69th National Film Awards: Alia Bhatt और Allu Arjun को मिला अवॉर्ड
69th National Film Awards: 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह का आयोजन 17 अक्टूबर, 2023 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में किया गया। इस समारोह में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार आलिया भट्ट को संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ में उनके अभिनय के लिए दिया गया। उन्होंने यह पुरस्कार कृति सेनॉन के साथ साझा किया, जिन्हें फिल्म ‘मिमी’ में उनकी भूमिका के लिए यह पुरस्कार दिया गया। वहीं, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार अल्लू अर्जुन को सुकुमार द्वारा निर्देशित फिल्म ‘पुष्पा: द राइज’ के लिए दिया गया। दिग्गज अभिनेत्री वहीदा रहमान को भारतीय सिनेमा में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
बॉलीवुड हस्तियां पहुंचीं अवॉर्ड समारोह में
69th National Film Awards: 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में कई बॉलीवुड हस्तियां पहुंचीं। इनमें आलिया भट्ट, रणबीर कपूर, अल्लू अर्जुन, कृति सेनॉन, श्रद्धा कपूर और टाइगर श्रॉफ शामिल थे। आलिया भट्ट ने इस समारोह में अपनी शादी की साड़ी पहनी थी। वहीं, कृति सेनॉन ने आइवरी और गोल्डन रंग की साड़ी पहनी थी। अल्लू अर्जुन ने सफेद रंग का एथनिक सूट पहना था।
गंगूबाई काठियावाड़ी और पुष्पा: द राइज को मिले कई पुरस्कार
69th National Film Awards: फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ और ‘पुष्पा: द राइज’ को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ को सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। वहीं, फिल्म ‘पुष्पा: द राइज’ को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, सर्वश्रेष्ठ सहयोगी अभिनेता (फहद फासिल) और सर्वश्रेष्ठ कोरियोग्राफी का पुरस्कार मिला।
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2023 के विजेता
सर्वश्रेष्ठ फिल्म: गंगूबाई काठियावाड़ी
सर्वश्रेष्ठ निर्देशक: संजय लीला भंसाली (गंगूबाई काठियावाड़ी)
सर्वश्रेष्ठ अभिनेता: अल्लू अर्जुन (पुष्पा: द राइज)
सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री: आलिया भट्ट (गंगूबाई काठियावाड़ी) और कृति सेनॉन (मिमी)
सर्वश्रेष्ठ सहयोगी अभिनेता: फहद फासिल (पुष्पा: द राइज)
सर्वश्रेष्ठ सहयोगी अभिनेत्री: ऐश्वर्या लक्ष्मी (फॉर्च्यूनर)
सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार: आर्यन राज (कश्मीर फाइल्स)
सर्वश्रेष्ठ फिल्म (गैर-फीचर): द लास्ट फिल्म शो
सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (गैर-फीचर): पल्लवी जोशी (द लास्ट फिल्म शो)
न्यू दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2023 के समारोह में आज एक अद्वितीय पल देखने को मिला। सबसे बड़ा सम्मान अलिया भट्ट के लिए था, जिन्होंने संजय लीला भंसाली की ‘गंगुबाई कठियावाड़ी’ में उनके काम के लिए सर्वश्रेष्ठ अदाकारा पुरस्कार प्राप्त किया। उन्होंने इस सम्मान को कृति सनोन के साथ साझा किया, जिन्होंने ‘मीमी’ में अपनी भूमिका के लिए पुरस्कार जीता।
साथ ही, अल्लू अर्जुन ने सुकुमार द्वारा निर्देशित ‘पुष्पा: द राइज’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार जीता। वैदेशिक अदाकारियों ने भी भारतीय सिनेमा में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए दादासाहेब फाल्के पुरस्कार प्राप्त किया।
69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह शुक्रवार को न्यू दिल्ली में हुआ। जबकि विजेताओं का ऐलान अगस्त में किया गया था, समारोह 17 अक्टूबर को राष्ट्रीय राजधानी में हुआ। अल्लू अर्जुन और अलिया भट्ट समारोह में मौजूद थे। रणबीर कपूर भी अपनी पत्नी अलिया का समर्थन करने के लिए पहुंचे। एक नए वीडियो में, अल्लू अर्जुन को अलिया और रणबीर के साथ एक अच्छा समय दिखाया गया है।
अल्लू अर्जुन के अद्वितीय पल की कथा
69th National Film Awards: इस वीडियो में, जो इंटरनेट पर वायरल हो गया है, अल्लू अर्जुन को गर्म गले से अलिया भट्ट के साथ देखा जा सकता है, जब अदाकारा खुशी से दमक रही हैं। उन्होंने फिर रणबीर कपूर के साथ हाथ मिलाया, जो समारोह में मौजूद थे। इस अद्वितीय पल ने इंटरनेट पर दिलों को जीत लिया है।
समारोह की दिलचस्पी वाली क्षण:
69th National Film Awards: समारोह के दौरान, अलिया भट्ट जो रणबीर कपूर के साथ थी, अपनी शादी की साड़ी पहनी। इस खास मौके पर उन्होंने स्वच्छता के साथ एक परिस्थितिकता का बयान दिया। कृति सनोन ने एक आईवरी साड़ी चुनी।
कृति सनोन का पहला राष्ट्रीय पुरस्कार
69th National Film Awards: 17 अक्टूबर को कृति सनोन ने अपना पहला राष्ट्रीय पुरस्कार जीता। उन्होंने अपनी भूमिका के लिए 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में न्यायमूर्ति गोल चाकरवर्ती के साथ साझा किया। इस समारोह में अपने माता-पिता के साथ शानदार आईवरी और सुनहरी साड़ी में थीं।
कृति सनोन की आईवरी साड़ी
69th National Film Awards: कृति सनोन की आईवरी साड़ी में एक आश्चर्यजनक सुंदरता था। उनकी साड़ी में सोने का बॉर्डर और वस्त्र के व्यापकता के ऊपर न्यून जराय वाली डिज़ाइनिंग थी। इस पारंपरिक ड्रेप के अंदर नीला, हरा, और गुलाबी में मुद्दों के लिए पैस्टल-रंग के प्रिंट थे, जो आईवरी शेड की एकरों को तोड़ते थे। कृति ने अपनी साड़ी को एक गोल-गले ब्लाउज के साथ सजाया और यह उपकरण के साथ एक मैचिंग पोटली भी लेकर गईं।
ये भी पढ़ें: टाइगर 3: सलमान खान का धमाकेदार वापसी दिवाली पर
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क्रिकेट के 5 क्लासिक रिवेंज
क्रिकेट को हमेशा से सज्जनों का खेल माना गया है। आपने लोगों को सुना होगा कि यह एक बहुत ही परिष्कृत खेल है। खैर, यह चर्चा का विषय हो सकता है या नहीं। लेकिन, ऐसी कई घटनाएं हैं जिनमें खिलाड़ियों को शब्दों के गर्म आदान-प्रदान में लिप्त देखा गया है। क्रिकेट में स्लेजिंग का उपयोग शुरू से ही एक सामरिक रणनीति के रूप में किया जाता रहा है।
इसके अलावा, ऐसी घटनाएं भी हुई हैं जिनमें प्रतिद्वंद्वी द्वारा ट्रिगर किए जाने के बाद, खिलाड़ियों ने खेल के रूप में जवाब दिया है (रन बनाए या विकेट लिए)। इन घटनाओं को विशेष रूप से क्रिकेट में ‘बदला’ कहा जा सकता है। उन्हें गौरव के क्षण कहा जा सकता है, क्योंकि उनमें शामिल खिलाड़ी ने खेल की सच्ची भावना में अपनी काबिलियत साबित की है।
इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि क्रिकेट सज्जनों के खेल से कहीं अधिक रोमांचक खेल है। इसमें सभी प्रकार के हाई-वोल्टेज मोमेंट्स हैं जिनमें स्लेजिंग, शब्दों का ‘मीठा’ आदान-प्रदान, तर्क और प्रतिशोध शामिल हैं। तो, आइए क्रिकेट के 5 क्लासिक रिवेंज पर एक नजर डालते हैं।
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वे अभागे आस्था विश्वास लेकर क्या करें
वेद में जिनका हवाला हाशिये पर भी नहीं
वे अभागे आस्था विश्वास लेकर क्या करें
लोकरंजन हो जहां शम्बूक-वध की आड़ में
उस व्यवस्था का घृणित इतिहास लेकर क्या करें
कितना प्रतिगामी रहा भोगे हुए क्षण का इतिहास
त्रासदी, कुंठा, घुटन, संत्रास लेकर क्या करें
बुद्धिजीवी के यहाँ सूखे का मतलब और है
ठूंठ में भी सेक्स का एहसास लेकर क्या करें
गर्म रोटी की महक पागल बना देती मुझे
पारलौकिक प्यार का मधुमास लेकर क्या करें
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कला में अनुष्का शर्मा के सरप्राइज कैमियो ने प्रशंसकों को रोमांचित कर दिया
कला में अनुष्का शर्मा के सरप्राइज कैमियो ने प्रशंसकों को रोमांचित कर दिया
अन्विता दत्त की तृप्ति डिमरी और बाबिल खान अभिनीत काला, रिलीज होने के बाद से ही सुर्खियां बटोर रही हैं। बाबिल के अभिनय की शुरुआत करने वाली फिल्म एक मनोरंजक कथानक के साथ एक मनोवैज्ञानिक थ्रिलर है। इसमें एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा की भी स्पेशल अपीयरेंस है। आपने सही पढ़ा!
