मानवता को आईना दिखाता है साहित्य : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू
भोपाल/नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भोपाल में कहा, ‘आज 140 करोड़ देशवासियों का मेरा परिवार है। सभी भाषाएं और बोलियां मेरी अपनी हैं। हमारी परंपरा में ‘यत्र विश्वम् भत्येकनीडम्’ (जहां सारा विश्व चिड़ियों का एक घोंसला बनके रहे ) की भावना प्राचीनकाल से है। राष्ट्रप्रेम और विश्व बंधुत्व के आदर्श का संगम हमारे देश में दिखाई देता रहता है।’
राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने के बाद मेरी सबसे ज्यादा यात्राएं मध्य प्रदेश में हुई है। यह मेरी मध्य प्रदेश में 5वीं यात्रा है, आप सभी से मिले इस प्यार के लिए धन्यवाद। उन्मेष का अर्थ आंखों का खुलना भी होता है और फूलों का खुलना भी। हमारी परंपरा में “यत्र विश्वं भवत्येकनीडम्” की भावना प्राचीन काल से आधुनिक युग तक निरंतर व्यक्त होती जा रही है। राष्ट्रप्रेम और विश्व बंधुत्व के आदर्श का संगम हमारे देश की चिंतन धाराओं में सदैव दिखाई देता है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गुरुवार को राजधानी भोपाल में भारत की लोक एवं जनजाति अभिव्यक्तियों के राष्ट्रीय उत्सव उत्कर्ष और उन्मेष उत्सव का शुभारंभ किया। इस मौके पर राज्यपाल मंगूभाई पटेल और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी मौजूद थे। आज सुबह साढ़े ग्यारह बजे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के भोपाल पहुंचने पर राज्यपाल मंगूभाई पटेल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने उनकी अगवानी की। विमानतल से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आयोजन स्थल रवीन्द्र भवन के हंसध्वनि सभागार पहुंची। उन्होंने दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि आज 140 करोड़ देशवासियों का मेरा परिवार है और सभी भाषाएं व बोलियां मेरी अपनी हैं। हमारा सामूहिक प्रयास अपनी संस्कृति, लोकाचार, रीति-रिवाज और प्राकृतिक परिवेश को सुरक्षित रखने का होना चाहिए। हमारे जनजाति समुदाय के भाई-बहन और युवा आधुनिक विकास में भागीदार बनें।
संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार अंतर्गत संगीत नाटक अकादमी और साहित्य अकादमी द्वारा संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश शासन के सहयोग से भोपाल में पह���ी बार 3 से 5 अगस्त तक भारत की लोक एवं जनजाति अभिव्यक्तियों के राष्ट्रीय उत्सव उत्कर्ष एवं उन्मेष का आयोजन हो रहा है। उत्कर्ष उत्सव में देश के 36 राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के लगभग 800 कलाकार लोक एवं जनजातीय प्रदर्शन कलाओं की सतरंगी छटा बिखेरेंगे। उत्सव का प्रसारण संगीत नाटक अकादमी के फेसबुक और यूट्यूब चैनल सहित संस्कृति विभाग के फेसबुक और यूट्यूब चैनल पर किया जा रहा है।
उत्कर्ष में शाम 5 बजे से होंगी नृत्यों की प्रस्तुतियां
उत्कर्ष उत्सव में शाम 5 बजे से रवीन्द्र भवन के सभागार में भारत के लोक-नृत्य और जनजातीय नृत्यों की प्रस्तुति दी जाएगी। लेह एवं लद्दाख का जबरो नृत्य, नागालैंड का सुमी वार, गोवा का समय, सिक्किम का सिंधी छम, मध्यप्रदेश का राई एवं नरेरी, मेघालय का बांग्ला, महाराष्ट्र का लावणी, असम का बीहू, ओडिसा का सिंगारी, झारखंड का पाईका और आंध्र प्रदेश के टप्पेटा गुल्लू नृत्य की प्रस्तुति यहां होगी।
एशिया का सबसे बड़ा साहित्यिक सम्मेलन
उन्मेष उत्सव एशिया का सबसे बड़ा साहित्यिक सम्मेलन है। इसमें बहुभाषी कविता पाठ, लेखन, आदिवासी कवि सम्मेलन, साहित्य के विषयों पर परिचर्चा, आजादी का अमृत महोत्सव पर कविता पाठ और साहित्य के उत्थान संबंधी विभिन्न विषय पर प्रबुद्धजन द्वारा विमर्श किया जाएगा। साथ ही पुस्तक मेला में साहित्य अकादमी और अन्य प्रकाशकों की पुस्तकें बिक्री के लिए सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक उपलब्ध रहेंगी। उत्सव के दौरान साहित्य अकादमी द्वारा प्रख्यात लेखकों पर बनी डॉक्यूमेंट्री भी दिखाई जायेगी।
उत्कर्ष उत्सव’ 3 से 5 अगस्त तक चलेगा। ‘उन्मेष उत्सव’ 3 से 6 अगस्त तक चलेगा। देशभर के 500 कलाकार इस कार्यक्रम में नृत्य प्रस्तुति देंगे। संस्कृति मंत्रालय के संगीत नाटक एवं साहित्य अकादमी, संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश के सहयोग से यह आयोजन हो रहा है। पिछली बार शिमला में यह आयोजन हुआ था। मध्यप्रदेश में पहली बार हो रहा है।
साहित्य जुड़ता भी है और जोड़ता भी है
प्रेसिडेंट ने कहा, ‘साहित्य और कला ने मानवता को बचाए रखा है। साहित्य जुड़ता भी है और लोगों को जोड़ता भी है। हमारा सामूहिक ���्रयास अपनी संस्कृति, लोकाचार, रीति-रिवाज और प्राकृतिक परिवेश को सुरक्षित रखने का होना चाहिए। हमारे जनजाती समुदाय के भाई-बहन और युवा आधुनिक विकास में भागीदार बनें।’ प्रेसिडेंट ने कहा, ‘भारत में 700 कम्युनिटी के आदिवासी, लेकिन उनकी भाषाएं इससे ज्यादा हैं। भाषाओं को बचाकर रखना लेखकों का कर्तव्य है। यह हम सभी का भी दायित्व है।’
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प्रधानमंत्री ने नागालैंड के स्थापना दिवस पर राज्य के लोगों को शुभकामनाएं दीं
प्रधानमंत्री ने नागालैंड के स्थापना दिवस पर राज्य के लोगों को शुभकामनाएं दीं
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नागालैंड के स्थापना दिवस पर राज्य के लोगों को शुभकामनाएं दी हैं।
प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया;
“नागालैंड के स्थापना दिवस पर राज्य के लोगों को शुभकामनाएं। भारत को नागालैंड की उस संस्कृति पर बेहद गर्व है जो साहस, कड़ी मेहनत और प्रकृति के साथ सदभाव में रहने पर जोर देती है। मैं आने वाले वर्षों में नागालैंड की निरंतर सफलता के लिए प्रार्थना करता हूं।”
Bharat me kitne jile hai? दोस्तों भारत में कितने राज्य है ये हम सब तो जानते ही है. लेकिन अगर आपसे पूछा जाए कि पूरे भारत में कितने जिले है तो शायद एक बार आप सोच पड़ जायेंगे और संभव है आपके पास इस प्रश्न का उत्तर न हो.
अगर नहीं पता तो चलिए कोई बात नहीं आज मैं आपको इस लेख के माध्यम से बताऊंगा की भारत में कुल कितने जिले है और प्रत्येक राज्य में कितने है यह भी बताऊंगा.
दोस्तों हमारा देश पुरे विश्व में सर्वाधिक आबादी वाला दूसरा देश है. और हमारा देश कुल 28 राज्य और 9 केंद्र शाशित प्रदेशों में बटा हुआ है. हमारे देश में बहुत सी भाषाएँ बोली जाती है और प्रत्येक राज्य की अपनी संस्कृति और सभ्यता है.
बहुआयामी भाषा और और संस्कृतियों में बटा होने के बावजूद हमारा देश अनेकता में एकता की मिशाल पेश करता है. दोस्तों मेरे यहाँ पर एक कहावत मशहूर है कि "कोस कोस पर बदले पानी, कोस कोस पर बानी" यानि कहने का तात्पर्य यह कि यह थोड़ी दूरी पर ही भाषा और पानी दोनों ही बदल जाते है.
ठीक इसी प्रकार से सफ़र करते हुए कब कौन सा जिला आ जाये हमें पता ही नहीं चलता है. इसलिए मैंने सोचा क्यूँ न आज आपको ये बताया जाये कि हमारे प्रत्येक राज्य में कितने जिले है और पुरे देश में इनकी कुल संख्या कितनी होती है.
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भारत में कितने जिले है 2022 (Bharat Me Kitne jile hai)?
एक जिला, एक भारतीय राज्य या क्षेत्र का एक प्रशासनिक प्रभाग है। कुछ मामलों में जिलों को उप-विभाजनों में विभाजित किया जाता है, और दूसरों में सीधे तहसील या तालुका में। 2021 तक भारत में कुल 739 जिले है, जबकि 2001 की जनगणना के अनुसार इनकी संख्या 593 व 2011 की जनगणना के अनुसार 640 जिले थे.
बढती आबादी और विकसित होते क्षेत्रों के वजह से इन जिलों की संख्या बढती जा रही है. अभी भी भारत में बहुत से क्षेत्र ऐसे है जिन्हें जिला घोषित करने की मांग स्थानीय स्त�� पर की जा रही है.
भारत में कुल 28 राज्य है जिनमे कुल जिलों की संख्या 694 होती है और केंद्र शाशित प्रदेशों में कुल जिलों की संख्या 45 है. और राज्य और केंद्र शाशित प्रदेशों को मिलाकर यह संख्या 739 होती है.
