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#प्रेग्नेंसी के दौरान उल्टी
hakimsahab · 6 months
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प्रेग्नेंसी: समझ, देखभाल, और सुरक्षा
गर्भधारण के नुस्खे
10 ग्राम पीपल की ताजी कोमल जटा जौकूट करके 700 मि.ली. दूध में पकाएं। 200 मि.ली. शेष रहने पर उसे उतारकर छान लें। उसमें शक्कर और शहद मिलाकर पीरियड होने के 5वें या 6वें दिन से खाना शुरू करें। 10 दिन तक इस रामबाण औषधि का सेवन करें।
3 ग्राम गोरोचन 10 ग्राम गजपीपरि और 10 ग्राम असगंध-तीनों को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। पीरियड के चौथे दिन से निरंतर पांच दिनों तक इसे दूध के साथ फांके।
महिलाओं को शतावरी चूर्ण घी और दूध में मिलाकर खिलाने से गर्भाशय की सारी विकृतियां दूर हो जाती हैं और वे गर्भधारण योग्य हो जाती हैं।
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tvhealth1 · 2 years
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Pregnancy ke lakshan - प्रेगनेंसी होने पर नजर आते हैं कुछ इस प्रकार के शुरुआती लक्षण?
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प्रेगनेंसी के शुरूआती लक्षण – Early pregnancy symptoms in Hindi
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Pregnancy ke lakshan - आज के समय में तनाव, जॉब का प्रेशर और लॉकडाउन की वजह से बिगड़ी लाइफस्टाइल रिप्रोडक्शन सिस्टम पर गहरा असल डाल रहा है। जिसका नतीजा ये है कि महिलाओं को कंसीव करने में दिक्कत आ रही है, इसलिए डॉक्टर्स कह रहे हैं कि यदि कोई कपल कंसीव करता है तो उन्हें इसके साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए, जो लोग बेसब्री से पेरेट्स बनना चाहते हैं उनके लिए पीरियड्स मिस होने तक इंतजार करना बहुत मुश्किल भरा होता है। लेकिन आपको अपनी प्रेग्नेंसी पता करने के लिए रिलेशन बनाने के बाद 1 महीने तक इंतेजार करने की जरूरत नहीं होती है बल्कि आपको 3 से 4 दिनों में ही पता चल जाएगा कि आप प्रेगनेंट है या नहीं। तो चलिए आज हम प्रेग्नेंसी के कुछ ऐसे शुरूआती लक्षणों (Pregnancy ke lakshan) के बारे में।   प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षण की लिस्ट- List of early pregnancy ke lakshan - पीरियड्स मिस होना: प्रेग्नेंट होने का सबसे शुरुआती लक्षण पीरियड्स का मिस होना माना जाता है। इसके बाद ही कोई महिला प्रेग्नेंट टेस्ट की तरफ रुक करती है, लेकिन गर्भवती होने के बाद भी कुछ महिलाओं में पहले पीरियड्स के दौरान हल्की ब्लीडिंग हो सकती है। - जी मिचलाना और चक्कर आना: प्रेग्नेंसी की शुरूआती (Pregnancy ke lakshan) महीनों में चक्कर आना आम बात है। इनकी वजह से ब्लड शुगर का लेवल गिर जाता है और भूख में कमी आती है जिससे आपको चक्कर महसूस होने लगते हैं। साथ ही इस तिमाही में हार्मोनल और अन्य बदलाव बॉडी में रक्त वाहिकाओं की दीवारों को चौड़ा कर देते हैं।    - हल्का रक्तस्राव: प्रेग्रेंसी की शुरुआत में आपको हल्की ब्लीडिंग हो सकती है, लेकिन इससे कोई नुकसान नहीं है। इसे स्पॉटिंग कहते हैं। ये स्थिति तब होती है जब बढ़ता हुआ भ्रूण खुद को आपकी कोख की दीवारों में प्रत्यारोपित करता है। इस तरह की ब्लीडिंग अक्सर उस समय के आस-पास होती है, आपके पीरियड्स का समय होने वाला होता है।     - थकान महसूस होना: आमतौर पर ऐसा हार्मोन्स में होने वाले चेंजिस की वजह से होता है। प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में थकान कम रहती है, लेकिन प्रेगनेंसी की तीसरी तिमाही में थकान बहुत अधिक होने लगती है। साथ ही प्रेंग्नेंसी में अधिक थकान (Pregnancy ke lakshan) एक आम समस्या है, शारीरिक, मानसिक, हार्मोन में बदलाव और दैनिक दिनचर्या के प्रभाव की वजह से होती है।  - मॉर्निंग सिकनेस: मॉर्निंग सिकनेस गर्भावस्था का एक सामान्य लक्षण है और इसमें कभी-कभी जी मिचलना या उल्टी होना शामिल है। प्रेग्नेंसी के समय से समस्या दिन के किसी भी समय असुविधा पैदा कर सकता है। ये समस्या आमतौर पर गर्भावस्था के पहले चार महीनों के भीतर होती है और अक्सर ये पहला संकेत है कि आप गर्भवती है।  - ब्रैस्ट और निप्पल्स में दर्द होना और निप्पल्स का रंग परिवर्तन: ब्रैस्ट और निप्पल्स में दर्द होना और निप्पल्स का रंग परिवर्तन गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में महसूस कर सकते हैं। तब कुछ महिलाओं में निप्पल्स में संवेदनशीलता के साथ-साथ ब्रेस्ट में दर्द भी अनुभव किया जा सकता है।  - मूड स्विंग होना: गर्भावस्था की शुरूआती लक्षणों (Pregnancy ke lakshan) में मूड में मूड में उतार चढ़ाव आना भी अहम् भूमिका निभाता है। प्रेग्नेंसी के बाद एक महिला बिना कारण हंसना, रोना और असामान्य रूप में भावनात्मक व्यवहार का अनुभव करती है ऐसा उसके शरीर में हार्मोन की वजह से होता है। ये लक्षण अक्सर सभी महिलाओं में उनकी गर्भावस्था के समय काफी आम है।  - सिर दर्द और सिर भरी होना: गर्भावस्था की दूसरी और तीसरी तिमाही में सिर दर्द की वजह से स्ट्रेस हो सकती है। इसके अलावा अधिक वजन, हाई ब्लड प्रेशर, मांसपेशियों पर स्ट्रेस पड़ने, गलत पोस्चर और पोषक तत्वों की कमी की वजह से भी सिरदर्द की समस्या हो सकती है। साथ ही कैफीन के अधिक सेवन और आईसाइट कमजोर होने की वजह से भी ये समस्या हो सकती है।  - बार बार टायलेट जाना:  गर्भावस्था के समय एचसीजी हार्मोन का लेवल बढ़ने की वजह से बार-बार यूरिन आने की इच्छा होती है। एचसीजी हार्मोन गर्भवती महिला की किडनी में रक्त के प्रवाह को बहुत अधिक बढ़ा देता है। जिसकी वजह से सामान्य दिनों की अपेक्षा अधिक पेशाब आता है, लेकिन नौस से सोलह हफ्तों के बार पेशाब (Pregnancy ke lakshan) की मात्रा सामान्य हो जाती है। 
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- खाने की इच्छा में बदलाव: गर्भधारण के बाद एक खास लक्षण होता है जो ज्यादातर सभी महिलाएं अनुभव अवश्य करती है। इसमें स्वाद में परिवर्तन, कभी किसी भोजन को खाने की बेहद इच्छा होना या मनपसंद भोजन से चिड़न होना। इसके अलावा एक नई गर्भवती महिलाओं में अक्सर आहार की गड़बड़ी विकसित होती है, प्रेग्नेंसी से पहले उनके पसंद किए जाने वाले व्यंजन इस समय पसंद नहीं आता है। वहीं आपको किसी खास भोजन को खाने का मन बार-बार हो सकता है, इसे प्रेग्नेंसी के आहार की क्रेविंग के रूप में जाना जाता है।   - पाचन सम्बन्धी समस्याएं  जैसे कब्ज की शिकायत: गर्भावस्था के समय प्रोजेस्टेरोन हार्मोन बढ़ने की वजह से शरीर की मांसपेशिया रिलैक्स हो जाती है, जिसमें आंतें भी शामिल है। आंतों के धीमा पड़ जाने पर पाचन भी धीरे काम करने लगना है जिससे कब्ज की समस्या (Pregnancy ke lakshan) पैदा होती है। प्रेग्नेंसी में कब्ज की समस्या पैदा होती है। प्रेग्नेंसी में कब्ज होना आम बात है। 
FAQs (प्रेगनेंसी के बारे पूछे जाने वाले प्रश्न) Question Pregnancy ke lakshan
Q1. प्रेग्नेंसी के लक्षण कितने दिन में दीखते है? उ. आमतौर में प्रग्नेंसी क शुरूआती लक्षण 6 से 14 दिनों में दिखते हैं। इन लक्षणों में शामिल है शरीर का तापमान बढ़ना, ब्रेस्ट में सूजन, अधिक थकावट महसूस होना, अधिक नींद आना, ऐंठन और पेट सबंधी दिक्कते।  Q2. प्रेग्नेंट है या नहीं कैसे पता चलता है? आप पीरियड का मिस होना, बार-बार टॉइलट जाना,ब्रेस्ट में हल्का दर्द या भारीपन,उल्टी आना या जी मिचलाना, हल्का बुखार होना, पेट में दर्द, टेस्ट और स्मेल में बदलाव जैसे लक्षणों के द्वारा प्रेग्नेंसी का पता लगा सकते हैं।   Q3. प्रेगनेंसी के पहले हफ्ते में क्या लक्षण दिखाई देते हैं? गर्भावस्था के शुरूआती लक्षणों में जी मिचलाना और उल्टी होना, कई बार यूरिन जाना आदि शामिल है। इसके इतर गर्भधारण करने पर महिला को थकान की शिकायत होती है। इसके साथ ही कुछ महिलाओं में सिर दर्द के साथ ही शुरूआत में पैरों में सूजन भी नजर आती है। साथ ही ये इंप्लांटेशन ब्लीडिंग प्रेग्नेंसी के शुरूआती संकेत में से एक हैं।  Q4. माहवारी के कितने दिन बाद गर्भ ठहरता है? आपके पीरियड्स की अवधि सामाप्त होने के बाद आप गर्भवती हो सकती है। प्रेग्नेंट होने के लिए पीरियड्स के बाद 5 दिन और ओव्यूलेशन वाला दिन भी शामिल है। अगर आप गर्भधारण करने की योजना बना रहे हैं तो आपको हफ्ते में दो या तीन बार सेक्स बार करने की सलाह देते हैं।   निष्कर्ष (Conclusion) हमारे लेख में बताए गए प्रेगनेंसी के शुरूआती लक्षण के जानने के बाद तुरंत अपनी जांच करवाएं और डॉक्टर से सलाह लें। इसे आगे जारी रखने के लिए इस  TV Health पर क्लिक करें। Read the full article
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onlinedeshiupchaar · 2 years
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ये 7 लक्षण बतायेगे कि आप प्रेग्नेंट है या नहीं ? - These 7 signs will tell whether you are pregnant or not?