2018 में आई शाहरुख खान की जीरो के बाद प्रशंसकों ने अनुष्का शर्मा को एक फिल्म में देखा था, यह एक गर्म क्षण रहा है। हालांकि, कला में…
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क्या सर्दी-जुकाम आपको कर रहा है परेशान? तो राहत पाने के लिए अपनाएं ये 5 घरेलू उपाय
अक्सर बदलता मौसम अपने साथ सर्दी-जुकाम ले आता है। आप कितना भी बचने की कोशिश करें, अक्सर बदलता मौसम अपने साथ सर्दी-जुकाम ले आता है। आप कितना भी बचने की कोशिश करें,एक छोटी सी चूक आपको सर्दी-जुकाम से पीड़ित कर देती है। पर शुक्र है कि हमारे पास इससे निपटने के कुछ घरेलू उपाय हैं।
बंद नाक, गले में खराश और खांसी! ये वे लक्षण हैं, जिन्होंने कोविड-19 (Covid-19 symptoms) के दौरान सबसे ज्यादा डराया है। असल में कोविड-19 संक्रमण और मौसमी संक्रमणों (Seasonal Flu) दोनों में ही ये लक्षण समान रूप से नजर आते हैं। शुक्र है कि कोरोनावायरस (Coronavirus) के मामलों में कमी आई है। पर बदलते मौसम में आप सर्दी-जुकाम (Cold and cough) से अब भी बच नहीं पा रहे। यह स्थिति खासी तकलीफेदेह हो सकती है। शरीर में दर्द, बुखार, ठंड लगना और नाक बंद होना किसी को भी दुखी करने के लिए काफी है।
इन परेशानियों से झटपट राहत देने के लिए हम बता रहे है कुछ विशेष घरेलू उपचार (Cold and cough home remedies)। आइए जानते हैं इन होम रेमेडीज के बारे में।
सर्दी-जुकाम से लड़ने के इन 5 घरेलू उपायों पर कर सकती हैं भरोसा
1. शहद की चाय

खांसी के लिए एक लोकप्रिय घरेलू उपाय शहद को गर्म पानी में मिलाना है। कुछ शोधों के अनुसार शहद खांसी से राहत दिला सकता है। बच्चों में रात के समय होने वाली खांसी के उपचार पर एक अध्ययन किया गया। इसके अनुसार गहरे रंग के शहद की तुलना खांसी को दबाने वाली दवा डेक्स्ट्रोमेथोर्फन (dextromethorphan) से की गई थी। शोधकर्ताओं ने बताया कि शहद ने खाँसी से सबसे ज्यादा राहत प्रदान की और उसके बाद डेक्सट्रोमेथॉर्फ़न (dextromethorphan) ने।
खांसी के इलाज में प्रभावी, इस शहद के चाय को बनाने के लिए 2 चम्मच शहद को गर्म पानी या किसी हर्बल चाय के साथ मिलाएं। इस मिश्रण को दिन में एक या दो बार पियें। 1 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को शहद न दें।
2. नमक-पानी के गरारे
गले में खराश और गीली खांसी के इलाज के लिए यह सरल उपाय सबसे प्रभावी है। नमक का पानी गले के पिछले हिस्से में कफ और बलगम को कम करता है जिससे खांसी ठीक हो सकती है। एक कप गर्म पानी में आधा छोटा चम्मच नमक तब तक मिलाएं जब तक वह घुल न जाए। गरारे करने के लिए इस्तेमाल करने से पहले घोल को थोड़ा ठंडा होने दें।
मिश्रण को थूकने से पहले कुछ क्षण के लिए गले के पिछले हिस्से पर लगा रहने दें। खांसी ठीक होने तक दिन में कई बार नमक के पानी से गरारे करें।
छोटे बच्चों को नमक का पानी देने से बचें क्योंकि वे ठीक से गरारे करने में सक्षम नहीं होते हैं और नमक का पानी निगलना खतरनाक हो सकता है।
Also read....click on linck
https://pharmagyan.42web.io/2022/09/15/क्या-सर्दी-जुकाम-आपको-कर-र/
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मालदीव
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Freetreespeak (काव्यस्यात्मा) 1286
प्रेम की ख़ुराक
-© कामिनी मोहन पाण्डेय
मरूस्थल के जीव-जंतुओं के लिए
ज़रूरी है गर्म रेत
उनके लिए इसमें
असमर्थता की कोई बात नहीं
यह अनुकूलता है।
घर कर लेता है जो स्वभाव में
कभी छूटता नहीं
फिर भी आत्मकेंद्रित के भीतर
जो भी पल रहा है
एकाकी दृष्टि लिए न देखना
प्रतिकूलता है।
नहीं है जटिल
नेक-अनेक को देखना।
आकाश से घिरा हृदय शरीर
असंख्य स्मृतियों के
अगणित वज़न को ढोते हुए देखता है।
अनायास ही सही प्रेम की ख़ुराक
गंध और स्वाद को ग्रहण करता है।
अंतहीन यात्रा में जीवन की
मरूस्थल पर पड़ी धूप को न चाहकर भी
जलते देखता है।
दर्द पैदा होने पर हर कोई
भरभराई आँखों से दवा को देखता है।
लम्बे अरसे के इंतज़ार में
आँखों का विचलित पानी
हर क्षण को धुँधला देखता है।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय
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केदार घाट. बनारस की साँझ. दिसम्बर 2018.
तुम बस एक दिन के लिए आए थे, फ़क़त मेरा चेहरा देखने, मुझे अपनी नज़रों से एक बार छू लेने, दुनिया से नज़रें बचाकर मुझे कह देने कि "शाम्भवी अब जो भी हो, जैसे भी चले, मेरे जीवन में बस तुम ही रहोगी और कोई नहीं आने पाएगा !"
घाट पर सर्द हवाएँ चल रहीं थीं. हम सीढ़ियों पर बैठे थे इत्मिनान से. मैं दूर गंगा नदी में एक छोटी-सी नाव की गति देख रही थी, उसके धीमे-धीमे चलने से पानी में असंख्य तरंगे घूम जातीं. उस गहराती गोधूलि में तुमने एक लंबे मौन के बाद अचानक ही पूछा "हाथ थाम लें शाम्भवी ?" मेरी ज़ुबाँ पर जैसे किसी ने जवाब पहले से सेट कर रखा था, मैंने बिन देर किए कहा - "नहीं !" फिर भी तुमने मेरी 'ना' को, और दुनिया भर की सारी कुटिलताओं को धता बताते हुए मेरा गर्म हाथ अपने हाथ में बहुत ही प्यार से ले लिया था.
मैं मन ही मन अवाक् रह गयी कि ऐसा हुआ कैसे!! मेरे पास अब दो रास्ते बचे थे -- एक तो ये कि मैं नाराज़ होकर भी अपना हाथ झटक कर ना छुड़ाऊँ और वैसे ही चुपचाप बैठी रहूँ , दूसरा - तुरन्त तुम्हारा हाथ छोड़कर बिना पीछे देखे, वहाँ से फ़ौरन वापिस चली जाऊँ...
पर, जाने क्या हुआ कि मैं उस क्षण अपना हाथ नहीं छुड़ा सकी... तुमने भी लगभग सकुचाते, सहमे हुए ही मेरा हाथ पकड़े रखा. छोड़ा नहीं.
जाने कैसे... मुझे उस हाथ के पकड़ने में 'शमशेर' की कविताओं की मछलियाँ रंगीन लहरों में बार-बार उछलती-खेलती नज़र आने लगीं, विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यासों के युगल एक-दूसरे को प्रेमिल संबोधनों से पुकारते दिखने लगे, और... और फिर 'मसान' फ़िल्म के दीपक और शालू गुप्ता किसी पार्क में बैठकर उम्र भर, अनन्त समय तक साथ जीने-मरने के वादे करते कौंध गए !
... और तबसे आज तक कितने गुलमोहर मौसम बीत गए, मैंने अपना हाथ तुम्हारे हाथों से, कभी छुड़ाया ही नहीं...
~ ankita shambhawi
4:13 a.m.
