Tumgik
#बाती
parshuramdasg-blog · 8 months
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कबीर जी ने कहा है कि :-
क्या मांगँ कुछ थिर ना रहाई।
देखत नैन चला जग जाई ।।
एक लख पूत सवा लख नाती।
उस रावण कै दीवा न बाती ।।
#GodNightTuesday
#Mere_Aziz_Hinduon_Swayam Padho Apne Granth
📚 अधिक जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें आध्यात्मिक पुस्तक "ज्ञान - गंगा"।
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deepjams4 · 8 months
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ऐ तक़दीर तू बता ज़रा….!
ऐ तक़दीर तू बता ज़रा
तदबीर से क्यों है रूठी हुई
तू भी अपना काम कर
वो अपना काम है कर रही
तेरे रूठने के बाद भी देख
उसने हार नहीं मानी कभी
ऐ तक़दीर तू बता ज़रा….!
वो रात दिन रहे जूझती
तू आराम से सोयी पड़ी
ग़र साथ उसका तू दे ज़रा
आसान हो मुश्किल घड़ी
वो मोड़ देगी पहिया वक्त का
ग़र हो जाए साथ तू खड़ी
ऐ तक़दीर तू बता ज़रा….!
माना वो अकेली पड़ गयी
थक गयी है साँस उसकी फूली हुई
मगर लगता नहीं मैदान से हटे कभी
घुटने न टेकेगी अपने ईमान पे डटी
ग़र तू उससे कंधा मिला दे अभी
देखना छूने लगेगी वो बुलंदियाँ नयीं
ऐ तक़दीर तू बता ज़रा….!
चाहे वक्त से वो अकेले ही भिड़ गयी
काम के बोझ से फिर भी वो ना डरी
काम से टलने की कला उसे आती नहीं
छुटकारा पाने वो कहीं छुप जाती नहीं
ग़र तू उसकी दोस्त बन गयी कभी
वो उड़ेगी तोड़ पाँव की बेड़ियाँ सभी
ऐ तक़दीर तू बता ज़रा…!
उसका दिया है शायद टिमटिमा रहा
लगता है बाती काफ़ी जल चुकी
शायद तेल भी कम हो गया है उसका
डर है तेज़ हवाएँ उसे बुझा न दें कहीं
ग़र बचा ले बुझने से तू उसकी लौ अभी
देखना फिर सर होतीं उससे मंज़िलें नयीं
ऐ तक़दीर तू बता ज़रा….!
एक और एक मिलकर ग्यारह ही बनें
यह जानते हुए भी तू क्यों पीछे हटी
जाग उठकर पकड़े ले उसका हाथ तू
पत्थरीली राहें भी हमवार हो जाएँगी
ग़र भूला दे तू अपने गिले शिकवे सभी
देखना संवार देगी वो मुस्तकबिल कई
ऐ तक़दीर तू बता ज़रा….!
इत्तला मान या समझ इसे मेरी तजवीज़ ही
यहाँ यकीन से बात होती है सिर्फ़ तदबीर की
शक की नज़र से ही देखता है तुझे हर कोई
हर कोई दुविधा में है तुम साथ दोगी या नहीं
ग़र शोहरत चाहिए तो दरियादिली दिखा ज़रा
वरना उसकी हार में मिलेगी तुझे बस हार ही
ऐ तक़दीर तू बता ज़रा….!
