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#फ़र्क़ है पड़ता
srbachchan · 5 days
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DAY 6058
Jalsa, Mumbai Sept 18, 2024/Sept 19 Wed/Thu 8:52 am
🪔 ..
September 19 .. birthday greetings to Ef Vandana Joshi Bhat from Toronto - Canada 🇨🇦 .. and .. Ef Dharmesh Trivedi from USA 🇺🇸 .. 🙏🏻❤️🚩
September 18 .. birthday greetings to the Californians clan of the Ef .. Ef Viral .. Ef Sandeep Khurana .. and Ef Anisha Datta .. our love and wishes .. 🙏🏻❤️🚩
September 17 .. birthday greetings to Ef Jags .. and Ef Tasnima Khan from UK 🇬🇧 .. 🙏🏻❤️🚩
our wishes and greetings .. from the Ef ..
At times many wonder at the content that appears on this most communicative page .. as also on the minimal expresses of the X and the FB .. and I often smile and laugh at the manner in which , they that profess to be the 'masters' of the communicative 'business', pick up words expressions and create content headlines , in the garb of sensationalised information, for, that is what catches the eye of the visitor ..
The shop keeper that 'SELLS' his product - clothes, eats etc.,- shall ever put the very attractive 'content' at the doors of the window , in order to attract a prospective buyer , in order to get him or her into the store to BUY .. There is no difference in the presentation of CONTENT ..
Sensation works the sale ..
How to create it , is no longer a challenge .. the freshness of the earlier communicative days has been deeply diluted by the billions of visuals and cameras and individual information and communication devices, now at the hands of 7.6 billion humans ..
How to survive this onslaught is what the writing on the wall is :
THE IMPOTENCY OF CONTENT
अपने पदार्थ को कैसे बेचा जाए, ये उनकी समस्या का विषय बन गया है ।
तो क्या किया जाये ? चलो कुछ नया, मन चाहा, रेत का महल बना देते हैं । है तो रेत का, ज़्यादा देर टिके गा नहीं, जल्दी गिर जाएगा, फिर और कुछ बना देंगे - 'बना' देंगे - बनी बनी कहानी है, सच्चाई से बहुत दूर , क्या फ़र्क़ पड़ता है, हमारे बारे में तो नहीं है न !!!? वो जिनके बारे में जो असत्य लिखा है , छपा है, वो भोगें , हमारा काम तो हो गया - बिक गया, बेच दिया , माल अंदर - खेल ख़तम पैसा हज़म !!!
जी हाँ !!! आपका खेल क़तम, और आपके पैसे हज़म - दूसरे तड़पें, कष्ट में पड़ें, हमको क्या, हमारी तो बिक्री हो गई !
बेच दिया - बेच दिया अपने संस्कार, अपना धर्म, अपनी आत्मा को !!
अब देखियेगा, इस लेखन को किस तरह तोड़ मरोड़ कर, बेचने का प्रयास किया जायेगा
😁
🤣
😜
ट्विटर पे जो मेरा परिचय मैंने दिया है, वो बाबूजी के शब्द, और मेरा परिचय देते हैं :
"तुमने हमें पूज पूज कर पत्थर कर डाला ; वे जो हमपर जुमले कसते हैं हमें ज़िंदा तो समझते हैं "~ हरिवंश राय बच्चन
Immersed completely in the words deeds and thoughts of Babuji .. his mind and learnings from it .. his words and the reasons for portraying them .. the deeper meanings, and the essence of life .. all in such vividity ..
One does not have the desire to leave them, and stride away to the usual normal daily chores ..
And as I desire the close of today - toDAY .. I come across the words of my Father - I often in normal days called him Dad, but in his reference to the World it shall ever be the respectful BABUJI - बाबूजी ..
.. and his words from one of his works :
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join your body with mine , so that you speak from my throat too, from my vocals too ; what is there that is special about me , I need to explain to you or bring to your notice .. what is special is that I want to refuse all kinds of speciality that is upon me !!!
I worked late .. I awoke early and wished to write the Blog .. but immersed in the words and books of Babuji lying open beside me and could not resist the temptation of being with them ..
May there be love and bearings of grace and harmony about
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Amitabh Bachchan ❤️
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क्या फ़र्क़ पड़ता है?
किसी से होने या चले जाने से,
बातें छुपा लेने से या बताने से।
क्या फ़र्क़ पड़ता है?
रात भर ना सोने से, सुबह जल्दी जाग जाने से,
खड़े होकर लड़ने से, डरकर भाग जाने से।
क्या फ़र्क़ पड़ता है?
किसी का ग़म समझने से, किसी को दर्द देने से,
किसी को याद करने से, सभी को भूल जाने से।
क्या फ़र्क़ पड़ता है ?
अच्छा या बुरा, छोटा या बड़ा,
रात या दिन, शाम या सुबह।
क्या फ़र्क़ पड़ता है ?
पर शायद फ़र्क़ पड़ना चाहिए,
जब दुनिया जल रही हो, मानवता पिघल रही हो,
जब किसी की चीख़ें सुनाई दे, सिर्फ़ अंधेरा दिखाई दे,
जब तुम चाहो की दुनिया बदल जाये,
कोई तो अपने घर से निकल जाये,
ये आक्रोश ख़त्म ना हो,
मरने का जोश ख़त्म ना हो।
जब तुम्हें लगे कि किसी को कुछ करना चाहिए,
तुम्हें, फ़र्क़ पड़ना चाहिए।..... @teddygirl20
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kaminimohan · 1 year
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Free tree speak काव्यस्यात्मा 1399.