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मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आत्मा अमर नहीं है। मैं यह कह रहा हूं कि आत्मा की अमरता का सिद्धांत मौत से डरने वाले लोगों का सिद्धांत है। आत्मा की अमरता को जानना बिलकुल दूसरी बात है। और यह भी ध्यान रहे कि आत्मा की अमरता को वे ही जान सकते हैं, जो जीते जी मरने का प्रयोग कर लेते हैं। उसके अतिरिक्त कोई जानने का उपाय नहीं। इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है।
मौत में होता क्या है? प्राणों की सारी ऊर्जा जो बाहर फैली हुई है, विस्तीर्ण है, वह वापस सिकुड़ती है, अपने केंद्र पर पहुंचती है। जो ऊर्जा प्राणों की सारे शरीर के कोने —कोने तक फैली हुई है, वह सारी ऊर्जा वापस सिकुड़ती है, बीज में वापस लौटती है। जैसे एक दीये को हम मंदा करते जाएं, धीमा करते जाएं, तो फैला हुआ प्रकाश सिकुड़ आएगा, अंधकार घिरने लगेगा। प्रकाश सिकुड़ कर फिर दीये के पास आ जाएगा। अगर हम और धीमा करते जाएं और धीमा करते जाएं, तो फिर प्रकाश बीज —रूप में, अनुरूप में निहित हो जाएगा, अंधकार घेर लेगा।
प्राणों की जो ऊर्जा फैली हुई है जीवन की, वह सिकुड़ती है, वापस लौटती है अपने केंद्र पर। नई यात्रा के लिए फिर बीज बनती है, फिर अणु बनती है। यह जो सिकुड़ाव है, इसी सिकुडाव से, इसी संकुचन से पता चलता है कि मरा! मैं मरा! क्योंकि जिसे मैं जीवन समझता था, वह जा रहा है, सब छूट रहा है। हाथ—पैर शिथिल होने लगे, श्वास खोने लगी, आंखों ने देखना बंद कर दिया, कानों ने सुनना बंद कर दिया। ये सारी इंद्रियां, यह सारा शरीर तो किसी ऊर्जा के साथ संयुक्त होने के कारण जीवंत था। ऊर्जा वापस लौटने लगी है। देह तो मुर्दा है, वह फिर मुर्दा रह गई। घर का मालिक घर छोड़ने की तैयारी करने लगा, घर उदास हो गया, निर्जन हो गया। लगता है कि मरा मैं। मृत्यु के इस क्षण में पता चलता है कि जा रहा हूं? डूब रहा हूं? समाप्त हो रहा हूं।
और इस घबराहट के कारण कि मैं मर रहा हूं, इस चिंता और उदासी के कारण, इस पीड़ा, इस एंग्विश के कारण, यह एंग्झायटी कि मैं मर रहा हूं, समाप्त हो रहा हूं यह इतनी ज्यादा चिंता पैदा कर देती है मन में कि वह उस मृत्यु के अनुभव को भी जानने से वंचित रह जाता है। जानने के लिए चाहिए शाति। हो जाता है इतना अशात कि मृत्यु को जान नहीं पाता।
बहुत बार हम मर चुके हैं, अनंत बार, लेकिन हम अभी तक मृत्यु को जान नहीं पाए। क्योंकि हर बार जब मरने की घड़ी आई है, तब फिर हम इतने व्याकुल और बेचैन और परेशान हो गए हैं कि उस ब��चैनी और परेशानी में कैसा जानना, कैसा ज्ञान? हर बार मौत आकर गुजर गई है हमारे आस—पास से, लेकिन हम फिर भी अपरिचित रह गए हैं उससे।
नहीं, मरने के क्षण में नहीं जाना जा सकता है मौत को। लेकिन आयोजित मौत हो सकती है। आयोजित मौत को ही ध्यान कहते हैं, योग कहते हैं, समाधि कहते हैं। समाधि का एक ही अर्थ है कि जो घटना मृत्यु में अपने आप घटती है, समाधि में साधक चेष्टा और प्रयास से सारे जीवन की ऊर्जा को सिकोड़ कर भीतर ले जाता है, जानते हुए। निश्चित ही अशात होने का कोई कारण नहीं है। क्योंकि वह प्रयोग कर रहा है भीतर ले जाने का, चेतना को सिकोड़ने का। वह शात मन से चेतना को भीतर सिकोड़ता है। जो मौत करती है, उसे वह खुद करता है। और इस शांति में वह जान पाता है कि जीवन—ऊर्जा अलग बात है, शरीर अलग बात है। वह जो बल्ब, जिससे बिजली प्रगट हो रही है, अलग बात है, और वह जो बिजली प्रकट हो रही है वह अलग बात है। बिजली सिकुड़ जाती है, बल्ब निर्जीव होकर पड़ा रह जाता है।
शरीर बल्ब से ज्यादा नहीं है। जीवन वह विद्युत है, वह ऊर्जा है, वह इनर्जी, वह प्राण है, जो शरीर को जीवित किए हुए है, गर्म किए हुए है, उत्तप्त किये हुए है। समाधि में साधक मरता है स्वयं, और चूंकि वह स्वयं मृत्यु में प्रवेश करता है, वह जान लेता है इस सत्य को कि मैं हूं अलग, शरीर है अलग। और एक बार यह पता चल जाए कि मैं हूं अलग, तो मृत्यु समाप्त हो गई। और एक बार यह पता चल जाए कि मैं हूं अलग, तो जीवन का अनुभव शुरू हो गया। मृत्यु की समाप्ति और जीवन का अनुभव एक ही सीमा पर होते हैं, एक ही साथ होते हैं। जीवन को जाना कि मृत्यु गई, मृत्यु को जाना कि जीवन हुआ। अगर ठीक से समझें तो यह एक ही चीज को कहने के दो ढंग हैं। यह एक ही दिशा में इंगित करने वाले दो इशारे हैं।
धर्म को इसलिए मैं कहता हूं, धर्म है मृत्यु की कला। वह है आर्ट आफ डेथ। लेकिन आप कहेंगे, कई बार मैं कहता हूं धर्म है जीवन की कला, आर्ट आफ लिविंग। निश्चित ही दोनों बात मैं कहता हूं, क्योंकि जो मरना जान लेता है वही जीवन को जान पाता है। धर्म है जीवन और मृत्यु की कला। अगर जानना है कि जीवन क्या है और मृत्यु क्या है, तो आपको स्वेच्छा से शरीर से ऊर्जा को खींचने की कला सीखनी होगी, तभी आप जान सकते हैं, अन्यथा नहीं। और यह ऊर्जा खींची जा सकती है। इस ऊर्जा को खींचना कठिन नहीं है। इस ऊर्जा को खींचना सरल है। यह ऊर्जा संकल्प से ही फैलती है और संकल्प से ही वापस लौट आती है। यह ऊर्जा सिर्फ संकल्प का विस्तार है, विल फोर्स का विस्तार है।
संकल्प हम करें तीव्रता से, टोटल, समग्र, कि मैं वापस लौटता हूं अपने भीतर। सिर्फ आधा घंटा भी कोई इस बात का संकल्प करे कि मैं वापस लौटना चाहता हूं, मैं मरना चाहता हूं? मैं डूबना चाहता हूं अपने भीतर, मैं ��पनी सारी ऊर्जा को सिकोड़ लेना चाहता हूं, तो थोड़े ही दिनों में वह इस अनुभव के करीब पहुंचने लगेगा कि ऊर्जा सिकुड़ने लगी है भीतर। शरीर छूट जाएगा बाहर पड़ा हुआ। एक तीन महीने का थोड़ा गहरा प्रयोग, और आप शरीर अलग पड़ा है, इसे देख सकते हैं। अपना ही शरीर अलग पड़ा है, इसे देख सकते हैं। सबसे पहले तो भीतर से दिखाई पड़ेगा कि मैं अलग खड़ा हूं भीतर—एक तेजस, एक ज्योति की तरह और सारा शरीर भीतर से दिखाई पड़ रहा है जैसा कि यह भवन है। और फिर थोड़ी और हिम्मत जुटाई जाए, तो वह जो जीवंत—ज्योति भीतर है, उसे बाहर भी लाया जा सकता है। और हम बाहर से देख सकते हैं कि शरीर अलग पड़ा है।
एक अदभुत अनुभव मुझे हुआ, वह मैं कहूं। अब तक उसे कभी कहा नहीं। अचानक खयाल आ गया कहता हूं। कोई सत्रह— अट्ठारह साल पहले बहुत रातों तक मैं एक वृक्ष के ऊपर बैठकर ध्यान करता था। ऐसा बार—बार अनुभव हुआ कि जमीन पर बैठकर ध्यान करने पर शरीर बहुत प्रबल होता है। शरीर बनता है पृथ्वी से और पृथ्वी पर बैठकर ध्यान करने से शरीर की शक्ति बहुत प्रबल होती है। वह जो ऊंचाइयों पर, हाइट्स पर, पहाड़ों पर, और हिमालय जाने वाले योगियों की चर्चा है, वह अकारण नहीं है, बहुत वैज्ञानिक है। जितनी पृथ्वी से दूरी बढती है शरीर की, उतना ही शरीरतत्व का प्रभाव भीतर कम होता चला जाता है। तो एक बड़े वृक्ष पर ऊपर बैठकर मैं ध्यान करता था रोज रात। एक दिन ध्यान में कब कितना लीन हो गया, मुझे पता नहीं और कब शरीर वृक्ष से गिर गया, वह मुझे पता नहीं। जब नीचे गिर पड़ा शरीर, तब मैंने चौंक कर देखा कि यह क्या हो गया। मैं तो वृक्ष पर ही था और शरीर नीचे गिर गया —कैसा हुआ अनुभव कहना बहुत मुश्किल है।
मैं तो वृक्ष पर ही बैठा था और शरीर नीचे गिरा था और मुझे दिखाई पड़ रहा था कि वह नीचे गिर गया है। सिर्फ एक रजत —रज्जु, एक सिलवर कार्ड नाभि से मुझ तक जुड़ी हुई थी। एक अत्यंत चमकदार शुभ्र रेखा। कुछ भी समझ के बाहर था कि अब क्या होगा रूम कैसे वापस लौटूंगा?