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lavkusdasrajpt · 11 months
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#SpiritualMessageOnDussehra
आवत संग न जात संगाती, क्या हुआ दर बांधे हाथी।
इक लख पूत सवा लख नाती, उस रावण के आज दीया न बाती ।।
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swarn005 · 11 months
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Bhaktamar Stotra Hindi
श्री प. हेमराज जी
आदिपुरुष आदीश जिन, आदि सुविधि करतार। धरम-धुरंधर परमगुरु, नमों आदि अवतार॥
सुर-नत-मुकुट रतन-छवि करैं, अंतर पाप-तिमिर सब हरैं। जिनपद बंदों मन वच काय, भव-जल-पतित उधरन-सहाय॥1॥
श्रुत-पारग इंद्रादिक देव, जाकी थुति कीनी कर सेव। शब्द मनोहर अरथ विशाल, तिस प्रभु की वरनों गुन-माल॥2॥
विबुध-वंद्य-पद मैं मति-हीन, हो निलज्ज थुति-मनसा कीन। जल-प्रतिबिंब बुद्ध को गहै, शशि-मंडल बालक ही चहै॥3॥
गुन-समुद्र तुम गुन अविकार, कहत न सुर-गुरु पावै पार। प्रलय-पवन-उद्धत जल-जन्तु, जलधि तिरै को भुज बलवन्तु॥4॥
सो मैं शक्ति-हीन थुति करूँ, भक्ति-भाव-वश कछु नहिं डरूँ। ज्यों मृगि निज-सुत पालन हेतु, मृगपति सन्मुख जाय अचेत॥5॥
मैं शठ सुधी हँसन को धाम, मुझ तव भक्ति बुलावै राम। ज्यों पिक अंब-कली परभाव, मधु-ऋतु मधुर करै आराव॥6॥
तुम जस जंपत जन छिनमाहिं, जनम-जनम के पाप नशाहिं। ज्यों रवि उगै फटै तत्काल, अलिवत नील निशा-तम-जाल॥7॥
तव प्रभावतैं कहूँ विचार, होसी यह थुति जन-मन-हार। ज्यों जल-कमल पत्रपै परै, मुक्ताफल की द्युति विस्तरै॥8॥
तुम गुन-महिमा हत-दुख-दोष, सो तो दूर रहो सुख-पोष। पाप-विनाशक है तुम नाम, कमल-विकाशी ज्यों रवि-धाम॥9॥
नहिं अचंभ जो होहिं तुरंत, तुमसे तुम गुण वरणत संत। जो अधीन को आप समान, करै न सो निंदित धनवान॥10॥
इकटक जन तुमको अविलोय, अवर-विषैं रति करै न सोय। को करि क्षीर-जलधि जल पान, क्षार नीर पीवै मतिमान॥11॥
प्रभु तुम वीतराग गुण-लीन, जिन परमाणु देह तुम कीन। हैं तितने ही ते परमाणु, यातैं तुम सम रूप न आनु॥12॥
कहँ तुम मुख अनुपम अविकार, सुर-नर-नाग-नयन-मनहार। कहाँ चंद्र-मंडल-सकलंक, दिन में ढाक-पत्र सम रंक॥13॥
पूरन चंद्र-ज्योति छबिवंत, तुम गुन तीन जगत लंघंत। एक नाथ त्रिभुवन आधार, तिन विचरत को करै निवार॥14॥
जो सुर-तिय विभ्रम आरंभ, मन न डिग्यो तुम तौ न अचंभ। अचल चलावै प्रलय समीर, मेरु-शिखर डगमगै न धीर॥15॥
धूमरहित बाती गत नेह, परकाशै त्रिभुवन-घर एह। बात-गम्य नाहीं परचण्ड, अपर दीप तुम बलो अखंड॥16॥
छिपहु न लुपहु राहु की छांहि, जग परकाशक हो छिनमांहि। घन अनवर्त दाह विनिवार, रवितैं अधिक धरो गुणसार॥17॥
सदा उदित विदलित मनमोह, विघटित मेघ राहु अविरोह। तुम मुख-कमल अपूरव चंद, जगत-विकाशी जोति अमंद॥18॥
निश-दिन शशि रवि को नहिं काम, तुम मुख-चंद हरै तम-धाम। जो स्वभावतैं उपजै नाज, सजल मेघ तैं कौनहु काज॥19॥
जो सुबोध सोहै तुम माहिं, हरि हर आदिक में सो नाहिं। जो द्युति महा-रतन में होय, काच-खंड पावै नहिं सोय॥20॥
