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#देवशयनी एकादशी पूजा विधि
jeevanjali · 3 months
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Devshayani Ekadashi : देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु के इन मंत्रों का करें जाप, मिलेगा बहुत लाभ Devshayani Ekadashi : एकादशी का हिन्दु धर्म में बहुत अधिक महत्व है। आपको बता दें कि एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
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dharmikjeevan · 1 year
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देवशयनी एकादशी: दिव्य व्रत पूजा विधि और मंत्र | धार्मिक जीवन
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देवशयनी एकादशी, जिसे हिन्दू धर्म के अनुसार "चातुर्मास्य एकादशी" की शुरुआत माना जाता है, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह एक पवित्र अवसर है जब भगवान विष्णु योगनिंद्रा में चले जाते हैं। इस प्रमुख व्रत का का विधिपूर्वक आचरण करने से विशेष प्रकाश प्राप्त होता है और इससे साधकों को आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक आराम मिलता है।
अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक कीजिये
यहाँ हम आपके लिए एक YouTube वीडियो प्रस्तुत कर रहे है। इस वीडियो में हम आपको देवशयनी एकादशी व्रत की पूजा विधि और कल्याणकारी मंत्रों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे। हम आपको व्रत की विधि, मंत्रों का उच्चारण आदि के बारे में बताएंगे। इससे आप इस पवित्र व्रत को सही और सामर्थिक तरीके से कर सकते हैं और इसके आध्यात्मिक लाभों प्राप्त कर सकते हैं।
अपने धार्मिक जीवन को सुखी, समृद्ध और प्रगाढ़ बनाने के लिए हमारे Tumblr पोस्ट को जरूर देखें। हम विभिन्न हिन्दू धर्म संबंधित विषयों पर नवीनतम ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। इस पोस्ट के अलावा, हमारे ब्लॉग पर और भी महत्वपूर्ण और रोचक लेख पढ़ें और धार्मिक ज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए हमारे Tumblr पेज को फॉलो करें।
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rudrjobdesk · 2 years
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Devshayani Ekadashi 2022 : जानिए देवशयनी एकादशी का महत्व, शुभ मुहूर्त में करें पूजा पाठ
Devshayani Ekadashi 2022 : जानिए देवशयनी एकादशी का महत्व, शुभ मुहूर्त में करें पूजा पाठ
Image Source : INDIA TV Devshayani Ekadashi 2022 Devshayani Ekadashi 2022: 10 जुलाई रविवार को यानी आज आषाढ़ शुक्‍ल एकादशी है। जिसे देवशयनी या हरिशयनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने से काफी लाभ मिलता है। आज से भगवान विष्णु चार महीने तक क्षीर सागर में योग निद्रा में रहेंगे। जिसके चलते अब किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किए जाएंगे। भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल एकादशी तक आराम करेंगे। इसके बाद…
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mrdevsu · 3 years
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देवशयनी एकादशी पर हनुमान जी की पूजा का बन रहा है विशेष संयोग
देवशयनी एकादशी पर हनुमान जी की पूजा का बन रहा है विशेष संयोग
देवशयनी एकादशी 2021: पंचांग के हिसाब से 20 नवंबर 2021, कल आषाढ़ मास की कल की तारीख है। इस एकादशी शास्त्र की तिथि समाप्त हो गई है। आषाढ़ शुक्ल की एकादशी को देवशय एकादशी है। इस व्यक्ति को विष्णु की विशेष देखभाल है। देवशयनी एकादशी का महत्वदेवशय एकादशी आषाढ़ मास की आखिरी एकादशी है। एंडोर्समेंट के लिए देवशयनीदाशी से चातुर्मास एक शुरुआत है। देवशयनी एकादशी से विष्णु का शयनकाल प्रभामंडल है। भगवान विष्णु…
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2020 देवशयनी एकादशी कब है: दिनांक,महत्व एवं पूजा विधि | Devshayani Ekada...