प्रेग्नेंसी के दौरान शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं, जिन्हें पहचान कर आप समझ सकती हैं कि आप प्रेग्नेंट हैं या नहीं। इसमें सबसे जरूरी है पीरियड्स को मिस करना। लेकिन कई बार शरीर में हार्मोनल बदलाव की वजह से भी पीरियड्स मिस हो जाते हैं या पीरियड आने में देरी हो जाती है। तो फिर कैसे पता चलेगा कि आप प्रेग्नेंट हैं या नहीं? यहां हम कुछ ऐसे लक्षण बता रहे हैं, जिनकी मदद से आप समझ जाएगीं कि आप प्रेग्नेंट हैं या नहीं।
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ये 7 लक्षण बताते हैं कि आप प्रेग्नेंट हैं – These 7 signs show that you are pregnant
1. शरीर के अंगों में बदलाव होना बताता है कि आप प्रेग्नेंट हैं
गर्भावस्था के दौरान शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन होर्मोन का उत्पादन बढ़ जाता है। इसलिए, शरीर के कई हिस्सों के आकार में परिवर्तन होते हैं। जिसमे सबसे पहले स्तनों और कुल्हों में बदलाव देखा जाता है।
2. उल्टी होना बताता है कि आप प्रेग्नेंट हैं
जब कोई महिला प्रेग्नेंट होती है तो गर्भावस्था के पहले तीन महीनों में उसे बहुत उल्टी होती है। खासकर सुबह के समय। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान शरीर में हार्मोन बढ़ जाते हैं। इसके प्रभाव से बार-बार उल्टी, कब्ज और एसिडिटी होती है। एस्ट्रोजेन हार्मोन एक गर्भवती महिला को एक विशिष्ट गंध सूंघने पर उल्टी करने का कारण भी बन सकता है।
3. थकान होना बताता है कि आप प्रेग्नेंट हैं
गर्भावस्था की शुरुआत में शरीर में कई तरह के हार्मोनल और शारीरिक बदलाव होते हैं। भ्रूण यानी फीटस (fetus) विकसित होने लगता है, इसलिए दिल की धड़कन तेज हो जाती है और रक्त प्रवाह भी बढ़ जाता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को थकान महसूस होती है। इस दौरान प्रोजेस्टेरोन का उत्पादन भी बढ़ जाता है, जिसके कारण भी थकान होती है।
4. मासिक धर्म का न होना बताता है कि आप प्रेग्नेंट हैं
अगर आप प्रेगेंट होने के लिए ट्राई कर रही है और आपका पीरियड नहीं आता है तो यह गर्भावस्था का पहला लक्षण है। प्रेगनेंसी टेस्ट किट के जरिए आप जान सकती हैं कि आप प्रेग्नेंट हैं या नहीं। प्रेगनेंसी टेस्ट किट आजकल बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं।
5. पेट दर्द और कब्ज होना बताता है कि आप प्रेग्नेंट हैं
गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में पेट में दर्द होता है। यह दर्द बिल्कुल पीरियड्स में होने वाले दर्द जैसा ही होता है। इसके साथ ही हार्मोनल बदलाव के कारण कब्ज और एसिडिटी भी होने लगती है।
6. बार बार टॉयलेट जाना बताता है कि आप प्रेग्नेंट हैं
जैसे-जैसे भ्रूण का आकार बढ़ता है, मूत्राशय पर दबाव बढ़ता जाता है। इससे गर्भवती महिला को बार-बार टॉयलेट जाना पड़ता है।
7. मूड में बदलाव होना बताता है कि आप प्रेग्नेंट हैं
गर्भावस्था के दौरान शरीर कई तरह के बदलावों से गुजर रहा होता है। इसका भावनात्मक प्रभाव भी पड़ता है। इसलिए गर्भवती महिलाएं कभी ज्यादा खुश हो जाती हैं तो कभी बिना बात किए ही उदास हो जाती हैं।
अगर आपको ऊपर बताये गए कोई भी लक्षण दिखते हैं तो आपको सबसे पहले प्रेगनेंसी टेस्ट करके प्रेग्नेंसी की जाँच करनी चाहिए या फिर डॉक्टर से मिलना चाहिए ताकि आप यह जान पायें कि आप प्रेग्नेंट हैं या नहीं।
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divyabhashkar · 2 years
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गर्भावस्था में कब्ज की समस्या से हैं परेशान, चुटकी में दूर करेंगे ये घरेलू नुस्खे – News18 हिंदी
गर्भावस्था में कब्ज की समस्या से हैं परेशान, चुटकी में दूर करेंगे ये घरेलू नुस्खे – News18 हिंदी
Home Remedies for Constipation during Pregnancy: गर्भावस्था (Pregnancy) में महिलाओं के शरीर में कई तरह के हार्मोनल बदलाव होते हैं, इस कारण से उन्हें में मतली, थकान, उल्टी, सिरदर्द, कमर दर्द, मूड स्विंग जैसी कॉमन समस्याएं होती हैं. कुछ महिलाएं कब्ज (Constipation during Pregnancy) की समस्या से भी परेशान रहती हैं. हालांकि, प्रेग्नेंसी के दौरान कब्ज कॉमन समस्या है, लेकिन इसका उपचार समय पर ना किया…
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प्रेगनेंसी क्या है और शुरुआती लक्षण क्या है, प्रेगनेंसी कैसे रोक सकते हैं
महिलाओं को कई बार अपने प्रेग्नेंट होने का पता नहीं चलता है। महिलाएं अपने आने वाले पीरियड के समय पर नहीं होने के कारण कई बार चिंता में पड़ जाती है। हालांकि महिला द्वारा किसी भी तरह का सेक्स नहीं करने पर भी महिलाओं के पीरियड्स में बदलाव हो सकते हैं। यदि किसी महिला या पुरुष पुरा सेक्स करने के बाद महिला को लगता है कि वह प्रेग्नेंट है या हो सकती है तो उसके कुछ शुरुआती लक्षण महिला को दिख जाते हैं। जिससे महिला पता कर सकती है कि वह प्रेग्नेंट है या नहीं। pregnant hai ki nahin
महिला का समय पर पीरियड्स नहीं होना हारमोंस की कमी के कारण भी हो सकता है परंतु यदि महिला के सेक्स करने के बाद पुरुष का स्पर्म महिला की योनि में रह जाता है तो महिला को प्रेग्नेंट होने का डर रहता है इसके लिए हमने नीचे सभी जानकारियां दी है ताकि महिला को पता चल सके कि प्रेग्नेंट किस समय होता है तथा प्रेगनेंसी होने के क्या क्या लक्षण हो सकते हैं।
घरेलू तरीकों से जानें प्रेग्नेंट हैं या नहीं
प्रेगनेंसी क्या है? (Pregnancy Kya Hota Hai)
प्रेगनेंसी एक प्रक्रिया है जिसमें पुरुष और स्त्री के सेक्स के बाद आदमी के द्वारा महिला की योनि में अपने शुक्राणु डालना है शुक्राणु स्त्री के अंडाणु को प्रभावित। यह प्रभावित करने की प्रक्रिया के बाद स्त्री के गर्भ में शुक्राणु जगह बना लेता है और एक निश्चित समय के बाद बच्चे का जन्म होना शुरू हो जाता है आमतौर पर इसे 40 हफ्तों की प्रक्रिया मर जाता है।
प्रेगनेंसी को आमतौर पर तीन भागों में बांटा गया है पहला 12 सप्ताह से दूसरा तेरा सप्ताह से 28 सप्ताह तीसरा 28 सप्ताह से अधिक समय यह समय महिला को बहुत सावधानी से रहना होता है।
प्रेगनेंसी कब होती है? (Pregnancy Kab Hoti Hai in Hindi)
अगर महिला प्रेगनेंसी का प्रयास करते हैं तो उन्हें पता होना चाहिए कि प्रेगनेंसी कब होती है कहीं बाहर महिलाओं पुरुष को पता नहीं होने के कारण सेक्स के दौरान पता ही नहीं चलता कि कब महिला प्रेग्नेंट हुई या नहीं। यदि महिला को प्रेगनेंसी ��े बचना है तो उसे पता होना चाहिए कि प्रेगनेंसी कब होती है चलिए जानते हैं।
महिला के पीरियड्स चार-पांच दिन तक ही रहता है अगले छे दिन बाद बिल्डिंग होना बंद हो जाती है। परंतु ब्लीडिंग बंद होने का कारण यह नहीं है कि महिला प्रेग्नेंट नहीं हो सकती हैं। महिला के पीरियड्स खत्म होने के बाद 11 दिन तक संभोग यानी कि सेक्स नहीं करना होगा 11 दिन के दौरान महिला का प्रेग्नेंट होना हो सकता है।
नेक्स्ट महीने के पीरियड आने से पहले 14 दिन पहले ओवुलेशन की प्रक्रिया होती है ओवुलेशन के दिन और पीरियड्स के 5 दिन का समय जो होता है वह महिला के प्रजनन क्षमता को तेज कर देता है जो प्रेग्नेंट होने का खतरा हो सकता है तो इन दिनों में सेक्स करने से बच सकता है।
भ्रूण का विकास कैसे होता है।
महिला की प्रेग्नेंट होने पर उसकी भ्रूण में विकास होना शुरू हो जाता है। महिला के भ्रूण में 10 सप्ताह की प्रेगनेंसी के समय यह होता है इसके बाद में गर्भपात का खतरा खत्म हो जाता है इस दौरान भ्रूण की लंबाई 30 मी मी होती है।
इसके लिए अल्ट्रासाउंड से दिल की धड़कन एवं अन्य गतिविधियों को महसूस कर सकते हैं भ्रूण चरण के दौरान संरचना का जल्द ही बदलाव होता है शरीर प्रणाली में विकास ह���ता है। भ्रूण का विकास दोनों वजह में और वजन और लंबाई में गति हो सकते हैं। महिला पर पहले और पांचवें और 36 सप्ताह के बीच दिमाग पर n11 दिमाग की गतिविधियों पर असर पड़ता है।
प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षण क्या है? (Pregnancy ke suruati lakshan kya hote hai)
किसी भी महिला के प्रेग्नेंट होने के बाद उसकी प्रेग्नेंट होने का निश्चित परिणाम कुछ उसके यार में बदलाव से पता चल जाता है। महीना के प्रेग्नेंट होने पर उसमें आमतौर से कुछ लक्षण दिखाई देना संभव है। यह लक्षण महिला के प्रेगनेंसी का पता लगाते हैं। चलिये जानते है की प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षण क्या क्या हो सकते है।
व्यवहार में बदलाव
प्रेगनेंसी के लक्षण में यह होना आम बात है यदि कोई महिला प्रेग्नेंट है तो उसके व्यवहार में बदलाव जरूर आते हैं। प्रेग्नेंसी के समय खून में एस्ट्रोजन और progesterone की मात्रा बढ़ जाती है जिसके कारण शरीर के हारमोंस तेजी से बढ़ने लगते हैं। हारमोंस के तेजी से बढ़ने के कारण महिला के व्यवहार पर भी असर पड़ता है।
प्रेग्नेंसी के समय महिला अच्छे और बुरे दोनों तरह की भावना को महसूस करता है। वह सामान्य तौर पर उदास परेशान दिखाई देती है। प्रेग्नेंट महिला को यदि इस तरह की परेशानी हो या कुछ बुरा भला करने का मन करे तो इसके लिए वह अपने डॉक्टर से बात कर ले ताकि आप कोई गलत कदम ना उठा सके।
थकान महसूस होना
प्रेग्नेंसी के लक्षण में महिला को थकान महसूस होने का आभास होता है। इसके होने का कारण बच्चे को सहारा देने के लिए खुद को पूर्ण रूप से तैयार करने से होता है। इस समय आपको थकान महसूस हो सकती है। प्रेगनेंसी के इस लक्षण में महिला को खासतौर से अधिक बैठना और सोना पसंद आता है। वह बार-बार लेटना और बैठना पसंद करती है।
महिला के शरीर में प्रेगनेंसी के हारमोंस उसके लिए जिम्मेदार होता है यह हार्मोन आपको बार-बार थकान परेशान और भावुक कर सकता है। थकान का होना एक निश्चय लक्षण नहीं हो सकता है या आमतौर पर भी आ सकता है। प्रेगनेंसी में यह लक्षण आम है परंतु पहली और तीसरी तिमाही में सबसे ज्यादा थकान होने से आप बहुत प्रभावित होंगी।
स्तन का सूजन
Pregnancy के समय महिला के स्तन में बदलाव हो सकते हैं यानी कि महिला के स्तन बड़े सूजे हुए और बड़े लग सकते हैं। स्तन की त्वचा पर मेरी नशा देखी जा सकती है यह परेशानी खासतौर से पहले तिमाही में ही सबसे आम है जैसे-जैसे प्रेगनेंसी का समय बढ़ता जाता है यह होना बंद हो जाता है।
इसकी होने का कारण प्रेगनेंसी के दौरान हार्मोन स्तनों में रक्त आपूर्ति तेजी से बढ़ा देता है। इस दौरान आपके निप्पल के आसपास सनसनाहट सी महसूस होने लगती है। स्तन में सूजन होना प्रेगनेंसी का पहले लक्षण में से एक हो सकता है यह आपको पहले दिखाई दे जाएगा। कभी-कभी आपको स्तनों में बदलाव 1 सप्ताह के अंदर ही बिक जाता है जिससे आपको प्रेगनेंसी का पता चल जाता है। जैसे-जैसे शरीर में हारमोंस बढ़ता जाता है आपको इसका आभास होना कम हो जाता है। आपको प्रेगनेंसी में पहुंचा पर कुछ बदलाव भी देखने को मिल सकती है।
उल्टी आना और जी मचलना
प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षणों में महिला का जी मचल सकता है यह प्रेगनेंसी का एक आम लक्षण है। यह ज्यादातर प्रेगनेंसी महिला को 6 सप्ताह के अंदर शुरू हो जाता है कभी-कभी 4 सप्ताह से पहले ही शुरू हो सकता है। जी मचलने के साथ-साथ महिला को प्रेगनेंसी के दौरान उल्टी भी हो सकते हैं जिससे पता चलता है कि आप प्रेग्नेंट है। यह आपको सुबह दिन-रात किसी भी वक्त आ सकती है जब आपका जी मचलना शुरू होगा तो आपको उल्टी हो सकती है।
महावारी नहीं आना
प्रेगनेंसी के शुरुआती समय में महावारी नहीं आती है जिससे पता चलता है कि महिला प्रेग्नेंट है। यदि महिला को लगता है वह प्रेग्नेंट है और महावारी का समय निश्चित नहीं हो पा रहा तो महिला प्रेगनेंसी टेस्ट कर सकती है। महावारी का समय चूकना प्रेगनेंसी का संकेत है।