(हिन्दी में) नाराच छन्द : सराग देव देख मैं भला विशेष मानिया। स्वरूप जाहि देख वीतराग तू पिछानिया॥ कछू न तोहि देखके जहाँ तुही विशेखिया। मनोग चित-चोर और भूल हू न पेखिया॥21॥
अनेक पुत्रवंतिनी नितंबिनी सपूत हैं। न तो समान पुत्र और माततैं प्रसूत हैं॥ दिशा धरंत तारिका अनेक कोटि को गिनै। दिनेश तेजवंत एक पूर्व ही दिशा जनै॥22॥
पुरान हो पुमान हो पुनीत पुण्यवान हो। कहें मुनीश अंधकार-नाश को सुभान हो॥ महंत तोहि जानके न होय वश्य कालके। न और मोहि मोखपंथ देय तोहि टालके॥23॥
अनन्त नित्य चित्त की अगम्य रम्य आदि हो। असंख्य सर्वव्यापि विष्णु ब्रह्म हो अनादि हो॥ महेश कामकेतु योग ईश योग ज्ञान हो। अनेक एक ज्ञानरूप शुद्ध संतमान हो॥24॥
तुही जिनेश बुद्ध है सुबुद्धि के प्रमानतैं। तुही जिनेश शंकरो जगत्त्रये विधानतैं॥ तुही विधात है सही सुमोखपंथ धारतैं। नरोत्तमो तुही प्रसिद्ध अर्थ के विचारतैं॥25॥
नमो करूँ जिनेश तोहि आपदा निवार हो। नमो करूँ सुभूरि-भूमि लोकके सिंगार हो॥ नमो करूँ भवाब्धि-नीर-राशि-शोष-हेतु हो। नमो करूँ महेश तोहि मोखपंथ देतु हो॥26॥
चौपाई तुम जिन पूरन गुन-गन भरे, दोष गर्वकरि तुम परिहरे। और देव-गण आश्रय पाय, स्वप्न न देखे तुम फिर आय॥27॥
तरु अशोक-तर किरन उदार, तुम तन शोभित है अविकार। मेघ निकट ज्यों तेज फुरंत, दिनकर दिपै तिमिर निहनंत॥28॥
सिंहासन मणि-किरण-विचित��र, तापर कंचन-वरन पवित्र। तुम तन शोभित किरन विथार, ज्यों उदयाचल रवि तम-हार॥29॥
कुंद-पुहुप-सित-चमर ढुरंत, कनक-वरन तुम तन शोभंत। ज्यों सुमेरु-तट निर्मल कांति, झरना झरै नीर उमगांति ॥30॥
ऊँचे रहैं सूर दुति लोप, तीन छत्र तुम दिपैं अगोप। तीन लोक की प्रभुता कहैं, मोती-झालरसों छवि लहैं॥31॥
दुंदुभि-शब्द गहर गंभीर, चहुँ दिशि होय तुम्हारे धीर। त्रिभुवन-जन शिव-संगम करै, मानूँ जय जय रव उच्चरै॥32॥
मंद पवन गंधोदक इष्ट, विविध कल्पतरु पुहुप-सुवृष्ट। देव करैं विकसित दल सार, मानों द्विज-पंकति अवतार॥33॥
तुम तन-भामंडल जिनचन्द, सब दुतिवंत करत है मन्द। कोटि शंख रवि तेज छिपाय, शशि निर्मल निशि करे अछाय॥34॥
स्वर्ग-मोख-मारग-संकेत, परम-धरम उपदेशन हेत। दिव्य वचन तुम खिरें अगाध, सब भाषा-गर्भित हित साध॥35॥
दोहा : विकसित-सुवरन-कमल-दुति, नख-दुति मिलि चमकाहिं। तुम पद पदवी जहं धरो, तहं सुर कमल रचाहिं॥36॥
ऐसी महिमा तुम विषै, और धरै नहिं कोय। सूरज में जो जोत है, नहिं तारा-गण होय॥37॥
(हिन्दी में) षट्पद : मद-अवलिप्त-कपोल-मूल अलि-कुल झंकारें। तिन सुन शब्द प्रचंड क्रोध उद्धत अति धारैं॥ काल-वरन विकराल, कालवत सनमुख आवै। ऐरावत सो प्रबल सकल जन भय उपजावै॥ देखि गयंद न भय करै तुम पद-महिमा लीन। विपति-रहित संपति-सहित वरतैं भक्त अदीन॥38॥
अति मद-मत्त-गयंद कुंभ-थल नखन विदारै। मोती रक्त समेत डारि भूतल सिंगारै॥ बांकी दाढ़ विशाल वदन में रसना लोलै। भीम भयानक रूप देख जन थरहर डोलै॥ ऐसे मृग-पति पग-तलैं जो नर आयो होय। शरण गये तुम चरण की बाधा करै न सोय॥39॥