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देवशयनी एकादशी कब है, जानिए कथा, देव को सुलाने का मंत्र, शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और उपाय
देवशयनी एकादशी कब है, जानिए कथा, देव को सुलाने का मंत्र, शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और उपाय
devshayani ekadashi आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार, इस दिन से चार महीने के लिए भगवान विष्णु योग निद्रा में रहते हैं। इस चार महीनों में मांगलिक कार्यों की मनाही होती है। कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान योग निद्रा से उठते हैं। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इस साल देवशयनी एकादशी 10 जुलाई 2022 को आ रही है।   देवशयनी…
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ganeshvanijyot1 · 4 years
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देवउठनी एकादशी की शुभकामनाये देवउठनी एकादशी 2020 का शुभ समय: देवउठनी एकादशी बुधवार, 25 नवंबर को पड़ रही है। एकादशी तिथि शुरू होती है: 25 नवंबर, 2020 दोपहर 02:42 बजे से एकादशी तिथि समाप्त: 26 नवंबर, 2020 को शाम 05:10 बजे तक इस साल यह एकादशी 25 नवंबर को है और इसका समापन 26 नवंबर यानी बृहस्पतिवार को तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) के साथ किया जाएगा. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों में लिखा है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने (जिनको चातुर्मास कहा जाता है) की योगनिद्रा के बाद शयन से जागृत होते हैं। इसलिए इस एकादशी को देवउठनी या देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है और श्रीहरी की इस दिन विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। देवशयनी एकादशी को सभी शुभ कार्य बंद हो जाते हैं और देवउठनी एकादशी के साथ फिर से सभी शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। इसलिए कार्तिक अमावस्या पर दीपावली के अवसर पर देवी लक्ष्मी की आराधना बगैर श्रीहरी के की जाती है, क्योंकि श्रीहरी उस वक्त योगनिद्रा में रहते हैं। देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु के जागने पर देवी-देवता श्रीहरी और देवी लक्ष्मी की एक साथ पूजा कर देव दीपावली मनाते हैं। इसके साथ ही इस दिन से परिणय संस्कार यानी मांगलिक प्रसंगों का प्रारंभ भी हो जाता है।
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dharmikjeevan · 1 year
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Devshayani Ekadashi Fast Worship Method and Welfare Mantra
Learn how to worship and chant the mantra for this important Hindu festival
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Devshayani Ekadashi is one of the most important Hindu festivals of the year. It marks the beginning of the four-month-long Chaturmas, a period of spiritual introspection and self-purification. During this time, many Hindus keep a strict fast and perform pujas and rituals.
The name Devshayani Ekadashi literally means "the eleventh day of the waxing moon when Vishnu sleeps." This is because on this day, Vishnu enters deep yogic sleep, known as yoga nidra. It is said that during this time he rests on Anant Shesha Nag, who floats on the cosmic ocean.
Click here for more details
Observance of Devshayani Ekadashi is believed to confer great spiritual benefits. It is said to purify the soul of impurities, remove obstacles and provide moksha or liberation from the cycle of birth and death.
Devshayani Ekadashi is worshiped in the evening. It begins with prayers and mantras to Vishnu. Then the clay image of Vishnu is bathed and decorated with flowers and offerings. The puja ends with the chanting of the Kalyankari Mantra, a powerful mantra that is said to bring blessings and good fortune.
If you are interested in knowing more about Devshayani Ekadashi and how to worship, you can watch my video on YouTube. This video is in Hindi language.
