Tumgik
#पराजय
geetaparamrahasyam · 4 months
Text
instagram
कौन है मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन
मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन उसका अपना अहंकार और अज्ञान होता है। अहंकार उसे अन्य लोगों के साथ सहयोग करने से रोकता है और उसकी सोच को अपने स्वार्थ में बाधित करता है। अज्ञान उसे समझने और सहयोग करने की शक्ति से वंचित रखता है, जिससे वह दूसरों के साथ सहयोग करने के अवसरों को खो देता है।
For more details visit - गीता के श्लोकों को सरल भाषा में समझाने का प्रयास करते हैं। Geeta gyan - Geeta param rahasyam ये श्लोक गीता के महत्वपूर्ण भाग हैं जो मार्गदर्शन के रूप में सेवन किए जा सकते हैं।
इन दोनों के अत्यधिक प्रयोग से, मनुष्य खुद को अलग और दूर महसूस करता है, जिससे समाज में दूरी और विभाजन का संदेश मिलता है। इसलिए, समाज के लिए और अपने स्वयं के लिए, हमें अपने अहंकार और अज्ञान को पराजित करने का प्रयास करना चाहिए।
0 notes
deepjams4 · 10 months
Text
Tumblr media
मैं टीम इंडिया
क्यों एक अभिशापित कर्ण हूँ मैं!
क्या मैं भी एक अभिशापित कर्ण ही हूँ!
क्या श्रापित हूँ मैं भी उसकी ही तरह?
मैं भी उसकी ही भाँति उच्च योद्धा जाना जाऊँ
मैं भी किसी अर्जुन से कहाँ कम आँका जाऊँ!
मैंने हर योद्धा को रण में कई बार परास्त किया है
मगर भाग्य का दोष कहूँ या विधि का विधान इसे
वक्त के क्रूर हाथों ने देखो मेरा क्या हश्र किया है!
महाभारत रूपी महासंग्राम वर्ल्ड कप की रणभूमि में
जब जब मैं अपनी विजय पताका फैहराने आता हूँ
उस अश्वमेध यज्ञ में मैं कई शौर्य गाथाएँ लिखकर भी
हर बार अंतिम क्षणों में बस वीरगति पा जाता हूँ
विजय नाद बजाने से पहले मैं पराजित हो जाता हूँ!
क्यों उस पराक्रमी योद्धा कर्ण की भाँति ही
महा रण के महत्वपूर्ण अंतिम चरण में खड़ा मैं
स्वयं को असहाय पाता हूँ जीता संग्राम मैं हार जाता हूँ!
रणभूमि में जिनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है
मेरे अभेद्य अलौकिक कहलाये जाने वाले सैनिक
और सभी अस्तर शस्त्र भी तो कोई काम नहीं आते हैं
सब नीतियाँ वहीं की वहीं बस धरी ही रह जाती हैं
मेरा रण कौशल मुख्य क्षणों में शिथिल पड़ जाता है
तरकश से निकला कोई भी बाण लक्ष्य भेद नहीं पाता है!
विजय पथ पर रथ का पहिया गड्ढे में धँस जाता है
और मैं असहाय खड़ा एक मूक दर्शक बन जाता हूँ
बस अंतिम क्षणों में मैं पराजय द्वार पहुँच जाता हूँ!
हर बार ही चाहे हो वो विश्व एक दिवसीय चैंपियनशिप
या फिर पाँच दिवसीय टेस्ट मैच विश्व प्रतियोगिता
कभी न्यूज़ीलैंड तो कभी आस्ट्रेलिया सा सामने आता है
वो कोई अर्जुन सा बन मुझे बस धराशायी कर जाता है!
अंतर्द्वंद में हूँ घिरा असमंजस में पड़ा हूँ मैं सोच रहा
हे नीलवर्ण कृष्ण क्यों रूठे हो अबतक भी मुझसे
अर्जुनों को छोड़ कभी मेरे पक्ष से भी क्यों नहीं लड़ते
सारथी बन मेरा हाथ भी थाम लो हे गिरधर
मेरी भी तो पीड़ाएँ हरो प्रभु अपना आशीष देकर!
देखो मैंने भी तो कब से नीलांबर वस्त्र धारण किये हैं
अब तो मैंने भगवा टोपी टी-शर्ट निकर भी पहन लिये हैं
तुम तो स्पष्ट समझते ही हो इसके क्या सही मायने हैं
बताओ प्रभु मैंने अभी कितने और कटाक्ष उपहास सहने हैं!
कब तक मेरे अविचलित प्रयास निरर्थक होते रह जाएँगे
कब पराजय के नागपाश से प्रभु मेरे भाग्य मुक्ति पायेंगे
कर्ण समान श्रापित मुझको श्राप से कब मुक्ति दिलाओगे
कब मुझे अपना आशीर्वाद देकर हर श्राप मेरा हर जाओगे
कब सारथी बन आप मेरी नौका भी हे प्रभु पार लगाओगे!
आशाओं की डोरी थामे अडिग खड़ा हूँ मैं जाने कब से
घायल अवस्था में भी चिरकाल से मैं भिड़ रहा हूँ सबसे
जो लाज रखो मेरी योग्यता की तभी वो अप्रतिम बनेगी
प्रभु जो आशीर्वाद मिले तुम्हारा मेरी भी धाक जमेगी!
2 notes · View notes
bhaktibharat · 10 months
Text
🪔 लाभ पंचमी - Labh Panchami
❀ गुजरात राज्य में लाभ पंचमी को दिवाली उत्सव का समापन माना जाता है।
❀ लाभ पंचमी के दिन पूजा करने से व्यवसाय और परिवार में लाभ, भाग्य तथा उन्नति मिलती है।
❀ लाभ पंचमी गुजरात न्यू ईयर का पहला कामकाजी दिन होता है।
❀ गुजरात में अधिकतर व्यवसायी दिवाली मनाकर लाभ पंचमी को वापस अपने काम को प्रारंभ करते हैं।
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः
येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः ॥
हिन्दी भावार्थ: जिनके हृदयमें श्याम रंगके पद्म स्वरूपी जनार्दनका वास है, उन्हें सदैव यश (लाभ) मिलता है, उनकी सदैव जय होती है, उनकी पराजय कैसे संभव है!
