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bharatlivenewsmedia · 2 years
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Breaking News: आता राहुल द्रविडची उचलबांगडी निश्चित, BCCI घेणार कठोर निर्णय
Breaking News: आता राहुल द्रविडची उचलबांगडी निश्चित, BCCI घेणार कठोर निर्णय
Breaking News: आता राहुल द्रविडची उचलबांगडी निश्चित, BCCI घेणार कठोर निर्णय Rahul Dravid: भारतीय क्रिकेट संघाचा टी-२० वर्ल्डकपमध्ये पराभव झाल्यानंतर बीसीसीआयने संघा संदर्भात काही मोठे निर्णय घेण्याचे ठरवले आहे. या निर्णयामध्ये निवड समितीच्या हकालपट्टीनंतर आता कोच राहुल द्रविडचा नंबर लागू शकतो. Rahul Dravid: भारतीय क्रिकेट संघाचा टी-२० वर्ल्डकपमध्ये पराभव झाल्यानंतर बीसीसीआयने संघा संदर्भात काही…
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karam-123-ku · 1 month
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sapan-ray · 6 months
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sanjaygarg · 11 months
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thegardendreamer · 1 year
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#गुरू गोविन्द दोऊ खड़े#काके लागूं पांय।#बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।#कबीर का यह दोहा उतना ही अर्थपूर्ण है जितना अर्थपूर्ण है मेरी अध्यापिका का मुझ पर आशीर्वाद।#रामचरितमानस को लेकर जब सवाल तुलसी पर उठाया जा रहा था तो वे अपनी सूती साड़ी का पल्ला पकड़ती है और#कितना सुंदर कवि है ये हमारे भाई तुलसीदास जी !#क्यों उसकी छोटी सी कविता के भाग को समझने में इतनी तकलीफ़ हुई जाती है बेटा जी।#उन्होंने हमारी किताब को हाथ में लिया और चश्मा संभालकर जो समझाया उसने दुनिया को देखने समझने और व#और यही तो है २१वी सदी का ज्ञान कि जानो#परखो और चुनो।#ढोल गंवार शुद्र पशु नारी#सकल तारणा के अधिकारी : रामचरित मानस#१. ढोल (वाद्य यंत्र)- ढोल को हमारे सनातन संस्कृति में उत्साह का प्रतीक माना गया है इसके थाप से हमे#उत्साहमय हो जाता है. आज भी विभिन्न अवसरों पर ढोलक बजाया जाता है. इसे शुभ माना जाता है.#२. गंवार {गांव के रहने वाले लोग )- गाँव के लोग छल-प्रपंच से दूर अत्यंत ही सरल स्वभाव के होते हैं. गाँ#३. शुद्र (जो अपने कर्म व सेवाभाव से इस लोक की दरिद्रता को दूर करे)- सेवा व कर्म से ही हमारे जीवन व दू#४. पशु (जो एक निश्चित पाश में रहकर हमारे लिए उपयोगी हो) - प्राचीन काल और आज भी हम अपने दैनिक जीवन मे#दही. घी विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्न इत्यादि के लिए हम पशुओं पर ही निर्भर हैं. पशुओ के बिना हमारे#५. नारी ( जगत -जननी#आदि-शक्ति#मातृ-शक्ति )- नारी के बिना इस चराचर जगत की कल्पना ही मिथ्या है नारी का हमारे जीवन में माँ#बहन बेटी इत्यादि के रूप में बहुत बड़ा योगदान है. नारी के ममत्व से ही हम हम अपने जीवन को भली-भाँती स#काली#लक्ष्मीबाई बनकर हमारा कल्याण करती है. इसलिए सनातन संस्कृति में नारी को पुरुषों से अधिक महत्त्#सकल तारणा के अधिकारी से यह तात्पर्य है-#१. सकल= सबका#२. तारणा= उद्धार करना#३. अधिकारी = अधिकार रखना#उपरोक्त सभी से हमारे जीवन का उद्धार होता है इसलिए इसे उद्धार करने का अधिकारी कहा गया है.#writing
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aabeauty · 2 years
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kv1nsbvizag · 2 years
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भारत में एंटीबायोटिक दवाओं के नए वर्गों का उपयोग अनुपातहीन रूप से अधिक: लैंसेट अध्ययन
भारत में एंटीबायोटिक दवाओं के नए वर्गों का उपयोग अनुपातहीन रूप से अधिक: लैंसेट अध्ययन
लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में रेखांकित किया गया है कि भारत में एंटीबायोटिक दवाओं के नए वर्गों का उपयोग “असमान रूप से अधिक” है। शोधकर्ताओं के अनुसार, 2019 में बेचे गए लगभग 47 प्रतिशत फॉर्मूलेशन – जो अध्ययन का एक हिस्सा थे, केंद्रीय नियामक अधिकारियों द्वारा अनुमोदित नहीं थे। 2000 और 2010 के बीच, अध्ययन पर प्रकाश डाला गया, साहित्य का हवाला देते हुए, ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण…
