दी।
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Tatya Tope was one of the famous revolutionaries of the Rebellion of 1857...
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देश में हर व्यक्ति के अपने कुछ अधिकार होते है, जिनका हनन करना गैर-कानूनी माना जाता है। कई बार देखा जाता है कि कुछ मकान मालिक अपनी मर्जी से कभी भी आकर किरायेदारों का किराया बढ़ा देते हैं और न देने पर उनसे घर खाली करने को कहते है, लेकिन आपको बता दें, यह एक तरह का गैर-कानूनी काम है।
कोई भी मकान मालिक अचानक किराया नहीं बढ़ सकता है और यदि रेंट एग्रीमेंट किया गया है, तो ऐसी परीस्थिति में बिल्कुल भी नहीं। इस खबर में हम आपको बताएंगे कि आखिर किराएदारों और मकान मालिक के क्या अधिकार है।
किराएदार के अधिकार-
किराया वसूली-
आदर्श किराया अधिनियम, 2021 (Model Tenancy Act 2021) के तहत कोई भी मकान मालिक अचानक से किराया नहीं बढ़ा सकता, इसके लिए मकान मालिक को तीन महीने पहले ही किराएदारों को नोटिस देना होगा। साथ ही, रेंट एग्रीमेंट में किराया दर्ज करने से पहले किराएदार और मकान मालिक आपस में तय करते हैं। इसके बाद रेंट एग्रीमेंट में जो किराया दर्ज किया गया है, मकान मालिक उससे ज्याद वसूल नहीं कर सकता है।
एडवांस सिक्यॉरिटी मनी-
कोई भी मकान मालिक अपने किराएदार से दो महीने से ज्यादा का एडवांस नहीं वसूला जा सकता है। इसके साथ ही, जब किराएदार मकान खाली कर देता है तो, एक महीने के अंदर मकान मालिक को यह रकम लौटानी होती है।
किराया समय पर न चुका पाएं-
यदि किसी कारणवश किराएदार अपने मकान का किराया नहीं दे पा रहा है तो, ऐसे में मकान मालिक को कोई अधिकार नहीं है कि वो किराएदार को बिजली और पानी की सुविधा से वंचित कर दें। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की ओर से कहा गया है कि बिजला-पानी की सुविधा एक मूलभूत सुविधा है।
बिना अुनमति घर में आने का अधिकार नहीं-
किराए का घर मकान मालिक का होता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो किराएदार की मर्जी के बिना घर में घुस जाए। किराएदार की गैर-मौजूदगी में मकान मालिक घर में नहीं घुस सकता है और न ही घर की तलाशी ले सकता है।
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Property Transfer Act: प्रोपर्टी को ट्रांसफर करते समय कर लें ये काम, नहीं होगा मोटा नुकसान
अगर आप अपनी प्रॉपर्टी को बच्चों के नाम पर ट्रांसफर करने के बारे में सोच रहे हैं तो आपको इसके तरीकों की जानकारी होना जरूरी है। बिना किसी विवाद के प्रॉपर्टी ट्रांसफर करने के लिए आप नॉमिनेशन और वसीयत जैसे तरीकों को अपना सकते हैं। तो आइए जानते है उन तरीको के बारे में...
बुढ़ापे में सभी माता पिता अपनी जीवनभर की कमाई से बनाई हुई प्रॉपर्टी को बच्चों के नाम कर देते हैं. लेकिन अक्सर देखा जाता है कि जब माता पिता की प्रॉपर्टी के बंटवारे की बात आती है।
तो बच्चों में विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. हालांकि, कई सारे ऐसे तरीके है जिनकी मदद से आप इन विवादों से बच सकते हैं. लेकिन इसके लिए आपको ऐसे तरीकों की जानकारी होना जरूरी है।
अगर आप भी अपनी प्रॉपर्टी को अपने बच्चों या परिवार में किसी और के नाम करने का प्लान बना रहे हैं तो हम आपको प्रॉपर्टी ट्रांसफर करने के तरीकों के बारे में बता रहे हैं. इन तरीकों को अपनाकर आप बिना किसी विवाद के अपनी प्रॉपर्टी बच्चों को ट्रांसफर कर सकते हैं।
नॉमिनेशन के जरिए प्रॉपर्टी ट्रांसफर
माता-पिता नॉमिनेशन के जरिए अपने बच्चों के बीच प्रॉपर्टी का बंटवारा कर सकते हैं. इस तरीके से आप अपनी प्रॉपर्टी को सभी बच्चों में बराबर बांट सकते हैं।
