*‘‘परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति से पूर्ण मोक्ष होता है’’*
📜काल ब्रह्म व देवताओं की भक्ति करके भी जीव का जन्म-मरण का चक्र समाप्त नहीं होता क्योंकि ये स्वयं जन्म व मृत्यु के चक्र में पड़े हैं।
संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त ज्ञान को इस प्रकार बताया है:-
{संत गरीबदास जी, गाँव-छुड़ानी हरियाणा की अमृतवाणी}
मन तू चलि रे सुख के सागर, जहाँ शब्द सिंधु रत्नागर। (टेक)
कोटि जन्म तोहे मरतां होगे, कुछ नहीं हाथ लगा रे।
कुकर-सुकर खर भया बौरे, कौआ हँस बुगा रे।।1।।
कोटि जन्म तू राजा किन्हा, मिटि न मन की आशा।
भिक्षुक होकर दर-दर हांड्या, मिल्या न निर्गुण रासा।।2।।
इन्द्र कुबेर ईश की पद्वी, ब्रह्मा, वरूण धर्मराया।
विष्णुनाथ के पुर कूं जाकर, बहुर अपूठा आया।।3।।
असँख्य जन्म तोहे मरते होगे, जीवित क्यूं ना मरै रे।
द्वादश मध्य महल मठ बौरे, बहुर न देह धरै रे।।4।।
दोजख बहिश्त सभी तै देखे, राज-पाट के रसिया।
तीन लोक से तृप्त नाहीं, यह मन भोगी खसिया।।5।।
सतगुरू मिलै तो इच्छा मेटैं, पद मिल पदै समाना।
चल हँसा उस लोक पठाऊँ, जो आदि अमर अस्थाना।।6।।
चार मुक्ति जहाँ चम्पी करती, माया हो रही दासी।
दास गरीब अभय पद परसै, मिलै राम अविनाशी।।7।।
सूक्ष्मवेद की वाणी का सरलार्थ:-
आत्मा अपने साथी मन को अमर लोक के सुख तथा इस काल ब्रह्म के लोक के दुख को बताकर सुख के सागर रूपी अमर लोक (सत्यलोक) में चलने के लिए प्ररित कर रही हैं। काल (ब्रह्म) के लोक (इक्कीस ब्रह्माण्डों) में रहने वाले प्राणी को क्या-क्या कष्ट होते हैं, पहले यह जानकारी बताई है। कहा है कि:-
काल (ब्रह्म) के लोक का अटल विधान है कि जो जन्मता है, उसकी मृत्यु निश्चित है और जो मर जाता है, उसका जन्म निश्चित है।
प्रमाण गीता जी में देखें:-
श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 2 श्लोक 22 में इस प्रकार कहा है:-
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रा ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त करता है।
गीता अध्याय 2 श्लोक 27:- क्योंकि जन्में हुए की मृत्यु निश्चित है और मरे हुए का जन्म निश्चित है। इसलिए बिना उपाय वाले विषय में तू शोक करने के योग्य नहीं है।
श्रीमद् भगवत गीता शास्त्र से स्पष्ट हुआ कि काल (ब्रह्म) के लोक का अटल नियम है कि जन्म तथा मृत्यु सदा बने रहेंगे। जैसे गीता अध्याय 2 श्लोक 12 में भी कहा है कि:- हे अर्जुन! तू, मैं (गीता ज्ञान दाता) तथा ये सर्व राजा लोग पहले भी जन्मे, ये आगे भी जन्मेंगे।
गीता अध्याय 4 श्लोक 5 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि हे अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, उन सबको तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ।
गीता अध्याय 10 श्लोक 2 में गीता ज्ञान ने यह भी स्पष्ट किया है कि मेरी उत्पत्ति को न तो ऋषिजन जानते हैं, न देवता जानते हैं क्योंकि ये सर्व मेरे से उत्पन्न हुए हैं।
इसलिए गीता अध्याय 8 श्लोक 15 में कहा है कि:-
माम् उपेत्य पुनर्जन्मः दुःखालयम् अशाश्वतम्।
न आप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिम् परमाम् गता।।
अनुवाद:- गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि (माम्) मुझे (उपेत्य) प्राप्त होकर तो (दुःखालयम् ���शाश्वतम्) दुःखों के घर व नाशवान संसार में (पुनर्जन्मः) पुनर्जन्म है। (महात्मानः) महात्माजन जो (संसिद्धिम् परमाम्) परम सिद्धि को (गता) प्राप्त हो गए हैं, (न अप्नुवन्ति) पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होते।
विशेष:- पाठकजनों से निवेदन है कि मुझ (लेखक संत रामपाल दास) से पहले सर्व अनुवादकों ने गीता के इस श्लोक का गलत (ॅतवदह) अनुवाद किया है। (गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि मुझे प्राप्त होकर पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होते।)
विचार करें:- पहले लिखे अनेकों गीता के श्लोकों में आप जी ने पढ़ा कि गीता ज्ञान दाता ने स्वयं कहा है कि मेरे तथा तेरे अनेकों जन्म हो चुके हैं। फिर भी इस श्लोक का यह अर्थ करना कि मुझे प्राप्त महात्मा का पुनर्जन्म नहीं होता, गीता की यथार्थता के साथ खिलवाड़ करना तथा अर्थों का अनर्थ करना मात्र है।
सूक्ष्मवेद की अमृतवाणी का यह भावार्थ है:-
वाणी का सरलार्थ:- आत्मा और मन को पात्र बनाकर संत गरीबदास जी ने संसार के मानव को समझाया है। कहा है कि ‘‘यह संसार दुःखों का घर है। इससे भिन्न एक और संसार है। जहाँ कोई दुःख नहीं है। वह शाश्वत् स्थान है (सनातन परम धाम = सत्यलोक) वह सुख सागर है तथा वहाँ का प्रभु (अविनाशी परमेश्वर) भी सुखदायी है जो उस सुख सागर में निवास करता है। सुख सागर अर्थात् अमर लोक की संक्षिप्त परिभाषा बताई है:-
शंखों लहर मेहर की ऊपजैं, कहर नहीं जहाँ कोई।
दास गरीब अचल अविनाशी, सुख का सागर सोई।।
भावार्थ:- जिस समय मैं (लेखक) अकेला होता हूँ, तो कभी-कभी ऐसी हिलोर अंदर से उठती है, उस समय सब अपने-से लगते हैं। चाहे किसी ने मुझे कितना ही कष्ट दे रखा हो, उसके प्रति द्वेष भावना नहीं रहती। सब पर दया भाव बन जाता है। यह स्थिति कुछ मिनट ही रहती है। उसको मेहर की लहर कहा है। सतलोक अर्थात् सनातन परम धाम में जाने के पश्चात् प्रत्येक प्राणी को इतना आनन्द आता है। वहाँ पर ऐसी असँख्यों लहरें आत्मा में उठती रहती हैं। जब वह लहर मेरी आत्मा से हट जाती है तो वही दुःखमय स्थिति प्रारम्भ हो जाती है। उसने ऐसा क्यों कहा?, वह व्यक्ति अच्छा नहीं है, वो हानि हो गई, यह हो गया, वह हो गया। यह कहर (दुःख) की लहर कही जाती है।
उस सतलोक में असँख्य लहर मेहर (दया) की उठती हैं, वहाँ कोई कहर (भयँकर दुःख) नहीं है। वैसे तो सतलोक में कोई दुःख नहीं है। कहर का अर्थ भयँकर कष्ट होता है। जैसे एक गाँव में आपसी रंजिस के चलते विरोधियों ने दूसरे पक्ष के एक परिवार के तीन सदस्यों की हत्या कर दी, कहीं पर भूकंप के कारण हजारों व्यक्ति मर जाते हैं, उसे कहते हैं कहर टूट पड़ा या कहर कर दिया। ऊपर लिखी वाणी में सुख सागर की परिभाषा संक्षिप्त में बताई है। कहा है कि वह अमर लोक अचल अविनाशी अर्थात् कभी चलायमान नहीं है, कभी ध्वस्त नहीं होता तथा वहाँ रहने वाला परमेश्वर अविनाशी है। वह स्थान तथा परमेश्वर सुख का समन्दर है। जैसे समुद्री जहाज बंदरगाह के किनारे से 100 या 200 किमी. दूर चला जाता है तो जहाज के यात्रियों को जल अर्थात् समंदर के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं देता। सब और जल ही जल नजर आता है। इसी प्रकार सतलोक (सत्यलोक) में सुख के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है अर्थात् वहाँ कोई दुःख नहीं है।