जब महिला को महावरी का समय फिक्स नहीं होता या आने वाली माहवारी का समय पता नहीं होता तो आपको महावारी देर से आने का एहसास नहीं होगा। इस समय महिला को बेचैनी स्तन में बदलाव बार-बार पेशाब आना होने के लक्षण दिखाई देंगे जो महिला के प्रेग्नेंट के शुरुआती लक्षण में से आम है।
महावारी के समय खून में हल्के धब्बे भी आ सकते हैं। महिला को पेशाब करते समय हल्के गुलाबी या भूरे रंग के धब्बे देखने को मिल जाता है इसके अलावा कई बार हल्का सा परेशानी महसूस होती है।
विशेषज्ञ के अनुसार प्रेगनेंसी के शुरुआती में खून में धब्बे आते हैं इसका कारण गर्भाशय में डिंब को प्रभावित होना या महावारी को नियंत्रण करने वाले हार्मोन में हलचल होने के कारण हो सकती है। ऐसा होना अपरा की वजह से हो सकता है। यदि इस परेशानी का सामना महिला करती है तो उसे रक्तस्राव के बाद अपने डॉक्टर से बात कर लेनी चाहिए।
शरीर में उच्च बेसन तापमान का बढ़ना
प्रेगनेंसी के दौरान महिला को अपने शरीर में तापमान में परिवर्तन दिखाई देंगे तो महिला को समझ आ जाएगा कि वह प्रेग्नेंट है। प्रेगनेंसी के 18 दिन तक लगातार शरीर में बेसिल का तापमान बढ़ता रहेगा। यह तापमान प्रेगनेंसी के दौरान पूरे समय तक बड़ा हुए ही रहेगा।
बार-बार पेशाब आना
प्रेगनेंसी की सूरत लक्षणों में आपको बार-बार पेशाब आने का लक्षण दिखाई देगा यह सामान्य तौर से अधिक बार होगा। यह इस कारण होता है क्योंकि शरीर में बहुत से हार्मोन के मिश्रण आपके शरीर में खून को अधिक मात्रा में बढ़ा देते हैं और गुर्दे के ज्यादा मेहनत करने के कारण होता है।
यदि महिला को पेशाब करते हुए जलन या दर्द होता है तो लिंग संक्रमण  यानी कि यूटीआई हो सकता है इसके लिए महिला को तुरंत अपने डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
खाने का मन नहीं करना
प्रेगनेंसी के शुरुआती दिनों में महिला को किसी तरह की चीज खाना अच्छा नहीं लगता जिससे उन्हें किसी भी चीज इस्माइल पसंद नहीं आती। महिला खाने को देखकर या उसकी स्माइल सूंघने से बदबू आने लगती है जिससे उसे उल्टी या जी मचल। कहीं बाहर महिला को सूरत इलेक्शन के दौरान खट्टा खाने का मन ज्यादा करता है।
प्रेगनेंसी कैसे रोक सकते हैं। (Pregnancy Ko Kaise Rok Sakte Hain)
महिला अपनी pregnancy को रोक सकती है यदि सेक्स के दौरान कुछ चीजों का ध्यान रख जाए तो महिला प्रेग्नेंट बता सकती है। साथ साथ कुछ उपाय भी बताए गए हैं जिनका ध्यान रखना होगा ताकि महिला प्रेग्नेंट ना हो।
कंडोम का इस्तेमाल
प्रेगनेंसी रोकने के लिए सबसे अच्छा तरीका है व्यक्ति कंडोम का इस्तेमाल करें। कंडोम का इस्तेमाल सबसे सुरक्षित तरीका है सफल और सुविधाजनक भी है इससे व्यक्ति सेक्स का आनंद भी ले सकता है और प्रेग्नेंसी से भी बच सकता है। यदि व्यक्ति के सेक्स करने की इच्छा हो और महिला मां नहीं बनना चाहती तो उसे कंडोम का इस्तेमाल करते होना चाहिए।
वीर्य पात रोक कर
यदि महिलाओं को सेक्स के दौरान प्रेग्नेंट होने से बचना है तो पुरुष को sperm को महिला की योनि में जाने से रोकना होगा। जिसके लिए पुरुष को सेक्स के दौरान जैसे ही वीर्य के आने का एहसास होता है तो उसे अपने लिंग को योनि से बाहर निकाल लेना चाहिए ताकि योनि में वीर्य ना जा सके और महिला प्रेग्नेंट होने से बच सकें। हालांकि कभी-कभी यह करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि पुरुष इतना जोश में होता है कि वीर्य अंदर ही निकाल देता है जिसे प्रेग्नेंट हो��े का खतरा बढ़ जाता है।
गर्भनिरोधक उपाय से
गर्भनिरोधक यानी की प्रेग्नेंसी रोकने के लिए डॉक्टर एक माचिस के तीली की तरह छोटी सी रोड आपकी हाथ में डालता है जिससे आप 4 साल तक प्रेग्नेंट होने से बच सकते हैं। यह रोड शरीर में ऐसा आदमी पैदा करती है जिससे महिला प्रेग्नेंट नहीं हो सकती यदि महिला का इन 4 साल में प्रेग्नेंट या बच्चा पैदा करने की इच्छा होती है तो डॉक्टर की मदद से इस रोड को हाथ से निकलवा सकती है।
गर्भनिरोधक गोलियां
महिला अपने प्रेगनेंसी को रोकने के लिए कुछ गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल कर सकती है ताकि प्रेग्नेंट हो सके हालांकि यह दवाइयां हानिकारक हो सकती है परंतु यह एक असरदार उपाय है। महिला को गर्भ निरोधक गोली लेने से पहले एक बार रोग विशेषज्ञ को को दिखा देना चाहिए या उनके सलाह ले लेनी चाहिए।
Url Source: https://www.ghareluayurvedicupay.com/pregnancy-ke-suruati-lakshan/
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ivxtimes · 4 years
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इस साल के पहले नोबेल पुरस्कार का ऐलान हो गया है। चिकित्सा का नोबेल संयुक्त रूप से तीन वैज्ञानिकों हार्वे जे आल्टर, माइकल ह्यूटन और चार्ल्स एम राइस को दिया जाएगा। आल्टर और राइस अमेरिकी हैं, जबकि ह्यूटन यूके से हैं। इन तीनों वैज्ञानिकों ने हेपेटाइटिस सी वायरस की खोज की थी।
लिवर की बीमारी हेपेटाइटिस का वायरस 5 तरह का होता है, ए, बी,सी, डी और ई। इनमें से सबसे खतरनाक हेपेटाइटिस-सी को माना जाता है। हेपेटाइटिस-सी का वायरस संक्रमित खून के जरिए शरीर में फैलकर लिवर को डैमेज करता है। बीमारी बढ़ने पर लिवर फेल्योर या कैंसर की वजह भी बन सकता है। यह वायरस इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि आधे से ज्यादा लोगों को खुद के संक्रमित होने का पता ही नहीं चलता है। ज्यादातर में इस रोग के लक्षण या तो दिखाई नहीं देते या सामने आने में 10 साल तक लग जाते हैं।
जानिए क्या होता है हेपेटाइटिस और इसके वायरस संक्रमण कैसे फैलाते हैं...
क्या है हेपेटाइटिस?
हेपेटाइटिस को आसान भाषा में तो यह लिवर में होने वाली सूजन है जिसका मुख्य कारण वायरस का संक्रमण है। जो आमतौर पर दूषित भोजन खाने या पानी पीने, संक्रमित चीजों के इस्तेमाल से फैलता है। इस कारण हेपेटाइटस के 5 वायरस ए, बी, सी डी और ई हैं। इनमें टाइप-बी व सी घातक रूप लेकर लिवर सिरोसिस और कैंसर को जन्म देते हैं। शुरुआती इलाज न मिलने पर स्थिति गंभीर हो जाती है और लिवर पूरी तरह से डैमेज भी हो सकता है।
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कितनी तरह की होती है लिवर की यह बीमारी?
हेपेटाइटिस-ए : यह वायरस दूषित भोजन और पानी से शरीर में फैलता है। ऐसे मामलों में लिवर में सूजन, भूख न लगना, बुखार, उल्टी व जोड़ों में दर्द रहता है।
हेपेटाइटिस-बी : यह वायरस संक्रमित रक्त, सुई या असुरक्षित यौन संबंध के जरिए फैलता है। लिवर पर असर होने से रोगी को उल्टी, थकान, पेटदर्द, त्वचा का रंग पीला होने जैसी दिक्कतें होती हैं। यह लिवर का सबसे क्रॉनिक रोग है जो लिवर सिरोसिस और कैंसर का रूप ले लेता है। अगर गर्भवती महिला इससे संक्रमित है, बच्चा भी इससे ग्रसित हो सकता है। इस साल की थीम में भी इसे रोकने पर फोकस किया गया है।
हेपेटाइटिस-सी : हेपेटाइटिस-ए व बी की तुलना में यह वायरस ज्यादा खतरनाक है। शरीर पर टैटू गुदवाने, दूषित रक्त चढ़वाने, संक्रमित सुई के प्रयोग या दूसरे के शेविंग किट के इस्तेमाल से यह फैलता है। इसके लक्षण गंभीर अवस्था में कुछ समय बाद ही दिखाई देते हैं।
हेपेटाइटिस-डी : हेपेटाइटिस-बी व सी के मरीजों में इसकी आशंका ज्यादा होती है। यह भी दूषित रक्त चढ़वाने, संक्रमित सुई के प्रयोग या दूसरे के शेविंग किट के इस्तेमाल से यह फैलता है। लिवर में संक्रमण से उल्टी और हल्का बुखार आता है।
हेपेटाइटिस-ई : यह वायरस दूषित खानपान से फैलता है। इससे प्रभावित होने पर मरीज को थकान, वजन घटने, त्वचा पर पीलापन और हल्का बुखार आता है। हालांकि, भारत में इसके मामले कम है। इसका संक्रमण होने पर मरीज को थकान, वजन घटने, स्किन पीली दिखना और बुखार जैसे लक्षण दिखते हैं।
5 बातें जो जरूर ध्यान रखें
1) लक्षण दिखते ही जांच कराएं
हेपेटाइटिस वायरस के संक्रमण के लक्षण दिखने ही हेप्टोलॉजिस्ट से मिलें और जांच कराएं। कुछ कॉमन लक्षण जैसे लिवर का आकार बढ़ने, त्वचा की पीलापन, मतली, यूरिन पीला होना, हल्का बुखार और शारीरिक बदलावों को देखकर लिवर फंक्शन टैस्ट, पेट का अल्ट्रासाउंड और लिवर बायोप्सी कराने की सलाह दी जाती है।
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2) बारिश में खास सावधानी बरतें
सड़क किनारे लगी दुकानों पर मिलने वाला फूड लेने से बचें। बारिश के दिनों में इसका खास ख्याल रखें। संक्रमित इंसान की चीजों का इस्तेमाल करने से बचें और असुरक्षित शारीरिक संबंध न बनाएं। संक्रमित सुई का इस्तेमाल न करें और रक्त चढ़वाते समय इसकी जांच कराएं।
3) नवजात को टीका लगवाएं
गर्भवती महिलाओं को खासतौर पर हेपेटाइटिस-बी की जांच के साथ इसका टीका लगवाने की सलाह दी जाती है। डिलीवरी के बाद नवजात को भी इसका टीका लगवाएं। प्रेग्नेंसी के दौरान हेपेटाइटिस-ई ज्यादा खतरनाक है जो लिवर के फेल होने का कारण बन सकता है। इसका टीका न होने के कारण बचाव ही इलाज है। इससे बचने के लिए उबला पानी पीएं, खाने से पहले साबुन से हाथ धोएं और प्रेग्नेंसी के दौरान बाहर का खाना खाने से बचें।
4) क्या खाएं : हरी सब्जियां खाएं लेकिन अच्छी तरह धोकर
खाने में हरी सब्जियां, पपीता, खीरा, सलाद, नारियल पानी, टमाटर, अंगूर, मूली, ब्राउन राइस किशमिश, बादाम को डाइट में शामिल करें। हरी सब्जियां को अच्छी तरह धोकर ही इस्तेमाल करें।
5) क्या न खाएं : अधिक तेल-मसाले वाला खाना और रिफाइंड आटा
अधिक गर्म, तेल और मसाले वाले फूड, रिफाइंड आटा, डिब्बाबंद फूड, अल्कोहल वाले प्रोडक्ट लेने से बचें। केक, पेस्ट्रीज और चॉकलेट सीमित मात्रा में लें।
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Nobel Prize In Physiology Medicine 2020 Announcement Update: Harvey J Alter, Michael Houghton, Charles M Rice what is hepatitis c virus
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raghav-shivang · 4 years
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इस साल के पहले नोबेल पुरस्कार का ऐलान हो गया है। चिकित्सा का नोबेल संयुक्त रूप से तीन वैज्ञानिकों हार्वे जे आल्टर, माइकल ह्यूटन और चार्ल्स एम राइस को दिया जाएगा। आल्टर और राइस अमेरिकी हैं, जबकि ह्यूटन यूके से हैं। इन तीनों वैज्ञानिकों ने हेपेटाइटिस सी वायरस की खोज की थी।
लिवर की बीमारी हेपेटाइटिस का वायरस 5 तरह का होता है, ए, बी,सी, डी और ई। इनमें से सबसे खतरनाक हेपेटाइटिस-सी को माना जाता है। हेपेटाइटिस-सी का वायरस संक्रमित खून के जरिए शरीर में फैलकर लिवर को डैमेज करता है। बीमारी बढ़ने पर लिवर फेल्योर या कैंसर की वजह भी बन सकता है। यह वायरस इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि आधे से ज्यादा लोगों को खुद के संक्रमित होने का पता ही नहीं चलता है। ज्यादातर में इस रोग के लक्षण या तो दिखाई नहीं देते या सामने आने में 10 साल तक लग जाते हैं।
जानिए क्या होता है हेपेटाइटिस और इसके वायरस संक्रमण कैसे फैलाते हैं...
क्या है हेपेटाइटिस?
हेपेटाइटिस को आसान भाषा में तो यह लिवर में होने वाली सूजन है जिसका मुख्य कारण वायरस का संक्रमण है। जो आमतौर पर दूषित भोजन खाने या पानी पीने, संक्रमित चीजों के इस्तेमाल से फैलता है। इस कारण हेपेटाइटस के 5 वायरस ए, बी, सी डी और ई हैं। इनमें टाइप-बी व सी घातक रूप लेकर लिवर सिरोसिस और कैंसर को जन्म देते हैं। शुरुआती इलाज न मिलने पर स्थिति गंभीर हो जाती है और लिवर पूरी तरह से डैमेज भी हो सकता है।
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कितनी तरह की होती है लिवर की यह बीमारी?
