पाबंदियों से अपनी निकलते वो पा न थे
पाबंदियों से अपनी निकलते वो पा न थे
सब रास्ते खुले थे मगर हम पे वा न थे,
ये और बात शौक़ से हम को सुना गया
फिर भी वही सुनाया सुना एक फ़साना थे,
एक आग साएबान था सर पर तना हुआ
पल पल ज़मीं सरकती थी और हम रवाना थे,
दरिया में रह के कोई न भीगे तो किस तरह
हम बे नियाज़ तेरी तरह ऐ ख़ुदा न थे,
हरगिज़ गिला नहीं है कि तू मेहरबाँ न था
कब हम भी अपने आप से बेहद ख़फ़ा न थे,
क्यूँ सब्र आश्ना न हुआ ना मुराद…
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दुआ का दामन
दुआ ही निकलेगी सदा हीओ ! मुझे बददुआ देने वालेदर्द तेरे से, दर्द होता बहुत हीमुझे बेअसर बेदर्द कहने वाले
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अनोखा क्रिकेट टूर्नामेंट! धोती-कुर्ता में क्रिकेट खेलते कर्म कंडी ब्राह्मण, संस्कृत में की जा रही कमेंट्री
अनोखा क्रिकेट टूर्नामेंट! धोती-कुर्ता में क्रिकेट खेलते कर्म कंडी ब्राह्मण, संस्कृत में की जा रही कमेंट्री
क्रिकेट खबर: विपिन श्रीवास्तव। आपने कई क्रिकेट मैच, अंग्रेजी और हिंदी में कमेंट्री और पिच पर खिलाड़ियों को जर्सी पहने देखा होगा। लेकिन क्या आपने कभी ऐसा क्रिकेट मैच देखा है, जिसमें खिलाड़ी धोती कुर्ते में चौके-छक्के लगा रहे हों और कमेंट्री बॉक्स में बैठे कमेंटेटर संस्कृत में कमेंट कर रहे हों, शायद नहीं, लेकिन कुछ ऐसा ही खेल देश की राजधानी भोपाल में खेला जा रहा है. मध्य प्रदेश। है।
धोती कुर्ता में…
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#SpiritualKnowledge
आध्यात्मिक ज्ञान
गरीब, काल करम करै बदंगी, महाकाल अरदास। मन माया अरु धरमराय, सब सिर नाम उपास ।।
उस परमेश्वर की बंदगी यानि प्रणाम करके नम्र भाव से स्तुति ब्रह्म काल (करम) दया की याचना करते हैं तथा महाकाल (अक्षर पुरूष) भी उस परमेश्वर से प्रार्थना करके अपने-अपने लोक चला रहे हैं। मन (काल ब्रह्म), माया (देवी दुर्गा) और धर्मराय (काल का न्यायधीश) सबको भक्ति करना अनिवार्य है, तब उनका पद सुरक्षित रहता है।
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देखा जमाना सारा भरम है
इश्क इबादत इश्क करम है....
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हाए लोगों की करम फ़रमाइयाँ...
