लखनऊ 11.09.2024 | राम राज्य के वर्तमान समय में हमें अपने समाज के सबसे निर्धन और असहाय वर्ग की मदद के लिए आगे आना होगा । यह वह समय है जब हम उनके साथ मिलकर, उनकी मदद कर सकते हैं और उन्हें जीवन की आधारभूत जरूरतें प्रदान करने का संकल्प ले सकते हैं । इसी कड़ी में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा 'सियाराम की रसोई' अभियान की शुरुआत की गयी जिसका उद्देश्य है प्रतिदिन गरीबों को आपके सहयोग से नि:शुल्क भरपेट भोजन प्रदान कर मानवता की सेवा करना ।
आप अपने “कभी खुशी कभी गम” के यादगार पलों (जन्मदिवस, सालगिरह, पुण्यतिथि आदि) के शुभ अवसर पर निम्नलिखित तरीकों से जनहित में अपना अमूल्य समर्थन प्रदान कर सकते हैं:
1. ऑनलाइन दान करके आर्थिक सहायता प्रदान करना |
2. खाद्य सामग्री, जैसे कि अनाज, दाल, चावल, फल, सब्जियां और ताजा दूध आदि, को संग्रहित करके हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के समृद्धि केंद्र में जमा करना |
उल्लेखनीय हैं कि भोजन वितरण से पहले, आपके यादगार पलों / विशेष दिन के अवसर की घोषणा उपस्थित सभी लोगों के समक्ष की जाएगी, ताकि आपको आध्यात्मिक साधकों से आशीर्वाद और शुभकामनाएं मिल सकें |
सियाराम की रसोई अभियान के अंतर्गत, श्रीमती विजय लक्ष्मी तिवारी जी, निवासी 68/240, छितवापुर, पजावा, लालकुआं, लखनऊ ने अपने पूज्य पति स्वर्गीय श्री प्रकाश चन��द्र तिवारी (मुन्नू) जी के स्वर्गवास को चतुर्थ माह पूर्ण होने पर उनको श्रद्धांजलि अर्पित की | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की 'सियाराम की रसोई' योजना के अंतर्गत 201 व्यक्तियों के लिए ₹5100/- का दान देकर भोजन की व्यवस्था में अपना बहुमूल्य योगदान प्रदान किया जिसके लिए हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट श्रीमती विजय लक्ष्मी तिवारी जी तथा उनके परिवार का आभार प्रकट करता है और स्वर्गीय श्री प्रकाश चन्द्र तिवारी जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है ।
इस अवसर पर स्वर्गीय श्री प्रकाश चंद्र तिवारी जी की पत्नी श्रीमती विजय लक्ष्मी तिवारी एवं भतीजो श्री गौरव, श्री सुमित मिश्रा, श्री कपिल तथा ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही ।
लंका फतह करने में बाधा बन रहे समुद्र के आगे असहाय हुए दशरथ पुत्र राम से भिन्न वह आदिराम/आदिपुरुष परमात्मा कौन है, जो त्रेतायुग में मुनींद्र ऋषि के रूप में उपस्थित थे एवं जिनकी कृपा से नल नील के हाथों समुद्र पर रखे गए पत्थर तैर पाए थे।
इस आध्यात्मिक रहस्य को जानने के लिए अवश्य देखें साधना चैनल शाम 7:30 बजे।
🔹त्रेतायुग में कबीर साहेब मुनींद्र ऋषि नाम से आये। तब रावण की पत्नी मंदोदरी, विभीषण, हनुमान जी, नल - निल, चंद्र विजय और उसके पूरे परिवार को कबीर परमात्मा ने शरण में लिया जिससे उन पुण्यात्माओं का कल्याण हुआ।
🔹कबीर परमेश्वर जी ने काल ब्रह्म को दिये वचन अनुसार त्रेतायुग में राम सेतु अपनी कृपा से पत्थर हल्के करके बनवाया।
🔹त्रेतायुग में नल तथा नील दोनों ही कबीर परमेश्वर के शिष्य थे। कबीर परमेश्वर ने नल नील को आशीर्वाद दिया था कि उनके हाथों से कोई भी वस्तु चाहें वह किसी भी धातू से बनी हो,जल में डूबेगी नहीं। परंतु अभिमान होने के कारण नल नील के आशीर्वाद को कबीर परमेश्वर ने वापस ले लिया था। तब कबीर परमेश्वर ने एक पहाड़ी के चारों और रेखा खींचकर उसके पत्थरों को हल्का कर दिया था। वही पत्थर समुद्र पर तैरे थे।