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trendingwatch · 2 years
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ओणम 2022: बेंगलुरू में 7 रेस्तरां ओणम सद्या आजमाएंगे
ओणम 2022: बेंगलुरू में 7 रेस्तरां ओणम सद्या आजमाएंगे
त्योहारों का मौसम आ गया है और हम एक के बाद एक कई तरह के त्योहार मना रहे हैं। वर्तमान में, मलयाली समुदाय अपना वार्षिक फसल उत्सव – ओणम मना रहा है। बहुत उत्साह के साथ मनाया जाने वाला त्योहार, ओणम हमें तुरंत सद्या की याद दिलाता है। सद्या (या ओणम सद्या) को पारंपरिक भोजन के रूप में संदर्भित किया जाता है जिसका लोग त्योहार के दौरान आनंद लेते हैं जिसमें ओलन, थोरन, पचड़ी, पायसम और बहुत कुछ शामिल हैं। सद्या…
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newsdaliy · 2 years
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नया माफिया खेल अपने रास्ते पर, स्टूडियो की पुष्टि करता है
नया माफिया खेल अपने रास्ते पर, स्टूडियो की पुष्टि करता है
पहली बार दो दशक हो चुके हैं माफिया खेल, और हैंगर 13एक्शन-एडवेंचर गेम के पीछे के स्टूडियो ने पुष्टि की कि श्रृंखला में अगले गेम पर विकास शुरू हो गया है। यह खबर हैंगर 13 के महाप्रबंधक रोमन ह्लादिक से आई है, जिन्होंने माफिया फ्रैंचाइज़ी के विकास के माध्यम से हमें एक साक्षात्कार में “ऑल-न्यू” माफिया गेम के विकास की पुष्टि की। ह्लादिक ने कहा, “मुझे यह पुष्टि करते हुए खुशी हो रही है कि हमने एक बिल्कुल…
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satlokashram · 3 months
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कबीर, योग (भक्ति) के अंग पाँच हैं, संयम मनन एकान्त। विषय त्याग नाम रटन, होये मोक्ष निश्चिन्त।। भावार्थ:- भक्ति के चार आवश्यक पहलु हैं। संयम यानि प्रत्येक कार्य में संयम बरतना चाहिए। धन संग्रह करने में, बोलने में, खाने-पीने में, विषय भोगों में संयम रखे यानि भक्त को कम बोलना चाहिए, विषय विकारों का त्याग करना चाहिए। परमात्मा का भजन तथा परमात्मा की वाणी प्रवचनों का मनन करना अनिवार्य है। ऐसे साधना तथा मर्यादा पालन करने से मोक्ष निश्चित प्राप्त होता है।
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helputrust · 2 months
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लखनऊ, 06.04.2024 l माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की मुहिम आत्मनिर्भर भारत को साकार करने तथा महिला सशक्तिकरण हेतु गो कैंपेन (अमेरिकन संस्था) के सहयोग से हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में विद्या मंदिर गर्ल्स हाई स्कूल, नरही, हजरतगंज, लखनऊ में आत्मरक्षा कार्यशाला आयोजित की गई जिसमें 13 छात्राओं ने मेरी सुरक्षा, मेरी जिम्मेदारी मंत्र को अपनाते हुए आत्मरक्षा के गुर सीखे तथा वर्तमान परिवेश में आत्मरक्षा प्रशिक्षण के महत्व को जाना l
कार्यशाला का शुभारंभ राष्ट्रगान से हुआ तथा विद्या मंदिर गर्ल्स हाई स्कूल की प्रधानाचार्या  श्रीमती संगीता रावत, शिक्षिकाओं एवं रेड ब्रिगेड से तन्ज़ीम अख्तर, महिमा शुक्ला ने दीप प्रज्वलित किया |
विद्या मंदिर गर्ल्स हाई स्कूल की प्रधानाचार्या श्रीमती संगीता रावत ने हेल्प यू एजुकेशनल एण्ड चैरिटेबल ट्रस्ट का धन्यवाद करते हुए कहा कि, "आज भी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को शिक्षा के अधिकार से वंचित किया जा रहा है । शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिससे हम समाज में फैली कुरीतियों जैसे बाल विवाह, पर्दा प्रथा, लैंगिक भेदभाव आदि को खत्म कर सकते हैं | भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में बालिकाओं को शिक्षित करने हेतु कई योजनाएं शुरू की हैं जैसे सर्व शिक्षा अभियान, ऑपरेशन