आइये क्रमवार तरीके से जानते है भारत के राज्यों और केंद्र शाशित प्रदेशों में कुल कितने जिले है.
क्रम भारत के राज्य राज्यों में जिलों की संख्या1Andhra Pradesh132Arunachal Pradesh253Assam334Bihar385Chhattisgarh286Goa27Gujarat338Haryana229Himachal Pradesh1210Jharkhand2411Karnataka3012Kerala1413Madhya Pradesh5514Maharashtra3615Manipur1616Meghalaya1117Mizoram1118Nagaland1219Odisha3020Punjab2221Rajasthan3322Sikkim423Tamil Nadu3824Telangana3325Tripura826Uttar Pradesh7527Uttarakhand1328West Bengal23केंद्र शाशित प्रदेशकुल जिलों की संख्या1अंडमान और निकोबार द्वीप समूह32चंडीगढ़13दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव34जम्मू और कश्मीर205लदाख26लक्ष्यद्वीप17दिल्ली118पांडूचेरी436कुल739भारत में 739 जिले है
कंप्यूटर
इन्टरनेट
बैंकिंग
प्रदेश के अनुसार जिलों की संख्या।
भारत में कितने जिले है? भारत में 739 जिले है। आंध्र प्रदेश में कितने जिले है? आंध्र प्रदेश में 13 जिले है। अरुणाचल प्रदेश में कितने जिले है? अरुणाचल प्रदेश में 25 जिले है। असम में कितने जिले है? असम में 33 जिले है। बिहार में कितने जिले है? बिहार में 38 जिले है। छत्तीसगढ़ में कितने जिले है? छत्तीसगढ़ में 28 जिले है। गोवा में कितने जिले है? गोवा में 22 जिले है। गुजरात में कितने जिले है? गुजरात में 33 जिले है। हरियाणा में कितने जिले है? हरियाणा में 22 जिले है। हिमांचल प्रदेश में कितने जिले है? हिमांचल प्रदेश में 12 जिले है। झारखण्ड में कुल कितने जिले है? झारखण्ड में 24 जिले है। कर्नाटक में कितने जिले है? कर्नाटक में 30 जिले है। केरल में कितना जिले है? केरल में 14 जिले है। मध्य प्रदेश MP में कितने जिले है? मध्य प्रदेश में 55 जिले है। महाराष्ट्र में कितने जिले है? महाराष्ट्र में 36 जिले है। मणिपुर में कितने जिले है? मणिपुर में 16 जिले है। मेघालय में कितने जिले है? मेघालय में कितने 11 जिले है। मिजोरम में कितने जिले है? मिजोरम में 11 जिले है। नागालैंड में कितने जिले है? नागालैंड में 12 जिले है। उड़ीसा में कितने जिले है? उड़ीसा में 30 जिले है। पंजाब में कितने जिले है? पंजाब में 22 जिले है। राजस्थान में कितने जिले है? राजस्थान में 33 जिले है। सिक्किम में कितने जिले है? सिक्किम में 4 जिले है। तमिलनाडु में कितने जिले है? तमिलनाडु में 38 जिले है। तेलंगाना में कितने जिले है? तेलंगाना में 33 जिले है। त्रिपुरा में कितने जिले है? त्रिपुरा में 8 जिले है। उत्तर प्रदेश (UP) में कितने जिले है? उत्तर प्रदेश में 75 जिले है। उत्तराखण्ड में कितने जिले है? उत्तराखण्ड में 13 जिले है। पश्चिम बंगाल में कितने जिले है? पश्चिम बंगाल में 23 जिले है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में कितने जिले है? अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में 3 जिले है। चंडीगढ़ में कितने जिले है? चंडीगढ़ में 4 जिले है। दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव में कितने जिले है? दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव में 3 जिले है। जम्मू और कश्मीर में कितने जिले है? जम्मू और कश्मीर में 20 जिले है। लदाख में कितने जिले है? लदाख में 02 जिले है। लक्ष्यद्वीप में कितने जिले है? लक्ष्यद्वीप में 1 जिला है। पांडूचेरी में कितने जिले है? पांडूचेरी में 1 जिला है।
नाम की रिंगटोन
अवकाश हेतु प्रार्थनापत्र
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आशा करता हूँ दोस्तों आपको भारत में कितने जिले है के सम्बन्ध में दी गयी जानकरी अवश्य अच्छी लगी होगी. इसे आप अपने दोस्तों के साथ शेयर कर उनका भी ज्ञानार्जन कर सकते है.
आप भारत के किस जिले से है, हमे कॉमेंट्स में जरूर बताएं ताकि हमे पता चल सके ये लेख कितने जिले के लोगों ने पढ़ा है। यदि आप भी हमारे लिए लेख लिखना चाहते है तो हमसे संपर्क करे।
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🚩 हिन्दुस्तान में हिन्दू अल्पसंख्यक ??? 2 अप्रैल 2022 आज भी हिन्दू एकजुट नही हुए तो आगे परिणाम भयंकर आएगा!
🚩बहुसंख्यक हिन्दू बाहुल भारत देश में भले हिन्दू निश्चिंत हों लेकिन रिपोर्ट चौकाने वाला है भारत के ही कई राज्यों में हिन्दू एकदम अल्पसंख्यक हो गए हैं, उसमे बाकी जो बचे है, उनको भी जबरदस्ती धर्मपरिवर्तन करने या यातनायें देकर भगाने की साजिश रची जा रही है ।
🚩आंकडों के अनुसार इन 8 राज्यों और 1 केंद्र शासित प्रदेश में हिन्दू इतने प्रतिशत ही बचे है:- मिजोरम (2.70%), लक्षद्वीप (2.80%), नागालैंड (8.70%), मेघालय (11.50%), जम्मू-कश्मीर (28.40%), अरुणाचल प्रदेश (29.00%), पंजाब (38.50%) और मणिपुर में (41.40) प्रतिशत है। तीन राज्यों नागालैंड, मिजोरम और मेघालय में ईसाई बहुसंख्यक होते जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर और लक्षद्वीप में मुस्लिम समुदाय बहुसंख्यक है।
🚩भारत मे हिन्दू ख़त्म किये जा रहे है। अगर अब भी हिन्दू नहीं जागे तो समाप्त होते चले जाएंगे। हिन्दुओं के खात्मे की बड़ी भयंकर साजिश रची जा रही है।
🚩अभी हाल ही में एक सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो रहा था उसमें बताया कि ये वीडियो नायगाओ पश्चिम में विजय पार्क चेल्सी बिल्डिंग में रहने वाले गुजराती परिवार किरीट बारिया का है, इनकी बिल्डिंग में सारे परिवार क्रिश्चन है, सिर्फ यही एक फैमिली हिन्दू है। इनको पिछले 10 साल से प्रताड़ित किया जा रहा है कभी पानी बन्द कर देते है, कभी मार पीट करते है।
🚩 अभी नवरात्रि में इनके घर के बाहर तुलसी का पौधा तोड़ दिया, बच्चो से मारपीट की ओर कहा कि तुम लोग क्रिश्चन बन जाओ । पुलिस भी इनको सहयोग नहीं कर रही है।
🚩उत्तर प्रदेश में भी आए दिन धर्म परिवर्तन करने के मामले सामने आते हैं। जहां आये दिन जबरन धर्मपरिवर्तन कराया जाता है, धर्म की आड़ में ना जाने कितने लोगों को निशाना बनाया जाता है, उत्तर प्रदेश में रहेने वाले लोगों को जबरदस्ती या फिर उनकी कमज़ोरी का फायदा उठाकर उन्हें धर्मपरिवर्तन के लिए मजबूर किया जाता है। जिसको लेकर आए दिन हंगामा हो रहा है।
🚩नया मामला कानपुर का है, जहां श्रवण को जबरन धर्मपरिवर्तन करने को मजबूर कर रहे थे, लेकिन श्रवण को अपना हिंदू धर्म छोड़ कर किसी और धर्म में जाना मंजूर नहीं था, इसलिए पुलिस से धर्म परिवर्तन करवाने की शिकायत कर डाली। श्रवण ने बताया कि उसके इलाके में चर्च का पादरी प्रदीप राव लोगों को लालच देकर उनका धर्म परिवर्तन कर गुमराह कर रहा है।
🚩आपको बता दें कि केवल उत्तर प्रदेश या मुम्बई में ही नही भारत में हर कोने में ईसाई पादरी प्रलोभन देकर धर्मान्तरण करवा रहे हैं,दूसरी और मुस्लिमों द्वारा जबरन धर्मपरिवर्तन कराया जा रहा है, अभी भी हिन्दू नहीं जागे तो जैसे 8 राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो गये है ऐसे ही अन्य राज्यों में भी होने लगेंगे ।
🚩 वेटिकन सिटी और इस्लामिक देशों द्वारा भारतीय मीडिया में भारी फंडिंग की जा रही है, जिससे वे श्री राम मंदिर, धारा 370, गौ-हत्या, महंगाई, किसानों की आत्महत्या, जवानों की हत्या, हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार आदि समस्याओं पर बहस नहीं करके केवल हिन्दू साधु-संतों के खिलाफ ही खबरें दिखाते हैं और भोले हिन्दू इसी बात को सही समझकर उनके ही धर्मगुरुओं पर उंगली उठाता है और गलत बोलता है जबकि मीडिया ईसाई पादरियों और मौलवियों द्वारा हो रहे कुकर्मो को छुपाता है क्योंकि उनके द्वारा फंडिग की जा रही है।
