हर घर तिरंगा अभियान अंतर्गत रैली निकाली, महिलाओं की गोद भराई की
इटारसी। वार्ड 16 में गर्भवती महिलाओं की सामूहिक रूप से गोद भराई का आयोजन किया जिसमें मुस्कान सिंह व नीलोफर की गोद भराई की गई। हर घर तिरंगा के अंतर्गत वार्ड 16 मालवीयगंज में रैली निकाली गई एवं वार्डवासियों को शपथ दिलाई।
इस अवसर पर वार्ड के सभी एवं एकीकृत महिला एवं बाल विकास सुपरवाइजर श्रीमती मीना गाठले उपस्थित थीं। स्वास्थ्य विभाग से आशा कार्यकर्ता रीता तिवारी, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता केतकी सेन,…
सौभाग्य वृद्धि के लिए सावन में जरूर करें ये उपाय
हम अपने जीवन में परिवार को खुश रखने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं।
लेकिन आज की भागदौड़ में ये करना काफी मुश्किल हो गया है।
आज हम आपको बताएगे कुछ खास उपाय जो सावन के महीने में करने से आपको होगा लाभ।
सावन के महीने में घर में शिव जी की मूर्ति या तस्वीर उत्तर दिशा में लगाए।
सावन के महीने में शिव जी को टूटे हुए चावल, सिंदूर, हल्दी, तुलसी, शंख का जल, केतकी, चंपा और केवड़े के फूल नहीं चढ़ाने चाहिए।
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में कभी भी भगवान शिव की क्रोधित मुद्रा वाली मूर्ति न लगाएं। इसे विनाश का प्रतीक माना जाता है।
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तब माता ने ब्रह्मा से पूछा क्या तुझे तेरे पिता के दर्शन हुए? ब्रह्मा ने कहा हाँ मुझे पिता के दर्शन हुए हैं। दुर्गा ने कहा साक्षी बता। तब ब्रह्मा ने कहा इन दोनों के समक्ष साक्षात्कार हुआ है।
देवी ने उन दोनों लड़कियों से पूछा क्या तुम्हारे सामने ब्रह्म का साक्षात्कार हुआ है तब दोनों ने कहा कि हाँ, हमने अपनी आँखों से देखा है। फिर भवानी (प्रकृति) को संशय हुआ कि मुझे तो
ब्रह्म ने कहा था कि मैं किसी को दर्शन नहीं दूँगा, परन्तु ये कहते हैं कि दर्शन हुए हैं। तब अष्टंगी ने ध्यान लगाया और काल/ज्योति निरंजन से पूछा कि यह क्या कहानी है? ज्योति निंरजन जी
ने कहा कि ये तीनां झूठ बोल रहे हैं। तब माता ने कहा तुम झूठ बोल रहे हो। आकाशवाणी हुई है कि इन्हें कोई दर्शन नहीं हुए। यह बात सुनकर ब्रह्मा ने कहा कि माता जी मैं सौगंध खाकर
पिता की तलाश करने गया था। परन्तु पिता (ब्रह्म) के दर्शन हुए नहीं। आप के पास आने में शर्म लग रही थी। इसलिए हमने झूठ बोल दिया। तब माता (दुर्गा) ने कहा कि अब मैं तुम्हें शॉप देती हूँ।
ब्रह्मा को शॉप :- तेरी पूजा जगत में नहीं होगी। आगे तेरे वंशज होंगे वे बहुत पाखण्ड करेंगे। झूठी बात बना कर जगत को ठगेंगे। ऊपर से तो कर्म काण्ड करते दिखाई देंगे अन्दर से विकार करेंगे। कथा पुराणों को पढ़कर सुनाया करेंगे, स्वयं को ज्ञान नहीं होगा कि सद्ग्रन्थों में वास्तविकता क्या है, फिर भी मान वश तथा धन प्राप्ति के लिए गुरु बन कर अनुयाइयों को
लोकवेद (शास्त्र विरुद्ध दंत कथा) सुनाया करेंगे। देवी-देवों की पूजा करके तथा करवाके, दूसरों की निन्दा करके कष्ट पर कष्ट उठायेंगे। जो उनके अनुयाई होंगे उनको परमार्थ नहीं
बताएंगे। दक्षिणा के लिए जगत को गुमराह करते रहेंगे। अपने आपको सबसे श्रेष्ठ मानेंगे, दूसरों को नीचा समझेंगे। जब माता के मुख से यह सुना तो ब्रह्मा मुर्छित होकर जमीन पर गिर गया। बहुत समय उपरान्त होश में आया।
गायत्री को शॉप : -- तेरे कई सांड पति होंगे। तू मृतलोक में गाय बनेगी।
