Tumgik
#भगवान श्री कृष्ण हम सब पर कृपा करें।
jyotis-things · 2 months
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart32 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart33
ढेर सारे प्रमाण कि गीता शास्त्र का ज्ञान "काल" ने कहा। सर्व प्रथम गीता से ही प्रमाणित करता हूँ :-
* प्रमाण नं. 1 : गीता अध्याय 11 में प्रमाण है कि जब गीता ज्ञान दाता ने अपना विराट रूप दिखा दिया तो उसको देखकर अर्जुन भयभीत हो गया, काँपने लगा। यहाँ पर यह बताना भी अनिवार्य है कि अर्जुन का साला था श्री कृष्ण क्योंकि श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा का विवाह अर्जुन से हुआ था। गीता ज्ञान दाता ने जिस समय अपना भयंकर विराट रूप दिखाया जो हजार भुजाओं वाला था। तब अर्जुन ने पूछा कि हे देव! आप कौन हैं? (गीता अध्याय 11 श्लोक 31)
यदि वह विराट रूप वाला श्री कृष्ण होता तो क्या अर्जुन यह पूछता कि हे महानुभाव! आप कौन हो? क्या जीजा अपने साले को नहीं पहचानता? श्री कृष्ण जी तो अर्जुन के साथ अधिकतर रहा करते थे। उनके सारथी भी थे। गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में गीता बोलने वाला स्वयं बताता है कि मैं काल हूँ। सबको मारने के लिए अब प्रवृत हुआ हूँ यानि प्रकट हुआ हूँ। श्री कृष्ण यह नहीं कहते। वे तो वहीं थे। श्री कृष्ण जी काल नहीं थे।
विचारणीय विषय है कि क्या हम अपने साले से पूछेंगे कि हे महानुभाव! बताईए आप कौन हैं? एक समय एक व्यक्ति में प्रेत बोलने लगा। साथ बैठे भाई ने पूछा आप कौन बोल रहे हो? उत्तर मिला कि तेरा मामा बोल रहा हूँ। मैं दुर्घटना में मरा था। क्या हम अपने भाई को नहीं जानते? ठीक इसी प्रकार श्री कृष्ण में काल बोल रहा था।]
• गीता अध्याय 11 श्लोक 46: हे सहंस्राबाहु (हजार भुजा वाले) ! आप अपने चतुर्भुज रूप में दर्शन दीजिए (क्योंकि अर्जुन उन्हें विष्णु अवतार कृष्ण तो मानता ही था, परंतु उस समय श्री कृष्ण के शरीर में काल ने अपना अपार विराट रूप दिखाया था) मैं भयभीत हूँ, आपके इस रूप को सहन नहीं कर पा रहा हूँ।
ध्यान रहे :- श्री विष्णु (श्री कृष्ण) केवल चार भुजा से युक्त हैं। ये दो भुजा तो बना सकते हैं, परंतु चार से अधिक का प्रदर्शन नहीं कर सकते। काल ब्रह्म हजार (संहस्र) भुजा युक्त है। यह एक हजार तथा इन से नीचे भुजाओं का प्रदर्शन कर सकता है। हजार भुजाओं से अधिक का प्रदर्शन नहीं कर सकता। चार भुजा, दो भुजा, दस भुजा आदि-आदि बना सकता है। शरीर में बने कमल चक्रों में भी इस काल ब्रह्म के चक्र का नाम संहस्र कमल दल चक्र है।
प्रमाण नं. 2 :- गीता अध्याय 11 श्लोक 21 में अर्जुन ने कहा कि आप
तो देवताओं के समूह के समूह को ग्रास (खा) रहे हैं जो आपकी स्तुति हाथ जोड़कर भयभीत होकर कर रहे हैं। महर्षियों तथा सिद्धों के समुदाय आप से अपने जीवन की रक्षार्थ मंगल कामना कर रहे हैं। गीता अध्याय 11 श्लोक 31 में अर्जुन पूछ रहा है अपने साले को कि आप कौन हैं? गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में गीता ज्ञान दाता ने बताया कि हे अर्जुन! मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब प्रवृत हुआ हूँ अर्थात् श्री कृष्ण के शरीर में अब प्रवेश हुआ हूँ। सर्व व्यक्तियों का नाश करूँगा। विपक्ष की सर्व सेना, तू युद्ध नहीं करेगा तो भी नष्ट हो जाएगी।
गीता अध्याय 11 श्लोक 21, 31-32
इससे सिद्ध हुआ कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रविष्ट होकर काल ने कहा है। श्री कृष्ण जी ने पहले कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ। श्री कृष्ण जी को देखकर कोई भयभीत नहीं होता था। गोप-गोपियाँ, ग्वाल-बाल, पशु-पक्षी सब दर्शन करके आनंदित होते थे। तो "क्या श्री कृष्ण जी काल थे?" नहीं। इसलिए गीता ज्ञान दाता "काल" है जिसने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके गीता शास्त्र का ज्ञान दिया।
* प्रमाण नं.३ :- गीता अध्याय 11 श्लोक 47 में गीता ज्ञानदाता ने कहा कि हे अर्जुन! मैंने प्रसन्न होकर अपनी कृपा से तेरी दिव्य दृष्टि खोलकर यह विराट रूप दिखाया है। यह विराट रूप तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा है।
* विचार करें : महाभारत ग्रन्थ में प्रकरण आता है कि जिस समय श्री कृष्ण जी कौरवों की सभा में उपस्थित थे और उनसे कह रहे थे कि आप दोनों (कौरव और पाण्डव) आपस में बातचीत करके अपनी सम्पत्ति (राज्य) का बटँवारा कर लो, युद्ध करना शोभा नहीं देता। पाण्डवों ने कहा कि हमें पाँच (5) गाँव दे दो, हम उन्हीं से निर्वाह कर लेंगे। दुर्योधन ने यह भी माँग नहीं मानी और कहा कि पाण्डवों के लिए सुई की नोक के समान भी राज्य नहीं है, युद्ध करके ले सकते हैं। इस बात से श्री कृष्ण भगवान बहुत नाराज हो गए तथा दुर्योधन से कहा कि तू पृथ्वी के नाश के लिए जन्मा है, कुलनाश करके टिकेगा। भले मानव! कहाँ आधा राज्य, कहाँ 5 गाँव। कुछ तो शर्म कर ले।
इतनी बात श्री कृष्ण जी के मुख से सुनकर अभिमानी दुर्योधन राजा आग-बबूला हो गया और सभा में उपस्थित अपने भाईयों तथा मन्त्रियों से बोला कि इस कृष्ण यादव को गिरफ्तार कर लो। उसी समय श्री कृष्ण जी ने विराट रूप दिखाया। सभा में उपस्थित सर्व सभासद उस विराट रूप को देखकर भयभीत होकर कुर्सियों के नीचे छिप गए, कुछ आँखों पर हाथ रखकर जमीन पर गिर गए। श्री कृष्ण जी सभा छोड कर चले गए तथा अपना विराट रूप समाप्त कर दिया।
गीता अध्याय 11 श्लोक 47 में गीता ज्ञान दाता ने कहा था कि यह मेरा विराट रूप तेरे अतिरिक्त अर्जुन ! पहले किसी ने नहीं देखा था। यदि श्री कृष्ण गीता ज्ञान बोल रहे होते तो यह कभी नहीं कहते कि मेरा विराट रूप तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा था क्योंकि श्री कृष्ण जी के विराट रूप को कौरव तथा अन्य सभासद पहले देख चुके थे।
• इससे भी सिद्ध हुआ कि श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा, उनके शरीर में प्रेतवत प्रवेश करके काल (क्षर पुरूष) ने कहा था। (यह तीसरा प्रमाण हुआ।)
• प्रमाण के लिए पढ़ें गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 की फोटोकॉपी इसी पुस्तक के पृष्ठ 139 पर जिनमें काल ब्रह्म यानि गीता का ज्ञान बताने वाले ने कहा है कि मैं कभी भी किसी के समक्ष प्रकट नहीं होता। अपनी योग माया (भक्ति की शक्ति) से छिपा रहता हूँ।
यथार्थ अनुवाद :- गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 का यथार्थ अनुवाद इस प्रकार है : काल ब्रह्म ने कहा है कि मुझ अव्यक्त (गुप्त रहने वाले) को ये बुद्धिहीन जन-समुदाय मेरे (अनुतमम्) घटिया (अव्ययम्) अविनाशी यानि अटल नियम को नहीं जानते कि मैं अपने यथार्थ रूप में किसी के सामने प्रत्यक्ष नहीं होता। मुझे (व्यक्तिम्) मनुष्य रूप में यानि कृष्ण मान रहे हैं। (मैं कृष्ण नहीं हूँ।) श्लोक 25 में कहा है कि मैं अपनी योग माया से छिपा रहता हूँ। किसी के सामने प्रत्यक्ष नहीं होता। यह (मूढः) अज्ञानी जन समुदाय मुझको इस प्रकार नहीं जानता कि मैं कृष्ण की तरह नहीं जन्मता। गीता अध्याय 4 श्लोक 9 में गीता बोलने वाले ने कहा है कि मेरे जन्म तथा कर्म अलौकिक (दिव्य) हैं यानि यह जन्मता-मरता तो है। वह अलग
परम्परा है। उपरोक्त दोनों श्लोकों से सिद्ध हुआ कि काल गुप्त रहकर कार्य करता है। * प्रमाण नं. 4:- श्री विष्णु पुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित) के चौथे अंश के अध्याय 2 श्लोक 19-26 में प्रमाण है कि एक समय देवताओं और राक्षसों का युद्ध हुआ। देवता पराजित होकर समुद्र के किनारे जाकर छिप गए। फिर भगवान की तपस्या स्तुति करने लगे।
काल का विधान है अर्थात् काल ने प्रतिज्ञा कर रखी है कि मैं अपने वास्तविक काल रूप में कभी किसी को दर्शन नहीं दूंगा। अपनी योग माया से छिपा रहूँगा। (प्रमाण गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 में) इसलिए यह काल (क्षर पुरूष) किसी को विष्णु जी के रूप में दर्शन देता है, किसी को शंकर जी के रूप में, किसी को ब्रह्मा जी के रूप में दर्शन देता है।
देवताओं को श्री विष्णु जी के रूप में दर्शन देकर कहा कि मैंने जो आप की समस्या है, वह जान ली है। आप पुरंज्य राजा को युद्ध के लिए तैयार कर लो। मैं उस राजा श्रेष्ठ के शरीर में प्रविष्ट होकर राक्षसों का नाश कर दूंगा, ऐसा ही किया गया।
पेश है श्री विष्णु पुराण के चौथे अंश के अध्याय 2 से संबंधित प्रकरण इस फोटोकॉपी में स्पष्ट लिखा है कि गीता ज्ञान देने वाला काल ब्रह्म अन्य के शरीर में प्रवेश करके कार्य करता है। इसी प्रकार श्री कृष्ण जी में
प्रवेश करके गीता का ज्ञान कहा है। * प्रमाण नं. 5 :- श्री विष्णु पुराण के चौथे अंश के अध्याय 3 श्लोक 4-6 में प्रमाण है कि एक समय नागवंशियों तथा गंधर्वो का युद्ध हुआ। गंधों ने नागों के सर्व बहुमूल्य हीरे, लाल व खजाने लूट लिए, उनके राज्य पर भी कब्जा कर लिया। नागओं ने भगवान की स्तुति की, वही "काल" भगवान विष्णु रूप धारण करके प्रकट हुआ। कहा कि आप पुरुकुत्स राजा को गंधर्वो के साथ युद्ध के लिए तैयार कर लें। मैं राजा पुरुकुत्स के शरीर में प्रवेश करके दुष्ट गंधर्वो का नाश कर दूँगा, ऐसा ही हुआ।
पेश है श्री विष्णु पुराण के चौथे अंश के अध्याय 3 से संबंधित प्रकरण
उपरोक्त विष्णु पुराण की दोनों कथाओं से प्रमाणित हुआ कि यह काल भगवान (क्षर पुरूष) इस प्रकार अव्यक्त (गुप्त) रहकर कार्य करता है। इसी प्रकार इसने श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके गीता का ज्ञान कहा है।
ध्यान देने योग्य : गीता ज्ञान बोलने वाले ने गीता अध्याय 4 श्लोक 9 में कहा है कि मेरे जन्म व कर्म अलौकिक हैं। इसके कर्म इस प्रकार अलौकिक हैं। यह गुप्त रहकर सब कर्म करता है, प्रत्यक्ष होकर नहीं करता। प्रमाण के लिए पढ़ें गीता अध्याय 4 श्लोक 9 की फोटोकॉपी इसी पुस्तक के पृष्ठ 140 पर । * प्रमाण नं. 6 :- महाभारत ग्रन्थ में (गीता प्रैस गोरखपुर (U.P) से प्रकाशित में) भाग-2 पृष्ठ 800-802 पर लिखा है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात् राजा युधिष्ठर को राजगद्दी पर बैठाकर श्री कृष्ण जी ने द्वारिका जाने की तैयारी की। तब अर्जुन ने श्री कृष्ण जी से कहा कि आप वह गीता वाला ज्ञान फिर से सुनाओ, मैं उस ज्ञान को भूल गया हूँ।
श्री कृष्ण जी ने कहा कि हे अर्जुन! आप बड़े बुद्धिहीन हो, बड़े श्रद्धाहीन हो। आपने उस अनमोल ज्ञान को क्यों भुला दिया, अब मैं उस ज्ञान को नहीं सुना सकता क्योंकि मैंने उस समय योगयुक्त होकर गीता का ज्ञान सुनाया था। जब वक्ता को ज्ञान नहीं तो श्रोता को कैसे याद रह सकता है। इससे सिद्ध है कि श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान नहीं कहा।
• प्रमाण के लिए पढ़ें संक्षिप्त महाभारत ग्रन्थ (भाग-2) के पृष्ठ 800-802 की फोटोकॉपी इसी पुस्तक के पृष्ठ 124 पर।
* विचार करें : युद्ध के समय योगयुक्त हुआ जा सकता है तो शान्त वातावरण में योगयुक्त होने में क्या समस्या हो सकती है? वास्तव में यह ज्ञान काल ने श्री कृष्ण में प्रवेश करके बोला था।
* श्री कृष्ण जी को स्वयं तो वह गीता ज्ञान याद नहीं, यदि वे वक्ता थे तो वक्ता को तो सर्व ज्ञान याद होना चाहिए। श्रोता को तो प्रथम बार में 40 प्रतिशत ज्ञान याद रहता है।
इससे सिद्ध है कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश होकर काल (क्षर पुरूष) ने बोला था। उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट हुआ कि श्रीमद् भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा। उनको तो पता ही नहीं कि क्या कहा था, श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके काल पुरूष (क्षर पुरूष) यानि ज्योति निरंजन ने गीता का ज्ञान बोला था।
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astrovastukosh · 7 months
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MANAN KARNE YOGY Ekadashi Katha:
*🍁 श्री विजया एकादशी मुहुर्त महत्व एवं कथा🍁*
पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 6 मार्च को सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर प्रारंभ हो रही है। यह तिथि 7 मार्च को सुबह 04:13 बजे समाप्त होगी। ऐसे में विजया एकादशी का व्रत 6 मार्च, बुधवार को रखा ज���एगा। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 6:41 बजे से सुबह 9:37 बजे तक रहेगा। व्रत का परायण अगले दिन यानी 7 मार्च को सूर्योदय के उपरांत किया जाएगा।
*विजया एकादशी व्रत कथा*
धर्मराज युधिष्‍ठिर बोले - हे जनार्दन! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।