📲 https://www.bhaktibharat.com/festival/labh-panchami
Tumblr media
✨ कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 21  👇
📲 https://www.bhaktibharat.com/katha/kartik-mas-mahatmya-katha-adhyaya-21
2 notes · View notes
virenderyadav · 2 years
Text
#GodMorningSunday
अपनी लड़की के जीवित न होने का दुख नहीं, कबीर साहेब की पराजय की खुशी मना रहा था।
कबीर साहेब जी ने कहा कि बैठ जाओ महात्मा जी, शांति रखो।कबीर साहेब ने आदेश दिया कि हे जीवात्मा जहां भी है कबीर आदेश से इस शव में प्रवेश करो और बाहर आओ। कबीर साहेब का कहना ही था कि इतने में वह लड़की जीवित होकर बाहर आई।
Tumblr media
2 notes · View notes
sapnekaarth · 2 years
Text
सपने को सांप को देखना शुभ या अशुभ - Sapne Ka Arth
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका "Sapne Ka Arth" ब्लॉग मे।
आज की इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से हम जानेंगे कि सपने में सांप देखना, सपने में सांप का काटना, नागपंचमी के दिन सपने में सांप देखना, सपने में सांप देखना शुभ या अशुभ इन सबकी सच्चाई क्या है।
सांप को ज्ञान सत्य और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है इसे अलग-अलग धर्मों और संस्कृतियों में अलग-अलग तरीकों से समझा जाता है। हिंदू धर्म में सांप को अज्ञान और अंधविश्वास का प्रतीक माना जाता है जबकि अन्य धर्मों में सांप को ज्ञान और सत्य का प्रतीक माना जाता है।
यह भी पढ़े:-
सपने में एसडीएम को देखना
सपने में शेर को देखना
सपने में बहुत सारे लोगों को देखना 
सपने में सांप देखने के शुभ और अशुभ संकेतों के बारे में जाने- Sapne KA Arth 
सपने में सांप देखना 12 शुभ संकेत 
दोस्तों यदि आपको सपने में सांप मरा हुआ दिखाई देता है तो आपको समझ जाना चाहिए कि आपके अच्छे दिन आने वाले हैं आप राहु नामक दोष से मुक्ति पाने वाले हैं आपके सारे कष्ट एवं दुख दूर होने वाले हैं।
रात में सपने में चमकीला सांप दिखाई देना इस बात की ओर संकेत करता है कि आपकी किस्मत खुलने वाली है और आपके पूर्वज आप पर मेहरबान होने वाले हैं।
दोस्तों यदि आप सपने में कहीं पर जा रहे हैं और आप को सपने में सांप जाता हुआ दिखाई देता है फिर वह आपको देखकर कहीं पर छुप जाता है तो यह संकेत इस बात की ओर संकेत करता है की आपके पूर्वज आपकी रक्षा कर रहे हैं।
दोस्तों यदि आपको सपने में सांप फन उठाए हुए दिखाई दे तो इसका मतलब है कि आपके घर में धन दौलत क�� बरसात होने वाली है।
दोस्तों यदि आप सपने में किसी जगह पर खुदाई कर रहे हैं और खुदाई में से सांप निकलता है तो इसका मतलब है कि आपके धन प्राप्ति के योग हैं।
सपने में सफेद सांप को देखने का मतलब है कि आपको ढेर सारे धन की प्राप्ति होने वाली है।
सपने में सांप के काटने का मतलब है की लंबी आयु तक जीवित रहने वाले है।
दोस्तों यदि आप सपने में कहीं पर जा रहे हैं और सांप आपका रास्ता काट लें तो यह संकेत है कि आपकी विजय और आपके शत्रुओं की पराजय होने वाली है।
सपने में सिर पर सांप का बैठा हुआ दिखाई देने  मतलब है कि आप जहां कहीं भी जाएंगे आपको हर तरफ से मान सम्मान और इज्जत की प्राप्ति होगी।
दोस्तों यदि आपको सपने में सांप खा जाए मतलब कि निगल जाए तो इसका मतलब है कि आपके व्यापार में उन्नति होने वाली है।
सपने में सांप को बिल में जाते हुए देखना का मतलब है कि आपको अचानक धन की प्राप्ति होगी आप खुद हैरान कर रह जाएंगे। 
दोस्तों यदि आपको सपने में कोई सफेद सांप दिखाई देता है तो इसका मतलब है कि आप बहुत भाग्यवान है आपका भविष्य बहुत सुनहरा होने वाला है।
दोस्तों नाग पंचमी के दिन सपने में सांप देखने का मतलब है कि जल्द ही आप उन्नति की सीढ़ियां चढ़ने वाले हैं।
सपने में सांप के बच्चे को मारते हुए देखने का मतलब है कि आपके घर में से नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकल जाएगी और सकारात्मक ऊर्जा का वास होगा
सपने में सांप दिखाई देना 10 अशुभ संकेत 
दोस्तों यदि आपको सपने में ढेर सारे सांप दिखाई दे रहे हैं तो यह अशुभ है लेकिन इसका तोड़ भी है यदि आप उन सांपों को सपने में मार देते हैं तो आप आने वाले सभी संकट को हरा देंगे और जीत आपकी ही होगी।
दोस्तों यदि आप सपने में कहीं पर जा रहे हैं और सांप आपका पीछा करने लग जाए तो इसका मतलब है कि आप अपने भविष्य के प्रति डरे हुए हैं आपको डर लग रहा है कि मेरा भविष्य कैसा होगा आप अपने भविष्य को लेकर के हिम्मत नहीं जुटा पा रहे है या आपको किसी राज के खुल जाने का डर है। 
दोस्तों यदि आपको सपने में कोई सांप डस ले तो इसका मतलब है कि आपको कोई बड़ी बीमारी होने वाली है आपको अभी से आगाह हो जाना चाहिए और अपनी सेहत का ध्यान रखना चाहिए। 
दोस्तों यदि आपको सपने में कोई काला सांप दिखाई देता है तो यह सपना आपको किसी आने वाले खतरे की ओर संकेत कर रहा है।
दोस्तों यदि आपको सपने में आपके ऊपर कोई सांप गिरता हुआ दिखाई देता है यह तो इसका मतलब है कि आप गंभीर रूप से बीमार होने वाले हैं आपको अपनी सेहत का ध्यान रखना चाहिए अपने घर के आसपास की सफाई अच्छे से करनी चाहिए अच्छा भोजन करना चाहिए। 
दोस्तों यदि आपको अपने सपने में कोई सांप बिल में से निकलता हुआ दिखाई दे तो यह संकेत है कि आपको धन हानि हो सकती है। 
दोस्तों यदि आपको अपने सपने में बार बार सांप दिखाई देता है तो यह संकेत है कि आपको पितृ दोष है आपके पूर्वज आपसे नाराज हैं आपको अपने घर में पूजा पाठ, हवन कराना चाहिए। 
दोस्तों यदि आपको सपने में सांप और नेवले की लड़ाई होती हुई दिखाई देती हैं तो यह इस बात का संकेत है कि आप को कानूनी मामले में पड़ना पड़ सकते हैं। 
दोस्तों यदि आपको सपने में सांप आपको दांत दिखाता है तो आपको समझ जाना चाहिए की आपके रिश्तेदार, दोस्त या ऑफिस के कर्मचारियों में से कोई धोखा दे सकता है।
 दोस्तों यदि आप सपने में नाग नागिन को साथ में देख लेते हैं तो यह सपना आपको किसी आने वाले संकट की ओर संकेत कर रहा है आप सावधान हो जाइए।
सपने में सांप देखने से संबंधित अक्सर पुछे जाने वाले सवाल 
Q.1. सांप के सपने क्यों आते है?
 ज्योतिषियों का मत है कि जिन व्यक्तियों की कुंडली में कालसर्प दोष होता है या राहु केतु का काल चल रहा होता है उन्हें साँप का सपना आता है वहीं अगर हम स्वप्न शास्त्र की माने तो सांप के सपने हमें भविष्य में होने वाली घटनाओं का संकेत देते हैं।
Q.2. सपने में सांप देखना शुभ है या अशुभ?
सपने में सांप देखना शुभ और अशुभ दोनों ही तरह के संकेत देता है।
Q.3. सपने में काले सांप को देखने से क्या होता है?
सपने में यदि आपको कोई काला सांप दिखाई देता है तो यह किसी आने वाले खतरे की तरफ संकेत कर रहा है।
Q.4. सपने में चमकीला सांप दिखाई देने से क्या होता है?
 सपने में चमकीला सांप दिखाई देना इस बात की ओर संकेत करता है कि आपकी किस्मत खुलने वाली है और आपके पूर्वज आप पर मेहरबान होने वाले हैं।
Q.5. सपने में बहुत सारे सांपों को देखने से क्या होता है?
 यदि आपको सपने में ढेर सारे सांप दिखाई दे रहे हैं तो यह अशुभ है लेकिन यदि आप उन सांपों को सपने में मार देते हैं तो आप आने वाले सभी संकट को हरा देंगे और जीत आपकी ही होगी।
Q.6. सांप को किसका प्रतीक माना जाता है?