आत्म-विभोर है अहिंसा
- © कामिनी मोहन। 
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हिल गए सब रंग
रंग-बिरंगी रोशनियाँ
बिखरती चली गईं
बिखरन और सिर्फ़ बिखरन
मुट्ठियों से सरकते पल 
सरकती चली गईं 
रंगहीन
उत्साहहीन
सुबह और शाम
क्षितिज के छोर अंधियाले
किसी के न आने की देते
संभावनाएँ तमाम 
न आहट
न दस्तक
केवल प्रेम-वश
खुलते और बंद होते
किवाड़ों के पीछे
पसरा हुआ ज़िंदगी का 
बेरंग कैनवस 
अपना असली चेहरा देखते 
कौतुक-वश प्रश्न करते
उस दुनिया के बारे में जिसे देखेंगे
उसका अभिकथन सुनते 
क्या है आवश्यक घटक 
दावे से कह सकते नहीं
वश में है क्या कुछ
उसकी कदर करते नहीं 
विचारों में पनपी हिंसा से 
यहाँ फ़र्क़ कहाँ पड़ता है
आत्म-विभोर है अहिंसा
यहाँ ग़लत सही के दावों पर 
सत्य तड़पता रहता है।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय। 
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roh230 · 1 year
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asutoshpanigrahy · 2 years
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सीधी सोच
खुद को हर दिन बेहतर बना रहा हूँ,
दूसरों से इसलिए लड़ता नहीं।  
दुनियाँ क्या सोचे मेरे बारे में,
फ़र्क़ उससे मुझे पड़ता नहीं। 
रिश्ते, जरूरी हैं सब मेरे लिए,
रिश्तों को अधूरा छोड़ता नहीं।  
परेशानियों के इस दौर में,
हर शख्स अपनी जंग लड़ रहा!
मदद न हो तो न सही, 
तमाशबीन बनने का शौक नहीं।  
ख़ामोशी को मेरी बेअदबी न समझो,
आदतन में यूँ ही, 
किसी को परेशान करता नहीं।  
उम्मीदें खुद से है, पर 
खुदा बनने की ख्वाइश नहीं। 
अपेक्षायें होंगी मुझसे बहुतों को,
हर आशा का किरण बन सकूँ,
यह भी तो मुमकिन नहीं !
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saathi · 4 years
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बदलाव
🌟नया
हमने वेब पर एक "न्युक्लियर वाइट" पैलेट जोड़ा है।
हम धीरे-धीरे ज़्यादा लोगों को वेब बीटा टॉगल पर नया पोस्ट एडिटर उपलब्ध करा रहे हैं. आप इसके बारे में यहाँ ज़्यादा पढ़ सकते हैं.
वेब पर ऐक्टिविटी में, टैग वाले रीब्लॉग को उन दूसरे रीब्लॉग के साथ इकट्ठा नहीं रखा जाएगा जिन्होंने कंटेंट नहीं जोड़ा है, बल्कि उन्हें इस तरह से दिखाया जाएगा मानो उनमें "जोड़ा गया कंटेंट" है. यह चीज़ मोबाइल ऐप पर भी लागू होगी जब वो ऐक्टिविटी में रीब्लॉग में टैग दिखाते हैं, जल्द आ रहा है.
हमने इसमें भी एक बदलाव किया है कि हम वेब पर जिन रंगों का इस्तेमाल करते हैं उन्हें कैसे परिभाषित करते हैं, जिसने ग़लती से वो थर्ड पार्टी एक्सटेंशन तोड़ दिए जो अपनी ख़ुद की रंग योजनाएँ परिभाषित कर रहे थे; उस बारे में माफ़ी चाहते हैं!
🛠️सुधार
ब्लॉग नेटवर्क पर लगभग सारी इमेज अब लाइटबॉक्स-योग्य होनी चाहिए, इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता कि उन्हें पोस्ट में किस तरह से जोड़ा गया था.
वेब पर बीटा पोस्ट एडिटर में, अब आप shift+enter करके टेक्स्ट ब्लॉक में एक सिंगल लाइन ब्रेक डाल सकते हैं. इंडेंट किए गए और चैट सबटाइप के लिए सुधार जल्द आ जाना चाहिए.
अब वेब पर पोस्ट में छोटी इमेज को खींचकर पोस्ट की चौड़ाई भरने की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए. वक़्त के साथ इमेज सेंटर्ड हो गए, लेकिन अब उसे भी सुलझा दिया गया है.
हमने वेब पर बीटा पोस्ट एडिटर में स्पेल चेक के लिए सपोर्ट जोड़ा है.
एक ऐसी गड़बड़ी दूर की जिसमें वेब पर बीटा पोस्ट एडिटर में कोई पोस्ट एडिट करते वक़्त इमेज वर्णन जोड़ने का विकल्प ग़ायब हो रहा था.
अगर ऐसा कोई ब्लॉग जिसकी आपने सदस्यता ली है आपके किसी पोस्ट को रीब्लॉग करता है, तो अब आपको दो के बजाय सिर्फ़ एक नोटिफ़िकेशन मिलना चाहिए.
एक बग ठीक किया जिसकी वजह से डुप्लिकेट जवाब ऐक्टिविटी आइटम हो रहे थे जब जवाब आपके ख़ुद के उस पोस्ट के लिए था जिसे आपने ख़ुद रीब्लॉग किया था.
वो बग ठीक किया जिसकी वजह से लॉगिन/ साइन अप स्क्रीन खाली आ रहा था जब उसे किसी मोबाइल ब्राउज़र में ऐक्सेस किया जा रहा था.
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deepjams4 · 6 years
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सभी भगवान हैं!
सभी भगवान हैं!