ब्लैक-बोर्ड, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ आदि । शिक्षा से ही बालिकाओं को आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलती है तथा शिक्षा ही उन्हें गुणवत्तापूर्ण जीवन बिताने के लिए तैयार करती है  | अन्य देशों की तुलना में भारतीय बालिकाओं एवं महिलाओं की साक्षरता दर सबसे कम है । शिक्षा सभी का मौलिक अधिकार है और किसी को भी शिक्षा के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए । यह हम सभी का कर्तव्य है कि समाज की बालिकाओं को शिक्षित एवं आत्मनिर्भर बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दें तथा यह मेरा पूर्ण विश्वास है कि आज की कार्यशाला निश्चित ही आपके जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन लेकर आएगी |"
कार्यशाला में रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के प्रमुख श्री अजय पटेल ने बालिकाओं को आत्मरक्षा प्रशिक्षण के महत्व को बताते हुए कहा कि, "किसी पर भी अन्याय तथा अत्याचार किसी सभ्य समाज की निशानी नहीं हो सकती हैं, फिर समाज के एक बहुत बड़े भाग यानि स्त्रियों के साथ ऐसा करना प्रकृति के विरुद्ध हैं | महिलाओं एवं बालिकाओं के खिलाफ देश में हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा अनेक कदम उठाए गए हैं तथा सरकार निरंतर महिलाओं को आत्मनिर्भर एवं सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएं चला रही है लेकिन यह अत्यंत दुख की बात है कि हमारा समाज 21वीं सदी में जी रहा है लेकिन कन्या भ्रूण हत्या व लैंगिक भेदभाव के कुचक्र से छूट नहीं पाया है | आज भी देश के तमाम हिस्सों में बेटी के पैदा होते ही उसे मार दिया जाता है या बेटी और बेटे में भेदभाव किया जाता है | महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा होती है तथा उनको एक स्त्री होने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है | आत्मरक्षा प्रशिक्षण समय की जरूरत बन चुका है क्योंकि यदि महिला अपनी रक्षा खुद करना नहीं सीखेगी तो वह अपनी बेटी को भी अपने आत्म सम्मान के लिए लड़ना नहीं सिखा पाएगी | आज किसी भी क्षेत्र में नजर उठाकर देखियें, नारियां पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रगति में समान की भागीदार हैं | फिर उन्हें कमतर क्यों समझा जाता है यह विचारणीय हैं | हमें उनका आत्मविश्वास बढाकर, उनका सहयोग करके समाज की उन्नति के लिए उन्हें साहस और हुनर का सही दिशा में उपयोग करना सिखाना चाहिए तभी हमारा समाज प्रगति कर पाएगा | आत्मरक्षा प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित करने का हमारा यही मकसद है कि हम ज्यादा से ज्यादा बालिकाओं और महिलाओं को आत्मरक्षा के गुर सिखा सके तथा समाज में उन्हें आत्म सम्मान के साथ जीना सिखा सके |"
आत्मरक्षा प्रशिक्षण की प्रशिक्षिका तन्ज़ीम अख्तर एवं महिमा शुक्ला ने लड़कियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाते हुए लड़कों की मानसिकता के बारे में अवगत कराया तथा उन्हें हाथ छुड़ाने, बाल पकड़ने, दुपट्टा खींचने से लेकर यौन हिंसा एवं बलात्कार से किस तरह बचा जा सकता है यह अभ्यास के माध्यम से बताया |
कार्यशाला में विद्या मंदिर गर्ल्स हाई स्कूल की प्रधानाचार्या श्रीमती संगीता रावत एवं शिक्षिकाओं श्रीमती फूलकुमारी मौर्य, श्रीमती खुशबू रानी, श्रीमती पूनम रावत, ताज़ीम, श्रीमती अनीता राठौर, छात्राओं, रेड ब्रिगेड ट्रस्ट से श्री अजय पटेल, तन्ज़ीम अख्तर, महिमा शुक्ला तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही l  
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bharatlivenewsmedia · 2 years
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Team India For T20 World Cup: वर्ल्ड कपसाठी 'या' १५ खेळाडूंची नावे जवळपास निश्चित, पाहा
Team India For T20 World Cup: वर्ल्ड कपसाठी ‘या’ १५ खेळाडूंची नावे जवळपास निश्चित, पाहा
