इस दिन मनाई जाएगी जन्माष्टमी, जानिए इसका महत्व और व्रत के नियम
चैतन्य भारत न्यूज
जन्माष्टमी हिंदू धर्म का खास पर्व है जिसे बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इस साल देशभर में जन्माष्टमी का त्योहार 30 अगस्त को मनाया जाएगा। जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण के बाल स्वरुप की उपासना की जाती है। हिंदू धर्म मान्यताओं के अनुसार, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को ही श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।
जन्माष्टमी के दिन लोग भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उपवास रखने के साथ ही भजन-कीर्तन और विधि-विधान से पूजा करते हैं। लेकिन कृष्ण पूजन में मनचाहा वरदान और आशीर्वाद प्राप्ति के लिए कुछ चीजों का ध्यान रखना जरुरी है।
मान्यता के मुताबिक, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद यानी कि भादौ माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था, जो कि इस बार 30 अगस्त को पड़ रही है।
जन्माष्टमी का महत्व
हिंदू धर्म में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को बड़ा त्योहार माना गया है। यह हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। ऐसा कहा जाता है कि सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु ने अष्टमी के दिन ही श्रीकृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया था। देश के सभी राज्य में अलग-अलग तरीके से इस महापर्व को मनाते हैं। दिनभर घरों और मंदिरों में भजन-कीर्तन चलते रहते हैं। वहीं मंदिरों में झांकियां निकाली जाती हैं।
क्या है व्रत के नियम
यह व्रत अष्टमी तिथि से शुरू हो जाता है। जो भक्त जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहते हैं उन्हें एक दिन पहले केवल एक समय का भोजन करना चाहिए। जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भक्त व्रत का संकल्प लें। इसके बाद गंगाजल से कृष्ण को स्नान करवाकर नए वस्त्र और आभूषण पहनाएं। जन्माष्टमी के दिन भगवान के भजन गाएं। रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के दौरान पूरी विधि से उनकी पूजा करें। अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद व्रत खोल सकते हैं।
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इस दिन मनाई जाएगी जन्माष्टमी, जानिए इसका महत्व और व्रत के नियम
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जन्माष्टमी हिंदू धर्म का खास पर्व है जिसे बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इस साल देशभर में जन्माष्टमी का त्योहार 30 अगस्त को मनाया जाएगा। जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण के बाल स्वरुप की उपासना की जाती है। हिंदू धर्म मान्यताओं के अनुसार, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को ही श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।
जन्माष्टमी के दिन लोग भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उपवास रखने के साथ ही भजन-कीर्तन और विधि-विधान से पूजा करते हैं। लेकिन कृष्ण पूजन में मनचाहा वरदान और आशीर्वाद प्राप्ति के लिए कुछ चीजों का ध्यान रखना जरुरी है।
मान्यता के मुताबिक, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद यानी कि भादौ माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था, जो कि इस बार 30 अगस्त को पड़ रही है।
जन्माष्टमी का महत्व