(भगवान शब्द पांच अक्षरों से बना है—भ = भूमि, ग= गगन, व =वायु , ा=अग्नि, और न=नीर। कहा जाता है कि, हर मानव शरीर भी, इन्हीं पाँच तत्वों से बना हुआ है। तो यह सब कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि संसार में रंग भेद, धर्म, जाति, समुदाय या क्षेत्रवाद के नाम पर कितने ही लोगों को शारीरिक व मानसिक यातनाओं का शिकार होना पड़ता है। हम सभी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में ज़िम्मेदार हैं। अत: इसी पीड़ा के संदर्भ में यह कविता लिखी गयी है।)
कुछ स्वार्थी इन्सानों ने, अपने स्वार्थों की ख़ातिर,
अपने ही छल कपट से, यह सारा ज़हर फैलाया है।
अपने को दूसरों से ऊँचा दिखाने की ख़ातिर,
दौड़, धूप, मेहनतों से ख़ुद बचने के वास्ते,
अपने निहित स्वार्थ सिद्धि के लिये,
और दूसरे इन्सानों को शोषण की बलि चढ़ाने ,
रंग, नस्ल और जात पात का यह ज़हरीला बीज़ उगाया है।
मज़हब,जमात और इलाक़ों की बुनियादों पर,
इन्सानों की तक्सीमों का, ये सब जाल बिछाया है।
अपने झूठे अहम् और अभिमानों के चलते इन्होंने,
अमानवता की भी हदें लाँघ, कितनों को नीचा दिखाया है।
कितनी बेरहमी से दर्द भरी तकलीफ़ें देकर,
किन्हीं मानसिक यातनाओं की बलि, उन्हें चढ़ाया है।
उन मज़लूम इन्सानों के शोषण की ख़ातिर,
उन पर ज़ुल्मों सितम ढाने की, कोई नहीं है ये बात नयी।
ख़ुद को अलग कोई ऊँचे रब्ब की सन्तान मान,
अपना प्रताड़ित करना एक अधिकार समझ,
जो जुर्म ऐसे लोगों ने मज़लूमों पे ढाये हैं,
उन जुर्मों की पीड़ा से बचने की भी तो कोई राह नहीं।
उन मज़लूमों पे जु़लमों के दर्दों के, मर्मों की थाह पाने की,
किसी को भी कभी भी दिल से कोई चाह नहीं।
चाहे फिर कुछ क्यों न वहीं से गुज़रे हों,
ख़ुद ऊँचे उठने पर,अपने व्यक्तिगत लाभों की ख़ातिर,
पीछे जो छूट गये, उनकी उन्हें अब कोई परवाह नहीं ।
उनके सदियों के उत्पीड़न से रिसते हुए ज़ख़्मों को,
भरने के लिये कोई अभी भी, मरहम नहीं कर पाया है।
आश्चर्य है कि जब स्वार्थों के अंधे लोगों ने,
संसार को एेसे ही अलग अलग है बांट दिया,
तो फिर ये कैसे हुआ कि हवा, आग और पानी को,
ये सब फ़र्क़ अभी तक क्यों नहीं दिख पाया है।
यह कैसे सम्भव है कि धरती और आकाश का गठजोड़ भी,
इस फ़र्क़ की गूँज को आजतक क्यों नहीं सुन पाया है।
ना हवा ही, ना पानी ही, ना सूरज़ ही, ना चाँद ही,
ना आवाज़ ही, ना धरती ही, ना अग्नि ही,और ना आकाश ही,
कितना अचम्भा है कि आख़िर क्यों कुछ इन्सानों का
दूसरे इन्सानों से, ये सभी कोई फ़र्क़ नहीं कर पाते हैं।
इतना ही क्या, ये सभी तो इन्सानों को पशु, पक्षियों,
और दूसरे जानवरों से भी अलग समझ नहीं पाते हैं।
क्यों इतने असमाजिक असंवेदनाओं से रिक्त हैं ये सब,
समाज के इन अंधे क़ानूनों को क्यों ये सब ठुकराते हैं।
ना किसी जात का और ना किसी मज़हब का,
ना ही किसी नस्ल का, क्यों नहीं ये कोई अंतर कर पाते हैं।
हवा अपनी मधुरता में बिना किसी का पक्ष लिये,
सभी धरती पर जन जानवर को सुख पहुँचाए जाती है।
अग्नि वहीं बिना किसी भेदभाव किये, ख़ुद को जलाकर,
मानव जीवन यापन खातिर, सभी घरों के चुल्हे जलाती है।
हवा और अग्नि के समान ही पानी, धरती और आकाश भी,
सब के मन की आवाज एक समान ही सुन जाते हैं।
बिना किसी जाति या मज़हब के भेदभाव किये ही,
ये पंचतत्व हर पल सबके सुख के लिये हाज़िर हो जाते हैं।
जब जाति मज़हब में ये सब,कोई फ़र्क़ नहीं कर पाते हैं,
तो समाज़ के ठेकेदार अपने मंसूबों में शिकस्त खाते हैं।
हर जाति या मज़हब के हर कोई इन्सान में ये सब पाँचों
शामिल होकर हर इन्सान को ही भगवान बनाते हैं।
शायद यही वजह रहती होगी कि, जब ये सब में हैं ही,
धरती, अग्नि , पानी, हवा और आकाश सभी,
किसी इन्सान का इन्सान से कोई अंतर नहीं कर पाते हैं,
और हर हालत में एक जैसा ही सभी को स्नेह दे जाते हैं।
———
-ps
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shrish · 5 years
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गिरावट
