Kosli Crime: जेब में मिला सुसाईड नोट, खुला राज सुधीर ने की क्यो की आत्महत्या?
Kosli Crime: जेब में मिला सुसाईड नोट, खुला राज सुधीर ने की क्यो की आत्महत्या?
कोसली: गांव लूखी में एक युवक की संदिग्ध परिस्थतियों में हुई मौत का राज 3 दिन बाद उसकी पेंट की जेब से मिले सुसाइड नोट खुला है। नाहड़ चौकी पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ शनिवार को आत्महत्या के लिए मजबूर करने का केस दर्ज किया है।
Rewari News: रक्तदान शिविर मे 76 कर्मचारियो ने किया रक्तदान
फंदे पर लटका मिला था शव: एक नवंबर को गांव लूखी में सुधीर ने घर में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली थी। सूचना के बाद मौके…
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पूर्व मंत्री मोहम्मद अकबर पर FIR दर्ज, आत्महत्या का केस
पूर्व वन मंत्री मोहम्मद अकबर के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज हुआ है। बालोद जिले के डोंडी थाने में उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 108 और 3(5) के तहत FIR दर्ज की गई है।
यह मामला शिक्षक देवेंद्र ठाकुर की आत्महत्या से जुड़ा है, जिनकी जेब से एक सुसाइड नोट मिला था। इस नोट में लिखा था कि उनकी मौत के लिए हरेंद्र नेताम, मदार खान, प्रदीप ठाकुर और पूर्व वन मंत्री मोहम्मद अकबर जिम्मेदार…
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2024 TVS Jupiter: एक Comprehensive Review
टीवीएस Jupiter का नाम भारतीय स्कूटर बाजार में लंबे समय से एक विश्वसनीय और पॉपुलर विकल्प के रूप में जाना जाता है। 2013 में अपनी शुरुआत के बाद से ही इसने काफी लोकप्रियता हासिल की है। अब तक, 110cc मॉडल के साथ शुरू हुआ यह स्कूटर अब 125cc वेरिएंट में भी उपलब्ध है और 65 लाख यूनिट्स की बिक्री का आंकड़�� पार कर चुका है। 2021 में ही, TVS की स्कूटर बिक्री का 86% हिस्सा Jupiter के खाते में गया।
लेकिन इतने सफल सफर के बावजूद, Jupiter ने एक बड़ी जनरेशन अपडेट नहीं देखी थी — अब तक। आइए जानते हैं कि 2024 के नए TVS Jupiter में क्या खास है।
2024 TVS Jupiter: नया डिजाइन
2024 TVS Jupiter का डिज़ाइन एकदम नए अंदाज़ में प्रस्तुत किया गया है। पहली नजर में ही आपको महसूस होगा कि यह वही पुराना स्कूटर नहीं है, जिसमें कुछ छोटे-मोटे बदलाव किए गए हों। इसमें एक स्पोर्टी और यंग वाइब्स दिखती है।
सामने की तरफ, LED DRL के साथ इंटीग्रेटेड टर्न इंडिकेटर्स दिए गए हैं, जो इसे एक मॉडर्न और स्टाइलिश लुक देते हैं। साइड्स में अब डायनामिक लाइन्स हैं, जो इसे एक एक्टिव और एनर्जेटिक अपील देती हैं।
पीछे की तरफ, LED लाइट बार के साथ इंटीग्रेटेड टर्न सिग्नल और इमरजेंसी ब्रेकिंग लाइट्स दिए गए हैं। इन नए डिज़ाइन एलिमेंट्स के साथ, यह कहना गलत नहीं होगा कि नया Jupiter न केवल बदलते फैमिली स्कूटर बाजार के साथ कदम मिला रहा है, बल्कि इसमें अपनी अलग पहचान भी बना रहा है।
2024 TVS Jupiter: फीचर्स
डिज़ाइन अपग्रेड्स के अलावा, कंपनी ने नए Jupiter में मॉडर्न टेक्नोलॉजी भी शामिल की है।
LED हेडलैम्प अब "फॉलो-मी" फंक्शन के साथ आता है, जो इसके बड़े सिबलिंग से लिया गया है।
इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर एक डिजीटल यूनिट है, जिसमें स्पीडोमीटर, ट्रिप मीटर, टाइम, फ्यूल, इकॉनमी जैसे कई इंडिकेटर्स हैं।
इन फीचर्स के अलावा, एक USB चार्जर, रूमी ग्लव बॉक्स, और 33-लीटर का स्टोरेज स्पेस अंडर सीट में दिया गया है। यह सब मिलकर इसे एक फीचर-पैक्ड, प्रैक्टिकल फैमिली स्कूटर बनाते हैं, जो जेब पर भारी नहीं पड़ता।
TVS Jupiter 2024: राइडिंग कंफर्ट, एर्गोनॉमिक्स और परफॉरमेंस
राइड क्वालिटी की बात करें तो, Jupiter हमेशा से ही एक एगाइल और आसानी से चलाने वाला स्कूटर रहा है और 2024 का वेरिएंट भी इस मामले में अलग नहीं है।
इंजन स्पेसिफिकेशन देखें तो इसमें 113.3cc, सिंगल-सिलिंडर, एयर-कूल्ड इंजन है, जो 7.91 hp और 9.2 Nm का टॉर्क जनरेट करता है। नया iGo असिस्ट फीचर भी इसमें जोड़ा गया है, जो फ्यूल बचाने में मदद करता है और थ्रॉटल देने पर एक्स्ट्रा टॉर्क जनरेट करता है।
एर्गोनॉमिक्स की बात करें तो, नया Jupiter एक आरामदायक राइडिंग पोजिशन ऑफर करता है। सीट डिजाइन इस तरह की गई है कि लंबी सिटी राइड्स पर भी आपको कोई परेशानी नहीं होगी।
राइड क्वालिटी में नया Jupiter तेजी से लाइन से निकलता है और 53-55 kmph तक स्मूथ, लाइनियर एक्सेलरेशन ऑफर करता है।
ब्रेकिंग और सेफ्टी
ब्रेकिंग ड्यूटीज की बात करें तो, नए TVS Jupiter में 220mm फ्रंट डिस्क और 130mm रियर ड्रम का सेटअप है। इसके सिंक ब्रेक सिस्टम (SBS) से ब्रेकिंग एक्सपीरियंस कंफर्टेबल और सेफ रहता है।
TVS Jupiter 2024: वर्डिक्ट
निष्कर्ष के तौर पर, अपडेटेड Jupiter एक बेहतरीन पैकेज है। इसका स्टाइलिंग, नए फीचर्स और अपग्रेड्स इसे एक परफेक्ट फैमिली स्कूटर बनाते हैं।
यदि आप एक ऐसा स्कूटर चाहते हैं जो दिखने में शानदार हो और सभी जरूरी फीचर्स से लैस हो, तो यह निश्चित रूप से आपके रडार पर होना चाहिए।
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60+ Zindagi Sad Shayari in Hindi | ज़िन्दगी सैड शायरी
हम आपके लिए 60 से ज़्यादा Zindagi Sad Shayari in Hindi का संग्रह पेश करते हैं, जिन्हें Zindagi Sad Shayari भी कहा जाता है। जब कोई हमें गहरा दर्द देता है, तो ज़िंदगी थोड़ी उदास और भारी लगने लगती है। यह दर्द किसी प्रेमी, प्रेमिका, दोस्त या किसी प्रियजन से आ सकता है, जिससे हम अपनी भावनाओं को पूरी तरह से व्यक्त करने में असमर्थ हो जाते हैं। ये अनकही भावनाएँ हमें अंदर से परेशान कर सकती हैं। नीचे दी गई ज़िंदगी की दुखद शायरी हिंदी में पढ़ने से आपके दिल और दिमाग को हल्का करने में मदद मिल सकती है।.
बहुत से लोग Social Media और Whatsapp Status जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर ज़िंदगी की दुखद Shayari शेयर करते हैं, या तो अपना दुख व्यक्त करने के लिए या दूसरों को अपने जीवन में उथल-पुथल से अवगत कराने के लिए। इसे ध्यान में रखते हुए, हमने ज़िंदगी की दुखद शायरी का एक खास संग्रह तैयार किया है जो आपको गहराई से प्रभावित करेगा। इन दिल को छू लेने वाली शायरियों का आनंद लें और इनमें सांत्वना पाएँ।.
Best Zindagi Sad Shayari Hindi | Life Sad Shayari
सफर मोहब्बत का अब खत्म ही समझो,
तेर��� रवइये से जुदाई की महक आती है..!!!
एक ख्वाहिश थी के जिंदगी तेरे साथ गुजरे,
एक ख्वाहिश है कि तुमसे अब उम्र भर सामना ना हो..!!!
उजड़ी हुई दुनियां को तू आबाद ना कर,
बीते हुए लम्हों को तू याद ना कर,
एक कैद परिंदे ने कहा हमसे,
मैं भूल चुका हु उड़ान तू मुझे आजाद ना कर..!!!
जरूरी नहीं की हम सबको पसंद आए,
बस जिंदगी ऐसे जियो के रब को पसंद आए..!!!
थका हुआ हु थोड़ा, जिंदगी भी थोड़ी नाराज है,
पर कोई बात नही ये तो रोज की बात है..!!!
मसला तो सुकून का है,
वरना ज़िंदगी तो हर कोई काट रहा है..!!!
जिंदगी तो सभी के लिए एक जैसी है,
फर्क इतना है कि कोई दिल से जी रहा है, तो कोई दिल रखने के लिए जी रहा है..!!!
मैने वहां भी सिर्फ तुम्हे मांगा,
जहां लोग खुशियां मांगते है.!!!
मुस्कुराना तो आदत है हमारी जनाब,
वरना ज़िंदगी तो हमसे भी नाराज है..!!!
मुझे तेरा साथ जिंदगी भर नही चाहिए,
बस जब तक तू साथ है तब तक ज़िंदगी चाहिए.!!!
चलो मुस्कुराने की वजह ढूंढते है,
तुम हमे ढूंढो हम तुम्हे ढूंढते है..!!!
ज़िंदगी में एक सोच बेमिसाल रखो,
हालात चाहे जैसे भी हो चेहरे पर मुस्कान रखो..!!!
बचपन कितना खूबसूरत था,
तब खिलोने जिंदगी थे,
आज जिंदगी खिलौना है.!!!