🔹त्रेतायुग में कबीर साहेब ने मुनींद्र ऋषि रूप में एक पहाड़ी के आस-पास रेखा खींचकर सभी पत्थर हल्के कर दिये थे। फिर बाद में उन पत्थरों को तराशकर समुद्र पर रामसेतु पुल का निर्माण किया गया था।
इस पर धर्मदास जी ने कहा हैं :-
"रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने वाले।धन-धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।"
🔹कबीर साहेब जी ही त्रेतायुग में लंका के राजा रावण के छोटे भाई विभीषण जी को मुनीन्द्र रुप में मिले थे विभीषण जी ने उनसे तत्वज्ञान ग्रहण कर उपदेश प्राप्त किया और मुक्ति के अधिकारी हुए।
🔹त्रेतायुग में कबीर साहेब जी मुनीन्द्र ऋषि के रूप में प्रकट हुए, नल-नील को शरण में लिया और जब रामचन्द्र जी द्वारा सीता जी को रावण की कैद से छुड़वाने की बारी आई तो समुद्र में पुल भी ऋषि मुनीन्द्र रूप में परमात्मा कबीर जी ने बनवाया।
धन-धन सतगुरू सत कबीर भक्त की पीर मिटाने वाले।।
रहे नल-नील यत्न कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिंधु पर शिला तिराने वाले।।
🔹त्रेतायुग में कबीर परमात्मा ऋषि मुनीन्द्र के नाम से प्रकट हुये थे। त्रेता युग में कबीर परमात्मा लंका में रहने वाले चंद्रविजय और उनकी पत्नी कर्मवती को भी मिले थे। और उस समय के राजा रावण की पत्नी मंदोदरी और भाई विभीषण को भी ज्ञान समझा कर अपनी शरण में लिया। यही कारण था कि रावण के राज्य में भी रहते हुए उन्होंने धर्म का पालन किया।
🔹कबीर परमात्मा जी द्वारा नल और नील के असाध्य रोग को ठीक करना
जब त्रेतायुग में परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) मुनींद्र ऋषि रूप में नल और नील के असाध्य रोग को अपने आशीर्वाद से ठीक किया तथा नल और नील को दिए आशीर्वाद से ही रामसेतु पुल की स्थापना हुई थी।
🔹द्वापर युग में कबीर परमेश्वर ने ही द्रौपदी का चीर बढ़ाया जिसे जन समाज मानता है कि वह भगवान कृष्ण ने बढ़ाया। कृष्ण भगवान तो उस वक्त अपनी पत्नी रुकमणी के साथ चौसर खेल रहे थे।
🔹द्वापर युग में कबीर परमेश्वर की दया से ही पांडवों का अश्वमेध यज्ञ संपन्न हुआ था। पांडवों के अश्वमेघ यज्ञ में अनेक ऋषि महर्षि मंडलेश्वर उपस्थित थे। यहां तक की भगवान कृष्ण भी उपस्थित थे। फिर भी उनका शंख नहीं बजा। कबीर परमेश्वर ने सुपच सुदर्शन वाल्मीकि के रुप में शंख बजाया और पांडवों का यज्ञ संपन्न किया था।
🔹परमेश्वर कबीर जी करुणामय नाम से जब द्वापरयुग में प्रकट थे तब काशी में रह रहे थे। सुदर्शन नाम का एक युवक उनकी वाणी से प्रभावित होकर उनका शिष्य बन गया। एक दिन सुदर्शन ने करुणाम��� जी से पूछा कि आप जो ज्ञान देते हैं उसका कोई ऋषि-मुनि समर्थन नहीं करता है, तो कैसे विश्वास करें? उन्होंने सुदर्शन की आत्मा को सत्यलोक का दर्शन करवाया। सुदर्शन का पंच भौतिक शरीर अचेत हो गया। उसके माता-पिता रोते हुए परमेश्वर करूणामय के घर आए और उन पर जादू-टोना करने का आरोप लगाया।
तीसरे दिन सुदर्शन होश में आया और कबीर जी को देखकर रोने लगा। उसने सबको बताया कि परमेश्वर करूणामय (कबीर साहेब जी) पूर्ण परमात्मा हैं और सृष्टि के रचनहार हैं।
🔹द्वापरयुग में एक राजा चन्द्रविजय था। उसकी पत्नी इन्द्रमति धार्मिक प्रवृत्ति की थी।
