DAY 5608
Jalsa, Mumbai June 25, 2023 Sun 11: 21 PM
🪔 .. birthday happiness to .. Ef Anamika Gupta .. and .. Ef Özen Eren .. love from your Ef Family ..
And .. more love and happiness .. to Ef Rajesh Kejriwal from Kolkata .. for his 34th Wedding Anniversary on June 26 ..
..
Sunday GOJ bring the children of the God’s .. but poor ones .. they have no idea why they have been subjected to this ordeal .. and in rain .. !
.. why this posture , I have no idea .. the fact that he has climbed the lampost .. the ‘express ‘ bill board .. which does not seem to be relevant .. so what ... if any of the Ef have any inputs please give .. 😳
kids stories by a kid .. he wrote this book .. a 7-8 yr old writer .. and I shall acknowledge the effort ..
errrmm .. anyone explain what this is trying to say !!??
.. and off on a drive - a self drive around the corner .. errr .. sorry that expression would be wrong .. no I am not going to the ‘errr euphemism ?” .. going round the bend .. damn that is wrong too .. no I am not pleading insanity .. driving around to make sure the vehicle doesn’t send a message to the phone that your battery has discharged .. erumm , that is wrong too .. and I shall not dwell on its why’s and wherefores .. so just a Sunday drive ..
बाजरे दी रोटी ख़ाददी , फूपड़ियों दा साग रे ; something something something something ; तो बोलण् लाग्यो कॉग रे ! 🎶🎶
पूरे शब्द भूल गये हैं हम , तो something डाल दिया है rhythm के लिए
बचपन में सुना था । बाबूजी के पास एक कवि आते थे , जो की शायद हरियाणा से थे । उनके मुख से ये सुना करते थे , ये गीत , जो की वहाँ का लोक संगीत है ..
anyone from Haryana , that could put light on this .. ???
... and a big difference today .. SHOES .. shoes because , shooting bare feet, whole of yesterday , gave rise to a rise in what is generally referred to bumps in the foot .. named blisters .. a similar incident earlier had incapacitated the body for long so taking precaution .. so the temple is still the same, and next time round it shall be revered .. 🙏
.. a provision for drinking water .. with a bit of lime to quench the thirst of them that come to the gates of the J .. the GOJ .. 2 on each side .. and paper glasses to maintain hygiene .. !!
Gawd .. ! everything shut just now .. no, the cursor stopped moving .. I mean it was moving but not registering what I wanted to write or open ..
FRUSTRATED ..
Then noticed the time ..
It was 12 mid night .. !
and this is my personal observation ..
Jio mia , has a problem each night at this time for about 15 - 20 minutes .. when internet shuts .. why I have no idea .. it’s not like the machines have to go to the ‘err euphemism’ ? ... but what is this .. ?
and sorry for the usage of the word ‘euphemism’ .. had picked it up from a play I did in Kolkata on stage for the Amateurs, our theatre group, later made into a film starring Burton and Liz Taylor .. errrrm .. shall get the name presently ..
Haaa .. yes .. Who’s Afraid of Virginia Woolf .. and I played Nick , played by George Segal in the film .. he uses this word when he ask the hosts - Burton and Liz during a conversation in their drawing room, “which way to the , err euphemism ‘ ? a polite genteel term asking which way to the washroom ..
the things that remain with you .. quite quite intriguing .. knew the term , had forgotten the name of the play .. !!! 😳
So yes where were we .. aah yes the Sunday without shoes .. or rather without them .. yes yes yes .. they shall be without the next time ..
So .. oh there we are again .. on ‘so’ .. no really .. so I need to go and study my dialogues and lines for the morrow .. for the shoot ..
and there is the traditional ..
नमस्कार 🙏
Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन
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🙏जगतगुरु परमेश्वर तत्वदर्शी संत_ बंदीछोड़ सतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी के चरण कमलों में *तुच्छ दासी_सरिता फरीदाबाद* का अनंत कोटि-कोटि प्रणाम🙇♂️🙏🥀🌼🥀🌸🥀🌺🥀💖🥀💞🥀 सतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी की जय🙏🥀💞🥀🥀💖🥀🥀🌺🥀🌸🥀🌼🥀🍂🍁🍂🥀🍂🩵🍂🥀🥀🍂🤎🍂💚🍂🧡🍂🥀💐🩷💐🩵💐🩶💐💛💐🥀💐🧡💐💖💐💜💐🥀
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*केहरि नाम कबीर का विषम काल गजराज! दादू भजन प्रताप से, भागे सुनत आवाज़!!*
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*सतगुरु शरण में आने से आई टले बला!जै मस्तक में सूली हो, कांटे में टल जा!!*
*यो सौदा फिर नाहीं रे संतो, यो सदा फिर नाहीं!जै सतगुरु की संगत करते, सकल कर्म कट जाहिं रे संतो! यो सौदा फिर नाहीं! यो सौदा फिर नाहीं रे संतो,यो सौदा फिर नाहीं!!अमरपुरी पर आसन होते-2 जहां धूप न छाईं रे संतो! यो सौदा फिर नाहीं!!*
*🙏⏩हजार वर्ष तप करने का जो फल प्राप्त होता है! उससे अधिक फल तत्वदर्शी संत का एक पल का सत्संग मिल जाए, उससे होता है!*
*कबीर साहेब जी कहते हैं* -
*सत्संग की आधी घड़ी, तप के वर्ष हजार ! तो भी बराबर है नहीं, कहै कबीर विचार !!*
*राम बुलावा भेजिया,दिया कबीरा रोए! जो सुख है सत्संग में,बैकुंठ में ना होए!!*
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*साधु तारे पिंड को, सिद्ध तारे अंड! सतगुरु सो ही जानियों,तार देवे ब्रह्मांड!!*
वर्तमान में पृथ्वी पर एकमात्र तत्वदर्शी संत हैं रामपाल जी महाराज_श्रीमद्भगवतगीता में तत्वदर्शी सन्त!
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*सबका मालिक एक*
हमारे सतगुरु परमात्मा की बताते हैं कि ---
खोखापुर के काग मिले दिन दोय रे ।।
अरबो में कोई हंस हमारा होय रे।।
जगद्गुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी बताते हैं कि कहां-कहां से मेरे हीरे मोती लाल को मैं ढूंढ के लाता हूं।
पीछे लाग्या जाऊं था मैं लोक वेद के साथ।।
रास्ते में सदगुरु मिले दीपक दे दिया हाथ।।
राम नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊं गली गली।
ले लो रे कोई राम का प्यारा शोर मचाऊ गली गली।।
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पुस्तक और डिलीवरी चार्ज बिल्कुल निःशुल्क (फ्री) है।
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मेरी सारी सहेलियों के बॉयफ्रेंड थे, पर मैंने किसी को अपने नज़दीक नहीं आने दिया, जिसका अंजाम मैं भुगत रही थी।मैं स्कूल की बस से जाती जाती थी। कई बार स्कूल की छुट्टी देर से होती थी और मेरी स्कूल बस मिस हो जाती थी और मुझे लोकल बस से घर आना पड़ता था। वो बस खचाखच भरी होती थी और उसमें मेरे भाई के कॉलेज के भी लड़के होते थे। मेरा भाई भी कई बार उसी बस में होता था।
उस बस में कई बार भीड़ का फायदा उठा कर लड़के मेरी चूची दबा देते थे और मेरी स्कर्ट के ऊपर से मेरे चूतड़ सहला देते थे इससे मुझे बहुत मजा आता था, मैं इसका ज़रा भी विरोध नहीं करती थी बल्कि मैं जानबूझ कर कॉलेज के लड़कों के बीच में खड़ी.....