हिंदू धर्म में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को बड़ा त्योहार माना गया है। यह हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। ऐसा कहा जाता है कि सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु ने अष्टमी के दिन ही श्रीकृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया था। देश के सभी राज्य में अलग-अलग तरीके से इस महापर्व को मनाते हैं। दिनभर घरों और मंदिरों में भजन-कीर्तन चलते रहते हैं। वहीं मंदिरों में झांकियां निकाली जाती हैं।
क्या है व्रत के नियम
यह व्रत अष्टमी तिथि से शुरू हो जाता है। जो भक्त जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहते हैं उन्हें एक दिन पहले केवल एक समय का भोजन करना चाहिए। जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भक्त व्रत का संकल्प लें। इसके बाद गंगाजल से कृष्ण को स्नान करवाकर नए वस्त्र और आभूषण पहनाएं। जन्माष्टमी के दिन भगवान के भजन गाएं। रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के दौरान पूरी विधि से उनकी पूजा करें। अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद व्रत खोल सकते हैं।
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जन्माष्टमी पर ये दिव्य उपाय कर श्री कृष्ण को करें प्रसन्न, पूरी होगी हर मनोकामना
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हिंदू धर्म में जन्माष्टमी का बहुत अधिक महत्व है। इसी दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। इस मौके पर लोग श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा का पाठ करते हैं, साथ ही इस पर्व को बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं। इस बार 12 अगस्त को उदया तिथि अष्ठमी और रोहिणी नक्षत्र होने के कारण इसी दिन जन्माष्टमी मनाना सर्वोत्तम होगा।
कहा जाता है जो भी भक्त श्री कृष्ण की आराधना सच्चे दिल से करते हैं उनकी हर मनोकामना पूरी होती है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे दिव्य उपाय जिनके जरिए आप श्री कृष्ण को प्रसन्न कर सकते हैं।
जन्माष्टमी पर शुभ फल पाने के उपाय
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन सुबह के समय जल्दी उठकर स्नान करके हल्के पीले स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
इसके बाद घर की पूर्व दिशा में एक लकड़ी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं।
इस पर भगवान कृष्ण की मूर्ति को एक पात्र में रखें और धूप दीप जलाएं। साथ ही उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं।
केसर में गुलाब जल मिलाकर उन्हें तिलक करें तथा माखन मिश्री का भोग लगाएं।
जन्माष्टमी के दिन शाम के समय तुलसी के पौधे के नीचे घी का दिया जलाए और 11 बार 'ॐ नमो नारायणाय मंत्र' का जाप करें।
रात्रि में 12:00 बजे कृष्ण की पूजा के दौरान साबुत 108 तुलसी के पत्तों की माला या किसी भी माला से 'ॐ क्लीं कृष्णाय नमः मंत्र' का पांच बार जाप करें।
इसके अलावा कृष्ण मंत्र का 108 बार जाप करें और कोई भजन या मंगलगीत अवश्य गाएं।
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जन्माष्टमी 2020: आज मध्य रात्रि नंदगांव में होगा कान्हा का जन्म, सभी तरफ उल्लास का माहौल, राधा का गांव गाएगा बधाई
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देशभर में जन्माष्टमी को लेकर उल्लास का माहौल है। श्री कृष्ण के नंदगांव में भी चहुंओर उमंग और उल्लास है। घर-घर मिठाइयां बन रहीं हैं। सभी लोग एक-दूसरे को बधाई दे रहे हैं। मंगलवार रात को ब्रज के लाला का नंदगांव में जन्म होगा। ऐसे में इस स��य सभी सखा तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। जन्म से पूर्व राधारानी के गांव बरसाना के ब्राह्मण समुदाय के कुछ लोग नंदबाबा को बधाई देने नंदगांव पहुंचेंगे।