हिंदू धर्म में सांप को अज्ञान और अंधविश्वास का प्रतीक माना जाता है।
Q.7. नागपंचमी के दिन सपने में सांप देखने से क्या होता है?
नाग पंचमी के दिन सपने में सांप देखने का मतलब है कि आप उन्नति की सीढ़ियां चढ़ने वाले हैं।
Q.8. सपने में सांप का जोड़ा देखने का क्या मतलब है?
- सपने में सांप का जोड़ा देखने का मतलब है कि जल्द ही आपको कहीं से अच्छा समाचार सुनने को मिल सकता है अथवा आपके हाथ कोई खजाना लग सकता है।
Q.9. सपने में सांप को भागते हुए देखने का क्या मतलब है?
- सपने में सांप को भागते हुए देखना अच्छा संकेत है इसका मतलब है कि आपके काम की सराहना की जाएगी।
Q.10. सपने में सांप को मारते हुए देखने का क्या मतलब है?
- सपने में सांप को मारते हुए देखने का मतलब है कि आप अपने शत्रुओं को हरा देंगे।
Q.11. सपने में सांप को पानी में देखने का क्या मतलब है?
- सपने में सांप को पानी में देखने का मतलब है कि भविष्य में आपको सतर्क रहना पड़ेगा लापरवाही ना करें। एक भी लापरवाही आपको नुकसान पहुंचा सकती है।
Q.12. सपने में सांप के अंडे देखने का क्या मतलब है?
- सपने में सांप के अंडे देखने का मतलब है कि आपके जीवन में सुख और वैभव बना रहेगा।
निष्कर्ष
तो दोस्तों आज की इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से हमने जाना कि सपने में सांप देखना, सपने में सांप का काटना, नागपंचमी के दिन सपने में सांप देखना, सपने में सांप देखना शुभ या अशुभ है इन सबकी सच्चाई क्या है।
 दोस्तों मुझे आशा है कि आपको अपने सभी सवालों का जवाब मिल गया होगा यदि अभी भी आपके मन में "सपने में सांप देखना" से संबंधित कोई सवाल है तो उसे कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूछ लीजिएगा।
2 notes · View notes
astroclasses · 2 days
Link
0 notes
subeshivrain · 7 days
Text
Tumblr media
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart91 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart92
"अन्य वाणी सतग्रन्थ से"
तेतीस कोटि यज्ञ में आए सहंस अठासी सारे। द्वादश कोटि वेद के वक्ता, सुपच का शंख बज्या रे ।।
"अर्जुन सहित पाण्डवों को युद्ध में की गई हिंसा के पाप लगे"
परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि उपरोक्त विवरण से सिद्ध हुआ कि पाण्डवों को युद्ध की हत्याओं का पाप लगा। आगे सुन और सुनाता हूँ :-
दुर्वासा ऋषि के शाप वश यादव कुल आपस में लड़कर प्रभास क्षेत्र में यमुना नदी के किनारे नष्ट हो गया। श्री कृष्ण जी भगवान को एक शिकारी ने पैर में विषाक्त तीर मार कर घायल कर दिया था। उस समय श्री कृष्ण जी ने उस शिकारी को बताया कि आप त्रेता युग में सुग्रीव के बड़े भाई बाली थे तथा मैं रामचन्द्र था। आप को मैंने धोखा करके वृक्ष की ओट लेकर मारा था। आज आपने वह बदला (प्रतिशोध) चुकाया है। पाँचों पाण्डवों को पता चला कि यादव आपस में लड़ मरे हैं वे द्वारिका पहुँचे। वहाँ गए जहाँ पर श्री कृष्ण जी तीर से घायल तड़फ रहे थे। पाँचों पाण्डवों के धार्मिक गुरू श्री कृष्ण जी थे। श्री कृष्ण जी ने पाण्डवों से कहा! आप मेरे अतिप्रिय हो। मेरा अन्त समय आ चुका है। मैं कुछ ही समय का मेहमान हूँ। मैं आपको अन्तिम उपदेश देना चाहता हूँ कृप्या ध्यान पूर्वक सुनों। यह कह कर श्री कृष्ण जी ने कहा (1) आप द्वारिका की स्त्रियों को इन्द्रप्रस्थ ले जाना। यहाँ कोई नर यादव शेष नहीं बचा है (2) आप अति शीघ्र राज्य त्याग कर हिमालय चले जाओ वहाँ अपने शरीर के नष्ट होने तक तपस्या करते रहो। इस प्रकार हिमालय की बर्फ में गल कर नष्ट हो जाओ। युधिष्ठर ने पूछा हे भगवन्! हे गुरूदेव श्री कृष्ण ! क्या हम हिमालय में गल कर मरने का कारण जान सकते हैं? यदि आप उचित समझें तो बताने की कृपा करें। श्री कृष्ण ने कहा युधिष्ठर! आप ने युद्ध में जो प्राणियों की हिंसा करके पाप किया है। उस पाप का प्रायश्चित् करने के लिए ऐसा करना अनिवार्य है। इस प्रकार तपस्या करके प्राण त्यागने से आप के महाभारत युद्ध में किए पाप नष्ट हो जाएँगे।
कबीर जी बोले हे धर्मदास ! श्री कृष्ण जी के श्री मुख से उपरोक्त वचन सुन कर अर्जुन आश्चर��य में पड़ गया। सोचने लगा श्री कृष्ण जी आज फिर कह रहे हैं कि युद्ध में किए पाप नष्ट इस विधि से होगें। अर्जुन अपने आपको नहीं रोक सका। उसने श्री कृष्ण जी से कहा हे भगवन्! क्या मैं आप से अपनी शंका का समाधान करा सकता हूँ। वैसे तो गुरूदेव! यह मेरी गुस्ताखी है, क्षमा करना क्योंकि आप ऐसी स्थिति में हैं कि आप से ऐसी-वैसी बातें करना उचित नहीं जान पड़ता। यदि प्रभु ! मेरी शंका का समाधान नहीं हुआ तो यह शंका रूपी कांटा आयु पर्यन्त खटकता रहेगा। मैं चैन से जी नहीं सकूंगा। श्री कृष्ण ने कहा हे अर्जुन ! तू जो पूछना चाहता है निःसंकोच होकर पूछ। मैं अन्तिम स्वांस गिन रहा हूँ जो कहूंगा सत्य कहूंगा। अर्जुन बोला हे श्री कृष्ण! आपने श्री मद्भगवत् गीता का ज्ञान देते समय कहा था कि अर्जुन ! तू युद्ध कर तुझे युद्ध में मारे जाने वालों का पाप नहीं लगेगा तू केवल निमित्त मात्र बन जा ये सर्व योद्धा मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं (प्रमाण गीता अध्याय 11 श्लोक 32-33) आपने यह भी कहा कि अर्जुन युद्ध में मारा गया तो स्वर्ग को चला जाएगा, यदि युद्ध जीत गया तो पृथ्वी के राज्य का सुख भोगेगा। तेरे दोनों हाथों में लड्डू हैं। (प्रमाण श्री मदभगवत् गीता अध्याय 2 श्लोक 37) तू युद्ध के लिए खड़ा हो जो जय-पराजय की चिन्ता छोड़कर युद्ध कर इस प्रकार तू पाप को प्राप्त नहीं होगा (गीता अध्याय 2 श्लोक 38) जिस समय बड़े भईया को बुरे 2 स्वपन आने लगे हम आप के पास