Team India For T20 World Cup: वर्ल्ड कपसाठी ‘या’ १५ खेळाडूंची नावे जवळपास निश्चित, पाहा Team India For T20 World Cup: या वर्षी ऑक्टोबरमध्ये टी-20 विश्वचषक होणार आहे, त्यासाठी भारतीय संघ जोरदार तयारी करत आहे. आशिया चषकानंतर किंवा त्याच्या आधी टी-२० वर्ल्डकपसाठीच्या संघाची घोषणा केली जाऊ शकते. भारतीय संघाच्या विश्वचषक संघात कोणाला स्थान मिळणार हा प्रश्न प्रत्येकाच्या मनात आहे. काही खेळाडूंची जागा…
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vaidicphysics · 3 months
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वेदों पर किये गये आक्षेपों का उत्तर
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भूमिका सभी वेदानुरागी महानुभावो! जैसा कि आपको विदित है कि मैंने विगत श्रावणी पर्व वि० सं० २०८० तदनुसार ३० जुलाई २०२३ को सभी वेदविरोधियों का आह्वान किया था कि वे वेदादि शास्त्रों पर जो भी आक्षेप करना चाहें, खुलकर ३१ दिसम्बर २०२३ तक कर सकते हैं। हमने इस घोषणा का पर्याप्त प्रचार किया और करवाया भी था। इस पर हमें कुल १३४ पृष्ठ के आक्षेप प्राप्त हुए हैं। इन आक्षेपों को हमने अपने एक पत्र के साथ देश के शंकराचार्यों के अतिरिक्त पौराणिक जगत् में महामण्डलेश्वर श्��ी स्वामी गोविन्द गिरि, श्री स्वामी रामभद्राचार्य, श्री स्वामी चिदानन्द सरस्वती आदि कई विद्वानों को भेजा था। आर्यसमाज में सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, परोपकारिणी सभा, वानप्रस्थ साधक आश्रम (रोजड़), दर्शन योग महाविद्यालय (रोजड़), गुरुकुल काँगड़ी हरिद्वार तथा सभी प्रसिद्ध आर्य विद्वानों को भेजकर निवेदन किया था कि ऋषि दयानन्द के २०० वें जन्मोत्सव फाल्गुन कृष्ण पक्ष दशमी वि० सं० २०८० तदनुसार ५ मार्च २०२४ तक जिन आक्षेपों का उत्तर दिया जा सकता है, लिखकर हमें भेजने का कष्ट करें। उस उत्तर को हम अपने स्तर से प्रकाशित और प्रचारित करेंगे।
यद्यपि मुझे ही सब प्रश्नों के उत्तर देने चाहिए, परन्तु मैंने विचार किया कि इन आक्षेपों का उत्तर देने का श्रेय मुझे ही क्यों मिले और वेदविरोधियों को यह भी न लगे कि आर्यसमाज में एक ही विद्वान् है। इसके साथ मैंने यह भी विचार किया कि मेरे उत्तर देने के पश्चात् कोई विद्वान् यह न कहे कि हमें उत्तर देने का अवसर नहीं मिला, यदि हमें अवसर मिलता, तो हम और भी अच्छा उत्तर देते। दुर्भाग्य की बात यह है कि निर्धारित समय के पूर्ण होने के पश्चात् तक कहीं से कोई भी उत्तर प्राप्त नहीं हुआ है। बड़े-बड़े शंकराचार्य, महामण्डलेश्वर, महापण्डित, गुरु परम्परा से पढ़े महावैयाकरण, दार्शनिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय वैदिक प्रवक्ता, योगी एवं वेद विज्ञान अन्वेषक कोई भी एक प्रश्न का भी उत्तर नहीं दे पाये। तब यह तो निश्चित हो ही गया कि ये आक्षेप वा प्रश्न सामान्य नहीं हैं। आक्षेपकर्त्ताओं ने पौराणिक तथा आर्यसमाजी दोनों के ही भाष्यों को आधार बनाकर गम्भीर व घृणित आक्षेप किये हैं। उन्होंने गायत्री परिवार को भी अपना निशाना बनाया है, परन्तु सभी मौन बैठे हैं, लेकिन मैं मौन नहीं रह सकता। इस कारण इन आक्षेपों का धीरे-धीरे क्रमश: उत्तर देना प्रारम्भ कर रहा हूँ। मैं जो उत्तर दूँगा उसको कोई भी वैदिक विद्वान्, जो आज मौन बैठे हैं, गलत कहने के अधिकारी नहीं रह पायेंगे, न मेरे उत्तर और वेदमन्त्रों के भाष्यों पर नुक्ताचीनी करने के अधिकारी रहेंगे। आज धर्म और अधर्म का युद्ध हो रहा है, उसका मूक दर्शक सच्चा वेदभक्त नहीं कहला सकता। मैंने चुनौती स्वीकारी तो है, उनकी भाँति मौन तो नहीं बैठा। वेद पर किये गये आक्षेपों पर मौन रहना भी उन आक्षेपों का मौन समर्थन करना ही है। यद्यपि मैं बहुत व्यस्त हूँ, पुनरपि धीरे-धीरे एक-एक प्रश्न का उत्तर देता रहूँगा। मैं सभी उत्तरदायी महानुभावों से दिनकर जी के शब्दों में यह अवश्य कहना चाहूँगा—
