आरबीआई ने दरों में मामूली 0.35% से 6.25% की बढ़ोतरी की, धीमी मुद्रास्फीति का हवाला दिया
आरबीआई ने दरों में मामूली 0.35% से 6.25% की बढ़ोतरी की, धीमी मुद्रास्फीति का हवाला दिया
RBI मौद्रिक नीति: RBI ने रेपो दर बढ़ाकर 6.25% की
भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपनी प्रमुख उधार दर को 35 आधार अंकों से अधिक मामूली 6.25 प्रतिशत तक बढ़ा दिया, लगातार तीन 50-बीपीएस (आधार अंक) बढ़ने के बाद धीमी मुद्रास्फीति का हवाला देते हुए कीमतों के दबाव को प्रबंधित करने के लिए जो लगातार इसके ऊपरी छोर से ऊपर बना हुआ है। लक्ष्य बैंड।
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी), जो आरबीआई के तीन सदस्यों और तीन बाहरी…
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बढ़ती महंगाई की चिंताओं, वैश्विक मंदी के बावजूद भी भारत में त्योहारों पर खर्च में आया उछाल
बढ़ती महंगाई की चिंताओं, वैश्विक मंदी के बावजूद भी भारत में त्योहारों पर खर्च में आया उछाल
शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय उपभोक्ता पिछले महीने शुरू हुए त्योहारी सीजन में कारों, घरों और टेलीविजन सेटों से लेकर यात्रा और आभूषणों तक हर चीज का लुत्फ उठा रहे हैं, जिससे दुनिया में कहीं और आर्थिक मंदी के बावजूद विकास की संभावनाओं को बढ़ावा मिला है। हिंदू त्योहार की अवधि के दौरान ऑनलाइन और ऑफलाइन बिक्री सितंबर के अंतिम सप्ताह से शुरू होकर नवंबर की शुरुआत तक $27 बिलियन को पार करने का अनुमान…
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Jamshedpur dr ajay : इंडिया गठबंधन की सरकार ने महिलाओं-मजदूरों का बढ़ाया मान : डॉ अजय, न्यूनतम मजदूरी में वृद्धि, मंइयां सम्मान योजना की हुई है शुरुआत, प्रति माह एक हजार रुपये मिलने से महिलाएं बनेंगी सबल
जमशेदपुर : पूर्व सांसद सह कांग्रेस के वरीय नेता डॉ अजय कुमार ने कहा है कि झारखंड की इंडिया गठबंधन सरकार ने किसानों, मजदूरों, महिलाओं और युवाओं का सम्मान बढ़ाने के लिए कई जन कल्याणकारी योजनाएं शुरू की है, जिनका लाभ लोगों को मिल रहा है. रविवार को जारी एक बयान में डॉ अजय ने कहा कि 2014 से 2019 तक भाजपा के शासन काल में मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी में वृद्धि नहीं हुई. लगातार बढ़ती महंगाई से परेशान…
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मोदी सरकार से मिडिल क्लास को क्या उम्मीदें थीं?
**1. करों में राहत:** मिडिल क्लास ने उम्मीद की थी कि मोदी सरकार 2024 के बजट में आयकर दरों को कम करेगी या स्लैब में बदलाव करेगी, जिससे उन्हें करों में राहत मिलेगी।
**2. महंगाई पर नियंत्रण:** लगातार बढ़ती महंगाई से मिडिल क्लास पर आर्थिक दबाव बढ़ा है। वे उम्मीद कर रहे थे कि सरकार महंगाई पर नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाएगी।
**3. स्वास्थ्य और शिक्षा में…
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बढ़ती महंगाई घटते रोजगार ...नशे में है सरकार... ! | सीख लो जीने का अंद...