द्वापर युग में परमेश्वर कबीर करूणामय नाम से आये थे।करूणामय साहेब ने रानी से कहा कि जो साधना तेरे गुरुदेव ने दी है तेरे को जन्म-मृत्यु के कष्ट से नहीं बचा सकती। आज से तीसरे दिन तेरी मृत्यु हो जाएगी। न तेरा गुरु, न नकली साधना बचा सकेगी। अगर तू मेरे से उपदेश लेगी, पिछली पूजाएँ त्यागेगी, तब तेरी जान बचेगी। सर्प बनकर काल ने रानी को डस लिया। करूणामय (कबीर) साहेब वहाँ प्रकट हुए। दिखाने के लिए मंत्र बोला और (वे तो बिना मंत्र भी जीवित कर सकते हैं) इन्द्रमती को जीवित कर दिया।
कथा :- शंकर जी का मोहिनी स्त्री के रूप पर मोहित होना
जिसमें दक्ष की बेटी यानि उमा (शंकर जी की पत्नी) ने श्री रामचन्द्र जी की बनवास में सीता रूप बनाकर परीक्षा ली थी। श्री शिव जी ऐसा न करने को कहकर घर से बाहर चले गए थे। सीता जी का अपहरण होने के पश्चात् श्रीराम जी अपनी पत्नी के वियोग में विलाप कर रहे थे तो उनको सामान्य मानव जानकर उमा जी ने शंकर भगवान की उस बात पर विश्वास नहीं हुआ कि ये विष्णु जी ही पृथ्वी पर लीला कर रहे हैं। जब उमा जी सीता जी का रूप बनाकर श्री राम जी के पास गई तो वे बोले, हे दक्ष पुत्र माया! भगवान शंकर को कहाँ छोड़ आई। इस बात को श्री राम जी के मुख से सुनकर उमा जी लज्जित हुई और अपने निवास पर आई। शंकर जी की आत्मा में प्रेरणा हुई कि उमा ने परीक्षा ली है। शंकर जी ने विश्वास के साथ कहा कि परीक्षा ले आई। उमा जी ने कुछ संकोच करके
भय के साथ कहा कि परीक्षा नहीं ली अविनाशी। शंकर जी ने सती जी को हृदय से त्याग दिया था। पत्नी वाला कर्म भी बंद कर दिया। बोलना भी कम कर दिया तो सती जी अपने घर राजा दक्ष के पास चली गई।
राजा दक्ष ने उसका आदर नहीं किया क्योंकि उसने शिव जी के साथ विवाह पिता की इच्छा के विरूद्ध किया था। राजा दक्ष ने हवन कर रखा था। हवन कुण्ड में छलाँग लगाकर सती जी ने प्राणान्त कर दिया था। शंकर जी को पता चला तो अपनी ससुराल आए। राजा दक्ष का सिर काटा, फिर उस पर बकरे का सिर लगाया। अपनी पत्नी के कंकाल को उठाकर दस हजार वर्ष तक उमा-उमा करते हुए पागलों की तरह फिरते रहे। एक दिन भगवान विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से उस कंकाल को टुकड़े-टुकड़े कर दिया। जहाँ पर धड़ गिरा, वहाँ पर वैष्णव देवी मंदिर बना। जहाँ पर आँखें गिरी, वहाँ पर नैना देवी मंदिर बना।
जहाँ पर जीभ गिरी, वहाँ पर ज्वाला जी का मंदिर बना तथा पर्वत से अग्नि की लपट निकलने लगी। तब शंकर जी सचेत हुए तथा अपनी दुर्गति का कारण कामदेव (sex) को माना। कामदेव वश हो जाए तो न स्त्री की आवश्यकता हो और न ऐसी परेशानी हो। यह विचार करके हजारों वर्ष काम (sex) का दमन करने के उद्देश्य से तप किया। एक दिन कामदेव उनके निकट आया और शंकर जी की दृष्टि से भस्म हो गया। शंकर जी को अपनी सफलता पर असीम प्रसन्नता हुई। जो भी देव उनके पास आता था तो उससे कहते थे कि मैंने कामदेव को भस्म कर दिया है यानि काम विषय पर विजय प्राप्त कर ली है। मैं कभी भी किसी सुंदरी से प्रभावित नहीं हो सकता। अन्य जो विवाह किए हुए हैं, वे ऊपर से सुखी नजर आते हैं, अंदर से महादुःखी रहते हैं। उनको सदा अपनी पत्नी की रखवाली, समय पर घर पर न आने से डाँटें खाना आदि-आदि परेशानियां सदा बनी रहती हैं। मैंने यह दुःख निकट से देखा है। अब न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।
