कानपुर वाले घर में मेरी मां, पापा और छोटी बहन रहती थी. मेरी बहन का नाम सुषमा है. उम्र में वो मुझसे तीन साल छोटी है. वो घर में सबकी लाडली है. ये कहानी जो मैं आप लोगों को आज बताने जा रहा हूं, यह करीबन दो साल पुरानी है.
उस वक्त मेरी बहन ने अपनी एमबीए की पढ़ाई पूरी की थी. पढ़ाई में हम दोनों भाई-बहन ही अच्छे थे. एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद मेरी बहन अब जॉब की तलाश में थी.
चूंकि मैं हैदराबाद जैसे बड़े शहर में रह रहा था तो मैंने उससे कहा कि तुम मेरे ही शहर में जॉब ढूंढ लो. मेरी यह बात मेरे माता-पिता को भी ठीक लगी. मेरे शहर में रहने से उनको भी अपनी बेटी की सेफ्टी की चिंता करने की आवश्यकता नहीं थी.
हैदराबाद में पी.जी. रूम लेकर मैं रह रहा था. मगर अब सुषमा भी साथ में रहने वाली थी तो मैंने एक बीएचके वाला फ्लैट ले लिया. कुछ दिन के बाद बहन भी मेरे साथ मेरे फ्लैट में शिफ्ट हो गई.
सुषमा के बारे में आपको बता दूं कि वो काफी खुलकर बात करने वालों में से है. उसकी हाइट 5.6 फीट है और मेरी हाइट 6 फीट के लगभग है. मेरी बहन के बदन की बात करूं तो उसकी गांड काफी उठी हुई है. जब वो अपनी कमर को लचकाते हुए चलती है तो किसी भी मर्द को घायल कर सकती है.
मेरी बहन का फीगर 36-30-38 का है. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उसकी चूचियां भी कितनी बड़ी होंगी. उसकी चूचियां हमेशा उसके कपड़ों से बाहर झांकती रहती थीं. मैंने सुना था कि जवान लड़की की चूत चुदाई होने के बाद उसकी चूचियों का साइज भी बढ़ जाता है.
अपनी बहन की चूचियों को देख कर कई बार मेरे मन में ख्याल आता था कि कहीं यह भी अपनी चूत चुदवा रही होगी. मगर मैं इस बारे में विश्वास के साथ कुछ नहीं कह सकता था. मेरी बहन खुले विचारों वाली थी तो दोनों तरह की बात हो सकती थी.
जब वो मेरे साथ फ्लैट में रहने लगी तो अभी उसके पास जॉब वगैरह तो थी नहीं. वो अपना ज्यादातर समय फ्लैट पर ही बिताती थी. मैं सुबह ही अपने काम पर निकल जाता था. पूरा दिन फ्लैट पर रह कर वो बोर हो जाती थी.
एक रोज वो कहने लगी कि वो सारा दिन फ्लैट पर रह कर बोर हो चुकी है. उसका मन कहीं बाहर घूमने के लिए कर रहा था. उसने मुझसे कहीं बाहर घूमने चलने के लिए कहा.मैंने कह दिया कि हम लोग मेरी छुट्टी वाले दिन चलेंगे.
फिर वीकेंड पर मैंने अपनी बहन के साथ बाहर घूमने का प्लान किया. अभी तक मेरे मन में मेरी बहन के लिए कोई गलत ख्याल नहीं था. हम लोग पास के ही एक मॉल में घूमने के लिए गये. मेरी बहन उस दिन पूरी तैयार होकर बाहर निकली थी.
उसके कुर्ते में उसकी चूचियां पूरे आकार में दिखाई दे रही थीं. हम लोगों ने साथ में घूमते हुए काफी मस्ती की और फिर घर वापस लौटने लगे. मगर रास्ते में बारिश होने लगी. इससे पहले कि हम लोग बारिश से बचने के लिए कहीं रुकते, हम दोनों ऊपर से लेकर नीचे तक पूरे भीग चुके थे.
बारिश काफी तेज थी इसलिए मैंने सोचा कि बारिश रुकने का इंतजार करना ही ठीक रहेगा. हम दोनों बाइक रोक कर एक मकान के छज्जे के नीचे खड़े हो गये. सुषमा के बदन पर मेरी नजर गई तो मैं चाह कर भी खुद को उसे ताड़ने से नहीं रोक पाया.
उसकी मोटी चूचियों की वक्षरेखा, जिस पर पानी की बूंदें बहती हुई अंदर जा रही थी, मेरी नजरों से कुछ ही इंच की दूरी पर थी. उसको देख कर मेरे लौड़े में अजीब सी सनसनी होने लगी. मैंने उसकी सलवार की तरफ देखा तो उसकी भीगी हुई गांड और जांघें देख कर मेरे लंड में और ज्यादा हलचल होने लगी.
मैं बहाने से उसको घूरने लग गया था. ऐसा मेरे साथ पहली बार हो रहा था. फिर कुछ देर के बाद बारिश रुक गयी और हम अपने फ्लैट के लिए निकल गये. उस दिन के बाद से मेरी बहन के लिए मेरा नजरिया बदल गया था.
अपनी बहन की चूचियों को मैं घूरने लगा था. बहन की गांड को ताड़ना अब मेरी आदत बन चुकी थी. मेरी हाइट उससे ज्यादा थी तो जब भी वो मेरे सामने आती थी उसकी चूचियां ऊपर से मुझे दिखाई दे जाती थीं. कई बार हंसी-मजाक में मैं उसको गुदगुदी कर दिया करता था.
इस बहाने से मैं उसकी चूचियों को छेड़ दिया करता था. कभी उसकी गांड को सहला देता था. यह सब हम दोनों के बीच में अब नॉर्मल सी बात हो गई थी. जब भी वो नहा कर बाहर आती थी तो वह तौलिया में होती थी. ऐसे मौके पर मैं जानबूझकर उसके आस-पास मंडराने लगता था.
जब मैं उसके साथ छेड़खानी करता था तो वो मेरी हर हरकत को नोटिस किया करती थी. उसको मेरी हरकतें पसंद आती थीं. इस बात का पता मुझे भी था. जब भी मैं उसको छेड़ता था तो वो मेरी हरकतों को हंसी में टाल दिया करती थी.
वो भी कभी-कभी मुझे यहां-वहां से छूती रहती थी. कई बार तो उसका हाथ मेरे लंड पर भी लग जाता था या फिर यूं समझें कि वो मेरे लंड बहाने से छूने की कोशिश करने लगी थी. अब आग दोनों तरफ शायद बराबर की ही लगी हुई थी.
ऐसे ही मस्ती में दिन कट रहे थे. एक दिन की बात है कि मैं उस दिन ऑफिस से जल्दी आ गया. हम दोनों के पास ही फ्लैट की एक-एक चाबी रहती थी. मैंने बाहर से ही लॉक खोल लिया था.
जब मैं अंदर गया तो उस वक्त सुषमा बाथरूम के अंदर से नहा कर बाहर आ रही थी. मैंने उसे देख लिया था मगर उसकी नजर मुझ पर नहीं पड़ी थी. उसने अपने बदन पर केवल एक टॉवल लपेटा हुआ था.
Nangi Behan
वो सीधी कबॉर्ड की तरफ जा रही थी. मैं भी उसको जाते हुए देख रहा था. अंदर जाकर उसने अलमारी से एक ब्रा और पैंटी को निकाला. उसने अपना टॉवल उतार कर एक तरफ डाल दिया. बहन के नंगे चूतड़ मेरे सामने थे.
मेरे सामने ही वो ब्रा और पैंटी पहनने लगी. उसका मुंह दूसरी तरफ था इसलिए उसकी नंगी चूत और चूचियां मैं नहीं देख पाया. मगर जल्दी ही उसको किसी के होने का आभास हो गया और वो पीछे मुड़ गई.
जैसे ही उसने मुझे देखा वो जोर से चिल्लाई और मैं भी घबरा कर बाहर हॉल में आ गया. कुछ देर के बाद वो कपड़े पहन कर बाहर आई और मुझ पर गुस्सा होते हुए कहने लगी कि भैया आपको नॉक करके आना चाहिए था.
मैंने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा- अगर मैं नॉक करके आता तो क्या तुम मुझे वैसे ही अंदर आने देती?उसने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया. मैं समझ गया कि उसकी इस खामोशी में उसकी हां छुपी हुई है.
अब मैंने थोड़ी हिम्मत की और उसके करीब आकर उसको अपनी बांहों में भर लिया. वो मेरी तरफ हैरानी से देख रही थी. मैंने उसकी आंखों में देखा और देखते ही देखते हम दोनों के होंठ आपस में मिल गये. मैंने उसके होंठों को चूमना शुरू कर दिया.
पहले तो मेरी बहन दिखावटी विरोध करती रही. फिर कुछ पल के बाद ही उसने विरोध करना बंद कर दिया. शायद उसको भी इस बात का अंदाजा था कि आज नहीं तो कल ये सब होने ही वाला है. इसलिए अब वो मेरा पूरा साथ दे रही थी.
दस मिनट तक हम दोनों एक दूसरे के होंठों को पीते रहे. उसके बाद मैंने उसके कपड़ों उतारना शुरू कर दिया. उसका टॉप उतारा और उसको ब्रा में कर दिया. फिर मैंने उसकी जीन्स को खोला और उसकी जांघों को भी नंगी कर दिया.
अब मैंने उसकी ब्रा को खोलते हुए उसकी चूचियों को नंगी कर दिया. उसकी मोटी चूचियां मेरे सामने नंगी हो चुकी थीं. उसकी चूचियों को मैंने अपने हाथों में भर लिया.
उसके नर्म-नर्म गोले अपने हाथ में भर कर मैंने उनको दबा दिया. अब एक हाथ से उसकी एक चूची को दबाते हुए मैं दूसरे हाथ को नीचे ले गया. उसकी पैंटी के अंदर एक उंगली डाल कर मैंने उसकी चूत को कुरेद दिया.
बहन की चूत पानी छोड़ कर गीली हो रही थी. मैंने उसकी चूत को कुरेदना जारी रखा. उसका हाथ अब मेरे लंड पर आ गया था. मेरा लंड भी पूरा तना हुआ था. वो अब मेरे लंड को पैन्ट के ऊपर से ही पकड़ कर सहला रही थी.
मैं भी उत्तेजित हो चुका था और मैंने अपनी पैंट को खोल दिया. पैंट नीचे गिर गयी. सुषमा ने मेरी पैन्ट को मेरी टांगों में से निकलवा दिया. वो अब खुद ही आगे बढ़ रही थी. उसने मेरे अंडरवियर को भी निकाल दिया.
मेरे लंड को पकड़ कर वो उसकी मुठ मारने लगी. मैं तो पागल ही हो उठा. मैं उसकी चूचियों को जोर से भींचने लगा. फिर मैंने झुक कर उसकी चूचियों को मुंह में भर लिया और उसके निप्पलों को काटने लगा.
इतने में ही मेरी बहन ने अपनी पैन्टी को खुद ही नीचे कर लिया. उसकी चूत अब नंगी हो गई थी. मैं उसकी चूचियों को चूस रहा था. उसके निप्पलों को काट रहा था. बीच-बीच में चूचियों के निप्पलों को दो उंगलियों के बीच में लेकर दबा रहा था.
सुषमा अब काफी उत्तेजित हो गई थी. अचानक ही वो मेरे घुटनों के बीच में बैठ गई और अपने घुटनों के बल होकर उसने मेरे लंड को अपने मुंह में भर लिया. मेरी बहन मस्ती से मेरे 8 इंची लंड को चूसने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे उसको मेरा लंड बहुत पसंद है.
वो जोर से मेरे लंड को चूसती रही और मेरे मुंह से अब उत्तेजना के मारे जोर की आवाजें सिसकारियों के रूप में बाहर आने लगीं. आह्ह … सुषमा, मेरी बहन, मेरे लंड को इतना क्यों तड़पा रही हो!मैंने उसके सिर को पकड़ कर अपने लंड पर अंदर दबाना और घुसाना शुरू कर दिया.
दो-तीन मिनट तक लंड को चुसवाने के बाद मैं स्खलन के करीब पहुंच गया. मैंने बहन के मुंह में लंड को पूरा घुसेड़ दिया और मेरे लंड से वीर्य की पिचकारी बहन के मुंह में जाकर गिरने लगी.
मेरी बहन मेरा सारा माल पी गयी. मैंने उसको बेड पर लिटा लिया और उसकी चूत में उंगली करने लगा. वो तड़पने लगी. उसकी चूत पानी छोड़ रही थी. मगर उसकी चूत की चुदाई शायद पहले भी हो चुकी थी. चूत भले ही टाइट थी लेकिन कुंवारी चूत की बात ही अलग होती है. मुझे इस बात का अन्दाजा हो गया था.
मैं उसकी चूत को चाटने लगा. उसकी चूत का सारा रस मैंने चाट लिया.जब उससे बर्दाश्त न हुआ तो वो कहने लगी- भैया, अब चोद दो मुझे… आह्ह … अब और नहीं रुका जा रहा मुझसे.मैंने उसकी चूत में अन्दर तक जीभ घुसेड़ दी और वो मेरे मुंह को अपनी चूत पर जोर से दबाने लगी.
फिर मैंने मुंह हटा लिया. अब उसकी टांगों को मैंने बेड पर एक दूसरे क�� विपरीत दिशा में फैला दिया. बहन की चूत पर अपने लंड को रख दिया और रगड़ने लगा. मेरा लंड फिर से तनाव में आ गया. देखते ही देखते मेरा पूरा लंड तन गया.
