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#हिंदू धर्म में समलैंगिकता
allgyan · 4 years
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समलैंगिकता और यौन आकर्षण -
आज के दौर में या कहे इन दिनों जो सबसे चर्चित शब्द 'समलैंगिकता या गे' रहा है कई देशों पिछले कई सालो में इस पर कई कानून भी बनाये गये| लेकिन सामन्य जनमानस में इसको लेकर कई भ्रांतिया है जिसके बारे में हम आज चर्चा करेंगे | और जितना भी हम इस बारे में जानते है उन भ्रांतियों को तोडने की कोशिश करेंगे |'समलैंगिकता' जो शब्द इससे ही आप इसके अर्थ को समझने की कोशिश तो जरूर कर सकते है |सामान लिंग के समूह या लोग समलैंगिकता का अर्थ किसी व्यक्ति का समान लिंग के लोगों के प्रति यौन और रोमांसपूर्वक रूप से आकर्षित होना है।
लेस्बियन और बाईसेक्सुअल और एलजीबीटी क्या है -
पुरुष अगर पुरुष के प्रति के आकर्षित होगा तो उसे 'पुरुष समलिंगी' कहते है |और अगर महिला -महिला की ओर आकर्षित होगी |उसे 'लेस्बियन ' कहते है | गे शब्द दोनों के लिए प्रयोग होता है |जो लोग महिला और पुरषों दोनों के प्रति आकर्षित होते है उन्हें 'उभयलिंगी ' कहते है |इंग्लिश में इन्हे 'बाईसेक्सुअल' भी कहा जाता है | ये सभी एलजीबीटी समुदाय के अंतर्गत आते है |इसके विपरीत, एक व्यक्ति बिना समलैंगिक यौन सम्बन्ध बनाए भी 'गे' हो सकता है। ऐसे व्यक्तियों के पास समलैंगिक के रूप में सामाजिक रूप से पहचान करना, शादी न करना, या पहले समलैंगिक अनुभव का अनुमान लगाने जैसे संभावित विकल्प हैं। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो उसी लिंग की तरफ़ आकर्षित होते हैं जिसके वे ख़ुद हैं, लेकिन न तो वे यौन गतिविधि में संलग्न होते हैं और न ही समलैंगिक के रूप में स्वयं की पहचान करते हैं। ऐसे लोगों के लिए अलैंगिक (asexual) शब्द लागू हो सकता है|
समलैंगिकता और धर्म-
समलैंगिकता  को कई लोग हेय दृष्टि से देखते है लेकिन ये प्रमाण मिले है की की मानव सभ्यता से ही ये अस्तित्व में रहा है |और तो और वातायन द्वारा लिखा गया -'कामसूत्र ' में इसपे पूरा का पूरा चैप्टर है |कामसूत्र महर्षि वात्स्यायन द्वारा रचित भारत का एक प्राचीन कामशास्त्र ग्रंथ है।यह विश्व की प्रथम यौन संहिता है जिसमें यौन प्रेम के मनोशारीरिक सिद्धान्तों तथा प्रयोग की विस्तृत व्याख्या एवं विवेचना की गई है।ये संस्कृत में लिखी गयी है और बाद में इसे 1883  अंग्रेजी में प्रकाशित किया गया |जैसा देखते है भारत के कई पुराणों में इनका उल्लेख मिलता है |
भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप, विष्णु का मोहिनी रूप, अर्जुन का बृहन्नला रूप, शिखंडी का लिंग परिवर्तन सभी से पूरा हिंदू धर्म वाकिफ है और इन्हें पूजनीय भी मानता है। हिंदू धर्म में इन सभी को भगवान की उपाधि दी गई है। भगवान के इन रूपों को भी सही मानते हुए पुराणों में जगह दी गई है।खजुराहो के मंदिर की दीवारों पर बनी कलाकृति भी इस बात की गवाह है कि उस समय भी समलैंगिक संबंध गलत नहीं माने जाते थे। केवल यहूदी, ईसाई धर्म और इस्लाम में इसे वर्जित करार दिया गया है। हालांकि पोप का कहना है कि समलैंगिक लोग भी उसी ईश्वर की संतान हैं जिसकी संतान हम हैं। हमें उन लोगों के प्रति भेदभाव नहीं करना चाहिए।
लेकिन इन सभी पुष्टियों और तर्कों के बाद भी सवाल अभी भी यही है कि क्यों और किस धर्म के नाम पर समलैंगिक संबंधों को गलत या पाप बताया जा रहा है किसी की अपने साथी चुनने की आजादी पर क्यों धर्म का ठप्पा लगाकर उसे रोकने की कोशिश की जा रही होती है |
क्या यौन वरीयता मनुष्य का अपना व्यक्तिगत मामला?
यौन वरीयता मनुष्य का अपना व्यक्तिगत मामला हो सकता है, लेकिन एक इसी आधार पर उसे पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं छोड़ा जा सकता| इसके समर्थन से जुड़े लोगों का यह तर्क हैं कि व्यक्ति का आकर्षण किस ओर होगा यह उसकी मां के गर्भ में ही निर्धारित हो जाता हैंऔर अगर वह समलिंगी संबंधों की ओर आकृष्ट होते हैं तो यह पूर्ण रूप से स्वाभाविक व्यवहार माना जाना चाहिए लेकिन यहां इस बात की ओर ध्यान देना जरूरी है कि जब प्रकृति ने ही महिला और पुरुष दोनो को एक दूसरे के पूरक के रूप में पेश किया हैं. तो ऐसे हालातों में पुरुष द्वारा पुरुष की ओर आकर्षित होने के सिद्धांत को मान्यता देना कहा तक स्वाभाविक माना जा सकता हैं|इस तरह के भी तर्क दिए जाते रहे है |
समलैंगिकता पर संघर्ष और कानून को मान्यता -
समलैंगिकता के खिलाफ अंग्रेजों ने धारा 377 को 1860 में लागू किया था। 158 साल पुराने इस कानून के द्वारा समलैंगिकता को गैरकानूनी बताया गया है।अविभाजित भारत में वर्ष 1925 में खानू बनाम सम्राट का समलैंगिकता से जुड़ा पहला मामला था। उस मामले में यह फैसला दिया गया कि यौन संबंधों का मूल मकसद संतानोत्पत्ति है लेकिन अप्राकृतिक यौन संबंध में यह संभव नहीं है।
पहला शाही 'गे' होने की किसने की घोषणा -
2005 में गुजरात के राजपिपला के राजकुमार मानवेंद्र सिंह ने पहला शाही ‘गे’ होने की घोषणा की।बॉलीवुड भी इस विषय पर मुखर हुआ और ऐसे विषय पर फिल्मे बनी |हनीमून ट्रेवल प्रा लिमिटेड और दोस्ताना जैसी मूवी भी आयी |धीरे -धीरे तकनिकी का भी इसको साथ मिला |इंटरनेट पर गे डेटिंग वेबसाइटों की भरमार। गे कम्युनिटी और इन पर ब्लॉग्स से अटी पड़ी है साइटें एलजीबीटी अधिकार संयुक्त राष्ट्र के 94 सदस्य देश इनके समान अधिकारों का समर्थन करते हैं।फिर वो भी दिन आ गया जिसने भारत में 2017 अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में लैंगिक झुकाव को निजता के अधिकार से जोड़कर देखा।समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया है और इसके अनुसार आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अब अपराध नहीं माना जाएगा|
समलैंगिकता मुस्लिम देशों और कहा वैध है -
कई  देशों पहले से ही अपने यहाँ इसे वैध किया है | जैसे लेबनान, कजाखिस्तान, माली, तुर्की, इंडोनेशिया, बहरीन, अल्बेनिया, अजरबैजान, नाइजर इन देशों में है मृत्युदंड सुडान, यमन, सऊदी अरब, ईरान, सोमालिया, नाइजीरिया, कतर, अफगानिस्तान, यूएई, मॉरीतानिया दुनिया के इन देशों ने इस साल किया वैध अर्जेंटीना (2010), ग्रीनलैंड(2015), दक्षिण अफ्रीका (2006), ऑस्ट्रेलिया (2017),आइसलैंड (2010), स्पेन (2005), बेल्जियम (2003), आयरलैंड (2015), अमेरिका (2015), ब्राजील (2013), स्वीडन (2009), कनाडा (2005),जर्मनी (2017), फ्रांस (2013), इंग्लैंड (2013)।हमारा मकसद ये रहता है की आपको सभी चीजें को जोड़कर एक जगह प्रस्तुत किया जाये |
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karanaram · 3 years
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हिन्दू युवा तेजी से नास्तिक व धर्मविमुख क्यों हो रहे हैं? 14 मार्च 2022
🚩हमारे देश के हिन्दू युवा बड़ी तेजी से नास्तिक क्यों बनते जा रहे हैं ? इसका मुख्य कारण क्या है ? उनकी हिन्दू धर्म की प्रगति में क्यों कोई विशेष रूचि नहीं दिखती ?