काल ब्रह्म को चिंता बनी कि यदि सब इस प्रकार स्त्री से घृणा करेंगे तो संसार का अंत हो जाएगा। मेरे लिए एक लाख मानव का आहार कहाँ से आएगा? इस उद्देश्य से नारद जी को प्रेरित किया। एक दिन नारद मुनि जी आए। उनके सामने भी अपनी कामदेव पर विजय की कथा सुनाई। नारद जी ने भगवान विष्णु को यथावत सुनाई। श्री विष्णु जी को काल ब्रह्म ने प्रेरणा की। भाई की परीक्षा करनी चाहिए कि ये कितने खरे हैं। काल ब्रह्म की प्रेरणा से एक दिन शिव जी विष्णु जी के घर के आँगन में आकर बैठ गए। सामने बहुत बड़ा फलदार वृक्षों का बाग था। भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल खिले थे। बसंत जैसा मौसम था। श्री विष्णु जी, शिव जी के पास बैठ गए। कुशलमंगल जाना। फिर विष्णु जी ने पूछा, सुना है
कि आपने काम पर विजय प्राप्ति कर ली है। शिव जी बोले, हाँ, मैंने कामदेव का नाश कर दिया है। कुछ देर बाद शिव जी के मन में प्रेरणा हुई कि भगवान मैंने सुना है कि सागर मंथन के समय आप जी ने मोहिनी रूप बनाकर राक्षसों को आकर्षित किया था। आप उस रूप में कैसे लग रहे थे? मैं देखना चाहता हूँ। पहले तो बहुत बार विष्णु जी ने मना किया, परंतु शिव जी के हठ के सामने स्वीकार किया और कहा कि कभी फिर आना। आज मुझे किसी आवश्यक कार्य से कहीं जाना है। यह कहकर विष्णु जी अपने महल में चले गए। शिव जी ने कहा कि जब तक आप वह रूप नहीं दिखाओगे, मैं भी जाने वाला नहीं हूँ। कुछ ही समय के बाद शिव जी की दृष्टि बाग के एक दूर वाले कोने में एक अपसरा पर पड़ी जो सुन्दरता का सूर्य थी। इधर-उधर देखकर शिव जी उसकी ओर चले पड़े, ज्यों-ज्यों निकट गए तो वह सुंदरी अधिक सुंदर लगने लगी और वह अर्धनग्न वस्त्र पहने थी। कभी गुप्तांग वस्त्र से ढ़क जाता तो कभी हवा के झोंके से आधा हट जाता। सुंदरी ऐसे भाव दिखा रही थी कि जैसे उसको कोई नहीं देख रहा। जब शिव जी को निकट देखा तो शर्मशार होकर तेज चाल से चल पड़ी। शिव जी ने भी गति बढ़ा दी। बड़े परिश्रम के पश्चात् तथा घने वृक्षों के बीच मोहिनी का हाथ पकड़ पाए। तब तक शिव जी का शुक्रपात हो चुका था। उसी समय सुंदरी वाला स्वरूप श्री विष्णु रूप था। भगवान विष्णु जी शिव जी की दशा देखकर मुस्काए तथा कहा कि ऐसे उन राक्षसों से अमृत छीनकर लाया था। वे राक्षस ऐसे मोहित हुए थे जैसे मेरा छोटा भाई कामजीत अब काम पराजित हो गया। शिव जी ने उसके पश्चात् हिमालय राजा की बेटी पार्वती से अंतिम बार विवाह किया। पार्वती वाली आत्मा वही है जो सती जी थी। पार्वती रूप में अमरनाथ स्थान पर अमर मंत्रा शिव जी से प्राप्त करके अमर हुई है। इस प्रकार वाणी में कहा है कि शंकर जी की समाधि तो अडिग (न डिगने वाली) थी जैसा पौराणिक मानते हैं। वह भी मोहे गए। माया के वश हो गए।
◆ वाणी नं. 140 में बताया है कि भगवान शिव की पत्नी पार्वती तीनों लोकों में सबसे सुंदर स्त्रियां में से एक है। शिव राजा ऐसी सुंदर पत्नी को छोड़ मोहिनी स्त्री के पीछे चल पड़े। पहले अठासी हजार वर्ष तप किया। फिर लाख वर्ष तप किया काम (sex) पर विजय पाने के लिए और भर्म भी था कि मैनें काम जीत लिया। फिर हार गया।
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 145 :-
गरीब, कष्ण गोपिका भोगि करि, फेरि जती कहलाय। याकी गति पाई नहीं, ऐसे त्रिभुवनराय।। 145।।
