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किताब के बारे में...
यह कहानी दो बन्दरो की है जो अत्यंत शैतान थे उसकी शैतानी से पूरा जंगल त्रस्त था पर एक दिन उनको एक आम की गुठली मिलती है और वह आम के स्वप्न में खो जाते है। और सोचते है आम बड़ा होगा हम आम खायेंगे और बड़े बड़े स्वप्न। और वह उस गुठली को भूमि में गाड़ते है पेड़ निकलता है बड़ा होता है और उनको एक दिन पता चलता है कि वह आम का पेड़ था ही नही यह वह गुठली आम की थी ही नही। रोचक कहानी है...
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MERI KAHANI, MERI ZUBANI : EP 1
मेरा जन्म इलाहबाद में हुआ । मेरे पिताजी नैनी T.S.L में कार्य करते थे । नैनी Glass Factory में मेरे बाबा स्वर्गीय श्री कृष्ण बिहारी माथुर काम करते थे । वहीं पर स्टाफ़ क्वॉर्टर में हमारा घर था, वहाँ एक एक बगिया हुआ करती थी बड़ी धुंधली यादे हैं वहाँ के आम के बाग की । ज़मीन तक लटकते हुए आम ऐसे की लेट कर मुँह में आ जाएँ । मेरी उम्र शायद २.५ या ३ साल की रही होगी, सबसे पहली यादें हैं यह मेरी पेड़ में लगे हुई आम की । बाबा जी मुझे cycle पर बैठा कर स्कूल ले जाते थे इस वक़्त एक ही convent school था नैनि में Bethany convent school. सुबह सुबह रोज़ वहाँ के church में जाना और Father Francis की मज़ेदार बातें सुन ना हमारा रोज़ का नियम था ।
समय बीतता गया कुछ सालों में नैनी के गुरु नानक नगर कॉलोनी में हमारा अपना घर बन गया । एक छोटी सी बगिया भी लगाई गई…और बहुत सारे फलों के पेड़ भी लगाए गए …
मुझे याद नही सेब के अलावा हमने कभी कोई फल ख़रीद कर खाया हो ।
मेरी माँ बहुत ही स्वादिष्ट खाना बनातीं हैं । मेंने हमेशा उन्हें हम लोगों के लिए तरह तरह के स्वादिष्ट व्यंजन बनाते देखा ।
मेरे पापा ख़ानदान में सबसे बड़े थे तो रिश्तेदारों का आना जाना हमेशा से बहुत अधिक था । माँ के हाथ के बने अचार विशेष रूप से सभी को बहुत पसंद आते थे ।
खाते तो थे ही बांध कर भी ले जाते थे । धीरे धीरे उन्ही के हाथों का स्वाद मेरे बनाए खाने में भी आने लगा । घर के कामों में मदद करने के साथ साथ अनाज, मसालों को सहेजना, अचार बनाना कब सीख लिया पता ही नही चला … पता नहीं माँ के हाथों में क्या जादू था कि कुछ भी दे दो स्वाद hiबने गा ।
गर्मी की छुट्टियों में नानी जी के घर जाते तो सभी मामा मौसी के बच्चे होते थे और हम सब भाई बहनों का प्रिय नाश्ता आम का अचार और पराठा था । दुपहर में जब मेरी नानी सो जाती तब बरनी में से चुरा कर आम की फाँक खाने में जो स्वाद आता था आहाऽऽऽ !!! जैसे सब कुछ मिल गया हो । आज कल के पिज़्ज़ा बर्गर में भी वह स्वाद कहाँ…
अब तो वो खेल मस्ती और ननिहाल का आँगन, आँगन में ढेर सारी गौरयों का स्थायी घर , रोज़ उनका चहकना बस यादों में ही रह गया है ।
हाँ ! साथ बचा है तो उन हाथों का स्वाद जो कब धीरे से सरक के मेरे पास आ गया पता ही नही चला ।
सच है खाना बनाना सीखना कोई kuch दिन ka crash course नहीं। खाना बनाना आपसे बहुत सारा dedication माँगता है । अपनों के लिए प्यार और समर्पण का भाव माँगता है । किसी recipe से नही बनता । प्यार से फिर भी बन जाए ।
आज के लिए बस इतना ही ।
शेष फिर ।
