दोस्त 'जिंदगी'
ऐ दोस्त 'जिंदगी' तूने आजमाया बहुत है
फिर भी हमने तेरा साथ निभाया बहुत है
कोई खवाइश न थी, सिवाये जरूरतों के
उसके लिए भी, तूने यार दौड़ाया बहुत है
जब भी साथ मांगा, न दिया कभी तूने
हौंसलो के भरोसे, तूने उलझाया बहुत है
दरिया की प्यास थी, दिया केवल कतरा
बेबस की तरहा, तूने तड़पाया बहुत है
कितना चाहते है, तुझे अहसास भी नही
पर गैरों सा अहसास, हमे कराया बहुत है
प्यार में, फिर भी हमने ही मुआफ़ी मांगी
नजरों में हमारी, यार तूने गिराया बहुत है
फिर भी ये नाज़ुक जज़्बात पत्थर न बन सके
तेरे रहम-ओ-करम का, हम पर साया बहुत है
ना तू शीतमगर है, ना ही बेवफ़ा है हमसे
इकतरफा विश्वास, तुझ पर जताया बहुत है
आवाज़-ए-तृष्णा
0 notes
तुम समझ लेना
सहमे हुए अल्फाज़
अधूरे जज़्बात, तुम समझ लेना
आंखो से झांक लेना
छिपे दिल-ए-हालात, तुम समझ लेना
उलझी हुई बातें
इनमे प्यार बेशुमार, तुम समझ लेना
जताया जो कम
नित ठहरा विश्वास, तुम समझ लेना
उतरी उतरी सूरत
तेरी हंसी का है इंतजार, तुम समझ लेना
आवाज़-ए-तृष्णा
1 note
·
View note
नाज़ुक जज़्बात
रूठे हुओं को मनाना नहीं आता
सुलगते दीये मुझे जलाना नही आता
बेपरवा हैं मेरे जज़्बात बहुत
बीता अफसाना मुझे दोहराना नही आता
गम और मुस्कुराहट संग-साथ चलते है
किसी एक से वफा मुझे निभाना नही आता
बंदी हूं खुद ही की सोच का में अरसे से
किसी के सामने मुझे सर झुकाना नहीं आता
जुबां कम दिल ज्यादा बात करता है मेरा
झूठी महफिले मुझे सजाना नही आता
हर शख्स है बेजार यहां खुद की तलाश में
क्यूं दिल से पूछना और बताना नही आता
आवाज़-ए-तृष्णा
1 note
·
View note
बचपन
बीते दिन, बीते हफ्ते
बीते गलियारों के किस्से
हम भी थे कभी अकबर
जब फितरत थी मस्ताना
तुम मुझको याद दिलाना, जो कहा नहीं वो बताना
दिन ढले खेलने जाना
ओर देर से घर पर आना
पापा की डांट से बचकर
कमरों में गुम हो जाना
तुम मुझको याद दिलाना, जो कहा नहीं वो बताना
गर्मी की तपती राते
बिजली का गुल हो जाना
थी छत भी हिमाला अपनी
तकिया लेकर चढ़ जाना
तुम मुझको याद दिलाना, जो कहा नहीं वो बताना
दादी संग रात मे किस्से
कभी खुद से ही बतियाना
ले चांद को मुट्ठी भरना
तारों को गिनते जाना
तुम मुझको याद दिलाना, जो कहा नहीं वो बताना
गुस्सा हम भी होते थे
आता था हमे जताना
खाने का कर वहिष्कार
सामान न कोई लाना
तुम मुझको याद दिलाना, जो कहा नहीं वो बताना
इत्ती सी थी अपनी दुनिया
बड़े दिल पर नाज़ जताना
ज्यादा की ना थी फिक्र कभी
थोड़े में खुश हो जाना
तुम मुझको याद दिलाना, जो कहा नहीं वो बताना
आवाज़-ए-तृष्णा
0 notes
शहर
मेरी हवा में कोई फ़र्क ना था
वो भी बंजर और हरे मैदान चूमती थी
वही रज लेकर झूमती थी
लेकिन आज इसमें धुआं ज़हर घोलता है
में भी कभी गांव था, एक शहर बोलता है
छोटे घर और झोपड़ियों से कभी पटा था
खेतों और खलियानों में ही बटा था
सूरज की किरणे भी मेरी मिट्टी चक्खती थी
अब कारखानों और उंची इमारतों ने मुझे ढक लिया है
में भी कभी गांव था, एक शहर बोलता है
मेरे पोखर और तालाबों को वो ही सजाता था
ऐसे बादल हर सावन मेरी प्यास बुझाता था
तब गगरी से हर घर सींचा जाता था
अब नलकूपों ने मेरी छाती को छलनी कर दिया है
में भी कभी गांव था, एक शहर बोलता है
समस्त जीवन का मुझ पर बसेरा था
हिंसक और मूक जीवों का यहाँ डेरा था
कभी पंक्षियों का कलरव मुझे जगाता था
अब अफरा-तफरी का शोर मेरी नींद खोलता है
में भी कभी गांव था, एक शहर बोलता है
इंसा, हम दोनों को ही निभानी है