श्री भगवान बोले हे राजन् - फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्‍य को विजय प्राप्त‍ होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। एक समय देवर्षि नारदजी ने जगत् पिता ब्रह्माजी से कहा महाराज! आप मुझसे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी विधान कहिए।
ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! विजया एकादशी का व्रत पुराने तथा नए पापों को नाश करने वाला है। इस विजया एकादशी की विधि मैंने आज तक किसी से भी नहीं कही। यह समस्त मनुष्यों को विजय प्रदान करती है। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे श्री लक्ष्मण तथा सीताजी ‍सहित पंचवटी में निवास करने लगे। वहाँ पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण ‍किया तब इस समाचार से श्री रामचंद्रजी तथा लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीताजी की खोज में चल दिए।
घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु के पास पहुँचे तो जटायु उन्हें सीताजी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। कुछ आगे जाकर उनकी सुग्रीव से मित्रता हुई और बाली का वध किया। हनुमानजी ने लंका में जाकर सीताजी का पता लगाया और उनसे श्री रामचंद्रजी और सुग्रीव की‍ मित्रता का वर्णन किया। वहाँ से लौटकर हनुमानजी ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे।
श्री रामचंद्रजी ने वानर सेना सहित सुग्रीव की सम्पत्ति से लंका को प्रस्थान किया। जब श्री रामचंद्रजी समुद्र से किनारे पहुँचे तब उन्होंने मगरमच्छ आदि से युक्त उस अगाध समुद्र को देखकर लक्ष्मणजी से कहा कि इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे।
श्री लक्ष्मण ने कहा हे पुराण पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं। यहाँ से आधा योजन दूर पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं। उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं, आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिए। लक्ष्मणजी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री रामचंद्रजी वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रमाण करके बैठ गए।
मुनि ने भी उनको मनुष्य रूप धारण किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा कि हे राम! आपका आना कैसे हुआ? रामचंद्रजी कहने लगे कि हे ऋषे! मैं अपनी सेना ‍सहित यहाँ आया हूँ और राक्षसों को जीतने के लिए लंका जा रहा हूँ। आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई उपाय बतलाइए। मैं इसी कारण आपके पास आया हूँ।
वकदालभ्य ऋषि बोले कि हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करने से निश्चय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे।
इस व्रत की विधि यह है कि दशमी के दिन स्वर्ण, चाँदी, ताँबा या मिट्‍टी का एक घड़ा बनाएँ। उस घड़े को जल से भरकर तथा पाँच पल्लव रख वेदिका पर स्थापित करें। उस घड़े के नीचे सतनजा और ऊपर जौ रखें। उस पर श्रीनारायण भगवान की स्वर्ण की मूर्ति स्थापित करें। एका‍दशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान की पूजा करें।
तत्पश्चात घड़े के सामने बैठकर दिन व्यतीत करें ‍और रात्रि को भी उसी प्रकार बैठे रहकर जागरण करें। द्वादशी के दिन नित्य नियम से निवृत्त होकर उस घड़े को ब्राह्मण को दे दें। हे राम! यदि तुम भी इस व्रत को सेनापतियों सहित करोगे तो तुम्हारी विजय अवश्य होगी। श्री रामचंद्रजी ने ऋषि के कथनानुसार इस व्रत को किया और इसके प्रभाव से दैत्यों पर विजय पाई।
अत: हे राजन्! जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करेगा, दोनों लोकों में उसकी अवश्य विजय होगी। श्री ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था कि हे पुत्र! जो कोई इस व्रत के महात्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसको वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
*महत्व*
विजया एकादशी के दिन भगवान विष्णु संग मां लक्ष्मी की होती है पूजा
पद्म और स्कंद पुराण में विजया एकादशी व्रत का बताया गया है महत्व
हिंदू धर्म में सभी एकादशी का अपना-अपना महत्व बताया गया है. इसमें विजया एकादशी का विशेष महत्व. इसी दिन भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु की भक्त पर कृपा बनी रहती है. मोक्ष की प्राप्ति होती है. फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष एकादशी को विजया एकादशी मनाई जाती है।
विजया एकादशी, नाम के अनुसार ही इस एकादशी का व्रत करने वाले को जीवन की हर बाधा पर विजय पाने की शक्ति मिलती है. ये एकादशी आपका आत्मबल बढ़ाएगी साथ ही आपको सशक्त बना सकती है.पद्म पुराण और स्कंद पुराण में भी इस व्रत का महत्व बताया गया है. पौराणिक मान्यता है कि प्राचीन काल में कई राजा-महाराजा इसी व्रत के प्रभाव से अपनी निश्चित हार को जीत में बदल लेते थे. कहा जाता है कि विकट से विकट परिस्थिति में भी विजया एकादशी के व्रत से जीत पाई जा सकती है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि व्रतों में सबसे बड़ा व्रत एकादशी का माना जाता है. ज्योतिष के जानकारों के अनुसार इससे आप चन्द्रमा के हर ख़राब प्रभाव को रोक सकते हैं, ग्रहों के बुरे प्रभाव को भी काफी हद तक कम कर सकते हैं.
मान्यता है कि विजया एकादशी के दिन व्रत रखने से हर समस्या का निदान हो जाता है. लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान श्रीराम ने समुद्र के तट पर अपनी पूरी सेना के साथ विजया एकादशी का व्रत रखा था. जिसके प्रभाव से रावण का वध हुआ और भगवान राम को विजय प्राप्त हुई. इस व्रत को सभी पापों का नाश करने वाला माना जाता है. इस एकादशी व्रत का सीधा प्रभाव मन और शरीर पर पड़ता है. इस व्रत से अशुभ संस्कारों को भी नष्ट किया जा सकता है.ज्योतिष के जानकारों की मानें तो विजया एकादशी पर जिस मनोकामना को लेकर आप व्रत का संकल्प लेंगे उसमें आपको विजय मिलेगी.
*पूजा विधि*
1. विजया एकादशी का दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को समर्पित है.
2. इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें.
3. पीले या लाल रंग के वस्त्र को धारण करें.
4. पूजा का मंदिर अच्छे से स्वच्छ कर लें. फिर उसपर सप्त अनाज रखें.
5. इसके बाद वहां पर कलश स्थापित करें. फिर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें.
6. फल, फूल, दीपक, चंदन और तुलसी से भगवान विष्णु की पूजा करें.
7. इसके बाद भगवान विष्णु की आरती करें.व्रत कथा पढ़ें या सुनें.
8. रात में श्री हरि के नाम का जाप करते हुए जागरण करें.
9. अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन और दान दक्षिणा दें।
10. गौसेवा अवश्य करे गौमाताओं को भोजन कराएं उनके निमित्त गौशाला में भूसा राशन डलवाएं।
विजया एकादशी पर क्या करें और क्या नहीं
तामसिक आहार इस दिन नहीं करें. भगवान विष्णु का ध्यान करके ही दिन की शुरुआत करें. इस दिन मन को ज्यादा से ज्यादा भगवान विष्णु में लगाए रखें. सेहत ठीक ना हो तो उपवास न रखें. केवल व्रत के नियमों का पालन करें. एकादशी के दिन चावल और भारी भोजन न खाएं. विजया एकादशी के दिन रात की उपासना का विशेष महत्व होता है. इस दिन क्रोध नहीं करें, कम बोलें और आचरण पर नियंत्रण रखें।
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pradeepdasblog · 7 months
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( #Muktibodh_part201 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part202
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 384-385
‘‘किस-किसको मिला परमात्मा‘‘
कलयुग में परमेश्वर जिन-जिन महान आत्माओं को मिले, उनको तत्त्वज्ञान बताया, उनका मैं संक्षिप्त वर्णन करता हूँः-
‘‘सन्त धर्मदास जी से प्रथम बार परमेश्वर कबीर जी का साक्षात्कार’’
1. श्री धर्मदास जी बनिया जाति से थे जो बाँधवगढ़ (मध्य प्रदेश) के रहने वाले बहुत धनी व्यक्ति थे। उनको भक्ति की प्रेरणा बचपन से ही थी। जिस कारण से एक रुपदास नाम
के वैष्णव सन्त को गुरु धारण कर रखा था। हिन्दू धर्म में जन्म होने के कारण सन्त रुपदास जी श्री धर्मदास जी को राम कृष्ण, विष्णु तथा शंकर जी की भक्ति करने को कहते थे।
एकादशी का व्रत, तीर्थों पर भ्रमण करना, श्राद्ध कर्म, पिण्डोदक क्रिया सब करने की राय दे रखी थी। गुरु रुपदास जी द्वारा बताई सर्व साधना श्री धर्मदास जी पूरी आस्था के साथ किया करते थे। गुरु रुपदास जी की आज्ञा लेकर धर्मदास जी मथुरा नगरी में तीर्थ-दर्शन तथा स्नान करने तथा गिरीराज (गोवर्धन) पर्वत की परिक्रमा करने के लिए गए थे। परम अक्षर ब्रह्म स्वयं मथुरा में प्रकट हुए। एक जिन्दा महात्मा की वेशभूषा में धर्मदास जी को मिले। श्री धर्मदास जी ने उस तीर्थ तालाब में स्नान किया जिसमें श्री कृष्ण जी बाल्यकाल में स्नान किया करते थे। फिर उसी जल से एक लोटा भरकर लाये। भगवान श्री कृष्ण जी की पीतल की मूर्ति (सालिग्राम) के चरणों पर डालकर दूसरे बर्तन में डालकर चरणामृत बनाकर पीया। फिर सालिग्राम को स्नान करवाकर अपना कर्मकाण्ड पूरा किया। फिर एक
स्थान को लीपकर अर्थात् गारा तथा गाय का गोबर मिलाकर कुछ भूमि पर पलस्तर करके उस पर स्वच्छ कपड़ा बिछाकर श्रीमद्भगवत् गीता का पाठ करने बैठे। यह सर्व क्रिया जब धर्मदास जी कर रहे थे। परमात्मा जिन्दा भेष में थोड़ी दूरी पर बैठे देख रहे थे। धर्मदास
जी भी देख रहे थे कि एक मुसलमान सन्त मेरी भक्ति क्रियाओं को बहुत ध्यानपूर्वक देख रहा है, लगता है इसको हम हिन्दुओं की साधना मन भा गई है। इसलिए श्रीमद्भगवत् गीता का पाठ कुछ ऊँचे स्वर में करने लगा तथा हिन्दी का अनुवाद भी पढ़ने लगा। परमेश्वर उठकर धर्मदास जी के निकट आकर बैठ गए। धर्मदास जी को अपना अनुमान सत्य लगा कि वास्तव में इस जिन्दा वेशधारी बाबा को हमारे धर्म का भक्ति मार्ग अच्छा लग रहा है।
इसलिए उस दिन गीता के कई अध्याय पढ़े तथा उनका अर्थ भी सुनाया। जब धर्मदास जी अपना दैनिक भक्ति कर्म कर चुका, तब परमात्मा ने कहा कि हे महात्मा जी! आपका शुभ नाम क्या है? कौन जाति से हैं। आप जी कहाँ के निवासी हैं? किस धर्म-पंथ से जुड़े हैं?
कृपया बताने का कष्ट करें। मुझे आपका ज्ञान बहुत अच्छा लगा, मुझे भी कुछ भक्ति ज्ञान सुनाईए। आपकी अति कृपा होगी।
धर्मदास जी ने उत्तर दिया :- मेरा नाम धर्मदास है, मैं बांधवगढ़ गाँव का रहने वाल वैश्य कुल से हूँ। मैं वैष्णव पंथ से दीक्षित हूँ, हिन्दू धर्म में जन्मा हूँ। मैंने पूरे निश्चय के साथ तथा अच्छी तरह ज्ञान समझकर वैष्णव पंथ से दीक्षा ली है। मेरे गुरुदेव श्री रुपदास जी हैं।
अध्यात्म ज्ञान से मैं परिपूर्ण हूँ। अन्य किसी की बातों में आने वाला मैं नहीं हूँ। राम-कृष्ण जो श्री विष्णु जी के ही अवतार हुए हैं तथा भगवान शंकर की पूजा करता हूँ, एकादशी का व्रत रखता हूँ। तीर्थों में जाता हूँ, वहाँ दान करता हूँ। शालिग्राम की पूजा नित्य करता हूँ।
यह पवित्रा पुस्तक श्रीमद्भगवत् गीता है, इसका नित्य पाठ करता हूँ। मैं अपने पूर्वजों का श्राद्ध भी करता हूँ जो स्वर्गवासी हो चुके हैं। पिण्डदान भी करता हूँ। मैं कोई जीव हिंसा नहीं
करता, माँस, मदिरा, तम्बाकू सेवन नहीं करता।
प्रश्न :- परमेश्वर कबीर ने पूछा कि आप जिस पुस्तक को पढ़ रहे थे, इसका नाम क्या है?
उत्तर :- धर्मदास जी ने बताया कि यह श्रीमद्भगवत गीता है। हम शुद्र को निकट भी नहीं आने देते, शुद्ध रहते हैं।
प्रश्न :- (कबीर जी जिन्दा रुप में) आप क्या नाम-जाप करते हो?
उत्तर :- (धर्मदास जी का) हम हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे, ओम् नमः शिवाय, ओम् भगवते वासुदेवाय नमः, राधे-राधे श्याम मिलादे, गायत्री मन्त्र का जाप 108 बार प्रतिदिन करता हूँ। विष्णु सहंस्रनाम का जाप भी करता हूँ।
प्रश्न :- (जिन्दा बाबा का) हे महात्मा धर्मदास! गीता का ज्ञान किसने दिया?
उत्तर : (धर्मदास का) भगवान श्री कृष्ण जी ने, यही श्री विष्णु जी हैं।
प्रश्न : (जिन्दा बाबा रुप में परमात्मा का) :- आप जी के पूज्य देव श्री कृष्ण अर्थात् श्री विष्णु हैं। उनका बताया भक्ति ज्ञान गीता शास्त्र है।
एक किसान को वृद्धावस्था में पुत्र प्राप्त हुआ। किसान ने विचार किया कि जब तक पुत्र कृषि करने योग्य होगा, तब तक मेरी मृत्यु हो जाएगी। इसलिए उसने कृषि करने का तरीका अपना अनुभव एक बही (रजिस्टर) में लिख दिया। अपने पुत्रा से कहा कि बेटा जब आप युवा हो जाओ तो मेरे इस रजिस्टर में लिखे अनुभव को बार-2 पढ़ना। इसके अनुसार फसल बोना। कुछ दिन पश्चात् पिता की मृत्यु हो गई, पुत्रा प्रतिदिन अपने पिता के अनुभव का पाठ करने लगा। परन्तु फसल का बीज व बिजाई, सिंचाई उस अनुभव के विपरित करता था। तो क्या वह पुत्रा अपने कृषि के कार्य में सफलता प्राप्त करेगा?