◆ सरलार्थ :- श्री कृष्ण के विषय में श्रीमद् भागवत (सुधा सागर) में प्रमाण है कि श्री कृष्ण मथुरा वृंदावन की गोपियों (गोपों की स्त्रियों) के साथ संभोग (sex) किया करते थे। वे फिर भी जती कहलाए। (अपनी स्त्री के अतिरिक्त अन्य की स्त्री से कभी संभोग न करने वाला या पूर्ण रूप से ब्रह्मचारी को जती कहते हैं।) उसका भेद ही नहीं पाया। ऐसे ये तीन लोक के मालिक {श्री कृष्ण के अंदर प्रवेश करके काल ब्रह्म गोपियों से सैक्स करता था। स्त्रियों को तो श्री कृष्ण नजर आता था। काल ब्रह्म सब कार्य गुप्त करता है।} हैं।
◆ वाणी नं. 142-144 :-
गरीब, योह बीजक बिस्तार है, मन की झाल किलोल। पुत्र ब्रह्मा देखि करि, हो गये डामांडोल।।142।।
गरीब, देह तजी दुनियां तजी, शिब शिर मारी थाप।
ऐसे ब्रह्मा पिता कै, काम लगाया पाप।।143।।
गरीब, फेरि कल्प करुणा करी, ब्रह्मा पिता सुभान।
स्वर्ग समूल जिहांन में, योह मन है शैतान।।144।।
◆ सरलार्थ :- एक समय ब्रह्मा जी देवताओं तथा ऋषियों को वेद ज्ञान समझा रहे थे। मन तथा इंद्रियों पर संयम रखने पर जोर दे रहे थे। ब्रह्मा जी की बेटी सरस्वती पति चुनने के लिए अपने पिता की सभा में गई जिसमें युवा देवता तथा ऋषि विराजमान थे। उनको आकर्षित करने के लिए सब श्रृंगार करके सज-धजकर गई थी। अपनी पुत्र की सुंदरता देखकर काम (sex) के वश होकर संयम खोकर विवेक का नाश करके अपनी बेटी से संभोग (Sex) करने को उतारू हो गया था। ब्रह्मा पाप के भागी बने। मन तो कबीर परमात्मा की भक्ति तथा तत्वज्ञान से काबू में आता है।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
रामायण भारत का एक कालजयी महाकाव्य है, जिसे हिंदू साहित्य की सबसे महत्वपूर्ण कृतियों में से एक माना जाता है। यह अयोध्या के राजकुमार राम और उनक�� पत्नी सीता की कहानी बताती है। कहानी निर्वासन, अलगाव और अंततः बुराई पर विजय के माध्यम से उनकी यात्रा का वर्णन करती है। Read more
उत्तराखंड के गढ़वाल में सदियों से दिवाली को बग्वाल के रूप में मनाया जाता है। कुमाऊं के क्षेत्र में इसे बूढ़ी दीपावली कहा जाता है। इस पर्व के दिन सुबह मीठे पकवान बनाए जाते हैं। रात में स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के बाद भैला जलाकर उसे घुमाया जाता है और ढोल नगाड़ों के साथ आग के चारों ओर लोक नृत्य किया जाता है।
मान्यता है कि जब भगवान राम 14 वर्ष बाद लंका विजय कर अयोध्या पहुंचे तो लोगों ने दिए जलाकर उनका स्वागत किया और उसे दीपावली के त्योहार के रूप में मनाया। कहा जाता है कि गढ़वाल क्षेत्र में लोगों को इसकी जानकारी 11 दिन बाद मिली। इसलिए यहां पर दिवाली के 11 दिन बाद यह इगास मनाई जाती है।
वहीं, सबसे प्रचलित मान्यता के अनुसार गढ़वाल के वीर भड़ माधो सिंह भंडारी टिहरी के राजा महीपति शाह की सेना के सेनापति थे। करीब 400 साल पहले राजा ने माधो सिंह को सेना लेकर तिब्बत से युद्ध करने के लिए भेजा। इसी बीच बग्वाल (दिवाली) का त्यौहार भी था, परंतु इस त्योहार तक कोई भी सैनिक वापस न आ सका। सबने सोचा माधो सिंह और उनके सैनिक युद्ध में शहीद हो गए, इसलिए किसी ने भी दिवाली (बग्वाल) नहीं मनाई। लेकिन दीपावली के ठीक 11वें दिन माधो सिंह भंडारी अपने सैनिकों के साथ तिब्बत से दवापाघाट युद्ध जीत वापस लौट आए। इसी खुशी में दिवाली मनाई गई।