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध। मनुष्य इस संसार का सबसे विचारशील प्राणी है। इसी प्रकार इस ब्रह्माण्ड में जहाँ भी कोई विचारशील प्राणी रहते हैं, वे भी सभी मनुष्य ही कहे जायेंगे। यूँ तो ज्ञान प्रत्येक जीवधारी का एक प्रमुख लक्षण है। ज्ञान से ही किसी की चेतना का प्रकाशन होता है, सूक्ष्म जीवाणुओं से लेकर हम मनुष्यों तक सभी प्राणी जीवनयापन के क्रियाकलापों में भी अपने ज्ञान और विचार का प्रयोग करते ही हैं। जीवन-मरण, भूख-प्यास, गमनागमन, सन्तति-जनन, भय, निद्रा और जागरण आदि सबके पीछे भी ज्ञान और विचार का सहयोग रहता ही है, तब महर्षि यास्क ने ‘मत्वा कर्माणि सीव्यतीति मनुष्य:’ कहकर मनुष्य को परिभाषित क्यों किया? इसके लिए ऋषि दयानन्द द्वारा प्रस्तुत आर्यसमाज के पाँचवें नियम ‘सब काम धर्मानुसार अर्थात् सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहिए’ पर विचार करना आवश्यक है। विचार करना और सत्य-असत्य पर विचार करना इन दोनों में बहुत भेद है, जो हमें पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों से पृथक् करता है। विचार वे भी करते हैं, परन्तु उनका विचार केवल जीवनयापन की क्रियाओं तक सीमित रहता है।
इधर सत्य और असत्य पर विचार जीवनयापन करने की सीमा से बाहर भी ले जाकर परोपकार में प्रवृत्त करके मोक्ष तक की यात्रा करा सकता है। यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि जीवनयापन के विचार तक सीमित रहने वाले प्राणी जन्म से ही आवश्यक स्वाभाविक ज्ञान प्राप्त किये हुए होते हैं, परन्तु मनुष्य जैसा सर्वाधिक बुद्धिमान् प्राणी पशु-पक्षियोंं की अपेक्षा न्यूनतर ज्ञान लेकर जन्म लेता है। वह अपने परिवेश और समाज से सीखता है। इस कारण केवल मनुष्य के लिए ही समाज तथा शिक्षण-संस्थानों की आवश्यकता होती है। इनके अभाव में मनुष्य पशु-पक्षियों को देखकर उन जैसा ही बन जाता है। हाँ, उनकी भाँति उड़ने जैसी क्रियाएँ नहींं कर सकता। समाज और शिक्षा के अभाव में वह मानवीय भाषा और ज्ञान दोनों ही दृष्टि से पूर्णत: वंचित रह जाता है। यदि उसे पशु-पक्षियों को भी न देखने दिया जाये, तब उसके  आहार-विहार में भी कठिनाई आ सकती है। इसके विपरीत करोड़ों वर्षों से हमारे साथ रह रहे गाय-भैंस, घोड़ा आदि प्राणी हमारा एक भी व्यवहार नहीं सीख पाते। हाँ, वे अपने स्वामी की भाषा और संकेतों को कुछ समझकर तदनुकूल खान-पान आदि व्यवहार अवश्य कर लेते हैं। इस कारण कुछ पशु यत्किंचित् प्रशिक्षित भी किये जा सकते हैं, परन्तु मनुष्य की भाँति उन्हें शिक्षित, सुसंस्कृत, सभ्य एवं विद्वान् नहीं बनाया जा सकता। यही हममें और उनमें अन्तर है। अब प्रश्न यह उठता है कि जो मनुष्य जन्म लेते समय पशु-पक्षियों की अपेक्षा मूर्ख होता है, जीवनयापन में भी सक्षम नहीं होता, वह सबसे अधिक विद्वान्, सभ्य व सुशिक्षित कैसे हो जाता है?
जब मनुष्य की प्रथम पीढ़ी इस पृथिवी पर जन्मी होगी, तब उसने अपने चारों ओर पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों को ही देखा होगा, तब यदि वह पीढ़ी उनसे कुछ सीखती, तो उन्हीं के जैसा व्यवहार करती और उनकी सन्तान भी उनसे वैसे ही व्यवहार सीखती। आज तक भी हम पशुओं जैसे ही रहते, परन्तु ऐसा नहीं हुआ। हमने विज्ञान की ऊँचाइयों को भी छूआ। वैदिक काल में हमारे पूर्वज नाना लोक-लोकान्तरोंं की यात्रा भी करते थे। कला, संगीत, साहित्य आदि के क्षेत्र में भी मनुष्य का चरमोत्कर्ष हुुआ, परन्तु पशु-पक्षी अपनी उछल-कूद से आगे बढ़कर कुछ भी नहीं सीख पाए। मनुष्य को ऐसा अवसर कैसे प्राप्त हो गया? उसने किसकी संगति से यह सब सीखा? इसके विषय में कोई भी नास्तिक कुछ भी विचार नहीं करता। वह इसके लिए विकासवाद की कल्पनाओं का आश्रय लेता देखा जाता है। यदि विकास से ही सब कुछ सम्भव हो जाता, तब तो पशु-पक्षी भी अब तक वैज्ञानिक बन गये होते, क्योंकि उनका जन्म तो हमसे भी पूर्व में हुआ था। इस कारण उनको विकसित होने के लिए हमारी अपेक्षा अधिक समय ही मिला है। इसके साथ ही यदि विकास से ही सब कुछ स्वत: सिद्ध हो जाता, तो मनुष्य के लिए भी किसी प्रकार के विद्यालय और समाज की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु ऐसा नहीं है। नास्तिकों को इस बात पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए कि मनुष्य में भाषा और ज्ञान का विकास कहाँ से हुआ?