पुहपवति को शॉप : -- तेरी जगह गंदगी में होगी। तेरे फूलों को कोई पूजा में नहीं लाएगा। इस झूठी गवाही के कारण तुझे यह नरक भोगना होगा। तेरा नाम केवड़ा केतकी होगा। (हरियाणा में कुसोंधी कहते हैं। यह गंदगी (कुरडियों) वाली जगह पर होती है।)
इस प्रकार तीनों को शाप देकर माता भवानी बहुत पछताई। {इस प्रकार पहले तो जीव बिना सोचे मन (काल निरंजन) के प्रभाव से गलत कार्य कर देता है परन्तु जब आत्मा (सतपुरूष अंश) के प्रभाव से उसे ज्ञान होता है तो पीछे पछताना पड़ता है। जिस प्रकार
माता-पिता अपने बच्चों को छोटी सी गलती के कारण ताड़ते हैं (क्रोधवश होकर) परन्तु बाद में बहुत पछताते हैं। यही प्रक्रिया मन (काल-निंरजन) के प्रभाव से सर्व जीवों में क्रियावान हो रही है।} हाँ, यहाँ एक बात विशेष है कि निरंजन (काल-ब्रह्म) ने भी अपना कानून बना रखा है कि यदि कोई जीव किसी दुर्बल जीव को सताएगा तो उसे उसका बदला देना पड़ेगा। जब आदि
भवानी (प्रकृति, अष्टंगी) ने ब्रह्मा, गायत्री व पुहपवति को शाप दिया तो अलख निंरजन (ब्रह्म-काल) ने कहा कि हे भवानी (प्रकृति/अष्टंगी) यह आपने अच्छा नहीं किया। अब मैं
(निरंजन) आपको शाप देता हूँ कि द्वापर युग में तेरे भी पाँच पति होंगे। (द्रोपदी ही आदिमाया का अवतार हुई है।) जब यह आकाश वाणी सुनी तो आदि माया ने कहा कि हे ज्योति निंरजन (काल) मैं तेरे वश पड़ी हूँ जो चाहे सो कर ले।
{सृष्टि रचना में दुर्गा जी के अन्य नामों का बार-बार लिखने का उद्देश्य है कि पुराणों, गीता तथा वेदों में प्रमाण देखते समय भ्रम उत्पन्न नहीं होगा। जैसे गीता अध्याय 14 श्लोक 3-4 में काल ब्रह्म ने कहा है कि प्रकृति तो गर्भ धारण करने वाली सब जीवों की माता है। मैं उसके
गर्भ में बीज स्थापित करने वाला पिता हूँ। श्लोक 4 में कहा है कि प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुण जीवात्मा को कर्मों के बँधन में बाँधते हैं। - (लेख समाप्त)।
इस प्रकरण में प्रकृति तो दुर्गा है तथा तीनों गुण तीनों देवता यानि रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव के सांकेतिक नाम हैं।}
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
तब माता ने ब्रह्मा से पूछा क्या तुझे तेरे पिता के दर्शन हुए? ब्रह्मा ने कहा हाँ मुझे पिता के दर्शन हुए हैं। दुर्गा ने कहा साक्षी बता। तब ब्रह्मा ने कहा इन दोनों के समक्ष साक्षात्कार हुआ है।
देवी ने उन दोनों लड़कियों से पूछा क्या तुम्हारे सामने ब्रह्म का साक्षात्कार हुआ है तब दोनों ने कहा कि हाँ, हमने अपनी आँखों से देखा है। फिर भवानी (प्रकृति) को संशय हुआ कि मुझे तो
ब्रह्म ने कहा था कि मैं किसी को दर्शन नहीं दूँगा, परन्तु ये कहते हैं कि दर्शन हुए हैं। तब अष्टंगी ने ध्यान लगाया और काल/ज्योति निरंजन से पूछा कि यह क्या कहानी है? ज्योति निंरजन जी
ने कहा कि ये तीनां झूठ बोल रहे हैं। तब माता ने कहा तुम झूठ बोल रहे हो। आकाशवाणी हुई है कि इन्हें कोई दर्शन नहीं हुए। यह बात सुनकर ब्रह्मा ने कहा कि माता जी मैं सौगंध खाकर
पिता की तलाश करने गया था। परन्तु पिता (ब्रह्म) के दर्शन हुए नहीं। आप के पास आने में शर्म लग रही थी। इसलिए हमने झूठ बोल दिया। तब माता (दुर्गा) ने कहा कि अब मैं तुम्हें शॉप देती हूँ।
ब्रह्मा को शॉप :- तेरी पूजा जगत में नहीं होगी। आगे तेरे वंशज होंगे वे बहुत पाखण्ड करेंगे। झूठी बात बना कर जगत को ठगेंगे। ऊपर से तो कर्म काण्ड करते दिखाई देंगे अन्दर से विकार करेंगे। कथा पुराणों को पढ़कर सुनाया करेंगे, स्वयं को ज्ञान नहीं होगा कि सद्ग्रन्थों में वास्तविकता क्या है, फिर भी मान वश तथा धन प्राप्ति के लिए गुरु बन कर अनुयाइयों को