खास बात ये है कि यह पर्व भैलो खेलकर मनाया जाता है। तिल, भंगजीरे, हिसर और चीड़ की सूखी लकड़ी के छोटे-छोटे गठ्ठर बनाकर इन्हें विशेष रस्सी से बांधकर भैलो तैयार किया जाता है। बग्वाल के दिन पूजा अर्चना कर भैलो का तिलक किया जाता है। फिर ग्रामीण एक स्थान पर एकत्रित होकर भैलो खेलते हैं। भैलो पर आग लगाकर इसे चारों ओर घुमाया जाता है।
श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप 1.20 https://srimadbhagavadgita.in/1/20 अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वजः प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ॥ १.२० ॥ TRANSLATION उस समय हनुमान से अंकित ध्वजा लगे रथ पर आसीन पाण्डुपुत्र अर्जुन अपना धनुष उठा कर तीर चलाने के लिए उद्यत हुआ । हे राजन् ! धृतराष्ट्र के पुत्रों को व्यूह में खड़ा देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से ये वचन कहे । PURPORT युद्ध प्रारम्भ होने ही वाला था । उपर्युक्त कथन से ज्ञात होता है कि पाण्डवों की सेना कि अप्रत्याशित व्यवस्था से धृतराष्ट्र के पुत्र बहुत कुछ निरुत्साहित थे क्योंकि युद्धभूमि में पाण्डवों का निर्देशन भगवान् कृष्ण के आदेशानुसार हो रहा था । अर्जुन की ध्वजा पर हनुमान का चिन्ह भी विजय का सूचक है क्योंकि हनुमान ने राम तथा रावण युद्ध में राम कि सहायता की थी जिससे राम विजयी हुए थे । इस समय अर्जुन कि सहायता के लिए उनके रथ पर राम तथा हनुमान दोनों उपस्थित थे । भगवान् कृष्ण साक्षात् राम हैं और जहाँ भी राम रहते हैं वहाँ नित्य सेवक हनुमान होता है तथा उनकी नित्यसंगिनी, वैभव कि देवी सीता उपस्थित रहती हैं । अतः अर्जुन के लिए किसी भी शत्रु से भय का कोई कारण नहीं था । इससे भी अधिक इन्द्रियों के स्वामी भगवान् कृष्ण निर्देश देने की लिए साक्षात् उपस्थित थे । इस प्रकार अर्जुन को युद्ध करने के मामले में सारा सत्परामर्श प्राप्त था । ऐसी स्थितियों में, जिनकी व्यवस्था भगवान् ने अपने शाश्र्वत भक्त के लिए की थी, निश्चित विजय के लक्षण स्पष्ट थे । ----- Srimad Bhagavad Gita As It Is 1.20 atha vyavasthitān dṛṣṭvā dhārtarāṣṭrān kapi-dhvajaḥ pravṛtte śastra-sampāte dhanur udyamya pāṇḍavaḥ hṛṣīkeśaṁ tadā vākyam idam āha mahī-pate TRANSLATION At that time Arjuna, the son of Pāṇḍu, seated in the chariot bearing the flag marked with Hanumān, took up his bow and prepared to shoot his arrows. O King, after looking at the sons of Dhṛtarāṣṭra drawn in military array, Arjuna then spoke to Lord Kṛṣṇa these words. PURPORT The battle was just about to begin. It is understood from the above statement that the sons of Dhṛtarāṣṭra were more or less disheartened by the unexpected arrangement of military force by the Pāṇḍavas, who were guided by the direct instructions of Lord Kṛṣṇa on the battlefield. The emblem of Hanumān on the flag of Arjuna is another sign of victory because Hanumān cooperated with Lord Rāma in the battle between Rāma and Rāvaṇa, and Lord Rāma emerged victorious. Now both Rāma and Hanumān were present on the chariot of Arjuna to help him. Lord Kṛṣṇa is Rāma Himself, and wherever Lord Rāma is, His eternal servitor Hanumān and His eternal consort Sītā, the goddess of fortune, are present. Therefore, Arjuna had