चिनी कंपन्यांना सरकार देणार झटका! १२ हजारांपर्यंतच्या स्मार्टफोनवर भारतात असेल बंदी
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चिनी कंपन्यांना सरकार देणार झटका! १२ हजारांपर्यंतच्या स्मार्टफोनवर भारतात असेल बंदी
Xiaomi, Redmi, Realme, OPPO, Vivo, POCO, Infinix आणि TECNO यासह सर्व स्वस्त चायना मोबाईल फोनवर भारत सरकार बंदी घालू शकते.
Chinese Smartphone Ban in India: भारतीय मोबाईल उद्योगासाठी ही बातमी खूप मोठी आणि महत्वाची बातमी आहे. येत्या काही दिवसांत १२,०० रुपयांपेक्षा कमी किंमतीच्या सर्व चीनी स्मार्टफोन्सवर भारतात बंदी…
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#गरिमा_गीता_की_Part_13
शब्द - ‘सतलोक में चल मेरी सुरता
-ः शब्द:-
सतलोक में चल मेरी सुरतां, मत न लावै देरी। साच कहूँ न झूठ रति भर, तू बात मान ले मेरी।।टेक।।
प्रथम जाना सतसंग के में चर्चा सुनिए आत्म ज्ञान की, सुनकै सतसंग जागी नहीं तो पूछ श्वान की।
तीर्थ व्रत ये पित्रा पूजा कोन्या किसे काम की, लै कै नाम गुरु से भक्ति करिए कबीर भगवान की।।
मत सुनना मन सैतान की, ये चैकस घालै घेरी।।1।।
काल लोक में कष्ट उठावै यह कोन्या तेरा ठिकाना, मात पिता संतान सम्पति का झूठा बुन रही ताना।
जाप अजपा मिल जावै जब सुमरण में मन लाना, सार शब्द तेरे काटे बंधन आकाशै उड जाना।।
त्रिकुटी में आना हे सुरतां, मतना भटकै बेरी।।2।।
त्रिकुटी में पहुँच कै सुरतां चारों ओर लखावै, शब्द गुरु फिर प्रकट होवे उसते ब्याह करवावै।
नूरी रूप गुरु का होकै तेरै आगे-आगे जावै, सतलोक में सेज बिछी तेरे चैकस लाड लडावै।।
जन्म मरन मिट जावै हे सुरतां, हो आनन्द काया तेरी।।3।।
सतलोक में जा कै हे सुरतां संकट कट जां सारे, अलख लोक और अगम लोक के दिखैं सभी नजारे।
लोक अनामी जावैगी वहां कोन्या मिलैं चैबारे, आत्मा और परमात्मा वहां भी रहते न्यारे-न्यारे।।
रामपाल प्रीतम प्यारे की आत्मा, अब पूर्ण आनन्द लेरी।।4।।
भावार्थ:- भक्त/भक्तमति को समझाने के लिए अपनी सुरति जो आत्मा की आँख है, दूसरे शब्दों में अप्रत्यक्ष रूप से आत्मा को सुरतां नाम से संबोधित करके पूर्णमोक्ष यानि पाँचवीं मुक्ति को प्राप्त करने की प्रेरणा लेखक ने की है और पाँचवीं मुक्ति कैसे मिलेगी, उसकी प्राप्ति में क्या बाधा आती है, सब बताया है। कहा है कि मेरी सुरति यानि ध्यान सतलोक वाले सुख को प्राप्त करने के लिए उस ओर चल यानि लगन लगा। भक्त/भक्तमति अपनी आस्था पूर्ण मोक्ष प्राप्ति के लिए दृढ़ कर। विलम्ब न कर। मैं सत्य कह रहा हूँ कि सत्यलोक में सर्व सुख हैं। इसी को गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में शाश्वतं स्थानम् यानि सनातन परम धाम कहा है। वहाँ परमशांति बताई है। जिज्ञासु को सर्वप्रथम संत का सत���संग सुनना चाहिए जो पूर्ण आत्मज्ञान करवाता है। बताता है कि आत्मा क्या है? मानव जीवन प्राप्त आत्मा का क्या लक्ष्य है? जीव को जन्म-मरण का चक्र किस कारण से है? इस कष्ट से कैसे छुटकारा मिल सकता है? यह आत्मज्ञान है। परमात्मा ज्ञान (परमात्म ज्ञान) वह है जिसमें परमेश्वर जी की महिमा, गुण तथा पहचान बताई जाती है। उसकी प्राप्ति का मार्ग शास्त्रोक्त बताया जाता है। यह सर्व ज्ञान पूर्ण संत ही बताता है। पूर्ण संत जो यह ज्ञान बताता है, वह सुदुर्लभ है। गीता अध्याय 7 श्लोक 19 में यही बताया है कि जो संत यह ज्ञान करवाता है कि वासुदेव का अर्थ है कि जिसका वास सब स्थानों पर है यानि सर्व का स्वामी जो सर्व ब्रह्माण्डों में अपनी सत्ता जमाए है। वह ही सब कुछ है यानि वही विश्व का उत्पत्तिकर्ता, पालनकर्ता, मोक्षदाता है। वह संत बहुत दुर्लभ है। {सूक्ष्मवेद में कहा है कि ऐसे संत करोड़ों में नहीं मिलेगा, अरबों व्यक्तियों में एक मिलता है। वर्तमान में यानि सन् 2012 में मेरे (रामपाल दास के) अतिरिक्त सात अरब मनुष्यों में कोई भी वह संत नहीं है।} उस संत का सत्संग सुनो। यदि उसका सत्संग सुनकर भी भक्ति की प्रेरणा नहीं बनती है तो वह जीव कुत्ते की दुम के समान है जो बारह वर्ष तक बाँस की नली में डालकर रखने के पश्चात् भी सीधी नहीं होती। बाहर निकालते हैं तो उसी स्थिति में हो जाती है। वह संत शास्त्रा प्रमाणित ज्ञान बताता है कि जो लोक वेद यानि दंत कथाओं के आधार से तीर्थ, भ्रमण, व्रत रखना, पितर पूजा यानि श्राद्ध कर्म करना आदि-आदि साधना का साधक को लाभ के स्थान पर हानि मिलती है, यह नहीं करनी चाहिए। गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में भी यह बताया है कि भूत पूजने वाले भूत बनते हैं। पितर पूजने वाले पितर बनते हैं। इसलिए पितर पूजा (श्राद्ध करना), भूत पूजा (तेरहवीं, सतरहवीं, वर्षी आदि-आदि कर्मकाण्ड क्रियाऐं) नहीं करनी चाहिऐं। ये सब अध्यात्म में बाधक हैं। पूर्ण संत यानि सतगुरू से दीक्षा लेकर कबीर परमेश्वर जी को ईष्ट मानकर साधना करने से पूर्ण मोक्ष होगा। सत्य मार्ग पर चलने के पश्चात् मन जो काल ब्रह्म का एजेंट है, यह भ्रमित करेगा। भय भी उत्पन्न करेगा कि वर्षों से करते आ रहे थे, उस साधना को त्यागने से हानि हो सकती है। अन्य गलतियाँ करने को प्रेरित करेगा जो भक्ति खंडित करती हैं। इसलिए मन शैतान की मिथ्या कल्पनाओं की ओर ध्यान नहीं देना है। गुरू जी के बताए मार्ग पर निर्भय होकर चलते रहना है।
काल के इक्कीस ब्रह्माण्डों में सर्व प्राणी जन्म-मरण तथा कर्मों का कष्ट झेल रहे हैं। यह जीव का वास्तविक निवास नहीं है। देवताओं तक की भी मृत्यु होती है और जन्म होता है। नरक में भी गिरना होता है। अन्य प्राणियों के शरीरों में कर्मानुसार कष्ट भोगना पड़ता है। आज हम जिस परिवार व संपत्ति को अपना मानते हैं, यह अपना नहीं है। यह भारी धोखा काल ने किया है। अपनी मृत्यु हो जाएगी। परिवार व संपत्ति व निवास छूट जाएगा। यह अपना निज ठिकाना नहीं है। केवल सतलोक (सनातन परम धाम) प्रत्येक जीव का ठिकाना है जहाँ कभी मृत्यु-वृद्धावस्था तथा कष्ट नहीं होता। उस सतलोक को प्राप्त करने के लिए प्रथम उपदेश जो सात नामों का है, उसका सुमरण उच्चारण करके या मानसिक करना होता है। दूसरा उपदेश श्वासों से करना होता है। इसलिए अजप्पा जाप (स्मरण) कहा जाता है। तीसरी बार में सारनाम प्रदान गुरू जी करते हैं। तीनों उपदेशों का स्मरण करना है।
सारनाम से जन्म-मरण का कष्ट समाप्त होता है। मृत्यु के पश्चात् मर्यादा में रहकर भक्ति करने वाली आत्मा कर्म बन्धन से मुक्त होकर आकाश में उड़ जाती है। जैसे तोते को पिंजरे से निकाल दिया जाता है तो वह तीव्र गति से आकाश में उड़ जाता है। वह सावधानी नहीं करेगा तो फिर से बंदी बन सकता है। इसीलिए कहा है कि हे आत्मा! आप यदि सावधानी नहीं करोगी तो फिर से बंधन में फँस जाओगी। इसलिए आन-उपासना न करना। फिर से अपनी परंपरागत साधना करने बेरी वाली माता पर न चली जाना। न पिण्ड-दान करने गंगासागर वाली बेरी पर भी न जाना। शरीर में बने कमलों का मार्ग प्रथम मंत्रा खोल देता है। फिर दूसरे मंत्र यानि सतनाम की भक्ति की शक्ति (सिद्धि) के कारण जीव त्रिकुटी कमल में जाता है। वहाँ जाने को कहा है।
त्रिकुटी ऐसा स्थान है जैसे अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा होता है जहाँ से जिस देश में जाने की टिकट है, वहाँ से हवाई जहाज मिलता है। जिस साधक ने जिस भी ईष्ट की भक्ति की ��ै, वह सर्वप्रथम त्रिकुटी स्थान पर जाता है। वहाँ से उसको गुरू के रूप में उसका ईष्ट देव मिलता है। अपने गुरू को पहचानकर साधक उसके साथ ईष्ट धाम में चला जाता है। जो परमेश्वर कबीर जी के भक्त होते हैं, उनके साथ काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) छल करता है। काल ब्रह्म कबीर भक्त के गुरू जी का रूप बना लेता है। जिनको विवेक नहीं होता, वे बिना परीक्षा किए उसके साथ चल पड़ता है जिसे नकली सतलोक में छोड़ा जाता है। वह काल का ब्रह्मलोक यानि महास्वर्ग है। जिस कारण से वह साधक काल जाल में ही रह जाता है।
परीक्षा कैसे करनी है?