अब पूर्व में लिखी वाणी का सरलार्थ किया जाता है:-
मन तू चल रे सुख के सागर, जहाँ शब्द सिंधु रत्नागर।।(टेक)
कोटि जन्म तोहे भ्रमत होगे, कुछ नहीं हाथ लगा रे।
कुकर शुकर खर भया बौरे, कौआ हँस बुगा रे।।
परमेश्वर कबीर जी ने अपनी अच्छी आत्मा संत गरीबदास जी को सूक्ष्मवेद समझाया, उसको संत गरीबदास जी (गाँव-छुड़ानी जिला-झज्जर, हरियाणा प्रान्त) ने आत्मा तथा मन को पात्र बनाकर विश्व के मानव को काल (ब्रह्म) के लोक का कष्ट तथा सतलोक का सुख बताकर उस परमधाम में चलने के लिए सत्य साधना जो शास्त्रोक्त है, करने की प्रेरणा की है। मन तू चल रे सुख के सागर अर्थात् हे मन! तू सनातन परम धाम में चल। शब्द को अविनाशी अर्थ दिया है क्योंकि शब्द नष्ट नहीं होता। इसलिए शब्द का अर्थ अविनाशीपन से है कि वह स्थान अमरत्व का सिंधु अर्थात् सागर है और मोक्षरूपी रत्न का आगार अर्थात् खान है। इस काल ब्रह्म के लोक में आप जी ने भक्ति भी की। परंतु शास्त्रानुकूल साधना बताने वाले तत्त्वदर्शी संत न मिलने के कारण आप करोड़ों जन्मों से भटक रहे हो। करोड़ों-अरबों रूपये संग्रह करने में पूरा जीवन लगा देते हो। अचानक मृत्यु हो जाती है। वह जोड़ा हुआ धन जो आपके पूर्व के संस्कारों से प्राप्त हुआ था, उसे छोड़कर संसार से चला गया। उस धन के संग्रह करने में जो पाप किए, वे आप जी के साथ गए। आप जी ने उस मानव जीवन में तत्त्वदर्शी संत से दीक्षा लेकर शास्त्राविधि अनुसार भक्ति की साधना नहीं की। जिस कारण से आपको कुछ हाथ नहीं आया। पूर्व के पुण्यों के बदले धन ले लिया। वह धन यहीं रह गया, आपको कुछ भी नहीं मिला। आपको मिले धन संग्रह तथा भक्ति शास्त्रनुकूल न करने के पाप।
जिनके कारण आप कुकर = कुत्ता, खर = गधा, सुकर = सूअर, कौआ = काग पक्षी, हँस= एक पक्षी जो केवल सरोवर में मोती खाता है, बुगा = बुगला पक्षी आदि-आदि की योनियों को प्राप्त करके कष्ट उठाया।
कोटि जन्म तू राजा कीन्हा, मिटि न मन की आशा।
भिक्षुक होकर दर-दर हांड्या, मिला न निर्गुण रासा।।
सरलार्थ:- हे मानव! आप जी ने काल (ब्रह्म) की कठिन से कठिन साधना की। घर त्यागकर जंगल में निवास किया, फिर भिक्षा प्राप्ति के लिए गाँव व नगर में घर-घर के द्वार पर हांड्या अर्थात् घूमा। जंगल में साधनारत साधक निकट के गाँव या शहर में जाता है। एक घर से भिक्षा पूरी नहीं मिलती तो अन्य घरों से भोजन लेकर जंगल में चला जाता है। कभी-कभी तो साधक एक दिन भिक्षा माँगकर लाते हैं, उसी से दो-तीन दिन निर्वाह करते हैं। रोटियों को पतले कपड़े रूमाल जैसे कपड़े को छालना कहते हैं। छालने में लपेटकर वृक्ष की टहनियों से बाँध देते थे। वे रोटियाँ सूख जाती हैं। उनको पानी में भिगोकर नर्म करके खाते थे। वे प्रतिदिन भिक्षा माँगने जाने में जो समय व्यर्थ होता था, उसकी बचत करके उस समय को काल ब्रह्म की साधना में लगाते थे। भावार्थ है कि जन्म-मरण से छुटकारा पाने के लिए अर्थात् पूर्ण मोक्ष प्राप्ति के लिए वेदों में वर्णित विधि तथा लोकवेद से घोरतप करते थे। उनको तत्त्वदर्शी संत न मिलने के कारण निर्गुण रासा अर्थात् गुप्त ज्ञान जिसे तत्त्वज्ञान कहते हैं। वह नहीं मिला क्योंकि यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10 में तथा चारों वेदों का सारांश रूप श्रीमद् भगवत गीता अध्याय 4 श्लोक 32 तथा 34 में कहा है कि जो यज्ञों अर्थात् धार्मिक अनुष्ठानों का विस्तृत ज्ञान स्वयं सच्चिदानन्द घन ब्रह्म अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म अपने मुख कमल से बोलकर सुनाता है, वह तत्त्वज्ञान अर्थात् सूक्ष्मवेद है। गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने कहा है कि उस तत्त्वज्ञान को तू तत्त्वज्ञानियों के पास जाकर समझ, उनको दण्डवत् प्रणाम करने से नम्रतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्त्व को भली-भाँति जानने वाले तत्त्वदर्शी संत तुझे तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे। इससे सिद्ध हुआ कि तत्त्वज्ञान न वेदों में है और न ही गीता शास्त्र में। यदि होता तो एक अध्याय और बोल देता। कह देता कि तत्त्वज्ञान उस अध्याय में पढ़ें। संत गरीबदास जी ने मन के बहाने मानव शरीरधारी प्राणियों को समझाया है कि वह निर्गुण रासा अर्थात् तत्त्वज्ञान न मिलने के कारण काल ब्रह्म की साधना करके आप जी करोड़ों जन्मों में राजा बने। फिर भी मन की इच्छा समाप्त नहीं हुई क्योंकि राजा सोचता है कि स्वर्ग में सुख है, यहाँ राज में कोई सुख-��ैन नहीं है, शान्ति नहीं है।
निर्गुण रासा का भावार्थ:- निर्गुण का अर्थ है कि वह वस्तु तो है परंतु उसका लाभ नहीं मिल रहा। वृक्ष के बीज में फल तथा वृक्ष निर्गुण रूप में है, उस बीज को मिट्टी में बीजकर सिंचाई करके वह सरगुण वस्तु (वृक्ष, वृक्ष को फल) प्राप्त की जाती है। यह ज्ञान न होने से आम के फल व छाया से वंचित रह जाते हैं। रासा = झंझट अर्थात् उलझा हुआ कार्य। सूक्ष्मवेद में परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि:-
नौ मन (360 कि.ग्रा.) सूत = कच्चा धागा
कबीर, नौ मन सूत उलझिया, ऋषि रहे झख मार।
सतगुरू ऐसा सुलझा दे, उलझे न दूजी बार।।
सरलार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि अध्यात्म ज्ञान रूपी नौ मन सूत उलझा हुआ है। एक कि.ग्रा. उलझे हुए सूत को सीधा करने में एक दिन से भी अधिक जुलाहों का लग जाता था। यदि सुलझाते समय धागा टूट जाता तो कपड़े में गाँठ लग जाती। गाँठ-गठीले कपड़े को कोई मोल नहीं लेता था। इसलिए परमेश्वर कबीर जुलाहे ने जुलाहों का सटीक उदाहरण बताकर समझाया है कि अधिक उलझे हुए सूत को कोई नहीं सुलझाता था। अध्यात्म ज्ञान उसी नौ मन उलझे हुए सूत के समान है जिसको सतगुरू अर्थात् तत्त्वदर्शी संत ऐसा सुलझा देगा जो पुनः नहीं उलझेगा। बिना सुलझे अध्यात्म ज्ञान के आधार से अर्थात् लोकवेद के अनुसार साधना करके स्वर्ग-नरक, चैरासी लाख प्रकार के प्राणियों के जीवन, पृथ्वी पर किसी टुकड़े का राज्य, स्वर्ग का राज्य प्राप्त किया, पुनः फिर जन्म-मरण के चक्र में गिरकर कष्ट पर कष्ट उठाया। परंतु काल ब्रह्म की वेदों में वर्णित विधि अनुसार साधना करने से वह परम शांति तथा सनातन परम धाम प्राप्त नहीं हुआ जो गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है और न ही परमेश्वर का वह परम पद प्राप्त हुआ जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में कभी नहीं आते जो गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है। काल ब्रह्म की साधना से निम्न लाभ होता रहता है।
