Taraweeh Ki Namaz Ka Tarika - Ramadan 2025
आज यहां पर आप Taraweeh Ki Namaz Ka Tarika बहुत ही आसानी से जानेंगे क्योंकी हमने यहां पर तरावीह की नमाज़ पढ़ने का सही तरीक़ा, नियत, रकात सभी चीजें बहुत ही स्पष्ट और आसान लफ़्ज़ों में बताया है।
इसे पढ़ने के बाद आप बहुत ही आसानी तरावीह की नमाज़ अदा कर पाएंगे फिर इसके बाद आपको कहीं पर भी तरावीह की नमाज़ अदा करने का तरीका ढूंढनी नहीं पड़ेगी इसीलिए आप यहां ध्यान से पुरा पढ़ें।
Taraweeh Ki Namaz Ka Tarika
सबसे पहले हमें यह मालुम होना चाहिए कि तरावीह की नमाज़ 2 - 2 रकात करके कुल मिलाकर 20 रकात नमाज़ तरावीह में पढ़ी जाती है।
तो हम यहां पर 2 रकात का ही तरीका जानेंगे आप इसी 2 - 2 रकात के बदौलत पूरा 20 रकात तरावीह की नमाज़ पढ़ेंगे तो ध्यान से पढ़ें।
Taraweeh Ki Namaz Ka Tarika - पहली रकात
सबसे पहले तरावीह की नमाज़ की नियत करें।
हमने नीचे तरावीह की नमाज़ की नियत भी बताई है।
इसके बाद हांथो को नीचे लाकर नियत बांध लेंगे।
इसके बाद सना यानी सुब्हान क अल्लाहुम्मा पुरा पढ़ें।
फिर तअव्वुज यानी अउजुबिल्लाह मिनश शैतानीर्रजीम पढ़ें।
अब तस्मियह यानी बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहिम पढ़ेंगे।
इसके बाद सूरह फातिहा यानी अलहम्दु शरीफ पुरा पढ़ें।
सूरह फातिहा पुरा पढ़ने के बाद आहिस्ते से आमिन कहें।
फिर यहां सूरह फिल अलम तारा कैफा या कोई सूरह पढ़ें।
इसके बाद अल्लाहु अकबर कहते हुए रूकूअ में जाएं।
रूकूअ में 3, 5, या 7 बार सुब्हान रब्बियल अज़ीम पढ़ें।
फिर समिअल्लाहु लिमन हमिदह कहते हुए रूकूअ से उठें।
रूकूअ से उठते उठते भर में रब्बना लकल हम्द भी कहेंगे।
इसके बाद अल्लाहु अकबर कहते हुए सज्दे में जाएं।
सज्दे में कम से कम तीन बार सुब्हान रब्बियल अला पढ़ें।
फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए उठ कर बैठ जाएं।
फिर तुरंत अल्लाहु अकबर कहते हुए दुसरी सज्दा करें।
दुसरी सज्दा में भी तीन बार सुब्हान रब्बियल अला पढ़ें।
अब अल्लाहु अकबर कहते हुए दुसरी रकात के लिए खड़े हो जाएं।
Taraweeh Ki Namaz Ka Tarika - दूसरी रकात
सबसे पहले अउजुबिल्लाह और बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़ें।
इसके बाद सूरह फातिहा पढ़ें और आहिस्ते से आमिन कहें।
फिर यहां सूरह कुरैश लि इला फि कुरैशीन या कोई सूरह पढ़ें।
फिर इसके बाद अल्लाहु अकबर कहते हुए रूकूअ में जाएं।
रूकूअ में कम से कम 3 बार सुब्हान रब्बियल अज़ीम पढ़ें।
फिर समिअल्लाहु लिमन हमिदह कहते हुए रूकूअ से उठेंगे।
फिर यहां भी उठने पर रब्बना लकल हम्द ज़रूर कहें।
इसके बाद तुरंत अल्लाहु अकबर कहते हुए सज्दा में जाएं।
सज्दे में भी कम से कम 3 बार सुब्हान रब्बियल अला पढ़ें।
फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए सज्दे से उठेंगे।
फिर फ़ौरन अल्लाहु अकबर कहते हुए दुसरी सज्दा करेंगे।
दुसरी सज्दा में भी ज़रूर 3 बार सुब्हान रब्बियल अला पढ़ें।
अब अल्लाहु अकबर कहते हुए सज्दे से उठ कर बैठ जाएं।
इसके बाद तशह्हुद यानी अत्तहिय्यात पढ़ा जाता है।
अत्तहिय्यात पढ़ते हुए कलिमे ला पर उंगली उठाएंगे।
फिर तुरंत इल्ला पर उंगली गिरा कर सीधी कर लेंगे।
इसके बाद दुरूदे इब्राहिम पढ़ें फिर दुआ ए मसुरा पढ़ें।
अब अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह कह कर सलाम फेर लें।