कष्ट निवारण के लिए विधि जानने गए तो आपने बताया कि जो युद्ध में बन्धुघात अर्थात् अपने नातियों (राजाओं, सैनिकों, चाचा, भतीजा आदि) की हत्या का पाप दुःखी कर रहा है। मैं (अर्जुन) उस समय भी आश्चर्य में पड़ गया था कि भगवन् गीता ज्ञान में कह रहे थे कि तुम्हें कोई पाप नहीं लगेगा युद्ध करो। आज कह रहे है कि युद्ध में की गई हिंसा का पाप दुःखी कर रहा है। आपने पाप नाश होने का समाधान बताया "अश्वमेघ यज्ञ" करना जिसमें करोड़ों रूपये का खर्च हुआ। उस समय मैं अपने मन को मार कर यह सोच कर चुप रहा कि यदि मैं आप (श्री कृष्ण जी) से वाद-विवाद करूँगा कि आप तो कह रहे थे तुम्हें युद्ध में होने वाली हत्याओं का कोई पाप नहीं लगेगा। आज कह रहे हो तुम्हें महाभारत युद्ध में की हत्याओं का पाप दुःख दे रहा है। कहाँ गया आप का वह गीता वाला ज्ञान। किसलिए हमारे साथ धोखा किया, गुरू होकर विश्वासघात किया। तो बड़े भईया (युधिष्ठर जी) यह न सोच लें कि मेरी चिकित्सा में धन लगना है। इस कारण अर्जुन वाद-विवाद कर रहा है। यह (अर्जुन) मेरे कष्ट निवारण में होने वाले खर्च के कारण विवाद कर रहा है यह नहीं चाहता कि मैं (युधिष्ठर) कष्ट मुक्त हो जाऊं। अर्जुन को भाई के जीवन से धन अधिक प्रिय है। उपरोक्त विचारों को ध्यान में रखकर मैंने सोचा था कि यदि युधिष्ठर भईया को थोड़ा सा भी यह आभास हो गया कि अर्जुन ! इस दृष्टि कोण से विवाद कर रहा है तो भईया ! अपना समाधान नहीं कराएगा। आजीवन कष्ट को गले लगाए रहेगा। हे कृष्ण! आप के कहे अनुसार हमने यज्ञ किया। आज फिर आप कह रहे हो कि तुम्हें युद्ध की हत्याओं का पाप लगा है उसे नष्ट करने के लिए शीघ्र राज्य त्याग कर हिमालय में तपस्या करके गल मरो। आपने हमारे साथ यह विश्वास घात किसलिए किया? यदि आप जैसे सम्बन्धी व गुरू हों तो शत्रुओं की आवश्यकता ही नहीं। हे कृष्ण हमारे हाथ में तो एक भी लड्डू नहीं रहा न तो युद्ध में मर कर स्वर्ग गए न पृथ्वी के राज्य का सुख भोग सके। क्योंकि आप कह रहे हो कि राज्य त्याग कर हिमालय में गल मरो।
आँसू टपकाते हुए अर्जुन के मुख से उपरोक्त वचन सुनकर युधिष्ठर बोला, अर्जुन ! जिस परिस्थिति में भगवान है। इस समय ये शब्द बोलना शोभा नहीं देता। श्री कृष्ण जी बोले हे अर्जुन ! सुन मैं आप को सत्य-2 बताता हूँ। गीता के ज्ञान में मैंने क्या कहा था मुझे कुछ भी ज्ञान नहीं। यह जो कुछ भी हुआ है यह होना था इसे टालना मेरे वश नहीं था। कोई अन्य शक्ति है जो आप और हम को कठपुतली की तरह नचा रही है। वह तेरे वश न मेरे वश। परन्तु जो मैं आपको हिमालय में तपस्या करके शरीर अन्त करने की राय दे रहा हूँ। यह आप को लाभदायक है। आप मेरे इस वचन का पालन अवश्य करना। यह कह कर श्री कृष्ण जी शरीर त्याग गए। जहाँ पर उनका अन्तिम संस्कार किया गया। उस स्थान पर यादगार रूप में श्री कृष्ण जी के नाम पर द्वारिका में द्वारिकाधीश मन्दिर बना है।
श्री कृष्ण ने पाण्डवों से कहा था कि मेरे शरीर का संस्कार करके राख तथा अधजली अस्थियों को एक काष्ठ के संदूक (Box) में डालकर उसको पूरी तरह से बंद करके यमुना में प्रवाह कर देना। पाण्डवों ने वैसा ही किया। वह संदूक बहता हुआ समुद्र में उस स्थान पर चला गया जिस स्थान पर उड़ीसा प्रान्त में जगन्नाथ का मंदिर बना है। एक समय उड़ीसा का राजा इन्द्रदमन था जो श्री कृष्ण जी का परम भक्त था। स्वपन में श्री कृष्ण जी ने बताया कि एक काष्ठ के संदूक में मेरे कृष्ण वाले शरीर की अस्थियाँ हैं। उस स्थान पर वह संदूक बहकर आ चुका है। उसी स्थान पर उनको जमीन में दबाकर एक मंदिर बनवा दें। राजा ने स्वपन अपनी धार्मिक पत्नी तथा मंत्रियों के साथ साझा किया और उस स्थान पर गए तो वास्तव में एक लकड़ी का संदूक मिला। उसको जमीन में दबाकर जगन्नाथ नाम से मंदिर बनवाया। संपूर्ण जानकारी पढ़ें इसी पुस्तक "हिन्दू साहेबान ! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण" में पृष्ठ 56 पर।
धर्मदास जी को परमेश्वर कबीर जी ने बताया। हे धर्मदास ! सर्व (छप्पन करोड़) यादव का जो आपस में लड़कर मर गए थे, अन्तिम संस्कार करके अर्जुन को द्वारिका में छोड़ कर चारों भाई इन्द्रप्रस्थ चले गए। अकेला अर्जुन द्वारिका की स्त्रियों तथा श्री कृष्ण जी की गोपियों को लेकर आ रहे थे। रास्ते में जंगली लोगों ने अर्जुन को पकड़ कर पीटा। अर्जुन के पास अपना गांडीव धनुष भी था जिस से महाभारत का युद्ध जीता था। परन्तु उस समय अर्जुन से वही धनुष नहीं चला। अ��ने आप को शक्तिहीन जानकर अर्जुन कायरों की तरह सब देखता रहा। वे जंगली व्यक्ति स्त्रियों के गहने लूट ले गए तथा कुछ स्त्रियों को भी अपने साथ ले गए। शेष स्त्रियों को साथ लेकर अर्जुन ने इन्द्रप्रस्थ को प्रस्थान किया तथा मन में विचार किया कि श्री कृष्ण जी महाधोखेबाज (विश्वासघाती) था। जिस समय मेरे से युद्ध कराना था तो शक्ति प्रदान कर दी। उसी धनुष से मैंने लाखों व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया। आज मेरा बल छीन लिया, मैं कायरों की तरह पिटता रहा मेरे से वही धनुष नहीं चला। कबीर परमेश्वर जी ने बताया धर्मदास ! श्री कृष्ण जी छलिया नहीं था। वह सर्व कपट काल ब्रह्म ने किया है जो ब्रह्मा-विष्णु व शिव का पिता है। जिसके समक्ष श्री विष्णु (कृष्ण) तथा श्री शिव आदि की कुछ पेश नहीं चलती।
उपरोक्त कथा सुनकर धर्मदास जी ने प्रश्न किया धर्मदास ने कहा हे परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी! आप ने तो मेरी आँखे खोल दी हे प्रभु! हिमालय में तपस्या कर युधिष्ठर का तो केवल एक पैर का पंजा ही बर्फ से नष्ट हुआ तथा अन्य के शरीर गल गए थे। सुना है वे सर्व पापमुक्त होकर स्वर्ग चले गए?