बहुत देखा है जिंदगी में समझदार बनकर,
खुशी हमेशा प���गल बनकर ही मिलती है.!!!
खामोश चहरे पर हजारों पहरे होते है,
हस्ती आंखो में भी ज़ख्म गहरे होते है.!!!
ना जाने हम किसका बुरा किए बैठे है,
की बुरा वक्त पीछा ही नही छोड़ रहा.!!!
शुक्र है जिंदगी,
ना मिलेगी दोबारा..!!
Dard Zindagi Sad Shayari | दर्द ज़िन्दगी सैड शायरी
सता ले ए-जिंदगी जितना सताना है,
मुझे कौन सा मुझे कौन सा इस दुनिया में दोबारा आना है.!!!
जानता हु वो बेवफा भी नही,
कुछ दिनों से मगर मिला भी नही..!!!
सुकून ढूंढना है तो खुद में ढूंढो,
लोगों में ढूंढोगे तो बेचैन रहोगे..!!!
अगर आसुओं की कीमत होती,
तो कल रात वाला तकिया अरबों का होता.!!!
तुम तो डरते थे मुझे खोने से,
फिर तुम्हारा ये डर किसने दूर किया..!!!
आप बुलाए हम ना आए ऐसे तो हालत नही, और तो कोई ब
एक जरा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं…!!!
किस्मत की लकीरों पर ऐतबार करना छोड़ दिया,
जब इंसान बदल सकते हैं तो किस्मत क्यों नहीं..!!!
कुछ पल का साथ देकर तुमने,
पल पल के लिए बेचैन कर दिया..!!!
सहमी हुई थी झोपड़ी बारिश के खौफ से,
मेहलो की आरजू थी के बारिश जरा जम के बरसे..!!!
धोका ऐसे ही नही मिलता,
भला करना पड़ता है लोगो का..!!!
रखना था फासला पर तुमसे दिल लगा बैठे,
फिर तुम भी ना हासिल हुए और खुद को भी गवा बैठे..!!!
जहां में डूबा था मुझे वही किनारा चाहिए,
तू फिर आ मेरे पास मुझे तू दोबारा चाहिए..!!!
वो भी जिंदा है मैं भी जिंदा हु,
कत्ल सिर्फ इश्क का हुआ है..!!
बस इसलिए हम कुछ नहीं कहते तुमसे,
तुम समांझोगे नही और हम रो देंगे..!!!
खाली जेब लेकर निकलो कभी बाजार में,
जनाब वहम दूर हो जाएगा इज्जत कमाने का..!!!
दिल कहता है मैसेज कर दू उसे,
दिमाग कहता है हर बार जलील होना ठीक नहीं..!!!
मुझपर बहुत जिम्मेदारियां थी मेरे घर की,
माफ करना मैं तेरे इश्क में मर नहीं सकता..!!!
यह बिल्कुल भी जरूरी नहीं की,
खैरियत पूछने वाला आपकी खैरियत भी चाहता हो..!!!
Zindagi Sad Shayari 2 Line | Life Sad Shayari
माना दूरियां कुछ बढ़ सी गई है,
मगर तेरे हिस्से का वक्त हम आज भी तनहा गुजरते हैं..!!!
सबर मेरा कोई क्या ही आजमाएगा,
मैंने हंस के छोड़ा है उसे जो मुझे सबसे प्यारा था..!!!
जो प्रेमी पूजते है अपनी प्रेमिका इष्ट की तरह,
तय है उनका हवन की तरह जलना..!!!
Life Depression Zindagi Sad Shayari
ज़िंदगी ना कर जिद उनसे बात करने की,
वो बड़े लोग हैं अपनी मर्जी से बात करेंगे..!!!
मैने अपनी परछाई से पूछा तुम मेरे साथ क्यों चलती हो,
परछाई ने मुस्कुरा कर बोला अरे पागल मेरे सिवा तेरा है ही कौन..!!
बड़ी अजीब होती है ये यादें,
कभी हसा देती है, कभी रुला देती है..!!!
वो सोचती होगी बड़े चैन से सो रहा हु मै,
उसे क्या पता ओढ़ कर चादर रो रहा हु में..!!!
अरे इतनी नफरत है उसे मुझसे की मैं मर भी जाऊं,
तो उसे कोई फर्क नही पड़ेगा..!!
कितना अजीब है लोगों का अंदाज-ऐ-मोहब्बत,
रोज एक नया जख्म देकर कहते हैं अपना ख्याल रखना..!!!
तुम्हारी नियत ही नहीं थी रिश्ता निभाने की,
मैंने तो तुम्हारे सामने सर झुका कर भी देखा था..!!!
ज़िंदगी ने एक बात तो सीखा दी
की हम हमेशा किसी के लिए खास नही रह सकते..!!!
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‘‘#संत रविदास जी ने #तोडा सात सौ #पंडितों का अहंकार ‘‘
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◆ पारख के अंग की वाणी नं. 703-709 :-
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👉तुम पण्डित किस भांतिके, बोलत है रैदास।
गरीबदास हरि हेतसैं, कीन्हा यज्ञ उपास।।703।।
👉यज्ञ दई रैदासकूं, षटदर्शन बैठाय। गरीबदास बिंजन बहुत, नाना भांति कराय।।704।।
👉चमरा पंडित जीमहीं, एक पत्तल कै मांहि।
गरीबदास दीखै नहीं, कूदि कूदि पछतांहि।।705।।
👉रैदास भये है सात सै, मूढ पंडित गलखोडि।
गरीबदास उस यज्ञ में, बौहरि रही नहीं लोडि।।706।।
परे जनेऊ सात सै, काटी गल की फांस।
👉गरीबदास जहां सोने का, दिखलाया रैदास।।707।।
सूत सवामण टूटिया, काशी नगर मंझार।
👉गरीबदास रैदासकै, कनक जनेऊ सार।।708।।
पंडित शिष्य भये सात सै, उस काशी कै मांहि।
👉गरीबदास चमार कै, भेष लगे सब पाय।।709।।
◆#सरलार्थ :- संत रविदास जी का जन्म चमार समुदा�� में काशी नगर में हुआ। ये परमेश्वर कबीर जी के समकालीन हुए थे। परम भक्त रविदास जी अपना चर्मकार का कार्य किया करते थे। भक्ति भी करते थे। परमेश्वर कबीर जी ने काशी के प्रसिद्ध आचार्य स्वामी
रामानन्द जी को यथार्थ भक्ति मार्ग समझाया था। अपना सतलोक स्थान दिखाकर वापिस छोड़ा था। उससे पहले स्वामी रामानन्द जी केवल ब्राह्मण जाति के व्यक्तियों को ही शिष्य
बनाते थे। उसके पश्चात् स्वामी रामानंद जी ने अन्य जाति वालों को शिष्य बनाना प्रारम्भ किया था। संत रविदास जी ने भी आचार्य रामानन्द जी से दीक्षा ले रखी थी। भक्ति जो परमेश्वर कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को प्रथम मंत्रा बताया था, उसी को दीक्षा में स्वामी जी देते थे।
संत रविदास जी उसी प्रथम मंत्र का जाप किया करते थे। एक दिन संत रविदास को एक ब्राह्मण रास्ते में मिला और बोला, भक्त जी! आप गंगा स्नान के लिए चलोगे, मैं जा रहा हूँ।
संत रविदास जी ने कहा कि ‘मन चंगा तो कटोती में गंगा’, मैं नहीं जा रहा हूँ।
पंडित जी बोले कि आप नास्तिक से हो गए लगते हो। आप उस कबीर जी के साथ क्या रहने लगे हो, धर्म-कर्म ही त्याग दिया है। कुछ दान करना हो तो मुझे दे दो। मैं गंगा मईया को दे आऊँगा। रविदास जी ने जेब से एक कौड़ी निकालकर ब्राह्मण जी को दी तथा कहा कि हे विप्र! गंगा जी से मेरी यह कौड़ी देना। एक बात सुन ले, यदि गंगा जी हाथ में कौड़ी ले तो देना अन्यथा वापिस ले आना। यह कहना कि हे गंगा! यह कौड़ी काशी शहर
से भक्त रविदास ने भेजी है, इसे ग्रहण करें। पंडित जी ने गंगा दरिया पर खड़ा होकर ये शब्द कहे तो गंगा ने किनारे के पास हाथ निकालकर कौड़ी ली और दूसरे हाथ से पंडित जी को एक स्वर्ण (gold) का कंगन दिया जो अति सुंदर व बहुमूल्य था। गंगा ने कहा कि ये कंगन परम भक्त रविदास जी को देना। कहना कि आपने मुझ गंगा को कृतार्थ कर दिया अपने हाथ से प्रसाद देकर। मैं संत को क्या भेंट दे सकती हूँ? यह तुच्छ भेंट स्वीकार करना।
पंडित जी उस कंगन को लेकर चल पड़ा। पंडित जी के मन में लालच हुआ कि यह कंगन राजा को दूँगा। राजा इसके बदले में मुझे बहुत धन देगा। वह कंगन पंडित जी ने
राजा को दिया जो अद्भुत कंगन था। पंडित जी को बहुत-सा धन देकर विदा किया और उसका नाम, पता नोट किया। राजा ने वह कंगन रानी को दिया। रानी ने कंगन देखा तो अच्छा लगा। ऐसा कंगन कभी देखा ही नहीं था। रानी ने कहा कि एक कंगन ऐसा ही ओर चाहिए। जोड़ा होना चाहिए। राजा ने उसी पंडित को बुलाया और कहा कि जैसा कंगन पहले लाया था, वैसा ही एक और लाकर दे। जो धन कहेगा, वही दूँगा। यदि नहीं लाया तो
सपरिवार मौत के घाट उतारा जाएगा। उस धोखेबाज (420) के सामने पहाड़ जैसी समस्या खड़ी हो गई। सब सुनारों (श्राफों) के पास फिरकर अंत में परम भक्त रविदास जी के पास आया। अपनी गलती स्वीकार की। सर्व घटना गंगा को कौड़ी देना, बदले में कंगन लेना।
उस कंगन को भक्त रविदास जी को न देकर मुसीबत मोल लेना। पंडित जी ने