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हम सभी जानते हैं कि जिस मृत्यु लोक पृथ्वी में हम रह रहे हैं यहाँ शांति नाम की कोई चीज़ नहीं है।
जबकि सतलोक में केवल एक रस परम शांति व सुख है। गीता अध्याय 18 श्लोक 62 के अनुसार जब तक हम सनातन परम धाम (सतलोक) में नहीं जाएंगे तब तक हम परमशांति, सुख व अमृत्व को प्राप्त नहीं कर सकते।
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[8/16, 10:37 PM] shivedhash: #Satlok_Vs_Mrityulok
सतलोक बनाम मृत्युलोक
सतलोक में सदाबहार फल-फूल, बाग-बगीचों से पेड़-पौधे हमेशा लद पद रहते हैं।
जबकि मृत्यु लोक पृथ्वी पर फल के पेड़ हर जगह नहीं लगे होते। विशेष मिट्टी, विशेष वातावरण की आवश्यकता पड़ती है। यहां पर अनावश्यक पेड़-पौधे स्वतः उग जाते हैं। फलों के पेड़ के लिए विशेष परिश्रम करना पड़ता है।
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[8/16, 10:37 PM] shivedhash: #Satlok_Vs_Mrityulok
सतलोक बनाम मृत्युलोक
सतलोक में कविर्देव यानी कबीर परमात्मा का सिंहासन है जो असंख्य ब्रह्मांड की देखरेख वहां पर बैठकर करते हैं और सतलोक में गए हुए मानव को उनके दर्शन होते हैं और वह आनंदित होते हैं।
जबकि इस मृत्यु लोक में उस परमेश्वर के दर्शन न होने के कारण यहां हम मृगतृष्णा में भटकते-भटकते जीवन का अंत कर देते हैं।
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[8/16, 10:37 PM] shivedhash: #Satlok_Vs_Mrityulok
सतलोक बनाम मृत्युलोक
सतलोक में गए हुए प्राणी को कभी चोरी होने की चिंता नहीं सताती तथा ठगी का डर नहीं रहता। क्योंकि वहाँ पर गए प्रत्येक प्राणी को परमात्मा की दया से एकसमान सर्व सुख नि:शुल्क उपलब्ध रहता है।
जबकि मृत्यु लोक (पृथ्वी) पर चोरी का भय इस प्राणी को सदा बना रहता है। यहां एक-दूसरे को लोग ठगते रहते हैं।
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[8/16, 10:37 PM] shivedhash: #Satlok_Vs_Mrityulok
सतलोक बनाम मृत्युलोक
सतलोक में गए हुए प्राणी आपस में मिलजुल कर प्रेम से रहते हैं और एक-दूसरे से मधुर वाणी बोलते हैं। आपस में किसी प्रकार का कोई झगड़ा नहीं करते।
जबकि पृथ्वी अर्थात मृत्यु लोक में प्राणियों का आपस में कटु वचन बोलना, लड़ाई-झगड़ा करना आम बात है। साथ ही, यहाँ के प्राणी अनेक प्रकार के कष्ट एक-दूसरे को देते हुए दुखी रखते हैं।
स्वास्थ्य विभाग डेंगू एवं मलेरिया के बारे में व्यापक जन जागरूकता के कार्यक्रम चलाएं
एक पेड़ मां के नाम अभियान को व्यापक रूप से घर-घर तक पहुंचाएं
शिविर लगाकर महाविद्यालयीन छात्रों के ड्राइविंग लाइसेंस बनाए जाएं
आज हुई संभागीय टीएल बैठक में संभागायुक्त के अधिकारियों को निर्देश
नर्मदापुरम। स्वास्थ्य विभाग डेंगू एवं मलेरिया के मरीजों का समुचित उपचार करते हुए डेंगू एवं मलेरिया जैसी बीमारी के बारे में आम जनता को जागरूक करें। आम जनता के बीच जागरूकता के कार्यक्रम चलाएं। सभी को डेंगू…
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart67 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart68
"सर्व श्रेष्ठ तीर्थ"
प्रश्न 47:- सर्वश्रेष्ठ तीर्थ कौन-सा है जिससे सर्व तीर्थों से अधिक लाभ मिलता है?
