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rightnewshindi · 4 days
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लेबनान में हुए पेजर ब्लास्ट का केरल के साथ है गहरा कनेक्शन, 15 साल से चल रही थी साजिश; जानें पूरा मामला
लेबनान में हुए पेजर ब्लास्ट का केरल के साथ है गहरा कनेक्शन, 15 साल से चल रही थी साजिश; जानें पूरा मामला #News #BreakingNews #ViralNews #Update #Trending #Info #HindiNews #CurrentAffrairs #NewsUpdate #RightNewsIndia #RightNews
Pager Blast Kerala Connection: लेबनान में हुए पेजर ब्लास्ट के बाद पूरी दुनिया हैरान है। हिजबुल्लाह ने इन धमाकों के लिए इजरायल को जिम्मेदार ठहराया है। वहीं अमेरिकी एजेंसियों का भी कहना है कि इन पेजर्स को इजरायल ने ही बनवाया था और बीते 15 साल से इस हमले की साजिश चल रही थी। हमले की योजना बनाने में शेल कंपनियां शामिल थीं। खुफिया अधिकारियों ने ही कंपनियां बनाई थीं। इन पेजर ब्लास्ट में कम से कम 20…
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vcanhelpsu · 4 months
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About Python In Hindi
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पायथन प्रोग्रामिंग लैंग्वेज का उपयोग आमतौर पर इसकी स्पष्टता, पठनीयता और सरल, समझने योग्य प्रोग्राम सिंटेक्स के लिए किया जाता है। यह इसे अनुभवहीन और अनुभवी कंप्यूटर प्रोग्रामर दोनों के लिए एक लोकप्रिय प्रोग्रामिंग डेवलपमेंट विकल्प बनाता है। पाइथन प्रोग्रामिंग में ऑब्जेक्ट-ओरिएंटेड, फंक्शनल, और प्रोसीज़रल प्रोग्रामिंग, प्रोग्रामिंग प्रतिमानों में से कुछ फीचर्स हैं. जो कि पायथन प्रोग्रामिंग इसके प्रोग्राम डेवलपर को ऑफ़र करता है।
पायथन डेवलपमेंट के लिए एक महत्वपूर्ण स्टैण्डर्ड एप्लीकेशन और वेब डेवलपमेंट लाइब्रेरी उपलब्ध है। यह आपको विभिन्न पाइथन प्रोग्रामिंग मॉडल उद्देश्यों के साथ उपयोग के लिए विभिन्न प्रकार के बिल्ट इन रेडीमेड पाइथन मॉड्यूल प्रदान करता है। जबकि पाइथन प्रोग्रामिंग में पहले से ही विशाल फाइलों, नेटवर्किंग, रेगुलर एक्सप्रेशंस और कई अन्य पाइथन ऑब्जेक्ट के प्रबंधन के लिए प्रोग्रामिंग लाइब्रेरी शामिल हैं। पायथन प्रोग्रामिंग में कई बाहरी समर्थित लाइब्रेरी सुविधाओं का एक व्यापक सेट भी पाइथन डेवलपर को प्रदान करता है. जैसे कि Django, Flask, Numpy, Scipy, Pandas, Tensorflow, और Pytorch, आदि है।
पायथन एक उच्च-स्तरीय, इंटरप्रेटेड की गई प्रोग्रामिंग भाषा है। इसका मतलब यह भी है कि किसी भी पाइथन में बने प्रोग्राम सोर्स कोड को चलने से पहले कंपाइल नहीं करना है। पायथन प्रोग्रामिंग डिफ़ॉल्ट रूप से विंडोज, मैकोज़, लिनक्स, और मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम सहित विभिन्न प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा पूर्ण समर्थित है। पाइथन प्रोग्रामिंग में पहले से ही एक इंटरएक्टिव शेल शामिल है। यह पायथन प्रोग्रामर्स को लैंग्वेज फीचर्स और टेस्ट कोड सैंपल के साथ प्रयोग करने में सक्षम बनाता है।
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kanpursamachar · 5 months
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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई एक याचिका में अधिकारियों को शेल कंपनियों और घाटे में चल रही कंपनियों की ओर से विभिन्न राजनीतिक दलों को मिलने वाले वित्त पोषण के स्रोत की जांच करने का निर्देश देने की मांग की गई है
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gaurav34 · 6 months
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भारत में मिट्टी के प्रकार (Soil Types in India)
मिट्टी, धरती का वह ऊपरी भाग है जिसमें पौधे उगते हैं। यह चट्टानों, खनिजों, और जैविक पदार्थों से बनती है। भारत में, विभिन्न प्रकार की मिट्टी पाई जाती हैं, जो जलवायु, वनस्पति, और भूगर्भीय संरचना के आधार पर भिन्न होती हैं।
यहाँ भारत में पाए जाने वाले कुछ प्रमुख मिट्टी के प्रकारों का विवरण दिया गया है:
1. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil): यह भारत में सबसे व्यापक रूप से पाया जाने वाला मिट्टी का प्रकार है। यह नदियों द्वारा लाए गए गाद से बनती है और गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, और सिंधु नदी के मैदानी इलाकों में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। जलोढ़ मिट्टी उपजाऊ और कृषि के लिए उपयुक्त होती है।
2. काली मिट्टी (Black Soil): यह मिट्टी बेसाल्ट चट्टानों के अपक्षय से बनती है और इसे 'रेगुर' भी कहा जाता है। यह ��िट्टी काली, भारी और चिकनी होती है और इसमें जल धारण क्षमता अधिक होती है। काली मिट्टी कपास, बाजरा, और सोयाबीन जैसी फसलों के लिए उपयुक्त होती है।
3. लाल मिट्टी (Red Soil): यह मिट्टी ग्रेनाइट, शेल, और गनीस चट्टानों के अपक्षय से बनती है। यह मिट्टी लाल रंग की और रेतीली होती है। लाल मिट्टी में जल धारण क्षमता कम होती है और यह धान, चना, और मूंगफली जैसी फसलों के लिए उपयुक्त होती है।
4. लैटेराइट मिट्टी (Laterite Soil): यह मिट्टी गर्म और आर्द्र जलवायु में बनती है। यह मिट्टी लाल, भूरी, या पीले रंग की होती है और इसमें लोहे और एल्यूमीनियम का उच्च प्रतिशत होता है। लैटेराइट मिट्टी चाय, कॉफी, और रबर जैसी फसलों के लिए उपयुक्त होती है।
5. रेगिस्तानी मिट्टी (Desert Soil): यह मिट्टी शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है। यह मिट्टी रेतीली, ढीली, और कम उपजाऊ होती है। रेगिस्तानी मिट्टी में जल धारण क्षमता कम होती है और यह बाजरा, ज्वार, और मूंगफली जैसी फसलों के लिए उपयुक्त होती है।
6. बलुई मिट्टी एक प्रकार की मिट्टी है जो अपेक्षाकृत रेतीली और मानव गतिविधियों के फलस्वरूप उत्तेजित होती है।बलुई मिट्टी कहां पाई जाती है ? यह उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में पाई जाती है, जैसे कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली आदि। इसमें अधिकतर रेत का होना इसे पहचानी जाती है। यह मिट्टी खेती में उपयुक्त होती है लेकिन इसमें अधिक संकरण की आवश्यकता होती है।
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adanigroup · 6 months
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शेल कंपनियों का कथित इस्तेमाल: अ���ानी ग्रुप पर मॉरीशस और अन्य कर-चोरी के लिए कुख्यात देशों में कथित रूप से शेल कंपनियों का जाल बिछाकर कर चोरी करने का आरोप है. इन कंपनियों के जरिए कथित रूप से धन का लेन-देन कर करों से बचाने की कोशिशों की बात सामने आई है
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y2kasti · 7 months
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Are you on Koo?
https://www.kooapp.com/dnld
😋Chemical locha L💞ve Story😄
5. रासायनिक बंधन
रासायनिक बंधन (Chemical Bonding): किसी अणु में
उपस्थित अवयवी परमाणुओं को परस्पर बाँधकर अणु को विशेष
ज्यामितीय आकार में रखने वाले बल को रासायनिक बंधन कहते हैं।
अक्रिय गैसों का इलेक्ट्रिॉनिक विन्यास (Electronic Configura-tions of Inert Gases) : प्रकृति में पाये जाने वाले अक्रिय गैसों की संख्या 6 है ।
ये गैसें हैं— हीलियम (He) निऑन (Ne),ऑर्गन (Ar ),क्रिप्टॉन (Kr),जेनॉन (Xe) तथा रेडॉन (Rn)। हीलियम (He) को छोड़कर सभी अक्रिय गैसों के परमाणुओं की बाह्यतम कक्षा में 8 इलेक्ट्रॉन होते हैं । परमाणु की बाह्यतम कक्षा में 8 इलेक्ट्रॉनों का समूह सर्वाधिक स्थायी होता है। आठ इलेक्ट्रॉनों के समूह को अष्टक (Octet) कहते हैं।
इस प्रकार परमाणु की बाह्यतम कक्षा में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 8 हो जाने से परमाणु स्थायी बन जाता है या परमाणु की बाह्यतम कक्षा में दो इलेक्ट्रॉनों के हो जाने से भी परमाणु तभी स्थायी
बनता है,जब वह बाह्यतम कक्षा परमाणु का पहला शेल (K शेल) हो और उसके बाद परमाणु में कोई अन्य शेल उपस्थित न हो। अक्रिय
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constructionswala · 9 months
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शेल संरचना | Top construction blog in Hindi