प्रलय-पवनकर उठी आग जो तास पटंतर। बमैं फुलिंग शिखा उतंग परजलैं निरंतर॥ जगत समस्त निगल्ल भस्म करहैगी मानों। तडतडाट दव-अनल जोर चहुँ-दिशा उठानों॥ सो इक छिन में उपशमैं नाम-नीर तुम लेत। होय सरोवर परिन मैं विकसित कमल समेत॥40॥
कोकिल-कंठ-समान श्याम-तन क्रोध जलन्ता। रक्त-नयन फुंकार मार विष-कण उगलंता॥ फण को ऊँचा करे वेग ही सन्मुख धाया। तब जन होय निशंक देख फणपतिको आया॥ जो चांपै निज पगतलैं व्यापै विष न लगार। नाग-दमनि तुम नामकी है जिनके आधार॥41॥
जिस रन-माहिं भयानक रव कर रहे तुरंगम। घन से गज गरजाहिं मत्त मानों गिरि जंगम॥ अति कोलाहल माहिं बात जहँ नाहिं सुनीजै। राजन को परचंड, देख बल धीरज छीजै॥ नाथ तिहारे नामतैं सो छिनमांहि पलाय। ज्यों दिनकर परकाशतैं अन्धकार विनशाय॥42॥
मारै जहाँ गयंद कुंभ हथियार विदारै। उमगै रुधिर प्रवाह वेग जलसम विस्तारै॥ होयतिरन असमर्थ महाजोधा बलपूरे। तिस रनमें जिन तोर भक्त जे हैं नर सूरे॥ दुर्जय अरिकुल जीतके जय पावैं निकलंक। तुम पद पंकज मन बसैं ते नर सदा निशंक॥43॥
नक्र चक्र मगरादि मच्छकरि भय उपजावै। जामैं बड़वा अग्नि दाहतैं नीर जलावै॥ पार न पावैं जास थाह नहिं लहिये जाकी। गरजै अतिगंभीर, लहर की गिनति न ताकी॥ सुखसों तिरैं समुद्र को, जे तुम गुन सुमराहिं। लोल कलोलन के शिखर, पार यान ले जाहिं॥44॥
महा जलोदर रोग, भार पीड़ित नर जे हैं। वात पित्त कफ कुष्ट, आदि जो रोग गहै हैं॥ सोचत रहें उदास, नाहिं जीवन की आशा। अति घिनावनी देह, धरैं दुर्गंध निवासा॥ तुम पद-पंकज-धूल को, जो लावैं निज अंग। ते नीरोग शरीर लहि, छिनमें होय अनंग॥45॥
पांव कंठतें जकर बांध, सांकल अति भारी। गाढी बेडी पैर मांहि, जिन जांघ बिदारी॥ भूख प्यास चिंता शरीर दुख जे विललाने। सरन नाहिं जिन कोय भूपके बंदीखाने॥ तुम सुमरत स्वयमेव ही बंधन सब खुल जाहिं। छिनमें ते संपति लहैं, चिंता भय विनसाहिं॥46॥
महामत गजराज और मृगराज दवानल। फणपति रण परचंड नीरनिधि रोग महाबल॥ बंधन ये भय आठ डरपकर मानों नाशै। तुम सुमरत छिनमाहिं अभय थानक परकाशै॥ इस अपार संसार में शरन नाहिं प्रभु कोय। यातैं तुम पदभक्त को भक्ति सहाई होय॥47॥
यह गुनमाल विशाल नाथ तुम गुनन सँवारी। विविधवर्णमय पुहुपगूंथ मैं भक्ति विथारी॥ जे नर पहिरें कंठ भावना मन में भावैं। मानतुंग ते निजाधीन शिवलक्ष्मी पावैं॥ भाषा भक्तामर कियो, हेमराज हित हेत। जे नर पढ़ैं, सुभावसों, ते पावैं शिवखेत॥48॥
*****
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brijpal · 11 months
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#GodMorningSunday
कबीर जी ने कहा है कि:-
क्या मांगें कुछ थिर ना रहाई। देखत नैन चला जग जाई ।। एक लख पूत सवालख नाती। उस रावण कै दीवा न बाती
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vipinjha · 11 months
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बाबूजी !! Babu ji Kavita !! Maithili Kavita Babuji !! Vipin Jha #babuj...