मैंने अपने तने हुए लंड के सुपाड़े को चूत पर रखा और एक झटका दिया. पहले ही झटके में लंड को आधे से ज्यादा उसकी चूत में घुसा दिया. वो दर्द से चिल्ला उठी- उम्म्ह… अहह… हय… याह…मगर मैं अब रुकने वाला नहीं था. मैंने लगातार उसकी चूत में झटके देना शुरू कर दिया. बहन की चूत की चुदाई शुरू हो गई.
सुषमा की चूत में अब मेरा पूरा लंड जा रहा था. वो भी अब मजे से मेरे लंड को अंदर तक लेने लगी थी. मैं पूरे लंड को बाहर निकाल कर फिर से पूरा लंड अंदर तक डाल रहा था. दोनों को ही चुदाई का पूरा आनंद मिल रहा था.
अब मैंने उसको बेड पर घोड़ी बना दिया और पीछे से उसकी चूत में लंड को पेलने लगा. उसकी चूत में लंड घुसने की गच-गच आवाज होने लगी. मेरे लंड से भी कामरस निकल रहा था और उसकी चूत भी पानी छोड़ रही थी इसलिए चूत से पच-पच की आवाज हो रही थी.
फिर मैंने उसको सीधी किया और उसके मुंह में लंड दे दिया. मेरे लंड पर उसकी चूत का रस लगा हुआ था. वो फूल चुके लंड को चूसने-चाटने लगी. उसकी लार मेरे लंड पर ऊपर से नीचे तक लग गई.
अब दोबारा से मैंने उसकी टांगों को फैलाया और उसकी चूत में जोर से अपने लंड के धक्के लगान�� लगा. पांच मिनट तक इसी पोजीशन में मैंने उसकी चूत को चोदा और वो झड़ गई. अब मेरा वीर्य भी दोबारा से निकलने के कगार पर पहुंच गया था.
मैंने उसकी चूत में तेजी के साथ धक्के लगाना शुरू कर दिया. उसकी चूत मेरे लंड को पूरा का पूरा अंदर ले रही थी. फिर मैंने दो-तीन धक्के पूरी ताकत के साथ लगाये और मैं अपनी बहन की चूत में ही झड़ने लगा. उसकी चूत को मैंने अपने वीर्य से भर दिया.
हम दोनों थक कर शांत हो गये. उस दिन हम दोनों नंगे ही पड़े रहे. शाम को उठे और फिर खाना खाया. उसके बाद रात में एक बार फिर से मैंने अपनी बहन की चूत को जम कर चोदा. उसने भी मेरे लंड को चूत में लेकर पूरा मजा लिया और फिर हम सो गये.
उस दिन के बाद से हम भाई-बहन में अक्सर ही चुदाई होने लगी. अब उसको मेरे साथ रहते हुए काफी समय हो गया है लेकिन हम दोनों अभी भी चुदाई करते हैं. मुझे तो आज भी ये सोच कर विश्वास नहीं होता है कि मैं इतने दिनों से अपनी बहन की चूत की चुदाई कर रहा हूं.
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✒️🏵️👇🏻
*कम से कम दो बार आवश्य पढ़ें। शब्दों की गहराई समझने की कोशिश करें।*
*पैर की मोच*
*और*
*छोटी सोच ,*
*हमें आगे*
*बढ़ने नहीं देती ।*
*टूटी कलम*
*और*
*औरो से जलन ,*
*खुद का भाग्य*
*लिखने नहीं देती ।*
*काम का आलस*
*और*
*पैसो का लालच ,*
*हमें महान*
*बनने नहीं देता ।*
*दुनिया में सब चीज*
*मिल जाती है,......*
*केवल अपनी गलती*
*नहीं मिलती..*
*" जितनी भीड़ ,*
*बढ़ रही*
*ज़माने में........।*
*लोग उतनें ही ,*
*अकेले होते*
*जा रहे हैं......।।*
*इस दुनिया के*
*लोग भी कितने*
*अजीब है * ना ;*
*सारे खिलौने*
*छोड़ कर*
*जज़बातों से*
*खेलते हैं........*
*याद रखिये*
*यदि माता पिता, और सगे भाई बहन से बोलचाल बंद है*
*तो ये भी तय मानो कि *भगवान*ने आपको सुनना बंद कर दिया है*
*किनारे पर तैरने वाली*
*लाश को देखकर*
*ये समझ आया........*
*बोझ शरीर का नहीं*
*साँसों का था.....*
*तो फिर घमंड़ शरीर पर कैसा?*
*"सफर का मजा लेना हो तो साथ में सामान कम रखिए, और*
*जिंदगी का मजा लेना हैं तो दिल में अरमान कम रखिए !!*
*तज़ुर्बा है मेरा.... मिट्टी की पकड़ मजबुत होती है,*
*संगमरमर पर तो हमने .....पाँव फिसलते देखे हैं...!*
*जिंदगी को इतना सिरियस लेने की जरूरत नहीं,*
*यहाँ से जिन्दा बचकर कोई नहीं जायेगा!*
*जिनके पास सिर्फ सिक्के थे वो मज़े से भीगते रहे बारिश में ....*
*जिनके जेब में नोट थे वो छत तलाशते रह गए...*
*पैसा इन्सान को ऊपर ले जा सकता है;*
*लेकिन इन्सान पैसा ऊपर नहीं ले जा सकता......*
*कमाई छोटी या बड़ी हो सकती है....*
*पर रोटी की साईज़ लगभग सब घर में एक जैसी ही होती है।*
*शानदार बात*
*इन्सान की चाहत है कि उड़ने को पर (पंख) मिले,*
*और परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले...*
*🫵🏻आप सदा ख़ुश, मस्त, व्यस्थ व स्वस्थ रहे,*
♥️💜🏵️👍🏻
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पिंजरे का परिंदा
मेरे घर बचपन में एक पंछी आया था जिसे घर के सभी लोग प्यार से मिठ्ठू तोता कहकर बुलाते थे। मेरी दीदी को तोता देते हुए पिता जी उससे बोले "देखो बेटा! काफ़ी मोल भाव करने के बाद बाज़ार से यह तोता खरीद कर लाया हूं। इस बार अगर यह तोता पिंजरे से उड़ा तो मैं फिर कभी भी नहीं लाऊंगा। भला गुड़िया दीदी को इन सब बातों से क्या लेना देना था । वह तो सिर्फ मिठ्ठू के साथ खेलने में व्यस्त थी,लेकिन मां और घर के सभी सदस्य पिता जी की बातों को समझ रहे थे इसलिए इस बार एक नया पिंजरा भी मंगवा कर रख लिया गया था। तोता का पिंजरा इतना प्यारा और अनोखा लग रहा था जिसे देखकर मेरी आंखें भी खुशी से चमक रही थी। घर के सभी लोग उसे स्नेह से पालने लगे और उसका ख्याल भी रखा जाने लगा । मिठ्ठू को समय पर पानी,फल,मिर्च और खाना देना घर के सभी लोगों की जिम्मेवारी बन गई थी। गुड़िया दीदी हर रोज मिठ्ठू को देखकर सोती थी और उसे जागने के बाद दिन भर निहारा करती थी। ऐसा इसलिए क्योंकि मिठ्ठू तोता अब गुड़िया कटोरे कटोरे बोलने लगा था। हर रोज मिठ्ठू तोता को पिंजरा में खाना मिलता और उसे खाकर दिन भर वो गुड़िया कटोरे कटोरे बोलता रहता था। कुछ सालों तक यह सिलसिला चलता रहा,लेकिन एक दिन अचानक सुबह सुबह गुड़िया दीदी जोर जोर से रोने लगी उसकी आवाज़ को सुनकर घर के सभी लोग बाहर आंगन में आकर देखा तो वे सब लोग हतप्रभ रह गए। गुड़िया उस पिंजरे को अपने सीने से लगाकर जोर जोर से रो रही थी। उसकी आवाज़ में इतनी करुणा और ममता भरी हुई थी कि आस पास के लोग भी कारण जानने के लिए मेरे आंगन में पहुंच गए। अब घर व बाहर के लोग यह जान गए थे कि बात उस पिंजरे वाले तोते की है जो कल रात पिंजरे को तोड़कर कहीं उड़ गया। सब लोग मेरी दीदी को समझा रहे थे तभी पिता जी को आंगन में आता हुआ देखकर उनके पास जाकर मै लिपट कर रोते हुए कहा "पापा यह तोता हर बार क्यूं भाग जाता है, तब उन्होंने हम दोनों भाई बहन को गोद में बैठकर एक कविता सुनाया:
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाएंगे।
नीड़ न दो चाहे टहनी का,
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकि�� पंख दिए हैं तो,
आकुल उड़ान में विघ्न न डालो।”
शिव मंगल सिंह सुमन द्वारा रचित उस कविता का अर्थ उस वक्त नहीं बल्कि ज्ञान होने पर समझ में आया लेकिन साथ ही साथ मेरे हृदय में एक भाव भी जागा कि आख़िर क्यूं? कोई पंछी गुलामी के पिंजरों में बंधकर नहीं रहना चाहता है। इस भाव को सार्थकता प्रदान करने के लिए मैंने भी एक तोता पाला। जिसकी तस्वीर आज देखकर मुझे मेरे बचपन के तोते की कहानी याद आ गई।संभवतः इस तोते से एक ऐसा लगाओ बन गया था जो मेरी कदमों की आहट सुनकर जोर जोर से मेरा नाम पुकारने लगता था। लोगों को आश्चर्य तब होता था जब वह पूरे आसमान को छूने के बाद भी मेरे छत पर आकर बैठ जाता और मैं खुशी से फूलते हुए पिता जी से कहता था "देखिए मेरा तोता कहीं नहीं भागता है", लेकिन एक दिन ऐसा आया जब वह पिंजरा से बाहर तो निकल जाता था लेकिन उसके उड़ने की जिज्ञासा शांत हो गई थी,कारण जानने के बाद मालूम चला एक दिन मिठ्ठू घायल होकर आसमान से मेरे ही छत पर आ गिरा था। यह सुनकर उस वक्त अपनी पीड़ा से मैं खुद मुक्त नहीं हो पा रहा था ऐसा लग रहा था मानो मेरी जिद्द ने एक आजाद परिंदे को गुलाम बना लिए हों। मेरे लाख कोशिशों के बाद भी वह तोता आसमान की ओर फिर कभी नहीं देखा और अंततः उसने उसी पिंजरे में अपना दम तोड दिया जिसमें उसे कैद करके कई बरसों तक मैंने रखा था। ये सोचकर कि अगर प्यार और स्नेह मिले तो गुलामी की जंजीरें से बंधकर भी पंछी और आदमी जी सकता है,लेकिन शायद मैं गलत था बिल्कुल गलत था।
@अनजान मुसाफ़िर
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बहुत दिनों से मैं इंतजार कर रहा था कि कोई मुझे रेणु की मैला आँचल किताब भेंट में दें। मै अपने कई मित्रो के सामने भी इस विचार को रखा। लेकिन सब के सब निठल्ले निकले। अंत में हार कर सोचा, जाने भी दो मेरी ही गलती है। मेरे मित्रगण मेरे मज़ाकिया व्यवहार को कभी गंभीरता से लिए ही नहीं। वो मेरी इस मांग को भी मज़ाक ही समझ लिए हो।
कुछेक दिन पहले भैया से बात हो रही थी, उन्होंने मुझे बताया कि वो रेणु को पढ़ रहे हैं वो भी मैला आँचल। मुझसे रहा न गया, मै झट से अमेज़न से किताब को आर्डर कर दिया।
किताब मुझे कल मिली। जब मै लिफाफा को खोलकर किताब को पकड़ा तो नास्टैल्जिया हुआ। महज मै कक्षा छठी या सातवीं का विद्यार्थी रहा हूँगा। मेरे छोटे वाले मामाजी जो मेरे बड़े भैया से एकाध साल के ही बड़े होंगे, को शायद पढ़ने का शौक़ रहा होगा। वो पहली बार हमसबकों, मेरे तीनो भाई-बहन और माँ को बैठाकर, संवदिया, जो कि रेणु के ही लिखी हुई कहानी है, पाठ किया और हरेक गद्यांश को सरलता से समझाया। हालाँकि रेणु भाषावली हमलोगो के लिए जटिल बिलकुल भी नहीं है क्योंकि वो जिन बोली से अपने भाषावली बनाते थे वो हमारे लिए अनजान नहीं था ब्लकि हम ऐसे शब्दों और कहावतों को आम दिनों में जीते थे। लेकिन, साहित्य या यों कहे कि किसी भी कला कृति से वास्ता नहीं होने से, हममे वो कल्पान्तक भाव को पहचानना जटिलता जैसे ही लगाती थी। मामाजी ने उसे इतने सरल से बताया कि जब सवांदिया बड़ी बहुरानी के पाँव पकड़ कर, अंत में, रो रहा था तो मेरी माँ की भी आँखे नम हो गई थी। मै भी भावुक हो गया था पर रोया नहीं। मैं अपने आप को मर्द बनाने की ट्रेनिंग जो दे रहा था।
ख़ैर, संवदिया की शब्दावली, भावुकता से सराबोर और बरौनी जंकशन का जिक्र, मुझे रेणु से आत्मीय रूप से करीब लेकर आया। तब से रेणु की लिखी कहानियां हिंदी के टेक्सटबुक्स में ढूंढते रहता। और जो भी कहानी मिल जाती, उसे मैं छुप-छुपाकर पढ़ लेता। छुपाना इसलिए पड़ता था, क्योंकि घरवाले को लगता था कि कहानी या साहित्य पढ़ने के बदले कुछ रसायन भौतिक गणित पढ़े तो जिंदगी में कुछ कर पावे। जो कभी स्कूल की चौखट न देखे हो, और जीवन मजूरी में बीत रही हो तो शिक्षा रोटी-पानी का एक सम्मानपूर्ण जरिया बनकर रहा जाता है।
परन्तु मैं इस मामले में, अपनेआप को सौभग��यपूर्ण मानता हूँ की, बिना ज्यादा पढ़े लिखे मैं अपने कक्षा में ठीक-ठाक कर लेता था, घर वालो की सिर्फ फ़िक्र थी तो वो मेरी लिखावट की, जो अभी तक बनी रही है। इसी वजह से मैं कहानी और साहित्य में रूचि बनवाने में अपवाद रहा हूँ। जो भी हिंदी की किताब मिल जाती उसे मैं किसी कमरे के एक अकेलेपन वाले कोने जाकर पढ़ लेता। उसी समय महादेवी वर्मा, प्रेंचन्द, राहुल संकृत्यायन आदि के लिखे कहानियां और लेख पढ़ने का मौका मिला। कवितायेँ भी पढ़ी, लेकिन कहानियों के और झुकाव काफी था।
दिल्ली आने के बाद हिंदी से लगभग वास्ता ही नहीं रह गया था। फिर चतुर सेन की वैशाली की नगरवधू हाथ लगी, और फिर से हिंदी पढ़ना शुरू किया।
रेणु की मैला आँचल शायद मै स्कूल समय में पढ़ रखा हूँ। लेकिन यह ठीक से याद नहीं है कि पूरी पढ़ी थी या नहीं। शायद पूरी पढ़ ली थी क्योंकि, कल जब मै ऐसे ही पन्ने पलट रहा था, 'चकई के चक-धूम' वाले गान, जिसे रेणु ने मैला आँचल में जगह दिए, पर नजर गई। तब मुझे याद आया कि मै इसे पहले भी पढ़ा हूँ। हालाँकि, उस उसमे इसे समझने का न ही तजुर्बा था न ही उम्र और साथ ही साथ यादास्त भी आजकल धोखा देती रहती है। इसलिए कल फिर से इसे पढना शुरू किआ। मेरीगंज की कहानी पढ़कर आँखे भर आयी और लगा मतलबी दुनिया प्यार के पागलपन को कांके का ही पागलपन समझेगा।
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विजया एकादशी क्या है पारस जी से जाने?