वाणी नं 3:- इन्द्र-कुबेर, ईश की पदवी, ब्रह्मा वरूण धर्मराया।
विष्णुनाथ के पुर कूं जाकर, बहुर अपूठा आया।।
सरलार्थ:- काल ब्रह्म की साधना करके साधक इन्द्र का पद भी प्राप्त करता है। इन्द्र स्वर्ग के राजा का पद है। इसकोे देवराज अर्थात् देवताओं का राजा तथा सुरपति भी कहते हैं। यह सिंचाई विभाग अर्थात् वर्षा मंत्रालय भी अपने आधीन रखता है।
हर महीने में दो बार एकादशी व्रत किया जाता है और इस तरह एक साल में 24 एकादशी व्रत किए जाते हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं। यदि आप चाहते हैं कि आपको किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त हो तो इसके लिए विजया एकादशी का व्रत रखें। इस व्रत को रखने से और भगवान विष्णु की पूजा करने से आपको जीवन में अवश्य सफलता मिलती है। इसी कड़ी में आइये जानते हैं कब है विजया एकादशी का व्रत और क्या है इस व्रत का महत्व ?
कब है विजया एकादशी 2024 ?
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है। उदयातिथि के आधार पर विजया एकादशी का व्रत 6 मार्च बुधवार को है। क्योंकि एकादशी तिथि का सूर्योदय 6 मार्च को होगा इसलिए यह व्रत इसी दिन किया जायेगा। यह व्रत शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए भी किया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्री राम ने रावण से युद्ध करने से पहले विजया एकादशी का व्रत रखा था, जिसके प्रभाव से उन्होंने रावण का वध किया था इसलिए इस दिन व्रत रखना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
विजया एकादशी व्रत की पूजा विधि
विजया एकादशी के दिन सबसे पहले सवेरे उठकर स्नान आदि करें और फिर सच्चे मन से भगवान विष्णु का नाम लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं। फिर भगवान को अक्षत, फल, पुष्प, चंदन, मिठाई, रोली, मोली आदि अर्पित करें। भगवान विष्णु को तुलसी दल जरूर अर्पित करें क्योंकि भगवान विष्णु को तुलसी अत्यधिक प्रिय है। श्रद्धा-भाव से पूजा कर अंत में भगवान विष्णु की आरती करने के बाद सबको प्रसाद बांटें।
इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी शुभ होता है क्योंकि इस पाठ को करने से लक्ष्मी जी आपके घर में वास करती हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि विजया एकादशी के शुभ दिन किसी गोशाला में गायों के लिए अपनी सामर्थ्य के अनुसार धन का दान करें। विजया एकादशी के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। गरीबों व जरूरतमंदों को अन्न , वस्त्र, दक्षिणा आदि दान करें।
विजया एकादशी पारण
विजया एकादशी व्रत के दूसरे दिन पारण किया जाता है। एकादशी व्रत में दूसरे दिन विधि-विधान से व्रत को पूर्ण किया जाता है। विजया एकादशी व्रत का पारण 7 मार्च, गुरुवार को किया जाएगा। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि इस व्रत का पारण करने से पहले आप ब्राह्मणों को भोजन अवश्य करायें और साथ ही अपनी सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंद को दान करें और इसके बाद ही स्वयं भोजन करें।
विजया एकादशी व्रत का महत्व
एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। साल में जो 24 एकादशी आती हैं, हर एकादशी का अपना अलग महत्व है। विजया एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति की मुश्किलें दूर होती हैं और हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। महंत श्री पारस भाई जी का कहना है कि भगवान विष्णु के आशीर्वाद से पाप मिटते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। विजया एकादशी जिसके नाम से ही पता चलता है कि इस एकादशी के प्रभाव से आपको विजय की प्राप्ति होती है। यानि विजय प्राप्ति के लिए इस दिन श्रीहरि की पूजा करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि जो मनुष्य विजया एकादशी का व्रत रखता है उस मनुष्य के पितृ स्वर्ग लोक में जाते हैं।
पूजा के समय इस मंत्र का जाप करें- कृं कृष्णाय नम:, ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:। महंत श्री पारस भाई जी ने इस व्रत के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में भी इस व्रत का वर्णन मिलता है। विजया एकादशी का व्रत भी बाकी एकादशियों की तरह बहुत ही कल्याणकारी है।
महंत श्री पारस भाई जी आगे कहते हैं कि यदि आप शत्रुओं से घिरे हो और कैसी भी विकट परिस्थिति क्यों न हो, तब विजया एकादशी के व्रत से आपकी जीत निश्चित है।
इस दिन ये उपाय होते हैं बहुत ख़ास
तुलसी की पूजा विजया एकादशी के दिन तुलसी पूजा को बहुत ही अधिक महत्व दिया जाता है। इस तुलसी के पौधे को जल अर्पित कर दीपक जलाएं। इसके अलावा तुलसी का प्रसाद भी ग्रहण करें। ऐसा करने से घर से दुःख दूर होते हैं और घर में खुशालीआती है ।
शंख की पूजा
विजया एकादशी के दिन तुलसी पूजा की तरह शंख पूजा का भी अत्यधिक महत्व है। इस दिन शंख को तिलक लगाने के बाद शंख में जल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक कर शंख बजाएं। शंख से अभिषेक कर बजाना भी फलदायी माना जाता है। ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
पीला चंदन प्रयोग करें
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि विजया एकादशी के दिन पीले चंदन का अत्यंत महत्व होता है। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु को और स्वयं भी पीले चंदन का टीका अवश्य लगाएं। पीले चंदन का टीका लगाने से आपको कभी असफलता नहीं मिलेगी और आपकी सदैव जीत होगी।
ॐ श्री विष्णवे नम: “पारस परिवार” की ओर से विजया एकादशी 2024 की हार्दिक शुभकामनाएं !!!