ये तेरी भूख और मेरे सयंम की कहानी है
तेरी दो रोटी के लिए मेंने क्या नही खोया है
फिर भी तू मेरी ही कमी टटोलता है
में भी कभी गांव था, एक शहर बोलता है
आवाज़-ए-तृष्णा
0 notes
शुकून की किमत
उड़ते परिंदे देखकर
ये बात समझ मे आई थी
मैने मेरे शुकून की किमत
कुछ ज्यादा ही लगाई थी
वो झुक गया मेरे समक्ष
बिना परवाह किए कद की
यकीनन उसकी खुशी
मेरी मुस्कान से आई थी
दो जून रोटी की चाह में
कितनी ही छत बदल दी
पर वो छाया न मिली
जो तेरे आंचल में पाई थी
उसकी आवाज़ ही
मरहम-ए-रूह थी
हम ढूंढते रहे जिन्दंगी
��ौन सी दवा से आई थी
शहर को गुमान है
अपने महंगे घरों पर
फिर भी आंगन की कमी
मुझे मेरे गांव खीच लाई थी
भीड़ में जमाने की
खोने न दिया हमे
वो सच्ची सदाये
एक बेरंग अंजान से आई थी
आवाज़-ए-तृष्णा
0 notes
मेहरबां है जिंदगी !
मेहरबां है जिंदगी, कितना सीखा रही है
एक सच्चे दोस्त जैसा, रिश्ता निभा रही है
रह गए थे कुछ सबक, सीखने सलीके से
इत्मीनान से गिन गिन के अब तू बता रही है
दौड़ने की होड़ थी, हम भी दौड़े जा रहे थे
जल्दी कहा है जाना, तू पूछे जा रही है
कंकड़ मिले थे राह में, हमने भी ठोकर मारी
तराशा इन्ही ने तूझको, हर पल ये जता रही है
पाया जहा पर मुझको उड़ता हुआ जमीं से
पैरो को खींचकर तू, दुश्मनी भी निभा रही है
अवसाद में था खोया, धंसा हुआ जमीं में
पकड़ के बाजू मेरा, अवसर भी दिखा रही है
किया अनुसरण मेने, जिसको दिशा समझकर
बता के उसे डर मेरा, नये पद चिन्ह बनवा रही है
कल्पना थी, तेरी मेरी सोच कभी तो मिलेगी
पर हर बार तू एक नया नजरिया दिखा रही है
मेहरबां है जिन्दगी, हर रोज़ कुछ सीखा रही है।
आवाज़-ए-तृष्णा
1 note
·
View note
अनुराग
एक चांद आसमां में उगता
जिसका काला सबको दिखता
एक मेरे अंदर भी दमके
जिसका काला तुझको चमके
दिखता सुंदर उसका उजला
श्यामल उसको करता धुंधला
दोनों अंश सभी मनभाते
मेरा अंश तुझे क्यों खटके
पूरक आंखें तेरी मेरी
नग्न कहीं है परत घनेरी
देख चकोरी अंखियों से
कर के ओझल धुंधला
दिखेगा तब सब उजला
आवाज़-ए-तृष्णा
0 notes
यादों का प्याला
सुनहरी यादों का एक जाला हैं
हाथों में चाय का प्याला हैं
चलो जाले सुलझाते है।
फिर से संग, एक घूंट लगाते हैं
ठंडा कर यादें चक्खे हम
कुछ देर जुंबा पर रखे हम
हे समय की सिगड़ी पर ये पका
अहसास तो ले इन्हें जीने का
क्यों ना पूरा लुफ्त उठाये हम
चलो फिर संग एक घूंट लगाये हम
हाँ समय को पीछे करते है
इन्हे दिल में पूरा भरते है
जो उम्र कटी है बरसो में
पलभर में नव उसे करते है
क्यों ना चेहरे की सलवटें हटाए हम
चलो फिर संग एक घूंट लगाये हम
यादों के झरोके से यारा
सब उजला उजला दिखता है
न गम की धुप खिलती है
न खेद का बादल झरता है
क्यों ना पहले सा मुस्कुराये हम
चलो फिर संग एक घूंट लगाये हम
कुछ पल के इस किस्से को, चल आँखों में भर लेते है
फ़िक्र छोड़ इस दुनिया की,थोड़ा खुद को जी लेते है
आवाज़-ए-तृष्णा
0 notes
शुरूआत
चलो एक नई शुरूआत करते हैं
कल को छोड़कर, आज की बात करते हैं
गिले-शिकवे तुमसे बड़े तो नहीं हैं
फिर क्यों उन्हें बातों में खास करते हैं
तेरी बातों का अजब सा खुमार है
हमें आज भी उनसे प्यार है
दिल का कोई कोना भी तो नहीं छूटा
जहां तेरी दस्तक न बरकरार है
कितना करते हैं प्यार, बता भी तो नहीं सकते
शब्द ये नादान, इसे जता भी तो नहीं सकते
इक अलग भाषा इजाद करते हैं
चलो एक नई शुरूआत करते हैं
आवाज़-ए-तृष्णा
1 note
·
View note
ये मौसम मुझे लुभा रहा हे !
