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#आज्ञाचक्र
astroclasses · 2 months
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suroy1974 · 4 months
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🌸श्रीरामकृष्णवचनामृत🌸 🌹🌹प्रथम भाग🌹🌹 🌸परिच्छेद ८७ पृष्ठ क्र.५७५🌸 🌹🌹🌹श्रीरामकृष्ण देव – (शिवपुर के भक्तों से) – "विशुद्ध-चक्र पाँचवी भूमि है। जब मन यहाँ आता है तब केवल ईश्वरी प्रसंग कहने और सुनने के लिए प्राण व्याकुल होते है। इस चक्र का स्थान कण्ठ है। यह पद्म सोलह दलों का है। जिसका मन इस चक्र पर आया है, उसके सामने अगर विषय की बातें – कामिनी और कांचन की बातें होती है, तो उसे बड़ा कष्ट होता है। उस तरह की बातें सुनकर वह वहाँ से उठ जाता है। इसके बाद छटी भूमि है आज्ञाचक्र। यह दो दलों का है। कुण्डलिनी जब यहाँ पहुंचती है, तब ईश्वरी रूप के दर्शन होते है। परन्तु फिर भी कुछ ओट रह जाती है, जैसे लालटेन के भीतर की बत्ती, जान तो पड़ता है कि बत्ती पकड़ सकते है, परन्तु शीशे के भीतर है – एक पर्दा है, इसलिए छुई नही जाती। "इससे आगे चलकर सातवीं भूमि है सहस्रार पद्म। कुण्डलिनी के वहाँ जाने पर समाधि होती है। सहस्रार में शिव है, वे शक्ति के साथ मिलित है। शिव और शक्ति का मेल।🌹🌹🌹 🌺🌺क्रमशः🌺🌺 🌺🌺श्रीरामकृष्ण शरणम🌺🌺
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jyotishwithakshayg · 6 months
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🌞आज का वैदिक हिन्दू पंचांग और उतपन्न एकादशी 🌞
👉दिनांक - 08 दिसम्बर 2023*
👉दिन - शुक्रवार*
👉विक्रम संवत् - 2080*
👉अयन - दक्षिणायन*
👉ऋतु - हेमंत*
👉मास - मार्गशीर्ष*
👉पक्ष - कृष्ण*
👉तिथि - एकादशी 09 दिसम्बर प्रातः 06:31 तक तत्पश्चात द्वादशी*
👉नक्षत्र - हस्त सुबह 08:54 तक तत्पश्चात चित्रा*
👉योग - सौभाग्य रात्रि 12:05 तक तत्पश्चात शोभन*
👉राहु काल - सुबह 11:11 से 12:38 तक*
👉सूर्योदय - 07:08*
👉सूर्यास्त - 05:55*
👉दिशा शूल - पश्चिम*
👉ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:22 से 06:15 तक*
👉निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:05 से 12:58 तक*
👉व्रत पर्व विवरण - उत्पत्ति एकादशी (स्मार्त)*
👉विशेष - एकादशी को शिम्बी (सेम) खाने से पुत्र का नाश होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
💥उत्पत्ति एकादशी : 09 दिसम्बर 2023💥
👉एकादशी 08 दिसम्बर प्रातः 05:06 से 09 दिसम्बर प्रातः 06:31 तक ।*
👉व्रत उपवास 09 दिसम्बर 2023 शनिवार को रखा जायेगा ।*
👉08 और 09 दिसम्बर दो दिन चावल खाना निषेध ।*
💥एकादशी व्रत के लाभ💥
👉 एकादशी व्रत के पुण्य के समान और कोई पुण्य नहीं है ।*
👉 जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान से होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है ।*
👉 जो पुण्य गौ-दान, सुवर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है ।*
👉 एकादशी करनेवालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं और अपने परिवारवालों पर प्रसन्नता बरसाते हैं । इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है ।*
👉 धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है ।*
👉 कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन रसमय बनता है ।*
👉 परमात्मा की प्रसन्नता प्राप्त होती है । पूर्वकाल में राजा नहुष, अंबरीष, आदि जिन्होंने भी एकादशी का व्रत किया, उन्हें इस पृथ्वी का समस्त ऐश्वर्य प्राप्त हुआ । भगवान शिवजी ने नारद से कहा है : एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं, इसमे कोई संदेह नहीं है । एकादशी के दिन किये हुए व्रत, गौ-दान आदि का अनंत गुना पुण्य होता है ।*