आज दिनांक - 28 अगस्त 2024 का सटीक गणनाओं के साथ वैदिक हिन्दू पंचांग, गणेश चतुर्थी पर चंद्र दर्शन कलंक निवारण के उपाय
🌤 दिनांक - 03 सितम्बर 2024
🌤 दिन - मंगलवार
🌤 विक्रम संवत - 2081 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2080)
🌤 शक संवत -1946
🌤 अयन - दक्षिणायन
🌤 ऋतु - शरद ॠतु
🌤 मास - भाद्रपद (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार श्रावण)
🌤 पक्ष - कृष्ण
🌤 तिथि - अमावस्या सुबह 07:24 तक तत्पश्चात प्रतिपदा
🌤 नक्षत्र - पूर्वाफाल्गुनी 04 सितम्बर रात्रि 03:10 तक तत्पश्चात उत्तराफाल्गुनी
🌤 योग - सिद्ध शाम 07:05 तक तत्पश्चात साध्य
🌤 राहुकाल - शाम 03:45 से शाम 05:19 तक
🌤 सूर्योदय -06:23
🌤 सूर्यास्त- 18:51
👉 दिशाशूल - उत्तर दिशा मे
🚩 व्रत पर्व विवरण - मंगलागौरी पूजन (अमावस्यांत),अमावस्यांत श्रावण मास समाप्त
💥 विशेष - अमावस्या एवं व्रत के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
🌞 ~ वैदिक पंचांग ~ 🌞
🌷 सौ गुना फलदायी “शिवा चतुर्थी” 🌷
➡ 07 सितम्बर, शनिवार को भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी है ।
🙏🏻 भविष्य पुराण के अनुसार ‘भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का नाम ‘शिवा’ है | इस दिन किये गये स्नान, दान, उपवास, जप आदि सत्कर्म सौ गुना हो जाते हैं |
👩🏼 इस दिन जो स्री अपने सास-ससुर को गुड़ के तथा नमकीन पुए खिलाती है वह सौभाग्यवती होती है | पति की कामना करनेवाली कन्या को विशेषरूप से यह व्रत करना चाहिए |’
🌞 ~ वैदिक पंचाग ~ 🌞
🌷 गणेश-कलंक चतुर्थी 🌷
🙏🏻 ( ‘ॐ गं गणपतये नम:’ मंत्र का जप करने और गुड़मिश्रित जल से गणेशजी को स्नान कराने एवं दूर्वा व सिंदूर की आहुति देने से विघ्न-निवारण होता है तथा मेधाशक्ति बढ़ती है | )
🌞 ~ हिन्दू पंचांग ~ 🌞
🌷 गणेश चतुर्थी पर चंद्र दर्शन कलंक निवारण के उपाय
➡ इस वर्ष - 06 सितम्बर 2024 शुक्रवार को चंद्र दर्शन निषेध चन्द्रास्त : रात्रि 08:56 एवं 07 सितम्बर, शनिवार को चंद्र दर्शन निषेध चन्द्रास्त : रात्रि 09:27
🙏🏻 भारतीय शास्त्रों में गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन निषेध माना गया है इस दिन चंद्र दर्शन करने से व्यक्ति को एक साल में मिथ्या कलंक लगता है। भगवान श्री कृष्ण को भी चंद्र दर्शन का मिथ्या कलंक लगने के प्रमाण हमारे शास्त्रों में विस्तार से वर्णित है।
🙏🏻 अर्थातः जो जानबूझ कर अथवा अनजाने में ही भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन करेगा, वह अभिशप्त होगा। उसे9 बहुत दुःख उठाना पडेगा।
🙏🏻 गणेश पुराण के अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्रमा देख लेने पर कलंक अवश्य लगता है। ऐसा गणेश जी का वचन है।
🙏🏻 भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन न करें यदि भूल से चंद्र दर्शन हो जाये तो उसके निवारण के निमित्त श्रीमद्भागवत के १०वें स्कंध, ५६-५७वें अध्याय में उल्लेखित स्यमंतक मणि की चोरी कि कथा का श्रवण करना लाभकारक है। जिससेे चंद्रमा के दर्शन से होने वाले मिथ्या कलंक का ज्यादा खतरा नहीं होगा।
🌷 चंद्र-दर्शन दोष निवारण हेतु मंत्र 🌷
🙏🏻 यदि अनिच्छा से चंद्र-दर्शन हो जाये तो व्यक्ति को निम्न मंत्र से पवित्र किया हुआ जल ग्रहण करना चाहिये। मंत्र का २१, ५४ या १०८ बार जप करें । ऐसा करने से वह तत्काल शुद्ध हो निष्कलंक बना रहता है। मंत्र निम्न है।
🙏🏻 अर्थात: सुंदर सलोने कुमार! इस मणि के लिये सिंह ने प्रसेन को मारा है और जाम्बवान ने उस सिंह का संहार किया है, अतः तुम रोओ मत। अब इस स्यमंतक मणि पर तुम्हारा ही अधिकार है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, अध्यायः ७८)
🙏🏻 चौथ के चन्द्रदर्शन से कलंक लगता है | इस मंत्र-प्रयोग अथवा स्यमन्तक मणि कथा के वचन या श्रवण से उसका प्रभाव कम हो जाता है |
क्यों मेरे विवाह में विलम्ब हो रहा है? क्या मेरा विवाह इस साल तय होगा? जन्मतिथि - 11/08/1994, समय -6 बजे, स्थान - बलिया, उत्तरप्रदेश।
आपके विवाह में विलंब के कारणों और संभावनाओं को समझने के लिए, जन्मकुंडली (नताल चार्ट) का विश्लेषण किया जाता है। यहां कुछ सामान्य बिंदु हैं जिनका ध्यान रखा जाता है:
विवाह ग्रहों की स्थिति:शुक्र और सप्तम भाव: विवाह से संबंधित ग्रह जैसे शुक्र (प्रेम और विवाह का कारक) और सप्तम भाव (विवाह और भागीदारी का भाव) की स्थिति देखी जाती है। यदि ये ग्रह कमजोर या अशुभ स्थितियों में हैं, तो विवाह में विलंब हो सकता है।
विवाह के कारक ग्रहों की दशा और अंतरदशा:दशा और अंतरदशा: आपकी जन्मकुंडली में चल रही ग्रह दशा और अंतरदशा भी महत्वपूर्ण होती है। विवाह के लिए शुभ ग्रह दशा का होना आवश्यक है। अगर आप शनि, राहू, या अन्य अशुभ ग्रहों की दशा में हैं, तो विवाह में विलंब हो सकता है।
मंगल दोष और अन्य दोष:मंगल दोष: यदि आपके कुंडली में मंगल दोष (मंगल का सप्तम भाव या लग्न भाव में होना) है, तो यह विवाह में विलंब का कारण हो सकता है।
ग्रहण और अनुकूल समय:मंगल स्थिति: ग्रहण या अन्य महत्वपूर्ण ज्योतिषीय घटनाएं आपके विवाह के समय को प्रभावित कर सकती हैं। यदि इन घटनाओं का प्रभाव आपके कुंडली में है, तो यह भी विवाह में विलंब का कारण हो सकता है।
साल की संभावना:विवाह की संभावनाएं: आपके जन्मकुंडली की स्थिति को देखकर भविष्यवाणी की जाती है कि इस साल विवाह होने की संभावना कितनी है।
इन बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए, विवाह में विलंब के कारणों की सटीक जानकारी प्राप्त करने के लिए एक योग्य ज्योतिषी से व्यक्तिगत रूप से परामर्श करना उचित रहेगा। वे आपकी जन्मकुंडली का विस्तृत विश्लेषण कर सकते हैं और आपके लिए उपयुक्त उपाय सुझा सकते हैं। जिसके लिए आप Vivaha Sutram 2 सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर सकते है। आपकी कुंडली के आधार पर जाने के लिए और. अपना प्रेम विवाह की जानकारी जाने के लिए।