स्थानीय एवं बाहरी श्रद्धालुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध
नंदबाबा मंदिर के सेवायत ताराचंद गोस्वामी ने बताया कि, परंपराओं के निर्वहन के लिए कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन करते हुए नंदभवन में संयुक्त समाज गायन का आयोजन किया जाएगा। आज रात में ढांड ढांडिन लीला का आयोजन होगा। नंदबाबा के पुरोहित द्वारा श्री नंदबाबा की वंशावली का बखान किया जाएगा। आधी रात को कन्हैया का जन्म होगा। सेवायत लोकेश गोस्वामी ने बताया कि कोविड-19 के चलते इस बार स्थानीय एवं बाहरी श्रद्धालुओं का प्रवेश प्रतिबंधित रहेगा। सभी परंपराओं का निर्वहन किया जाएगा।
बरसाना में भी मनेगा जन्मोत्सव
भगवान श्रीकृष्ण की आराध्य शक्ति राधारानी के गांव बरसाना में भी आज श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की तैयारियां जोरों-शोरों से चल रही हैं। श्रीजी मंदिर के सेवायत संजय गोस्वामी के अनुसार यहां रात बारह बजे भगवान श्याम सुंदर का पंचामृत अभिषेक कर आकर्षक शृंगार किया जाएगा। घर-घर में पकवान बनाए जाएंगे।
मनाया जाता है भव्य नंदोत्सव
जन्मोत्सव के बाद नंदगांव में नंदोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। जानकारी के मुताबिक, श्री कृष्ण के जन्म के अगले ही दिन बरसाना से राधारानी के माता पिता वृषभानु और कीरत रानी अपनी सखियों के साथ नंद बाबा को बधाई देने आए थे। बरसाना के गोसाई समाज द्वारा उसी परंपरा का निर्वहन बड़े धूमधाम से किया जाता है। नंदोत्सव में कान्हा को हंसाने के लिए पांच वर्ष के बच्चे से लेकर 80 वर्ष तक के बुजुर्ग कुश्ती लड़कर परंपरा निभाते हैं। इसके अलावा दही और हल्दी मिलाकर सभी श्रद्धालुओं पर भी छिड़की जाती है। इसे लाला की छीछी भी कहा जाता है। सेवायत शिवहरी गोस्वामी ने बताया कि इस बार सभी परंपराओं का प्रतीकात्मक रूप से निर्वहन किया जाएगा।
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जन्माष्टमी पर इस बार बन रहा है यह विशेष संयोग, जानिए पूजा का शुभ चौघड़िया मुहूर्त
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श्री कृष्ण जन्मोत्सव को लेकर तैयारियां जोरों-शोरों से चल रही हैं। हालांकि, बड़े मंदिरों में कोरोना महामारी के कारण बड़े आयोजनों पर रोक है। इस बार 11 अगस्त और 12 अगस्त दोनों दिन जन्माष्टमी मनाई जा रही है। मान्यता के मुताबिक, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद यानी कि भादौ माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था, जो कि इस बार 12 अगस्त को पड़ रही है। इस वजह से जन्माष्टमी 12 अगस्त को ही मनाई जाएगी।
जन्माष्टमी के दिन लोग भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उपवास रखने के साथ ही भजन-कीर्तन और विधि-विधान से पूजा करते हैं। ज्योतिषियों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय रात 12 बजे अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र था। 12 अगस्त को पूजा का शुभ समय रात 12 बजकर 5 मिनट से लेकर 12 बजकर 47 मिनट तक है। पूजा की अवधि 43 मिनट तक रहेगी। जन्माष्टमी पर इस बार वृद्धि संयोग बन रहा है, जो अति उत्तम हैं। भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के त्योहार के बाद भगवना का छठी पूजन कार्यक्रम भी धूमधाम से होता है। इस दिन कान्हा जी की छठी मनाई जाती हैऔर मंदिरों में प्रसाद वितरण किया जाता है।
क्या है व्रत के नियम