इनकी सहायता से हल्के निर्माण किया जाता है, इसका अधिक प्रयोग छत के रूप में होता है। यह एक संरचनात्मक तत्व है, इतना ही नहीं इसकी ज्यामितिय निर्माण ही इसकी खूबी हैं। एक त्रि-आयामी ठोस होने के कारण जिसकी मोटाई अन्य आयामों की तुलना में बहुत कम होती हैं। इस संरचना में भारों को मध्य में परिभाषित करने का काम किया जाता हैं। पतली-खोल संरचनाएं जिनको प्लेट और शेल संरचनाएं भी कहा जाता है। इनका अधिकतर प्रयोग घुमावदार, बड़े ढांचे बनाने के लिए होता हैं। वहीं अगर इनके मुख्य उपयोग की बात करें तो विमान के फ्यूजलेज, नाव के पतवार और बड़ी इमारतों की छतें बनाने में किया जाता हैं।
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sharpbharat · 10 months
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jamshedpur income tax raid : आयकर विभाग का जमशेदपुर के कारोबारी विक्की भालोटिया और अन्य पर देर शाम खत्म हुई छापामारी, बड़े पैमाने पर दस्तावेज बरामद, दुबई समेत अन्य देशों में पैसे ट्रांस्फर के मिले सबूत, शेल कंपनियों के माध्यम से किया गया कारोबार
जमशेदपुर : जमशेदपुर के जुगसलाई निवासी कारोबारी विक्की भालोटिया और उनसे जुड़े हुए लोगों के खिलाफ चल रही आयकर विभाग की छ��पामारी शनिवार की देर शाम को समाप्त हो गयी. विक्की भालोटिया के बाद इस मामले में चिंटू के अलावा कई अन्य कारोबारियों के भी नाम सामने आये है, जो लगातार दुबई समेत अन्य देशों में पैसे को ट्रांस्फर कराया करते थे. दुबई में पैसे भेजने के पुख्ता सबूत आयकर विभाग को मिला है और अब इसको…
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dainiksamachar · 11 months
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सत्ताधारी पार्टी को ही ज्यादा चंदा क्यों मिलता है... सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा तीखा सवाल
नई दिल्ली: चुनावी बॉन्ड स्कीम पर इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में दलीलें रखी जा रही हैं। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि चुनावी बॉन्ड योजना से सत्ताधारी दल को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है। इस पर केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सत्तारूढ़ दल को ज्यादा योगदान मिलना एक परिपाटी है। इस पर चीफ जस्टिस ने पूछा कि आपके अनुसार, ऐसा क्यों है कि सत्ताधारी दल को चंदे का एक बड़ा हिस्सा मिलता है, इसका कारण क्या है? मेहता ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि जो भी पार्टी सत्तारूढ़ होती है उसे ज्यादा चंदा मिलता है। हालांकि उन्होंने कहा कि यह उनका व्यक्तिगत जवाब है, सरकार का जवाब नहीं है। जब चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने आंशिक गोपनीयता का हवाला दिया और कहा कि सत्ता में बैठे व्यक्ति के पास विवरण तक पहुंच हो सकती है, तो सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि जानकारी पूरी तरह से गोपनीय है। पीठ ने कहा, ‘यह एक अस्पष्ट क्षेत्र है। आप ऐसा कह सकते हैं, दूसरा पक्ष इससे सहमत नहीं होगा।’ स्कीम पर सुप्रीम कोर्ट का सवालसुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना के साथ समस्या यह है कि यह ‘सिलेक्टिव गुमनामी’ और ‘सिलेक्टिव गोपनीयता’ प्रदान करती है क्योंकि विवरण स्टेट बैंक के पास उपलब्ध रहता है और उन तक कानून प्रवर्तन एजेंसियां भी पहुंच सकती हैं। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि योजना के साथ (इस तरह की) समस्या रहेगी अगर यह सभी राजनीतिक दलों को समान अवसर नहीं प्रदान करती और अस्पष्टता से ग्रस्त है। केंद्र की दलीलकेंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि भारत सहित लगभग हर देश चुनावों में काले धन के इस्तेमाल की समस्या से जूझ रहा है और चुनावी बॉन्ड योजना मतदान प्रक्रिया में ‘अवैध धन’ के खतरे को खत्म करने का एक प्रयास है। संविधान पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से पेश मेहता ने कहा कि शीर्ष अदालत इस विशेष योजना को काले धन की समस्या से निपटने की दिशा में एक एकल प्रयास के रूप में नहीं ले सकती है। मेहता ने डिजिटल भुगतान और वर्ष 2018 और 2021 के बीच 2.38 लाख ‘शेल कंपनियों’ के खिलाफ कार्रवाई सहित काला धन से निपटने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों पर प्रकाश डाला। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की सदस्यता वाली पीठ के समक्ष मेहता ने कहा, ‘आम तौर पर चुनावों और राजनीति में, विशेषकर चुनावों में काले धन का इस्तेमाल होता है...