no cause to fear any enemies whatsoever. And above all, the Lord of the senses, Lord Kṛṣṇa, was personally present to give him direction. Thus, all good counsel was available to Arjuna in the matter of executing the battle. In such auspicious conditions, arranged by the Lord for His eternal devotee, lay the signs of assured victory. ----- #krishna #iskconphotos #motivation #success #love #bhagavatamin #india #creativity #inspiration #life #spdailyquotes #devotion
🐚 विजया एकादशी व्रत कथा - Vijaya Ekadashi Vrat Katha
विजया एकादशी का महत्त्व:
धर्मराज युधिष्ठिर बोले: हे जनार्दन! आपने माघ के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी का अत्यन्त सुंदर वर्णन करते हुए सुनाया। अब आप फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।
श्री भगवान बोले: हे राजन्, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य को विजय प्राप्त होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। भयंकर शत्रुओं से जब आप घिरे हों और पराजय सामने खड़ी हो उस विकट स्थिति में विजया नामक एकादशी आपको विजय दिलाने की क्षमता रखती है।..
..विजया एकादशी व्रत कथा को पूरा पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें
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श्री राम स्तुति: श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन - Shri Ram Stuti
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दशहरा / विजयदशमी इस दिन भक्तों द्वारा रावण के पुतले का दहन किया जाता है | उत्तर भारतीय हिन्दू पंचांग के अनुसार यह पर्व अश्विन माह में शुक्ल पक्ष के दसवें दिन पर मनाया जाता है |
मान्यताओं अनुसार, भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था तथा #देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त #महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी । इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी माना जाता है, इसीलिये इस पर्व को हम 'विजयदशमी' के नाम से जानते हैं |
आज के दिन लोग शस्त्र-पूजा करते हैं और नया कार्य प्रारम्भ करते हैं (जैसे अक्षर लेखन का आरम्भ, नया उद्योग आरम्भ, बीज बोना आदि) | ऐसा विश्वास है कि इस दिन जो कार्य आरम्भ किया जाता है उसमें सफलता प्राप्त होती है | प्राचीन काल में राजा इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे।
दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए या #दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है | #दशहरे का उत्सव शक्ति और शक्ति का समन्वय बताने वाला उत्सव है। नवरात्रि के नौ दिन जगदम्बा की उपासना करके शक्तिशाली बना हुआ मनुष्य विजय प्राप्ति के ��िए तत्पर रहता है।
भगवान राम के समय से यह दिन विजय प्रस्थान का प्रतीक माना जाता है | भगवान राम ने रावण से युद्ध हेतु इसी दिन प्रस्थान किया था । ऐसी मान्यता है कि अश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय 'विजय' नामक मुहूर्त होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है। इसलिए भी इसे विजयदशमी कहते हैं।
#संपन्नमाया अगरबत्ती की तरफ से आप सभी को विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं!
