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#परमेश्वर को जानना
lavkusdasrajpt · 9 months
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#आध्यात्मिक_ज्ञान_चर्चा
गीता अध्याय 13 श्लोक 12-17- केवल पूर्ण परमेश्वर को जानना और पूजना चाहिए
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sujit-kumar · 1 year
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कबीर बड़ा या कृष्ण Part 104
‘‘शिशु कबीर देव द्वारा कुँवारी गाय का दूध पीना’’
बालक कबीर को दूध पिलाने की कोशिश नीमा ने की तो परमेश्वर ने मुख बन्द कर लिया। सर्व प्रयत्न करने पर भी नीमा तथा नीरू बालक को दूध पिलाने में असफल रहे। 25 दिन जब बालक को निराहार बीत गए तो माता-पिता अति चिन्तित हो गए। 24 दिन से नीमा तो रो-2 कर विलाप कर रही थी। सोच रही थी यह बच्चा कुछ भी नहीं खा रहा है। यह मरेगा, मेरे बेटे को किसी की नजर लगी है। 24 दिन से लगातार नजर उतारने की विधि भिन्न भिन्न-2 स्त्री-पुरूषों द्वारा बताई प्रयोग करके थक गई। कोई लाभ नहीं हुआ। आज पच्चीसवाँ दिन उदय हुआ। माता नीमा रात्रि भर जागती रही तथा रोती रही कि पता नहीं यह बच्चा कब मर जाएगा। मैं भी साथ ही फाँसी पर लटक जाऊँगी। मैं इस बच्चे के बिना जीवित नहीं रह सकती बालक कबीर का शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ था तथा ऐसे लग रहा था जैसे बच्चा प्रतिदिन एक किलो ग्राम (एक सेर) दूध पीता हो। परन्तु नीमा को डर था कि बिना कुछ खाए पीए यह बालक जीवित रह ही नहीं सकता। यह कभी भी मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। यह सोच कर फूट-2 कर रो रही थी। भगवान शंकर के साथ-साथ निराकार प्रभु की भी उपासना तथा उससे की गई प्रार्थना जब व्यर्थ रही तो अति व्याकुल होकर रोने लगी।
भगवान शिव, एक ब्राह्मण (ऋषि) का रूप बना कर नीरू की झोंपड़ी के सामने खड़े हुए तथा नीमा से रोने का कारण जानना चाहा। नीमा रोती रही हिचकियाँ लेती रही। सन्त रूप में खड़े भगवान शिव जी के अति आग्रह करने पर नीमा रोती-2 कहने लगी हे ब्राह्मण ! मेरे दुःख से परिचित होकर आप भी दुःखी हो जाओगे। फकीर वेशधारी शिव भगवान बोले हे माई! कहते है अपने मन का दुःख दूसरे के समक्ष कहने से मन हल्का हो जाता है। हो सकता है आप के कष्ट को निवारण करने की विधि भी प्राप्त हो जाए। आँखों में आँसू जिव्हा लड़खड़ाते हुए गहरे साँस लेते हुए नीमा ने बताया हे महात्मा जी! हम निःसन्तान थे। पच्चीस दिन पूर्व हम दोनों प्रतिदिन की तरह काशी में लहरतारा तालाब पर स्नान करने जा रहे थे। उस दिन ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी की सुबह थी। रास्ते में मैंने अपने इष्ट भगवान शंकर से पुत्र प्राप्ति की हृदय से प्रार्थना की थी मेरी पुकार सुनकर दीनदयाल भगवान शंकर जी ने उसी दिन एक बालक लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर हमें दिया। बच्चे को प्राप्त करके हमारे हर्ष का कोई ठिकाना नहीं रहा। यह हर्ष अधिक समय तक नहीं रहा। इस बच्चे ने दूध नहीं पीया। सर्व प्रयत्न करके हम थक चुके हैं। आज इस बच्चे को पच्चीसवां दिन है कुछ भी आहार नहीं किया है। यह बालक मरेगा। इसके साथ ही मैं आत्महत्या करूँगी। मैं इसकी मृत्यु की प्रतिक्षा कर रही हूँ। सर्व रात्रि बैठ कर तथा रो-2 व्यतीत की है। मैं भगवान शंकर से प्रार्थना कर रही हूँ कि हे भगवन्! इससे अच्छा तो यह बालक न देते। अब इस बच्चे में इतनी ममता हो गई है कि मैं इसके बिना जीवित नहीं रह सकूंगी। नीमा के मुख से सर्वकथा सुनकर साधु रूपधारी भगवान शंकर ने कहा। आप का बालक मुझे दिखाईए। नीमा ने बालक को पालने से उठाकर ऋषि के समक्ष प्रस्तुत किया। दोनों प्रभुओं की आपस में दृष्टि मिली। भगवान शंकर जी ने शिशु कबीर जी को अपने हाथों में ग्रहण किया तथा मस्तिष्क की रेखाऐं व हस्त रेखाऐं देख कर बोले नीमा! आप के बेटे की लम्बी आयु है यह मरने वाला नहीं है। देख कितना स्वस्थ है। कमल जैसा चेहरा खिला है। नीमा ने कहा हे विप्रवर! बनावटी सांत्वना से मुझे सन्तोष होने वाला नहीं है। बच्चा दूध पीएगा तो मुझे सुख की साँस आएगी। पच्चीस दिन के बालक का रूप धारण किए परमेश्वर कबीर जी ने भगवान शिव जी से कहा हे भगवन्! आप इन्हें कहो एक कुँवारी गाय लाऐं। आप उस कंवारी गाय पर अपना आशीर्वाद भरा हस्त रखना, वह दूध देना प्रारम्भ कर देगी। मैं उस कुँवारी गाय का दूध पीऊँगा। वह गाय आजीवन बिना ब्याए (अर्थात् कुँवारी रह कर ही) दूध दिया करेगी उस दूध से मेरी परवरिश होगी। परमेश्वर कबीर जी तथा भगवान शंकर (शिव) जी की सात बार चर्चा हुई।
शिवजी ने नीमा से कहा आप का पति कहाँ है? नीमा ने अपने पति को पुकारा वह भीगी आँखों से उपस्थित हुआ तथा ब्राह्मण को प्रणाम किया। ब्राह्मण ने कहा नीरू! आप एक कुँवारी गाय लाओ। वह दूध देवेगी। उस दूध को यह बालक पीएगा। नीरू कुँवारी गाय ले आया तथा साथ में कुम्हार के घर से एक ताजा छोटा घड़ा (चार कि.ग्रा. क्षमता का मिट्टी का पात्र) भी ले आया। परमेश्वर कबीर जी के आदेशानुसार विप्ररूपधारी शिव जी ने उस कंवारी गाय की पीठ पर हाथ मारा जैसे थपकी लगाते हैं। गऊ माता के थन लम्बे-2 हो गए तथा थनों से दूध की धार बह चली। नीरू को पहले ही वह पात्र थनों के नीचे रखने का आदेश दे रखा था। दूध का पात्र भरते ही थनों से दूध निकलना बन्द हो गया। वह दूध शिशु रूपधारी कबीर परमेश्वर जी ने पीया। नीरू नीमा ने ब्राह्मण रूपधारी भगवान शिव के चरण लिए तथा कहा आप तो साक्षात् भगवान शिव के रूप हो। आपको भगवान शिव ने ही हमारी पुकार सुनकर भेजा है। हम निर्धन व्यक्ति आपको क्या दक्षिणा दे सकते हैं? हे विप्र! 24 दिनों से हमने कोई कपड़ा भी नहीं बुना है। विप्र रूपधारी भगवान शंकर बोले! साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहीं। जो है भूखा धन का, वह तो साधु नाहीं। यह कहकर विप्र रूपधारी शिवजी ने वहाँ से प्रस्थान किया।
विशेष वर्णन अध्याय ’’ज्ञान सागर‘‘ के पृष्ठ 74 तथा ’’स्वसमबेद बोध‘‘ के पृष्ठ 134 पर भी है जो इस प्रकार है:-
’’कबीर सागर के ज्ञान सागर के पृष्ठ 74 पर‘‘
सुत काशी को ले चले, लोग देखन तहाँ आय। अन्न-पानी भक्ष नहीं, जुलहा शोक जनाय।।
तब जुलहा मन कीन तिवाना, रामानन्द सो कहा उत्पाना।। मैं सुत पायो बड़ा गुणवन्ता। कारण कौण भखै नहीं सन्ता।
रामानन्द ध्यान तब धारा। जुलहा से तब बचन उच्चारा।।।
पूर्व जन्म तैं ब्राह्मण जाती। हरि सेवा किन्ही भलि भांति।।
कुछ सेवा तुम हरि की चुका। तातैं भयों जुलहा का रूपा।।
प्रति प्रभु कह तोरी मान लीन्हा। तातें उद्यान में सुत तोंह दिन्हा।।
