शीतला अष्टमी का महत्त्व , होली के बाद क्यों होती है पूजा
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Sheetala Ashtami 2020 : शीतला सप्तमी और अष्टमी त्यौहार के बारे में जानें
Sheetala Ashtami 2020 : शीतला सप्तमी और अष्टमी त्यौहार के बारे में जानें #LiveSach
Sheetala Ashtami 2020 की कथा, व्रत तारिख, समय, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, शुभकामना संदेश – Sheetala Ashtami Ki Shubhkamnaye, Katha, Wishes, Images, Quotes, Shubh Muhurat, Poster in Hindi
भारत के विभिन्न राज्यों में शीतला माता की पूजा की जाती है और शीतला सप्तमी और अष्टमी का व्रत किया जाता है । शीतला अष्टमी का व्रत राजस्थान में मुख्य रुप से किया जाता है । शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि शीतला…
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Sheetala Ashtami Ki Vrat Katha शीतला अष्टमी 2019 व्रत कथा महत्व स्टोरी
Sheetala Ashtami Ki Vrat Katha शीतला अष्टमी 2019 व्रत कथा महत्व स्टोरी
Sheetala Ashtami Ki Vrat Katha : सभी पाठकों को शीतला अष्टमी 2019 पर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं. शीतला माँ हिन्दू धर्म की एक प्राचीन देवी हैं, जिनका बहुत बड़ा महत्व रहा हैं. स्कन्द पुराण में माता शीतला के बारें में विस्तृत विवरण मिलता हैं. इन्हें चेचक की देवी भी कहा जाता हैं. इनका वाहन गधा है तथा ठंडे भोजन का इन्हें भोग लगाया जाता हैं. माताजी का सबसे बड़ा मंदिर तथा मेला चाकसू जयपुरमें भरता हैं.…
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इस दिन है शीतला सप्तमी या अष्टमी, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व
चैतन्य भारत न्यूज
होली के सातवें या आठवें दिन शीतला सप्तमी या शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है और ठंडा भोजन किया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश और गुजरात में मनाया जाता है। उत्तर भारत में शीतला सप्तमी/अष्टमी को बसौड़ा, लसौड़ा या बसियौरा भी कहा जाता है। इस साल शीतला सप्तमी 15 मार्च और शीतला अष्टमी 16 मार्च को पड़ रही है। शीतला सप्तमी/अष्टमी पर सुहागिन महिलाएं शीतला माता की पूजा कर अपने परिवार की सुख शांति की कामना करती हैं।
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शीतला सप्तमी का शुभ मुहूर्त
शीतला सप्तमी 2020 तिथि 15 मार्च
शीतला सप्तमी पूजा मुहूर्त - सुबह 6:31 मिनट से शाम 6:30 मिनट तक
सप्तमी तिथि प्रारम्भ और समाप्त - सुबह 4 :25 मिनट से प्रारम्भ होकर अगले दिन सुबह 03:19 मिनट तक (16 मार्च 2020)
शीतला अष्टमी का शुभ मुहूर्त
शीतला अष्टमी 2020 तिथि 16 मार्च
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त -
अष्टमी तिथि प्रारम्भ और समाप्त - 16 मार्च को सुबह 03:19 बजे से प्रारम्भ होकर 17 मार्च को सुबह 02:59 बजे तक
कैसे की जाती है शीतला सप्तमी/अष्टमी की पूजा
शीतला माता की पूजा सूर्योदय से पहले होती है।
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान किया जाता है।
फिर शीतला माता के मंदिर में जाकर देवी को ठंडा जल अर्पित कर उनकी विधि-विधान से पूजा की जाती है।
देवी को श्रीफल (नारियल) अर्पित करते हैं और एक दिन पूर्व पानी में भिगोई हुई चने की दाल चढ़ाई जाती है।
शीतला माता को ठन्डे भोजन का नैवेद्य लगता है इसलिए भोजन एक दिन पहले ही बनाकर रख लिया जाता है।
मंदिर में शीतला माता की पूजा कर उनकी कथा सुनने के बाद घर आकर मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों ओर हल्दी से हाथ के पांच पांच छापे लगाए जाते हैं।