परिक्षा विधि:- भक्त को चाहिए कि गुरू जी के दर्शन करते वक्त सत्यनाम व सारनाम का स्मरण करेेेेेेेे। यदि नकली गुरू यानि काल होगा तो उसका स्वांग समाप्त हो जाएगा यानि गुरू का रूप नहीं रहेगा। उसका असली स्वरूप प्रत्यक्ष हो जाएगा। यदि असली गुरू जी होगा तो वास्तविक स्वरूप (चेहरा) बना रहेगा। त्रिकुटी स्थान पर जाकर चारों ओर दृष्टि घुमाकर अपने गुरूदेव को खोजे। जब जीवात्मा को शब्द गुरू यानि दीक्षा देने वाला अविनाशी गुरू दिखाई दे तो उससे विवाह करावे यानि उसका पल्ला पकड़े। भावार्थ है कि जैसे लड़की का विवाह जिस लड़के से कर दिया जाता है तो वह उसकी पहचान कर लेती है। सबको त्यागकर उसके साथ चल पड़ती है। रास्ते में किसी अन्य से नाता नहीं जोड़ती। वह पति के घर चली जाती है। इसी प्रकार आत्मा अपने गुरू जी के साथ-साथ रहे, गुरू जी के रूप में परमेश्वर कबीर जी आगे-आगे चलेंगे। आत्मा दुल्हन की भांति पीछे-पीछे चले। वह आत्मा अपने पति परमेश्वर के घर यानि सतलोक में सर्व सुख प्राप्त करेगी। परमात्मा मोक्ष प्राप्त आत्मा को बहुत लाड़-प्यार देता है। प्रशंसा करता है। सतलोक में जाने के पश्चात् सर्व संकट समाप्त हो जाते हैं। सत्यलोक में जीव को हंस कहते हैं। हंसात्मा स्त्राी-पुरूष रूप में रहते हैं। स्त्राी को हंसनी तथा पुरूष को हंस कहते हैं। जैसे यहाँ भक्त तथा भगतनी या भक्तमति कहते हैं। सतलोक में हंसात्माओं को दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जाती है। जिसके द्वारा ऊपर के दोनों लोक (अलख लोक और अगम लोक) देखे जा सकते हैं। परंतु अकह लोक यानि अनामी लोक को तो वहीं जाकर देखा जाता है। वहाँ पर भी परमात्मा तथा आत्मा भिन्न-भिन्न निवास करते हैं। सत्यलोक में हंसात्मा अपने पति परमेश्वर यानि परमहंस के लोक में सर्व सुख प्राप्त कर रही होती है। अनामी लोक में कोई मकान नहीं है। अन्य तीनों लोकों में सुंदर महल प्रत्येक परिवार को प्राप्त हैं।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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#गहरीनजरगीता_में_Part_232 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
https://youtu.be/qdYktjqwJ7Y
#गहरीनजरगीता_में_part_233
हम पढ़ रहे है पुस्तक "गहरी नजर गीता में"
पेज नंबर 448
।।शब्द।।
मन तू चलि रे सुख के सागर। जहां शब्द सिंध रत्नागर।।टेक।।
कोटि जन्म जुग भरमत हो गये, कुछ नहीं हाथि लग्या रे।
कूकर (कुत्ता) शुकर (सूअर) खर (गधा) भया बौरे, कौआ हंस बुगा रे।।1।।
कोटि जन्म जुग राजा किन्हा, मिटि न मन की आशा।
भिक्षुक होकर दर-दर हांढा, मिल्या न निरगुण रासा।।2।।
इन्द्र कुबेर ईश की पदवी, ब्रह्मा वरूण धर्मराया।
विष्णु नाथ के पुर कूं पहुँचा, बहुरि अपूठा आया।। 3।।
असंख जन्म जुग मरते होय गये, जीवित क्यौं न मरै रे।
द्वादश मधि महल मठ बौरे, बहुरि न देह धरै रे।।4।।
दोजिख भिसति सबै तैं दिखें, राज पाट के रसिया।
त्रिलोकी से त्रिपति नांहि, यौह मन भोगी खसिया।।5।।
सतगुरु मिलैं तो इच्छा मेटैं, पद मिलि पदह समाना।
चल हंसा उस देश पठाऊं, आदि अमर अस्थाना।।6।।
च्यारि मुक्ति जहां चंपी करि हैं, माया होय रही दासी।
दास गरीब अभै पद परसै, मिले राम अविनासी।।7।।
भावार्थ:- कृपया इस शब्द को ध्यान पूर्वक विचारें। इसमें आदरणीय गरीबदास जी महाराज कह रहे हैं कि हे मन! तू सुख के सागर सतलोक चल। इस काल (ब्रह्म) लोक में असंखों जन्म मरते-जन्मते हो गए। अभी तक कुछ हाथ नहीं आया। चैरासी लाख योनियों का कष्ट करोड़ों बार उठाया। कुकर (कुत्ता) सुकर (सुअर) खर (गधा) जैसी कष्टमई योनियों में तंग पाया। आगे कहा कि ब्रह्म (काल) साधना करके ऊँ जाप, तप, यज्ञ, हवन, दान आदि करके राजा बना। इन्द्र (स्वर्ग का राजा) बना और ब्रह्मा-विष्णु-शिव के उत्तम पद पर भी रहा। कुबेर (धन का देवता) बना, वरुण
(जल का देवता) भी बना और उत्तम लोक विष्णु जी के लोक में भी विष्णु (कृष्ण, राम आदि) की साधना करके कुछ समय पुण्य कर्मों के भोग को भोगकर वापिस जन्म-मरण, नरक के चक्र में गिर गया। यदि तत्वदर्शी संत सतगुरू मिल जाता तो काल लोक को असार तथा सत्यलोक को सर्व सुखदायी का ज्ञान करवाकर काल ब्रह्म के लोक की सर्व नाशवान वस्तुओं की इच्छा समाप्त करता। स्वर्ग का राजा यानि देवराज इन्द्र भी मरता है। फिर गधा बनता है तो पृथ्वी के राज को
प्राप्त करके भी राज भोगकर राजा गधा बनता है। इस प्रकार के ज्ञान से पूर्ण परमात्मा की भक्ति से साधक का मन काल ब्रह्म के लोक से हटकर परम अक्षर ब्रह्म यानि सतपुरूष में तथा उसके सनातन परम धाम की प्राप्ति की हृदय से इच्छा करता है। इस कारण से ‘‘जहाँ आशा तहाँ बासा
होई, मन कर्म वचन सुमरियो सोई।’’
भावार्थ है कि साधक की आस्था जिस प्रभु तथा लोक को प्राप्त करने की होती है तो उसी को प्राप्त करता है। उसी लोक को प्राप्त करने की साधना करके उसी में निवास करता है। इसलिए उसी का स्मरण मन-कर्म-वचन से करना चाहिए। तत्वज्ञान से साधक की आस्था सतपुरूष (परमेश्वर) तथा उसके सतलोक को प्राप्त करने की होती है। जिस कारण से अमर लोक प्राप्त
होता है। फिर उस साधक की कभी मृत्यु नहीं होती। वह परम अक्षर ब्रह्म यानि अविनाशी राम कबीर मिल जाता है। ऐसी सच्चाई तत्वदर्शी संत बताता है। सत्यलोक में जो चार मुक्तियों का सुख है। वह सदा बना रहता है। काल ब्रह्म के लोक में एक दिन समाप्त होता है। साधक नरक में भी जाता है। अन्य प्राणियों के शरीरों में भी कष्ट भोगता है। सतलोक में सदा सुखी रहता है।
( अब आगे अगले भाग में)
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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🔮14 जून कबीर प्रकट दिवस के उपलक्ष्य में जरूर जानें विभिन्न संतों की वाणियों में कबीर साहेब की अनमोल महिमा🔮