उत्तर :- सर्व श्रेष्ठ चित्तशुद्धि तीर्थ है।
चित्तशुद्धि तीर्थ अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्त का सत्संग सर्व तीर्थों से श्रेष्ठ :- श्री देवी पुराण छठा स्कन्द अध्याय 10 पृष्ठ 417 पर लिखा है व्यास जी ने राजा जनमेजय से कहा राजन्! यह निश्चय है कि तीर्थ देह सम्बन्धी मैल को साफ कर देते हैं, किन्तु मन के मैल को धोने की शक्ति तीर्थों में नहीं है। चित्तशुद्धि तीर्थ गंगा आदि तीर्थों से भी अधिक पवित्र माना जाता है। यदि भाग्यवश चित्तशुद्धि तीर्थ सुलभ हो जाए तो अर्थात् तत्वदर्शी संतों का सत्संग रूपी तीर्थ प्राप्त हो जाए तो मानसिक मैल के धुल जाने में कोई संदेह नहीं। परन्तु राजन् ! इस चित्तशुद्धि तीर्थ को प्राप्त करने के लिए ज्ञानी पुरुषों अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्तों के सत्संग की विशेष आवश्यकता है। वेद, शास्त्र, व्रत, तप, यज्ञ और दान से चित्तशुद्धि होना बहुत कठिन है। वशिष्ठ जी ब्रह्मा जी के पुत्र थे। उन्होंने वेद और विद्या का सम्यक प्रकार से अध्ययन किया था। गंगा के तट पर निवास करते थे। तथापि द्वेष के कारण उनका विश्वामित्र के साथ वैमनस्य हो गया और दोनों ने परस्पर श्राप दे दिए तथा उनमें भयंकर युद्ध होने लगा। इससे सिद्ध हुआ कि संतों के सत्संग से चित्तशुद्धि कर लेना अति आवश्यक है अन्यथा वेद ज्ञान, तप, व्रत, तीर्थ, दान तथा धर्म के जितने साधन है वे सबके सब कोई विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं कर सकते (श्री देवी पुराण से लेख समाप्त)
* विशेष विचार :- उपरोक्त श्री देवी पुराण के लेख से स्पष्ट है कि तत्त्वदर्शी
सन्तों के सत्संग से श्रेष्ठ कोई भी तीर्थ नहीं है तथा तत्त्वदृष्टा सन्त के बताए मार्ग से साधना करने से कल्याण सम्भव है। तीर्थ, व्रत, तप, दान आदि व्यर्थ प्रयत्न है। तत्त्वदर्शी सन्त के अभाव के कारण केवल चारों वेदों में वर्णित भक्ति विधि से पूर्ण मोक्ष लाभ नहीं है।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है :-
सतगुरु बिन वेद पढ़ें जो प्राणी, समझे ना सार रहे अज्ञानी ।।
सतगुरु बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुष छिट्टै मूढ किसाना ।। अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै सर्व फल सतगुरू चरणा पावै।।
कबीर तीर्थ करि-करि जग मुआ, उड़ै पानी नहाय।
सतनाम जपा नहीं, काल घसीटें जाय ।।
सूक्ष्मवेद (तत्त्वज्ञान) में कहा है कि :-
अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै। सो फल सतगुरू चरणों पावै ।।
गंगा, यमुना, बद्री समेते। जगन्नाथ धाम है जेते ।।
भ्रमें फल प्राप्त होय न जेतो। गुरू सेवा में फल पावै तेतो ।। कोटिक तीर्थ सब कर आवै। गुरू चरणां फल तुरंत ही पावै ।।