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🌷 *जीने की राह* 🌷
*(Part-10)*
*आज भाई को फुरसत*
*(Part -A)*
*Today Brother Has Time (Way of Living)*
📜एक भक्त सत्संग में जाने लगा। दीक्षा ले ली, ज्ञान सुना और भक्ति करने लगा। अपने मित्र से भी सत्संग में चलने तथा भक्ति करने के लिए प्रार्थना की। परंतु दोस्त नहीं माना। कह देता कि कार्य से फुर्सत (खाली समय) नहीं है। छोटे-छोटे बच्चे हैं। इनका पालन-पोषण भी करना है। काम छोड़कर सत्संग में जाने लगा तो सारा धँधा चैपट हो जाएगा।
वह सत्संग में जाने वाला भक्त जब भी सत्संग में चलने के लिए अपने मित्र से कहता तो वह यही कहता कि अभी काम से फुर्सत नहीं है। एक वर्ष पश्चात् उस मित्र की मृत्यु हो गई। उसकी अर्थी उठाकर कुल के लोग तथा नगरवासी चले, साथ-साथ सैंकड़ों नगर-मौहल्ले के व्यक्ति भी साथ-साथ चले। सब बोल रहे थे कि राम नाम सत् है, सत् बोले गत् है। भक्त कह रहा था कि राम नाम तो सत् है परंतु आज भाई को फुर्सत है। नगरवासी कह रहे थे कि सत् बोले गत् है, भक्त कह रहा था कि आज भाई को फुर्सत है। अन्य व्यक्ति उस भक्त से कहने लगे कि ऐसे मत बोल, इसके घर वाले बुरा मानेंगे। भक्त ने कहा कि मैं तो ऐसे ही बोलूँगा। मैंने इस मूर्ख से हाथ जोड़कर प्रार्थना की थी कि सत्संग में चल, कुछ भक्ति कर ले। यह कहता था कि अभी फुर्सत अर्थात् खाली समय नहीं है। आज इसको परमानैंट फुर्सत है। छोटे-छोटे बच्चे भी छोड़ चला जिनके पालन-पोषण का बहाना करके परमात्मा से दूर रहा। भक्ति करता तो खाली हाथ नहीं जाता। कुछ भक्ति धन लेकर जाता। बच्चों का पालन-पोषण तो परमात्मा करता है। भक्ति करने से साधक की आयु भी परमात्मा बढ़ा देता है। भक्तजन ऐसा विचार करके भक्ति करते हैं, कार्य त्यागकर सत्संग सुनने जाते हैं।
भक्त विचार करते हैं कि परमात्मा न करे, हमारी मृत्यु हो जाए। फिर हमारे कार्य कौन करेगा? हम यह मान लेते हैं कि हमारी मृत्यु हो गई। हम तीन दिन के लिए मर गया, यह विचार करके सत्संग में चलें, अपने को मृत मान लें और सत्संग में चले जायें। वैसे तो परमात्मा के भक्तों का कार्य बिगड़ता नहीं, फिर भी हम मान लेते हैं कि हमारी गैर-हाजिरी में कुछ कार्य खराब हो गया तो तीन दिन बाद जाकर ठीक कर लेंगे। यदि वास्तव में टिकट कट गई अर्थात् मृत्यु हो गई तो परमानैंट कार्य बिगड़ गया। फिर कभी ठीक करने नहीं आ सकते। इस स्थिति को जीवित मरना कहते हैं।
वाणी का शेष सरलार्थ:- द्वादश मध्य महल मठ बौरे, बहुर न देहि धरै रे। सरलार्थ:- श्रीमद् भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में कभी नहीं आते अर्थात् उनका पुनर्जन्म नहीं होता। वे फिर देह धारण नहीं करते। सूक्ष्मवेद की यह वाणी यही स्पष्ट कर रही है कि वह परम धाम द्वादश अर्थात् 12वें द्वार को पार करके उस परम धाम में जाया जाता है। आज तक सर्व ऋषि-महर्षि, संत, मंडलेश्वर केवल 10 द्वार बताया करते। परंतु परमेश्वर कबीर जी ने अपने स्थान को प्राप्त कराने का सत्यमार्ग, सत्य स्थान स्वयं ही बताया है। उन्होंने 12वां द्वार बताया है। इससे भी स्पष्ट हुआ कि आज तक (सन् 2012 तक) पूर्व के सर्व ऋषियों, संतों, पंथों की भक्ति काल ब्रह्म तक की थी। जिस कारण से जन्म-मृत्यु का चक्र चलता रहा।
वाणी सँख्या 5:- दोजख बहिश्त सभी तै देखे, राजपाट के रसिया।
तीन लोक से तृप्त नाहीं, यह मन भोगी खसिया।।
सरलार्थ:- तत्वज्ञान के अभाव में पूर्णमोक्ष का मार्ग न मिलने के कारण कभी दोजख अर्थात् नरक में गए, कभी बहिश्त अर्थात् स्वर्ग में गए,कभी राजा बनकर आनन्द लिया। यदि इस मानव को तीन लोक का राज्य भी दे दंे तो भी तृप्ति नहीं होती।
उदाहरण:- यदि कोई गाँव का सरपंच बन जाता है तो वह इच्छा करता है कि विधायक बने तो मौज होवे। विधायक इच्छा करता है कि मन्त्राी बनूं तो बात कुछ अलग हो जाएगी। मंत्राी बनकर इच्छा करता है कि मुख्यमंत्राी बनूं तो पूरी चैधर हो। आनन्द ही न्यारा होगा। सारे प्रान्त पर कमांड चलेगी। मुख्यमंत्राी बनने के पश्चात् प्रबल इच्छा होती है कि प्रधानमंत्राी बनूं तो जीवन सार्थक हो। तब तक जीवन लीला समाप्त हो जाएगी। फिर गधा बनकर कुम्हार के लठ (डण्डे) खा रहा होगा। इसलिए तत्वज्ञान में समझाया है कि काल ब्रह्म द्वारा बनाई स्वर्ग-नरक तथा राजपाट प्राप्ति की भूल-भुलईया में सारा जीवन व्यर्थ कर दिया। कहीं संतोष नहीं हुआ, यह मन ऐसा खुसरा (हिजड़ा) है।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रति��िन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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🎋 छठ पूजा > संध्या अर्घ्य - Chhath Puja 2023
दिल्ली में सूर्यास्त का समय: 5:26 PM
पटना में सूर्यास्त का समय: 5:00 PM
❀ छठ पर्व का तीसरा दिन जिसे संध्या अर्घ्य (अस्तचलगामी सूर्य को अर्घ्य) के नाम से जाना जाता है।
❀ पूरे दिन सभी परिजन मिलकर पूजा की तैयारिया करते हैं।
❀ छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद जैसे *ठेकुआ, कचवनिया* (चावल के लड्डू) बनाए जाते हैं।
❀ छठ पूजा के लिए एक बांस की बनी हुयी टोकरी जिसे *दउरा* कहते है में पूजा के प्रसाद, फल डालकर देवकारी में रख दिया जाता है।
छठ पूजा के बारे में विस्तार से जानने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें.. 👇🏻
📲 https://www.bhaktibharat.com/festival/chhath-puja
For Quick Access Download Bhakti Bharat APP:
📥 https://play.google.com/store/apps/details?id=com.bhakti.bharat.app
*छठ पूजा गीत* 👇🏻
🎋 हो दीनानाथ
📲 https://www.bhaktibharat.com/bhajan/ho-deenanath-chhath-puja-songs
🎋 पटना के घाट पर
📲 https://www.bhaktibharat.com/bhajan/patna-ke-ghat-par-chhath
🎋 छठि मैया बुलाए
📲 https://www.bhaktibharat.com/bhajan/chhathi-maiya-bulaye
🎋 मारबो रे सुगवा
📲 https://www.bhaktibharat.com/bhajan/marbo-re-sugwa-dhanukh-se-chhath-puja-song
🎋 कांच ही बांस के बहंगिया
📲 https://www.bhaktibharat.com/bhajan/chhath-kanch-hi-bans-ke-bahangiya
🎋 हाजीपुर केलवा महँग भेल हे धनिया
📲 https://www.bhaktibharat.com/bhajan/hajipur-kelwa-mahang-bhaile-dhaniya
🎋 छठी माई के घटिया पे
📲 https://www.bhaktibharat.com/bhajan/patna-ke-ghat-par-chhath
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YouTube Link : https://youtu.be/q2GhNv0QSzw
जैसे होली सभी रंगों के साथ मनाई जाती है, ठीक उसी प्रकार सपन्न देश भी सभी देशवासियों के साथ से बनेगा – हर्ष वर्धन अग्रवाल |