नीरू वचन
हे प्रभु जस किन्हो तस पायो। आरत हो तव दर्शन आयो।।
सो कहिए उपाय गुसाई। बालक क्षुदावन्त कुछ खाई।।
रामानन्द वचन
रामानन्द अस युक्ति विचारा। तव सुत कोई ज्ञानी अवतारा।।
बछिया जाही बैल नहीं लागा। सो लाई ठाढ़ करो तेही आगै।।
साखी = दूध चलै तेहि थन तें, दूध्हि धरो छिपाई।
क्षूदावन्त जब होवै, तबहि दियो पिलाई।।
चैपाई
जुलहा एक बछिया लै आवा। चल्यो दूत (दूध) कोई मर्म न पावा।।
चल्यो दूध, जुलहा हरषाना। राखो छिपाई काहु नहीं जाना।।।
पीवत दूध बाल कबीरा। खेलत संतों संग जो मत धीरा।।
ज्ञान सागर पृष्ठ 73 पर चैपाई
’’भगवान शंकर तथा कबीर बालक की चर्चा’’
{नोटः- यह प्रकरण अधूरा लिखा है। फिर भी समझने के लिए मेरे ऊपर कृपा है परमेश्वर कबीर जी की। पहले यह वाणी पढ़ें जो ज्ञान सागर के पृष्ठ 73 पर लिखी है, फिर अन्त में सारज्ञान यह दास (रामपाल दास) बताएगा।}
चैपाई
घर नहीं रहो पुरूष (नीरू) और नारी (नीमा)। मैं शिव सों अस वचन उचारी।।
आन के बार बदत हो योग। आपन नार करत हो भोग।।
नोटः- जो वाणी कोष्ठक { } में लिखी हैं, वे वाणी ज्ञान सागर में नहीं लिखी गई हैं जो पुरातन कबीर ग्रन्थ से ली हैं।
{ऐसा भ्रम जाल फलाया। परम पुरूष का नाम मिटाया।}
काशी मरे तो जन्म न होई। {स्वर्ग में बास तास का सोई}
{ मगहर मरे सो गधा जन्म पावा, काशी मरे तो मोक्ष करावा}
और पुन तुम सब जग ठग राखा। काशी मरे हो अमर तुम भाखा
जब शंकर होय तव काला, {ब्रह्मण्ड इक्कीस हो बेहाला}
{तुम मरो और जन्म उठाओ, ओरेन को कैसे अमर कराओ}
{सुनों शंकर एक बात हमारी, एक मंगाओ धेनु कंवारी}
{साथ कोरा घट मंगवाओ। बछिया के पीठ हाथ फिराओ}
{दूध चलैगा थनतै भाई, रूक जाएगा बर्तन भर जाई}
{सुनो बात देवी के पूता। हम आए जग जगावन सूता}
{पूर्ण पुरूष का ज्ञान बताऊँ। दिव्य मन्त्रा दे अमर लोक पहुँचाऊँ}
{तब तक नीरू जुलहा आया। रामानन्द ने जो समझाया}
{रामानन्द की बात लागी खारी। दूध देवेगी गाय कंवारी}
{जब शंकर पंडित रूप में बोले, कंवारी धनु लाओ तौले}
{साथ कोरा घड़ा भी लाना, तास में धेनु दूधा भराना}
{तब जुलहा बछिया अरू बर्तन लाया, शंकर गाय पीठ हाथ लगाया}
{दूध दिया बछिया कंवारी। पीया कबीर बालक लीला धारी}
{नीरू नीमा बहुते हर्षाई। पंडित शिव की स्तुति गाई}
{कह शंकर यह बालक नाही। इनकी महिमा कही न जाई}
{मस्तक रेख देख मैं बोलूं। इनकी सम तुल काहे को तोलूं}
{ऐस नछत्र देखा नाहीं, घूम लिया मैं सब ठाहीं।}
{इतना कहा तब शंकर देवा, कबीर कहे बस कर भेवा}
{मेरा मर्म न जाने कोई। चाहे ज्योति निरंजन होई}
{हम है अमर पुरूष अवतारा, भवसैं जीव ऊतारूं पारा}
{इतना सुन चले शंकर देवा, शिश चरण धर की नीरू नीमा सेवा}
हे स्वामी मम भिक्षा लीजै, सब अपराध क्षमा (हमरे) किजै
{कह शंकर हम नहीं पंडित भिखारी, हम है शंकर त्रिपुरारी।}
{साधु संत को भोजन कराना, तुमरे घर आए रहमाना}
{ज्ञान सुन शंकर लजा आई, अद्भुत ज्ञान सुन सिर चक्राई।}
{ऐसा निर्मल ज्ञान अनोखा, सचमुच हमार है नहीं मोखा}
कबीर सागर अध्याय ‘‘स्वसम वेद बोध‘‘ पृष्ठ 132 से 134 तक परमेश्वर कबीर जी की प्रकट होने वाली वाणी है, परंतु इसमें भी कुछ गड़बड़ कर रखी है। क��ा कि जुलाहा नीरू अपनी पत्नी का गौना (यानि विवाह के बाद प्रथम बार अपनी पत्नी को उसके घर से लाना को गौना अर्थात् मुकलावा कहते हैं।) यह गलत है। जिस समय परमात्मा कबीर जी नीरू को मिले, उस समय उनकी आयु लगभग 50 वर्ष थी। विचार करें गौने से आते समय कोई बालक मिल जाए तो कोई अपने घर नहीं रखता। वह पहले गाँव तथा सरकार को बताता है। फिर उसको किसी निःसंतान को दिया जाता है यदि कोई लेना चाहे तो। नहीं तो राजा उसको बाल ग्रह में रखता है या अनाथालय में छोड़ते हैं। नीमा ने तो बच्चे को छोड़ना ही नहीं चाहा था। फिर भी जो सच्चाई वह है ही, हमने परमात्मा पाना है। उसको कैसे पाया जाता है, वह विधि सत्य है तो मोक्ष सम्भव है, ज्ञान इसलिए आवश्यक है कि विश्वास बने कि परमात्मा कौन है, कहाँ प्रमाण है? वह चेष्टा की जा रही है। अब केवल ’’बालक कबीर जी ने कंवारी गाय का दूध पीया था, वे वाणी लिखता हूँ’’।
स्वसम वेद बोध पृष्ठ 134 से
पंडित निज निज भौन सिधारा। बिन भोजन बीते बहु बारा (दिन)।।
बालक रूप तासु (नीरू) ग्रह रहेता। खान पान नाहीं कुछ गहते।
जोलाहा तब मन में दुःख पाई। भोजन करो कबीर गोसांई।।
जोलाहा जोलाही दुखित निहारी। तब हम तिन तें बचन उचारी।।
कोरी (कंवारी) एक बछिया ले आवो। कोरा भाण्डा एक मंगाओ।।
तत छन जोलाहा चलि जाई। गऊ की बछिया कोरी (कंवारी) ल्याई।।
कोरा भाण्डा एक गहाई (ले आई)। भांडा बछिया शिघ्र (दोनों) आई।।
दोऊ कबीर के समुख आना। बछिया दिशा दृष्टि निज ताना।।
बछिया हेठ सो भाण्डा धरेऊ। ताके थनहि दूधते भरेऊ।
दूध हमारे आगे धरही, यहि विधि खान-पान नित करही।।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
भावार्थ - पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
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indrabalakhanna · 26 days
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सनातनी पूजा के पतन की कहानी | Official Trailer 4 | 30th August 2024| Tod...
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*👑परमेश्वर कबीर जी पूर्ण समर्थ हैं! जो अकाल मृत्यु को भी टाल सकते हैं! जिसका प्रमाण सामवेद मंत्र संख्या 822, ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 2 में है! जिसमें स्पष्ट लिखा है कि परमेश्वर कबीर जी मृत्यु प्राप्त साधक को पुनः जीवित कर उसकी आयु भी बढ़ा सकते हैं!
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🙏मानव जन्म दुर्लभ और अनमोल है! मोक्ष के लिए मिला है!आप सभी जी से प्रार्थना है!🙏इस पवित्र सत्संग को आदि से अंत तक विशेष श्रद्धा के साथ सुनें!
⏩सभी धर्मों में जो भी प्रमाणित धर्म ग्रंथ हैं_ हमें उन्हें विस्तार से जानना चाहिए!
जिससे हम प्रमाणित सत्य हो जानें!
और जानें कि सृष्टि का वास्तविक रचयिता + हम सब आत्माओं का वास्तविक स्वामी समर्थ सुख सागर कौन है?+कैसे मिलेगा?
पूर्ण संत और पूर्ण सतगुरु की पहचान भी हमें हमारे शास्त्रों से ही होगी!
वह तत्वदर्शी संत कौन है?
जिसका 📙श्रीमद् भगवत गीता में उल्लेख किया गया है! जानने के लिए प्रति दिन अवश्य देखें साधना 📺 चैनल 7:30p.m.संत रामपाल जी महाराज🙏
🙏संत रामपाल जी महाराज इस पृथ्वी पर वर्तमान में एकमात्र पूर्ण संत+ पूर्ण सतगुरु हैं!
पूर्ण ब्रह्म कबीर अवतार हैं!
लेकिन इस सत्य को आप तभी जान पाएंगे_जब आप जी संत रामपाल जी महाराज जी के लगातार सत्संगों का सेवन करते रहेंगे!