हेपेटाइटिस-ए : यह वायरस दूषित भोजन और पानी से शरीर में फैलता है। ऐसे मामलों में लिवर में सूजन, भूख न लगना, बुखार, उल्टी व जोड़ों में दर्द रहता है।
हेपेटाइटिस-बी : यह वायरस संक्रमित रक्त, सुई या असुरक्षित यौन संबंध के जरिए फैलता है। लिवर पर असर होने से रोगी को उल्टी, थकान, पेटदर्द, त्वचा का रंग पीला होने जैसी दिक्कतें होती हैं। यह लिवर का सबसे क्रॉनिक रोग है जो लिवर सिरोसिस और कैंसर का रूप ले लेता है। अगर गर्भवती महिला इससे संक्रमित है, बच्चा भी इससे ग्रसित हो सकता है। इस साल की थीम में भी इसे रोकने पर फोकस किया गया है।
हेपेटाइटिस-सी : हेपेटाइटिस-ए व बी की तुलना में यह वायरस ज्यादा खतरनाक है। शरीर पर टैटू गुदवाने, दूषित रक्त चढ़वाने, संक्रमित सुई के प्रयोग या दूसरे के शेविंग किट के इस्तेमाल से यह फैलता है। इसके लक्षण गंभीर अवस्था में कुछ समय बाद ही दिखाई देते हैं।
हेपेटाइटिस-डी : हेपेटाइटिस-बी व सी के मरीजों में इसकी आशंका ज्यादा होती है। यह भी दूषित रक्त चढ़वाने, संक्रमित सुई के प्रयोग या दूसरे के शेविंग किट के इस्तेमाल से यह फैलता है। लिवर में संक्रमण से उल्टी और हल्का बुखार आता है।
हेपेटाइटिस-ई : यह वायरस दूषित खानपान से फैलता है। इससे प्रभावित होने पर मरीज को थकान, वजन घटने, त्वचा पर पीलापन और हल्का बुखार आता है। हालांकि, भारत में इसके मामले कम है। इसका संक्रमण होने पर मरीज को थकान, वजन घटने, स्किन पीली दिखना और बुखार जैसे लक्षण दिखते हैं।
5 बातें जो जरूर ध्यान रखें
1) लक्षण दिखते ही जांच कराएं
हेपेटाइटिस वायरस के संक्रमण के लक्षण दिखने ही हेप्टोलॉजिस्ट से मिलें और जांच कराएं। कुछ कॉमन लक्षण जैसे लिवर का आकार बढ़ने, त्वचा की पीलापन, मतली, यूरिन पीला होना, हल्का बुखार और शारीरिक बदलावों को देखकर लिवर फंक्शन टैस्ट, पेट का अल्ट्रासाउंड और लिवर बायोप्सी कराने की सलाह दी जाती है।
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2) बारिश में खास सावधानी बरतें
सड़क किनारे लगी दुकानों पर मिलने वाला फूड लेने से बचें। बारिश के दिनों में इसका खास ख्याल रखें। संक्रमित इंसान की चीजों का इस्तेमाल करने से बचें और असुरक्षित शारीरिक संबंध न बनाएं। संक्रमित सुई का इस्तेमाल न करें और रक्त चढ़वाते समय इसकी जांच कराएं।
3) नवजात को टीका लगवाएं
गर्भवती महिलाओं को खासतौर पर हेपेटाइटिस-बी की जांच के साथ इसका टीका लगवाने की सलाह दी जाती है। डिलीवरी के बाद नवजात को भी इसका टीका लगवाएं। प्रेग्नेंसी के दौरान हेपेटाइटिस-ई ज्यादा खतरनाक है जो लिवर के फेल होने का कारण बन सकता है। इसका टीका न होने के कारण बचाव ही इलाज है। इससे बचने के लिए उबला पानी पीएं, खाने से पहले साबुन से हाथ धोएं और प्रेग्नेंसी के दौरान बाहर का खाना खाने से बचें।
4) क्या खाएं : हरी सब्जियां खाएं लेकिन अच्छी तरह धोकर
खाने में हरी सब्जियां, पपीता, खीरा, सलाद, नारियल पानी, टमाटर, अंगूर, मूली, ब्राउन राइस किशमिश, बादाम को डाइट में शामिल करें। हरी सब्जियां को अच्छी तरह धोकर ही इस्तेमाल करें।
5) क्या न खाएं : अधिक तेल-मसाले वाला खाना और रिफाइंड आटा
अधिक गर्म, तेल और मसाले वाले फूड, रिफाइंड आटा, डिब्बाबंद फूड, अल्कोहल वाले प्रोडक्ट लेने से बचें। केक, पेस्ट्रीज और चॉकलेट सीमित मात्रा में लें।
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Nobel Prize In Physiology Medicine 2020 Announcement Update: Harvey J Alter, Michael Houghton, Charles M Rice what is hepatitis c virus
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digimakacademy · 4 years
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If you want to stop stretch marks during pregnancy, try these methods, expert advised - प्रेग्नेंसी के दौरान स्ट्रेच मार्क्स को रोकना है तो इन तरीकों को आजमाएं, एक्सपर्ट ने दी सलाह
If you want to stop stretch marks during pregnancy, try these methods, expert advised – प्रेग्नेंसी के दौरान स्ट्रेच मार्क्स को रोकना है तो इन तरीकों को आजमाएं, एक्सपर्ट ने दी सलाह
Pregnancy Stretch Marks Remedies:प्रेग्नेंसी के दौरान या उसके बाद महिलाओं के शरीर में बहुत से बदलाव आते हैं। पैरों में सूजन और दर्द, उल्टी और मिचली, प्रेग्नेंसी के दौरान कुछ आम समस्याओं में से हैं। इसके अलावा कई महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान स्ट्रेच मार्क्स भी हो जाते हैं। अचानक वजन बढ़ना, शरीर में हार्मोनल बदलाव होना या फिर अचानक से फैट कम होने के कारण शरीर के विभिन्न हिस्सों में स्ट्रेच…
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jodhpurnews24 · 6 years
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अपेंडिक्स का दर्द होने पर पेट की मालिश न करें
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यह दर्द अक्सर गाहे-बेगाहे उठता है। देर रात, यात्रा या किसी समारोह के दौरान डॉक्टर-अस्पताल की भागदौड़ हो जाती है। भयंकर पेटदर्द से जुड़ी अपेंडिक्स को ऑपरेशन से निकाल दिया जाता है। लेकिन मेडिकल साइंस में कुछ सालों से बहस छिड़ी हुई है कि अपेंडिक्स को शरीर में रहने दिया जाए या निकाल दें। जानते हैं इसकी हमारे शरीर में क्या भूमिका है :
सेलुलोज को पचाती है
यह छोटी और बड़ी आंत के मिलान बिन्दु के पास दो से चार इंच की पूंछड़ीनुमा होती है। अपेंडिक्स का हमारे खानपान के साथ हुई शारीरिक संरचना में बदलाव से संबंध है। प्राचीनकाल में गुफामानव की कच्ची चीजें खाने की आदतों के समय यह सेलुलोज को पचाने में उपयोगी मानी जाती थी लेकिन अब पकी चीजें ज्यादा खाने से शरीर में इसकी उतनी उपयोगिता नहीं रह गई है।
प्रेग्नेंसी में खतरा ज्यादा
युवतियों को अपेंडिक्स का दर्द होने पर ऑपरेशन टालना नहीं चाहिए क्योंकि प्रेग्नेंसी के समय यह दर्द दोबारा होने पर खतरा बढ़ सकता है। इसके दर्द और दवाइयों से बच्चे में विकृति के साथ गर्भपात की आशंका रहती है।
नाभि से नीचे दर्द
इसमें संक्रमण या सूजन के कारण भयंकर पेटदर्द होता है जो नाभि से शुरू होकर पेट की दांयी तरफ नीचे के हिस्से में जाता है। उल्टी, बुखार, भूख न लगना जैसे लक्षणों के साथ ऊपर-नीचे कूदते वक्त चुभने वाला पेट दर्द होता है।
फटने का भी डर
अपेंडिक्स में सूजन के कारण इसमें मवाद पडऩे (लंप बनना) से इसके फटने की आशंका रहती है। ऐसी स्थिति में तुरंत ऑपरेशन किया जाता है। 48 घंटे या उससे ज्यादा देरी होने पर आंतों से चिपकने के कारण अपेंडिक्स की गांठ बनने व पेट में इंफेक्शन फैलने का खतरा रहता है।
मरीज इनका रखें ध्यान
मौसम परिवर्तन के समय शरीर में पानी की कमी नहीं होने दें। कब्ज से बचें ताकि दर्द की आशंका कम हो। ऑपरेशन के बाद हल्का भोजन लेने की आदत डालें। ऑपरेशन के बाद कुछ दिन पपीता न खाएं।
कारण
अपेंडिक्स में मल फंसने या पेट में मौजूद छोटे कीड़े इसमें घुस जाने से इंफेक्शन होता है, जिससे सूजन आ जाती है।
क्या करें
दर्द होने पर कुछ न खाएं व डॉक्टर को दिखाएं। मालिश न करें। इससे पूरे पेट पर सूजन आ सकती है।
ऑपरेशन है इलाज
शुरुआती दर्द दवाओं से ठीक हो जाता है, लेकिन एक बार दर्द होने के बाद दोबारा होने की आशंका 50 त्न रहती है, इसलिए सर्जरी की सलाह दी जाती है। लेप्रोस्कॉपी व ओपन सर्जरी दोनों की जाती हैं। कम टांकें व जल्दी रिकवरी के कारण लेप्रोस्कॉपी तकनीक बेहतर मानी जाती है।
देसी इलाज
आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. रमेश पाराशर के मुताबिक हल्की सूजन की स्थिति में देसी दवाओं से मरीज को कुछ समय के लिए राहत दी जा सकती है, लेकिन सर्जरी ही इसका अंतिम उपाय है।
किस तरह के टेस्ट
डॉक्टर क्लीनिकल परीक्षण कर पता लगाते हैं कि अपेंडिक्स है या नहीं। इसके अलावा एक्सरे, सोनोग्राफी, टोमोग्राफी (सीटी) स्कैन, यूरिन व खून की जांच भी कराई जाती है।
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inhindinews · 5 years
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Woman Mouth Stuck Open After Laughed Too Loudly in China | जोर से हंसने पर महिला का जबड़ा बाहर आया, ट्रेन में मौजूद डॉक्टर ने ठीक किया
Woman Mouth Stuck Open After Laughed Too Loudly in China | जोर से हंसने पर महिला का जबड़ा बाहर आया, ट्रेन में मौजूद डॉक्टर ने ठीक किया
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महिला ने बताया- इससे पहले प्रेग्नेंसी के दौरान उल्टी करते वक्त भी उनका जबड़ा बाहर आया था
डॉक्टर लियो वेशेंग ने कहा- मैं विशेषज्ञ नहीं हूं, यह बात मैंने महिला और अन्य सभी को बता दी थी
Dainik Bhaskar
Sep 12, 2019, 03:30 PM IST
बीजिंग.कहते हैं हंसने और मुस्कुराने से मानसिक और शारीरिक लाभ होता है, लेकिन चीन में एक महिला को जोर से हंसना भारी पड़ गया। गुआंगझू दक्षिण रेलवे स्टेशन पर…
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gethealthy18-blog · 5 years
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सौंफ के 21 फायदे, उपयोग और नुकसान – Fennel Seeds (Saunf) Benefits, Uses and Side Effects in Hindi
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सौंफ के 21 फायदे, उपयोग और नुकसान – Fennel Seeds (Saunf) Benefits, Uses and Side Effects in Hindi
Ravichandra Kushwaha May 21, 2019
आमतौर पर सौंफ का उपयोग माउथ फ्रेशनर के रूप में किया जाता है। इसके अलावा, भारतीय रसोई में सौंफ का उपयोग मसाले के रूप में भी किया जाता है। क्या आप जानते हैं कि आपके किचन की यह छोटी-सी चीज आपको सेहतमंद बनाए रखने में कितनी बड़ी भूमिका निभाती है? कभी सोचा है कि सौंफ खाने के फायदे कितने हैं? अगर नहीं, तो चलिए जानते हैं।
सौंफ का वैज्ञानिक नाम फॉनिक्युल वल्गारे (Foeniculum vulgare) है। यह पाचन संबंधी समस्याओं से लेकर आंखों की रोशनी बढ़ाने, वजन कम करने और अन्य समस्याओं से छुटकारा दिलाने में मददगार साबित होती है। स्टाइलक्रेज के इस लेख में हम आपको सौंफ के फायदे बताएंगे। साथ ही यह भी बताएंगे कि सौंफ आपकी सेहत को चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने में किस प्रकार से सहायता करती है।
विषय सूची
सौंफ के फायदे – Benefits of Fennel Seeds in Hindi
सेहत के मामले में सौंफ खाने के फायदे एक नहीं बल्कि अनेक हैं। तो चलिए आगे इस लेख में विस्तार से जानते हैं क्या कुछ हैं सौंफ के फायदे।
1. पाचन के लिए सौंफ के फायदे