पहले अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह कहते हुए दाहिने तरफ गर्दन घुमाएंगे।
फिर दुसरी बार अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह कहते हुए बाएं तरफ गर्दन घुमाएंगे।
यहां पर आपकी तरावीह की नमाज़ की दुसरी रकात भी मुकम्मल हो गई आप इसी तरह 2-2 रकात करके पुरा 20 रकात तरावीह की नमाज़ मुकम्मल करें।
तरावीह की नमाज़ पढ़ने का सही तरीका
अगर आप तरावीह की नमाज़ जमात में इमाम के पीछे पढ़ रहे हैं तो आपको कुछ भी पढ़ने की जरूरत नहीं है सिर्फ रूकुअ और सज्दा में तस्बीह के अलावा।
लेकीन रूकुअ और सज्दा करने के बाद हर नमाज़ की तरह अत्तहियात, दुरूदे इब्राहिम और दुआए मासूरा तरावीह में भी पढ़ना जरूरी है।
Must Know: Iqamat Ka Tarika
इस बात का भी ध्यान रखें कि हर 4 रकात के बाद तरावीह की तस्बीह पढ़ना होता है और पूरा तरावीह खत्म होते होते तक 5 बार तरावीह की तस्बीह पढ़ी जाती है।
अगर आप अकेले में तरावीह की नमाज़ पढ़ेंगे तो यह तो पक्की है कि आप सूरह वाली तरावीह ही पढ़ेंगे क्योंकी एक तरावीह में कुरान पुरी पढ़ी जाती है।
अगर आप सूरह वाली तरावीह की नमाज़ पढ़ रहे हैं तो आप कुरान की एक तरफ से सूरह पढ़ते चलें यहां वहां से सूरह पढ़ना नहीं चाहिए, जानने के लिए यहां क्लिक करें।
Taraweeh Ki Namaz Ki Niyat
नियत की मैंने 2 रकात नमाज़ तरावीह की सुन्नत रसूले पाक की वास्ते अल्लाह तआला के रुख मेरा काअबा शरीफ की तरफ अल्लाहू अकबर।
नियत करने के बाद अल्लाहू अकबर कहते हुए अपने हाथों को उठा कर फिर नीचे ला कर नियत बांध लेंगे इसके बाद एक एक स्टेप फॉलो करें।अगर आप जमात के साथ पढ़ रहे हैं तो वास्ते अल्लाह तआला के बाद पीछे इस इमाम के बोले, इसके बाद अल्लाहू अकबर कहने पर नियत बांधेंगे।
Taraweeh Ki Namaz Ki Rakat
तरावीह की नमाज़ में टोटल 20 रकात नमाज़ पढ़ी जाती है इस पूरे नमाज़ को 10 सलाम में 2 - 2 रकात की नियत से पढ़ कर मुकम्मल की जाती है।
हर 4 रकात तरावीह की नमाज़ पढ़ने के बाद बैठ कर तरावीह की तस्बीह पढ़ी जाती है इस तरह पूरे 20 रकात में 5 मरतबा पढ़ी जाती है।
अंतिम लफ्ज़
मेरे प्यारे मोमिनों आप ने अब तक तो तरावीह की नमाज़ अदा करना सिख ही गए होंगे अगर आपके मन में कोई सवाल हो तो आप हमसे कॉमेंट करके पूछ सकते हैं और इस बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच शेयर करें जिसे वो भी सही से तरावीह की नमाज़ पढ़ सकें।
एक बात और अगर कहीं पर आपको गलत लगा हो या कहीं कुछ छूट गई हो तो भी आप हमें कॉमेंट करके इनफॉर्म करें ताकि हम अपनी गलतियां सुधार सकें हम सब से छोटी बड़ी गलतियां होती रहती है इस के लिए आप को हम सब का रब जरूर अज्र देगा इंशाल्लाह तआला।
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बंदों का हक़ और उनकी अदायगी का तरीका
अल्लामा कुतुबुद्दीन हन्फ़ी
24 अगस्त, 2012
(उर्दू से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम)
आदमी की तौबा पूरी उस वक्त होती है जब बन्दों के हक़ को भी पूरा अदा करे, ये बात याद रखें कि बन्दों के अधिकार सिर्फ तौबा से माफ नहीं होते बल्कि उनको अदा करना चाहिए, जैसे किसी का माल अवैध रूप से ले लिया या किसी से कर्ज़ लिया था उसका कर्ज़ अदा करे (कर्ज़ देने वाले को याद हो या न हो) या किसी के माल में अपनी तरफ से खयानत हो चुकी हो या उसकी कोई चीज़ मज़ाक में ले कर रख ली हो (जबकि वो उसे देने पर दिल से राज़ी न हो) या किसी से ब्याज लिया हो या गलत बयान करके धोखा देकर माल कमाया हो तो इस तरह के सभी माल को वापस कर दे। जो माल किसी को बताए बिना छिप कर लिया तो उसकी वापसी के वक्त ये बताना जरूरी नहीं कि मैंने आपके माल में खयानत की थी, हदिया के नाम से देने में भी अदायगी हो जाएगी।