उत्तर :- परमेश्वर कबीर जी ने कहा हे धर्मदास ! हिमालय में जो तप पाण्डवों ने किया वह शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण (पूजा) होने के कारण व्यर्थ प्रयत्न था। (प्रमाण-गीता अध्याय 16 श्लोक 23 तथा गीता अध्याय 17 श्लोक 5-6 में कहा है कि जो मनुष्य शास्त्रविधि से रहित केवल कल्पित घोर तप को तपते हैं वे शरीरस्थ परमात्मा को कृश करने वाले हैं उन अज्ञानियों को नष्ट हुए जान।) क्योंकि जैसी तपस्या पाण्डवों ने की वह गीता जी व वेदों में वर्णित नहीं है अपितु ऐसे शरीर को पीड़ा देकर साधना क��ना व्यर्थ बताया है। यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 15 में कहा है ओम् (ॐ) नाम का जाप कार्य करते-2 कर, विशेष कसक के साथ कर मनुष्य जन्म का मुख्य
कर्त्तव्य जान के कर। यही प्रमाण गीता अध्याय 8 श्लोक 7 व 13 में कहा है कि मेरा तो केवल ॐ नाम है इस का जाप अन्तिम सांस तक करने से लाभ होता है इसलिए अर्जुन ! तू युद्ध भी कर तथा स्मरण (भक्ति जाप) भी कर अतः हे धर्मदास ! जैसी तपस्या पाण्डवों ने की वह व्यर्थ सिद्ध हुई।
गीता अध्याय 3 श्लोक 6 से 8 में कहा है कि जो मूढ़ बुद्धि मनुष्य समस्त कर्म इन्द्रयों को रोककर अर्थात् हठ योग द्वारा एक स्थान पर बैठ कर या खड़ा होकर साधना करता है। वह मन से इन्द्रियों का चिन्तन करता रहता है। जैसे सर्दी लगी तो शरीर की चिन्ता, सर्दी का चिन्तन, भूख लगी तो भूख का चिन्तन आदि होता रहता है। वह हठ से तप करने वाला मिथ्याचारी अर्थात् दम्भी कहा जाता है। कार्य न करने अर्थात् एक स्थान पर बैठ या खड़ा होकर साधना करने की अपेक्षा कर्म करना तथा भक्ति भी करना श्रेष्ठ है। यदि कर्म नहीं करेगा तो तेरा शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा।
विशेष विचार :- श्री मद्भगवत गीता में ज्ञान दो प्रकार का है। एक तो वेदों वाला तथा दूसरा काल ब्रह्म द्वारा सुनाया लोक वेद वाला। यह ज्ञान (गीता अध्याय 3 श्लोक 6 से 8 वाला ज्ञान) वेदों वाला ज्ञान ब्रह्म काल ने बताया है। श्री कृष्ण जी द्वारा भी काल ब्रह्म ने पाण्डवों को लोक वेद सुनाया जिस से तप हो जाता है। तप से फिर कभी राजा बन जाता है कुछ सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं। मोक्ष नहीं होता तथा न पाप ही नष्ट होते हैं।
हे धर्मदास ! पाँचों पाण्डवों ने विचार करके अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को राज तिलक कर दिया। द्रोपदी, कुन्ती (अर्जुन, भीम व युधिष्ठर की माता) तथा पाँचों पाण्डव श्री कृष्ण जी के आदेशानुसार हिमालय पर्वत पर जाकर तप करने लगे कुछ ही दिनों में आहार अभाव से उनके शरीर समाप्त हो गए। केवल युधिष्ठर का शरीर शेष रहा। उसके पैर का एक पंजा बर्फ में गल पाया था। युधिष्ठर ने देखा कि उस के परिजन मर चुके है। उनके शरीर प्राप्त हो जाती हैं। मोक्ष नहीं होता तथा न पाप ही नष्ट होते हैं।
हे धर्मदास ! पाँचों पाण्डवों ने विचार करके अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को राज तिलक कर दिया। द्रोपदी, कुन्ती (अर्जुन, भीम व युधिष्ठर की माता) तथा पाँचों पाण्डव श्री कृष्ण जी के आदेशानुसार हिमालय पर्वत पर जाकर तप करने लगे कुछ ही दिनों में आहार अभाव से उनके शरीर समाप्त हो गए। केवल युधिष्ठर का शरीर शेष रहा। उसके पैर का एक पंजा बर्फ में गल पाया था। युधिष्ठर ने देखा कि उस के परिजन मर चुके है। उनके शरीर की आत्माएँ निकल चुकी हैं सूक्ष्म शरीर युक्त आकाश को जाने लगी। तब युधिष्ठर ने भी अपना शरीर त्याग दिया तथा सूक्ष्म शरीर युक्त युधिष्ठर कर्मों के संस्कार वश अपने पिता धर्मराज के लोक में गया। धर्मराज ने अपने पुत्र को बहुत प्यार किया तथा उसको रहने का मकान बताया। कुछ समय पश्चात् काल ब्रह्म ने युधिष्ठर में प्रेरणा की। उसे अपने भाईयों व पत्नी द्रोपदी तथा माता कुन्ती की याद सताने लगी। युधिष्ठर ने अपने पिता धर्मराज से कहा हे धर्मराज ! मुझे मेरे परिजनों से मिलाईए मुझे उनकी बहुत याद सता रही है। धर्मराज ने कहा युधिष्ठर ! वह तेरा परिवार नहीं था। तेरा परिवार तो यह है। तू मेरा पुत्र है। अर्जुन स्वर्ग के राजा इन्द्र का पुत्र है, भीम-पवन देव का पुत्र है, नकुल-नासत्य का पुत्र है तथा सहदेव-दस्र का पुत्र है। (नासत्य तथा दस्र ये दोनों अश्वनी कुमार हैं जो अश्व रूप धारी सूर्य देव तथा अश्वी (घोड़ी) रूप धारी सूर्य की पत्नी संज्ञा के सम्भोग से उत्पन्न हुए थे। सूर्य को घोड़े रूप में न पहचान कर सूर्य पत्नी जो घोड़ी रूप धार कर जंगल में तप कर रही थी अपने धर्म की रक्षा के लिए घोड़ा रूपधारी सूर्य को पृष्ठ भाग (पीछे) की ओर नहीं जाने दिया वह उस घोड़े से अभिमुख रही। कामवासना वश घोड़ा रूपधारी सूर्य घोड़ी रूपधारी अपनी पत्नी (विश्वकर्मा की पुत्री) के मुख की ओर चढ़कर सम्भोग करने के कारण वीर्य का कुछ अंश घोड़ी रूपधारी सूर्य की पत्नी के पेट में मुख द्वारा प्रवेश कर गया जिससे दो लड़कों (नासत्य तथा दस्र) का जन्म घोड़ी रूपी सूर्य पत्नी के मुख से हुआ जिस कारण ये दोनों बच्चे अश्विनी कुमार कहलाए। यह पुराण कथा है।]