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सौंफ का उपयोग सबसे अधिक पाचन संबंधी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है। इसके एंटीस्पास्मोडिक (पेट और आंत में ऐंठन दूर करने वाली दवाई) और कार्मिनेटिव (एक तरह की दवा, जो पेट फूलने या गैस बनने से रोकती है) गुण इरिटेबल बाउल सिंड्रोम जैसी पेट की गंभीर समस्याओं से छुटकारा दिलाने में काफी कारगर होते हैं (1)।
इसके अतिरिक्त, पेट दर्द, पेट में सूजन और गैस जैसी समस्याओं से छुटकारा दिलाने के साथ ही अल्सर, दस्त और कब्ज आदि से राहत दिलाने में भी सौंफ कारगर साबित हो सकती है।
2. आंखों की रोशनी के लिए सौंंफ के फायदे
आंखों की छोटी-मोटी समस्याओं से छुटकारा दिलाने में भी सौंफ काफी कारगर साबित हो सकती है। अगर आपकी आंखों में जलन या फिर खुजली हो रही है, तो सौंफ की भाप आंखों पर लेने से राहत मिल सकती है (2)। इसके लिए आप सौंफ को सूती कपड़े में लपेटकर हल्का गर्म करके आंखों को सेंक सकते हैं। ध्यान रहे कि यह अधिक गर्म न हो।
आंखों की रोशनी बढ़ाने में विटामिन-ए और विटामिन-सी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं (3)। सौंंफ में विटामिन-ए पाया जाता है। इस प्रकार सौंफ के सेवन से बढ़ती उम्र में भी आपकी आंखों की रोशनी प्रभावित होने से बच सकती है (4)।
3. वजन कम करने में मददगार
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फाइबर से भरपूर सौंफ बढ़ते वजन को नियंत्रित करने में भी लाभदायक हो सकती है। यह न सिर्फ वजन कम करने में सहायक होती है, बल्कि शरीर में अतिरिक्त वसा को बनने से भी रोकती है। कोरिया में हुए एक शोध के मुताबिक सौंफ की एक कप चाय पीने से भी बढ़ते वजन को रोका जा सकता है (5)।
4. अस्थमा और अन्य श्वास संबंधी समस्याओं के लिए
एक इजिप्टियन शोध के मुताबितक सौंफ को सदियों से श्वास संबंधी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए उपयोग किया जा रहा है। यह ब्रोनिकल मार्ग को साफ कर श्वास क्रिया को दुरुस्त रखती है। न्यूट्रिशनल ज्योग्राफी की वेबसाइट के अनुसार फेफड़ों की सेहत के लिए सौंफ बहुत लाभदायक है (6)। इसके अतिरिक्त, सौंफ में पाए जाने वाले पाइथोन्यूट्रिएंट��स अस्थमा के लिए भी फायदेमंद हो सकते हैं।
5. सांसों की दुर्गंध दूर करे
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सौंफ का उपयोग आमतौर पर सांसों की ताजगी बनाए रखने के लिए किया जाता है। सौंफ के कुछ दानों को चबाने मात्र से ही आपकी सांसों की दुर्गंध दूर हो जाती है। सौंफ चबाने से मुंह में लार अधिक मात्रा में बनती है, जो बैक्टीरिया को दूर करने में मददगार साबित हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त सौंफ के गुण ये भी हैं कि यह मुंह के संक्रमणों से भी बचा सकती है (7)।
6. कॉलेस्ट्रॉल
सौंफ में फाइबर भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जो कोलेस्ट���रॉल को नियंत्रित करने में लाभदायक होता है (2)। फाइबर, कोलेस्ट्रॉल को खून में घुलने से रोकता है और इस प्रकार दिल की बीमारियों से भी बचाव कर सकता है।
7. कफ से निजात
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सर्दी में कफ की समस्या आम हो जाती है और आमतौर पर छोटे बच्चों को इससे कुछ ज्यादा ही परेशानी होती है। ऐसे में आपके किचन में रखी सौंफ इस समस्या से आसानी से छुटकारा दिला सकती है। सौंफ में एंटिबैक्टीरियल गुण होते हैं, जो कफ जैसी छोटी-मोटी समस्याओं से राहत दिलाने में मदद कर सकते हैं (2)।
8. मस्तिष्क के लिए फायदेमंद
सेहतमंद शरीर के लिए मस्तिष्क का चुस्त-दुरुस्त होना भी आवश्यक है और इसमें सौंफ बड़ी भूमिका निभा सकती है। सौंफ में विटामिन-ई और विटामिन-सी पाए जाते हैं (2)। विटामिन-सी ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस को कम करता है, जिससे बढ़ती उम्र में मस्तिष्क की समस्याएं काफी हद तक कम हो सकती है (8)। वहीं, विटामिन-ई एंटीऑक्सीडेंट के तौर पर काम करता है और ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस से कोशिकाओं को क्षति पहुंचने से रोकता है (9)।
9. कब्ज से राहत
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अनियमित दिनचर्या और खान-पान के कारण कब्ज की समस्या आम बात हो जाती है। एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर सौंफ आपके कब्ज को छूमंतर करने में मदद कर सकती है। सौंफ का काढ़ा बनाकर पीने से बहुत हद तक कब्ज से छुटकारा मिल सकता है (2)।
10. स्तनपान के लिए लाभदायक
स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए भी सौंफ लाभकारी हो सकती है। इसमें एथनॉल नामक तत्व पाया जाता है, जो फाइटोएस्ट्रोजन (phytoestrogen) है और महिलाओं में दूध बनने की क्षमता को बढ़ाता है (10)। इसके अतिरिक्त, यह भी कहा जाता है कि स्तन की सूजन कम करने में भी सौंफ सहायक होती है, लेकिन इस बात की अभी तक वैज्ञानिक रूप से कोई पुष्टि नहीं की गई है।
नोट : स्तनपान कराने वाली महिला सौंफ का सेवन करन से पहले अपने चिकित्सक से सलाह अवश्य लें।
11. रक्तचाप नियंत्रित करने में मददगार
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रक्तचाप नियंत्रित करने में सौंफ चमत्कारिक रूप से काम करती है। इसमें मौजूद पोटैशियम खून में सोडियम की मात्रा को नियंत्रित करता है और इसके दुष्प्रभाव से बचाता है। इसके अलावा, सौंफ में नाइट्रेट की भी मात्रा होती है, जो बल्ड प्रेशर को कम करता है (2)। साथ ही इसमें मैग्नीशियम भी अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है, जो महिलाओं में हाई बल्ड प्रेशर के खतरे को कम कर सकता है।
12. अच्छी नींद के लिए
सौंफ के अनेक गुणों में से एक गुण यह भी है कि यह आपको अच्छी नींद लेने में मदद कर सकती है। सौंफ में मैग्नीशियम पाया जाता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह अच्छी नींद और नींद के समय को बढ़ा सकता है (2)। साथ ही यह भी कहा जाता है कि मैग्नीशियम अनिद्रा दूर भगाने में भी मददगार होता है (11)।
13. मासिक धर्म की समस्याओं से राहत दिलाए
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मासिक धर्म की शुरुआत से पहले महिलाओं को तमाम छोटी-मोटी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। मसलन पेट में दर्द और मरोड़ आदि जैसे लक्षण मासिक धर्म के शुरू होने से पहले सामने आते हैं। मासिक धर्म की इन समस्याओं से छुटकारा दिलाने में सौंफ कुछ हद तक लाभकारी साबित हो सकती है (12)। हालांकि, यह आवश्यक नहीं है कि इसका फायदा सभी को मिले, किसी को इससे लाभ हो सकता है और किसी को नहीं भी। यह व्यक्ति के शरीर पर निर्भर करता है।
14. हर्निया के उपचार में सहायक
सौंफ का उपयोग चीनी की पारंपरिक चिकित्सा में हर्निया के उपचार के लिए किया जाता रहा है और कुछ स्रोत इस बात की पुष्टि भी करते हैं (13)। हालांकि, यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता कि हर्निया के उपचार में सौंफ कारगर है या नहीं, लेकिन उपचार के तौर पर इसका इस्तेमाल करने से पहले आप किसी चिकित्सक से सलाह अवश्य लें।
15. मधुमेह से बचाए
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एक शोध के अनुसार सौंफ में पाया जाने वाला तेल मधुमेह रोगियों के लिए काफी लाभदायक साबित हो सकता है। यह खून में शर्करा की मात्र को कम कर मधुमेह के खतरे को भी कम कर सकता है (14)। सौंफ में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट गुण भी कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम कर सकते हैं।
16. स्तनों के आकार में वृद्धि
महिलाओं के लिए सौंफ खाने के फायदे कई प्रकार से हैं। ऐसा कहा जाता है कि सौंफ खाने से स्तनों के आकार में वृद्धि हो सकती है, लेकिन इस संबंध में डॉक्टर की सलाह लेना बेहतर होगा।
17. सेहतमंद लीवर के लिए
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वैज्ञानिक शोध के अनुसार सौंफ का उपयोग प्राचीन समय से चिकित्सा के रूप में किया जा रहा है। लिवर की समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए भी सौंफ का इस्तेमाल किया जा सकता है (2)। सौंफ में एंटीऑक्सीडेंट और अन्य मिनरल्स पाए जाते हैं, जो लीवर को सेहतमंद बनाए रखने में मददगार साबित होते हैं। सौंफ में सेलेनियम की मात्रा भी पाई जाती है, जो लीवर की क्षमता को बढ़ाता है और शरीर से हानिकारक तत्वों को निकालने में सहायक हो सकता है (15)।
18. मॉर्निंग सिकनेस
सौंफ से महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली मॉर्निंग सिकनेस से राहत मिल सकती है। उल्टी और जी-मिचलाना मॉर्निंग सिकनेस के लक्षण होते हैं और आमतौर पर ये लक्षण प्रेग्नेंसी के चौथे सप्ताह में दिखने लगते हैं (16)। हालांकि, मॉर्निंग सिकनेस सुबह के समय होता है, लेकिन इसका प्रभाव दिन भर रह सकता है।
एक कप सौंफ की चाय या इसे चबाने से मॉर्निंग सिकनेस से छुटकारा मिल सकता है। इतना ही नही, इससे पेट की गैस और अन्य छोटी-मोटी समस्याओं से भी राहत मिल सकती है।
19. कैंडिडा से बचाए
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कैंडिडा फंगस का एक प्रकार है, जो मुंह, नाक और कान जैसे शरीर के अन्य भागों में हो सकता है। वैसे तो यह हानिकारक नहीं होता है, लेकिन अगर इस पर ध्यान न दिया जाए, तो यह बढ़ सकता है और समस्या उत्पन्न कर सकता है (17)। सौंफ में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट गुण कैंडिडा से बचा सकते हैं।
20. त्वचा को निखारे
सौंफ के गुण में त्वचा का ध्यान रखना भी शामिल है। इसमें मौजूद एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीमाइक्रोबियल और एंटीएलर्जिक गुण त्वचा की सुंदरता बनाए रखने ��ें मददगार साबित हो सकते हैं (2)। मसलन सौंफ की भाप आपके चेहरे के स्किन टैक्सचर को बनाए रख सकती है।
इसके लिए एक लीटर उबलते पानी में एक चम्मच सौंफ डाले। उसके बाद तौलिये से अपने सिर को गले तक कवर करके पांच मिनट तक भाप लें। ऐसा सप्ताह में दो बार करने से त्वचा की चमक बढ़ सकती है।
21. बालों का खयाल रखे
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सौंफ में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-माइक्रोबियल जैसे गुण बालों की विभिन्न समस्याओं से छुटकारा दिला सकते है। बालों में डैंड्रफ, सिर में खुजली और बालों का गिरना ये कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जिनसे निजात दिलाने में सौंफ कारगर साबित हो सकती है।
इसके लिए आपको सौंफ का मिश्रण तैयार करना होगा और उससे अपने बालों को धोना होगा। इससे बालों की उम्र लंबी हो सकती है। नीचे बताई गई विधि के अनुसार आप इस मिश्रण को तैयार कर सकते हैं।
सामग्री
● दो कप पानी ● तीन चम्मच सौंफ का पाउडर
बनाने की विधि
सौंफ के पाउडर को पानी में डालकर अच्छी तरह से मिला लें।
मिश्रण तैयार होने के बाद उसे 15 मिनट के लिए रख दें।
कैसे उपयोग करें?