गिड़गिड़ाकर रविदास जी से अपने परिवार के जीवन की भिक्षा माँगी। रविदास जी ने कहा कि पंडित जी! आप क्षमा के योग्य नहीं हैं, परंतु परिवार पर आपत्ति आई है। इसलिए
आपकी सहायता करता हूँ। आप इस पानी कठोती (मिट्टी का बड़ा टब जिसमें चमड़ा भिगोया जाता था) में हाथ डाल और गंगा से यह कह कि भक्त रविदास जी की प्रार्थना है
कि आप कठोती में आएँ और एक कंगन वैसा ही दें। ऐसा कहकर पंडित जी ने जो रविदास के चमार होने के कारण पाँच फुट दूर से बातें करता था, अब उस चाम भिगोने वाले कुंड (टब) में हाथ देकर देखा तो हाथ में चार कंगन वैसे ही आए। भक्त रविदास जी ने कहा कि पंडित जी! एक ले जाना, शेष गंगा जी को लौटा दे, नहीं तो भयंकर आपत्ति ओर आ जाएगी। ब्राह्मण ने तुरंत तीन कंगन वापिस कुण्ड में डाल दिए और एक कंगन लेकर राजा को दिया। रानी ने पूछा कि यह कंगन कहाँ से लाए हो, मुझे बता। ब्राह्मण ने संत रविदास जी का पता बताया।
रानी ने सोचा कि कोई स्वर्णकार (Goldsmith) होगा और ढ़ेर सारे कंगन लाऊँगी।
रानी को एक असाध्य रोग था। पित्तर का साया भी था। बहुत परेशान रहती थी। सब जगह उपचार करा लिया था। साधु-संतों का आशीर्वाद भी ले चुकी थी। परंतु कोई राहत नहीं मिल रही थी। रानी उस पते पर गई। साथ में नौकरानी तथा अंगरक्षक भी थे। रानी ने संत रविदास जी के दर्शन किए। दर्शन करने से ही रानी के शरीर का कष्ट समाप्त हो गया।
रानी को ऐसा अहसास हुआ जैसे सिर से भारी भार उतर गया हो। रानी ने संत जी के तुरंत चरण छूए। रविदास जी ने कहा कि मुझ निर्धन के पास मालकिन का कैसे आना हुआ? रानी ने कहा कि मैं तो सुनार की दुकान समझकर आई थी गुरूजी। मेरा तो जीवन धन्य हो गया।
मेरा जीवन नरक बना था रोग के कारण। आपके दर्शन से वह स्वस्थ हो गया। मैंने इसके उपचार के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी। परंतु कोई लाभ नही हो रहा था। संत रविदास जी ने कहा कि बहन जी! आपके पास भौतिक धन तो पर्याप्त है। यह आपके पूर्व जन्म के पुण्यों का फल है। भविष्य में भी सुख प्राप्ति के लिए आपको वर्तमान में पुण्य करने पड़ेंगे।
आध्यात्म धन संग्रह करो। रानी ने कहा कि संत जी! मैं बहुत दान-धर्म करती हूँ। महीने में पूर्णमासी को भण्डारा करती हूँ। आसपास के ब्राह्मणों तथा संतों को भोजन कराती हूँ।
👉#संत_रविदास जी ने कहा :-
बिन गुरू भजन दान बिरथ हैं, ज्यूं लूटा चोर।
न मुक्ति न लाभ संसारी, कह समझाऊँ तोर।।
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान।
गुरू बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो बेद पुरान।।
रानी ने कहा कि हे संत जी! मैंने एक ब्राह्मण गुरू बनाया है। रविदास जी ने कहा कि नकली गुरू से भी कुछ लाभ नहीं होने का। आप जी ने ग���रू भी बना रखा था और कष्ट यथावत थे। क्या लाभ ऐसे गुरू से? रानी ने कहा कि आप सत्य कहते हैं। आप मुझे शिष्या
बना लो। रविदास जी ने रानी को प्रथम मंत्रा दिया। रानी ने कहा कि गुरूजी! अबकी पूर्णमासी को आपके नाम से भोजन-भण्डारा (लंगर) करूंगी। आप जी मेरे घर पर आना।
निश्चित तिथि को रविदास जी राजा के घर पहुँचे। पूर्व में आमंत्रित सात सौ ब्राह्मण भी भोजन-भण्डारे में पहुँचे। भण्डारा शुरू हुआ। रानी ने अपने गुरू रविदास जी को अच्छे आसन पर बैठा रखा था। उसके साथ सात सौ ब्राह्मणों को भोजन के लिए पंक्ति में बैठने के लिए निवेदन किया। ब्राह्मण कई पंक्तियों में बैठे थे। भोजन सामने रख दिया गया था। उसी समय ब्राह्मणों ने देखा कि रविदास जी अछूत जाति वाले साथ में बैठे हैं। सब अपने-अपने स्थान पर खड़े हो गए और कहने लगे कि हम भोजन नहीं करेंगे। यह अछूत रविदास जो बैठा है, इसे दूर करो। रानी ने कहा कि यह मेरे गुरू जी हैं, ये दूर नहीं होंगे। संत रविदास जी ने रानी से कहा कि बेटी! आप मेरी बात मानो। मैं दूर बैठता हूँ। रविदास जी उठकर ब्राह्मणों ने जहाँ जूती निकाल रखी थी, उनके पीछे बैठ गए। पंडितजन भोजन करने बैठ गए। उसी समय रविदास जी के सात सौ रूप बने और प्रत्येक ब्राह्मण के साथ थाली में खाना खाते दिखाई दिए। एक ब्राह्मण दूसरे को कहता है कि आपके साथ एक शुद्र रविदास भोजन कर रहा है, छोड़ दे इस भोजन को। सामने वाला कहता है कि आपके साथ भी भोजन खा रहा है। इस प्रकार प्रत्येक के साथ रविदास जी भोजन खाते दिखाई दिए। रविदास जी दूर बैठे कहने लगे कि हे ब्राह्मणगण! मुझे क्यों बदनाम करते हो, देखो! मैं तो यहाँ बैठा हूँ।
इस लीला को राजा, रानी, मंत्री सब उपस्थित गणमान्य व्यक्ति भी देख रहे थे। तब रविदास जी ने कहा कि ब्राह्मण कर्म से होता है, जाति से नहीं। अपने शरीर के अंदर (खाल के भीतर) स्वर्ण (gold) का जनेऊ दिखाया। कहा कि मैं वास्तव में ब्राह्मण हूँ। मैं जन्म से ब्राह्मण हूँ।
कुछ देर सत्संग सुनाया। उस समय सात सौ ब्राह्मणों ने अपने नकली जनेऊ (कच्चे धागे की डोर जो गले में तथा कॉख के नीचे से दूसरे कंधे पर बाँधी होती है) तोड़कर संत रविदास जी के शिष्य हुए। सत्य साधना करके अपना कल्याण कराया। सात सौ ब्राह्मणों के जनेऊओं के सूत का सवा मन (50 कि.ग्राम) भार तोला गया था।
क्रमशः_________________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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( #Muktibodh_part161 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part162
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 311-312
‘‘संत रविदास जी द्वारा सात सौ पंडितों को शरण में लेना‘‘
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 703-709 :-
तुम पण्डित किस भांतिके, बोलत है रैदास।
गरीबदास हरि हेतसैं, कीन्हा यज्ञ उपास।।703।।
यज्ञ दई रैदासकूं, षटदर्शन बैठाय। गरीबदास बिंजन बहुत, नाना भांति कराय।।704।।
चमरा पंडित जीमहीं, एक पत्तल कै मांहि।
गरीबदास दीखै नहीं, कूदि कूदि पछतांहि।।705।।
रैदास भये है सात सै, मूढ पंडित गलखोडि।
गरीबदास उस यज्ञ में, बौहरि रही नहीं लोडि।।706।।
परे जनेऊ सात सै, काटी गल की फांस।
गरीबदास जहां सोने का, दिखलाया रैदास।।707।।
सूत सवामण टूटिया, काशी नगर मंझार।
गरीबदास रैदासकै, कनक जनेऊ सार।।708।।
पंडित शिष्य भये सात सै, उस काशी कै मांहि।
गरीबदास चमार कै, भेष लगे सब पाय।।709।।
◆सरलार्थ :- संत रविदास जी का जन्म चमार समुदाय में काशी नगर में हुआ। ये परमेश्वर कबीर जी के समकालीन हुए थे। परम भक्त रविदास जी अपना चर्मकार का कार्य किया करते थे। भक्ति भी करते थे। परमेश्वर कबीर जी ने काशी के प्रसिद्ध आचार्य स्वामी
रामानन्द जी को यथार्थ भक्ति मार्ग समझाया था। अपना सतलोक स्थान दिखाकर वापिस छोड़ा था। उससे पहले स्वामी रामानन्द जी केवल ब्राह्मण जाति के व्यक्तियों को ही शिष्य
बनाते थे। उसके पश्चात् स्वामी रामानंद जी ने अन्य जाति वालों को शिष्य बनाना प्रारम्भ किया था। संत रविदास जी ने भी आचार्य रामानन्द जी से दीक्षा ले रखी थी। भक्ति जो परमेश्वर कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को प्रथम मंत्रा बताया था, उसी को दीक्षा में स्वामी जी देते थे।
संत रविदास जी उसी प्रथम मंत्र का जाप किया करते थे। एक दिन संत रविदास को एक ब्राह्मण रास्ते में मिला और बोला, भक्त जी! आप गंगा स्नान के लिए चलोगे, मैं जा रहा हूँ।
संत रविदास जी ने कहा कि ‘मन चंगा तो कटोती में गंगा’, मैं नहीं जा रहा हूँ।