सतगुरू मिलै तो अगम बतावै। जम की आंच ताहि नहीं आवै।।
भक्ति मुक्ति को पंथ बतावै। बुरा होन को पंथ छुड़ावै ।। सतगुरू भक्ति मुक्ति के दानी। सतगुरू बिना ना छूटै खानी ।।
सतगुरू गुरू सुर तरू सुर धेनु समाना। पावै चरणन मुक्ति प्रवाना ।।
सरलार्थ :- पूर्ण परमात्मा द्वारा दिए तत्त्वज्ञान यानि सूक्ष्मवेद में कहा है कि तीर्थों और धामों पर जाने से कोई पुण्य लाभ नहीं। असली तीर्थ सतगुरू (तत्त्वदर्शी संत) का सत्संग सुनने जाना है। जहाँ तत्त्वदर्शी संत का सत्संग होता है, वह सर्व श्रेष्ठ तीर्थ तथा धाम है।
इसी कथन का साक्षी संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत महापुराण भी है। उसमें छठे स्कंद के अध्याय 10 में लिखा है कि सर्व श्रेष्ठ तीर्थ तो चित शुद्ध तीर्थ है। जहाँ तत्वदर्शी संत का सत्संग चल रहा है। उसके अध्यात्म ज्ञान से चित की शुद्धि होती है। शास्त्रोक्त अध्यात्म ज्ञान तथा शास्त्रोक्त भक्ति विधि का ज्ञान होता है जिससे जीव का कल्याण होता है। अन्य तीर्थ मात्र भ्रम हैं।
इसी पुराण में लिखा है कि सतगुरू रूप तीर्थ मिलना अति दुर्लभ है।
सूक्ष्मवेद में बताया है कि सतगुरू तो कल्पवृक्ष तथा कामधेनू के समान है। जैसे पुराणों में कहा है कि स्वर्ग में कल्पवृक्ष तथा कामधेनु हैं। उनसे जो भी माँगो, सब सुविधाएँ प्रदान कर देते हैं।
इसी प्रकार सतगुरू जी सत्य साधना बताकर सर्व लाभ साधक को प्रदान करवा देते हैं तथा अपने आशीर्वाद से भी अनेकों लाभ देते हैं। भक्ति करवाकर मुक्ति की राह आसान कर देते हैं। इसलिए कहा है :- कि एकै साधै सब सधै, सब साधैं सब जाय।
माली सींचे मूल को, फलै फूलै अघाय ।।
शब्दार्थ :- एक सतगुरू रूप तीर्थ पर जाने से सब लाभ मिल जाता है। सब तीर्थों-धामों व अन्य अंध श्रद्धा भक्ति से सब लाभ समाप्त हो जाते हैं। जैसे आम के पौधे की एक जड़ की सिंचाई करने से पौधा विकसित होकर पेड़ बनकर बहुत फल देता है।
यदि पौधे को उल्टा करके जमीन में गढ़ढ़े में शाखाओं की ओर से रोपकर शाखाओं की सिंचाई करेंगे तो पौधा नष्ट हो जाता है। कोई लाभ नहीं मिलता। इसलिए एक सतगुरू रूप तीर्थ पर जाने से सर्व लाभ मिल जाता है।
जैसा कि संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में लिखा है कि सतगुरू रूप तीर्थ मिलना अति दुर्लभ है, परंतु आप जी को सतगुरू रूप तीर्थ अति शुलभ है। यह दास (लेखक रामपाल दास) विश्व में एकमात्र सतगुरू तीर्थ यानि तत्वज्ञानी है। आओ और सत्य भक्ति प्राप्त करके जीवन सफल बनाओ।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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"सर्व श्रेष्ठ तीर्थ"
प्रश्न 47:- सर्वश्रेष्ठ तीर्थ कौन-सा है जिससे सर्व तीर्थों से अधिक लाभ मिलता है?