🙏सत साहेब जी🙏 जय बंदी छोड़ जी की🙏
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mahadeosposts · 2 months
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#पूर्ण_परमात्मा_का_क्या_नाम_है।
📚अथर्ववेद📚
पूर्ण परमात्मा का नाम सरकारी दस्तावेज (वेदों) में कविर्देव है, परन्तु पृथ्वी पर अपनी-अपनी मातृ भाषा में कबीर, कबिर, कबीरा, कबीरन् आदि नामों से जाना जाता है।
अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक न. 1, मन्त्र नं. 7 (पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा भाषा भाष्य) :-
योऽथर्वाणं पित्तरं देवबन्धुं बृहस्पतिं नमसाव च गच्छात्।
त्वं विश्वेषां जनिता यथासः कविर्देवो न दभायत् स्वधावान् ।।7।।
यः - अथर्वाणम् - पित्तरम् - देवबन्धुम् - बृहस्पतिम् - नमसा - अव - च - गच्छात् - त्वम् - विश्वेषाम् - जनिता - यथा - सः - कविर्देवः - न - दभायत् - स्वधावान्
अनुवाद:- (यः) जो (अथर्वाणम्) अचल अर्थात् अविनाशी (पित्तरम्) जगत पिता (देवबन्धुम्) भक्तों का वास्तविक साथी अर्थात् आत्मा का आधार (बृहस्पतिम्) सबसे बड़ा स्वामी ज्ञान दाता जगतगुरु (च) तथा (नमसा) विनम्र पुजारी अर्थात् विधिवत् साधक को (अव) सुरक्षा के साथ (गच्छात्) जो सतलोक जा चुके हैं उनको सतलोक ले जाने वाला (विश्वेषाम्) सर्व ब्रह्मण्डों को (जनिता) रचने वाला (न दभायत्) काल की तरह धोखा न देने वाले (स्वधावान्) स्वभाव अर्थात् गुणों वाला (यथा) ज्यों का त्यों अर्थात् वैसा ही (सः) वह (त्वम्) आप (कविर्देवः कविर्/देवः) कबीर परमेश्वर अर्थात् कविर्देव है।
भावार्थ:- जिस परमेश्वर के विषय में कहा जाता है -
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धु च सखा त्वमेव, त्वमेव विद्या च द्र��िणम्, त्वमेव सर्वम् मम् देव देव।।
वह जो अविनाशी सर्व का माता पिता तथा भाई व सखा व जगत गुरु रूप में सर्व को सत्य भक्ति प्रदान करके सतलोक ले जाने वाला, काल की तरह धोखा न देने वाला, सर्व ब्रह्मण्डों की रचना करने वाला कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है।
इस मंत्र में यह भी स्पष्ट कर दिया कि उस परमेश्वर का नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है, जिसने सर्व रचना की है।
निष्कर्ष: इस पूरे लेख का निष्कर्ष इस प्रकार है: -
पवित्र चारों वेद भगवान का संविधान हैं।
वेदों में पूर्ण परमेश्वर के बारे में पूरी जानकारी है, लेकिन पूर्ण परमेश्वर को प्राप्त करने के लिए पूजा की सही विधि क्या है, या ह��� कैसे पूर्ण मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं इसका उल्लेख पवित्र वेदों में नहीं किया गया है।
यदि आप जानना चाहते हैं कि पूर्ण परमात्मा तथा पूर्ण मोक्ष कैसे प्राप्त कर सकते हैं, तो आपको पूर्ण संत की शरण लेनी होगी। इस समय पूरे विश्व पूर्ण संत जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं। उनसे नाम उपदेश प्राप्त कर अपना कल्याण कराएं।
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ratre1 · 2 months
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart57 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart58
"प्रभु कबीर जी द्वारा श्राद्ध भ्रम खण्डन"
एक समय काशी नगर (बनारस) में गंगा दरिया के घाट पर कुछ पंडित जी श्राद्धों के दिनों में अपने पित्तरों को जल दान करने के उद्देश्य से गंगा के जल का लोटा भरकर पटरी पर खड़े होकर सुबह के समय सूर्य की ओर मुख करके पृथ्वी पर लोटे वाला जल गिरा रहे थे। परमात्मा कबीर जी ने यह सब देखा तो जानना चाहा कि आप यह किस उद्देश्य से कर रहे हैं? पंडितों ने बताया कि हम अपने पूर्वजों को जो पित्तर बनकर स्वर्ग में निवास कर रहे हैं, जल दान कर रहे हैं। यह जल हमारे पित्तरों को प्राप्त हो जाएगा। यह सुनकर परमेश्वर कबीर जी उन अंध श्रद्धा भक्ति करने वालों का अंधविश्वास समाप्त करने के लिए उसी गंगा दरिया में घुटनों पानी में खड़ा होकर दोनों हाथों से गंगा दरिया का जल सूर्य की ओर पटरी पर शीघ्र शीघ्र फेंकने लगे। उनको ऐसा करते देखकर सैंकड़ों पंडित तथा सैंकड़ों नागरिक इक‌ट्ठे हो गए। पंडितों ने पूछा कि हे कबीर जी! आप यह कौन-सी कर्मकाण्ड की क्रिया कर रहे हो? इससे क्या लाभ होगा? यह तो कर्मकाण्ड में लिखी ही नहीं है। कबीर जी ने उत्तर दिया कि यहाँ से एक मील (1½ कि.मी.) दूर मेरी कुटी के आगे मैंने एक बगीची लगा रखी है। उसकी सिंचाई के लिए क्रिया कर रहा हूँ। यह जल मेरी बगीची की सिंचाई कर रहा है। यह सुनकर सर्व पंडित हँसने लगे और बोले कि यह ���भी संभव नहीं हो सकता। एक मील दूर यह जल कैसे जाएगा? यह तो यहीं रेत में समा गया है। कबीर जी ने कहा कि यदि आपके द्वारा गिराया जल करोड़ों मील दूर स्वर्ग में जा सकता है तो मेरे द्वारा गिराए जल को एक मील जाने पर कौन-सी आश्चर्य की बात है? यह बात सुनकर पंडित जी समझ गए कि हमारी क्रियाएँ व्यर्थ हैं। कबीर जी ने एक घण्टा बाहर पटरी पर खड़े होकर कर्मकाण्ड यानि श्राद्ध व अन्य क्रियाओं पर सटीक तर्क किया। कहा कि आप एक ओर तो कह रहे हो कि आपके पित्तर स्वर्ग में हैं। दूसरी ओर कह रहे हो, उनको पीने का पानी नहीं मिल रहा। वे वहाँ प्यासे हैं। उनको सूर्य को अर्ध देकर जल पार्सल करते हो। यदि स्वर्ग में पीने के पानी का ही अभाव है तो उसे स्वर्ग नहीं कह सकते। वह तो रेगिस्तान होगा।
वास्तव में वे पित्तरगण यमराज के आधीन यमलोक रूपी कारागार में अपराधी बनाकर डाले जाते हैं। वहाँ पर जो निर्धारित आहार है, वह सबको दिया जाता है। जब पृथ्वी पर बनी कारागार में कोई भी कैदी खाने बिना नहीं रहता। सबको खाना-पानी मिलता है तो यमलोक वाली कारागार जो निरंजन काल राजा ने बनाई है, उसमें भी भोजन-पानी का अभाव नहीं है। कुछ पित्तरगण पृथ्वी पर विचरण करने के लिए यमराज से आज्ञा लेकर पृथ्वी पर पैरोल पर आते हैं। वे जीभ के चटोरे होते हैं। उनको कारागार वाला सामान्य भोजन अच्छा नहीं लगता। वे भी मानव जीवन में इसी भ्रम में अंध भक्ति करते थे कि श्राद्धों में एक दिन के श्राद्ध कर्म से पित्तरगण एक वर्ष के लिए तृप्त हो जाते हैं। उसी आधार से रूची ऋषि के चारों पूर्वज पित्तरों ने पैरोल पर आकर काल प्रेरणा से रूची ऋषि को भ्रमित करके वेदों अनुसार शास्त्रोक्त साधना छुड़वाकर विवाह कराकर श्रद्ध आदि शास्त्रविरूद्ध कर्मकाण्ड के लिए प्रेरित किया। उस भले ब्राह्मण को भी पित्तर बनाकर छोडा। पृथ्वी पर आकर पित्तर रूपी भूत किसी व्यक्ति (स्त्री-पुरूष) में प्रवेश करके भोजन का आनंद लेते हैं। अन्य के शरीर में प्रवेश करके भोजन खाते हैं। भोजन की सूक्ष्म वासना से उनका सूक्ष्म शरीर तृप्त होता है। लेकिन एक वर्ष के लिए नहीं। यदि कोई पिता-दादा, दादी, माता आदि-आदि किसी पशु के शरीर को प्राप्त हैं तो उसको कैसे तृप्ति होगी? उसको दस-पंद्रह किलोग्राम चारा खाने को चाहिए। कोई श्राद्ध करने वाला गुरु-पुरोहित भूसा खाता देखा है। आवश्यक नहीं है कि सबके माता-पिता, दादा-दादी आदि-आदि पित्तर बने हों। कुछ के पशु-पक्षी आदि अन्य योनियों को भी प्राप्त होते हैं। परंतु श्राद्ध सबके करवाए जाते हैं। इसे कहते हैं शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण यानि शास्त्र विरूद्ध भक्ति।
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seedharam · 2 months
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#गुरू_के_लिये_ही_दंडवत_प्रणाम का विंधान क्यों हैं, परमेश्वर के संविधान में...