पंडित जी बोले कि आप नास्तिक से हो गए लगते हो। आप उस कबीर जी के साथ क्या रहने लगे हो, धर्म-कर्म ही त्याग दिया है। कुछ दान करना हो तो मुझे दे दो। मैं गंगा मईया को दे आऊँगा। रविदास जी ने जेब से एक कौड़ी निकालकर ब्राह्मण जी को दी तथा कहा कि हे विप्र! गंगा जी से मेरी यह कौड़ी देना। एक बात सुन ले, यदि गंगा जी हाथ में कौड़ी ले तो देना अन्यथा वापिस ले आना। यह कहना कि हे गंगा! यह कौड़ी काशी शहर
से भक्त रविदास ने भेजी है, इसे ग्रहण करें। पंडित जी ने गंगा दरिया पर खड़ा होकर ये शब्द कहे तो गंगा ने किनारे के पास हाथ निकालकर कौड़ी ली और दूसरे हाथ से पंडित जी को एक स्वर्ण (gold) का कंगन दिया जो अति सुंदर व बहुमूल्य था। गंगा ने कहा कि ये कंगन परम भक्त रविदास जी को देना। कहना कि आपने मुझ गंगा को कृतार्थ कर दिया अपने हाथ से प्रसाद देकर। मैं संत को क्या भेंट दे सकती हूँ? यह तुच्छ भेंट स्वीकार करना।
पंडित जी उस कंगन को लेकर चल पड़ा। पंडित जी के मन में लालच हुआ कि यह कंगन राजा को दूँगा। राजा इसके बदले में मुझे बहुत धन देगा। वह कंगन पंडित जी ने
राजा को दिया जो अद्भुत कंगन था। पंडित जी को बहुत-सा धन देकर विदा किया और उसका नाम, पता नोट किया। राजा ने वह कंगन रानी को दिया। रानी ने कंगन देखा तो अच्छा लगा। ऐसा कंगन कभी देखा ही नहीं था। रानी ने कहा कि एक कंगन ऐसा ही ओर चाहिए। जोड़ा होना चाहिए। राजा ने उसी पंडित को बुलाया और कहा कि जैसा कंगन पहले लाया था, वैसा ही एक और लाकर दे। जो धन कहेगा, वही दूँगा। यदि नहीं लाया तो
सपरिवार मौत के घाट उतारा जाएगा। उस धोखेबाज (420) के सामने पहाड़ जैसी समस्या खड़ी हो गई। सब सुनारों (श्राफों) के पास फिरकर अंत में परम भक्त रविदास जी के पास आया। अपनी गलती स्वीकार की। सर्व घटना गंगा को कौड़ी देना, बदले में कंगन लेना।
उस कंगन को भक्त रविदास जी को न देकर मुसीबत मोल लेना। पंडित जी ने
गिड़गिड़ाकर रविदास जी से अपने परिवार के जीवन की भिक्षा माँगी। रविदास जी ने कहा कि पंडित जी! आप क्षमा के योग्य नहीं हैं, परंतु परिवार पर आपत्ति आई है। इसलिए
आपकी सहायता करता हूँ। आप इस पानी कठोती (मिट्टी का बड़ा टब जिसमें चमड़ा भिगोया जाता था) में हाथ डाल और गंगा से यह कह कि भक्त रविदास जी की प्रार्थना है
कि आप कठोती में आएँ और एक कंगन वैसा ही दें। ऐसा कहकर पंडित जी ने जो रविदास के चमार होने के कारण पाँच फुट दूर से बातें करता था, अब उस चाम भिगोने वाले कुंड (टब) में हाथ देकर देखा तो हाथ में चार कंगन वैसे ही आए। भक्त रविदास जी ने कहा कि पंडित जी! एक ले जाना, शेष गंगा जी को लौटा दे, नहीं तो भयंकर आपत्ति ओर आ जाएगी। ब्राह्मण ने तुरंत तीन कंगन वापिस कुण्ड में डाल दिए और एक कंगन लेकर राजा को दिया। रानी ने पूछा कि यह कंगन कहाँ से लाए हो, मुझे बता। ब्राह्मण ने संत रविदास जी का पता बताया।
रानी ने सोचा कि कोई स्वर्णकार (Goldsmith) होगा और ढ़ेर सारे कंगन लाऊँगी।
रानी को एक असाध्य रोग था। पित्तर का साया भी था। बहुत परेशान रहती थी। सब जगह उपचार करा लिया था। साधु-संतों का आशीर्वाद भी ले चुकी थी। परंतु कोई राहत नहीं मिल रही थी। रानी उस पते पर गई। साथ में नौकरानी तथा अंगरक्षक भी थे। रानी ने संत रविदास जी के दर्शन किए। दर्शन करने से ही रानी के शरीर का कष्ट समाप्त हो गया।
रानी को ऐसा अहसास हुआ जैसे सिर से भारी भार उतर गया हो। रानी ने संत जी के तुरंत चरण छूए। रविदास जी ने कहा कि मुझ निर्धन के पास मालकिन का कैसे आना हुआ? रानी ने कहा कि मैं तो सुनार की दुकान समझकर आई थी गुरूजी। मेरा तो जीवन धन्य हो गया।
मेरा जीवन नरक बना था रोग के कारण। आपके दर्शन से वह स्वस्थ हो गया। मैंने इसके उपचार के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी। परंतु कोई लाभ नही हो रहा था। संत रविदास जी ने कहा कि बहन जी! आपके पास भौतिक धन तो पर्याप्त है। यह आपके पूर्व जन्म के पुण्यों का फल है। भविष्य में भी सुख प्राप्ति के लिए आपको वर्तमान में पुण्य करने पड़ेंगे।
आध्यात्म धन संग्रह करो। रानी ने कहा कि संत जी! मैं बहुत दान-धर्म करती हूँ। महीने में पूर्णमासी को भण्डारा करती हूँ। आसपास के ब्राह्मणों तथा संतों को भोजन कराती हूँ।
संत रविदास जी ने कहा :-
बिन गुरू भजन दान बिरथ हैं, ज्यूं लूटा चोर।
न मुक्ति न लाभ संसारी, कह समझाऊँ तोर।।
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान।
गुरू बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो बेद पुरान।।
रानी ने कहा कि हे संत जी! मैंने एक ब्राह्मण गुरू बनाया है। रविदास जी ने कहा कि नकली गुरू से भी कुछ लाभ नहीं होने का। आप जी ने गुरू भी बना रखा था और कष्ट यथावत थे। क्या लाभ ऐसे गुरू से? रानी ने कहा कि आप सत्य कहते हैं। आप मुझे शिष्या
बना लो। रविदास जी ने रानी को प्रथम मंत्रा दिया। रानी ने कहा कि गुरूजी! अबकी पूर्णमासी को आपके नाम से भोजन-भण्डारा (लंगर) करूंगी। आप जी मेरे घर पर आना।
निश्चित तिथि को रविदास जी राजा के घर पहुँचे। पूर्व में आमंत्रित सात सौ ब्राह्मण भी भोजन-भण्डारे में पहुँचे। भण्डारा शुरू हुआ। रानी ने अपने गुरू रविदास जी को अच्छे आसन पर बैठा रखा था। उसके साथ सात सौ ब्राह्मणों को भोजन के लिए पंक्ति में बैठने के लिए निवेदन किया। ब्राह्मण कई पंक्तियों में बैठे थे। भोजन सामने रख दिया गया था। उसी समय ब्राह्मणों ने देखा कि रविदास जी अछूत जाति वाले साथ में बैठे हैं। सब अपने-अपने स्थान पर खड़े हो गए और कहने लगे कि हम भोजन नहीं करेंगे। यह अछूत रविदास जो बैठा है, इसे दूर करो। रानी ने कहा कि यह मेरे गुरू जी हैं, ये दूर नहीं होंगे। संत रविदास जी ने रानी से कहा कि बेटी! आप मेरी बात मानो। मैं दूर बैठता हूँ। रविदास जी उठकर ब्राह्मणों ने जहाँ जूती निकाल रखी थी, उनके पीछे बैठ गए। पंडितजन भोजन करने बैठ गए। उसी समय रविदास जी के सात सौ रूप बने और प्रत्येक ब्राह्मण के साथ थाली में खाना खाते दिखाई दिए। एक ब्राह्मण दूसरे को कहता है कि आपके साथ एक शुद्र रविदास भोजन कर रहा है, छोड़ दे इस भोजन को। सामने वाला कहता है कि आपके साथ भी भोजन खा रहा है। इस प्रकार प्रत्येक के साथ रविदास जी भोजन खाते दिखाई दिए। रविदास जी दूर बैठे कहने लगे कि हे ब्राह्मणगण! मुझे क्यों बदनाम करते हो, देखो! मैं तो यहाँ बैठा हूँ।
इस लीला को राजा, रानी, मंत्री सब उपस्थित गणमान्य व्यक्ति भी देख रहे थे। तब रविदास जी ने कहा कि ब्राह्मण कर्म से होता है, जाति से नहीं। अपने शरीर के अंदर (खाल के भीतर) स्वर्ण (gold) का जनेऊ दिखाया। कहा कि मैं वास्तव में ब्राह्मण हूँ। मैं जन्म से ब्राह्मण हूँ।
कुछ देर सत्संग सुनाया। उस समय सात सौ ब्राह्मणों ने अपने नकली जनेऊ (कच्चे धागे की डोर जो गले में तथा कॉख के नीचे से दूसरे कंधे पर बाँधी होती है) तोड़कर संत रविदास जी के शिष्य हुए। सत्य साधना करके अपना कल्याण कराया। सात सौ ब्राह्मणों के जनेऊओं के सूत का सवा मन (50 कि.ग्राम) भार तोला गया था।
क्रमशः_________________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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#MuktiBodh_Part162
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 311-312
‘‘संत रविदास जी द्वारा सात सौ पंडितों को शरण में लेना‘‘
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 703-709 :-