शीतला माता को जो जल अर्पित किया जाता है उसमें से थोड़ा-सा बचाकर उसे पूरे घर में छींट देते हैं। ऐसा करने से देवी की कृपा हमेशा बनी रहती है।
शीतला ��प्तमी/अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। इस दिन लोग खाने में भी एक दिन पूर्व बना हुआ ठंडा भोजन करते हैं।
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शुक्रवार की शाम इस तरह करें माता लक्ष्मी की पूजा, दूर होगी धन से जुड़ी समस्या
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आज है कालाष्टमी, काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए इस विधि से करें पूजा, सब कष्ट होंगे दूर
चैतन्य भारत न्यूज
हिंदू धर्म में कालाष्टमी का काफी महत्व है। हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी मनाई जाती है। इस दिन कालभैरव की पूजा की जाती है। कालभैरव के भक्त साल की सभी कालाष्टमी के दिन उनकी पूजा और उनके लिए उपवास करते हैं। इस बार कालाष्टमी 16 मार्च को मनाई जाएगी। आइए जानते हैं कालाष्टमी का महत्व और पूजा-विधि।
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कालाष्टमी का महत्व
कालभैरव को भगवान शिव का पांचवा अवतार माना गया है। मान्यता है कि, इस दिन जो भी भक्त कालभैरव की पूजा करता है वो नकारात्मक शक्तियों से दूर रहता है। इसे कालाष्टमी, भैरवाष्टमी आदि नामों से जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की कथा और भजन करने से भी घर में सुख और समृद्धि आती हैं। माना जाता है कि, इस व्रत को करने से व्यक्ति के रोग दूर होने लगते हैं और उसे हर काम में सफलता भी प्राप्त होती है।
कालाष्टमी की पूजा-विधि
कालाष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद व्रत का सकंल्प लें।
इसके बाद शिव जी के स्वरूप कालभैरव की पूजा करें।
भैरव के मंदिर में जाकर अबीर, गुलाल, चावल, फूल और सिंदूर चढ़ाएं।
भगवान काल भैरव का वाहन कुत्ता माना गया है, इसलिए कालाष्टमी के दिन उसे खाना जरूर खिलाना चाहिए।
कालाष्टमी मंत्र
अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!
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हिंदू धर्म में कालाष्टमी का काफी महत्व है। हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी मनाई जाती है। इस दिन कालभैरव की पूजा की जाती है। कालभैरव के भक्त साल की सभी कालाष्टमी के दिन उनकी पूजा और उनके लिए उपवास करते हैं। इस बार कालाष्टमी 16 मार्च को मनाई जाएगी। आइए जानते हैं कालाष्टमी का महत्व और पूजा-विधि।
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कालाष्टमी का महत्व
कालभैरव को भगवान शिव का पांचवा अवतार माना गया है। मान्यता है कि, इस दिन जो भी भक्त कालभैरव की पूजा करता है वो नकारात्मक शक्तियों से दूर रहता है। इसे कालाष्टमी, भैरवाष्टमी आदि नामों से जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की कथा और भजन करने से भी घर में सुख और समृद्धि आती हैं। माना जाता है कि, इस व्रत को करने से व्यक्ति के रोग दूर होने लगते हैं और उसे हर काम में सफलता भी प्राप्त होती है।
कालाष्टमी की पूजा-विधि
कालाष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद व्रत का सकंल्प लें।
इसके बाद शिव जी के स्वरूप कालभैरव की पूजा करें।
भैरव के मंदिर में जाकर अबीर, गुलाल, चावल, फूल और सिंदूर चढ़ाएं।
भगवान काल भैरव का वाहन कुत्ता माना गया है, इसलिए कालाष्टमी के दिन उसे खाना जरूर खिलाना चाहिए।
कालाष्टमी मंत्र
अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!