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rudrjobdesk · 2 years
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Devshayani Ekadashi 2022 : देवशयनी एकादशी कल, नोट कर लें डेट, शुभ मुहूर्त, पूजा- विधि, महत्व और सामग्री की पूरी लिस्ट
Devshayani Ekadashi 2022 : देवशयनी एकादशी कल, नोट कर लें डेट, शुभ मुहूर्त, पूजा- विधि, महत्व और सामग्री की पूरी लिस्ट
Devshayani Ekadashi 2022 : हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत अधिक महत्व होता है। हर माह में दो बार एकादशी तिथि पड़ती है। एक बार कृष्ण पक्ष में और एक बार शुक्ल पक्ष में। साल में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं। आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी तिथि से भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान…
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8 नवंबर को देवउठनी एकादशी, सृष्टि का कार्यभार संभालेंगे भगवान विष्णु-
देवउठनी एकादशी 8 नवंबर को है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु विश्राम से जागते हैं और सृष्टि का कार्य-भार संभालते हैं। इस एकादशी में सभी मंगल कार्य शुरू हो जाते है और इस दिन तुलसी विवाह करने की भी परंपरा है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद जागते हैं और भगवान विष्णु के शयनकाल के चार महीने में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं। कार्तिक मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान, देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। यह एकादशी दिवाली के बाद आती है।
 देवउठनी एकादशी व्रत और पूजा विधि-
प्रातःकाल उठकर व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु का ध्यान करें। स्नान आदि से निवृत्त होकर घर के आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाना चाहिए। एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल,मिठाई,बेर,सिंघाड़े,ऋतुफल और गन्ना रखकर उसे डलिया से ढांक देना चाहिए। रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाने चाहिए। रात्रि के समय घर के सभी सदस्यों को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का पूजन करना चाहिए।
 भगवान विष्णु को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए और ये वाक्य दोहराना चाहिए- उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाएं। देवउठनी एकादशी के दिन दान, पुण्य आदि का भी विशेष लाभ प्राप्त होता है।
 देवउठनी एकादशी मंत्र-
“उत्तिष्ठो उत्तिष्ठ गोविंदो, उत्तिष्ठो गरुणध्वज।
उत्तिष्ठो कमलाकांत, जगताम मंगलम कुरु।।”
तात्पर्य यह है कि जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु आप उठिए और मंगल कार्य की शुरुआत कीजिए।
 देवशयनी से लेकर देवउठनी एकादशी की शुरुआत तक नहीं होते मांगलिक कार्य-
12 जुलाई को देवशयनी एकादशी थी और इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले गए थे। इन चार महीनों तक भगवान शिव सृष्टि के पालनकर्ता होते हैं। इस दौरान विवाह, उपनयन संस्कार जैसे कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होते हैं।
 देवउठनी एकादशी व्रत मुहूर्त
7 नवंबर 2019 प्रात: 09:55 से 8 नवंबर 2019 को रात 12:24 तक
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भड़ली नवमी कब है 2022, क्या है महत्व, मुहूर्त, पूजा विधि और विवाह के लिए 5 उपाय
भड़ली नवमी कब है 2022, क्या है महत्व, मुहूर्त, पूजा विधि और विवाह के लिए 5 उपाय
भड़ली नवमी नवमी तक विवाह के लिए शुभ मुहूर्त है। इसके बाद देवशनी एकादशी के बाद सभी तरह के मांगलिक कार्य बंद हो जाएंगे। आओ जानते हैं कि भड़ली नवमी कब है, क्या है इसका महत्व, पूजा विधि, मुहूर्त और विवाह बाधा दूर करने के 5 उपाय।   भड़ली नवमी कब है 2022 : आषाढ़ शुक्ल की नवमी को भड़ली कहते हैं। इस बार यह 8 जुलाई, शुक्रवार को मनाई जाएगी। इसके बाद 10 जुलाई को देवशयनी एकादशी है।   महत्व : अक्षया…
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chaitanyabharatnews · 3 years