लखनऊ 12.03.2023 | राष्ट्रीय सौहार्द के पर्व होली के पावन अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा होली मिलन समारोह कार्यक्रम का आयोजन दिनांक 12.03.2023 को रामायण पार्क, सेक्टर 25, इंदिरा नगर, लखनऊ में किया गया | कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्रगान गाकर तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक व प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल व न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल ने दीप प्रज्वलन कर किया | उपस्थित सभी लोगों ने एक दूसरे को होली की बधाई दी तथा संगीत और ��ृत्य के साथ होली के पारंपरिक लजीज व्यंजनों का आनंद लिया |
होली मिलन समारोह में आए सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए डॉ रूपल अग्रवाल ने कहा कि "आप सभी को रंगों के पर्व होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं | होली रंगों का त्योहार है जिसे पूरे देश में तथा विदेशों में भी बड़े उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है | होली एक ऐसा त्योहार है जो लोगों को उनकी उम्र, लिंग, जाति या धर्म की परवाह किए बिना एक साथ लाता है I होली त्योहार है गिले शिकवे दूर करके, टूटे रिश्तो को जोड़ने का और लोगों को करीब लाने का |
हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि, "होली मिलन समारोह के माध्यम से हम सब मिलकर, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के मूल मंत्र सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास, सबका विश्वास को आत्मसात करते हुए, भारत देश को विश्व का सबसे संपन्न देश बनाने का संकल्प लें जिसके लिए सभी देशवासियों के बीच आपसी प्रेम और सौहार्द को बनाए रखना सबसे महत्वपूर्ण है I जैसे होली सभी रंगों के साथ मनाई जाती है, ठीक उसी प्रकार सपन्न देश भी सभी देशवासियों के साथ से बनेगा I इसलिए देश हित तथा जनहित में अपना सहयोग देते हुए अपने देश को विश्व का सबसे संपन्न राष्ट्र बनाने की माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की मुहिम में अपना योगदान अवश्य दें I जय हिन्द |
सांस्कृतिक प्रस्तुति में सुश्री कीर्ति मिश्रा तथा रजनीश दुबे ने अपने सुमधुर गीतों के द्वारा लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया I एक से एक बढ़कर होली के गीत गाये गए जिनमें, होली आई रे कन्हाई, आज न छोड़ेंगे बस हमजोली, सात रंग में खेल रही है दिलवालों की डोली, होलिया में उड़े रे गुलाल, होली खेले रघुवीरा अवध में, होली के दिन दिल खिल जाते हैं, रंगीलो मारो ढोलना, जय जय शिव शंकर कांटा लगे ना कंकर, रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे होली है मुख्य हैं I गुंजन मैसी ने ऑर्गन, पवन राजा ने ढोलक पैड तथा सोनू ने ढोल पर साथ दिया |
कार्यक्रम के अंत में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने सभी का धन्यवाद व आभार व्यक्त किया | इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य, स्वयंसेवकों, लाभार्थियों, सेक्टर 25 के निवासियों तथा शहर के प्रमुख लोगों की गरिमामयी उपस्थिति रही |
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#अल्लाह_कबीर
हजरत मुहम्मद जी को भी जिंदा वेश धारण करके अल्लाह कबीर मिले थे।
कबीर परमेश्वर ने कहा है -
हम मुहम्मद को सतलोक ले गया। इच्छा रूप वहाँ नहीं रहयो।
उल्ट मुहम्मद महल पठाया, गुज बीरज एक कलमा लाया।।
रोजा, बंग, नमाज दई रे। बिसमिल की नहीं बात कही रे।।
नबी मुहम्मद को मैं(कबीर परमेश्वर) सतलोक ले कर गया था परन्तु वहाँ न रहने की इच्छा व्यक्त की, वापिस मुहम्मद जी को शरीर में भेज दिया। नबी मुहम्मद जी ने रोजा, बंग तथा पाँच समय की नमाज करना तो कहा था परन्तु गाय आदि प्राणियों को बिस्मिल करने को नहीं कहा।
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#अल्लाह_कबीर
हजरत मुहम्मद जी को भी जिंदा वेश धारण करके अल्लाह कबीर मिले थे।
कबीर परमेश्वर ने कहा है -
हम मुहम्मद को सतलोक ले गया। इच्छा रूप वहाँ नहीं रहयो।
उल्ट मुहम्मद महल पठाया, गुज बीरज एक कलमा लाया।।
रोजा, बंग, नमाज दई रे। बिसमिल की नहीं बात कही रे।।
नबी मुहम्मद को मैं(कबीर परमेश्वर) सतलोक ले कर गया था परन्तु वहाँ न रहने की इच्छा व्यक्त की, वापिस मुहम्मद जी को शरीर में भेज दिया। नबी मुहम्मद जी ने रोजा, बंग तथा पाँच समय की नमाज करना तो कहा था परन्तु गाय आदि प्राणियों को बिस्मिल करने को नहीं कहा।
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#अल्लाह_कबीर
हजरत मुहम्मद जी को भी जिंदा वेश धारण करके अल्लाह कबीर मिले थे।
कबीर परमेश्वर ने कहा है -
हम मुहम्मद को सतलोक ले गया। इच्छा रूप वहाँ नहीं रहयो।
उल्ट मुहम्मद महल पठाया, गुज बीरज एक कलमा लाया।।
रोजा, बंग, नमाज दई रे। बिसमिल की नहीं बात कही रे।।
नबी मुहम्मद को मैं(कबीर परमेश्वर) सतलोक ले कर गया था परन्तु वहाँ न रहने की इच्छा व्यक्त की, वापिस मुहम्मद जी को शरीर में भेज दिया। नबी मुहम्मद जी ने रोजा, बंग तथा पाँच समय की नमाज करना तो कहा था परन्तु गाय आदि प्राणियों को बिस्मिल करने को नहीं कहा।
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. ❤ शब्द ❤
ये सोदा फिर नाही रे संतो, ये सोदा फिर नाही।
ये सोदा फिर नाही रे संतो, ये सोदा फिर नाही।
लोहे जैसा ताव जात है, काया देहि सराहि ।।
तीन लोक और भुवन चतुर्दस, सबजग सौदे आहीं
दुगने तिगने किये चौगुने, किन्हु मूल गवाइ ।।
यो दम टुटे पिण्डा फुटे, हो लेखा दरगाह माहीं।
उस दरगाह में मार पड़ेगी, जम पकड़ेंगे बाहिं।।
नर नारायण देहि पाइ कर, फेर चोरासी जाहिं।
उस दिन की मोहे डरनी लागे, लज्जा रहे के नाही
उस सत्गुरु की मै बलिहारी, जो जन्ममरण मिटाई
कुलवंश तेरा कुटुम्ब कबीला,मसलित एक ठहराई
बाँध पिंजरी आगे धर लिया, मरघट कूँ ले जाहिं।
अग्नि लगा दिया जब लम्बा फूंक दिया उस थाहिं।
पुराण उठा कर पंडित आये, पीछे गरुड़ पढाई ।
प्रेत शिला पर जाइ विराजे, फिर पित्तरों पींड भराई
बहुर श्राध खान को आये, काग भए कलि माहीं।
नर से फिर पशुआ कीजे, गधा बैल बनाई।
छपन भोग कहाँ मन भोरे,कहीं कुरड़ी चरने जाहिं
जै सतगुरु की संगत करते, सकल कर्म कट जाहिं
अमर पूरी पर आसान होते, जहां धूप न छाई।
गरीबदास गलतान महल में, मिले कबीर गोसाईं।।
. सत साहिब जी
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Satsang Ishwar TV | 19-07-2024 | Episode: 2464 | Sant Rampal Ji Maharaj ...
#GodMorningFriday
#FridayMotivation
#FridayThoughts
#अनसुना_पांचवां_वेद
*सूक्ष्मवेद*
#पूर्ण_गुरु_से_होगा_मोक्ष
#TrueGuru
#TatvadarshiSant
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#India #World #Haryana
SA News Channel
परम अक्षर पुरुष पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर जी ने अपनी पवित्र कबीर वाणी में कहा है_ "सतगुरु पूर्ण ब्रह्म हैं,सतगुरु आप अलेख! सतगुरु रमता राम हैं या में मीण ना मेंख"!!