सामयिक कालखंड बड़े ही रोचक एवं अद्भुत वैचारिक तत्वों से फलीभूत मालूम पड़ता है। सबसे ज़्यादा अगर होड़ दिखती है तो वो है किसी भी विचार को सही /ग़लत के पैमाने पे तुरंत तोल कर एक स्टिकर लगा देने की। और देखें तो लोग बहुत आत्मीयता से इस स्टिकर की हिफ़ाज़त करते हैं। चाहें वो घर परिवारों के वाट्सऐप्प ग्रुप हों, चाय की टपरी  के संवाद हों या दफ़्तर में भोजनवकाश के दौरान की चर्चाएँ हों। ये स्टिकर हर जगह मौजूद रहता है और इसके सिपहसलार भी।
संभवत: इस लेख के शीर्षक को देख कर भी कुछ अपेक्षाएँ उपजी हों, तो पहले शीर्षक को ही समझ लिया जाए। अव्वल तो जो ऐसा मानते या सोचते हों की गिरावट एक नकारात्मक शब्द है, तो थोड़ी राहत दें बेचारे शब्द को। ऐसा नहीं है । फ़र्ज़ कीजिए किसी के उच्च रक्त चाप की बात हो, तो उसमें गिरावट जीवनदायी है । उसी तरह गरमी जब लू और ताप से जानलेवा हो जाए, तब तापमान में गिरावट भी एक जीवनदायी या सकारात्मक संकेत है । 
बहरहाल हम ये नहीं कहना चाह रहे हैं की गिरावट के बारे में सब कुछ अच्छा ही है । सेन्सेक्स में हो जाए तो व्यापारों पे फ़र्क़ पड़ता है , चरित्र में हो जाए तो पूरे समाज पे फ़र्क़ पड़ जाता है । मुद्दे की बात ये है की गिरावट एक क्रिया का विशेषण है। माने क्रिया की विशेषता या गुण दर्शाने वाला शब्द। और इसे सामयिक एवं प्रासंगिक पहलुओं से जोड़ के समझना चाहिए।
समस्या स्टिकर लगा देने तक होती या उसके बचाव में चर्चाओं तक होती तो कोई बड़ा  प्रभाव शायद न पड़ता। दर असल यह स्टिकरआपा इतना ज़्यादा प्रयोग में आ चुका है की अब ऐसा होना या करना प्राकृतिक या मानव प्रवृति का हिस्सा सा ही बन गया है। 
हम लोग हर समय क़रीब तीन पीढ़ियों के सम्पर्क क्षेत्र में जीवन व्यतीत करते हैं । मोटे मोटे तौर पे देखा जाए तो ऐसा ही है, और अपवाद तो  नियम की पुष्टि ही करते हैं । अब जो पीढ़ियाँ पहले की हैं, वो रिश्तों को निभाने के लिए समय,पैसा, स्वास्थ्य, और चिंतन का निवेश करते थे और उनकी मनोवृति आज भी ऐसी ही है। शुभचिंतन उनके विचार की रीढ़ रहता है । सामयिक पैमानों में जुकरबर्गीयन (फ़ेस्बुक) विचार ने सत्ता हथिया ली है । वाट्सऐप  पे मुख़्तलिफ़ क़िस्म के समूहों में भी होड़ है । उधर जुकरबर्ग का फ़ेस्बुक बर्थ्डे रिमाइंडर देता है और इधर वाट्सऐप की स्पर्धा चालू हो जातीं है । 
अब ऐसी संज्ञा या उदाहरण देने में भी उन शुद्ध हृदय के मानुषों से मुआफ़ी माँगता हूँ जो घुन की तरह पिसा महसूस कर रहे हों । परंतु इस विचार को पूरा करता हूँ। 
अब जो पीढ़ी इतना कुछ निवेश करती रही हो उसके लिए थोड़ा जटिल है इस बात को आराम से समझ पाना की एक मेसेज ही काफ़ी था तो कहीं हम ज़्यादा तो नहीं करते रहे आज तक । बहरहाल मुझे लगता नहीं वो ऐसा सोचते होंगे क्यूँकि यही पीढ़ियाँ या इनसे ऊपर वाली पीढ़ियाँ, बेनेफ़िट आफ डाउट देने में भी अव्वल हैं । वो ये सोच मन बहला लेते हैं की समय बदल रहा है बच्चा ऑफ़िस में है और मेसेज भी एक अगर कर दे रहा है तो काफ़ी है । 
टेक्नॉलजी को बहुत क़रीब से कभी देखा तो नहीं है लेकिन उसके मंसूबों पे शक गहराता जा रहा है। की वो पास ला रही है या दूर रहने के बहाने दिए जा रही है । आज तो ये लेख लिख भी रहे हैं , के जाने कल ये सोच रहे हों की यही सही है, या की इतना भी क्या था जो क़ीमतें दीं पीढ़ियों ने । 
लिखने का ऐसा विचार नहीं था । आज पिताजी का जन्मदिन है । घर वाले वाट्सऐप  ग्रुप पे आज बड़ी मात्रा में शुभकामनाएँ भी आयीं। सभी के शुभचिंतन एवं स्नेह के लिए मन में आभार और प्यार भी है । शाम को दफ़्तर से घर के रास्ते में पिताजी से बात हुई , अब जन्मदिन था तो हम दोनों की दावत बनती थी । विचारों के भोजन और भजन में हम दोनों ही बौद्धिक तत्वों को ख़ास पसंद करते हैं और सामाजिक विमर्श एक बड़ा हिस्सा रहता है चर्चाओं का । उसी एक चर्चा में शब्द निकला और लेख की प्रेरणा हुई । हम दोनों ने हँसते हँसते इस बात पे बात समाप्त की , कि  एक साल में दो बार जन्म दिन मना  है घर वाले वाट्सऐप  ग्रुप “कुटुंब” पे । जुकरबर्गीयन (फ़ेस्बुक) विचार प्रयास तो करता है सत्ता हथियाने की लेकिन कठिन है डगर उनकी भी ।
संज्ञा या स्टिकर नहीं देंगे किसी भी विचार को। लेकिन ऐसा लगता है की रिश्तों के निवेश में गिरावट आयी है । सही ग़लत का स्टिकर लगाना मुनासिब ना होगा क्यूँकि जो असली निवेशक हैं उन्होंने आज तक नहीं लगाया ।
जन्म दिन की शुभकामनाएँ पिताजी !