कितनी देर यह अवस्था रही होगी, यह पता नहीं, लेकिन अपूर्व अनुभव हुआ। शरीर के बाहर से पहली दफा देखा शरीर को और शरीर उसी दिन से समाप्त हो गया। मौत उसी दिन से खतम हो गई। क्योंकि एक और देह दिखाई पड़ी जो शरीर से भिन्न है। एक और सूक्ष्म शरीर का अनुभव हुआ। कितनी देर यह रहा, कहना मुश्किल है। सुबह होते —होते दो औरतें वहां से निकलीं दूध लेकर किसी गांव से, और उन्होंने आकर पड़ा हुआ शरीर देखा। वह मैं सब देख रहा हूं ऊपर से कि वे करीब आकर बैठ गई हैं। कोई मर गया! और उन्होंने सिर पर हाथ रखा और एक क्षण में जैसे तीव्र आकर्षण से मैं वापस अपने शरीर में आ गया और आख खुल गई।
तब एक दूसरा अनुभव भी हुआ। वह दूसरा अनुभव यह हुआ कि स्त्री पुरुष के शरीर में एक कीमिया और केमिकल चेंज पैदा कर सकती है और पुरुष स्त्री के शरीर में एक केमिकल चेंज पैदा कर सकता है। यह भी खयाल हुआ कि उस स्त्री का छूना और मेरा वापस लौट आना, यह कैसे हो गया। फिर तो बहुत अनुभव हुए इस बात के और तब मुझे समझ में आया कि हिंदुस्तान में जिन तांत्रिकों ने समाधि पर और मृत्यु पर सर्वाधिक प्रयोग किए थे, उन्होंने क्यों स्त्रियों को भी अपने साथ बांध लिया था। गहरी समाधि के प्रयोग में अगर शरीर के बाहर तेजस शरीर चला गया, सूक्ष्म शरीर चला गया, तो बिना स्त्री की सहायता के पुरुष के तेजस शरीर को वापस नहीं लौटाया जा सकता है। या स्त्री का तेजस शरीर अगर बाहर चला गया तो बिना पुरुष की सहायता के उसे वापस नहीं लौटाया जा सकता। स्त्री और पुरुष के शरीर के मिलते ही एक विद्युत वृत्त, एक इलेक्ट्रिक सर्किल पूरा हो जाता है और वह जो बाहर निकल गई है चेतना, तीव्रता से भीतर वापस लौट आती है।
फिर तो छह महीने में कोई छह बार यह अनुभव हुआ निरंतर, और छह महीने में मुझे अनुभव हुआ कि मेरी उम्र कम से कम दस वर्ष कम हो गई। कम हो गई मतलब, अगर मैं सत्तर साल जीता तो साठ साल ही जी सकूंगा। छह महीने में अजीब— अजीब से अनुभव हुए। छाती के सारे बाल मेरे सफेद हो गए छह महीने के भीतर। मेरी समझ के बाहर हुआ कि यह क्या हो रहा है।
और तब यह भी खयाल में आया कि इस शरीर और उस शरीर के बीच के संबंध में व्याघात पड़ गया है, उन दोनों का जो तालमेल था वह टूट गया है। और तब मुझे यह भी समझ में आया कि शंकराचार्य का तैंतीस साल की उम्र में मर जाना या विवेकानंद का छत्तीस साल की उम्र में मर जाना कुछ और ही कारण रखता है। अगर इन दोनों का संबंध बहुत तीव्रता से टूट जाये, तो जीना मुश्किल है। और तब मुझे यह भी खयाल में आया कि रामकृष्ण परमहंस का बहुत बीमारियों से घिरे रहना और रमण का कैंसर से मर जाने का भी कारण शारीरिक नहीं है, उस बीच के तालमेल का टूट जाना ही कारण है।
लोग आमतौर से कहते हैं कि योगी बहुत स्वस्थ होते हैं, लेकिन सचाई बिलकुल उलटी है। सचाई आज तक यह है कि योगी हमेशा रुग्ण रहा है और कम उम्र में मरता रहा ह���। और उसका कुल कारण इतना है कि उन दोनों शरीरों के बीच जो एडजेस्टमेंट चाहिए, जो तालमेल चाहिए, उसमें विघ्न पड़ जाता है। जैसे ही एक बार वह शरीर बाहर हुआ, फिर ठीक से पूरी तरह कभी भी पूरी अवस्था में भीतर प्रवष्टि नहीं हो पाता है। लेकिन उसकी कोई जरूरत भी नहीं रह जाती, उसका कोई प्रयोजन भी नहीं रह जाता, उसका कोई अर्थ भी नहीं रह जाता।
संकल्प से भीतर खींची जा सकती है ऊर्जा। सिर्फ संकल्प से, सिर्फ यह धारणा, सिर्फ यह भावना कि मैं अंदर वापस लौट आऊं, वापस लौट आऊं, वापस लौट आऊं —इसकी तीव्र पुकार, इसका तीव्र आंदोलन, पूरे प्राण इससे भर जाएं कि मैं भीतर वापिस लौट आऊं—मैं केंद्र पर वापिस लौट आऊं, मैं वापस लौट आऊं, मैं वापस लौट आऊं। इसकी इतनी तीव्र पुकार कि यह सारे कण—कण में शरीर के गज जाए, श्वास—श्वास को पकड़ ले। और किसी भी दिन यह घटना घट जाती है कि एक झटके के साथ आप भीतर पहुंच जाते हैं और पहली दफा फ्राम विदिन शरीर को देखते हैं।
यह जो हजारों नाड़ियों की बात की है योग ने, वह फिजियोलॉजी को जानकर नहीं की है। शरीर—शास्त्र से उसका कोई संबंध नहीं है। वे नाडिया जानी गई हैं भीतर से। और इसलिए आज जब फिजियोलॉजी उन पर विचार करती है तो पाती है कि वे नाडिया कहां हैं? ये जो सात चक्र बताए हैं, ये कहां हैं? वे कहीं भी नहीं हैं शरीर में! शरीर में वे कहीं भी नहीं हैं, क्योंकि शरीर को हम बाहर से जांच रहे हैं, वे कही नहीं मिलेंगे। एक और जांच है, शरीर को भीतर से जानना, इनर —फिजियोलॉजी। वह बहुत सटल फिजियोलॉजी है, वह बहुत सूक्ष्म शरीर —शास्त्र है। वहां से जानने पर जो नाडिया जानी गई हैं और जो केंद्र जाने गए हैं, वे बिलकुल अलग हैं। इस शरीर में खोजने से वे कहीं भी नहीं मिलेंगे। वे केंद्र इस शरीर और उस भीतर की आत्मा के काटेक्ट फील्ड्स हैं, जहां ये दोनों मिलते हैं।
सबसे बड़ा काटेक्ट फील्ड, सबसे बड़ा संपर्क का स्थल नाभि है। इसलिए आपको खयाल होगा कि अगर आप कार चला रहे हों और एकदम से एक्सीडेंट होने लगे, तो सबसे पहले नाभि प्रभावित हो जाएगी। एकदम नाभि अस्तव्यस्त हो जाएगी, क्योंकि वहां सबसे ज्यादा गहरा उस आत्मा और इस शरीर के बीच संबंध का क्षेत्र है। वह सबसे पहले अस्तव्यस्त हो जाएगा मौत को देख कर। जैसे ही मौत सामने दिखाई पड़ेगी कि नाभि अस्तव्यस्त हो जाएगी सारे शरीर के केंद्र से। और —शरीर की एक आतरिक व्यवस्था है, जो उस अंतस शरीर और इस शरीर के बीच संपर्क से स्थापित हुई है। जिन चक्रों की बात है, वे उनके संपर्क —स्थल हैं। निश्चित ही एक बार भीतर से शरीर को जानना एक बिलकुल ही दूसरी दुनिया को जान लेना है, जिसका हमें कोई भी पता नहीं है। मेडिकल साइंस जिसके संबंध में एक शब्द भी नहीं जानती और नहीं जान सकेगी अभी।
एक बार यह अनुभव हो जाए कि मैं अलग और यह शरीर अलग, तो मौत खतम हो गई। मृत्यु नहीं है फिर। और फिर तो शरीर के बाहर आकर खड़े होकर देखा जा सकता है। यह कोई फिलासफिक विचार नहीं है, यह कोई दार्शनिक तात्विक चिंतन नहीं है कि मृत्यु क्या है, जीवन क्या है। जो लोग इस पर विचार करते हैं, वे दो कौड़ी का भी फल कभी नहीं निकाल पाते। यह तो है एक्सिस्टेंशियल एप्रोच, यह तो है अस्तित्ववादी खोज। जाना जा सकता है कि मैं जीवन हू र जाना जा सकता है कि मृत्यु मेरी नहीं है। इसे जीया जा सकता है, इसके भीतर प्रविष्ट हुआ जा सकता है।
लेकिन जो लोग केवल सोचते हैं कि हम विचार करेंगे कि मृत्यु क्या है, जीवन क्या है, वे लाख विचार करें, जन्म—जन्म विचार करें, उन्हें कुछ भी पता नहीं चल सकता है। क्योंकि हम विचार करके विचार करेंगे क्या? केवल उसके संबंध में विचार किया जा सकता है जिसे हम जानते हों। जो नोन है, जो ज्ञात है, उसके बाबत विचार हो सकता है। जो अननोन है, जो अज्ञात है, उसके बाबत कोई विचार नहीं हो सकता। आप वही सोच सकते हैं, जो आप जानते हैं।
कभी आपने खयाल किया कि आप उसे नहीं सोच सकते हैं, जिसे आप नहीं जानते। उसे सोचेंगे कैसे? हाउ टु कन्सीव इट? उसकी कल्पना ही कैसे हो सकती है? उसकी धारणा ही कैसे हो सकती है जिसे हम जानते ही नहीं हैं? जीवन हम जानते नहीं, मृत्यु हम जानते नहीं। सोचेंगे हम क्या? इसलिए दुनिया में मृत्यु और जीवन पर दार्शनिकों ने जो कहा है, उसका दो कौड़ी भी मूल्य नहीं है। फिलासफी की किताबों में जो भी लिखा है मृत्यु और जीवन के संबंध में, उसका कौड़ी भर मूल्य नहीं है। क्योंकि वे लोग सोच —सोच कर लिख रहे हैं। सोच कर लिखने का कोई सवाल नहीं है। सिर्फ योग ने जो कहा है जीवन और मृत्यु के संबंध में, उसके अतिरिक्त आज तक सिर्फ शब्दों का खेल हुआ है। क्योंकि योग जो कह रहा है वह एक एक्सिस्टेंशियल, एक लिविंग, एक जीवंत अनुभव की बात है।