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🚩यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है । भारत के महानगरों से लेकर छोटे गांवों तक यह समस्या दिख रही है। इस प्रश्न के उत्तर में हिन्दू समाज का हित छिपा है। अगर इसका समाधान किया जाये तो भारत भूमि को संसार का आध्यात्मिक गुरु बनने से दोबारा कोई नहीं रोक सकता।
🚩वैसे तो हिन्दू युवाओं के नास्तिक बनने व धर्मविमुख बनने के अनेक कारण है पर मुख्य पांच कारण है जो आपको बता रहे हैं-
🚩1. हिन्दू धर्म गुरुओं के प्रति आस्था का अभाव और उनकी उपेक्षा
हिन्दू समाज के युवा पाश्चात्य संस्कृति के आकर्षण के कारण अपने ही हिन्दू धर्म गुरुओं के प्रति आस्था नहीं रख पाते हैं और उनकी उपेक्षा कर देते हैं इसके कारण युवाओं में ईसाई धर्मान्तरण, लव जिहाद, नशा, भोगवाद, चरित्रहीनता, नास्तिकता, अपने धर्मग्रंथों के प्रति अरुचि आदि समस्याएं दिख रही हैं। इन समस्याओं के निवारण पर कई हिंदू धर्मगुरु ध्यान भी द���ते हैं। पर युवा उनकी तरफ ध्यान नही देते हैं । कुछ धर्मगुरुओं की तो हिंदू धर्म के बचाव के लिए कोई योजना बनी हुई नहीं होती जो दिशा निर्देश कर सके लेकिन कोई धर्मगुरु दिशा निर्देश करते है तो उनको षड़यंत्र तहत जेल भेजा जाता है जैसे कि शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, हिंदू संत आसाराम बापू, स्वामी असीमानंद आदि…।
🚩2. दूसरा कारण मीडिया में हिन्दू धर्मगुरुओं को नकारात्मक रूप से प्रदर्शित करना है-
मीडिया की भूमिका भी इस समस्या को बढ़ाने में बहुत हद तक जिम्मेदार है। संत आशाराम बापू, शंकराचार्यजी को जेल भेजना, नित्यानंदजी की अश्लील सीडी, निर्मल बाबा और राधे माँ जैसे धर्मगुरुओं को मीडिया प्राइम टाइम, ब्रेकिंग न्यूज़, पैनल डिबेट आदि में घंटों, बार-बार, अनेक दिनों तक दिखाता है। जबकि मुस्लिम मौलवियों और ईसाई पादरियों के मदरसे में यौन शोषण, बलात्कार, मुस्लिम कब्रों पर अन्धविश्वास, चर्च में समलैंगिकता एवं ननों का शोषण, प्रार्थना से चंगाई आदि अन्धविश्वास आदि पर कभी कोई चर्चा नहीं दिखाता। इसके ठीक विपरीत मीडिया वाले ईसाई पादरियों को शांत, समझदार, शिक्षित, बुद्धिजीवी के रूप में प्रदर्शित करते हैं। मुस्लिम मौलवियों को शांति का दूत और मानवता का पैगाम देने वाले के रूप में मीडिया में दिखाया जाता है। मीडिया के इस दोहरे मापदंड के कारण हिन्दू युवाओं में हिन्दू धर्म और धर्मगुरुओं के प्रति एक अरुचि की भावना बढ़ने लगती हैं।
🚩ईसाई और मुस्लिम धर्म के प्रति उनके मन में श्रद्धाभाव पनपने लगता हैं। इसका दूरगामी परिणाम अत्यंत चिंताजनक है। हिन्दू युवा आज गौरक्षा, संस्कृत, वेद, धर्मान्तरण जैसे विषयों पर सकल हिन्दू समाज के साथ खड़े नहीं दीखते। क्योंकि उनकी सोच विकृत हो चुकी है। वे केवल नाममात्र के हिन्दू बचे हैं। हिन्दू समाज जब भी विधर्मियों के विरोध में कोई कदम उठाता है तो हिन्दू परिवारों के युवा हिंदुओं का साथ देने के स्थान पर विधर्मियों के साथ अधिक खड़े दिखाई देते हैं। हम उन्हें साम्यवादी, नास्तिक, भोगवादी, cool dude कहकर अपना पिंड छुड़ा लेते है। मगर यह बहुत विकराल समस्या है जो तेजी से बढ़ रही है। इस समस्या को खाद देने का कार्य निश्चित रूप से मीडिया ने किया है।
🚩3. हिन्दू विरोधी ताकतों द्वारा प्रचंड प्रचार है-
भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश होगा जहाँ पर इस देश के बहुसंख्यक हिंदुओं से अधिक अधिकार अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमानों और ईसाईयों को मिले हुए हैं। इसका मुख्य कारण जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद आदि के नाम पर आपस में लड़ना है। इस आपसी मतभेद का फायदा अन्य लोग उठाते है। एक मुश्त वोट डाल कर पहले सत्ता को अपना पक्षधर बनाया गया। फिर अपन�� हित में सरकारी नियम बनाये गए। इस सुनियोजित सोच का परिणाम यह निकला कि सरकारी तंत्र से लेकर अन्य क्षेत्रों में विधर्मियों को मनाने , उनकी उचित-अनुचित मांगों को मानने की एक प्रकार से होड़ ही लग गई। परिणाम की हिंदुओं के देश में हिंदुओंके अराध्य, परंपरा, मान्यताओं पर तो कोई भी टिका-टिप्पणी आसानी से कर सकता है। जबकि अन्य विधर्मियों पर कोई टिप्पणी कर दे तो उसे सजा देने के लिए सभी संगठित हो जाते है। इस संगठित शक्ति, विदेशी पैसे के बल पर हिंदुओं के प्रति नकारात्मक माहौल देश में बनाया जा रहा है। ईसाई धर्मान्तरण सही और शुद्धि/घर वापसी को गलत बताया जा रहा है। मांसाहार को सही और गौरक्षा को गलत बताया जा रहा है। बाइबिल/क़ुरान को सही और वेद-गीता को पुरानी सोच बताया जा रहा है। विदेशी आक्रांता गौरी-गजनी को महान और आर्यों को विदेशी बताया जा रहा है। इस षड़यंत्र का मुख्य उद्देश्य हिन्दू युवाओं को भ्रमित करना और नास्तिक बनाना है। इससे हिन्दू युवाओं अपने प्राचीन इतिहास पर गर्व करने के स्थान पर शर्म करने लगे। ऐसा उन्हें प्रतीत करवाया जाता है। हिन्दू समाज के विरुद्ध इस प्रचंड प्रचार के प्रतिकार में हिंदुओं के पास न कोई योजना है और न कोई नीति है।
🚩4. हिंदुओं में संगठन का अभाव-
हिन्दू समाज में संगठन का अभाव होना एक बड़ी समस्या है। इसका मुख्य कारण एक धार्मिक ग्रन्थ वेद, एक भाषा हिंदी, एक संस्कृति वैदिक संस्कृति और एक अराध्य ईश्वर में विश्वास न होना है। जब तक हिन्दू समाज इन विषयों पर एक नहीं होगा तब तक एकता स्थापित नहीं हो सकती। यही संगठन के अभाव का मूल कारण है। स्वामी दयानंद ने अपने अनुभव से भारत का भ्रमण कर हिंदुओं की धार्मिक अवनति की समस्या के मूल बीमारी की पहचान की और उस बीमारी की चिकित्सा भी बताई। मगर हिन्दू समाज उनकी बात को अपनाने के स्थान पर एक नासमझ बालक के समान उन्हीं का विरोध करने लग गया। इसका परिणाम अत्यंत वीभित्स निकला। मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि जिन हिंदुओं के पूर्वजों ने मुस्लिम आक्रांताओं को लड़ते हुए युद्ध में यमलोक पहुँचा दिया था उन्हीं वीर पूर्वजों की मूर्ख संतान आज अपनी कायरता का प्रदर्शन उन्हीं मुसलमानों की कब्रों पर सर पटक कर करती हैं। राम और कृष्ण की नामलेवा संतान आज उन्हें छोड़कर कब्रों पर सर पटकती है। चमत्कार की कुछ काल्पनिक कहानियाँऔर मीडिया मार्केटिंग के अतिरिक्त कब्रो में कुछ नहीं दिखता । मगर हिन्दू है कि मूर्खों के समान भेड़ के पीछे भेड़ के रूप में उसके पीछे चले जाते हैं। जो विचारशील हिन्दू है वो इस मूर्खता को देखकर नास्तिक हो जाते हैं। जो अन्धविश्वासी हिन्दू है वो भीड़ में शामिल होकर भेड़ बन जाते हैं। मगर हिंदुओं को संगठित करने और हिन्दू समाज के समक्ष विकराल हो रही समस्यों को सुलझाने में उनकी कोई रूचि नहीं है। अगर हिन्दू समाज संगठित होता तो हिन्दू युवाओं को ऐसी मूर्खता करने से रोकता। मगर संगठन के अभाव में समस्या ऐसे की ऐसी बनी रही।
🚩5. हिन्दुओं में अपने ही धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने के प्रति बेरुखी-
हिन्दू समाज के युवाओं को वेद आदि धर्म शास्त्रों का ज्ञान तो बहुत दूर की बात है । वाल्मीकि रामायण और महाभारत तक का स्वाध्याय उसे नहीं हैं। धर्म क्या है? धर्म के लक्षण क्या है? वेदों का पढ़ना क्यों आवश्यक है? वैदिक धर्म क्यों सर्वश्रेष्ठ है? हमारा प्राचीन महान इतिहास क्या था? हम विश्वगुरु क्यों थे? इस्लामिक आक्रांताओं और ईसाई मिशनरियों ने हमारे देश, हमारी संस्कृति, हमारी विरासत को कैसे बर्बाद किया। हमारे हिन्दू युवा कुछ नहीं जानते। न ही उनकी यह जानने में रूचि हैं। अगर वह पढ़ते भी है तो अंग्रेजी विदेशी लेखकों के मिथक उपन्यास (Fiction Novel) जिनमें केवल मात्र भ्रामक जानकारी के कुछ नहीं होता। स्वाध्याय के प्रति इस बेरुखी को दूर करने के लिए एक मुहीम चलनी चाहिए। ताकि धर्मशास्त्रों का स्वाध्याय करने की प्रवृति बढ़े। हर हिन्दू मंदिर, मठ आदि में छुट्टियों में 1 से 2 घंटों का स्वाध्याय शिविर अवश्य लगना चाहिए। ताकि हिन्दू युवाओं को स्वाध्याय के लिए प्रेरित किया जा सके।