बढ़ती महंगाई घटते रोजगार ...नशे में है सरकार... !
https://youtube.com/shorts/3gOj_EgCSpw
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बिल्डिंग मटेरियल की कीमतों में वृद्धि: आसमान छू रही बिल्डिंग मटेरियल की कीमत….रेत, ईंट समेत इन सभी चीजों के दाम बढ़े
बिल्डिंग मटेरियल की कीमतों में वृद्धि: गुरुग्राम और दिल्ली एनसीआर में बिल्डिंग मटेरियल की कीमतों में तेजी सीमित नहीं हो रही है। सिर्फ़ एक महीने में बिल्डिंग मटेरियल की कीमतों में 33 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है। इससे आम आदमी परेशान हो रहा है। बिल्डिंग मटेरियल की कीमतें न केवल बढ़ रही हैं, बल्कि ट्रक चालकों की हड़ताल का भी असर हो रहा है इसके कारण सामग्री भी उपलब्ध नहीं हो रही है। कांग्रेस ने इस बात पर सरकार को आरोप लगाया है और कहा है कि चुनावी वादों की पोल जनता पर पड़ रही है। वहीं भाजपा का दावा है कि कीमतें जल्द ही नियंत्रित हो जाएंगी।
जमुना रेत, ईंट, रोड़ी और अन्य मटेरियल की कीमतें बढ़ गई हैं।
यह जानने के लिए बता दें कि सिर्फ़ एक महीने पहले खुले बाजार में घर बनाने के लिए जमुना रेत प्रति क्यूबिक फीट पर 20 रुपये में उपलब्ध थी। अर्थात पांचसो क्यूबिक फीट जमुना रेत दस हजार रुपये में मिल जाती थी, लेकिन अब जमुना रेत सोला हजार रुपये तक मिल रही है। लाल ईंट की कीमत भी बढ़ गई है। पहले 6500 रुपये में एक हजार ईंट मिलती थी। अब आपको 8700 रुपये तक खर्च करने पड़ रहे। बिल्डिंग मटेरियल की कीमतें बदलती रहती हैं और इसमें कई कारकों का प्रभाव होता है, बिल्डिंग मटेरियल की कीमतों में वृद्धि जैसे कि आपूर्ति-मांग के बदलते प्रतिस्पर्धी बाजार में बदलाव, बाज़ारीयों की नीतियों, सरकारी नियमों और अन्य कारकों के साथ।
बिल्डिंग मटेरियल की बढ़ती कीमतों को लेकर कांग्रेस ने सरकार पर हमला बोल दिया है। उसका आरोप है कि चुनावी वादों को पूरा करने के लिए महंगाई बढ़ाई जा रही है, ताकि जनता की जेब से पैसा निकाला जा सके। हालांकि, सत्ताधारी पार्टी के नेता इस पर जल्द काबू पाने की बात कह रहे हैं।
खुद का घर बनाने में पीस रहा मीडिल क्लास इंसान
Building Materials Price Hike – (बिल्डिंग मटेरियल की कीमतों में वृद्धि) : दरअसल, मीडिल क्लास घर बनाने में अभी बुरी तरह पिस रहा है. पिछले हफ्ते ट्रक ड्राइवरों की हड़ताल के चलते बिल्डिंग मैटेरियल की सप्लाई पूरी तरह से ठप हो गई। हड़ताल खत्म हुई तो भी सभी ड्राइवर काम पर नहीं लौटे। उधर, सोनीपत व् नॉएडा के आसपास की 25 रेत घाटें अब भी पूरी तरह से खुली नहीं हैं। ईंट भट्टों में सभी मजदूर नहीं पहुंच पाए हैं, क्योंकि पहले चुनाव, फिर धान कटाई और अब बोनस और धान बेचने का मौसम हैं।