हर महीने में दो बार एकादशी व्रत किया जाता है और इस तरह एक साल में 24 एकादशी व्रत किए जाते हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं। यदि आप चाहते हैं कि आपको किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त हो तो इसके लिए विजया एकादशी का व्रत रखें। इस व्रत को रखने से और भगवान विष्णु की पूजा करने से आपको जीवन में अवश्य सफलता मिलती है। इसी कड़ी में आइये जानते हैं कब है विजया एकादशी का व्रत और क्या है इस व्रत का महत्व ?
कब है विजया एकादशी 2024 ?
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है। उदयातिथि के आधार पर विजया एकादशी का व्रत 6 मार्च बुधवार को है। क्योंकि एकादशी तिथि का सूर्योदय 6 मार्च को होगा इसलिए यह व्रत इसी दिन किया जायेगा। यह व्रत शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए भी किया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्री राम ने रावण से युद्ध करने से पहले विजया एकादशी का व्रत रखा था, जिसके प्रभाव से उन्होंने रावण का वध किया था इसलिए इस दिन व्रत रखना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
विजया एकादशी व्रत की पूजा विधि
विजया एकादशी के दिन सबसे पहले सवेरे उठकर स्नान आदि करें और फिर सच्चे मन से भगवान विष्णु का नाम लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं। फिर भगवान को अक्षत, फल, पुष्प, चंदन, मिठाई, रोली, मोली आदि अर्पित करें। भगवान विष्णु को तुलसी दल जरूर अर्पित करें क्योंकि भगवान विष्णु को तुलसी अत्यधिक प्रिय है। श्रद्धा-भाव से पूजा कर अंत में भगवान विष्णु की आरती करने के बाद सबको प्रसाद बांटें।
इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी शुभ होता है क्योंकि इस पाठ को करने से लक्ष्मी जी आपके घर में वास करती हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि विजया एकादशी के शुभ दिन किसी गोशाला में गायों के लिए अपनी सामर्थ्य के अनुसार धन का दान करें। विजया एकादशी के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। गरीबों व जरूरतमंदों को अन्न , वस्त्र, दक्षिणा आदि दान करें।
विजया एकादशी पारण
विजया एकादशी व्रत के दूसरे दिन पारण किया जाता है। एकादशी व्रत में दूसरे दिन विधि-विधान से व्रत को पूर्ण किया जाता है। विजया एकादशी व्रत का पारण 7 मार्च, गुरुवार को किया जाएगा। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि इस व्रत का पारण करने से पहले आप ब्राह्मणों को भोजन अवश्य करायें और साथ ही अपनी सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंद को दान करें और इसके बाद ही स्वयं भोजन करें।
विजया एकादशी व्रत का महत्व
एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। साल में जो 24 एकादशी आती हैं, हर एकादशी का अपना अलग महत्व है। विजया एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति की मुश्किलें दूर होती हैं और हर कार्य में सफलत�� प्राप्त होती है। महंत श्री पारस भाई जी का कहना है कि भगवान विष्णु के आशीर्वाद से पाप मिटते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। विजया एकादशी जिसके नाम से ही पता चलता है कि इस एकादशी के प्रभाव से आपको विजय की प्राप्ति होती है। यानि विजय प्राप्ति के लिए इस दिन श्रीहरि की पूजा करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि जो मनुष्य विजया एकादशी का व्रत रखता है उस मनुष्य के पितृ स्वर्ग लोक में जाते हैं।
पूजा के समय इस मंत्र का जाप करें- कृं कृष्णाय नम:, ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:। महंत श्री पारस भाई जी ने इस व्रत के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में भी इस व्रत का वर्णन मिलता है। विजया एकादशी का व्रत भी बाकी एकादशियों की तरह बहुत ही कल्याणकारी है।
महंत श्री पारस भाई जी आगे कहते हैं कि यदि आप शत्रुओं से घिरे हो और कैसी भी विकट परिस्थिति क्यों न हो, तब विजया एकादशी के व्रत से आपकी जीत निश्चित है।
इस दिन ये उपाय होते हैं बहुत ख़ास
तुलसी की पूजा विजया एकादशी के दिन तुलसी पूजा को बहुत ही अधिक महत्व दिया जाता है। इस तुलसी के पौधे को जल अर्पित कर दीपक जलाएं। इसके अलावा तुलसी का प्रसाद भी ग्रहण करें। ऐसा करने से घर से दुःख दूर होते हैं और घर में खुशालीआती है ।
शंख की पूजा
विजया एकादशी के दिन तुलसी पूजा की तरह शंख पूजा का भी अत्यधिक महत्व है। इस दिन शंख को तिलक लगाने के बाद शंख में जल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक कर शंख बजाएं। शंख से अभिषेक कर बजाना भी फलदायी माना जाता है। ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
पीला चंदन प्रयोग करें
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि विजया एकादशी के दिन पीले चंदन का अत्यंत महत्व होता है। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु को और स्वयं भी पीले चंदन का टीका अवश्य लगाएं। पीले चंदन का टीका लगाने से आपको कभी असफलता नहीं मिलेगी और आपकी सदैव जीत होगी।
ॐ श्री विष्णवे नम: “पारस परिवार” की ओर से विजया एकादशी 2024 की हार्दिक शुभकामनाएं !!!
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart90 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart91
"शेष कथा"
श्री कृष्ण भगवान ने अपनी शक्ति से युधिष्ठिर को उन सर्व महा मण्डलेश्वरों के आगे होने वाले जन्म दिखाए जिसमें किसी ने कैंचवे का, किसी ने भेड़-बकरी, भैंस व शेर आदि के रूप धारण किए थे।
यह सब देख कर युधिष्ठिर ने कहा हे भगवन! फिर तो पृथ्वी संत रहित हो गई है। भगवान कृष्ण जी ने कहा जब पृथ्वी संत रहित हो जाएगी तो यहाँ आग लग जाएगी। सर्व जीव-जन्तु आपस में लड़ मरेंगे। यह तो पूरे संत की शक्ति से सन्तुलन बना रहता है। समय-समय पर मैं (भगवान विष्णु) पृथ्वी पर आ कर राक्षस वृत्ति के लोगों को समाप्त करता हूँ जिससे संत सुखी हो जाते है। जिस प्रकार जर्मीदार अपनी फसल से हानि पहुँचने वाले अन्य पौधों को जो झाड़-खरपतवार आदि को काट-काट कर बाहर डाल देता है तब वह फसल स्वतन्त्रता पूर्वक फलती-फूलती है। यानी ये संत उस फसल में सिचाई का सुख प्रदान करते हैं। पूर्ण संत सबको समान सुख देते हैं। जिस प्रकार वर्षा व सिंचाई का जल दोनों प्रकार के पौधों (फसल व खरपतवार) का पोषण करते हैं। उनमें सर्व जीव के प्रति दया भाव होता है। अब मैं आपको पूर्ण संत के दर्शन करवाता हूँ। एक महात्मा काशी में रहते हैं। उसको बुलवाना है। तब युधिष्ठिर ने कहा कि उस ओर संतों को आमन्त्रित करने का कार्य भीमसेन को सौंपा था। पूछते हैं कि वह उन महात्मा तक पहुँचा या नहीं। भीमसेन को बुलाकर पूछा तो उसने बताया कि मैं उस से मिला था। उनका नाम स्वपच सुदर्शन है। बाल्मीकि जाति में गृहस्थी संत हैं। एक झोंपड़ी में रहता है। उन्होंने यज्ञ में आने से मना कर दिया। इस पर श्री कृष्ण जी ने कहा कि संत मना नहीं किया करते। सर्व वार्ता जो उनके साथ हुई है वह बताओ। तब भीम सेन ने आगे बताया कि मैंने उनको आमन्त्रित करते हुए कहा युधिष्ठिर ने कहा कि उस ओर संतों को आमन्त्रित करने का कार्य भीमसेन को सौंपा था। पूछते हैं कि वह उन महात्मा तक पहुँचा या नहीं। भीमसेन को बुलाकर पूछा तो उसने बताया कि मैं उस से मिला था। उनका नाम स्वपच सुदर्शन है। बाल्मीकि जाति में गृहस्थी संत हैं। एक झोंपड़ी में रहता है। उन्होंने यज्ञ में आने से मना कर दिया। इस पर श्री कृष्ण जी ने कहा कि संत मना नहीं किया करते। सर्व वार्ता जो उनके साथ हुई है वह बताओ।
