निगाहें जब मिली उनसे तभी दिल हार बैठा हूँ
मैं उसपे वारने सब-कुछ लिये तैयार बैठा हूँ !
अगर इक बार कह दे वो कि आ जाओ मेरे दिल में
मैं दुनियाभर की रस्मों को भुलाने को भी बैठा हूँ !!
नानी जब भी मिलती हमेशा एहि एक सवाल करती, कभी कुछ अपनी कहानिया सुनती कभी मेरे पिताजी का हाल पूछते, कुछ मेरे माँ को ताने मार ती छोटी बेहेन के बालों मैं भर भर के तेल लगा के मालिश करती और मुझे? मुझे बास कहानिया सुनती कुछ अपने गांव की खस्ता हालत की तोह कुछ अपने खेतो की कभी कभार अपने बचपन की बात करती वह जो शुरू हुआ रसोई घर के चूल्हे पे उंगलिया जलाते और ख़तम हुआ १४ साल की उम्र मैं उन्हें हाथो मैं मेहँदी लगा की,
वह हमे सुबह सुबह बे मतलब उठा देते थे, हर सुबह मुझसे पूछ लेते "बताओ आज क्या खाओगे" और जो भी कहो थोड़ा प्यार मिला की हार चीज़ मेरे पसंदकी परोस देते थे,
पुराने घर की आँगन मैं अपने हाथो से गोबर की उपले लगते थे पता था उसे यह मुझे बिलकुल पसंद नहीं शायद इसिलए मुझे देख की हस्ती थी, और रात को जब बत्ती गांव की गुल हो जाये, सुन की माँ और छोटी बेहेन के गांव की ज़िन्दगी को दिए गए तानो को मुझसे आंगन मैं अकेले मैं पूछ लेती थी शहर की ज़िन्दगी के बारे मैं, "क्या वह सब कुछ आसानी से मिल जाता है?" हस कर मैं भी जवाब देता "हां बास गोबर के उपलों के अलावा सब कुछ" कुछ टूटे हुए बत्तीसिया उसके भी खिल खिला के है देते,
इस बार दसवीं की परीक्षा मैं यूँही उलझा रहा गर्मियों की छुटियो मैं जा न सका नानी माँ को मिलने ना लिखे कोई छिति न लिखे कोई टेलीग्राम न किया कोई फ़ोन, सोचा नहीं के इस भाग दौड़ मैं कहीं एक भुधि औरत आंगन मैं अकेले मेरा भी इंतज़ार कर रहे होंगे,
आज अचानक चाचा का फ़ोन आया था सुबह दौड़े भागे हम सब पहुँचे वह तोह देखा की नाक मैं सफ़ेद रुइया ठूसा कर, आज नानी गहरी नींद मैं सोये थी, वह रिश्तेदार भी आज फुट फुट के रूए जो कभी हाल तक नहीं पूछते थी, अपने झुर्रियो को बेच मैं अनगिनत किस्से छुपा कर बास सो गए है नानी मेरे,
कभी कभी आंगन मैं अकेले बैठे इंतज़ार रहता है नानी का आज भी, सफ़ेद सारी मैं एके कहे मुझसे वह,
"शहर मैं कुछ खाने को मिलता भी है या नहीं"