लोकवेद (शास्त्र विरुद्ध दंत कथा) सुनाया करेंगे। देवी-देवों की पूजा करके तथा करवाके, दूसरों की निन्दा करके कष्ट पर कष्ट उठायेंगे। जो उनके अनुयाई होंगे उनको परमार्थ नहीं
बताएंगे। दक्षिणा के लिए जगत को गुमराह करते रहेंगे। अपने आपको सबसे श्रेष्ठ मानेंगे, दूसरों को नीचा समझेंगे। जब माता के मुख से यह सुना तो ब्रह्मा मुर्छित होकर जमीन पर गिर गया। बहुत समय उपरान्त होश में आया।
गायत्री को शॉप : -- तेरे कई सांड पति होंगे। तू मृतलोक में गाय बनेगी।
पुहपवति को शॉप : -- तेरी जगह गंदगी में होगी। तेरे फूलों को कोई पूजा में नहीं लाएगा। इस झूठी गवाही के कारण तुझे यह नरक भोगना होगा। तेरा नाम केवड़ा केतकी होगा। (हरियाणा में कुसोंधी कहते हैं। यह गंदगी (कुरडियों) वाली जगह पर होती है।)
इस प्रकार तीनों को शाप देकर माता भवानी बहुत पछताई। {इस प्रकार पहले तो जीव बिना सोचे मन (काल निरंजन) के प्रभाव से गलत कार्य कर देता है परन्तु जब आत्मा (सतपुरूष अंश) के प्रभाव से उसे ज्ञान होता है तो पीछे पछताना पड़ता है। जिस प्रकार
माता-पिता अपने बच्चों को छोटी सी गलती के कारण ताड़ते हैं (क्रोधवश होकर) परन्तु बाद में बहुत पछताते हैं। यही प्रक्रिया मन (काल-निंरजन) के प्रभाव से सर्व जीवों में क्रियावान हो रही है।} हाँ, यहाँ एक बात विशेष है कि निरंजन (काल-ब्रह्म) ने भी अपना कानून बना रखा है कि यदि कोई जीव किसी दुर्बल जीव को सताएगा तो उसे उसका बदला देना पड़ेगा। जब आदि
भवानी (प्रकृति, अष्टंगी) ने ब्रह्मा, गायत्री व पुहपवति को शाप दिया तो अलख निंरजन (ब्रह्म-काल) ने कहा कि हे भवानी (प्रकृति/अष्टंगी) यह आपने अच्छा नहीं किया। अब मैं
(निरंजन) आपको शाप देता हूँ कि द्वापर युग में तेरे भी पाँच पति होंगे। (द्रोपदी ही आदिमाया का अवतार हुई है।) जब यह आकाश वाणी सुनी तो आदि माया ने कहा कि हे ज्योति निंरजन (काल) मैं तेरे वश पड़ी हूँ जो चाहे सो कर ले।
{सृष्टि रचना में दुर्गा जी के अन्य नामों का बार-बार लिखने का उद्देश्य है कि पुराणों, गीता तथा वेदों में प्रमाण देखते समय भ्रम उत्पन्न नहीं होगा। जैसे गीता अध्याय 14 श्लोक 3-4 में काल ब्रह्म ने कहा है कि प्रकृति तो गर्भ धारण करने वाली सब जीवों की माता है। मैं उसके
गर्भ में बीज स्थापित करने वाला पिता हूँ। श्लोक 4 में कहा है कि प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुण जीवात्मा को कर्मों के बँधन में बाँधते हैं। - (लेख समाप्त)।
इस प्रकरण में प्रकृति तो दुर्गा है तथा तीनों गुण तीनों देवता यानि रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव के सांकेतिक नाम हैं।}
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
Panchang, an ancient Hindu calendar, holds profound significance in Hindu culture. Derived from the Sanskrit words "Panch" meaning "five" and "Ang" meaning "part," Panchang refers to the five components that constitute a traditional Hindu calendar: Tithi (lunar day), Vara (weekday), Nakshatra (star), Yoga, and Karana. It serves as a comprehensive guide, offering insights into auspicious and inauspicious timings for various activities, aligning life with celestial energies.
