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nabhanshu · 5 years ago
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10 May, 2020
मदर्स डे मतलब वो एक दिन जब आप 364 दिन भागती-दौड़ती उस माँ को धन्यवाद देते हैं जिसको कोई फर्क नही पड़ता की आप उसे कुछ दे रहे हैं। क्यूँकि इससे ने उसकी रफ्तार मे कोई वृद्धि होती हैं ना ही उत्साह में। आपने जिसको धन्यवाद दिया है उसने आपको अपनी जिंदगी दे रखी हैं। यही भेद है कि आपका धन्यवाद भी इतना प्रभाव नही डाल पाता जितना उसका मौन रोज अपना प्रभाव छोड़ देता हैं। जहाँ दुनिया आपको कुछ पिलाकर सुला देने में लगी हैं वो आज भी आपको नींद से उठाकर कुछ खिलाने के लिए बैठी हैं। रक्त प्रवाह रुकने से लेकर प्राण प्रवाहित होने तक जिसका प्रेम अखण्ड हैं, अभेद हैं, अविरल हैं वो माँ हैं। प्रेम प्राकट्य की वस्तु नहीं है और मां के संदर्भ में तो बिल्कुल भी नहीं, उसका देखना भर प्रेम है, कभी किसी बात का जवाब नहीं देना भी प्रेम हैं, घर से निकलते वक्त उसका मन में कहना कि ध्यान रखना प्रेम हैं, आपकी बीमारी में नीम-हकीम, वैद, पण्डित, तांत्रिक, बाबा, गुरु बन जाना प्रेम हैं, अपनी जरूरत कभी हमसे ना कहना प्रेम हैं, आपकी जरूरत को पड़ने से पहले उसका समझ लेना प्रेम हैं, खाना क्या बनाना हैं यह रोज पूछना प्रेम है, आपका चिल्लाना और उसका सुन लेना प्रेम हैं, मेरी ही औलाद धीठ हैं ऐसा कहना ही प्रेम हैं, आपको जिन्दगी देकर भी जिन्दगी भर एहसान नहीं जताना प्रेम हैं। माँ को रुलाना आसान है, माँ को हसाना आसान है, वो इतनी आसान है कि सब मुश्किल है जानते हुए भी उसको हराना आसान नहीं है। 
यह दिन अच्छा है!
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nabhanshu · 5 years ago
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धैर्य
27 April, 2020
कई बार धैर्य के चक्कर में गाड़ी छूट जाती है, फ्लाइट चुक जाती है, समय धैर्य की गति से तेज होकर आगे निकल जाता है और हम धैर्य के टीले पर बैठ कर धैर्य से समय का इंतजार करते रह जाते हैं। जीवन में हर वक्त एक ही सूत्र काम करें ऐसा सम्भव नहीं है, कई बार धैर्य हारना भी आपकी जीत हो सकती हैं। पहाड़ों को तोड़ने के लिए विस्फोट की आवश्यकता होती ही है। जिस प्रकार 24 घण्टें में हमारी अवस्थाएं बदलती रहती है प्रेम, क्रोध, आक्रोश, संयम, शांति उन अवस्थाओं में हमें नहीं पता होता कि कब क्रान्ति स्फुटित हुई। क्रोध से भी क्रान्ति का जन्म होता है और शांति से भी। संभवतः यह भी सत्य है कि मानवीय स्वभाव शांति है, हम 24 घण्टे अशांत नहीं रह सकते लेकिन हम 24 घण्टे शांत रह सकते है क्योंकि शांति प्रत्येक इंसान के भीतर है। जब आदि काल में युद्ध हुआ करते थे तो उनकी एक समय-सीमा होती थी कि सूर्यास्त के बाद युद्ध नहीं होगा क्योंकि लड़ाई सतत हो ही नहीं सकती।‘युद्ध’ और ‘धैर्य’ के अक्षरों में ज्यादा भेद नहीं है इसीलिए धैर्य युद्ध को बचा सकता हैं। मैं धैर्य के विपक्ष में नहीं हूं लेकिन यह भी मुखर सत्य है कि बीज का स्फुटन धैर्य से नहीं हो सकता। हमारी सभी समस्याओं का समाधान ‘धैर्य’ नहीं है और हमारी अनेकों समस्याओं का कारण भी ‘धैर्य नहीं है’ ही है। लेकिन धैर्य किसी भी काम की पहली अवस्था नहीं है यह प्रत्येक काम की आखिरी अवस्था है। आरंभ से ही यदि धैर्य धार के बैठ जाएं तो बहुत अधिक संभावना है कि आपको जीवन भर सिर्फ धैर्य धारण करके ही बैठना पड़ेगा।  
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nabhanshu · 5 years ago
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यदि हम चिंता विहीन है तो हम एक निरर्थक जीवन जी रहे है। 
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nabhanshu · 5 years ago
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चिंता
22 April, 2020