वर्तमान में वास्तव में इस कलयुग आखिरी चरण में सतयुग की+स्वर्ण युग + मोक्ष युग की_ जिस महापुरुष ने नींव डाली है, वह और कोई नहीं एकमात्र कबीर अवतार संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं!
🙏जगतगुरु तत्वदर्शी संत_ बंदीछोड़ सतगुरु संत रामपाल जी महाराज🙏
📚हमारे सभी धर्म ग्रंथो के अनुसार और अनुकूल सत्य प्रमाणित सतभक्ति प्रदान करते हैं! मर्यादित सतभक्ति करने से और संत रामपाल जी महाराज के आशीर्वाद मात्र रूप से + शब्द शक्ति से आत्माओं का कल्याण हो रहा है!
संत रामपाल जी महाराज जी की शरण में आने वाले मर्यादित भक्तों को पूर्ण रूप से लाभ हो रहे हैं!
संत रामपाल जी महाराज जी ने मोक्ष मार्ग दिया है आपने अनुयायियों को! उच्च कोटि के उच्च श्रेणी के सर्वश्रेष्ठ
सच्चे समाज सुधारक है संत रामपाल जी महाराज भारत राज्य की शिरोमणि रतन है संत रामपाल जी महाराज धरती पर रामराज जी ला रहे हैं संत रामपाल जी महाराज भारत को विश्व गुरु बना रहे हैं संत रामपाल जी महाराज सभी बुराइयों का जड़ से अंत कर रहे हैं संत रामपाल जी महाराज संत रामपाल जी महाराज के अनुयाई आज जो भी पवित्र कार्य कर रहे हैं उन सभी पवित्र कार्यों का श्रेय जाता है संत रामपाल जी महाराज को परम पूजनीय है संत रामपाल जी महाराज सभी को समझना चाहिए संत रामपाल जी महाराज को उनके सत्संगों के माध्यम से उनके पवित्र कार्यों के माध्यम से उनके द्वारा दिए हुए सत्य तत्व ज्ञान के माध्यम से उनके अनुयायियों के माध्यम से विश्व की सभी आत्माओं को यह समझने का प्रयास करना चाहिए कि संत रामपाल जी महाराज इस सृष्टि के लिए कितने अनमोल हैं !
🙏सभी को पवित्र संदेश समझने के बाद शरण ग्रहण करनी चाहिए _
संत रामपाल जी महाराज की !
और नाम दीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाना चाहिए!
🙏मानव जीवन मोक्ष के लिए मिला है!
संत रामपाल जी महाराज ने हमारे वेदों शास्त्रों पुराणों और सूक्ष्म वेद से महापुरुषों के पवित्र ग्रंथों और वाणीओं से भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों से यह सत्य प्रमाणित सिद्ध कर दिया है कि
👇
🙏संत रामपाल जी महाराज जो कुछ भी बता रहे हैं वह परम सत्य है!
सत्य मार्ग का आचरण करके ही हम उस पूर्ण दयालु परमेश्वर की कृपाओं को और उसके सानिध्य को पा सकते हैं!
🙏सत साहेब जी🙏
काल के बंधन + कर्म बंधनों से छुड़ाने वाले बंदीछोड़ भगवान की जय बोलें!
*बंदीछोड़ की जय*🙏
🙏प्यारे सतगुरु संत रामपाल जी महाराज अपने पवित्र वचनों के माध्यम से हमें जागते हैं और कहते हैं *
*जग सारा रोगिया रे! जिन सतगुरु वेद ना जाना! जन्म-मरण का रोग लगा है, तृष्णा बढ़ रही खांसी! आवा-गवन की डोर गले में, पड़ी काल की फांसी!!;
*झूठे सुख को सुख कहे,मन मान रहा मनमोद! काल चबिना कुछ मुख में, कुछ गोद!!*
🙏परमात्मा की सभी प्यारी आत्माओं से प्रार्थना है, जागें!
संत रामपाल जी महाराज मामूली संत नहीं है!
संत शब्द ही अपने आप में बहुत ऊंचा है!
🙏संत रामपाल जी महाराज तो परमहंसों में परम संतों में परम पुरुषों में गिने जाते हैं !
संसार की सभी आत्माएं संत रामपाल जी महाराज को अति प्रिय हैं, लेकिन बुराई नहीं!
परंतु अपनी आत्माओं में काल की रचना निवास करे,यह बिल्कुल पसंद नहीं है!
🙏सतभक्ति देकर संत रामपाल जी हमें भक्ति धन से हष्ट पुष्ट कर लेंगे और हमें हमारे निज घर अमर लोक सतलोक ले जायेंगे! हम जन्म मरण के 84 लाख योनियों के भयंकर दु:ख भरे चक्रव्यूह से छूट जाएंगे!
🙏स्वर्ग लोक और ब्रह्मलोक सतलोक से बहुत नीचे के और बहुत छोटे तुच्छ स्थान हैं, जहां झूठे सुख के नाम पर धरती से भी ज्यादा दु:ख और बुराइयां निवास करती हैं! जहां जाकर पुण्य आत्माएं अपने पुण्य को खाली करके फिर धरती पर लौट आती हैं!
इस दुर्भाग्य से हम लोग बहुत अपरिचित हैं,
क्योंकि गरुड़ पुराण तो मरने के बाद पढ़ाते हैं जबकि गरुड़ पुराण तो जीते जी पढ़नी चाहिए! ताकि हमें बुराइयों से डर लगे!
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#LifeHistory_ProphetMuhammadगरीब दास जी ने कहा है कि कबीर परमेश्वर जी ने बताया है:-
हम मुहम्मद को सतलोक द्वीप ले गयो, इच्छा रूपी वहाँ नहीं रहयो।
उल्ट मुहम्मद महल पठाया, गुझ बिरज एक कलमा ल्याया।
रोजा, बंग, नमाज दयी रे, बिस्मल की नहीं बात कही रे।
हजरत मुहम्मद जी को भी परमात्मा मक्का में जिन्दा महात्मा के रूप में मिले थे।
जिस समय नबी मुहम्मद काबा मस्जिद में हज के लिए गए हुए थे तथा उनको अपने लोक में ले गए जो एक ब्रह्माण्ड में राजदूत भवन रूप में बना है, परमात्मा ने हजरत मुहम्मद जी को समझाया तथा अपना ज्ञान सुनाया परन्तु हजरत मुहम्मद जी ने परमात्मा के ज्ञान को नहीं स्वीकारा और न सत्यलोक में रहने की इच्छा व्यक्त की। इसलिए हजरत मुहम्मद को वापिस शरीर में भेज दिया। उस समय हजरत मुहम्मद जी के कई हजार मुसलमान अनुयायी बन चुके थे, उनकी महिमा संसार में पूरी गति से फैल रही थी और कुरआन के ज्ञान को सर्वोत्तम मान रहे थे।
- बाखबर संत
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#GodMorningSunday
असंख्य जन्म तोहे मरते होगे, जीवित क्यूं ना मरे रे।
द्वादश मध्य महल मठ बौरे, बहुर न देह धरै रे।।
- सम्पूर्ण सृष्टि रचना का वृत्तांत।
- इस वजह ने हमें सतलोक से निष्कासित करवा दिया।
- विज्ञान भगवान की देन है, जीव की नहीं।
- सभी समस्याओं का निवारण "ज्ञान गंगा पुस्तक"
देखिए तत्वज्ञान से ओतप्रोत हमारा विशेष कार्यक्रम :-
रविवार 25 सितंबर को सुबह 11 बजे से Live
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[19/09, 7:48 am] +91 83078 98929: जीवित बाप के लठ्ठम लठ्ठा, मूवे गंग पहुचैया।
जब आवे आसोज का महीना, कौवा बाप बनईयां।
कबीर परमेश्वर जी ने बताया है कि जीवित पिता को तो समय पर टूक (रोटी) भी नहीं दिया जाता। मृत्यु के पश्चात् उसको पवित्र दरिया में बहाकर आता है। कितना खर्च करता है। अपने माता-पिता की जीवित रहते प्यार से सेवा करो। उनकी आत्मा को प्रसन्न करो। उनकी वास्तविक श्रद्धा सेवा तो यह है।