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देवशयनी एकादशी आज, इस दौरान भूलकर भी ना करें ये काम, जाने पूजा विधि और महत्व
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चैतन्य भारत न्यूज हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत अधिक महत्व होता है। हर माह में दो बार एकादशी तिथि पड़ती है। एक बार कृष्ण पक्ष में और एक बार शुक्ल पक्ष में। आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है जो कि इस बार 20 जुलाई को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस एकादशी तिथि से भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। इस दौरान सभी मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत पर अगले चार महीने के लिए विराम लग जाएगा। इसी दिन से चातुर्मास शुरू हो जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु विश्राम के लिए पाताल लोक चले जाते हैं और वे वहां चार मास विश्राम करते हैं। इस बीच पृथ्वी लोक की देखभाल भगवान शिव करते हैं। इसीलिए चातुर्मास में सावन का विशेष महत्व बताया गया है।सावन के महीने में भगवान शिव माता पार्वती के साथ पृथ्वी का भ्रमण करते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। जब भगवान विष्णु पाताल लोक चले जाते हैं तो सभी मांगलिक कार्य स्थगित कर दिए जाते हैं, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस समय किये गए किसी मांगलिक कार्य का शुभ फल नहीं मिलता है। देवशयनी एकादशी के चार मास बाद दे��उठनी एकादशी के दिन से पुनः मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। 14 नवंबर को देवउठनी एकादशी पर विष्णु भगवान विश्राम काल पूर्ण कर क्षिर सागर से बाहर आकर पृथ्वी की बागड़ोर अपने हाथों में लेते हैं। चातुर्मास में क्‍या नहीं करना चाह‍िए चातुर्मास का सबसे पहला नियम यह है कि इन 4 महीनों में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश और तमाम सोलह संस्कार नहीं किए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इन सभी कार्यों पर सनातन धर्म के सभी देवी-देवताओं को आशीर्वाद देने के लिए बुलाया जाता है मगर भगवान विष्णु शयन काल में रहते हैं इसीलिए वह आशीर्वाद देने नहीं आ पाते हैं। ऐसे में भगवान विष्णु का आशीर्वाद पाने के लिए लोग इन 4 महीनों को छोड़कर अन्य महीनों में शुभ कार्य करते हैं। शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने व पाचन तंत्र को ठीक रखने के लिए पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोबर) का सेवन करें। इसके साथ चातुर्मास के पहले महीने यानि सावन में हरी सब्जियां, भादो में दही, अश्विन में दूध और कार्तिक में दाल का सेवन करना वर्जित माना गया है। इसके साथ इन 4 महीनों में तामसिक भोजन, मांस और मदिरा का सेवन भी नहीं करना चाहिए। चातुर्मास के नियमों के अनुसार इन 4 महीनों में शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए और किसी की निंदा करने से बचना चाहिए। इसके अलावा इन 4 महीनों में मूली, परवल, शहद, गुड़ तथा बैंगन का सेवन करना वर्जित माना गया है। देवशयनी एकादशी की पूजा-विधि देवशयनी एकादशी के दिन सबसे पहले जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई करें। स्नान कर घर में पवित्र जल का छिड़काव करें। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का कमल के पुष्पों से पूजन करना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि, इन चार महीनों के दौरान भगवान शिवजी सृष्टि को चलाते हैं। इसलिए विष्णु के साथ भगवान शिव की पूजा करना शुभ माना गया है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की कथा सुनें। देवशयनी एकादशी की पूजा के बाद गरीबों को फल दान करें। देवशयनी एकादशी : चार महीने भगवान विष्णु करेंगे विश्राम, इस दौरान भूलकर भी ना करें ये काम देवशयनी एकादशी पर जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, सुनकर मिलता है व्रत का पूर्ण फल जानिए कब है देवशयनी एकादशी, इसका महत्व और पूजा विधि देवशयनी एकादशी: आज से 5 माह तक योग निद्रा में चले जाएंगे भगवान विष्णु, जानें व्रत रखने का शुभ मुहूर्त और पारण का समय Read the full article
