raj-sargam
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Rhyming Talks
7 posts
Writer poet and lyricist Member of Screen Writers Association Mumbai
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raj-sargam · 2 years ago
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मां है ऋण मुझ पे तेरे कर्म का
आस्तिक मैं तेरे ज्ञान-धर्म का
जिया बखूबी भरोसा अंदर तेरे
उठा दहक चेहरा जिससे भरम का।
-राज सरगम
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raj-sargam · 2 years ago
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स्नेह यानी चार धाम
चार धाम यानी तीर्थ स्थान
तीर्थ स्थान यानी हृदय
हृदय यानी स्वयं भगवान।
-राज सरगम
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raj-sargam · 2 years ago
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सच मानो यहॉं सबके दिलों में जड़े ताले हैं
होगा अनमोल खज़ाना कहॉं खोलने वाले हैं
जो करें कोशिश तह-ए-गहराई खंगालने की
बहाने चाबी गुम के पर्दा असलियत पे डाले हैं।
-राज सरगम
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raj-sargam · 2 years ago
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ज़्यादा नहीं बस साल में केवल
365 दिन याद करते हैं तुम्हें।
-राज सरगम
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raj-sargam · 2 years ago
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बिजली ना सही आज कैंडल तो है ना
बनाएंगे ज़ीरो से सौ चाह प्रबल तो है ना।
-राज सरगम
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raj-sargam · 2 years ago
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किन ऑंखों से रोएं, ऑंखें पत्थराई हैं
थीं मोम कभी, क्या सबब पिघलना बिसराई हैं।
-राज सरगम
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raj-sargam · 2 years ago
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बेहद परेशान हूॅं तेरे इन बेतुके सवालों से
उलझा रहता हूॅं अपने अन्दर के बवालों से
फैला के झोली मॉंग रहा हूॅं भीख रहम की
कर दे मुक्त मुझे अपने बुने इन जालों से।
-राज सरगम
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