🚩आज का हिन्दू युवा बॉलीवुड, चलचित्रों, इंटरनेट आदि द्वारा तेजी से धर्मविमुख हो रहा है इसके लिए माता-पिता को बचपन से ही धर्म की शिक्षा देनी चाहिए और कॉन्वेंट जैसे स्कूलों में नही पढ़ाकर गुरूकुलों में या किसी ऐसे स्कूल में पढ़ाई के लिए भेजना चाहिए जहां धर्म का ज्ञान मिलता हो, नही तो बच्चों में संस्कार नही होंगे तो न आपकी सेवा कर पाएंगे और नही समाज और देश के लिए कुछ कर पाएंगे। अतः अपने बच्चों एवं आसपास बच्चों को अच्छे संस्कार जरूर दे।
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allgyan · 4 years
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समलैंगिकता और यौन आकर्षण -
आज के दौर में या कहे इन दिनों जो सबसे चर्चित शब्द 'समलैंगिकता या गे' रहा है कई देशों पिछले कई सालो में इस पर कई कानून भी बनाये गये| लेकिन सामन्य जनमानस में इसको लेकर कई भ्रांतिया है जिसके बारे में हम आज चर्चा करेंगे | और जितना भी हम इस बारे में जानते है उन भ्रांतियों को तोडने की कोशिश करेंगे |'समलैंगिकता' जो शब्द इससे ही आप इसके अर्थ को समझने की कोशिश तो जरूर कर सकते है |सामान लिंग के समूह या लोग समलैंगिकता का अर्थ किसी व्यक्ति का समान लिंग के लोगों के प्रति यौन और रोमांसपूर्वक रूप से आकर्षित होना है।
लेस्बियन और बाईसेक्सुअल और एलजीबीटी क्या है -
पुरुष अगर पुरुष के प्रति के आकर्षित होगा तो उसे 'पुरुष समलिंगी' कहते है |और अगर महिला -महिला की ओर आकर्षित होगी |उसे 'लेस्बियन ' कहते है | गे शब्द दोनों के लिए प्रयोग होता है |जो लोग महिला और पुरषों दोनों के प्रति आकर्षित होते है उन्हें 'उभयलिंगी ' कहते है |इंग्लिश में इन्हे 'बाईसेक्सुअल' भी कहा जाता है | ये सभी एलजीबीटी समुदाय के अंतर्गत आते है |इसके विपरीत, एक व्यक्ति बिना समलैंगिक यौन सम्बन्ध बनाए भी 'गे' हो सकता है। ऐसे व्यक्तियों के पास समलैंगिक के रूप में सामाजिक रूप से पहचान करना, शादी न करना, या पहले समलैंगिक अनुभव का अनुमान लगाने जैसे संभावित विकल्प हैं। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो उसी लिंग की तरफ़ आकर्षित होते हैं जिसके वे ख़ुद हैं, लेकिन न तो वे यौन गतिविधि में संलग्न होते हैं और न ही समलैंगिक के रूप में स्वयं की पहचान करते हैं। ऐसे लोगों के लिए अलैंगिक (asexual) शब्द लागू हो सकता है|
समलैंगिकता और धर्म-
समलैंगिकता  को कई लोग हेय दृष्टि से देखते है लेकिन ये प्रमाण मिले है की की मानव सभ्यता से ही ये अस्तित्व में रहा है |और तो और वातायन द्वारा लिखा गया -'कामसूत्र ' में इसपे पूरा का पूरा चैप्टर है |कामसूत्र महर्षि वात्स्यायन द्वारा रचित भारत का एक प्राचीन कामशास्त्र ग्रंथ है।यह विश्व की प्रथम यौन संहिता है जिसमें यौन प्रेम के मनोशारीरिक सिद्धान्तों तथा प्रयोग की विस्तृत व्याख्या एवं विवेचना की गई है।ये संस्कृत में लिखी गयी है और बाद में इसे 1883  अंग्रेजी में प्रकाशित किया गया |जैसा देखते है भारत के कई पुराणों में इनका उल्लेख मिलता है |
भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप, विष्णु का मोहिनी रूप, अर्जुन का बृहन्नला रूप, शिखंडी का लिंग परिवर्तन सभी से पूरा हिंदू धर्म वाकिफ है और इन्हें पूजनीय भी मानता है। हिंदू धर्म में इन सभी को भगवान की उपाधि दी गई है। भगवान के इन रूपों को भी सही मानते हुए पुराणों में जगह दी गई है।खजुराहो के मंदिर की दीवारों पर बनी कलाकृति भी इस बात की गवाह है कि उस समय भी समलैंगिक संबंध गलत नहीं माने जाते थे। केवल यहूदी, ईसाई धर्म और इस्लाम में इसे वर्जित करार दिया गया है। हालांकि पोप का कहना है कि समलैंगिक लोग भी उसी ईश्वर की संतान हैं जिसकी संतान हम हैं। हमें उन लोगों के प्रति भेदभाव नहीं करना चाहिए।
लेकिन इन सभी पुष्टियों और तर्कों के बाद भी सवाल अभी भी यही है कि क्यों और किस धर्म के नाम पर समलैंगिक संबंधों को गलत या पाप बताया जा रहा है किसी की अपने साथी चुनने की आजादी पर क्यों धर्म का ठप्पा लगाकर उसे रोकने की कोशिश की जा रही होती है |
क्या यौन वरीयता मनुष्य का अपना व्यक्तिगत मामला?
यौन वरीयता मनुष्य का अपना व्यक्तिगत मामला हो सकता है, लेकिन एक इसी आधार पर उसे पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं छोड़ा जा सकता| इसके समर्थन से जुड़े लोगों का यह तर्क हैं कि व्यक्ति का आकर्षण किस ओर होगा यह उसकी मां के गर्भ में ही निर्धारित हो जाता हैंऔर अगर वह समलिंगी संबंधों की ओर आकृष्ट होते हैं तो यह पूर्ण रूप से स्वाभाविक व्यवहार माना जाना चाहिए लेकिन यहां इस बात की ओर ध्यान देना जरूरी है कि जब प्रकृति ने ही महिला और पुरुष दोनो को एक दूसरे के पूरक के रूप में पेश किया हैं. तो ऐसे हालातों में पुरुष द्वारा पुरुष की ओर आकर्षित होने के सिद्धांत को मान्यता देना कहा तक स्वाभाविक माना जा सकता हैं|इस तरह के भी तर्क दिए जाते रहे है |
समलैंगिकता पर संघर्ष और कानून को मान्यता -
समलैंगिकता के खिलाफ अंग्रेजों ने धारा 377 को 1860 में लागू किया था। 158 साल पुराने इस कानून के द्वारा समलैंगिकता को गैरकानूनी बताया गया है।अविभाजित भारत में वर्ष 1925 में खानू बनाम सम्राट का समलैंगिकता से जुड़ा पहला मामला था। उस मामले में यह फैसला दिया गया कि यौन संबंधों का मूल मकसद संतानोत्पत्ति है लेकिन अप्राकृतिक यौन संबंध में यह संभव नहीं है।
पहला शाही 'गे' होने की किसने की घोषणा -
2005 में गुजरात के राजपिपला के राजकुमार मानवेंद्र सिंह ने पहला शाही ‘गे’ होने की घोषणा की।बॉलीवुड भी इस विषय पर मुखर हुआ और ऐसे विषय पर फिल्मे बनी |हनीमून ट्रेवल प्रा लिमिटेड और दोस्ताना जैसी मूवी भी आयी |धीरे -धीरे तकनिकी का भी इसको साथ मिला |इंटरनेट पर गे डेटिंग वेबसाइटों की भरमार। गे कम्युनिटी और इन पर ब्लॉग्स से अटी पड़ी है साइटें एलजीबीटी अधिकार संयुक्त राष्ट्र के 94 सदस्य देश इनके समान अधिकारों का समर्थन करते हैं।फिर वो भी दिन आ गया जिसने भारत में 2017 अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में लैंगिक झुकाव को निजता के अधिकार से जोड़कर देखा।समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया है और इसके अनुसार आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अब अपराध नहीं माना जाएगा|
समलैंगिकता मुस्लिम देशों और कहा वैध है -
कई  देशों पहले से ही अपने यहाँ इसे वैध किया है | जैसे लेबनान, कजाखिस्तान, माली, तुर्की, इंडोनेशिया, बहरीन, अल्बेनिया, अजरबैजान, नाइजर इन देशों में है मृत्युदंड सुडान, यमन, सऊदी अरब, ईरान, सोमालिया, नाइजीरिया, कतर, अफगानिस्तान, यूएई, मॉरीतानिया दुनिया के इन देशों ने इस साल किया वैध अर्जेंटीना (2010), ग्रीनलैंड(2015), दक्षिण अफ्रीका (2006), ऑस्ट्रेलिया (2017),आइसलैंड (2010), स्पेन (2005), बेल्जियम (2003), आयरलैंड (2015), अमेरिका (2015), ब्राजील (2013), स्वीडन (2009), कनाडा (2005),जर्मनी (2017), फ्रांस (2013), इंग्लैंड (2013)।हमारा मकसद ये रहता है की आपको सभी चीजें को जोड़कर एक जगह प्रस्तुत किया जाये |
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allgyan · 4 years
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समलैंगिकता या गे क्या है ?