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spgcimap-blog · 4 years
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पुराण- कथा, धर्म- संहिता, ज्योतिष में  देवशयनी (हरिशयनी) एकादशी (पद्मा एकादशी) तथ्य व महात्म्य ----------------------------------------------------        【इस वर्ष दिनांक 01, जुलाई, 2020 आषाढ़ शुक्ल एकादशी बुधवार को जगन्नाथ- पुरी में जगत प्रसिद्ध "बाहूडा रथयात्रा" तथा समग्र भारत में "देवशयनी (पद्मा) एकादशी" मनाया जाता है। इस देवशयनी/ हरिशयनी- पद्मा एकादशी- तिथि से अगले 148 दिन अर्थात दिनांक 25 नवंबर 2020 बुधवार कार्त्तिक शुक्ल "देवोत्थापनी/ देवोप्रबोधिनी एकादशी" तक श्रीहरि भगवान चतुर्मासी- योगनिद्रा में रहेंगे और स्वाभाविक रूप में इस अवधि के अंदर समस्त प्रकार शुभ कार्यों पर निषेध/ पाबन्दी लागू होंगे।।】    देवशयनी- पद्मा एकादशी    --------------------------------        प्रसंग क्रम में धर्मराज युधिष्ठिर ने प्रश्न पूछा था - "हे केशव ! आषाढ़ी शुक्ल एकादशी का क्या नाम है ? इस व्रत के करने की विधि क्या है और इस अवसर में किस देवता का पूजन किया जाता है ?"       श्रीकृष्ण कहने लगे कि- "हे युधिष्ठिर! जिस कथा को ब्रह्मा जी ने नारद जी से कहा था, वही मैं तुमसे सुनाता हूं :--        "ब्रह्मा जी ने नारद जी को कहा था कि-- कलियुगी जीवों के उद्धार के लिए, समस्त पाप नष्ट करने में सक्षम तथा सब व्रतों में अधिक उत्तम आषाढ़ शुक्ल एकादशी ही 'देवशयनी (पद्मा) एकादशी व्रत' के नाम में प्रख्यात।।"         फिर धर्मराज के आग्रह से श्रीकृष्ण जी ने ब्रह्म जी तथा नारद जी के विच के इस बारे में कथोपकथन को विस्तार से जब सुनाई तो बातावरण में भगवत- आनन्दकन्द- मकरन्द की स्रोत प्रवाहित हुई थी।। देवशयनी- पद्मा एकादशी व्रत- तत्व--------------------------------------         आषाढ़ शुक्ल एकादशी ही देवशयनी- पद्मा एकादशी नाम में प्रसिद्ध। इसी दिन से जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी 'पाताल लोक' (भिन्न कथन में 'क्षीर सागर') में योगनिद्रा के लिए चले जाते हैं।इस वर्षा ऋतू के बाद धरती पर किसी प्रकार का मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। माना जाता है कि इस 'हरिशयनी' के दौरान सूर्य व चंद्र का तेज पृथ्वी पर कम पहुंचता है, जल की मात्रा अधिक हो जाती है, वातावरण में अनेक जीव- जंतु उत्पन्न हो जाते हैं, जो अनेक रोगों का कारण बनते हैं। इसलिए साधु- संत, तपस्वी, मठाधीश इस काल में एक ही स्थान पर रहकर तप, साधना, स्वाध्याय व प्रवचन आदि करते हैं।।         देवशयनी एकादशी की साधारण पूजा विधि ये है की--       जो लोग देवशयनी एकादशी का व्रत रखते हैं, उन्हें प्रात:काल उठकर स्नान करना चाहिए। पूजा स्थल को साफ करने के बाद शंख, चक्र, गदा, पद्म धारी भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर यथाविधि बैठाएं और उनकी पूजा करें। भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं। भगवान विष्णु को पान और सुपारी अर्पित करने के बाद धूप, दीप और पुष्प चढ़ाकर आरती उतारें।भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन या फलाहार ग्रहण करें। एकादशी की रात्र में भगवान विष्णु का भजन व स्तुति करना चाहिए और स्वयं के सोने से पहले भगवान को भी शयन कराना चाहिए।।      देवशयनी एकादशी कथा      -------------------------------          पुराणों में इस देवशयनी एकादशी के बारे में एकाधिक कथा उपलब्ध। उससे एक रोचक कहानी ये है कि-- शंखचूर (शंखचूड़) नामक असुर से भगवान विष्णु का लंबे समय तक युद्ध चला। आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान ने शंखचूड़ का वध कर दिया और क्षीर सागर में सोने चले गये। शंखचूड़ जैसे दुरात्मा से मुक्ति दिलाने के कारण देवताओं ने भगवान विष्णु की विशेष पूजा- अर्चना की। 'देवशयनी' और 'देवउत्थापनी'-- ये दोनों 'एकादशी' इसकी विशेष स्मारकी मान्यता प्राप्त।।         