💥तिलक और त्रिकाल संध्या💥
👉ललाट पर प्लास्टिक की बिंदी चिपकाना हानिकारक है, इसे दूर से ही त्याग दें ।*
👉तुलसी या पीपल की जड़ की मिट्टी अथवा गाय के खुर की मिट्टी पुण्यदायी, कार्यसाफल्यदायी व सात्त्विक होती है । उसका या हल्दी या चंदन का अथवा हल्दी-चंदन के मिश्रण का तिलक हितकारी है ।*
👉भाइयों को भी तिलक करना चाहिए। इससे आज्ञाचक्र (जिसे वैज्ञानिक पीनियल ग्रंथि कहते हैं) का विकास होता है और निर्णयशक्ति बढ़ती है ।*
👉 सूर्योदय के समय ताँबे के लोटे में जल लेकर सूर्यनारायण को अर्घ्य देना चाहिए । इस समय आँखें बंद करके भ्रूमध्य में सूर्य की भावना करनी चाहिए ।*
👉'ब्रह्म पुराण' के अनुसार जो विशुद्ध मन से प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य प्रदान करते हैं,वे अभिलषित भोगों को भोगकर उत्कृष्ट गति को प्राप्त करते हैं। इसलिए प्रतिदिन पवित्र होकर सुन्दर पुष्प-गंध आदि से सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए । सूर्य को अर्घ्य देने से रोगी रोग से मुक्त हो जाता है, धनार्थी धन, विद्यार्थी विद्या एवं पुत्रार्थी पुत्र प्राप्त करता है । जो विद्वान पुरुष मन में जिस इच्छा को रखकर सूर्य को अर्घ्य देता है, उसकी वह इच्छा भलीभाँति पूर्ण होती है ।*
👉 सूर्य को अर्घ्य देने से 'सूर्यकिरण युक्त' जल चिकित्सा का भी लाभ मिलता है ।*
👉सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय मौन होकर संध्योपासना है । इस प्रकार नियमित त्रिकाल संध्या करने वाले को रोजी रोटी के लिए कभी हाथ फैलाना नहीं पड़ता-ऐसा शास्त्रवचन है ।*
👉 ऋषि लोग प्रतिदिन संध्योपासना करने से ही दीर्घजीवी हुए हैं । (महाभारत, अनुशासन पर्व)*
👉 उदय, अस्त, ग्रहण और मध्याह्न के समय सूर्य की ओर कभी न देखें, जल में भी उसका प्रतिबिम्ब न देखें ।
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मूलाधार चक्र में छिपी असीम ऊर्जा को करें जागृत, कुंडलिनी जागरण रहस्य
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hemrajsinghrai1 · 4 years
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#कोरोना को करें #नमस्ते यह शब्द संस्कृत के #नमस शब्द से निकला है. #हथेलियों को दबाने या जोड़े रखने से #हृदयचक्र और #आज्ञाचक्र में सक्रियता आती है जिससे #जागरण बढ़ता है हाथ जोड़ने से #भावनात्मक_वैचारिक मनोभावों पर असर पड़ता है #सकारात्मकता बढ़ती है यह मुद्रा #विनम्रता की सूचक है । (at Bhopal-The City Of Lakes) https://www.instagram.com/p/B9ukh1FHzJz/?igshid=19pthdqa6iow5
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dreamlampstuff-blog · 7 years
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शरीर के चक्र और उनका महत्व
शरीर के चक्र और उनका महत्व
मणिपुर चक्र नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का ये चक्र शरीर में ‘मणिपुर‘ ���मक ये तीसरा चक्र है. जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहाँ एकत्र हैं उसे काम करने की धुन सी लगी रहती है. ऐसे लोगो को कर्मयोगी कहते हैं. ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं. मन्त्र: ‘र‘ कैसे जाग्रत करें अपने कार्य को सकारात्मक अयं देने के लिए इस चक्र पर ध्यान करें. पेट से स्वास लें. प्रभाव इसको सक्रिय करने के…
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hindipost-blog · 7 years
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बेलेनस करे अपने सात चक्र और पाए खुशियाँ ...