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kachchikalam-blog · 6 years
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ज़िन्दा हूँ मैं
कितना कुछ घटित हो रहा है मेरे आस पास..... लोग लड़ रहे है , चीख़ रहे है , चिल्ला रहे है। अफ़रा तफ़री मची हुई है... लोग मर रहे है ओर मार भी रहे है। मैं क्या कर रही हूँ ? मैं ज़िन्दा हूँ क्या ? या मर चुकी हूँ ? शायद ज़िन्दा हूँ । लेकिन जीवन का कोई लक्षण क्यूँ नज़र नही आ रहा है मुझमे? शायद मैं भी मर चुकी हूँ इस भगदड़ ओर ख़ून ख़राबे में।  मैं अभी बस ये सोच ही रही थी कि शब्दों का एक करणभेदी बाण मेरे तरफ़ आया ओर हृदय से निकलते हुए मेरी आत्मा को भी चीर गया। अंतहीन पीड़ा का अनुभव हुआ। किन्तु मैं ख़ुश हूँ। अभी अभी एहसास हुआ कि मैं ज़िंदा हूँ। बोल नही पा रही हूँ बस। उसके शायद कई कारण है। आत्म विश्वास की कमी,  भाषा पर पकड़ ओर शब्दों का अभाव। कुछ डर भी ओर ना जाने कैसे कैसे जाने अनजाने भय , जो वर्षों से मेरे दिल में जगह बनाए हुए है। लेकिन आज मैं चुप नही रहूँगी । जीवन क़ीमती है ओर फिर जब मैं ज़िन्दा हूँ तो जीवन का कोई लक्षण भी तो नज़र आना चाहिए। आज मेरी कच्ची क़लम ओर बिखरीं हुई भाषा.... कोई! कोई नही रोक पाएगा मुझे सच लिखने से। मैं लिखूँगी हर वो बात जिसको बोलने से मुझे रोका जाता है, जिससे मेरी बोधिक क्षमता का आकलन किया जाता.... जिससे मुझसे मेरे जीवन जीने का हक़ छिनने की कोशिश की जाती है। एक वैचारिक युद्ध चल रहा है हमारे चारों ओर । विचार सबके पास है, कुछ के पास अपने है ओर कुछ के पास चुराए हुए ओर कुछ लोगों के पास दूसरो द्वारा प्रदत्त या थोपे गये। किन्तु इन विचारों को बिना आपसी द्वेष के स्वीकार करने की क्षमता किसी में भी नही है। यहाँ आजकल जो प्रचलन है उसमें यदि आप मुझसे ओर मेरे विचारों से सहमत है या चटकारिता में माहिर है तो आप मेरे सबसे प्रिय लोगों में से एक हो सकते है किन्तु अगर आप मेरे विचारों से सहमत नही है तो आप बिना कुछ बोले मेरे शत्रु है। ओर यदि ये विचार राजनीति व चुनाव से प्रेरित है तब तो आपके व्यक्तित्व, आपकी वैचारिक ओर व्यहरिक बोधिकता पर भी प्रश्नचिन्ह उठायें जाएँगे। इस बात से कोई फ़र्क़ नही पड़ता कि आप किस दल के समर्थक है या आपके पास अपनी एक निजी विचार ओर विचारधारा हो सकती है। विचारवान तथा बुधदिमान लोग या तो चुप है या धीमी आवाज़ में अपनी बात कहने का प्रयत्न कर रहे है लेकिन यहाँ सुनने वाला है कौन ? सब सुनाने वाले है। ऐसे में एक पुरानी उक्ति याद आती है 
अंधे बहरो क��� महफ़िल में, गूँगो की कौन सुने आवाज़, 
ढोल जहाँ बजती रहती हो, कौन सुने वहाँ छोटा राग
By SwatiRaj Tyagi
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chandramurty · 2 years
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।।भिक्षार्थियों की उर्ध्वमुखी गतिशीलता।।
मेरे दादाजी के एक परम मित्र हुआ करते थे । उनका नाम सुखलाल था।दादाजी दीवान पुत्र थे और सुखलाल, पर्व-त्योहारों में ढोल-तासा बजाने वाले। हालाँकि दोनों के सामाजिक स्तरों में बहुत फ़र्क़ था पर मित्रता उतनी ही गहरी थी।फ़ुरसत के क्षणों में दोनों घंटों गड़गड़े (हुक्का) के धुँआ उड़ाते और सुख-दुःख बाँटते।एक बार दादाजी किसी कारणवश दुःखी थे।उन्होंने सुख लाल से कहा “चला जी सुख लाल, हमनी दोनों घरा छोड़ के कहीं भाग चला हिओ ”। सुख लाल ने पूछा “ बाबू ! तो खईबा कि ?” तो दादाजी ने कहा “ अरे..हम्मे अंग्रेज़ी बोलबोउ और तू भीख माँगहिया ”!
उस काल मेंअंग्रेज़ी बोल कर भीख माँगना भी एक कला थी ! तब लोग भिक्षार्थियों के अंग्रेज़ी बोलने से प्रभावित हो भीख ज़्यादा दिया करते थे।दादाजी के विचार तो गड़गड़े के धुएँ के साथ ही धुँआ-धुआँ हो कर रह गये। ये idea उन्होंने कभी try नहीं किया था !
वैसे भीख माँगने की कला में संगीत का भी बड़ा योगदान रहा है। जिन लोगों ने किसी ज़माने में Black Diamond Express से up-down किया है, उन लोगों को एक सूरदास भिक्षार्थी का signature tune, “कहाँ अटके मुरारी..” याद ही होगा। जिस दिन सूरदास के दर्शन नहीं होते थे तो Daily Passengers पुकार लगाते “कहाँ भटके मुरारी..” ! हिन्दी चलचित्र के कुछ गीत जैसे, “तुम तो ठहरे परदेशी..”, “ परदेशी-परदेशी जाना नहीं..”, “दिल के टुकड़े- टुकड़े कर के मुस्कुरा कर चल दिए ”, भी ट्रेनों में भिक्षार्थी वृंद के बीच काफ़ी प्रसिद्ध रहे हैं। गायक-जन उच्चारण में कुछ देश-काल के अनुसार संशोधन कर लेते थे। यथा परदेशी, परीदेशी..छोड़ के, छोड़ी के.. हो जाता था।एक भिक्षार्थी कलाकार ने तो एक गीत की Parody ही बना दी थी.. “परीदेशिया..बाप साइकिल दिया, बेटा पंक्चर किया..”! वाद्ययंत्र का काम सामान्यतया "पिट्टो" के खेल में इस्तेमाल होने वाले पत्थर की तरह पत्थर के दो टुकड़े करते थे !
अगर उस काल में आपके पास एक हारमोनियम होता, और आपका गला सुमधुर होता, तो शायद आप मुफ़्त में देशाटन कर सकते थे साथ ही साथ कुछ कमाई भी हो जाती !
वैसे एक आश्चर्य की बात है कि आजकल पारंपरिक भिक्षार्थियों की संख्या नगण्य हो गई है। खोजने पर भी गिने चुने ही मिलते हैं। दान-कर्ताओं को अब पुण्य कमाने में अनेक कष्ट उठाना पड़ रहा। क्या ये हमारी बढ़ती हुई आय का द्योतक है अथवा हमारी समाज कल्याणकारी योजनाओं का प्रतिफल? क्या भिक्षार्थियों की upward mobility हो गयी है? या अब उन्हें गली गली भटकना नहीं पड़ता क्योंकि दाता गण उनके द्वार पर खुद ही आ जाते हैं?