यदि आपको वर्तमान समय में बिल्डिंग मटेरियल की कीमतों के बारे में जानकारी चाहिए, तो हम आपको सलाह देंगे कि आप गुरुग्राम व् दिल्ली एनसीआर की सबसे अच्छी व् जिम्मेदार निर्माण सामग्री विक्रेता यानी की Rodi Dust Marketing & Distributions Pvt. Ltd. से संपर्क करें और उनके निर्माण क्षेत्र के विशेषज्ञों से सलाह लें। वे आपको वर्तमान स्थिति और कीमतों के बारे में अधिक जानकारी प्रदान कर सकते हैं।
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लगेगा महंगाई का झटका
भू-राजनीतिक तनाव की वजह से अर्थव्यवस्था की स्थिति बिगड़ती जा रही है। महंगाई का झटका जिंसों और वित्तीय बाजारों में कमी और अस्थिरता के हालात और गंभीर होते जा रहे हैं। बढ़ती महंगाई के बीच अब भारतीय रिजर्व बैंक ने आम आदमी को एक और तगड़ा झटका दिया है। आरबीआई ने दो वर्ष की लंबी अवधि के बाद रेपो रेट बढ़ाने की घोषणा की है।रेपो रेट 4 प्रतिशत से बढ़कर 4.40 फीसदी हो गया है। कहा जा रहा है कि मुख्य रूप से…
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मोदी जी के राज में , जनता परेशान हैं महंगाई के मार से
अगर महंगाई को घटाना है तो राहुल जी को लाना हैं।
लेकिन एक मिनट ...
क्या सरकार बदलने से महंगाई की समस्या हल हो जायेगा?
क्या वास्तव में देश में बहुत महंगाई है?
चलिए! महंगाई के बारे में हिस्टोरिकल डाटा पर बात करते है।
क्योंकि हमेशा से BJP की सरकार देश में तो थी नही !
लेकिन कहां से से शुरू करूं, सन 2004 से या 1991 से, 1991 से ही देख लेते है।
1991 : 13.87%
1992 : 11.79%
1993 : 6.33%
1994 : 10.25%
1995 : 10.22%
1996 : 8.98%
1997 : 7.16%
1998 : 13.23%
1999 : 4.67%
2000 : 4.01%
2001 : 3.78%
2002 : 4.30%
2003 : 3.81%
2004 : 3.77%
2005 : 4.25%
2006 : 5.80%
2007 : 6.37%
2008 : 8.35%
2009 : 10.88%
2010 : 11.99%
2011 : 8.91%
2012 : 9.48%
2013 : 10.02%
2014 : 6.67%
2015 : 4.91%
2016 : 4.95%
2017 : 3.33%
2018 : 3.94%
2019 : 3.73%
2020 : 6.62%
2021 : 5.13%
2022 : 6.70%
2023 : 5.49%
2024 : current yaar !
2004 से 2014 तक Dr. Manmohan Singh जी के सरकार था वे देश के बहुत बड़े इकोनॉमिस्ट भी थे 1991 में जब देश कंगाली के कगार पर था तो इन्होंने ही देश को उस संकट से निकाले थे।
फिर भी उनके राज में 10 साल के अंदर टोटल 79.82% की महंगाई बढ़ी।
जबकि मोदी जी के दस साल के राज में टोटल 51.47% की महंगाई बढ़ी।
अब थोड़ा बात कर लेते है डीजल-पेट्रोल की, जिस पर विपक्ष खूब हो-हल्ला कर रहा है ।
तो 2004 में
डीज़ल - ₹24
पेट्रोल - ₹33.71
2014 में पेट्रोलियम प्राइस
डीज़ल - ₹55.49
पेट्रोल - ₹72.26
और आज (28 अप्रैल 2024) Delhi
डीजल - 87.62
पेट्रोल - ₹94.72
Muzaffarpur में
डीज़ल - ₹92.94
पेट्रोल - ₹106.16
गैस सिलेंडर का यही रेशियो हैं
अब मुझे कुछ नही कहना है, आगे आप समझदार है ख़ुद विश्लेषण कर सकते है।
एक बात और याद दिलाना चाहूंगा
किसी भी विकासशील देश की महंगाई इसी रफ़्तार से बढ़ती है चाहे किसी के भी सरकार हो और महंगाई को ज्यादा कंट्रोल करना सरकार के बस में भी नही है, उसके लिए RBI हैं जो रेपो रेट घटा बढ़ा कर महंगाई कंट्रोल करने की कोशिश करती है जो एक स्���ायत संस्था है।
