कबीर, जैसे रवि आकाश से, सबके साथ रहाय।
उष्णता अरू प्रकाश को दूरही ते पहुँचाय।।
कबीर, ऐसे गुरू जहाँ बसे सब पर करे रजा।
गुरू समीप जानकर सकल विकार करत लजा।।
जैसे सूर्य दूर आकाश से सबको उष्णता तथा प्रकाश प्रदान करता है, सबको अपने साथ दिखाई देता है। इसी प्रकार गुरू जी कहीं पर भी बैठा है, वहीं से अपने भक्तों पर कृपा करता है। गुरू जी को समीप तथा दृष्टा जानकर सब विषय-विकारों को करने में शर्म करके परहेज करे।
वर्तमान समय में, 13वां यानि यथार्थ कबीर पंथ, कबीर परमेश्वर के अवतार संत रामपाल जी महाराज द्वारा चलाया जा रहा है। इससे अज्ञानता का नाश हो रहा है और मानव समाज तत्वज्ञान को जानकर सतभक्ति अपना रहा है।
श्री ब्रह्मा, विष्णु, और शिव के रहस्य: सत्य को जानकर बदल जाएगी आपकी सोच ...
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गरीब, जीव हिंसा जो करते हैं, या आगे क्या पाप। कंटक जुनी जी हान में सीह, भेड़िया, और सांप।। जो जीव हिंसा करते हैं और उससे बड़ा पाप नहीं है जीव हत्या करने वाले वे करोड़ों जन्म शेर भेड़िया और सांप के जीवन पाते हैं।
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घर-घर बोध विचार हो, दुर्मति दूर बहाय । कलयुग में सब एक होई। बरतें सहज सुभाय ।।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि मेरी महिमा के ज्ञान की घर-घर चर्चा चलेगी। सबकी दुर्मति समाप्त हो जाएगी। सब परमात्मा से डरने वाले होंगे,
कोई शराब, तम्बाकू, माँस का सेवन नहीं करेगा। चोरी, जारी (व्याभिचार), डाके डालना, रिश्वत लेना पाप जानकर सब छोड़ देंगे। शुद्ध होकर सहज स्वभाव से रहा करेंगे।
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सच्चिदानंदघन ब्रह्म यानि परम अक्षर ब्रह्म ने (मुखे) अपने मुख कमल से जो वाणी बोली, उस वाणी में बहुत प्रकार के (यज्ञाः) धार्मिक अनुष्ठानों की जानकारी दी है। जो साधना बताई है, वह कर्म करते-करते की जा सकती है, वह सूक्ष्मवेद यानि तत्त्वज्ञान है। उसको जानकर तू कर्म बंधन से सर्वथा मुक्त हो जाएगा यानि पूर्ण मोक्ष प्राप्त करेगा।
कबीर साहेब ने 'कबीर सागर' में, 'कबीर वाणी' अध्याय के पृष्ठ 134 पर "वंश प्रकार" में बताया है:
बारहवें वंश प्रगट होय उजियारा।
तेरहवें वंश मिटे सकल अँधियारा।
वर्तमान समय में, 13वां यानि यथार्थ कबीर पंथ, कबीर परमेश्वर के अवतार संत रामपाल जी म��ाराज द्वारा चलाया जा रहा है। इससे अज्ञानता का नाश हो रहा है और मानव समाज तत्वज्ञान को जानकर सतभक्ति अपना रहा है।
गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में स्पष्ट किया है कि यज्ञों अर्थात् धार्मिक अनुष्ठानों का ज्ञान स्वयं सच्चिदानन्द घन ब्रह्म ने अपने मुख कमल से बोली वाणी में विस्तार के साथ कहा है, वह तत्वज्ञान है। जिसे जानकर साधक सर्व पापों से मुक्त हो जाता है।
सतयुग में परमेश्वर कविर्देव जी ने सतसुकृत रूप में महर्षि मनु को भी तत्वज्ञान समझाना चाहा था परन्तु श्री मनु जी ने परमेश्वर के ज्ञान को सत न जानकर, ब्रह्माजी द्वारा दिए ज्ञान पर आरूढ़ होकर परमेश्वर सतसुकृत जी का उपहास करने लगे