एक ऐसा शब्द जो जीवन भी हैं और मृत्यु भी। हर चीज से निश्चिंत व्यक्ति किसी भी प्रकार से नई सभ्यता, नए आविष्कार या कुछ सार्थक करने में सक्षम नहीं हुआ है। वहीं जिस व्यक्ति ने आने वाले कल की चिंता करी उसी ने इतिहास भी रचा है। कल क्या होगा ये चिंता तो काल का ग्रास बनीं लेकिन कल ये कैसे होगा इस बारें में विचार करना ही नई दुनिया को जन्म देने वाला कारण बना। अगर निश्चिंतता ईश्वर की देन है तो फिर चिंता भी ईश्वर की ही देन है यह हम पर हैं कि हम इन दोनों हथियारों को कि��� प्रकार इस्तेमाल करते हैं। इनका सही इस्तेमाल ही हमारे सही जीवन का निर्धारण करता है। बिना समाधान के विचार कर आप सिर्फ चिंता करेंगे तो हासिल शून्य ही होगा। चिंता कोई आज की देन नहीं हैं, यह आदि काल से मनुष्य का साथ निभा रही है। ईश्वर ने भी जब-जब मनुष्य रुप धारण किया तो उन्हें भी चिंता ने अपने वश में किया। चिंता ही हमारे विकास का मुख्य कारण रही हैं। 
आपकी मेज पर विज्ञान की एक किताब पड़ी है जिसकी कुछ समय के बाद में परीक्षा है ऐसे में आप बिना हाथ लगाएं और सिर्फ चिंता करके उस किताब को नहीं खोल सकते, सिर्फ चिंता करके आप विज्ञान की परीक्षा में पास नहीं हो सकते हैं सिर्फ चिंता करके आप विज्ञान में अपना भविष्य नही बना सकते। 
अगर मानवीय दृष्टिकोण का अध्ययन करके देखा जाए तो जीवन का सबसे गलत काम यही होगा कि हम बिना समाधान किसी व्यक्ति को कहें कि वह व्यर्थ की चिंता ना करें। चिंताएं व्यर्थ की नहीं होती, चिंताएं ऐसा अर्थ लिए होती जो हमें समझ नहीं आता। चिंता तो हमारा स्वभाव बन चुकी है हम हमारे स्वभाव से अब नहीं बदल सकते हैं। किसी व्यक्ति को चिंता यदि ना हो तो यह दुनिया उसे एक विशिष्ट स्थान पर डाल देती है जिसे ‘पागलखाने’ का नाम दिया गया। चिंता होना ही एक सामान्य मनुष्य होने का प्रमाण है।
हमारे प्रत्येक कर्म के साथ चिंता का आगमन होता है इसका मतलब ये नहीं कि हम अकर्मण्य हो जाएं। हमने एक बड़ी लग्जरी कार ली उस कार के साथ खुशियां तो आयी लेकिन कई तरह की चिंताएं भी आएगी जैसे कोई एक्सिडेंट ना हो जाए कहीं कार चोरी न हो जाए कोई टक्कर ना लगा दें। असंभावनाओं से आगे की सोच चिंता हैं और संभावना से आगे की सोच जीवन हैं।
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nabhanshu · 5 years ago
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देखना और समझना
14 April, 2020
��ह शब्द भी है और सभ्यता भी है। यह व्यक्ति के भूत, वर्तमान और भविष्य का स्पष्ट आईना है। कोई भी व्यक्ति इन से अपने जीवन में गुजरता है, अनुभव करता है और इसी के आधार पर अपना मौन परिचय वो दुनिया को देता है। देखना हमारी दृष्टि से संबंध रखता हैं लेकिन नियंत्रण हमारे मस्तिष्क से होता हैं, कितनी विस्तृत नजरों से हम देख पाते हैं यह मस्तिष्क तय करता हैं और हमारा देखना यह भी तय करता हैं कि आने वाले समय में हम किस प्रकार से देखें जायेंगे। समय और हालात से बढ़कर हमारी ही दृष्टि तय करती हैं कि हम क्या होने वाले है। देखने के बाद सबसे पहली प्रतिक्रिया जो मस्तिष्क में होती हैं वो होती हैं उसे समझने की। आपने हिंसा देखी तो मन में क्रोध उत्पन्न हुआ यह आपकी समझ का परिणाम हैं, आपने हिंसा देखी और मन में करुणा उत्पन्न हुई यह भी आपकी समझ का ही परिणाम हैं। हमें जरूरत हैं अपनी समझ को उस स्तर पर ले जाने कि जहां से सम्यक दृष्टि से हम दुनिया को देख सकें। दृष्टि की उपयोगिता बिना समझ के व्यर्थ है। किसी सुंदर स्त्री को देखकर आपने जाना कि देखने का सुख भी अद्भुत हैं लेकिन समझ ने आपको उस सुंदरता का सम्मान करना सिखाया। जब से सभ्यता का विकास होना प्रारंभ हुआ तब से ही व्यक्ति की देखने के प्रति समझ विकसित हो रही है। आकाश में उड़ते पंछी को देखकर स्वयं उड़ने की कल्पना देखने और समझने का ही परिणाम है। किसी के दुःख से स्वयं दुखी हो जाना भी हमारी दृष्टि और समझ के फलस्वरूप ही होता है। हम क्या देख रहे हैं उससे कही महत्वपूर्ण हैं कि हम क्या समझ रहे है। दृष्टि ईश्वर की देन है लेकिन समझ हमारे मानसिक श्रम का परिणाम है।
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