यह व्रत अष्टमी तिथि से शुरू हो जाता है। जो भक्त जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहते हैं उन्हें एक दिन पहले केवल एक समय का भोजन करना चाहिए। जन्माष्टमी के दिन ��ुबह स्नान करने के बाद भक्त व्रत का संकल्प लें। इसके बाद गंगाजल से कृष्ण को स्नान करवाकर नए वस्त्र और आभूषण पहनाएं। जन्माष्टमी के दिन भगवान के भजन गाएं। रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के दौरान पूरी विधि से उनकी पूजा करें। अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद व्रत खोल सकते हैं।
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इस दिन मनाई जाएगी जन्माष्टमी, जानिए इसका महत्व और व्रत के नियम
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जन्माष्टमी हिंदू धर्म का खास पर्व है जिसे बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इस साल देशभर में जन्माष्टमी का त्योहार 11-12 अगस्त यानी दो दिन मनाया जाएगा। ज्योतिषाचार्यों की मानें तो 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाना ज्यादा उत्तम है। जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण के बाल स्वरुप की उपासना की जाती है। हिंदू धर्म मान्यताओं के अनुसार, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को ही श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।
जन्माष्टमी के दिन लोग भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उपवास रखने के साथ ही भजन-कीर्तन और विधि-विधान से पूजा करते हैं। लेकिन कृष्ण पूजन में मनचाहा वरदान और आशीर्वाद प्राप्ति के लिए कुछ चीजों का ध्यान रखना जरुरी है।
मान्यता के मुताबिक, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद यानी कि भादौ माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था, जो कि इस बार 12 अगस्त को पड़ रही है। इस वजह से जन्माष्टमी 12 अगस्त को ही मनाई जाएगी।
जन्माष्टमी का महत्व
हिंदू धर्म में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को बड़ा त्योहार माना गया है। यह हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। ऐसा कहा जाता है कि सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु ने अष्टमी के दिन ही श्रीकृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया था। देश के सभी राज्य में अलग-अलग तरीके से इस महापर्व को मनाते हैं। दिनभर घरों और मंदिरों में भजन-कीर्तन चलते रहते हैं। वहीं मंदिरों में झांकियां निकाली जाती हैं।
क्या है व्रत के नियम
यह व्रत अष्टमी तिथि से शुरू हो जाता है। जो भक्त जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहते हैं उन्हें एक दिन पहले केवल एक समय का भोजन करना चाहिए। जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भक्त व्रत का संकल्प लें। इसके बाद गंगाजल से कृष्ण को स्नान करवाकर नए वस्त्र और आभूषण पहनाएं। जन्माष्टमी के दिन भगवान के भजन गाएं। रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के दौरान पूरी विधि से उनकी पूजा करें। अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद व्रत खोल सकते हैं।
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जन्माष्टमी पर बाल-गोपाल को लगाएं स्वादिष्ट माखन मिश्री का भोग, जानें रेसिपी
चैतन्य भारत न्यूज
भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का त्योहार यानी जन्माष्टमी 23 और 24 अगस्त दोनों ही दिन देशभर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। इस दिन बाल-गोपाल को भोग लगाने के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं और पूरे विधि-विधान से उनकी पूजा की जाती है। मान्यता है कि अगर जन्माष्टमी के दिन श्रद्धापूर्वक श्रीकृष्ण को माखन मिश्री का भोग चढ़ाया जाए तो वह भक्त की हर मनोकामना पूरी करते हैं।