मानव जीवन का प्राथमिक और परम उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना है और केवल एक सतगुरु अर्थात पूर्ण संत के पास ही यह गुण होता है जिससे वह अपने भक्तों का उद्धार कर सकते हैं इसलिए पूर्ण गुरु की आवश्यकता सभी को होती है। लोगों के जीवन में समय असमय बहुत सारे कष्ट आते रहते हैं और वे हमेशा उनसे बाहर आने की कोशिश में लगे रहते हैं। सभी दुखों से मुक्ति पाने का एक ही उपाय है कि किसी तत्वज्ञानी संत की शरण ग्रहण कर सतभक्ति की जाए। पूर्ण संत व सतगुरु भक्तों को इतना लाभ प्रदान करता है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
इस संसार में लाखों- करोड़ों धर्मगुरू हैं जो धार्मिक गुरु होने का दावा करते हैं। एक कहावत है 'नीम हकीम खतरा -ए -जान' यानी थोड़ा और अधूरा ज्ञान खतरनाक चीज़ है। यदि कोई पवित्र शास्त्रों और वेदों को पढ़ता है और उन्हें पढ़कर ज्ञानी हो जाता है, वह स्वयं को धार्मिक गुरु मानने लगता है और ऐसा दर्शाता है कि वह भगवान के सबसे करीब है। लेकिन उनके पास मोक्ष्य प्राप्ति का ज्ञान नही होता है।
तत्वदर्शी सन्त वह होता है जो वेदों के सांकेतिक शब्दों को पूर्ण विस्तार से वर्णन करता है जिससे पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति होती है। वह वेद के जानने वाला कहा जाता है।- यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्र 25
पूर्ण परमेश्वर का अधिकारी संत ही सबसे शक्तिशाली संत होता है और पूर्ण संत को शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान होता है। पूर्ण संत, साधक को मोक्ष प्राप्ति के लिए सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करता है।
मानव जीवन का प्राथमिक और परम उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना है और केवल एक सतगुरु अर्थात पूर्ण संत के पास ही यह गुण होता है जिससे वह अपने भक्तों का उद्धार कर सकते हैं इसलिए पूर्ण गुरु की आवश्यकता सभी को होती है। लोगों के जीवन में समय असमय बहुत सारे कष्ट आते रहते हैं और वे हमेशा उनसे बाहर आने की कोशिश में लगे रहते हैं। सभी दुखों से मुक्ति पाने का एक ही उपाय है कि किसी तत्वज्ञानी संत की शरण ग्रहण कर सतभक्ति की जाए। पूर्ण संत व सतगुरु भक्तों को इतना लाभ प्रदान करता है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
इस संसार में लाखों- करोड़ों धर्मगुरू हैं जो धार्मिक गुरु होने का दावा करते हैं। एक कहावत है 'नीम हकीम खतरा -ए -जान' यानी थोड़ा और अधूरा ज्ञान खतरनाक चीज़ है। यदि कोई पवित्र शास्त्रों और वेदों को पढ़ता है और उन्हें पढ़कर ज्ञानी हो जाता है, वह स्वयं को धार्मिक गुरु मानने लगता है और ऐसा दर्शाता है कि वह भगवान के सबसे करीब है। लेकिन उनके पास मोक्ष्य प्राप्ति का ज्ञान नही होता है।
तत्वदर्शी सन्त वह होता है जो वेदों के सांकेतिक शब्दों को पूर्ण विस्तार से वर्णन करता है जिससे पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति होती है। वह वेद के जानने वाला कहा जाता है।- यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्र 25
पूर्ण परमेश्वर का अधिकारी संत ही सबसे शक्तिशाली संत होता है और पूर्ण संत को शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान होता है। पूर्ण संत, साधक को मोक्ष प्राप्ति के लिए सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करता है। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी एकमात्र ऐसे संत हैं जो शास्त्रों के अनुसार सच्चे मोक्ष मंत्र प्रदान कर रहे हैं।
हमारे भीतरी और बाहरी हिस्सों का मिलन ही योग है। इसे कर्म, ‘भक्ति योग’, ‘सांख्य योग’, ‘बुद्धि योग’ जैसे कई मार्गों से प्राप्त किया जा सकता है। व्यक्ति अपनी प्रकृति के आधार पर उसके अनुकूल मार्गों से योग प्राप्त कर सकता है।
श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि, ‘‘इस समत्वरूप बुद्धियोग से सकाम कर्म अत्यन्त ही निम्न श्रेणी का है। इसलिए तू समबुद्धि में ही रक्षा का उपाय ढूंढ अर्थात बुद्धियोग का ही आश्रय ग्रहण कर, क्योंकि फल के हेतु बनने वाले अत्यन्त दीन हैं’’ (2.49)। इससे पहले, श्रीकृष्ण ने कहा कि ‘‘कर्मयोग में, बुद्धि सुसंगत है और जो अस्थिर हैं उनकी बुद्धि बहुत भेदों वाली होती है’’ (2.41)।
एक बार जब बुद्धि सुसंगत हो जाती है, जैसे एक आवर्धक कांच प्रकाश को केंद्रित करता है, तब वह किसी भी बौद्धिक यात्रा में सक्षम होता है। स्वयं की ओर यात्रा सहित किसी भी यात्रा में दिशा और गति शामिल होती है। श्रीकृष्ण का यहां बुद्धियोग का सन्दर्भ अंतरात्मा की ओर यात्रा की दिशा के बारे में है। आमतौर पर, हम भौतिक दुनिया में इच्छाओं को पूरा करने के लिए सुसंगत बुद्धि का उपयोग करते हैं। लेकिन हमें इसका उपयोग अपनी यात्रा को स्वयं की ओर आगे बढ़ाने के लिए करना चाहिए।
आंतरिक यात्रा के लिए सुसंगत बुद्धि का उपयोग करने का पहला कदम यह है कि हम अपनी गहरी जड़ों, भावनाओं, धारणाओं, विचारों, कार्यों और यहां तक कि हमारे द्वारा बोले गए शब्दों जैसी हर चीज की समीक्षा करें। जैसे विज्ञान ज्ञान की सीमाओं को आगे बढ़ाने के लिए प्रश्न पूछने का उपयोग करता है, ऐसी ही पूछ-ताछ परम सत्य को उजागर करने के लिए उपयोगी है।
श्रीकृष्ण आगे कहते हैं कि जिनका उद्देश्य कर्मफल प्राप्त करना है उनका दु:खी होना निश्चित है। हम सब में वाँछित कर्मफल के द्वारा सुख प्राप्त करने की कामना होती है। लेकिन एक ध्रुवीय दुनिया में, समय के साथ हर सुख जल्द ही दु:ख में बदल जाता है, जो हमारे जीवन को नर्क बनाता है।