उत्तर :- सर्व श्रेष्ठ चित्तशुद्धि तीर्थ है।
चित्तशुद्धि तीर्थ अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्त का सत्संग सर्व तीर्थों से श्रेष्ठ :- श्री देवी पुराण छठा स्कन्द अध्याय 10 पृष्ठ 417 पर लिखा है व्यास जी ने राजा जनमेजय से कहा राजन्! यह निश्चय है कि तीर्थ देह सम्बन्धी मैल को साफ कर देते हैं, किन्तु मन के मैल को धोने की शक्ति तीर्थों में नहीं है। चित्तशुद्धि तीर्थ गंगा आदि तीर्थों से भी अधिक पवित्र माना जाता है। यदि भाग्यवश चित्तशुद्धि तीर्थ सुलभ हो जाए तो अर्थात् तत्वदर्शी संतों का सत्संग रूपी तीर्थ प्राप्त हो जाए तो मानसिक मैल के धुल जाने में कोई संदेह नहीं। परन्तु राजन् ! इस चित्तशुद्धि तीर्थ को प्राप्त करने के लिए ज्ञानी पुरुषों अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्तों के सत्संग की विशेष आवश्यकता है। वेद, शास्त्र, व्रत, तप, यज्ञ और दान से चित्तशुद्धि होना बहुत कठिन है। वशिष्ठ जी ब्रह्मा जी के पुत्र थे। उन्होंने वेद और विद्या का सम्यक प्रकार से अध्ययन किया था। गंगा के तट पर निवास करते थे। तथापि द्वेष के कारण उनका विश्वामित्र के साथ वैमनस्य हो गया और दोनों ने परस्पर श्राप दे दिए तथा उनमें भयंकर युद्ध होने लगा। इससे सिद्ध हुआ कि संतों के सत्संग से चित्तशुद्धि कर लेना अति आवश्यक है अन्यथा वेद ज्ञान, तप, व्रत, तीर्थ, दान तथा धर्म के जितने साधन है वे सबके सब कोई विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं कर सकते (श्री देवी पुराण से लेख समाप्त)
* विशेष विचार :- उपरोक्त श्री देवी पुराण के लेख से स्पष्ट है कि तत्त्वदर्शी
सन्तों के सत्संग से श्रेष्ठ कोई भी तीर्थ नहीं है तथा तत्त्वदृष्टा सन्त के बताए मार्ग से साधना करने से कल्याण सम्भव है। तीर्थ, व्रत, तप, दान आदि व्यर्थ प्रयत्न है। तत्त्वदर्शी सन्त के अभाव के कारण केवल चारों वेदों में वर्णित भक्ति विधि से पूर्ण मोक्ष लाभ नहीं है।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है :-
सतगुरु बिन वेद पढ़ें जो प्राणी, समझे ना सार रहे अज्ञानी ।।
सतगुरु बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुष छिट्टै मूढ किसाना ।। अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै सर्व फल सतगुरू चरणा पावै।।
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अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै। सो फल सतगुरू चरणों पावै ।।
गंगा, यमुना, बद्री समेते। जगन्नाथ धाम है जेते ।।
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सतगुरू मिलै तो अगम बतावै। जम की आंच ताहि नहीं आवै।।
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सतगुरू गुरू सुर तरू सुर धेनु समाना। पावै चरणन मुक्ति प्रवाना ।।
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इसी पुराण में लिखा है कि सतगुरू रूप तीर्थ मिलना अति दुर्लभ है।
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इसी प्रकार सतगुरू जी सत्य साधना बताकर सर्व लाभ साधक को प्रदान करवा देते हैं तथा अपने आशीर्वाद से भी अनेकों लाभ देते हैं। भक्ति करवाकर मुक्ति की राह आसान कर देते हैं। इसलिए कहा है :- कि एकै साधै सब सधै, सब साधैं सब जाय।
माली सींचे मूल को, फलै फूलै अघाय ।।
शब्दार्थ :- एक सतगुरू रूप तीर्थ पर जाने से सब लाभ मिल जाता है। सब तीर्थों-धामों व अन्य अंध श्रद्धा भक्ति से सब लाभ समाप्त हो जाते हैं। जैसे आम के पौधे की एक जड़ की सिंचाई करने से पौधा विकसित होकर पेड़ बनकर बहुत फल देता है।