उत्तर : (धर्मदास का) : इस प्रकार तो पुत्रा निर्धन हो जाएगा। उसको तो पिता के लिखे अनुभव के अनुसार प्रत्येक कार्य करना चाहिए। वह तो मूर्ख पुत्र है।
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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adbanaoapp-india · 11 months
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दिवाली की शुरुवात , गोवत्स द्वादशी / वसुबारस के साथ ।
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दिवाली की शान बढ़ाओ, लोकल ख़रीदारी अपनाओ। AdBanao Special Blog
गोवत्स द्वादशी / वसुबारस बनाओ ख़ास AdBanao App के साथ। 
वसुबारस क्या है और क्यूँ मानते है|
भारत में त्योहारों की कोई कमी नहीं होती है। यहां त्यौहारों में नई-नई रंगत भर जाती है और धूम-धाम से मनाया जाता है। इन त्यौहारों में भारतीय बहुत उत्साह से भाग लेते हैं। ऐसे ही एक त्यौहार है वसुबारस। यह त्यौहार दीवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है। हम इस दिन को भगवान विष्णु और उनकी प्रतिनिधित्व करने वाली गाय के उपासना के रूप में मनाया जाता है। 
वसुबारस क्या होता है? इस दिन गाय और उसकी सहायक दूध पिलाने वाली बछड़े का पूजन किया जाता है।
भारत में अधिकतर हिंदू गाय को अत्यंत मूल्यवान व पवित्र मानते है।
इस त्योहार को अनेक राज्यों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, लेकिन इसका महत्व सब जगह पूरी तरह से समान ही होता है। वसुबारस के दिन गायों की पूजा की विधि अनेक स्थानों पर अलग-अलग होती है। महाराष्ट्र में वसुबारस को गोवत्स द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। गुजरात में बाघ बारस नाम से मनाया जाता है।
आंध्र प्रदेश राज्य में पीठापुरम दत्त महासंस्थान में श्रीपाद श्री वल्लभ के श्रीपाद वल्लभ आराधना उत्सव के रूप में मनाया जाता है। अन्य राज्यों में भी वसुबारस को उत्सव के रूप में आयोजित किया जाता है। 
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गौ माता को मातृत्व, उर्जा और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जिनके घर गाय होती है उनके घर धन और लाभ की प्राप्ति होती है और इसलिए लोग अपनी गाय और बछड़ों को पूजते हैं, उन्हें वसुधा देवी का रूप मानते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं।
वसुबारस का महत्व
वसुबारस मुख्यतः देवी गौ माता की पूजा का दिन माना जाता है। गाय को माँ के रूप में मानी जाती है जो हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए इस दिन हमें एक मौका मिलता है भगवान शिव की तरह, देवी गौ माता की पूजा करने का। 
इसी के साथ देवी लक्ष्मी धन और समृद्धि की देवी मानी जाती है, जो अपने भक्तों के जीवन में खुशहाली और समृद्धि लाती है। वसुबारस के दिन गौ माता की पूजा करने से देवी लक्ष्मी सुख, समृद्धि और सफलता का वरदान देती हैं। वसुबारस के दिन भगवान कुबेर और देवी लक्ष्मी की प्रार्थना करने का एक और सुअवसर होता है। इस दिन अगर हम व्रत रखते हैं, तो यह ��मारी मनोकामनाएं पूरी करने में मदद करता है। हमें उम्मीद है कि इस वसुबारस पर आप सभी गौ माता की पूजा कर, देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करें और हर एक से प्यार भरे रिश्तों की स्थापना करें।
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वसुबारस में पूजा विधि
हिंदू धर्म में गौ माता को बड़ा महत्व मिलता है, और विभिन्न उत्सवों में गौ माता की पूजा की जाती है। वसुबारस उत्सव के दौरान भी गौ माता व उसके बछड़ों की पूजा की जाती है। गौ पूजा प्रातःकाल में कि जाती है। गौ माता की पूजा के लिए एक साफ़ थाली उसमें चावल, फूल, दीपक, पंचामृत, नारियल का पानी, शक्कर, हल्दी, कुमकुम आदि आवश्यक चीजें है। उसी के साथ भोग भी आवशक है, भोग स्वरूप गेहूँ के उत्पाद, चना और मूंग की फलियाँ खिलाई जाती हैं| 
श्री कृष्ण की पूजा भी वसुबारस में की जाती है। वसुबारस के दिन कर्म करने की महत्वता होती है। दिन के जल्दी सूर्योदय पर उठें और गौ माता की पूजा के बाद महिलाएँ घर के कोने-कोने से आकाश की ओर अभिवादन करती है| यह करने से बड़ी से बड़ी आपदाओं से बचा जा सकता है ऐसी मान्यता है। इसी के साथ दान का भी इस दें पर अनन्य साधारण महत्व है। 
गौ माता या कामधेनु जैसी स्वर्गीय गाय की पूजा करने से, हमारे घर सुख शांति और धन कि कभी कमी नहीं रहेगी यह धरना होती है, इसी लिए वसुबारस के दिन लोग अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए गौ माता से आशीर्वाद लेते हैं।
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वसुबारस पर आप अपना बिज़नस कैसे बढ़ा सकते हो?
हम सभी को पता है कि, वसुबारस दिवाली कि शुरुवात मानी जाती है, दिवाली भारत का सबसे बड़ा त्योहार है|
दिवाली खुशियों के साथ साथ बिज़नस बढाने का भी अवसर लेकर आती है|
इस दिवाली आप अपने बिज़नस कि ब्रांडिंग करके अपने बिज़नस को बढ़ा सकते हो| आपके बिज़नस कि ब्रांडिंग के लिए AdBanao ऐप सबसे प्रीमियम और कारगर है| 
AdBanao से आप वसुबारस के लिए सोशल मीडिया पोस्ट बना सकते हो उसी के साथ नरक चतुर्थी के बैनर्स, लक्ष्मी पूजा के बधाई पोस्टर, बलि प्रतिपदा के व्हिडिओ स्टेटस, दिवाली पाडवा के प्रोडक्ट ads, गोवेर्धन पूजा के स्टेटस के साथ WhatsApp स्टिकर्स, धनतेरस के लिए बिजनेस Ads, भैया दूज ब्रांडिंग पोस्टर्स,  तुलसी विवाह के सोशल मीडिया पोस्ट, देव दिवाली के व्हिडिओ स्टेटस, और भी बहुत कुछ आपको मिलता है AdBanao ऐप में|
तो चलो, दिवाली के साथ अपने बिज़नस ब्रांडिंग का भी उत्सव मानते है, AdBanao से ब्रांडिंग करके इस दिवाली अपना कारोबार बढ़ाते है|
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randhirsingh0 · 1 year
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ब्रह्म साधना अनुत्तम (घटिया) है।
2. तीन ताप को श्री कृष्ण जी भी समाप्त नहीं कर सके। श्राप देन��� तीन ताप (दैविक ताप) में आता है। दुर्वासा के श्राप के शिकार स्वयं श्री कृष्ण सहित सर्व यादव भी हो गए।
3. श्री कृष्ण जी ने श्रापमुक्त होने के लिए यमुना में स्नान करने के लिए कहा, यह समाधान बताया था। उससे श्राप नाश तो हुआ नहीं, यादवों का नाश अवश्य हो गया। विचार करें:- जो अन्य सन्त या ब्राह्मण जो ऐसे स्नान या तीर्थ करने से संकट मुक्त करने की राय देते हैं, वे कितनी कारगर हैं? अर्थात् व्यर्थ हैं क्योंकि जब भगवान त्रिलोकी नाथ द्वारा बताए समाधान यमुना स्नान से कुछ लाभ नहीं हुआ तो अन्य टट्पँुजियों, ब्राह्मणों व गुरूओं द्वारा बताए स्नान आदि समाधान से कुछ होने वाला नहीं है।
4. पहले श्री कृष्ण जी ने दुर्वासा के श्राप से बचाव का तरीका बताया था। उस कढ़ाई को घिसाकर चूर्ण बनाकर प्रभास क्षेत्रा में यमुना नदी में डाल दो। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी, बाँस भी रह गया, 56 करोड़ यादवों की बाँसुरी भी बज गई।
सज्जनो!
वर्तमान में बुद्धिमान मानव है, शिक्षित है। मेरे द्वारा (सन्त रामपाल दास द्वारा) बताए ज्ञान को शास्त्रों से मिलाओ, फिर भक्ति करके देखो, क्या कमाल होता है।
प्रसंग आगे चलाते हैं:-
1. तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव जी) की भक्ति करना व्यर्थ सिद्ध हुआ।
2. गीता ज्ञान दाता ब्रह्म की भक्ति स्वयं गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में अनुत्तम बताई है। उसने गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में उस परमेश्वर अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म की शरण में जाने को कहा है। यह भी कहा है कि उस परमेश्वर की कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा।
3. गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में संसार रूपी वृक्ष का ��र्णन है तथा तत्वदर्शी सन्त की पहचान भी बताई है। संसार रूपी वृक्ष के सब हिस्से, जड़ें (मूल) कौन परमेश्वर है? तना कौन प्रभु है, डार कौन प्रभु है, शाखाऐं कौन-कौन देवता हैं? पात रूप संसार बताया है। 
इसी अध्याय 15 श्लोक 16 में स्पष्ट किया है कि:-
1. क्षर पुरूष (यह 21 ब्रह्माण्ड का प्रभु है):- इसे ब्रह्म, काल ब्रह्म, ज्योति निरंजन भी कहा जाता है। यह नाशवान है। हम इसके लोक में रह रहे हैं। हमें इसके लोक से मुक्त होना है तथा अपने परमात्मा कबीर जी के पास सत्यलोक में
जाना है।
2. अक्षर पुरूष:- यह 7 संख ब्रह्माण्डों का प्रभु है, यह भी नाशवान है। हमने इसके 7 संख ब्रह्माण्डों के क्षेत्रा से होकर सत्यलोक जाना है। इसलिए इसका टोल टैक्स देना है। बस इससे हमारा इतना ही काम है।
गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि:-
उत्तमः पुरूषः तू अन्यः परमात्मा इति उदाहृतः।
यः लोक त्रायम् आविश्य विभर्ति अव्ययः ईश्वरः।।
सरलार्थ:- गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में कहे दो पुरूष, एक क्षर पुरूष दूसरा अक्षर पुरूष हैं। इन दोनों से अन्य है उत्तम पुरूष अर्थात् पुरूषोत्तम, उसी को परमात्मा कहते हैं जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है। वह वास्तव में अविनाशी परमेश्वर है। (गीता अध्याय 15 श्लोक 17) गीता अध्याय 3 श्लोक 14.15 में भी स्पष्ट किया है कि सर्वगतम् ब्रह्म अर्थात् सर्वव्यापी परमात्मा, जो सचिदानन्द घन ब्रह्म है, उसे वासुदेव भी कहते हैं जिसके विषय में गीता अध्याय 7 श्लोक 19 में कहा है। वही सदा यज्ञों अर्थात् धार्मिक अनुष्ठानों में प्रतिष्ठित है अर्थात् ईष्ट रूप में पूज्य है।
पूर्ण गुरू से दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करो। इस प्रकार जीने की राह पर चलकर संसार में सुखी जीवन जीऐं तथा मोक्ष रूपी मंजिल को प्राप्त करें।
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जीने की राह
 Jeene Ki Rah - Audio Book
 जीने की राह | भूमिका
 जीने की राह | दो शब्द
 1. मानव जीवन की आम धारणा | जीने की राह
 2. सुख सागर की संक्षिप्त परिभाषा | जीने की राह
 3. मार्कण्डेय ऋषि तथा अप्सरा का संवाद
 4. आज भाई को फुरसत | जीने की राह
 5. भक्ति न करने से हानि का अन्य विवरण | जीने की राह
 6. भक्ति न करने से बहुत दुःख होगा | जीने की राह
 7. भक्ति मार्ग पर यात्रा | जीने की राह
 8. विवाह कैसे करें | जीने की राह
 9. प्रेम प्रसंग कैसा होता है? | जीने की राह
 10. भगवान शिव का अपनी पत्नी को त्यागना | जीने की राह
 11. कृतघ्नी पुत्र | जीने की राह
 12. बे-औलादो! सावधान | जीने की राह
 13. विवाह में ज्ञानहीन नाचते हैं | जीने की राह
 14. संतों की शिक्षा | जीने की राह
 15. विवाह के पश्चात् की यात्रा | जीने की राह
 16. विशेष मंथन | जीने की राह
 17. चरित्रवान की कथा | जीने की राह
 18. संगत का प्रभाव तथा विश्वास प्रभु का | जीने की राह
 19. परमेश्वर कबीर जी द्वारा काशी शहर में भोजन-भण्डारा यानि लंगर (धर्म यज्ञ) की व्यवस्था करना | जीने की राह
 20. एक अन्य करिश्मा जो उस भण्डारे में हुआ | जीने की राह
 21. हरलाल जाट की कथा | जीने की राह
 22. तम्बाकू सेवन करना महापाप है | जीने की राह
 23. तम्बाकू की उत्पत्ति कथा | जीने की राह
 24. तम्बाकू के विषय में अन्य विचार | जीने की राह
 25. तम्बाकू से गधे-घोड़े भी घृणा करते हैं | जीने की राह
 26. नशा करता है नाश | जीने की राह
 27. माता-पिता की सेवा व आदर करना परम कर्तव्य | जीने की राह
 28. पिता बच्चों की हर संभव गलती क्षमा कर देता है | जीने की राह
 29. सत्संग से घर की कलह समाप्त होती है | जीने की राह
 30. पुहलो बाई की नसीहत | जीने की राह
 31. ‘सत्संग में जाने से बड़ी आपत्ति टल जाती है’ | जीने की राह
 32. मीराबाई को विष से मारने की व्यर्थ कोशिश | जीने की राह
 33. मीरा को सतगुरू शरण मिली | जीने की राह
 34. चोर कभी धनी नहीं होता | जीने की राह
 35. सांसारिक चीं-चूं में ही भक्ति करनी पड़ेगी | जीने की राह
 36. अब भक्ति से क्या होगा? आयु तो थोड़ी-सी शेष है। | जीने की राह
 37. चौधरी जीता जाट को ज्ञान हुआ | जीने की राह
 38. वैश्या का उद्धार | जीने की राह
 39. रंका-बंका की कथा | जीने की राह
 40. कबीर जी द्वारा शिष्यों की परीक्षा लेना | जीने की राह
 41. दीक्षा के पश्चात् | जीने की राह
 42. एक लेवा एक देवा दूतं। कोई किसी का पिता न पूतं | जीने की राह
 43. कथनी और करनी में अंतर घातक है | जीने की राह
 44. सत्संग से मिली भक्ति की राह | जी��े की राह
 45. मनीराम कथा वाचक पंडित की करनी | जीने की राह
 46. राजा परीक्षित का उद्धार | जीने की राह
 47. पंडित की परिभाषा | जीने की राह
 48. अध्याय अनुराग सागर का सारांश | जीने की राह
 49. भक्त का स्वभाव कैसा हो? | जीने की राह
 50. मन कैसे पाप-पुण्य करवाता है | जीने की राह
 51. भक्त के 16 गुण (आभूषण) | जीने की राह
 52. काल का जीव सतगुरू ज्ञान नहीं मानता | जीने की राह
 53. हंस (भक्त) लक्षण | जीने की राह
 54. भक्त परमार्थी होना चाहिए | जीने की राह
 55. दीक्षा लेकर नाम का स्मरण करना अनिवार्य है | जीने की राह
 56. दश मुकामी रेखता | जीने की राह
 57. भक्त जती तथा सती होना चाहिए | जीने की राह
 58. अध्याय "गरूड़ बोध" का सारांश | जीने की राह
 59. अमृतवाणी गरूड़ बोध से | जीने की राह
 60. अध्याय "हनुमान बोध" का सारांश | जीने की राह
 61. कबीर परमेश्वर जी की काल से वार्ता | जीने की राह
 62. काल निरंजन द्वारा कबीर जी से तीन युगों में कम जीव ले जाने का वचन लेना | जीने की राह
 63. तेरह गाड़ी कागजों को लिखना | जीने की राह
 64. कलयुग वर्तमान में कितना बीत चुका है | जीने की राह
 65. गुरू बिन मोक्ष नही | जीने की राह
 66. पूर्ण गुरू के वचन की शक्ति से भक्ति होती है | जीने की राह
 67. वासुदेव की परिभाष | जीने की राह
 68. भक्ति किस प्रभु की करनी चाहिए’’ गीता अनुसार | जीने की राह
 69. पूजा तथा साधना में अंतर | जीने की राह
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संत रामपाल जी महाराज का अवतरण दिवस
6-7-8 सितंबर
विशाल भंडारा
अवतरण दिवसब्रह्म साधना अनुत्तम (घटिया) है।
2. तीन ताप को श्री कृष्ण जी भी समाप्त नहीं कर सके। श्राप देना तीन ताप (दैविक ताप) में आता है। दुर्वासा के श्राप के शिकार स्वयं श्री कृष्ण सहित सर्व यादव भी हो गए।
3. श्री कृष्ण जी ने श्रापमुक्त होने के लिए यमुना में स्नान करने के लिए कहा, यह समाधान बताया था। उससे श्राप नाश तो हुआ नहीं, यादवों का नाश अवश्य हो गया। विचार करें:- जो अन्य सन्त या ब्राह्मण जो ऐसे स्नान या तीर्थ करने से संकट मुक्त करने की राय देते हैं, वे कितनी कारगर हैं? अर्थात् व्यर्थ हैं क्योंकि जब भगवान त्रिलोकी नाथ द्वारा बताए समाधान यमुना स्नान से कुछ लाभ नहीं हुआ तो अन्य टट्पँुजियों, ब्राह्मणों व गुरूओं द्वारा बताए स्नान आदि समाधान से कुछ होने वाला नहीं है।
4. पहले श्री कृष्ण जी ने दुर्वासा के श्राप से बचाव का तरीका बताया था। उस कढ़ाई को घिसाकर चूर्ण बनाकर प्रभास क्षेत्रा में यमुना नदी में डाल दो। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी, बाँस भी रह गया, 56 करोड़ यादवों की बाँसुरी भी बज गई।
सज्जनो!