आत्मा अमर है, यह कोई सिद्धांत, कोई थ्योरी, कोई आइडियोलाजी नहीं है। यह कुछ लोगों का अनुभव है। और अनुभव की तरफ जाना हो तो ही, अनुभव हल कर सकता है इस समस्या को कि क्या है जीवन, क्या है मौत। और जैसे ही यह अनुभव होगा, ज्ञात होगा कि जीवन है, मौत नहीं है। जीवन ही है, मृत्यु है ही नहीं।
फिर हम कहेंगे, लेकिन यह मृत्यु तो घट जाती है। उसका कुल मतलब इतना है कि जिस घर में हम निवास करते थे, उस घर को छोड्कर दूसरे घर की यात्रा शुरू हो जाती है। जिस घर में हम रह रहे थे, उस घर से हम दूसरे घर की तरफ यात्रा करते हैं। घर की सीमा है, घर की सामर्थ्य है। घर एक यंत्र है, यंत्र थक जाता है, जीर्ण हो जाता है, और हमें पार हो जाना होता है।
मैं मृत्यु सिखाता हूं, प्रवचन - 1
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#सत_भक्ति_संदेश
काल का जाल काल के निज स्थान पर एक पत्थर की टुकड़ी तवे के आकार की संवत् गर्म रहती है जिस पर एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के शरीरों से को भूनकर उनमें से गंध निकाल कर खाता है उस समय- प्राणी बहुत पीड़ा अनुभव करते हैं तथा हाहाकार मच जाती है फिर कुछ समय के पश्चात। वे बेहोश हो जाते हैं जिव मरता नहीं फिर धर्मराज के लोक में जाकर कर्माधार। अन्य जन्म प्राप्त करते हैं सामने लगा ताला ब्रह्म काल केवल अपने आहार करने वाले प्राणी के लिए कुछ क्षण के लिए खोलता है पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब जी के सतनाम सारनाम नाम से वह ताला समय खुल जाता है संत रामपाल जी महाराज अधिक जानकारी के लिए पढ़े पुस्तक ज्ञान गंगा
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।।ऊँ गं गणपतये नमः।।
मकर संक्रांति पर इस साल लोग दो तिथियों को लेकर असमंजस में हैं।अपने संशय को दूर करने के लिए यह जान लें कि मकर संक्रांति तब शुरू होती है। जब सूर्य देव राशि परिवर्तन कर मकर राशि में पहुंचते हैं। इस बार सूर्य देव 14 जनवरी की दोपहर 2 बजकर 27 मिनट पर गोचर कर रहें हैं।
ज्योतिष के अनुसार सूर्य अस्त से पहले यदि मकर राशि में सूर्य प्रवेश करते हैं। तो इसी दिन पुण्यकाल रहेगा. 16 घटी पहले और 16 घटी बाद का पुण्यकाल विशेष महत्व रखता है।
मकर संक्रांति मुहूर्त:-
मकर संक्रांति का पुण्यकाल मुहूर्त सूर्य के संक्रांति समय से 16 घटी पहले और 16 घटी बाद का पुण्यकाल होता है। इस बार पुण्यकाल 14 जनवरी को सुबह 7 बजकर 15 मिनट से शुरू हो जाएगा जो शाम को 5 बजकर 44 मिनट तक रहेगा ऐसे में मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही मनाया जाएगा इस दिन स्नान, दान, जाप कर सकते हैं। वहीं स्थिर लग्न यानि महापुण्य काल मुहूर्त की बता करें तो यह मुहूर्त 9 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक रहेगा।
शुक्रवार 14 जनवरी को मकर संक्रांति है। सूर्य के उत्तरायण का दिन। शुभ कार्यों की शुरुआत। इस दिन नदियों में स्नान और दान का बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन से देश में दिन बड़े और रातें छोटी हो जाती हैं। शीत ऋतु का प्रभाव कम होने लगता है। मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व भी खूब है। मान्यता है। कि सूर्य अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। भगवान विष्णु ने असुरों का संहार भी इसी दिन किया था। महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह ने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने तक प्रतीक्षा की थी।
मकर संक्रांति भारतवर्ष का एक बड़ा ही प्रसिद्ध त्यौहार है। जो अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना और मनाया जाता है। इस त्यौहार का मुख्य उद्देश्य ज़रूरतमंद लोगों को भिन्न-भिन्न वस्तुओं का दान करना सूर्य की उपासना करना होता है। जब सूर्य देव अपने गोचर भ्रमण के दौरान मकर राशि में प्रवेश करते हैं। उस दिन मकर संक्रांति के त्योहार के रूप में जाना और मनाया जाता है। सामान्यतय यह दिन 14 जनवरी को ही आता है।
मकर संक्रांति का शुभ क्षण क्या है। और इस दिन दान का इतना महत्व क्यों बताया गया है।
मकर संक्रांति 2022: शुभ मुहूर्त
14 जनवरी, 2022 (शुक्रवार)
मकर संक्रान्ति मुहूर्त :-
पुण्य काल मुहूर्त:- 14:12:26 से 17:45:10 तक
अवधि:- 3 घंटे 32 मिनट
महापुण्य काल मुहूर्त:- 14:12:26 से 14:36:26 तक
अवधि:- 0 घंटे 24 मिनट
संक्रांति पल:- 14:12:26
मकर संक्रांति
संक्रांत का वाहन बाघ है।।
उपवन घोड़ा है।।
ईश् इस वर्ष संक्रांत ने पीला वस्त्र परिधान किया है।। केसर का तिलक लगाया है ।।खीर भक्षण कर रही है ।।हाथ में शस्त्र गदा।है ।
संक्रांत उत्तर से आकर दक्षिण जा रही है।। पौष मास के शुक्ल पक्ष में संक्रांत आने से समाज में उत्साह का वातावरण रहेगा।। मांगलिक कार्य बहुत होंगे महंगाई कम होगी।।
दान में काशी का बर्तन , नए बर्तन पीतल, स्टील, इत्यादि।। लोकर का वस्त्र, गर्म कपड़े भी , हल्दी, कुंकू, नारियल, चीनी ,चावल, शक्करका दान कर सकते हैं।।
दूध , घी, चावल, शक्कर ,मोती ,चांदी ,सफेद चीज महंगी होगी।।
केसर चंदन हल्दी तुवर दाल चना दाल यह महंगे होंगे।।
सोना,गरम मसाला,चाय,तंबाकू यह महंगे होंगे।।
राजकीय स्थिरता रहेगी राजकीय वर्ग में कलह रहेगी।।
विद्वानों का सत्कार होगा।।
मकर संक्रांति पर दान का महत्व
मकर संक्रांति पर विशेषतौर पर दान क्यों दिया जाता है। इसके पीछे कारण यह है। कि मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं। जो सूर्य को अपना शत्रु मानते हैं। जबकि सूर्य देव शनि को अपना शत्रु नहीं मानते हैं। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश होने से शनि प्रभावित होते हैं। जिसका सीधा-उल्टा असर जनजीवन पर अवश्य ही पड़ता है। जिन लोगों की कुंडली में शनिदेव की स्थिति अच्छी होती है। उनको इसका असर कम देखने को मिलता है। लेकिन इसके विपरीत जिन लोगों की कुंडली में शनि कमज़ोर या दुर्बल स्थिती में होते हैं। उनको इसके दुष्परिणाम कार्य घातक दिखाई देते हैं। गरीब एवं मजदूर वर्ग को शनि का कारक माना जाता है। जिस वजह से सूर्य एवं शनि से संबंधित वस्तुएं जैसे गुड़, रेवड़ी, खिचड़ी, बाजरा, मूंगफली, कपड़े, कंबल आदि वस्तुओं का दान करना बेहद शुभ और फलदायी होता है। मकर संक्रांति पर इन वस्तुओं का दान करने से सूर्य एवं शनि के शुभ परिणाम प्राप्त किए जा सके लेकिन इस दिन के दान में खिचड़ी का विशेष महत्व माना जाता है। क्योंकि खिचड़ी बाजरा, मूंग ,उड़द एवं चावल की बनाई जाती है।
मकर संक्रांति पर खिचड़ी दान का महत्व
उड़द- शनि का कारक होते हैं।
मूंग- बुध का कारक होते हैं।
बाजरा- राहु/केतु के कारक होते हैं।
चावल- शुक्र एवं चंद्रमा के कारक होते हैं।