समलैंगिकता और यौन आकर्षण -
आज के दौर में या कहे इन दिनों जो सबसे चर्चित शब्द 'समलैंगिकता या गे' रहा है कई देशों पिछले कई सालो में इस पर कई कानून भी बनाये गये| लेकिन सामन्य जनमानस में इसको लेकर कई भ्रांतिया है जिसके बारे में हम आज चर्चा करेंगे | और जितना भी हम इस बारे में जानते है उन भ्रांतियों को तोडने की कोशिश करेंगे |'समलैंगिकता' जो शब्द इससे ही आप इसके अर्थ को समझने की कोशिश तो जरूर कर सकते है |सामान लिंग के समूह या लोग समलैंगिकता का अर्थ किसी व्यक्ति का समान लिंग के लोगों के प्रति यौन और रोमांसपूर्वक रूप से आकर्षित होना है।
लेस्बियन और बाईसेक्सुअल और एलजीबीटी क्या है -
पुरुष अगर पुरुष के प्रति के आकर्षित होगा तो उसे 'पुरुष समलिंगी' कहते है |और अगर महिला -महिला की ओर आकर्षित होगी |उसे 'लेस्बियन ' कहते है | गे शब्द दोनों के लिए प्रयोग होता है |जो लोग महिला और पुरषों दोनों के प्रति आकर्षित होते है उन्हें 'उभयलिंगी ' कहते है |इंग्लिश में इन्हे 'बाईसेक्सुअल' भी कहा जाता है | ये सभी एलजीबीटी समुदाय के अंतर्गत आते है |इसके विपरीत, एक व्यक्ति बिना समलैंगिक यौन सम्बन्ध बनाए भी 'गे' हो सकता है। ऐसे व्यक्तियों के पास समलैंगिक के रूप में सामाजिक रूप से पहचान करना, शादी न करना, या पहले समलैंगिक अनुभव का अनुमान लगाने जैसे संभावित विकल्प हैं। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो उसी लिंग की तरफ़ आकर्षित होते हैं जिसके वे ख़ुद हैं, लेकिन न तो वे यौन गतिविधि में संलग्न होते हैं और न ही समलैंगिक के रूप में स्वयं की पहचान करते हैं। ऐसे लोगों के लिए अलैंगिक (asexual) शब्द लागू हो सकता है|
समलैंगिकता और धर्म-
समलैंगिकता  को कई लोग हेय दृष्टि से देखते है लेकिन ये प्रमाण मिले है की की मानव सभ्यता से ही ये अस्तित्व में रहा है |और तो और वातायन द्वारा लिखा गया -'कामसूत्र ' में इसपे पूरा का पूरा चैप्टर है |कामसूत्र महर्षि वात्स्यायन द्वारा रचित भारत का एक प्राचीन कामशास्त्र ग्रंथ है।यह विश्व की प्रथम यौन संहिता है जिसमें यौन प्रेम के मनोशारीरिक सिद्धान्तों तथा प्रयोग की विस्तृत व्याख्या एवं विवेचना की गई है।ये संस्कृत में लिखी गयी है और बाद में इसे 1883  अंग्रेजी में प्रकाशित किया गया |जैसा देखते है भारत के कई पुराणों में इनका उल्लेख मिलता है |
भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप, विष्णु का मोहिनी रूप, अर्जुन का बृहन्नला रूप, शिखंडी का लिंग परिवर्तन सभी से पूरा हिंदू धर्म वाकिफ है और इन्हें पूजनीय भी मानता है। हिंदू धर्म में इन सभी को भगवान की उपाधि दी गई है। भगवान के इन रूपों को भी सही मानते हुए पुराणों में जगह दी गई है।खजुराहो के मंदिर की दीवारों पर बनी कलाकृति भी इस बात की गवाह है कि उस समय भी समलैंगिक संबंध गलत नहीं माने जाते थे। केवल यहूदी, ईसाई धर्म और इस्लाम में इसे वर्जित करार दिया गया है। हालांकि पोप का कहना है कि समलैंगिक लोग भी उसी ईश्वर की संतान हैं जिसकी संतान हम हैं। हमें उन लोगों के प्रति भेदभाव नहीं करना चाहिए।
लेकिन इन सभी पुष्टियों और तर्कों के बाद भी सवाल अभी भी यही है कि क्यों और किस धर्म के नाम पर समलैंगिक संबंधों को गलत या पाप बताया जा रहा है किसी की अपने साथी चुनने की आजादी पर क्यों धर्म का ठप्पा लगाकर उसे रोकने की कोशिश की जा रही होती है |
क्या यौन वरीयता मनुष्य का अपना व्यक्तिगत मामला?
यौन वरीयता मनुष्य का अपना व्यक्तिगत मामला हो सकता है, लेकिन एक इसी आधार पर उसे पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं छोड़ा जा सकता| इसके समर्थन से जुड़े लोगों का यह तर्क हैं कि व्यक्ति का आकर्षण किस ओर होगा यह उसकी मां के गर्भ में ही निर्धारित हो जाता हैंऔर अगर वह समलिंगी संबंधों की ओर आकृष्ट होते हैं तो यह पूर्ण रूप से स्वाभाविक व्यवहार माना जाना चाहिए लेकिन यहां इस बात की ओर ध्यान देना जरूरी है कि जब प्रकृति ने ही महिला और पुरुष दोनो को एक दूसरे के पूरक के रूप में पेश किया हैं. तो ऐसे हालातों में पुरुष द्वारा पुरुष की ओर आकर्षित होने के सिद्धांत को मान्यता देना कहा तक स्वाभाविक माना जा सकता हैं|इस तरह के भी तर्क दिए जाते रहे है |
समलैंगिकता पर संघर्ष और कानून को मान्यता -
समलैंगिकता के खिलाफ अंग्रेजों ने धारा 377 को 1860 में लागू किया था। 158 साल पुराने इस कानून के द्वारा समलैंगिकता को गैरकानूनी बताया गया है।अविभाजित भारत में वर्ष 1925 में खानू बनाम सम्राट का समलैंगिकता से जुड़ा पहला मामला था। उस मामले में यह फैसला दिया गया कि यौन संबंधों का मूल मकसद संतानोत्पत्ति है लेकिन अप्राकृतिक यौन संबंध में यह संभव नहीं है।
पहला शाही 'गे' होने की किसने की घोषणा -
2005 में गुजरात के राजपिपला के राजकुमार मानवेंद्र सिंह ने पहला शाही ‘गे’ होने की घोषणा की।बॉलीवुड भी इस विषय पर मुखर हुआ और ऐसे विषय पर फिल्मे बनी |हनीमून ट्रेवल प्रा लिमिटेड और दोस्ताना जैसी मूवी भी आयी |धीरे -धीरे तकनिकी का भी इसको साथ मिला |इंटरनेट पर गे डेटिंग वेबसाइटों की भरमार। गे कम्युनिटी और इन पर ब्लॉग्स से अटी पड़ी है साइटें एलजीबीटी अधिकार संयुक्त राष्ट्र के 94 सदस्य देश इनके समान अधिकारों का समर्थन करते हैं।फिर वो भी दिन आ गया जिसने भारत में 2017 अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में लैंगिक झुकाव को निजता के अधिकार से जोड़कर देखा।समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया है और इसके अनुसार आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अब अपराध नहीं माना जाएगा|
समलैंगिकता मुस्लिम देशों और कहा वैध है -
कई  देशों पहले से ही अपने यहाँ इसे वैध किया है | जैसे लेबनान, कजाखिस्तान, माली, तुर्की, इंडोनेशिया, बहरीन, अल्बेनिया, अजरबैजान, नाइजर इन देशों में है मृत्युदंड सुडान, यमन, सऊदी अरब, ईरान, सोमालिया, नाइजीरिया, कतर, अफगानिस्तान, यूएई, मॉरीतानिया दुनिया के इन देशों ने इस साल किया वैध अर्जेंटीना (2010), ग्रीनलैंड(2015), दक्षिण अफ्रीका (2006), ऑस्ट्रेलिया (2017),आइसलैंड (2010), स्पेन (2005), बेल्जियम (2003), आयरलैंड (2015), अमेरिका (2015), ब्राजील (2013), स्वीडन (2009), कनाडा (2005),जर्मनी (2017), फ्रांस (2013), इंग्लैंड (2013)।हमारा मकसद ये रहता है की आपको सभी चीजें को जोड़कर एक जगह प्रस्तुत किया जाये |
पूरा जानने के लिए -http://bit.ly/38AyBhs
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karanaram · 3 years
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🚩हिन्दू युवा तेजी से नास्तिक व धर्मविमुख क्यों हो रहे हैं? 15 अक्टूबर 2021
🚩हमारे देश के हिन्दू युवा बड़ी तेजी से नास्तिक क्यों बनते जा रहे हैं ? इसका मुख्य कारण क्या है ? उनकी हिन्दू धर्म की प्रगति में क्यों कोई विशेष रूचि नहीं दिखती ?