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 82 मन्त्र 1, 2 में प्रमाण है कि परमात्मा प्रत्येक युग में हल्के तेजपुंज का शरीर धारण करके अपने निजलोक से गति करके आता है एवं अच्छी आत्माओं को मिलता है। उनके संकटो का नाश कर उन्हें तत्वज्ञान सुनाता है एवं यथार्थ भक्ति बताता है।
इस प्रकार कबीर परमेश्वर आदरणीय धर्मदास जी (बांधवगढ़, मध्यप्रदेश), आदरणीय गरीबदास जी महाराज, नानक देव जी (तलवंडी, पंजाब), दादू साहेब जी (गुजरात), आदरणीय घीसादास जी, आदरणीय सन्त मलूक दास जी, आदरणीय स्वामी रामानंद जी आदि को मिले।
आदरणीय धर्मदास साहेब जी को पूर्ण परमात्मा कबीर सतलोक लेकर गए और अपनी वास्तविक स्थिति से परिचित कराया। तत्वज्ञान समझाया। वहाँ सतलोक में अपने सत्यपुरुष रूप में दर्शन दिए। आदरणीय धर्मदास साहेब जी ने पवित्र कबीर सागर, कबीर साखी, कबीर बीजक नामक सद्ग्रन्थों से आँखों देखे तथा पूर्ण परमात्मा के पवित्र मुख कमल से निकले अमृत वचन रूपी विवरण की रचना की, और कबीर परमात्मा की भरपूर महिमा गई, जिसमे से कुछ इस प्रकार है।
आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर।।टेक।।
सत्यलोक से चल कर आए, काटन जम की जंजीर।।1।।
थारे दर्शन से म्हारे पाप कटत हैं, निर्मल होवै जी शरीर।।2।।
अमृत भोजन म्हारे सतगुरु जीमैं, शब्द दूध की खीर।।3।।
हिन्दू के तुम देव कहाये, मुस्लमान के पीर।।4।।
दोनों दीन का झगड़ा छिड़ गया, टोहे ना पाये शरीर।।5।।
धर्मदास की अर्ज गोसांई, बेड़ा लंघाईयो परले तीर।।6।।
परमात्मा कबीर गरीब दास साहेब को 1727 में एक जिन्दा महात्मा के रूप में मिले, परमात्मा कबीर उन्हें भी सतलोक लेकर गए और उन्हें सच्चा वास्तविक ज्ञान बताया। गरीबदास जी महाराज ने अपनी पवित्र वाणियों में सतलोक और परम् अक्षर ब्रह्म कबीर साहेब के विषय में कलम तोड़ महिमा गाई है।
"सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्धि हैं तीर।
दास गरीब सतपुरुष भजो, अविगत कला कबीर।।"
"हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया |
जाति जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ | |"
परमात्मा कबीर साहेब जिंदा महात्मा के रूप में नानक देव जी को भी बेई नदी के किनारे मिले, उन्हें तत्वज्ञान समझाया, सृष्टि रचना समझाई और अपनी वास्तविक स्थिति से परिचित करवाया, कबीर साहेब की महिमा का गुरुनानक जी ने अपनी पवित्र वाणी में बखान किया है-
फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस |
खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार ||
- गुरु ग्रन्थ साहेब, राग सिरी, महला 1
हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदीगार |
नानक बुगोयद जनु तुरा तेरे चाकरा पाखाक ||
-गुरु ग्रन्थ साहेब, राग तिलंग, महला 1
इस प्रकार कबीर परमात्मा प्रत्येक युग में आकर अपनी अच्छी आत्माओं को मिलते हैं, जिससे उनकी महिमा का ज्ञान होता है, कबीर परमेश्वर स्वयं ही तत्वदर्शी संत के रूप में आकर सच्चे ज्ञान के द्वारा धर्म की पुनः स्थापना करते है। आज वर्तमान में पूरे विश्व में एकमात्र तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज हैं। बन्दीछोड़ सन्त रामपाल जी महाराज ही परमेश्वर कबीर के अवतार हैं। एकमात्र उनकी शरण में जाने से ही अब मोक्ष सम्भव है।
#KabirPrakatDiwas
#SaintRampalJi
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पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
https://bit.ly/KabirParmeshwarBook
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( #Muktibodh_part230 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part231
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 442-443
‘‘ज्ञानी (कबीर) वचन‘‘ चौपाई
अध्याय ‘‘स्वसमवेद बोध‘‘ पृष्ठ 121 :-
अरे काल परपंच पसारा।
तीनों युग जीवन दुख आधारा।।55
बीनती तोरी लीन मैं मानी।
मोकहं ठगे काल अभिमानी।।56
चौथा युग जब कलयुग आई।
तब हम अपना अंश पठाई।।57
काल फंद छूटै नर लोई।
सकल सृष्टि परवानिक (दीक्षित) होई।।58
घर-घर देखो बोध (ज्ञान) बिचारा (चर्चा)।
सत्यनाम सब ठोर उचारा।।59
पाँच हजार पाँच सौ पाँचा।
तब यह वचन होयगा साचा।।60
कलयुग बीत जाए जब ऐता।
सब जीव परम पुरूष पद चेता।।61
भावार्थ :- (वाणी सँख्या 55 से 61 तक) परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे काल! तूने विशाल प्रपंच रच रखा है। तीनों युगों (सतयुग, त्रेता, द्वापर) में जीवों को बहुत कष्ट देगा। जैसा तू कह रहा ह���। तूने मेरे से प्रार्थना की थी, वह मान ली। तूने मेरे साथ धोखा किया है, परतुं चौथा युग जब कलयुग आएगा, तब मैं अपना अंश यानि कृपा पात्र आत्मा भेजूँगा। हे काल! तेरे द्वारा बनाए सर्व फंद यानि अज्ञान आधार से गलत ज्ञान व साधना को सत्य शब्द तथा सत्य ज्ञान से समाप्त करेगा। उस समय पूरा विश्व प्रवानिक यानि उस मेरे संत से दीक्षा लेकर दीक्षित होगा। उस समय तक यानि जब तक कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच नहीं बीत जाता, सत्यनाम, मूल नाम (सार शब्द) तथा मूल ज्ञान (तत्त्वज्ञान) प्रकट नहीं
करना है। परंतु जब कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष पूरा हो जाएगा, तब घर-घर में मेरे अध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा हुआ करेगी और सत्यनाम, सार शब्द को सब उपदेशियों को प्रदान किया जाएगा। यह जो बात मैं कह रहा हूँ, ये मेरे वचन उस समय सत्य साबित होंगे, जब कलयुग के 5505 (पाँच हजार पाँच सौ पाँच) वर्ष पूरे हो जाएँगे। जब कलयुग इतने
वर्ष बीत जाएगा। तब सर्व मानव प्राणी परम पुरूष यानि सत्य पुरूष के पद अर्थात् उस परम पद के जानकार हो जाएँगे जिसके विषय में गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्त्वदर्शी संत के प्राप्त होने के पश्चात् परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए
जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में कभी नहीं आते। जिस परमेश्वर ने संसार रूपी वृक्ष का विस्तार किया है अर्थात् जिस परमेश्वर ने सृष्टि की रचना की है, उस परमेश्वर की भक्ति करो।
उपरोक्त वाणी का भावार्थ है कि उस समय उस परमेश्वर के पद (सत्यलोक) के विषय में सबको पूर्ण ज्ञान होगा।
स्वसमवेद बोध पृष्ठ 170 :-
अथ स्वसम वेद की स्फुटवार्ता-चौपाई
एक लाख और असि हजारा।
पीर पैगंबर और अवतारा।।62
सो सब आही निरंजन वंशा।
तन धरी-धरी करैं निज पिता प्रशंसा।।63
दश अवतार निरंजन के रे।
राम कृष्ण सब आहीं बडेरे।।64
इनसे बड़ा ज्योति निरंजन सोई।
यामें फेर बदल नहीं कोई।।65
भावार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि बाबा आदम से लेकर हजरत मुहम्मद तक कुल एक लाख अस्सी हजार (1,80,000) पैगंबर हुए हैं तथा दस अवतार जो हिन्दू मानते हैं, ये सब काल के भेजे आए हैं। इन सबने काल ब्रह्म की भक्ति का प्रचार किया है।
जो दस अवतार हैं, इन दस अवतारों में राम तथा कृष्ण प्रमुख हैं। ये सब काल (जो इनका पिता है) की महिमा बनाकर सर्व जीवों को भ्रमित करके काल साधना दृढ़ कर गए हैं। इस
सबका मुखिया ज्योति निरंजन काल (ब्रह्म) है।
कबीर सागर में स्वसमवेद बोध पृष्ठ 171(1515) :-
सत्य कबीर वचन
दोहे :- पाँच हजार अरू पाँच सौ पाँच जब कलयुग बीत जाय।
महापुरूष फरमान तब, जग तारन कूं आय।।66
हिन्दु तुर्क आदि सबै, जेते जीव जहान।
सत्य नाम की साख गही, पावैं पद निर्वान।।67
यथा सरितगण आप ही, मिलैं सिन्धु मैं धाय।
सत्य सुकृत के मध्य तिमि, सब ही पंथ समाय।।68
जब लग पूर्ण होय नहीं, ठीक का तिथि बार।
कपट-चातुरी तबहि लौं, स्वसम बेद निरधार।।69
सबही नारी-नर शुद्ध तब, जब ठीक का दिन आवंत।
कपट चातुरी छोडिके, शरण कबीर गहंत।।70
एक अनेक ह्नै गए, पुनः अनेक हों एक।
हंस चलै सतलोक सब, सत्यनाम की टेक।।71
घर घर बोध विचार हो, दुर्मति दूर बहाय।
कलयुग में सब एक होई, बरतें सहज सुभाय।।72
कहाँ उग्र कहाँ शुद्र हो, हरै सबकी भव पीर(पीड़)।।73
सो समान समदृष्टि है, समर्थ सत्य कबीर।।74
भावार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि हे धर्मदास! मैंने ज्योति निरंजन यानि
काल ब्रह्म से भी कहा था, अब आपको भी बता रहा हूँ। स्वसमबेद बोध की वाणी सँख्या 66 से 74 का सरलार्थ :- जिस समय कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष बीत जाएगा, तब एक महापुरूष विश्व को पार करने के लिए
आएगा। हिन्दु, मुसलमान आदि-आदि जितने भी पंथ तब तक बनेंगे और जितने जीव संसार में हैं, वे मानव शरीर प्राप्त करके उस महापुरूष से सत्यनाम लेकर सत्यनाम की शक्ति से
मोक्ष प्राप्त करेंगे। वह महापुरूष जो सत्य कबीर पंथ चलाएगा, उस (तेरहवें) पंथ में सब पंथ स्वतः ऐसे तीव्र गति से समा जाएंगे जैसे भिन्न-भिन्न नदियाँ अपने आप निर्बाध दौड़कर समुद्र में गिर जाती है। उनको कोई रोक नहीं पाता। ऐसे उस तेरहवें पंथ में सब पंथ शीघ्रता से मिलकर एक पंथ बन जाएगा। परंतु जब तक ठीक का समय नहीं आएगा यानि कलयुग
पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष पूरे नहीं करता, तब तक मैं जो यह ज्ञान स्वसमवेद में बोल रहा हूँ, आप लिख रहे हो, निराधार लगेगा। जिस समय वह निर्धारित समय आएगा। उस समय स्त्री-पुरूष उच्च विचारों तथा शुद्ध
आचरण के होकर कपट, व्यर्थ की चतुराई त्यागकर मेरी (कबीर जी की) शरण ग्रहण करेंगे।
परमात्मा से लाभ लेने के लिए एक ‘‘मानव‘‘ धर्म से अनेक पंथ (धार्मिक समुदाय) बन गए हैं, वे सब पुनः एक हो जाएंगे। सब हंस (निर्विकार भक्त) आत्माएँ सत्य नाम की शक्ति से
सतलोक चले जाएंगे। मेरे अध्यात्म ज्ञान की चर्चा घर-घर में होगी। जिस कारण से सबकी दुर्मति समाप्त हो जाएगी। कलयुग में फिर एक होकर सहज बर्ताव करेंगे यानि शांतिपूर्वक
जीवन जीएंगे। कहाँ उग्र अर्थात् चाहे डाकू, लुटेरा, कसाई हो, चाहे शुद्र, अन्य बुराई करने वाला नीच होगा। परमात्मा सत्य भक्ति करने वालों की भवपीर यानि सांसारिक कष्ट हरेगा
यानि दूर करेगा। सत्य साधना से सबकी भवपीर यानि सांसारिक कष्ट समाप्त हो जाएंगे और उस 13वें (तेरहवें) पंथ का प्रवर्तक सबको समान दृष्टि से देखेगा अर्थात् ऊँच-नीच में
भेदभाव नहीं करेगा। वह समर्थ सत्य कबीर ही होगा। (मम् सन्त मुझे जान मेरा ही स्वरूपम्)
प्रश्न :- वह तेरहवां पंथ कौन-सा है, उसका प्रवर्तक कौन है?
उत्तर :- वह तेरहवां पंथ ‘‘यथार्थ सत कबीर‘‘ पंथ है। उसके प्रवर्तक स्वयं कबीर परमेश्वर जी हैं। वर्तमान में उसका संचालक उनका गुलाम रामपाल दास पुत्र स्वामी रामदेवानंद जी महाराज है। (अध्यात्मिक दृष्टि से गुरू जी पिता माने जाते हैं जो आत्मा का पोषण करते हैं।)
प्रमाण :- वैसे तो संत धर्मदास जी की वंश परंपरा वाले महंतो से जुड़े श्रद्धालुओं ने अज्ञानतावश तेरहवां पंथ और संचालक धर्मदास की बिन्द (परिवार) की धारा वालों को सिद्ध
करने की कुचेष्टा की है। परंतु हाथी के वस्त्र को भैंसे पर डालकर कोई कहे कि देखो यह वस्त्र भैंसे का है। बुद्धिमान तो तुरंत समझ जाते हैं कि यह भैंसा का वस्त्र नहीं है। यह तो भैंसे से कई गुणा लंबे-चौड़े पशु का है। भले ही वे ये न बता सकें कि यह हाथी का है।
उदाहरण :- पवित्र कबीर सागर के अध्याय ‘‘कबीर चरित्र बोध‘‘ के पृष्ठ 1834-1835 पर लिखा है।
क्रमशः_______________
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परमाणु बम और गीता में क्या संबंध था? यहाँ जानिए
'ऑपिनहाइमर' फ़िल्म की आजकल खूब चर्चा है। लेकिन क्या आप जानते हैं इस पूरी घटना में 'श्रीमद् भगवद् गीता' ने क्या भूमिका अदा की थी? हम ऑपिनहाइमर के उस वायरल वीडियो की बात नहीं कर रहे जिसमें वे गीता के एक श्लोक को उद्धृत करते हैं। तो फिर?
