सारद सेस महेस बिधि आगम निगम पुरान
नेति नेति कहि जासु गुन करहिं निरंतर गान
भावार्थ-
सरस्वतीजी शेषजी शिवजी ब्रह्माजी शास्त्र वेद और पुराण- ये सब नेति-नेति कहकर (पार नहीं पाकर ऐसा नहीं ऐसा नहीं कहते हुए) सदा जिनका गुणगान किया करते हैं
सब जानत प्रभु प्रभुता सोई तदपि कहें बिनु रहा न कोई
तहाँ बेद अस कारन राखा भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा
भावार्थ-
यद्यपि प्रभु श्री रामचन्द्रजी की प्रभुता को ��ब ऐसी (अकथनीय) ही जानते हैं तथापि कहे बिना कोई नहीं रहा इसमें वेद ने ऐसा कारण बताया है कि भजन का प्रभाव बहुत तरह से कहा गया है (अर्थात भगवान की महिमा का पूरा वर्णन तो कोई कर नहीं सकता परन्तु जिससे जितना बन पड़े उतना भगवान का गुणगान करना चाहिए क्योंकि भगवान के गुणगान रूपी भजन का प्रभाव बहुत ही अनोखा है उसका नाना प्रकार से शास्त्रों में वर्णन है थोड़ा सा भी भगवान का भजन मनुष्य को सहज ही भवसागर से तार देता है)
जय श्री राम🏹ᕫ🙏
7 notes
·
View notes
🚩 श्री शिवाष्टक - आदि अनादि अनंत अखण्ड
आदि अनादि अनंत अखंङ,
अभेद अखेद सुबेद बतावैं ।
अलख अगोचर रुप महेस कौ,
जोगि जती मुनि ध्यान न पावैं ॥
आगम निगम पुरान सबै,
इतिहास सदा जिनके गुन गावैं ।
बङभागी नर नारि सोई,
जो सांब सदासिव कौं नित ध्यावैं..
..श्री शिवाष्टक को पूरा पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें 👇
📲 https://www.bhaktibharat.com/mantra/shivashtak-adi-anadi-anant-akhand
For Quick Access Download Bhakti Bharat APP:
📥 https://play.google.com/store/apps/details?id=com.bhakti.bharat.app
🚩 शिव चालीसा - Shiv Chalisa
📲 https://www.bhaktibharat.com/chalisa/shiv-chalisa
2 notes
·
View notes
दो दिवसीय आगम पूजा अनुष्ठान शुरू, तपस्वियों का शोभायात्रा निकली, अभिनंदन हुआतपस्याओं की अनुमोदना करें-आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी
बीकानेर, 9 सितम्बर। जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी, मुनि व साध्वीवृंद के नेतृत्व में सोमवार को गाजे-बाजे के साथ आसानियों के चौक मासखमण तपस्वी रौनक बरड़िया, 13 दिन तपस्वी सुनील लोढा तथा 8 दिन पौषध तपस्वी नमन बरड़िया की शोभायात्रा निकली। तपस्वियों का सुगनजी महाराज के उपासरे में अभिनंदन किया गया। ढढ्ढा कोटड़ी मेंं आगम तप की पूजा का दो दिवसीय अनुष्ठान शुरू हुआ।…
0 notes
जनमाष्टमी की बेला
सुख की गंगा बह रही, राधा-कृष्ण की लीला में,
धरा पे आ गए श्रीकृष्ण, हर दिल की उम्मीद में।
गोपाल की मूरत हंसती, छवि अमृत की धार बहाती,
भक्ति की दीप जलाते, हर मन में उल्लास लाती।
नंदनंदन की रौनक, बध���ई हर घर में हो,
जनमाष्टमी की खुशी, हर दिल में खिल उठे l
गोपियाँ संग रास रचाते, ब्रज की गलियों में खेलते, रिझाते इठलाते