हर देश इस समस्या से जूझ रहा है। भारत भी इस समस्या से जूझ रहा है।’ पीठ राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के लिए चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दलीलें सुन रही है।उन्होंने अदालत में दायर अपनी लिखित दलील में कहा, ‘देश की चुनावी प्रक्रिया को चलाने में बेहिसाब नकदी (काला धन) का इस्तेमाल देश के लिए गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है।’ डिजिटलीकरण की भूमिका का उल्लेख करते हुए मेहता ने कहा कि भारत में लगभग 75 करोड़ मोबाइल इंटरनेट यूजर हैं और हर तीन सेकंड में एक नया इंटरनेट यूजर जुड़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘भारत में डिजिटल भुगतान की मात्रा अमेरिका और यूरोप की तुलना में लगभग सात गुना और चीन की तुलना में तीन गुना है।’मेहता ने कहा कि कई तरीकों को आजमाने के बावजूद प्रणालीगत विफलताओं के कारण काले धन के खतरे से प्रभावी ढंग से नहीं निपटा जा सका है, इसलिए वर्तमान योजना बैंकिंग प्रणाली और चुनाव में सफेद धन को सुनिश्चित करने का एक विवेकपूर्ण प्रयास है। 'पारदर्शिता कम होती है'दिनभर चली सुनवाई के दौरान एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने तर्क दिया कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संविधान की बुनियादी संरचना है और राजनीतिक दलों की गुमनाम ‘कॉर्पोरेट फंडिंग’, जो अनिवार्य रूप से पक्षपात के लिए दी गई रिश्वत है, सरकार की लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली की जड़ पर प्रहार करती है। उन्होंने कहा कि चुनावी बॉन्ड गुमनाम कॉर्पोरेट फंडिंग का एक साधन है जो पारदर्शिता को कमजोर करता है और अपारदर्शिता को बढ़ावा देता है।न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, ‘कंपनी अधिनियम के तहत खाते वास्तविक आय का पता लगाने के उद्देश्य से रखे जाते हैं। ये आयकर खातों से अलग होते हैं। आम तौर पर कंपनी अधिनियम के तहत, मुनाफे को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने की प्रवृत्ति होती है क्योंकि तब आपको बाजार में अधिक विश्वसनीयता और ऋण तक अधिक पहुंच मिलती है।’ उन्होंने कहा कि इसके विपरीत आयकर अधिनियम में कर बचाने की प्रवृत्ति है।एक अन्य हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने भी दिन के दौरान अपनी दलीलें दीं। उन्होंने कहा कि चुनावी बॉण्ड विशिष्ट हैं। इस पर पीठ ने कहा, यह जरूरी नहीं है। यह कहा गया कि बॉन्ड साल में कुछ… http://dlvr.it/SyG7vC
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roh230 · 1 year
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'कुछ लोगों की आंखों में चुभ रही है भारत की तरक्की', विपक्ष ने उठाया अदाणी मुद्दा तो भाजपा ने किया पलटवार
अदाणी मुद्दे को लेकर मोदी सरकार एक बार फिर विपक्ष के निशाने पर आ गई है। विपक्षी दल लगातार भ्रष्टाचार मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेर रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अदाणी मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरा। इसको जवाब में भाजपा ने कहा कि एक मजबूत राष्ट्र के रूप में भारत की तरक्की कई लोगों की आंखों में चुभ रही है। कांग्रेस ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि अदाणी समूह से जुड़ी शेल कंपनियों के…
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polkholposts · 1 year
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20,000 करोड़ #अडानी की शेल कंपनियों में बेनामी पैसे किसके हैं - प्रधानमंत्री चुप, कोई जवाब नहीं!
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prabudhajanata · 1 year