वर्तमान में बुद्धिमान मानव है, शिक्षित है। मेरे द्वारा (सन्त रामपाल दास द्वारा) बताए ज्ञान को शास्त्रों से मिलाओ, फिर भक्ति करके देखो, क्या कमाल होता है।
प्रसंग आगे चलाते हैं:-
1. तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव जी) की भक्ति करना व्यर्थ सिद्ध हुआ।
2. गीता ज्ञान दाता ब्रह्म की भक्ति स्वयं गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में अनुत्तम बताई है। उसने गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में उस परमेश्वर अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म की शरण में जाने को कहा है। यह भी कहा है कि उस परमेश्वर की कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा।
3. गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में संसार रूपी वृक्ष का वर्णन है तथा तत्वदर्शी सन्त की पहचान भी बताई है। संसार रूपी वृक्ष के सब हिस्से, जड़ें (मूल) कौन परमेश्वर है? तना कौन प्रभु है, डार कौन प्रभु है, शाखाऐं कौन-कौन देवता हैं? पात रूप संसार बताया है। 
इसी अध्याय 15 श्लोक 16 में स्पष्ट किया है कि:-
1. क्षर पुरूष (यह 21 ब्रह्माण्ड का प्रभु है):- इसे ब्रह्म, काल ब्रह्म, ज्योति निरंजन भी कहा जाता है। यह नाशवान है। हम इसके लोक में रह रहे हैं। हमें इसके लोक से मुक्त होना है तथा अपने परमात्मा कबीर जी के पास सत्यलोक में
जाना है।
2. अक्षर पुरूष:- यह 7 संख ब्रह्माण्डों का प्रभु है, यह भी नाशवान है। हमने इसके 7 संख ब्रह्माण्डों के क्षेत्रा से होकर सत्यलोक जाना है। इसलिए इसका टोल टैक्स देना है। बस इससे हमारा इतना ही काम है।
गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि:-
उत्तमः पुरूषः तू अन्यः परमात्मा इति उदाहृतः।
यः लोक त्रायम् आविश्य विभर्ति अव्ययः ईश्वरः।।
सरलार्थ:- गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में ��हे दो पुरूष, एक क्षर पुरूष दूसरा अक्षर पुरूष हैं। इन दोनों से अन्य है उत्तम पुरूष अर्थात् पुरूषोत्तम, उसी को परमात्मा कहते हैं जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है। वह वास्तव में अविनाशी परमेश्वर है। (गीता अध्याय 15 श्लोक 17) गीता अध्याय 3 श्लोक 14.15 में भी स्पष्ट किया है कि सर्वगतम् ब्रह्म अर्थात् सर्वव्यापी परमात्मा, जो सचिदानन्द घन ब्रह्म है, उसे वासुदेव भी कहते हैं जिसके विषय में गीता अध्याय 7 श्लोक 19 में कहा है। वही सदा यज्ञों अर्थात् धार्मिक अनुष्ठानों में प्रतिष्ठित है अर्थात् ईष्ट रूप में पूज्य है।
पूर्ण गुरू से दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करो। इस प्रकार जीने की राह पर चलकर संसार में सुखी जीवन जीऐं तथा मोक्ष रूपी मंजिल को प्राप्त करें।
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 जीने की राह | भूमिका
 जीने की राह | दो शब्द
 1. मानव जीवन की आम धारणा | जीने की राह
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 4. आज भाई को फुरसत | जीने की राह
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 19. परमेश्वर कबीर जी द्वारा काशी शहर में भोजन-भण्डारा यानि लंगर (धर्म यज्ञ) की व्यवस्था करना | जीने की राह
 20. एक अन्य करिश्मा जो उस भण्डारे में हुआ | जीने की राह
 21. हरलाल जाट की कथा | जीने की राह
 22. तम्बाकू सेवन करना महापाप है | जीने की राह
 23. तम्बाकू की उत्पत्ति कथा | जीने की राह
 24. तम्बाकू के विषय में अन्य विचार | जीने की राह
 25. तम्बाकू से गधे-घोड़े भी घृणा करते हैं | जीने की राह
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 28. पिता बच्चों की हर संभव गलती क्षमा कर देता है | जीने की राह
 29. सत्संग से घर की कलह समाप्त होती है | जीने की राह
 30. पुहलो बाई की नसीहत | जीने की राह
 31. ‘सत्संग में जाने से बड़ी आपत्ति टल जाती है’ | जीने की राह
 32. मीराबाई को विष से मारने की व्यर्थ कोशिश | जीने की राह
 33. मीरा को सतगुरू शरण मिली | जीने की राह
 34. चोर कभी धनी नहीं होता | जीने की राह
 35. सांसारिक चीं-चूं में ही भक्ति करनी पड़ेगी | जीने की राह
 36. अब भक्ति से क्या होगा? आयु तो थोड़ी-सी शेष है। | जीने की राह
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 40. कबीर जी द्वारा शिष्यों की परीक्षा लेना | जीने की राह
 41. दीक्षा के पश्चात् | जीने की राह
 42. एक लेवा एक देवा दूतं। कोई किसी का पिता न पूतं | जीने की राह
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 48. अध्याय अनुराग सागर का सारांश | जीने की राह
 49. भक्त का स्वभाव कैसा हो? | जीने की राह
 50. मन कैसे पाप-पुण्य करवाता है | जीने की राह
 51. भक्त के 16 गुण (आभूषण) | जीने की राह
 52. काल का जीव सतगुरू ज्ञान नहीं मानता | जीने की राह
 53. हंस (भक्त) लक्षण | जीने की राह
 54. भक्त परमार्थी होना चाहिए | जीने की राह
 55. दीक्षा लेकर नाम का स्मरण करना अनिवार्य है | जीने की राह
 56. दश मुकामी रेखता | जीने की राह
 57. भक्त जती तथा सती होना चाहिए | जीने की राह
 58. अध्याय "गरूड़ बोध" का सारांश | जीने की राह
 59. अमृतवाणी गरूड़ बोध से | जीने की राह
 60. अध्याय "हनुमान बोध" का सारांश | जीने की राह
 61. कबीर परमेश्वर जी की काल से वार्ता | जीने की राह
 62. काल निरंजन द्वारा कबीर जी से तीन युगों में कम जीव ले जाने का वचन लेना | जीने की राह
 63. तेरह गाड़ी कागजों को लिखना | जीने की राह
 64. कलयुग वर्तमान में कितना बीत चुका है | जीने की राह
 65. गुरू बिन मोक्ष नही | जीने की राह
 66. पूर्ण गुरू के वचन की शक्ति से भक्ति होती है | जीने की राह
 67. वासुदेव की परिभाष | जीने की राह
 68. भक्ति किस प्रभु की करनी चाहिए’’ गीता अनुसार | जीने की राह
 69. पूजा तथा साधना में अंतर | जीने की राह
 70. ऋषि दुर्वासा की कारगुजारी | जीने की राह
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संत रामपाल जी महाराज का अवतरण दिवस
6-7-8 सितंबर
विशाल भंडारा
अवतरण दिवस
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8 सितंबर 2023
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devrishi · 2 years
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अर्जुन
जब आप अर्जुन नाम सुनते हो तो आपके विचार में क्या आता है हो सकता है आपके विचार में पांडवों में से एक अर्जुन याद आता है या फिर हो सकता है कि आपके विचार में किसी सामान्य व्यक्ति का चेहरा आ रहा लेकिन जब मैं अर्जुन शब्द सुनता हूं तुम मेरे दिमाग में सिर्फ एक ही तस्वीर आती है वह तस्वीर आती है कि कैसे श्री कृष्ण अर्जुन को गीता का ज्ञान दे रहे हैं आपको जानकर शायद हैरानी हो लेकिन गीता में सबसे ज्यादा बार इस्तेमाल किया गया शब्द अर्जुन है आपको लगता है कि हम सभी को ज्यादा लगता है कि अर्जुन गीता का एक पात्र हैं लेकिन अर्जुन एक पात्र से बढ़कर है हर व्यक्ति अर्जुन है और हर व्यक्ति का जीवन महाभारत है हम सोचते हैं कि हमारी परेशानियों को दूर करने के लिए हमारी समस्याओं को दूर करने के लिए ईश्वर अवतार लेंगे लेकिन हम यह नहीं जानते कि हमारी परेशानियों का समाधान करने के लिए भगवान धरती पर नहीं आएंगे क्योंकि उन्होंने गीता हमको दी है वह उन समस्याओं का समाधान है अर्जुन तो केवल एक माध्यम है असली संदेश श्रीकृष्ण हम सबको देना चाहते हैं मैं जब कभी भी कृष्ण के बारे में सोचता हूं तुम मुझे वह भी भगवान नहीं दिखते मुझे लगता है कि वह एक जीनीयस व्यक्ति थे जो भविष्य में होने वाली परेशानियों को समझ सकते थे कि आने वाले समय में इंसान को किस प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा हम सब अर्जुन हैं और हम सभी को अपना युद्ध स्वयं करना पड़ेगा श्री कृष्णा हमें सिर्फ दिशा दिखा सकते और वह दिखाते हैं गीता के माध्यम से मेरा आप सभी से अनुरोध है कि जब कभी भी आप गीता पड़े अपने आप को पाठक ना माने अपने आपको अर्जुन माने क्योंकि हम सभी अर्जुन हैं अपने अपने जीवन का महाभारत लड़ रहे हैं कभी हमारे सामने गुरु द्रोणाचार्य जैसी समस्याएं आएगी और कभी कर्ण जैसी लेकिन सम दाम दंड भेद हर प्रकार से हमें उन समस्याओं को पार करना होगा अर्जुन केवल एक पात्र हैं श्री कृष्णा संदेश हमें देना चाह रहे हैं गीता का हर पल कुछ न कुछ संदेश दे रहा है हो सकता है कृष्ण हुए हो वह भी यह भी हो सकता वह ना हुए हो लेकिन एक बात को आप निकाल नहीं सकते कि गीता है गीता थी और शायद आगे भी रहेगी अगर गीता को श्री कृष्ण ने नहीं दिया तो किसी ने तो लिखा होगा मैं उस व्यक्ति के बारे में सोचता हूं तो अचंभित हो जाता हूं आज भी गीता हम सभी को रास्ता दिखाने का सामर्थ्य रखती है इतिहास में हमने बहुत गलती किए हैं हम गीता का सही अर्थ समझ ही नहीं पाए गीता में अर्जुन इस श्लोक में कृष्ण से प्रश्न करते हैं और कृष्ण प्रश्नों का जवाब देते हैं लेकिन समय होतेे-हते हमारे समाज से प्रश्न करने की स्वतंत्रता छीन ली गई आज भी आप देख सकते हैं जब एक छोटा बच्चा हमारे घर में कोई प्रश्न पूछता है तो माता-पिता उसे चुप करा देते हैं यह हमारी संस्कृति में नहीं है तुम मेरा आप सभी से अनुरोध है की कृपा कृष्ण को पढ़ें और गीता को पड़े हैं लेकिन इस प्रकार पड़े हैं कि जीवन में उतार सके हैं जीवन में उतारने का तात्पर्य नहीं है कि हम बाबाजी हो जाए जीवन में उतारने का अर्थ है कि अंकिता का गीता का ज्ञान का जीवन में प्रयोग करें जैसा कि मैंने ऊपर आपको कुछ उदाहरण दीजिए बहुत-बहुत धन्यवाद मेरा नाम देव ऋषि शर्मा है आज तारीख 25 दिसंबर 2022 है और यह मेरे विचार है।
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gopikrishanhospital · 2 years
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agrawal-restaurant · 2 years
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समस्त देशवासियों को सब परिवार भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।भगवान श्री कृष्ण हम सब पर कृपा करें।जय श्री कृष्ण...
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#AlmightyGodKabir#कबीर_बड़ा_या_कृष्ण_Part69
प्रश्न 24: किन-किन पुण्यात्मा महात्माओं को (परमात्मा) परम अक्षर ब्रह्म मिले हैं?