🚩गौरतलब है कि आजतक जिन्होंने भी हिन्दू धर्म की हित की बात की, धर्मांतरण पर रोक लगाई, हिन्दुओ की घर वापसी करवाई, विदेशी कम्पनियों का बहिष्कार करवाया, पाश्चात्य संस्कृति का विरोध किया उन हिन्दू साधु-संतों एवं कार्यकताओं के खिलाफ सुनियोजित षडयंत्र करके उनकी हत्या करवा दी या मीडिया द्वारा बदनाम करवाकर राजनेताओं से मिलकर जेल में भिजवा दिया ।
🚩अतः हिन्दू आज भी एकजुट होकर इन षडयंत्रों का विरोध नहीं करेंगे तो एक के बाद एक हिन्दुओं को नष्ट कर दिया जायेगा और हिन्दू अल्पसंख्यक होते जायेंगे ।
आज से 29 वर्ष पूर्व जब मैं कश्मीर में आतंकवाद के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही का हिस्सा था, मुझे पाक-प्रशिक्षित कई आतंकवादियों के इंटेरोगेशन यानी पूछताछ करने का अवसर प्राप्त हुआ। कुछ याद नहीं की मैंने कितने आतंकवादियों का इंटेरोगेशन किया। लेकिन एक आतंकवादी का इंटेरोगेशन इतना अधिक महत्वपूर्ण और कुतूहल पैदा करने वाला था कि उसको मैंने अपनी पुस्तक "कश्मीर में आतंकवाद: आंखों देखा सच" में "प्रेम, पराजय और मोहभंग" नामक चैप्टर में लगभग 20 पृष्ठों में लिखा। उस आतंकवादी ने पाकिस्तान में दिए जा रहे हैं जिस प्रशिक्षण के विषय में बताया था यह सब धीरे-धीरे करके अक्षरशः सत्य साबित हो रहे हैं और हमारे सामने आ रहे हैं।
गजवा-ए-हिंद और दारुल-इस्लाम के विषय में अब अधिकतर भारतीय जागरूक हो चुके हैं लेकिन बहुत कम लोगों को पता है की दारुल-इस्लाम और गजवा-ए-हिंद के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए "हिमालय का इस्लामीकरण" (Islamization of Himalayas) नामक भूमि और जनसंख्या जिहाद भी चल रहा है। बड़े आश्चर्य की बात है कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही इसके प्रति बिल्कुल उदासीन लगती है। जहां इसके लिए मूलतः कांग्रेस और हरीश रावत उत्तरदायी हैं वहीं भाजपा के त्रिवेन्द्र रावत की भूमिका भी कुछ अच्छी नहीं रही है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 2018 में उस कानून से छेड़छाड़ की जिसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति जो उत्तराखंड का मूलनिवासी नहीं है उत्तराखंड में जमीन नहीं खरीद सकता। रावत के इस परिवर्तित कानून का दुष्परिणाम यह हुआ की देवभूमि उत्तराखंड का इस्लामीकरण और ईसाईकरण एक षड्यंत्र और योजनाबद्ध तरीके से बहुत तेजी से हो रहा है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण राज्य हैं क्योंकि पूरे हिमालयन रीजन में मात्र यही दो राज्य हैं जो इस्लामीकरण और ईसाईकरण से बचे हुए हैं।
हिमालय पर्वत का 2400 किलोमीटर का विस्तार कई श्रृंखलाओं में बंटा हुआ है, जो पश्चिमोत्तर में हिंदूकुश पर्वत श्रृंखला (अफगानिस्तान) से शुरू होता है और पूर्वोत्तर तथा दक्षिण पूर्व में नागालैंड की पटकाई पर्वत श्रृंखला पर समाप्त हो जाता है। इसके सब-टरेनियन विस्तार (sub-terrainian parts) का कुछ हिस्सा तिब्बत और चीन के कब्जे में भी है। इस 2400 किलोमीटर के पूरे विस्तार में मात्र हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड दो ऐसे राज्य हैं जो अभी भी अपने सनातनी और हिंदू चरित्र को बनाए रखे हुए हैं। हिमालय की पश्चिमोत्तर की अधिकतर बड़ी पर्वत श्रृंखलाएं जैसे हिंदू कुश (अफगानिस्तान) कराकोरम (पाकिस्तान/पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर) ज़ंसकर (पाक अधिकृत कश्मीर और लद्दाख) पीर पंजाल (भारत- जम्मू-कश्मीर) इत्यादि पहले से ही इस्लामिक हो चुकी हैं। एक समय में हिंदू-बौद्ध संस्कृति का केंद्र अफगानिस्तान अब पूरी तरह से एक इस्लामिक देश (Islamic Republic Afghanistan) ही नहीं 100% मुसलमानों का देश हो चुका है। जो थोड़े हिन्दू /सिख बचें थे वर्तमान तालिबान शासन के शुरू होते ही वहां से खदेड़ दिए गए या भयाक्रांत हो भाग लिए। कराकोरम पर्वत श्रृंखला जो पाकिस्तान/ पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और भारत तक फैली है, पूरी तरह से इस्लामीकरण का शिकार हो चुकी। यहां तक कि भारत में भी हिमालय की गोद में बसा कश्मीर, कश्मीरी पंडितों के बहिष्करण (exodus) के बाद 97% मुसलमान आबादी का क्षेत्र बन गया है। कश्मीर और शेष भारत को अलग करने वाली पर्वत श्रृंखला "पीर पंजाल" का भी इस्लामीकरण हो चुका है।
पीर पंजाल के दक्षिण की तरफ से जम्मू क्षेत्र शुरू होता है जहां हिंदू कुल मिलाकर किसी तरह बहुसंख्यक बने हुए हैं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में अभी तक बाहरी लोगों के बसने पर प्रतिबंध लगा हुआ था/है। इन प्रतिबंधों के बावजूद उत्तराखंड और हिमाचल में मुसलमान बहुत तेजी से अनधिकृत रूप से बस रहे हैं। इनका बसाव मजदूर, रेडी पटरी वाले और दुकानदारों के चोले में हो रहा है। अधिक आश्चर्य की बात यह है कि इनमें से बहुसंख्य भारतीय मुसलमान नहीं है बल्कि रोहिंग्या और बांग्लादेशी हैं।
असम के मुख्यमंत्री, हेमंत विश्व शर्मा सरकार के द्वारा असम में दबाव बनाने और अनधिकृत कब्जे वाली भूमि को रोहिंग्या और बांग्लादेशियों से खाली कराने के बाद काफी बांग्लादेशी घुसपैठिये मुसलमान हिमाचल और उत्तराखंड की पहाड़ियों की ओर रुख किए हुए हैं। सबसे दुखद बात यह है कि यह हिंदुओं के पवित्र स्थानों पर डेमोग्राफी (धार्मिक जनसंख्या) में बदलाव की दिशा में बढ़ रहे हैं। पहाड़ों में रोजगार कम होने के कारण अधिकतर पहाड़ी नौजवान मैदानी इलाकों में नौकरी की तलाश में चले आते हैं और पीछे सिर्फ बूढ़े, महिला��ं और बच्चे छूट जाते हैं। ऐसी स्थिति जिहादियों के लिए बहुत ही अनुकूल होती है क्योंकि ना सिर्फ उन्हें दुकान खोलने, मजदूरी करने और अन्य कार्यों को करने का अवसर मिल जाता है बल्कि ऐसे में लव जिहाद के लिए भी मैदान खाली मिल जाता है। यह सब कुछ उत्तराखंड और हिमाचल में बहुत तेजी से हो रहा है। हिमाचल प्रदेश के ज्वाला देवी मंदिर के आसपास पहले कई किलोमीटर तक एक भी मुसलमान नहीं था लेकिन आज वहां हजारों की संख्या में मंदिर के निकट काफी बड़ी संख्या में मुसलमान बस चुके हैं। यही स्थिति उत्तराखंड में हरिद्वार और नैनीताल की है जहां एक समय एक भी मुसलमान नहीं थे और इन दोनों जगहों पर कोई भी मस्जिद नहीं थी लेकिन आज स्थिति यह है कि यहां पर मुसलमान भले ही कम हो लेकिन मस्जिद बहुत तेजी से बन रही है। तारिक फतेह ने स्वयं एक वीडियो में बताया कि अभी कुछ वर्ष पूर्व जब वह नैनीताल गए थे तो सुबह उन्हें बहुत ऊंचे वॉल्यूम में अजान सुनाई पड़ी। तारिक फतेह अपने होटल से उठकर उस मस्जिद तक गए और देखा कि वहां सिर्फ 11 लोग नमाज पढ़ रहे थे। उन्होंने मौलवी से पूछा कि यहां आस-पास कितने मुसलमान रहते हैं तो उसने बताया कि जितने रहते यही हैं। तब तारेक फतह ने प्रश्न किया कि जब कुल 11 लोग ही हैं तो इतनी ऊंची आवाज में अजान देने की आवश्यकता क्या है? स्पष्ट है अजान नमाजियों को बुलाने के लिए नहीं बल्कि अपना डोमिनेंस यानी आधिपत्य स्थापित करने के लिए इतने ऊंचे वाल्यूम में पढ़ी जाती है।
हिमालय के इस्लामीकरण का सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह हो रहा है कि जो हमारे पवित्र स्थान हैं- जैसे रूद्र प्रयाग, कर्णप्रयाग, देवप्रयाग इत्यादि इन स्थानों पर भी मांस का विक्रय प्रारंभ हो गया है। आवश्यक नहीं कि यह गाय का ही मांस हो लेकिन जो हिंदू धर्म स्थलों की पवित्रता है वह नष्ट होती जा रही है। नेपाल में भी यही दशा है। "हिन्दू राष्ट्र" का संवैधानिक दर्जा हटने के बाद वहां भी ईसाई और इस्लामी करण बहुत तेजी से हो रहा है। बात यह है कि यह सब स्वाभाविक नहीं बल्कि योजना बद्ध और वाह्यारोपित (induced) है।