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रायपुर । दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में आज आम आदमी की आवाज उठाना, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना गुनाह हो गया है। देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष 4 बार के सांसद राहुल गांधी जब संसद के अंदर बात करते है तो उनको बोलने नहीं दिया जाता, उनका माइक बंद कर दिया जाता है, सत्तारूढ़ दल के सांसद बहुमत के अतिवादी चरित्र का प्रदर्शन करते हुये संसद की कार्यवाही नहीं चलने देते है। केंद्रीय मंत्री अपने पद की गरिमा को तार-तार करते हुये अनर्गल बयाबाजी करते है और जब इन सबसे भी राहुल गांधी, कांग्रेस पार्टी और विपक्ष की आवाज को नहीं दबा पाते तो एक और षड़यंत्र रचा जाता है। उक्त बातें एआईसीसी की महासचिव और छत्तीसगढ़ प्रभारी कुमारी सैलजा Kumari Selja ने बुधवार को आयोजित पत्रकार वार्ता में कहीं। उन्होंने राहुल गांधी की संसद सदस्यता को समाप्त करने के पूरे घटनाक्रम का सिलसिलेवार ब्योरा सामने रखा। उन्होंने कहा राहुल गांधी के ऊपर यह सारी कार्यवाही क्यों की गयी? इसका एकमात्र कारण है राहुल गांधी ने देश के प्रधानमंत्री की दुखती रग पर हाथ रख दिया। उन्होंने मोदी के निकट सहयोगी अडानी के घोटालेबाजी और अडानी-मोदी के गठबंधन पर आवाज उठाया। उन्होंने दो सवाल पूछे थे। पहला : क्या अडानी की शेल कंपनियों में ₹20,000 करोड़ या 3 बिलियन डॉलर हैं ? अडानी इस पैसे को खुद कमा नहीं सकता क्योंकि वो इंफ्रास्ट्रक्चर बिजनेस में है। यह पैसा कहां से आया? किसका काला धन है? ये किसकी शेल कंपनियां हैं? ये कंपनियां डिफेंस फील्ड में काम कर रही हैं। कोई क्यों नहीं जानता? यह किसका पैसा है? इसमें एक चीनी नागरिक शामिल है। कोई यह सवाल क्यों नहीं पूछ रहा है कि यह चीनी नागरिक कौन है? दूसरा : प्रधानमंत्री मोदी का अडानी से क्या रिश्ता है? उन्होंने अडानी के विमान में आराम करते हुए पीएम मोदी की तस्वीर दिखाई। उन्होंने रक्षा उद्योग के बारे में, हवाई अड्डों के बारे में, श्रीलंका में दिए गए बयानों के बारे में, बांग्लादेश में दिए गए बयानों के बारे में, ऑस्ट्रेलिया में स्टेट बैंक (भारत के) के चेयरमैन के साथ बैठे नरेंद्र मोदी और अडानी की तस्वीरें, जिन्होंने कथित तौर पर $1 बिलियन का ऋण स्वीकृत किया था, के बारे में दस्तावेज दिए। यह सबूत के साथ सवालों का दूसरा सेट था। मोदी सरकार ने सवाल का जवाब तो नहीं दिया उल्टे राज्यसभा में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के भाषण से अडानी घोटाले के महत्वपूर्ण अंश और राहुल गांधी के भाषण (लगभग पूरी तरह से) को संसद के रिकॉर्ड से हटा दिया गया। संसद के बजट सत्र के चल रहे दूसरे भाग में, भारत के इतिहास में पहली बार एक सत्तारूढ़ पार्टी - भाजपा संसद को बाधित कर रही थी और इसे काम नहीं करने दे रही है। यह अडानी को बचाने के लिए एक ध्यान भटकाने की साजिश है। जबकि संयुक्त विपक्ष इस पर JPC (संयुक्त संसदीय समिति) चाहता है। राहुल गांधी पर भाजपा मंत्रियों द्वारा हमला किया गया। लोक सभा अध्यक्ष को राहुल ने दो लिखित अनुरोध किये कि उनको संसद में जवाब देने दें। इसके बाद तीसरी बार अध्यक्ष से मीटिंग भी की पर तीन अनुरोधों के बावजूद अध्यक्ष ने संसद में उन्हें बोलने का अवसर देने से इनकार कर दिया। इससे साफ़ पता चलता है कि पीएम मोदी नहीं चाहते कि अडानी के साथ उनके रिश्ते का पर्दाफाश हो। दूसरा घटनाक्रम : 13 अप्रैल 2019 को कर्नाटक के कोलार में राहुल गांधी चुनावी भाषण देते हैं। 16 अप्रैल 2019 बीजेपी विधायक पूर्णेश मोदी ने गुजरात के सूरत में शिकायत दर्ज कराई। 7 मार्च 2022 शिकायतकर्ता ने अपनी शिकायत पर गुजरात उच्च न्यायालय से रोक लगाने की मांग की; हाई कोर्ट ने रोक लगा दी। 7 फरवरी 2023 राहुल गांधी ने लोकसभा में अडानी और पीएम मोदी के रिश्तों पर सवाल उठाते हुए भाषण दिया। 16 फरवरी 2023 शिकायतकर्ता ने गुजरात उच्च न्यायालय में स्टे के अपने अनुरोध को वापस ले लिया। 27 फरवरी 2023 निचली अदालत में सुनवाई फिर से शुरू। 23 मार्च 2023 ट्रायल कोर्ट ने राहुल गांधी को दोषी ठहराया और अधिकतम 2 साल की सजा सुनाई। 24 मार्च 2023 लोकसभा सचिवालय ने 24 घंटे के भीतर राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द कर दी। कुमारी सैलजा ने कहा कि हम न्यायिक प्रक्रिया पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। आगे हम कानूनी लड़ाई लड़ेंगे। राहुल गांधी की सदस्यता रद्द करने के तीन दिन के अंदर लोकसभा के गृह समिति ने राहुल गांधी को मकान खाली करने के लिये 30 दिन का नोटिस दे दिया। यह सारी कार्यवाही यह बताने के लिये पर्याप्त है कि इस देश में तानाशाही और असहिष्णु सरकार चल रही है। उन्होंने कहा कि बीजेपी की ध्यान भटकाने की कवायद 3 हास्यास्पद आरोपों से साबित होती है। सबसे पहले, उन्होंने दावा किया कि राहुल गांधी ने “विदेशी ताकतों“