बाबूजी:- पेटक खातिर सदिखन बाहर सरकारक नीतिक शिकारल शहरक कारखाना लेल एकटा मजूर मुदा हमरा घर'क खाम छलैथ बाबूजी टिकुली सिनुर  गहना जेवर बरसाइत तीज मधुश्रावणीक तेवर माए माथाक ताज छलैथ बाबूजी हुनकर कोरा छल इन्द्रासन कखनो दुलार कखनो फटकार सन्ना भात सन छल हुनकर व्यवहार सगर गाम मे नहि छल हुनका सं किनको द्वेष मुसकिक पहिचान छलैथ बाबूजी दीया-बाती छठि पराती दुर्गा-पूजा आकि शिवराति हुनका अबिते हमरा लेल होइ छल सभटा पावनि निसंकोच भ' सभटा गप्प हम कहियैं सँगी आर जिनगीक शान छलैथ बाबूजी :- Vipin Jha
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amaldas1996 · 11 months
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#SpiritualMessageOnDussehra
Sant Rampal Ji Maharaj
🎉 हमारे भीतर का रावण कैसे समाप्त होगा?
जानने के लिए अवश्य पढ़िए पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा।
🎉 आवत संग न जात संगाती, क्या हुआ दर बांधे हाथी।
इक लख पूत सवा लख नाती, उस रावण के आज दीया न बाती ।।
रावण का बहुत बड़ा परिवार था। उसके बावजूद भी वह एक पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब की सतभक्ति के बिना अनमोल मनुष्य जीवन की बाज़ी हार कर चला गया।
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kumarianamee · 1 year
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#DivineTeachingsOf_GodKabir💫 कबीर साहेबले भन्नुभएको छ कि:-
क्या मांगुँ कुछ थिर ना रहाई। देखत नैन चला जग जाई।।
एक लख पूत सवा लख नाती। उस रावण कै दीवा न बाती।।
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santram · 1 year
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#DivineTeachings_Of_GodKabir
कबीर जी ने कहा है कि:-
क्या मांगुँ कुछ थिर ना रहाई। देखत नैन चला जग जाई।।
एक लख पूत सवा लख नाती। उस रावण कै दीवा न बाती।।
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mulchandpatel · 1 year
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#DivineTeachings_Of_GodKabir
कबीर जी ने कहा है कि:-
क्या मांगुँ कुछ थिर ना रहाई। देखत नैन चला जग जाई।।
एक लख पूत सवा लख नाती। उस रावण कै दीवा न बाती।।
#tulsidas
#satsang #guru #writerslife #mahadev
#dailymotivation #positivevibes #kabirdohe #dohe #KabirisGod
#thirdeyevision
#KabirPrakatDiwas
#DivineTeachings_Of_GodKabir
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anju-1 · 1 year
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क्या मांगें कुछ थिर ना रहाई। देखत नैन चला जग जाई ।। #SatlokAshramSojat
एक लख पूत सवालख नाती। उस रावण कै दीवा न बाती ।। #सत_भक्ति_संदेश
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deepjams4 · 2 years
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शुभ दीवाली!
हो मंगलमय दीपावली!