आइए शुरू से समझाते हैं:
अक्टूबर, 1939 में आइंस्टाइन अमेरिका के राष्ट्रपति को एक खत लिखते हैं,
"जर्मनी में परमाणु रिसर्च पूरे ज़ोरों पर है। वे जल्द ही एक शक्तिशाली बम बनाने में सफल हो सकते हैं, ऐसा बम जो मानवजाति ने आजतक नहीं देखा।"
इस वक्त तक दूसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत हो चुकी थी। हिटलर ने पोलैंड पर हमला कर दिया था। और ब्रिटिश व फ्रेंच सरकारों ने जर्मनी के ख़िलाफ़ युद्ध का एलान कर दिया था।
1942 तक आते-आते अमेरिका भी सक्रिय रूप से विश्वयुद्ध का हिस्सा बन चुका था। तब वहाँ के राष्ट्रपति ने विश्व के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों को अपने देश आने का प्रस्ताव भेजा। और शुरुआत हुई "मैनहैटन प्रोजेक्ट" की। जिसका उद्देश्य था जर्मनी से पहले परमाणु बॉम बनाना।
इस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर के तौर पर उस वक्त के प्रसिद्ध वैज्ञानिक रॉबर्ट ऑपिनहाइमर को चुना गया। उनको बताया गया कि कैसे विश्वयुद्ध को और हिटलर को अत्याचार को रोकने का एक ही उपाय हो सकता है: कि जर्मनी से पहले अमेरिका एक परमाणु बॉम तैयार करले।
ऑपिनहाइमर धर्मसंकट में पड़ गए। एक तरफ़ थी हिटलर की क्रूरता और अत्याचार और दूसरी ओर था अपने विज्ञान के कौशल का उपयोग करके एक ऐसा हथियार बनाने का आदेश जिसके आगे सारे हथियार विफल साबित हो जाएँ। सिर्फ़ उसके नामभर से सारे युद्ध ख़त्म हो जाएँ।
इसी समय के दौरान वे कहा करते थे कि "भगवद् गीता मेरी बेचैनी की दवाई है"। इसलिए हमेशा गीता की प्रति अपनी मेज़ पर एक हाथ की दूरी पर रखते थे।
वेदान्त से उनका रिश्ता पुराना था। वर्षों पहले जब वे कॉलेज में थे तो उन्हें विज्ञान की किताबों से ज़्यादा रुचि वेदान्त और भगवद् गीता में थी। वे उन लोगों में से थे जिन्होंने संस्कृत सीखी थी ख़ास वेदान्त ग्रंथों के मूल स्वरूप को पढ़ने के लिए।
उनके करीबी बताते हैं कि उनकी बातों से साफ़ झलकता था कि वे कैसे पूरे प्रोजेक्ट के दौरान एक कश्मकश में रहते थे। 'स्वधर्म' को समझने में ख़ुद को असफल पाते थे।
उन्हें समझ नहीं आ रहा था क्या 'सही' है: उनका परमाणु बम बनाने में सफल हो जाना या असफल हो जाना? दोनों ही नतीजे उन्हें भयावह लग रहे थे।
16 जुलाई 1945 को अमेरिका पहला सफल परमाणु परीक्षण करता है। और सभी वैज्ञानिक अपनी खोज को सरकार के हवाले कर देते हैं। ऑपिनहाइमर को पता चलता है कि राष्ट्रपति जापान पर बम गिराने का आदेश देने वाले हैं।
तो वे इस निर्णय का विरोध करते हैं क्योंकि 30 अप्रैल 1945 को हिटलर पहले ही आत्महत्या कर चुका था। और नाज़ी सेना मई तक आते-आते घुटने टेक चुकी थी। सिर्फ़ जापान का तानाशाह हीरोहितो हथियार डालने को राज़ी नहीं था।
राष्ट्रपति उनकी बात नहीं मानते। ऑपिनहाइमर कहते हैं, "आज मेरे और आपके हाथ खून से रंगे हैं" और वहाँ से निकल जाते हैं।
जापान पर दो परमाणु बम गिराए जाते हैं। 2 लाख से अधिक जानें जाती हैं, दो शहर पूरी तरह मिट्टी में मिल जाते हैं, आने वाले ��ई दशकों के लिए पूरी जनसं��्या रेडिएशन से ग्रसित रहती है। जापान का तानाशाह अपनी हार मान लेता है। और दूसरा विश्वयुद्ध ख़त्म हो जाता है।
ऑपिनहाइमर को लगा शायद ऐसा भयावह मंजर देखकर मानवता दोबारा ऐसा कभी नहीं होने देगी। और परमाणु बम बनाने पर प्रतिबंध लगा देगी। लेकिन 1949 में रुस द्वारा सफल परमाणु परीक्षण के बाद पूरी दुनिया में परमाणु बम बनाने की रेस शुरू हो जाती है।
जिस ऑपिनहाइमर को 'परमाणु बम का पिता' कहा गया था, वही उसके सबसे बड़े विरोधी बनकर खड़े होते हैं। अमेरिकी सरकार 1950 में हाइड्रोजन बम बनाने की तैयार शुरू कर देती है। जो कि परमाणु बम से 1000 गुना शक्तिशाली होता।
तो ऑपिनहाइमर इसका पुरज़ोर विरोध करते हैं। लेकिन उनकी बात सुनने की जगह उनपर राष्ट्रद्रोह का मुक़दमा चलाया जाता है। शेष जीवन वे फिजिक्स पढ़ाने में और अपनी ही रचना के अंतर्राष्ट्रीय मंच पर विरोध करने को समर्पित कर देते हैं।
दो बातों पर ध्यान दीजिएगा:
1. गीता से प्रेरित होकर कैसे शक्ति का विशाल स्रोत खुलता है। चाहे वे परमाणु शक्ति हो या आंतरिक शक्ति हो।
2. अध्यात्म ही अहिंसा का स्रोत है। जिन्हें अध्यात्म से कोई सरोकार नहीं होता वे ही अपनी घातक महत्वाकांक्षाओं के कारण विश्व पर क्रूरता बरसाते हैं।
ऑपिनहाइमर परमाणु रहस्यों के ज्ञाता थे और गीता के भी। तो उन्होंने बम का पुरज़ोर विरोध किया। लेकिन पूरी दुनिया में पिछले 70 सालों में नाभिकीय विष फैलता ही गया है क्योंकि दुनिया अध्यात्म और वेदान्त से दूर है।
गीता शक्ति भी, करुणा भी।
किसी भी प्रकार कि त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी और सुक्षावों को आमंत्रण।।
धन्यवाद🙏🙏🙏
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परिचय: सिक्वान कैसीनो के रोमांच की खोज करें
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सिकुआन कैसीनो
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#ज्ञानगंगा_Part28
आदरणीय धर्मदास साहेब जी कबीर परमेश्वर के साक्षी -
आदरणीय धर्मदास साहेब जी, बांधवगढ़ मध्य प्रदेश वाले, जिनको पूर्ण परमात्मा जिंदा महात्मा के रूप में मथुरा में मिले, सतलोक दिखाया। वहाँ सत्लोक में दो रूप दिखा कर जिंदा वाले रूप में पूर्ण परमात्मा वाले सिंहासन पर विराजमान हो गए तथा आदरणीय धर्मदास साहेब जी को कहा कि मैं ही काशी (बनारस) में नीरू-नीमा के घर गया हुआ हूँ। वहाँ धाणक (जुलाहे) का कार्य करता हूँ, आदरणीय श्री रामानन्द जी मेरे गुरु जी हैं। यह कह कर श्री धर्मदास जी की आत्मा को वापिस शरीर में भेज दिया। श्री धर्मदास जी का शरीर दो दिन बेहोश रहा, तीसरे दिन होश आया तो काशी में खोज करने पर पाया कि यही काशी में आया धाणक ही पूर्ण परमात्मा (सतपुरुष) है। आदरणीय धर्मदास साहेब जी ने पवित्र कबीर सागर, कबीर साखी, कबीर बीजक नामक सद्ग्रन्थों की आँखों देखे तथा पूर्ण परमात्मा के पवित्र मुख कमल से निकले अमृत वचन रूपी विवरण से रचना की।
अमृत वाणी में प्रमाण:
आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर।।टेक।।
सत्यलोक से चल कर आए, काटन जम की जंजीर।।1।।
थारे दर्शन से म्हारे पाप कटत हैं, निर्मल होवै जी शरीर।।2।।
अमृत भोजन म्हारे सतगुरु जीमैं, शब्द दूध की खीर।।3।।
हिन्दू के तुम देव कहाये, मुस्लमान के पीर।।4।।
दोनों दीन का झगड़ा छिड़ गया, टोहे ना पाये शरीर।।5।।
धर्मदास की अर्ज गोसांई, बेड़ा लंघाईयो परले तीर।।6।।
(ख) आदरणीय दादू साहेब जी (अमृत वाणी में प्रमाण) कबीर परमेश्वर के साक्षी -
आदरणीय दादू साहेब जी जब सात वर्ष के बालक थे तब पूर्ण परमात्मा जिंदा महात्मा के रूप में मिले तथा सत्यलोक ले गए। तीन दिन तक दादू जी बेहोश रहे। होश में आने के पश्चात् परमेश्वर की महिमा की आँखों देखी बहुत-सी अमृतवाणी उच्चारण की:
जिन मोकुं निज नाम दिया, सोइ सतगुरु हमार। दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजन हार।।
दादू नाम कबीर की, जै कोई लेवे ओट। उनको कबहू लागे नहीं, काल बज्र की चोट।।
दादू नाम कबीर का, सुनकर कांपे काल। नाम भरोसे जो नर चले, होवे न बंका बाल।।
जो जो शरण कबीर के, तरगए अनन्त अपार। दादू गुण कीता कहे, कहत न आवै पार।।
कबीर कर्ता आप है, दूजा नाहिं कोय। दादू पूरन जगत को, भक्ति दृढावत सोय।।
ठेका पूरन होय जब, सब कोई तजै शरीर। दादू काल गँजे नहीं, जपै जो नाम कबीर।।
आदमी की आयु घटै, तब यम घेरे आय। सुमिरन किया कबीर का, दादू लिया बचाय।।
मेटि दिया अपराध सब, आय मिले छनमाँह। दादू संग ले चले, कबीर चरण की छांह।।
सेवक देव निज चरण का, दादू अपना जान। भृंगी सत्य कबीर ने, कीन्हा आप समान।।
दादू अन्तरगत सदा, छिन-छिन सुमिरन ध्यान। वारु नाम कबीर पर, पल-पल मेरा प्रान।।
सुन-2 साखी कबीर की, काल नवावै माथ। धन्य-धन्य हो तिन लोक में, दादू जोड़े हाथ।।
केहरि नाम कबीर का, विषम काल गज राज। दादू भजन प्रतापते, भागे सुनत आवाज।।
पल एक नाम कबीर का, दादू मनचित लाय। हस्ती के अश्वार को, श्वान काल नहीं खाय।।
सुमरत नाम कबीर का, कटे काल की पीर। दादू दिन दिन ऊँचे, परमानन्द सुख सीर।।
दादू नाम कबीर की, जो कोई ���ेवे ओट। तिनको कबहुं ना लगई, काल बज्र की चोट।।
और संत सब कूप हैं, केते झरिता नीर। दादू अगम अपार है, दरिया सत्य कबीर।।
अबही तेरी सब मिटै, जन्म मरन की पीर। स्वांस उस्वांस सुमिरले, दादू नाम कबीर।।
कोई सर्गुन मंे रीझ रहा, कोई निर्गुण ठहराय। दादू गति कबीर की, मोते कही न जाय।।
जिन मोकुं निज नाम दिया, सोइ सतगुरु हमार। दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजन हार।।
(ग) आदरणीय मलूक दास साहेब जी कविर्देव के साक्षी -
42 वर्ष की आयु में श्री मलूक दास साहेब जी को पूर्ण परमात्मा मिले तथा दो दिन तक श्री मलूक दास जी अचेत रहे। फिर निम्न वाणी उच्चारण की:
जपो रे मन सतगुरु नाम कबीर।। टेक।।
जपो रे मन परमेश्वर नाम कबीर।
एक समय गुरु बंसी बजाई कालंद्री के तीर।
सुर-नर मुनि थक गए, रूक गया दरिया नीर।।
काशी तज गुरु मगहर आये, दोनों दीन के पीर।
कोई गाढ़े कोई अग्नि जरावै, ढूंडा न पाया शरीर।
चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर।
दास मलूक सलूक कहत हैं, खोजो खसम कबीर
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।
संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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#गहरीनजरगीता_में_Part_92 के आगे पढिए.....)