से लंदन में भारत की मदद करने के लिए कहा। ये एक सफेद झूठ है ! अगर कोई उनके वक्तव्यों को ध्यान से देखें, तो उन्होंने कहा कि ये “भारत का अंदरूनी मामला है, हम स्वयं इसका हल निकालने में सक्षम है।“ दूसरा, भाजपा अब झूठा हौवा खड़ा कर रही है कि राहुल गांधी ने ओबीसी को सिर्फ इसलिए निशाना बनाया, क्योंकि उन्होंने पीएम मोदी से एक सवाल किया था! ध्यान भटकाने का एक और बोगस हथकंडा! जो व्यक्ति एकता फैलाने के लिए “भारत जोड़ो यात्रा“ में 4000 किलोमीटर पैदल चल सकता है, वो कैसे एक समुदाय को निशाना बना सकता है? तीसरा - सूरत, गुजरात में एक निचली अदालत के फैसले के 24 घंटे के भीतर- भाजपा ने गांधी को लोकसभा में उनकी सदस्यता को रद्द करने के लिए “बिजली की गति“ से काम किया, भले ही अदालत ने उन्हें उच्च न्यायालय में अपील करने के लिए 30 दिन का समय दिया था! भाजपा राहुल गांधी से इतना डरती क्यों है ? भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की ओबीसी समुदाय का अपमान करने का आरोप लगाने की घटिया चाल स्पष्ट हताशा साबित हुई है। सबसे पहले, राहुल गांधी द्वारा दिया गया बयान यह पूछ रहा था कि कुछ चोरों का एक ही उपनाम (नीरव मोदी, ललित मोदी और नरेंद्र मोदी) क्यों है - उन्होंने ऐसा नहीं है कि “सारे मोदी चोर हैं“ ! उन्होंने किसी समुदाय को निशाना नहीं बनाया। दूसरा, न तो नीरव मोदी और न ही ललित मोदी ओबीसी है। और उनकी जाति जो भी हो, क्या उन्होंने धोखाधड़ी नहीं की? भाजपा धोखेबाजों और भगोड़ों को क्यों बचा रही है? तीसरा, कांग्रेस पार्टी में 2 ओबीसी मुख्यमंत्री हैं। इससे साबित होता है कि कांग्रेस उनके योगदान को महत्व देती है। आपराधिक मानहानि के लिए अधिकतम दो साल की सजा आजतक किसी को नहीं मिली है। दूसरी ओर, भाजपा नेताओं के खिलाफ मामले अत्यधिक उदारता से निपटाए जाते हैं। उत्तर प्रदेश के बांदा से भाजपा सांसद, आरके सिंह पटेल को नवंबर में एक ट्रेन रोकने, सार्वजनिक सड़कों को अवरुद्ध करने और पुलिस कर्मियों पर पथराव करने के लिए दोषी ठहराया गया था - लेकिन उन्हें केवल 1 साल की जेल हुई। महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल, मौलाना आजाद को या तो राजद्रोह या जेल के मामले में अंग्रेज़ों ने सजा दी। अंततः कांग्रेस ने अंग्रेजों के खिलाफ जीत हासिल की। अब मोदी सरकार चोरों और घोटालेबाजों का पर्दाफाश करने के लिए श्री राहुल गांधी पर निशाना साध रही है। कांग्रेस लड़ेगी, फिर जीतेगी। यह प्रहार सिर्फ राहुल गांधी पर नहीं यह आक्रमण देश के समूचे विपक्ष पर यह देश की 135 करोड़ जनता को धमकाने की साजिश है। राहुल गांधी विपक्ष के सबसे प्रभावशाली नेता है। जब उनकी सदस्यता रद्द कर सकते है उनकी आवाज दबा सकते है तब आम आदमी की क्या बिसात? यह भारत के प्रजातंत्र में तानाशाही की शुरुआत है कांग्रेस इससे डरने वाली नहीं। हम जनता के बीच जायेंगे, देश के हर गली, मोहल्ले, चौक-चौराहे को संसद बनायेंगे। कहां-कहां आप हमारी आवाज रोकेंगे? पत्रकार वार्ता में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम, मंत्री टी.एस. सिंहदेव, मंत्री प्रेम साय सिंह टेकाम, मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया, पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा उपस्थित थे।
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nbi22news · 1 year
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#nbinewsmarathi: पालिकेच्या घोटाळ्यांची SIT चौकशी व्हायला हवी!; आशिष शेल...
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easyhindiblogs · 2 years
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Mount Everest Facts
Mount Everest पृथ्वी पर सबसे ऊंचा पर्वत है, और यह हिमालय की महालंगुर हिमाल उप-श्रेणी में स्थित है। चीन-नेपाल सीमा ठीक एवरेस्ट के शिखर बिंदु के साथ-साथ चलती है। Mount Everest की ऊंचाई (8,848.86 मीटर या 29029 फीट ऊंची) हाल ही में चीनी और नेपाली अधिकारियों द्वारा निर्धारित की गई थी।
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माउंट एवेरेस्ट को क्यों कहा जाता है दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत?