इसलिए लगाया जाता है माखन मिश्री का भोग
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, नटखट बाल-गोपाल को माखन यानी कि मक्खन बहुत पसंद था। वह अपने साथी ग्वालों के साथ मिलकर मक्खन चुराया करते थे। इसी वजह से उन्हें 'माखन चोर' भी कहा जाता है। स्वयं मैया यशोदा अपने हाथों से माखन मिश्री बनाकर कृष्ण को खिलाती थीं।
इस विधि से तैयार करें माखन मिश्री का भोग
सामग्री- दूध, बर्फ के टुकड़े, तुलसी के पत्ते, मिश्री
बनाने की विधि-
सबसे पहले दूध को अच्छी तरह उबाल कर हल्का गुनगुना कर लें।
अब इसमें एक चम्मच दही डालकर अच्छे से मिक्स करें।
अब ढूध को किसी गर्म जगह रखकर ऊपर से प्लेट से ढककर 6 घंटे तक जमने रख दें।
जब दही जम जाए तो इसके करीब 2 घंटे के लिए फ्रीज में रख दें। जिससे कि यह थोड़ा ठंडा हो जाए।
अब दही एक मिक्सर जार में डालकर एक गिलास ठंडे पानी या बर्फ के टुकड़े डालकर फेंटे। अब इसमें से मट्ठा और माखन अलग-अलग हो जाएगा।
मक्खन अलग निकालकर उसमें तुलसी के पत्ते और मिश्री डाल लें।
अब पूरी तरह से आपका मक्खन तैयार है। अब आप कान्हा को माखन मिश्री का भोग लगा सकते हैं।
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जन्माष्टमी 2019 : नटखट कान्हा से जुड़ी ये रोचक बातें जो हर किसी को जानना चाहिए
चैतन्य भारत न्यूज
श्रीकृष्ण का जन्मदिन यानी जन्माष्टमी का पर्व देशभर में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। अपनी बाल-लीलाओं से लोगों को मंत्र मुग्ध करने वाले श्री कृष्ण को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। लेकिन उनके जीवन से जुड़ी कई रोचक बातें ऐसी भी हैं जिन्हें बहुत कम ही लोग जानते हैं। जन्माष्टमी के इस खास पर्व पर आज हम आपको बताएंगे श्रीकृष्ण की वहीं खास बातें।
भगवान श्रीकृष्ण की अनसुनी बातें
श्रीकृष्ण को सात रत्न प्राप्त हुए थे जिसमें से पहला रत्न उन्हें राधा के द्वारा वैजयंतीमाला के रूप में प्राप्त हुआ था।
फूलों में श्रीकृष्ण को पारिजात के फूल बेहद पसंद है। इनमें से भी उन्हें शरद ऋतु की शीतल सुबह की ओस से भीगा हुआ फूल पसंद है।
प्राणियों में कृष्ण को सबसे अधिक घोड़ा पसंद है। उनके रथ गरुड़ध्वज में चार घोड़े हुआ करते थे। जिन्हें कृष्ण ने उनकी खूबियों के अनुसार शैव्य, सुग्रीव, बलाहक और मेघपुष्प नाम दिए थे।
कृष्ण को 'श्रीजी' भी कहा जाता है। उन्हें यह नाम उनकी प्रिय पत्नी रुक्मणि द्वारा दिया गया था।
'वासुदेव' की उपाधि कृष्ण को भीष्मपितामह ने दी थी।
जब द्वारिका की स्थापना की गई थी उस दौरान 'कृष्णसोपन' का भी निर्माण किया गया था। कहा जाता है कि, इसके निर्माण के समय मात्र 25 सीढ़िया हुआ करती थी लेकिन समय के साथ यह सीढ़िया श्रीकृष्ण के जीवन में लोगों की महत्ता बढ़ने के साथ बढ़ती गई।
आचार्य सांदीपनि ने कृष्ण को 'अजितंजय' नामक धनुष भेंट किया था। यह भी कृष्ण के साथ रत्नों में से एक था।
शंखासुर नामक बलाढ्य असुर को जब यादव सेना ने निष्प्राण किया था। तब रेत पर पड़े उसके शंख के प्रति श्रीकृष्ण आकर्षित हुए थे। मथुरा लौटने के समय कृष्ण ने शंख को अपने माथे से लगाकर गुरु सांदीपनि के चरणों में रख दिया था। तब आचार्य ने इसे 'पांचजन्य' नाम देकर कृष्ण को सात रत्नों में द्वितीय रत्न के प्राप्त होने का बोध कराया था।
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इस जन्माष्टमी 'पार्लर' में किया जा रहा है कान्हा का श्रृंगार, जितना खर्च उतनी सजवाट