अब तो एक अच्छा ख़ासा बहुमत तथाकथित रेवड़ियों की भीख पर संतुष्ट हो दाता की धुन पर थिरक रहा..क्या ये वही उर्ध्वमुखी गतिशील लोग हैं??..ये तो अब विद्वानों के बीच एक शोध का विषय हो सकता है।
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nadeem-ansari-inc · 3 years
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यू.पी में चुनाव ख़त्म होते ही मुफ़्त राशन योजना, भाजपा ने चबाई
क्या आपको इसका फ़र्क़ नहीं पड़ता ?
चना, नमक व खाद्य तेल भी अप्रैल से ख़त्म ।
क्या वोट लेकर गरीब को यूँ अधर में छोड़ देना सही है?
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adminvishal-blog · 3 years
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आज़ादी महान देशों को अनगिनत शहादतों से मिलती है।हमें-आपको मिली है तो इसका आदर करिए और इसे अक्षुण्ण रखने की सोचिए।जिनकी स्वयं की प्रासंगिकता, तात्कालिक-सत्ताओं की ग़ुलामी के कारण बरकरार है उनकी टीका-टिप्पणियों से हमारे महान और गौरवशाली शहीदों के सम्मान पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता🇮🇳
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betterindia-blog1 · 3 years
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लोगों को फ़र्क़ पड़ना अक्सर तब शुरू होता है जब आपको किसी बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।
~ अज्ञात
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actorarjunrao · 3 years
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मैं किसी से बेहतर करूँ ...क्या फ़र्क़ पड़ता है लेकिन मैं किसी का बेहतर करूँ...बहुत फ़र्क पड़ता है 20/4/2021 #actorslifestyle #actorarjunrao #arjunrao #bollywood #bollywoodactor #bollywoodstar #starslife #arjunraophotos #blackman #behror #gunti #actors https://www.instagram.com/p/CN4FMmvMopI/?igshid=1bv2sn1fk1upx
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abhay121996-blog · 4 years
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Travel Guide : तिरुपति के बाद देशभर में अपने चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है Mehandipur Balaji temple, मंदिर पहुंचने से लेकर साइट सीन तक की पूरी जानकारी यहां से लें Divya Sandesh
#Divyasandesh
Travel Guide : तिरुपति के बाद देशभर में अपने चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है Mehandipur Balaji temple, मंदिर पहुंचने से लेकर साइट सीन तक की पूरी जानकारी यहां से लें
लाइफस्टाइल डेस्क। तिरुपति बालाजी का मंदिर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। वहीं तिरुपति के बाद देश की बात की जाए तो राजस्थान का मेहंदीपुर बालाजी मंदिर भी अपने चमत्कारों के लिए बहुत विख्यात है। मेहंदीपुर बालाजी मंदिर राजस्थान के दौसा ज़िले में स्थित है। इस मंदिर में हनुमान जी के बाल रूप की पूजा होती है। दो पहाड़ों के बीच होने की वजह से इसे घाटा और पास में मेहंदीपुर गांव होने की वजह से मेहंदीपुर नाम से जाना जाता है।
तो आइए आज आपको इस ब्लॉग में हम मेहंदीपुर बालाजी की महिमा और वहां कैसे पहुंचा जाए, इसके बारे में बताते हैं…
ट्रेन से आ रहे हैं तो बांदीकुई स्टेशन उतरें मेहंदीपुर बालाजी मंदिर ट्रेन से पहुँचा जा सकता है। बांदीकुई एक बड़ा रेल जंक्शन है। यहा दौसा जिले में पड़ता है। इस स्टेशन पर 6 प्लेटफ़ॉर्म हैं। ये स्टेशन, आगरा-जयपुर और दिल्ली-जयपुर रेल मार्ग का अहम जंक्शन है। अगर आप मेहंदीपुर बालाजी आना चाहते हैं तो देश के अलग अलग हिस्सों से ट्रेन लेकर बांदीकुई जंक्शन आ सकते हैं। इस स्टेशन का कोड BKI है। IRCTC की वेबसाइट/ऐप्लिकेशन पर आपको इस कोड से स्टेशन मिल जाएगा।
बांदीकुई से बस का किराया मात्र 40 रुपये
इस स्टेशन के लिए समय समय पर कई ट्रेनें हैं जो देश के अलग अलग हिस्सों से यहाँ पहुँचती हैं। बांदीकुई स्टेशन से मेहंदीपुर बालाजी मंदिर की दूरी 37 किलोमीटर की है। स्टेशन पर आपको मंदिर के लिए मिनी बस, जीप मिलती हैं। आप इन्हें लेकर बालाजी मंदिर पहुँच सकते हैं। इनका किराया 40 रुपये प्रति व्यक्ति होता है। मेहंदीपुर बालाजी में एक छोटा बस स्टेशन भी है। आप उत्तर प्रदेश से आएं, हरियाणा से आएं, राजस्थान से आएं या मध्य प्रदेश से। आपको सरकारी बसों की कोई दिक़्क़त नहीं होगी। आप अलग अलग राज्यों के बस स्टेशन से बस लेकर यहां पहुंच सकते हैं।
हवाई जहाज से आ रहे हैं तो जयपुर उतरे, यहां से बस आपको सीधा मंदिर छोड़ेगी
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर का सबसे नज़दीकी हवाईअड्डा जयपुर है। राजस्थान स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन जयपुर से हर रोज़ बालाजी मंदिर के लिए नियमित बस सेवा चलती है। इस बस का किराया 300 रुपये के आसपास है। ये बस 2 घंटे 30 मिनट में आपको मेहंदीपुर बालाजी पहुंचा देती है।
अन्य साइट सीन
तीन पहाड़ी मंदिर
तीन पहाड़ी मंदिर, मेहंदीपुर बालाजी में एक बेहद अहमियत रखने वाला मंदिर है। यहाँ आते वक़्त आप कई और भी मंदिरों के दर्शन कर सकते हैं। हालाँकि, सबसे अडवेंचरस होता है इस मंदिर तक पहुँचने के लिए की जाने वाली ट्रेकिंग। तीन पहाड़ी मंदिर के ट्रेक से आप बालाजी मंदिर के आसपास के सुंदर नज़ारे देखते हैं। ये ट्रेक आपको रास्ते भर में संस्कृति की झलकियाँ भी प्रस्तुत करता है।
शिलाजीत और हींग की खरीदारी भी कर सकते हैं