हस्तिनापुर सँ क्रुद्ध भ' कृष्ण निकलले छलाह l दुर्योधन'क बेवहार सँ मोन पिताएल छलनि l कहु'त; कोन ज्ञाने बीच सभा में बाजि उठल -"कृष्ण छल क रहल छथि पितामह l हिनका अहाँ नै जानि रहल छियनि l शुद्ध मोन सँ मध्यस्थता नै'क' रहल छथि l पाँचटा गाम'त उपरे-उपरे मंगलैथ l भितरे-भितर पांडव सभ के उकसा सेहो रहल छथि l'' कृष्ण सभा में भेल बात के सोचति सोचति हस्तिनापुर सँ इन्द्रप्रस्थ में कखन प्रवेश क' गेलाह से पतो नै चललनि l एक नजरि उठा'क इंद्रप्रस्थ के देखलखिन आ चलिते रहलाह l
अचानक एकटा' स्त्री सोंझा में ठाढ़ भ' हाथ देखेलकनि l कृष्ण के तत्क्षण रथ रोकय पड़लनि l रथे'परसँ पुछलथिन - " के छी अहाँ ? की बात ?
उतरि'क हमरा सने छाह में चलु , फेर चनि'सँ कहब जे हम के छी l
कृष्ण के मोन ओहिना पितायल रहनि, ता पर एकटा नव सन बात l किछुएक काल पहिने विराट रूप सभा के देखा क' फिर रहल छलाह l मूड ठीक नै छलन्हि मुदा सोंझा में स्त्री जाति; तैं अपन तामस केर पूर्ण नियंत्रित'क बजलाह - बेस , तखन चलु l
बगल मे एकटा पिपर गाछ छलै! झमटगर पिपर के गाछ तर पहुंचि दुनूगोटे बैस गेलाह l त' आब कहु , की बात ?
हमर नाम केतकी छी l ओ देखाइए पोखरि महार , ओकरे बगल में हमर घर अछि l अहाँके जाएत बेरिया देखने रही l इन्द्रप्रस्थ के बुझल छै, जे अज्ञातवास काटि पांडव आबि गेल छैथ l सब डरायल अइछ l सभके भय पसि'गेल छै कोनो अनीति के, कोनो विकराल अजगर के मुँह, जाहि में पूरा मनुखजाति गिरा जेतै l बड्ड मोसकिल सँ उजड़ल राज्य के समय बसा देलकै l मुदा , फेरसँ पांडव सभके आगमन हमरा सभगोटे के येह पीपर पात जँका डोला रहल अछि l हम अहाँके एतबे पुछबाक लेल रोकलहुँ , जे कहु आगू आब की ? अहाँ त भगवान छी; अहाँके अनुमति के बिना की भ' सकैत अइछ l जे करबाक हुए करू अहाँसभ , लेकिन युद्ध नै होमय देबै, से हम कहि दैत छी l
कृष्ण के त ठकमुरि लागि गेलनि l ओ ओहि स्त्री के देखिते रही गेलाह l सभा मे ओ ताल ठोकि देने रहथिन l कनि सम्हरि'क बजाय पड़लनि l आब त' युद्धे टा मात्र उपाय बचल केतकी !
से कोना ? आर कोन आधार पर युद्ध ? हमरा साफ़ साफ़
कहु l
हम पांचो पांडव के लेल पाँचटा गाम मांगने रहि, दुर्योधन सेहो में तैयार नै भेल l
नै भेल त नै भेल ! तै लेल युद्ध किएक ?
युद्ध किएक नै केतकी ? आखिर सत के जीत त हेबाके चाही ने l अज्ञातवास के बाद हस्तिनापुर के वचनानुसार आधा राज्य फिरा देबाक बात भेल छै l से त जाय दियौक, पांचो टा गाम भेटबा में आफद क देलकै दुर्योधन !
अहिं कहु - अपन अधिकार के लेल फेर पांडव लग युद्ध के अलावा आर किछु बचलैक ?