बालों को अच्छी तरह से शैंपू करने के बाद तैयार किए गए मिश्रण से बालों को धोएं। ऐसा करने से बालों के गिरने की समस्या से छुटकारा मिल सकता है।
सौंफ के फायदे जानने के बाद चलिए अब जानते हैं कि इसमें कौन-कौन से पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं।
सौंफ के पौष्टिक तत्व – Fennel Seeds Nutritional Value in Hindi
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आपके किचन में आसानी से उपलब्ध यह सौंफ अपने आप में पौषक तत्वों का खजाना है। नीचे टेबल में इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्वों के बारे में बताया गया है।
पोषक तत्व
सर्विंग साइज 87 ग्राम
एमाउण्ट पर सलेक्टेड सर्विंग कैलोरीज 27 कैलोरीज फ्रम फैट 1  % डेली वैल्यू कुल वशा 0 ग्राम 0% कॉलेस्ट्रॉल 0 मिलीग्राम 0% सोडियम 45 मिलीग्राम 2% कुल कार्बोहाइड्रेट 6 ग्राम 2% डायेट्री फाइबर 3 ग्राम 11% प्रोटीन 1 ग्राम विटामिन्स एमाउण्ट पर सलेक्टेड सर्विंग %डीवी विटामिन-ए 117 आईयू (IU) 2% विटामिन-सी 10.4 मिलीग्राम 17% विटामिन-डी ~ ~ विटामिन-ई (अल्फा टोकोफेरॉल) ~ ~ विटामिन-के ~ ~ थियामिन 0.0 मिलीग्राम 1% राइबोफ्लेविन 0.0 मिलीग्राम 2% नाइसिन 0.6 मिलीग्राम 3% विटामिन-बी6 0.0 मिलीग्राम 2% फोलेट 23.5 एमसीजी 6% विटामिन-बी12 0.0 एमसीजी 0% पैंटोथेनिक एसिड 0.2 मिलीग्राम 2% कोलाइन ~ बेटाइन ~ मिनरल्स एमाउण्ट पर सलेक्टेड सर्विंग %डीवी कैल्शियम 42.6 मिलीग्राम 4% आयरन 0.6 मिलीग्राम 4% मैग्नीशियम 14.8 मिलीग्राम 4% फॉस्फोरस 43.5 मिलीग्राम 4% पोटैशियम 360 ग्राम 10% सोडियम 45.2 मिलीग्राम 2% जिंक 2.5 मिलीग्राम 1% कॉपर 0.2 मिलीग्राम 3% मैगनीज 0.1 मिलीग्राम 8% सेलेनियम 0.6 एमसीजी 1% फ्ल्यूरॉयड ~
सौंफ का उपयोग – How to Use Fennel Seeds in Hindi
आइए जानते हैं कि सेहत के लिए सौंफ का उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है।
सौंफ का उपयोग चाय के रूप में भी किया जा सकता है। सौंफ की चाय पीने से मोटापे को कम किया जा सकता है।
आप खाने के बाद भी सौंफ का सेवन पाचन शक्ति को बढ़ाने के लिए कर सकते हैं। सिर्फ पाचन ही नहीं, बल्कि इससे खून भी साफ हो सकता है।
माउथ फ्रेशनर के रूप में भी आप सौंफ का उपयोग कर सकते हैं। यह सांसों की दुर्गंध से छुटकारा दिला सकती है।
अगर भूनी हुई सौंफ को मिश्री के साथ खाया जाए, तो खांसी से राहत और आवाज की मधुरता बढ़ाई जा सकती है। साथ ही याददाश्त भी तेज होती है।
सौंफ के नुकसान – Side Effects of Fennel in Hindi
स्वास्थ्य के लिए सौंफ के फायदे तो हैं ही, इसके अतिरिक्त सौंफ के नुकसान भी हैं, जिनके बारे में जानना सभी के लिए आवश्यक है। नीचे हम सौंफ के नुकसान के बारे में बता रहे हैं।
स्तनपान करा रही महिलाओं को सौंफ का अत्यधिक उपयोग करने से परहेज करना चाहिए, क्योंकि इससे शिशु की सेहत पर असर पड़ सकता है।
अत्यधिक सौंफ खाने से स्किन की संवेदनशीलता बढ़ सकती है और धूप में निकलना काफी मुश्किल हो सकता है।
अगर आप किसी प्रकार की दवाइयों का सेवन करते हैं, तो आपको सौंंफ का अधिक सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
सौंफ का अधिक सेवन एलर्जी का कारण बन सकता है।
कहते हैं किसी वस्तु का आकार मायने नहीं रखता, बल्कि उसके गुणों की अहमियत होती है। सौंफ के साथ भी कुछ ऐसा ही है। सौंफ खाने के फायदे बहुत हैं, जिनके बारे में हमने इस लेख में आप सभी को बताया। अगर आपके पास भी सौंफ के गुण के बारे में कुछ विशेष जानकारी है, तो हमारे साथ नीचे दिए कमेंट बॉक्स में शेयर कर सकते हैं। इस लेख को अपने सगे-संबंधियों के साथ शेयर कर उन्हें भी सौंफ के फायदे अवश्य बताएं।
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Ravichandra Kushwaha
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Source: https://www.stylecraze.com/hindi/saunf-ke-fayde-upyog-aur-nuksan-in-hindi/
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jayveer18330 · 6 years
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एंटीबायोटिक दवाएं खा रहे अगर शराब पीते है तो क्या होगा ?
एंटीबायोटिक दवाएं खा रहा मरीज़ शराब पीये तो क्या होगा?
अक्सर लोग ये पूछते हैं कि अगर एंटीबायोटिक दवाएं खा रहे हैं, तो उन्हें शराब पीनी चाहिए या नहीं.
कई गर्भवती महिलाएं, जो इस बात को छुपाना चाहती हैं, वो शराब न पीने का बहाना यही बनाती हैं कि वो एंटीबायोटिक ले रही हैं. इस तरह वो ख़ुद को शराब पीने से बचाती हैं. और अपने गर्भवती होने की बात भी छुपा लेती हैं.
लेकिन, क्या ये बहानेबाज़ी वाक़ई सही है?
कुछ लोग ये मान लेते हैं कि शराब पीने से एंटीबायोटिक दवाएं ठीक से काम नहीं करती हैं. कुछ लोग ये भी मानते हैं कि एंटीबायोटिक लेते हुए अगर शराब पी जाए, तो उसके कई बुरे असर होते हैं.
लंदन की जेनीटूर्नरी क्लिनिक ने इस बारे में 300 से ज़्यादा लोगों पर सर्वे किया था. 81 फ़ीसदी ये मानते थे कि शराब पीने से एंटीबायोटिक असर नहीं करते. वहीं 71 फ़ीसदी ये मानते थे कि एंटीबायोटिक लेते हुए शराब पीने पर इसके कई साइड इफ़ेक्ट होते हैं.
क्या है डॉक्टरों का मानना?
मगर हक़ीक़त ये है कि ज़्यादातर एंटीबायोटिक को लेकर ये दोनों ही ख़्याल बिल्कुल ग़लत हैं. डॉक्टर ये मानते हैं कि ये ग़लत विचार लोगों को शराब पीने से बचा लेते हैं. इसीलिए वो इस ग़लत विचार को बढ़ावा देते हैं, ताकि मरीज़ अपनी दवाएं वक़्त पर खाते रहें.
सच्चाई ये है कि ज़्यादातर एंटीबायोटिक्स पर अल्कोहल का कोई असर नहीं होता. हालांकि कुछ एंटीबायोटिक हैं जिनको लेते वक़्त शराब न ही पीना बेहतर होता है. सेफ़ालोस्पोरिन सेफ़ोटेटान खाते वक्त अगर आप शराब पीते हैं, तो इससे शरीर को नुक़सान हो सकता है. इन दोनों के मेल से एसीटल्डिहाइड नाम का केमिकल बनता है. इसकी वजह से चक्कर आने, उल्टी होने, चेहरे की रंगत बिगड़ने, सिरदर्द, सांस फूलने और सीने में दर्द की शिकायतें हो सकती हैं.
ऐसे ही लक्षण तब भी हो सकते हैं, जब आप डाईसल्फ़िरम नाम की दवा ले रहे हों. इस दवा को शराब की लत छुड़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसके पीछे मक़सद ये होता है कि अगर कोई मरीज़ शराब पिए तो उसे बुरा महसूस हो. इस वजह से वो शराब न पिए. चूंकि शराब पीने का तज़ुर्बा ख़राब हो जाता है, तो फिर इंसान शराब नहीं पीता. इसीलिए ऐसी एंटीबायोटिक उन लोगों को लिखी जाती है, जो शराब की लत के शिकार हों.
शराब से परहेज़ की सलाह
एक और एंटीबायोटिक, मेट्रोनिडाज़ोल को लेते वक़्त भी शराब से बचने की चेतावनी दी जाती है. मेट्रोनिडाज़ोल को दांत में इन्फ़ेक्शन, पांव के ज़ख़्म और दूसरी चोटों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है. मेट्रोनिडाज़ोल खाने के दौरान शराब पीने पर सिर दर्द, चक्कर आने, उल्टी और सीने में दर्द की शिकायत हो सकती है.
हालांकि 2003 में फ़िनलैंड में हुई एक स्टडी में पता चला था कि मेट्रोनिडाज़ोल का ऐसा कोई ख़ास बुरा असर नहीं होता, अगर उसे लेने के बाद शराब पी ली जाए. लेकिन, अभी भी डॉक्टर यही सलाह देते हैं कि ये दवा लेते वक़्त शराब से परहेज़ करें.
कई और ऐसी एंटीबायोटिक्स हैं, जो लेते हैं, तो शराब न पीना बेहतर होगा. जैसे टिनिडाज़ोल, लाइनेज़ोलिड और एरिथ्रोमाइसिन. इन सभी दवाओं को लिखते वक़्त डॉक्टर शराब से परहेज़ की नसीहत देते हैं.
कई ऐसी एंटीबायोटिक हैं, जिन्हें लेते हुए शराब पी जा सकती है. इनकी लिस्ट काफ़ी लंबी है. इन्हें लेते हुए शराब पीने से कोई बुरा असर तो नहीं होता. लेकिन, आपको बीमारी से छुटकारा मिलने में ज़्यादा समय लग सकता है क्योंकि शराब पीने के बाद आप थका हुआ और प्यासा महसूस करेंगे. हालांकि इसका एंटीबायोटिक और शराब के मेल से कोई वास्ता नहीं.
आख़िर इसकी वजह क्या है?
असल में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कई बीमारियों के लिए होता है. कई एंटीबायोटिक तो यौन संक्रमण से छुटकारे के लिए भी इस्तेमाल होते हैं. तो डॉक्टर अक्सर ऐसे मरीज़ों को शराब न पीने की सलाह देते हैं.
कई बार कुछ अफ़वाहें कारगर भी होती हैं. जैसे एंटीबायोटिक लेते हुए शराब न पीने की ख़ामख़याली. ये सेहत के लिए तो अच्छी है ही क्योंकि लोग नुक़सान के डर से शराब नहीं पीते.
अब इस विचार को ग़लत बताया जाएगा तो ज़ाहिर है गर्भवती महिलाओं को अपनी प्रेग्नेंसी छुपाने के लिए नए बहाने की ज़रूरत होगी. वरना वो शराब को ना कहेंगी, तो दोस्त पूछेंगे न कि आख़िर इसकी वजह क्या है?
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raghav-shivang · 4 years
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इस साल के पहले नोबेल पुरस्कार का ऐलान हो गया है। चिकित्सा का नोबेल संयुक्त रूप से तीन वैज्ञानिकों हार्वे जे आल्टर, माइकल ह्यूटन और चार्ल्स एम राइस को दिया जाएगा। आल्टर और राइस अमेरिकी हैं, जबकि ह्यूटन यूके से हैं। इन तीनों वैज्ञानिकों ने हेपेटाइटिस सी वायरस की खोज की थी।
लिवर की बीमारी हेपेटाइटिस का वायरस 5 तरह का होता है, ए, बी,सी, डी और ई। इनमें से सबसे खतरनाक हेपेटाइटिस-सी को माना जाता है। हेपेटाइटिस-सी का वायरस संक्रमित खून के जरिए शरीर में फैलकर लिवर को डैमेज करता है। बीमारी बढ़ने पर लिवर फेल्योर या कैंसर की वजह भी बन सकता है। यह वायरस इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि आधे से ज्यादा लोगों को खुद के संक्रमित होने का पता ही नहीं चलता है। ज्यादातर में इस रोग के लक्षण या तो दिखाई नहीं देते या सामने आने में 10 साल तक लग जाते हैं।
जानिए क्या होता है हेपेटाइटिस और इसके वायरस संक्रमण कैसे फैलाते हैं...
क्या है हेपेटाइटिस?
हेपेटाइटिस को आसान भाषा में तो यह लिवर में होने वाली सूजन है जिसका मुख्य कारण वायरस का संक्रमण है। जो आमतौर पर दूषित भोजन खाने या पानी पीने, संक्रमित चीजों के इस्तेमाल से फैलता है। इस कारण हेपेटाइटस के 5 वायरस ए, बी, सी डी और ई हैं। इनमें टाइप-बी व सी घातक रूप लेकर लिवर सिरोसिस और कैंसर को जन्म देते हैं। शुरुआती इलाज न मिलने पर स्थिति गंभीर हो जाती है और लिवर पूरी तरह से डैमेज भी हो सकता है।
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कितनी तरह की होती है लिवर की यह बीमारी?