तुम पण्डित किस भांतिके, बोलत है रैदास।
गरीबदास हरि हेतसैं, कीन्हा यज्ञ उपास।।703।।
यज्ञ दई रैदासकूं, षटदर्शन बैठाय। गरीबदास बिंजन बहुत, नाना भांति कराय।।704।।
चमरा पंडित जीमहीं, एक पत्तल कै मांहि।
गरीबदास दीखै नहीं, कूदि कूदि पछतांहि।।705।।
रैदास भये है सात सै, मूढ पंडित गलखोडि।
गरीबदास उस यज्ञ में, बौहरि रही नहीं लोडि।।706।।
परे जनेऊ सात सै, काटी गल की फांस।
गरीबदास जहां सोने का, दिखलाया रैदास।।707।।
सूत सवामण टूटिया, काशी नगर मंझार।
गरीबदास रैदासकै, कनक जनेऊ सार।।708।।
पंडित शिष्य भये सात सै, उस काशी कै मांहि।
गरीबदास चमार कै, भेष लगे सब पाय।।709।।
◆सरलार्थ :- संत रविदास जी का जन्म चमार समुदाय में काशी नगर में हुआ। ये परमेश्वर कबीर जी के समकालीन हुए थे। परम भक्त रविदास जी अपना चर्मकार का कार्य किया करते थे। भक्ति भी करते थे। परमेश्वर कबीर जी ने काशी के प्रसिद्ध आचार्य स्वामी
रामानन्द जी को यथार्थ भक्ति मार्ग समझाया था। अपना सतलोक स्थान दिखाकर वापिस छोड़ा था। उससे पहले स्वामी रामानन्द जी केवल ब्राह्मण जाति के व्यक्तियों को ही शिष्य
बनाते थे। उसके पश्चात् स्वामी रामानंद जी ने अन्य जाति वालों को शिष्य बनाना प्रारम्भ किया था। संत रविदास जी ने भी आचार्य रामानन्द जी से दीक्षा ले रखी थी। भक्ति जो परमेश्वर कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को प्रथम मंत्रा बताया था, उसी को दीक्षा में स्वामी जी देते थे।
संत रविदास जी उसी प्रथम मंत्र का जाप किया करते थे। एक दिन संत रविदास को एक ब्राह्मण रास्ते में मिला और बोला, भक्त जी! आप गंगा स्नान के लिए चलोगे, मैं जा रहा हूँ।
संत रविदास जी ने कहा कि ‘मन चंगा तो कटोती में गंगा’, मैं नहीं जा रहा हूँ।
पंडित जी बोले कि आप नास्तिक से हो गए लगते हो। आप उस कबीर जी के साथ क्या रहने लगे हो, धर्म-कर्म ही त्याग दिया है। कुछ दान करना हो तो मुझे दे दो। मैं गंगा मईया को दे आऊँगा। रविदास जी ने जेब से एक कौड़ी निकालकर ब्राह्मण जी को दी तथा कहा कि हे विप्र! गंगा जी से मेरी यह कौड़ी देना। एक बात सुन ले, यदि गंगा जी हाथ में कौड़ी ले तो देना अन्यथा वापिस ले आना। यह कहना कि हे गंगा! यह कौड़ी काशी शहर
से भक्त रविदास ने भेजी है, इसे ग्रहण करें। पंडित जी ने गंगा दरिया पर खड़ा होकर ये शब्द कहे तो गंगा ने किनारे के पास हाथ निकालकर कौड़ी ली और दूसरे हाथ से पंडित जी को एक स्वर्ण (gold) का कंगन दिया जो अति सुंदर व बहुमूल्य था। गंगा ने कहा कि ये कंगन परम भक्त रविदास जी को देना। कहना कि आपने मुझ गंगा को कृतार्थ कर दिया अपने हाथ से प्रसाद देकर। मैं संत को क्या भेंट दे सकती हूँ? यह तुच्छ भेंट स्वीकार करना।
पंडित जी उस कंगन को लेकर चल पड़ा। पंडित जी के मन में लालच हुआ कि यह कंगन राजा को दूँगा। राजा इसके बदले में मुझे बहुत धन देगा। वह कंगन पंडित जी ने
राजा को दिया जो अद्भुत कंगन था। पंडित जी को बहुत-सा धन देकर विदा किया और उसका नाम, पता नोट किया। राजा ने वह कंगन रानी को दिया। रानी ने कंगन देखा तो अच्छा लगा। ऐसा कंगन कभी देखा ही नहीं था। रानी ने कहा कि एक कंगन ऐसा ही ओर चाहिए। जोड़ा होना चाहिए। राजा ने उसी पंडित को बुलाया और कहा कि जैसा कंगन पहले लाया था, वैसा ही एक और लाकर दे। जो धन कहेगा, वही दूँगा। यदि नहीं लाया तो
सपरिवार मौत के घाट उतारा जाएगा। उस धोखेबाज (420) के सामने पहाड़ जैसी समस्या खड़ी हो गई। सब सुनारों (श्राफों) के पास फिरकर अंत में परम भक्त रविदास जी के पास आया। अपनी गलती स्वीकार की। सर्व घटना गंगा को कौड़ी देना, बदले में कंगन लेना।
उस कंगन को भक्त रविदास जी को न देकर मुसीबत मोल लेना। पंडित जी ने
गिड़गिड़ाकर रविदास जी से अपने परिवार के जीवन की भिक्षा माँगी। रविदास जी ने कहा कि पंडित जी! आप क्षमा के योग्य नहीं हैं, परंतु परिवार पर आपत्ति आई है। इसलिए
आपकी सहायता करता हूँ। आप इस पानी कठोती (मिट्टी का बड़ा टब जिसमें चमड़ा भिगोया जाता था) में हाथ डाल और गंगा से यह कह कि भक्त रविदास जी की प्रार्थना है
कि आप कठोती में आएँ और एक कंगन वैसा ही दें। ऐसा कहकर पंडित जी ने जो रविदास के चमार होने के कारण पाँच फुट दूर से बातें करता था, अब उस चाम भिगोने वाले कुंड (टब) में हाथ देकर देखा तो हाथ में चार कंगन वैसे ही आए। भक्त रविदास जी ने कहा कि पंडित जी! एक ले जाना, शेष गंगा जी को लौटा दे, नहीं तो भयंकर आपत्ति ओर आ जाएगी। ब्राह्मण ने तुरंत तीन कंगन वापिस कुण्ड में डाल दिए और एक कंगन लेकर राजा को दिया। रानी ने पूछा कि यह कंगन कहाँ से लाए हो, मुझे बता। ब्राह्मण ने संत रविदास जी का पता बताया।
रानी ने सोचा कि कोई स्वर्णकार (Goldsmith) होगा और ढ़ेर सारे कंगन लाऊँगी।
रानी को एक असाध्य रोग था। पित्तर का साया भी था। बहुत परेशान रहती थी। सब जगह उपचार करा लिया था। साधु-संतों का आशीर्वाद भी ले चुकी थी। परंतु कोई राहत नहीं मिल रही थी। रानी उस पते पर गई। साथ में नौकरानी तथा अंगरक्षक भी थे। रानी ने संत रविदास जी के दर्शन किए। दर्शन करने से ही रानी के शरीर का कष्ट समाप्त हो गया।
रानी को ऐसा अहसास हुआ जैसे सिर से भारी भार उतर गया हो। रानी ने संत जी के तुरंत चरण छूए। रविदास जी ने कहा कि मुझ निर्धन के पास मालकिन का कैसे आना हुआ? रानी ने कहा कि मैं तो सुनार की दुकान समझकर आई थी गुरूजी। मेरा तो जीवन धन्य हो गया।
मेरा जीवन नरक बना था रोग के कारण। आपके दर्शन से वह स्वस्थ हो गया। मैंने इसके उपचार के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी। परंतु कोई लाभ नही हो रहा था। संत रविदास जी ने कहा कि बहन जी! आपके पास भौतिक धन तो पर्याप्त है। यह आपके पूर्व जन्म के पुण्यों का फल है। भविष्य में भी सुख प्राप्ति के लिए आपको वर्तमान में पुण्य करने पड़ेंगे।
आध्यात्म धन संग्रह करो। रानी ने कहा कि संत जी! मैं बहुत दान-धर्म करती हूँ। महीने में पूर्णमासी को भण्डारा करती ह��ँ। आसपास के ब्राह्मणों तथा संतों को भोजन कराती हूँ।
संत रविदास जी ने कहा :-
बिन गुरू भजन दान बिरथ हैं, ज्यूं लूटा चोर।
न मुक्ति न लाभ संसारी, कह समझाऊँ तोर।।
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान।
गुरू बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो बेद पुरान।।
रानी ने कहा कि हे संत जी! मैंने एक ब्राह्मण गुरू बनाया है। रविदास जी ने कहा कि नकली गुरू से भी कुछ लाभ नहीं होने का। आप जी ने गुरू भी बना रखा था और कष्ट यथावत थे। क्या लाभ ऐसे गुरू से? रानी ने कहा कि आप सत्य कहते हैं। आप मुझे शिष्या
बना लो। रविदास जी ने रानी को प्रथम मंत्रा दिया। रानी ने कहा कि गुरूजी! अबकी पूर्णमासी को आपके नाम से भोजन-भण्डारा (लंगर) करूंगी। आप जी मेरे घर पर आना।