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#गहरीनजरगीता_में_part_93
हम पढ़ रहे है पुस्तक "गहरी नजर गीता में"
पेज नंबर 177-178
।। कबीर साहेब का शब्द।।
कर नैनों दीदार महलमें प्यारा है।। टेक।।
काम क्रोध मद लोभ बिसारो, शील सँतोष क्षमा सत धारो।
मद मांस मिथ्या तजि डारो, हो ज्ञान घोडै असवार, भरम से न्यारा है।।1।।
धोती नेती बस्ती पाओ, आसन पदम जुगतसे लाओ।
कुम्भक कर रेचक करवाओ, पहिले मूल सुधार कारज हो सारा है।।2।।
मूल कँवल दल चतूर बखानो, किलियम जाप लाल रंग मानो।
देव गनेश तहँ रोपा थानो, रिद्धि सिद्धि चँवर ढुलारा है।।3।।
स्वाद चक्र षटदल विस्तारो, ब्रह्म सावित्राी रूप निहारो।
उलटि नागिनी का सिर मारो, तहाँ शब्द ओंकारा है।।4।।
नाभी अष्ट कमल दल साजा, सेत सिंहासन बिष्णु बिराजा।
हरियम् जाप तासु मुख गाजा, लछमी शिव आधारा है।।5।।
द्वादश कमल हृदये के माहीं, जंग गौर शिव ध्यान लगाई।
सोहं शब्द तहाँ धुन छाई, गन करै जैजैकारा है।।6।।
षोड्श कमल कंठ के माहीं, तेही मध बसे अविद्या बाई।
हरि हर ब्रह्म चँवर ढुराई, जहँ श्रीयम् नाम उचारा है।।7।।
तापर कंज कमल है भाई, बग भौंरा दुइ रूप लखाई।
निज मन करत वहाँ ठकुराई, सो नैनन पिछवारा है।।8।।
कमलन भेद किया निवार्रा, यह सब रचना पिंड मँझारा।
सतसँग कर सतगुरु शिर धारा, वह सतनाम उचारा है।।9।।
आँख कान मुख बन्द कराओ, अनहद झिंगा शब्द सुनाओ।
दोनों तिल इक तार मिलाओ, तब देखो गुलजारा है।।10।।
चंद सूर एक घर लाओ, सुषमन सेती ध्यान लगाओ।
तिरबेनीके संधि समाओ, भौर उतर चल पारा है।।11।।
घंटा शंख सुनो धुन दोई, सहस्र कमल दल जगमग होई।
ता मध करता निरखो सोई, बंकनाल धस पारा है।।12।।
डाकिनी शाकनी बहु किलकारे, जम किंकर धर्म दूत हकारे।
सत्तनाम सुन भागे सारें, जब सतगुरु नाम उचारा है।।13।।
गगन मँडल बिच उधर्मुख कुइया, गुरुमुख साधू भर भर पीया।
नगुरो प्यास मरे बिन कीया, जाके हिये अँधियारा है।।14।।
त्रिकुटी महल में विद्या सारा, धनहर गरजे बजे नगारा।
लाल बरन सूरज उजियारा, चतूर दलकमल मंझार शब्द ओंकारा है।।15।।
साध सोई जिन यह गढ लीनहा, नौ दरवाजे परगट चीन्हा।
दसवाँ खोल जाय जिन दीन्हा, जहाँ कुलुफ रहा मारा है।।16।।
आगे सेत सुन्न है भाई, मानसरोवर पैठि अन्हाई।
हंसन मिलि हंसा होई जाई, मिलै जो अमी अहारा है।।17।।
किंगरी सारंग बजै सितारा, क्षर ब्रह्म सुन्न दरबारा।
द्वादस भानु हंस उँजियारा, षट दल कमल मँझार शब्द ररंकारा है।।18।।
महा सुन्न सिंध बिषमी घाटी, बिन सतगुरु पावै नहिं बाटी।
व्याघर सिहं सरप बहु काटी, तहँ सहज अचिंत पसारा है।।19।।
अष्ट दल कमल पारब्रह्म भाई, दहिने द्वादश अंचित रहाई।
बायें दस दल सहज समाई, यो कमलन निरवारा है।।20।।
पाँच ब्रह्म पांचों अँड बीनो, पाँच ब्रह्म निःअच्छर चीन्हों।
चार मुकाम गुप्त तहँ कीन्हो, जा मध बंदीवान पुरुष दरबारा है।। 21।।
दो पवर्तके संध निहार���, भँवर गुफा तहां संत पुकारो।
हंसा करते केल अपारो, तहाँ गुरन दबार्रा है।।22।।
सहस अठासी दीप रचाये, हीरे पन्ने महल जड़ाये।
मुरली बजत अखंड सदा ये, तँह सोहं झनकारा है।।23।।
सोहं हद तजी जब भाई, सत्तलोककी हद पुनि आई।
उठत सुगंध महा अधिकाई, जाको वार न पारा है।।24।।
षोडस भानु हंस को रूपा, बीना सत धुन बजै अनूपा।
हंसा करत चँवर शिर भूपा, सत्त पुरुष दबार्रा है।।25।।
कोटिन भानु उदय जो होई, एते ही पुनि चंद्र लखोई।
पुरुष रोम सम एक न होई, ऐसा पुरुष दिदारा है।।26।।
आगे अलख लोक है भाई, अलख पुरुषकी तहँ ठकुराई।
अरबन सूर रोम सम नाहीं, ऐसा अलख निहारा है।।27।।
ता पर अगम महल इक साजा, अगम पुरुष ताहिको राजा।
खरबन सूर रोम इक लाजा, ऐसा अगम अपारा है।।28।।
ता पर अकह लोक है भाई, पुरुष अनामि तहां रहाई।
जो पहुँचा जानेगा वाही, कहन सुनन ते न्यारा है।।29।।
काया भेद किया निरुवारा, यह सब रचना पिंड मँझारा।
माया अविगत जाल पसारा, सो कारीगर भारा है।।30।।
आदि माया कीन्ही चतूराई, झूठी बाजी पिंड दिखाई।
अवगति रचना रची अँड माहीं, ताका प्रतिबिंब डारा है।।31।।
शब्द बिहंगम चाल हमारी, कहैं कबीर सतगुरु दई तारी।
खुले कपाट शब्द झनकारी, पिंड अंडके पार सो देश हमारा है।।32।।
(कबीर शब्दावली से लेख समाप्त)
( अब आगे अगले भाग में)
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मनाली में पर्यटकों के साथ अच्छा व्यवहार करे
टैक्सी युनियन मनाली, टैम्पू ट्रैवलर युनियन मनाली, ऑटो युनियन मनाली, जीप युनियन मनाली, बोल्वो बस युनियन मनाली, ए0टी0वी0 युनियन मनाली,कोट-बूट युनियन मनाली व व्यापार मण्डल युनियन मनाली के प्रधान व समस्त पदाधिकारियों के साथ बैठक की गई।
बैठक के दौरान उपस्थित सभी पदाधिकारियों के साथ मनाली में यातायात जाम व कानून व्यवस्था व अन्य मुद्दों पर चर्चा की गई कि मनाली एक विश्व प्रसिद्ध पर्यट�� स्थल है जहां प्रतिवर्ष देश-विदेश से लाखों पर्यटक घुमने आते है। सभी को निर्देश दिए गए कि पर्यटकों के साथ अच्छा व्यवहार करें तथा समस्त टैक्सी व टैम्पो चालकों को सूचित करें कि वह अपनी वर्दी पहने तथा नाम पट्टिका धारण करें।
इसके अतिरिक्त यह भी निर्देश दिए गए कि समस्त वाहन चालक अपने-अपने वाहन निर्धारित पार्किंग स्थल पर ही पार्क करें, जिससे जाम की समस्या पैदा न हो। इसके अतिरिक्त यह भी निर्देश दिए गए कि समस्त वाहन चालक मोटर वाहन अधिनियम में निहित सभी नियमों का सख्ती से पालन करें, ओवर टेक न करें, वाहन चलाते समय मोबाईल फोन का प्रयोग न करें तथा नशे का सेवन न करें। पुलिस को नियमों का पालने करवाने तथा कानून-व्यवस्था को कायम रखने में सहयोग करें ताकि एक सौहार्दपूर्ण माहौल बना रहें व एक अच्छा नागरिक होने की मिशाल पेश करें। सभी चालक समस्त पर्यटकों के साथ अच्छा व्यवहार करें ताकि मनाली की छवि को धुमिल न हों व सभी पर्यटक मनाली से एक अच्छा संदेश लेकर जाए।
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Har Ghar Tiranga :अभियानात सहभागी व्हा आणि सर्टिफिकेट, मिळवा, असे करा डाउनलोड
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Har Ghar Tiranga : राष्ट्रध्वजाशी देशवासीयांचे वैयक्तिक नाते प्रस्थापित करणे हा या मोहिमेचा उद्देश आहे. त्यामुळेच हर घर तिरंगा मोहीम सुरू करण्यात आली आहे . जिथे भारतीयांना १३ ते १५ ऑगस्ट दरम्यान राष्ट्रध्वज फडकवण्याची संधी दिली जाईल आणि त्यांना प्रमाणपत्र दिले जाईल.
