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इश्क़ और मोहब्बत!
तुम्हारी तड़प की ख़बर है मुझे भी
मेरी तड़प से कहाँ बे-ख़बर तुम भी
जब दोनों को एहसास है तड़प का
फिर क्यों बना रखी दूरियाँ अब भी
बढ़ते फ़ासले तो तय करने ही होंगे
वरना गहरी खाइयाँ भरेंगी न कभी
डर के बोझ से फ़ासला बना लिया
दिल टूटने का भी सोचा होता कभी
इश्क़ का मोहब्बत तक का सफ़र
ख़ूबसूरत एहसास है ये तबाही नहीं
इश्क़ को किसी हद में बाँधे रखना
मोहब्बत को कोई सुकून देगा नहीं
ग़र तबाही है तो तय है हर हाल ही
दिल से मोहब्बत हो या न हो कभी
बेवजह ही बदनाम हुई है मोहब्बत
इश्क़ को धड़कना कहाँ आया कभी
साँसों में बसी ख़ुशियाँ छुपतीं कैसे
उनमें बेइंतहा मोहब्बत छुपी है जभी
ख़ुश-बाश देखी हैं मोहब्बत में डूबीं
वीरानियाँ इश्क़ से बसीं न थीं कभी!
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#GodMorningThursday
पूर्ण परमात्मा को सच्ची तड़प के साथ याद करने से तथा दिए हुए मंत्र करने से ही हम पूर्ण शांति यानी कि मोक्ष को प्राप्त होंगे ।
अधिक जानकारी के लिए आज ही पड़े पवित्र पुस्तक "ज्ञान गंगा"
#noidagbnup16
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सत_भक्ति_संदेश
😴💫😴💫😴💫😴💫😴💫😴
तड़प.... 🙏
जब हमें परमात्मा के पास🙇
जाने की तड़प बनेगी तभी वो हमें स्वीकार करेगा।
GodNigthWednesday
SaintRampalJiQuotes
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#GodMorningThursday
तड़प यदि परमात्मा का उस तड़प के साथ जपा जाए तो विशेष तथा शीघ्र लाभ होता है जैसे संत रामपाल जी महाराज जी वेदों से प्रमाणित भक्ति बता रहे हैं करोड़ों भक्तों को लाभ हो रहे हैं अवश्य पढ़ें पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा व सत्संग साधना टीवी शाम 7:30
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#TheLifeOfProphetMuhammad
जाने हजरत मोहम्मद जी को कुरान का ज्ञान कैसे दिया गया एक समय प्रभु प्राप्ति की तड़प में हजरत मोहम्मद जी नगर से बाहर एक गुफा में साधना कर रहे थे। एक जिबराईल नामक फरिश्ते ने हजरत मोहम्मद जी का गला घोंट -घोंट कर बालत् कुरान शरीफ का ज्ञान समझाया।
Allah Kabir
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मेरी तड़प तो कुछ भी नहीं है.
सुना है तेरे दीदार को आईने भी तरसते हैं.!
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#मांस_खाना_हराम
जिस प्रकार हमें ज़रा सी खरोंच भी लगती है तो बहुत दर्द (पीड़ा) होती है, ठीक उसी तरह उन बेजुबान जानवरों को भी असहनीय पीड़ा होती है जिन्हें आप हलाल करते हो। वह बेजुबान जीव आत्मा तड़प कर प्राण त्याग देता है। कभी सोचा है
BaaKhabar Sant Rampal Ji
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सदा जो दिल से निकल रही है वो शेरों नगमों में ढल रही है
के दिल के आंगन में जैसे कोई ग़ज़ल की झांझर झनक रही है
तड़प मेरे बेकरार दिल की कभी तो उनपे असर करेगी
कभी तो वो भी जलेंगे उसमें जो आज दिल में दहक रही है
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आज माँ ने अपने दोनों बच्चों की राह देखी. बेटा तो घर आ गया .लेकिन बेटी तो अपने ससुराल की ओर रवाना हो गई.कितना मन मचल रहा होगा कि एक बार बेटी, को नातिनी को देख ले गले लगा ले.
पंडितजी के बताए शुभ दिन में अभी देर है। तब तक बेटी भी तड़प रही अपनी माँ कि लिए. और ये बेटी पढ़ी लिखी इंडिपेंडेंट औरत है.लेकिन रिवाज़ो की बेडियो में कैद है।डंके की चोट पे वो ये कह नी पा रही पहले कदम मेरे माँ बाप कि यहाँ उतरेंगे एंड उसके बाद कही और.