श्री कृष्ण की महिमा अपरंपार, हर दिल को भाते।
आओं सजाए घर आगम ,धूम धाम से करे इनका स्वागात।
अनु
0 notes
छंद
मुनि धीर जोगी सिद्ध संतत बिमल मन जेहि ध्यावहीं
कहि नेति निगम पुरान आगम जासु कीरति गावहीं
सोइ रामु ब्यापक ब्रह्म भुवन निकाय पति माया धनी
अवतरेउ अपने भगत हित निजतंत्र नित रघुकुलमनी
भावार्थ-
ज्ञानी मुनि, योगी और सिद्ध निरंतर निर्मल चित्त से जिनका ध्यान करते हैं तथा वेद, पुराण और शास्त्र 'नेति-नेति' कहकर जिनकी कीर्ति गाते हैं, उन्हीं सर्वव्यापक, समस्त ब्रह्मांडों के स्वामी, मायापति, नित्य परम स्वतंत्र, ब्रह्मरूप भगवान राम ने अपने भक्तों के हित के लिए रघुकुल के मणिरूप में अवतार लिया है
जय श्री राम🏹ᕫ🚩#श्रीरामचरितमानस
10 notes
·
View notes
( #Muktibodh_part232 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part233
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 446-447
◆ कबीर सागर के अध्याय ‘‘कबीर बानी‘‘ के पृष्ठ पर 136 :-
◆ द्वादश पंथ चलो सो भेद
द्वादश पंथ काल फुरमाना। भूले जीव न जाय ठिकाना।।
तातें आगम कह हम राखा। वंश हमारा चुड़ामणि शाखा।।
प्रथम जग में जागु भ्रमावै। बिना भेद वह ग्रन्थ चुरावै।।
दूसर सुरति गोपाल होई। अक्षर जो जोग दृढ़ावै सोई।।
(विवेचन :- यहाँ पर प्रथम जागु दास बताया है जबकि वाणी स्पष्ट कर रही है कि वंश (प्रथम) चुड़ामणि है। दूसरा जागु दास। यही प्रमाण ‘‘कबीर चरित्र बोध‘‘ पृष्ठ 1870 में है। दूसरा जागु दास है। अध्याय ‘‘स्वसमवेद बोध‘‘ के पृष्ठ 155(1499) पर भी दूसरा जागु
लिखा है। यहाँ प्रथम लिख दिया। यहाँ पर प्रथम चुड़ामणि लिखना उचित है।)
तीसरा मूल निरंजन बानी। लोक वेद की निर्णय ठानी।।
(यह चौथा लिखना चाहिए)
चौथे पंथ टकसार (टकसारी) भेद लौ आवै। नीर पवन को संधि बतावै।।
(यह पाँचवां लिखना चाहिए)
पाँचवां पंथ बीज को लेखा। लोक प्रलोक कहै हम में देखा।।
(यह भगवान दास का पंथ है जो छटा लिखना चाहिए था।)
छटा पंथ सत्यनामी प्रकाशा। घट के माहीं मार्ग निवासा।।
(यह सातवां पंथ लिखना चाहिए।)
सातवां जीव पंथ ले बोलै बानी। भयो प्रतीत मर्म नहीं जानी।।
(यह आठवां कमाल जी का पंथ है।)
आठवां राम कबीर कहावै। सतगुरू भ्रम लै जीव दृढ़ावै।।
(वास्तव में यह नौवां पंथ है।)
नौमें ज्ञान की कला दिखावै। भई प्रतीत जीव सुख पावै।।
(वास्तव में यह ग्यारहवां जीवा पंथ है। यहाँ पर नौमा गलत लिखा है।)
दसवें भेद परम धाम की बानी। साख हमारी का निर्णय ठानी।।
(यह ठीक लिखा है, परंतु ग्यारहवां नहीं लिखा। यदि प्रथम चुड़ामणि जी को मानें तो सही क्रम बनता है। वास्तव में प्रथम चुड़ामणि जी हैं। इसके पश्चात् बारहवें पंथ गरीबदास जी वाले पंथ का वर्णन प्रारम्भ होता है। यह सांकेतिक है। संत गरीबदास जी का जन्म वि.