इसलिए महंगाई में मुद्दे पर सरकार बदलने का कोई तुक नहीं बनता है ।
✍️ *रविन्द्र (महम्मदपुर मझौलिया)*
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महंगाई के साथ बढ़ा चुनावी खर्च, पहले लोकसभा चुनाव में प्रति व्यक्ति 67 पैसे खर्च हुए, जानिए अब क्या स्थिति
जयपुर: समय बदलने के साथ जब महंगाई बढ़ती है तो जाहिर तौर पर चुनाव में होने वाला खर्च भी बढ जाता है। हालांकि हर चुनाव में पार्टी और प्रत्याशी की ओर से लाखों करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं लेकिन चुनाव आयोग की ओर खर्च की अधिकतम सीमा तय कर दी गई है। लोकसभा चुनाव में आयोग की ओर से तय की गई सीमा से ज्यादा खर्च नहीं किए जा सकते। चुनाव में बाद प्रत्याशी को अपने खर्च का ब्यौरा भी चुनाव आयोग को पेश करना होता है। प्रत्याशियों की ओर से पेश किए गए ब्यौरे से यह पता लगता है कि प्रति व्यक्ति कुल कितना खर्च हुआ।
हजारों गुणा बढ़ गया चुनावी खर्च
आप यह जान कर हैरान होंगे कि जब देश में पहला लोकसभा चुनाव हुआ था तब चुनाव का प्रति व्यक्ति खर्च 0.67 पैसा था। वर्ष 2019 में यह राशि बढकर 31.52 रुपए पहुंच गई। यानी चुनाव में खर्च की राशि करीब 5 हजार गुणा बढ गई। 1952 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद कुछ चुनावों तक खर्च की सीमा घटती बढ़ती रही लेकिन 2009 में हुए लोकसभा चुनाव से लेकर 2019 तक हुई बढ़ोतरी हैरान करने वाली है। इन तीन चुनावों में चुनावी खर्च अचानक सैकड़ों गुना बढ गया।
2004 तक मामूली खर्च बढ़ता रहा
वर्ष 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों की ओर से कुल 51.12 लाख रुपए खर्च किए गए। यानी प्रति व्यक्ति खर्चा केवल 67 पैसा था। 1957 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रति व्यक्ति खर्च की राशि घटकर 59 पैसा हो गई थी। तीसरे लोकसभा चुनाव 1962 में प्रति व्यक्ति खर्च फिर से घटा और यह राशि 46 पैसा पहुंच गई। बाद के चुनाव में मामूली बढोतरी होने लगी। वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में 59 पैसा प्रति व्यक्ति खर्च हुआ। बाद में चुनाव खर्च लगातार बढ़ने लगा। वर्ष 2004 तक बढते बढते यह खर्च 7.21 रुपए प्रति व्यक्ति पहुंच गया था।
पिछले तीन चुनाव में सैकड़ों गुना बढा चुनावी खर्च
पिछले तीन लोकसभा चुनाव यानी वर्ष 2009, 2014 और 2019 में हुआ चुनावी खर्च हैरान करने वाला है। इन तीन चुनाव में खर्च सैकड़ों गुना बढ गया। 2009 के लोकसभा चुनाव में कुल 6394.73 करोड़ रुपए खर्च हुए। यानी प्रति व्यक्ति खर्च 17.26 रुपए था। वर्ष 2014 में कुल 15783.00 करोड़ रुपए खर्च हुए। इस हिसाब से प्रति व्यक्ति खर्च 32.24 रुपए रहा। वर्ष 2019 के चुनाव में भी 15429 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। यानी प्रति व्यक्ति खर्च 31.52 रुपए रहा।