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होली के सातवें या आठवें दिन शीतला सप्तमी या शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है और ठंडा भोजन किया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश और गुजरात में मनाया जाता है। उत्तर भारत में शीतला सप्तमी/अष्टमी को बसौड़ा, लसौड़ा या बसियौरा भी कहा जाता है। इस साल शीतला सप्तमी 15 मार्च और शीतला अष्टमी 16 मार्च को पड़ रही है। शीतला सप्तमी/अष्टमी पर सुहागिन महिलाएं शीतला माता की पूजा कर अपने परिवार की सुख शांति क�� कामना करती हैं।
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शीतला सप्तमी का शुभ मुहूर्त
शीतला सप्तमी 2020 तिथि 15 मार्च
शीतला सप्तमी पूजा मुहूर्त - सुबह 6:31 मिनट से शाम 6:30 मिनट तक
सप्तमी तिथि प्रारम्भ और समाप्त - सुबह 4 :25 मिनट से प्रारम्भ होकर अगले दिन सुबह 03:19 मिनट तक (16 मार्च 2020)
शीतला अष्टमी का शुभ मुहूर्त
शीतला अष्टमी 2020 तिथि 16 मार्च
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त -
अष्टमी तिथि प्रारम्भ और समाप्त - 16 मार्च को सुबह 03:19 बजे से प्रारम्भ होकर 17 मार्च को सुबह 02:59 बजे तक
कैसे की जाती है शीतला सप्तमी/अष्टमी की पूजा
शीतला माता की पूजा सूर्योदय से पहले होती है।
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान किया जाता है।
फिर शीतला माता के मंदिर में जाकर देवी को ठंडा जल अर्पित कर उनकी विधि-विधान से पूजा की जाती है।
देवी को श्रीफल (नारियल) अर्पित करते हैं और एक दिन पूर्व पानी में भिगोई हुई चने की दाल चढ़ाई जाती है।
शीतला माता क�� ठन्डे भोजन का नैवेद्य लगता है इसलिए भोजन एक दिन पहले ही बनाकर रख लिया जाता है।
मंदिर में शीतला माता की पूजा कर उनकी कथा सुनने के बाद घर आकर मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों ओर हल्दी से हाथ के पांच पांच छापे लगाए जाते हैं।
शीतला माता को जो जल अर्पित किया जाता है उसमें से थोड़ा-सा बचाकर उसे पूरे घर में छींट देते हैं। ऐसा करने से देवी की कृपा हमेशा बनी रहती है।
शीतला सप्तमी/अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। इस दिन लोग खाने में भी एक दिन पूर्व बना हुआ ठंडा भोजन करते हैं।
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पाना चाहते हैं माता लक्ष्मी की कृपा, तो शुक्रवार को इस विधि से करें पूजा-अर्चना
सुख, शांति और समृद्धि के लिए शुक्रवार को ऐसे करें मां संतोषी की पूजा
शुक्रवार की शाम इस तरह करें माता लक्ष्मी की पूजा, दूर होगी धन से जुड़ी समस्या
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इस दिन है शीतला सप्तमी या अष्टमी, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व
चैतन्य भारत न्यूज
होली के सातवें या आठवें दिन शीतला सप्तमी या शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है और ठंड�� भोजन किया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश और गुजरात में मनाया जाता है। उत्तर भारत में शीतला सप्तमी/अष्टमी को बसौड़ा, लसौड़ा या बसियौरा भी कहा जाता है। इस साल शीतला सप्तमी 15 मार्च और शीतला अष्टमी 16 मार्च को पड़ रही है। शीतला सप्तमी/अष्टमी पर सुहागिन महिलाएं शीतला माता की पूजा कर अपने परिवार की सुख शांति की कामना करती हैं।
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शीतला सप्तमी का शुभ मुहूर्त
शीतला सप्तमी 2020 तिथि 15 मार्च
शीतला सप्तमी पूजा मुहूर्त - सुबह 6:31 मिनट से शाम 6:30 मिनट तक
सप्तमी तिथि प्रारम्भ और समाप्त - सुबह 4 :25 मिनट से प्रारम्भ होकर अगले दिन सुबह 03:19 मिनट तक (16 मार्च 2020)