उत्तर: परमात्मा चारों युगों में प्रकट होकर ज्ञान सुनाते हैं। 1. सतयुग में ‘‘सत्यसुकृत’’ नाम से, 2. त्रेता युग में ‘‘मुनीन्द्र’’ नाम से, 3. द्वापर युग में ‘‘करुणामय’’ नाम से, 4. कलयुग में ‘‘कबीर’’ नाम से परमेश्वर प्रकट हुए हैं। सू़क्ष्म वेद में कहा है:-
सतयुग में सतसुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनिन्द्र मेरा।।
द्वापर में करुणामय कहाया, कलयुग नाम कबीर धराया।।
‘‘परम अक्षर ब्रह्म कौन है तथा किस-किसको मिला परमात्मा‘‘
कलयुग में परमेश्वर जिन-जिन महान आत्माओं को मिले, उनको तत्वज्ञान बताया, उनका मैं संक्षिप्त वर्णन करता हूँ:-
‘‘सन्त धर्मदास जी से परमेश्वर कबीर जी का साक्षात्कार’’
श्री धर्मदास जी बनिया जाति से थे जो बाँधवगढ़ (मध्य प्रदेश) के रहने वाले बहुत धनी व्यक्ति थे। उनको भक्ति की प्रेरणा बचपन से ही थी। जिस कारण से एक रुपदास नाम के वैष्णव सन्त को गुरु धारण कर रखा था। हिन्दू धर्म में जन्म होने के कारण सन्त रुपदास जी, श्री धर्मदास जी को राम कृष्ण, विष्णु तथा शंकर जी की भक्ति करने को कहते थे। एकादशी का व्रत, तीर्थों पर भ्रमण करना, श्राद्ध कर्म, पिण्डोदक क्रिया सब करने की राय दे रखी थी। गुरु रुपदास जी द्वारा बताई सर्व साधना श्री धर्मदास जी पूरी आस्था के साथ किया करते थे। गुरु रुपदास जी की आज्ञा लेकर धर्मदास जी मथुरा नगरी में तीर्थ-दर्शन, तीर्थ स्नान करने तथा गिरीराज (गोवर्धन) पर्वत की परिक्रमा करने के लिए गए थे। परम अक्षर ब्रह्म एक जिन्दा महात्मा की वेशभूषा में धर्मदास जी को स्वयं मथुरा में मिले। श्री धर्मदास जी ने उस तीर्थ तालाब में स्नान किया जिसमें श्री कृष्ण जी बाल्यकाल में स्नान किया करते थे। फिर उसी जल से एक लोटा भरकर लाये। भगवान श्री कृष्ण जी की पीतल की मूर्ति (सालिग्राम) के चरणों पर डालकर दूसरे बर्तन में डालकर चरणामृत बनाकर पीया। फिर सालिग्राम को स्नान करवाकर अपना कर्मकाण्ड पूरा किया। एक स्थान को लीपकर अर्थात् गारा तथा गाय का गोबर मिलाकर कुछ भूमि पर पलस्तर करके उस पर स्वच्छ कपड़ा बिछाकर श्रीमद्भगवत् गीता का पाठ करने बैठे। यह सर्व क्रिया जब धर्मदास जी कर रहे थे। परमात्मा जिन्दा वेश में थोड़ी दूरी पर बैठे देख रहे थे। धर्मदास जी भी देख रहे थे कि एक मुसलमान सन्त मेरी भक्ति क्रियाओं को बहुत ध्यानपूर्वक देख रहा है, लगता है इसको हम हिन्दुओं की साधना मन भा गई है। इसलिए श्रीमद्भगवत् गीता का पाठ कुछ ऊँचे स्वर में करने लगा तथा हिन्दी का अनुवाद भी पढ़ने लगा। परमेश्वर उठकर धर्मदास जी के निकट आकर बैठ गए। धर्मदास जी को अपना अनुमान सत्य लगा कि वास्तव में इस जिन्दा वेशधारी बाबा को हमारे धर्म का भक्ति मार्ग अच्छा लग रहा है। इसलिए उस दिन गीता के कई अध्याय पढ़े तथा उनका अर्थ भी सुनाया। जब धर्मदास जी अपना दैनिक भक्ति कर्म कर चुका, तब परमात्मा ने कहा कि हे महात्मा जी, आप का शुभ नाम क्या है? कौन जाति से हैं। आप जी कहाँ के निवासी हैं? किस धर्म-पंथ से जुड़े हैं? कृपया बताने का कष्ट करें। मुझे आपका ज्ञान बहुत अच्छा लगा, मुझे भी कुछ भक्ति ज्ञान सुनाइए। आप की अति कृपा होगी।
धर्मदास जी ने उत्तर दिया:- मेरा नाम धर्मदास है, मैं बांधवगढ़ गाँव का रहने वाला वैश्य कुल से हूँ। मैं वैष्णव पंथ से दीक्षित हूँ, हिन्दू धर्म में जन्मा हूँ। मैंने पूरे निश्चय के साथ तथा अच्छी तरह ज्ञान समझकर वैष्णव पंथ से दीक्षा ली है। मेरे गुरुदेव श्री रुपदास जी हैं। आध्यात्म ज्ञान से मैं परिपूर्ण हूँ। अन्य किसी की बातों में आने वाला मैं नहीं हूँ। राम-कृष्ण जो श्री विष्णु जी के ही अवतार हुए हैं तथा भगवान शंकर की भी पूजा करता हूँ, एकादशी का व्रत रखता हूँ। तीर्थों में जाता हूँ, वहाँ दान करता हूँ। शालिग्राम की पूजा नित्य करता हूँ। यह पवित्र पुस्तक श्रीमद्भगवत् गीता है, इसका नित्य पाठ करता हूँ। मैं अपने पूर्वजों का जो स्वर्गवासी हो चुके हैं, श्राद्ध भी करता हूँ। पिण्डदान भी करता हूँ। मैं कोई जीव हिंसा नहीं करता, माँस, मदिरा, तम्बाकू सेवन नहीं करता। परमेश्वर कबीर जी ने पूछा कि आप जिस पुस्तक को पढ़ रहे थे, इसका नाम क्या है? धर्मदास जी ने बताया कि यह श्रीमद् भगवत गीता है। हम शुद्ध रहते हैं, शुद्र को निकट भी नहीं आने देते।
प्रश्न 25:- (कबीर जी जिन्दा रुप में) आप क्या नाम-जाप करते हो?
उत्तर:- (धर्मदास जी का) हम हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे, ओम् नमः शिवाय, ओम् भगवते वासुदेवाय नमः, राधे-राधे श्याम मिलादे, गायत्री मन्त्र का जाप 108 बार प्रतिदिन करता हूँ। विष्णु सहंस्रनाम का जाप भी करता हूँ।
प्रश्न 26:- (जिन्दा बाबा का) हे महात्मा धर्मदास! गीता का ज्ञान किसने दिया?
उत्तर: (धर्मदास का) कुल के मालिक सर्वशक्तिमान भगवान श्री कृष्ण जी ने, यही श्री विष्णु जी हैं।
प्रश्न 27: (जिन्दा बाबा रुप में परमात्मा का):- आप जी के पूज्य देव श्री कृष्ण अर्थात् श्री विष्णु हैं। उनका बताया भक्ति ज्ञान गीता शास्त्र है।
हे धर्मदास! एक किसान को वृद्धावस्था में पुत्र प्राप्त हुआ। किसान ने विचार किया कि जब तक पुत्र कृषि करने योग्य होगा, तब तक मेरी मृत्यु हो जाएगी। इसलिए उसने कृषि करने का तरीका अपना अनुभव एक बही (रजिस्टर) में लिख दिया। अपने पुत्र से कहा कि बेटा जब आप युवा हो जाओ तो मेरे इस रजिस्टर में लिखे अनुभव को बार-2 पढ़ना। इसके अनुसार फसल बोना। कुछ दिन पश्चात् पिता की मृत्यु हो गई, पुत्र प्रतिदिन अपने पिता के अनुभव का पाठ करने लगा। परन्तु फसल का बीज व बिजाई, सिंचाई उस अनुभव के विपरीत करता था। तो क्या वह पुत्र अपने कृषि के कार्य में सफलता प्राप्त करेगा?
उत्तर: (धर्मदास का): इस प्रकार तो पुत्र निर्धन हो जाएगा। उसको तो पिता के लिखे अनुभव के अनुसार प्रत्येक कार्य करना चाहिए। वह तो मूर्ख पुत्र है।
प्रश्न 28: (बाबा जिन्दा रुप में भगवान जी का) हे धर्मदास जी! गीता शास्त्र आप के परमपिता भगवान कृष्ण उर्फ विष्णु जी का अनुभव तथा आपको आदेश है कि इस गीता शास्त्र में लिखे मेरे अनुभव को पढ़कर इसके अनुसार भक्ति करोगे तो मोक्ष प्राप्त करोगे। क्या आप जी गीता में लिखे श्री कृष्ण जी के आदेशानुसार भक्ति कर रहे हो? क्या गीता में वे मन्त्र जाप करने के लिए लिखा है जो आप जी के गुरुजी ने आप जी को जाप करने के लिए दिए हैं? (हरे राम-हरे राम, राम-राम हरे-हरे, हरे कृष्णा-हरे कृष्णा, कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे, ओम नमः शिवाय, ओम भगवते वासुदेवाय नमः, राधे-राधे श्याम मिलादे, गायत्री मन्त्र तथा विष्णु सहंस्रनाम) क्या गीता जी में एकादशी का व्रत करने तथा श्राद्ध कर्म करने, पिण्डोदक क्रिया करने का आदेश है?
उत्तर:- (धर्मदास जी का) नहीं है।
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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thekpnews · 2 years
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Radha Krishna good morning Quotes, Shayari with Images in Hindi
Morning is the best time of the day. Every morning, we can send good morning messages to our family, friends, siblings, and other relatives. So, in this post, we will provide the best good morning quotes with images of Radha Krishna.
Radha Krishna's Good Morning Quotes
संगीत है श्रीकृष्ण, सुर है श्रीराधे 
शहद है श्रीकृष्ण, मिठास है श्रीराधे 
पूर्ण है श्रीकृष्ण, परिपूर्ण है श्रीराधे 
आदि है श्रीकृष्ण, अनंत है श्रीराधे 
बैकुंठ में भी ना मिले जो वो सुख कान्हा तेरे 
वृंदावन धाम में हैं.. कितनी भी बड़ी विपदा हो चाहे 
समाधान तो बस श्री राधे तेरे नाम में है…
सुप्रभात..
खुशी एक ऐसी चीज है, जो आपके पास ना हो तो भी आप दूसरों को दे सकते हो..!
सुप्रभात
प्रेम एक ऐसा अनुभव है जो मनुष्य को कभी परास्त नहीं होने, देता और घृडा एक ऐसा अनुभव है जो मनुष्य को कभी जितने नहीं देता। – प्रेम से बोलो राधे-राधे !
गुड मॉर्निंग
यदि प्रेम का मतलब सिर्फ एक-दुसरे को 
पाना होतातो हर हृदय में राधा-कृष्ण का 
नाम नही होताराधे-राधे जय श्रीकृष्णा
उन्होंने नस देखि हमारी और बीमार लिख दिया, 
रोग हमने पूछा तो वृंदावन से प्यार लिख दिया, 
कर्जदार रहेगे उम्र भर हम उस वैद के जिसने दवा में, 
श्री राधे कृष्ण नाम लिख दिया…
सुप्रभात
मेरे कर्म ही मेरी पहचान बनें तो बेहतर है, चेहरे का क्या है यह तो मेरे साथ ही चला जाएगा…। – जय श्री राधे कृष्णा !
सुंदर से भी अधिक सुंदर है तू,
लोग तो पत्थर पूजते है, मेरी तो पूजा है तू,
पूछे जो मुझसे कौन है तो?
हंसकर कहता हूँ, ज़िन्दगी हूँ मै और सांस है तू।
जय श्री कृष्णा
बेहतरीन इंसान अपनी मीठी 
बातों से ही जाना जाता है...
वरना अच्छी बातें तो दीवारो
पे भी लिखी होती है
राधे राधे, राधे कृष्ण 
कृष्णा के कदमो पे कदम बढाते चलो, अब मुरली नही तो सीटी बजाते
चलो राधा तो घर वाले दिलाएंगे ही, मगर तब तक गोपियाँ पटाते चलो। 
गुड मॉर्निंग
पर्दा ना कर पुजारी दिखने दे राधा प्यारी ,
मेरे पास वक्त कम हैं, और बाते हैं ढेर सारी।
सुप्रभात
ना बांधा कोई बंधन, ना रस्मो का इकरार किया, तुम दिल को ऐसे भाये, बस सीधा सच्चा प्यार किया...
गुड मॉर्निंग
दिल पर हरगिज़ ना लीजिये
अगर कोई आपको
बुरा कहे
कायनात में ऐसा कोई
है ही नही 
जिसे हर शख्स अच्छा कहे ।।
जय श्री राधा कृष्ण 
Romantic Radha Krishna Good Morning Quotes
झूठ भी क्या गजब की चीज़ है, अगर खुद बोलो तो मीठा लगता है, और कोई दूसरा बोले तो कड़वा लगता है। – जय श्री कृष्णा !
एक ऐसा लक्ष्य निर्धारित करें
जो आपको सुबह 
बिस्तर से उठने पर मजबूर करदे। 
जय श्री राधा कृष्ण 
श्री कृष्ण कहते थे प्रेम का अर्थ किसीको 
पाना नहीं किन्तु उसमे खो जाना है।
सुप्रभात
पाने को ही प्रेम कहे, 
जग की ये है रीत.. 
प्रेम का सही अर्थ समझायेगी 
राधा-कृष्णा की प्रीत।
हे कन्हैया तुम्हे पाना जरूरी तो नहीं,
तुम्हारा हो जाना ही मेरे लिए काफी हैं।
गुड मॉर्निंग
अधूरा है मेरा इश्क तेरे नाम के बिना, जैसे अधूरी है राधा श्याम के बिना। – जय श्री राधेकृष्ण !
उस पछतावे के साथ मत 
जागिये जिसे आप कल
पूरा नहीं कर सके,
उस संकल्प के साथ जागिये
जिसे आपको आज पूरा करना 
राधे राधे, राधे कृष्ण 
राधा कहती हैं दुनियावालों से, तुम्हारे और मेरे प्यार में बस इतना अंतर हैं,
प्यार में पड़कर तुमने अपना सबकुछ खो दिया, और मैंने खुद को खोकर सबकुछ पा लिया।
जो हैं माखन चोर, जो हैं मुरली वाला,
वही हैं हम सबके दुःख दूर करने वाला।
गुड मॉर्निंग
ईश्वर कहते है,,,
किसी को तकलीफ देकर मुझसे
अपनी खुशी की दुआ मत करना ।
लेकिन,,,
अगर किसी को एक पल की भी
खुशी देते हो तो अपनी तकलीफ 
की फ़िक्र मत करना ।। 
जय श्री राधा कृष्ण 
बदल जाओ वक्त के साथ या फिर वक्त बदलना सीखो,
मजबूरियों को मत कोसो, हर हाल में चलना सीखो!!
सुप्रभात
जो प्रेम की पूजा करते है,
राधा-कृष्ण उनके हृदय में बसते हैं।
 राधा की कृपा, कृष्णा की कृपा, जय पे हो जाए, भगवान को पाए, मौज उड़ाए…. सब सुख पाए. – राधे-राधे जय श्री कृष्णा !
दिल के रिश्ते का कोई नाम नहीं होता,
हर रिश्ते का कोई मुकाम नहीं
होता अगर निभाने की चाहता हो दोनों तरफ से तो
कोई रिश्ता नाकाम नहीं होता।
गुड मॉर्निंग
कभी मौका मिला तो हम किस्मत से शिकायत जरूर करेंगे ,
आखिर क्यों छोड़ जाते है वो लोग जिनसे हम बेपनाह मोहब्बत करते है ... !
सुप्रभात
जो समस्या के बिना जीतता है वह बस "विजय" है;  लेकिन, जो बहुत सी परेशानियों से होकर जीतता है वह इतिहास होता है ।।
जय श्री राधा कृष्ण 
मुझको मालूम नहीं अगला जन्म हैं की नहीं, ये जन्म प्यार में गुजरे ये दुआ मांगी हैं, और कुछ मुझे जमाने से मिले या ना मिले, ए मेरे कान्हा तेरी मोहब्बत ही सदा मांगी हैं। – राधा कृष्ण !
Radha Krishna's Good Morning Quotes in Gujarati
પ્રેમમાં ઘણા અવરોધો જોયા,
હજી કૃષ્ણ સાથે રાધા જોઇ હતી
નીભાવતા આવડવું જોઈએ. બાકી,
👬લાગણીઓનો લાભ લેતા તો
આખી 🌏દુનિયાને આવડે છે !!
🌷 શુભ પ્રભાત 🌷
તમારી છાતીમાંથી, તમારી ગર્જના બનો
તમારા શ્વાસ માં ભૂલ કરો અને સુગંધ બની જાઓ.