इस विषय में विस्तार से जानने के लिए मेरा ग्रन्थ ‘वैदिक रश्मि-विज्ञानम्’ अवश्य पठनीय है, जिससे यह सिद्ध होता है कि प्रथम पीढ़ी के चार सर्वाधिक समर्थ ऋषि अग्नि, वायु, आदित्य एवं अंगिरा ने ब्रह्माण्ड से उन ध्वनियों को अपने आत्मा और अन्त:करण से सुना, जो ब्रह्माण्ड में परा और पश्यन्ती रूप में विद्यमान थीं। उन ध्वनियों को ही वेदमन्त्र कहा गया। उन वेदमन्त्रों का अर्थ बताने वाला ईश्वर के अतिरिक्त और कोई भी नहीं था। दूसरे मनुष्य तो इन ध्वनियों को ब्रह्माण्ड से ग्रहण करने में भी समर्थ नहींं थे, भले ही उनका प्रातिभ ज्ञान एवं ऋतम्भरा ऋषि स्तर की थी। सृष्टि के आदि में सभी मनुष्य ऋषि कोटि के ब्राह्मण वर्ण के ही थे, अन्य कोई वर्ण भूमण्डल में नहीं था। उन चार ऋषियों को स���ाधि अवस्था में ईश्वर ने ही उन मन्त्रों के अर्थ का ज्ञान दिया। उन चारों ने मिलकर महर्षि ब्रह्मा को चारों वेदों का ज्ञान दिया और महर्षि ब्रह्मा से फिर ज्ञान की परम्परा सभी मनुष्यों तक पहुँचती चली गई। इस प्रकार ब्रह्माण्ड की इन ध्वनियों से ही मनुष्य ने भाषा और ज्ञान दोनों ही सीखे। इस कारण मनुष्य नामक प्राणी सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ बन गया।
ध्यातव्य है कि प्रथम पीढ़ी में जन्मे सभी मनुष्य मोक्ष से पुनरावृत्त होकर आते हैं। इसी कारण ये सभी ऋषि कोटि के ही होते हैं। ज्ञान की परम्परा किस प्रकार आगे बढ़ती गयी और मनुष्य की ऋतम्भरा कैसे धीरे-धीरे क्षीण होती गयी और मनुष्यों को वेदार्थ समझाने के लिए कैसे-कैसे ग्रन्थों की रचना आवश्यक होती चली गई और कैसा-कैसा साहित्य रचा गया, इसकी जानकारी के लिए मेरा ‘वेदार्थ-विज्ञानम्’ ग्रन्थ पठनीय है। वेद को वेद से समझने की प्रज्ञा मनुष्य में जब समाप्त वा न्यून हो जाती है, तभी उसके लिए किसी अन्य ग्रन्थ की आवश्यकता होती है। धीरे-धीरे वेदार्थ में सहायक आर्ष ग्रन्थ भी मनुष्य के लिए दुरूह हो गये और आज तो स्थिति यह है कि वेद एवं आर्ष ग्रन्थों के प्रवक्ता भी इनके यथार्थ से अति दूर चले गये हैं। इस कारण वेद तो क्या, आर्ष ग्रन्थ भी कथित बुद्धिमान् मानव के लिए अबूझ पहेली बन गये हैं। इस स्थिति से उबारने के लिए ऋषि दयानन्द सरस्वती और उनके महान् गुरु प्रज्ञाचक्षु स्वामी विरजानन्द सरस्वती ने बहुत प्रयत्न किया, परन्तु समयाभाव आदि परिस्थितियों के कारण ऋषि दयानन्द के वेदभाष्य एवं अन्य ग्रन्थ वेद के रहस्यों को खोलने के लिए संकेतमात्र ही रह गये। वे वेद के यथार्थ को जानने के लिए सुमार्ग पर चलने वाले पथिक के रेत में बने हुुए पदचिह्न के समान थे। गन्तव्य की ओर गये हुए पदचिह्न किसी भी भ्रान्त पथिक के लिए महत्त्वपूर्ण सहायक होते हैं।