यदि पौधे को उल्टा करके जमीन में गढ़ढ़े में शाखाओं की ओर से रोपकर शाखाओं की सिंचाई करेंगे तो पौधा नष्ट हो जाता है। कोई लाभ नहीं मिलता। इसलिए एक सतगुरू रूप तीर्थ पर जाने से सर्व लाभ मिल जाता है।
जैसा कि संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में लिखा है कि सतगुरू रूप तीर्थ मिलना अति दुर्लभ है, परंतु आप जी को सतगुरू रूप तीर्थ अति शुलभ है। यह दास (लेखक रामपाल दास) विश्व में एकमात्र सतगुरू तीर्थ यानि तत्वज्ञानी है। आओ और सत्य भक्ति प्राप्त करके जीवन सफल बनाओ।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
राजकीय नेत्रहीन छात्रावासीत उच्च माध्यमिक विद्यालय, बीकानेर में राज्य सरकार के निर्देशानुसार हरियालो राजस्थान कार्यक्रम के अंतर्गत पेड़ पौधे
बीकानेर 7 अगस्त 2024,राजकीय नेत्रहीन छात्रावासीत उच्च माध्यमिक विद्यालय, बीकानेर में राज्य सरकार के निर्देशानुसार हरियालो राजस्थान कार्यक्रम के अंतर्गत पेड़ पौधे लगाए गए। जिसमें विभिन्न प्रकार के फलों,फूलों के पौधे लगाए गए जिसमें आम ,शहतूत, जामुन पपीता , अनार और अन्य पौधे लगाए गए। वृक्षारोपण के प्रभारी आनंद पारीक ने बताया कि कल से ही विद्यालय में पौधे लगाने के लिए गड्ढे खोदने का काम शुरू कर दिया…
पटना /श्री कृष्णा पुरी शिव मंदिर पार्क में भाजपा कार्यकर्ताओं के द्वारा प्रधानमंत्री जी के हवाहन पर भव्य वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित की गई
पटना/ आज भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता अरविन्द कुमार सिंह के नेतृत्व में राजधानी नाथ महादेव मंदिर श्री कृष्णा पुरी एल्बम L1,L2 क्वार्टर के बीच में स्थित शिव मंदिर पार्क और मंदिर प्रांगण श्री कृष्णा पुरी और आसपास के छोटे-छोटे पार्कों में 50 पेड़ लगाया गया जिसमें आम, सागवान, नीम, पीपल, महोगनी, जामुन, बेल आदि वृक्षों का पौधा लगाया गया।माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के आवाहन पर मां…
🌼🌼🌼 आज आप देख रहे हैं कि ये नकली और अधुरे तत्वज्ञानहिन गुरू टोल के टोल हैं पर किसी को तत्वज्ञान अर्थात् रियल अध्यात्मिक नॉलेज और रियल गौड की जानकारी नहीं हैं,सबके सब पूराण,महापुराण,उपनिषद पर आधारित हैं और राम कृष्ण ब्रम्हा विष्णु महेश दुर्गा और गणेश की कथा सुना कर हमारे अनमोल मानव जीवन को बरबाद कर रहे हैं। इनको बनना था एक भगत,एक सेवक लेकिन ये अपने आपको स्वयंभू सन्त (गुरू) घोषित कर बैठे। इनमें से कोई भी इन वेदों का पूर्ण ज्ञान नहीं रखता हैं सिवाय "जगतगुरू तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज" के । ये सभी आम के वृक्ष के स्थान पर बबूल के पेड़ बो रहे हैं, लोगों को अमृत के स्थान पर सिर्फ पानी ही पिला रहे हैं जबकि आज से 620 वर्ष पहले ही कबीर साहेब ने कह दिया था मेरे बारे में जानना हैं तो इन वेदों को झांको और विस्तार पूर्वक से जानना चाहते हो तो यथा शीघ्र तत्वदर्शी सन्त (���ेवल तत्वदर्शी सन्त) को गुरू धारण करो जो आपको इन वेदों के सांथ सांथ पांचवे वेद अर्थात् #सुक्ष्मवेद की भी जानकारी भी प्रदान करेंगे और सतगुरू होने का एक विशेष पहचान भी हैं।
करूणारमन सद्गुरू,अभय मुक्तिधामी नाम हो *
पुलकित सादर प्रेमवश,होय सुधरे सो जीवन काम हो **
भवसिन्धु अति विकराल दारूण,तासु तत्व बुझायऊ *
अजर बीरा नाम दै मोहि,पुरूष दरश करायऊ **
इस संबंध में यदि आप अपने और आध्यात्मिक जिज्ञासाओं / शंकाओं के संपूर्ण समाधान पाना चाहते हैं तो...