निश्चित तिथि को रविदास जी राजा के घर पहुँचे। पूर्व में आमंत्रित सात सौ ब्राह्मण भी भोजन-भण्डारे में पहुँचे। भण्डारा शुरू हुआ। रानी ने अपने गुरू रविदास जी को अच्छे आसन पर बैठा रखा था। उसके साथ सात सौ ब्राह्मणों को भोजन के लिए पंक्ति में बैठने के लिए निवेदन किया। ब्राह्मण कई पंक्तियों में बैठे थे। भोजन सामने रख दिया गया था। उसी समय ब्राह्मणों ने देखा कि रविदास जी अछूत जाति वाले साथ में बैठे हैं। सब अपने-अपने स्थान पर खड़े हो गए और कहने लगे कि हम भोजन नहीं करेंगे। यह अछूत रविदास जो बैठा है, इसे दूर करो। रानी ने कहा कि यह मेरे गुरू जी हैं, ये दूर नहीं होंगे। संत रविदास जी ने रानी से कहा कि बेटी! आप मेरी बात मानो। मैं दूर बैठता हूँ। रविदास जी उठकर ब्राह्मणों ने जहाँ जूती निकाल रखी थी, उनके पीछे बैठ गए। पंडितजन भोजन करने बैठ गए। उसी समय रविदास जी के सात सौ रूप बने और प्रत्येक ब्राह्मण के साथ थाली में खाना खाते दिखाई दिए। एक ब्राह्मण दूसरे को कहता है कि आपके साथ एक शुद्र रविदास भोजन कर रहा है, छोड़ दे इस भोजन को। सामने वाला कहता है कि आपके साथ भी भोजन खा रहा है। इस प्रकार प्रत्येक के साथ रविदास जी भोजन खाते दिखाई दिए। रविदास जी दूर बैठे कहने लगे कि हे ब्राह्मणगण! मुझे क्यों बदनाम करते हो, देखो! मैं तो यहाँ बैठा हूँ।
इस लीला को राजा, रानी, मंत्री सब उपस्थित गणमान्य व्यक्ति भी देख रहे थे। तब रविदास जी ने कहा कि ब्राह्मण कर्म से होता है, जाति से नहीं। अपने शरीर के अंदर (खाल के भीतर) स्वर्ण (gold) का जनेऊ दिखाया। कहा कि मैं वास्तव में ब्राह्मण हूँ। मैं जन्म से ब्राह्मण हूँ।
कुछ देर सत्संग सुनाया। उस समय सात सौ ब्राह्मणों ने अपने नकली जनेऊ (कच्चे धागे की डोर जो गले में तथा कॉख के नीचे से दूसरे कंधे पर बाँधी होती है) तोड़कर संत रविदास जी के शिष्य हुए। सत्य साधना करके अपना कल्याण कराया। सात सौ ब्राह्मणों के जनेऊओं के सूत का सवा मन (50 कि.ग्राम) भार तोला गया था।
क्रमशः_________________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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( #Muktibodh_part161 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part162
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 311-312
‘‘संत रविदास जी द्वारा सात सौ पंडितों को शरण में लेना‘‘
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 703-709 :-
तुम पण्डित किस भांतिके, बोलत है रैदास।
गरीबदास हरि हेतसैं, कीन्हा यज्ञ उपास।।703।।
यज्ञ दई रैदासकूं, षटदर्शन बैठाय। गरीबदास बिंजन बहुत, नाना भांति कराय।।704।।
चमरा पंडित जीमहीं, एक पत्तल कै मांहि।
गरीबदास दीखै नहीं, कूदि कूदि पछतांहि।।705।।
रैदास भये है सात सै, मूढ पंडित गलखोडि।
गरीबदास उस यज्ञ में, बौहरि रही नहीं लोडि।।706।।
परे जनेऊ सात सै, काटी गल की फांस।
गरीबदास जहां सोने का, दिखलाया रैदास।।707।।
सूत सवामण टूटिया, काशी नगर मंझार।
गरीबदास रैदासकै, कनक जनेऊ सार।।708।।
पंडित शिष्य भये सात सै, उस काशी कै मांहि।
गरीबदास चमार कै, भेष लगे सब पाय।।709।।
◆सरलार्थ :- संत रविदास जी का जन्म चमार समुदाय में काशी नगर में हुआ। ये परमेश्वर कबीर जी के समकालीन हुए थे। परम भक्त रविदास जी अपना चर्मकार का कार्य किया करते थे। भक्ति भी करते थे। परमेश्वर कबीर जी ने काशी के प्रसिद्ध आचार्य स्वामी
रामानन्द जी को यथार्थ भक्ति मार्ग समझाया था। अपना सतलोक स्थान दिखाकर वापिस छोड़ा था। उससे पहले स्वामी रामानन्द जी केवल ब्राह्मण जाति के व्यक्तियों को ही शिष्य
बनाते थे। उसके पश्चात् स्वामी रामानंद जी ने अन्य जाति वालों को शिष्य बनाना प्रारम्भ किया था। संत रविदास जी ने भी आचार्य रामानन्द जी से दीक्षा ले रखी थी। भक्ति जो परमेश्वर कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को प्रथम मंत्रा बताया था, उसी को दीक्षा में स्वामी जी देते थे।
संत रविदास जी उसी प्रथम मंत्र का जाप किया करते थे। एक दिन संत रविदास को एक ब्राह्मण रास्ते में मिला और बोला, भक्त जी! आप गंगा स्नान के लिए चलोगे, मैं जा रहा हूँ।
संत रविदास जी ने कहा कि ‘मन चंगा तो कटोती में गंगा’, मैं नहीं जा रहा हूँ।
पंडित जी बोले कि आप नास्तिक से हो गए लगते हो। आप उस कबीर जी के साथ क्या रहने लगे हो, धर्म-कर्म ही त्याग दिया है। कुछ दान करना हो तो मुझे दे दो। मैं गंगा मईया को दे आऊँगा। रविदास जी ने जेब से एक कौड़ी निकालकर ब्राह्मण जी को दी तथा कहा कि हे विप्र! गंगा जी से मेरी यह कौड़ी देना। एक बात सुन ले, यदि गंगा जी हाथ में कौड़ी ले तो देना अन्यथा वापिस ले आना। यह कहना कि हे गंगा! यह कौड़ी काशी शहर
से भक्त रविदास ने भेजी है, इसे ग्रहण करें। पंडित जी ने गंगा दरिया पर खड़ा होकर ये शब्द कहे तो गंगा ने किनारे के पास हाथ निकालकर कौड़ी ली और दूसरे हाथ से पंडित जी को एक स्वर्ण (gold) का कंगन दिया जो अति सुंदर व बहुमूल्य था। गंगा ने कहा कि ये कंगन परम भक्त रविदास जी को देना। कहना कि आपने मुझ गंगा को कृतार्थ कर दिया अपने हाथ से प्रसाद देकर। मैं संत को क्या भेंट दे सकती हूँ? यह तुच्छ भेंट स्वीकार करना।
पंडित जी उस कंगन को लेकर चल पड़ा। पंडित जी के मन में लालच हुआ कि यह कंगन राजा को दूँगा। राजा इसके बदले में मुझे बहुत धन देगा। वह कंगन पंडित जी ने
राजा को दिया जो अद्भुत कंगन था। पंडित जी को बहुत-सा धन देकर विदा किया और उसका नाम, पता नोट किया। राजा ने वह कंगन रानी को दिया। रानी ने कंगन देखा तो अच्छा लगा। ऐसा कंगन कभी देखा ही नहीं था। रानी ने कहा कि एक कंगन ऐसा ही ओर चाहिए। जोड़ा होना चाहिए। राजा ने उसी पंडित को बुलाया और कहा कि जैसा कंगन पहले लाया था, वैसा ही एक और लाकर दे। जो धन कहेगा, वही दूँगा। यदि नहीं लाया तो
सपरिवार मौत के घाट उतारा जाएगा। उस धोखेबाज (420) के सामने पहाड़ जैसी समस्या खड़ी हो गई। सब सुनारों (श्राफों) के पास फिरकर अंत में परम भक्त रविदास जी के पास आया। अपनी गलती स्वीकार की। सर्व घटना गंगा को कौड़ी देना, बदले में कंगन लेना।
उस कंगन को भक्त रविदास जी को न देकर मुसीबत मोल लेना। पंडित जी ने
गिड़गिड़ाकर रविदास जी से अपने परिवार के जीवन की भिक्षा माँगी। रविदास जी ने कहा कि पंडित जी! आप क्षमा के योग्य नहीं हैं, परंतु परिवार पर आपत्ति आई है। इसलिए
आपकी सहायता करता हूँ। आप इस पानी कठोती (मिट्टी का बड़ा टब जिसमें चमड़ा भिगोया जाता था) में हाथ डाल और गंगा से यह कह कि भक्त रविदास जी की प्रार्थना है
कि आप कठोती में आएँ और एक कंगन वैसा ही दें। ऐसा कहकर पंडित जी ने जो रविदास के चमार होने के कारण पाँच फुट दूर से बातें करता था, अब उस चाम भिगोने वाले कुंड (टब) में हाथ देकर देखा तो हाथ में चार कंगन वैसे ही आए। भक्त रविदास जी ने कहा कि पंडित जी! एक ले जाना, शेष गंगा जी को लौटा दे, नहीं तो भयंकर आपत्ति ओर आ जाएगी। ब्राह्मण ने तुरंत तीन कंगन वापिस कुण्ड में डाल दिए और एक कंगन लेकर राजा को दिया। रानी ने पूछा कि यह कंगन कहाँ से लाए हो, मुझे बता। ब्राह्मण ने संत रविदास जी का पता बताया।
रानी ने सोचा कि कोई स्वर्णकार (Goldsmith) होगा और ढ़ेर सारे कंगन लाऊँगी।
रानी को एक असाध्य रोग था। पित्तर का साया भी था। बहुत परेशान रहती थी। सब जगह उपचार करा लिया था। साधु-संतों का आशीर्वाद भी ले चुकी थी। परंतु कोई राहत नहीं मिल रही थी। रानी उस पते पर गई। साथ में नौकरानी तथा अंगरक्षक भी थे। रानी ने संत रविदास जी के दर्शन किए। दर्शन करने से ही रानी के शरीर का कष्ट समाप्त हो गया।
रानी को ऐसा अहसास हुआ जैसे सिर से भारी भार उतर गया हो। रानी ने संत जी के तुरंत चरण छूए। रविदास जी ने कहा कि मुझ निर्धन के पास मालकिन का कैसे आना हुआ? रानी ने कहा कि मैं तो सुनार की दुकान समझकर आई थी गुरूजी। मेरा तो जीवन धन्य हो गया।