दुर्भाग्य से ऋषि दयानन्द के अनुयायियों ने ऋषि के बनाये हुए कुछ पदचिह्नों को ही गन्तव्य समझ लिया और वेदार्थ को समझने के लिए उन्होंने कोई ठोस प्रयत्न नहीं किया। उनका यह कर्म महापुरुषों की प्रतिमाओं को ही परमात्मा मानने की भूल करने जैसा ही था। इसका परिणाम यह हुआ कि ऋषि दयानन्द के अनुयायी विद्वान् भी वेदादि शास्त्रों के भाष्य करने में आचार्य सायण आदि के सरल प्रतीत होने वाले परन्तु वास्तव में भ्रान्त पथ के पथिक बन गये। इसी कारण पौराणिक (कथित सनातनी) भाष्यकारों की भाँति आर्य विद्वानों के भाष्यों में भी अश्लीलता, पशुबलि, मांसाहार, नरबलि, छुआछूत आदि पाप विद्यमान हैं। यद्यपि उन्होंने शास्त्रों को इन पापों से मुक्त करने का पूर्ण प्रयास किया, परन्तु वे इसमें पूर्णत: सफल नहीं हो सके। इसी कारण इनके भाष्यों में सायण आदि आचार्यों के भाष्यों की अपेक्षा ये दोष कम मात्रा में विद्यमान हैं, परन्तु वेद और ऋषियों के ग्रन्थों में एक भी दोष का विद्यमान होना वेद के अपौरुषेयत्व और ऋषियों के ऋषित्व पर प्रश्नचिह्न खड़ा करने के लिए पर्याप्त होता है। इसलिए ऋषि दयानन्द के भाष्य के अतिरिक्त सभी भाष्य दोषपूर्ण और मिथ्या हैं। हाँ, ऋषि दयानन्द के भाष्य भी सांकेतिक पदचिह्न मात्र होने के कारण सात्त्विक व तर्कसंगत व्याख्या की अपेक्षा रखते हैं।
इसके लिए सब मनुष्यों को यह अति उचित है कि वे वेद के रहस्य को समझने के लिए ‘वैदिक रश्मि-विज्ञानम्’ ग्रन्थ का गहन अध्ययन करें। जो विद्वान् वेद और ऋषियों की प्रज्ञा की गहराइयों में और अधिक उतरना चाहते हैं, उन्हें ‘वेदविज्ञान-आलोक’ और ‘वेदार्थ-विज्ञानम्’ ग्रन्थ पढ़ने चाहिए। जो आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर रहे शिक्षक वा विद्यार्थी वेद का सामान्य परिचय चाहते हैं, उन्हें ऋषि दयानन्द कृत ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ एवं ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ और प्रिय विशाल आर्य कृत ‘परिचय वैदिक भौतिकी’ ग्रन्थ पढ़ने चाहिए। अब हम क्रमश: वेदादि शास्त्रों पर किये गये आक्षेपों का समाधान प्रस्तुत करेंगे—
क्रमशः... ✍ आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
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likhe-jo-khat-tujhe · 7 months
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[प्रेम पत्र खुद के लिए: दिन #3. १७th नवंबर २०२३. शुक्रवार.]
शुरुआत और अंत।
"जो आज है कल शायद न हो, ये वक्त गुजर जाएगा।"
ये बात दुःख में सुनो तो अच्छी लगती है जैसे जलते घाव पर ठंडा मरहम और खुशी में चुभती है जैसे किसी अपने के लिए मफलर बनाते वक्त सुई चुभ जाती है वैसे, मगर फिर भी हम खुशी खुशी उसे बनाते रहते हैं, बिल्कुल इन दो बातो जैसे ही है वक्त और हालात।
सुख हो या दुःख आज होगा कल शायद न हो, क्यों की जो शुरू होता है उसका अंत निश्चित है।
धैर्य से मुश्किल से मुश्किल काम भी पूर्ण हो जाते है।
धीरज के साथ बढ़ते जा रही, चाहे दुःख हो या सुख वो वक्त का साथी है; वे उसके साथ गुजर जाएगा।
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naveensarohasblog · 1 year
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पवित्र गीता जी का ज्ञान किसने दिया है ?