🚩यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है । भारत के महानगरों से लेकर छोटे गांवों तक यह समस्या दिख रही है। इस प्रश्न के उत्तर में हिन्दू समाज का हित छिपा है। अगर इसका समाधान किया जाये तो भारत भूमि को संसार का आध्यात्मिक गुरु बनने से दोबारा कोई नहीं रोक सकता।
🚩वैसे तो हिन्दू युवाओं के नास्तिक बनने व धर्मविमुख बनने के अनेक कारण है पर मुख्य पांच कारण है जो आपको बता रहे हैं-
🚩1. हिन्दू धर्म गुरुओं के प्रति आस्था का अभाव और उनकी उपेक्षा
हिन्दू समाज के युवा पाश्चात्य संस्कृति के आकर्षण के कारण अपने ही हिन्दू धर्म गुरुओं के प्रति आस्था नहीं रख पाते हैं और उनकी उपेक्षा कर देते हैं इसके कारण युवाओं में ईसाई धर्मान्तरण, लव जिहाद, नशा, भोगवाद, चरित्रहीनता, नास्तिकता, अपने धर्मग्रंथों के प्रति अरुचि आदि समस्याएं दिख रही हैं । इन समस्याओं के निवारण पर कई हिंदू धर्मगुरु ध्यान भी देते हैं। पर युवा उनकी तरफ ध्यान नही देते हैं । कुछ धर्मगुरुओं की तो हिंदू धर्म के बचाव के लिए कोई योजना बनी हुई नहीं होती जो दिशा निर्देश कर सके लेकिन कोई धर्मगुरु दिशा निर्देश करते है तो उनको षड़यंत्र तहत जेल भेजा जाता है जैसे कि शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, हिंदू संत आसाराम बापू, स्वामी असीमानंद आदि...।
🚩2. दूसरा कारण मीडिया में हिन्दू धर्मगुरुओं को नकारात्मक रूप से प्रदर्शित करना है-
मीडिया की भूमिका भी इस समस्या को बढ़ाने में बहुत हद तक जिम्मेदार है। संत आशाराम बापू, शंकराचार्यजी को जेल भेजना, नित्यानंदजी की अश्लील सीडी, निर्मल बाबा और राधे माँ जैसे धर्मगुरुओं को मीडिया प्राइम टाइम, ब्रेकिंग न्यूज़, पैनल डिबेट आदि में घंटों, बार-बार, अनेक दिनों तक दिखाता है । जबकि मुस्लिम मौलवियों और ईसाई पादरियों के मदरसे में यौन शोषण, बलात्कार, मुस्लिम कब्रों पर अन्धविश्वास, चर्च में समलैंगिकता एवं ननों का शोषण, प्रार्थना से चंगाई आदि अन्धविश्वास आदि पर कभी कोई चर्चा नहीं दिखाता। इसके ठीक विपरीत मीडिया वाले ईसाई पादरियों को शांत, समझदार, शिक्षित, बुद्धिजीवी के रूप में प्रदर्शित करते हैं। मुस्लिम मौलवियों को शांति का दूत और मानवता का पैगाम देने वाले के रूप में मीडिया में दिखाया जाता है। मीडिया के इस दोहरे मापदंड के कारण हिन्दू युवाओं में हिन्दू धर्म और धर्मगुरुओं के प्रति एक अरुचि की भावना बढ़ने लगती हैं।
🚩ईसाई और मुस्लिम धर्म के प्रति उनके मन में श्रद्धाभाव पनपने लगता हैं। इसका दूरगामी परिणाम अत्यंत चिंताजनक है। हिन्दू युवा आज गौरक्षा, संस्कृत, वेद, धर्मान्तरण जैसे विषयों पर सकल हिन्दू समाज के साथ खड़े नहीं दीखते। क्योंकि उनकी सोच विकृत हो चुकी है। वे केवल नाममात्र के हिन्दू बचे हैं। हिन्दू समाज जब भी विधर्मियों के विरोध में कोई कदम उठाता है तो हिन्दू परिवारों के युवा हिंदुओं का साथ देने के स्थान पर विधर्मियों के साथ अधिक खड़े दिखाई देते हैं। हम उन्हें साम्यवादी, नास्तिक, भोगवादी, cool dude कहकर अपना पिंड छुड़ा लेते है। मगर यह बहुत विकराल समस्या है जो तेजी से बढ़ रही है। इस समस्या को खाद देने का कार्य निश्चित रूप से मीडिया ने किया है।
🚩3. हिन्दू विरोधी ताकतों द्वारा प्रचंड प्रचार है-
भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश होगा जहाँ पर इस देश के बहुसंख्यक हिंदुओं से अधिक अधिकार अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमानों और ईसाईयों को मिले हुए हैं। इसका मुख्य कारण जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद आदि के नाम पर आपस में लड़ना है। इस आपसी मतभेद का फायदा अन्य लोग उठाते है। एक मुश्त वोट डाल कर पहले सत्ता को अपना पक्षधर बनाया गया। फिर अपने हित में सरकारी नियम बनाये गए। इस सुनियोजित सोच का परिणाम यह निकला कि सरकारी तंत्र से लेकर अन्य क्षेत्रों में विधर्मियों को मनाने , उनकी उचित-अनुचित मांगों को मानने की एक प्रकार से होड़ ही लग गई। परिणाम की हिंदुओं के देश में हिंदुओंके अराध्य, परंपरा, मान्यताओं पर तो कोई भी टिका-टिप्पणी आसानी से कर सकता है। जबकि अन्य विधर्मियों पर कोई टिप्पणी कर दे तो उसे सजा देने के लिए सभी संगठित हो जाते है। इस संगठित शक्ति, विदेशी पैसे के बल पर हिंदुओं के प्रति नकारात्मक माहौल देश में बनाया जा रहा है। ईसाई धर्मान्तरण सही और शुद्धि/घर वापसी को गलत बताया जा रहा है। मांसाहार को सही और गौरक्षा को गलत बताया जा रहा है। बाइबिल/क़ुरान को सही और वेद-गीता को पुरानी सोच बताया जा रहा है। विदेशी आक्रांता गौरी-गजनी को महान और आर्यों को विदेशी बताया जा रहा है। इस षड़यंत्र का मुख्य उद्देश्य हिन्दू युवाओं को भ्रमित करना और नास्तिक बनाना है। इससे हिन्दू युवाओं अपने प्राचीन इतिहास पर गर्व करने के स्थान पर शर्म करने लगे। ऐसा उन्हें प्रतीत करवाया जाता है। हिन्दू समाज के विरुद्ध इस प्रचंड प्रचार के प्रतिकार में हिंदुओं के पास न कोई योजना है और न कोई नीति है।
🚩4. हिंदुओं में संगठन का अभाव-
हिन्दू समाज में संगठन का अभाव होना एक बड़ी समस्या है। इसका मुख्य कारण एक धार्मिक ग्रन्थ वेद, एक भाषा हिंदी, एक संस्कृति वैदिक संस्कृति और एक अराध्य ईश्वर में विश्वास न होना है। जब तक हिन्दू समाज इन विषयों पर एक नहीं होगा तब तक एकता स्थापित नहीं हो सकती। यही संगठन के अभाव का मूल कारण है। स्वामी दयानंद ने अपने अनुभव से भारत का भ्रमण कर हिंदुओं की धार्मिक अवनति की समस्या के मूल बीमारी की पहचान की और उस बीमारी की चिकित्सा भी बताई। मगर हिन्दू समाज उनकी बात को अपनाने के स्थान पर एक नासमझ बालक के समान उन्हीं का विरोध करने लग गया। इसका परिणाम अत्यंत वीभित्स निकला। मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि जिन हिंदुओं के पूर्वजों ने मुस्लिम आक्रांताओं को लड़ते हुए युद्ध में यमलोक पहुँचा दिया था उन्हीं वीर पूर्वजों की मूर्ख संतान आज अपनी कायरता का प्रदर्शन उन्हीं मुसलमानों की कब्रों पर सर पटक कर करती हैं। राम और कृष्ण की नामलेवा संतान आज उन्हें छोड़कर कब्रों पर सर पटकती है। चमत्कार की कुछ काल्पनिक कहानियाँऔर मीडिया मार्केटिंग के अतिरिक्त कब्रो में कुछ नहीं दिखता । मगर हिन्दू है कि मूर्खों के समान भेड़ के पीछे भेड़ के रूप में उसके पीछे चले जाते हैं। जो विचारशील हिन्दू है वो इस मूर्खता को देखकर नास्तिक हो जाते हैं। जो अन्धविश्वासी हिन्दू है वो भीड़ में शामिल होकर भेड़ बन जाते हैं। मगर हिंदुओं को संगठित करने और हिन्दू समाज के समक्ष विकराल हो रही समस्यों को सुलझाने में उनकी कोई रूचि नहीं है। अगर हिन्दू समाज संगठित होता तो हिन्दू युवाओं को ऐसी मूर्खता करने से रोकता। मगर संगठन के अभाव में समस्या ऐसे की ऐसी बनी रही।