संवत् 1774 (सतरह सौ चौहत्तर) में हुआ था। यहाँ गलती से सतरह सौ पचहत्तर लिखा है। यह प्रिन्ट में गलती है।)
संवत् सतरह सौ पचहत्तर (1775) होई। ता दिन प्रेम प्रकटें जग सोई।।
आज्ञा रहै ब्रह्म बोध लावै। कोली चमार सबके घर खावै।।
साखि हमारी ले जीव समझावै। असंख्य जन्म ठौर नहीं पावै।।
बारहवें (बारवै) पंथ प्रगट होवै बानी। शब्द हमारै की निर्णय ठानी।।
अस्थिर घर का मर्म नहीं पावै। ये बार (बारह) पंथ हमी (कबीर जी) को ध्यावैं।।
बारहें पंथ हमहि (कबीर जी ही) चलि आवैं।
सब पंथ मिटा एक ही पंथ चलावैं।।
प्रथम चरण कलजुग निरयाना (निर्वाण)। तब मगहर मांडो मैदाना।।
भावार्थ :- यहाँ पर बारहवां पंथ संत गरीबदास जी वाला स्पष्ट है क्योंकि संत गरीबदास जी को परमेश्वर कबीर जी मिले थे और उनका ज्ञान योग खोल दिया था। तब संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी की महिमा की वाणी बोली जो ग्रन्थ रूप में वर्तमान
में प्रिन्ट करवा लिया गया है। विचार करना है। संत गरीबदास जी के पंथ तक 12 (बारह) पंथ चल चुके हैं। यह भी लिखा है कि भले ही संत गरीबदास जी ने मेरी महिमा की साखी-शब्द-चौपाई लिखी है, परंतु वे बारहवें पंथ के अनुयाई अपनी-अपनी बुद्धि से वाणी का अर्थ करेंगें, परंतु ठीक से न समझकर संत गरीबदास जी तक वाले पंथ के अनुयाई यानि
बारह पंथों वाले मेरी वाणी को ठीक से नहीं समझ पाएंगे। जिस कारण से असंख्य जन्मों तक सतलोक वाला अमर धाम ठिकाना प्राप्त नहीं कर पाएँगे। ये बारह पंथ वाले कबीर जी
के नाम से पंथ चलाएंगे और मेरे नाम से महिमा प्राप्त करेंगे, परंतु ये बारह के बारह पंथों वाले अनुयाई अस्थिर यानि स्थाई घर (सत्यलोक) को प्राप्त नहीं कर सकेंगे। फिर कहा है कि आगे चलकर बारहवें पंथ (संत गरीबदास जी वाले पंथ में) हम यानि स्वयं कबीर जी ही चलकर आएंगे, तब सर्व पंथों को मिटाकर एक पंथ चलाऊँगा। कलयुग का वह प्रथम चरण होगा, जिस समय मैं (कबीर जी) संवत् 1575 (ई. सन् 1518) को मगहर नगर से निर्वाण प्राप्त करूँगा यानि कोई लीला करके सतलोक जाऊँगा।
परमेश्वर कबीर जी ने कलयुग को तीन चरणों में बाँटा है। प्रथम चरण तो वह जिसमें परमेश्वर लीला करके जा चुके हैं। बिचली पीढ़ी वह है जब कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष बीत जाएगा। अंतिम चरण में सब कृतघ्नी हो जाएंगे, कोई भक्ति नहीं करेगा।
मुझ दास (रामपाल दास) का निकास संत गरीबदास वाले बारहवें पंथ से हुआ है।
मेरे द्वारा चलाया वह तेरहवां पंथ अब चल रहा है। परमेश्वर कबीर जी ने चलवाया है। गुरू महाराज स्वामी रामदेवानंद जी का आशीर्वाद है। यह सफल होगा और पूरा विश्व परमेश्वर
कबीर जी की भक्ति करेगा।