पवित्र गीता जी के ज्ञान को उस समय बोला गया था जब महाभारत का युद्ध होने जा रहा था ।अर्जुन ने युद्ध करने से इनकार कर दिया था ।युद्ध क्यों हो रहा था इस युद्ध को धर्म युद्ध की संज्ञा भी नहीं दी जा सकती है क्योंकि 2 परिवारों का संपत्ति वितरण का  विशेष था ।
कौरवों तथा पाण्डवों का संपत्ति बँटवारा नहीं हो रहा था।कौरवों ने पांडवों को आधा राज्य भी देने से मना कर दिया था । दोनों पक्षों का बीच बचाव करने के लिए प्रभु श्री कृष्ण जी 3 बार शांतिदूत बनकर गए । परंतु दोनों ही पक्ष अपनी अपनी ज़िद पर अटल रहे । श्री कृष्ण जीने युद्ध से होने वाली हानि से भी परिचित कराते हुए कहा कि न जाने कितनी बहनें विधवा होंगी और न जाने कितने बच्चे अनाथ होगे । महापाप के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलेगा ।युद्ध में न जाने कौन मरेगा और कौन बचेगा ।तीसरी बार जब श्रीकृष्ण  जी समझौता कराने गए तो दोनों पक्षों ने अपने अपने पक्ष वाली राजाओं की सेना सहित सूची पत्र दिखाया तथा कहा कि  इतने राजा हमारे पक्ष में हैं और इतने राजा हमारे पक्ष में ।जब श्री कृष्ण जी ने देखा कि दोनों ही पक्ष टस से मस नहीं हो रहे है ,युद्ध के लिए तैयार हो चुके हैं। तब श्री कृष्ण जी ने सोचा कि एक दाव और है वह भी आज लगा देता हूँ ।श्री कृष्ण जी ने सोचा था कि पाण्डव कही मेरे संबंधी होने के कारण अपनी ज़िद पर इसलिए न छोड़ रहे हों कि श्री 53 हमारे साथ है विजय हमारी ही होगी क्योंकि श्री कृष्ण जी की बहन सुभद्रा जी का विवाह अर्जुन के साथ हुआ था श्री कृष्ण जी ने कहा एक तरफ़ मेरी सर्व सेना होगी और दूसरी तरफ़ मैं होऊँगा और इसके साथ मैं वचनबद्ध भी होता हूँ कि मैं हथियार नहीं भी नहीं उठाऊँगा ।
इस घोषणा से पांडवों की पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गई उनको लगा कि अब हमारी हार निश्चित है ।यह विचार कर पांडव सभा से बाहर आ गए कि हम कुछ विचार कर लेते हैं । कुछ समय उपरांत श्री कृष्ण जी को सभा से बाहर आने की प्रार्थना की । श्री कृष्ण जी के बाहर आने पर पाण्डवों ने कहा कि हे भगवान, हमें 5 गाँव दिलवा दो ।हम युद्ध नहीं चाहते हैं ।हमारी इज़्ज़त भी रह जाएगी और आप चाहते हैं कि युद्ध न हो यह भी टल जाएगा ।
पांडवों के इस फ़ैसले से श्रीकृष्ण जी बहुत प्रसन्न हुए तथा सोचा कि बुरा समय टल गया ।सभा में केवल कौरव तथा उनके समर्थक शेष थे । मैं श्रीकृष्ण जी ने कहा दुर्योधन युद्ध टल गया है मेरी भी अपने गाड़ी यहीं हार्दिक इच्छा थी या आप पांडवों को पाँच गाँव दे दो, वे कह रहे हैं कि हम युद्ध नहीं चाहते हैं । दुर्योधन ने कहा कि पांडवों के लिए सुई की नोक तुल्य भी ज़मीन नहीं है यदि उन्हें चाहिए तो युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र के मैदान में आ जाएं । इस बात से श्रीकृष्ण जी नाराज़ होकर बोले कि दुर्योधन तो इंसान नहीं शैतान है कहाँ आधा राज्य और कहाँ पहुँच गाँव।…….
और अधिक जानकारी के लिए सुनिये जगत गुरू रामपाल जी महाराज के अमृत प्रवचन सर्व पवित्र धर्मों के पवित्र शास्त्रों के आधार पर आधारित साधना टीवी पर रात्रि 7.30 बजे
और
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Sant Rampal Ji Maharaj
पर भी सुन सकते हैं ।
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technicaltrue · 7 months
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Pamela Anderson Biography and Net worth: जाने इनके मॉडलिंग करियर से यहाँ तक का सफर कैसे हुआ तय
मैं निश्चित रूप से आपको Pamela Anderson के जीवन और करियर के साथ-साथ उनकी अनुमानित संपत्ति का एक व्यापक अवलोकन प्रदान कर सकता हूं। हालाँकि, शब्द सीमा की कमी के कारण, मैं उनकी जीवनी और निवल मूल्य का एक संक्षिप्त संस्करण प्रस्तुत करूँगा। कृपया ध्यान दें कि विस्तृत अन्वेषण के लिए अतिरिक्त स्रोतों का संदर्भ लेना फायदेमंद होगा। कनाडाई-अमेरिकी अभिनेत्री, मॉडल और कार्यकर्ता पामेला डेनिस एंडरसन को…
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