तब भीम सेन ने आगे बताया कि मैंने उनको आमन्त्रित करते हुए कहा कि हे संत परवर ! हमारी यज्ञ में आने का कष्ट करना। उनको पूरा पता बताया। उसी समय वे (सुदर्शन संत जी) कहने लगे भीम सेन आप के पाप के अन्न को खाने से संतों को दोष लगेगा। करोड़ों सैनिकों की हत्या करके आपने तो घोर पाप कर रखा है। आज आप राज्य का आनन्द ले रहे हो। युद्ध में वीरगति को प्राप्त सैनिकों की विधवा पत्नी व अनाथ बच्चे रह-रह कर अपने पति व पिता को याद करके फूट-फूट कर घंटों रोते हैं। बच्चे अपनी माँ से लिपट कर पूछ रहे हैं माँ, पापा छुट्टी नहीं आए? कब आएंगे? हमारे लिए नए वस्त्र लाएंगे। दूसरी लड़की कहती है कि मेरे लिए नई साड़ी लाएंगे। बड़ी होने पर जब मेरी शादी होगी तब मैं उसे बाँधकर ससुराल जाऊँगी। वह लड़का (जो दस वर्ष की आयु का है) कहता है कि मैं अब की बार पापा (पिता जी) से कहूँगा कि आप नौकरी पर मत जाना। मेरी माँ तथा भाई-बहन आपके बिना बहुत दुःख पाते हैं। माँ तो सारा दिन-रात आपकी याद करके जब देखो एकांत स्थान पर रो रही होती है। या तो हम सबको अपने पास बुला लो या आप हमारे पास रहो। छोड़ दो नौकरी को। मैं जवान हो गया हूँ। आपकी जगह मैं फौज में जा कर देश सेवा करूँगा। आप अपने परिवार में रहो। आने दो पिता जी को, बिल्कुल नहीं जाने दूँगा। (उन बच्चों को दुःखी होने से ब��ाने के लिए उनकी माँ ने उन्हें यह नहीं बताया कि आपके पिता जी युद्ध में मर चुके हैं क्योंकि उस समय वे बच्चे अपने मामा के घर गए हुए थे। केवल छोटा बच्चा जो डेढ़ वर्ष की आयु का था वही घर पर था। अन्य बच्चों को जान बूझ कर नहीं बुलाया था।) इस प्रकार उन मासूम बच्चों की आपसी वार्ता से दुःखी होकर उनकी माता का हृदय पति की याद के दुःख से भर आया। उसे हल्का करने के लिए (रोने के लिए) दूसरे कमरे में जा कर फूट-फूट कर रोने लगी। तब सारे बच्चे माँ के ऊपर गिरकर रोने लगे। सम्बन्धियों ने आकर शांत करवाया। कहा कि बच्चों को स्पष्ट बताओ कि आपके पिता जी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए। जब बच्चों को पता चला कि हमारे पापा (पिता जी) अब कभी नहीं आएंगे तब उस स्वार्थी राजा को कोसने लगे जिसने अपने भाई बटवारे के
लिए दुनियाँ के लालों का खून पी लिया। यह कोई देश रक्षा की लड़ाई भी नहीं थी जिसमें हम संतोष कर लेते कि देश के हित में प्राण त्याग दिए हैं। इस खूनी राजा ने अपने ऐशो-आराम के लिए खून की नदी बहा दी। अब उस पर मौज कर रहा है। आगे संत सुदर्शन (सुपच) बता रहे हैं कि भीम ऐसे-2 करोड़ों प्राणी युद्ध की पीड़ा से पीड़ित हैं। उनकी हाय आपको चैन नहीं लेने देगी चाहे करोड़ यज्ञ करो। ऐसे दुष्ट अन्न को कौन खाए? यदि मुझे बुलाना चाहते हो तो मुझे पहले किए हुए सौ (100) यज्ञों का फल देने का संकल्प करो अर्थात् एक सौ यज्ञों का फल मुझे दो तब मैं आपके भोजन पाऊँ।
सुदर्शन जी के मुख से इस बात को सुन कर भीम ने बताया कि मैं बोला आप तो कमाल के व्यक्ति हो, सौ यज्ञों का फल मांग रहे हो। यह हमारी दूसरी यज्ञ है। आपको सौ का फल कैसे दें? इससे अच्छा तो आप मत आना। आपके बिना कौन सी यज्ञ सम्पूर्ण नहीं होगी। जब स्वयं भगवान कृष्ण जी हमारे साथ हैं। तो तेरे न आने से क्या यज्ञ पूर्ण नहीं होगा। सर्व वार्ता सुन कर श्री कृष्ण जी ने कहा भीम संतों के साथ ऐसा आपत्तिजनक व्यवहार नहीं करना चाहिए। सात समुद्रों का अंत पाया जा सकता है परंतु सतगुरु (कबीर साहेब) के संत का पार नहीं पा सकते। उस महात्मा सुदर्शन वाल्मिीकि के एक बाल के समान तीन लोक भी नहीं हैं। मेरे साथ चलो, उस परमपिता परमात्मा के प्यारे हंस को लाने के लिए। तब पाँचों पाण्डव व श्री कृष्ण भगवान सुपच सुदर्शन की झोंपड़ी की ओर रथ में बैठकर चले। एक योजन अर्थात् 12 किलोमीटर पहले रथ से उतरकर नंगे पैरों चले तथा रथ को खाली लेकर रथवान पीछे-पीछे चला।
उस समय स्वयं कबीर साहेब सुदर्शन सुपच का रूप बना कर झोपड़ी में बैठ गए व सुदर्शन को अपनी गुप्त प्रेरणा से मन में संकल्प उठा कर कहीं दूर के संत या भक्त से मिलने भेज दिया जिसमें आने व जाने में कई रोज लगने थे। तब सुदर्शन के रूप में सतगुरु की चमक व शक्ति देख कर सर्व पाण्डव बहुत प्रभावित हुए। स्वयं श्रीकृष्णजी ने लम्बी दण्डवत् प्रणाम की। तब देखा देखी सर्व पाण्डवों ने भी ऐसा ही किया। कृष्ण जी की तरफ नजर करके सुपच सुदर्शन ने आदर पूर्वक कहा कि हे त्रिभुवननाथ! आज इस दीन के द्वार पर कैसे? मेरा अहोभाग्य है कि आज दीनानाथ विश्वम्भरनाथ मुझ तुच्छ को दर्शन देने स्वयं चल कर आए हैं। सबको आदर पूर्वक बैठा दिया तथा आने का कारण पूछा। उस समय श्री कृष्ण जी ने कहा कि हे जानी-जान! आप सर्व गति (स्थिति) से परिचित हैं। पाण्डवों ने यज्ञ की है। वह आपके बिना सम्पूर्ण नहीं हो रही है। कृपा इन्हें कृतार्थ करें। उसी समय वहां उपस्थित भीम की ओर संकेत करते हुए सुदर्शन रूप धारी परमेश्वर जी ने कहा कि यह वीर मेरे पास आया था तथा अपनी मजबूरी से इसे अवगत करवाया था। उस समय श्री कृष्ण जी ने कहा कि हे पूर्णब्रह्म ! आपने स्वयं अपनी वाणी में कहा है कि :-
"संत मिलन को चालिए, तज माया अभिमान । जो-जो पग आगे धरै, सो सो यज्ञ समान।।"
आज पांचों पाण्डव राजा हैं तथा मैं स्वयं द्वारिकाधीश आपके दरबार में राजा होते हुए भी नंगे पैरों उपस्थित हूँ। अभिमान का नामों निशान भी नहीं है तथा स्वयं भीम ने भी खड़ा हो कर उस दिन कहे हुए अपशब्दों की चरणों में पड़ कर क्षमा याचना की। श्री कृष्ण जी ने कहा हे नाथ! आज यहाँ आपके दर्शनार्थ आए आपके छः सेवकों के कदमों के यज्ञ समान फल को स्वीकार करते हुए सौ आप रखो तथा शेष हम भिक्षुकों को दान दीजिए ताकि हमारा भी कल्याण हो। इतना आधीन भाव सर्व उपस्थित जनों में देख कर जगतगुरु साहेब करूणामय सुदर्शन रूप में अति प्रसन्न हुए।
कबीर, साधू भूखा भाव का, धन का भूखा नाहिं। जो कोई धन का भूखा, वो तो साधू नाहिं ।।
उठ कर उनके साथ चल पड़े। जब सुदर्शन जी यज्ञशाला में पहुँचे तो
चारों ओर एक से एक ऊँचे सुसज्जित आसनों पर विराजमान महा मण्डलेश्वर सुदर्शन जी के रूप व वेश (दोहरी धोती घुटनों से थोड़ी नीचे तक, छोटी-2 दाड़ी, सिर के बिखरे केश न बड़े न छोटे, टूटी-फूटी जूती। मैले से कपड़े, तेजोमय शरीर) को देखकर अपने मन में सोच रहे हैं कि ऐसे अपवित्र व्यक्ति से शंख सात जन्म भी नहीं बज सकता है। यह तो हमारे सामने ऐसे है जैसे सूर्य के सामने दीपक। श्रीकृष्ण जी ने स्वयं उस महात्मा का आसन अपने हाथों लगाया (बिछाया) क्योंकि श्री कृष्ण जी श्रेष्ठ आत्मा हैं। फिर द्रोपदी से कहा कि हे बहन ! सुदर्शन महात्मा जी आए हैं, भोजन तैयार करो। बहुत पहुँचे हुए संत हैं। द्रोपदी देख रही है कि संत लक्षण तो एक भी नहीं दिखाई देते हैं। यह तो एक दरिद्र गृहस्थी व्यक्ति है। न तो वस्त्र भगवां, न गले में माला, न तिलक, न सिर पर बड़ी जटा, न मुण्ड ही मुण्डवा रखा और न ही कोई चिमटा, झोली, कमण्डल लिए हुए था। श्री कृष्ण जी के कहते ही स्वादिष्ट भोजन कई प्रकार का बनाकर एक सुन्दर थाल (चांदी का) में परोस कर सुदर्शन जी के सामने रख कर द्रोपदी ने मन में विचार किया कि आज तो यह भक्त भोजन को खाएगा तो ऊँगली चाटता रह जाएगा। जिन्दगी में ऐसा भोजन कभी नहीं खाया होगा।
सुदर्शन जी ने नाना प्रकार के भोजन को थाली में इक्ट्ठा किया तथा खिचड़ी सी बनाई। उस समय द्रौपदी ने देखा कि इसने तो सारा भोजन (खीर, खांड, हलुवा, सब्जी, दही, दही-बड़े आदि) घोल कर एक कर लिया। तब मन में दुर्भावना पूर्वक विचार किया कि इस मूर्ख हब्शी ने तो खाना खाने का भी ज्ञान नहीं। यह काहे का संत? कैसा शंख बजाएगा। (क्योंकि खाना बनाने वाली स्त्री की यह भावना होती है कि मैं ऐसा स्वादिष्ट भोजन बनाऊँ कि खाने वाला मेरे भोजन की प्रशंसा कई जगह करे)। प्रत्येक बहन की यही आशा होती है।
वह बेचारी एक घंटे तक धुएँ से आँखें खराब करे और मेरे जैसा कह दे कि नमक तो है ही नहीं, तब उसका मन बहुत दुःखी होता है। इसलिए संत जैसा मिल जाए उसे खा कर सराहना ही करते हैं। यदि कोई न खा सके तो नमक कह कर 'संत' नहीं मांगता। संतों ने नमक का नाम राम-रस रखा हुआ है। कोई ज्यादा नमक खाने का अभ्यस्त हो तो कहेगा कि भईया रामरस लाना। घर वालों को पता ही न चले कि क्या मांग रहा है? क्योंकि सतसंग में सेवा में अन्य सेवक ही होते हैं। न ही भोजन बनाने वालों को दुःख हो। एक समय एक नया भक्त किसी सतसंग में पहली बार गया। उसमें किसी ने कहा कि भक्त जी रामरस लाना। दूसरे ने भी कहा कि रामरस लाना तथा थोड़ा रामरस अपनी हथेली पर रखवा लिया। उस नए भक्त ने खाना खा लिया था। परंतु पंक्ति में बैठा अन्य भक्तों के भोजन पाने का इंतजार कर रहा था कि इकट्ठे ही उठेंगे। यह भी एक औपचारिकता सतसंग में होती है। उसने सोचा रामरस कोई खास मीठा खाद्य पदार्थ होगा। यह सोच कर कहा मुझे भी रामरस देना। तब सेवक ने थोड़ा सा रामरस (नमक) उसके हाथ पर रख दिया। तब वह नया भक्त बोला ये के का��� कै लाना है, चौखा सा (ज्यादा) रखदे। तब उस सेवक ने दो तीन चमच्च रख दिया। उस नए भक्त ने उस बारीक नमक को कोई खास मीठा खाद्य प्रसाद समझ कर फांका मारा। तब चुपचाप उठा तथा बाहर जा कर कुल्ला किया। फिर किसी भक्त से पूछा रामरस किसे कहते हैं? तब उस भक्त ने बताया कि नमक को रामरस कहते हैं। तब वह नया भक्त कहने लगा कि मैं भी सोच रहा था कि कहें तो रामरस परंतु है बहुत खारा। फिर विचार आया कि हो सकता है नए भक्तों पर परमात्मा प्रसन्न नहीं हुए हों। इसलिए खारा लगता हो। मैं एक बार फिर कोशिश करता, अच्छा हुआ जो मैंने आपसे स्पष्ट कर लिया। फिर उसे बताया गया कि नमक को रामरस किस लिए कहते हैं?]