सवाल :- लोग यह सवाल करते हैं कि आप अपने गुरू को प्रणाम करते हो इस पर हमें कोई आपत्ती नही हैं लेकिन आप अपने जन्म दाता माता पिता को प्रणाम नहीं करते, उनके चरण नहीं छुते,इस पर हमें घोर आपत्ति हैं ? यह बात हमारे समझ से बाहर हैं ।
कहने का तात्पर्य यह हैं कि...
गुरू को ही हम दंडवत प्रणाम क्यों करें ? क्या हम अपने माता पिता को दंडवत प्रणाम नहीं कर सकते हैं ? जबकि माता पिता हमारा प्रथम गुरू हैं।
जवाब :-- इसमें कोई संशय नहीं हैं कि माता पिता हमारा प्रथम गुरू हैं लेकिन वो केवल #प्रथम_गुरू हैं, अंतिम गुरू अथवा सर्व श्रेष्ठ अथवा सतगुरू नहीं हैं,माता पिता हमें काल जाल से मुक्त नहीं करा सकते हैं, भवसागर से पार कराने में वह समरथ नहीं हैं, केवल सच्चा सतगुरू ही भवसागर से हमें पार लगा सकता हैं। अब रही बात हमारे माता पिता की तो पुत्र होने के नाते
माता पिता की आजीवन हमें सेवा करनी हैं और दरअसल यह सेवा ही उनकी पूजा हैं ।
आइये जानते हैं कि प्रमाण के तौर पर हमारे सतग्रंथों में क्या बताया गया हैं ?
गीता ज्ञान दाता प्रभू (21 ब्रम्हांड के स्वामी) #ब्रम्ह अर्थात् काल निरंजन पवित्र गीता जी के ज्ञान देते हुए अर्जुन को कहता हैं कि हें पार्थ ! यदि तुम्हें मेरी शरण में रहना हैं तो मुझे सिर्फ नमस्कार करो (मेरे चरण छुने की आवश्यकता नहीं हैं) लेकिन तुम्हें #पारब्रम्ह_परमेश्वर जो कि मेरा भी ईष्टदेव हैं, उनकी भक्ति करनी हैं और पुर्ण मोक्ष को प्राप्त करना हैं तो उसकी अध्यात्मिक नॉलेज मेरे पास नहीं हैं,उस यथार्थ अध्यात्मिक नॉलेज अर्थात् #तत्वज्ञान को प्राप्त करने के लिए जिसे जानने के बाद मनुष्य के लिए और कुछ जानना शेष नहीं रह जाता हैं,उस तत्वज्ञान को प्राप्त करने के लिए #तत्वदर्शी_सन्त अर्थात् सच्चे सद्गुरू की तलाश करो और मिल जाए तो उन्हें गुरू धारण करो और #उसे_दण्डवत_प्रणाम_करो, फिर वह तत्वदर्शी सन्त तुम्हें परम् पुरूष #रियल_गौड को प्राप्त कराने वाले तत्वज्ञान का उपदेश करेंगे।
#सुक्ष्मवेद में बताया हैं कि...
गुरू को कीजे #दंडवत, कोटि कोटि प्रणाम *
कीट ना जाने भृंग ज्यों,यों गुरू करले आप समान **
गुरू को गोविंद कर जानिये,रहिये शब्द समाय *
मिले तो #दंडवत बंदगी,नहीं तो पल पल ध्यान लगाय **
#दंडवतम् गोविंद गुरू,बंदौ अविजन सोय *
पहले भये प्रणाम तिन्ह,नमो जो आगे होय **
(गोविंद गुरू = भगवान तुल्य गुरू को मैं सबसे पहले प्रणाम करता हूं)
कबीर,गुरू बिन माला फेरते,गुरू बिन देते दान।
गुरू बिन दोनों निष्फल हैं, पूछो वेद पुराण।।
अर्थात् बिना सतगुरू धारण किये किये जाने वाले भक्ति और दान दोनों ब्यर्थ हैं
राम कृष्ण से कौन बड़ा,उन्हुं तो गुरू कीन्ह *
तीन लोक के वै धनी, गुरू आगे आधीन्ह **
राम कृष्ण से कौन बड़ा हैं ?
अर्थात् राम कृष्ण से इन तीनों लोकों में कोई भी बड़ा नहीं हैं ।
#निवेदन :- अपने देव दूर्लभ अनमोल मानव जीवन (सुकृत देह) को सफल करने के लिए विजिट करें
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jyotis-things · 3 months
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart27 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart28
"आदि सनातन यानि मानव धर्म की पूजा व साधना"
प्रश्न 20:- शास्त्रों में कौन-से भक्ति कर्म (कर्तव्य) करने योग्य तथा कौन-से कर्म (अकर्तव्य) न करने योग्य हैं?
उत्तर :- श्रीमद्भगवत गीता में गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में गीता ज्ञान देने वाले प्रभु ने अपनी भक्ति/पूजा का केवल एक अक्षर ॐ (ओम्) स्मरण करने का बताया है। इसके अतिरिक्त अन्य नाम (अकर्तव्य) न जाप करने वाले हैं।
गीता अध्याय 3 श्लोक 10-15 में यज्ञ करना (कर्तव्य करने ), योग्य भक्ति कर्म कहा है। उनमें (परम अक्षर ब्रह्म) अविनाशी परमात्मा को ईष्ट रूप में प्रतिष्ठित करने को कहा है।
> यज्ञ पाँच प्रकार की हैं:- 1. धर्म यज्ञ 2. ध्यान यज्ञ 3. हवन यज्ञ 4. प्रणाम यज्ञ 5. ज्ञान यज्ञ ।
इनको करने की विधि तत्त्वदर्शी संत बताता है। यह प्रमाण गीता अध्याय 4 श्लोक 32-33-34 में भी है।
गीता अध्याय 4 श्लोक 32 : सच्चिदानंद घन ब्रह्म अपने मुख कमल से बोली वाणी में तत्त्वज्ञान बताता है। उससे पूर्ण मोक्ष होता है। उसको जानकर तू कर्म बंधन से सर्वथा मुक्त हो जाएगा। (गीता अध्याय 4 श्लोक 32)
गीता अध्याय 4 श्लोक 33 : हे परंतप अर्जुन! द्रव्यमय (धन से खर्च करके की जाने वाली) यज्ञ से ज्ञान यज्ञ यानि तत्त्वदर्शी संत का सत्संग सुनना अधिक श्रेष्ठ है। क्योंकि तत्त्वदर्शी संत धर्म-कर्म व जाप आदि करने की शास्त्रोक्त विधि बताता है। जैसे बिना ज्ञान के कर्ण (छठा पांडव) ने केवल सोना (Gold) ही दान किया। उससे उसको स्वर्ग में सोने (Gold) के पर्वत पर छोड़ दिया। उसे भूख लगी तो भोजन माँगा। उसे बताया गया कि आपने अन्न दान (धर्म यज्ञ) नहीं किया। केवल सोना दान किया। इसलिए भोजन नहीं मिलेगा। यदि तत्त्वदर्शी संत मिला होता तो कर्ण पाँचों यज्ञ करके पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता। इसलिए गीता अध्याय 4 श्लोक 33 में कहा है कि द्रव्यमय यज्ञ से ज्ञान यज्ञ श्रेष्ठ है यानि (ज्ञान यज्ञ) तत्त्वदर्शी संत का ज्ञान सुनने से पता चलता है कि शास्त्रविधि अनुसार कौन से भक्ति कर्म हैं?