बेलेनस करे अपने सात चक्र और पाए खुशियाँ …
क्या आप जानते है हमारा शरीर  7  चक्र पर टि का है .ये चक्र  हमें दिखाई नहीं देते  ��्युकि ये चक्र हमारे अन्दर आत्मा  मैं बसे है. हमारे जीवन  मैं जो  भी  बीमारिया, आर्थिक परशानिया आती है  इन्  7  चक्र के बिगड़ने के कारण आती है . जिसे कुंडलनि शक्ति कहा जाता है . यदि हम किसी जान कार आदमी के समक्ष इसका  अभ्यास करे तो हम अपने चक्रों को ठीक कर सकते है.  चक्र हमारे जीवन के उत्तार चड़ाव को बैलेंस करते है .…
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Dhyana -
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थिताम् षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम्॥
Vande Vanchhita Manorathartha Chandrardhakritashekharam।
Simharudha Chaturbhuja Katyayani Yashasvinim॥
Swarnavarna Ajnachakra Sthitam Shashthama Durga Trinetram।
Varabhita Karam Shagapadadharam Katyayanasutam Bhajami॥
Patambara Paridhanam Smeramukhi Nanalankara Bhushitam।
Manjira, Hara, Keyura, Kinkini, Ratnakundala Manditam॥
Prasannavadana Pallavadharam Kanta Kapolam Tugam Kucham।
Kamaniyam Lavanyam Trivalivibhushita Nimna Nabhim॥
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karanaram · 2 years
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🚩 पूज्य Sant Shri Asharamji Bapu की संसार में अद्वितीय व सबसे दिव्य औरा। - विश्वविख्यात औराविशेषज्ञ डाॅ. हीरा तापड़िया जी की चौंकाने वाली रिपोर्ट।
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖
🚩 आभामंडल को अंग्रेजी में औरा (aura) कहते हैं। विज्ञान की भाषा में इसे विद्युतीय चुम्बकीय क्षेत्र ( Electronic Magnetic Field) कहते हैं। देवी-देवताओं के चित्रों के पीछे जो गोलाकार प्रकाश दिखाई देता है, उसे ही औरा कहते हैं।
🔥 https://youtu.be/AdgW_XI0BiE
🚩 विश्वप्रसिद्ध आभा (औरा) विशेषज्ञ डॉ. हीरा तापड़िया जो भारत ही नहीं विश्व के पहले व्यक्ति हैं जिन्हें ISO 9001-2000 प्रमाण-पत्र प्राप्त हुए है, कुछ वर्ष पूर्व उन्होंने पूज्य Sant Shri Asharamji Bapu की औरा का अध्ययन किया तो वे अचम्भित रह गये।
🚩 डॉ. हीरा तापड़िया ने बताया👇
🚩 मैंने बापूजी के सूरत आश्रम में औरा परीक्षण हेतु अपने अत्याधुनिक यंत्र से परीक्षण आरम्भ किया। तापी नदी के निकट आश्रम के सिद्ध तप्तेश्वर महादेव मंदिर की औरा ने मुझे
आश्चर्यचकित कर दिया। वह तिरूपति बालाजी मन्दिर के औरा के समान थी। फिर मैंने सत्संग पंडाल की जाँच की तो वह सौ मन्दिरों की औरा के समान पायी गयी। उसके बाद अनुमति लेकर जब
बापूजी की कुटिया के निकट पहुँचा। 5 मीटर पहले ही मेरा औरा मीटर पूर्ण (full) हो गया और उसके बाद वो बंद हो गया। बापूजी की आभा नापने की क्षमता यंत्र में भी नहीं बची थी।
🚩 उन्होंने अपने अत्याधुनिक यंत्र से प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर अध्ययन में जो पाया, वह इस प्रकार है। अब तक लगभग 7,00,000 व्यक्तियों से भी अधिक लोगों के औरा-चित्र लिये हैं, जिनमें 1,000 विशिष्ट व्यक्ति शामिल हैं, जैसे-बड़े संत, साध्वियाँ, प्रमुख व्यक्ति आदि। आज तक जितने भी लोगों की औराएँ ली हैं, उनमें सबसे अधिक प्रभावशाली एवं उन्नत औरा Sant Shri Asharamji Bapu की पायी।