विनम्र व कर्मठ व्यक्तित्व के धनी, ओजस्वी वक्ता, कुशल संगठनकर्ता एवं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मा0 श्री जगत प्रकाश नड्डा जी, आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
प्रभु श्री राम जी से प्रार्थना है कि आप दीर्घायु हों और सदैव स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें । आपके कुशल नेतृत्व में भाजपा लगातार विजय के पथ पर अग्रसर रहे यही ईश्वर से प्रार्थना है ।
लखनऊ 11.07.2024 | राम राज्य के वर्तमान समय में हमें अपने समाज के सबसे निर्धन और असहाय वर्ग की मदद के लिए आगे आना होगा । यह वह समय है जब हम उनके साथ मिलकर, उनकी मदद कर सकते हैं और उन्हें जीवन की आधारभूत जरूरतें प्रदान करने का संकल्प ले सकते हैं । इसी कड़ी में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा 'सियाराम की रसोई' अभियान की शुरुआत की गयी जिसका उद्देश्य है प्रतिदिन गरीबों को आपके सहयोग से नि:शुल्क भरपेट भोजन प्रदान कर मानवता की सेवा करना ।
आप अपने “कभी खुशी कभी गम” के यादगार पलों (जन्मदिवस, सालगिरह, पुण्यतिथि आदि) के शुभ अवसर पर निम्नलिखित तरीकों से जनहित में अपना अमूल्य समर्थन प्रदान कर सकते हैं:
1. ऑनलाइन दान करके आर्थिक सहायता प्रदान करना |
2. खाद्य सामग्री, जैसे कि अनाज, दाल, चावल, फल, सब्जियां और ताजा दूध आदि, को संग्रहित करके हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के समृद्धि केंद्र में जमा करना |
उल्लेखनीय हैं कि भोजन वितरण से पहले, आपके यादगार पलों / विशेष दिन के अवसर की घोषणा उपस्थित सभी लोगों के समक्ष की जाएगी, ताकि आपको आध्यात्मिक साधकों से आशीर्वाद और शुभकामनाएं मिल सकें |
सियाराम की रसोई अभियान के अंतर्गत, श्रीमती विजय लक्ष्मी तिवारी जी, निवासी 68/240, छितवापुर, पजावा, लालकुआं, लखनऊ ने अपने पूज्य पति स्वर्गीय श्री प्रकाश चन्द्र तिवारी (मुन्नू) जी के स्वर्गवास को दो माह पूर्ण होने पर उनको श्रद्धांजलि अर्पित की | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की 'सियाराम की रसोई' योजना के अंतर्गत 201 व्यक्तियों के लिए ₹5100/- का दान देकर भोजन की व्यवस्था में अपना बहुमूल्य योगदान प्रदान किया जिसके लिए हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट श्रीमती विजय लक्ष्मी तिवारी जी तथा उनके परिवार का आभार प्रकट करता है और स्वर्गीय श्री प्रकाश चन्द्र तिवारी जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है ।
इस अवसर पर श्रीमती विजय लक्ष्मी तिवारी जी ने कहा कि, “मैं हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, ट्रस्ट की आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य श्री पंकज अवस्थी एवं स्वयंसेवकों का हार्दिक आभार प्रकट करती हूँ जिनके सहयोग से मैंने आज अपने पति की दूसरे माह की पुण्यतिथि पर प्रसाद वितरण और भंडारे का आयोजन किया । मैंने यह निश्चय किया है कि मैं हर महीने की 11 तारीख को पूरे लखनऊ के कोने-कोने में भंडारे का आयोजन करूंगी ।"
इस अवसर पर स्वर्गीय श्री प्रकाश चंद्र तिवारी जी की पत्नी श्रीमती विजय लक्ष्मी तिवारी एवं श्री उमा शंकर मिश्रा, मित्र, श्रीमती रुचि शुक्ला, बेटी, श्रीमती दीपा दुबे, भांजी, श्रीमती निर्मला तिवारी, रिश्तेदार तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य श्री पंकज अवस्थी जी और ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही ।
विनम्र व कर्मठ व्यक्तित्व के धनी, ओजस्वी वक्ता, कुशल संगठनकर्ता एवं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मा0 श्री जगत प्रकाश नड्डा जी, आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
प्रभु श्री राम जी से प्रार्थना है कि आप दीर्घायु हों और सदैव स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें । आपके कुशल नेतृत्व में भाजपा लगातार विजय के पथ पर अग्रसर रहे यही ईश्वर से प्रार्थना है ।
विनम्र व कर्मठ व्यक्तित्व के धनी, ओजस्वी वक्ता, कुशल संगठनकर्ता एवं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मा0 श्री जगत प्रकाश नड्डा जी, आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
प्रभु श्री राम जी से प्रार्थना है कि आप दीर्घायु हों और सदैव स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें । आपके कुशल नेतृत्व में भाजपा लगातार विजय के पथ पर अग्रसर रहे यही ईश्वर से प्रार्थना है ।
विनम्र व कर्मठ व्यक्तित्व के धनी, ओजस्वी वक्ता, कुशल संगठनकर्ता एवं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मा0 श्री जगत प्रकाश नड्डा जी, आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
प्रभु श्री राम जी से प्रार्थना है कि आप दीर्घायु हों और सदैव स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें । आपके कुशल नेतृत्व में भाजपा लगातार विजय के पथ पर अग्रसर रहे यही ईश्वर से प्रार्थना है ।