हाए लोगों की करम फ़रमाइयाँ
तोहमतें बदनामियाँ रुस्वाइयाँ,
ज़िंदगी शायद इसी का नाम है
दूरियाँ, मजबूरियाँ, तन्हाइयाँ,
क्या ज़माने में यूँ ही कटती है रात
करवटें, बेताबियाँ, अंगड़ाइयाँ,
क्या यही होती है शाम ए इंतिज़ार
आहटें, घबराहटें, परछाइयाँ,
एक रिंद ए मस्त की ठोकर में हैं
शाहियाँ, सुल्तानियाँ, दाराइयाँ,
एक पैकर में सिमट कर रह गईं
ख़ूबियाँ, ज़ेबाइयाँ, रानाइयाँ,
रह गईं एक तिफ़्ल ए मकतब के…
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ढूँडती फिरती हैं जाने मिरी नज़रें किस को
ऐसी बस्ती में जहाँ कोई भी आबाद नहीं
तू पशेमाँ न हो मैं शाद हूँ नाशाद नहीं
ज़िंदगी तेरा करम है तिरी बेदाद नहीं
वो सनम-ख़ाना-ए-दिल हो कि गुज़र-गाह-ए-ख़याल
मैं ने तुझ को कहीं देखा है मगर याद नहीं
- zeb gauri
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'ऐ खुदा! तू उसे हमसे मरहूम मत कर जिसके बिना हम रह नहीं पाएंगे, जिसके बिना हम जी नहीं पाएंगे | ऐ मालिक! दुनिया भर से हमने अपने जज़्बात छुपाए मगर तुझसे क्या छुपा है, मेरे मालिक | हम तेरे सामने अपना सिर झुकाते हैं, भीख माँगते हैं , तू उसकी जान बक्ष दे| हिंदुस्तान का शहंशाह दो जहां के शहंशाह से भीख मांग रहा है, इल्तिजा है हमारी |
तू रहमत वाला है रहमत कर, तू करीम है करम कर, तू सबसे ताकतवर है अपनी ताकत दिखा दे |
हम मर जायेंगे जी नहीं पाएंगे उसके बगैर |'
transliteration undercut
ae khuda! tu use humse marhoom mat kar, jiske bina hum reh nahi payenge, jiske bina hum jee nahi payenge. ae malik, duniya bhar se humne apne jazbaat chupaye hain, magar tujhse kya chhupa hai, mere malik. hum tere saamne apna sir jhukate hain bheekh mangte hain tu uski jaan baksh de.
hindustan ka shehenshaah, do jahaan ke shehenshaah se bheekh maangta hai, iltijah hai humari
tu rehmat wala hai rehmat kar, tu kareem hai, karam kar tu sabse takatwar hai, apni taakat dikhade,
hum mar jayenge jee nahi payenge uske bagair
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उन के अंदाज़-ए-करम उन पे वो आना दिल का
हाय वो वक़्त वो बातें वो ज़माना दिल का
न सुना उस ने तवज्जोह से फ़साना दिल का
ज़िंदगी गुज़री मगर दर्द न जाना दिल का
कुछ नई बात नहीं हुस्न पे आना दिल का
मश्ग़ला है ये निहायत ही पुराना दिल का
वो मोहब्बत की शुरूआ'त वो बे-थाह ख़ुशी
देख कर उन को वो फूले न समाना दिल का
दिल लगी दिल की लगी बन के मिटा देती है
रोग दुश्मन को भी यारब न लगाना दिल का
एक तो मेरे मुक़द्दर को बिगाड़ा उस ने
और फिर उस पे ग़ज़ब हंस के बनाना दिल का
मेरे पहलू में नहीं आप की मुट्ठी में नहीं
बे-ठिकाने है बहुत दिन से ठिकाना दिल का
वो भी अपने न हुए दिल भी गया हाथों से
ऐसे आने से तो बेहतर था न आना दिल का
ख़ूब हैं आप बहुत ख़ूब मगर याद रहे
ज़ेब देता नहीं ऐसों को सताना दिल का
बे-झिजक आ के मिलो हंस के मिलाओ आँखें
आओ हम तुम को सिखाते हैं मिलाना दिल का
नक़्श-ए-बर आब नहीं वहम नहीं ख़्वाब नहीं
आप क्यूँ खेल समझते हैं मिटाना दिल का
हसरतें ख़ाक हुईं मिट गए अरमाँ सारे
लुट गया कूचा-ए-जानां में ख़ज़ाना दिल का
ले चला है मिरे पहलू से ब-सद शौक़ कोई
अब तो मुम्किन नहीं लौट के आना दिल का
उन की महफ़िल में 'नसीर' उन के तबस्सुम की क़सम
देखते रह गए हम हाथ से जाना दिल का
-Peer Naseeruddin Naseer
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