तमाम जिरहें करता ... बादलों से चांद... झूठा है .. मगर क्यों इस बात पर तो सच बोल ।
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मैं हर शाम को
जब तारे गिनने की कोशिश करती हूं..
तो सुबह हो जाती है...
हमेशा ऐसा नहीं था.. कुछ सालों से ज्यादा बात होती है हमारी... जो मैं पहले कर नहीं पायी तुमसे ..
क्या करूँ.. सो जाती थी ना.. स्कूल जाना होता था.. और दिन में तो तुम आते भी नहीं.. तो रात का इंतजार करने लगी.
मालूम है क्या
बचपन में बताया था तुम्हारी माँ ने
वो देखो चाँद को.
कौन देखता है तुम्हें वहाँ से...अपने घर से?
तब से ही देखती हूँ तुम्हें..
तुम्हें तो मालूम ही होगा.. शायद तुम्हें अपना पता उन्हें ही बताया है आज तक.. और तब से ही तो मैं तुम्हें ढूंढती हूं.
जब नहीं आते यूँ उदास होता है मन मेरा...
कि जैसे आज की कहानी नहीं सुनायी है मैंने तुम्हें...
बचपन से ही सुनाई है ना..सारी बातें
टॉप किया है क्लास में.. झगड़ा हुआ है दोस्त से.. या डांट खाई है..
चेहरा तुम्हारा मेरे जैसे ही दिखता है.. मेरी खुशी में खुश.. और मेरी परेशानी में परेशान..
बीमार हो के जब नहीं आयी थी तो तुम मुझे खोज रहे थे ना?
जब आधे निकल के आते हो तो यूँ लगता है कि थक के ऑफिस से आए हो और मैं बोल रही हूँ तुम सुनते नहीं..सुनते हो तो बस आधे मन से..
बादलों के पीछे भी छुप जाते हो ना कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि घर के मेहमान हैं.. जाने के बाद मुझसे ही तो बात करोगे..
तुम तो कुछ बोलते नहीं, बस देखते हो, शायद सुनते हो..
कोरी आंखों से देखती हूँ तुम्हें..
ढूंढते, मिलते, बातें करते रात भी गुज़र जाया करती थी...
और
अमावस की रात तो ऐसा लगता कि जैसे दुबारा आओगे या नहीं.. घबरा जाती हूँ मैं..
कितने साल बीत गए है ना देखते, इंतजार करते..बातेँ करते..
ऐसा लगता है कि
तब पास नहीं थे.. अब दूर नहीं हो..
विचलित मन को
तुम्हारे आने की उम्मीद और तुम्हारे जाने का डर अब ज़्यादा रहता है.
#EssKay
#MissingYou #FeelingTheAbsenceMore
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शहर में अब सहर नहीं होती !
बदल गया है मौसम ही अब जैसे , रात चांदनी सब सोते हैं , जागते हो क्या अब भी तुम ? गगन नील से अब नहीं होते ?
क्या तुमको अभी भी वैसा ही लगता है , क्या चाँद से अब भी करते हो बातें ? देखा है मैंने वो दूर सामने वाली ईमारत में , एक बत्ती रात भर सुलगती रहती है , धुआँ तो नहीं आता , कुछ आवाज़ सी आती है , सिसकी हो जैसे सर्द हवा की, यूँ तो मौसम गर्मी का है , रिश्तों में ऐसी गर्माहट कहाँ रही अब , हम अपनों के भी स्टेटस देख लेते हैं बस , मान लेते हैं की अच्छे होंगे , या फिर कम से कम कोई चोर वही अकाउंट क्यों यूज़ करेगा , ज़िंदा तो होंगे ही अभी भी। .... सुबह भी देखा तो वो लाइट सुलग रही थी , रात अँधेरे में किनारे से पिघल गयी हो जैसे , मगर ना जाने क्यों कोई देख नहीं रहा उसको ? आखिर घर में कोई रहता तो होगा जो देख सके , कमरे में टपक रहा हो गर पानी , कहाँ नींद आती है किसी को , झुलस ही जाये ये सारी दुनियां गर वो शोले बरस रहे हों , रखें हैं तुमने जो आँखों में। ....
कैसे सोता है उस घर में कोई , दिन में भी देखा वो लाइट सुलग रही थी , मगर रौशनी कुछ मध्दम पड़ गयी है शायद , या मेरी आखों में वही कैद है , किस से पूछूं की वो रौशनी है कैसी , जो रात भर सुलगती रहती है, की सारे रस्ते भी तो बंद पड़े हैं , कहाँ तसल्ली होती है मुझको स्टेटस से ... उन घरों में शायद नहीं है कोई , वो लाइट भी भूल कर चले गए हैं
या फिर चमकती है मेरे घर की बिजली , वही दिखाई देती है , मैं खुद भी देखता हूँ खुद को , पहचान नहीं होती , सब कुछ जला सा हो जैसे धुआं नहीं है फिर भी , श्याह सा रंग है सारी यादों का , शहर में अब सहर नहीं होती। ......
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Reliable way of making people believe in falsehoods is frequent repetition, because familiarity is not easily distinguished from truth.
Daniel Kahneman (Thinking, Fast and Slow)
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Taking a 'mom' -ent to wish on your day : a very happy mother's Day. You taught us everything except how to live without you! 💞
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There is no world without mother's so primarily holding it to a day is injustice to what they mean to everyone.
Yet it's a day to pause and reflect upon if you can't make it everyday.
#HappyMothersDay2020 to all the moms around♥️
I miss you Ma 😒
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Life is like Tumblr , isolated .
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कैसे नज़र आएं तेरी मर्ज़ी के मुताबिक हम
आंखें धड़कती नहीं अब , दिल भी सोता नहीं है ।
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ख़ामोश बैठो अगर कभी तो सुन लेना
क्या ये लाज़िम था , बेरुखी से पेश आना ?
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पिछली रातों कि नींदें अभी उधार ही थी , धीरे धीरे करके चुकता कर ही रहा था , अचानक इस विकराल बज्र से गिरे हिज़र ने अनिद्रा का जीवन बीमा सा कर लिया हो जैसे ।
किस्तें ही भरनी है जिसकी अब इसकी !
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When the truth offends , we lie and lie untill we can no longer it is even there.
But the fact remains it is still there. Then now forever.
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