🚩5. हिन्दुओं में अपने ही धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने के प्रति बेरुखी-
हिन्दू समाज के युवाओं को वेद आदि धर्म शास्त्रों का ज्ञान तो बहुत दूर की बात है । वाल्मीकि रामायण और महाभारत तक का स्वाध्याय उसे नहीं हैं। धर्म क्या है? धर्म के लक्षण क्या है? वेदों का पढ़ना क्यों आवश्यक है? वैदिक धर्म क्यों सर्वश्रेष्ठ है? हमारा प्राचीन महान इतिहास क्या था? हम विश्वगुरु क्यों थे? इस्लामिक आक्रांताओं और ईसाई मिशनरियों ने हमारे देश, हमारी संस्कृति, हमारी विरासत को कैसे बर्बाद किया। हमारे हिन्दू युवा कुछ नहीं जानते। न ही उनकी यह जानने में रूचि हैं। अगर वह पढ़ते भी है तो अंग्रेजी विदेशी लेखकों के मिथक उपन्यास (Fiction Novel) जिनमें केवल मात्र भ्रामक जानकारी के कुछ नहीं होता। स्वाध्याय के प्रति इस बेरुखी को दूर करने के लिए एक मुहीम चलनी चाहिए। ताकि धर्मशास्त्रों का स्वाध्याय करने की प्रवृति बढ़े। हर हिन्दू मंदिर, मठ आदि में छुट्टियों में 1 से 2 घंटों का स्वाध्याय शिविर अवश्य लगना चाहिए। ताकि हिन्दू युवाओं को स्वाध्याय के लिए प्रेरित किया जा सके।
🚩आज का हिन्दू युवा बॉलीवुड, चलचित्रों, इंटरनेट आदि द्वारा तेजी से धर्मविमुख हो रहा है इसके लिए माता-पिता को बचपन से ही धर्म की शिक्षा देनी चाहिए और कॉन्वेंट जैसे स्कूलों में नही पढ़ाकर गुरूकुलों में या किसी ऐसे स्कूल में पढ़ाई के लिए भेजना चाहिए जहां धर्म का ज्ञान मिलता हो, नही तो बच्चों में संस्कार नही होंगे तो न आपकी सेवा कर पाएंगे और नही समाज और देश के लिए कुछ कर पाएंगे। अतः अपने बच्चों एवं आसपास बच्चों को अच्छे संस्कार जरूर दे।
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karanaram · 3 years
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🚩हिन्दू युवा तेजी से नास्तिक व धर्मविमुख क्यों हो रहे हैं? - 22 जुलाई 2021
🚩हमारे देश के हिन्दू युवा बड़ी तेजी से नास्तिक क्यों बनते जा रहे हैं ? इसका मुख्य कारण क्या है ? उनकी हिन्दू धर्म की प्रगति में क्यों कोई विशेष रूचि नहीं दिखती ?
🚩यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है । भारत के महानगरों से लेकर छोटे गांवों तक यह समस्या दिख रही है। इस प्रश्न के उत्तर में हिन्दू समाज का हित छिपा है। अगर इसका समाधान किया जाये तो भारत भूमि को संसार का आध्यात्मिक गुरु बनने से दोबारा कोई नहीं रोक सकता।
🚩वैसे तो हिन्दू युवाओं के नास्तिक बनने व धर्मविमुख बनने के अनेक कारण है पर मुख्य पांच कारण है जो आपको बता रहे हैं-
🚩1. हिन्दू धर्म गुरुओं के प्रति आस्था का अभाव और उनकी उपेक्षा
हिन्दू समाज के युवा पाश्चात्य संस्कृति के आकर्षण के कारण अपने ही हिन्दू धर्म गुरुओं के प्रति आस्था नहीं रख पाते हैं और उनकी उपेक्षा कर देते हैं इसके कारण युवाओं में ईसाई धर्मान्तरण, लव जिहाद, नशा, भोगवाद, चरित्रहीनता, नास्तिकता, अपने धर्मग्रंथों के प्रति अरुचि आदि समस्याएं दिख रही हैं । इन समस्याओं के निवारण पर कई हिंदू धर्मगुरु ध्यान भी देते हैं। पर युवा उनकी तरफ ध्यान नही देते हैं । कुछ धर्मगुरुओं की तो हिंदू धर्म के बचाव के लिए कोई योजना बनी हुई नहीं होती जो दिशा निर्देश कर सके लेकिन कोई धर्मगुरु दिशा निर्देश करते है तो उनको षड़यंत्र तहत जेल भेजा जाता है जैसे कि शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, हिंदू संत आसाराम बापू, स्वामी असीमानंद आदि...।
🚩2. दूसरा कारण मीडिया में हिन्दू धर्मगुरुओं को नकारात्मक रूप से प्रदर्शित करना है-
मीडिया की भूमिका भी इस समस्या को बढ़ाने में बहुत हद तक जिम्मेदार है। संत आशाराम बापू, शंकराचार्यजी को जेल भेजना, नित्यानंदजी की अश्लील सीडी, निर्मल बाबा और राधे माँ जैसे धर्मगुरुओं को मीडिया प्राइम टाइम, ब्रेकिंग न्यूज़, पैनल डिबेट आदि में घंटों, बार-बार, अनेक दिनों तक दिखाता है । जबकि मुस्लिम मौलवियों और ईसाई पादरियों के मदरसे में यौन शोषण, बलात्कार, मुस्लिम कब्रों पर अन्धविश्वास, चर्च में समलैंगिकता एवं ननों का शोषण, प्रार्थना से चंगाई आदि अन्धविश्वास आदि पर कभी कोई चर्चा नहीं दिखाता। इसके ठीक विपरीत मीडिया वाले ईसाई पादरियों को शांत, समझदार, शिक्षित, बुद्धिजीवी के रूप में प्रदर्शित करते हैं। मुस्लिम मौलवियों को शांति का दूत और मानवता का पैगाम देने वाले के रूप में मीडिया में दिखाया जाता है। मीडिया के इस दोहरे मापदंड के कारण हिन्दू युवाओं में हिन्दू धर्म और धर्मगुरुओं के प्रति एक अरुचि की भावना बढ़ने लगती हैं।
🚩ईसाई और मुस्लिम धर्म के प्रति उनके मन में श्रद्धाभाव पनपने लगता हैं। इसका दूरगामी परिणाम अत्यंत चिंताजनक है। हिन्दू युवा आज गौरक्षा, संस्कृत, वेद, धर्मान्तरण जैसे विषयों पर सकल हिन्दू समाज के साथ खड़े नहीं दीखते। क्योंकि उनकी सोच विकृत हो चुकी है। वे केवल नाममात्र के हिन्दू बचे हैं। हिन्दू समाज जब भी विधर्मियों के विरोध में कोई कदम उठाता है तो हिन्दू परिवारों के युवा हिंदुओं का साथ देने के स्थान पर विधर्मियों के साथ अधिक खड़े दिखाई देते हैं। हम उन्हें साम्यवादी, नास्तिक, भोगवादी, cool dude कहकर अपना पिंड छुड़ा लेते है। मगर यह बहुत विकराल समस्या है जो तेजी से बढ़ रही है। इस समस्या को खाद देने का कार्य निश्चित रूप से मीडिया ने किया है।
