( #Muktibodh_part159 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part160
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 307-308
’’सब पंथों के हिन्दुओं को भक्ति-शक्ति में कबीर जी द्वारा पराजित करना‘‘
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 649-702 :-
पंडित सिमटे पुरीके, काजी करी फिलादी।
गरीबदास दहूँ दीन की, जुलहै खोई दादि।।649।।
च्यारि बेद षटशास्त्र, काढे अठारा पुराण।
गरीबदास चर्चा करैं, आ जुलहै सैतान।।650।।
तूं जुलहा सैतान है, मोमन ल्याया सीत।
गरीबदास इस पुरी में, कौन तुम्हारा मीत।।651।।
तूं एकलखोर एकला रहै, दूजा नहीं सुहाय।
गरीबदास काजी पंडित, मारैं तुझै हराय।652।।
सुनि ब्रह्मा के बेद, तूं नीच जाति कुल हीन।
गरीबदास काजी पंडित, सिमटैं दोनौं दीन।।653।।
च्यारि बेद षटशास्त्र, अठारा पुराण की प्रीति।
गरीबदास पंडित कहैं, सुन जुलहे मेरे मीत।।654।।
ज्ञान ध्यान असनान करि, सेवौ सालिग्राम।
गरीबदास पंडित कहैं, सुनि जुलहे बरियाम।।655।।
बोलै जुलहा अगम गति, सुन पंडित प्रबीन।
गरीबदास पत्थर पटकि, हौंना पद ल्यौ लीन।।656।।
अनंत कोटि ब्रह्मा गये, अनंत कोटि गये बेद।
गरीबदास गति अगम है, कोई न जानैं भेद।।657।।
अनंत कोटि सालिग गये, साथै सेवनहार।
गरीबदास वह अगम पंथ, जुलहे कूं दीदार।।658।।
काजी पंडित सब गये, शाह सिकंदर पास।
गरीबदास उस सरे में, सबकी बुद्धि का नाश।।659।।
कबीर और रैदास ने, भक्ति बिगारी समूल।
गरीबदास द्वै नीच हैं, करते भक्ति अदूल।।660।।
हिंदूसैं नहीं राम राम, मुसलमान सलाम।
गरीबदास दहूँ दीन बिच, ये दोनों बे काम।।661।।
उमटी काशी सब गई, षट दर्शन खलील।
गरीबदास द्वै नीच हैं, इन मारत क्या ढील।।662।।
दंडी सन्यासी तहां, सिमटे हैं बैराग। गरीबदास तहां कनफटा, भई सबन सें लाग।।663।।
एक उदासी बनखंडी, फूल पान फल भोग।
गरीबदास मारन चले, सब काशी के लोग।।664।।
बीतराग बहरूपीया, जटा मुकुट महिमंत।
गरीबदास दश दश पुरुष, भेडौं के से जन्त।।665।।
भस्म रमायें भुस भरैं, भद्र मुंड कचकोल।
गरीबदास ऐसे सजे, हाथौं मुगदर गोल।।666।।
छोटी गर्दन पेट बडे़, नाक मुख शिर ढाल।
गरीबदास ऐसे सजे, काशी उमटी काल।।667।।
काले मुहडे जिनौं के, पग सांकल संकेत।
गरीबदास गलरी बौहत, कूदैं जांनि प्रेत।।668।।
गाल बजावैं बंब बंब, मस्तक तिलक सिंदूर।
गरीबदास कोई भंग भख, कोई उडावैं धूर।।669।।
रत्नाले माथे करैं, जैसैं रापति फील। गरीबदास अंधे बहुत, फेरैं चिसम्यौं लील।।670।।
लीले चिसम्यौं अंधले, मुख बांवै खंजूस।
गरीबदास मारन चले, हाथौं कूंचैं फूस।।671।।
जुलहे और चमार परि, हुई चढाई जोर। गरीबदास पत्थर लिये, मारैं जुलहे तोर।।672।।
तिलक तिलंगी बैल जूं, सौ सौ सालिगराम।
गरीबदास चौकी बौहत, उस काशी के धाम।।673।।
घर घर चौकी पथरपट, काली शिला सुपेद।
गरीबदास उस सौंज पर, धरि दिये चारौं बेद।।674।।