हेपेटाइटिस-ए : यह वायरस दूषित भोजन और पानी से शरीर में फैलता है। ऐसे मामलों में लिवर में सूजन, भूख न लगना, बुखार, उल्टी व जोड़ों में दर्द रहता है।
हेपेटाइटिस-बी : यह वायरस संक्रमित रक्त, सुई या असुरक्षित यौन संबंध के जरिए फैलता है। लिवर पर असर होने से रोगी को उल्टी, थकान, पेटदर्द, त्वचा का रंग पीला होने जैसी दिक्कतें होती हैं। यह लिवर का सबसे क्रॉनिक रोग है जो लिवर सिरोसिस और कैंसर का रूप ले लेता है। अगर गर्भवती महिला इससे संक्रमित है, बच्चा भी इससे ग्रसित हो सकता है। इस साल की थीम में भी इसे रोकने पर फोकस किया गया है।
हेपेटाइटिस-सी : हेपेटाइटिस-ए व बी की तुलना में यह वायरस ज्यादा खतरनाक है। शरीर पर टैटू गुदवाने, दूषित रक्त चढ़वाने, संक्रमित सुई के प्रयोग या दूसरे के शेविंग किट के इस्तेमाल से यह फैलता है। इसके लक्षण गंभीर अवस्था में कुछ समय बाद ही दिखाई देते हैं।
हेपेटाइटिस-डी : हेपेटाइटिस-बी व सी के मरीजों में इसकी आशंका ज्यादा होती है। यह भी दूषित रक्त चढ़वाने, संक्रमित सुई के प्रयोग या दूसरे के शेविंग किट के इस्तेमाल से यह फैलता है। लिवर में संक्रमण से उल्टी और हल्का बुखार आता है।
हेपेटाइटिस-ई : यह वायरस दूषित खानपान से फैलता है। इससे प्रभावित होने पर मरीज को थकान, वजन घटने, त्वचा पर पीलापन और हल्का बुखार आता है। हालांकि, भारत में इसके मामले कम है। इसका संक्रमण होने पर मरीज को थकान, वजन घटने, स्किन पीली दिखना और बुखार जैसे लक्षण दिखते हैं।
5 बातें जो जरूर ध्यान रखें
1) लक्षण दिखते ही जांच कराएं
हेपेटाइटिस वायरस के संक्रमण के लक्षण दिखने ही हेप्टोलॉजिस्ट से मिलें और जांच कराएं। कुछ कॉमन लक्षण जैसे लिवर का आकार बढ़ने, त्वचा की पीलापन, मतली, यूरिन पीला होना, हल्का बुखार और शारीरिक बदलावों को देखकर लिवर फंक्शन टैस्ट, पेट का अल्ट्रासाउंड और लिवर बायोप्सी कराने की सलाह दी जाती है।
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2) बारिश में खास सावधानी बरतें
सड़क किनारे लगी दुकानों पर मिलने वाला फूड लेने से बचें। बारिश के दिनों में इसका खास ख्याल रखें। संक्रमित इंसान की चीजों का इस्तेमाल करने से बचें और असुरक्षित शारीरिक संबंध न बनाएं। संक्रमित सुई का इस्तेमाल न करें और रक्त चढ़वाते समय इसकी जांच कराएं।
3) नवजात को टीका लगवाएं
गर्भवती महिलाओं को खासतौर पर हेपेटाइटिस-बी की जांच के साथ इसका टीका लगवाने की सलाह दी जाती है। डिलीवरी के बाद नवजात को भी इसका टीका लगवाएं। प्रेग्नेंसी के दौरान हेपेटाइटिस-ई ज्यादा खतरनाक है जो लिवर के फेल होने का कारण बन सकता है। इसका टीका न होने के कारण बचाव ही इलाज है। इससे बचने के लिए उबला पानी पीएं, खाने से पहले साबुन से हाथ धोएं और प्रेग्नेंसी के दौरान बाहर का खाना खाने से बचें।
4) क्या खाएं : हरी सब्जियां खाएं लेकिन अच्छी तरह धोकर
खाने में हरी सब्जियां, पपीता, खीरा, सलाद, नारियल पानी, टमाटर, अंगूर, मूली, ब्राउन राइस किशमिश, बादाम को डाइट में शामिल करें। हरी सब्जियां को अच्छी तरह धोकर ही इस्तेमाल करें।
5) क्या न खाएं : अधिक तेल-मसाले वाला खाना और रिफाइंड आटा
अधिक गर्म, तेल और मसाले वाले फूड, रिफाइंड आटा, डिब्बाबंद फूड, अल्कोहल वाले प्रोडक्ट लेने से बचें। केक, पेस्ट्रीज और चॉकलेट सीमित मात्रा में लें।
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Nobel Prize In Physiology Medicine 2020 Announcement Update: Harvey J Alter, Michael Houghton, Charles M Rice what is hepatitis c virus
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ivxtimes · 4 years
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हेपेटाइटिस यानी लिवर से जुड़ी बीमारी से जूझ रहे हैं तो कोरोना का संक्रमण गंभीर रूप ले सकता है। यह चेतावनी अमेरिका की सबसे बड़ी स्वास्थ्य एजेंसी सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने जारी की है। सीडीसी के मुताबिक, ऐसे बुजुर्ग जो पहले से बीमार हैं और हेपेटाइटिस से जूझ रहे हैं उन्हें विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है।
आज वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे है। इस साल की थीम है हेपेटाइटिस मुक्त भविष्य। लिवर की इस बीमारी से दुनियाभर में हर साल 13 लाख मौतें हो रही हैं। बारिश का मौसम चल रहा है और कोरोना का संक्रमण भी फैल रहा है। इसी मौसम में हेपेटाइटिस के वायरस का संक्रमण भी आसानी से होता है, इसलिए खासतौर पर अलर्ट रहने की जरूरत है। जानिए कोरोनाकाल में कब, कैसे खुद को रखें सुरक्षित-
क्या है हेपेटाइटिस? हेपेटाइटिस को आसान भाषा में तो यह लिवर में होने वाली सूजन है जिसका मुख्य कारण वायरस का संक्रमण है। जो आमतौर पर दूषित भोजन खाने या पानी पीने, संक्रमित चीजों के इस्तेमाल से फैलता है। इस कारण हेपेटाइटस के 5 वायरस ए, बी, सी डी और ई हैं। इनमें टाइप-बी व सी घातक रूप लेकर लिवर सिरोसिस और कैंसर को जन्म देते हैं। शुरुआती इलाज न मिलने पर स्थिति गंभीर हो जाती है और लिवर पूरी तरह से डैमेज भी हो सकता है।
कितनी तरह की होती है लिवर की यह बीमारी?
हेपेटाइटिस-ए : यह वायरस दूषित भोजन और पानी से शरीर में फैलता है। ऐसे मामलों में लिवर में सूजन, भूख न लगना, बुखार, उल्टी व जोड़ों में दर्द रहता है।
हेपेटाइटिस-बी : यह वायरस संक्रमित रक्त, सुई या असुरक्षित यौन संबंध के जरिए फैलता है। लिवर पर असर होने से रोगी को उल्टी, थकान, पेटदर्द, त्वचा का रंग पीला होने जैसी दिक्कतें होती हैं। यह लिवर का सबसे क्रॉनिक रोग है जो लिवर सिरोसिस और कैंसर का रूप ले लेता है। अगर गर्भवती महिला इससे संक्रमित है, बच्चा भी इससे ग्रसित हो सकता है। इस साल की थीम में भी इसे रोकने पर फोकस किया गया है।
हेपेटाइटिस-सी : हेपेटाइटिस-ए व बी की तुलना में यह वायरस ज्यादा खतरनाक है। शरीर पर टैटू गुदवाने, दूषित रक्त चढ़वाने, संक्रमित सुई के प्रयोग या दूसरे के शेविंग किट के इस्तेमाल से यह फैलता है। इसके लक्षण गंभीर अवस्था में कुछ समय बाद ही दिखाई देते हैं।
हेपेटाइटिस-डी : हेपेटाइटिस-बी व सी के मरीजों में इसकी आशंका ज्यादा होती है। यह भी दूषित रक्त चढ़वाने, संक्रमित सुई के प्रयोग या दूसरे के शेविंग किट के इस्तेमाल से यह फैलता है। लिवर में संक्रमण से उल्टी और हल्का बुखार आता है।
हेपेटाइटिस-ई : यह वायरस दूषित खानपान से फैलता है। इससे प्रभावित होने पर मरीज को थकान, वजन घटने, त्वचा पर पीलापन और हल्का बुखार आता है। हालांकि भारत में इसके मामले कम है। इसका संक्रमण होने पर मरीज को थकान, वजन घटने, स्किन पीली दिखना और बुखार जैसे लक्षण दिखते हैं।
3 सवाल : क्या यह जेनेटिक बीमारी है और हर तरह का हेपेटाइटिस एक मरीज में हो सकता है? #1) क्या वायरल हेपेटाइटिस से पीड़ित सभी रोगियों को पीलिया होता है? यदि किसी रोगी को पीलिया नहीं है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि उसे हेपेटाइटिस वायरल संक्रमण नहीं हो सकता। कई बार पीड़ित व्यक्ति में पीलिया के बजाय बुखार, उल्टी, भूख न लगना, जी मचलना और सुस्ती जैसे लक्षण भी हो सकते हैं।
#2) किसी को हेपेटाइटिस-ए हो जाता है, तो क्या उसे हेपेटाइटिस का दूसरा प्रकार नहीं होता? हेपेटाइटिस-ए से प्रभावित रोगी केवल हेपेटाइटिस-ए के खिलाफ जीवन भर इम्यून रहता है। इसके अलावा उसे अन्य हेपेटाइटिस जैसे बी, सी और ई से संक्रमित होने का खतरा हमेशा बना रहता है।
#3) क्या हेपेटाइटिस वंशानुगत बीमारी है और इसका टीका उपलब्ध है? हेपेटाइटिस एक आनुवंशिक बीमारी नहीं है। हालांकि, हेपेटाइटिस-बी वायरस जन्म के दौरान मां से बच्चे में स्थानांतरित हो सकता है। इसे मां के हेपेटाइटिस-बी वायरस की स्थिति की पहचान कर और बच्चे के जन्म के 12 घंटों के भीतर टीकाकरण कर रोका जा सकता है। अभी केवल हेपेटाइटिस ए और बी के लिए ही टीका उपलब्ध है।
5 बातें जो जरूर ध्यान रखें #1) लक्षण दिखते ही जांच कराएं हेपेटाइटिस वायरस के संक्रमण के लक्षण दिखने ही हेपेटोलॉजिस्ट से मिलें और जांच कराएं। कुछ कॉमन लक्षण जैसे लिवर का आकार बढ़ने, त्वचा की पीलापन, मतली, यूरिन पीला होना, हल्का बुखार और शारीरिक बदलावों को देखकर लिवर फंक्शन टैस्ट, पेट का अल्ट्रासाउंड और लिवर बायोप्सी कराने की सलाह दी जाती है।
#2) बारिश में खास सावधानी बरतें सड़क किनारे लगी दुकानों पर मिलने वाला फूड लेने से बचें। बारिश के दिनों इसका खास ख्याल रखें। संक्रमित इंसान की चीजों का इस्तेमाल करने से बचें और असुरक्षित शारीरिक सम्बंध न बनाएं। संक्रमित सुई का इस्तेमाल न करें और रक्त चढ़वाते समय इसकी जांच कराएं।
#3) नवजात को टीका लगवाएं गर्भवती महिलाओं को खासतौर पर हेपेटाइटिस-बी की जांच के साथ इसका टीका लगवाने की सलाह दी जाती है। डिलीवरी के बाद नवजात को भी इसका टीका लगवाएं। प्रेग्नेंसी के दौरान हेपेटाइटिस-ई ज्यादा खतरनाक है जो लिवर के फेल होने का कारण बन सकता है। इसका टीका न होने के कारण बचाव ही इलाज है। इससे बचने के लिए उबला पानी पीएं, खाने से पहले साबुन से हाथ धोएं, और प्रेग्नेंसी के दौरान बाहर का खाना खाने से बचें।
#4) क्या खाएं : हरी सब्जियां खाएं लेकिन अच्छी तरह धोकर खाने में हरी सब्जियां, पपीता, खीरा, सलाद, नारियल पानी, टमाटर, अंगूर, मूली, ब्राउन राइस किशमिश, बादाम को डाइट में शामिल करें। हरी सब्जियां को अच्छी तरह धोकर ही इस्तेमाल करें।
#5) क्या न खाएं : अधिक तेल-मसाले वाला खाना और रिफाइंड आटा अधिक गर्म, तेल और मसाले वाले फूड, रिफाइंड आटा, डिब्बाबंद फूड, अल्कोहल वाले प्रोडक्ट लेने से बचें। केक, पेस्ट्रीज और चॉकलेट सीमित मात्रा में लें।
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World Hepatitis Day 2020 covid19 and Hepatitis connection people surffering from liver disease need to alert from coronavirus infection
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raghav-shivang · 4 years
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हेपेटाइटिस यानी लिवर से जुड़ी बीमारी से जूझ रहे हैं तो कोरोना का संक्रमण गंभीर रूप ले सकता है। यह चेतावनी अमेरिका की सबसे बड़ी स्वास्थ्य एजेंसी सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने जारी की है। सीडीसी के मुताबिक, ऐसे बुजुर्ग जो पहले से बीमार हैं और हेपेटाइटिस से जूझ रहे हैं उन्हें विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है।
आज वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे है। इस साल की थीम है हेपेटाइटिस मुक्त भविष्य। लिवर की इस बीमारी से दुनियाभर में हर साल 13 लाख मौतें हो रही हैं। बारिश का मौसम चल रहा है और कोरोना का संक्रमण भी फैल रहा है। इसी मौसम में हेपेटाइटिस के वायरस का संक्रमण भी आसान�� से होता है, इसलिए खासतौर पर अलर्ट रहने की जरूरत है। जानिए कोरोनाकाल में कब, कैसे खुद को रखें सुरक्षित-
क्या है हेपेटाइटिस? हेपेटाइटिस को आसान भाषा में तो यह लिवर में होने वाली सूजन है जिसका मुख्य कारण वायरस का संक्रमण है। जो आमतौर पर दूषित भोजन खाने या पानी पीने, संक्रमित चीजों के इस्तेमाल से फैलता है। इस कारण हेपेटाइटस के 5 वायरस ए, बी, सी डी और ई हैं। इनमें टाइप-बी व सी घातक रूप लेकर लिवर सिरोसिस और कैंसर को जन्म देते हैं। शुरुआती इलाज न मिलने पर स्थिति गंभीर हो जाती है और लिवर पूरी तरह से डैमेज भी हो सकता है।
कितनी तरह की होती है लिवर की यह बीमारी?