🚩3. हिन्दू विरोधी ताकतों द्वारा प्रचंड प्रचार है-
भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश होगा जहाँ पर इस देश के बहुसंख्यक हिंदुओं से अधिक अधिकार अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमानों और ईसाईयों को मिले हुए हैं। इसका मुख्य कारण जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद आदि के नाम पर आपस में लड़ना है। इस आपसी मतभेद का फायदा अन्य लोग उठाते है। एक मुश्त वोट डाल कर पहले सत्ता को अपना पक्षधर बनाया गया। फिर अपने हित में सरकारी नियम बनाये गए। इस सुनियोजित सोच का परिणाम यह निकला कि सरकारी तंत्र से लेकर अन्य क्षेत्रों में विधर्मियों को मनाने , उनकी उचित-अनुचित मांगों को मानने की एक प्रकार से होड़ ही लग गई। परिणाम की हिंदुओं के देश में हिंदुओंके अराध्य, परंपरा, मान्यताओं पर तो कोई भी टिका-टिप्पणी आसानी से कर सकता है। जबकि अन्य विधर्मियों पर कोई टिप्पणी कर दे तो उसे सजा देने के लिए सभी संगठित हो जाते है। इस संगठित शक्ति, विदेशी पैसे के बल पर हिंदुओं के प्रति नकारात्मक माहौल देश में बनाया जा रहा है। ईसाई धर्मान्तरण सही और शुद्धि/घर वापसी को गलत बताया जा रहा है। मांसाहार को सही और गौरक्षा को गलत बताया जा रहा है। बाइबिल/क़ुरान को सही और वेद-गीता को पुरानी सोच बताया जा रहा है। विदेशी आक्रांता गौरी-गजनी को महान और आर्यों को विदेशी बताया जा रहा है। इस षड़यंत्र का मुख्य उद्देश्य हिन्दू युवाओं को भ्रमित करना और नास्तिक बनाना है। इससे हिन्दू युवाओं अपने प्राचीन इतिहास पर गर्व करने के स्थान पर शर्म करने लगे। ऐसा उन्हें प्रतीत करवाया जाता है। हिन्दू समाज के विरुद्ध इस प्रचंड प्रचार के प्रतिकार में हिंदुओं के पास न कोई योजना है और न कोई नीति है।
🚩4. हिंदुओं में संगठन का अभाव-
हिन्दू समाज में संगठन का अभाव होना एक बड़ी समस्या है। इसका मुख्य कारण एक धार्मिक ग्रन्थ वेद, एक भाषा हिंदी, एक संस्कृति वैदिक संस्कृति और एक अराध्य ईश्वर में विश्वास न होना है। जब तक हिन्दू समाज इन विषयों पर एक नहीं होगा तब तक एकता स्थापित नहीं हो सकती। यही संगठन के अभाव का मूल कारण है। स्वामी दयानंद ने अपने अनुभव से भारत का भ्रमण कर हिंदुओं की धार्मिक अवनति की समस्या के मूल बीमारी की पहचान की और उस बीमारी की चिकित्सा भी बताई। मगर हिन्दू समाज उनकी बात को अपनाने के स्थान पर एक नासमझ बालक के समान उन्हीं का विरोध करने लग गया। इसका परिणाम अत्यंत वीभित्स निकला। मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि जिन हिंदुओं के पूर्वजों ने मुस्लिम आक्रांताओं को लड़ते हुए युद्ध में यमलोक पहुँचा दिया था उन्हीं वीर पूर्वजों की मूर्ख संतान आज अपनी कायरता का प्रदर्शन उन्हीं मुसलमानों की कब्रों पर सर पटक कर करती हैं। राम और कृष्ण की नामलेवा संतान आज उन्हें छोड़कर कब्रों पर सर पटकती है। चमत्कार की कुछ काल्पनिक कहानियाँऔर मीडिया मार्केटिंग के अतिरिक्त कब्रो में कुछ नहीं दिखता । मगर हिन्दू है कि मूर्खों के समान भेड़ के पीछे भेड़ के रूप में उसके पीछे चले जाते हैं। जो विचारशील हिन्दू है वो इस मूर्खता को देखकर नास्तिक हो जाते हैं। जो अन्धविश्वासी हिन्दू है वो भीड़ में शामिल होकर भेड़ बन जाते हैं। मगर हिंदुओं को संगठित करने और हिन्दू समाज के समक्ष विकराल हो रही समस्यों को सुलझाने में उनकी कोई रूचि नहीं है। अगर हिन्दू समाज संगठित होता तो हिन्दू युवाओं को ऐसी मूर्खता करने से रोकता। मगर संगठन के अभाव में समस्या ऐसे की ऐसी बनी रही।
🚩5. हिन्दुओं में अपने ही धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने के प्रति बेरुखी-
हिन्दू समाज के युवाओं को वेद आदि धर्म शास्त्रों का ज्ञान तो बहुत दूर की बात है । वाल्मीकि रामायण और महाभारत तक का स्वाध्याय उसे नहीं हैं। धर्म क्या है? धर्म के लक्षण क्या है? वेदों का पढ़ना क्यों आवश्यक है? वैदिक धर्म क्यों सर्वश्रेष्ठ है? हमारा प्राचीन महान इतिहास क्या था? हम विश्वगुरु क्यों थे? इस्लामिक आक्रांताओं और ईसाई मिशनरियों ने हमारे देश, हमारी संस्कृति, हमारी विरासत को कैसे बर्बाद किया। हमारे हिन्दू युवा कुछ नहीं जानते। न ही उनकी यह जानने में रूचि हैं। अगर वह पढ़ते भी है तो अंग्रेजी विदेशी लेखकों के मिथक उपन्यास (Fiction Novel) जिनमें केवल मात्र भ्रामक जानकार�� के कुछ नहीं होता। स्वाध्याय के प्रति इस बेरुखी को दूर करने के लिए एक मुहीम चलनी चाहिए। ताकि धर्मशास्त्रों का स्वाध्याय करने की प्रवृति बढ़े। हर हिन्दू मंदिर, मठ आदि में छुट्टियों में 1 से 2 घंटों का स्वाध्याय शिविर अवश्य लगना चाहिए। ताकि हिन्दू युवाओं को स्वाध्याय के लिए प्रेरित किया जा सके।
🚩आज का हिन्दू युवा बॉलीवुड, चलचित्रों, इंटरनेट आदि द्वारा तेजी से धर्मविमुख हो रहा है इसके लिए माता-पिता को बचपन से ही धर्म की शिक्षा देनी चाहिए और कॉन्वेंट जैसे स्कूलों में नही पढ़ाकर गुरूकुलों में या किसी ऐसे स्कूल में पढ़ाई के लिए भेजना चाहिए जहां धर्म का ज्ञान मिलता हो, नही तो बच्चों में संस्कार नही होंगे तो न आपकी सेवा कर पाएंगे और नही समाज और देश के लिए कुछ कर पाएंगे। अतः अपने बच्चों एवं आसपास बच्चों को अच्छे संस्कार जरूर दे।
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karanaram · 4 years
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🚩हिन्दू युवा तेजी से नास्तिक व धर्मविमुख क्यों हो रहे हैं?
16 फरवरी 2021
🚩हमारे देश के हिन्दू युवा बड़ी तेजी से नास्तिक क्यों बनते जा रहे हैं ? इसका मुख्य कारण क्या है ? उनकी हिन्दू धर्म की प्रगति में क्यों कोई विशेष रूचि नहीं दिखती ?