श्रीकृष्ण कहीं भी हमें ध्रुवों से बचाने का वादा नहीं करते हैं, लेकिन हमें बुद्धि के उपयोग के द्वारा इन द्वंद्वो को पार कर के आत्मवान बनने के लिए कहते हैं। यह न तो जानना है और न ही करना, बस होना है।
📖 *आज का पंचांग, चौघड़िया व राशिफल (पूर्णिमा तिथि)*📖
*संका समाधान:---यह चन्द्र ग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा साथ ही यह एक उपछाया ग्रहण हैं इससे ग्रहण से संबंधित वेध ,सूतक, स्नान,दान -पुण्य कर्म,यम, नियम मान्य नहीं होंगे*
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
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※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
रंगों के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएं🌈
खुशी, वैभव्य, धन-धान्य, सुख-सम्पदा, आरोग्य के रंगों से आपका जीवन सदा रंगीन हो यही कामना हैं🙏🏻
*🌺 आध्यात्मिक गुरु जोधपुर और उदयपुर राज...(8764415587, 9610752236)🌺*
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
दिनांक :-25-मार्च-2024
वार:---------सोमवार
तिथी:---15पूर्णिमा:-12:30
माह:-------फाल्गुन
पक्ष:-------शुक्लपक्ष
नक्षत्र:---उतराफाल्गुनी:-10:38
योग :------वृद्बि:-21:30
करण:-----बव:-12:30
चन्द्रमा:------कन्या
सूर्योदय:-----06:40
सूर्यास्त:------18:48
दिशा शूल-----पूर्व
निवारण उपाय:---दर्पण देखकर यात्रा करें
ऋतु:-----बंसत ऋतु
गुलिक काल:---14:14से 15:46
राहू काल:---08:10से 09:42
अभीजित---11:55से12:45
विक्रम सम्वंत .........2080
शक सम्वंत ............1945
.युगाब्द ..................5125
सम्वंत सर नाम:------पिंगल
🌞चोघङिया दिन🌞
अमृत:-06:40से08:12तक
शुभ:-09:40से11:12तक
चंचल:-14:12से15:44तक
लाभ:-15:44से17:16तक
अमृत:-17:16से18:48तक
🌓चोघङिया रात🌗
चंचल:-18:48से20:16तक
लाभ:-23:14से00:42तक
शुभ:-02:12से03:40तक
अमृत:-03:40से05:12तक
चंचल:-05:12से06:40तक
आज के विशेष योग
वर्ष का368वा दिन, पूर्णिमा व्रत पुण्य, श्री चैतन्य महाप्रभु जयंती, धुलण्डी, होलाष्टक समाप्त, बुध अश्विनी मेष पर 25:49, होला मेला (श्री आनंदपुर साहिब पंजाब) मेला बादशाह व फुलडोर (ब्यावर), डोलोत्सव, अष्टाहिका जैन व्रत समाप्त, कूमार योग 12:30 से, मांध(उपच्छाया) चन्द्र ग्रहण (भारत मे नही दिखेगा), करिदिन अभयंग स्नान, मन्वादि धुलण्डी, गणगौर पूजन प्रारंभ ,
👉वास्तु टिप्स👈
प्लोट लेने से पूर्व देखले उसके आस पास कोई बरगद, पिपल या सफेद अंजीर का पेड़ ना हो।
*सुविचार*
दुःख आने पर भी प्रसन्न होना बहुत ऊँचा साधन है।👍🏻
सदैव खुश मस्त स्वास्थ्य रहे।
राधे राधे वोलने में व्यस्त रहे।।
*💊💉आरोग्य उपाय🌱🌿*
🌷 *केमिकल रंग छूटाने के लिए* 🌷
🔵 यदि किसीने आप पर रासायनिक रंग लगा दिया हो तो तुरंत ही बेसन, आटा, दूध, हल्दी व् तेल के मिश्रण से बना उबटन रंगे हुए अंगों पर लगाकर रंग को धो डालना चाहिए | यदि उबटन लगाने से पूर्व उस स्थान को नींबू से रगड़कर साफ़ कर लिया जाय तो रंग छूटने में और अधिक सुगमता होती है |
🌷 *होली के बाद खान-पान में सावधानी* 🌷
🔥 होली के बाद नीम की २० से २५ कोमल पते २-३ काली मिर्च के साथ खूब चबा-चबाकर खानी चाहिये । यह प्रयोग २०-२५ दिन करने से वर्ष भर चर्म रोग , रक्त विकार और ज्वर आदि रोगों से रक्षा होती है तथा रोग प्रतिकारक शक्ति बनी रहती है । इसके अलावा कड़वे नीम के फूलों का रस सप्ताह या १५ दिन तक पीने से भी त्वचा रोग व मलेरिया से बचाव होता है । सप्ताह भर या १५ दिन तक बिना नमक का भोजन करने से आयु और प्रसन्नता में बढ़ोतरी होती है।
*🐑🐂 राशिफल🐊🐬*
🐏मेष
पार्टी व पिकनिक का आनंद मिलेगा। विद्यार्थी वर्ग सफलता हासिल करेगा। जीवनसाथी के स्वास्थ्य की चिंता रहेगी।
🐂वृष
विवाद को बढ़ावा न दें। दु:खद समाचार मिल सकता है। शारीरिक कष्ट से बाधा संभव है। जोखिम न उठाएं। सत्कर्म में रुचि बढ़ेगी।
👫मिथुन
प्रयास सफल रहेंगे। मान-सम्मान मिलेगा। धन प्राप्ति सुगम होगी। शत्रु परास्त होंगे। शारीरिक कष्ट संभव है। आर्थिक स्थिति संतोषजनक रहेगी।
🦀कर्क
शुभ समाचार मिलेंगे। सम्मान बना रहेगा। लेन-देन में सावधानी रखें। शारीरिक कष्ट संभव है। चिंता रहेगी। परिवार में सुख-शांति होगी।
🐅सिंह
अप्रत्याशित लाभ हो सकता है। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। कार्यसिद्धि होगी। बेचैनी रहेगी। प्रमाद न करें।
🙍🏻कन्या
फालतू खर्च होगा। विवाद से बचें। शारीरिक कष्ट संभव है। लाभ के अवसर टलेंगे। शत्रु भय रहेगा। किसी की आलोचना न करें।
⚖तुला
बकाया वसूली के प्रयास सफल रहेंगे। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। धनार्जन होगा। चोट व रोग से बचें। व्यापार अच्छा चलेगा।
🦂वृश्चिक
बेचैनी रहेगी। नई योजना बनेगी। मान-सम्मान मिलेगा। धन प्राप्ति सुगम होगी। स्वास्थ्य कमजोर होगा।
🏹धनु
पुराना रोग उभर सकता है। पूजा-पाठ में मन लगेगा। कोर्ट व कचहरी में अनुकूलता रहेगी। लाभ होगा। कई दिनों के रुके कार्य होने के अवसर हैं।
🐊मकर
चोट, चोरी व विवाद आदि से हानि संभव है। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। लाभ कम होगा। धैर्य रखें। संतान के कार्यों पर नजर रखें।
🍯कुंभ
नेत्र पीड़ा हो सकती है। यात्रा सफल रहेगी। विवाद को बढ़ावा न दें। जीवनसाथी से सहयोग मिलेगा। प्रबल आत्मविश्वास से कठिन कार्य हल होंगे।
🐟मीन
लेन-देन में सावधानी रखें। उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे। भूमि व भवन संबंधी योजना बनेगी। धनार्जन होगा। ईश्वर पर विश्वास बढ़ेगा।
शनि के दोष को दूर करने के लिए कुछ उपाय और उत्तरदायक कार्रवाईयाँ निम्नलिखित हो सकती हैं:
शनि की पूजा और अर्चना: शनि देव की पूजा और अर्चना करना उनके दोष को दूर करने का एक प्रमुख तरीका है। शनि देव को तिल, उड़द की दाल, बिजोरी, काली उड़द की माला आदि से प्रसन्न किया जा सकता है।
शनि मंत्र का जप: "ॐ शं शनैश्चराय नमः" यह मंत्र शनि के दोष को दूर करने के लिए किया जाता है। शनि मंत्र का नियमित जप करने से शनि की शुभ ग्रहण और क्रियाशीलता में सुधार हो सकता है।
दान करना: शनि को शुभ करने के लिए काले रंग के वस्त्र, उपाय, तिल, ऊरद, तेल, लोहे की चीजें, आदि का दान किया जा सकता है।
शनि की शुभ योग्यता को बढ़ाना: शनि की अशुभ दशा को दूर करने के लिए उपायों में से एक यह है कि शनि की शुभ ग्रहण और क्रियाशीलता को बढ़ाया जाए। इसके लिए व्यक्ति को अपने कर्मों को ईमानदारी से करना चाहिए और नियमित रूप से समाज की सेवा करनी चाहिए।
अनुष्ठान और पूजा का आयोजन: शनि के दोष को दूर करने के लिए विशेष अनुष्ठान और पूजा का आयोजन किया जा सकता है, जिसमें अन्य ग्रहों के भी साथी ग्रहों के प्रसाद से पूरे किया जा सकता है।
शनि की शांति के यंत्र और उपाय: शनि की शांति के लिए विशेष यंत्र और उपाय भी किए जा सकते हैं। इनमें शनि के लिए विशेष यंत्रों का उपयोग और वास्तु उपाय शामिल हो सकते हैं।
ध्यान दें कि शनि के दोष को दूर करने के लिए किए जाने वाले उपायों को नियमित और निष्ठा के साथ करना चाहिए। यह उपाय और प्रथाओं का पालन करते समय धैर्य और संयम का भी महत्वपूर्ण रोल होता है। और अधिक जानकारी के लिए आप टोना टोटका सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर सकते है।
17th February 1988 ⭐️संत रामपाल जी महाराज जी के 37 वें बोध दिवस पर जानिए वह कौन है जो धरती को स्वर्ग समान बनाएगा⭐️
संत रामपाल जी महाराज जी एक आध्यात्मिक गुरु हैं जो समाज को आध्यात्मिक रूप से संपन्न बनाना चाहते हैं। इसके अतिरिक्त समाज में जो भी बुराइयां, कुरीतियां, अंधविश्वास, पाखंड है। उन सभी को समाप्त करना चाहते हैं। और इसी के लिए वे दिन-रात प्रयत्न कर रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज कबीरपंथी गुरु है। उन्होंने सर्व धर्मों के सर्व शास्त्रों को प्रमाणित करके दिखाया है कि हमारा परमेश्वर, अल्लाह, रब, गॉड कबीर देव जी है।
प्रश्न-:सतगुरु/ पूर्ण संत कौन होता है ?
उत्तर-:सतगुरु पृथ्वी पर एकमात्र सच्चा संत है जिनकी शरण में जाकर मनुष्य परमधाम, 'शाश्वत' स्थान अर्थात् सतलोक को प्राप्त कर सकता है। सतगुरु की उपाधि विशेष रूप से तत्वदर्शी संत को दी जाती है जिसे 'बाखबर' / मसीहा भी कहा जाता है। एक तत्वदर्शी संत सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान का ज्ञाता होता है जिसके जीवन का उद्देश्य दीक्षित आत्माओं को सतभक्ति बताना है। जिससे वे काल के जाल से मुक्त होकर अपने मूल स्थान सतलोक में पहुंच कर पूर्ण परमात्मा को प्राप्त कर सकें। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज पूर्ण संत है।
प्रश्न-:मनुष्य को पूर्ण गुरु की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर-:मानव जीवन का प्राथमिक और परम उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना है और केवल एक सतगुरु अर्थात पूर्ण संत के पास ही यह गुण होता है जिससे वह अपने भक्तों का उद्धार कर सकते हैं इसलिए पूर्ण गुरु की आवश्यकता सभी को होती है। लोगों के जीवन में समय असमय बहुत सारे कष्ट आते रहते हैं और वे हमेशा उनसे बाहर आने की कोशिश में लगे रहते हैं। सभी दुखों से मुक्ति पाने का एक ही उपाय है कि किसी तत्वज्ञानी संत की शरण ग्रहण कर सतभक्ति की जाए।
प्रश्न-:संत रामपाल जी महाराज जी का उद्देश्य क्या है?
उत्तर-:संत रामपाल जी का उद्देश्य हैं। समाज में जाति पाति के भेद को समाप्त करना युवाओं में नैतिक एवं आध्यात्मिक जागृति लाना चाहते हैं।
समाज में जहां युवा नशे, चोरी, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार इत्यादि में संलग्न होते हैं वहीं दूसरी ओर संत रामपाल जी महाराज जी के अनुयाई किसी प्रकार का नशा नहीं करते और ना ही किसी प्रकार की अनैतिक कार्य करते हैं। संत रामपाल जी महाराज जी समाज के सभी युवाओं को नैतिक और आध्यात्मिकता को ओर अग्रसर करने का प्रयास कर रहे हैं। जिससे स्वच्छ राष्ट्र का निर्माण हो सके।
संत रामपाल जी समाज से सभी प्रकार के नशे को दूर करना चाहते हैं दहेज रूपी कुरीति को समाप्त करना चाहते हैं।
संत रामपाल जी समाज से सभी प्रकार की कुरूतियों, बुराइयों एवं पाखंडवाद को जड़ से समाप्त करना चाहते है और एक स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हैं जिससे समाज में शांति स्थापित हो सके।
वर्तमान समय में परमेश्वर कबीर साहिब जी के अवतार संत रामपाल जी महाराज जी पूरे विश्व को सत भक्ति देकर मोक्ष का मार्ग तो बता ही रहे हैं साथ ही भ्रष्टाचार व बुराइयों से मुक्त करके धरती को स्वर्ग समान बनाने के लिए दिन-रात प्रयत्न कर रहे हैं और उनका यह प्रयत्न सफल भी हो रहा है।
#SantRampalJiBodhDiwas
#17Feb_SantRampalJi_BodhDiwas
#SantRampalJiMaharaj
#TheMission_Of_SantRampalJi
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
⭐️संत रामपाल जी महाराज जी के 37 वें बोध दिवस पर जानिए वह कौन है जो धरती को स्वर्ग समान बनाएगा⭐️
संत रामपाल जी महाराज जी एक आध्यात्मिक गुरु हैं जो समाज को आध्यात्मिक रूप से संपन्न बनाना चाहते हैं। इसके अतिरिक्त समाज में जो भी बुराइयां, कुरीतियां, अंधविश्वास, पाखंड है। उन सभी को समाप्त करना चाहते हैं। और इसी के लिए वे दिन-रात प्रयत्न कर रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज कबीरपंथी गुरु है। उन्होंने सर्व धर्मों के सर्व शास्त्रों को प्रमाणित करके दिखाया है कि हमारा परमेश्वर, अल्लाह, रब, गॉड कबीर देव जी है।
प्रश्न-:सतगुरु/ पूर्ण संत कौन होता है ?