उड़द एवं बाजरे के दान से शनि-राहु के दुष्परिणामों को कम किया जा सकता है। राहु सदैव शनि के इशारों पर कार्य करता है। कुंडली में शनि का कमजोर होना सीधे राहु को प्रभावित करता है। और कमजोर राहु सदैव चकमा देकर दुर्घटना कर देता है। इसलिए खिचड़ी में बाजरा व उड़द का होना शनि-राहु के दुष्परिणामों से बचाने में मदद करता है। साथ ही यदि शनि के मित्र ग्रह बुध एवं शुक्र को बलवान किया जाए तो इसका सीधा-सीधा असर शनि के शुभ परिणामों में मिलता है। इसलिए खिचड़ी में मूंग व चावल भी मिलाया जाता है ताकि शनि के मित्र ग्रहों को बलवान बनाकर शनि को शुभ बनाया जा सके।
मकर संक्रांति पर सूर्य-शनि युति का प्रभाव
इस वर्ष मकर संक्रांति पर शनि देव पहले से ही मकर राशि में गोचर कर रहे हैं। साथ ही 14 जनवरी को सूर्य देव का मकर राशि में गोचर से सूर्य-शनि की युति बन रही है। जिससे आगे आने वाला समय अधिक संघर्षशील हो सकता है।
इस बार मकर संक्रांति पर सूर्य-शनि से संबंधित वस्तुओं जैसे:- गुड, मूंगफली, रेवड़ी, खिचड़ी, कंबल आदि गरीब एवं मजदूर वर्ग के लोगों में जरूर दान करें। ताकि सूर्य शनि की युक्ति के दुष्परिणामों से बचा जा सके।
ॐ रां रामाय नमः
श्री राम ज्योतिष सदन
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जय श्रीराम
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बिग बॉस 15 के वीकेंड का वार एपिसोड में कुछ मजेदार और कुछ गर्म करने वाले क्षण थे लेकिन मनोरंजन कारक शीर्ष पायदान पर था। रवीना टंडन द्वारा शो की शोभा बढ़ाने के साथ ही इस एपिसोड में 90 के दशक की पुरानी यादें ताजा हो गई थीं। उसने अपने पुराने दोस्त और होस्ट सलमान खान के साथ अपने प्रतिष्ठित डांस मूव्स के साथ बीबी हाउस में प्रवेश किया। अभिनेत्री ने राखी सावंत के पति रितेश के साथ भी मजाक किया, जो वहां…
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💐🌼🌺🛕[श्री भक्ति ग्रुप मंदिर]🛕🌺🌼💐
🕉 ॐ श्री हनुमते नमः 🕉
🌄 #सुप्रभातम 🌄
🗓 #आज_का_पञ्चाङ्ग 🗓
🌻#मंगलवार, २१ #सितंबर २०२१🌻
सूर्योदय: 🌄 ०६:११
सूर्यास्त: 🌅 ०६:१४
चन्द्रोदय: 🌝 १८:४५
चन्द्रास्त: 🌜०६:०८
अयन 🌕 दक्षिणायने (उत्तरगोलीय
ऋतु: ❄️ शरद
शक सम्वत: 👉 १९४३ (प्लव)
विक्रम सम्वत: 👉 २०७८ (आनन्द)
मास 👉 आश्विन
पक्ष 👉 कृष्ण
तिथि 👉 प्रतिपदा (२९:५१ तक)
नक्षत्र 👉 उत्तरभाद्रपद (२९:०७ तक)
योग 👉 गण्ड (१४:२७ तक)
प्रथम करण 👉 बालव (१७:३३ तक)
द्वितीय करण 👉 कौलव (२९:५१ तक)
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॥ गोचर ग्रहा: ॥
🌖🌗🌖🌗
सूर्य 🌟 कन्या
चंद्र 🌟 मीन
मंगल 🌟 कन्या (अस्त, पश्चिम, मार्गी)
बुध 🌟 तुला (अस्त, पूर्व, मार्गी)
गुरु 🌟 कुम्भ (उदय, पूर्व, वक्री)
शुक्र 🌟 तुला (उदय, पश्चिम, मार्गी)
शनि 🌟 मकर (उदय, पूर्व, वक्री)
राहु 🌟 वृष
केतु 🌟 वृश्चिक
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शुभाशुभ मुहूर्त विचार
⏳⏲⏳⏲⏳⏲⏳
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अभिजित मुहूर्त 👉 ११:४५ से १२:३४
अमृत काल 👉 २४:०६ से २५:४६
सर्वार्थसिद्धि योग 👉 ०६:०४ से २९:०७
विजय मुहूर्त 👉 १४:११ से १५:००
गोधूलि मुहूर्त 👉 १८:०३ से १८:२७
निशिता मुहूर्त 👉 २३:४६ से २४:३४
राहुकाल 👉 १५:१२ से १६:४३
राहुवास 👉 पश्चिम
यमगण्ड 👉 ०९:०७ से १०:३८
होमाहुति 👉 चन्द्र (२९:०७ तक)
दिशाशूल 👉 उत्तर
अग्निवास 👉 पृथ्वी (२९:५१ तक)
चन्द्रवास 👉 उत्तर
शिववास 👉 गौरी के साथ (२९:५१ से सभा में)
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☄चौघड़िया विचार☄
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॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ - रोग २ - उद्वेग
३ - चर ४ - लाभ
५ - अमृत ६ - काल
७ - शुभ ८ - रोग
॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ - काल २ - लाभ
३ - उद्वेग ४ - शुभ
५ - अमृत ६ - चर
७ - रोग ८ - काल
नोट-- दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
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शुभ यात्रा दिशा
🚌🚈🚗⛵🛫
पश्चिम-दक्षिण (धनिया अथवा दलिया का सेवन कर यात्रा करें)
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तिथि विशेष
🗓📆🗓📆
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बुध तुला में ०८:१९ से, प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध आदि।
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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण
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आज २९:०७ तक जन्मे शिशुओ का नाम
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (दू, थ, झ, ञ) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओं का नाम रेवती नक्षत्र के प्रथम चरण अनुसार क्रमश (दे) नामाक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।
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उदय-लग्न मुहूर्त
कन्या - २९:४९ से ०८:०७
तुला - ०८:०७ से १०:२८
वृश्चिक - १०:२८ से १२:४७
धनु - १२:४७ से १४:५१
मकर - १४:५१ से १६:३२
कुम्भ - १६:३२ से १७:५८
मीन - १७:५८ से १९:२१
मेष - १९:२१ से २०:५५
वृषभ - २०:५५ से २२:४९
मिथुन - २२:४९ से २५:०४
कर्क - २५:०४ से २७:२६
सिंह - २७:२६ से २९:४५
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पञ्चक रहित मुहूर्त
चोर पञ्चक - ०६:०४ से ०८:०७
शुभ मुहूर्त - ०८:०७ से १०:२८
रोग पञ्चक - १०:२८ से १२:४७
शुभ मुहूर्त - १२:४७ से १४:५१
मृत्यु पञ्चक - १४:५१ से १६:३२
अग्नि पञ्चक - १६:३२ से १७:५८
शुभ मुहूर्त - १७:५८ से १९:२१
मृत्यु पञ्चक - १९:२१ से २०:५५
अग्नि पञ्चक - २०:५५ से २२:४९
शुभ मुहूर्त - २२:४९ से २५:०४
रज पञ्चक - २५:०४ से २७:२६
शुभ मुहूर्त - २७:२६ से २९:०७
चोर पञ्चक - २९:०७ से २९:४५
शुभ मुहूर्त - २९:४५ से २९:५१
रोग पञ्चक - २९:५१ से ३०:०५
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आज का राशिफल
🐐🐂💏💮🐅👩
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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आज का दिन संघर्ष वाला रहेगा दिन के आरंभ से मध्यान तक परिस्थितियां हर प्रकार से अवरोध डालने वाली रहेंगी लेकिन इसके बाद स्थिति सामान्य होने लगेगी। सेहत में धीरे धीरे सुधार आने पर अधूरे कार्यो को पूरा करने पर ध्यान रहेगा। कार्य गति आज धीमी ही रहेगी जिससे परिश्रम लाभ भी विलम्ब से अन्यथा कल ही मिल सकेगा। स्वभाव में हठ रहेगा अनुभवियों की सही बाते भी गलत सिद्ध करने का प्रयास करेंगे। आर्थिक स्थिति आज डांवाडोल ही रहेगी आवश्यकता के समय धन की कमी के कारण चिंता होगी। संध्या बाद थकान रहने पर भी दिन की तुलना में बेहतर अनुभव करेंगे।
वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आज का दिन आपके अनुकल रहेगा किसी भी कार्य मे ज्यादा मशक्कत नही करनी पड़ेगी। सामाजिक अथवा व्यावसायिक क्षेत्र पर भी अन्य लोगो की तुलना में आपका कार्य ज्यादा पसंद किया जायेगा धन लाभ भी निश्चित होगा परन्तु फिर भी व्यर्थ के कार्यो में खर्च होने की सम्भवना अधिक है। निवेश आज सोच समझ कर बाजार का हाल जान कर ही करें गलत जगह होने की संभावना हैं। आज आप अपनी जगह भाई बंधुओ के लिए अधिक लाभदायक रहेंगे अन्य लोगो की सहायता करने पर भी संध्या बाद स्वयं खाली हाथ रह जाएंगे। शारीरिक स्वास्थ्य छोटी मोटी व्याधि को छोड़ सामान्य रहेगा।
मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आज अधूरे कार्यो को पूर्ण करने का दिन है अगर आज आलस्य किया तो बाद में पछताना पड़ेगा। सभी प्रकार के कागजी अथवा सरकारी कार्य अधिकारी वर्ग की मेहरबानी से निर्विघ्न पूर्ण होंगे। कार्य व्यवसाय से भी आशानुकूल लाभ मिल सकेगा। आज आपका मन लंबी यात्रा की योजना बनाएगा शीघ्र ही इसके फलीभूत होने की सम्भवना है। चल- अचल संपत्ति से लाभ होगा। प्रतिस्पर्धी आज आपके आगे ज्यादा देर नही टिक पाएंगे। हृदय में आज कोमलता अधिक रहेगी परोपकार के लिए प्रेरित होंगे। महिलाओ का जिद्दी स्वभाव कुछ समय के लिये घर पर अशांति कर सकता है। फिर भी पिछले कुछ दिनों की तुलना में आज शान्ति अनुभव करेंगे।
कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आज आपका ध्यान व मध्यान तक का समय अधूरे कार्य समेटने में लगेगा साथ ही यात्रा भी अकस्मात आने से दिनचर्या अस्त व्यस्त बनेगी। कार्य व्यवसाय में लाभ की उम्मीद कई बार बनेगी लेकिन मध्यान बाद ही अकस्मात होगा। लेखन अथवा बौद्धिक कार्यो से जुड़े लोगो को संघर्ष अधिक रहेगा परन्तु लाभ भी आशा से अधिक हो सकता है इसके लिये किसी की चापलूसी करनी पड़ेगी। घर मे अथवा कार्य क्षेत्र पर स्त्री वर्ग से सतर्क रहें मिजाज गर्म रहने के कारण बेवजह अपमानित हो सकते है। पैतृक सम्मान में वृद्धि होगी लेकिन कुछ लाभ नही मिलेगा। गुप्त शत्रु के कारण मानसिक चिंता रहेगी। सेहत ठीक रहेगी।
सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
आज के दिन भी सुख शांति की कमी रहेगी। आज आप जिस भी कार्य को करेंगे उसमे भाग दौड़ अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक करनी पड़ेगी। सेहत में उतारचढ़ाव बना रहेगा। स्���ायु तंत्र कमजोर रहने से विविध समस्या उपजेगी। काम धंधा आज लाभ की अपेक्षा हानि ही अधिक करायेगा। धन को लेकर मन विचलित रहेगा। आज आप अपने जीवनी की समीक्षा भी करेंगे जिससे मन हीनभावना से ग्रस्त रहेगा। व्यावसायिक अथवा अन्य पारिवारिक-धार्मिक कारणों से यात्रा के योग बनेंगे अगर संभव हो तो यात्रा आज ना ही करें वाहन से चोटादि का भय है। सेहत अचानक खराब हो सकती है। चक्कर-वमन अथवा अन्य पेट मस्तिष्क संबंधित समस्या खड़ी होगी।
कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आज का दिन भी आपके लिए शुभफलदायी रहेगा। पुरानी रुकी योजना आज सिरे चढ़ने से राहत मिलेगी। कार्य क्षेत्र पर आज प्रतिस्पर्धा कम रहने से इसका लाभ उठायेंगे आज का दिन आर्थिक रूप से मजबूती प्रदान करेगा। व्यापार विस्तार की योजना सफल रहेगी। नौकरी पेशा जातक अधिकारी वर्ग से आसानी से काम निकाल सकेंगे। सामाजिक क्षेत्र हो या पारिवारिक अथवा अन्य सभी जगह आपकी जय होगी। अपरिचित भी आपसे संपर्क बनाने को उत्सुक रहेंगे। महिलाओं का स्वभाव अधिक नखरे वाला रहेगा इस वजह से हास्य की पात्र भी बनेंगी।
तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आज भी परिस्थितियां आपकी आशाओ के अनुकूल रहेंगी। लेकिन आज आपका सनकी स्वभाव कुछ ना कुछ हानि भी करायेगा। धन संबंधित कार्य आपकी व्यवहार शून्यता के कारण उलझेंगे परन्तु शीघ्र ही किसी के सहयोग मिलने से सुलझ जाएंगे। कार्य व्यवसाय से प्रारंभिक परिश्रम के बाद दोपहर के समय से धन की आमद शुरू हो जाएगी जो संध्या तक रुक रुक कर चलती रहेगी। मितव्ययी रहने के कारण खर्च भी हिसाब से करेंगे। महिलाये किसी मनोकामना पूर्ति से उत्साहित होंगी। महिला वर्ग से कोई भी काम निकालना आसान रहेगा मना नही कर सकेंगी। दाम्पत्य सुख में भी वृद्धि होगी। पर्यटन की योजना बनेगी।
वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आज का दिन उतार चढ़ाव वाला रहेगा दिन के आरंभ से ही दिनचार्य को व्यवस्थित बनाकर लाभ पाने के लिये कुछ नया करने करने का प्रयास करेंगे लाभ हो ता नजर आएगा परन्तु अगले ही पल आशा निराशा में बदल जाएगी। फिर भी चिंता न करें संध्या तक आर्थिक विषयो को लेकर संतोषजनक स्थिति बनेगी किसी ना किसी के माध्यम से धन लाभ होकर ही रहेगा। पैतृक कार्यो में आज ढील देना ही बाहर रहेगा अन्यथा नया झंझट मोल लेंगे। सरकारी कार्य अथवा सरकारी नौकरी के लिए प्रयासरत है तो थोड़ी अधिक मेहनत करें शीघ्र ही अच्छे परिणाम मिलेंगे। मैन अनर्गल प्रवृतियों में भटकेगा संभाले।
धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आज भी बचते बचते किसी से कलह होने की सम्भवना है पुरानी बातों को भूल ध्यान कार्यो पर केंद्रित करें अन्यथा पूरा दिन मानसिक संताप में ही खराब होगा। कार्य क्षेत्र पर आज मंदी रहेगी जमा पूंजी खर्च होने की सम्भवना है। आर्थिक मामलों को लेकर किसी भी प्रकार की जबरदस्ती न करें सहज रूप से जितना मिल जाये उसी में संतोष करें वरना हाथ का भी नही बचेगा। नए कार्य की रूप रेखा बना कर रखे निकट भविष्य में इनपर कार्य आरंभ होगा लेकिन आज ना करें। परिवार में आवश्यकता पड़ने पर ही सीमित बोले तो शांति बनी रहेगी।
मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आज का दिन आपके लिए सुख-समृद्धि दायक रहेगा। आज आप जिस भी कार्य को करने का मन बनाएंगे आरम्भ में लाभ-हानि को लेकर भ्रम पैदा होगा परन्तु शीघ्र ही स्थिति स्पष्ट होने लगेगी। आज लाभ कमाने के लिए आपको जोखिम लेना ही पड़ेगा इसका परिणाम आपके पक्ष में ही रहेगा। व्यावसायिक क्षेत्र से जुड़ी महिलाओ को पदोन्नति के साथ प्रोत्साहन के रूप में आर्थिक सहायता भी मिल सकती है। सामाजिक कार्यो में रुचि ना होने पर भी सम्मिलित होना पड़ेगा मान-सम्मान बढेगा। परिजनों का मार्गदर्शन आज प्रत्येक क्षेत्र पर काम आएगा। प्रेम प्रसंगों में निकटता रहेगी।
कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आज के दिन आपकी सोच ही आपको परेशान करेगी सामर्थ्य से बाहर की चाह रखेंगे पूरी न होने पर दुखी होंगे अपने भाग्य की खीज अन्य लोगो पर उतारने पर आस पास का वातावरण भी खराब करेंगे। आज संतोषी स्वभाव रखने पर भी दिनचार्य सामान्य रह सकती है आर्थिक मामलों को छोड़ अन्य सभी कार्य बुद्धि विवेक से सफल बना लेंगे। आपकी कल्पना शक्ति एवं दूरर्दर्शी सोच अन्यो लोगो से बेहतर रहेगी अपने कार्य अधूरे रहने पर भी अन्य लोगो के कार्य मिनटों में बना देंगे। पारिवार में कुछ ना कुछ अभाव लगा रहेगा। सेहत कुछ समय के लिये प्रतिकूल रहेगी।
मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आज आपका ध्यान मनोरंजन पर अधिक रहेगा आज आपकी मानसिकता भी कम परिश्रम से अधिक लाभ पाने की रहेगी।इसके कारण कार्यो पर उचित ध्यान नही दे पाएंगे परन्तु फिर भी आकस्मिक लाभ के योग बन रहे है। दौड़ धूप अधिक रहने से शारीरिक शिथिलता बनेगी। मध्यान के बाद किसी अभीष्ट सिद्धि के योग बन रहे है आलस्य ना करें अन्यथा लाभ से वंचित रह सकते है। प्रियजनों के साथ आनंद के क्षण बिताने का समय मिलेगा। घर मे स्थिति सामान्य रहेगी। आज आर्थिक मामलों के प्रति बेपरवाह भी रहेंगे। आवश्यक कार्य संध्या से पहले करले इसके बाद विविध हानि के योग बनने लगेंगे।
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प्रशांत किशोर और काँग्रेस के बारे में अटकलबाज़ी पर एक नोट