कागजी खर्च पर लोगों को भरोसा नहीं, सैंकड़ों गुना ज्यादा खर्च होने का अनुमान
जो चुनाव खर्च बताया गया है वह केवल प्रत्याशियों की ओर से दिए गए खर्च के ब्योरे के मुताबिक है। चूंकि चुनाव आयोग ने खर्च की सीमा तय कर रखी है। ऐसे में प्रत्याशियों की ओर से भले ही करोड़ों रुपए खर्च किए जाते होंगे लेकिन जब चुनाव आयोग में खर्च का ब्यौरा जमा कराया जाता है तो तय सीमा से कम ही बताया जाता है। उदाहरण के तौर पर हम देखते हैं कि विधानसभा चुनाव में खर्च की सीमा 40 लाख रुपए तय है। यानी एक प्रत्याशी अधिकतम 40 लाख रुपए से ज्यादा खर्च नहीं कर सकेंगे जबकि सब जानते हैं कि 40 लाख रुपए में चुनाव नहीं लड़ा जाता। कई प्रत्याशी तो चुनाव में 8 से 10 करोड़ रुपए तक खर्च करते हैं लेकिन चुनाव आयोग में जब खर्च का हिसाब जमा कराया जाता है तब तय सीमा के अंदर ही बताया जाता है।
आयोग भी हर बार बढ़ता रही खर्च की सीमा
महंगाई को देखते हुए चुनाव आयोग की ओर से भी समय समय पर खर्च की राशि बढाई जाती रही। पहले लोकसभा चुनाव यानी 1952 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने खर्च की सीमा 25 हजार रुपए तय की थी। वर्ष 1971 के चुनाव में इसे बढ़ाकर 35 हजार रुपए और वर्ष 1980 में इस राशि को और बढ़ाकर 1 लाख रुपए कर दिया गया। महंगाई को देखते हुए समय समय पर आयोग की ओर से खर्च की राशि में बढोतरी की गई। 1989 में खर्च की सीमा 1.5 लाख रुपए कर दी गई थी जिसे 1996 में बढाकर 4.5 लाख रुपए कर दी गई। वर्ष 1998 के चुनाव में 15 लाख, 2004 में 25 लाख, और 2014 के लोकसभा चुनाव में खर्च की सीमा बढाकर 70 लाख रुपए कर दी गई। इस साल हो रहे लोकसभा चुनाव में यह राशि बढाकर 95 लाख रुपए कर दी गई है।
वर्ष
प्रति व्यक्ति खर्च
कुल खर्च (राशि लाखों में)
1952
0.67
51.12
1957
0.59
51.36
1962
0.46
47.91
1967
0.54
66.50
1971
0.59
78.64
1977
1.26
191.98
1980
1.7
309.29
1984
2.6
522.05
1989
3.89
1004.73
1991
5.48
1455.55
1996
7.41
2251.00
1998
8.62
2564.05
1999
8.05
2506.00
2004
7.21
2503.50
2009
17.26
6394.73
2014
32.24
15783.00
2019
31.52
15429.00 http://dlvr.it/T4wV9s
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सेंसेक्स आरबीआई के नीतिगत फैसले से 45 अंक आगे गिर गया
सेंसेक्स आरबीआई के नीतिगत फैसले से 45 अंक आगे गिर गया
स्टॉक मार्केट इंडिया: सेंसेक्स, निफ्टी आरबीआई से आगे हरे रंग में खुले
बुधवार को शुरुआती कारोबार में लाभ और हानि के बीच देखने-देखने के बाद भारतीय इक्विटी बेंचमार्क गिर गया, व्यापक रूप से अपेक्षित दर वृद्धि से पहले चौथे सीधे दिन के लिए घाटे का विस्तार, व्यापारियों ने घरेलू मुद्रास्फीति के खिलाफ अपनी लड़ाई में आरबीआई के दृष्टिकोण पर विवरण की प्रतीक्षा की।
शुरुआती कारोबार में हरे रंग में खुलने के…
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चुनाव से पहले क्या Petrol - Diesel के दाम घटेगें ?