तीन पहाड़ी मंदिर के रास्ते में, आप सिर्फ़ संस्कृति की झलकियाँ और सुंदर नज़ारे ही नहीं देखते हैं बल्कि यहाँ से शिलाजीत और हींग की ख़रीदारी भी कर सकते हैं। हालाँकि, असली और नक़ली का फ़र्क़ ज़रूर कर लें।
फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए बेहद खास़ जगह
गर आप यहाँ वॉक या ट्रेक करते हैं तो स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल तो करेंगे ही। लेकिन आपको ये जानकारी ख़ुशी होगी कि मंदिर परिसर के पास और तीन पहाड़ी मंदिर के रास्ते में, आपको फ़ोटोग्राफ़ी के लिए कई मौक़े मिलते हैं। ये मौक़े छोटी छोटी शॉप के रूप में होते हैं जहां आपको असली ऊंट की सवारी करते हुए भी फ़ोटो खिंचवाने का मौक़ा मिलता है।
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nageshchandramishra · 4 years
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💓विषय : किसान आंदोलन पर
विद्वान रचनाकार पंकज सुबीर जी का फ़ेसबुक पोस्ट दिनांक 30/12/2020 और उनके एक फ़ैन नागेश चन्द्र मिश्र का उत्तर 💓:-
“अभी जाकर अमेज़न पर सर्च कीजिए मक्के के आटे के बारे में। मैंने सर्च किया तो यह मिला-
Magic Makka Atta Corn Meal Flour,no Preservative Pack, Yellow Color (1000 g) M.R.P.: ₹ 420.00 Price: ₹ 399.00 (₹ 399.00 / kg)
आपको पता है मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या है ? लगभग दो हज़ार रुपये प्रति क्विंटल और उसी मक्के का आटा बिक रहा है चार सौ रुपये प्रति किलो की दर से मतलब चालीस हज़ार रुपये प्रति क्विंटल की दर से । और यह भी समझ लीजिए कि यह न्यूनतम समर्थन मूल्य भी किसान को नहीं मिलता है, अक्सर तो दस से पन्द्रह रुपये प्रति किलो ही मिलता है उसे । यदि बीस रुपये प्रति किलो को ही पकड़ कर चलें तो उस बीस का बीस गुना कमा रही है वह कंपनी जो उस मक्का को पीस कर केवल आटा बनाने का काम कर रही है। वह किसान जिसने हल चलाया, बीज बोया, पानी फेरा, खाद दिया, दिन भर धूप में खड़े रहकर दानों को पंछियों से बचाया, फिर कटाई की, भुट्टों से मक्का को निकाला, मंडी ले जाकर बेचा; उस किसान को इस श्रम का मूल्य तक भी नहीं मिल पाया और उस दाने को एक चक्की में पीस कर बाज़ार में लाने वाली कंपनी ने बीस गुना कमाई एक झटके में कर ली।
कई लोग कहते हैं कि किसानों को आयकर नहीं देना पड़ता है, उनको भी आयकर के दायरे में लाना चाहिए। मैं उन सब से कहना चाहता हूँ कि किसान हम सब से कहीं ज़्यादा अप्रत्यक्ष आयकर भर रहा है। अप्रत्यक्ष आयकर इस रूप में कि देश में सबको खाने के लिए अनाज मिल सके इसलिए ज़रूरी अनाजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य उतना नहीं बढ़ाया जाता, जिस हिसाब से महँगाई की दर बढ़ रही है। एक बार कहा गया था कि यदि देश में सबको भर पेट भोजन देना है तो किसानों को सेक्रीफाइज़ करना होगा। और किसान आज तक सेक्रीफाइज़ करता आ रहा है। आज गेहूँ का न्यूनतम समर्थन मूल्य लगभग दो हज़ार रुपये प्रति क्विंटल है जबकि महँगाई की दर के हिसाब से इसे आज कम से कम बीस हज़ार रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए था, क्योंकि इस बीच डीज़ल, खाद, बीज, बिजली सबके दामों में इसी हिसाब से बढ़ोतरी हुई है। इस हिसाब से देखा ���ाए तो किसान इस देश में सबसे ज़्यादा आयकर भरता है। वह तो आज भी लगभग अठारह हज़ार रुपये प्रति क्विंटल की दर से आयकर देश के लिए भर रहा है। और उसके पास तो कोई दूसरा उपाय भी नहीं छोड़ा गया है कि वह इससे बच सके।
मैं पहले भी कई बार कह चुका हूँ और फिर से कह रहा हूँ कि इस देश के किसानों को खेती करनी एकदम बंद कर देनी चाहिए। क्यों परेशान होते हैं इन कृतघ्न लोगों के लिए। क्यों कर रहे हैं ऐसा काम जिससे उनके घर में दोनो वक्त का चूल्हा भी नहीं जल पाता है। छोड़ दें सारी ज़मीनों को पड़त। जब कारपोरेट खेती प्रारंभ हो जाएगी तब सबको पता चलेगा कि किसान का मतलब क्या होता था। क्योंकि कारपोरेट तो फिर बीस हज़ार रुपये क्विंटल की दर से ही बेचेगा गेहूँ को।
पर ये सब लिखने से क्या मतलब है। असल में इस देश की जनता एक नशे की आदी हो गई है। नशा उन सूचनाओं का जिनका कोई मतलब नहीं है। किसान के आंदोलन के सामने ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है अंबानी के घर पोता पैदा होना, या फिर अनुष्का तथा विराट के घर बच्चा पैदा होने की प्रतीक्षा। यह सब नशे हैं, जो हमें लगातार मदहोश रखने के लिए दिए जा रहे हैं। लेते रहिए इस नशे को और सोचते रहिए कि यही दुनिया है।
आधा देश अडानी का और आधा अंबानी का है
जिसे उठा कर चल देना है अपना बस वो झोला है
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👇🇮🇳 पंकज सुबीर के एक फ़ैन नागेश चन्द्र मिश्र का उत्तर 🇮🇳👇
पंकज सुबीर जी 💓🙏🏽
एक रचनाकार के रूप में आपका फ़ैन हूँ मैं , पर तर्क की कसौटी पर #किसान_आन्दोलन से संबंधित आपके स्टेटमेण्ट में निम्नांकित #लोच की ओर आपका ध्यान आकर्षित करने की चेष्टा कर रहा हूँ :
1) M.R.P. ( Maximum Retail Price ) और M.S.P. ( Minimum Support Price ) में उतना ही फ़र्क़ है जितना #लघुत्तम_महत्तम में ❗️
इसलिये मेरे जैसे #पचहत्तरवें_फेल को फिर से ‘यादव चन्द्र चक्रवर्ती’ वाला #अंकगणित के चक्रव्यूह से #किसान वाला “हल” के पेंच से गुजरना होगा जो अपने-आप में अलग तरह का “ आग 🔥 का दरिया है और डूब के जाना है “ 🤞‼️
2) “अति दर्पे हता: लंका, अति माने च कौरवा: । अति दाने बलि बद्धो अति सर्वत्र वर्जयेत् ।।” श्लोक विज्ञान की कसौटी पर भी खरा उतरता है - चाहे वह Strength of Materials Young’s Modulus of Elasticity हो या खेती के लिये ‘बाढ़ और सुखा��़ जैसा #अति से निबटने का पारिस्थितिकी हो !