प्रशांत किशोर के काँग्रेस में शामिल होने की चर्चा ��र्म है। कोई नहीं जानता कि सचमुच ऐसा होगा। इस संशय के पीछे प्रशान्त किशोर का अपना इतिहास ही एक बड़ा कारण है। अब तक वे कई पार्टियों के चुनाव प्रबन्धक रह चुके है जिनमें बीजेपी का नाम भी शामिल है। काँग्रेस, सपा और जेडीयू के प्रबन्धक के रूप में उनकी भूमिका को तो सब जानते हैं। इसी वजह से उनकी वैचारिक निष्ठा के प्रति कोई निश्चित नहीं हो सकता है। इसीलिए तमाम चर्चाओं के बाद भी सबसे विश्वसनीय बात आज भी यही प्रतीत होती है कि वे किसी भी हालत में काँग्रेस की तरह के एक पुराने संगठन में शामिल नहीं होंगे।
यदि इसके बावजूद यह असंभव ही संभव हो जाता है तब उस क्षण को हम प्रशांत किशोर के पूरे व्यक्तित्व के आकलन में एक बुनियादी परिवर्तन का क्षण मानेंगे। उसी क्षण से हमारी नज़र में वे महज़ एक पेशेवर चुनाव-प्रबन्धक नहीं, विचारवान गंभीर राजनीतिज्ञ हो जाएँगे।
प्रशांत किशोर चुनाव-प्रबन्धन का काम बाकायदा एक कंपनी गठित करके चला रहे थे। अर्थात् यह उनका व्यवसाय था। इसकी जगह काँग्रेस में बाकायदा एक नेता के तौर पर ही शामिल होना, तत्त्वत: एक पूरी तरह से भिन्न काम को अपनाना कहलाएगा। आम समझ में राजनीति और व्यवसाय, इन दोनों क्षेत्रों के बीच एक गहरे सम्बन्ध की धारणा है। लेकिन गहराई से विश्लेषण करने पर पता चलेगा कि इन दोनों के बीच सहज विचरण कभी भी संभव नहीं है। इनके बीच एक सम्बन्ध नज़र आने पर भी, इनकी निष्ठाएँ अलग-अलग हैं, इनके विश्वास भी अलग है। कोई भी इनमें से किसी एक क्षेत्र को ही ईमानदारी और निष्ठा के साथ अपना सकता है।
कम्युनिस्ट विचारक अंतोनिओ ग्राम्शी ने इसी विषय पर अपनी ‘प्रिजन नोटबुक’ में एक बहुत सारगर्भित टिप्पणी की है। इसमें एक अध्याय है ‘बुद्धिजीवी और शिक्षा’। इस अध्याय में वे बुद्धिजीवी से अपने तात्पर्य की व्याख्या करते हैं। वे बुद्धिजीवी की धारणा को लेखक-दार्शनिक-संस्कृतिकर्मी की सीमा से निकाल कर इतने बड़े परिसर में फैला देते हैं जिसमें जीवन के सभी आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में बौद्धिक स्तर पर काम करने वाले लोग शामिल हो जाते हैं। बुद्धिजीवी कौन है और कौन नहीं है, इसी सवाल की उधेड़बुन में पन्ना-दर-पन्ना रंगते हुए वे क्रमश: अपनी केंद्रीय चिन्ता का विषय ‘राजनीतिक पार्टी’ पर आते हैं और इस नतीजे तक पहुँचते हैं कि राजनीतिक पार्टी का हर सदस्य ही बुद्धिजीवी होता है, क्योंकि उनकी सामाजिक भूमिका समाज को संगठित करने, दिशा देने अर्थात् शिक्षित करने की होती है।
इसी सिलसिले में वे टिप्पणी करते हैं कि “एक व्यापारी किसी राजनीतिक पार्टी में व्यापार करने के लिए शामिल नहीं होता है, न उद्योगपति अपनी उत्पादन-लागत में कटौती के लिए उसमें शामिल होता है, न कोई किसान जुताई की नई विधियों को सीखने के लिए। यह दीगर है कि पार्टी में शामिल होकर उनकी ये ज़रूरतें भी अंशत: पूरी हो जाए।” इसके साथ ही वे यह विचारणीय बात कहते हैं कि यथार्थ में “राजनीति से जुड़ा हुआ व्यापारी, उद्योगपति या किसान अपने काम में लाभ के बजाय नुक़सान उठाता है, और वह अपने पेशे में बुरा साबित होता है। … राजनीतिक पार्टी में ये आर्थिक-सामाजिक समूह अपने पेशागत ऐतिहासिक विकास के क्षण से कट जाते हैं और राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय चरित्र की सामान्य गतिविधियों के माध्यम बन जाते हैं।”
जब हम प्रशांत किशोर के काँग्रेस की तरह के एक स्थापित राजनीतिक संस्थान में शामिल होने की गंभीरता पर विचार करते हैं को हमारे ज़ेहन विचार का यही परिदृश्य होता है जिसमें राजनीति का पेशा दूसरे पेशों से पूरी तरह जुदा होता है और इनके बीच सहजता से परस्पर-विचरण असंभव होता है।
अब यदि हम पूरे विषय को एक वैचारिक अमूर्त्तन से निकाल कर आज के राजनीतिक क्षेत्र के ठोस परिप्रेक्ष्य में विचार करें तो यह कहने में जरा भी अत्युक्ति नहीं होगी कि आज किसी का काँग्रेस में शामिल होने का राजनीतिक अर्थ है खुद को दृढ़ बीजेपी-विरोधी घोषित करना। चुनाव प्रबन्धन का ठेका लेने के बजाय काँग्रेस पार्टी का हिस्सा बनना भी इसीलिए स्वार्थपूर्ण नहीं कहला सकता है क्योंकि अभी काँग्रेस में शामिल होने से ही तत्काल कोई आर्थिक लाभ संभव नहीं है।
प्रशांत किशोर अपने लिए पेशेवर चुनाव प्रबन्धक से बिल्���ुल अलग जिस बृहत्तर भूमिका की बात कहते रहे हैं, उनका ऐसा फ़ैसला उनके इस आशय की गंभीरता को पुष्ट करेगा। यह उनके उस वैचारिक रुझान को भी संगति प्रदान करता है जिसके चलते उन्होंने नीतीश कुमार से अपने को अलग किया, पंजाब में काँग्रेस का साथ देने, उत्तर प्रदेश में सपा-काँग्रेस के लिए काम करने के अलावा बंगाल में तृणमूल के लिए काम करने का निर्णय लिया। इसके अलावा, उनका काँग्रेस जैसे विपक्ष के प्रमुख दल को चुनना भी उनके जैसे एक कुशल व्यक्ति के लिए निजी तौर पर उपयुक्त चुनौती भरा और संतोषजनक निर्णय भी हो सकता है।
बहरहाल, अभी तो यह सब कोरा क़यास ही है। प्रशांत किशोर के लिए अपनी योग्यता और वैचारिकता के अनुसार काम करने के लिए काँग्रेस का मंच किसी भी अन्य व्यक्ति को कितना भी उपयुक्त क्यों न जान पड़े, ऐसे फ़ैसलों में व्यक्ति के अहम् और संगठनों की संरचना आदि से जुड़े दूसरे कई आत्मगत कारण है जो अंतिम तौर पर निर्णायक साबित होते हैं। मसलन, आज यदि हम दृढ़ बीजेपी-विरोध के मानदंड से विचार करें तो किसी के भी लिए काँग्रेस के अलावा दूसरा संभावनापूर्ण अखिल भारतीय मंच वामपंथी दलों का भी हो सकता है। लेकिन वामपंथी पार्टियों का अपना जो पारंपरिक सांगठनिक विन्यास और उसकी रीति-नीति है, उसमें ऐसे किसी बाहर के योग्य व्यक्ति की प्रभावी भूमिका की बात की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है।
वामपंथी पार्टियों के सांगठनिक ढाँचे की यह विडंबना ऐसी है कि इसमें जब बाहर के व्यक्ति के भूमिका असंभव है, तब बाहर के अन्य लोगों के लिए भी वामपंथी पार्टियों की ओर सहजता से झांकना संभव नहीं होता है। इसके लिए कथित संघर्ष की एक दीर्घ प्रक्रिया से गुजरना अनिवार्य होता है, भले वह संघर्ष पार्टी के अंदर का संघर्ष ही क्यों न हो। अर्थात् उसके लिए वामपंथी मित्रों के सहचर के रूप में एक लम्बा समय गुज़ारना ज़रूरी होता है। अनुभव साक्षी है कि यह अन्तरबाधा एक मूल वजह रही है जिसके चलते अनेक ऐतिहासिक परिस्थितियों में भी वामपन्थ अपने व्यापक प्रसार के लिए उसका लाभ उठा पाने से चूक जाता है या अपनी भूमिका अदा करने के लिए ज़रूरी शक्ति का संयोजन नहीं कर पाता है। जब 1996 में ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव आया था तो कुछ ऐसी ही अपनी अन्तरबाधाओं की वजह से, जो सीपीएम के संविधान की एक धारा 112 के रूप में प्रकट हुई थी, वामपन्थ अपनी भूमिका अदा करने में विफल हुआ।
बहरहाल, यहाँ अभी विषय प्रशांत किशोर के अनुमानित निर्णय का है। हम पुन: यही कहेंगे कि अव्वल तो यह बात पूरी तरह से अफ़वाह साबित होगी। प्रोग्राम यह बात सच साबित होती है तो मानना पड़ेगा कि प्रशांत किशोर अपनी भिन्न और बृहत्तर सामाजिक भूमिका के बारे में सचमुच गंभीर और ईमानदार है।
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