અમારી વચ્ચે હું… હું કાન્હા નથી .. મારે ફક્ત તને જ બનવું છે.
જીંદગી કઠિન છે
એમાં જવાબ શોધવા મા સમય બગાડવો નહીં.
કારણ કે આપણને જ્યારે જવાબ મળે ત્યારે જીંદગી સવાલ બદલી નાખે છે…જય માતાજી
🌞🌷સુપ્રભાત🌷🌞
જે રાધા માને છે,
જેના પર રાધાને ગર્વ છે
આ કૃષ્ણ છે જે રાધા છે
હૃદય દરેક જગ્યાએ છે
Radha Krishna's Good Morning Quotes in English
राधा की चाहत हैं कृष्ण, उसके दिल की विरासत हैं कृष्ण,
चाहे कितना भी रास रचा ले कृष्ण दुनिया तो फिर भी यही कहती हैं राधे कृष्ण राधे कृष्ण।
हर पल आंखों में पानी हैं क्योंकि चाहत में रुहानी हैं, मैं हूँ तुझसे, तू हैं मुझसे, अपनी बस यही कहानी हैं। – जय श्री राधे कृष्णा !
कैसे लफ्जों में बयां करू खूबसूरती तुम्हारी
सुंदरता का दरिया भी तुम हो मेरे श्याम।
गुड मॉर्निंग
बड़ा मीठा नशा है कृष्ण की याद का.. 
वक्त गुजरात गया और हम आदि होते गए. 
जय राधे कृष्णा....!!
रंग बदलती दुनिया देखी, देखा जग व्यबहार,दिल
टुटा तब मन को भाया ठाकुर तेरा दरबार।
गुड मॉर्निंग
हर शाम किसी के लिए सुहानी नही होती, 
हर प्यार के पीछे कोई कहानी नही होती, 
कुछ तो असर होता हैं दो आत्मा के मेल का, 
वरना गोरी राधा, सावले कान्हा की दीवानी ना होती।
राधा के हृदय में श्याम, राधा की साँसों में श्याम,
राधा में ही हैं श्याम,
इसीलिए दुनिया कहती हैं,
बोलो श्याम श्याम श्याम।
बुरे वक्त में कंधे पर रखा गया हाथ, कामयाबी पर तालियों से ज्यादा कीमती होता है..!
राधे राधे, राधे कृष्ण 
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pradeepdasblog · 11 months
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( #MuktiBodh_Part95 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part96
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर (185-186)
प्रमाण के लिए अमृत वाणी(पारख का अंग)
गरीब, सुपच शंक सब करत हैं, नीच जाति बिश चूक।
पौहमी बिगसी स्वर्ग सब, खिले जो पर्वत रूंख।।
गरीब, करि द्रौपदी दिलमंजना, सुपच चरण पी धोय।
बाजे शंख सर्व कला, रहे अवाजं गोय।।
गरीब, द्रौपदी चरणामत लिये, सुपच शंक नहीं कीन।
बाज्या शंख अखंड धुनि, गण गंधर्व ल्यौलीन।।
गरीब, फिर पंडौं की यज्ञ में, शंख पचायन टेर।
द्वादश कोटि पंडित जहां, पड़ी सभन की मेर।।
गरीब, करी कृष्ण भगवान कूं, चरणामृत स्यौं प्रीत।
शंख पंचायन जब बज्या, लिया द्रोपदी सीत।।
गरीब, द्वादश कोटि पंडित जहां, और ब्रह्मा विष्णु महेश।
चरण लिये जगदीश कूं, जिस कूं रटता शेष।।
गरीब, वाल्मिकि के बाल समि, नाहीं तीनौं लोक।
सुर नर मुनि जन कृष्ण सुधि, पंडौं पाई पोष।।
गरीब, वाल्मिकि बैंकुठ परि, स्वर्ग लगाई लात।
शंख पचायन घुरत हैं, गण गंर्धव ऋषि मात।।
गरीब, स्वर्ग लोक के देवता, किन्हैं न पूर्या नाद।
सुपच सिंहासन बैठतैं, बाज्या अगम अगाध।।
गरीब, पंडित द्वादश कोटि थे, सहिदे से सुर बीन।
संहस अठासी देव में, कोई न पद में लीन।
गरीब, बाज्या शंख स्वर्ग सुन्या, चौदह भवन उचार।
तेतीसौं तत्त न लह्या, किन्हैं न पाया पार।।
।। अचला का अंग।।
गरीब, सुपच रूप धरि आईया, सतगुरु पुरुष कबीर।
तीन लोक की मेदनी, सुर नर मुनिजन भीर।।97।।
गरीब, सुपच रूप धरि आईया, सब देवन का देव।
कृष्णचन्द्र पग धोईया, करी तास की सेव।।98।।
गरीब, पांचौं पंडौं संग हैं, छठ्ठे कृष्ण मुरारि।
चलिये हमरी यज्ञ में, समर्थ सिरजनहार।।99।।
गरीब, सहंस अठासी ऋषि जहां, देवा तेतीस कोटि।
शंख न बाज्या तास तैं, रहे चरण में लोटि।।100।।
गरीब, पंडित द्वादश कोटि हैं, और चौरासी सिद्ध।
शंख न बाज्या तास तैं, पिये मान का मध।।101।।
गरीब, पंडौं यज्ञ अश्वमेघ में, सतगुरु किया पियान।
पांचौं पंडौं संग चलैं, और छठा भगवान।।102।।
गरीब, सुपच रूप को देखि करि, द्रौपदी मानी शंक।
जानि गये जगदीश गुरु, बाजत नाहीं शंख।।103।।
गरीब, छप्पन भोग संजोग करि, कीनें पांच गिरास।
द्रौपदी के दिल दुई हैं, नाहीं दृढ़ विश्वास।। 104।।
गरीब, पांचौं पंडौं यज्ञ करी, कल्पवक्ष की छांहिं।
द्रौपदी दिल बंक हैं, कण- कण बाज्या नांहि।। 105।।
गरीब, छप्पन भोग न भोगिया, कीन्हें पंच गिरास।
खड़ी द्रौपदी उनमुनी, हरदम घालत श्वास।।107।।
गरीब, बोलै कष्ण महाबली, क्यूं बाज्या नहीं शंख।
जानराय जगदीश गुरु, काढत है मन ब्रंक।। 108।।
गरीब, द्रौपदी दिल कूं साफ करि, चरण कमल ल्यौ लाय।
वाल्मिकि के बाल सम, त्रिलोकी नहीं पाय।।109।।
गरीब, चरण कमल कूं धोय करि, ले द्रौपदी प्रसाद।
अंतर सीना साफ होय, जरैं सकल अपराध।।110।।
गरीब, बाज्या शंख सुभान गति, कण कण भई अवाज।
स्वर्ग लोक बानी सुनी, त्रिलोकी में गाज।।111।।
गरीब, पंडौं यज्ञ अश्वमेघ में, आये नजर निहाल।
जम राजा की बंधि में, खल हल पर्या कमाल।।113।।
‘‘अन्य वाणी सतग्रन्थ से’’
तेतीस कोटि यज्ञ में आए सहंस अठासी सारे, द्वादश कोटि वेद के वक्ता, सुपच का शंख बज्या रे।।
‘‘अर्जुन सहित पाण्डवों को युद्ध में की गई हिंसा के पाप लगे’’
परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि उपरोक्त विवरण से सिद्ध हुआ कि पाण्डवों को युद्ध की हत्याओं का पाप लगा।
आगे सुन और सुनाता हूँ :-
दुर्वासा ऋषि के शाप वश यादव कुल आपस में लड़कर प्रभास क्षेत्र में यमुना नदी के किनारे नष्ट हो गया। श्री कृष्ण जी भगवान को एक शिकारी ने पैर में विषाक्त तीर मार कर घायल कर दिया था। उस समय श्री कृष्ण जी ने उस शिकारी को बताया कि आप त्रेता युग में सुग्रीव के बड़े भाई बाली थे तथा मैं रामचन्द्र था। आप को मैंने धोखा करके वृक्ष की ओट लेकर मारा था। आज आपने वह बदला (प्रतिशोध) चुकाया है। पाँचों पाण्डवों को पता चला कि यादव आपस में लड़ मरे हैं वे द्वारिका पहुँचे। वहाँ गए जहाँ पर श्री कृष्ण जी तीर से घायल तड़फ रहे थे। पाँचों पाण्डवों के धार्मिक गुरू श्री कृष्ण जी थे। श्री कृष्ण जी ने पाण्डवों से कहा! आप मेरे अतिप्रिय हो। मेरा अन्त समय आ चुका है। मैं कुछ ही समय का मेहमान हूँ। मैं आपको अन्तिम उपदेश देना चाहता हूँ कृप्या ध्यान पूर्वक सुनों। यह कह कर श्री कृष्ण जी ने कहा (1) आप द्वारिका की स्त्रियों को इन्द्रप्रस्थ ले जाना। यहाँ कोई नर यादव शेष नहीं बचा है (2) आप अति शीघ्र राज्य त्याग कर हिमालय चले जाओ वहाँ अपने शरीर के नष्ट होने तक तपस्या करते रहो। इस प्रकार हिमालय की बर्फ में गल कर नष्ट हो जाओ। युधिष्ठर ने पूछा हे भगवन्! हे गुरूदेव श्री कृष्ण! क्या हम हिमालय में गल कर मरने का कारण जान सकते हैं? यदि आप उचित समझें तो बताने की कृपा करें। श्री कृष्ण ने कहा युधिष्ठर! आप ने युद्ध में जो प्राणियों की हिंसा करके पाप किया है। उस पाप का प्रायश्चित् करने के लिए ऐसा करना अनिवार्य है। इस प्रकार तपस्या करके प्राण त्यागने से आप के महाभारत युद्ध में किए पाप नष्ट हो जाऐंगे।
कबीर जी बोले हे धर्मदास! श्री कृष्ण जी के श्री मुख से उपरोक्त वचन सुन कर अर्जुन आश्चर्य में पड़ गया। सोचने लगा श्री कृष्ण जी आज फिर कह रहे हैं कि युद्ध में किए पाप नष्ट इस विधि से होगें। अर्जुन अपने आपको नहीं रोक सका। उसने श्री कृष्ण जी से कहा हे भगवन्! क्या मैं आप से अपनी शंका का समाधान करा सकता हूँ। वैसे तो गुरूदेव! यह मेरी गुस्ताखी है, क्षमा करना क्योंकि आप ऐसी स्थिति में हैं कि आप से ऐसी-वैसी बातें करना उचित नहीं जान पड़ता। यदि प्रभु! मेरी शंका का समाधान नहीं हुआ तो यह शंका रूपी कांटा आयु पर्यन्त खटकता रहेगा। मैं चैन से जी नहीं सकूंगा। श्री कुष्ण ने कहा हे अर्जून! तू जो पूछना चाहता है निःसंकोच होकर पूछ। मैं अन्तिम स्वांस गिन रहा हूँ जो कहूंगा सत्य कहूंगा। अर्जुन बोला हे श्री कृष्ण! आपने श्री मद्भगवत् गीता का ज्ञान देते समय कहा था कि अर्जुन! तू युद्ध कर तुझे युद्ध में मारे जाने वालों का पाप नहीं लगेगा तू केवल निमित्त मत्रा बन जा ये सर्व योद्धा मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं (प्रमाण गीता अध्याय 11 श्लोक 32-33) आपने यह भी कहा कि अर्जुन युद्ध में मारा गया तो स्वर्ग को चला जाएगा, यदि युद्ध जीत गया तो पृथ्वी के राज्य का सुख भोगेगा। तेरे दोनों हाथों में लड्डू हैं। (प्रमाण श्री मदभगवत् गीता अध्याय 2 श्लोक 37) तू युद्ध के लिए खड़ा हो जो जय-पराजय की चिन्ता छोड़कर युद्ध कर इस प्रकार तू पाप को प्राप्त नहीं
होगा (गीता अध्याय 2 श्लोक 38)
क्रमशः________
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sstkabir-0809 · 2 years
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#कबीर_बड़ा_या_कृष्ण_Part20
’’आँखों वाले अंधे‘‘
संत गरीबदास जी ने इन तत्त्वज्ञान नेत्रहीन (अंधे) धर्म प्रचारकों गुरूओं के विषय में कहा है कि:-
गरीब, बेद पढ़ें पर भेद न जानें, पढ़ें पुराण अठारा।
पत्थर की पूजा करें, विसरे सृजनहारा।।
अर्थात् ये गुरूजन चारों वेदों तथा अठारह पुराणों को पढ़ते हैं, परंतु गूढ़ रहस्यों को नहीं समझ सके। जो अध्यापक अपने पाठ्यक्रम की पुस्तकों के गूढ़ ज्ञान को नहीं जानकर पाठ्यक्रम से बाहर का ज्ञान विद्यार्थियों को पढ़ाता है तो वह नालायक व्यक्ति है। विद्यार्थियों का जीवन नष्ट कर रहा है। यही दशा इन धर्म के नाम पर बने धर्म गुरूजनों की है। धर्म ग्रंथों को न समझकर उनसे बाहर की दंत कथा (लोक वेद) बता रहे हैं। संत गरीबदास जी ने फिर कहा है कि:-
गीता और भ���गौत पढ़ें, नहीं बूझें शब्द ठिकाने नूं। मन मथुरा दिल द्वारका नगरी, क्या करो बरसाने नूं।।
मोती मुक्ता दर्शत नांही, ये गुरू सब अंध रे। दीखत के तो नैन चिसम हैं, इनकै फिरा मोतिया बिंद रे।।
अर्थात् ये सब के सब गुरूजन श्रीमद्भगवत गीता तथा श्रीमद् भागवत (सुधा सागर) को पढ़ते हैं। इनको आधार बताकर जनता को ज्ञान बताते हैं। संस्कृत बोलते हैं। श्रोता इनको परम विद्वान मानते हैं। गीता मनीषी की उपाधि श्रद्धालुओं ने इनको दे रखी है, परंतु इनको ग्रंथों का यथार्थ ज्ञान नहीं है। ये पढ़ते हैं गीता, इनको पता ही नहीं कि गीता का ज्ञान किस अदृश्य शक्ति ने श्री कृष्ण के शरीर में प्रवेश करके बोला था। गीता पढ़ते हैं, परंतु ’’नहीं बूझैं शब्द ठिकाने नूं‘‘ यानि जिस (ठिकाने के शब्द) यथार्थ नाम जाप से मोक्ष होना है, उसको जानना नहीं चाहते। जैसे गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में गीता ज्ञान दाता ने अपना जाप करने का मंत्र ओं (ओम्) बताया है तथा गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में अपने से अन्य परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म) का जाप करने का मंत्र सांकेतिक शब्दो में बताया है:- ’’ओम् तत् सत्‘‘। इस ओम् तत् सत् मंत्र के (ठिकाने के शब्द) यथार्थ नाम अन्य हैं। उनको ये गुरूजन ��ानते नहीं और न जानना चाहते हैं। मोक्ष इन्हीं तीन मंत्रों से होना है। इन तीनों नामों के यथार्थ नामों का जाप न करके चाहे चारों वेदों व गीता आदि ग्रंथों को पढ़ते-पढ़ाते रहो, जीवन व्यर्थ हो जाएगा।
इसलिए कहा है कि इन गुरूओं को अज्ञान रूपी मोतियाबिंद हुआ है। मोतियाबिंद वाले की आँखें स्वस्थ दिखाई देती हैं, परंतु दिखाई कुछ नहीं देता। इसी प्रकार ये धर्मगुरू संस्कृत बोलते हैं तो श्रोताओं को लगता है कि ये बड़े विद्वान हैं। परंतु इनको सद्ग्रन्थों की कुछ भी समझ नहीं है।
ये अज्ञानी हैं। यथार्थ ज्ञान नेत्रहीन (अंधे) हैं। गीता ज्ञान देने वाला अपने आपको नाशवान कहता है। अपने से अन्य को अविनाशी कहता है। उसी की शरण में जाने को कहा है। ये श्री कृष्ण को
ही अविनाशी जगत का कर्ता बताकर जनता के साथ धोखा कर रहे हैं। ये आँखों वाले अंधे हैं।
प्रश्न 2:- काल पुरूष कौन है?