सुपच सुदर्शन जी ने थाली वाले मिले हुए उस सारे भोजन को पाँच ग्रास बना कर खा लिया। पाँच बार शंख ने आवाज की। उसके पश्चात् शंख ने आवाज नहीं की।
व्यंजन छतीसों परोसिया जहाँ द्रौपदी रानी। बिन आदर सतकार के, कही शंख न बानी।। पंच गिरासी वाल्मिीकि, पंचै बर बोले। आगे शंख पंचायन, कपाट न खोले ।। बोले कृष्ण महाबली, त्रिभुवन के साजा। बाल्मिक प्रसाद से, कण कण क्यों न बाजा ।। द्रोपदी सेती कृष्ण देव, जब पैसे भाखा। बाल्मिक के चरणों की, तेरे न अभिलाषा ।। प्रेम पंचायन भूख है, अन्न जग का खाजा। ऊँच नीच द्रोपदी कहा, शंख कण कण यूँ नहीं बाजा ।। बाल्मिक के चरणों की, लई द्रोपदी धारा। शंख पंचायन बाजीया, कण-कण झनकारा ।। युधिष्ठिर जी श्री कृष्ण जी के पास आए तथा कहा हे भगवन् ! आप की कृपा से शंख ने आवाज की है हमारा कार्य पूर्ण हुआ। श्री कृष्ण जी ने सोचा कि इन महात्मा सुदर्शन के भोजन खा लेने से भी शंख अखण्ड क्यों नहीं बजा? फिर अपनी दिव्य दृष्टि से देखा? तो पाया कि द्रोपदी के मन में दोष है जिस कारण से शंख ने अखण्ड आवाज नहीं की केवल पांच बार आवाज करके मौन हो गया है। श्री कृष्ण जी ने कहा युधिष्ठिर यह शंख बहुत देर तक बजना चाहिए तब यज्ञ पूर्ण होगी। युधिष्ठिर ने कहा भगवन्! अब कौन संत शेष है जिसे लाना होगा। श्री कृष्ण जी ने कहा युधिष्ठिर इस सुदर्शन संत से बढ़कर कोई भी सत्यभक्ति युक्त संत नहीं है। इसके एक बाल समान तीनों लोक भी नहीं हैं। अपने घर में ही दोष है उसे शुद्ध करते हैं। श्री कृष्ण जी ने द्रौपदी से कहा द्रौपदी, भोजन सब प्राणी अपने 2 घर पर रूखा-सूखा खा कर ही सोते हैं। आपने बढ़िया भोजन बना कर अपने मन में अभिमान पैदा कर लिया। बिना आदर सत्कार के किया हुआ धार्मिक अनुष्ठान (यज्ञ, हवन, पाठ) सफल नहीं होता। आपने इस साधारण से व्यक्ति को क्या समझ रखा है? यह पूर्णब्रह्म हैं। इसके एक बाल के समान तीनों लोक भी नहीं हैं। आपने अपने मन में इस महापुरुष के बारे में गलत विचार किए हैं उनसे आपका अन्तःकरण मैला (मलिन) हो गया है। इनके भोजन ग्रहण कर लेने से तो यह शंख की स्वर्ग तक आवाज जाती तथा सारा ब्रह्मण्ड गूंज उठता। यह केवल पांच बार बोला है। इसलिए कि आपका भ्रम दूर हो जाए क्योंकि और किसी ऋषि के भोजन पाने से तो यह टस से मस भी नहीं हुआ। आप अपना मन साफ करके इन्हें पूर्ण परमात्मा समझकर इनके चरणों को धो कर पीओ, ताकि तेरे हृदय का मैल (पाप) साफ हो जाए।
उसी समय द्रौपदी ने अपनी गलती को स्वीकार करते हुए संत से क्षमा याचना की और सुपच सुदर्शन के चरण अपने हाथों धो कर चरणामृत बनाया। रज भरे (धूलि युक्त) जल को पीने लगी। जब आधा पी लिया तब भगवान कृष्ण जी ने कहा द्रौपदी कुछ अमृत मुझे भी दे दो ताकि मेरा भी कल्याण हो। यह कह कर कृष्ण जी ने द्रौपदी से आधा बचा हुआ चरणामृत पीया। उसी समय वही पंचायन शंख इतने जोरदार आवाज से बजा कि स्वर्ग तक ध्वनि सुनि। तब पाण्डवों की वह यज्ञ सफल हुई।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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Punhana विधानसभा सीट पर चचेरे भाई आमने-सामने, बीजेपी ने मुस्लिम प्रत्याशी Ejaz Khan को दिया टिकट
भारतीय जनता पार्टी ने मंगलवार को हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए 21 उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी कर दी है। जिसमें बीजेपी ने एक बार फिर से दो मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव खेला है। पार्टी ने फिरोजपुर झिरका से नसीम अहमद और पुन्हाना से एजाज खान को टिकट दिया है। पिछली बार चुनाव लड़ने वाले जाकिर हुसैन की जगह संजय सिंह को नूंह सीट से उम्मीदवार बनाया है। मेवात इलाके की मुस्लिम बहुल तीन विधानसभा सीटों…
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चीन-भारत दोस्ती
टैगोर के मार्ग को पुनः अपनाना - हजारों वर्षों से मित्रता की निरंतर राह पर चलना। सौ साल पहले, जब रवीन्द्रनाथ टैगोर ने पहली बार चीन पर कदम रखा था तो उन्होंने भावुक होकर कहा था, "मैं दूर से आया हुआ मेहमान नहीं हूं, बल्कि एक भाई हूं जो लंबी अनुपस्थिति से लौटा है।" अपनी चीन यात्रा से लौटने के बाद, उन्होंने चीन-भारत मित्रता को मजबूत करने की "अतीत में लुप्त हो चुकी प्राचीन शपथ" को हमेशा ध्यान में रखा और भारत में आधुनिक चीनी अध्ययन के अग्रणी, भारतीय अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के चाइना कॉलेज की स्थापना के लिए अथक प्रयास किया। , और चीन-भारत मित्रता के दूत तैयार करें। 2014 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत की राजकीय यात्रा के दौरान, "शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व मैत्री पुरस्कार के पांच सिद्धांतों" के पहले बैच को चीन के हित में अकादमी की निरंतर खोज और निस्वार्थ योगदान की मान्यता में चीन अकादमी के डीन को विशेष रूप से सम्मानित किया गया था- पिछले दशकों में भारत की मित्रता। टैगोर की यात्रा न केवल "दोस्ती की यात्रा" है, बल्कि दो हजार साल के अच्छे पड़ोसी संबंधों का प्रतीक भी है, यह चीन और भारत के बीच मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान के इतिहास में एक मील का पत्थर और एक नया प्रारंभिक बिंदु है।
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गरीब भाई का रक्षाबंधन
Narration : अमित की दो बहने थी जिनकी शादी वह बहुत ही अच्छे से करना चाहता था इसी सिलसिले में अमित की पत्नी मीरा उससे कहती है ।
मीरा : आपको नही लता अब आपकी बहनों की शादी करवा देना चाहिए ।
अमीत : हां मीरा मैं भी यही सोच रहा था, उनकी पढ़ाई भी पूरी हो गई हैं ।
मीरा : आप कहो तो मैं कुछ जगह उनके लिए लड़के तलाशना शुरू करू ??
अमीत: हां तुम देखना शुरू कर दो !
मीरा : अजी क्या मैं एक बार आपकी बहनों से भी इस बारे में बात करू ?
अमीत : अगर ऐसा है तो मैं खुद बात करके देखता हूं ।
मीरा : ठीक हैं जी ।
Narration : तभी वहां पर अमीत की दोनों बहने आ जाती हैं और कहती हैं !
कोमल : अरे क्या बात हो रही है कोई हमें भी तो बताये ??
अमीत : कुछ ख़ास नहीं ये बताओ तुम दोनों का आज कॉलेज में लास्ट डे था तो सब कैसा रहा ??
सुनीता : सब कुछ बिलकुल ठीक रहा भैया !
अमीत : चलो ये तो बहुत ही अछि बात है की मेरी दोनों बहनों की पढाई पूरी हो गई हैं !
कोमल : भैया हमें ना कुछ पैसे चाहिए थे !
अमीत : पैसे किसलिए ?
कोमल : भैया रक्षा बंधन आ रहा हैं इसलिए हमें शौपिंग करनी हैं !
सुनीता : हां भैया दे दीजिये ना !
अमीत : ठीक हैं मेरा इन्हें जितने पैसे चाहिए दे देना और तुम भी इनके साथ चली जाना शूपिंग पर !
सुनीता : अरे भैया हम अपने दोस्तों के साथ जा रहे हैं और अगर भाभी हमारे साथ जाएगी तो खामखा परेशान हो जाएगी !
मीरा : हां जाने दीजिये इन्हें अपने दोस्तों के साथ मैं आपके साथ जा कर शोपिंग करने चली जाउंगी !
अमीत : ना बाबा ना तुम्हारे साथ शौपिंग पर जाना मतलब अपना दिमाग ख़राब करना उम एक घंटा लगा देती हो एक ही कपडे को खरीदने के लिए !
मीरा : ज्यादा मत कहिये वरना आज रात आपको खाना नहीं मिलेगा !
कोमल : अरे भाभी भैया मजाक कर रहे हैं !
Narration : अमीत का परिवार एक हस्त खेलता परिवार था जहाँ सब के मन में एक दुसरे के लिए बहुत प्यार था !अमित की दोनों बहने जब शोपिंग के लिए जाती हैं तो उनके साथ दो लड़के होते हैं जिन्हें मीरा देख लेती हैं लेकिन उस वक्त मीरा उन दोनों से कुछ नहीं कहती अगले दिन रक्षाबंधन के दिन अमीत की बहने उसे राखी बांधती हैं !
कोमल : चलो भैया जल्दी से मेरा नेक निकालिए !
सुनीता : हां भैया मेरा भी गिफ्ट दीजिये !
अमित: हां हां क्यों नहीं मेरी प्यारी बहन यह लो तुम दोनों के लिए शगुन के ₹10 रुपए
मीरा : सच में मैने आज के जमाने में आज तक ऐसी बहनें नहीं देखी जो आज भी अपने भाई से रक्षाबंधन पर शगुन की सिर्फ और सिर्फ ₹10 लेती हैं भगवान ऐसी बहनें सबको दे.
कोमल : भाभी आप तो जानती हैं हमारे माता-पिता के निधन के बाद अमित भैया ने ही हमें दुनिया की हर खुशी दी मां बाप का प्यार दिया हमारे लिए तो रक्षाबंधन का सबसे बड़ा तोहफा हमारे भाई ही है।
सुनीता : हां भाभी हमें हमारे भैया के अलावा उनसे कुछ नहीं चाहिए वो बस जिंदगी भर हमसे ऐसे ही प्यार करते रहें।
अमित : मैं बहुत खुशकिस्मत हूं कि मुझे तुम जैसी बहनें मिली है और हां मुझे तुमसे एक जरूरी बात करनी थी मैंने तुम्हारे लिए लड़के देखे हैं और मैं चाहता हूं कि तुम उनसे शादी करके अपना खुशहाल जीवन व्यतीत करो। करो तो तुम्हें मेरे इस फैसले से कोई प्रॉब्लम तो नहीं है ना??
मीरा : सुनिए जी मुझे आपसे कुछ बात करनी है।
अमित : अभी रुको थोड़ी देर में बात करते हैं।
मीरा : लेकिन यह बात कोमल और सुनीता से जुड़ी हुई है ।
अमित : अच्छा ठीक है ।
Narration - मेरा और अमित दोनों कमरे से बाहर आते हैं और मेरा एक दिन पहले कोई घटना के बारे में अमित को बताती है और कहती है।
मीरा : सुनिए जी अच्छा होगा कि हम एक बार सुनीता और कोमल से उनकी पसंद के बारे में पूछ ले कहीं ऐसा ना हो आप अपनी मर्जी से उनकी शादी करवा दो और वह जिंदगी भर अफसोस करती रहे.
अमित : शायद तुम ठीक कहती हो वैसे भी जिंदगी उन दोनों को गुजारनी है और वह किसके साथ अपनी जिंदगी गुजारना चाहती है इसका फैसला भी उन्हें करना चाहिए चलो उनसे बात करते हैं.
Narration;- अमित जब अपनी दोनों बहनों से उनकी पसंद के बारे में पूछता है तो दोनों ही अपनी पसंद के बारे में अमित को बताती है और अमित अपनी बहनों का रिश्ता लेकर उन दोनों लड़कों के घर जाता है जो की बहुत ही अमीर थे लड़का और लड़की की रजामंदी की वजह से दोनों के घरवाले इस शादी के लिए मान जाते हैं। और कुछ दिनों बाद अमित की दोनों बहनों की शादी हो जाती है । शादी के कुछ महीनो बाद अमित की बहन कोमल और सुमन उसके घर आती है।
सुनिता: ये घर कितना छोटा लग रहा है ना ??
कोमल : हा सच कह रही हो असल में भाभी हमारा रूम इस घर से भी बहुत बड़ा है न इसलीये हमे आदत नही है इतने छोटे घर की ।
सुनीता : भैया आपको अब एक बड़ा घर ले लेना चाहिए इतने से घर में कैसे गुजारा कर लेते हो ।
अमित : हमे बचपन से इतने छोटे घर की ही आदत हैं और हमारे लिए इतना ही काफी है ।
Narration:- कुछ देर बाद रात हो जाती है और रात के वक्त कोमल और सुनीता को गर्मी लगती है और वह कहती है।
कोमल: हे भगवान कितनी गर्मी लग रही है।
सुनीता : हां सच में यहां पर बहुत गर्मी है भैया भी न क्या एक ऐसी नहीं लगवा सकते थे इस घर में।
कोमल : हा उन्हे पता है की हमारे घर के हर एक रूम में ऐसी लगी हुई है हमें गर्मी की बिल्कुल भी आदत नहीं है फिर भी वो इस कमरे में ऐसी नहीं लगवा सकते मुझसे गर्मी और नहीं झेली जा रही तुम देवर जी को कॉल करो वो हमें यहां से आकर ले जाएंगे।
मीरा : ��्या हुआ कोमल सुनीता ये शोर कैसा था??
सुनीता : भाभी जब आपको पता है क��� हमारी ससुराल में हर कमरे में ऐसी लगी हुई है हमें गर्मी की बिल्कुल भी आदत नहीं है फिर आप एक कमरे में ऐसी नहीं लगवा सकते थे क्या गर्मी से हमारा हाल बेहाल हुआ जा रहा है।
मीरा : लेकिन सुनीता शादी से पहले भी तुम इसी घर में रहती थी और वो भी बिना एक के तब तो तुम्हें कभी गर्मी नहीं लगी.
सुनीता ; तब की बात अलग थी भाभी अबकी बात अलग है अब हमारी एक बड़े अमीर खानदान में शादी हुई है और हमारा एक महल जैसा ससुराल है तो भला हमें ऐसी के बिना नींद कैसे आएगी इतना तो भैया को भी सोचना चाहिए ना ।
मीरा ; तुम्हारे ससुराल वाले जरूर अमीर होंगे लेकिन मेरा पति गरीब है इसलिए हमारी इतनी हैसियत नहीं है कि हम ऐसी लगवा सके।
कोमल : तो क्या आप हमें ताने दे रही हैं भाभी ठीक है तो हम और एक मिनट भी इस घर में नहीं रह सकते चलो सुनीता।
अमित: अरे क्या बात है मीरा इतना शोर क्यों हो रहा है और तुम दोनो कहा जा रही हो ।
सुनीता : अब हम इस घर में एक मिनट भी नहीं रुकना चाहते आप अपनी पत्नी से ही पूछ लीजिए हम जा रहे है ।
Narration :- इतना कह कर सुनीता और कोमल अपने ससुराल चली जाती है और ये देख अमित को बहुत दुख होता हैं। अगले साल रक्षाबंधन के दिन उसकी दोनो बहने अपने भाई के घर आती है जहां दोनो ही उसके लिए सोने की राखी लाती है और नेक में अमित उन्हे वही 10 रुपए देता है ।
कोमल : ये क्या भैया हमने आपको सोने की राखी बांधी है और आप हमे बस दस रूपय दे रहे है ??
मीरा: ये तुम क्या कह रही हो कोमल तुम इन सगुन के रूपयो की तुलना इस सोने से कर रही हो पहले तो तुम्हे ये दस रुपए बेमोल लगते थे अब क्या हुआ ??
सुनीता : आप भी क्या बात कर रही है भाभी ये अब तो बकवास बाते है आप ही बताइए अगर हमारे ससुराल में हमारे पति और सास हमसे पूछेगी की हमे नेक में क्या मिला है तो हम उन्हे क्या जवाब देंगे ??