छोटे भाइयों बहनों का अधिकार मारना:-
कई जगह यूँ होता है कि पिता के निधन के बाद बड़े भाई मिलकर पिता की सारी मिल्कियत और धन पर कब्जा कर लेते हैं और बहनों को उनका शरई अधिकार नहीं देते हैं, ये सरासर अन्याय है और जो हक़ अल्लाह ने लड़कियों का तय कर दिया है उसको खुद खा जाना हराम है और अवैध है, इन लड़कियों का खुद हक़ न मांगना, दलील इस बात की नहीं कि उन्होंने अपना हक़ छोड़ दिया है और धन से जुड़े मामलों में तो विशेषकर परम्परागत खामोशी मोतबर नहीं और यहाँ तक कि झूठी माफी का कोई भरोसा नहीं विशेषरूप से जब नाबालिग बहन, भाई भी वारिसों में हों तो उनकी तो माफी या माल छोड़ने पर सहमती शरई तौर पर बिल्कुल भी भरोसेमंद नहीं, या इसी प्रकार भाई की मृत्यु पर उसकी पत्नी (यानी भाभी) और उसकी औलाद को हक़ न देना और खुद हड़प करना सरासर अन्याय है, और हराम से अपने पेट को भरना, ऐसे लोग उसी तरह हैं जैसे अपने पेट में जहन्नम की जलती हुई आग के अंगारे भर रहे हैं, इसलिए बहनों का, भाइयों का, यतीमों का जो माल खाया हो अब जब अल्लाह ने तौबा की तौफीक़ दी तो तुरंत अदा करना शुरू कर दें और तुरंत सारा न अदा कर सकें तो धीरे धीरे करते रहें और अपने वसीयतनामें में लिख जाएं कि मैं अदा ना कर सका तो मेरे बाकी माल में या मेरे रिश्तेदार मुझ पर एहसान कर इतना माल फलां फलां को लौटा दें जो मैंने अवैध रूप से गलती से खा लिया था।
खूब समझ लीजिए नफली हज और उमरा करने से, मस्जिद और मदरसा में लगाने से, यतीमखाना (अनाथालयों) में देने से, इन सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि जिनका माल लिया है उनको पहले अदा करें। और व्यापार की लाइन में अक्सर ऐसा होता है कि लोग माल ले लेते हैं और नुक्सान हो गया तो समझते हैं कि उन्हें वापस लौटाना जरूरी नहीं, हालांकि वो भी लौटाना ज़रूरी है, अब जब हालात अच्छे हो जायें तो फौरन लौटाएं या वो लोग अपने हिस्से का माल दिल की खुशी से माफ करें। आपकी ओर से किसी डर या ज़बरदस्ती के बिना हो तो और बात है।
किसी को गलत सौदा बेचा है, झूठ बोल कर पैसे अधिक लिए हैं या रिश्वत ली है तो अगर वो लोग ज़िंदा हों, उनका पता मालूम हो और अदा करने की ताकत है तो उनको अदा करें और अगर अब खुद बिल्कुल ही अदा नहीं कर सकते तो उनके पास जाकर माफी मांगें और उन्हें बिल्कुल खुश कर दें कि जिससे अंदाज़ा हो जाये कि उन्होंने अपने हक़ को बिल्कुल माफ कर दिया, लेकिन नाबालिग के माफ़ करने से भी माफ़ नहीं होगा, उसका हक़ लौटाना ही फर्ज़ होगा। अब चाहे आप पर एहसान करते हुए कोई इसका ज़िम्मा ले और नाबालिग को उसके माल की अदायगी करे। और बालिगों में भी अगर कोई माफ न करे तो इससे समय ले लें और थोड़ा थोड़ा कमा कर और आमदनी में से बचाकर अदा कर लें और अगर अदायगी से पहले इनमें से किसी का इंतेकाल हो जाए तो उसकी संतान या अन्य शरई वारिस को बाकी का माल पहुँचा दें।