उत्तर-:सतगुरु पृथ्वी पर एकमात्र सच्चा संत है जिनकी शरण में जाकर मनुष्य परमधाम, 'शाश्वत' स्थान अर्थात् सतलोक को प्राप्त कर सकता है। सतगुरु की उपाधि विशेष रूप से तत्वदर्शी संत को दी जाती है जिसे 'बाखबर' / मसीहा भी कहा जाता है। एक तत्वदर्शी संत सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान का ज्ञाता होता है जिसके जीवन का उद्देश्य दीक्षित आत्माओं को सतभक्ति बताना है। जिससे वे काल के जाल से मुक्त होकर अपने मूल स्थान सतलोक में पहुंच कर पूर्ण परमात्मा को प्राप्त कर सकें। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज पूर्ण संत है।
प्रश्न-:मनुष्य को पूर्ण गुरु की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर-:मानव जीवन का प्राथमिक और परम उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना है और केवल एक सतगुरु अर्थात पूर्ण संत के पास ही यह गुण होता है जिससे वह अपने भक्तों का उद्धार कर सकते हैं इसलिए पूर्ण गुरु की आवश्यकता सभी को होती है। लोगों के जीवन में समय असमय बहुत सारे कष्ट आते रहते हैं और वे हमेशा उनसे बाहर आने की कोशिश में लगे रहते हैं। सभी दुखों से मुक्ति पाने का एक ही उपाय है कि किसी तत्वज्ञानी संत की शरण ग्रहण कर सतभक्ति की जाए।
प्रश्न-:संत रामपाल जी महाराज जी का उद्देश्य क्या है?
उत्तर-:संत रामपाल जी का उद्देश्य हैं। समाज में जाति पाति के भेद को समाप्त करना युवाओं में नैतिक एवं आध्यात्मिक जागृति लाना चाहते हैं।
समाज में जहां युवा नशे, चोरी, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार इत्यादि में संलग्न होते हैं वहीं दूसरी ओर संत रामपाल जी महाराज जी के अनुयाई किसी प्रकार का नशा नहीं करते और ना ही किसी प्रकार की अनैतिक कार्य करते हैं। संत रामपाल जी महाराज जी समाज के सभी युवाओं को नैतिक और आध्यात्मिकता को ओर अग्रसर करने का प्रयास कर रहे हैं। जिससे स्वच्छ राष्ट्र का निर्माण हो सके।
संत रामपाल जी समाज से सभी प्रकार के नशे को दूर करना चाहते हैं दहेज रूपी कुरीति को समाप्त करना चाहते हैं।
संत रामपाल जी समाज से सभी प्रकार की कुरूतियों, बुराइयों एवं पाखंडवाद को जड़ से समाप्त करना चाहते है और एक स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हैं जिससे समाज में शांति स्थापित हो सके।
वर्तमान समय में परमेश्वर कबीर साहिब जी के अवतार संत रामपाल जी महाराज जी पूरे विश्व को सत भक्ति देकर मोक्ष का मार्ग तो बता ही रहे हैं साथ ही भ्रष्टाचार व बुराइयों से मुक्त करके धरती को स्वर्ग समान बनाने के लिए दिन-रात प्रयत्न कर रहे हैं और उनका यह प्रयत्न सफल भी हो रहा है।
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⭐️संत रामपाल जी महाराज जी के 37 वें बोध दिवस पर जानिए वह कौन है जो धरती को स्वर्ग समान बनाएगा⭐️
संत रामपाल जी महाराज जी एक आध्यात्मिक गुरु हैं जो समाज को आध्यात्मिक रूप से संपन्न बनाना चाहते हैं। इसके अतिरिक्त समाज में जो भी बुराइयां, कुरीतियां, अंधविश्वास, पाखंड है। उन सभी को समाप्त करना चाहते हैं। और इसी के लिए वे दिन-रात प्रयत्न कर रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज कबीरपंथी गुरु है। उन्होंने सर्व धर्मों के सर्व शास्त्रों को प्रमाणित करके दिखाया है कि हमारा परमेश्वर, अल्लाह, रब, गॉड कबीर देव जी है।
प्रश्न-:सतगुरु/ पूर्ण संत कौन होता है ?
उत्तर-:सतगुरु पृथ्वी पर एकमात्र सच्चा संत है जिनकी शरण में जाकर मनुष्य परमधाम, 'शाश्वत' स्थान अर्थात् सतलोक को प्राप्त कर सकता है। सतगुरु की उपाधि विशेष रूप से तत्वदर्शी संत को दी जाती है जिसे 'बाखबर' / मसीहा भी कहा जाता है। एक तत्वदर्शी संत सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान का ज्ञाता होता है जिसके जीवन का उद्देश्य दीक्षित आत्माओं को सतभक्ति बताना है। जिससे वे काल के जाल से मुक्त होकर अपने मूल स्थान सतलोक में पहुंच कर पूर्ण परमात्मा को प्राप्त कर सकें। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज पूर्ण संत है।
प्रश्न-:मनुष्य को पूर्ण गुरु की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर-:मानव जीवन का प्राथमिक और परम उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना है और केवल एक सतगुरु अर्थात पूर्ण संत के पास ही यह गुण होता है जिससे वह अपने भक्तों का उद्धार कर सकते हैं इसलिए पूर्ण गुरु की आवश्यकता सभी को होती है। लोगों के जीवन में समय असमय बहुत सारे कष्ट आते रहते हैं और वे हमेशा उनसे बाहर आने की कोशिश में लगे रहते हैं। सभी दुखों से मुक्ति पाने का एक ही उपाय है कि किसी तत्वज्ञानी संत की शरण ग्रहण कर सतभक्ति की जाए।
प्रश्न-:संत रामपाल जी महाराज जी का उद्देश्य क्या है?
उत्तर-:संत रामपाल जी का उद्देश्य हैं। समाज में जाति पाति के भेद को समाप्त करना युवाओं में नैतिक एवं आध्यात्मिक जागृति लाना चाहते हैं।
समाज में जहां युवा नशे, चोरी, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार इत्यादि में संलग्न होते हैं वहीं दूसरी ओर संत रामपाल जी महाराज जी के अनुयाई किसी प्रकार का नशा नहीं करते और ना ही किसी प्रकार की अनैतिक कार्य करते हैं। संत रामपाल जी महाराज जी समाज के सभी युवाओं को नैतिक और आध्यात्मिकता को ओर अग्रसर करने का प्रयास कर रहे हैं। जिससे स्वच्छ राष्ट्र का निर्माण हो सके।
संत रामपाल जी समाज से सभी प्रकार के नशे को दूर करना चाहते हैं दहेज रूपी कुरीति को समाप्त करना चाहते हैं।
संत रामपाल जी समाज से सभी प्रकार की कुरूतियों, बुराइयों एवं पाखंडवाद को जड़ से समाप्त करना चाहते है और एक स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हैं जिससे समाज में शांति स्थापित हो सके।
वर्तमान समय में परमेश्वर कबीर साहिब जी के अवतार संत रामपाल जी महाराज जी पूरे विश्व को सत भक्ति देकर मोक्ष का मार्ग तो बता ही रहे हैं साथ ही भ्रष्टाचार व बुराइयों से मुक्त करके धरती को स्वर्ग समान बनाने के लिए दिन-रात प्रयत्न कर रहे हैं और उनका यह प्रयत्न सफल भी हो रहा है।
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