🚩 बापूजी की औरा में बैंगनी रंग है, जो यह दर्शाता है कि बापूजी आध्यात्मिकता के शिरोमणि हैं। यह सिद्ध ऋषि-मुनियों में ही पाया जाता है। बैंगनी रंग का अभिप्राय है कि उनके आज्ञाचक्र और सहस्रारचक्र प्रबुद्ध हो गये हैं, खुल गये हैं, चार्ज हो गये हैं, वे (ऊर्ध्व लोकों से) शक्ति ले रहे हैं और (इस लोक में) शक्ति दे रहे हैं।
🚩 बापूजी की औरा में जो एक अन्य विशेषता है कि वह शक्ति देने की क्षमता। बापूजी शक्ति देते हैं शक्तिपात करते हैं। दूसरे लोग अन्य लोगों की शक्ति ग्रहण कर सकते हैं लेकिन बापूजी की औरा में यह प्रमुखता मैंने पायी कि वे सम्पर्क में आये हुए व्यक्ति की ऋणात्मक ऊर्जा को ध्वस्त कर उसे धनात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं। बापूजी की औरा दूसरे व्यक्ति की अशुद्ध औरा को संपर्क में आते ही शुद्ध (clean) कर देती है। बापूजी जब लोगों के बीच में होते हैं तो इनकी औरा इलास्टिक बेल्ट की तरह 3 मीटर से लेकर 50-60 फिट तक खींच जाती है। औरा सब को ढक (cover) लेती है।
🚩 बापूजी की औरा देखकर मुझे सबसे ज्यादा आश्चर्य हुआ क्योंकि लगातार पिछले कम से कम दस जन्मों से बापूजी समाजसेवा का यह पुनीत कार्य करते आ रहे हैं; लोगों पर शक्तिपात करके आध्यात्मिकता में लगाना, स्वस्थ करना, समाज में फैली बुराइयों को दूर करना, ज्ञानामृत बाँटना, आनंद बरसाना आदि-आदि। मुझे पिछले दस जन्मों तक का ही पता चल पाया, उसके पहले का पढ़ने की क्षमता यंत्र में नहीं थी।
🚩 बापूजी का सहस्रार व मूलाधार चक्र का विकास 100 % हो चुका है। मुझे कई लोगों के सहस्रार चक्र में कभी कोई विकास देखने को नहीं मिला। अन्य लोगों का तो माप (reading) नैगेटिव में चल रहा है लेकिन बापूजी का सहस्रार चक्र तो पूर्ण विकसित है।
🚩 जैसे व्यक्ति का साधन बढ़ता है या आपकी सरल भाषा में कहूँ कि उसकी सात्विकता बढ़ती है तो उसकी औरा उतनी स्वच्छ (clean) होती है और जिसकी जितनी औरा स्वच्छ होती है तो उसके सामने जो व्यक्ति बैठता है उसको उतना ही अधिक आनंद व शांति मिलती है। उसके काम शीघ्र होने लगते हैं । ये ज्ञानी महापुरुषों की ओरा इतनी तेजस्वी होती है ।
🚩 उपरोक्त दी गयी सारी जानकारी वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित है। यह कितना खेद का विषय है भारतवर्ष की सबसे अमूल्य आध्यात्मिकता सम्पदा हिन्दू Sant Shri Asharamji Bapu विधर्मी शक्तियों, द्वेषी राजनैतिक दलों, बिकाऊ मीडिया, भ्रष्ट न्याय व्यवस्था व हिन्दू संतों पर चुटकुले बनाने में माहिर हिन्दू की उपेक्षा के कारण निर्दोष होते हुए भी 9 वर्षों से कारावास में है।
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astroclasses · 7 months
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shashank-kumar · 2 years