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[19/09, 7:48 am] +91 83078 98929: गीता भी हमें श्राद्ध के विषय में निर्णायक ज्ञान देती है। गीता के अध्याय 9 के श्लोक 25 में कहा है कि देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने (पिण्ड दान करने) वाले भूतों को प्राप्त होते हैं अर्थात भूत बन जाते हैं, शास्त्रानुकूल (पवित्र वेदों व गीता अनुसार) पूजा करने वाले मुझको ही प्राप्त होते हैं अर्थात ब्रह्मलोक के स्वर्ग व महास्वर्ग आदि में कुछ ज्यादा समय मौज कर लेते हैं और पुण्यरूपी कमाई खत्म होने पर फिर से 84 लाख योनियों में प्रवेश कर जाते हैं।
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[19/09, 7:48 am] +91 83078 98929: कबीर, भक्ति बीज जो होये हंसा, तारूं तास के एकोत्तर वंशा।
श्राद्ध आदि निकालना शास्त्र विरुद्ध है, सत्य शास्त्रोक्त साधना करने वाले साधक की 101 पीढ़ी पार होती हैं। सत्य शास्त्रानुसार साधना केवल तत्वदर्शी संत दे सकता है जिसकी शरण में जाने के लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा गया है। वर्तमान में वह पूर्ण तत्वदर्शी संत केवल संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
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[19/09, 7:48 am] +91 83078 98929: श्राद्ध करने वाले पुरोहित कहते हैं कि श्राद्ध करने से वह जीव एक वर्ष तक तृप्त हो जाता है। फिर एक वर्ष में श्राद्ध फिर करना है। विचार करें:- जीवित व्यक्ति दिन में तीन बार भोजन करता था। अब एक दिन भोजन करने से एक वर्ष तक कैसे तृप्त हो सकता है? यदि प्रतिदिन छत पर भोजन रखा जाए तो वह कौवा प्रतिदिन ही भोजन खाएगा।
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[19/09, 7:48 am] +91 83078 98929: श्राद्ध और पितृ पूजा से जीव की गति नहीं होती"
प्रेत शिला पर जाय विराजे, फिर पितरों पिण्ड भराहीं।
बहुर श्राद्ध खान कूं आया, काग भये कलि माहीं।।
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[19/09, 7:48 am] +91 83078 98929: जीवित बाप के लठ्ठम लठ्ठा, मूवे गंग पहुचैया।
जब आवे आसोज का महीना, कौवा बाप बनईयां।
जीवित बाप के साथ तो लड़ाई रखते हैं और उनके मरने के उपरांत उनके श्राद्ध निकालते हैं।
परमात्मा कहते हैं रे भोली सी दुनिया सतगुरु बिन कैसे सरिया।
बंदीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी से नाम उपदेश लेकर सतभक्ति करने से मनुष्य 84 लाख योनियों का कष्ट नहीं भोगता।
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[19/09, 7:48 am] +91 83078 98929: नर सेती तू पशुवा कीजै, गधा, बैल बनाई।
छप्पन भोग कहाँ मन बौरे, कहीं कुरड़ी चरने जाई।।
मनुष्य जीवन में हम कितने अच्छे अर्थात् 56 प्रकार के भोजन खाते हैं। भक्ति न करने से या शास्त्रविरूद्ध साधना करने से गधा बनेगा, फिर ये छप्पन प्रकार के भोजन कहाँ प्राप्त होंगे, कहीं कुरड़ियों (रूड़ी) पर पेट भरने के लिए घास खाने जाएगा। इसी प्रकार बैल आदि-आदि पशुओं की योनियों में कष्ट पर कष्ट उठाएगा।
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[19/09, 7:48 am] +91 83078 98929: भक्ति नहीं करने वाले व शास्त्रविरुद्ध भक्ति करने वाले, नकली गुरु बनाने वाले एवं पाप अपराध करने वालों को मृत्यु पश्चात् यमदूत घसीटकर ले जाते हैं और नरक में भयंकर यातनाएं देते हैं। तत्पश्चात् 84 लाख कष्टदायक योनियों में जन्म मिलता है।
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[19/09, 7:48 am] +91 83078 98929: तत्वदर्शी संत (गीता अ-4 श्लोक-34) से दीक्षा लेकर शास्त्रविधि अनुसार सतभक्ति करने वाले परमधाम सतलोक को प्राप्त होते हैं जहाँ जन्म-मरण, दुख, कष्ट व रोग नहीं होता है।
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[19/09, 7:48 am] +91 83078 98929: जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से उपदेश लेकर कबीर साहेब जी की भक्ति करने से सतलोक की प्राप्ति होती है।
सतलोक अविनाशी लोक है। वहां जाने के बाद साधक जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है और पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है।
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[19/09, 7:48 am] +91 83078 98929: श्राद्ध क्रिया कर्म मनमाना आचरण है यह शास्त्रों में अविद्या कहा गया है बल्कि गीता अध्याय 16 श्लोज 23 और 24 में कहा है कि जो शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं उनकी ना तो गति होती है न ही उन्हें किसी प्रकार का आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है इसलिए शास्त्र ही प्रमाण है।
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[19/09, 7:48 am] +91 83078 98929: जै सतगुरू की संगत करते, सकल कर्म कटि जाईं।
अमर पुरि पर आसन होते, जहाँ धूप न छाँइ।।
संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त सूक्ष्मवेद में कहा है कि यदि सतगुरू (तत्वदर्शी सन्त) की शरण में जाकर दीक्षा लेते तो सर्व कर्मों के कष्ट कट जाते अर्थात् न प्रेत बनते, न गधा, न बैल बनते।
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[19/09, 7:48 am] +91 83078 98929: सत्य भक्ति वर्तमान में केवल संत रामपाल जी महाराज जी के पास है। जिससे इस दुःखों के घर संसार से पार होकर वह परम शान्ति तथा शाश्वत स्थान (सनातन परम धाम) प्राप्त हो जाता है जिसके विषय में गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वदर्शी सन्त से तत्वज्ञान प्राप्त करके, उस तत्वज्ञान से अज्ञान का नाश करके, उसके पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए। जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आता।
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart91 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart92
"अन्य वाणी सतग्रन्थ से"
तेतीस कोटि यज्ञ में आए सहंस अठासी सारे। द्वादश कोटि वेद के वक्ता, सुपच का शंख बज्या रे ।।
"अर्जुन सहित पाण्डवों को युद्ध में की गई हिंसा के पाप लगे"
परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि उपरोक्त विवरण से सिद्ध हुआ कि पाण्डवों को युद्ध की हत्याओं का पाप लगा। आगे सुन और सुनाता हूँ :-