वाह ! खूब बजलौं ! अधिकार ! पाण्डवक अधिकार ! हमर सभके कोनो अधिकार नै ? हमर सभके कोनो सत नै l पूरा खेलवेळ खेलाइ गेलाह कौरव-पांडव अपना में , आ विपत्ति पर विपत्ति लाखक लाख हमरा संन आमलोक पर ! जखन एकबेर इन्द्रप्रस्थ युधिष्ठिर के भेट गेलनि, त ओ एहन मूढ़ किएक भेलाह जे जुआ में राजपाट संग अपन घरवाली के सेहो हारि गेलाह ? एही इन्द्रप्रस्थ के फेर त कौरवे ने सम्हारि'क रखलक ! आ झूठ किएक कहब ! पांडव सँ सातवर नीक जँका रखलक l आब, फेर सँ अहाँ चाहैत छी जे राजा बदलि जाय , आ कहियो फेर जुआ में पांडव एकरा हारि जाइथ ! आ हमसभ अनाथ ! सेह ने यौ ! बाजु ने , कोन सत ? कोन अधिकार ? एकसैय आ पांच - जे भेल एकसैय पांच , बस इ एकसैय पांच आदमी के चक्कर में करोड़क करोड़ घर उजड़ि जाय ! अरे , युद्ध त' तखन ने उचित, जखन कियो नाक में कटकी करे , बरजोरी राज हरपबाक प्रयास करे ! इ की ,जे अपन कान काटि लेब आ फेर छुरि ल कहब जे - आब तोरो कान कटबह ! बाजु ने किछु कृष्ण ? अहाँ यदि युद्ध के स्थान देबै त' हमर सभके जिनगी त' उजड़ि जेबे करत, मुदा याद राखि लेब जे भविष्य में सेहो अहिं एहन लोकसभ खूब आगि लगा लगा सत आ धर्म के स्थापना में हमरा संन लोक के जरा जरा क' भुजैत रहत I आब हम जाएत छी I अहुँ जाउ I हमारा जे कहबाक छल से हम कहि चुकल ! आहाँके जे करबाक अछि से अहाँ करू I
कृष्ण केतकी के चुपचाप जाएत देखति रहि गेलाह l
केतकी सन स्त्री'क प्रसंग आओर प्रश्न के ग्रंथ मे स्थान नै भेटति छै l तखने त" ई आदि काल सं नरसंहार टहलि टहलि बाल्टीमे सोनित' ल पुचकारि रहल छै-" बऊवा के मुँह मे घुटुस!
सौभाग्य वृद्धि के लिए सावन में जरूर करें ये उपाय
हम अपने जीवन में परिवार को खुश रखने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं।
लेकिन आज की भागदौड़ में ये करना काफी मुश्किल हो गया है।
आज हम आपको बताएगे कुछ खास उपाय जो सावन के महीने में करने से आपको होगा लाभ।
सावन के महीने में घर में शिव जी की मूर्ति या तस्वीर उत्तर दिशा में लगाए।
सावन के महीने में शिव जी को टूटे हुए चावल, सिंदूर, हल्दी, तुलसी, शंख का जल, केतकी, चंपा और केवड़े के फूल नहीं चढ़ाने चाहिए।
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में कभी भी भगवान शिव की क्रोधित मुद्रा वाली मूर्ति न लगाएं। इसे विनाश का प्रतीक माना जाता है।
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गरीब, गगन मंडल में रमि रह्या गलताना महबूब। वार पार नहिं छेव है, अबिचल मूरति खूब।।52।।
◆ सरलार्थ :- गलताना महबूब यानि मस्तमौला आत्मा का सच्चा प्रेमी परमात्मा गगन मंडल यानि आकाश में रमा है यानि स्थाई निवास करता है। उसका कोई वार-पार यानिभेद नहीं और ना ही कोई उसका छेव यानि मूल्य है। वह अविचल यानि अविनाशी मूर्ति खूब यानि सही साकार स्वरूप है। वास्तव ��ें ऐसा ही है।
◆ वाणी नं. 53 :-
गरीब, ऐसा सतगुरु सेइये, जो नाम दृढ़ावैं। भरमी गुरुवा मति मिलौ, जो मूल गमावै।।53।।
◆ सरलार्थ :- ऐसे सतगुरू की सेवा करो यानि ऐसा गुरू धारण करो जो नाम की भक्ति दृढ़ करे। जो शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण करने वाला भ्रमित करने वाला गुरू न