मेरा जीवन नरक बना था रोग के कारण। आपके दर्शन से वह स्वस्थ हो गया। मैंने इसके उपचार के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी। परंतु कोई लाभ नही हो रहा था। संत रविदास जी ने कहा कि बहन जी! आपके पास भौतिक धन तो पर्याप्त है। यह आपके पूर्व जन्म के पुण्यों का फल है। भविष्य में भी सुख प्राप्ति के लिए आपको वर्तमान में पुण्य करने पड़ेंगे।
आध्यात्म धन संग्रह करो। रानी ने कहा कि संत जी! मैं बहुत दान-धर्म करती हूँ। महीने में पूर्णमासी को भण्डारा करती हूँ। आसप���स के ब्राह्मणों तथा संतों को भोजन कराती हूँ।
संत रविदास जी ने कहा :-
बिन गुरू भजन दान बिरथ हैं, ज्यूं लूटा चोर।
न मुक्ति न लाभ संसारी, कह समझाऊँ तोर।।
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान।
गुरू बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो बेद पुरान।।
रानी ने कहा कि हे संत जी! मैंने एक ब्राह्मण गुरू बनाया है। रविदास जी ने कहा कि नकली गुरू से भी कुछ लाभ नहीं होने का। आप जी ने गुरू भी बना रखा था और कष्ट यथावत थे। क्या लाभ ऐसे गुरू से? रानी ने कहा कि आप सत्य कहते हैं। आप मुझे शिष्या
बना लो। रविदास जी ने रानी को प्रथम मंत्रा दिया। रानी ने कहा कि गुरूजी! अबकी पूर्णमासी को आपके नाम से भोजन-भण्डारा (लंगर) करूंगी। आप जी मेरे घर पर आना।
निश्चित तिथि को रविदास जी राजा के घर पहुँचे। पूर्व में आमंत्रित सात सौ ब्राह्मण भी भोजन-भण्डारे में पहुँचे। भण्डारा शुरू हुआ। रानी ने अपने गुरू रविदास जी को अच्छे आसन पर बैठा रखा था। उसके साथ सात सौ ब्राह्मणों को भोजन के लिए पंक्ति में बैठने के लिए निवेदन किया। ब्राह्मण कई पंक्तियों में बैठे थे। भोजन सामने रख दिया गया था। उसी समय ब्राह्मणों ने देखा कि रविदास जी अछूत जाति वाले साथ में बैठे हैं। सब अपने-अपने स्थान पर खड़े हो गए और कहने लगे कि हम भोजन नहीं करेंगे। यह अछूत रविदास जो बैठा है, इसे दूर करो। रानी ने कहा कि यह मेरे गुरू जी हैं, ये दूर नहीं होंगे। संत रविदास जी ने रानी से कहा कि बेटी! आप मेरी बात मानो। मैं दूर बैठता हूँ। रविदास जी उठकर ब्राह्मणों ने जहाँ जूती निकाल रखी थी, उनके पीछे बैठ गए। पंडितजन भोजन करने बैठ गए। उसी समय रविदास जी के सात सौ रूप बने और प्रत्येक ब्राह्मण के साथ थाली में खाना खाते दिखाई दिए। एक ब्राह्मण दूसरे को कहता है कि आपके साथ एक शुद्र रविदास भोजन कर रहा है, छोड़ दे इस भोजन को। सामने वाला कहता है कि आपके साथ भी भोजन खा रहा है। इस प्रकार प्रत्येक के साथ रविदास जी भोजन खाते दिखाई दिए। रविदास जी दूर बैठे कहने लगे कि हे ब्राह्मणगण! मुझे क्यों बदनाम करते हो, देखो! मैं तो यहाँ बैठा हूँ।
इस लीला को राजा, रानी, मंत्री सब उपस्थित गणमान्य व्यक्ति भी देख रहे थे। तब रविदास जी ने कहा कि ब्राह्मण कर्म से होता है, जाति से नहीं। अपने शरीर के अंदर (खाल के भीतर) स्वर्ण (gold) का जनेऊ दिखाया। कहा कि मैं वास्तव में ब्राह्मण हूँ। मैं जन्म से ब्राह्मण हूँ।
कुछ देर सत्संग सुनाया। उस समय सात सौ ब्राह्मणों ने अपने नकली जनेऊ (कच्चे धागे की डोर जो गले में तथा कॉख के नीचे से दूसरे कंधे पर बाँधी होती है) तोड़कर संत रविदास जी के शिष्य हुए। सत्य साधना करके अपना कल्याण कराया। सात सौ ब्राह्मणों के जनेऊओं के सूत का सवा मन (50 कि.ग्राम) भार तोला गया था।
क्रमशः_________________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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उधड़ी हुई जेबों से हमेशा गिरकर कुछ खोता नहीं है
कभी-कभी अटका रह जाता है दुबका हुआ कोई सिक्का या नोट
वो नहीं जाना चाहता बाहर उस जेब से
क्यूंकि जब वो मिला था जेब में रखे कई सिक्कों से
तब सीखा था पहली बार उसने खनखनाना।
उधड़ी हुई जेब से जब सरक गए बाकी के सिक्के
तो वो बचा हुआ सिक्का जेब का एक कोना पकड़ बैठा रहा
वापस खनखनाने के लिए।
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लॉज में युवक ने लगाई फांसी, जेब में मिला सुसाइड नोट
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दिल्ली में बावर्ची, बिरयानी, मालू और माया का 'मायावी' गैंग... 18 साल की उम्र में 4 कत्ल, अमेरिका तक सनसनी!
दिल्ली में कई गैंगस्टर्स हैं, लेकिन इन दिनों एक गैंगस्टर ने दिल्ली से लेकर अमेरिका तक हड़कंप मचा रखा। उम्र अभी 18 साल भी नहीं हुई, लेकिन दिल्ली में दहशत का दूसरा नाम बन गया है। हाथ में बंदूक, चेहरे पर गुस्सा और पहचान ऐसी जिसे सुनकर कोई भी दंग रह जाए। 4 हत्याओं को 18 साल होने से पहले ही अंजाम दे चुका है। ख्वाब है देश ही नहीं दुनिया का सबसे बड़ा गैंगस्टर बनना। कौन है दिल्ली का ये ये मायावी राक्षस जो पैदा होते ही कातिल बन गया।
दिल्ली का 'मायावी' गैंग की दहशत
मंगलवार को नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में एक कत्ल हुआ। जिसकी गूंज अमेरिका तक रही। ये कत्ल था फेमस चेन अमेजन के मैनेजर का। अमेजन एक अमेरिकी कंपनी है। हरप्रीत अमेजन की दिल्ली की ब्रांच मैनेजर के रूप में काम करते थे, लेकिन मंगलवार के दिन उनकी हत्या कर दी गई। वो अपने एक फ्रेंड के साथ थे और एक पार्टी से वापस लौट रहे थे। उस रात दिल्ली का ये मायावी राक्षस, हरप्रीत और उनके दोस्त के सामने आ गया। इसने हरप्रीत की हत्या कर दी जबकि उनके दोस्त को घायल कर दिया।
गैंग में मालू, बावर्ची, बिरयानी और माया शामिल
इस मायावी राक्षस का नाम है समीर, लेकिन ये खुद को माया कहता है। उम्र बस इसी साल 18 हुई है। यानी अब तक नाबालिग था, लेकिन काम ऐसे खौफनाक जिन्हें सुनकर होश उड़ जाएं। हरप्रीत का कत्ल माया ने बेशक 18 साल में किया, लेकिन इससे पहले भी ये तीन कत्ल कर चुका है। इतनी छोटी उम्र में इसने एक गैंग भी तैयार कर लिया है। इस गैंग को माया गैंग के नाम से जाना जाता है। इस गैंग में समीर के अलावा इसके दोस्त, 23 साल का सोहेल उर्फ बावर्ची, 23 साल का ही जुनैद उर्फ बिरयानी और 19 साल का अदनान उर्फ डॉन शामिल हैं। इनके अलावा करीब 20 और लड़कों को भी इसने अपने गैंग में मिला लिया है।
इंस्टाग्राम में डाली है हथियारों के साथ फोटो
इसका मकसद है सबसे बड़ा गैंगस्टर बनना और ये उसी अंद���ज में काम करता है। इसकी इंस्टाग्राम प्रोफाइल को अगर आप देखेंगे तो चौंक जाएंगे। उसमें इसने लिखा है, नाम- बदनाम, पता- कब्रिस्तान, उम्र- जीने की, शौक-मरने का। इंस्टाग्राम प्रोफाइल में माया ने अपनी कई ऐसी तस्वीरें डाली है जिसमें इसके हाथ में पिस्टल है। हथियारों के साथ इसने कई फोटो खिंचवाई हैं। कहीं छत में खड़े होकर फायरिंग करता दिख रहा है तो कहीं दोनों हाथों में पिस्टल ली हुई है। कुछ तस्वीरें जेल के अंदर की भी है जिसमें अपने गैंग के दूसरे लोगों के साथ है।
एक फिल्म देखकर बना है गैंगस्टर
समीर उर्फ माया को गैंगस्टर बनने का शौक फिल्म शूट आउट एक लोखंडवाला देखने के बाद लगा था। इस फिल्म को देखने के बाद ये खुद फिल्म की हीरो की तरह दिखाने लगा और इसने एक गैंग भी बना लिया। ये फिल्म वैसे तो साल 2007 में रिलीज हुई थी, लेकिन इसने कुछ साल पहले इस फिल्म को केबल पर देखा था। बस उसके बाद से ही ये खुद को गैंगस्टर की तरह दिखाने लगा और जुर्म की दुनिया में कूद गया।
क्या किसी बड़े गैंगस्टर से है माया का ताल्लुक?