ये मौसम मुझे लुभा रहा हे!
तू जब भी करवट लेता है,तेरा इंतजार आंखों को रहता हे
तरुनाई मन मे भर जाती है,भिंनी सुगन्ध फिज़ा में छा जाती हे
तेरा खुमार दिल को भा रहा है,ये मौसम मुझे लुभा रहा हे
हेमंत का जादू धीरे-धीरे छा रहा हे
मिट्टी-मिट्टी ठंडक का एहसास दिला रहा हे
त्योहारों की महक आने लगी हे
घर-दहलीज फिर से बुलाने लगी हे
चेहरो की मुस्कान, मन में मिठास खोल रहा हे
फिर वही लाड, मेरे दिल को टटोल रहा हे
आंखे बार-बार मेरा हाल-चाल पूछ रही हे
बिन बोले, स्वयं ही मेरी हालत बयां कर रही हे
गहरी ठंडी राते ओर कोमल धुप का काफिला शुरु होगा
ऊनी कपड़े, मूंगफली, पुरानी बातो का शिलशिला शुरू होगा
घर-आंगन अंगीठी के इर्दगिर्द शामियाने नज़र आएंगे
दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास का, एक ही जगह डेरा होगा
खुशमिजाज ये पल खुद को दोहरा रहा हे
आज फिर ये मौसम, मुझे लुभा रहा हे
0 notes
पहल
पहल
कुछ बाते भुला कर तो देखो
जिंदगी उभरता आफताब नज़र आएगी
खुद से खुद को मिला कर तो देखो
जिंदगी एक आगाज नज़र आएगी
हे खलिश, तो कह भी डालो
उम्मीद से कहा, कोई बात सुलझ पाएगी
दिन-रात का, बस भ्रम हे सारा
बता तुझे छोड़, तेरी परछाई कहा जाएगी
किसी रास्ते के छोर से बंधा हे फ़ासला
उसे ढूंढ डालो, मंजिल भी मिल जाएगी
ख्वाईशो के पन्नो पर, सियाही नहीं टिकती
खुद को ये इल्म करादो, तिश्नगी भी मिट जाएगी
0 notes
तलाश
तलाश
काश कोई ऐसी सुबह आये
जो बीते लम्हों को जगा जाये
तुझे यादों में जी सकू
ऐसे ख़य्यालो से मुलाक़ात करता हूँ
तू जिंदगी में तो नहीं, फिर भी तुझे
हाथो की लकीरों में तलाश करता हूँ
मेरी ख़ामोशी को जुबां मिल जाये
अनकही बातों को अल्फ़ाज़ दे ज���ये
मेरी हर रुबाई में तू हो
ऐसे पल का ऐतबार करता हूँ
तू जिंदगी में तो नहीं, फिर भी तुझे
हाथो की लकीरों में तलाश करता हूँ
मेरे सयंम की सीमा बढ़ जाये
बेरुखी भी तेरी, मेरी रज़ा बन जाये
तेरी हकीकत से वाक़िफ़ हूँ
नादानियाँ नजरअंदाज करता हूँ
तू जिंदगी में तो नहीं, फिर भी तुझे
हाथो की लकीरों में तलाश करता हूँ
काश कुछ ऐसा हो जाए
तू मेरी जिंदगी का हिस्सा हो जाये
कुछ पल तू मुझ में बिता ले
ऐसे मंजर का इंतजार करता हूँ
तू जिंदगी में तो नहीं, फिर भी तुझे
हाथो की लकीरों में तलाश करता हूँ
1 note
·
View note
कब तक !
कब तक !