चुनाव से पहले फरवरी में पेट्रोल डीजल की कीमतों में कमी की उम्मीद लगायी जा रही थी लेकिन अब जनता की सारी उम्मीद पर अब पानी फिरता हुआ दिख रहा है ।
अप्रैल -दिसंबर में बंपर मुनाफा कमाने वाले आयल मार्केटिंग कंपनियों ने अब डीजल की बिक्री पर नुकसान का दावा किया है।
तेल कंपनियों के मुताबिक डीजल की बिक्री पर तेल कंपनियों को करीब ₹3 प्रति लीटर का नुकसान हो रहा है। वहीं पेट्रोल पर मुनाफा मार्जिन कम हो कर करीब तीन से ₹4 प्रति लीटर रह गया है।
वहीं पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी का कहना है कि पेट्रोल डीजल के दाम सरकार तय नहीं करती है। तेल कंपनियां सभी आर्थिक पहलुओं को ध्यान में रखकर कीमतों पर फैसला करती है।
चुनाव से पहले क्या Petrol - Diesel के दाम घटेगें ?
उन्होंने कहा कि अभी बाजार में अस्थिरता बनी हुई है , इससे एक संकेत के तौर पर भी देखा जा सकता है की जब तक मार्केट में स्थिरता नहीं आएगी तब तक पेट्रोल डीजल की कीमतों पर कोई फैसला लिया जाना मुश्किल है।
हालांकि अप्रैल से दिसंबर महिनें के दौरान नौ महीनों में तीनों कंपनियों को 69,000 करोड़ रुपए का बंपर मुनाफा हुआ है, लेकिन पेट्रोलियम मंत्री का कहना है कि अगर मौजूदा तिमाही में यही रुझान बना रहा तो तेल कंपनियां दाम घटा सकती हैं।
लेकिन इस तिमाही के नतीजे अप्रैल से पहले नहीं आएँगे जिसके चलते यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अभी पेट्रोल डीजल की कीमतों में राहत मिलने के आसार नहीं है।
पूरी के मुताबिक तेल कंपनियों ने खुद ही दाम ना बढ़ाने का फैसला किया था, जिससे उन्हें नुकसान हुआ था। मौजूदा कारोबारी साल में तीनों कंपनियों ने पहली दो तिमाही यानी अप्रैल, जून और जुलाई सितंबर में रिकॉर्ड आमदनी की है।
इस दौरान अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमतें 2022 - 23 की पहली छमाही के मुकाबले आंधी होकर $72 प्रति बैरल तक आ गई थी।
लेकिन ऑक्टूबर दिसंबर तिमाही में अंतर्राष्ट्रीय कीमतें फिर से बढ़कर 90 अमेरिकी डॉलर हो गई, जिससे उनकी कमाई में कमी आई है।
हालांकि पहली चार महिनें के प्रदर्शन के आधार पर तेल कंपनियां अभी भी भारी मुनाफ़े में है, लेकिन 2022 में कच्चे तेल की ऊंची कीमतों के वजह से इन्हें भारी नुकसान हुआ था।
हालांकि बाद में क्रूड में नरमी से घाटा मुनाफ़े में तब्दील हो गया और पिछले महीने तीनो कंपनियों को पेट्रोल पर ₹11 और डीजल पर ₹6 का मार्जिन मिला था। पिछले कुछ सालों में अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमतों में भारी उतार चढ़ाव का माहौल रहा है।
2020 में चोविद् 19 की शुरुआत के वक्त इसके दाम में भारी गिरावट आ गई थी, लेकिन मार्च 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद क्रूड की कीमत $140 प्रति बैरल पर पहुँच गई
इसके दाम बढ़ने से यहाँ पर महंगाई बढ़ती है और लोगों को ऊंची ब्याज दरें चुकाने को मजबूत होना पड़ता है।