संत गरीबदास जी को परमेश्वर कबीर जी सतगुरू रूप में मिले थे। परमात्मा तो कबीर हैं ही। वे अपना ज्ञान बताने स्वयं पृथ्वी पर तथा अन्य लोकों में प्रकट होते हैं। संत गरीबदास जी ने ‘‘असुर निकंदन रमैणी‘‘ में कहा है कि ‘‘सतगुरू दिल्ली मंडल आयसी।
सूती धरती सूम जगायसी।
दिल्ली के तख्त छत्र फेर भी फिराय सी। चौंसठ योगनि मंगल गायसी।
‘‘संत गरीबदास जी के सतगुरू ‘‘परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी‘‘ थे।
परमेश्वर कबीर जी ने कबीर सागर अध्याय ‘‘कबीर बानी‘‘ पृष्ठ 136 तथा 137 पर कहा है कि बारहवां (12वां) पंथ संत गरीबदास जी द्वारा चलाया जाएगा।
संवत् सतरह सौ पचहत्तर (1775) होई। जा दिन प्रेम प्रकटै जग सोई।।
साखि हमारी ले जीव समझावै। असंख्यों जन्म ठौर नहीं पावै।।
बारहवें पंथ प्रगट हो बानी। शब्द हमारे की निर्णय ठानी।।
अस्थिर घर का मर्म ना पावैं। ये बारा (बारह) पंथ हमही को ध्यावैं।।
बारहवें पंथ हम ही चलि आवैं। सब पंथ मिटा एक पंथ चलावैं।।
भावार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने स्पष्ट कर दिया है कि 12वें (बारहवें) पंथ तक के अनुयाई मेरी महिमा की साखी जो मैंने (परमेश्वर कबीर जी ने) स्वयं कही है जो कबीर सागर, कबीर साखी, कबीर बीजक, कबीर शब्दावली आदि-आदि ग्रन्थों में लिखी हैं। उनको
तथा जो मेरी कृपा से गरीबदास जी द्वारा कही गई वाणी के गूढ़ रहस्यों को ठीक से न समझकर स्वयं गलत निर्णय करके अपने अनुयाईयों को समझाया करेंगें, परंतु सत्य से परिचित न होकर असँख्यों जन्म स्थाई घर अर्थात् सनातन परम धाम (सत्यलोक) को प्राप्त नहीं कर सकेंगे। फिर मैं (परमेश्वर कबीर जी) उस गरीबदास वाले पंथ में आऊँगा जो कलयुग में पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष पूरे होने पर यथार्थ सत कबीर पंथ चलाया जाएगा। उस समय तत्त्वज्ञान पर घर-घर में चर्चा चलेगी। तत्त्वज्ञान को समझकर सर्व संसार के मनुष्य मेरी भक्ति करेंगे। सब अच्छे आचरण वाले बनकर शांतिपूर्वक रहा करेंगे। इससे सिद्ध है कि तेरहवां पंथ जो यथार्थ कबीर पंथ है, वह अब मुझ दास (रामपाल दास) द्वारा चलाया जा रहा है। कृपा परमेश्वर कबीर जी की है। जब परमेश्वर कबीर जी ‘‘तोताद्रि‘‘ स्थान पर ब्राह्मणों के भण्डारे में भैंसे से वेद-मंत्र बुलवा सकते हैं तो वे स्वयं भी बोल सकते थे। समर्थ की समर्थता इसी में है कि वे जिससे चाहें, अपनी महिमा का परिचय दिला सकते हैं। शायद इसीलिए परमेश्वर कबीर जी ने अपनी कृपा से मुझ दास (रामपाल दास) से यह 13वां (तेरहवां) पंथ चलवाया है।
क्रमशः_______________
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
0 notes