नॉमिनेशन के जरिए माता पिता अपनी प्रॉपर्टी ट्रांसफर कर सकते हैं साथ ही अगर वे अपना नॉमिनेशन बदलना चाहते है तो फिर वे किसी और नाम को भी रजिस्टर कर सकते हैं. इस तरीके से प्रॉपर्टी ट्रांसफर करने पर विवाद उत्पन्न होने की गुंजाइश काफ़ी कम रहती है।
वसीयत के जरिए करें बंटवारा
माता-पिता अपनी प्रॉपर्टी को बच्चों में बांटने के लिए वसीयत भी बना सकते हैं. वसीयत में उनको यह बताने की सुविधा भी मिलती है कि वे इस प्रॉपर्टी का कितना हिस्सा किसको देना चाहते हैं।
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के मुताबिक वसीयत एक कानूनी रूप से वैध डाक्यूमेंट है. जिन लोगों के पास ज्यादा प्रॉपर्टी होती है।
वे अपनी वसीयत पहले से बनाकर रखते हैं. इससे अगर प्रॉपर्टी के मालिक की मौत हो जाने पर भी उसकी इच्छा के मुताबिक योग्य व्यक्ति को ही उसकी संपत्ति का अधिकार मिलता है।
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Property Possession : आपकी जमीन पर भी किसी ने किया है कब्जा, बिना झगड़े इस तरीके से कराएं खाली
Property Possession : अगर आपकी जमीन पर किसी ने कब्जा किया हुआ है और आप उस जमीन को खाली कराना चाहते हैं तो इस तरीके से आसानी से जमीन को बिना किसी लड़ाई झगड़े के खाली करवा सकते हैं।
देश में जमीन पर अतिक्रमण और अवैध कब्जे से जुड़े कई मामले अदालतों में लंबित हैं. पीड़ित लोग आए दिन इन मामलों को लेकर कोर्ट का रूख करते हैं. शहर से लेकर गांव तक, खेती की जमीन से लेकर रिहायशी प्लॉट पर लोगों को अतिक्रमण और अवैध कब्जे का डर सताता रहता है।
पिछले कुछ वर्षों में जमीनों के कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी होने से इस तरह के मामले तेजी से बढ़े हैं. अगर आप भी जमीन से जुड़े इस तरह के विवाद से बचना चाहते हैं तो कुछ तैयारियां पहले ही कर लेना चाहिए ताकि ऐसे मामलों का सामना करने की नौबत ही नहीं आई।
इसलिए जरूरी है कि हर नागरिक को इसकी समझ होनी चाहिए. हालांकि, ऐसी नौबत न आए इसके लिए सावधानी बरतना सबसे अच्छा तरीका है. अगर आपके पास कोई जमीन या प्रॉपर्टी है, जो खाली पड़ी है तो तुरंत ये तरीके अपनाना शुरू कर दें, ताकि कोई इन पर अतिक्रमण या अवैध कब्जा नहीं कर सके।
जमीन खरीदने के बाद तुरंत करें ये काम:
अगर आपने कोई जमीन खरीदी है. चाहे वह शहर में हो या शहर के बाहर व किसी अन्य सिटी में, तो जरूरी है कि अपनी संपत्ति के चारों ओर बाड़ या बाउंड्री वॉल कराएं और बीच में एक बोर्ड लगा दें, जिसमें भू-स्वामी के तौर पर अपना नाम लिख दें. यह एक आसान व काफी प्रचलित तरीका है. आपने अक्सर कई जमीनों पर ऐसा बोर्ड लगा देखा होगा।
यदि आपकी जमीन या संपत्ति शहर से दूर स्थित है, तो इसकी देखरेख के लिए चौकीदार को नियुक्त करें. वहीं, अगर आप किसी नामी डेवलपर से नियोजित लेआउट में प्लॉट खरीदते हैं, तो कंपनी प्रॉपर्टी के रखरखाव के लिए एक केयरटेकर को नियुक्त करेगी. प्लॉट के मालिक के रूप में, आप केयरटेकर के संपर्क में रह सकते हैं।
सब रजिस्ट्रार कार्यालय में प्रॉपर्टी का पंजीयन कराएं:
जब आप प्लॉट खरीदते हैं तो सबसे पहला काम आस-पास के अन्य प्लॉट मालिकों के साथ जुड़कर एक एसोसिएशन बनाना और उसे सब रजिस्ट्रार के कार्यालय में पंजीकृत करना होता है. इसका फायदा यह होता है कि एक सामूहिक निकाय के रूप में, आप और अन्य भूखंड मालिक आपकी भूमि से संबंधित स्थानीय अधिकारियों के साथ नागरिक और सुरक्षा जैसे अन्य मुद्दे उठा सकते हैं, खासकर यदि परिसर पर कोई अवैध कब्जा है।
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