ताल मंजीरे बजत हैं, कूदै दागड़ दुम। गरीबदास खर पीठ हैं, नाक जिन्हौं के सुम।।675।।
पंडित और बैराग सब, हुवा इकठा आंनि।
गरीबदास एक गुल भया, चौकी धरी पषांन।।676।।
एक पत्थर भूरी शिला, एक काली कुलीन।
गरीबदास एक गोल गिरद, एक लाम्बी लम्बीन।।677।।
एक पीतल की मूरती, एक चांदी का चौक।
गरीबदास एक नाम बिन, सूना है त्रिलोक।।678।।
एक सौने का सालिगं, जरीबाब पहिरांन।
गरीबदास इस मनुष्य सैं, अकल बडी अक श्वान।।679।।
काशीपुरी के सालिगं, सबै समटे आय। गरीबदास कुत्ता तहां, मूतैं टांग उठाय।।680।।
कुत्ता मुख में मूति है, कैसै सालिगराम। गरीबदास जुलहा कहै, गई अकल किस गाम।।681।।
धोय धाय नीके किये, फिरि आय मारी धार।
गरीबदास उस पुरी में, हंसें जुलाहा और चमार।।682।।
तीन बार मुख मूतिया, सालिग भये अशुद्ध।
गरीबदास चहूँ बेद में, ना मूर्ति की बुद्धि।।683।।
भृष्ट हुई काशी सबै, ठाकुर कुत्ता मूंति। गरीबदास पतथर चलैं, नागा मिसरी सूंति।।684।।
किलकारैं दुदकारहीं, कूदैं कुतक फिराय।
गरीबदास दरगह तमाम, काशी उमटी आय।।685।।
होम धूप और दीप करि, भेख रह्या शिर पीटि।
गरीबदास बिधि साधि करि, फूकैं बौहत अंगीठ।।686।।
काशीके पंडित लगे, कीना होम हजूंम। गरीबदास उस पुरी में, परी अधिकसी धूम।।687।।
चौकी सालिगराम की, मसकी एक न तिल।
गरीबदास कहै पातशाह, षटदर्शन कि गल।।688।।
धूप दीप मंदे परे, होम सिराये भेख। दास गरीब कबीर ने, राखी भक्ति की टेक।।689।।
सत कबीर रैदासतूं, कहै सिकंदर शाह। गरीबदास तो भक्ति सच, लीजै सौंज बुलाय।।690।।
कहै कबीर सुनि पातशाह, सुनि हमरी अरदास।
गरीबदास कुल नीचकै, क्यौं आवैं हरि पास।।691।।
दीन बचन आधीनवन्त, बोलत मधुरे बैन।
गरीबदास कुण्डल हिरद, चढे गगन गिरद गैंन।।692।।
लीला की पुरूष कबीर ने, सत्यनाम उचार।
गरीबदास गावन लगे, जुलहा और चमार।।693।।
दहनैं तौ रैदास है, बामी भुजा कबीर। गरीबदास सुर बांधि करि, मिल्या राग तसमीर।694।।
रागरंग साहिब गाया लीला कीन्ही ततकाल।
गरीबदास काशीपुरी, सौंज पगौं बिन चाल।।695।।
सौंज चली बिन पगौंसैं, जुलहै लीन्ही गोद।
गरीबदास पंडित पटकि, चले अठारा बोध।।696।।
जुलहे और चमारकै, भक्ति गई किस हेत।
गरीबदास इन पंडितौंका, रहि गया खाली खेत।।697।।
खाली खेत कुहेतसैं, बीज बिना क्या होय।
गरीबदास एक नाम बिन, पैज पिछौड़ी तोय।।698।।
तत्वज्ञान हीन श्वान ज्यों, ह्ना ह्ना करै हमेश।
दासगरीब कबीर हरि का दुर्लभ है वह देश।।699।।
दुर्लभ देश कबीर का, राई ना ठहराय। गरीबदास पत्थर शिला, ब्राह्मण रहे उठाय।।700।।
पत्थर शिलासैं ना भला, मिसर कसर तुझ मांहि।
गरीबदास निज नाम बिन, सब नरक कूं जांहि।।701।।
जटाजूट और भद्र भेख, पैज पिछौड़ी हीन।
गरीबदास जुलहा सिरै, और रैदास कुलीन।।702।।
क्रमशः______________
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