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि उस तत्त्वज्ञान को जो सच्चिदानंद घन परमात्मा अपने मुख से वाणी बोलकर बताता है, उस वाणी में लिखा है। उसको तत्त्वदर्शी संतों के पास जाकर समझ। उनको भली-भांति दण्डवत् प्रणाम करने से उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्त्व को जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे।
वह तत्त्वज्ञान मेरे (लेखक-रामपाल दास के) पास है जो सूक्ष्मवेद (स्वसमवेद) में स्वयं सच्चिदानंद घन ब्रह्म कबीर जी ने अपने मुख कमल से बोली वाणी यानि कबीर वाणी में बोलकर बताया है जो श्री धर्मदास जी (बांधवगढ़ वाले) ने लिखा है। फिर परमेश्वर कबीर जी ने वही ज्ञान अपनी प्रिय आत्मा संत गरीबदास जी को बताया था तथा अपना सत्यलोक दिखाया था। फिर संत गरीबदास जी ने आँखों देखी महिमा कबीर जी की बताई है। सूक्ष्मवेद में सम्पूर्ण आध्यात्म ज्ञान है। चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) का ज्ञान सूक्ष्मवेद से लिया गया है। परंतु अधिक ज्ञान छोड़ा गया है। उसकी पूर्ति करने के लिए परमेश्वर स्वयं पृथ्वी पर आए थे। सम्पूर्ण आध��यात्म ज्ञान बताया था।
* गूढ रहस्य श्रीमद्भगवत गीता का :- हे भद्रपुरूष! हिन्दू धर्म के धर्मगुरूओं को वेदों व श्रीमद्भगवत गीता का क-ख का भी ज्ञान नहीं है। न ऋषियों, महर्षियों को ज्ञान था। सर्व धर्मों के धर्म ग्रंथों का ज्ञान मेरे गुरूदेव स्वामी रामदेवानंद जी महाराज जी के आशीर्वाद से मुझे है। गुरूदेव जी की कृपा से गीता के गूढ़ रहस्यों को ठीक से समझा है। मेरे को मूल ज्ञान (तत्त्वज्ञान) प्राप्त हुआ है जिसे सूक्ष्मवेद भी कहा है। जिसके कारण सर्व धर्म शास्त्रों को यथारूप में जानना सरल हो गया है। हिन्दू धर्म गुरूओं को तत्त्वज्ञान नहीं था। इसलिए अर्थों के अनर्थ कर रखे हैं।
प्रमाण देता हूँ, ध्यान व धीरज के साथ सुन व देख :-
गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में कहा है इस अनुवाद में कई शब्दों के अर्थ गलत किए हैं। ब्रह्मणः का अर्थ वेद की तथा मुखे का अर्थ वाणी में किया है जो गलत है। गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में भी "ब्रह्मणः" शब्द है। वहाँ इसी अनुवादक ने अर्थ ठीक किया है। ब्रह्मणः का अर्थ सच्चिदानंद घन ब्रह्म किया है। यदि गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में ब्रह्मणः का अर्थ सच्चिदानंद घन ब्रह्म किया जाए तो सही सरलार्थ हो जाता है जो इस प्रकार बनता है :-
परमेश्वर सबसे ऊपर के लोक में निवास करता है। वहाँ से चलकर पृथ्वी पर आता है। यथार्थ अध्यात्म ज्ञान (तत्त्वज्ञान) अपने मुख कमल से बोली वाणी में बताता है। (एवम्) इस प्रकार (बहुविधाः) बहुत प्रकार के (यज्ञाः) धार्मिक अनुष्ठानों यानि यज्ञों (पूजाओं) का ज्ञान (ब्रह्मणः) सच्चिदानंद घन ब्रह्म यानि परम अक्षर ब्रह्म के (मुखे) मुख से उच्चारित वाणी में यानि तत्त्वज्ञान में विस्तार से कहा है। उन सबको कार्य करते-करते किया जा सकता है, ऐसा जान। उन सब क्रियाओं को जानकर तू सर्वथा बंधन से मुक्त हो जाएगा यानि उस तत्त्वज्ञान के आधार से साधना पूजा करके पूर्ण मोक्ष (कभी जन्म-मरण नहीं हो, ऐसा मोक्ष) प्राप्त करेगा।
विशेष :- इन्ही अनुवादकों ने गीता अध्याय 16 श्लोक 1 में "यज्ञ" का अर्थ प्रसंगवश धार्मिक पूजा व धार्मिक अनुष्ठान किया है। इस गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में भी "यज्ञाः" का अर्थ पूजाओं किया जाए तो सरलार्थ सही हो जाता है। अनुवादक ने "यज्ञाः" का अर्थ "यज्ञ" किया है। यहाँ धार्मिक पूजाओं व अनुष्ठानों करना चाहिए।
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 का इन्हीं अनुवादकों ने अनुवाद ठीक किया है जिसमें कहा है कि "उस तत्त्वज्ञान को तू तत्त्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ", उनको भली-भांति दण्डवत् प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्त्व को भली-भांति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे। (गीता अध्याय 4 श्लोक 34)
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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pradeepdasblog · 7 months
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( #Muktibodh_part214 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part215
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 411-412
भावार्थ :- वेदों में वर्णित विधि से तथा अन्य प्रचलित क्रियाओं से ब्रह्म प्राप्ति नहीं है। इसलिए उस चुणक ऋषि को परमात्मा प्राप्ति तो हुई नहीं, सिद्धियाँ प्राप्त हो गई। ऋषियों ने उसी को भक्ति की अन्तिम उपलब्धि मान लिया। जिसके पास अधिक सिद्धियाँ होती थी, वह अन्य ऋषियों से श्रेष्ठ माना जाने लगा। यही उपलब्धि चुणक ऋषि को प्राप्त थी।
एक मानधाता चक्रवर्ती राजा (जिसका राज्य पूरी पृथ्वी पर हो, ऐसा शक्तिशाली राजा) था। उसके पास 72 अक्षौहिणी सेना थी। राजा ने अपने आधीन राजाओं को कहा कि जिसको मेरी पराधीनता स्वीकार नहीं, वे मेरे साथ युद्ध करें, एक घोड़े के गले में एक पत्र बाँध दिया कि जिस राजा को राजा मानधाता की आधीनता स्वीकार न हो, वो इस घोड़े को पकड़ ले और युद्ध के लिए तैयार हो जाए। पूरी पृथ्वी पर किसी भी राजा ने घोड़ा नहीं पकड़ा। घोड़े के साथ कुछ सैनिक भी थे। वापिस आते समय ऋषि चुणक ने पूछा कि कहाँ गए थे सैनिको! उत्तर मिला कि पूरी पृथ्वी पर घूम आए, किसी ने घोड़ा नहीं पकड़ा। किसी
ने राजा का युद्ध नहीं स्वीकारा। ऋषि ने कहा कि मैंने यह युद्ध स्वीकार लिया। सैनिक बोले हे कंगाल! तेरे पास दाने तो खाने को हैं नहीं और युद्ध करेगा महाराजा मानधाता के साथ?
ऋषि चुणक जी ने घोड़ा पकड़कर वृक्ष से बाँध लिया। मानधाता राजा को पता चला तो युद्ध की तैयारी हुई। राजा ने 72 अक्षौहिणी सैना की चार टुकडि़याँ बनाई। ऋषि पर हमला करने के लिए एक टुकड़ी 18 अक्षौहिणी (18 करोड़) सेना भेज दी । दूसरी ओर ऋषि ने अपनी सिद्धि से चार पूतलियाँ बनाई। एक पुतली छोड़ी जिसने राजा की 18 अक्षौहिणी सेना का नाश कर दिया। राजा ने दूसरी टुकड़ी भेजी। ऋषि ने दूसरी पुतली छोड़ी, उसने दूसरी टुकड़ी 18 अक्षौहिणी सेना का नाश कर दिया। इस प्रकार चुणक ऋषि ने मानधाता राजा की चार पुतलियों से 72 अक्षौहिणी सेना नष्ट कर दी। जिस कारण से महर्षि चुणक की महिमा पूरी पृथ्वी पर फैल गई।
हे धर्मदास! (जिन्दा रुप धारी परमात्मा बोले) ऋषि चुणक ने जो सेना मारी, ये पाप कर्म ऋषि के संचित कर्मों में जमा हो गए। ऋषि चुणक ने जो ऊँ (ओम्) एक अक्षर का जाप किया, वह उसके बदले ब्रह्मलोक में जाएगा। फिर अपना ब्रह्म लोक का सुख समय व्यतीत
करके पृथ्वी पर जन्मेगा। जो हठ योग तप किया, उसके कारण पृथ्वी पर राजा बनेगा। फिर मृत्यु के उपरान्त कुत्ते का जन्म होगा। जो 72 अक्षौहिणी सेना मारी थी, वह अपना बदला लेगी। कुत्ते के सिर में जख्म होगा और उसमें कीड़े बनकर 72 अक्षौहिणी सेना अपना बदला चुकाएगी। इसलिए हे धर्मदास! गीता ज्ञान दाता (ब्रह्म) ने अपनी साधना से होने वाली गति को अनुत्तम (अश्रेष्ठ) कहा है।
प्रश्न (धर्मदास जी का) :- हे जिन्दा! मैंने एक महामण्डलेश्वर से प्रश्न किया था कि गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में भगवान कृष्ण जी ने किस परमेश्वर की शरण में जाने के लिए कहा है? उस मण्डलेश्वर ने उत्तर दिया था कि भगवान श्री कृष्ण से अतिरिक्त कोई
भगवान ही नहीं। कृष्ण जी ही स्वयं पूर्ण परमात्मा हैं, वे अपनी ही शरण आने के लिए कह रहे हैं, बस कहने का फेर है। हे जिन्दा जी! कृपया मुझ अज्ञानी का भ्रम निवारण करें।
उत्तर : (जिन्दा बाबा परमेश्वर का) :- हे धर्मदास! ये माला डाल हुए हैं मुक्ता। षटदल उवा-बाई बकता।