🚩यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है । भारत के महानगरों से लेकर छोटे गांवों तक यह समस्या दिख रही है। इस प्रश्न के उत्तर में हिन्दू समाज का हित छिपा है। अगर इसका समाधान किया जाये तो भारत भूमि को संसार का आध्यात्मिक गुरु बनने से दोबारा कोई नहीं रोक सकता।
🚩वैसे तो हिन्दू युवाओं के नास्तिक बनने व धर्मविमुख बनने के अनेक कारण है पर मुख्य पांच कारण है जो आपको बता रहे हैं-
🚩1. हिन्दू धर्म गुरुओं के प्रति आस्था का अभाव और उनकी उपेक्षा
हिन्दू समाज के युवा पाश्चात्य संस्कृति के आकर्षण के कारण अपने ही हिन्दू धर्म गुरुओं के प्रति आस्था नहीं रख पाते हैं और उनकी उपेक्षा कर देते हैं इसके कारण युवाओं में ईसाई धर्मान्तरण, लव जिहाद, नशा, भोगवाद, चरित्रहीनता, नास्तिकता, अपने धर्मग्रंथों के प्रति अरुचि आदि समस्याएं दिख रही हैं । इन समस्याओं के निवारण पर कई हिंदू धर्मगुरु ध्यान भी देते हैं। पर युवा उनकी तरफ ध्यान नही देते हैं । कुछ धर्मगुरुओं की तो हिंदू धर्म के बचाव के लिए कोई योजना बनी हुई नहीं होती जो दिशा निर्देश कर सके लेकिन कोई धर्मगुरु दिशा निर्देश करते है तो उनको षड़यंत्र तहत जेल भेजा जाता है जैसे कि शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, हिंदू संत आसाराम बापू, स्वामी असीमानंद आदि...।
🚩2. दूसरा कारण मीडिया में हिन्दू धर्मगुरुओं को नकारात्मक रूप से प्रदर्शित करना है-
मीडिया की भूमिका भी इस समस्या को बढ़ाने में बहुत हद तक जिम्मेदार है। संत आशाराम बापू, शंकराचार्यजी को जेल भेजना, नित्यानंदजी की अश्लील सीडी, निर्मल बाबा और राधे माँ जैसे धर्मगुरुओं को मीडिया प्राइम टाइम, ब्रेकिंग न्यूज़, पैनल डिबेट आदि में घंटों, बार-बार, अनेक दिनों तक दिखाता है । जबकि मुस्लिम मौलवियों और ईसाई पादरियों के मदरसे में यौन शोषण, बलात्कार, मुस्लिम कब्रों पर अन्धविश्वास, चर्च में समलैंगिकता एवं ननों का शोषण, प्रार्थना से चंगाई आदि अन्धविश्वास आदि पर कभी कोई चर्चा नहीं दिखाता। इसके ठीक विपरीत मीडिया वाले ईसाई पादरियों को शांत, समझदार, शिक्षित, बुद्धिजीवी के रूप में प्रदर्शित करते हैं। मुस्लिम मौलवियों को शांति का दूत और मानवता का पैगाम देने वाले के रूप में मीडिया में दिखाया जाता है। मीडिया के इस दोहरे मापदंड के कारण हिन्दू युवाओं में हिन्दू धर्म और धर्मगुरुओं के प्रति एक अरुचि की भावना बढ़ने लगती हैं।
🚩ईसाई और मुस्लिम धर्म के प्रति उनके मन में श्रद्धाभाव पनपने लगता हैं। इसका दूरगामी परिणाम अत्यंत चिंताजनक है। हिन्दू युवा आज गौरक्षा, संस्कृत, वेद, धर्मान्तरण जैसे विषयों पर सकल हिन्दू समाज के साथ खड़े नहीं दीखते। क्योंकि उनकी सोच विकृत हो चुकी है। वे केवल नाममात्र के हिन्दू बचे हैं। हिन्दू समाज जब भी विधर्मियों के विरोध में कोई कदम उठाता है तो हिन्दू परिवारों के युवा हिंदुओं का साथ देने के स्थान पर विधर्मियों के साथ अधिक खड़े दिखाई देते हैं। हम उन्हें साम्यवादी, नास्तिक, भोगवादी, cool dude कहकर अपना पिंड छुड़ा लेते है। मगर यह बहुत विकराल समस्या है जो तेजी से बढ़ रही है। इस समस्या को खाद देने का कार्य निश्चित रूप से मीडिया ने किया है।
🚩3. हिन्दू विरोधी ताकतों द्वारा प्रचंड प्रचार है-
भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश होगा जहाँ पर इस देश के बहुसंख्यक हिंदुओं से अधिक अधिकार अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमानों और ईसाईयों को मिले हुए हैं। इसका मुख्य कारण जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद आदि के नाम पर आपस में लड़ना है। इस आपसी मतभेद का फायदा अन्य लोग उठाते है। एक मुश्त वोट डाल कर पहले सत्ता को अपना पक्षधर बनाया गया। फिर अपने हित में सरकारी नियम बन��ये गए। इस सुनियोजित सोच का परिणाम यह निकला कि सरकारी तंत्र से लेकर अन्य क्षेत्रों में विधर्मियों को मनाने , उनकी उचित-अनुचित मांगों को मानने की एक प्रकार से होड़ ही लग गई। परिणाम की हिंदुओं के देश में हिंदुओंके अराध्य, परंपरा, मान्यताओं पर तो कोई भी टिका-टिप्पणी आसानी से कर सकता है। जबकि अन्य विधर्मियों पर कोई टिप्पणी कर दे तो उसे सजा देने के लिए सभी संगठित हो जाते है। इस संगठित शक्ति, विदेशी पैसे के बल पर हिंदुओं के प्रति नकारात्मक माहौल देश में बनाया जा रहा है। ईसाई धर्मान्तरण सही और शुद्धि/घर वापसी को गलत बताया जा रहा है। मांसाहार को सही और गौरक्षा को गलत बताया जा रहा है। बाइबिल/क़ुरान को सही और वेद-गीता को पुरानी सोच बताया जा रहा है। विदेशी आक्रांता गौरी-गजनी को महान और आर्यों को विदेशी बताया जा रहा है। इस षड़यंत्र का मुख्य उद्देश्य हिन्दू युवाओं को भ्रमित करना और नास्तिक बनाना है। इससे हिन्दू युवाओं अपने प्राचीन इतिहास पर गर्व करने के स्थान पर शर्म करने लगे। ऐसा उन्हें प्रतीत करवाया जाता है। हिन्दू समाज के विरुद्ध इस प्रचंड प्रचार के प्रतिकार में हिंदुओं के पास न कोई योजना है और न कोई नीति है।
🚩4. हिंदुओं में संगठन का अभाव-
हिन्दू समाज में संगठन का अभाव होना एक बड़ी समस्या है। इसका मुख्य कारण एक धार्मिक ग्रन्थ वेद, एक भाषा हिंदी, एक संस्कृति वैदिक संस्कृति और एक अराध्य ईश्वर में विश्वास न होना है। जब तक हिन्दू समाज इन विषयों पर एक नहीं होगा तब तक एकता स्थापित नहीं हो सकती। यही संगठन के अभाव का मूल कारण है। स्वामी दयानंद ने अपने अनुभव से भारत का भ्रमण कर हिंदुओं की धार्मिक अवनति की समस्या के मूल बीमारी की पहचान की और उस बीमारी की चिकित्सा भी बताई। मगर हिन्दू समाज उनकी बात को अपनाने के स्थान पर एक नासमझ बालक के समान उन्हीं का विरोध करने लग गया। इसका परिणाम अत्यंत वीभित्स निकला। मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि जिन हिंदुओं के पूर्वजों ने मुस्लिम आक्रांताओं को लड़ते हुए युद्ध में यमलोक पहुँचा दिया था उन्हीं वीर पूर्वजों की मूर्ख संतान आज अपनी कायरता का प्रदर्शन उन्हीं मुसलमानों की कब्रों पर सर पटक कर करती हैं। राम और कृष्ण की नामलेवा संतान आज उन्हें छोड़कर कब्रों पर सर पटकती है। चमत्कार की कुछ काल्पनिक कहानियाँऔर मीडिया मार्केटिंग के अतिरिक्त कब्रो में कुछ नहीं दिखता । मगर हिन्दू है कि मूर्खों के समान भेड़ के पीछे भेड़ के रूप में उसके पीछे चले जाते हैं। जो विचारशील हिन्दू है वो इस मूर्खता को देखकर नास्तिक हो जाते हैं। जो अन्धविश्वासी हिन्दू है वो भीड़ में शामिल होकर भेड़ बन जाते हैं। मगर हिंदुओं को संगठित करने और हिन्दू समाज के समक्ष विकराल हो रही समस्यों को सुलझाने में उनकी कोई रूचि नहीं है। अगर हिन्दू समाज संगठित होता तो हिन्दू युवाओं को ऐसी मूर्खता करने से रोकता। मगर संगठन के अभाव में समस्या ऐसे की ऐसी बनी रही।
🚩5. हिन्दुओं में अपने ही धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने के प्रति बेरुखी-
हिन्दू समाज के युवाओं को वेद आदि धर्म शास्त्रों का ज्ञान तो बहुत दूर की बात है । वाल्मीकि रामायण और महाभारत तक का स्वाध्याय उसे नहीं हैं। धर्म क्या है? धर्म के लक्षण क्या है? वेदों का पढ़ना क्यों आवश्यक है? वैदिक धर्म क्यों सर्वश्रेष्ठ है? हमारा प्राचीन महान इतिहास क्या था? हम विश्वगुरु क्यों थे? इस्लामिक आक्रांताओं और ईसाई मिशनरियों ने हमारे देश, हमारी संस्कृति, हमारी विरासत को कैसे बर्बाद किया। हमारे हिन्दू युवा कुछ नहीं जानते। न ही उनकी यह जानने में रूचि हैं। अगर वह पढ़ते भी है तो अंग्रेजी विदेशी लेखकों के मिथक उपन्यास (Fiction Novel) जिनमें केवल मात्र भ्रामक जानकारी के कुछ नहीं होता। स्वाध्याय के प्रति इस बेरुखी को दूर करने के लिए एक मुहीम चलनी चाहिए। ताकि धर्मशास्त्रों का स्वाध्याय करने की प्रवृति बढ़े। हर हिन्दू मंदिर, मठ आदि में छुट्टियों में 1 से 2 घंटों का स्वाध्याय शिविर अवश्य लगना चाहिए। ताकि हिन्दू युवाओं को स्वाध्याय के लिए प्रेरित किया जा सके।
🚩आज का हिन्दू युवा बॉलीवुड, चलचित्रों, इंटरनेट आदि द्वारा तेजी से धर्मविमुख हो रहा है इसके लिए माता-पिता को बचपन से ही धर्म की शिक्षा देनी चाहिए और कॉन्वेंट जैसे स्कूलों में नही पढ़ाकर गुरूकुलों में या किसी ऐसे स्कूल में पढ़ाई के लिए भेजना चाहिए जहां धर्म का ज्ञान मिलता हो, नही तो बच्चों में संस्कार नही होंगे तो न आपकी सेवा कर पाएंगे और नही समाज और देश के लिए कुछ कर पाएंगे। अतः अपने बच्चों एवं आसपास बच्चों को अच्छे संस्कार जरूर दे।
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