हमारे देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि हमारे देश के नेताओं को भूगोल का महत्व नहीं पता है। उन्हें पता नहीं कि "जिनका भूगोल नहीं उनका न तो इतिहास होता है न ही भविष्य"। नेहरू ने चीन को प्लेट पर रख कर के तिब्बत दे दिया। ना सिर्फ हमारे बहुत से पवित्र स्थल जैसे मानसरोवर आज चीन के कब्जे में है बल्कि हमारी अधिकतर नदियों का उद्गम स्थल भी चीन के कब्जे में है और वह उस पर बड़े-बड़े बांध बना���र भारत के लिए "जल प्रलय" की स्थिति पैदा कर रहा है। हमें यह समझना होगा कि पहाड़ों पर जो लोग बसे हुए हैं उनका बहुत अधिक महत्व है। उत्तराखंड से ही हमारे देश की अनेक पवित्र और प्रमुख नदियां निकलती है जिसमें गंगा और यमुना भी शामिल हैं। उत्तराखंड को देव भूमि कहा जाता है और हरिद्वार उसका प्रवेश द्वार है लेकिन जिस तरह से षड्यंत्र के तहत देव भूमि का इस्लामीकरण हो रहा है वह सनातन धर्म और देश के लिए बहुत बड़े खतरे की घंटी है।
हॉर्नबिल महोत्सव नागालैंड सरकार कोहिमा से 12 किमी. दूर स्थित विरासत गाँव किसामा में 10 दिवसीय 22वें हॉर्नबिल महोत्सव का आयोजन कर रही है। नागालैंड की समृद्ध संस्कृति एवं जीवन शैली को प्रस्तुत करने वाला यह महोत्सव नागालैंड की लड़ाकू जनजातियों का सबसे बड़ा उत्सव है, जो सामान्यत: दिसंबर माह के प्रथम सप्ताह में मनाया जाता है। https://www.sanskritiias.com/hindi/news-articles/hornbill-festival #IAS #UPSC #Prelims #Mains #GS #News_Article #SanskritiIAS #CurrentAffairs https://www.instagram.com/sanskritiias/p/CXlP6z2vlOr/?utm_medium=tumblr
‘राज्य के लोगों का देश के विकास में बहुत योगदान,’ प्रधानमंत्री मोदी ने नागालैंड के स्थापना दिवस पर देशवासियों को दी शुभकामनाएं
‘राज्य के लोगों का देश के विकास में बहुत योगदान,’ प्रधानमंत्री मोदी ने नागालैंड के स्थापना दिवस पर देशवासियों को दी शुभकामनाएं
नागालैंड का आज स्थापना दिवस है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करते हुए कहा ‘नागा संस्कृति वीरता और मानवीय मूल्यों का प्रतीक है. नागालैंड के लोग भारत के विकास में भरपूर योगदान दे रहे हैं.बता दें कि 1 दिसंबर, 1963 को नगालैंड भारत का 16वां राज्य बना था.1963 में नगालैंड राज्य की स्थापना की गई थी. नगालैंड भारत का उत्तर पूर्वी राज्य है जिसकी राजधानी कोहिमा है. पहाड़ियो से घिरे इस राज्य की सीमा…
*ऑनलाइन प्रदर्शनी श्रृंखला -69* (06 अक्टूबर 2021) जनजातीय आवास मुक्ताकाश प्रदर्शनी से *खारू: चाखेसांग नागा का एक पारंपरिक ग्राम द्वार* यूट्यूब की लिंक / YouTube link- https://youtu.be/yBg8Vok7csY वेबसाइट की लिंक / Website link - https://igrms.com/wordpress/?page_id=6128 #AmritMahotsav #MinistryOfCulture #PMOIndia #GKishanReddy #ArjunRamMeghwal #MeenakshiLekhi #igrms @Minis @MinOfCultureGoI @PMOIndia @MDoNER_India @AmritMahotsav @kishanreddybjp @arjunrammeghwal @M_Lekhi @secycultureGOI @PIBCulture क्षेत्र: फेक जिला राज्य: नागालैंड नागालैंड ऊँचे-नीचे, पहाड़ी इलाकों में बसा एक खूबसूरत राज्य है। इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले, अलग-अलग परंपरा और संस्कृति वाले, अलग-अलग पारंपरिक पोषाक पहनने वाले जनजातीय समुदाय निवास करते हैं जो अपने आप को नागा कहते हैं। नागालैंड भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के आठ राज्यों में से एक है, जिसमें 16 जनजातियाँ निवास करती हैं। चाखेसांग नागा उनमें से एक है। चाखेसांग अंतर्विवाही समूह नहीं है। उप जनजातीय स्तर पर अंतर्विवाह के नियम का पालन किया जाता है। नागा जनजातीय के तीन खंड चखरा, खेझा और संगताम अपने-अपने क्षेत्रों में रहते हैं, अपनी बोलियाँ बोलते हैं और विभिन्न प्रकार से अंतर्विवाह एवं अन्य संस्थागत सिद्धांतों का पालन करते हैं। नागा लकड़ी की नक्काशी धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं से जुड़ी है। लकड़ी पर नक्काशी का कार्य उनके इतिहास जितना पुराना है तथा इसे दो मुख्य संस्थाओं सिर के शिकार और मोरुंग से जोड़ा जा सकता है। यहाँ बनाए गए लकड़ी के दरवाजे पर मानव के कपालों की नक्काशी, मिथुन (बॉस फ्रंटालिस), सूर्य और अर्धचंद्र के प्रतीक, लड़ते हुये मिथुन और स्त्री स्तनों को चित्रित किया गया है। हालांकि सिर के आखेटन की प्रथा अब मौजूद नहीं है, लेकिन यह अतीत में उनके जीवन में एक मौलिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व रखता था। एक योद्धा के घर के खंभों, शहतीर और गांव के द्वार तथा मोरुंग में मानव सर की उकेरी गई आकृतियाँ सम्पूर्ण नागा समूह के लिए प्रेरणा श्रोत है। अतीत में मोरुंग का महत्व सभी सामाजिक गतिविधियों के केंद्र तथा गांव के लिए गार्ड हाउस के रूप में भी रहा है। सिर के आखेट के पश्चात इसे सबसे पहले मोरुंग में लाया जाता था। गांव के युवक यहां सोते हैं और साल भर पहरा देते हैं। https://www.instagram.com/p/CUtcseRIbuF/?utm_medium=tumblr
Assam ki Rajdhani | Capital of Assam | आसाम की राजधानी क्या है?
Assam ki Rajdhani दोस्ती इस पोस्ट में जानिए भारत के राज्य आसाम की राजधानी क्या है ? Capital of Assam in Hindi: भारत में अगर ख़ूबसूरत राज्यों की बात करें तो उसमे आसाम का नाम हमेशा श्रेष्ट स्थान पर आता है. आसाम उत्तर पूर्वी भारत में एक राज्य है। आसाम अन्य उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों से घिरा हुआ है। आसाम भारत का एक सीमांत राज्य है जो चतुर्दिक, सुरम्य पर्वतश्रेणियों से घिरा है। भारत - भूटान तथा भारत - बांग्लादेश सीमा कुछ भागो में असम से जुडी है। इस राज्य के उत्तर में अरुणाचल प्रदेश, पूर्व में नागालैंड तथा मणिपुर, दक्षिण में मिजोरम तथा मेघालय एवं पश्चिम में बंग्लादेश स्थित है।
दिसपुर (आसाम की राजधानी)
इसी खूबसूरत Assam का एक हिस्सा है और Assam की Rajdhani दिसपुर. दिसपुर भारत के पूर्वोत्तर मे स्थित बड़े राज्य असम की राजधानी है। यह असम के सबसे बड़े शहर गुवाहाटी के एक सिरे पर बसा एक नगर है। इसे सन 1973 मे राज्य की राजधानी का दर्जा मिला क्योंकि इससे पहले राज्य की राजधानी शिलाँग थी लेकिन मेघालय के गठन के पश्चात शिलौंग मेघालय के हिस्से मे आ गया।दिसपुर की आधिकारिक भाषा आसामी, बंगाली और हिंदी हैं.
दिसपुर के दक्षिण में पौराणिक वशिष्ठ आश्रम और शंकरदेव कलाक्षेत्र स्थित हैं। शंकरदेव कलाक्षेत्र सन 1990 मे अस्तित्व मे आया था क्योंकि क्षेत्र मे एक कला केन्द्र की कमी पिछले कई वर्षों से महसूस की जा रही थी।दिसपुर के पडो़स मे एक पुरातन नगर जतिया स्थित है जहां पर राज्य का सचिवालय स्थित है।
जनसँख्या और क्षेत्रफल / Population and Area
असम का क्षेत्रफल (Area of Assam) कुल 78, 438 km तक फैला है. साल 2011 की जनसंख्या के अनुसार असम की कुल आबादी 3 करोड़ 12 लाख है और यह भारत का 15 वां सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य बन गया है.
वहीं बात करें आसाम की राजधानी दिसपुर की तो यह स्थान गुवाहाटी का ही एक भाग है और यहाँ का क्षेत्रफल कुल 328 km² तक फैला है. यहाँ की आबादी कुल 9.57 लाख है. असम की कुल आबादी में लगभग 61 प्रतिशत आबादी हिन्दू है जबकि 35 प्रतिशत आबादी मुस्लिम, 4 प्रतिशत इसाई और बाकी जैन, बौद्ध आदि धर्मों से संबंधित होते हैं.
दिसपुर के बारे में रोचक तथ्य / Facts about Dispur (Capital of Assam)
1) दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद नीलांचल पर्वत पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।
2) दिसपुर आसाम के गुवाहाटी का ही एक भाग है. दरअसल दिसपुर में आसाम का सचिवालय स्थित है जिस कारण दिसपुर को आसाम की राजधानी माना जाता है.हालांकि, असम का हाईकोर्ट, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, आईआईटी, डीजीपी हेडक्वार्टर और सारे महत्वपूर्ण दफ्तर गुवाहाटी में स्थित हैं. गुवाहाटी असम के गैर-आधिकारिक राजधानी के तौर पर काम करता है.