धर्मराज ने अपने पुत्र युधिष्ठर को बताया कि आप सब का वहाँ पृथ्वी लोक में इतना ही संयोग था। वह समाप्त हो चुका है। वे सर्व युद्ध में किए पाप कर्मों तथा अन्य जीवन में किए पाप कर्मों का फल भोगने के लिए नरक में डाल रखे हैं। आप के पुण्य अधिक है इसलिए आप नरक में नहीं डाल रखे हैं। अतः आप उन से नहीं मिल सकते काल ब्रह्म कि प्रबल प्रेरणा वश होकर युधिष्ठर ने उन सर्व (भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, द्रोपदी तथा कुन्ती) को मिलने का हठ किया। धर्मराज ने एक यमदूत से कहा आप युधिष्ठर को इसके परिवार से मिला कर शीघ्र लौटा लाना। यमदूत युधिष्ठर को लेकर नरक में प्रवेश हुआ। वहाँ पर आत्माऐं हा-हाकार मचा रहे थे, कह रहे थे, हे युधिष्ठर हमें नरक से निकलवा दो। मैं अर्जुन हूँ, कोई कह रहा था, मैं भीम हूँ, मैं नकुल, मैं सहदेव हूँ, मैं कुन्ती, मैं द्रोपदी हूँ। इतने में यमदूत ने कहा हे युधिष्ठिर अब आप लौट चलिए। युधिष्ठर ने कहा मैं भी अपने परिवार जनों के साथ यहीं नरक में ही रहूँगा। तब धर्मराज ने आवाज लगाई युधिष्ठिर यहाँ आओ मैं तेरे को एक युक्ति बताता हूँ। यह आवाज सुन कर युधिष्ठिर अपने पिता धर्मराज के पास लौट आया। धर्मराज ने युधिष्ठिर को समझाया कि बेटा आपने एक झूठ बोला था कि अश्वथामा मर गया फिर दबी आवाज में कहा था पता नहीं मनुष्य था या युधिष्ठिर अपने पिता धर्मराज के पास लौट आया। आपने एक झूठ बोला था कि
धर्मराज ने युधिष्ठिर को समझाया कि बेटा अश्वथामा मर गया फिर दबी आवाज में कहा था पता नहीं मनुष्य था या हाथी। जबकि आप को पता था कि हाथी मरा है। उस झूठ बोलने के पाप का कर्मदण्ड देने के लिए आप को कुछ समय इसी बहाने नरक में रखना पड़ा नहीं तो वह युक्ति मैं पहले ही आप को बता देता। युधिष्ठर ने कहा कृप्या आप वह विधि बताईए जिस से मेरे परिजन नरक से निकल सकें। धर्मराज ने कहा उनको एक शर्त पर नरक से निकाला जा सकता है कि आप अपने कुछ पुण्य उनको संकल्प कर दो। युधिष्ठर ने कहा मुझे स्वीकार है। यह कह कर युधिष्ठर ने अपने आधे पुण्य उन छः के निमित्त संकल्प कर दिए। वे छःओं नरक से बाहर आकर धर्मराज के पास जहाँ युधिष्ठर खड़ा था, उपस्थित हो गए। उसी समय इन्द्र देव आया अपने पुत्र अर्जुन को साथ
322
हिन्दू साहेबान ! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण
लेकर चला गया, पवन देवता आया अपने पुत्र भीम को साथ लेकर चला गया। इसी प्रकार अश्विनी कुमार (नासत्य, दस्र) आए नकुल व सहदेव को लेकर चले गए। कुन्ती स्वर्ग में चली गई तथा देखते-2 द्रोपदी ने दुर्गा रूप धारण किया तथा आकाश को उड़ चली कुछ ही समय में सर्व की आँखों से ओझल हो गई। वहाँ अकेला युधिष्ठर अपने पिता धर्मराज के पास रह गया। परमेश्वर कबीर जी ने अपने शिष्य धर्मदास जी को उपरोक्त कथा सुनाई तत्पश्चात् इस सर्व काल के जाल को समझाया।
कबीर परमेश्वर जी ने बताया हे धर्मदास ! काल ब्रह्मकी प्रेरणा से इक्कीस ब्रह्मण्डों के प्राणी कर्म करते हैं। जैसा आपने सुना युधिष्ठर पुत्र धर्मराज, अर्जुन पुत्र इन्द्र, भीम पुत्र पवन देव, नकुल पुत्र नासत्य तथा सहदेव पुत्र दस्र थे। द्रोपदी शापवश दुर्गा की अवतार थी जो अपना कर���म भोगने आई थी तथा कुन्ती भी दुर्गा लोक की पुण्यात्मा थी। ये सर्व काल प्रेरणा से पृथ्वी पर एक फिल्म (चलचित्र) बनाने गए थे। जैसे एक करोड़पति का पुत्र किसी फिल्म में रिक्शा चालक का अभिनय करता है। फिल्म निर्माण के पश्चात् अपनी 20 लाख की कार गाडी में बैठ कर आनन्द करता है। भोले-भाले सिनेमा दर्शक उसे रिक्शा चालक मान कर उस पर दया करते हैं। उसके बनावटी अभिनय को देखने के लिए अपना बहुमूल्य समय तथा धन नष्ट करते हैं। ठीक इसी प्रकार उपरोक्त पात्रों (युधिष्ठर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, द्रोपदी तथा कुन्ती) द्वारा बनाई फिल्म महाभारत के इतिहास को पढ़-पढ़कर पृथ्वी लोक के प्राणी अपना समय व्यर्थ करते हैं। तत्त्वज्ञान को न सुनकर मानव शरीर को व्यर्थ कर जाते हैं। काल ब्रह्म यही चाहता है कि मेरे अन्तर्गत जितने भी जीव हैं। वे तत्त्वज्ञान से अपरिचित रहे तथा मेरी प्रेरणा से मेरे द्वारा भेजे गुरुओं द्वारा शास्त्रविधि विरुद्ध साधना प्राप्त करके जन्म-मृत्यु के चक्र में पड़े रहे। काल ब्रह्म की प्रेरणा से तत्त्वज्ञान हीन सन्तजन व ऋषिजन कुछ वेद ज्ञान अधिक लोक वेद के आधार से ही सत्संग वचन श्रद्धालुओं को सुनाते हैं। जिस कारण से साधक पूर्ण मोक्ष प्राप्त न करके काल के जाल में ही रह जाते हैं।
हे धर्मदास ! मैं पूर्ण परमात्मा की आज्ञा लेकर तत्त्वज्ञान बताने के लिए काल लोक में कलयुग में आया हूँ।
धर्मदास जी ने बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर जी के चरण पकड़ कर कहा हे परमेश्वर ! आप स्वयं सत्यपुरूष हो धर्मदास जी ने अति विनम्र होकर आधीन भाव से प्रश्न किया।
"क्या पाण्डव सदा स्वर्ग में ही रहेंगे?
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
0 notes
Text
42. अहंकार टाळा     
श्रीकृष्ण ने पाहिले की अर्जुन ‘अहम कर्ता’ म्हणजेच अहंकाराच्या भावनेने भारावून गेला होता आणि हेच त्याच्या दुःखाचे कारण होते. श्रीकृष्ण अर्जुनाला अहंकार तोडण्यासाठी आणि आत्म्यापर्यंत पोहोचण्यासाठी सुसंगत बुद्धीचा वापर करण्याचा सल्ला देतात (2.41).
अहंकाराची अनेक रूपे आहेत. गर्व हा अहंकाराचा एक छोटासा भाग आहे. जेव्हा एखादी व्यक्ती यश/विजय/नफ्याच्या आनंदाच्या ध्रुवीयतेतून जाते तेव्हा त्या अहंकाराला अभिमान म्हणतात आणि जेव्हा एखादी व्यक्ती अपयश/पराजय/नुकसानाच्या दुःखाच्या ध्रुवतेतून जाते तेव्हा त्या अहंकाराला उदासीनता, दुःख, राग म्हणतात. जेव्हा आपण इतरांना आनंदी पाहतो तेव्हा तो मत्सर असतो आणि जेव्हा आपण इतरांना दुःखी पाहतो तेव्हा ती सहानुभूती असते.
