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बहरूपिये लफ्ज़
ख़याल काफी आए हैं
ज़हन में उमडे़ हैं सवाल कईं
तूफान ये पुरानी हवाओं का
ले जा रहा है नाजाने कहीं
एक असमंजस सी है मन में
वो बात पूछ लु या नहींधूँध सी छाई है एक
बहरूपिये से हैं लफ्ज़ कईं
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तेरी महक उस खत में थी, मै जलाता कैसे धुए की लत हो जाती, तुझे भुलाता कैसे
वशिष्ठ २९ अप्रैल २०२०
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आदत..
एक सुकून का जज़ीरा था
घिरा हुआ मुश्किलों के सागर से,
लहरों से लड़ कर मुसाफीर
पहुँचा वो उस मंज़ील पर,
दो पल थे बिताए वहाँ
तो दरिया की याद सतानें लगी
कहा अलवीदा और चल दिए नए सफर पर
लगता है लहरों की आदत हो गई ।।
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रिश्ता दोस्ती का
इन बेगानी राहों पर
भटकते इस राही को,
बसेरे सा तु सहारा ।
घनेरे इस जंगल के
अंधियारों में जो खोया,
तु जुगनू सा चमका ।
सुखी बंजर इस मिट्टी की
गहराइयों में एक बीज मैं,
तु बारिश की बूँदों सा ।
अनमोल है एक नाता सब से
क्योंकि अलग सा है ये
रिश्ता दोस्ती का ।।
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अकेला कर गए..
कुछ ऐसे जी रहे थे,
हम उन मयकदों में,
अपनी ही परछाई के साथ ।
वोह यूँ मिले इस कदर,
उन महफिलों में की,
हमें ही अकेला कर गए ।
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जीवन का सफरनामा ।।
ये सफर है ज़िदगी का
इन राहों पर चलते जाना है
मंज़िलें तो बहुत सी हैं
हमसफर मुसाफिरों का आना जाना है
मुकम्मल होगा जब ये सफर
न जाने हम कहाँ और तुम किधर
एक सफरनामा पीछे रह जाएगा
कशमकश भरे इस जीवन की
एक दास्तान तुम्हें सुनाएगा ।।
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एक ख्वाब
उनकी सुरमयी आँखों में
एक तस्वीर सी दिखती है...
उन घनें बालों की लट्टों में
एक नई खुशबू सी महकी है...
उस नशीले पर्दे में
एक हसीन चहरा छुपा है...
उनके कोमल पैरों में
एक खुशी की छनकार है...
पर आज वो छनकार कुछ ज्यादा हे गई
और मेरा वो ख्वाब टूट गया ।।
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वो पर्दा...
ये चिलमन उनके चेहरे पर..
ना जाने कितने रंग छुपा कर बैठा है
अगर उठ गया ये पर्दा..
तो कहीं इस दिल पर कयामत ना आ जाए ।।
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इम शाम को आज ढल जाना है..
ये सूरज की किरणें और
ये बादलों का लाल रंग
आज इन हवाओं नें
छेड़ी है एक नई तरंग
जीना चाहता हूँ इस पल को
भूल कर सारे दिन की तपन
पर नम हैं ये आँखें क्योंकि
इम शाम को आज ढल जाना है।
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😄
मुद्दतें गुज़र गई आदतें बेड़ियाँ बन गई , प्याली वो चाय की नशीली सहेलियां बन गई ..
वशिष्ठ ९ अगस्त २०१८
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एक नई धुन
ये पत्तों की सरसराहट में
आज इन हवाओं ने
एक नई धुन जो सुनाई है
हर सुर हर लय सब
इस हैंरान मन को लुभाई है
ना जानें क्यों ये मन अब
इंतजा़र में उस धुन के रहता है
अब तो लगता है ये तुफान भी
एक नई धुन सुना जाएगा ।।
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खो सा गया हुँ..
ये सपनों के सागर में यादों की लहरें...
ये ख्वाबों की कशती से जो करती थी बातें...
एक नई सी धून जो सुनाती थी आकर किनारे...
आज उन्हीं में कुछ खो सा गया हुँ ।।
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गर्मी का त्योहार।।
जब सूरज की रौशनी से
ये सड़कें जगमगाती हैं..
आम की पेटीयों से
घर में खुशियाँ आ जाती हैं..
उस रंगीन बर्फ के गोले को खाने को
समय से रेस लग जाती है..
महीनों से धूल खाता कूलर
देवता के समान हो जाता है..
स्कूल की उस जेल से भी
महीने का छुटकारा मिल जाता है..
यह गर्मी एक मौसम नही
ये तो एक त्योहार सा लगता है..
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गर्मी की छुट्टीयाँ...
भोर की वो पहली किरन..
जब आँखों में पड़ती थी,
सुबह सुबह उस कोयल की..
बोली भी सुनाई देती थी,
गरमी भरी उस दोपहरी में..
जब पंखा हाथों से करते थे,
पेड़ों से तोड़े आमों का..
मज़ा चुस्कीयों में लेते थे,
आज नाजाने क्यों मुझे युँ याद आ गई..
वो गर्मी की छुट्टीयाँ।
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खोया दिल !!
धीरे से मेरे दिल ने कुछ कहा
शायद चुपके से उन्होंने सुन ��िया
ना जाने उन्होंने क्या कह दिया
ये दिल भी कहीं खो सा गया
अब तो ना जागा हुँ ना सोया
बस हुँ उनके ही खयालों में खोया ।।
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जंग से फतेह...
पिघला दे हर मुश्किल को
है वो ज्वाला मन में
होसला तो समंदर से लड़ जाने का है
लेकिन ये दुनिया ना समझे इस मन को
शायद मेरी चमक से
धुंडला सी गयी हैं उनकी नज़रें
बातों के वार तो बहुत किये पर
इस जंग को भी फतेह कर लेंगे
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वो हसीन पल
वक्त ने किया कुछ हसीन सितम
ना जाने क्यों इतना खुश हो रहे हैं हम
बीते पलों को याद करते
घूमते समय के काँटे भी ना दिखे
खिल खिलते य़ू चेहरे को याद कर
हम भी मन ही मन मस्कुरा रहे थे
चाह रहे थे के ये गुफ्तगु थोड़ी और चलती रहे
बात तो उन्होंने कुछ कही थी इशारों में
हम नासमझ ही शायद समझ ना सके
ये दुरियाँ अजीब सी नज़दीकीयाँ बन गयी थी।
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