उत्तर:- सृष्टि रचना जो पृष्ठ 389 पर लिखी है। उसमें विस्तारपूर्वक लिखा है।
प्रश्न 3: काल भगवान अर्थात् ब्रह्म अविनाशी है या जन्मता-मरता है?
उत्तर:- जन्मता-मरता है।
प्रश्न 4:- गीता में कहाँ प्रमाण है?
उत्तर: श्री मद्भगवत गीता अध्याय 2 श्लोक 12, गीता अध्याय 4 श्लोक 5, गीता अध्याय 10 श्लोक 2 में गीता ज्ञान दाता स्वयं स्वीकार करता है कि मेरी भी जन्म व मृत्यु होती है, मैं अविनाशी नहीं हूँ। कहा है कि हे अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। तू, मैं और ये राजा लोग व सैनिक पहले भी थे, आगे भी होंगे, यह न जान कि हम केवल वर्तमान में ही हैं। मेरी उत्पत्ति को न तो देवता लोग जानते और न ही ऋषिजन क्योंकि यह सब मेरे से उत्पन्न हुए हैं।
इससे सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञान दाता काल पुरूष अविनाशी नहीं है। इसलिए इसको क्षर पुरूष (नाशवान प्रभु) कहा जाता है।
प्रश्न 5: क्या ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव अविनाशी हैं?
उत्तर: नहीं। ये नाशवान हैं, इनकी भी जन्म-मृत्यु होती है, ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी के माता-पिता भी हैं।
प्रश्न 6: कोई प्रमाण बताओ, माता-पिता का नाम भी बताओ।
उत्तर: श्री देवी महापुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 4,5 में श्री विष्णु जी ने अपनी माता दुर्गा की स्तुति करते हुए कहा है कि हे मातः! आप शुद्ध स्वरूपा हो, सारा संसार आप से ही उद्भाषित हो रहा है, हम आपकी कृपा से विद्यमान हैं, मैं, ब्रह्मा और शंकर तो जन्मते-मरते हैं, हमारा तो अविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है, हम अविनाशी नहीं हैं। तुम ही जगत जननी और सनातनी देवी हो और प्रकृति देवी हो। शंकर भगवान बोले, हे माता! विष्णु के बाद उत्पन्न होने वाला ब्रह्मा जब आपका पुत्रा है तो क्या मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर तुम्हारी सन्तान नहीं हुआ अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम ही हो। इस देवी महापुराण के उल्लेख से सिद्ध हुआ कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शंकर जी को जन्म देने वाली माता श्री दुर्गा देवी (अष्टंगी देवी) है और तीनों नाशवान हैं।
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dharmenders-blog · 3 years
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ऋषि दुर्वासा चनुक और कपिल ऋषि के कारनामे– Anmol gyan Sat sahib ji 🙏
एक दुर्वासा नाम के काल ब्रह्म के पुजारी (ब्रह्म साधक) थे। वे चले जा रहे थे। रास्ते में एक अप्सरा (स्वर्ग की स्त्राी) सुन्दर मोतियों की माला पहने हुए थी। ऋषि दुर्वासा ने कहा कि यह माला मुझे दे। देवपरी को पता था कि ये ऋषि तो सर्प जैसे हैं, यदि मना कर दिया तो श्राप दे देते हैं। उस अप्सरा ने तुरन्त माला गले से निकाली और ऋषि को आदर के साथ थमा दी। दुर्वासा ऋषि ने वह माला सिर पर बालों के जूड़े में डाल ली। चला जा रहा था। आगे से स्वर्ग का राजा इन्द्र अपने एरावत हाथी पर बैठा आ रहा था। उसके आगे-आगे अप्सराऐं तथा गंद्धर्व जन गाते-बजाते चल रहे थे, और भी करोड़ों देवी-देवता साथ-साथ सम्मान में चल रहे थे। दुर्वासा ऋषि ने माला अपने सिर से उठाकर इन्द्र की ओर फैंक दी। इन्द्र ने वह माला हाथी की गर्दन पर रख दी। हाथी ने वह माला अपने सूंड से उठाकर जमीन पर फैंक दी। जैसे इन्द्र को कोई भक्त या देव कोई फूलमाला भेंट करता था तो इन्द्र उसको बाद में हाथी की गर्दन पर रख देता था जब इन्द्र हाथी पर बैठा हो। हाथी उसे उठाकर नीचे फैंक देता था। हाथी ने उसी रूटीन (routine) में वह माला नीचे फैंक दी थी।
इस बात से ऋषि दुर्वासा कुपित हो गये और बोले कि हे इन्द्र! तेरे को राज्य का अभिमान है। मेरे द्वारा दी गई माला का तूने अनादर किया है। मैं श्राप देता हूँ कि तेरा सर्व राज्य नष्ट हो जाए। देवराज इन्द्र एकदम काँपने लगा और बोला हे विप्र! मैंने आपकी माला को आदर से ग्रहण करके हाथी के ऊपर रखा था। हाथी ने अपनी औपचारिकतावश नीचे डाल दी, मुझे क्षमा करें। बार-बार करबद्ध होकर हाथी से नीचे उतरकर दण्डवत् प्रणाम करके भी क्षमा याचना इन्द्र ने की, परंतु दुर्वासा ऋषि नहीं माने और कहा कि जो मैंने कह दिया वह वापिस नहीं हो सकता। कुछ ही समय में इन्द्र का सर्वनाश हो गया, स्वर्ग उजड़ गया।
एक बार ऋषि दुर्वासा जी द्वारका नगरी के पास जंगल में कुछ समय के लिए रूके। द्वारकावासियों को पता चला कि दुर्वासा जी अपनी नगरी के पास आए हैं। ये त्रिकालदर्शी महात्मा हैं, सिद्धियुक्त ऋषि हैं। द्वारकावासी श्री कृष्ण से अधिक शाक्तिशाली किसी को नहीं मानते थे। श्री कृष्ण के पुत्र श्री प्रद्यूमन सहित कई यादवों ने योजना बनाई कि सुना है दुर्वासा जी त्रिकालदर्शी हैं, मन की बात भी बता देते हैं, अन्तर्यामी हैं, उनकी परीक्षा लेते हैं। यह विचार करके प्रद्यूमन को गर्भवती स्त्राी का स्वांग बनाकर दस-बारह व्यक्ति साथ चले। एक व्यक्ति को उसका पति बना लिया। दुर्वासा जी के पास जाकर कहा कि हे ऋषि जी! इस स्त्राी पर परमात्मा की कृपा बहुत दिनों पश्चात् हुई है, इसको गर्भ रहा है, यह इसका पति है। ये दोनों उतावले हैं कि हमें पता चले कि गर्भ में लड़का है या कन्या। आप तो अन्तर्यामी हैं, कृप्या बताऐं? उन्होंने प्रद्यूमन के पेट पर एक छोटी कढ़ाई बाँध रखी थी, उसके ऊपर रूई का लोगड़ तथा पुराने वस्त्रा बाँधकर गर्भ बना रखा था, ऊपर स्त्राी वस्त्रा पहना रखे थे। ऋषि दुर्वासा जी ने दिव्य दृष्टि से देखा और जाना कि ये मेरा मजाक करने आए हैं। दुर्वासा जी ने कहा कि इस गर्भ से यादव कुल का नाश होगा, इतना कहकर क्रोधित हो गए। सर्व व्यक्ति वहाँ से खिसक गए। नगरी में यह बात आग की तरह फैल गई कि ऋषि दुर्वासा जी ने श्राप दे दिया है कि यादवों का नाश होगा। उनको विश्वास था कि हमारे साथ सर्व शक्तिमान भगवान अखिल ब्रह्माण्ड के नायक श्री कृष्ण हैं। दुर्वासा के श्राप का प्रभाव हम पर नहीं हो पाएगा। फिर भी कुछ बुद्धिमान यादव इकट्ठे होकर श्री कृष्ण जी के पास गए तथा ऋषि दुर्वासा से किया बच्चों का मजाक तथा ऋषि दुर्वासा द्वारा दिये श्राप का वृत्तांत बताया। सर्व वार्ता सुनकर श्री कृष्ण जी ने कुछ देर सोचकर कहा कि उन बच्चों को साथ लेकर दुर्वासा जी के पास जाओ और क्षमा याचना करो। दुर्वासा के पास गए, क्षमा याचना की, परंतु दुर्वासा ने कहा कि जो मैंने बोल दिया, वह वापिस नहीं हो सकता।
सर्व व्यक्ति फिर से श्री कृष्ण जी के पास गये तथा सर्व बात बताई। द्वारका में भोजन भी नहीं बना। सर्व नगरी चिन्ता में डूब गई। श्री कृष्ण जी ने कहा कि चिन्ता किस बात की। जो वस्तु गर्भ रूप में प्रयोग की थीं, उन्ही से तो हमारा विनाश होना बताया है। ऐसा करो, कपड़ांे तथा रूई को जलाकर तथा लोहे की कढ़ाई को पत्थर पर घिसाकर प्रभास क्षेत्रा (यमुना नदी के किनारे एक स्थान का नाम है) में यमुना नदी में डाल दो। वहीं बैठकर घिसाओ, वहीं चूरा दरिया में डाल दो, वहीं पर राख पानी में डाल दो। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी। जब गर्भ की वस्तुऐं ही नहीं रहेंगी तो हमारा नाश कैसे होगा? यह बात द्वारिकावासियों को अच्छी लगी और अपने को संकट मुक्त माना। श्री कृष्ण जी के आदेशानुसार सब किया गया। कढ़ाई का एक कड़ा पूरी तरह नहीं घिस पाया। उसको वैसे ही यमुना नदी में फैंक दिया। वह एक मछली ने चमकीला खाद्य पदार्थ जानकर खा लिया। उस मछली को बालीया नामक भील ने पकड़ लिया। जब मछली को काटा तो उससे निकली धातु की जाँच करने के पश्चात् उसको अपने तीर को आगे के हिस्से में विषयुक्त करवाकर लगवा लिया, उसे सुरक्षित रख लिया। जो कढ़ाई का लोहे का चूरा पानी में डाला था, वह लम्बे सरकण्डे जैसे घास के रूप में यमुना नदी के किनारे-किनारे पर उग गया।
कुछ समय उपरांत द्वारिका नगरी में उत्पात मचने लगा। छोटी-सी बात पर एक-दूसरे का कत्ल करने लगे। आपस में वैर-विरोध बढ़ गया। नगर के लोगों की यह दशा देखकर नगरी के गणमान्य व्यक्ति भगवान श्री कृष्ण जी के पास गए और जो कुछ भी नगरी में हो रहा था, बताया और कारण तथा समाधान श्री कृष्ण जी से जानने की इच्छा व्यक्त की क्योंकि श्री कृष्ण जी यादव तथा पाण्डवों के आध्यात्मिक गुरू थे। संकट का निवारण गुरूदेव से ही कराया जाता है। श्री कृष्ण जी ने कारण बताया कि दुर्वासा ऋषि का श्राप फल रहा है। समाधान है कि सर्व नर (डंसम) यादव चाहे आज का जन्मा भी लड़का क्यों न हो, सब प्रभास क्षेत्रा में जहाँ पर उस कढ़ाई का चूर्ण डाला था, जाकर यमुना में स्नान करो, तुम श्राप मुक्त हो जाओगे। सर्व द्वारिकावासियों ने श्री कृष्ण जी के आदेश का पालन किया। सर्व नर यादव प्रभास क्षेत्रा में श्राप मुक्त होने के उद्देश्य से स्नान करने के लिए चले गए। ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण सर्व यादव समूह बनाकर इकट्ठे हो गए। पहले स्नान किया कि श्राप मुक्त होने के पश्चात् हो सकता है कि आपसी मन-मुटाव दूर हो जाए। परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ। पहले सबने स्नान किया, फिर आपस में गाली-गलोच शुरू हुआ। फिर उस घास को उखाड़कर एक-दूसरे को मारने लगे। जो घास (सरकण्डे) लोहे की कढ़ाई के चूर्ण से उगा था, वह तलवार जैसा कार्य करने लगा। सरकण्डे को मारते ही सिर धड़ से अलग होकर गिरने लगा। इस प्रकार सर्व यादव आपस में लड़कर मृत्यु को प्राप्त हो गए। कुछ दो सौ - चार सौ शेष रहे थे। उसी समय श्री कृष्ण जी भी वहीं पहुँच गए। उन्हांेने भी उस घास को उखाड़ा। उसके लोहे के मूसल बन गए। शेष बचे अपने कुल के व्यक्तियों को स्वयं श्री कृष्ण जी ने मौत के घाट उतारा।
इसके पश्चात् श्री कृष्ण जी एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे। इतने में देवयोग से वह बालीया नामक भील जिसने उस लोहे की कढ़ाई के कड़े का विषाक्त तीर (।ततवू) बनवाया था, उसी तीर को लेकर शिकार की खोज में उस स्थान पर आ गया जहाँ पर श्री कृष्ण जी विश्राम कर रहे थे। श्री कृष्ण जी के दायें पैर के तलवे में पद्म बना था, उसमें सौ वाॅट के बल्ब जैसी चमक थी। वृक्ष की झूर्मुट नीचे तक लटकी थी। उनके बीच से पद्म की चमक स्पष्ट नहीं दिख रही थी। बालीया भील ने सोचा कि यह हिरण की आँख दिखाई दे रही है, इसलिए तीर चला दिया हिरण को मारने के उद्देश्य से। जब तीर श्री कृष्ण जी के पैर में लगा तो श्री कृष्ण जी ने कहा मर गया रे, मर गया। बालीया भील को आभास हुआ कि तीर किसी व्यक्ति को लग गया। दौड़कर गया तो देखा द्वारिकाधीश मारे दर्द के तड़फ रहे थे। बालीया ने कहा कि हे महाराज! मुझसे धोखे से तीर चल गया। आपके पैर की चमक को मैंने हिरण की आँख जानकर तीर मार दिया, मुझसे गलती हो गई, क्षमा करो महाराज। श्री कृष्ण जी ने कहा कि तेरे से कोई गलती नहीं हुई है। यह तेरा और मेरा पिछले जन्म का लेन-देन है, वह मैंने चुका दिया है। तू त्रोतायुग में सुग्रीव का भाई बाली था, मैं रामचन्द्र पुत्रा दशरथ था। मैंने भी तेरे को वृक्ष की औट लेकर धोखे से मारा था। वह अदला-बदला (ज्पज वित जंज) पूरा किया है।
इस प्रकार दुर्वासा ऋषि के श्राप से सर्व यादव कुल का नाश हुआ जो वर्तमान में यादव हैं। ये वो हैं जो उस समय माताओं के गर्भ में थे, बाद में उत्पन्न हुए थे।