Mount Everest दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत है। यह नेपाल में तिब्बत की सीमा पर स्थित है। इसे पहले पीक XV के नाम से जाना जाता था। 1856 में, भारत के महान त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण में, Mount Everest की ऊंचाई, जो कि 8840 मीटर (29,002 फीट) तक थी, को पहली बार प्रकाशित किया गया था। 1850 में कंचनजंघा को सबसे ऊंचा पर्वत माना जाता था, लेकिन अब यह दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है, इसकी ऊंचाई 8586 मीटर (28,169 फीट) है। माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई का पता लगाने में वैज्ञानिकों को थोड़ी दिक्कत हुई, क्योंकि इसके आसपास की चोटियां काफी ऊंची हैं।
माउंट एवरेस्ट की प्रमुख विशेषताएँ (Mount Everest features)
इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं –
पहाड़ की ऊंचाई समुद्र तल से 8848 मीटर है। इसका मतलब है कि यह करीब 29,029 फीट ऊंचा है।
Mount Everest के पास पहली चोटी ल्होत्से है, जो 8516 मीटर (27940 फीट) की ऊंचाई पर है, दूसरी नुप्त्से है, जो 7855 मीटर (27771 फीट) पर है, और तीसरी चांगत्से है, जो 7580 मीटर (24870 फीट) पर है।
वैज्ञानिकों ने अपने एक अध्ययन में पाया कि इसकी ऊंचाई हर साल 2 सेंटीमीटर बढ़ रही है।
नेपाल में इसे सागरमाथा के नाम से जाना जाता है, यह शब्द नेपाली इतिहासकार बाबू राम आचार्य ने 1930 में दिया था।
इसे तिब्बत में चोमोलंगमा के नाम से भी जाना जाता है। चोमोलंगमा विश्व की देवी हैं, जबकि सागरमाथा आकाश की देवी हैं। यह उच्च शिखर दोनों देशों के लोगों द्वारा पूजनीय है।
संस्कृत में Mount Everest को देवगिरी के नाम से जाना जाता है। इसके आकार के कारण इसे विश्व का ताज भी कहा जाता है।
यह दुनिया के सात अजूबों में से एक है।
क्या है माउंट एवरेस्ट का इतिहास?
1802 में अंग्रेजों ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी की खोज शुरू की। पहले नेपाल उन्हें घुसने देने के लिए तैयार नहीं था, इसलिए उन्होंने तराई नामक स्थान से अपनी खोज शुरू की। लेकिन भारी बारिश के कारण मलेरिया फैल गया और तीन सर्वेक्षण अधिकारियों की मौत हो गई। हिमालय की सबसे ऊँची चोटी Mount Everest से भी ऊँची है, जिसका नाम चिम्बोराजी शिखर है। अंतरिक्ष से देखेंगे तो धरती से सिर्फ चिंबोराजी चोटी ही दिखाई देगी। चिंबोराजी पर्वत शिखर एवरेस्ट शिखर से लगभग 15 फीट ऊंचा दिखता है, लेकिन चूंकि पहाड़ों की ऊंचाई समुद्र तल से मापी जाती है, इसलिए Mount Everest को सर्वोच्च शिखर का दर्जा प्राप्त है। पर्वतारोहण के इतिहास में प्रसिद्ध पर्वतारोही अन्द्रेज़ जावड़ा ने अभियान में प्रथम आठ हजार सिंदर पर कब्जा किया, जो पर्वतारोहण के लिए इतिहास बन गया।
कैसे हुई माउंट एवरेस्ट की खोज?
1830 में इंग्लैंड के सर्वेक्षण वैज्ञानिक जॉर्ज एवरेस्ट ने Mount Everest को खोजने की कोशिश की। बाद में 1865 में एंड्रयू वॉ ने भारत की सबसे ऊंची चोटी के सर्वेक्षण के दौरान इस कार्य को पूरा किया। उन्होंने इस पर्वत का नाम माउंट  एवरेस्ट के नाम पर रखा, लेकिन नेपाल के स्थानीय लोगों को यह नाम पसंद नहीं आया। वे इस पर्वत का कोई स्थानीय नाम रखना चाहते थे, इसलिए उन्हें यह विदेशी नाम पसंद नहीं आया। 1885 में, अल्पाइन क्लब के अध्यक्ष क्लिंटन थॉमस डेंट ने अपनी पुस्तक एबव द स्नो लाइन में एवरेस्ट पर चढ़ने का एक संभावित तरीका सुझाया। 1921 में, ब्रिटिश पुरुष जॉर्ज मैलोरी और गाइ गाइ बुलॉक, ब्रिटिश टोही अभियान ने उत्तरी कोण से पहाड़ पर चढ़ने का फैसला किया। वे 7005 मीटर (लगभग 22982 फीट) की ऊंचाई तक चढ़े, जिससे वे इतनी ऊंचाई पर पैर रखने वाले पहले व्यक्ति बन गए। इसके बाद वे अपनी टीम के साथ उतरे।
क्या है माउंट एवरेस्ट की भौगोलिक विशेषताएं?
एवरेस्ट 6 करोड़ साल पुराना है और यहां लगातार बर्फबारी होती रहती है। Mount Everest का निर्माण तब हुआ जब लॉरेशिया महाद्वीप अलग हो गया और उत्तर की यात्रा के दौरान एशिया से टकरा गया। पृथ्वी की पपड़ी की दो प्लेटों के बीच समुद्र का तल फट गया, जिससे भारत को उत्तर की ओर बढ़ने की अनुमति मिली, जिससे Mount Everest और हिमालय पर्वत का उदय हुआ। पहाड़ के चारों ओर नदियाँ हैं, और पहाड़ की पिघलती बर्फ नदियों के लिए पानी की एक महत्वपूर्ण आपूर्ति है, जो वहाँ के पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। माउंट एवरेस्ट कई प्रकार के पत्थरों से बना है, जिनमें शेल, चूना पत्थर और संगमरमर शामिल हैं। सालों से Mount Everest की चोटी बर्फ से ढकी हुई है।.