दुर्वासा ऋषि के शाप वश यादव कुल आपस में लड़कर प्रभास क्षेत्र में यमुना नदी के किनारे नष्ट हो गया। श्री कृष्ण जी भगवान को एक शिकारी ने पैर में विषाक्त तीर मार कर घायल कर दिया था। उस समय श्री कृष्ण जी ने उस शिकारी को बताया कि आप त्रेता युग में सुग्रीव के बड़े भाई बाली थे तथा मैं रामचन्द्र था। आप को मैंने धोखा करके वृक्ष की ओट लेकर मारा था। आज आपने वह बदला (प्रतिशोध) चुकाया है। पाँचों पाण्डवों को पता चला कि यादव आपस में लड़ मरे हैं वे द्वारिका पहुँचे। वहाँ गए जहाँ पर श्री कृष्ण जी तीर से घायल तड़फ रहे थे। पाँचों पाण्डवों के धार्मिक गुरू श्री कृष्ण जी थे। श्री कृष्ण जी ने पाण्डवों से कहा! आप मेरे अतिप्रिय हो। मेरा अन्त समय आ चुका है। मैं कुछ ही समय का मेहमान हूँ। मैं आपको अन्तिम उपदेश देना चाहता हूँ कृप्या ध्यान पूर्वक सुनों। यह कह कर श्री कृष्ण जी ने कहा (1) आप द्वारिका की स्त्रियों को इन्द्रप्रस्थ ले जाना। यहाँ कोई नर यादव शेष नहीं बचा है (2) आप अति शीघ्र राज्य त्याग कर हिमालय चले जाओ वहाँ अपने शरीर के नष्ट होने तक तपस्या करते रहो। इस प्रकार हिमालय की बर्फ में गल कर नष्ट हो जाओ। युधिष्ठर ने पूछा हे भगवन्! हे गुरूदेव श्री कृष्ण ! क्या हम हिमालय में गल कर मरने का कारण जान सकते हैं? यदि आप उचित समझें तो बताने की कृपा करें। श्री कृष्ण ने कहा युधिष्ठर! आप ने युद्ध में जो प्राणियों की हिंसा करके पाप किया है। उस पाप का प्रायश्चित् करने के लिए ऐसा करना अनिवार्य है। इस प्रकार तपस्या करके प्राण त्यागने से आप के महाभारत युद्ध में किए पाप नष्ट हो जाएँगे।
कबीर जी बोले हे धर्मदास ! श्री कृष्ण जी के श्री मुख से उपरोक्त वचन सुन कर अर्जुन आश्चर्य में पड़ गया। सोचने लगा श्री कृष्ण जी आज फिर कह रहे हैं कि युद्ध में किए पाप नष्ट इस विधि से होगें। अर्जुन अपने आपको नहीं रोक सका। उसने श्री कृष्ण जी से कहा हे भगवन्! क्या मैं आप से अपनी शंका का समाधान करा सकता हूँ। वैसे तो गुरूदेव! यह मेरी गुस्ताखी है, क्षमा करना क्योंकि आप ऐसी स्थिति में हैं कि आप से ऐसी-वैसी बातें करना उचित नहीं जान पड़ता। यदि प्रभु ! मेरी शंका का समाधान नहीं हुआ तो यह शंका रूपी कांटा आयु पर्यन्त खटकता रहेगा। मैं चैन से जी नहीं सकूंगा। श्री कृष्ण ने कहा हे अर्जुन ! तू जो पूछना चाहता है निःसंकोच होकर पूछ। मैं अन्तिम स्वांस गिन रहा हूँ जो कहूंगा सत्य कहूंगा। अर्जुन बोला हे श्री कृष्ण! आपने श्री मद्भगवत् गीता का ज्ञान देते समय कहा था कि अर्जुन ! तू युद्ध कर तुझे युद्ध में मारे जाने वालों का पाप नहीं लगेगा तू केवल निमित्त मात्र बन जा ये सर्व योद्धा मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं (प्रमाण गीता अध्याय 11 श्लोक 32-33) आपने यह भी कहा कि अर्जुन युद्ध में मारा गया तो स्वर्ग को चला जाएगा, यदि युद्ध जीत गया तो पृथ्वी के राज्य का सुख भोगेगा। तेरे दोनों हाथों में लड्डू हैं। (प्रमाण श्री मदभगवत् गीता अध्याय 2 श्लोक 37) तू युद्ध के लिए खड़ा हो जो जय-पराजय की चिन्ता छोड़कर युद्ध कर इस प्रकार तू पाप को प्राप्त नहीं होगा (गीता अध्याय 2 श्लोक 38) जिस समय बड़े भईया को बुरे 2 स्वपन आने लगे हम आप के पास कष्ट निवारण के लिए विधि जानने गए तो आपने बताया कि जो युद्ध में बन्धुघात अर्थात् अपने नातियों (राजाओं, सैनिकों, चाचा, भतीजा आदि) की हत्या का पाप दुःखी कर रहा है। मैं (अर्जुन) उस समय भी आश्चर्य में पड़ गया था कि भगवन् गीता ज्ञान में कह रहे थे कि तुम्हें कोई पाप नहीं लगेगा युद्ध करो। आज कह रहे है कि युद्ध में की गई हिंसा का पाप दुःखी कर रहा है। आपने पाप नाश होने का समाधान बताया "अश्वमेघ यज्ञ" करना जिसमें करोड़ों रूपये का खर्च हुआ। उस समय मैं अपने मन को मार कर यह सोच कर चुप रहा कि यदि मैं आप (श्री कृष्ण जी) से वाद-विवाद करूँगा कि आप तो कह रहे थे तुम्हें युद्ध में होने वाली हत्याओं का कोई पाप नहीं लगेगा। आज कह रहे हो तुम्हें महाभारत युद्ध में की हत्याओं का पाप दुःख दे रहा है। कहाँ गया आप का वह गीता वाला ज्ञान। किसलिए हमारे साथ धोखा किया, गुरू होकर विश्वासघात किया। तो बड़े भईया (युधिष्ठर जी) यह न सोच लें कि मेरी चिकित्सा में धन लगना है। इस कारण अर्जुन वाद-विवाद कर रहा है। यह (अर्जुन) मेरे कष्ट निवारण में होने वाले खर्च के कारण विवाद कर रहा है यह नहीं चाहता कि मैं (युधिष्ठर) कष्ट मुक्त हो जाऊं। अर्जुन को भाई के जीवन से धन अधिक प्रिय है। उपरोक्त विचारों को ध्यान में रखकर मैंने सोचा था कि यदि युधिष्ठर भईया को थोड़ा सा भी यह आभास हो गया कि अर्जुन ! इस दृष्टि कोण से विवाद कर रहा है तो भईया ! अपना समाधान नहीं कराएगा। आजीवन कष्ट को गले लगाए रहेगा। हे कृष्ण! आप के कहे अनुसार हमने यज्ञ किया। आज फिर आप कह रहे हो कि तुम्हें युद्ध की हत्याओं का पाप लगा है उसे नष्ट करने के लिए शीघ्र राज्य त्याग कर हिमालय में तपस्या करके गल मरो। आपने हमारे साथ यह विश्वास घात किसलिए किया? यदि आप जैसे सम्बन्धी व गुरू हों तो शत्रुओं की आवश्यकता ही नहीं। हे कृष्ण हमारे हाथ में तो एक भी लड्डू नहीं रहा न तो युद्ध में मर कर स्वर्ग गए न पृथ्वी के राज्य का सुख भोग सके। क्योंकि आप कह रहे हो कि राज्य त्याग कर हिमालय में गल मरो।
आँसू टपकाते हुए अर्जुन के मुख से उपरोक्त वचन सुनकर युधिष्ठर बोला, अर्जुन ! जिस परिस्थिति में भगवान है। इस समय ये शब्द बोलना शोभा नहीं देता। श्री कृष्ण जी बोले हे अर्जुन ! सुन मैं आप को सत्य-2 बताता हूँ। गीता के ज्ञान में मैंने क्या कहा था मुझे कुछ भी ज्ञान नहीं। यह जो कुछ भी हुआ है यह होना था इसे टालना मेरे वश नहीं था। कोई अन्य शक्ति है जो आप और हम को कठपुतली की तरह नचा रही है। वह तेरे वश न मेरे वश। परन्तु जो मैं आपको हिमालय में तपस्या करके शरीर अन्त करने की राय दे रहा हूँ। यह आप को लाभदायक है। आप मेरे इस वचन का पालन अवश्य करना। यह कह कर श्री कृष्ण जी शरीर त्याग गए। जहाँ पर उनका अन्तिम संस्कार किया गया। उस स्थान पर यादगार रूप में श्री कृष्ण जी के नाम पर द्वारिका में द्वारिकाधीश मन्दिर बना है।