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आसाम में दार्शनिक स्थान / Places to Visit in Assam
असम को अपने वन्यजीव पर्यटन के लिए जाना जाता है। राष्ट्रीय उद्यान और अन्य अभयारण्य, असम के प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह सभी राष्ट्रीय उद्यान, कई प्रकार के दुर्लभ जीवों व अन्य प्रजातियों का घरौंदा है। यहां आकर कई प्रकार की साहसिक गतिविधियां भी की जा सकती है।
https://www.youtube.com/watch?v=Fmh_Ogk-ZAY
1- दिफू
दिफू भी असम के छोटे शहरों में गिना जाता है लेकिन इसकी भी जितनी तारीफ की जाए कम है। दिफू में भी घूमने की एक से बढ़कर एक खूबसूरत जगहे हैं। यहां पर बॉटनिकल गार्डन, जिला संग्रहालय, अर्बोरेटम, तरलांगो सांस्कृतिक केंद्र जैसी जगहें घूमने के स्थान हैं। जहां बड़ी संख्या में पयर्टक आते हैं।
2- गोलाघाट
गोलाघाट भी यहां के पयर्टन स्थलों में एक है क्योंकि यहां काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान स्थित है। यूनेस्को के विश्व विरासत में शामिल यह उद्यान जहां गैंडों के लिए प्रसिद्ध है। यहां हाथी, एशियाई भैंसे, धमाचौकड़ी करते हिरन और बाघ भी देखने को मिलते हैं। वहीं रंग-बिरंगे पक्षी भी पयर्टकों को अाकर्षित करते हैं।
3- सिलचर
सुरमा नदी पर स्थित सिलचर भी असम की शान को बढ़ाने वाले स्थलों में शामिल हैं। यहां चाय के बागानों के अलावा चावल की खेती भी होती है। सिल्चर में पयर्टकों को घूमने के लिए भुवन मंदिर, कंचन कांति काली मंदिर, खासपुर, मणि हरण सुरंग, गांधी बाग के अलावा इस्कॉन मंदिर आदि हैं।
4- डिब्रूगढ़
असम का डिब्रूगढ़ इलाका भी बहुत ही खूबसूरत है। असम के डिब्रूगढ़ में ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे शाम के समय डूबता हुआ सूरज देखना पयर्टकों को काफी अच्छा लगता है। इसके अलावा डिब्रूगढ़ में घूमने के लिए दिन्जोय सतरा, दिहिंग सतरा और कोलीआई थान जैसे कई दूसरे ऐतिहासिक व प्राचीन स्थल बने हैं।
5- शिवसागर
दिखो नदी के किनारे पर बसे शिवसागर को सिबसागर के नाम से भी जाना जाता है। यहां की पहचान यहां पर बना प्राचीन सरोवर है। इस सरोवर के पास शिवडोल, विष्णुडोल और देवीडोल के नाम से सैकड़ों साल पुराने मंदिर बने हैं। यहां रंग घर, उत्तरन संग्रहालय और तलातल घर जैसे दार्शनिक स्थल हैं।
आसाम की राजधानी (Capital of Assam) की और जानकारी विकिपीडिया में पढ़िए
गुवाहाटी में घुमने वाली जगह कौन सी है? / Places to Visit in Guwahati
1- कामाख्या मंदिर
असम की राजधानी गुवाहाटी बेहद खूबसूरत जगह है। ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बसे इस शहर में आपको अध्यात्म की एक अनोखी छवि देखने को मिलेगी। गुवाहाटी में कामाख्या मंदिर प्रसिद्ध है। इसके अलावा यहां नवग्रह मंदिर, उमानन्दा मंदिर भी हैं। यहां पयर्टक असम जू एवं बॉटनिकल गार्डन्स भी घूम सकते हैं।
2- रीजनल साइंस सेंटर म्यूजियम
गुवाहाटी का रीजनल साइंस सेंटर म्यूजियम उन 27 साइंस सेंटर में से एक है जिसका प्रबंधन भारत सरकार के नेशनल काउंसिल ऑफ साइंस म्यूजियम के हाथों में है। यह साइंस सेंटर छात्रों और विज्ञान बिरादरी के लोगों के बीच काफी चर्चित हैं।
3- असम स्टेट म्यूजियम
अगर आप असम की परंपरा और संस्कृति से रू-ब-रू होना चाहते हैं तो असम स्टेट म्यूजियम जरूर जाइए। यह म्यूजियम गुवाहाटी के बीचों-बीच दिघालीपुखुरी तालाब के दक्षिणी छोर पर स्थित है। यहां पुरातत्व, पुरालेख, मुद्राशास्त्र और आइकॉनोग्राफी से जुड़ी कई रोचक शिल्पकृति मौजूद है।
4- गुवाहाटी तारामंडल
गुवाहाटी तारामंडल शरह के बीचों-बीच एमजी रोड पर स्थित है। इसकी गितनी भारत सबसे बेहतरीन तारामंडल में होती है। इसका विशिष्ट गुंबद और ढालू दीवार इसे देश के अन्य तारामंडल से अलग करता है।
5- सिद्ध भुवनेश्वरी मंदिर
सिद्ध भुवनेश्वरी मंदिर नीलाचल की पहाड़ी पर स्थित है। इसे भुवनेश्वरी देवी के सम्मान में बनवाया गया था। हिन्दू धर्म के अनुसार भुवनेश्वरी देवी 10 महाविद्या देवी में चौथी देवी है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 7वीं से 9वीं शताब्दी के बीच करवाया गया था।
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नगालैंड का हॉर्नबिल फेस्टिवल अनलकीली इस साल कोरोनवायरस वायरस महामारी में
नगालैंड का हॉर्नबिल फेस्टिवल अनलकीली इस साल कोरोनवायरस वायरस महामारी में
प्रतिनिधित्व के लिए छवि। (रायटर)
आमतौर पर 1 दिसंबर से शुरू होने वाला 10 दिवसीय हॉर्नबिल फेस्टिवल राज्य की विभिन्न जनजातियों की संस्कृति और विरासत का जश्न मनाता है। इसमें देश-विदेश के लाखों लोग शामिल होते हैं।
PTI कोहिमा
आखरी अपडेट: 20 जुलाई, 2020, शाम 6:14 बजे IST
एक वरिष्ठ अधिकारी ने सोमवार को कहा कि नागालैंड में प्रसिद्ध हॉर्नबिल फेस्टिवल का आयोजन इस साल होने की संभावना नहीं है।
Health News In Hindi : Nagaland salt is made by boiling continuously for seven days | बाजार में मिलने वाले आम नमक से कम खारा होता है नागालैंड का खास मिनरल सॉल्ट
Health News In Hindi : Nagaland salt is made by boiling continuously for seven days | बाजार में मिलने वाले आम नमक से कम खारा होता है नागालैंड का खास मिनरल सॉल्ट
Dainik Bhaskar
Nov 13, 2019, 01:19 PM IST
हेल्थ डेस्क. मैं कई बार नगालैंड गया हूं। नगालैंड की संस्कृति के साथ मैं इतना घुल-मिल गया हूं कि वहां मुझे अपनापन-सा महसूस होता है। जब भी नगालैंड जाता हूं तो ऐसा लगता है कि मैं अपने ही घर में आ गया हूं। मैंने नगालैंड के खास मिनरल सॉल्ट (खनिज लवण) के बारे में बहुत सुन रखा था। लेकिन उस नमक के बनने की प्रक्रिया से अनजान था। तो इस बार की यात्रा में मैंने…
बाजारा में मिलने वाले आम नमक से कम खारा होता है नागालैंड का खास मिनरल सॉल्ट
बाजारा में मिलने वाले आम नमक से कम खारा होता है नागालैंड का खास मिनरल सॉल्ट
हेल्थ डेस्क. मैं कई बार नगालैंड गया हूं। नगालैंड की संस्कृति के साथ मैं इतना घुल-मिल गया हूं कि वहां मुझे अपनापन-सा महसूस होता है। जब भी नगालैंड जाता हूं तो ऐसा लगता है कि मैं अपने ही घर में आ गया हूं। मैंने नगालैंड के खास मिनरल सॉल्ट (खनिज लवण) के बारे में बहुत सुन रखा था। लेकिन उस नमक के बनने की प्रक्रिया से अनजान था। तो इस बार की यात्रा में मैंने उसी खास नमक को बनाने की प्रक्रिया को करीब…
आज से 29 वर्ष पूर्व जब मैं कश्मीर में आतंकवाद के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही का हिस्सा था, मुझे पाक-प्रशिक्षित कई आतंकवादियों के इंटेरोगेशन यानी पूछताछ करने का अवसर प्राप्त हुआ। कुछ याद नहीं की मैंने कितने आतंकवादियों का इंटेरोगेशन किया। लेकिन एक आतंकवादी का इंटेरोगेशन इतना अधिक महत्वपूर्ण और कुतूहल पैदा करने वाला था कि उसको मैंने अपनी पुस्तक "कश्मीर में आतंकवाद: आंखों देखा सच" में "प्रेम, पराजय और मोहभंग" नामक चैप्टर में लगभग 20 पृष्ठों में लिखा। उस आतंकवादी ने पाकिस्तान में दिए जा रहे हैं जिस प्रशिक्षण के विषय में बताया था यह सब धीरे-धीरे करके अक्षरशः सत्य साबित हो रहे हैं और हमारे सामने आ रहे हैं।