सूक्ष्मवेद में लिखा है:-
गरीब, दुर्वासा कोपे तहाँ, समझ न आई नीच।
छप्पन करोड़ यादव कटे, मची रूधिर की कीच।।
सरलार्थ:- दुर्वासा ने बच्चों के मजाक को इतनी गंभीरता से लिया कि उनके कुल का नाश करने का श्राप दे दिया। उस नीच दुर्वासा ने यह भी नहीं सोचा कि क्या अनर्थ हो जाएगा। बात कुछ भी नहीं थी, दुर्वासा नीच ऋषि ने इतना जुल्म कर दिया कि छप्पन करोड़ यादव कटकर मर गए और रक्त के बहने से कीचड़ बन गया।
इसी प्रकार चुणक ऋषि ने बेमतलब पंगा लेकर मानधाता राजा की 72 करोड़ सेना का नाश कर दिया।
एक कपिल नाम के ऋषि थे जिनको भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक अवतार भी माना जाता है, वे तपस्या कर रहे थे।
एक सगड़ राजा था। उसके 60 हजार पुत्रा थे। किसी ऋषि ने बताया कि यदि एक तालाब, एक कुआँ, एक बगीचा बना दिया जाए तो एक अश्वमेघ यज्ञ जितना फल मिलता है। राजा सगड़ के लड़कों ने यह कार्य शुरू कर दिया। समझदार व्यक्तियों ने उनसे कहा कि आप ऐसे जगह-जगह तालाब, कुएँ, बगीचे बनाओगे तो पृथ्वी पर अन्न उत्पन्न करने के लिए स्थान ही नहीं रहेगा। किसी राजा ने विरोध किया तो उससे लड़ाई कर ली। उन राजा सगड़ के लड़कों ने एक घोड़ा अपने साथ लिया। उसके गले में पत्रा लिखकर बाँध दिया कि यदि कोई हमारे कार्य में बाधा करेगा, वह इस घोड़े को पकड़ ले और युद्ध के लिए तैयार हो जाए। उन सिरफिरों से कौन टक्कर ले? पृथ्वी देवी भगवान विष्णु जी के पास गई। एक गाय का रूप धारण करके कहा कि हे भगवान! पृथ्वी पर एक सगड़ राजा है। उसके 60 हजार पुत्रा हैं। उनको ऐसी सिरड़ उठी है कि मेरे को खोद डाला। वहाँ मनुष्यों के खाने के लिए अन्न भी उत्पन्न ��हीं हो सकता। भगवान विष्णु ने कहा तुम जाओ, वे अब कुछ नहीं करेंगे। भगवान विष्णु ने देवराज इन्द्र को बुलाया और समझाया कि राजा सघड़ के 60 हजार लड़के यज्ञ कर रहे हैं। यदि उनकी 100 यज्ञ पूरी हो गई तो तुम्हारी इन्द्र गद्दी उनको देनी पडे़गी, समय रहते कुछ बनता है तो कर ले। इन्द्र ने हलकारे अर्थात् अपने नौकर भेजे, उनको सब समझा दिया। रात्रि के समय राजा सघड़ के पुत्रा सोए पड़े थे। घोड़ा वृक्ष से बाँध रखा था। उन देवराज के फरिश्तों ने घोड़ा खोलकर कपिल तपस्वी की जाँघ पर बाँध दिया। कपिल ऋषि वर्षों से तपस्यारत था। जिस कारण से उसका शरीर अस्थिपिंजर जैसा हो गया था। आसन पदम लगाए हुए था, टाँगें पतली-पतली थी। जैसे वृक्ष की जड़ों की मिट्टी वर्षा के पानी से बह जाती हैं और जड़ों के बीच में 6–7 इंच का अन्तर (gap) हो जाता है, ऋषि कपिल जी की टाँगें ऐसी थीं। इन्द्र के हलकारों ने घोड़े को टाँगों के बीच के रास्ते में से जाँघ के पास रस्से से बाँध दिया।
राजा के लड़कों ने सुबह उठते ही घोड़ा देखा। उसकी खोज में युद्ध करने की तैयारी करके 60 हजार का लंगार चल पड़ा। घोड़े के पद्चिन्हों के साथ-साथ कपिल मुनि के आश्रम में पहुँच गए। घोड़े को बँधा देखकर सगड़ राजा के पुत्रों ने ऋषि की ही कोख में (दोनांे बाजुओं के नीचे काखों को हरियाणवी भाषा में हींख कहते हैं) भाले चुभो दिए। कपिल ऋषि की पलकें इतनी लम्बी बढ़ चुकी थी कि जमीन पर जा टिकी थी। ऋषि को पीड़ा हुई तो क्रोधवश पलकों को हाथों से उठाया, आँखों से अग्नि बाण छूटे। 60 हजार सगड़ के पुत्रों की सेना की पूली-सी बिछ गई अर्थात् 60 हजार सगड़ के बेटे मरकर ढे़र हो गए।
सूक्ष्मवेद में कहा है कि:-
60 हजार सगड़ के होते, कपिल मुनिश्वर खाए।
जै परमेश्वर की करें भक्ति, तो अजर-अमर हो जाए।।
72 क्षौणी खा गया, चुणक ऋषिश्वर ��क।
देह धारें जौरा फिरैं, सभी काल के भेष।।
दुर्वासा कोपे तहाँ, समझ न आई नीच।
56 करोड़ यादव कटे, मची रूधिर की कीच।।
भावार्थ:- कपिल मुनि जी, चुणक मुनि जी तथा दुर्वासा मुनि जी संसार में कितने प्रसिद्ध हैं, ये सब काल ब्रह्म की भक्ति करने वाले भेषधारी ऋषि हैं। ये चलती-फिरती मौत थी। चलती-फिरती मनुष्य रूप में घाल हैं। (घाल = एक मिट्टी के छोटे मटके को तांत्रिक विद्या से आकाश में उड़ाकर दुश्मन पर छोड़ता है। उससे बहुत हानि होती है।) गलती से भोले प्राणी इनको महान आत्मा मानते हैं।
ये सब ज्ञानी आत्मा थे, ये सब उदार हृदय के थे। इन्हांेने परमात्मा प्राप्ति के लिए अपना कल्याण कराने के लिए तन-मन-धन अर्पित कर दिया, परंतु तत्वदर्शी सन्त न मिलने के कारण इन्होंने काल ब्रह्म को एक समर्थ प्रभु मानकर गलती की और उसी की साधना ओम् (ॐ) नाम के जाप के साथ तथा अधिक हठ योग समाधि के द्वारा की, जिससे परमात्मा प्राप्ति तो है ही नहीं, उल्टा हानि होती है क्योंकि यह साधना शास्त्रा विरूद्ध है।
गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में कहा है कि शास्त्राविधि को त्यागकर जो मनमाना आचरण करते हैं, उनकी साधना व्यर्थ है। वे उदार आत्माऐं इसी कारण काल ब्रह्म की अनुत्तम गति में स्थित रहें।
गीता अध्याय 17 श्लोक 5, 6 में कहा है कि:-
जो मनुष्य शास्त्रा विधि रहित केवल मन कल्पित घोर तप को तपते हैं और दम्भ अहंकार से युक्त, कामना आसक्ति अभिमान से युक्त हैं। (गीता अध्याय 17 श्लोक 5)
शरीर में स्थित सर्व कमलों में देव शक्तियों तथा पूर्ण परमात्मा तथा मुझे भी कृश करने वाले अर्थात् कष्ट देने वाले अज्ञानियों को तू असुर स्वभाव के जान। (गीता अध्याय 17 श्लोक 6)
यही प्रमाण गीता अध्याय 16 श्लोक 17 से 20 में है।
वे अपने आपको श्रेष्ठ मानने वाले घमण्डी पुरूष धन और मान के मद से युक्त होकर केवल नाममात्रा यज्ञों द्वारा पाखण्ड से शास्त्राविधि रहित पूजन करते हैं। (गीता अध्याय 16 श्लोक 17)
अहंकार, बल, घमण्ड, कामना, क्रोध आदि के वश और दूसरों की निन्दा करने वाले पुरूष अपने और दूसरों के शरीर में स्थित मुझसे द्वेष करने वाले होते हैं। (गीता अध्याय 16 श्लोक 18)
उन द्वेष करने वाले पापाचीर क्रूरकर्मी “जो वचन से करोंड़ांे व्यक्तियों की हत्या करने वाले” नराधमों अर्थात् नीच मनुष्यों को मैं संसार में बार-बार आसुरी अर्थात् राक्षसी योनियों में ही डालता हूँ। (गीता अध्याय 16 श्लोक 19) सूक्ष्मवेद में भी इन्हें नीच कहा है:-
दुर्वासा कोपे तहाँ, समझ न आई नीच।
56 करोड़ यादव कटे, मची रूधीर की कीच।।
हे अर्जुन! वे मूर्ख मुझको न प्राप्त होकर ही जन्म-जन्म में आसुरी योनियों को प्राप्त होते हैं, उससे भी अति नीच गति को प्राप्त होते हैं अर्थात् घोर नरक में गिरते हैं। (गीता अध्याय 17 श्लोक 20)
उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध हुआ कि गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में गीता ज्ञान दाता ने अपनी साधना से होने वाली गति को भी इसलिए अनुत्तम अर्थात् घटिया बताया है। कहा है कि:-
गीता अध्याय 7 श्लोक 18 = गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि जो चैथी प्रकार के ज्ञानी साधक हैं, वे सभी हंै तो उदार क्योंकि परमात्मा प्राप्ति के लिए अपने शरीर के नष्ट होने की भी प्रवाह नहीं की और हजारों वर्ष भूखे-प्यासे साधनारत रहे, परंतु तत्वदर्शी सन्त न मिलने के कारण वे सभी मेरी अनुत्तम अर्थात् घटिया गति अर्थात् ब्रह्म साधना से होने वाले मोक्ष जो ऊपर ऋषियों को हुआ, उसमें स्थित रहे अर्थात् जन्म-मरण, चैरासी लाख योनियों के चक्कर वाली गति में रह गए। (गीता अध्याय 7 श्लोक 18)
निष्कर्ष:- चुणक ऋषि, दुर्वासा ऋषि तथा कपिल ऋषि ने जो ओम् (ॐ) नाम जाप किया, उसकी भक्ति के फलस्वरूप ये कुछ समय ब्रह्म लोक में जाऐंगे। वहाँ भक्ति समाप्त करके फिर पृथ्वी पर राजा बनेंगे क्योंकि सूक्ष्मवेद में लिखा है:-
तप से राज, राज मध मानम्, जन्म तीसरे शुकर स्वानम्।
फिर कुत्ता, गधा बनेंगे, फिर नरक जाएंगे। जब कुत्ते बनेंगे, तब इनके सिर में कीड़े पड़ेंगे। जो व्यक्ति इनके श्राप से मरे थे, उनका पाप इनको भोगना पड़ेगा, कीड़े इनका माँस चुन-चुनकर खाऐंगे। इसलिए गीता में भी ऐसे साधकों के विषय में जो बताया है, वो आप जी ने ऊपर पढ़ लिया।
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pawankumardas · 3 years
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#कबीरसागर_का_सरलार्थPart131
अध्याय राजा बीर देव सिंह बोध का सारांश Part B
युद्ध जीत कर पांडव, खुशी हुए अपार। इन्द्रप्रस्थ की गद्दी पर, युधिष्ठिर की सरकार।।
एक दिन अर्जुन पूछता, सुन कृष्ण भगवान। एक बार फिर सुना दियो, वो निर्मल गीता ज्ञान।।
घमाशान युद्ध के कारण, भूल पड़ी है मोहें। ज्यों का त्यों कहना भगवन्, तनिक न अन्तर होए।।
ऋषि मुनि और देवता, सबको रहे तुम खाय। इनको भी नहीं छोड़ा आपने, रहे तुम्हारा ही गुण गाय।।
कृष्ण बोले अर्जुन से, यह गलती क्यों किन्ह। ऐसे निर्मल ज्ञान को भूल गया बुद्धिहीन।।
अब मुझे भी कुछ याद नहीं, भूल पड़ी नीदान। ज्यों का त्यों उस गीता का मैं, नहीं कर सकता गुणगान।।
स्वयं श्री कृष्ण को याद नहीं और अर्जुन को धमकावे। बुद्धि काल के हाथ है, चाहे त्रिलोकी नाथ कहलावे।।
ज्ञान हीन प्रचारका, ज्ञान कथें दिन रात। जो सर्व को खाने वाला, कहें उसी की बात।।
सब कहें भगवान कृपालु है, कृपा करें दयाल। जिसकी सब पूजा करें, वह स्वयं कहै मैं काल।।
मारै खावै सब को, वह कैसा कृपाल। कुत्ते गधे सुअर बनावै है, फिर भी दीन दयाल।।
बाईबल वेद कुरान है, जैसे चांद प्रकास। सूरज ज्ञान कबीर का, करै तिमर का नाश।।
रामपाल साची कहै, करो विवेक विचार। सतनाम व सारनाम, यही मन्त्रा है सार।।
कबीर हमारा राम है, वो है दीन दयाल। संकट मोचन कष्ट हरण, गुण गावै रामपाल।।
ब्रह्मा विष्णु शिव, हैं तीन लोक प्रधान। अष्टंगी इनकी माता है, और पिता काल भगवान।।
एक लाख को काल, नित खावै सीना ताण। ब्रह्मा बनावै विष्णु पालै, शिव कर दे कल्याण।।
अर्जुन डर के पूछता है, यह कौन रूप भगवान। कहै निरंजन मैं काल हूँ, सबको आया खान।।
ब्रह्म नाम इसी का है, वेद करें गुणगान। जन्म मरण चैरासी, यह इसका संविधान।।
चार राम की भक्ति में, लग रहा संसार। पाँचवें राम का ज्ञान नहीं, जो पार उतारनहार।।
ब्रह्मा-विष्णु-शिव तीनों गुण हैं, दूसरा प्रकृति का जाल। लाख जीव नित भक्षण करें, राम तीसरा काल।।
अक्षर पुरूष है राम चैथा, जैसे चन्द्रमा जान। पाँचवा राम कबीर है, जैसे उदय हुआ भान।।
रामदेवानन्द गुरु जी, कर गए नजर निहाल। सतनाम का दिया खजाना, बरतै रामपाल।।
परमेश्वर कबीर जी के उपरोक्त सत्यज्ञान को सुनकर सर्व श्रोता आश्चर्यचकित रह गए। जो वक्ता थे, वे जल-भुन गए। एक जो राजा का ब्राह्मण गुरू था, वह राजा के पास गया और राजा से कहा कि हे राजन! हम जिन ब्रह्मा, विष्णु, शिव (ब्रह्मा, हरि, हर) को परमात्मा अविनाशी मानते हैं। कबीर जुलाहा कह रहा है कि ये नाशवान हैं। इनकी भक्ति करने से मुक्ति नहीं हो सकती। ब्रह्मा, विष्णु, शिव का पिता काल है जिसने श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके गीता का ज्ञान दिया है। इनकी माता दुर्गा है। इन सबसे शक्तिमान अन्य परमेश्वर है जो कभी जन्मता-मरता नहीं। जो आप पत्थर की मूर्ति को प्रभु मानकर पूजते हो, यह एक कारीगर द्वारा निर्मित है। बनाते समय कारीगर ने इसकी छाती पर पैर रखकर छैनी और हथौड़े मारकर आकार दिया है। इसका रचनहार निर्माता कारीगर है। यह कृत्रिम देव किसी काम का नहीं। क्या कभी इस मूर्ति भगवान ने आपसे बातें की हैं? क्या किसी कष्ट का समाधान बताया है?
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