आपके सर्व मण्डलेश्वर अर्थात् तथा शंकराचार्य अट-बट करके भोली जनता को भ्रमित कर रहे हैं। कह रहे हैं कि गीता ज्ञान दाता गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में अर्जुन को अपनी
शरण में आने को कहता है, यह बिल्कुल गलत है क्योंकि गीता अध्याय 2 श्लोक 7 में अर्जुन ने कहा कि ‘हे कृष्ण! अब मेरी बुद्धि ठीक से काम नहीं कर रही है। मैं आप का शिष्य हूँ, आपकी शरण में हूँ। जो मेरे हित में हो, वह ज्ञान मुझे दीजिए। हे धर्मदास! अर्जुन तो पहले ही श्री कृष्ण की शरण में था। इसलिए गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता ज्ञान दाता ने अपने से अन्य ‘परम अक्षर ब्रह्म’ की शरण में जाने के लिए कहा है। गीता अध्याय 4 श्लोक 3 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि हे अर्जुन! तू मेरा भक्त है। इसलिए यह गीता शास्त्र सुनाया है। गीता ज्ञान दाता से अन्य पूर्ण परमात्मा का अन्य प्रमाण गीता अध्याय 13 श्लोक 11 से 28, 30, 31, 34 में भी है। श्री मद्भगवत गीता अध्याय 13 श्लोक 1 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि शरीर को क्षेत्र कहते हैं जो इस क्षेत्रा अर्थात् शरीर को जानता है, उसे “क्षेत्रज्ञ” कहा जाता है। (गीता अध्याय 13 श्लोक 1)
गीता अध्याय 13 श्लोक 2 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि :- मैं क्षेत्रज्ञ हूँ। क्षेत्र तथा क्षेत्रज्ञ दोनों को जानना ही तत्त्वज्ञान कहा जाता है, ऐसा मेरा मत है। गीता अध्याय 13 श्लोक 10 में कहा है कि मेरी भक्ति अव्याभिचारिणी होनी चाहिए। जैसे अन्य देवताओं की
साधना तो गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में व्यर्थ कही हैं। केवल ब्रह्म की भक्ति करें। उसके
विषय में यहाँ कहा है कि अन्य देवता में आसक्त न हों। भावार्थ है कि भक्ति व मुक्ति के लिए ज्ञान समझें, वक्ता बनने के लिए नहीं। इसके अतिरिक्त वक्ता बनने के लिए ज्ञान सुनना अज्ञान है। पतिव्रता स्त्री की तरह केवल मुझमें आस्था रखकर भक्ति करें और मनुष्यों में बैठकर बातें बनाने का स्वभाव नहीं होना चाहिए। एकान्त स्थान में रहकर भक्ति करें।
गीता अध्याय 13 श्लोक 11 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि अध्यात्म ज्ञान में रूचि रखकर तत्त्व ज्ञान के लिए सद्ग्रन्थों को देखना तत्त्वज्ञान है, वह ज्ञान है तथा तत्त्वज्ञान की अपेक्षा कथा कहानियाँ सुनाना, सुनना, शास्त्रविधि विरूद्ध भक्ति करना यह सब अज्ञान है।
तत्त्वज्ञान के लिए परमात्मा को जानना ही ज्ञान है।
गीता अध्याय 13 श्लोक 12 में गीता ज्ञान दाता ने अपने से “परम ब्रह्म” यानि श्रेष्ठ परमात्मा का ज्ञान करवाया है, जो परमात्मा (ज्ञेयम्) जानने योग्य है, जिसको जानकर (अमृतम् अश्नुते) अमरत्व प्राप्त होता है अर्थात् पूर्ण मोक्ष का अमृत जैसा आनन्द भोगने को
मिलता है। उसको भली-भाँति कहूँगा। (तत्) वह दूसरा (ब्रह्म) परमात्मा न तो सत् कहा जाता है अर्थात् गीता ज्ञान दाता ने अध्याय 4 श्लोक 32, 34 में कहा है कि जो तत्त्वज्ञान है, उसमें परमात्मा का पूर्ण ज्ञान है, वह तत्त्वज्ञान परमात्मा अपने मुख कमल से स्वयं उच्चारण करके बोलता है। उस तत्त्वज्ञान को तत्त्वदर्शी सन्त जानते हैं, उनको दण्डवत् प्रणाम करने से, नम्रतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्त्व को भली-भाँति जानने वाले
तत्त्वदर्शी सन्त तुझे तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे। इससे सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञान दाता को परमात्मा का पूर्ण ज्ञान नहीं है। इसलिए कह रहा है कि वह दूसरा परमात्मा जो गीता ज्ञान
दाता से भिन्न है। वह न सत् है, न ही असत्। यहाँ पर परब्रह्म का अर्थ सात शंख ब्रह्माण्ड वाले परब्रह्म अर्थात् गीता अध्याय 15 श्लोक 16 वाले अक्षर पुरूष से नहीं है। यहाँ (पर माने दूसरा और ब्रह्म माने परमात्मा) ब्रह्म से अन्य परमात्मा पूर्ण ब्रह्म का वर्णन है।
भावार्थ :- गीता अध्याय 13 श्लोक 12 में गीता ज्ञान दाता कह रहा है कि जो मेरे से दूसरा ब्रह्म अर्थात् प्रभु है वह अनादि वाला है। अनादि का अर्थ है जिसका कभी आदि अर्थात् शुरूवात न हो, कभी जन्म न हुआ हो। गीता ज्ञानदाता क्षर पुरूष है, इसे “ब्रह्म” भी कहा जाता है। इसने गीता अध्याय 2 श्लोक 12, गीता अध्याय 4 श्लोक 5, 9, गीता अध्याय 10 श्लोक 2 में स्वयं स्वीकारा है कि हे अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। इससे सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञानदाता अनादि वाला “ब्रह्म” अर्थात् प्रभु नहीं है। इससे यह सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञानदाता ने अध्याय 13 के श्लोक 12 में अपने से अन्य अविनाशी परमात्मा की महिमा कही है। (अध्याय 13 श्लोक 12)
क्रमशः_______________
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ritikkumarsposts · 9 months
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#आध्यात्मिक_ज्ञान_चर्चा
गीता अध्याय 13 श्लोक 12-17- केवल पूर्ण परमेश्वर को जानना और पूजना चाहिए
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pankaj-001 · 10 months
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श्रीमद्भगवद्गीता_का_यथार्थ_ज्ञान
गीता अध्याय 13 श्लोक 12-17- केवल पूर्ण परमेश्वर को जानना और पूजना चाहिए
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lavkusdasrajpt · 9 months
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#श्रीमद्भगवद्गीता_का_यथार्थ_ज्ञान
गीता अध्याय 13 श्लोक 12-17- केवल पूर्ण परमेश्वर को जानना और पूजना चाहिए
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sstkabir-0809 · 10 months
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💥सतयुग में ही लुप्त हो चुकी वेदोक्त सनातनी पूजा का पुनः हो रहा उत्थान💥
सनातन धर्म एवं सच्चे सनातनी के नाम पर समय समय पर पूरे देशभर में होने वाली राजनैतिक चर्चाओं का दौर अब आम हो चला है। लेकिन सनातन धर्म एवं उसकी यथार्थ पूजा पद्धति तक पहुंचने के लिए पहले हमें हमारे सनातन शास्त्रों की तरफ लौटना होगा और जानना होगा कि सनातन पूजा के संबंध में किन गूढ़ रहस्यों से आज तक हिंदू भक्त समाज अनभिज्ञ था।
हिंदुओं के ही सनातन धर्मग्रंथों से प्रमाण मिलता है कि सनातन धर्म अथवा पूजा सतयुग में केवल एक लाख वर्षों तक ही अस्तित्व में रही थी। गीता अध्याय 4 श्लोक 1-2 में गीता ज्ञान दाता ने स्पष्ट किया है कि हे अर्जुन! यह योग यानि गीता वाला अर्थात चारों वेदों वाला ज्ञान मैंने सूर्य से कहा था। सूर्य ने अपने पुत्र मनु से कहा। मनु ने अपने पुत्र इक्ष्वाकु को कहा। इसके पश्चात यह ज्ञान कुछ राज ऋषियों ने समझा। उसके पश्चात यह ज्ञान नष्ट हो गया यानि लुप्त हो गया।
इक्ष्वाकु वंश में सनातन पूजा के इतिहास के सम्बंध में जैन संस्कृति कोष नामक पुस्तक में पृष्ठ 175-177 पर दिए गए प्रमाणों से भी स्पष्ट होता है कि इक्ष्वाकुवंश के राजा नाभिराज तक यानि सत्ययुग में लगभग एक लाख वर्षों तक ही वेदों अर्थात गीता वाले ज्ञानानुसार पूजा की जाती थी। उसके बाद उनके पुत्र ऋषभदेव जी से शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण प्रारंभ हुआ। और इस प्रकार वेदोक्त सनातनी पूजा का अंत सत्ययुग के लगभग एक लाख वर्ष बाद ही हो गया था।
सत्ययुग में ही लुप्त हो चुकी सनातनी पूजा के उपरोक्त शास्त्र आधारित पुख्ता प्रमाणों के मद्देनजर यदि आज की हिन्दू धर्म में प्रचलित पूजाओं पर दृष्टि दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि लगभग पूरा हिन्दू समाज ही शास्त्र विरुद्ध भक्ति आचरण कर अपने सनातन शास्त्रों की अवहेलना कर रहा है। आज का समस्त हिंदू समाज ही पित्तर पूजा, भूत पूजा, देवी देवताओं की पूजा करके पवित्र सनातन ग्रंथ गीताजी के भक्ति निर्देशों की उपेक्षा करके हानि उठा रहा है। (प्रमाण - गीता अध्याय 16 श्लोक 23 व 24, अध्याय 9 श्लोक 25 एवं अध्याय 7 श्लोक 15)