गजवा-ए-हिंद और दारुल-इस्लाम के विषय में अब अधिकतर भारतीय जागरूक हो चुके हैं लेकिन बहुत कम लोगों को पता है की दारुल-इस्लाम और गजवा-ए-हिंद के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए "हिमालय का इस्लामीकरण" (Islamization of Himalayas) नामक भूमि और जनसंख्या जिहाद भी चल रहा है। बड़े आश्चर्य की बात है कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही इसके प्रति बिल्कुल उदासीन लगती है। जहां इसके लिए मूलतः कांग्रेस और हरीश रावत उत्तरदायी हैं वहीं भाजपा के त्रिवेन्द्र रावत की भूमिका भी कुछ अच्छी नहीं रही है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 2018 में उस कानून से छेड़छाड़ की जिसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति जो उत्तराखंड का मूलनिवासी नहीं है उत्तराखंड में जमीन नहीं खरीद सकता। रावत के इस परिवर्तित कानून का दुष्परिणाम यह हुआ की देवभूमि उत्तराखंड का इस्लामीकरण और ईसाईकरण एक षड्यंत्र और योजनाबद्ध तरीके से बहुत तेजी से हो रहा है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण राज्य हैं क्योंकि पूरे हिमालयन रीजन में मात्र यही दो राज्य हैं जो इस्लामीकरण और ईसाईकरण से बचे हुए हैं।
हिमालय पर्वत का 2400 किलोमीटर का विस्तार कई श्रृंखलाओं में बंटा हुआ है, जो पश्चिमोत्तर में हिंदूकुश पर्वत श्रृंखला (अफगानिस्तान) से शुरू होता है और पूर्वोत्तर तथा दक्षिण पूर्व में नागालैंड की पटकाई पर्वत श्रृंखला पर समाप्त हो जाता है। इसके सब-टरेनियन विस्तार (sub-terrainian parts) का कुछ हिस्सा तिब्बत और चीन के कब्जे में भी है। इस 2400 किलोमीटर के पूरे विस्तार में मात्र हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड दो ऐसे राज्य हैं जो अभी भी अपने सनातनी और हिंदू चरित्र को बनाए रखे हुए हैं। हिमालय की पश्चिमोत्तर की अधिकतर बड़ी पर्वत श्रृंखलाएं जैसे हिंदू कुश (अफगानिस्तान) कराकोरम (पाकिस्तान/पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर) ज़ंसकर (पाक अधिकृत कश्मीर और लद्दाख) पीर पंजाल (भारत- जम्मू-कश्मीर) इत्यादि पहले से ही इस्लामिक हो चुकी हैं। एक समय में हिंदू-बौद्ध संस्कृति का केंद्र अफगानिस्तान अब पूरी तरह से एक इस्लामिक देश (Islamic Republic Afghanistan) ही नहीं 100% मुसलमानों का देश हो चुका है। जो थोड़े हिन्दू /सिख बचें थे वर्तमान तालिबान शासन के शुरू होते ही वहां से खदेड़ दिए गए या भयाक्रांत हो भाग लिए। कराकोरम पर्वत श्रृंखला जो पाकिस्तान/ पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और भारत तक फैली है, पूरी तरह से इस्लामीकरण का शिकार हो चुकी। यहां तक कि भारत में भी हिमालय की गोद में बसा कश्मीर, कश्मीरी पंडितों के बहिष्करण (exodus) के बाद 97% मुसलमान आबादी का क्षेत्र बन गया है। कश्मीर और शेष भारत को अलग करने वाली पर्वत श्रृंखला "पीर पंजाल" का भी इस्लामीकरण हो चुका है।
पीर पंजाल के दक्षिण की तरफ से जम्मू क्षेत्र शुरू होता है जहां हिंदू कुल मिलाकर किसी तरह बहुसंख्यक बने हुए हैं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में अभी तक बाहरी लोगों के बसने पर प्रतिबंध लगा हुआ था/है। इन प्रतिबंधों के बावजूद उत्तराखंड और हिमाचल में मुसलमान बहुत तेजी से अनधिकृत रूप से बस रहे हैं। इनका बसाव मजदूर, रेडी पटरी वाले और दुकानदारों के चोले में हो रहा है। अधिक आश्चर्य की बात यह है कि इनमें से बहुसंख्य भारतीय मुसलमान नहीं है बल्कि रोहिंग्या और बांग्लादेशी हैं।
असम के मुख्यमंत्री, हेमंत विश्व शर्मा सरकार के द्वारा असम में दबाव बनाने और अनधिकृत कब्जे वाली भूमि को रोहिंग्या और बांग्लादेशियों से खाली कराने के बाद काफी बांग्लादेशी घुसपैठिये मुसलमान हिमाचल और उत्तराखंड की पहाड़ियों की ओर रुख किए हुए हैं। सबसे दुखद बात यह है कि यह हिंदुओं के पवित्र स्थानों पर डेमोग्राफी (धार्मिक जनसंख्या) में बदलाव की दिशा में बढ़ रहे हैं। पहाड़ों में रोजगार कम होने के कारण अधिकतर पहाड़ी नौजवान मैदानी इलाकों में नौकरी की तलाश में चले आते हैं और पीछे सिर्फ बूढ़े, महिलाएं और बच्चे छूट जाते हैं। ऐसी स्थिति जिहादियों के लिए बहुत ही अनुकूल होती है क्योंकि ना सिर्फ उन्हें दुकान खोलने, मजदूरी करने और अन्य कार्यों को करने का अवसर मिल जाता है बल्कि ऐसे में लव जिहाद के लिए भी मैदान खाली मिल जाता है। यह सब कुछ उत्तराखंड और हिमाचल में बहुत तेजी से हो रहा है। हिमाचल प्रदेश के ज्वाला देवी मंदिर के आसपास पहले कई किलोमीटर तक एक भी मुसलमान नहीं था लेकिन आज वहां हजारों की संख्या में मंदिर के निकट काफी बड़ी संख्या में मुसलमान बस चुके हैं। यही स्थिति उत्तराखंड में हरिद्वार और नैनीताल की है जहां एक समय एक भी मुसलमान नहीं थे और इन दोनों जगहों पर कोई भी मस्जिद नहीं थी लेकिन आज स्थिति यह है कि यहां पर मुसलमान भले ही कम हो लेकिन मस्जिद बहुत तेजी से बन रही है। तारिक फतेह ने स्वयं एक वीडियो में बताया कि अभी कुछ वर्ष पूर्व जब वह नैनीताल गए थे तो सुबह उन्हें बहुत ऊंचे वॉल्यूम में अजान सुनाई पड़ी। तारिक फतेह अपने होटल से उठकर उस मस्जिद तक गए और देखा कि वहां सिर्फ 11 लोग नमाज पढ़ रहे थे। उन्होंने मौलवी से पूछा कि यहां आस-पास कितने मुसलमान रहते हैं तो उसने बताया कि जितने रहते यही ���ैं। तब तारेक फतह ने प्रश्न किया कि जब कुल 11 लोग ही हैं तो इतनी ऊंची आवाज में अजान देने की आवश्यकता क्या है? स्पष्ट है अजान नमाजियों को बुलाने के लिए नहीं बल्कि अपना डोमिनेंस यानी आधिपत्य स्थापित करने के लिए इतने ऊंचे वाल्यूम में पढ़ी जाती है।
हिमालय के इस्लामीकरण का सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह हो रहा है कि जो हमारे पवित्र स्थान हैं- जैसे रूद्र प्रयाग, कर्णप्रयाग, देवप्रयाग इत्यादि इन स्थानों पर भी मांस का विक्रय प्रारंभ हो गया है। आवश्यक नहीं कि यह गाय का ही मांस हो लेकिन जो हिंदू धर्म स्थलों की पवित्रता है वह नष्ट होती जा रही है। नेपाल में भी यही दशा है। "हिन्दू राष्ट्र" का संवैधानिक दर्जा हटने के बाद वहां भी ईसाई और इस्लामी करण बहुत तेजी से हो रहा है। बात यह है कि यह सब स्वाभाविक नहीं बल्कि योजना बद्ध और वाह्यारोपित (induced) है।
हमारे देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि हमारे देश के नेताओं को भूगोल का महत्व नहीं पता है। उन्हें पता नहीं कि "जिनका भूगोल नहीं उनका न तो इतिहास होता है न ही भविष्य"। नेहरू ने चीन को प्लेट पर रख कर के तिब्बत दे दिया। ना सिर्फ हमारे बहुत से पवित्र स्थल जैसे मानसरोवर आज चीन के कब्जे में है बल्कि हमारी अधिकतर नदियों का उद्गम स्थल भी चीन के कब्जे में है और वह उस पर बड़े-बड़े बांध बनाकर भारत के लिए "जल प्रलय" की स्थिति पैदा कर रहा है। हमें यह समझना होगा कि पहाड़ों पर जो लोग बसे हुए हैं उनका बहुत अधिक महत्व है। उत्तराखंड से ही हमारे देश की अनेक पवित्र और प्रमुख नदियां निकलती है जिसमें गंगा और यमुना भी शामिल हैं। उत्तराखंड को देव भूमि कहा जाता है और हरिद्वार उसका प्रवेश द्वार है लेकिन जिस तरह से षड्यंत्र के तहत देव भूमि का इस्लामीकरण हो रहा है वह सनातन धर्म और देश के लिए बहुत बड़े खतरे की घंटी है।
1 = निम्नलिखित में से किसे सड़क सुरक्षा अभियान का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया है ?
( A ) विराट कोहली ( B ) आमिर खान
( C ) चेतन भगत ( D ) अक्षय कुमार
2 = गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट लांच किए हैं जिसके तहत किस शहर के कई हिस्सों में मुफ्त वाईफाई और हाई स्पीड ब्रॉडबैंड उपलब्ध कराया जाएगा ?
( A ) जयपुर ( B ) लखनऊ
( C ) दिल्ली ( D ) पटना
3 = भारतीय नौसेना का कौन सा जहाज 13 से 16 अगस्त तक फ्री जी की यात्रा पर रवाना हुआ ?