श्री कृष्ण ने पाण्डवों से कहा था कि मेरे शरीर का संस्कार करके राख तथा अधजली अस्थियों को एक काष्ठ के संदूक (Box) में डालकर उसको पूरी तरह से बंद करके यमुना में प्रवाह कर देना। पाण्डवों ने वैसा ही किया। वह संदूक बहता हुआ समुद्र में उस स्थान पर चला गया जिस स्थान पर उड़ीसा प्रान्त में जगन्नाथ का मंदिर बना है। एक समय उड़ीसा का राजा इन्द्रदमन था जो श्री कृष्ण जी का परम भक्त था। स्वपन में श्री कृष्ण जी ने बताया कि एक काष्ठ के संदूक में मेरे कृष्ण वाले शरीर की अस्थियाँ हैं। उस स्थान पर वह संदूक बहकर आ चुका है। उसी स्थान पर उनको जमीन में दबाकर एक मंदिर बनवा दें। राजा ने स्वपन अपनी धार्मिक पत्नी तथा मंत्रियों के साथ साझा किया और उस स्थान पर गए तो वास्तव में एक लकड़ी का संदूक मिला। उसको जमीन में दबाकर जगन्नाथ नाम से मंदिर बनवाया। संपूर्ण जानकारी पढ़ें इसी पुस्तक "हिन्दू साहेबान ! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण" में पृष्ठ 56 पर।
धर्मदास जी को परमेश्वर कबीर जी ने बताया। हे धर्मदास ! सर्व (छप्पन करोड़) यादव का जो आपस में लड़कर मर गए थे, अन्तिम संस्कार करके अर्जुन को द्वारिका में छोड़ कर चारों भाई इन्द्रप्रस्थ चले गए। अकेला अर्जुन द्वारिका की स्त्रियों तथा श्री कृष्ण जी की गोपियों को लेकर आ रहे थे। रास्ते में जंगली लोगों ने अर्जुन को पकड़ कर पीटा। अर्जुन के पास अपना गांडीव धनुष भी था जिस से महाभारत का युद्ध जीता था। परन्तु उस समय अर्जुन से वही धनुष नहीं चला। अपने आप को शक्तिहीन जानकर अर्जुन कायरों की तरह सब देखता रहा। वे जंगली व्यक्ति स्त्रियों के गहने लूट ले गए तथा कुछ स्त्रियों को भी अपने साथ ले गए। शेष स्त्रियों को साथ लेकर अर्जुन ने इन्द्रप्रस्थ को प्रस्थान किया तथा मन में विचार किया कि श्री कृष्ण जी महाधोखेबाज (विश्वासघाती) था। जिस समय मेरे से युद्ध कराना था तो शक्ति प्रदान कर दी। उसी धनुष से मैंने लाखों व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया। आज मेरा बल छीन लिया, मैं कायरों की तरह पिटता रहा मेरे से वही धनुष नहीं चला। कबीर परमेश्वर जी ने बताया धर्मदास ! श्री कृष्ण जी छलिया नहीं था। वह सर्व कपट काल ब्रह्म ने किया है जो ब्रह्मा-विष्णु व शिव का पिता है। जिसके समक्ष श्री विष्णु (कृष्ण) तथा श्री शिव आदि की कुछ पेश नहीं चलती।
उपरोक्त कथा सुनकर धर्मदास जी ने प्रश्न किया धर्मदास ने कहा हे परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी! आप ने तो मेरी आँखे खोल दी हे प्रभु! हिमालय में तपस्या कर युधिष्ठर का तो केवल एक पैर का पंजा ही बर्फ से नष्ट हुआ तथा अन्य के शरीर गल गए थे। सुना है वे सर्व पापमुक्त होकर स्वर्ग चले गए?
उत्तर :- परमेश्वर कबीर जी ने कहा हे धर्मदास ! हिमालय में जो तप पाण्डवों ने किया वह शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण (पूजा) होने के कारण व्यर्थ प्रयत्न था। (प्रमाण-गीता अध्याय 16 श्लोक 23 तथा गीता अध्याय 17 श्लोक 5-6 में कहा है कि जो मनुष्य शास्त्रविधि से रहित केवल कल्पित घोर तप को तपते हैं वे शरीरस्थ परमात्मा को कृश करने वाले हैं उन अज्ञानियों को नष्ट हुए जान।) क्योंकि जैसी तपस्या पाण्डवों ने की वह गीता जी व वेदों में वर्णित नहीं है अपितु ऐसे शरीर को पीड़ा देकर साधना करना व्यर्थ बताया है। यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 15 में कहा है ओम् (ॐ) नाम का जाप कार्य करते-2 कर, विशेष कसक के साथ कर मनुष्य जन्म का मुख्य
कर्त्तव्य जान के कर। यही प्रमाण गीता अध्याय 8 श्लोक 7 व 13 में कहा है कि मेरा तो केवल ॐ नाम है इस का जाप अन्तिम सांस तक करने से लाभ होता है इसलिए अर्जुन ! तू युद्ध भी कर तथा स्मरण (भक्ति जाप) भी कर अतः हे धर्मदास ! जैसी तपस्या पाण्डवों ने की वह व्यर्थ सिद्ध हुई।
गीता अध्याय 3 श्लोक 6 से 8 में कहा है कि जो मूढ़ बुद्धि मनुष्य समस्त कर्म इन्द्रयों को रोककर अर्थात् हठ योग द्वारा एक स्थान पर बैठ कर या खड़ा होकर साधना करता है। वह मन से इन्द्रियों का चिन्तन करता रहता है। जैसे सर्दी लगी तो शरीर की चिन्ता, सर्दी का चिन्तन, भूख लगी तो भूख का चिन्तन आदि होता रहता है। वह हठ से तप करने वाला मिथ्याचारी अर्थात् दम्भी कहा जाता है। कार्य न करने अर्थात् एक स्थान पर बैठ या खड़ा होकर साधना करने की अपेक्षा कर्म करना तथा भक्ति भी करना श्रेष्ठ है। यदि कर्म नहीं करेगा तो तेरा शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा।
विशेष विचार :- श्री मद्भगवत गीता में ज्ञान दो प्रकार का है। एक तो वेदों वाला तथा दूसरा काल ब्रह्म द्वारा सुनाया लोक वेद वाला। यह ज्ञान (गीता अध्याय 3 श्लोक 6 से 8 वाला ज्ञान) वेदों वाला ज्ञान ब्रह्म काल ने बताया है। श्री कृष्ण जी द्वारा भी काल ब्रह्म ने पाण्डवों को लोक वेद सुनाया जिस से तप हो जाता है। तप से फिर कभी राजा बन जाता है कुछ सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं। मोक्ष नहीं होता तथा न पाप ही नष्ट होते हैं।
हे धर्मदास ! पाँचों पाण्डवों ने विचार करके अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को राज तिलक कर दिया। द्रोपदी, कुन्ती (अर्जुन, भीम व युधिष्ठर की माता) तथा पाँचों पाण्डव श्री कृष्ण जी के आदेशानुसार हिमालय पर्वत पर जाकर तप करने लगे कुछ ही दिनों में आहार अभाव से उनके शरीर समाप्त हो गए। केवल युधिष्ठर का शरीर शेष रहा। उसके पैर का एक पंजा बर्फ में गल पाया था। युधिष्ठर ने देखा कि उस के परिजन मर चुके है। उनके शरीर प्राप्त हो जाती हैं। मोक्ष नहीं होता तथा न पाप ही नष्ट होते हैं।