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Jamshedpur plant distribution : थर्ड जेंडर समाज ने उत्थान के बैनर तले पौधे बांट प्रकृति संरक्षण का दिया संदेश, प्राइड माह के अंतिम दिन लोगों को कम से कम एक पेड़ लगाने के लिए किया प्रेरित
जमशेदपुर : थर्ड जेंडर समुदाय ने प्राइड माह के अंतिम दिन आज रविवार को उत्थान संस्था के बैनर तले बिष्टुपुर लाइट सिग्नल के सामने आम लोगों में पौधा वितरण कर लोगों से कम से कम एक पौधा लगाने की अपील की. उन्होंने लोगों को समझाने की कोशिश की कि इस वर्ष जितनी अधिक गर्मी पड़ी, अगर हमने इस संबंध में नहीं सोचा तो अगले वर्ष उससे और अधिक गर्मी पड़ सकती है. (नीचे भी पढ़ें)
उन्होंने बताया कि हम अपनी सुविधाओं के…
लायंस क्लब इटारसी समर्पण ने किया आनंदम में पौधरोपण
इटारसी। लायन्स क्लब इटारसी समर्पण द्वारा प्रथम गतिविधि के रूप में होशंगाबाद रोड पर लायन संजय गोठी के आनंदम फार्म हाउस पर सभी सदस्यों ने आम, जाम, लीची आदि के पेड़ लगाये।
क्लब कि अध्यक्ष श्रीमती राज सैनी ने कहा कि हमको पर्यावरण बचाये रखने के लिए पौधों को लगाना अति आवश्यक है। इससे हमको जल व जीवन भी मिलता है। अगस्त माह में क्लब द्वारा महंत फार्म पर 51 पेड़ और लगाने का टारगेट रखा है।
आनंदम रिसोर्ट…
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart67 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart68
"सर्व श्रेष्ठ तीर्थ"
प्रश्न 47:- सर्वश्रेष्ठ तीर्थ कौन-सा है जिससे सर्व तीर्थों से अधिक लाभ मिलता है?
उत्तर :- सर्व श्रेष्ठ चित्तशुद्धि तीर्थ है।
चित्तशुद्धि तीर्थ अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्त का सत्संग सर्व तीर्थों से श्रेष्ठ :- श्री देवी पुराण छठा स्कन्द अध्याय 10 पृष्ठ 417 पर लिखा है व्यास जी ने राजा जनमेजय से कहा राजन्! यह निश्चय है कि तीर्थ देह सम्बन्धी मैल को साफ कर देते हैं, किन्तु मन के मैल को धोने की शक्ति तीर्थों में नहीं है। चित्तशुद्धि तीर्थ गंगा आदि तीर्थों से भी अधिक पवित्र माना जाता है। यदि भाग्यवश चित्तशुद्धि तीर्थ सुलभ हो जाए तो अर्थात् तत्वदर्शी संतों का सत्संग रूपी तीर्थ प्राप्त हो जाए तो मानसिक मैल के धुल जाने में कोई संदेह नहीं। परन्तु राजन् ! इस चित्तशुद्धि तीर्थ को प्राप्त करने के लिए ज्ञानी पुरुषों अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्तों के सत्संग की विशेष आवश्यकता है। वेद, शास्त्र, व्रत, तप, यज्ञ और दान से चित्तशुद्धि होना बहुत कठिन है। वशिष्ठ जी ब्रह्मा जी के पुत्र थे। उन्होंने वेद और विद्या का सम्यक प्रकार से अध्ययन किया था। गंगा के तट पर निवास करते थे। तथापि द्वेष के कारण उनका विश्वामित्र के साथ वैमनस्य हो गया और दोनों ने परस्पर श्राप दे दिए तथा उनमें भयंकर युद्ध होने लगा। इससे सिद्ध हुआ कि संतों के सत्संग से चित्तशुद्धि कर लेना अति आवश्यक है अन्यथा वेद ज्ञान, तप, व्रत, तीर्थ, दान तथा धर्म के जितने साधन है वे सबके सब कोई विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं कर सकते (श्री देवी पुराण से लेख समाप्त)
* विशेष विचार :- उपरोक्त श्री देवी पुराण के लेख से स्पष्ट है कि तत्त्वदर्शी
सन्तों के सत्संग से श्रेष्ठ कोई भी तीर्थ नहीं है तथा तत्त्वदृष्टा सन्त के बताए मार्ग से साधना करने से कल्याण सम्भव है। तीर्थ, व्रत, तप, दान आदि व्यर्थ प्रयत्न है। तत्त्वदर्शी सन्त के अभाव के कारण केवल चारों वेदों में वर्णित भक्ति विधि से पूर्ण मोक्ष लाभ नहीं है।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है :-