( A ) INS सहयाद्रि ( B ) INS तारिणी बी
( C ) INS श्रेष्ठ डी ( D ) INS विक्रांत
4 = साहित्य के लिए वर्ष 2001 में नोबेल पुरस्कार पाने वाले किस भारतीय मूल के मशहूर लेखक का लंदन स्थित अपने घर में 85 वर्ष की आयु में निधन हो गया ?
( A ) नजीब महफूज ( B ) बी एन नायपॉल
( C ) सूली पृथोम ( D ) सेमस हनी
5 = किन देशों की सेनाओं के मध्य संयुक्त सैन्य अभ्यास "मैत्री " का आयोजन किया गया ?
( A ) भारत - बांग्लादेश ( B )भारत - श्रीलंका
( C ) भारत - रूस ( D ) भारत - थाईलैंड
6 = निम्नलिखित में से किस ने दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पद की शपथ ग्रहण की है ?
( A ) न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन ( B ) न्यायमूर्ति अरबिंद तियागी
( C ) न्यायमूर्ति संकर प्रसाद ( D ) न्यायमूर्ति जी. बी. के. गौड़
7 = भारत की युवा टेबल टेनिस खिलाड़ी शास्त्रीका घोष और सिंगापुर की झिंझाना होम की जोड़ी ने हांगकांग जूनियर एवं कैडेट ओपन 2018 के जूनियर लड़कियों के युगल वर्ग me कौनसा पदक हासिल किया ?
( A ) रजत पदक ( B ) स्वर्ण पदक
( C ) कांस्य पदक ( D ) इनमे से कोई नहीं
8 = किस मंत्रालय द्वारा भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत और निश्चित सांस्कृतिक परंपराओं का संरक्षण नामक एक योजना लागू की गई है ?
( A ) संस्कृति मंत्रालय ( B ) बिज्ञान और प्राधोगिकी मंत्रालय
( C ) सहरी बिकास मंत्रालय ( D ) सामाजिक न्याय मंत्रालय
9 = 1 जुलाई 2018 को भारतीय नौसेना के कमांडर अभिलाष टॉमी किस देश से आरंभ हुई समुद्री यात्रा गोल्डन ग्लोब्स res 2018 में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं ?
( A ) जर्मनी ( B ) फ़्रांस
( C ) स्पेन ( D ) मेक्सिको
10 = हाल ही में किस राज्य द्वारा राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन- NRC का दूसरा एवं अंतिम मसौदा जारी किया गया ?
( A ) नागालैंड ( B ) असोम
( C ) हिमांचल प्रदेश ( D ) गुजरात
11 = हाल ही में कौन विश्व के सबसे ऊंचे ज्वालामुखी पर्वत माउंट ओज़ोस डेल सैलेडो पर चढ़ने वाले दूसरे भारतीय पर्वतारोही बने ?
( A ) मल्ली मस्तान बाबू ( B ) सत्यरूप सिद्धांत
( C ) जननहाबी पाठक ( D ) मालबद्ध पूर्णा
12 = टोक्यो 2020 ओलंपिक और पैरालिंपिक्स के लिए suvankaro का नाम क्या है ?
( A ) मिराईतोता - सोमाइटी ( B ) सिरोखा - जोराकबा
( C ) पलोन सिंडले ( D ) रजा टिंडेल
13 = 20 जुलाई 2018 को प्रसिद्ध गोपाल दास नीरज का कोलकाता में निधन हो गया ?
( A ) फिल्म निर्माता ( B ) कबि
( C ) नर्तक ( D ) बैज्ञानिक
14= हाल ही में किस केंद्रीय मंत्रालय आने मोबाइल एप्प निर्यात मित्रा लॉन्च किया है ?
( A ) कृषि मंत्रालय ( B ) रेल मंत्रालय
( C ) ग़ृह मंत्रालय ( D ) बाणिज्य मंत्रालय
15 = नासा के उस मिसन का किया नाम है जिसे जल्द ही सूर्य के अध्यन के लिए भेजा जाएगा ?
( A ) पार्कर सोलर प्रोब ( B ) सोलर प्रोब
( C ) जीनियस सोलर मिसन ( D ) वायलेट सोलर रेडिएशन
करंट अफेयर्स। CURRENT AFFAIRS 2019
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मनुष्य या किसी सभ्यता की पहचान दो तरीके से की जा सकती है एक तो उसकी संस्कृति से जो उसकी सांस्कृतिक पहचान कही जाएगी और दूसरी उसके डील डोल और अंगो की बनावट से जिसे उसकी जैविक पहचान कहा जा सकता है | पुरातात्विक अन्वेषणों से किसी भी मानव सभ्यता की दोनों प्रकार की पहचान जानी जा सकती है | जमीन में दबी किसी बस्ती के अवशेष ,बर्तन ,और शिलालेख उस सभ्यता की सांस्कृतिक पहचान की जानकारी देते है वही खुदाई के दौरान पाए जाने वाले नरकंकाल ,हड्डियां या मानव खोपड़ियां उस सभ्यता में रहने वाले लोगो की जैविक पहचान उजागर करती है | मेरी राय में हमें ये भली भांति समझ लेना चाहिए कि जैविक पहचान अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि किसी व्यक्ति के मूल उद्गम की जानकारी इसी से मिलती है जबकि एक सी जैविक पहचान वाले व्यक्ति अलग अलग संस्कृतियों का हिस्सा हो सकते है | उत्तर वैदिक काल अथवा यू कहे कि लगभग 800 ईस्वी पूर्व तक भारतीय उपमहादेश में निवास करने वाले लोगो की सांस्कृतिक पहचान स्पष्ट थी कि या तो वे द्रविड़ थे लेकिन वस्तुत ये लोग को थे इनका उद्गम स्थल कोनसा था इसके लिए इनकी जैविक पहचान जानना ही एकमात्र रास्ता है | वर्तमान सदी में डा गुहा द्वारा 1931 में जनगणना के समय प्रस्तुत वर्गीकरण किसी हद तक इस प्रश्न का उत्तर दे देता है , इस वर्गीकरण में जैविक आधार पर भारत उपमहादेश में निवास करने वाले लोगो को 6 प्रजातियों में बांटा गया है | पहली प्रजाति वो है जिसमे नीग्रिटो तत्व का समावेश है , छोटा सिर ,उभरा ललाट , चपटी नाक ,बाल सुन्दर और घुंघराले ,रंग काला,कोमल हाथ पैर ,सपाट हड्डियां ,छोटी दाढ़ी ,होंठ मोटे और मुड़े हुए ये सभी नीग्रिटो तत्व है | बंगाल की खाड़ी ,मलेशिया प्रायद्वीप ,फिजी द्वीप समूह ,न्यूगिनी ,दक्षिण भारत और दक्षिणी अरब में नीग्रिटो अथवा आंशिक नीग्रो लोगो की मौजूदगी ये मान लेने को प्रेरित करती है कि किसी पूर्व ऐतिहासिक काल में ये प्रजाति एशिया महाद्वीप के बड़े विशेषकर दक्षिणी हिस्से को घेरे हुए थी | नीग्रिटो प्रजाति सभ्यता की अविकसित अवस्था में रही थी और ये प्रजाति भारत उपमहादेश में पाषाण युग अर्थात पत्थर के अनगढ़ हथियार और तीर कमान लेकर ही आयी थी | खेती ,मिट्टी के बर्तन और भवन निर्माण की कला से ये प्रजाति अनभिज्ञ थी , इनका निवास पहाड़ी गुफाओं में था और भोजन के लिए ये विभिन्न वस्तुए एकत्रित करते थे , भारतीय संस्कृति में वटवृक्ष की पूजा और गुफाओ का निर्माण इन्ही की देन है , अंडमान द्वीप वासियो के अतिरिक्त ये तत्व असम ,पूर्वी बिहार की राजमहल पहाड़ियों में भी पाया गया है | अंगामी ,नागा ,बागड़ी , इरुला ,कडार ,पुलायन ,मुथुवान और कन्नीकर इसी प्रजाति के प्रतिनिधि है ,प्रोफ़ेसर कीन कडार ,मुथुवान ,पनियांग ,सेमांग ,ओरांव और ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियो को इसी प्रजाति के वंशज मानते है जो किसी समय सम्पूर्ण भारत में निवास करते थे , ये लोग ही सबसे पहले मलेशिया से भारत में बंगाल की खाड़ी से घुसे और उत्तर में हिमालय की तलहटी और दक्षिण भारत में फेल गए , बाद में पूर्व द्रविड़ो अथवा द्रविड़ो के आने पर या तो ये समाप्त हो गए या उनमे विलीन हो गए |
