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गरीब, मेलै ठेलै जाईयो, मेले बड़ा मिलाप। पत्थर पानी पूजते, कोई साधु संत मिल जात।। भावार्थ:- संत गरीबदास जी ने कहा है कि तीर्थों पर जो भक्तों के मेले लगते हैं। वहाँ जाते रहना। हो सकता है कभी कोई संत मिल जाए और कल्याण हो जाए। जैसे धर्मदास जी तीर्थ भ्रमण पर मथुरा-वृदांवन गया था। वहाँ स्वयं परमेश्वर कबीर जी ही जिन्दा संत के रूप में मिले और धर्मदास जी का जन्म ही सुधर गया, कल्याण को प्राप्त हुआ।
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तीर्थ vs चित्तशुद्धि तीर्थ
श्रीमद्देवी भागवत (देवी पुराण) के छठे स्कन्ध, अध्याय 10 पृष्ठ 417 पर लिखा है कि "यह निश्चय है कि तीर्थ देह सम्बन्धी मैल को साफ कर देते हैं, किन्तु मन के मैल को धोने की शक्ति तीर्थों में नहीं है। चित्तशुद्धि तीर्थ गंगा आदि तीर्थों से भी अधिक पवित्र होता है। यदि भाग्यवश चित्तशुद्धि तीर्थ अर्थात् तत्वदर्शी संतों का सत्संग रूपी तीर्थ प्राप्त हो जाए तो मानसिक मैल के धुल जाने में कोई संदेह नहीं।"
अधिक जानकारी के लिए देखिए Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel
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साखी-तीर्थ गए एक फल संत मिल फल चार। सतगुरू मिले अनेक फल कहै कबीर विचार।। संत मिले फल चार का भावार्थ है कि संत के दर्शन से परमात्मा की याद आती है। यह ध्यान यज्ञ है। संत से ज्ञान चर्चा करने से ज्ञान यज्ञ का फल मिलता है। यह दूसरा फल है। तीसरा फल जब संत घर पर आएगा तो भोजन की सेवा का फल मिलेगा तथा चौथा फल यदि संत नशा नहीं करता है तो उसको रूपया या कपड़ा वस्त्र दान अवश्य देता है। इस प्रकार संत मिले फल चार। जब सतगुरू मिल गए तो सर्व मिल गए, मोक्ष भी मिल गया।
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मोक्ष मंत्र क्या है?
राधे-राधे कोई मोक्ष मंत्र नहीं है। गीता जी के 700 श्लोकों में कहीं भी राधे-राधे मंत्र नहीं लिखा। बल्कि गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में सांकेतिक मंत्र "ॐ-तत्-सत्" का संकेत किया गया है जोकि जन्म-मृत्यु से मुक्ति पाने अर्थात् मोक्ष का मंत्र है। जिसे तत्वदर्शी संत ही बता सकता है।
अधिक जानकारी के लिए देखिए Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel पर सत्य आध्यात्मिक सत्संग
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जो जन गुरु की निंदा करई। सूकर श्वान गरभमें परई।। गुरु की निंदा सुने जो काना। ताको निश्चय नरक निदाना।। अपने मुख निंदा जो करई। परिवार सहित नर्क में पड़ही।। सरलार्थ:- जो शिष्य गुरु जी की निन्दा करता है, उसकी भक्ति समाप्त हो जाती है। फिर शुकर (सूअर) तथा श्वान (कुत्ते) के जन्म प्राप्त करता है। जो शिष्य गुरु जी की निन्दा अपने कानों से सुनता है उसको नरक प्राप्ति होती है, यह निश्चय कर मानें। जो शिष्य होकर अपने मुख से गुरु जी की निन्दा करता है तो वह पूरे परिवार सहित नरक में गिरता है।
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Who is the Immortal God?
कबीर बड़ा या कृष्ण
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God Shiva
mostly remains in meditation, why is that?
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कबीर, आग पराई आपनी, हाथ दियें जल जाये। नारी पराई आपनी, परसें बिन्द नसाया।। भावार्थ:- जैसे अग्नि अपने घर की हो, चाहे दूसरे घर की, हाथ देने से हाथ जलेगा। इसी प्रकार स्त्री अपनी हो या अन्य की, मिलन करने से एक जैसी ही हानि होती है। परंतु भक्ति मार्ग पर लगने से सुधार हो जाता है। दोनों ही पार हो जाते हैं।
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If a human performs a religious ritual without a guru, it is useless.
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कुष्टि होवे संत बंदगी कीजिए। हो वैश्या कै विश्वास चरण चित दीजिए।। भावार्थ:- यदि सत्संग में कोढ़ी भी आता है तो उसको भी करबद्ध प्रणाम करना चाहिए। यदि वैश्या भी सत्संग में विश्वास के साथ आती है तो उसका सत्कार कीजिए। उसके चेहरे पर निगाह न करके अपनी माता-बहन की तरह देखें, सामने देखने की बजाय पैरों की ओर नीची नजर से देखें।
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Bhagavad Gita Chapter 4, Verse 32:
"The Supreme Brahman, also known as the eternal blissful Brahman, has spoken various types of religious rites and sacrifices through His lotus mouth."
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Sunday Special Satsang
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While the four Vedas - Rig, Yajur, Sama, and Atharva - are well-known, the true identity of the fifth Veda, Sukshm Ved, remains hidden.
Unveil this mystery by reading the book "Hindu Sahban Nahi Samjhe Gita, Ved, Puran".
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Fifth Ved "Suksham Ved" contains the complete knowledge of spirituality, which is not found in any other religious scriptures.
To know more, read "Hindu Saheban Nahi Samjhe Gita Ved Puran"
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गुरू संग ज्ञान गर्ब दिखावै। कोटि जन्म शूकर (सूअर) के पावै।। जो गुरू के सामने यह सिद्ध करने की कुचेष्टा करे कि मैं अधिक ज्ञानवान हूँ, वह करोड़ों जन्म सूअर के भोगता है।
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#कबीर, जब ही सत्यनाम हृदय धरा, भयो पाप का नाश।
मानो चिंगारी अग्नि की, पड़ी पुराने घास।।
जो साधक पूर्ण परमात्मा की भक्ति पूर्ण गुरू से उपदेश प्राप्त करके आजीवन मर्यादा में रह कर करता है उसके सर्व पाप कर्म ऐसे नष्ट हो जाते है जैसे सुखे घास के बहुत बड़े ढेर को अग्नि की छोटी सी चिंगारी जला कर भस्म कर देती है। उसकी राख को हवा उड़ा कर इधर-उधर कर देती है ठीक ��सी प्रकार पूर्ण परमात्मा की भक्ति का सत्यनाम मन्त्र रूपी अग्नि घास के ढेर रूपी पाप कर्मों को भस्म कर देता है।
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