अगर मुसलमान असहाब हुक़ूक के पते और ठिकाने मालूम न हो तो उनकी तरफ से उनके हक़ के बराबर ज़कात के पात्र शरई मिस्कीनों को दान दे दें। जब तक पूरी अदायगी न हो सदक़ा (दान) करते रहें और और मुसलमानों में से अहले हुक़ूक़ के लिए चाहे वित्तीय अधिकार हों, चाहे आबरू के अधिकार हों बहरहाल दुआए खैर और अस्तग़फ़ार हमेशा पाबंदी से करें और अगर किसी गैर मुस्लिम का नाहक जबानी दिल दुखाया है तो जहाँ तक हो सके उससे भी माफी मांगें और अगर गैर मुस्लिम का वित्तीय अधिकार हम पर है तो उपरोक्त विवरण के आधार पर उसको भी उसका हक़ लौटाएं या उसके वरिसों को दें और अब अगर उसका कुछ पता नहीं कि कहाँ है? या मर चुका है तो उसके अधिकार के बराबर जो माल है वो किसी वैध कल्याणकारी काम में लगा देने की गुंजाइश है, यानी इतनी रकम शरई गरीबों पर सदका करना वाजिब नहीं है (बहवाला इस्लामी मईशत के बुनियादी उसूल, स 344)।
इसी तरह पति की तरफ से पत्नी का महेर अदा नहीं किया जाना, महेर मिलता भी है तो लड़की के पिता वसूल कर खुद कब्जा कर लेते हैं और बचपन से उसको पाला पढ़ाया आदि या इसी तरह उसकी शादी में जमकर खर्च किया इसके बदले यह महेर की रकम है जो मुझे मिल गयी है। खूब समझ लें कि महेर की ये रकम अब भी उस लड़की की ही मिल्कियत है, उसके पिता की उपरोक्त सब तावीलें बिल्कुल गलत और बेवज़न हैं, इसलिए अगर कोई पिता अपनी बेटी के महेर की रकम पर इस तरह की तावीलात से कब्जा कर चुका हो तो वापस लौटाए और इस्तेमाल में ला चुका हो तो भी वापस लौटाए, ये सब उस पर फर्ज़ है, और कुछ पति जो इस बात पर संतुष्ट हो जाते हैं कि पत्नी ने मुझे महेर माफ कर दिया, इस धोखे से निकलना भी जरूरी क्योंकि रस्मी तौर से पत्नी के माफ़ करने से महेर माफ न होगा, क्योंकि अक्सर महिलाएं ये समझ कर कि माफ करूँ या न करूँ महेर की रकम मिलनी तो है नहीं, कह देती हैं कि जाओ माफ किया, सो खूब समझ लें इस तरह से दी गयी माफी का कोई ऐतबार नहीं क्योंकि वह न चाहते हुए माफ करना है और धन के मामले में तो विशेषकर परम्परागत खामोशी कभी शरई ऐतबार से मोतबर नहीं मानी जाती है, इसलिए पति लोगों को चाहिए कि महेर की अदायगी तुरंत करें।
और कुछ जगह आमतौर से रिवाज है जिसका इंतेकाल हुआ उसी के माल से गरीबों और ज़रूरतमंदों को खिलाते और उसके कपड़े खैरात की नीयत से दे देते है हालांकि वो माल अब वारिसों का होगा, मरने वाले का नहीं रहा, अब अगर वारिस बालिग़ हों और मौजूद हों तो उनकी खुशी से शरई मसाएल के पालन के साथ बिदअत और रस्मों से बचते हुए बाँटा जा सकता है और नाबालिग़ को हर हाल में उसका हिस्सा देना फर्ज़ है, उसकी खुशी से भी कहीं खैरात में देना जाइज़ नहीं है। वारिसों के लिए मरने वाले का कर्ज़ अदा करना सबसे अहम फर्ज़ है चाहे उसने वसीयत न की हो तब भी, इसलिए इसमें देरी करना ये मरने वाले पर भी ज़ुल्म है और अपने ऊपर भी।
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Awara Lyrics - Dabangg 3 | Salman Khan
Awara Lyrics – Dabangg 3 | Salman Khan
Awara Lyrics In Hindi from “Dabangg 3”, Sung by Salman Ali, Muskaan. Music is given by Sajid- Wajid. The Bollywood Blockbuster song lyrics were written by Sameer Anjaan, Sajid. Featuring Salman Khan, Sonakshi Sinha, Arbaaz Khan, Mahie Gill.
Awara Lyrics In Hindi
पहला पहला, इश्क़ हुआ हैपहला तजुर्बा, पहली दफा है
हो तू जो नहीं तो, कुछ भी नहीं हैसांसों के चलने की, तू ही वजह है..
मांगे फ़कीर..दुआए…
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