काहे की आज़ादी का अमृत महोत्सव , ना विचारों की आज़ादी है, ना ख़ुद से डिसिशन लेने की।
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Free tree speak काव्यस्यात्मा 1325
" एक चेहरे के सहारे "
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
अंधेरे कोने में आँखों को विस्फारित कर
अधजली चिन्ताएँ कुरेदते जाते हैं
बार-बार अनदेखा देखते हैं
देख लेने के बाद गहरी साँस लेकर
फिर नए को देखने की कोशिश करते हैं।
तड़प, पीड़ा, दुख को
शिथिल अंगों से ढोते हैं
किसी दूसरी दुनिया में जहाँ
कोई द्वंद्व न हो वहाँ
जीते जी संभव न सही
मरने के बाद का दृश्य बुनकर
वापस हो लेते हैं।
जन्म और मरण के अंतराल में
कविता की तड़प को सहते हुए
बेख़ौफ़ शब्दों की ध्वनि के टूटते हुए
बीत रहे वक़्त की चादर के
छोटे होते जाने तक
आत्म के स्वरुप चुपचाप रहते हैं।
लेकिन रोज़-रोज़ बदलती हैं
चेहरे की झुर्रियाँ,
सिलवटे हैं या हैं आकृतियाँ
वक़्त की चादर पर पड़ी
अकारण स्मृतियाँ।
भूलभुलैया-सी भूल है
या तटस्थ रहने का नि:शेष मूल है।
या फिर अपना ही बीता हुआ चेहरा है
जिसका धंसा हुआ अशेष शूल है।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
शब्दार्थ:
नि:शेष : जिसमें कुछ भी बाकी न बचा हो।
अशेष : सम्पूर्ण
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बारिश!
ये बारिश भी तो बेवफ़ा सनम के मानिंद ही तड़पाती है
आने का वायदा करके भी ऐन वक़्त पर मुकर जाती है!
अगर अब आ भी जाती है बस पल दो पल बरसती है
थोड़ा भिगोती है उससे ज़्यादा सूखा ही छोड़ जाती है!
वो भी इक वक़्त था अक्सर जम के बरसने को आती थी
सुलगती रूहें और झुलसते जिस्मों को राहत पहुँचाती थी!
अब तपिश का ये आलम है जिस्म जल रहे हैं रूहें तड़प रही हैं
उसका इंतज़ार करते तो अब साँस लेनी भी दुशवार हो गयी है!
तरसते बदनों को राहत देने जाने कब जम कर बरसने आयेगी
जाने कब काली घटा बरसके प्यासी ज़मी की प्यास बुझाएगी!
जाने कब पहले ही की मानिंद वो तपती ज़मी को दिल से चूमेगी
कब जमके बरसती काली घटा बंजर ज़मी को ज़रख़ेज़ बनाएगी!
इंतज़ार उस वक्त का रहेगा जब मिलन से उम्मीद का बीज फूटेगा
और वही लहराती हरियाली फिर झूमकर सावन के गीत सुनाएगी!
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सबसे ख़तरनाक / पाश | Pash (1950-1988)
मूल पंजाबी से अनुवाद : चमनलाल (translated from the Punjabi by Chamanlal)
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता
कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है
जुगनुओं की लौ में पढ़ना
मुट्ठियां भींचकर बस वक़्त निकाल लेना बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता
सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी नज़र में रुकी होती है
सबसे ख़तरनाक वो आंख होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
और जो एक घटिया दोहराव के क्रम में खो जाती है
सबसे ख़तरनाक वो गीत होता है
जो मरसिए की तरह पढ़ा जाता है
आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर
गुंडों की तरह अकड़ता है
सबसे ख़तरनाक वो चांद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद
वीरान हुए आंगन में चढ़ता है
लेकिन आपकी आंखों में
मिर्चों की तरह नहीं पड़ता
सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती ।
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यदि मनुष्य परमात्मा का उस तड़प के साथ नाम जाप करें तो विशेष तथा शीघ्र लाभ प्राप्त होता है
अधिक ज्ञान जानने के लिए देखें
### संत रामपाल जी महाराज ###
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