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Jamshedpur dr ajay minimum wages : व्यापारिक व औद्योगिक संस्थान नये न्यूनतम मजदूरी कानून का पावन करें, वरीय कांग्रेस नेता डॉ अजय कुमार ने प्रेस क़न्फ्रेंस कर उठाया न्यूनतम मजदूरी का मुद्दा
जमशेदपुर : कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य सह जमशेदपुर के पूर्व सांसद डॉ अजय कुमार ने रविवार को न्यूनतम मजदूरी का मामला उठाते हुए झारखंड सरकार द्वारा विगत मार्च से लागू न्यूनतम मजदूरी का मामला उठाया. उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार द्वारा बढ़ती महंगाई के मद्देनजर श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी में बढोतरी संबंधी अधिसूचना 11 मार्च 2024 को जारी करने के साथ ही प्रदेश में उसे लागू कर दिया था. डॉ अजय ने कहा कि…
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संस्थाओं को कमजोर कर रही है मोदी सरकार : खड़गे
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बेरोजगारी, महंगाई, जांच एजेंसियों के दुरुपयोग और बढ़ती आर्थिक असमानता को लेकर मोदी सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा है कि वह योजनाबद्ध तरीके से लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर रही है।
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Todays Gold Rate On 13 Nov 2023
भारत में आज सोने का भाव क्या है?
सोने की महंगाई दरें जब भी बदल सकती हैं, और इसकी प्रति ग्राम कीमत विभिन्न बाजारों और शहरों में भिन्न हो सकती है। इसलिए, भारत में सोने की दर को लेकर नवीनतम जानकारी प्राप्त करने के लिए स्थानीय ज्वेलर, बैंक, या वित्तीय समाचार वेबसाइट की जाँच करना अच्छा होता है।
सोने की दरें विभिन्न कारकों पर आधारित होती हैं, जैसे कि ग्लोबल वित्तीय घटक, सोने का मांग और पूर्ति, रुपये के मूल्य की तरह। 2023 के शुरुआत में, सोने की कीमतें चांदी की तरह विपरित दिशा में चल रही हैं, जब भी विश्व मार्केट में आर्थिक संकट और ग्लोबल घटकों के प्रभाव का सामना कर रही है।
वित्तीय सामग्रियों के मूल्य की तरह, सोने की कीमतें भी निवेशकों और सोने को खरीदने वालों के लिए महत्वपूर्ण हो सकती हैं, क्योंकि यह निवेशकों के लिए एक मान्य निवेश विकल्प हो सकता है।
यदि आप सोने की विस्तारित जानकारी चाहते हैं, तो आपको निवेश की नीतियों, सोने की मूल्यों के आधार पर निवेश करने के फायदों और हानियों की जानकारी के साथ एक वित्तीय सलाहकार से परामर्श लेना भी उपयुक्त हो सकता है।
याद रखें कि सोने के बाजार में मूल्य सुविधाजनक हैं और वे नियमित रूप से बदलते रह सकते हैं, इसलिए आपको निवेश या खरीदारी के फैसले से पहले अच्छे से जांच लेनी चाहिए।
कैरेट1 ग्राम10 ग्राम24 कैरेट₹ 6,024₹ 60,24022 कैरेट₹ 5,569₹ 55,69018 कैरेट₹ 4,915₹ 49,150
सोने की कीमत भारत में कैसे निर्धारित होती है?