कमोवश चले, रहगुज़र ना कटे
कब तक
धुप की तपश रहे, मौसम ना ढले
कब तक
मशरूफ रहा तू, शौंक-ए-जीस्त में अपने
सोचे, साथ रहे हमदम
पर कब तक
बेचैन मौजों को, किनारा ना मिले
कब तक
अँधेरी रात रहे, उजाला ना मिले
कब तक
मन को बना, चंचल - जवां
सोचे, तन रहे अज़र
पर कब तक
मुसलसल बून्द गिरे, सिल ना घिसे
कब तक
कोशिशें - दुआए मिले, संघर्ष ना घटे
कब तक
खुद से खुद की, खता ले छुपा
सोचे, ना मिले सज़ा
पर कब तक
Awaz-e-trishna
0 notes
माँ का सिपाही
माँ का सिपाही
बैठ कहीं किसी सरहद पर, ख़य्याबो के फूल संजोता हूँ
दूर कहा में तुजसे माँ, खुद को ये याद दिलाता हूँ
उगता सूरज, तेरे ललाट की बिंदिया सा बन जाता हे
क्षितिज पे फेली लाली, माँ तेरी चुनरी याद दिलाता हे
वहीँ संग एक चाँद भी हे, जिसमे में खुद को पाता हूँ
दूर कहा में तुझसे माँ, खुद को ये याद दिलाता हूँ
उठती - गिरती सागर लहरे, मुस्कान तेरी दे जाते हे
शर्द पवन के झोंके, तेरी थपकी याद दिलाते हे
वही शिप में मोती सा, में गोद मे तेरी पाता हूँ
दूर कहा में तुझसे माँ, खुद को ये याद दिलाता हूँ
लहलहाती फसले, तेरा आँचल महसूस कराती हे
सर-सर बहती हवा, तेरी पायल का गीत सुनाती हे
वही बैठ बन चिड़िया, तेरे हाथो से दाना खाता हूँ
दूर कहा में तुझसे माँ, खुद को ये याद दिलाता हूँ
बहती नदिया देख लगे, जैसे तू दौड़ के ���ती हे
समतल पर मुझको देख पड़ा, तू ठेर वही पर जाती हे
बनकर मीन तेरे अंदर, में अपनी प्यास बुझाता हूँ
दूर कहा में तुझसे माँ, खुद को ये याद दिलाता हूँ
Awaz-e-trishna
0 notes
स्वप्रेरणा
स्वप्रेरणा
पथिक जो बनकर तू चले, सह पंथी भी मिल जाते हे
सफर के प्यारे राही, मज़िल के बहकावे में ना आते हे
चले बहुत कुछ रुक गए, कुछ प्रयाश विफल हो जाते हे
कर्मो के पुजारी दुनिया में, फिर भी नियत से जाने जाते हे
ले जन्म से बैठा साख कोई, और कर्म को कोशे जाता हे
फूटी तक़दीर का पहिया भी, कोई जमकर खूब चलाता हे
कोई खुश बैठा हे खोकर भी, कोई पाकर भी यहाँ नाखुश हे
पर देख यहाँ क्या लाया तू, जो मिला नफे की किस्मत हे
पग-पग प्यारे अवसर हे बस सोच का सारा करतब हे
मिट्टी में देखे धूल कोई, कण कनक किसी की हसरत हे
देख के दुनिया के रेले को, क्यों संताप तू करता हे
नहीं अकेला यहाँ तू प्यारे, साथ तेरे ‘ वो ’ रमता हे
Awaz-e-Trishna
1 note
·
View note
अंतर्मन
अंतर्मन
पलकों में छुपी नमी, सागर सा अहसास देती हे
क्षितिज पर ढ़ल रहे, सूरज का आभास देती
थमी-थमी सी रात, समझाने का प्रयास करती हे
फिर आशा का सूरज निकलेगा, शायद ये विश्वास देती हे
विषमता के मस्तक पर, सुबह की लाली का तिलक होगा
प्रभाकर की प्रभा का, चेहरे पर तेज असर होगा
धीरे-धीरे छट जाएंगी काले बादल की गहरी सलवटें
मन की धरा पर, फिर नव जीवन सृजन होगा
नये ख्यालो ख़्य्याबो के परिंदे फिर से घर बनाएंगे
विचारों के आँगन में नये उद्देश्ये चहचहायेंगे
रोज़ चढ़ता ढलता सूरज प्रगति सीढ़ी बन जायेगा
हौंसलों की उड़ान को जो शिखर तक ले जायेगा
खोजेगा तो, मन का सुकून इस गति में पायेगा
अंत में प्रारम्भ का स्रोत भी मिल जायेगा
जीवन में जज्बे से बड़ी कोई बात नहीं होती
दृण निश्चय रखने वालों की कभी हार नहीं होती
Awaz-e-Trishna
1 note
·
View note