हे धर्मदास ! पाँचों पाण्डवों ने विचार करके अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को राज तिलक कर दिया। द्रोपदी, कुन्ती (अर्जुन, भीम व युधिष्ठर की माता) तथा पाँचों पाण्डव श्री कृष्ण जी के आदेशानुसार हिमालय पर्वत पर जाकर तप करने लगे कुछ ही दिनों में आहार अभाव से उनके शरीर समाप्त हो गए। केवल युधिष्ठर का शरीर शेष रहा। उसके पैर का एक पंजा बर्फ में गल पाया था। युधिष्ठर ने देखा कि उस के परिजन मर चुके है। उनके शरीर की आत्माएँ निकल चुकी हैं सूक्ष्म शरीर युक्त आकाश को जाने लगी। तब युधिष्ठर ने भी अपना शरीर त्याग दिया तथा सूक्ष्म शरीर युक्त युधिष्ठर कर्मों के संस्कार वश अपने पिता धर्मराज के लोक में गया। धर्मराज ने अपने पुत्र को बहुत प्यार किया तथा उसको रहने का मकान बताया। कुछ समय पश्चात् काल ब्रह्म ने युधिष्ठर में प्रेरणा की। उसे अपने भाईयों व पत्नी द्रोपदी तथा माता कुन्ती की याद सताने लगी। युधिष्ठर ने अपने पिता धर्मराज से कहा हे धर्मराज ! मुझे मेरे परिजनों से मिलाईए मुझे उनकी बहुत याद सता रही है। धर्मराज ने कहा युधिष्ठर ! वह तेरा परिवार नहीं था। तेरा परिवार तो यह है। तू मेरा पुत्र है। अर्जुन स्वर्ग के राजा इन्द्र का पुत्र है, भीम-पवन देव का पुत्र है, नकुल-नासत्य का पुत्र है तथा सहदेव-दस्र का पुत्र है। (नासत्य तथा दस्र ये दोनों अश्वनी कुमार हैं जो अश्व रूप धारी सूर्य देव तथा अश्वी (घोड़ी) रूप धारी सूर्य की पत्नी संज्ञा के सम्भोग से उत्पन्न हुए थे। सूर्य को घोड़े रूप में न पहचान कर सूर्य पत्नी जो घोड़ी रूप धार कर जंगल में तप कर रही थी अपने धर्म की रक्षा के लिए घोड़ा रूपधारी सूर्य को पृष्ठ भाग (पीछे) की ओर नहीं जाने दिया वह उस घोड़े से अभिमुख रही। कामवासना वश घोड़ा रूपधारी सूर्य घोड़ी रूपधारी अपनी पत्नी (विश्वकर्मा की पुत्री) के मुख की ओर चढ़कर सम्भोग करने के कारण वीर्य का कुछ अंश घोड़ी रूपधारी सूर्य की पत्नी के पेट में मुख द्वारा प्रवेश कर गया जिससे दो लड़कों (नासत्य तथा दस्र) का जन्म घोड़ी रूपी सूर्य पत्नी के मुख से हुआ जिस कारण ये दोनों बच्चे अश्विनी कुमार कहलाए। यह पुराण कथा है।]
धर्मराज ने अपने पुत्र युधिष्ठर को बताया कि आप सब का वहाँ पृथ्वी लोक में इतना ही संयोग था। वह समाप्त हो चुका है। वे सर्व युद्ध में किए पाप कर्मों तथा अन्य जीवन में किए पाप कर्मों का फल भोगने के लिए नरक में डाल रखे हैं। आप के पुण्य अधिक है इसलिए आप नरक में नहीं डाल रखे हैं। अतः आप उन से नहीं मिल सकते काल ब्रह्म कि प्रबल प्रेरणा वश होकर युधिष्ठर ने उन सर्व (भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, द्रोपदी तथा कुन्ती) को मिलने का हठ किया। धर्मराज ने एक यमदूत से कहा आप युधिष्ठर को इसके परिवार से मिला कर शीघ्र लौटा लाना। यमदूत युधिष्ठर को लेकर नरक में प्रवेश हुआ। वहाँ पर आत्माऐं हा-हाकार मचा रहे थे, कह रहे थे, हे युधिष्ठर हमें नरक से निकलवा दो। मैं अर्जुन हूँ, कोई कह रहा था, मैं भीम हूँ, मैं नकुल, मैं सहदेव हूँ, मैं कुन्ती, मैं द्रोपदी हूँ। इतने में यमदूत ने कहा हे युधिष्ठिर अब आप लौट चलिए। युधिष्ठर ने कहा मैं भी अपने परिवार जनों के साथ यहीं नरक में ही रहूँगा। तब धर्मराज ने आवाज लगाई युधिष्ठिर यहाँ आओ मैं तेरे को एक युक्ति बताता हूँ। यह आवाज सुन कर युधिष्ठिर अपने पिता धर्मराज के पास लौट आया। धर्मराज ने युधिष्ठिर को समझाया कि बेटा आपने एक झूठ बोला था कि अश्वथामा मर गया फिर दबी आवाज में कहा था पता नहीं मनुष्य था या युधिष्ठिर अपने पिता धर्मराज के प���स लौट आया। आपने एक झूठ बोला था कि
धर्मराज ने युधिष्ठिर को समझाया कि बेटा अश्वथामा मर गया फिर दबी आवाज में कहा था पता नहीं मनुष्य था या हाथी। जबकि आप को पता था कि हाथी मरा है। उस झूठ बोलने के पाप का कर्मदण्ड देने के लिए आप को कुछ समय इसी बहाने नरक में रखना पड़ा नहीं तो वह युक्ति मैं पहले ही आप को बता देता। युधिष्ठर ने कहा कृप्या आप वह विधि बताईए जिस से मेरे परिजन नरक से निकल सकें। धर्मराज ने कहा उनको एक शर्त पर नरक से निकाला जा सकता है कि आप अपने कुछ पुण्य उनको संकल्प कर दो। युधिष्ठर ने कहा मुझे स्वीकार है। यह कह कर युधिष्ठर ने अपने आधे पुण्य उन छः के निमित्त संकल्प कर दिए। वे छःओं नरक से बाहर आकर धर्मराज के पास जहाँ युधिष्ठर खड़ा था, उपस्थित हो गए। उसी समय इन्द्र देव आया अपने पुत्र अर्जुन को साथ
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हिन्दू साहेबान ! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण
लेकर चला गया, पवन देवता आया अपने पुत्र भीम को साथ लेकर चला गया। इसी प्रकार अश्विनी कुमार (नासत्य, दस्र) आए नकुल व सहदेव को लेकर चले गए। कुन्ती स्वर्ग में चली गई तथा देखते-2 द्रोपदी ने दुर्गा रूप धारण किया तथा आकाश को उड़ चली कुछ ही समय में सर्व की आँखों से ओझल हो गई। वहाँ अकेला युधिष्ठर अपने पिता धर्मराज के पास रह गया। परमेश्वर कबीर जी ने अपने शिष्य धर्मदास जी को उपरोक्त कथा सुनाई तत्पश्चात् इस सर्व काल के जाल को समझाया।
कबीर परमेश्वर जी ने बताया हे धर्मदास ! काल ब्रह्मकी प्रेरणा से इक्कीस ब्रह्मण्डों के प्राणी कर्म करते हैं। जैसा आपने सुना युधिष्ठर पुत्र धर्मराज, अर्जुन पुत्र इन्द्र, भीम पुत्र पवन देव, नकुल पुत्र नासत्य तथा सहदेव पुत्र दस्र थे। द्रोपदी शापवश दुर्गा की अवतार थी जो अपना कर्म भोगने आई थी तथा कुन्ती भी दुर्गा लोक की पुण्यात्मा थी। ये सर्व काल प्रेरणा से पृथ्वी पर एक फिल्म (चलचित्र) बनाने गए थे। जैसे एक करोड़पति का पुत्र किसी फिल्म में रिक्शा चालक का अभिनय करता है। फिल्म निर्माण के पश्चात् अपनी 20 लाख की कार गाडी में बैठ कर आनन्द करता है। भोले-भाले सिनेमा दर्शक उसे रिक्शा चालक मान कर उस पर दया करते हैं। उसके बनावटी अभिनय को देखने के लिए अपना बहुमूल्य समय तथा धन नष्ट करते हैं। ठीक इसी प्रकार उपरोक्त पात्रों (युधिष्ठर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, द्रोपदी तथा कुन्ती) द्वारा बनाई फिल्म महाभारत के इतिहास को पढ़-पढ़कर पृथ्वी लोक के प्राणी अपना समय व्यर्थ करते हैं। तत्त्वज्ञान को न सुनकर मानव शरीर को व्यर्थ कर जाते हैं। काल ब्रह्म यही चाहता है कि मेरे अन्तर्गत जितने भी जीव हैं। वे तत्त्वज्ञान से अपरिचित रहे तथा मेरी प्रेरणा से मेरे द्वारा भेजे गुरुओं द्वारा शास्त्रविधि विरुद्ध साधना प्राप्त करके जन्म-मृत्यु के चक्र में पड़े रहे। काल ब्रह्म की प्रेरणा से तत्त्वज्ञान हीन सन्तजन व ऋषिजन कुछ वेद ज्ञान अधिक लोक वेद के आधार से ही सत्संग वचन श्रद्धालुओं को सुनाते हैं। जिस कारण से साधक पूर्ण मोक्ष प्राप्त न करके काल के जाल में ही रह जाते हैं।
हे धर्मदास ! मैं पूर्ण परमात्मा की आज्ञा लेकर तत्त्वज्ञान बताने के लिए काल लोक में कलयुग में आया हूँ।
धर्मदास जी ने बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर जी के चरण पकड़ कर कहा हे परमेश्वर ! आप स्वयं सत्यपुरूष हो धर्मदास जी ने अति विनम्र होकर आधीन भाव से प्रश्न किया।
"क्या पाण्डव सदा स्वर्ग में ही रहेंगे?
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