वर्तमान परिदृश्य में खुद को सच्चे सनातनी कहने वाले हिंदू महानुभावों को चाहिए था कि वे सबसे पहले यथार्थ सनातन धर्म की उत्पत्ति एवं अंत के विषय में पहले अपने सनातन शास्त्रों में दिए गूढ़ रहस्यों को जानने परखने का प्रयास करते। और उसी से निष्कर्ष निकालते कि आज वर्तमान समय में हिंदुओं में से कितने लोग सनातनी रह गए हैं और कितने हिंदू जाने अनजाने में सनातन पंथ से दूरी बना चुके हैं।
क्योंकि हमारे ही सनातन शास्त्रों (गीता व वेद) के अनुसार वास्तविक सनातनी केवल वही है जो कि सनातन शास्त्रों में बताए गए भक्ति निर्देशों के अनुसार ही अपना धार्मिक आचरण व अनुष्ठान आदि करता है। एवं यथार्थ धार्मिक अनुष्ठानों की जानकारी के लिए सनातन शास्त्र श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 4 श्लोक 34 में तत्त्वदर्शी ज्ञानी संत की शरण ग्रहण करने का स्पष्ट निर्देश है। और यहीं पर आगे अध्याय 15 श्लोक 1 में उस तत्त्वदर्शी संत के लक्षण बताते हुए कहा है कि जो संत उल्टे लटके हुए संसार रूपी वृक्ष के जड़ से पत्तियों तक के रहस्य को जानता है वह तत्त्वदर्शी संत है। आज सर्वविदित हो चुका है कि गीताजी के अध्याय 15 श्लोक 1 में वर्णित उस संसार रूपी वृक्ष की जड़ से लेकर पत्तियों तक के यथार्थ आध्यात्मिक रहस्य को केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने शास्त्र सम्मत प्रमाण देकर उजागर कर दिया है।
*हो रहा सनातनी पूजा का पुनः उत्थान*
समय के सतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के पावन सानिध्य में कलियुग की इस बिचली पीढ़ी में शास्त्रोक्त सनातनी पूजा का पुनरूत्थान हो रहा है। संत रामपाल जी महाराज के 90% अनुयायी हिंदू हैं, जिन्होंने सत्ययुग के लगभग एक लाख वर्ष बाद से चली आ रही शास्त्रविधि रहित साधनाओं को त्यागकर सनातन शास्त्रों में प्रमाणित यथार्थ सनातनी पूजा प्रारंभ की है।
विचारणीय विषय है कि गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने भी सनातन साधना जानने के लिए अध्याय 4 श्लोक 34 व अध्याय 15 श्लोक 1 के माध्यम से केवल तत्त्वदर्शी संत की शरण में जाने का निर्देश किया है। वर्तमान समय में विश्व कल्याणार्थ धरती पर अवतरित पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी के पूर्ण अवतार तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी को पहचानकर एवं उनकी शरण ग्रहण कर समस्त मानव समाज अ��ने जीवन को सार्थक कर सकता है।
अधिक जानकारी के लिए Sant Rampal Ji Maharaj App से डाऊनलोड करें, पवित्र पुस्तक *"हिंदू भाईजान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण।"*
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indrabalakhanna · 26 days
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‪@FactfulDebates | सोने की लंका के राजा रावण का अंत | Episode: 3013 | S...
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*🌐World Victorious Sant🌐*
*🙏🙇‍♂️🌼बन्दीछोड़ सतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी की जय हो 🌼🙇‍♂️🙏*
*💫कबीर परमात्मा हैं सबके रक्षक!*
*👑परमेश्वर कबीर जी पूर्ण समर्थ हैं! जो अकाल मृत्यु को भी टाल सकते हैं! जिसका प्रमाण सामवेद मंत्र संख्या 822, ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 2 में है! जिसमें स्पष्ट लिखा है कि परमेश्वर कबीर जी मृत्यु प्राप्त साधक को पुनः जीवित कर उसकी आयु भी बढ़ा सकते हैं!
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#मनुष्य_जीवन_का_उद्देश्य
🙏मानव जन्म दुर्लभ और अनमोल है! मोक्ष के लिए मिला है!आप सभी जी से प्रार्थना है!🙏इस पवित्र सत्संग को आदि से अंत तक विशेष श्रद्धा के साथ सुनें!
⏩सभी धर्मों में जो भी प्रमाणित धर्म ग्रंथ हैं_ हमें उन्हें विस्तार से जानना चाहिए!
जिससे हम प्रमाणित सत्य हो जानें!
और जानें कि सृष्टि का वास्तविक रचयिता + हम सब आत्माओं का वास्तविक स्वामी समर्थ सुख सागर कौन है?+कैसे मिलेगा?
पूर्ण संत और पूर्ण सतगुरु की पहचान भी हमें हमारे शास्त्रों से ही होगी!
वह तत्वदर्शी संत कौन है?
जिसका 📙श्रीमद् भगवत गीता में उल्लेख किया गया है! जानने के लिए प्रति दिन अवश्य देखें साधना 📺 चैनल 7:30p.m.संत रामपाल जी महाराज🙏
🙏संत रामपाल जी महाराज इस पृथ्वी पर वर्तमान में एकमात्र पूर्ण संत+ पूर्ण सतगुरु हैं!
पूर्ण ब्रह्म कबीर अवतार हैं!
लेकिन इस सत्य को आप तभी जान पाएंगे_जब आप जी संत रामपाल जी महाराज जी के लगातार सत्संगों का सेवन करते रहेंगे!
🙏सत साहेब जी🙏 जय बंदी छोड़ जी की🙏
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ketanthakre · 10 months
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#श्रीमद्भगवद्गीता_का_यथार्थ_ज्ञान
गीता अध्याय 13 श्लोक 12-17- केवल पूर्ण परमेश्वर को जानना और पूजना चाहिए
Audio Book सुनने के लिए Download करें Official App "SANT RAMPAL JI MAHARAJ
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sumanrao1230 · 10 months
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#हिन्दू_साहेबान_नहीं_समझे_गीता_वेद_पुराण
⤴️ इस पवित्र पुस्तक को पढ़ने के लिए Sant Rampal Ji Maharaj App Download करें।
💥सतयुग में ही लुप्त हो चुकी वेदोक्त सनातनी पूजा का पुनः हो रहा उत्थान💥
सनातन धर्म एवं सच्चे सनातनी के नाम पर समय समय पर पूरे देशभर में होने वाली राजनैतिक चर्चाओं का दौर अब आम हो चला है। लेकिन सनातन धर्म एवं उसकी यथार्थ पूजा पद्धति तक पहुंचने के लिए पहले हमें हमारे सनातन शास्त्रों की तरफ लौटना होगा और जानना होगा कि सनातन पूजा के संबंध में किन गूढ़ रहस्यों से आज तक हिंदू भक्त समाज अनभिज्ञ था।
हिंदुओं के ही सनातन धर्मग्रंथों से प्रमाण मिलता है कि सनातन धर्म अथवा पूजा सतयुग में केवल एक लाख वर्षों तक ही अस्तित्व में रही थी। गीता अध्याय 4 श्लोक 1-2 में गीता ज्ञान दाता ने स्पष्ट किया है कि हे अर्जुन! यह योग यानि गीता वाला अर्थात चारों वेदों वाला ज्ञान मैंने सूर्य से कहा था। सूर्य ने अपने पुत्र मनु से कहा। मनु ने अपने पुत्र इक्ष्वाकु को कहा। इसके पश्चात यह ज्ञान कुछ राज ऋषियों ने समझा। उसके पश्चात यह ज्ञान नष्ट हो गया यानि लुप्त हो गया।
इक्ष्वाकु वंश में सनातन पूजा के इतिहास के सम्बंध में जैन संस्कृति कोष नामक पुस्तक में पृष्ठ 175-177 पर दिए गए प्रमाणों से भी स्पष्ट होता है कि इक्ष्वाकुवंश के राजा नाभिराज तक यानि सत्ययुग में लगभग एक लाख वर्षों तक ही वेदों अर्थात गीता वाले ज्ञानानुसार पूजा की जाती थी। उसके बाद उनके पुत्र ऋषभदेव जी से शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण प्रारंभ हुआ। और इस प्रकार वेदोक्त सनातनी पूजा का अंत सत्ययुग के लगभग एक लाख वर्ष बाद ही हो गया था।
सत्ययुग में ही लुप्त हो चुकी सनातनी पूजा के उपरोक्त शास्त्र आधारित पुख्ता प्रमाणों के मद्देनजर यदि आज की हिन्दू धर्म में प्रचलित पूजाओं पर दृष्टि दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि लगभग पूरा हिन्दू समाज ही शास्त्र विरुद्ध भक्ति आचरण कर अपने सनातन शास्त्रों की अवहेलना कर रहा है। आज का समस्त हिंदू समाज ही पित्तर पूजा, भूत पूजा, देवी देवताओं की पूजा करके पवित्र सनातन ग्रंथ गीताजी के भक्ति निर्देशों की उपेक्षा करके हानि उठा रहा है। (प्रमाण - गीता अध्याय 16 श्लोक 23 व 24, अध्याय 9 श्लोक 25 एवं अध्याय 7 श्लोक 15)