ये खुद को माया भाई कहता है और अपने गैंग को माया गैंग। इसी साल इसने 18 साल पूरे किए हैं, यानी बालिग हुआ है लेकिन पुलिस ने बताया कि नाबालिग रहते हुए ही इसके ऊपर तीन हत्या के मामले दर्ज हैं। यही नहीं इसके कुछ दोस्तों पर भी नाबालिग रहते हुए हत्या करने के आरोप हैं। अब पुलिस जांच कर रही है कि 18 साल का ये लड़का क्या किसी और गैंगस्टर से जुड़ा हुआ है।
रोड रेज में की अमेजन के मैनेजर की हत्या
��मेजन के मैनेजर की हत्या भी इसने रोड रेज मामले में की। 29 अगस्त की रात को ये अपने दोस्तों के साथ आ रहा था। सामने से हरप्रीत और उनका एक दोस्त बाईक पर आ रहे थे। भजनपुरा में संकरी गली होने की वजह से हरप्रीत और उनके दोस्त इन गैंगस्टर्स के सामने आ गए। रास्ता देने को लेकर दोनो गुटों में झड़प हुई और फिर माया ने अपनी जेब से पिस्टल निकाली और दोनों पर फायरिंग कर दी। हरप्रीत की मौके पर ही मौत हो गई जबकि उनके दोस्त अभी अस्पताल में सीरियस हैं। http://dlvr.it/SvV9lq
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नीली बत्ती की चाहत में अनंत प्रसाद बना अंटू
एक समय की बात है , जब बाबू जी ने ऊपर वाली जेब में 100 रुपये का नोट , बनियान के भीतर हस्तशिल्प द्वारा निर्मित जेब में थोड़ी बड़ी राशि , कपिला पशु आहार की बोरी में चावल और बोरी के भीतर झोले में सरजू बावन चावल देके अनंत प्रसाद ओझा को गोरखधाम एक्सप्रेस से दिल्ली के लिए रवाना किया था। और देखते-देखते कब दस बरस गुज़र गए , खुद अंटू(दिल्ली आकर मिला नया नाम)को ही नहीं पता चला।
अंटू बड़े गर्व से मुखर्जी नगर…
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करीब 08 किलो 900 ग्राम गांजा, अवैध देशी पिस्टल मय तीन जिंदा कारतूस, 03 लाख 80 हजार रूपये कैश तथा 03 भारतीय स्टार कछुए के साथ अभियुक्त गिरफ्तार
थाना प्रतापनगरः- थानाधिकारी थाना प्रतापनगर दर्षन सिंह पु.नि. मय टीम के सर्कल गष्त कर रहे थे। जिन्हे सर्कल गष्त के दौरान जरिये मुखबीर सूचना मिली कि मकान 882, युनिवर्सिटी रोड, गणेश नगर, पायडा थाना प्रतापनगर पर एक व्यक्ति गांजा बेचने का अवैध कारोबार करता है तथा अभी उसके पास तथा उसके रिहायषी कमरे में भारी मात्रा मे अवैध गांजा है। मुखबीर सूचना पर नियमानुसार कार्यवाही करते हुए थानाधिकारी मय टीम के युनिवर्सिटी रोड बडी पीपली रौनक जनरल स्टोर के बाहर पहुॅचे। जहां मुखबीर सूचना के बताये हुलिये का जवान उम्र का लडका कुर्��ी पर बैठा हुआ नजर आया। पुलिस को देखकर एकदम से उठकर अंदर जाने लगा। जिसे रोक कर उसका नाम पता पूछा तो अपना नाम प्रवीण उर्फ रौनक पुत्र महावीर निवासी 882, युनिवर्सिटी रोड, गणेश नगर, पायडा थाना प्रतापनगर जिला उदयपुर का रहने वाला बताया।
प्रवीण जैन उर्फ रौनक की तलाषी के दौरान उसके द्वारा पहनी हुई पेंट की जेब से एक पारदर्षी पॉलिथीन की थैली जिसके अन्दर मादक पदार्थ गांजा भरा होना पाया गया। उसके पहने हुए पेंट में कमर के पीछे एक देषी पिस्टल शर्ट से ढकी हुई मिली। जिसकी मैगजीन में तीन जिंदा कारतुस भरे हुए पाये गये। मुखबीर सूचना अनुसार मकान के सबसे उपरी मंजील पर पहुॅच कर कमरे की तलाषी ली गई तो कमरे के अन्दर एक प्लास्टिक का सफेद रंग का कट्टा जिसमे काले रंग की प्लास्टिक की थैली जिसमे गांजा भरा हुआ मिला।
जिसका वजन किया तो प्लास्टिक के कट्टे एंव थैली सहित कुल वजन 08 किलो 900 ग्रामहोना पाया गया। कमरे की तलाषी के दौरान एक प्लास्टिक की थैली में 2000,500, 200 व 100 रूपये के नोट कुल 3.80 लाख रूपये मिले। उक्त रूपयों के बारे मे पूछने पर अपने व्यवसाय के रूपये होना बताया। व्यवसाय के बारे मे पूछने पर कुछ नही बता चुप हो गया।
जिस पर उक्त रूपये अवैध गांजा खरीद फरोख्त की राषी होने की पूर्ण संभावना होने से रूपयों को धारा 102 जा.फौ. में जब्त किये गये। कमरे की तलाषी में एक कागज के गत्ते का काटुर्न मिला जिसमे तीन ( 1 बडा एंव 2 छोटे ) भारतीय स्टार कछुए रखे हुए मिले। जिनके बारे मे पूछने पर प्रवीण जैन उर्फ रौनक ने स्वंय द्वारा पाले हुए होना बताया। गांजा, पिस्टल तथा भारतीय स्टार कछुए के संबंध में प्रवीण जैन उर्फ रौनक के पास कोई वैध दस्तावेज नही होने से व अवैध रूप से कब्जे में रखना पाया जाने से गांजा, पिस्टल, कछुए तथा रूपयों को कब्जे पुलिस लिया जाकर। प्रवीण जैन उर्फ रौनक को नियमानुसार गिरफ्तार किया गया।अभियुक्त से थानाधिकारी थाना भूपालपुरा हनुवंत सिंह सोढा के द्वारा पूछताछ कर प्रकरण में अनुसंधान जारी है।
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🌱 *जीने की राह*
*भक्ति न करने से हानि का विवरण |*
यह दम टूटै पिण्डा फूटै, हो लेखा दरगाह मांही।
उस दरगाह में मार पड़ैगी, जम पकड़ेंगे बांही।।
नर-नारायण देहि पाय कर, फेर चैरासी जांही।
उस दिन की मोहे डरनी लागे, लज्जा रह के नांही।।
जा सतगुरू की मैं बलिहारी, जो जामण मरण मिटाहीं।
कुल परिवार तेरा कुटम्ब कबीला, मसलित एक ठहराहीं।
बाँध पींजरी आगै धर लिया, मरघट कूँ ले जाहीं।।
अग्नि लगा दिया जब लम्बा, फूंक दिया उस ठाहीं।
पुराण उठा फिर पण्डित आए, पीछे गरूड पढाहीं।।
भावार्थ:- यह दम अर्थात् श्वांस जिस दिन समाप्त हो जाऐंगे। उसी दिन यह शरीर रूपी पिण्ड छूट जाएगा। फिर परमात्मा के दरबार में पाप-पुण्यों का हिसाब होगा। भक्ति न करने वाले या शास्त्रविरूद्ध भक्ति करने वाले को यम के दूत भुजा पकड़कर ले जाऐंगे, चाहे कोई किसी देश का राजा भी क्यों न हो, उसकी पिटाई की जाएगी। सन्त गरीबदास को परमेश्वर कबीर जी मिले थे। उनकी आत्मा को ऊपर लेकर गए थे। सर्व ब्रह्माण्डों को दिखाकर सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान समझाकर वापिस शरीर में छोड़ा था। सन्त गरीब दास जी आँखों देखा हाल बयान कर रहे हैं कि:- हे मानव! आपको नर शरीर मिला है जो नारायण अर्थात् परमात्मा के शरीर जैसा अर्थात् उसी का स्वरूप है। अन्य प्राणियों को यह सुन्दर शरीर नहीं मिला। इसके मिलने के पश्चात् प्राणी को आजीवन भगवान की भक्ति करनी चाहिए। ऐसा परमात्मा स्वरूप शरीर प्राप्त करके सत्य भक्ति न करने के कारण फिर चैरासी लाख वाले चक्र में जा रहा है, धिक्कार है तेरे मानव जीवन को! मुझे तो उस दिन की चिन्ता बनी है, डर लगता है कि कहीं भक्ति कम बने और उस परमात्मा के दरबार में पता नहीं इज्जत रहेगी या नहीं। मैं तो भक्ति करते-करते भी डरता हूँ कि कहीं भक्ति कम न रह जाए। आप तो भक्ति ही नहीं करते। यदि करते हो तो शास्त्रविरूद्ध कर रहे हो। तुम्हारा तो बुरा हाल होगा और मैं तो राय देता हूँ कि ऐसा सतगुरू चुनो जो जन्म-मरण के दीर्घ रोग को मिटा दे, समाप्त कर दे। जो सत्य भक्ति नहीं करते, उनका क्या हाल होता है मृत्यु के पश्चात्। आस-पास के कुल के लोग इकट्ठे हो जाते हैं। फिर सबकी एक ही मसलत अर्थात् राय बनती है कि इसको उठाओ। (उठाकर शमशान घाट पर ले जाकर फूँक देते हैं, लाठी या जैली की खोद (ठोकर) मार-मारकर छाती तोड़ते हैं। सम्पूर्ण शरीर को जला देते हैं। जो कुछ भी जेब में होता है, उसको निकाल लेते हैं। फिर शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण कराने और करने वाले उस संसार से चले गए जीव के कल्याण के लिए गुरू गरूड पुराण का पाठ करते हैं।)
तत्वज्ञान (सूक्ष्मवेद) में कहा है कि अपना मानव जीवन पूरा करके वह जीव चला गया। परमात्मा के दरबार में उसका हिसाब होगा। वह कर्मानुसार कहीं गधा-कुत्ता बनने की पंक्ति में खड़ा होगा। मृत्यु के पश्चात् गरूड पुराण का पाठ उसके क्या काम आएगा। यह व्यर्थ का शास्त्राविरूद्ध क्रियाक्रम है। उस प्राणी का मनुष्य शरीर रहते उसको भगवान के संविधान का ज्ञान करना चाहिए था। जिससे उसको अच्छे-बुरे का ज्ञान होता और वह अपना मानव जीवन सफल करता।
प्रेत शिला पर जाय विराजे, फिर पितरों पिण्ड भराहीं।
बहुर श्राद्ध खान कूं आया, काग भये कलि माहीं।।
भावार्थ है कि मृत्यु उपरान्त उस जीव के कल्याण अर्थात् गति कराने के लिए की जाने वाली शास्त्रविरूद्ध क्रियाऐं व्यर्थ हैं। जैसे गरूड पुराण का पाठ करवाया। उस मरने वाले की गति अर्थात् मोक्ष के लिए। फिर अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित की उसकी गति (मोक्ष) करवाने के लिए। फिर तेहरवीं या सतरहवीं को हवन व भण्डारा (लंगर) किया उसकी गति कराने के लिए। पहले प्रत्येक महीने एक वर्ष तक महीना क्रिया करते थे, उसकी गति कराने के लिए, फिर छठे महीने छःमाही क्रिया करते थे, उसकी गति कराने के लिए, फिर वर्षी क्रिया करते थे उसकी गति कराने के लिए, फिर उसकी पिण्डोदक क्रिया कराते हैं, उसकी गति कराने के लिए श्राद्ध निकालते हैं अर्थात् श्राद्ध क्रिया कराते हैं, श्राद्ध वाले दिन पुरोहित भोजन स्वयं बनाता है और कहता है कि कुछ भोजन मकान की छत पर रखो, कहीं आपका पिता कौआ (काग) न बन गया हो। जब कौवा भोजन खा जाता तो कहते हैं कि तेरे पिता या माता आदि जो मृत्यु को प्राप्त हो चुका है जिसके हेतु यह सर्व क्रिया की गई है और यह श्राद्ध किया गया है। वह कौवा बना है, इसका श्राद्ध सफल हो गया। इस उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हुआ कि वह व्यक्ति जिसका उपरोक्त क्रियाकर्म किया था, वह कौवा बन चुका है।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।
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Meerut: बेटे ने लिया कर्ज, सूदखोरों से परेशान पिता ने की आत्महत्या, फैक्टरी में में पंखे से लटका मिला शव - Meerut: Son Took Loan, Troubled By Usurers, Father Committed Suicide, Dead Body Found In Factoryt
मौके पर जांच करती पुलिस
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
मेरठ के परतापुर थानाक्षेत्र स्थित उद्दोगपुरम स्थित एक फैक्टरी के रूम में एक ऑपरेटर ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली। शव देखकर फैक्टरी पहुंचे कर्मचारियों में हड़कंप मच गया। सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंची और घटना की जांच पड़ताल की। पुलिस को ऑपरेटर की जेब से एक सुसाइड नोट मिला, जिसमें आत्महत्या करने की वजह लिखी मिली। पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के…
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