भारत में सोने की कीमत कई कारकों से निर्धारित होती है, जिनमें शामिल हैं:
- अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमत: भारत दुनिया में सबसे बड़े सोने के उपभोक्ताओं में से एक है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमत का घरेलू बाजार पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमत बढ़ती है, तो भारत में सोने की कीमत भी बढ़ती है, और इसके विपरीत।
- रुपये की विनिमय दर: सोने को अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर में खरीदा और बेचा जाता है। इसलिए, रुपये की विनिमय दर का सोने की कीमत पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जब रुपया कमजोर होता है, तो सोने की कीमत बढ़ती है, और इसके विपरीत।
- आयात शुल्क: भारत में सोने पर आयात शुल्क लगाया जाता है। आयात शुल्क में किसी भी बदलाव का सोने की कीमत पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। आयात शुल्क बढ़ने से सोने की कीमत बढ़ जाती है, और इसके विपरीत।
- मांग और आपूर्ति: भारत में सोने की मांग और आपूर्ति भी सोने की कीमत निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जब मांग बढ़ती है और आपूर्ति अपरिवर्तित रहती है, तो सोने की कीमत बढ़ जाती है। और जब आपूर्ति बढ़ती है और मांग अपरिवर्तित रहती है, तो सोने की कीमत घट जाती है।
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You can check live prices of gold here
भारत में सोने की मांग
भारत में सोने की मांग बहुत अधिक है। सोने को भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। इसे अक्सर शुभ माना जाता है और इसे निवेश के रूप में भी देखा जाता है। दिवाली, धनतेरस, और अक्षय तृतीया जैसे त्योहारों के दौरान सोने की मांग विशेष रूप से अधिक होती है।
भारत में सोने की आपूर्ति
भारत में सोने की आपूर्ति काफी हद तक आयात पर निर्भर करती है। भारत दुनिया में सोने का सबसे बड़ा आयातक है। भारत में सोने का उत्पादन बहुत कम है।
सोने की कीमत पर अन्य कारकों का प्रभाव
सोने की कीमत पर अन्य कारकों का भी प्रभाव पड़ता है, जैसे कि:
- केंद्रीय बैंकों की खरीदारी: केंद्रीय बैंक सोने को अपने भंडार में रखते हैं। जब केंद्रीय बैंक सोना खरीदते हैं, तो यह सोने की कीमत को बढ़ाता है।
- आर्थिक अनिश्चितता: जब आर्थिक अनिश्चितता होती है, तो निवेशक सोने की ओर रुख करते हैं, क्योंकि इसे एक सुरक्षित-संपत्ति माना जाता है। इससे सोने की कीमत बढ़ती है।
- भू-राजनीतिक तनाव: भू-राजनीतिक तनाव भी सोने की कीमत को बढ़ा सकते हैं।
सोने की कीमत कैसे निर्धारित की जाती है?
भारत में सोने की कीमत मुंबई और दिल्ली के दो प्रमुख बुलियन एक्सचेंजों में निर्धारित की जाती है। ये एक्सचेंज सोने की कीमतों को निर्धारित करने के लिए एक पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया का उपयोग करते हैं।
निष्कर्ष
भारत में सोने की कीमत कई कारकों से निर्धारित होती है, जिनमें अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमत, रुपये की विनिमय दर, आयात शुल्क और मांग और आपूर्ति शामिल हैं। अन्य कारकों जैसे कि केंद्रीय बैंकों की खरीदारी, आर्थिक अनिश्चितता और भू-राजनीतिक तनाव का भी सोने की कीमत पर प्रभाव पड़ता है।
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आहार की कीमतों में वृद्धि | सरकार के कदम और सम्भावित समाधान
देश में बढ़ती महंगाई से जल्द राहत मिलने की संभावना है। वित्त सचिव टीवी सोमनाथन ने कहा कि मौसमी कारकों के अनुकूल होने से दिसम्बर तक खुदरा महंगाई घट सकती है। उन्होंने कहा, खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेज बढ़ोतरी महंगाई का मुख्य कारण रही है। अचानक मौसम में बदलाव से सब्जियों, दूध व अनाज जैसे मुख्य … Read more
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