एक अन्य कथा के अनुसार वामन अवतार में भगवान विष्णु ने दानवेन्द्र राजा बलि से तीन पग में तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। इसलिए राजा बलि को पाताललोक वापस जाना पड़ा। लेकिन महादानी बलि की भक्ति और उदारता से भगवान वामन मुग्ध थे। भगवान ने बलि से जब वरदान मांगने के लिए कहा, तो बलि ने भगवान से कहा कि-- "आप सदैव पाताल में ही मेरे पास निवास करें।।"         भक्त की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान पाताल में रहने लगे। इससे बैकुंठवासिनी लक्ष्मी माँ दुःखी हो गयी। भगवान विष्णु को वापस बैकुंठ लाने के लिए गरीब स्त्री का वेष बनाकर पाताल लोक पहुंची। लक्ष्मी माँ की दीन- हीन अवस्था को देखकर बलि ने उन्हें अपनी बहन बना लिया।।       बहन बनने के बाद लक्ष्मी जी भाई बलि को अपनी दुःख कहकर जब विष्णु की मांग की, तो महादानी बलि ने भाई की कर्त्तव्य निभाने के लिए वचन दिया। किन्तु विष्णु जी तो बलि के साथ रहने के लिए 'वचन' दे चुके थे, तो लक्ष्मी जी को प्रदत्त बलि के इस 'वचन' कैसे फलित होगा ! देवकूट सफल हुई। और दो तरफ वचन को फलित कर, उस समय से सिर्फ वर्षाऋतु की चतुर्मासी अवधि काल ही (आषाढ़ी देवशयनी एकादशी से कर्त्तिकी देवउत्थापनी एकादशी तक) विष्णु भगवान ने पाताली होकर विष्णु भक्त राजा बलि के साथ रहने लगे।।   (संग्राहक, संकलक, सम्पादक, विनीत परिभाषक : महाप्रभुआश्रित प्रफुल्ल कुमार दाश।।)     जय जगन्नाथ।। ॐ शांतिः।।
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dilsedeshi · 6 years
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देवशयनी एकादशी की पूजा विधि, महत्व और कथा | Devshayani Ekadashi Puja Vidhi, Mahatva and Story in Hindi
देवशयनी एकादशी की पूजा विधि, महत्व और कथा |
देवशयनी एकादशी की पूजा विधि, महत्व, शुभ मुहूर्त, आरती और कथा | Devshayani Ekadashi Puja Vidhi, Mahatva Shubh Muhurat, Aarti and Story in Hindi
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. भगवान विष्णु इस दिन सो जाते हैं और चार महीने बाद प्रबोधिनी एकादशी के दिन जागते हैं. देवशयनी एकादशी प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा के ठीक बाद आती है और वर्तमान में अंग्रेजी कैलेंडर पर जून या…
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देवशयनी एकादशी विशेष : शुभ मुहूर्त, व्रत की कथा, उपाय,दान, मंत्र,पूजा विधि और भी बहुत कुछ
देवशयनी एकादशी विशेष : शुभ मुहूर्त, व्रत की कथा, उपाय,दान, मंत्र,पूजा विधि और भी बहुत कुछ
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी या हरिशयनी एकादशी कहते हैं। इस बार देवशयनी एकादशी 10 जुलाई 2022 को मनाई जा रही हैं। इसी दिन से श्रीहरि 4 माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं और चातुर्मास की शुरुआत भी हो जाती है। अत: इस समय कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होता, लेकिन धार्मिक पूजा, अनुष्ठान आदि किए जाते हैं। यहां पढ़ें देवशयनी एकादशी से संबंधित समग्र जानकारी एक ही स्थान पर…  ALSO READ: देवशयनी…
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rudrjobdesk · 2 years
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सभी कामनाओं को पूरा करती है देवशयनी एकादशी, नोट कर लें विष्णु भगवान को प्रसन्न करने की पूजा- विधि
सभी कामनाओं को पूरा करती है देवशयनी एकादशी, नोट कर लें विष्णु भगवान को प्रसन्न करने की पूजा- विधि
इस वर्ष हरिशयनी (देवशयनी) एकादशी व्रत का मान सबके लिए 10 जुलाई रविवार को है। इसका पारण 11 जुलाई सोमवार को प्रातः 05:15 बजे के बाद जौ से किया जाएगा। भवष्यिोत्तर पुराण के अनुसार आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी को ही हरिशयनी या देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं कहीं इसे पद्मनाभा एकादशी भी कहते हैं। इसी दिन से चतुर्मास का आरंभ माना जाता है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं। इस दिन…
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