मिले जो मूल गंवावै यानि मानव शरीर में श्वांस रूपी पूँजी जो मूल धन है, उसको गंवा दे यानि नष्ट करा देता है। जैसे सौदागर मूल धन का ठीक से प्रयोग करके दुगना-तिगुना, चार गुणा कर लेता है और जो कुसंगत में गिरकर शराब-जुआ खेलकर मूल धन का नाश कर लेता है, वह फिर पछताता है। इसी प्रकार भ्रमित गुरू का शिष्य अपने जीवन को नष्ट करके ऊपर भगवान के द्वार पर हाथ मलकर पछताता है।
◆ वाणी नं. 54 :-
गरीब, सोहं सुरति लगाईले, गुण इन्द्रिय सें बंच। नाम लिया तब जानिये, मिटै सकल प्रपंच।।54।।
◆ सरलार्थ :- सोहं नाम का जाप सुरति-निरति से करो और इन्द्रियों को काबू में रखो। नाम आदि दीक्षा लेकर स्मरण करने वाले को उस समय लाभ ���ोगा यानि उस पर नाम के जाप का प्रभाव तब दिखेगा, जब उसके अंदर के सब परपंच समाप्त हो जाऐंगे। जैसे नाचना, गाना, सिनेमा देखना, नशीली वस्तुओं का सेवन करना आदि-आदि बुराईयों से घृणा हो जाएगी। सादा जीवन जीएगा तो परपंच मिट गए।
◆ वाणी नं. 55 :-
गरीब, नाम निहचल निरमला, अनंत लोक में गाज। निरगुण सिरगुण क्या कहै, प्रगटा संतों काज।।55।।
◆ सरलार्थ :- जो सारनाम है, वह पवित्र तथा अविनाशी है। उसकी सत्ता की धाक (गाज=आवाज की शक्ति) असँख्यों लोकों में है। उस परमात्मा को कोई निर्गुण कहता है,
कोई सर्गुण। वह तो भक्तों को यथार्थ भक्ति ज्ञान बताकर मोक्ष करने के लिए प्रकट हुआ था।
◆ वाणी नं. 56,57,58 :-
गरीब, अविनासी के नाम में, कौन नाम निजमूल। सुरति निरति सें खोजिलै, बास बडी अक फूल।।56।।
गरीब, फूल सही सिरगुण कह्या, निरगुण गंध सुगंध। मन मालीके बागमें, भँवर रह्या कहां बंध।।57।।
गरीब, भँवर विलंब्या केतकी, सहस कमलदल मांहि। जहां नाम निजनूर है, मन माया तहां नांहि।।58।।
◆ सरलार्थ :- अविनाशी परमात्मा का मूल नाम यानि वास्तविक मंत्र जाप का नाम कौन-सा है? उत्तर बताया है कि विचार करके (सुरति-निरति से) स्वयं खोजकर कि जैसे
फूल से सुगंध निकलती है तो इनमें किसको मूल यानि वास्तविक कारण कहा जाए। मूल
का अर्थ है मुख्य कारण। सुगंध फूल बिना नहीं हो सकती। विचार करें कि फूल और सुगंध कौन बड़ा है? तो उत्तर होगा कि फूल बिना सुगंध कहाँ से आएगी। जो व्यक्ति परमात्मा को
निर्गुण रूप में मानते हैं, उसकी प्राप्ति का प्रयत्न भी करते हैं तथा यह भी कहते हैं कि परमात्मा मिलता नहीं क्योंकि वह निराकार है। जैसे फूल तो सर्गुण है, साकार है। उससे निकल रही सुगंध निर्गुण (निराकार) है। इसी प्रकार सतपुरूष सगुण है, उसकी शक्ति निर्गुण् (निराकार) है। जो परमात्मा को निर्गुण यानि गुण रहित (निराकार) कहते हैं। यह ज्ञान काल
ब्रह्म रूपी मन ने भ्रम फैलाया है। हे जीव! तू परमेश्वर कबीर जी का यथार्थ आध्यात्म ज्ञान समझ। तू इस मन रूपी काल ब्रह्म माली के इक्कीस ब्रह्मण्ड रूपी बबूल के बाग में हे भंवर
यानि जीव! कहाँ बंध गया। इसका ब्रह्म लोक भी नाशवान है। यह स्वयं भी नाशवान है। तूने तो अविनाशी परमेश्वर को प्राप्त करके अमर होना चाहिए। जहाँ पर मन माया यानि काल
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