सतगुरु बिन वेद पढ़ें जो प्राणी, समझे ना सार रहे अज्ञानी ।।
सतगुरु बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुष छिट्टै मूढ किसाना ।। अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै सर्व फल सतगुरू चरणा पावै।।
कबीर तीर्थ करि-करि जग मुआ, उड़ै पानी नहाय।
सतनाम जपा नहीं, काल घसीटें जाय ।।
सूक्ष्मवेद (तत्त्वज्ञान) में कहा है कि :-
अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै। सो फल सतगुरू चरणों पावै ।।
गंगा, यमुना, बद्री समेते। जगन्नाथ धाम है जेते ।।
भ्रमें फल प्राप्त होय न जेतो। गुरू सेवा में फल पावै तेतो ।। कोटिक तीर्थ सब कर आवै। गुरू चरणां फल तुरंत ही पावै ।।
सतगुरू मिलै तो अगम बतावै। जम की आंच ताहि नहीं आवै।।
भक्ति मुक्ति को पंथ बतावै। बुरा होन को पंथ छुड़ावै ।। सतगुरू भक्ति मुक्ति के दानी। सतगुरू बिना ना छूटै खानी ।।
सतगुरू गुरू सुर तरू सुर धेनु समाना। पावै चरणन मुक्ति प्रवाना ।।
सरलार्थ :- पूर्ण परमात्मा द्वारा दिए तत्त्वज्ञान यानि सूक्ष्मवेद में कहा है कि तीर्थों और धामों पर जाने से कोई पुण्य लाभ नहीं। असली तीर्थ सतगुरू (तत्त्वदर्शी संत) का सत्संग सुनने जाना है। जहाँ तत्त्वदर्शी संत का सत्संग होता है, वह सर्व श्रेष्ठ तीर्थ तथा धाम है।
इसी कथन का साक्षी संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत महापुराण भी है। उसमें छठे स्कंद के अध्याय 10 में लिखा है कि सर्व श्रेष्ठ तीर्थ तो चित शुद्ध तीर्थ है। जहाँ तत्वदर्शी संत का सत्संग चल रहा है। उसके अध्यात्म ज्ञान से चित की शुद्धि होती है। शास्त्रोक्त अध्यात्म ज्ञान तथा शास्त्रोक्त भक्ति विधि का ज्ञान होता है जिससे जीव का कल्याण होता है। अन्य तीर्थ मात्र भ्रम हैं।
इसी पुराण में लिखा है कि सतगुरू रूप तीर्थ मिलना अति दुर्लभ है।
सूक्ष्मवेद में बताया है कि सतगुरू तो कल्पवृक्ष तथा कामधेनू के समान है। जैसे पुराणों में कहा है कि स्वर्ग में कल्पवृक्ष तथा कामधेनु हैं। उनसे जो भी माँगो, सब सुविधाएँ प्रदान कर देते हैं।
इसी प्रकार सतगुरू जी सत्य साधना बताकर सर्व लाभ साधक को प्रदान करवा देते हैं तथा अपने आशीर्वाद से भी अनेकों लाभ देते हैं। भक्ति करवाकर मुक्ति की राह आसान कर देते हैं। इसलिए कहा है :- कि एकै साधै सब सधै, सब साधैं सब जाय।
माली सींचे मूल को, फलै फूलै अघाय ।।
शब्दार्थ :- एक सतगुरू रूप तीर्थ पर जाने से सब लाभ मिल जाता है। सब तीर्थों-धामों व अन्य अंध श्रद्धा भक्ति से सब लाभ समाप्त हो जाते हैं। जैसे आम के पौधे की एक जड़ की सिंचाई करने से पौधा विकसित होकर पेड़ बनकर बहुत फल देता है।
यदि पौधे को उल्टा करके जमीन में गढ़ढ़े में शाखाओं की ओर से रोपकर शाखाओं की सिंचाई करेंगे तो पौधा नष्ट हो जाता है। कोई लाभ नहीं मिलता। इसलिए एक सतगुरू रूप तीर्थ पर जाने से सर्व लाभ मिल जाता है।
जैसा कि संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में लिखा है कि सतगुरू रूप तीर्थ मिलना अति दुर्लभ है, परंतु आप जी को सतगुरू रूप तीर्थ अति शुलभ है। यह दास (लेखक रामपाल दास) विश्व में एकमात्र सतगुरू तीर्थ यानि तत्वज्ञानी है। आओ और सत्य भक्ति प्राप्त करके जीवन सफल बनाओ।
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