अमित: अच्छा तो अब मेरी बहनों को अपने गरीब भाई के नेक की वजह से शर्म आयेगी ठीक हैं मैं तुम्हारा सर झुकाने नही दूंगा ।मीरा जाओ घर में जो पैसे रखे है वो लेकर आओ ।
मीरा : लेकिन वो पैसे तो ।
अमित : लेकर आओ ।
Narration;- अमित अपनी बहनों को दस दस हजार रूपए दे देता है और कहता है ।
अमित: अब शायद तुम्हारा तुम्हारे ससुराल में मेरी वजह से सर ना झुके ।
कोमल: भैया आप तो बस हमेशा हमे नीचा दिखाने के बारे में ही सोचते रहते हो ।
सुनीता ; हा और आप हमेशा ही अपनी गरीबी का ढोंग करते जो सच बात तो ये है की आप दोनो से हमारी खुशी और अमीरी देखी नही जाती ।
कोमल : आज के बाद हम इस घर में कदम भी नही रखिए और चाहे जो हो जाए आपसे बात नही करेगे ।
Narration;- कोमल और सुनीता पर अब भी इन चीजों का कोई असर नहीं पड़ता कुछ दिन बाद अमित को लॉटरी लगाने का शोक था और एक दिन उसकी लॉटरी खुल जाती है जिसमे उसे 50 लाख का इनाम मिलता है और वह अमीर हो जाता है वही दूसरी और कोमल और सुनीता के पति को बिजनेस में बहुत बड़ा नुकसान होता है और सारे पैसे जाने के बाद उनके परिवार वाले भी उन्हें घर से निकाल देते है और अमित की दोनो बहने सर झुकाए अपने भाई के घर अपने पतियों के साथ आती हैं ।
अमित: और क्या हुआ तुम दोनो को तुम इस हालत में यहां कैसे ??
Narration:- अमित के पूछने पर दोनो बहने सब उसे पूरी बात बताती है और ये सब सुनने के बाद अमित कहता है ।
अमित: पैसा तो हाथ की धूल होता है उसके आने या जाने से किसी को फर्क नही पढ़ना चाहिए और तुम तो मेरी बहन हो ये सब तुम्हारा ही तो हैं जब तक सब ठीक नही होता तब तक तुम यही रहोगे ।
कोमल।: हमे माफ कर दीजिए भैया हमने पैसों के लालच में आपके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया ।
सुनीता : हा भैया और जब वो पैसा चला गया आप तब भी हमारी सारी गलतियों को माफ करके हमारा सहारा बन रहे हो हम आपके बहुत आभारी है।
अमित: अरे पगली ऐसा कुछ नही है तुम दोनो मेरी बहन हो और तुम्हारी हर जरूरत पूरी करना मेरा फर्ज है ।
Narration;- अमित की दोनो बहने फिर से अपने भाई के साथ खुशी खुशी रहती है और अमित उन दोनो के पति को आपके ही साथ काम पर रख लेता है और सभी खुशी खुशी अपना जीवन बिताते है ।
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राखी बांधने की प्रथा की सर्वप्रथम शुरूआत किसने की
राखी बांधने की प्रथा की सर्वप्रथम शुरूआत किसने की, कब और कैसे शुरू हुई यह परंपरा
सावन के महीने के अंतिम दिन यानी सावन माह की पूर्णिमा तिथि रक्षाबंधन का त्योंहार मनाया जाता है. रक्षाबंधन का त्योंहार भाई-बहनों के बीच अटूट प्यार को दर्शाता है. रक्षाबंधन यानी रक्षा का बंधन. राखी के दिन बहनें पूजा करके भाइयों की कलाइयों पर राखी बांधकर उनके लिए मंगल कामना करती हैं. वहीं भाई अपनी बहनों को रक्षां करने का वादा करते हैं।
इस साल रक्षाबंधन का पर्व 19 अगस्त 2024, सोमवार के दिन मनाया जाएगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि रक्षाबंधन मनाने की शुरुआत कब और कैसे हुई. साथ ही सबसे पहले किसने किसे राखी बांधी थी?
रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम का उत्सव है. यह पर्व अपने भाई की कलाई पर धागा बांधने और उपहार देने से कहीं अधिक है. यह आपकी गहरी भावनाओं को व्यक्त करने और कभी ना टूटने वाले बंधन का उत्सव मनाने का प्रतीक है. भारत में एक पारंपरिक हिंदू त्योहार, रक्षाबंधन, भाई-बहनों के रिश्ते को याद करता है. ये उत्सव, जैविक संबंधों से बाहर, वैश्विक एकता के भारतीय मूल्य (वसुधैव कुटुंबकम) का प्रतीक है, जिसका मतलब है कि पूरी दुनिया एक परिवार है।
क्या आप जानते हैं कि रक्षाबंधन पौराणिक काल से पहले ही मनाया जाता था? ऐसा माना जाता है कि इस उत्सव की शुरुआत सतयुग में हुई थी और मां लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षासूत्र बांधकर इस परंपरा का शुभारंभ किया। रक्षाबंधन की शुरुआत को लेकर बहुत सी कहानियां और पौराणिक मान्यताएं भी प्रचलित हैं.
रक्षाबंधन का इतिहास
रक्षा बंधन का त्यौहार भाई-बहन के प्यार और भाइयों द्वारा बहनों की रक्षा का प्रतीक है. इस दिन बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं और उनकी लंबी आयु की कामना करती हैं. इस दिन भाई बहनों की रक्षा करने का वचन लेते हैं।
1. इंद्र और इंद्राणि की कथा
भविष्य पुराण में इंद्र देवता की पत्नी शुचि ने उन्हें राखी बांधी थी. एक बार देवराज इंद्र और दानवों के बीच एक भयानक युद्ध हुआ था. दानव जीतने लगे तो देवराज इंद्र की पत्नी शुचि ने गुरु बृहस्पति से कहा कि वे देवराज इंद्र की कलाई पर एक रक्षासूत्र बांध दें. तब इंद्र ने इस रक्षासूत्र से अपने और अपनी सेना को बचाया. वहीं, एक और कहानी के अनुसार, राजा इंद्र और राक्षसों के बीच एक क्रूर युद्ध हुआ, जिसमें इंद्र पराजित हो गए. इंद्र की पत्नी ने गुरु बृहस्पति से कहा कि शुचि इंद्र की कलाई पर एक रक्षा सूत्र बांध दे. राजा इंद्र ने इस रक्षा सूत्र से ही राक्षसों को हराया था. रक्षाबंधन का त्यौहार तब से मनाया जाता था।
2. राजा बलि को मां लक्ष्मी ने बांधी थी राखी
राजा बली का दानधर्म इतिहास में सबसे महान है. एक बार मां लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर भगवान विष्णु से बदला मांगा. कहा जाता है कि राजा बलि ने एक बार एक यज्ञ किया. तब भगवान विष्णु ने वामनावतार लेकर दानवीर राजा बलि से तीन पग जमीन मांगी. श्रीहरि ने वामनावतार ने दो पग में पूरी धरती और आकाश को नाप लिया. राजा बलि ने समझा कि भगवान विष्णु स्वयं उनकी जांच कर रहे हैं. उन्होंने तीसरा पग रखने के लिए भगवान के सामने अपना सिर आगे कर दिया।
फिर उन्होंने प्रभु से कहा कि अब मेरा सब कुछ चला गया है, कृपया मेरी विनती सुनें और मेरे साथ पाताल में रहो. भक्त भी भगवान को बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए. यह जानकर देवी लक्ष्मी ने गरीब महिला के रूप में राजा बलि के पास गई और उन्हें राखी बांधी. फिर राजा बलि ने कहा- मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं है. इसके बाद देवी लक्ष्मी अपने असली स्वरूप में आ गई. देवी ने राजा से कहा- आपके पास भगवान विष्णु है और मुझे वहीं चाहिए. राजा बलि ने भगवान विष्णु को हर साल चार माह पाताल लोक में रहने के लिए कहा. इसलिए चार महीने चतुर्मास का समय होता है जब विष्णु जी चार माह के लिए विश्राम पर होते है. यही चार महीने का समय चातुर्मास कहे जाते हैं।
महाभारत में द्रौपदी ने कृष्ण को बांधी राखी
शिशुपाल भी इंद्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ में उपस्थित था. जब शिशुपाल ने श्रीकृष्ण का अपमान किया, तो श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल को मार डाला. लौटते समय कृष्णजी की छोटी उंगली सुदर्शन चक्र से घायल हो गई और रक्त बहने लगा. तब द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की उंगली पर अपनी साड़ी का पल्लू बांधा. तब श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि वह इस रक्षा सूत्र को पूरा करेंगे. जब द्रौपदी को कौरवों ने चीरहरण किया, तो श्रीकृष्ण ने चीर बढ़ाकर द्रौपदी की रक्षा की. मान्यता है कि श्रावण पूर्णिमा का दिन था जब द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की उंगली पर साड़ी का पल्लू बांधा था।
यमराज और यमुना की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमुना मृत्यु के देवता यमराज को अपना भाई मानती थी. एक बार यमुना ने अपने छोटे भाई यमराज को लंबी उम्र देने के लिए रक्षासूत्र बांधा था. इसके बदले में यमराज ने यमुना को अमर होने का वरदान दे दिया. प्राण हरने वाले देवता ने अपनी बहन को कभी न मरने का वरदान दिया. तभी से यह परंपरा हर श्रावण पूर्णिमा को निभाई जाती है. मान्यता है कि जो भाई रक्षा बंधन के दिन अपनी बहन से राखी बंधवाते हैं, यमराज उनकी रक्षा करते हैं।
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* अन्य उदाहरण:-
लेखक (रामपाल दास) द्वारा श्राद्ध भ्रम खण्डन" "
"सत्य कथा"
मेरे पूज्य गुरुदेव स्वामी रामदेवानन्द जी गाँव-बड़ा पैतावास, तहसील-चरखी दादरी, जिला-भिवानी (प्रान्त-हरियाणा) के निवासी थे जो लगभग सोलह वर्ष की आयु में पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति के लिए अचानक घर त्याग कर निकल गए। प्रतिदिन पहनने वाले वस्त्रों को अपने ही खेतों के निकट घने जंगल में किसी मृत पशु की अस्थियों के पास डाल गए। शाम को घर न पहुँचने के कारण घर वालों ने जंगल में तलाश की। रात्रि का समय था। कपडे पहचान कर दुःखी मन से पशु की अस्थियों को बच्चे की अस्थियाँ जान कर उठा लाए तथा यह सोचा कि बच्चा जंगल में चला गया, किसी हिंसक जानवर ने खा लिया। अन्तिम संस्कार कर दिया। सर्व क्रियाएँ की, तेरहवीं बरसौदी (वर्षी) आदि की तथा श्राद्ध भी निकालते रहे।
लगभग 104 वर्ष की आयु प्राप्त होने के उपरान्त स्वामी जी अचानक अपने गाँव बड़ा पैंतावास जिला भिवानी, तहसील-चरखी दादरी, हरियाणा में पहुँच गए। स्वामी जी का बचपन का नाम श्री हरिद्वारी जी था तथा पवित्र ब्राह्मण में जन्म था। मुझ दास को पता चला तो में भी दर्शनार्थ पहुँच गया। स्वामी जी की भाभी जी जो लगभग 92 वर्ष की आयु की थी। मैंने उस वृद्धा से पूछा कि हमारे गुरु जी के घर त्याग जाने के उपरान्त क्या जब कभी फसल अच्छी नहीं होती या कोई घर का सदस्य बीमार हो जाता तो अपने पुरोहित (गुरु जी) से कारण पूछते तो वह कहा करता कि हरद्वारी पित्तर बना है, वह तुम्हें दुःखी कर रहा है।
श्राद्धों के निकालने में कोई अशुद्धि रही है। अब की बार सर्व क्रिया मैं स्वयं अपने हाथों से करूँगा। पहले मुझे समय नहीं मिला था क्योंकि एक ही दिन में कई जगह श्राद्ध क्रियाएँ करने जाना पड़ा। इसलिए बच्चे को भेजा था। तब तक कुछ भेंट चढ़ाओ ताकि उसे शान्त किया जाए। तब उसे 21 या 51 रूपये जो भी कहता था, डरते भेंट करते थे। फिर श्राद्धों के समय गुरु जी स्वयं श्राद्ध करते थे। तब म��ंने कहा माता जी अब तो छोड़ दो इस गीता जी विरुद्ध साधना को, नहीं तो आप भी प्रेत बनोगी।
गीता अध्याय 9 श्लोक 25 सुनाया। तब वह वृद्धा कहने लगी गीता जी मैं भी पढती हूँ। दास ने कहा आपने पढ़ा है, समझा नहीं। आगे से तो बन्द कर दो इस साधना को। वृद्धा ने उत्तर दिया न भाई, कैसे छोड़ दें श्राद्ध निकालना, यह तो सदियों पुरानी (लाग) परम्परा है। हे पाठको! यह दोष भोली आत्माओं का नहीं है। यह दोष मूर्ख गुरुओं (नीम हकीमों) का है जिन्होंने अपने पवित्र शास्त्रों को समझे बिना मनमाना आचरण (पूजा का मार्ग) बता दिया। जिस कारण न तो कोई कार्य सिद्ध होता है, न परमगति तथा न कोई सुख ही प्राप्त होता है। (प्रमाण पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24) शंका
प्रश्न 44: यदि किसी के माता-पिता भूखे हों, वे दिखाई देकर कहें तो वह पुत्र नहीं जो उनकी इच्छा पूरी न करे। *
उत्तर शंका समाधान यदि किसी का बच्चा कुएं में गिरा हो वह तो चिल्लाएगा कि मुझे बचा लो। पिता जी आ जाओ। मैं मर रहा हूँ। वह पिता मूर्ख होगा जो भावुक होकर कूएं में छलाँग लगाकर बच्चे को बचाने की कोशिश करके स्वयं भी डूबकर मर जाएगा। बच्चे को भी नही बचा पाएगा। उसको चाहिए कि लम्बी रस्सी का प्रबन्ध करे। फिर उस कुएं में छोड़े। बच्चा उसे पकड़ ले। फिर बाहर खींचकर बच्चे को कुएं से निकाले।
इसी प्रकार पूर्वज तो शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण (पूजा) करके पित्तर बन चुके हैं। संतान को भी पित्तर बनाने के लिए पुकार रहे हैं। तत्वज्ञान को समझकर अपना कल्याण करवाएँ तथा मुझ दास (रामपाल दास) के पास परमेश्वर कबीर बंदी छोड़ जी की प्रदान की हुई वह विधि है जो साधक का तो कल्याण करेगी ही, उसके पित्तरों की भी पित्तर योनि छूटकर मानव जन्म प्राप्त होगा तथा भक्ति युग में जन्म होकर सत्य भक्ति करके एक या दो जन्म में पूर्ण मोक्ष प्राप्त करेगें।
* विचार करें: जैसा कि उपरोक्त रूची ऋषि की कथा में पित्तर डर रहे हैं कि यदि हमारे श्राद्ध नहीं किए गए तो हम पतन को प्राप्त होगें अर्थात् हमारा पतन (मृत्यु) हो जाएगा। अब उनको पित्तर योनि जो अत्यंत कष्टमय है, अच्छी लग रही है। उसे त्यागना नहीं चाह रहे।
यह तो वही कहानी वाली बात है कि "एक समय एक ऋषि को अपने भविष्य के जन्म का ज्ञान हुआ। उसने अपने पुत्रों को बताया कि मेरा अगला जन्म अमूक व्यक्ति के घर एक सूअरी से होगा। मैं सूअर का जन्म पाऊंगा। उस सूअरी के गले में गांठ है। यह उसकी पहचान है। उसके उदर से मेरा जन्म होगा। मेरी पहचान यह होगी कि मेरे सिर पर गांठ होगी जो दूर से दिखाई देगी। मेरे बच्चो ! उस व्यक्ति से मुझे मोल ले लेना तथा मुझे मार देना, मेरी गति कर देना।
बच्चों ने कहा बहुत अच्छा पिता जी। ऋषि ने फिर आँखों में पानी भरकर कहा कि बच्चो! कहीं लालचवश मुझे मोल न लो और मुझे तुम मारो नहीं, यह कार्य तुम अवश्य करना, नहीं तो मैं सूअर योनि में महाकष्ट उठाऊंगा। बच्चों ने पूर्ण विश्वास दिलाया।
उसके पश्चात् कुछ दिनों में उस ऋषि का देहांत हो गया। उसी व्यक्ति के घर पर उसी गले में गांठ वाली सूअरी के वहीं सिर पर गांठ वाला बच्चा भी अन्य बच्चों के साथ उत्पन्न हुआ। उस ऋषि के बच्चों ने वह सूअरी का बच्चा मोल ले लिया। तब उसे मारने लगे। उसी समय वह बच्चा बोला, बेटा! मुझे मत मारो। मेरा जीवन नष्ट करके तुम्हें क्या मिलेगा?