Har Ghar Tiranga : राष्ट्रध्वजाशी देशवासीयांचे…
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#गहरीनजरगीता_में_
📖📖📖
।।शब्द।।
मन तू चलि रे सुख के सागर। जहां शब्द सिंध रत्नागर।।टेक।।
कोटि जन्म जुग भरमत हो गये, कुछ नहीं हाथि लग्या रे।
कूकर (कुत्ता) शुकर (सूअर) खर (गधा) भया बौरे, कौआ हंस बुगा रे।।1।।
कोटि जन्म जुग राजा किन्हा, मिटि न मन की आशा।
भिक्षुक होकर दर-दर हांढा, मिल्या न निरगुण रासा।।2।।
इन्द्र कुबेर ईश की पदवी, ब्रह्मा वरूण धर्मराया।
विष्णु नाथ के पुर कूं पहुँचा, बहुरि अपूठा आया।। 3।।
असंख जन्म जुग मरते होय गये, जीवित क्यौं न मरै रे।
द्वादश मधि महल मठ बौरे, बहुरि न देह धरै रे।।4।।
दोजिख भिसति सबै तैं दिखें, राज पाट के रसिया।
त्रिलोकी से त्रिपति नांहि, यौह मन भोगी खसिया।।5।।
सतगुरु मिलैं तो इच्छा मेटैं, पद मिलि पदह समाना।
चल हंसा उस देश पठाऊं, आदि अमर अस्थाना।।6।।
च्यारि मुक्ति जहां चंपी करि हैं, माया होय रही दासी।
दास गरीब अभै पद परसै, मिले राम अविनासी।।7।।
भावार्थ:- कृपया इस शब्द को ध्यान पूर्वक विचारें। इसमें आदरणीय गरीबदास जी महाराज कह रहे हैं कि हे मन! तू सुख के सागर सतलोक चल। इस काल (ब्रह्म) लोक में असंखों जन्म मरते-जन्मते हो गए। अभी तक कुछ हाथ नहीं आया। चैरासी लाख योनियों का कष्ट करोड़ों बार उठाया। कुकर (कुत्ता) सुकर (सुअर) खर (गधा) जैसी कष्टमई योनियों में तंग पाया। आगे कहा कि ब्रह्म (काल) साधना करके ऊँ जाप, तप, यज्ञ, हवन, दान आदि करके राजा बना। इन्द्र (स्वर्ग का राजा) बना और ब्रह्मा-विष्णु-शिव के उत्तम पद पर भी रहा। कुबेर (धन का देवता) बना, वरुण
(जल का देवता) भी बना और उत्तम लोक विष्णु जी के लोक में भी विष्णु (कृष्ण, राम आदि) की साधना करके कुछ समय पुण्य कर्मों के भोग को भोगकर वापिस जन्म-मरण, नरक के चक्र में गिर गया। यदि तत्वदर्शी संत सतगुरू मिल जाता तो काल लोक को असार तथा सत्यलोक को सर्व सुखदायी का ज्ञान करवाकर काल ब्रह्म के लोक की सर्व नाशवान वस्तुओं की इच्छा समाप्त करता। स्वर्ग का राजा यानि देवराज इन्द्र भी मरता है। फिर गधा बनता है तो पृथ्वी के राज को
प्राप्त करके भी राज भोगकर राजा गधा बनता है। इस प्रकार के ज्ञान से पूर्ण परमात्मा की भक्ति से साधक का मन काल ब्रह्म के लोक से हटकर परम अक्षर ब्रह्म यानि सतपुरूष में तथा उसके सनातन परम धाम की प्राप्ति की हृदय से इच्छा करता है। इस कारण से ‘‘जहाँ आशा तहाँ बासा होई, मन कर्म वचन सुमरियो सोई।’’
भावार्थ है कि साधक की आस्था जिस प्रभु तथा लोक को प्राप्त करने की होती है तो उसी को प्राप्त करता है। उसी लोक को प्राप्त करने की साधना करके उसी में निवास करता है। इसलिए उसी का स्मरण मन-कर्म-वचन से करना चाहिए। तत्वज्ञान से साधक की आस्था सतपुरूष (परमेश्वर) तथा उसके सतलोक को प्राप्त करने की होती है। जिस कारण से अमर लोक प्राप्त
होता है। फिर उस साधक की कभी मृत्यु नहीं होती। वह परम अक्षर ब्रह्म यानि अविनाशी राम कबीर मिल जाता है। ऐसी सच्चाई तत्वदर्शी संत बताता है। सत्यलोक में जो चार मुक्तियों का सुख है। वह सदा बना रहता है। काल ब्रह्म के लोक में एक दिन समाप्त होता है। साधक नरक में भी जाता है। अन्य प्राणियों के शरीरों में भी कष्ट भोगता है। सतलोक में सदा सुखी रहता है।
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Financetime.in भारत विश्व बैंक सुधारों के लिए G20 विशेषज्ञ समूह को प्रस्तावित कर सकता है: रिपोर्ट
विकास के रूप में विश्व बैंक के अध्यक्ष ने आज निर्मला सीतारमण के साथ बातचीत की।
बैंगलोर:
तीन सूत्रों ने रॉयटर्स को बताया कि भारत द्वारा विश्व बैंक में सुधारों की जांच करने और मध्यम और निम्न-आय वाले देशों में जलवायु वित्त संस्थान की उधार क्षमता बढ़ाने के लिए एक विशेषज्ञ G20 समूह की स्थापना का प्रस्ताव करने की संभावना है।
भारत के टेक हब बेंगलुरु के पास नंदी हिल्स समर रिसॉर्ट में जी20 की बैठक में इस…
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( #Muktibodh_part230 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part231
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 442-443
‘‘ज्ञानी (कबीर) वचन‘‘ चौपाई
अध्याय ‘‘स्वसमवेद बोध‘‘ पृष्ठ 121 :-
अरे काल परपंच पसारा।
तीनों युग जीवन दुख आधारा।।55
बीनती तोरी लीन मैं मानी।
मोकहं ठगे काल अभिमानी।।56
चौथा युग जब कलयुग आई।
तब हम अपना अंश पठाई।।57
काल फंद छूटै नर लोई।
सकल सृष्टि परवानिक (दीक्षित) होई।।58
घर-घर देखो बोध (ज्ञान) बिचारा (चर्चा)।
सत्यनाम सब ठोर उचारा।।59
पाँच हजार पाँच सौ पाँचा।
तब यह वचन होयगा साचा।।60
कलयुग बीत जाए जब ऐता।
सब जीव परम पुरूष पद चेता।।61
भावार्थ :- (वाणी सँख्या 55 से 61 तक) परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे काल! तूने विशाल प्रपंच रच रखा है। तीनों युगों (सतयुग, त्रेता, द्वापर) में जीवों को बहुत कष्ट देगा। जैसा तू कह रहा है। तूने मेरे से प्रार्थना की थी, वह मान ली। तूने मेरे साथ धोखा किया है, परतुं चौथा युग जब कलयुग आएगा, तब मैं अपना अंश यानि कृपा पात्र आत्मा भेजूँगा। हे काल! तेरे द्वारा बनाए सर्व फंद यानि अज्ञान आधार से गलत ज्ञान व साधना को सत्य शब्द तथा सत्य ज्ञान से समाप्त करेगा। उस समय पूरा विश्व प्रवानिक यानि उस मेरे संत से दीक्षा लेकर दीक्षित होगा। उस समय तक यानि जब तक कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच नहीं बीत जाता, सत्यनाम, मूल नाम (सार शब्द) तथा मूल ज्ञान (तत्त्वज्ञान) प्रकट नहीं
करना है। परंतु जब कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष पूरा हो जाएगा, तब घर-घर में मेरे अध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा हुआ करेगी और सत्यनाम, सार शब्द को सब उपदेशियों को प्रदान किया जाएगा। यह जो बात मैं कह रहा हूँ, ये मेरे वचन उस समय सत्य साबित होंगे, जब कलयुग के 5505 (पाँच हजार पाँच सौ पाँच) वर्ष पूरे हो जाएँगे। जब कलयुग इतने