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।।श्रीगणेशाय नमः श्रीशक्तिशिवेश्वराय नमः।। ------------------------------------------- होली/होलिका दहन/ हुताशनी पुर्णिमा होलिका दहन हुताशनी पुर्णिमा के दिन मुंह पर उलटा हाथ रखकर चिल्लाने का परिणाम व्यक्तिद्वारा भावपूर्ण प्रार्थना एवं नामजप किए जाने से उसके आज्ञाचक्र के स्थानपर प्रार्थना एवं नामजप का वलय निर्माण होता है । यह प्रार्थना एवं नामजप प्रवाह के रूप में ईश्वर तक पहुंचते है । चिल्लाने की क्रिया का लाभ होने हेतु ईश्वर की शक्ति के कण व्यक्ति की ओर आकृष्ट होते हैं । चिल्लाने की क्रिया करते समय, शक्ति का गोला निर्माण होता है एवं इस गोलेद्वारा सर्पचक्राकार वलय प्रक्षेपित होता है । इस वलयद्वारा मारक शक्ति के कणोंका वातावरण में प्रसारण होता है । चिल्लाने की क्रिया के कारण नाद का वलय निर्माण होता है । उससे पृथ्वी, वायु एवं आकाश इन तत्त्वोंके माध्यम से ध्वनि के तरंग वातावरण में प्रक्षेपित होते हैं । इस कारण अनिष्ट शक्तियां दूर फेंकी जाती हैं । ईश्वरीय चैतन्य का प्रवाह व्यक्ति की ओर आकृष्ट होता है । उसके आज्ञाचक्र के स्थानपर चैतन्य का वलय निर्माण होता है । चिल्लाने की क्रिया के कारण चैतन्य का वलय निर्माण होता है और इससे वातावरण में चैतन्य के प्रवाह प्रक्षेपित होते हैं । शक्तियुक्त चैतन्य के कणोंका संचार व्यक्ति के देह में एवं वातावरण में होता है यह प्रक्रिया और भी व्यापक रूप से किया जाता है परंतु इस लेख में इसका कुछ अंश ही बताया गया है।। -----_------------------------------ अधिक आवश्यकता हेतु परामर्श सूत्र- आज्ञानुसारेण— शशांकशक्तिशिवेश्वराय ऋर्षि ज्योतिषाचार्य व यंत्र-मंत्र-तंत्राचार्य सामुद्रिक वास्तुविद वैदिक-घोर-अघोर पौरोहित्यककर्मकांड विचारक [email protected] +919580360075 https://www.instagram.com/p/CbHtFlRPlV0/?utm_medium=tumblr
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jyotishwithakshayg · 7 months
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💥तिलकः लगाने का महत्व बुद्धिबल एवं सत्त्वबलवर्धक💥
👉ललाट पर दोनों भौहों के बीच विचारशक्ति का केन्द्र है । योगी इसे आज्ञाचक्र कहते हैं । इसे शिवनेत्र अर्थात् कल्याणकारी विचारों का केन्द्र भी कहा जाता है ।*
👉यहाँ किया गया चन्दन अथवा सिन्दूर आदि का तिलक विचारशक्ति एवं आज्ञाशक्ति को विकसित करता है । इसलिए हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ कार्य करते समय ललाट पर तिलक किया जाता है ।
👉भाव प्रधान, श्रद्धाप्रधान केन्द्रों में जीने वाली महिलाओं की समझ बढ़ाने के उद्देश्य से ऋषियों ने तिलक की परम्परा शुरू की । अधिकांश स्त्रियों का मन स्वाधिष्ठान एवं मणिपुर केन्द्र में ही रहता है । इन केन्द्रों में भय, भाव और कल्पना की अधिकता होती है। वे भावना एवं कल्पनाओं में बह न जायें, उनका शिवनेत्र, विचारशक्ति का केन्द्र विकसित होता हो इस उद्देश्य से ऋषियों ने स्त्रियों के लिए बिन्दी लगाने का विधान रखा है ।👇