तब उस ऋषि के पूर्व जन्म के बेटों ने कहा, पिता जी! आपने ही तो कहा था। तब वह सूअर के बच्चे रूप में ऋषि बोला कि मैं आपके सामने हाथ जोड़ता हूँ। मुझे मत मारो, मेरे भाईयों (अन्य सूअर के बच्चों) के साथ मेरा दिल लगा है। मुझे बख्श दो। बच्चों ने वह बच्चा छोड़ दिया, मारा नहीं।
इस प्रकार यह जीव जिस भी योनि में उत्पन्न हो जाता है, उसे त्यागना नहीं चाहता। जबकि यह शरीर एक दिन सर्व का जाएगा। इसलिए भावुकता में न बहकर विवेक से कार्य करना चाहिए। यह दास (रामपाल दास) जो साधना बताएगा, उससे आम के आम और गुठलियों के दाम भी मिलेगें।
इसी विष्णु पुराण में तृतीय अंश के अध्याय 15 श्लोक 55-56 पृष्ठ 213 पर लिखा है कि " (और्व ऋषि सगर राजा को बता रहा है)" हे राजन् श्राद्ध करने वाले पुरूष से पित्तरगण, विश्वदेव गण आदि सर्व संतुष्ट हो जाते हैं। हे भूपाल ! पित्तरगण का आधार चन्द्रमा है और चन्द्रमा का आधार योग (शास्त्रअनुकूल भक्ति) है। इसलिए श्राद्ध में योगी जन (तत्व ज्ञान अनुसार शास्त्रविधि अनुसार साधक जन) को अवश्य बुलाए यदि श्राद्ध में एक हजार ब्राह्मण भोजन कर रहे हों उनके सामने एक योगी (शास्त्रअनुकूल साधक) भी हो तो वह उन एक हजार ब्राह्मणों का भी उद्धार कर देता है तथा यजमान का भी उद्धार कर देता है। (पित्तरों का उद्धार का अर्थ है कि पित्तरों की योनि छूटकर मानव शरीर मिलेगा। यजमान तथा ब्राह्मणों के उद्धार से तात्पर्य यह है कि उनको सत्य साधना का उपदेश करके मोक्ष का अधिकारी बनाएगा) पेश है प्रमाण के लिए श्री विष्णु पुराण के तृतीय अंश के अध्याय 15 श्लोक 55-56 की फोटोकॉपी :- अ० १५]
* तीसरा अंश १५३
हे भूपाल। पितृगणका आधार चन्द्रमा है और चन्द्रमाका आधार योग है, इसलिये श्राद्धमें योगिजनको नियुक्त करना अति उत्तम है॥ ५५ ॥ हे राजन् । यदि श्राद्धभोजी एक सहस्र ब्राह्मणोंके सम्मुख एक योगी भी हो तो वह यजमानके सहित उन सबका उद्धार कर देता है ॥ ५६ ॥
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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Day☛1350✍️+91/CG11☛Lewai☛07/07/24 (Sun) ☛ 21:15
आज ससुराल आ गया हूं, वैसे तो कल आने का प्रोग्राम था किंतु अति आवश्यक होने पर आज आ गया,15 दिन पहले आज ही दिन यानि के 23 जून को यहां मंडप आच्छादित हो रही थी, साली की आज ही के दिन मण्डप थी। समय चक्र कितनी तेज है, कब क्या गुजर जाए या कोई दिन आ जाए पता ही नहीं चलता है। शादी में शामिल होने कई सारे रिश्तेदार आए थे, आज वही जगह वही घर सुना सुना लग रहा है।
भाई साहब अकेला घर में होगा, दो दिन बाद पुनः एक साथ सब लोग होंगे। जब यहां पहुंचा तो बेटू मेरे पास नही आई 😊... अपने नाना के गोदी में बैठी हुई थी, बाद में मेरे पास आई 🥰😊.... बच्चें बहुत दिनों बाद मिलने से अपनों को भी देर से पहचानते हैं। आसमान साफ है, बारिश होने की कोई संभावना नही है, लेकीन यहां गांव में बिजली की बहुत किल्लत है, हर घण्टे बिजली गुल होती हैं, चूंकि बरसात का सीजन है तो कीट पतंगे भी रोशनी में आकर्षित होते हैं। एक बात है जी यहां खुला वातावरण मिलता है, जिससे स्वास्थ्य ठीक रहता। इस बार ज्यादा दिनों तक नहीं रुकेंगे दो तीन बाद वापस लौट जायेंगे...
ये हैं मिस्टर बेचारा 🥰😊
ससुराल जाने से पहले......🤣
Okay good night 🌃
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Jamshedpur murder - आजादनगर में सब्जी विक्रेता को भाई ने मारकर मौत के घाट उतारा, दो गिरफ्तार, देखिए - video
जमशेदपुर : कपाली में 17 जून की दर्दनाक घटना जिसमें सगे भाई ने अपने बेटों संग भाई को बेरहमी से मौत के घाट उतारा था. एक बार फिर उस तरह के कांड को दोहराया गया है. जहां एक भाई ने अपने ही सगे भाई की जान ले ली है. मामला आजादनगर थाना अंतर्गत ओल्ड पुरुलिया रोड अमर ज्योति स्कूल के पास की है. जहां सब्जी विक्रेता इसरार को उसके अपने भाई इकरार और भतीजे ने मिलकर इस कदर मारा की इसरार की मौत हो गई. दोनों भाई अमर…
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हिमांशु भाऊ या नीरज बवाना, कौन-किसपर भारी? दुश्मनी में बदली दोस्ती... ये है दोनों की क्राइम कुंडली
नई दिल्ली: मैं नीरज बवाना, अपनी लाइफ की पहली पोस्ट डाल रहा हूं। आप सभी से मैं ये बताना चाहता हूं कि , उसके गैंग या उसके किसी आदमी से मेरा कोई लेना देना नहीं है...। सोमवार को सोशल मीडिया पर कुख्यात गैंगस्टर के नाम से ये पोस्ट वायरल हुई तो अंडरवर्ल्ड की दुनिया में तहलका मच गया। दो गैंगस्टर, जो कल तक एक-दूसरे के साथ थे, जिगरी यार थे... अब अलग हो चुके हैं। हालांकि, ये पोस्ट नीरज बवाना ने ही लिखी है, इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई लेकिन अगर इसपर भरोसा करें, तो दिल्ली के राजौरी गार्डन में बर्गर किंग रेस्टोरेंट के अंदर हुई फायरिंग को मिलकर अंजाम देने वाले इन दो गैंगस्टर की राहें अब अलग हो चुकी हैं।हाल ही में दिल्ली के राजौरी गार्डन इलाके में अशोक प्रधान गैंग के गुर्गे अमन जून की हत्या में इन्हीं दोनों गैंगस्टर का नाम सामने आया था। सूत्रों के मुताबिक, अमन जून की हत्या का जिम्मा लेडी गैंगस्टर अनु धनखड़ को सौंपा गया था। अनु ने सोशल मीडिया के जरिए पहले अमन को अपने प्यार के जाल में फंसाया और फिर मिलने के लिए राजौरी गार्डन के बर्गर किंग रेस्टोरेंट में बुलाया। इस हत्याकांड के बाद हिमांशु भाई ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि उसने अपने भाई शक्ति दादा के मर्डर का बदला लिया है। पोस्ट में हिमांशु ने नीरज बवाना का जिक्र किया था। इससे पहले भी इन दोनों का नाम कई वारदातों में सामने आया है।
हिमांशु भाऊ, महज 21 साल की उम्र में बन गया गैंगस्टर
हरियाणा में रोहतक जिले के रिटौली गांव का रहने वाला हिमांशु भाऊ स्कूल-कॉलेज के दिनों से ही जुर्म की दुनिया में उतर गया था। उसकी उम्र उस वक्त महज 17 साल थी, जब उसने पहली बार तमंचा अपने हाथ में लेकर गोली चलाई। इसके बाद उसके गुनाहों की लिस्ट लंबी होती चली गई और देखते ही देखते हिमांशु के नाम के आगे संगीन धाराओं में 17 मुकदमे दर्ज हो गए। हिमांशु कितना खतरनाक है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केवल 21 साल की उम्र में ही उसके खिलाफ इंटरपोल का रेड कॉर्नर नोटिस जारी हो चुका है। इसके अलावा उसके ऊपर 2.5 लाख रुपए का इनाम भी घोषित है।
12 राउंड फायरिंग मतलब भाऊ का काम है
हिमांशु भाऊ के काले कारनामों की अगर बात करें, तो पिछले चार सालों के भीतर ही उसने दिल्ली सहित एनसीआर में कई बड़ी वारदातों को अंजाम दिया है। यही नहीं, हर वारदात के बाद वो अपने सिग्नेचर भी छोड़ता है। उसके बारे में कहा जाता है कि अगर किसी जगह पर कोई गैंगवार या हत्याकांड हुआ है और 12 से ज्यादा गोलियां चलाई गई हैं, तो पक्का हिमांशु भाऊ गैंग का ही काम है। साल 2022 में महज 24 दिनों के भीतर ही उसने हत्या की तीन बड़ी वारदातों को अंजाम दिया। इसके बाद सुरक्षाकर्मियों ने उसके ठिकानों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की और अपने खिलाफ एक्शन बढ़ता देख हिमांशु भाऊ दिसंबर 2022 के आसपास विदेश भाग गया। इस वक्त हिमांशु भाऊ विदेश में बैठकर ही अपने गैंग को ऑपरेट कर रहा है। उसके खास गुर्गों में योगेश कादियान और साहिल का नाम शामिल है।
नीरज बवाना, दिल्ली के सबसे बड़े गैंग का सरगना
दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद और राजधानी के बवाना गांव का रहने वाला गैंगस्टर नीरज बवाना सलाखों के पीछे से ही अपना नेटवर्क चलाता है। कुख्यात गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई के साथ उसकी जानी दुश्मनी है। अंडरवर्ल्ड की दुनिया में करीब 15 साल पहले कदम रखने वाले नीरज बवाना पर हत्या, हत्या की कोशिश, लूट और फिरौती मांगने जैसे कई संगीन मुकदमे दर्ज हैं। बताया जाता है कि आज की तारीख में दिल्ली के अंदर सबसे बड़ा गैंग उसी का है। अपने गुर्गों के जरिए वो पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली सहित एनसीआर में वारदातों को अंजाम देता है।
अशोक प्रधान गैंग से भी दुश्मनी
अंडरवर्ल्ड की दुनिया में कभी नीरज का सबसे बड़ा दुश्मन सुरेंद्र मलिक उर्फ नीतू दाबोदा हुआ करता था। लेकिन लंबे चले गैंगवार में नीरज बवाना के गैंग ने धीरे-धीरे नीतू दाबोदा के लगभग सभी गुर्गों को खत्म कर दिया। अक्टूबर 2023 में पुलिस मुठभेड़ में नीतू दाबोदा के मारे जाने के बाद नीरज बवाना के गैंग का प्रभाव बढ़ गया। लॉरेंस बिश्नोई के अलावा अशोक प्रधान गैंग से भी नीरज बवान��� की पुरानी दुश्मनी है, जिसके एक गुर्गे अमन जून को हाल ही में दिल्ली के राजौरी गार्डन में गोलियों से भूना गया था। उस वक्त इस हत्याकांड की जिम्मेदारी हिमांशु भाऊ और नीरज बवाना ने ही ली थी। http://dlvr.it/T93MKb
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart86
"कबीर परमेश्वर द्वारा विभीषण तथा मंदोदरी को शरण में लेना"