Welfare State के लिये भी CronyCapitalism और CronySocialism दोनों ख़तरनाक है ! Democracy का मतलब न ‘अम्मा कैंटीन’ है और न ‘केजरीवाल वाला Free Bees’ या “राहुल गॉंधी वाला Loan माफ़” ! दु:ख इस बात का है कि ‘वोट की राजनीति’ ने Democracy को इस देश में KLEPTOCRACY का रूप दे दिया है !
इसलिये प्रजातंत्र की दुहाई देते हुए आपसे निवेदन है कि महात्मा गांधी के रूह से आपने #जिन्हें_जुर्म_ए_इश्क_पे_नाज_था से जो डायलॉग दिलवाया है - उसे याद कर एक बार अपने स्टेटमेण्ट पर पुनरावलोकन करने की महती कृपा करेंगे 🙏🏽
यदि मेरा वश चलता तो देश के प्रधानमंत्री सहित विपक्ष के सभी नेताओं से निवेदन करता कि #किसान_आंदोलन के संबंध में विज्ञान भवन में चल रहे बातचीत का हल निकालने के लिये #सकारात्मक_रूख अख़्तियार करने में सहायक हों - “ If I am not a part of the Solution, then I too am a part of the Problem “ में मेरी निष्ठा रही है !
यदि , इसके बावजूद तथाकथित #किसान_संगठनों_का_समूह अपने हठ पर अड़े हों , तो नरेन्द्र मोदी सरकार 14 जनवरी मकर संक्रांति ( पोंगल ) 2020 के तुरंत बाद पार्लियामेंटरी सेशन आहूत करे और खुलकर तीनों किसान बिलों पर सार्थक बहस हो - जिसमें किसी पार्टी की ओर से व्हिप जारी नहीं हो और वोटिंग कराकर किसान बिलों में सम्यक् संशोधन कराने की व्यवस्था की जाय !
3) आपने अपने स्टेटमेण्ट में अन्नदाताओं के पक्ष में जो #जजमेंट सुनाया है - उस पर मैं भी बहुत कुछ कह सकता हूँ, पर जबतक गॉंधी जी की तरह पूरे देश का भ्रमण कर सभी प्रदेशों के किसानों की समस्याओं से अवगत नहीं हो जाता हूँ , तबतक इस बहस में कूदकर अपनी ओर से ( सिर्फ बिहारी नन रेज़िडेंट फार्मर के बतौर ) कोई #जजमेण्ट नहीं सुनाऊँगा!
अंत में , सिर्फ इतना ही कहूँगा कि जबतक मेरे पिता जी और चाचा जी जीवित थे , बीस -पचीस बीघा ज़मीन से पूरे परिवार के लिये साल भर के लिये पर्याप्त अनाज का पैदावार हो जाता था ; उन सबों के चले जाने के बाद , #दो_बीघा_जमीन जोतने के लिये #विमल_राय के सभी #बलराज_साहनी या तो शहरी हो चुके #Absentee_Landlords की ज़िंदगी बिता रहे हैं या #हमहूँ_जेबै_पंजाब की शक्लों में पंजाब जाकर #दिहाड़ी_मजदूर #Migrant_Labourers अपने परिवारों का पेट पालने को मजबूर हो गये हैं 🥲❗️
ऐसे में , न राघव चड्ढा की शक्ल में अरविन्द केजरीवाल जैसा #सेवादार बहुरूपिया बनकर सिंधु बोर्डर पर WiFi लगाने का काम करूँगा और साथ - साथ #भिंडरावाले जैसा भूत बनकर
#अडानी_अंबानी के टावर तोड़ने जैसा क्रिमिनल कार्य कर दंगा - फ़साद फैलाऊँगा 😡!! ( राहुल गांधी जैसा नानी याद भी नहीं दिलाऊँगा )
अभी - अभी ख़बर आ रही है कि विज्ञान भवन में चल रहे सातवें राउण्ड की बैठक में कोई फैसला नहीं हो सका , पर बर्फ़ कुछ पिघला ज़रूर है ( सरकार के नुमाइन्दों ने किसानों का खाना साथ साथ खाया ) 🥰 और आठवें राउंड की बैठक नये साल में चार जनवरी 2020 को तय हुआ है ‼️
तब तक अल्प विराम और नये साल की अशेष शुभकामना सहित सस्नेह नमस्कार 💐💐💐💐💐आपका : नागेश चन्द्र मिश्र 🙏🏽
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