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*Guru Gyan:* _(Shiv Sutra_2.3)_ मूलाधार चक्र में चैतन्य शक्ति जड़ता या उत्साह के रूप में प्रकट होती है। वही शक्ति स्वाधिष्ठान चक्र में कामवासना या सृजनात्मक के रूप में प्रकट होती है। नाभि चक्र में वही शक्ति ईर्षा, उदारता, संतोष और लोभ के रूप मे प्रकट होता है। वही चेतना हृदय चक्र मे द्वेष, प्रेम और भय के रूप में प्रकट होती है। फिर यही चेतना विशुद्ध चक्र में आभारीपन और दुःख के रूप मे प्रकट होती है। ऊपर चलकर वही चेतना ��ज्ञाचक्र में होश, ज्ञान और क्रोध के रूप में प्रकट होती है। इसलिये तीसरा आँख ज्ञान और क्रोध का प्रतिक है। वहीं शक्ति आगे सहस्त्राहार चक्र मे आनंद ही आनंद के रूप में प्रकट होता है। इस चेतना की यात्रा पर आप ध्यान दोगे तो बाहर की दुनिया से लौटकर अपनी दुनिया मे आ सकते हो। ये छोटे छोटे सूत्र है। इसमें से एक भी अपनाया तो आप अपने शरीर मे स्वात्मानंद प्रकाश का अनुभव कर सकते हो। शिव का अर्थ है भोलापन। गोपाला गोपाला शाम गोपाला। _(Shiva Sutra _2.3)_ Chaitanya Shakti manifests as inertia or ecstasy in the Muladhara Chakra. The same Shakti appears as sex or creativity in the Swadhisthana Chakra. In the navel chakra, the same power manifests as jealousy, generosity, satisfaction and greed. The same consciousness manifests as malice, love and fear in the heart Chakra. Then this consciousness manifests in the Vishuddha chakra in the form of gratefulness and sorrow. Moving upwards, the same consciousness appears in the Agaya Chakra in the form of awareness, knowledge and anger. Therefore the third eye is a symbol of knowledge and anger. The same energy, in the Sahastrahar Chakra, manifests itself as Anand. If you pay attention to this journey of consciousness, then you can come back from outside world and come to your own world inside. These are small formulas. If you adopt one of these, then you can experience Swatmanand Prakash in your body. Shiva means innocence. Gopala Gopala Sham Gopala.
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rangraji · 3 years
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आज का सुविचार जी🙏🙏 जब आप हाथ जोड़कर नमस्ते करते हैं तो उस वक्त हथेलियों को दबाने से या जोड़े रखने से हृदयचक्र और आज्ञाचक्र में सक्रियता आती है जिससे जागरण बढ़ता है, आप का मन शांत हो जाता है जिसकी वजह से खुद ब खुद आप के चेहरे पर हंसी आ जाती है! सभी को नमस्कार जी🙏🙏 rangrajistudio_9816456587 https://www.instagram.com/p/CR2zCcSjeZS/?utm_medium=tumblr
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imsaki07 · 3 years
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राशि के अनुसार लगाएं मस्तक पर तिलक, तेज गति के साथ होगी तरक्की #news4
अक्सर जब भी आप पूजा-पाठ के चलते माथे पर तिलक लगाते होंगे तो आपको भीतर से एक पॉजिटिव एनर्जी का अहसास होता होगा। दरअसल धार्मिक दृष्टि से माथे के मध्य की जगह बहुत अहम माना गया है। प्रथा है कि इस स्थान पर आज्ञाचक्र होता है, जिसे ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। तिलक लगाने से ये चक्र उद्दीप्त होता है। जिसके कारण शख्स का मन शांत एवं एकाग्र होता है। इसके अतिरिक्त मस्तक के बीच की जगह को त्रिवेणी या संगम भी…