वर्तमान परिदृश्य में खुद को सच्चे सनातनी कहने वाले हिंदू महानुभावों को चाहिए था कि वे सबसे पहले यथार्थ सनातन धर्म की उत्पत्ति एवं अंत के विषय में पहले अपने सनातन शास्त्रों में दिए गूढ़ रहस्यों को जानने परखने का प्रयास करते। और उसी से निष्कर्ष निकालते कि आज वर्तमान समय में हिंदुओं में से कितने लोग सनातनी रह गए हैं और कितने हिंदू जाने अनजाने में सनातन पंथ से दूरी बना चुके हैं।
क्योंकि हमारे ही सनातन शास्त्रों (गीता व वेद) के अनुसार वास्तविक सनातनी केवल वही है जो कि सनातन शास्त्रों में बताए गए भक्ति निर्देशों के अनुसार ही अपना धार्मिक आचरण व अनुष्ठान आदि करता है। एवं यथार्थ धार्मिक अनुष्ठानों की जानकारी के लिए सनातन शास्त्र श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 4 श्लोक 34 में तत्त्वदर्शी ज्ञानी संत की शरण ग्रहण करने का स्पष्ट निर्देश है। और यहीं पर आगे अध्याय 15 श्लोक 1 में उस तत्त्वदर्शी संत के लक्षण बताते हुए कहा है कि जो संत उल्टे लटके हुए संसार रूपी वृक्ष के जड़ से पत्तियों तक के रहस्य को जानता है वह तत्त्वदर्शी संत है। आज सर्वविदित हो चुका है कि गीताजी के अध्याय 15 श्लोक 1 में वर्णित उस संसार रूपी वृक्ष की जड़ से लेकर पत्तियों तक के यथार्थ आध्यात्मिक रहस्य को केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने शास्त्र सम्मत प्रमाण देकर उजागर कर दिया है।
*हो रहा सनातनी पूजा का पुनः उत्थान*
समय के सतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के पावन सानिध्य में कलियुग की इस बिचली पीढ़ी में शास्त्रोक्त सनातनी पूजा का पुनरूत्थान हो रहा है। संत रामपाल जी महाराज के 90% अनुयायी हिंदू हैं, जिन्होंने सत्ययुग के लगभग एक लाख वर्ष बाद से चली आ रही शास्त्रविधि रहित साधनाओं को त्यागकर सनातन शास्त्रों में प्रमाणित यथार्थ सनातनी पूजा प्रारंभ की है।
विचारणीय विषय है कि गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने भी सनातन साधना जानने के लिए अध्याय 4 श्लोक 34 व अध्याय 15 श्लोक 1 के माध्यम से केवल तत्त्वदर्शी संत की शरण में जाने का निर्देश किया है। वर्तमान समय में विश्व कल्याणार्थ धरती पर अवतरित पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी के पूर्ण अवतार तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी को पहचानकर एवं उनकी शरण ग्रहण कर समस्त मानव समाज अपने जीवन को सार्थक कर सकता है।
अधिक जानकारी के लिए Sant Rampal Ji Maharaj App से डाऊनलोड करें, पवित्र पुस्तक *"हिंदू भाईजान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण।"*
फ्री बुक Pdf download करें हमारी website से।
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https://www.jagatgururampalji.org/hindu-saheban-nahin-samjhe-gita-ved-puran.pdf
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mohinimeean · 10 months
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#HinduSahebanNahiSamjheGitaVedPuran
#सत_भक्ति_संदेश
#SaintRampalJiQuotes
💥सतयुग में ही लुप्त हो चुकी वेदोक्त सनातनी पूजा का पुनः हो रहा उत्थान💥
सनातन धर्म एवं सच्चे सनातनी के नाम पर समय समय पर पूरे देशभर में होने वाली राजनैतिक चर्चाओं का दौर अब आम हो चला है। लेकिन सनातन धर्म एवं उसकी यथार्थ पूजा पद्धति तक पहुंचने के लिए पहले हमें हमारे सनातन शास्त्रों की तरफ लौटना होगा और जानना होगा कि सनातन पूजा के संबंध में किन गूढ़ रहस्यों से आज तक हिंदू भक्त समाज अनभिज्ञ था।
हिंदुओं के ही सनातन धर्मग्रंथों से प्रमाण मिलता है कि सनातन धर्म अथवा पूजा सतयुग में केवल एक लाख वर्षों तक ही अस्तित्व में रही थी। गीता अध्याय 4 श्लोक 1-2 में गीता ज्ञान दाता ने स्पष्ट किया है कि हे अर्जुन! यह योग यानि गीता वाला अर्थात चारों वेदों वाला ज्ञान मैंने सूर्य से कहा था। सूर्य ने अपने पुत्र मनु से कहा। मनु ने अपने पुत्र इक्ष्वाकु को कहा। इसके पश्चात यह ज्ञान कुछ राज ऋषियों ने समझा। उसके पश्चात यह ज्ञान नष्ट हो गया यानि लुप्त हो गया।
इक्ष्वाकु वंश में सनातन पूजा के इतिहास के सम्बंध में जैन संस्कृति कोष नामक पुस्तक में पृष्ठ 175-177 पर दिए गए प्रमाणों से भी स्पष्ट होता है कि इक्ष्वाकुवंश के राजा नाभिराज तक यानि सत्ययुग में लगभग एक लाख वर्षों तक ही वेदों अर्थात गीता वाले ज्ञानानुसार पूजा की जाती थी। उसके बाद उनके पुत्र ऋषभदेव जी से शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण प्रारंभ हुआ। और इस प्रकार वेदोक्त सनातनी पूजा का अंत सत्ययुग के लगभग एक लाख वर्ष बाद ही हो गया था।
सत्ययुग में ही लुप्त हो चुकी सनातनी पूजा के उपरोक्त शास्त्र आधारित पुख्ता प्रमाणों के मद्देनजर यदि आज की हिन्दू धर्म में प्रचलित पूजाओं पर दृष्टि दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि लगभग पूरा हिन्दू समाज ही शास्त्र विरुद्ध भक्ति आचरण कर अपने सनातन शास्त्रों की अवहेलना कर रहा है। आज का समस्त हिंदू समाज ही पित्तर पूजा, भूत पूजा, देवी देवताओं की पूजा करके पवित्र सनातन ग्रंथ गीताजी के भक्ति निर्देशों की उपेक्षा करके हानि उठा रहा है। (प्रमाण - गीता अध्याय 16 श्लोक 23 व 24, अध्याय 9 श्लोक 25 एवं अध्याय 7 श्लोक 15)
वर्तमान परिदृश्य में खुद को सच्चे सनातनी कहने वाले हिंदू महानुभावों को चाहिए था कि वे सबसे पहले यथार्थ सनातन धर्म की उत्पत्ति एवं अंत के विषय में पहले अपने सनातन शास्त्रों में दिए गूढ़ रहस्यों को जानने परखने का प्रयास करते। और उसी से निष्कर्ष निकालते कि आज वर्तमान समय में हिंदुओं में से कितने लोग सनातनी रह गए हैं और कितने हिंदू जाने अनजाने में सनातन पंथ से दूरी बना चुके हैं।
क्योंकि हमारे ही सनातन शास्त्रों (गीता व वेद) के अनुसार वास्तविक सनातनी केवल वही है जो कि सनातन शास्त्रों में बताए गए भक्ति निर्देशों के अनुसार ही अपना धार्मिक आचरण व अनुष्ठान आदि करता है। एवं यथार्थ धार्मिक अनुष्ठानों की जानकारी के लिए सनातन शास्त्र श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 4 श्लोक 34 में तत्त्वदर्शी ज्ञानी संत की शरण ग्रहण करने का स्पष्ट निर्देश है। और यहीं पर आगे अध्याय 15 श्लोक 1 में उस तत्त्वदर्शी संत के लक्षण बताते हुए कहा है कि जो संत उल्टे लटके हुए संसार रूपी वृक्ष के जड़ से पत्तियों तक के रहस्य को जानता है वह तत्त्वदर्शी संत है। आज सर्वविदित हो चुका है कि गीताजी के अध्याय 15 श्लोक 1 में वर्णित उस संसार रूपी वृक्ष की जड़ से लेकर पत्तियों तक के यथार्थ आध्यात्मिक रहस्य को केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने शास्त्र सम्मत प्रमाण देकर उजागर कर दिया है।
*हो रहा सनातनी पूजा का पुनः उत्थान*
समय के सतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के पावन सानिध्य में कलियुग की इस बिचली पीढ़ी में शास्त्रोक्त सनातनी पूजा का पुनरूत्थान हो रहा है। संत रामपाल जी महाराज के 90% अनुयायी हिंदू हैं, जिन्होंने सत्ययुग के लगभग एक लाख वर्ष बाद से चली आ रही शास्त्रविधि रहित साधनाओं को त्यागकर सनातन शास्त्रों में प्रमाणित यथार्थ सनातनी पूजा प्रारंभ की है।
विचारणीय विषय है कि गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने भी सनातन साधना जानने के लिए अध्याय 4 श्लोक 34 व अध्याय 15 श्लोक 1 के माध्यम से केवल तत्त्वदर्शी संत की शरण में जाने का निर्देश किया है। वर्तमान समय में विश्व कल्याणार्थ धरती पर अवतरित पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी के पूर्ण अवतार तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी को पहचानकर एवं उनकी शरण ग्रहण कर समस्त मानव समाज अपने जीवन को सार्थक कर सकता है।
अधिक जानकारी के लिए Sant Rampal Ji Maharaj App से डाऊनलोड करें, पवित्र पुस्तक *"हिंदू भाईजान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण।"*
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