हेपेटाइटिस-ए : यह वायरस दूषित भोजन और पानी से शरीर में फैलता है। ऐसे मामलों में लिवर में सूजन, भूख न लगना, बुखार, उल्टी व जोड़ों में दर्द रहता है।
हेपेटाइटिस-बी : यह वायरस संक्रमित रक्त, सुई या असुरक्षित यौन संबंध के जरिए फैलता है। लिवर पर असर होने से रोगी को उल्टी, थकान, पेटदर्द, त्वचा का रंग पीला होने जैसी दिक्कतें होती हैं। यह लिवर का सबसे क्रॉनिक रोग है जो लिवर सिरोसिस और कैंसर का रूप ले लेता है। अगर गर्भवती महिला इससे संक्रमित है, बच्चा भी इससे ग्रसित हो सकता है। इस साल की थीम में भी इसे रोकने पर फोकस किया गया है।
हेपेटाइटिस-सी : हेपेटाइटिस-ए व बी की तुलना में यह वायरस ज्यादा खतरनाक है। शरीर पर टैटू गुदवाने, दूषित रक्त चढ़वाने, संक्रमित सुई के प्रयोग या दूसरे के शेविंग किट के इस्तेमाल से यह फैलता है। इसके लक्षण गंभीर अवस्था में कुछ समय बाद ही दिखाई देते हैं।
हेपेटाइटिस-डी : हेपेटाइटिस-बी व सी के मरीजों में इसकी आशंका ज्यादा होती है। यह भी दूषित रक्त चढ़वाने, संक्रमित सुई के प्रयोग या दूसरे के शेविंग किट के इस्तेमाल से यह फैलता है। लिवर में संक्रमण से उल्टी और हल्का बुखार आता है।
हेपेटाइटिस-ई : यह वायरस दूषित खानपान से फैलता है। इससे प्रभावित होने पर मरीज को थकान, वजन घटने, त्वचा पर पीलापन और हल्का बुखार आता है। हालांकि भारत में इसके मामले कम है। इसका संक्रमण होने पर मरीज को थकान, वजन घटने, स्किन पीली दिखना और बुखार जैसे लक्षण दिखते हैं।
3 सवाल : क्या यह जेनेटिक बीमारी है और हर तरह का हेपेटाइटिस एक मरीज में हो सकता है? #1) क्या वायरल हेपेटाइटिस से पीड़ित सभी रोगियों को पीलिया होता है? यदि किसी रोगी को पीलिया नहीं है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि उसे हेपेटाइटिस वायरल संक्रमण नहीं हो सकता। कई बार पीड़ित व्यक्ति में पीलिया के बजाय बुखार, उल्टी, भूख न लगना, जी मचलना और सुस्ती जैसे लक्षण भी हो सकते हैं।
#2) किसी को हेपेटाइटिस-ए हो जाता है, तो क्या उसे हेपेटाइटिस का दूसरा प्रकार नहीं होता? हेपेटाइटिस-ए से प्रभावित रोगी केवल हेपेटाइटिस-ए के खिलाफ जीवन भर इम्यून रहता है। इसके अलावा उसे अन्य हेपेटाइटिस जैसे बी, सी और ई से संक्रमित होने का खतरा हमेशा बना रहता है।
#3) क्या हेपेटाइटिस वंशानुगत बीमारी है और इसका टीका उपलब्ध है? हेपेटाइटिस एक आनुवंशिक बीमारी नहीं है। हालांकि, हेपेटाइटिस-बी वायरस जन्म के दौरान मां से बच्चे में स्थानांतरित हो सकता है। इसे मां के हेपेटाइटिस-बी वायरस की स्थिति की पहचान कर और बच्चे के जन्म के 12 घंटों के भीतर टीकाकरण कर रोका जा सकता है। अभी केवल हेपेटाइटिस ए और बी के लिए ही टीका उपलब्ध है।
5 बातें जो जरूर ध्यान रखें #1) लक्षण दिखते ही जांच कराएं हेपेटाइटिस वायरस के संक्रमण के लक्षण दिखने ही हेपेटोलॉजिस्ट से मिलें और जांच कराएं। कुछ कॉमन लक्षण जैसे लिवर का आकार बढ़ने, त्वचा की पीलापन, मतली, यूरिन पीला होना, हल्का बुखार और शारीरिक बदलावों को देखकर लिवर फंक्शन टैस्ट, पेट का अल्ट्रासाउंड और लिवर बायोप्सी कराने की सलाह दी जाती है।
#2) बारिश में खास सावधानी बरतें सड़क किनारे लगी दुकानों पर मिलने वाला फूड लेने से बचें। बारिश के दिनों इसका खास ख्याल रखें। संक्रमित इंसान की चीजों का इस्तेमाल करने से बचें और असुरक्षित शारीरिक सम्बंध न बनाएं। संक्रमित सुई का इस्तेमाल न करें और रक्त चढ़वाते समय इसकी जांच कराएं।
#3) नवजात को टीका लगवाएं गर्भवती महिलाओं को खासतौर पर हेपेटाइटिस-बी की जांच के साथ इसका टीका लगवाने की सलाह दी जाती है। डिलीवरी के बाद नवजात को भी इसका टीका लगवाएं। प्रेग्नेंसी के दौरान हेपेटाइटिस-ई ज्यादा खतरनाक है जो लिवर के फेल होने का कारण बन सकता है। इसका टीका न होने के कारण बचाव ही इलाज है। इससे बचने के लिए उबला पानी पीएं, खाने से पहले साबुन से हाथ धोएं, और प्रेग्नेंसी के दौरान बाहर का खाना खाने से बचें।
#4) क्या खाएं : हरी सब्जियां खाएं लेकिन अच्छी तरह धोकर खाने में हरी सब्जियां, पपीता, खीरा, सलाद, नारियल पानी, टमाटर, अंगूर, मूली, ब्राउन राइस किशमिश, बादाम को डाइट में शामिल करें। हरी सब्जियां को अच्छी तरह धोकर ही इस्तेमाल करें।
#5) क्या न खाएं : अधिक तेल-मसाले वाला खाना और रिफाइंड आटा अधिक गर्म, तेल और मसाले वाले फूड, रिफाइंड आटा, डिब्बाबंद फूड, अल्कोहल वाले प्रोडक्ट लेने से बचें। केक, पेस्ट्रीज और चॉकलेट सीमित मात्रा में लें।
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World Hepatitis Day 2020 covid19 and Hepatitis connection people surffering from liver disease need to alert from coronavirus infection
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raghav-shivang · 4 years
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हेपेटाइटिस यानी लिवर से जुड़ी बीमारी से जूझ रहे हैं तो कोरोना का संक्रमण गंभीर रूप ले सकता है। यह चेतावनी अमेरिका की सबसे बड़ी स्वास्थ्य एजेंसी सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने जारी की है। सीडीसी के मुताबिक, ऐसे बुजुर्ग जो पहले से बीमार हैं और हेपेटाइटिस से जूझ रहे हैं उन्हें विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है।
आज वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे है। इस साल की थीम है हेपेटाइटिस मुक्त भविष्य। लिवर की इस बीमारी से दुनियाभर में हर साल 13 लाख मौतें हो रही हैं। बारिश का मौसम चल रहा है और कोरोना का संक्रमण भी फैल रहा है। इसी मौसम में हेपेटाइटिस के वायरस का संक्रमण भी आसानी से होता है, इसलिए खासतौर पर अलर्ट रहने की जरूरत है। जानिए कोरोनाकाल में कब, कैसे खुद को रखें सुरक्षित-
क्या है हेपेटाइटिस? हेपेटाइटिस को आसान भाषा में तो यह लिवर में होने वाली सूजन है जिसका मुख्य कारण वायरस का संक्रमण है। जो आमतौर पर दूषित भोजन खाने या पानी पीने, संक्रमित चीजों के इस्तेमाल से फैलता है। इस कारण हेपेटाइटस के 5 वायरस ए, बी, सी डी और ई हैं। इनमें टाइप-बी व सी घातक रूप लेकर लिवर सिरोसिस और कैंसर को जन्म देते हैं। शुरुआती इलाज न मिलने पर स्थिति गंभीर हो जाती है और लिवर पूरी तरह से डैमेज भी हो सकता है।
कितनी तरह की होती है लिवर की यह बीमारी?
हेपेटाइटिस-ए : यह वायरस दूषित भोजन और पानी से शरीर में फैलता है। ऐसे मामलों में लिवर में सूजन, भूख न लगना, बुखार, उल्टी व जोड़ों में दर्द रहता है।
हेपेटाइटिस-बी : यह वायरस संक्रमित रक्त, सुई या असुरक्षित यौन संबंध के जरिए फैलता है। लिवर पर असर होने से रोगी को उल्टी, थकान, पेटदर्द, त्वचा का रंग पीला होने जैसी दिक्कतें होती हैं। यह लिवर का सबसे क्रॉनिक रोग है जो लिवर सिरोसिस और कैंसर का रूप ले लेता है। अगर गर्भवती महिला इससे संक्रमित है, बच्चा भी इससे ग्रसित हो सकता है। इस साल की थीम में भी इसे रोकने पर फोकस किया गया है।
हेपेटाइटिस-सी : हेपेटाइटिस-ए व बी की तुलना में यह वायरस ज्यादा खतरनाक है। शरीर पर टैटू गुदवाने, दूषित रक्त चढ़वाने, संक्रमित सुई के प्रयोग या दूसरे के शेविंग किट के इस्तेमाल से यह फैलता है। इसके लक्षण गंभीर अवस्था में कुछ समय बाद ही दिखाई देते हैं।
हेपेटाइटिस-डी : हेपेटाइटिस-बी व सी के मरीजों में इसकी आशंका ज्यादा होती है। यह भी दूषित रक्त चढ़वाने, संक्रमित सुई के प्रयोग या दूसरे के शेविंग किट के इस्तेमाल से यह फैलता है। लिवर में संक्रमण से उल्टी और हल्का बुखार आता है।
हेपेटाइटिस-ई : यह वायरस दूषित खानपान से फैलता है। इससे प्रभावित होने पर मरीज को थकान, वजन घटने, त्वचा पर पीलापन और हल्का बुखार आता है। हालांकि भारत में इसके मामले कम है। इसका संक्रमण होने पर मरीज को थकान, वजन घटने, स्किन पीली दिखना और बुखार जैसे लक्षण दिखते हैं।
3 सवाल : क्या यह जेनेटिक बीमारी है और हर तरह का हेपेटाइटिस एक मरीज में हो सकता है? #1) क्या वायरल हेपेटाइटिस से पीड़ित सभी रोगियों को पीलिया होता है? यदि किसी रोगी को पीलिया नहीं है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि उसे हेपेटाइटिस वायरल संक्रमण नहीं हो सकता। कई बार पीड़ित व्यक्ति में पीलिया के बजाय बुखार, उल्टी, भूख न लगना, जी मचलना और सुस्ती जैसे लक्षण भी हो सकते हैं।
#2) किसी को हेपेटाइटिस-ए हो जाता है, तो क्या उसे हेपेटाइटिस का दूसरा प्रकार नहीं होता? हेपेटाइटिस-ए से प्रभावित रोगी केवल हेपेटाइटिस-ए के खिलाफ जीवन भर इम्यून रहता है। इसके अलावा उसे अन्य हेपेटाइटिस जैसे बी, सी और ई से संक्रमित होने का खतरा हमेशा बना रहता है।
#3) क्या हेपेटाइटिस वंशानुगत बीमारी है और इसका टीका उपलब्ध है? हेपेटाइटिस एक आनुवंशिक बीमारी नहीं है। हालांकि, हेपेटाइटिस-बी वायरस जन्म के दौरान मां से बच्चे में स्थानांतरित हो सकता है। इसे मां के हेपेटाइटिस-बी वायरस की स्थिति की पहचान कर और बच्चे के जन्म के 12 घंटों के भीतर टीकाकरण कर रोका जा सकता है। अभी केवल हेपेटाइटिस ए और बी के लिए ही टीका उपलब्ध है।
5 बातें जो जरूर ध्यान रखें #1) लक्षण दिखते ही जांच कराएं हेपेटाइटिस वायरस के संक्रमण के लक्षण दिखने ही हेपेटोलॉजिस्ट से मिलें और जांच कराएं। कुछ कॉमन लक्षण जैसे लिवर का आकार बढ़ने, त्वचा की पीलापन, मतली, यूरिन पीला होना, हल्का बुखार और शारीरिक बदलावों को देखकर लिवर फंक्शन टैस्ट, पेट का अल्ट्रासाउंड और लिवर बायोप्सी कराने की सलाह दी जाती है।
#2) बारिश में खास सावधानी बरतें सड़क किनारे लगी दुकानों पर मिलने वाला फूड लेने से बचें। बारिश के दिनों इसका खास ख्याल रखें। संक्रमित इंसान की चीजों का इस्तेमाल करने से बचें और असुरक्षित शारीरिक सम्बंध न बनाएं। संक्रमित सुई का इस्तेमाल न करें और रक्त चढ़वाते समय इसकी जांच कराएं।
#3) नवजात को टीका लगवाएं गर्भवती महिलाओं को खासतौर पर हेपेटाइटिस-बी की जांच के साथ इसका टीका लगवाने की सलाह दी जाती है। डिलीवरी के बाद नवजात को भी इसका टीका लगवाएं। प्रेग्नेंसी के दौरान हेपेटाइटिस-ई ज्यादा खतरनाक है जो लिवर के फेल होने का कारण बन सकता है। इसका टीका न होने के कारण बचाव ही इलाज है। इससे बचने के लिए उबला पानी पीएं, खाने से पहले साबुन से हाथ धोएं, और प्रेग्नेंसी के दौरान बाहर का खाना खाने से बचें।
#4) क्या खाएं : हरी सब्जियां खाएं लेकिन अच्छी तरह धोकर खाने में हरी सब्जियां, पपीता, खीरा, सलाद, नारियल पानी, टमाटर, अंगूर, मूली, ब्राउन राइस किशमिश, बादाम को डाइट में शामिल करें। हरी सब्जियां को अच्छी तरह धोकर ही इस्तेमाल करें।
#5) क्या न खाएं : अधिक तेल-मसाले वाला खाना और रिफाइंड आटा अधिक गर्म, तेल और मसाले वाले फूड, रिफाइंड आटा, डिब्बाबंद फूड, अल्कोहल वाले प्रोडक्ट लेने से बचें। केक, पेस्ट्रीज और चॉकलेट सीमित मात्रा में लें।
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