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*🌷।।ओ३म्।।🌷* *🧘#गीता_में_योग_और_उसकी_विधि🧘* *बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत् सुखम्। स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते।।* - गीता ५ *पदार्थः* - (बाह्य-स्पर्शेषु अ-सक्त-आत्मा) बाह्य-स्पर्शों में अनासक्त आत्मज्ञानी (विन्दति) प्राप्त करता है, [उस] (सुखम्) सुख को (यत् आत्मनि) जो आत्मा में है। (सः ब्रह्म-योग-युक्त-आत्मा) वह ब्रह्म-योग से युक्त रहनेवाला आत्मज्ञानी (अ-क्षयम् सुखम् अश्नुते) अ-क्षय सुख को सेवन करता है। *भावार्थः* - जो आत्मज्ञानी इंद्रियों द्वारा प्राप्त होने वाले बाहरी विषयों के सुख में अनासक्त होकर ध्यानोपासना द्वारा ब्रह्मयोग से युक्त होता है, वह उस ईश्वरीय सुख वा आनंद को प्राप्त करता है, जो उसके आत्मा में विद्यमान है और जो अक्षय सुख कहलाता है। *यो ऽन्तः सुखो ऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः। स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतो ऽधिगच्छति।* - गीता ५/२४ *पदार्थः* - (सः ब्रह्म-भूतः योगी) वह ब्रह्मभूत योगी (यः अन्तः-सुखः अन्तः-आ-रामः) जो अन्तः-सुख, अन्तः-आ-राम [और] (यः एव) जो ही (अन्तः-ज्योतिः) अन्तः ज्योति [है], (ब्रह्म-निः-वानम् अधि-गच्छति) ब्रह्म-निर्वाण को प्राप्त करता है। *भावार्थः* - जो ब्रह्म-परायण योगी, ध्यानयोग द्वारा अपने अन्तर/भीतर ईश्वरीय सुख, आराम और ज्योति का अनुभव करता है, वह ब्रह्मनिर्वाण/मोक्ष को प्राप्त करता है। *स्पर्शान् कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः। प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ।* - गीता ५/२७ *यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः। विगतेच्छाभयक्रोधो यः, सदा मुक्त एव सः।* - गीता ५/२८ *पदार्थः* - (यः मोक्ष-पर-अयनः मुनिः) जो मोक्ष-परायण मुनि (बाह्यान् स्पर्शान् बहिः) बाह्य-विषय स्पर्शों को बाहर (च एव) अपि च (चक्षुः भ्रुवोः अन्तरे कृत्वा) दृष्टि को भोंओं के बीच में करके (नासा-अभ्यन्तर-चारिणौ प्राण-अपानौ समौ कृत्वा) नासिका के भीतर चलनेवाले श्वास-प्रश्वास को स्थिर करके (यत-इन्द्रिय-मनः-बुद्धिः) इन्द्रियों, मन तथा बुद्धि को नियंत्रण करने वाला [और] (वि-गत- इच्छा-भय-क्रोधः) इच्छा, भय और क्रोध से पृथक् रहनेवाला [है] (सः सदा एव मुक्तः) वह सदा ही मुक्त [है]। *भावार्थः* - जो मोक्ष इच्छुक मुनि, ध्यानयोग में बाहरी विषयों को बाहर ही रोककर, अंतर्मुख होकर दृष्टि को दोनों भृकुटियों के बीच में [आज्ञाचक्र पर] एकाग्र करके [प्राणायाम द्वारा] श्वास-प्रश्वास को स्थिर करके; इंद्रिय, मन और बुद्धि को नियंत्रित करता है, और सांसारिक विषयभोग की इच्छा, भय और क्रोध से रहित रहता है, वह मुक्त ही है अर्थात् ... https://www.instagram.com/p/CMPSWzFFVLI/?igshid=gualydz0vkr9
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