शीतला अष्टमी का शुभ मुहूर्त
शीतला अष्टमी 2020 तिथि 16 मार्च
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त -
अष्टमी तिथि प्रारम्भ और समाप्त - 16 मार्च को सुबह 03:19 बजे से प्रारम्भ होकर 17 मार्च को सुबह 02:59 बजे तक
कैसे की जाती है शीतला सप्तमी/अष्टमी की पूजा
शीतला माता की पूजा सूर्योदय से पहले होती है।
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान किया जाता है।
फिर शीतला माता के मंदिर में जाकर देवी को ठंडा जल अर्पित कर उनकी विधि-विधान से पूजा की जाती है।
देवी को श्रीफल (नारियल) अर्पित करते हैं और एक दिन पूर्व पानी में भिगोई हुई चने की दाल चढ़ाई जाती है।
शीतला माता को ठन्डे भोजन का नैवेद्य लगता है इसलिए भोजन एक दिन पहले ही बनाकर रख लिया जाता है।
मंदिर में शीतला माता की पूजा कर उनकी कथा सुनने के बाद घर आकर मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों ओर हल्दी से हाथ के पांच पांच छापे लगाए जाते हैं।
शीतला माता को जो जल अर्पित किया जाता है उसमें से थोड़ा-सा बचाकर उसे पूरे घर में छींट देते हैं। ऐसा करने से देवी की कृपा हमेशा बनी रहती है।
शीतला सप्तमी/अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। इस दिन लोग खाने में भी एक दिन पूर्व बना हुआ ठंडा भोजन करते हैं।
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होली-चैत्र नवरात्रि समेत मार्च में मनाएंगे जाएंगे ये बड़े तीज- त्योहार, यहां देखें पूरी लिस्ट
पाना चाहते हैं माता लक्ष्मी की कृपा, तो शुक्रवार को इस विधि से करें पूजा-अर्चना
सुख, शांति और समृद्धि के लिए शुक्रवार को ऐसे करें मां संतोषी की पूजा
शुक्रवार की शाम इस तरह करें माता लक्ष्मी की पूजा, दूर होगी धन से जुड़ी समस्या
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भीष्म द्वादशी व्रत से मिलता है सौभाग्य, इस विधि से करें भगवान विष्णु की पूजा
चैतन्य भारत न्यूज
हिंदू धर्म में माघ मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि का काफी महत्व है। इस तिथि को भीष्म द्वादशी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि भीष्म तिथि का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा सुख व समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस बार भीष्म द्वादशी 6 फरवरी को पड़ रही है। आइए जानते हैं भीष्म द्वादशी का महत्व और पूजन-विधि।
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भीष्म द्वादशी का महत्व
शास्त्रों के मुताबिक, इस दिन व्रत करने से उत्तम संतान की प्राप्ति होती है और यदि संतान है तो उसकी प्रगति होती है। इसके साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण होकर सुख-समृद्धि मिलती है। भीष्म द्वादशी को गोविंद द्वादशी भी कहते हैं। यह व्रत सब प्रकार का सुख वैभव देने वाला होता है। इस दिन उपवास करने से समस्त पापों का नाश होता है। इस दिन भीष्��� पितामह के साथ भगवान विष्णु की पूजा करें।
भीष्म द्वादशी पूजन-विधि
भीष्म द्वादशी के दिन सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
भीष्म द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी की भी पूजा करें।
पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुंकुम, दूर्वा का उपयोग करें।
इसके बाद भीष्म द्वादशी की कथा सुनें। देवी लक्ष्मी समेत अन्य देवों की स्तुति करें तथा पूजा समाप्त होने पर चरणामृत एवं प्रसाद का वितरण करें।
आज के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं व दक्षिणा दें।
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