आपण भौतिक गोष्टी जमा करत असतो तेव्हा आणि जेव्हा त्यांचा त्याग करत असतो तेव्हा, अशा दोन्ही वेळेस अहंकार असतो. हा अहंकार संसारामध्ये कर्म करण्यासाठी आणि संन्यास घेण्यासाठीही प्रेरित करते. तो विनाश आणि निर्मिती अशा दोन्ही बाबींना कारणीभूत ठरतो. तो ज्ञानातही आहे आणि अज्ञानातही.
स्तुतीमुळे अहंकार वाढतो आणि टीका दुखावते, ज्यामुळे आपण इतरांच्या फसवणुकीला बळी पडतो. थोडक्यात, आपल्या बाह्य वर्तनावर प्रभाव टाकणाऱ्या प्रत्येक भावनेमागे कोणत्या ना कोणत्या अर्थाने अहंकार असतो. अहंकार आपल्याला यश आणि समृद्धीकडे घेऊन जातो असे वाटेल, परंतु ते तात्पुरते नशेत राहण्यासारखे आहे.
‘मी’ आणि ‘माझे’ हा अहंकाराचा पाया आहे आणि दैनंदिन संभाषणात आणि विचारांमध्ये या शब्दांचा वापर टाळून आपण अहंकाराला बऱ्याच अंशी कमकुवत करू शकतो.
जेव्हा आपण एका ध्रुवाशी किंवा दुसर्‍या ध्रुवाशी ओळखतो तेव्हा अहंकाराचा जन्म होतो. म्हणून, श्लोक 2.48 मध्ये, श्रीकृष्ण अर्जुनला कोणत्याही भावनेची ओळख न करता मध्यभागी राहण्याचा सल्ला देतात जिथे अहंकाराला जागा नाही. लहान मुलाप्रमाणे भूक लागल्यावर खा; थंड असताना उबदार कपडे घाला; आवश्यक असल्यास लढा; गरज असेल तेव्हा भावना उधार घ्या.
0 notes
ramkaranjangra · 21 days
Text
#MondayMotivation
👉अपनी लड़की के जीवित न होने का दुःख नहीं,कबीर साहेब की पराजय की खुशी मना रहा था।कबीर साहेब ने कहा कि बैठ जाओ महात्मा जी,शान्ति रखो।
👉कबीर साहेब ने आदेश दिया कि हे जीवात्मा जहाँ भी है कबीर आदेश से इस शव में प्रवेश करो और बाहर आओ।🙏👇
Tumblr media
0 notes
Text
#MondayMotivation
👉अपनी लड़की के जीवित न होने का दुःख नहीं,कबीर साहेब की पराजय की खुशी मना रहा था।कबीर साहेब ने कहा कि बैठ जाओ महात्मा जी,शान्ति रखो।
👉कबीर साहेब ने आदेश दिया कि हे जीवात्मा जहाँ भी है कबीर आदेश से इस शव में प्रवेश करो और बाहर आओ।🙏👇
Tumblr media
0 notes
Text
Tumblr media
#MondayMotivation
👉अपनी लड़की के जीवित न होने का दुःख नहीं,कबीर साहेब की पराजय की खुशी मना रहा था।कबीर साहेब ने कहा कि बैठ जाओ महात्मा जी,शान्ति रखो।
👉कबीर साहेब ने आदेश दिया कि हे जीवात्मा जहाँ भी है कबीर आदेश से इस शव में प्रवेश करो और बाहर आओ।🙏👇
0 notes
gitaacharaninhindi · 1 month
Text
50. राग, भय और क्रोध
श्रीकृष्ण कहते हैं कि स्थितप्रज्ञ वह है जो न तो सुख से उत्तेजित होता है और न ही दु:ख से विक्षुब्ध होता है (2.56)। वह राग, भय और क्रोध से मुक्त होता है। यह श्लोक 2.38 का विस्तार है जहां श्रीकृष्ण सुख और दु:ख; लाभ और हानि; और जय और पराजय को समान रूप से मानने को कहते हैं।
हम सभी सुख की तलाश करते हैं लेकिन दु:ख अनिवार्य रूप से हमारे जीवन में आता है क्योंकि ये दोनों द्वंद्व के जोड़े में मौजूद हैं। यह मछली के लिए चारा की तरह है जहाँ चारा के पीछे कांटा छिपा होता है।
स्थितप्रज्ञ वह है जो इन ध्रुवों को पार कर द्वंद्वातीत हो जाता है। यह एक जागरूकता है कि जब हम एक की तलाश करते हैं, तो दूसरा अनुसरण करने के लिए बाध्य होता है- भले ही एक अलग आकार में या कुछ समय बीतने के बाद।
जब हम अपनी योजना के साथ सुख प्राप्त करते हैं, तो अहंकार प्रफुल्लित हो जाता है, जो उत्तेजना है, लेकिन जब यह दु:ख में बदल जाता है, तो अहंकार आहत हो जाता है, जो विक्षुब्धता है। यह अहंकार के खेल के अलावा और कुछ नहीं है। स्थितप्रज्ञ इस बात को समझकर अहंकार ही छोड़ देता है।
जब श्रीकृष्ण कहते हैं कि स्थितप्रज्ञ राग से मुक्त है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि स्थितप्रज्ञ वैराग्य की ओर बढ़ता है। वह इन दोनों से परे की अवस्था में रहता है। हमें इस बात को समझने में कठिनाई होती है क्योंकि ध्रुवों से परे की स्थिति का वर्णन करने के लिए भाषाओं में शायद ही कोई शब्द है। 
स्थितप्रज्ञ भय और क्रोध से मुक्त है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे उनका दमन करते हैं। वे अपने आप में कोई जगह नहीं छोड़ते ताकि भय और क्रोध प्रवेश करके अस्थायी या स्थायी रूप से रह सके।
भय और क्रोध, भविष्य या अतीत के, वर्तमान पर प्रक्षेपण हैं। ऐसे में इन दोनों के लिए वर्तमान समय में कोई जगह नहीं है। जब श्रीकृष्ण कहते हैं कि स्थितप्रज्ञ भय और क्रोध से मुक्त है, तो इसका अर्थ है कि वे वर्तमान क्षण में रहते हैं।
0 notes
bhaktibharat · 2 years
Text
🐚 विजया एकादशी व्रत कथा - Vijaya Ekadashi Vrat Katha
Tumblr media
विजया एकादशी का महत्त्व: धर्मराज युधिष्‍ठिर बोले: हे जनार्दन! आपने माघ के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी का अत्यन्त सुंदर वर्णन करते हुए सुनाया। अब आप फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।
श्री भगवान बोले: हे राजन्, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्‍य को विजय प्राप्त‍ होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। भयंकर शत्रुओं से जब आप घिरे हों और पराजय सामने खड़ी हो उस विकट स्थिति में विजया नामक एकादशी आपको विजय दिलाने की क्षमता रखती है।..