भारत उपमहादेश में आनेवाली दूसरी प्रजाति संभवतया प्रोटो ऑस्ट्रेलॉयड अथवा आदि द्रविड़ थी , ये कद में नाटे ,गहरे भूरे अथवा काले रंग के ,लम्बा सिर ,नाक चौड़ी ,चपटी अथवा पिचकी ,घुंघराले बाल ,होठ मोटे और मुड़े हुए होते है। इनके आदि पूर्वजो के अंश फिलिस्तीन में मिलते है लेकिन ये कब और किस प्रकार भारत आये ये जानकारी नहीं मिलती | भारत की वर्तमान जनजातियों में ये तत्व ही सर्वाधिक मिलता है , दक्षिण भारत के चेंचू मलायन ,कुरुम्बा ,यरुबा ,मुण्डा , कोल ,संथाल और भील समुदायों के अनेक लोगो में इस प्रजाति के तत्व पाए गए है | तीसरी प्रजाति मंगोलायड है जिसका उद्गम स्थान इरावती नदी ,चीन ,तिब्बत और मंगोलिया है , यही से ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी के मध्य ये लोग भारत आये और पूर्वी बंगाल के मैदान और असम की पहाड़ियों तथा मैदानों में बस गए | भारत के उत्तर पूर्व भागो में नेपाल , असम और कश्मीर में तीन प्रकार के मंगोलायड पाए जाते है , चपटा मुंह ,गाल की उभरी हड्डियां ,बादाम की आकृति की आंखे , चेहरे और शरीर पर कम बाल ,कद छोटे से मध्यम , चौड़ा सिर और पीलापन लिए हुए रंग इस प्रजाति के प्रमुख तत्व है , इनमे पूर्वी मंगोलायड बहुत प्राचीन प्रजाति है जिसे सिर की बनावट ,नाक और रंग से ही पहचाना जा सकता है | इसमें भी मंगोल प्रजाति जिसका कद साधारण ,नाक साधारण और कम ऊंची ,चेहरे और शरीर पर बालों का अभाव , आँखे तिरछी या कम मोड़ वाली ,चेहरा चपटा और छोटा ,और रंग गहरे से हल्का भूरा होता है | लम्बे सिर वाली ये प्रजाति उप हिमालय प्रदेश ,असम और म्यांमार की सीमा पर रहने वाले आदि लोगों नागा ,मीरी और बोंडों में सर्वाधिक पाई जाती है | इस समूह की दूसरी प्रजाति चौड़े सिर वाली है बांग्लादेश में चिटगांव के पर्वतीय आदिवासी और कलिम्पोंग की लेप्चा प्रजाति इसी श्रेणी के है | तिब्बती मंगोलायड लम्बे कद,चौड़ा सिर और हलके रंग के होते है , ये लोग तिब्बत की और से आये और सिक्किम में बसे , दूध ,चाय ,कागज ,चावल ,सुपारी की खेती ,सामूहिक घर की परंपरा ,सीढ़ीनुमा खेती इन्ही लोगो देन है | चौथा प्रकार द्रविड़ प्रजाति का है इस प्रजाति की अनेक किस्मे है जो लम्बे सिर ,काला रंग और अपने कद द्वारा पहचानी जाती है | इनमे प्रथम प्रकार दक्षिण भारत के तमिल और तेलगु ब्राह्मणो में सर्वाधिक मिलता है , भारतीय जनजातियों में नीग्रिटो ,द्रविड़ और मंगोल प्रजातियों के ही तत्व सर्वाधिक पाए जाते है , इस प्रजाति को ही सिंधु घाटी सभ्यता को जन्म देने का श्रेय है | पांचवी प्रजाति नार्डिक है जो भूमध्यसागर से ईरान होते हुए गंगा के मैदान में आये , उत्तरी भारत की जनसँख्या में सबसे अधिक यही तत्व पाया जाता है सामान्य अर्थ में हम इस प्रजाति को आर्य के रूप में जानते है | ये प्रजाति पंजाब ,कश्मीर ,उत्तर प्रदेश और राजस्थान के अतिरिक्त मध्यप्रदेश के मराठा और केरल ,महाराष्ट्र और मालाबार के ब्राह्मण इसी प्रजाति का प्रतिनिधित्व करते है | ये प्रजाति मध्यम से लम्बा कद , संकरी नाक ,उन्नत दाढ़ी ,शरीर पर घने बाल ,काली या गहरी भूरी और खुली आंखे , लहरदार बाल और पतला शरीर लिए हुए है | इस प्रजाति ने सिंधु घाटी सभ्यता को अपनाया और उसे उन्नत किया , वर्तमान भारतीय धर्म और संस्कृति मुख्यत इन्ही लोगो द्वारा निर्मित है , इन्ही में हम पूर्वी अथवा सेमेटिक प्रजाति को शामिल कर सकते है जो टर्की और अरब से आये , केवल नाक की बनावट को छोड़कर ये प्रजाति नार्डिक ��े मिलती जुलती है | छठी प्रजाति मध्य एशियाई पर्वतो के पश्चिम से भारत में आयी चौड़े सिर वाली प्रजाति है जिसे एल्पोनायड ,दिनारिक और आर्मिनॉयड तीन भागो में बांटा गया है | छोटा मध्यम कद ,चौड़े कंधे ,गहरी छाती ,लम्बी टांगे ,चौड़ी पर छोटी उंगलियां ,गोल चेहरा ,नाक पतली और नुकीली ,रंग भूमध्यसागरीय लोगो से हल्का ,शरीर मोटा और मजबूत और चेहरे तथा शरीर पर घने बाल इस प्रजाति के तत्व है ,संभवतया ये प्रजाति बलूचिस्तान से सिंध ,सौराष्ट्र और गुजरात होते हुए महाराष्ट्र और आगे तमिलनाडु ,कर्णाटक ,श्रीलंका और गंगा किनारे होते हुए बंगाल पहुंची | सौराष्ट्र में काठी ,गुजरात में बनिया ,बंगाल में कायस्थ के साथ महाराष्ट्र ,कन्नड़ ,तमिलनाडु ,बिहार और गंगा के डेल्टा में पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी इस प्रजाति के तत्व पाए जाते है | किसी भी संस्कृति को उसके भाषाई इतिहास के बगैर नहीं जाना जा सकता ,भाषा ही वो एकमात्र जरिया है जो उस संस्कृति की सांस्कृतिक पहचान बताता है | भारतीय भाषाई सर्वेक्षण के संपादक प्रियर्सन के अनुसार भारतीयों द्वारा करीब 180 भाषाएँ और 550 बोलियां बोली जाती है | इन्हे चार वर्गों एस्ट्रोएसियाटिक ,तिब्बती -बर्मी ,द्रविड़ और हिन्द -आर्य में बांटा गया है | एस्ट्रोएसियाटिक भाषाएँ प्राचीनतम है और सामान्यतया मुंडा बोली के कारण जानी जाती है इसे बोलने वाले पूर्व में ऑस्ट्रेलिया तक और पश्चिम में अफ्रीका के पूर्वी समुद्रतट के निकट मेडागास्कर तक पाए जाते है | विद्वानों के अनुसार लगभग 40 हजार ईस्वी पूर्व ऑस्ट्रियाई लोग ऑस्ट्रेलिया में आये और इसलिए संभव है ये लोग भारतीय उपमहादेश से होते हुए दक्षिणी पूर्वी एशिया और ऑस्ट्रेलिया गए | ये भी कहा जा सकता है कि इस समय तक भाषा का अविष्कार हो चूका था | मुंडा भाषा झारखण्ड ,बिहार ,पश्चिमी बंगाल और उड़ीसा में संथालियों द्वारा जो इस उपमहादेश की सबसे बड़ी जनजाति है द्वारा बोली जाती है | एस्ट्रोएसियाटिक की दूसरी शाखा मोन -खमेर है जो उत्तर पूर्वी भारत में मेघालय अंतर्गत खासी और जामितिया पहाड़ियों और निकोबारी द्वीपों में बोली जाती है | तिब्बती -बर्मी बोलने वालो की सख्या बहुत अधिक है | भारत में त्रिपुरा ,असम ,मेघालय ,अरुणाचल प्रदेश ,नागालैंड ,मिजोरम ,मणिपुर और दार्जिलिंग में ये भाषा बोली जाती है | द्रविड़ बोली का प्राचीनतम रूप भारतीय उपमहादेश के पाकिस्तान स्थित उत्तर पश्चिम में पाया जाता है | भाषा विज्ञानं के विद्वान इस भाषा की उत्पत्ति का श्रेय एलम अर्थात दक्षिणी पश्चिमी ईरान को देते है | इसकी तिथि चौथी सहस्त्राब्दी निर्धारित की गई है ब्रहुई इसके बाद का रूप है | ये अभी ईरान ,तुर्कमेनिस्तान ,अफगानिस्तान और पाकिस्तान के सिंध और बलूचिस्तान और सिंध राज्यों में बोली जाती है | कहा जाता है कि द्रविड़ भाषा पाकिस्तानी क्षेत्र में होते हुए दक्षिणी भारत में पहुंची जहाँ इससे तमिल ,तेलगु ,कन्नड़ और मलयालम जैसी शाखाओ की उत्पत्ति हुई | झारखण्ड और मध्य भारत में बोली जाने वाली ओरांव अथवा कुरुख भाषा भी वस्तुत द्रविड़ ही है लेकिन ये मुख्यत ओरांव जनजाति द्वारा ही बोली जाती है | कहा जाता है कि हिन्द यूरोपीय परिवार की पूर्वी अथवा आर्य शाखा हिन्द -ईरानी ,दर्दी ,हिन्द -आर्य इन तीन उपशाखाओ में बंट गई | ईरानी जिसे हिन्द- ईरानी भी कहते है ईरान में बोली जाती है और इसका प्राचीनतम नमूना अवेस्ता नामक महाग्रंथ में मिलता है | दर्दी भाषा पूर्वी अफगानिस्तान ,उत्तरी पाकिस्तान और कश्मीर की है यद्यपि कई विद्वान् दर्दी को हिन्द -आर्य की उपशाखा मानते है | हिन्द आर्य भाषा पाकिस्तान ,भारत ,बांग्लादेश ,श्रीलंका और नेपाल में बहुसंख्यक लोगो द्वारा बोली जाती है | लगभग 500 हिन्द -आर्य भाषाएँ उत्तर और मध्य भारत में बोली जाती है | वैदिक संस्कृत प्राचीन हिन्द- आर्य भाषा के अंतर्गत है लगभग 500 ईस्वी पूर्व से 1000 ईस्वी तक मध्य हिन्द आर्य भाषाओँ के अंतर्गत प्राकृत ,पालि और अपभृंश भाषाएँ आती है | मुंडा और द्रविड़ भाषाओ के कई शब्द वैदिक संस्कृति के मूल ग्रन्थ ऋग्वेद में मिलते है |
मिलते है पड़ाव के पांचवे दिन एक नयी चर्चा के साथ महेंद्र जैन 31 जनवरी 2019