परमेश्वर मुनिन्द्र जी अनल अर्थात् नल तथा अनील अर्थात् नील को शरण में लेने के उपरान्त श्री लंका में गए। वहाँ पर एक परम भक्त विचित्र चन्द्रविजय जी का सोलह सदस्यों का परिवार रहता था। वे भाट जाति में उत्पन्न पुण्यकर्मी प्राणी थे। परमेश्वर मुनिन्द्र (कविर्देव) जी का उपदेश सुन कर पूरे परिवार ने नाम दान प्राप्त किया। परम भक्त विचित्र चन्द्रविजय जी की पत्नी भक्तमति कर्मवती लंका के राजा रावण की रानी मन्दोदरी के पास नौकरी (सेवा) करती थी। रानी मंदोदरी को हँसी-मजाक अच्छे-मंदे चुटकुले सुना कर उसका मनोरंजन कराती थी। भक्त चन्द्रविजय, राजा रावण के पास दरबार में नौकरी (सेवा) करता था। राजा की बड़ाई के गाने सुना कर उसे प्रसन्न करता था। भक्त विचित्र चन्द्रविजय की पत्नी भक्तमति कर्मवती परमेश्वर से उपदेश प्राप्त करने के उपरान्त रानी मंदोदरी को प्रभु चर्चा जो सृष्टि रचना अपने सतगुरुदेव मुनिन्द्र जी से सुनी थी प्रतिदिन सुनाने लगी। भक्तमति मंदोदरी रानी को अति आनन्द आने लगा। कई-कई घण्टों तक प्रभु की सत कथा को भक्तमति कर्मवती सुनाती रहती तथा मंदोदरी की आँखों से आँसू बहते रहते। एक दिन रानी मंदोदरी ने कर्मवती से पूछा आपने यह ज्ञान किससे सुना? आप तो बहुत अनाप-शनाप बातें किया करती थी। इतना बदलाव परमात्मा तुल्य संत बिना नहीं हो सकता। तब कर्मवती ने बताया कि हमने एक परम संत से अभी-अभी उपदेश लिया है। रानी मंदोदरी ने संत के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त करते हुए कहा, आप के गुरु अब की बार आयें तो उन्हें हमारे घर बुला कर लाना। अपनी मालकिन का आदेश प्राप्त करके शीश झुकाकर सत्कार पूर्वक कहा कि जो आप की आज्ञा, आप की नौकरानी वही करेगी। मेरी एक विनती है, कहते हैं कि संत को आदेशपूर्वक नहीं बुलाना चाहिए। स्वयं जा कर दर्शन करना श्रेयकर होता है और जैसे आप की आज्ञा वैसा ही होगा। महारानी मंदोदरी ने कहा कि अब के आपके गुरुदेव जी आयें तो मुझे बताना मैं स्वयं उनके पास जाकर दर्शन करूंगी। परमेश्वर ने फिर श्री लंका में कृपा की। मंदोदरी रानी ने उपदेश प्राप्त किया। कुछ समय उपरान्त अपने प्रिय देवर भक्त विभीषण जी को उपदेश दिलाया। भक्तमति मंदोदरी उपदेश प्राप्त करके अहर्निश प्रभु स्मरण में लीन रहने लगी। अपने पति रावण को भी सतगुरु मुनिन्द्र जी से उपदेश प्राप्त करने की कई बार प्रार्थना की परन्तु रावण नहीं माना तथा कहा करता था कि मैंने परम शक्ति महेश्वर मृत्युंजय शिव जी की भक्ति की है। इसके तुल्य कोई शक्ति नहीं है। आपको किसी ने बहका लिया है।
कुछ ही समय उपरान्त वनवास प्राप्त श्री सीता जी का अपहरण करके रावण ने अपने नौ लखा बाग में कैद कर लिया। भक्तमति मंदोदरी के बार-बार प्रार्थना करने से भी रावण ने माता सीता जी को वापिस छोड़ कर आना स्वीकार नहीं किया। तब भक्तमति मंदोदरी जी ने अपने गुरुदेव मुनिन्द्र जी से कहा महाराज जी, मेरे पति ने किसी की औरत का अपहरण कर लिया है। मुझ से सहन नहीं हो रहा है। वह उसे वापिस छोड़ कर आना किसी कीमत पर भी स्वीकार नहीं कर रहा है। आप दया करो मेरे प्रभु। आज तक जीवन में मैंने ऐसा दुःख नहीं देखा था।
परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने कहा कि बेटी मंदोदरी यह औरत कोई साधारण स्त्री नहीं है। श्री विष्णु जी को शापवश पृथ्वी पर आना पड़ा है, वे अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र रामचन्द्र नाम से जन्में हैं। इनको 14 वर्ष का वनवास प्राप्त है तथा लक्ष्मी जी स्वयं सीता रूप में इनकी पत्नी रूप में वनवास में श्री राम के साथ थी। उसे रावण एक साधु वेश बना कर धोखा देकर उठा लाया है। यह स्वयं लक्ष्मी ही सीता जी है। इसे शीघ्र वापिस करके क्षमा याचना करके अपने जीवन की भिक्षा याचना रावण करें तो इसी में इसका शुभ है। भक्तमति मंदोदरी के अनेकों बार प्रार्थना करने से रावण नहीं माना तथा कहा कि वे दो मसखरे जंगल में घूमने वाले मेरा क्या बिगाड सकते हैं। मेरे पास अनीगनत सेना है। मेरे एक लाख पुत्र तथा सवा लाख नाती हैं। मेरे पुत्र मेघनाद ने स्वर्ग राज इन्द्र को पराजित कर उसकी पुत्री से विवाह कर रखा है। तेतीस करोड़ देवताओं को हमने कैद कर रखा है। तू मुझे उन दो बेसहारा बन में बिचर रहे बनवासियों को भगवान बता कर डराना चाहती है। इस स्त्री को वापिस नहीं करूँगा। मंदोदरी ने भक्ति मार्ग का ज्ञान जो अपने पूज्य गुरुदेव से सुना था, रावण को बहुत समझाया। विभीषण ने भी अपने बड़े भाई को समझाया। रावण ने अपने भाई विभीषण को पीटा तथा कहा कि तू ज्यादा श्री रामचन्द्र का पक्षपात कर रहा है, उसी के पास चला जा।
एक दिन भक्तमति मंदोदरी ने अपने पूज्य गुरुदेव से प्रार्थना की कि हे गुरुदेव मेरा सुहाग उजड़ रहा है। एक बार आप भी मेरे पति को समझा दो। यदि वह आप की बात को नहीं मानेगा तो मुझे विधवा होने का दुःख नहीं होगा।
अपनी वचन की बेटी मंदोदरी की प्रार्थना स्वीकार करके राजा रावण के दरबार के समक्ष खड़े होकर परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने द्वारपालों से राजा रावण से मिलने की प्रार्थना की। द्वारपालों ने कहा ऋषि जी इस समय हमारे राजा जी अपना दरबार लगाए हुए हैं। इस समय अन्दर का संदेश बाहर आ सकता है, बाहर का संदेश अन्दर नहीं जा सकता। हम विवश हैं। तब पूर्ण प्रभु अंतर्ध्यान हुए तथा राजा रावण के दरबार में प्रकट हो गए। रावण की दृष्टि ऋषि पर गई तो गरज कर पूछा कि इस ऋषि को मेरी आज्ञा बिना किसने अन्दर आने दिया है उन द्वारपालों को लाकर मेरे सामने कत्ल कर दो। तब परमेश्वर ने कहा राजन् आप के द्वारपालों ने स्पष्ट मना किया था। उन्हें पता नहीं कि मैं कैसे अन्दर आ गया। रावण ने पूछा कि तू अन्दर कैसे आया? तब पूर्ण प्रभु मुनिन्द्र वेश में अदृश होकर पुनर् प्रकट हो गए तथा कहा कि मैं ऐसे आ गया। रावण ने पूछा कि आने का कारण बताओ। तब प्रभु ने कहा कि आप योद्धा हो कर एक अबला का अपहरण कर लाए हो। यह आप की शान व शूरवीरता के विपरीत है। सीता कोई साधारण औरत नहीं है यह स्वयं लक्ष्मी जी का अवतार है। श्री रामचन्द्र जी जो इसके पति हैं वे स्वयं विष्णु हैं। इसे वापिस करके अपने जीवन की भिक्षा माँगो। इसी में आप का श्रेय है। इतना सुन कर तमोगुण (भगवान शिव) का उपासक रावण क्रोधित होकर नंगी तलवार लेकर सिंहासन से दहाड़ता हुआ कूदा तथा उस नादान प्राणी ने तलवार के अंधाधुंध सत्तर वार ऋषि जी को मारने के लिए किए। परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने एक झाडू की सर्सीक हाथ में पकड़ी हुई थी। उसको ढाल की तरह आगे कर दिया। रावण के सत्तर वार उस नाजुक सींक पर लगे। ऐसे आवाज हुई जैसे लोहे के खम्बे (पीलर) पर तलवार लग रही हो। सर्सीक टस से मस नहीं हुई। रावण को पसीने आ गए। फिर भी अपने अहंकारवश नहीं माना। यह तो जान लिया कि यह कोई साधारण ऋषि नहीं है। रावण ने अभिमान वश कहा कि मैंने आप की एक भी बात नहीं सुननी, आप जा सकते हैं। परमेश्वर अंतर्ध्यान हो गए तथा मंदोदरी को सर्व वृतान्त सुनाकर प्रस्थान किया। रानी मंदोदरी ने कहा गुरुदेव अब मुझे विधवा होने में कोई कष्ट नहीं होगा।
श्री रामचन्द्र व रावण का युद्ध हुआ। रावण का वध हुआ। जिस लंका के राज्य को रावण ने तमोगुण भगवान शिव की कठिन साधना करके, दस बार शीश न्यौछावर करके प्राप्त किया था। वह क्षणिक सुख भी रावण का चला गया तथा नरक का भागी हुआ। इसके विपरीत पूर्ण परमात्मा के सतनाम साधक विभीषण को बिना कठिन साधना किए पूर्ण प्रभु की सत्य साधना व कृपा से लंकादेश का राज्य भी प्राप्त हुआ। हजारों वर्षों तक विभीषण ने लंका का राज्य का सुख भोगा तथा प्रभु कृपा से राज्य में पूर्ण शान्ति रही। सभी राक्षस वृति के व्यक्ति विनाश को प्राप्त हो चुके थे। भक्तमति मंदोदरी तथा भक्त विभीषण तथा परम भक्त चन्द्रविजय जी के परिवार के पूरे सोलह सदस्य तथा अन्य जिन्होंने पूर्ण परमेश्वर का उपदेश प्राप्त करके आजीवन मर्यादावत् सतभक्ति की वे सर्व साधक यहाँ पृथ्वी पर भी सुखी रहे तथा अन्त समय में परमेश्वर के विमान में बैठ कर सतलोक (शाश्वतम् स्थानम्) में चले गए। इसीलिए पवित्र गीता अध्याय 7 मंत्र 12 से 15 में कहा है कि तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की साधना से मिलने वाली क्षणिक सुविधाओं के द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे राक्षस स्वभाव वाले, मनुष्यों में नीच, दुष्कर्म करने वाले मूर्ख मुझ (काल-ब्रह्म) को भी नहीं भजते ।
फिर गीता अध्याय 7 मंत्र 18 में गीता बोलने वाला (काल-ब्रह्म) प्रभु कह रहा है कि कोई एक उदार आत्मा मेरी (ब्रह्म की) ही साधना करता है क्योंकि उनको तत्त्वदर्शी संत नही मिला। वे भी नेक आत्माएँ मेरी (अनुत्तमाम्) अति अश्रेष्ठ (गतिम्) गति में आश्रित रह गए। वे भी पूर्ण मुक्त नहीं हैं। इसलिए पवित्र गीता अध्याय 18 मंत्र 62 में कहा है कि हे अर्जुन तू सर्व भाव से उस परमेश्वर (पूर्ण परमात्मा अर्थात् तत् ब्रह्म) की शरण में जा। उसकी कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सतलोक अर्थात् सनातन परम धाम को प्राप्त होगा।
इसलिए पुण्यात्माओं से निवेदन है कि आज इस दासन् के भी दास (रामपाल दास) के पास पूर्ण परमात्मा प्राप्ति की वास्तविक विधि प्राप्त है। निःशुल्क उपदेश लेकर लाभ उठाएँ।
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