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अब पार्लर में सिर्फ महिलाओं का श्रृंगार ही नही बल्कि भगवान का श्रृंगार भी किया जा रहा है। दरअसल पूरे देशभर में 23 और 24 अगस्त दोनों ही दिन कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी। ऐसे में कृष्ण जन्माष्टमी की तैयारी जोरों पर है। इसी को ध्यान में रखते हुए कई पूजन सामग्री की दुकानों (पार्लर) में कान्हा की मूर्ति का श्रृंगार किया जा रहा है।
दुकानों में कान्हा की प्रतिमा का मेकअप कर और आभूषण पहनाकर उन्हें सुंदर व आकर्षक बनाया जा रहा है। कान्हा की सजावट सामग्री में मुकुट, तिलक, जड़ी का हार, बांसुरी, मोर पंख, कंगन, बाजूबंध, खड़ऊ, आसन, झूला आदि शामिल हैं। बता दें इस तरह के 'पार्लर' में आपको मूर्ति लेकर जाना है।
दुकानदार मूर्ति पूरा श्रृंगार करके आपको देगा। इतना ही नहीं बल्कि मूर्ति का श्रृंगार आप अपनी पसंद का करवा सकते हैं। यदि आप मूर्ति लेकर नहीं भी जाते हैं तो वहीं मूर्ति ले सकते हैं और अपनी पसंद से सजावट करा सकते हैं।
मूर्ति की सजवाट आपके बजट के हिसाब से की जाएगी, मतलब आप जितना खर्च करेंगे उतना ही आकर्षक श्रृंगार होगा। जन्माष्टमी पर इस बार काफी खास चीजें बाजार में मौजूद हैं, जिनमें स्टाइलिश जड़ाऊ मुकुट, मोरपंख लोगों की खास पसंद बने हुए हैं। राधा के लिए भी डिजाइनर ड्रेस और ज्वैलरी लोगों को खूब पसंद आ रही है।
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कृष्ण की जन्मभूमि में दो दिन मनाई जाएगी जन्माष्टमी, रातभर होगा जश्न
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जन्माष्टमी को लेकर इस बार बड़ी उलझन है। कहा जा रहा है कि 23 और 24 अगस्त दोनों ही दिन जन्माष्टमी मनाई जाएगी। दरअसल जन्माष्टमी का पर्व हिन्दु पंचाग के मुताबिक, भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। अष्टमी तिथि 23 अगस्त को ही सुबह 8.09 बजे से शुरू हो रही है और यह 24 अगस्त को सुबह 8.32 बजे खत्म होगी।
वहीं, रोहिणी नक्षत्र 24 अगस्त को सुबह 3.48 बजे से शुरू होगा और ये 25 अगस्त को सुबह 4.17 बजे उतरेगा। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस लिहाज से यह दोनों संयोग 23 अगस्त को बन रहे हैं। ऐसे में 23 अगस्त को जन्माष्टमी मनाना शुभ होगा। हालांकि कुछ लोग 24 अगस्त को जन्माष्टमी मनाना शुभ मान रहे हैं।
जानकारी के मुताबिक, श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर 24 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव का आयोजन होगा। यहां रात 12 बजे से ठाकुरजी के श्री विग्रहों का अभिषेक किया जाएगा। इस दौरान रात 1.30 बजे तक भक्त मंदिर में दर्शन कर सकेंगे। इसके बाद अगले दिन यानी 25 अगस्त को नंदोत्सव का आयोजन होगा।
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इसके बाद घर की पूर्व दिशा में एक लकड़ी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं।
इस पर भगवान कृष्ण की मूर्ति को एक पात्र में रखें और धूप दीप जलाएं। साथ ही उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं।
केसर में गुलाब जल मिलाकर उन्हें तिलक करें तथा माखन मिश्री का भोग लगाएं।
जन्माष्टमी के दिन शाम के समय तुलसी के पौधे के नीचे घी का दिया जलाए और 11 बार 'ॐ नमो नारायणाय मंत्र' का जाप करें।
रात्रि में 12:00 बजे कृष्ण की पूजा के दौरान साबुत 108 तुलसी के पत्तों की माला या किसी भी माला से 'ॐ क्लीं कृष्णाय नमः मंत्र' का पांच बार जाप करें।
इसके अलावा कृष्ण मंत्र का 108 बार जाप करें और कोई भजन या मंगलगीत अवश्य गाएं।
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