..विजया एकादशी व्रत कथा को पूरा पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें 📲 https://www.bhaktibharat.com/katha/vijaya-ekadashi-vrat-katha ▶ https://www.youtube.com/watch?v=iQIh9kSGXKk&t=38s
For Quick Access Download Bhakti Bharat APP: 📥 https://play.google.com/store/apps/details?id=com.bhakti.bharat.app
श्री राम स्तुति: श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन - Shri Ram Stuti 📲 https://www.bhaktibharat.com/aarti/shri-ram-stuti
#Vijaya #VijayaEkadashi #Ram #ShriRam #JaiShriRam #iskcon #EkadashiVratKatha #VratKatha #Vishnu #ShriHari #PhalgunaKrishna #Phalguna #Haribol #HareKrishna #Phagun
2 notes · View notes
guruashokaghoriji · 2 months
Text
Tumblr media
Today's Horoscope -
26 जुलाई 2024 शुक्रवार : कैसा बीतेगा आपका आज का दिन जाने अपना राशिफल
मेष - आय में वृद्धि होगी। शेयर मार्केट से लाभ होगा। नौकरी में प्रभाव वृद्धि होगी। व्यापार-व्यवसाय लाभदायक रहेगा। घर-परिवार में सुख-शांति रहेगी। जल्दबाजी न करें। पुराना रोग उभर सकता है। योजना फलीभूत होगी। कार्यस्थल पर परिवर्तन संभव है। विरोधी सक्रिय रहेंगे। सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी। मित्रों की सहायता कर पाएंगे।
वृषभ - पूजा-पाठ में मन लगेगा। कानूनी अड़चन दूर होगी। जल्दबाजी से हानि संभव है। थकान रहेगी। कुसंगति से बचें। निवेश शुभ रहेगा। पारिवारिक सहयोग प्राप्त होगा। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। दूसरों के काम में हस्तक्षेप न करें। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी। व्यवसाय में ध्यान देना पड़ेगा। व्यर्थ समय न गंवाएं।
मिथुन - आय में निश्चितता रहेगी। शत्रुभय रहेगा। घर-परिवार के किसी सदस्य के स्वास्थ्य की चिंता रहेगी। वाणी पर नियंत्रण रखें। चोट व दुर्घटना से बड़ी हानि हो सकती है। लेन-देन में जल्दबाजी न करें। फालतू खर्च होगा। विवाद को बढ़ावा न दें। अपेक्षाकृत कार्यों में विलंब होगा। चिंता तथा तनाव रहेंगे।
कर्क - प्रेम-प्रसंग में जोखिम न लें। व्यापार में लाभ होगा। नौकरी में प्रभाव बढ़ेगा। निवेश में सोच-समझकर हाथ डालें। शत्रु पस्त होंगे। विवाद में न पड़ें। अपेक्षाकृत कार्य समय पर होंगे। प्रसन्नता रहेगी। भाग्य का साथ मिलेगा। व्यस्तता रहेगी। प्रमाद न करें। कानूनी अड़चन दूर होकर लाभ की स्थिति निर्मित होगी।
सिंह - परीक्षा व साक्षात्कार आदि में सफलता प्राप्त होगी। स्थायी संपत्ति से बड़ा लाभ हो सकता है। समय पर कर्ज चुका पाएंगे। नौकरी में अधिकारी प्रसन्न तथा संतुष्ट रहेंगे। निवेश शुभ फल देगा। घर-परिवार के किसी सदस्य के स्वास्थ्य की चिंता रहेगी, ध्यान रखें। बेरोजगारी दूर करने के प्रयास सफल रहेंगे।
कन्या - मनपसंद भोजन का आनंद प्राप्त होगा। व्यापार-व्यवसाय लाभप्रद रहेगा। समय की अनुकूलता का लाभ मिलेगा। पार्टी व पिकनिक का आनंद मिलेगा। रचनात्मक कार्य सफल रहेंगे। व्यस्तता के चलते स्वास्थ्य कमजोर रह सकता है। दूसरों के झगड़ों में न पड़ें। अपने काम पर ध्यान दें। लाभ होगा।
तुला - मेहनत अधिक व लाभ कम होगा। किसी व्यक्ति के उकसाने में न आएं। शत्रुओं की पराजय होगी। व्यापार-व्यवसाय लाभदायक रहेगा। आय में निश्चितता रहेगी। दूर से बुरी खबर मिल सकती है। दौड़धूप अधिक होगी। बेवजह तनाव रहेगा। किसी व्यक्ति से कहासुनी हो सकती है। फालतू बातों पर ध्यान न दें।
वृश्चिक - जीवनसाथी से सहयोग मिलेगा। मेहनत का फल मिलेगा। कार्यसिद्धि होगी। निवेश लाभदायक रहेगा। व्यापार-व्यवसाय में मनोनुकूल लाभ होगा। सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी। निवेश शुभ रहेगा। व्यस्तता रहेगी। कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। स्वास्थ्य का पाया कमजोर रहेगा। चिंता बनी रहेगी।
धनु - व्यापार मनोनुकूल लाभ देगा। जोखिम बिलकुल न लें। उत्साहवर्धक सूचना प्राप्त होगी। भूले-बिसरे साथियों से मुलाकात होगी। विरोधी सक्रिय रहेंगे। जल्दबाजी में कोई निर्णय न लें। बड़ा काम करने का मन बनेगा। झंझटों से दूर रहें। कानूनी अड़चन का सामना करना पड़ सकता है। फालतू खर्च होगा।
मकर - बेरोजगारी दूर करने के प्रयास सफल रहेंगे। कारोबारी बड़े सौदे बड़ा लाभ दे सकते हैं। निवेश में सोच-समझकर हाथ डालें। आशंका-कुशंका रहेगी। पुराना रोग उभर सकता है। लापरवाही न करें। कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी। नवीन वस्त्राभूषण की प्राप्ति संभव है। यात्रा लाभदायक रहेगी।
कुंभ - फालतू खर्च पर नियंत्रण रखें। बजट बिगड़ेगा। कर्ज लेना पड़ सकता है। शारीरिक कष्ट से बाधा उत्पन्न होगी। लेन-देन में सावधानी रखें। अपरिचित व्यक्तियों पर अंधविश्वास न करें। वाणी में हल्के शब्दों के प्रयोग से बचें। संतुष्टि नहीं होगी।
मीन - उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे। शेयर मार्केट से बड़ा लाभ हो सकता है। संचित कोष में वृद्धि होगी। नौकरी में प्रभाव बढ़ेगा। यात्रा लाभदायक रहेगी। डूबी हुई रकम प्राप्त हो सकती है, प्रयास करें। कारोबारी सौदे बड़े हो सकते हैं। व्यस्तता के चलते स्वास्थ्य प्रभावित होगा, सावधानी रखें।
आपका दिन शुभ व मंगलमय हो। समस्या चाहे कैसी भी हो 100% समाधान प्राप्त करे:- स्पेशलिस्ट- मनचाही लव मैरिज करवाना, पति या प्रेमी को मनाना, कारोबार का न चलना, धन की प्राप्ति, पति पत्नी में अनबन और गुप्त प्रेम आदि समस्याओ का समाधान। एक फोन बदल सकता है आपकी जिन्दगी। Call Now: - +91 96417 50005 फीस संबंधी जानकारी के लिए #Facebook page के message box में #message करें। आप Whatsapp भी कर सकते हैं। #famousastrologer #astronews #astroworld #Astrology #Horoscope #Kundli #Jyotish #yearly #monthly #weekly #numerology #gemstone #real #onlinepuja #remedies #lovemarraigespecilist #prediction #motivation #happinessisachoice
0 notes
smdave1940 · 3 months
Text
कैसे मुक्त और निष्पक्ष चूनाव किया जा सकता है? - १
कैसे मुक्त और निष्पक्ष चूनाव किया जा सकता है? लुट्येनोंका कोमवादको बढावा देना हमने गत ब्लोग “ उत्तर प्रदेशमें बीजेपीकी पराजय के फर्जी कारण एवं विवरण –४ में , लुट्येन लोग, बीजेपी/मोदीसे संबंधित हर एक इवेंट (घटना) को कोमवादी स्वरुप कैसे दे देते है. और अधिकतर मुस्लिम लोगोंकी आदत भी लुट्येन जैसी कैसे हो गयी है ये सब हमने देखा. लुट्येनों द्वारा हर घटनामें कोमवाद उजागर करना जैसे कि कोराना कालमें…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
astroclasses · 9 days
Link
0 notes