वर्ष बीत जाएगा। तब सर्व मानव प्राणी परम पुरूष यानि सत्य पुरूष के पद अर्थात् उस परम पद के जानकार हो जाएँगे जिसके विषय में गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्त्वदर्शी संत के प्राप्त होने के पश्चात् परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए
जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में कभी नहीं आते। जिस परमेश्वर ने संसार रूपी वृक्ष का विस्तार किया है अर्थात् जिस परमेश्वर ने सृष्टि की रचना की है, उस परमेश्वर की भक्ति करो।
उपरोक्त वाणी का भावार्थ है कि उस समय उस परमेश्वर के पद (सत्यलोक) के विषय में सबको पूर्ण ज्ञान होगा।
स्वसमवेद बोध पृष्ठ 170 :-
अथ स्वसम वेद की स्फुटवार्ता-चौपाई
एक लाख और असि हजारा।
पीर पैगंबर और अवतारा।।62
सो सब आही निरंजन वंशा।
तन धरी-धरी करैं निज पिता प्रशंसा।।63
दश अवतार निरंजन के रे।
राम कृष्ण सब आहीं बडेरे।।64
इनसे बड़ा ज्योति निरंजन सोई।
यामें फेर बदल नहीं कोई।।65
भावार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि बाबा आदम से लेकर हजरत मुहम्मद तक कुल एक लाख अस्सी हजार (1,80,000) पैगंबर हुए हैं तथा दस अवतार जो हिन्दू मानते हैं, ये सब काल के भेजे आए हैं। इन सबने काल ब्रह्म की भक्ति का प्रचार किया है।
जो दस अवतार हैं, इन दस अवतारों में राम तथा कृष्ण प्रमुख हैं। ये सब काल (जो इनका पिता है) की महिमा बनाकर सर्व जीवों को भ्रमित करके काल साधना दृढ़ कर गए हैं। इस
सबका मुखिया ज्योति निरंजन काल (ब्रह्म) है।
कबीर सागर में स्वसमवेद बोध पृष्ठ 171(1515) :-
सत्य कबीर वचन
दोहे :- पाँच हजार अरू पाँच सौ पाँच जब कलयुग बीत जाय।
महापुरूष फरमान तब, जग तारन कूं आय।।66
हिन्दु तुर्क आदि सबै, जेते जीव जहान।
सत्य नाम की साख गही, पावैं पद निर्वान।।67
यथा सरितगण आप ही, मिलैं सिन्धु मैं धाय।
सत्य सुकृत के मध्य तिमि, सब ही पंथ समाय।।68
जब लग पूर्ण होय नहीं, ठीक का तिथि बार।
कपट-चातुरी तबहि लौं, स्वसम बेद निरधार।।69
सबही नारी-नर शुद्ध तब, जब ठीक का दिन आवंत।
कपट चातुरी छोडिके, शरण कबीर गहंत।।70
एक अनेक ह्नै गए, पुनः अनेक हों एक।
हंस चलै सतलोक सब, सत्यनाम की टेक।।71
घर घर बोध विचार हो, दुर्मति दूर बहाय।
कलयुग में सब एक होई, बरतें सहज सुभाय।।72
कहाँ उग्र कहाँ शुद्र हो, हरै सबकी भव पीर(पीड़)।।73
सो समान समदृष्टि है, समर्थ सत्य कबीर।।74
भावार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि हे धर्मदास! मैंने ज्योति निरंजन यानि
काल ब्रह्म से भी कहा था, अब आपको भी बता रहा हूँ। स्वसमबेद बोध की वाणी सँख्या 66 से 74 का सरलार्थ :- जिस समय कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष बीत जाएगा, तब एक महापुरूष विश्व को पार करने के लिए
आएगा। हिन्द��, मुसलमान आदि-आदि जितने भी पंथ तब तक बनेंगे और जितने जीव संसार में हैं, वे मानव शरीर प्राप्त करके उस महापुरूष से सत्यनाम लेकर सत्यनाम की शक्ति से
मोक्ष प्राप्त करेंगे। वह महापुरूष जो सत्य कबीर पंथ चलाएगा, उस (तेरहवें) पंथ में सब पंथ स्वतः ऐसे तीव्र गति से समा जाएंगे जैसे भिन्न-भिन्न नदियाँ अपने आप निर्बाध दौड़कर समुद्र में गिर जाती है। उनको कोई रोक नहीं पाता। ऐसे उस तेरहवें पंथ में सब पंथ शीघ्रता से मिलकर एक पंथ बन जाएगा। परंतु जब तक ठीक का समय नहीं आएगा यानि कलयुग
पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष पूरे नहीं करता, तब तक मैं जो यह ज्ञान स्वसमवेद में बोल रहा हूँ, आप लिख रहे हो, निराधार लगेगा। जिस समय वह निर्धारित समय आएगा। उस समय स्त्री-पुरूष उच्च विचारों तथा शुद्ध
आचरण के होकर कपट, व्यर्थ की चतुराई त्यागकर मेरी (कबीर जी की) शरण ग्रहण करेंगे।
परमात्मा से लाभ लेने के लिए एक ‘‘मानव‘‘ धर्म से अनेक पंथ (धार्मिक समुदाय) बन गए हैं, वे सब पुनः एक हो जाएंगे। सब हंस (निर्विकार भक्त) आत्माएँ सत्य नाम की शक्ति से
सतलोक चले जाएंगे। मेरे अध्यात्म ज्ञान की चर्चा घर-घर में होगी। जिस कारण से सबकी दुर्मति समाप्त हो जाएगी। कलयुग में फिर एक होकर सहज बर्ताव करेंगे यानि शांतिपूर्वक
जीवन जीएंगे। कहाँ उग्र अर्थात् चाहे डाकू, लुटेरा, कसाई हो, चाहे शुद्र, अन्य बुराई करने वाला नीच होगा। परमात्मा सत्य भक्ति करने वालों की भवपीर यानि सांसारिक कष्ट हरेगा
यानि दूर करेगा। सत्य साधना से सबकी भवपीर यानि सांसारिक कष्ट समाप्त हो जाएंगे और उस 13वें (तेरहवें) पंथ का प्रवर्तक सबको समान दृष्टि से देखेगा अर्थात् ऊँच-नीच में
भेदभाव नहीं करेगा। वह समर्थ सत्य कबीर ही होगा। (मम् सन्त मुझे जान मेरा ही स्वरूपम्)
प्रश्न :- वह तेरहवां पंथ कौन-सा है, उसका प्रवर्तक कौन है?
उत्तर :- वह तेरहवां पंथ ‘‘यथार्थ सत कबीर‘‘ पंथ है। उसके प्रवर्तक स्वयं कबीर परमेश्वर जी हैं। वर्तमान में उसका संचालक उनका गुलाम रामपाल दास पुत्र स्वामी रामदेवानंद जी महाराज है। (अध्यात्मिक दृष्टि से गुरू जी पिता माने जाते हैं जो आत्मा का पोषण करते हैं।)
प्रमाण :- वैसे तो संत धर्मदास जी की वंश परंपरा वाले महंतो से जुड़े श्रद्धालुओं ने अज्ञानतावश तेरहवां पंथ और संचालक धर्मदास की बिन्द (परिवार) की धारा वालों को सिद्ध
करने की कुचेष्टा की है। परंतु हाथी के वस्त्र को भैंसे पर डालकर कोई कहे कि देखो यह वस्त्र भैंसे का है। बुद्धिमान तो तुरंत समझ जाते हैं कि यह भैंसा का वस्त्र नहीं है। यह तो भैंसे से कई गुणा लंबे-चौड़े पशु का है। भले ही वे ये न बता सकें कि यह हाथी का है।
उदाहरण :- पवित्र कबीर सागर के अध्याय ‘‘कबीर चरित्र बोध‘‘ के पृष्ठ 1834-1835 पर लिखा है।
क्रमशः_______________
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थानिसंद्रा मेन रोड में अपार्टमेंट - कोइवोल्व ग्रुप द्वारा कोइवोल्व नॉर्दर्न स्टार
बंगलौर में थानिसांद्रा मेन रोड में लक्ज़री अपार्टमेंट्स गर्मी से बचने के लिए उत्तरी उच्च प्रदर्शन वाली कांच की खिड़कियों के साथ। निर्माण के बारे में विस्तार से जानने के लिए मान्यता टेक पार्क के पास विश्व स्तरीय अपार्टमेंट की विस्तृत मंजिल योजना देखें।
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