देखा जाए अगर सही मायनों में कभी
दोस्त शुभचिंतक दीये ही तो हैं सभी।
और उनकी दोस्ती है दियों की बाती
आपसी विश्वास के तेल में भीगकर
निःस्वार्थ स्नेह एवं सौहार्द की रौशनी
हमारी ज़िन्दगी में है हर पल फैलाती।
उस प्रकाश में भरी अलौकिक शक्ति
उजाला फैलाकर हर किसी जीवन में
वो चाह उत्साह उमंग उत्सव सा भरती
बाधाएँ पीड़ा कष्ट हो या कोई संकट
हर अमावस्या का अंधकार वो हरती।
मेरे भी जीवन का उद्देश्य हो बस यही
काश सम्भव हो ये चाह मेरे ह्रदय की
मैं भी बन पाऊँ प्रियजनों के जीवन में
दिया जो बने दोस्ती की मिसाल नयी
जो मिटाने में हो सच में सच्चा साथी
दोस्त दिये की रौशनी के नीचे बसती
अंधकार भरी अनिश्चितता व उदासी!
तभी तो बन पायेगी दीपों की माला
मिटाने अमावस के अंधेरों का काला
तभी तो सही अर्थों में उज्ज्वल होगा
हर दिल के आँगन का हरेक किनारा
उसी शुभ दिन ही होगा सही अर्थों में
अर्थपूर्ण दीवाली का नया उजियारा!
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आवत संग न जात संगाती, क्या हुआ दर बांधे हाथी।
इक लख पूत सवा लख नाती, उस रावण के आज दीया न बाती ।।
रावण का बहुत बड़ा परिवार था। उसके बावजूद भी वह एक पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब की सतभक्ति के बिना अनमोल मनुष्य जीवन की बाज़ी हार कर चला गया।
🎉 इन्द्री कर्म ना लगे लगारं, जो भजन करैं निर्धुन्ध रे।
गरीब दास जग कीर्ति होगी, जब लग सुरज चन्द रे।।
समर्थ परमेश्वर की शरण रह��र सत्य साधना करने वाले को काल लोक के कर्म नहीं लगते।
उस साधक को पूर्ण मोक्ष प्राप्ति में कोई शंका नहीं है, न ही कोई हानि होती।
रावण मनुष्य जन्म हार कर चला गया सतभक्ति के बिना। कृपया आ��� अपना कीमती जीवन बर्बाद न करें।
🎉काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार है सबसे भयानक रावण
इनको केवल परमेश्वर कबीर देव जी की सतभक्ति से ही काबू किया जा सकता है।
🎉 आदिराम की सतभक्ति से हमारे अंदर बैठे काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार रूपी रावण का नाश किया जा सकता है।
कौन है आदिराम? देखें साधना चैनल शाम 07:30 बजे
🎉आदिराम की पूजा के बिना पांचों विकार रूपी रावण जीव का जीवन लूट लेते हैं।
कैसे करें साधना उस आदिराम की?
कौन है आदिराम? देखें साधना चैनल शाम 07:30 बजे
🎉 रावण असली सेठ नहीं था
कबीर, सब जग निर्धना धनवंता ना कोए।
धनवंता सो जानियो राम नाम धन होय।।
कबीर परमात्मा कहते हैं कि वास्तविक धनवान वही है जो सतभक्ति करता है।
रावण इतना धनवान होकर भी हारे जुआरी की तरह जन्म हार गया।
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kaminimohan · 14 days
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Free tree speak काव्यस्यात्मा 1444.
वक़्त पर... - कामिनी मोहन।
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आदमी कहीं न कहीं
कुछ न कुछ बोलता है
वह कभी आग कभी ठंडक
कभी फूल बन झड़ता है
शब्द कभी तौलकर
कभी बग़ैर तौले बोलता है
सब मौन हो तो
बग़ैर तेल बाती संग जलता है
वह सुनता नहीं किसी की
बस लगातार बोलता है
जलती आग में सुलग जाए सब
पर दरवाज़े नहीं खोलता है
यहाँ हैं बहुत से आदमी
वक़्त पर कोई नहीं बोलता है।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
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ramkaranjangra · 1 month
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कबीर
क्या मांगु कुछ थिर ना रहाई। देखत नैन चला जग जाई ।।
एक लख पूत सवा लख नाती । उस रावण कै दीवा न बाती ।।
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ranjit19372 · 1 month
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#GoodMorningTuesday
कबीर जी ने कहा है कि:-
क्या मांगुँ कुछ थिर ना रहाई। देखत नैन चला जग जाई।।
एक लख पूत सवा लख नाती। उस रावण कै दीवा न बाती।।
#noidagbnup16
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