पहाड़ की जलवायु बहुत ठंडी होती है, इसलिए यहाँ कोई वनस्पति नहीं है। लेकिन कौवे जैसे कुछ जानवर वहां रहते हैं। यह पर्वत जिस ऊंचाई पर स्थित है, वह 20,000 फीट से अधिक है, इसलिए उस क्षेत्र में कोई वन्यजीव नहीं है।
कैसा होता है माउंट एवरेस्ट पर मौसम? (Mount Everest Temperature)
माउंट एवरेस्ट की अत्यधिक ऊंचाई के कारण यहां ऑक्सीजन की कमी है। लगभग हर साल एवरेस्ट पर बर्फ से भरी हवाएं चलती रहती हैं। हर साल वहां का तापमान 80 डिग्री फारेनहाइट तक बना रहता है। मई के महीने में शक्तिशाली जेट वायु धाराएं होती हैं, जिसके कारण तापमान में वृद्धि होती है। वहाँ हवा 200 मीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है।
Mount Everest पर 18 अलग-अलग तरीकों के माध्यम से चढ़ाई की जा सकती है। एवरेस्ट पर चढ़ने वालों को धन मिलता है, और उस पर चढ़ने की इच्छा हमेशा बनी रहती है। चढ़ते समय लोग केवल वही लाते हैं जिसकी उन्हें आवश्यकता होती है। पर्वतारोही 66% से कम ऑक्सीजन वाली परिस्थितियों में 40 दिनों तक प्रशिक्षण लेते हैं। उनके पास नायलॉन की रस्सी होती है जिससे वे गिरने से बचते हैं। वे एक विशेष जूते पहनते है  जो उन्हें बर्फ पर फिसलने से बचाते  है. गर्म रहने के लिए वह एक विशिष्ट सूट भी पहनते है , और अधिकांश पर्वतारोही चावल या नूडल्स खाते हैं। 26,000 फीट की ऊंचाई तक पहुंचने पर उपयोग करने के लिए प्रत्येक पर्वतारोही के पास ऑक्सीजन की एक बोतल होती है।
चोटी पर चढ़ने वाले लोगों में ज्यादातर नेपाल के हैं। वहां के शेरपा पर्वतारोहियों की मदद करते हैं। शेरपा की भूमिका पर्वतारोहियों के लिए भोजन और टेंट की आपूर्ति करना है। निगरानी के लिए चार शिविर हैं। शेरपा एक ऐसे व्यक्ति का नाम है जो ज्यादातर नेपाल के पश्चिम में रहता है। वे इस कार्य को पूरा करके एक नौकरी प्राप्त करते हैं, जिससे उन्हें अपने परिवार का भरण-पोषण करने में मदद मिलती है। इतनी ऊंची चोटी पर कुशांग शेरपा ने चारों दिशाओं से चढ़ाई की है। वह एक पर्वतारोही शिक्षक हैं।
माउंट एवेरेस्ट को लेकर हुए विवादों की चर्चा
नेपाल और चीन ने Mount Everest के लिए अलग-अलग ऊंचाई की सूचना दी, जिसके परिणामस्वरूप दोनों सरकारों के बीच असहमति और संघर्ष हुआ। फिलहाल भारतीय सर्वेक्षण, जो 1955 के सर्वेक्षण में आया था और जिसे चीन ने 1975 के अपने सर्वेक्षण में स्वीकार किया था, ने चोटी की ऊंचाई बताई है, जो 8 हजार 8 सौ 48 है। जब चीन ने 2005 में ऊंचाई मापी, यह 8844.43 मीटर आया, लेकिन नेपाल ने यह दावा करते हुए इसे मानने से इनकार कर दिया कि ऊंचाई को बर्फ की ऊंचाई से मापा जाना चाहिए, लेकिन चीन का इरादा चट्टान की ऊंचाई से मापने का था। 2005 से 2010 तक दोनों के बीच करीब 5 साल तक अनबन रही। अंतत: एक समझौते पर पहुंचने के बाद दोनों देशों ने माउंट एवरेस्ट की वर्तमान ऊंचाई को मान्यता दी।
माउंट एवरेस्ट का खतरनाक सच
Mount Everest दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है। बहुत सारे लोग इस पर चढ़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनमें से बहुत से लोग शीर्ष पर नहीं पहुंच पाते हैं। कुछ लोग शीर्ष पर पहुंचने की कोशिश करते हुए मर जाते हैं, और इसलिए यह इतना खतरनाक है।
पहाड़ का बहुत अधिक मौत का कारण बनने का एक लंबा इतिहास रहा है। इतने सारे लोग यह पता लगाने में रुचि रखते हैं कि प्रत्येक वर्ष कितने लोग एवरेस्ट पर मरते हैं। दुर्भाग्य से, इस प्रश्न का सटीक उत्तर देना असंभव है।
इस ब्लॉग पोस्ट में, हम उस प्रश्न की निराशाजनक प्रतिक्रिया के साथ-साथ इन आपदाओं में योगदान देने वाले कारणों को देखेंगे।
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janchowk · 2 years
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