Writer poet and lyricist Member of Screen Writers Association Mumbai
Don't wanna be here? Send us removal request.
Text

मां है ऋण मुझ पे तेरे कर्म का
आस्तिक मैं तेरे ज्ञान-धर्म का
जिया बखूबी भरोसा अंदर तेरे
उठा दहक चेहरा जिससे भरम का।
-राज सरगम
0 notes
Text
स्नेह यानी चार धाम
चार धाम यानी तीर्थ स्थान
तीर्थ स्थान यानी हृदय
हृदय यानी स्वयं भगवान।
-राज सरगम

1 note
·
View note
Text
सच मानो यहॉं सबके दिलों में जड़े ताले हैं
होगा अनमोल खज़ाना कहॉं खोलने वाले हैं
जो करें कोशिश तह-ए-गहराई खंगालने की
बहाने चाबी गुम के पर्दा असलियत पे डाले हैं।
-राज सरगम
0 notes
Text
ज़्यादा नहीं बस साल में केवल
365 दिन याद करते हैं तुम्हें।
-राज सरगम
0 notes
Text
बिजली ना सही आज कैंडल तो है ना
बनाएंगे ज़ीरो से सौ चाह प्रबल तो है ना।
-राज सरगम
0 notes
Text
किन ऑंखों से रोएं, ऑंखें पत्थराई हैं
थीं मोम कभी, क्या सबब पिघलना बिसराई हैं।
-राज सरगम
0 notes
Text
बेहद परेशान हूॅं तेरे इन बेतुके सवालों से
उलझा रहता हूॅं अपने अन्दर के बवालों से
फैला के झोली मॉंग रहा हूॅं भीख रहम की
कर दे मुक्त मुझे अपने बुने इन जालों से।
-राज सरगम
2 notes
·
View notes